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कुंठा और कानून

हरेक की जिंदगी में एक दौर ऐसा आ ही जाता है जब वह इस देश में पैदा होने पर कोसने से खुद को रोक नहीं पाता. ऐसा ही कुछ मद्रास हाईकोर्ट के जज सी एस करनन के साथ हुआ जिन्होंने खुद अपने तबादले पर स्थगन आदेश लगा कर हैरानी फैला दी थी. तबादला करने वाले जजों के खिलाफ आग उगलते करनन का कहना था कि चूंकि वे पिछड़ी जाति के हैं, इसलिए उन्हें तंग किया जा रहा है. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने साथ हुई ज्यादती के खिलाफ एससीएसटी ऐक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कराने की भी धौंस दी थी.

लेकिन हफ्ता पूरा भी नहीं गुजरा था कि इन जज साहब को ज्ञान प्राप्त हो गया कि कैसे वे ओबीसी के हो कर एससीएसटी ऐक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कराएंगे. इसलिए उन की शर्मिंदगी दूर हो गई और वे मान बैठे कि चूंकि वे हफ्तेभर के लिए कुंठित हो गए थे, इसलिए ऐसा कुछ बोल गए थे. अच्छा है कि शर्मिंदगी के ये दोनों अध्याय जल्द और बिना किसी बड़े विवाद के समाप्त हो गए.

तेजाबी होली

सोनी सोरी एक जुझारू और दुस्साहसी आदिवासी युवती हैं जो लंबे वक्त से आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ रही हैं. उन्हें बस्तर में खासा समर्थन भी हासिल है. पिछले साल एक रैली में 10 हजार आदिवासी महिलाएं उन की आवाज पर इकट्ठा हुई थीं तो हर कोई हैरत में पड़ गया था. अब आम आदमी पार्टी में शामिल हो गईं सोनी बीते दिनों जब छत्तीसगढ़ पहुंचीं तो हमलावरों ने उन के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया. उल्लेखनीय बात यह है कि सोनी नक्सलियों की तरह हिंसा में भरोसा नहीं करतीं. इस के बाद भी छत्तीसगढ़ राज्य की पुलिस जाने क्यों उन पर कहर ढाती रहती है. एक बार उन पर झूठे आरोप लगा कर हिरासत में ले कर पुलिस ने उन के गुप्तांगों में पत्थर भर दिए थे. तब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इलाज के लिए कोलकाता भेजा था. अब तेजाब किस ने फेंका, इस पर कोई गंभीर नहीं. मानो, आदिवासी हितों की बात और उन के लिए काम करना कोई गुनाह हो.

भूलासन

योग के फायदे गिनाने वालों की कमी नहीं. लेकिन नुकसान यह है कि जब इसे ज्यादा करते हैं तो याददाश्त कमजोर पड़ने लगती है और योगमाया में डूबा योगी बाहरी दुनिया से कट जाता है. ऐसा ही बीते दिनों योगगुरु रामदेव के साथ हुआ, जब वे जयपुर की एक पत्रकार वार्त्ता में यह कह बैठे कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आत्मा को शांति मिले. आत्मा की शांति की कामना देहत्याग के बाद ही की जाती है. वजह, जब तक वह शरीर में रहती है तब तक अशांत ही मानी जाती है. अटलजी लंबे वक्त से अस्वस्थ हैं, इसलिए आटा, नूडल्स, कौस्मैटिक व किराने के कारोबार में लगे रामदेव भूल गए कि अभी वक्त मुफीद नहीं. लेकिन जबान फिसल गई तो उन्होंने हड़बड़ी में बात संभालने की नाकाम कोशिश की. जाहिर यह हुआ कि योग से एकाग्रता की बात हवाहवाई है वरना रामदेव एक जीवित हस्ती को दिवंगत नहीं बताते.

पकड़े गए साहब

पेशाब करना एक निहायत ही व्यक्तिगत और प्राकृतिक क्रिया है जिसे सार्वजनकि रूप से करते लोग हर कहीं दिख जाते हैं जो इस का वेग या दबाव बरदाश्त नहीं कर पाते. इलाहाबाद के एसडीएम ओ पी श्रीवास्तव अपवाद नहीं निकले जो बीती 23 फरवरी को संगम किनारे बने वोट क्लब पर पेशाब करते हुए एक वीडियो फिल्म में देखे गए. पकड़े गए तो सफाई भी दी. मुमकिन है संगम किनारे बने बोट क्लब में त्रिवेणी से जुड़ी पत्रकारवार्त्ता में जब वे गए थे तब एकाएक ही पेट में मरोड़ उठी हो और जब वे बाथरूम पहुंचे हों तो वहां कुंडी बंद कर पहले से ही कोई दूसरा पीडि़त पेट हलका कर रहा हो, ऐसे में जांच इस बात की होनी चाहिए कि किस शरारती ने इतने गोपनीय ढंग से उन के द्वारा गंगा मैली करने की यह वीडियो फिल्म बना कर वायरल कर डाली.

ले ले बेटा सैल्फी

आज के जमाने में सैल्फी जिसे किसी ने हिंदी अनुवाद में ‘खुद खेंचू’ कह डाला है, गजब की चीज है. फोटो खींचते समय चीज या रसगुल्ला किसी को भी याद कर के मुंह बनाया जा सकता है.

कुछ आत्महत्या करने वाले नौजवान इसे आजमा रहे हैं. आत्महत्या कर के बुजदिली का खिताब पाने से अच्छा है, किसी ऊंचाई की छोर पर पहुंचो, हाथ के मोबाइल को सैल्फी मोड में तानो और बैलेंस बिगड़ जाने की तर्ज में, किसी खाई या उफनती नदी के हवाले अपनेआप को कर दो. अखबार की सुर्खियों में स्वयं खिंचित अंतिम सैल्फी फोटो आ जाती है.

हमें अच्छी तरह याद है. मेला या मीनाबाजार जब कसबे में लगता था तो एक फोटोग्राफर का स्टाल लगा होता था. ढांचे वाली कार या मोटरसाइकिल के साथ फोटो खिंचवाने वाले शौकीनों की एक जमात होती थी. उस जमाने में पत्नी को मीनाबाजार घुमवा देना यानी आज के फौरेन ट्रिप से ज्यादा अहमियत वाला किस्सा था. वह चटखारे लेले कर मीनाबाजार पुराण सालछह महीने जरूर चलाती. अगली बार मीनाबाजार लगने की प्रतीक्षा जोरों से रहती.

उस जमाने में 10-20 देखे गए स्टाल की एकएक चीज की सैल्फी उन की नजरों में खिंची रहती थी. इसी में यदि पति ने फोटो खिंचवाने का प्लान बना लिया तो पत्नी सहित हम सरीखे, 10-12 साल के बच्चों में अति उत्साह का अतिरिक्त संचारी भाव जागृत हुआ रहता था. अपनेअपने स्तर पर हम सब आईने के सामने भिन्नभिन्न पोज बनाने की धुन में व्यस्त हो जाते थे. उधर, फोटोग्राफर को हमारी फोटो फैंटेसी से भला क्या सरोकार होना. दोनों पैर जोड़ कर हाथ जांघ पर रखते हुए सैकंडों में क्लिक कर देता था. मीनाबाजार में खिंचवाए इकलौते फोटो का साजसंभाल जबरदस्त तरीके से होता था.

बाकायदा 7-8 फोटो के संकलन को फ्रेम में जड़वा कर आनेजाने वाले मेहमानों पर अपनी संपन्नता की धौंस जमाई जाती थी. आज वे दिन होते तो मौत की छलांग वाले वीडियो छलांग लगाने वाले की हिम्मत को दाद देते फेसबुक में आएदिन डाले जाते.

दिलचस्प सैल्फी किस्सों में कुछ दर्दनाक यों हैं कि नासिक में पिकनिक मनाने के चक्कर में एक सैल्फी शौकीन को झरनों का बैकग्राउंड मोह इस कदर भारी पड़ा कि सैल्फी से श्रद्धांजलि वाली फोटो फ्रेम में आ गए. ऐसे ही एक जोड़ा ईलूईलू करतेकरते झगड़ बैठा और जब जोड़े की प्रेमिका ने सुसाइड किया तो एक सैल्फी की पूंछ पकड़ कर केस की गिरहें खोली गई थीं. एक सिरफिरे को तेज रफ्तार चलती ट्रेन के साथ सैल्फी लेने की ख्वाहिश थी. उस की ख्वाहिश तो पूरी हुई लेकिन जनाब अंतिम सैल्फी के साथ विदा हो गए.

ऐसा नहीं कि सैल्फी का शौक सिर्फ युवा ही पाले बैठे हों? बड़ीबड़ी हस्तियां भी सैल्फी के खतरनाक संक्रमण से पीडि़त हैं. हमारी मर्डर गर्ल मल्लिका शेरावत को ही ले लीजिए. जब उन्हें लगा कि बेरोजगारी का दुखदायी दौर आ रहा है तो मैडम सीधा अमेरिका पहुंच गईं और जैसेतैसे जुगाड़ कर राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ एक सैल्फी झपट ली. कुछ दिन तक इसी सैल्फी से सोशल मीडिया में मन बहलातेबहलाते मल्लिका बेरोजगारी का गम भूल गईं.

सैल्फी मोड के अन्य किस्सों की कमी नहीं, सेन डियागो में सांप के साथ सैल्फी लेने के चक्कर में सांप ने ऐसा चुंबन दिया कि इलाज में लाखों डौलर फूंक डाले. एक खबर यह भी है कि किसी झाड़ी में छिपे जानलेवा जानवर को बाहर खींच कर उस के साथ तसवीर लेने का शौक 15,300 डौलर की चपत दे गया.

कुछ सिरफिरों की सुरक्षा मानकों को ताक में रख कर सैल्फी लेने को क्या कहा जाए?एक घटना ह्यूस्टन शहर की बताते चलें. एक युवक कनपटी पर रिवौल्वर रख कर सैल्फी ले रहा था. अनहोनी में ट्रिगर का वहीं दबना भी लिखा था, सो दब गया. पुलिस के मुताबिक 19 साल के डिलियन ओलोसो स्मिथ की सैल्फी के लिए कुछ अलग करने की चाहत ने उस की जान ले ली. और हां, इंस्टाग्राम में अधिक ‘लाइक’ पाने की होड़ ने, एक सैल्फीबाज को सक्रिय ज्वालामुखी के मुहाने तक भेज दिया. वहीं अपने देशी खतरों के खिलाड़ी मास्टर ने डी एम मैडम के साथ सैल्फी खींचने की सनक दिखा दी. बेचारे  को वाया सैल्फी थाने की हवा खानी पड़ी. सो होनी को मोबाइल टाल नहीं पाया.

इधर मैं सैल्फी, मीनाबाजार और फोटोग्राफी पर नब्बू के साथ चाय की गुमटी में बीते जमाने के फ्लैशबैक में था, उधर कहीं पास में माइक से भागवत पुराण में कोई संत, जैसा कि अकसर होता है, प्रवचन की मुख्यधारा से हट कर किस्सेकहानियों में भक्तों को बांधने का उपक्रम कर रहे थे. भक्तजनो, इस मिथ्या संसार में आसक्ति ही सभी विवाद की जड़ है. रिश्तों में आसक्ति, पद के प्रति आसक्ति, प्रतिष्ठा के लिए मोह, व्यापार के लिए दौड़भाग, जीतहार के लिए मारकाट, किसी को नीचा दिखाने, किसी से ऊंचा दिखने के लिए आमरण अनशन, ये सब आसक्ति हैं, मोह में फंसे होने का पक्का सुबूत है. मेरा आप सब से आग्रह है कि कल की सभा में आप आएं तो सैल्फी ले कर आएं…

पता नहीं माइक में क्या व्यवधान आया सो बंद हो गया. नब्बू ने कहा, गुरुजी महाराज का प्रवचन अच्छा चल रहा था, अचानक सैल्फी वाली ओछी बात क्यों कह दी? मैं ने चाय के कप को फेंकते हुए कहा, पंडाल पीछे है, चल देख लें. प्रवचन सुनने वाले पुरुषमहिलाओं की अच्छीखासी तादाद थी. प्रवचन किसी यूपी साइड का पंडित कर रहा था. हमारे प्रवेश के बाद माइक वाले ने जैनरेटर मोड में माइक को शुरू कर दिया.

वे बोले, ‘‘आप सब सैल्फी सुन कर अपनेअपने मोबाइल की तरफ देखने लगे, बंधुओ, मेरा आशय एंड्रौयड या स्मार्टफोन से लिए जाने वाले सैल्फी से नहीं है.

‘‘गुणीजनो, हमारे शास्त्रों में सैल्फी का मतलब है ‘आत्मचिंतन’, हम में से हर आदमी चिंतन करता है जिसे मन, दिमाग या बुद्धि संचालित करती है. कल जब आप इस सभा में शामिल हों तो आत्मचिंतन की सैल्फी ले कर आएं. अब प्रश्न यह है कि आत्मचिंतन का सब्जैक्ट क्या हो? मेरी राय में आप सब अपने वर्तमान को टारगेट रखें. जो जिस व्यवसाय में है उस में वह कितना वफादार है, कितनी ईमानदारी की गुंजाइश है और वह कितना दे पाता है? इस सैल्फी का प्रयोग आप महीने में एक बार कर लेंगे तो यकीन मानिए आप की चरबी कम होगी, मोटापा घटेगा, ब्लडप्रैशर ठीक रहेगा, टैंशन दूर होंगे. आज की सभा को यहीं विराम देता हूं.’’

दूसरे दिन हम नब्बू के साथ उत्सुकता से पंडित महाराज और भक्तजनों के बीच होने वाले संवाद को सुनने के लिए पहुंचे. पंडाल लगभग खाली था. पंडित के चेले पंडाल का मुआयना करकर के जा रहे थे. उन में हम ने एक को पकड़ा, ‘‘क्यों, सभा होगी कि नहीं?’’

वह खिसियाया दिख रहा था, ‘देख तो रहे हो, आप 2 आदमियों के लिए कोई प्रवचन होगा क्या?’ वह बुदबुदाया, ‘अपने महाराज भी प्रवचन की टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में ज्ञान की ऊंचीऊंची फेंक गए. कौन सुनता है आजकल, क्या जरूरत थी भला? अच्छा चढ़ावा मिल रहा था. अब तंबू उखाड़ने की नौबत है. भुगतो. कौन आदमी है जो ईमानदार है इस जमाने में, बताओ.’ आत्मचिंतन की सैल्फी में विद्रूप चेहरा किस को भाता है, कोई, कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं बचता. महाराज, उधर, अकेले में अपनी सैल्फी ले रहे हैं. देखो, कहीं दौरा न पड़ जाए उन्हें.

बीमारी बन गई आरक्षण की दवा

‘अजगर करे न चाकरी पंक्षी करे न काज’ की तर्ज पर देश में हर जाति अब आरक्षण की हलवा खाना चाहती है. जनता की इस कमजोरी का लाभ उठा कर नेताओं ने आरक्षण को वोटबैंक बना दिया है. नेता आरक्षण को समाज के सुधार के लिये नहीं, बल्कि कुर्सी पर बने रहने के लिये कर रहे है. यह कारण है कि आरक्षण का लाभ 70 साल के बाद भी अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच सका है. भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र  सरकार ने अपने मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की आरक्षण नीति को नकार दिया है. वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि आरक्षण के मौजूदा प्रारूप से कोई छेडछाड नहीं की जायेगी.

बीमारू समाज को सेहतमंद करने का जो इलाज आरक्षण की दवा के रूप में 70 साल पहले खोजा गया आज खुद बीमारी बन कर समाज के सामने खडा है. 21 प्रतिशत दलित आरक्षण के साथ शुरू हुआ सफर 50 फीसदी तक पहुंच गया है. अगर सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय न की होती, तो शायद आरक्षण का प्रतिशत कहीं का कहीं पहुंच गया होता. आरक्षण का लाभ दलित और पिछडे समाज में मुठ्ठी भर लोगों तक ही सीमित रह गया है. जिसकी वजह से दलित और पिछडों का बडा वर्ग अभी भी जस का तस बना हुआ है.

आरक्षण से समाजिक समरसता की कल्पना अब जातीय विवाद तक पहुंच गई है. गुजरात में पटेल, हरियाणा में जाट बिरादरी ने अपने लिये आरक्षण की मांग करते हुये जो रोष दिखाया उससे आने वाले दिनों में वर्ग संघर्ष का संकेत साफ साफ दिख रहा है. आरक्षण को नेताओं ने अपनी कुर्सी को बचाने का हथियार बना लिया. आरक्षण की समीक्षा को इसके खत्म करने की साजिश बता कर आरक्षण का लाभ पा चुके लोग अपनी ही बिरादरी के लोगों को इसके लाभ से वंचित रखना चाहते है. दलित और पिछडी जातियों में आरक्षण का लाभ केवल उन जातियों केा ही मिल सका है जिनके नेता सरकार में रहे है. बाकी समाज की हालत वैसी ही है. तमिलनाडु में दलित युवक की हत्या इसलिये कर दी गई क्योकि उसने ऊंची जाति की लडकी से शादी की थी. आगरा में गलती से दलित के छू जाने से उसको सजा दी गई.

दक्षिण भारत के राज्यों को शिक्षित माना जाता है. शिक्षा ने भी सोच को प्राभवित नहीं किया है. दक्षिण के राज्यों में स्कूल में पढने वाले बच्चे अलग अलग रंग के धागे अपने हाथ में पहन कर आते है. जिससे उनकी जाति का पता चल सके. आरक्षण के जरीये दलित और पिछडों को जो मिला, उसका लाभ उठा चुके लोग अब भी उसको छोडना नहीं चाहते, जिससे कि उनकी ही जाति के दूसरे लोगों का भला हो सके. आरक्षण का लाभ पीढी दर पीढी देने की नीति समाज में नई मुश्किलो को पैदा कर रही है. जरूरत है कि आरक्षण को वोट बैंक से दूर रखकर देश और समाज के हित में समीक्षा की जाये. जिससे जो लोग अब तक आरक्षण का लाभ नहीं पाये उनको भी यह अधिकार मिल सके.

‘इमोजी’ का करते हैं इस्तेमाल, तो जरूर पढ़ें ये खबर

आजकल फेसबुक, व्हाट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया पर लोग टेक्सड लिखने के बजाए ‘इमोजी’ यानी स्माइली का प्रयोग करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. चैटिंग में रिप्लाई करना हो तो इमोजी, फोटो पर कमैंट करना हो तो इमोजी, युवाओं ने तो ‘इमोजी’ से अपनी एक अलग भाषा ही बना ली है.

पर क्या आप जानते हैं. चैटिंग के दौरान जो लोग ‘इमोजी’ का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं, उन के दिमाग में हर समय सैक्स सवार रहता है. हैरान रह गए न? लेकिन यह सच है, डेटिंग वेबसाइट मैच डौट कौम की नई शोध के मुताबिक वे लोग, जो लगभग हर टेक्स्ड मैसेज में ‘इमोजी’ का इस्तेमाल करते हैं, उन का दिमाग हर समय सैक्स के बारे में सोचता है. 5000 लोगों पर किए गए इस सर्वे में 36-40 प्रतिशत लोग ऐसे थे जो मैसेज में एक से ज्यादा ‘इमोजी’ यूज करते थे. ये लोग दिन में कई बार सैक्स के बारे में सोचते थे, वहीं जो लोग सैक्स के बारे में कभी नहीं सोचते थे, उन के मैसेज में इमोजी का यूज बहुत कम था.

मजेदार इमोजीघटा रहा है क्रिएटिवी

‘इमोजी’ भले ही चैट के दौरान मजेदार अनुभव देता है, लेकिन यह हमारे लिखने और सोचने की क्रिएटिवी को घटा रहा है. इस के इस्तेमाल से हम शब्दों में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में असफल हो रहे हैं, यह काम दौरान हमारा ध्यान भटकाने के साथ ही सामने वाले व्यक्ति को यह भी बताता है कि आप उस से बात करने में इंटरेस्टेड नहीं हैं.

एक ही जगह से आते हैं लंगर और तूफान

एक बार रामभरोसे ने एक जहाज पर नौकरी की. नौकरी से पहले बाकायदा उस का टैस्ट हुआ और फिर इंटरव्यू. नौकरी में उस का काम था जहाज का लंगर उतारना. इसलिए इंटरव्यू के दौरान उस से एक अफसर ने सवाल पूछा, ‘‘अगर आंधी आई तो क्या करोगे?’’

रामभरोसे ने जवाब दिया, ‘‘जहाज का लंगर पानी में डाल देंगे.’’

दूसरे अधिकारी ने सवाल पूछा, ‘‘अगर आंधी बहुत भयंकर हुई तो क्या करोगे?’’

उस ने कहा, ‘‘दूसरा लंगर डाल देंगे.’’

एक और अधिकारी ने कहा, ‘‘आंधी कोई साधारण आंधी नहीं है. बहुत खतरनाक है, तो तुम क्या करोगे?’’

उस ने जवाब दिया, ‘‘तो तीसरा लंगर भी डाल देंगे.’’

अब पहले अधिकारी ने कहा, ‘‘इतनी जोर की आंधी है जैसी कि तुम ने पहले कभी देखी ही नहीं है. ऐसा लग रहा है कि जहाज अब डूबा, तब डूबा. सब के प्राण संकट में पड़े हैं. तब क्या करोगे?’’

तो उस ने कहा, ‘‘चौथा लंगर डाल देंगे.’’

रामभरोसे के जवाब सुन कर इंटरव्यू लेने वाला अधिकारी खीज गया. उस ने कहा, ‘‘तुम इतने लंगर ला कहां से रहे हो?’’

रामभरोसे ने जवाब दिया, ‘‘जहां से आप आंधी और तूफान ला रहे हैं.’

कानपुर के मनु ने बनाया फायरप्रूफ फर्नीचर

फर्नीचर हर घर के इंटीरियर का हिस्सा होता है. यह घर को सजाने संवारने के अलावा घर के सदस्यों की जरूरत को भी पूरा करता है. इसकी मौजूदगी जितनी आरामदायक है, उतनी ही खतरनाक भी साबित हो सकती है. खासतौर पर यदि घर पर कभी आग लग जाए तो सबसे पहले लकड़ी और प्लास्टिक के फर्नीचर जलकर राख होते हैं. साथ ही इनके आसपास रखा सामान भी आसानी से आग की चपेट में आ जाता है. लेकिन अब इस मुसीबत से बचने का रास्ता खोज लिया गया है. यह खोज की है उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के मनु भास्कर गौर ने.

दरअसल मनु ने एक रिसर्च के तरह फर्नीचर को फायरप्रूफ, दीमकप्रूफ औैर रिंकलप्रूफ करने का फार्मूला निकाला है. इस बाबत मनु कहते हैं, अक्सर लोगों की शिकायत रहती हैं कि उनके महंगे फर्नीचर में आग लगने, दीमक लगने और रिंकल पड़ने से उनकी खूबसूरती में दाग लग गया है. इस वजह से उन्हें जल्दी जल्दी फर्नीचर बदलना पड़ता है. लेकिन जिस तकनीक पर मैंने काम किया है वो न केवल उनके फर्नीचर की खूबसूरती को संभाल कर रखेगी बल्कि आपातकालीन परिस्थितियों में घर को कम से कम हानि पहुंचने में भी मददगार साबित होगी.

मनु के बनाए यह फर्नीचर जल्द ही उनकी वैबसाइट (www.thecounterculture.com) में बिक्री के लिए मौजूद होंगे. मनु अपनी कंपनी के बारे में बताते हैं, (www.thecounterculture.com) एक ई कौमर्स कंपनी है, जिसमें फर्नीचर्स की औनलाइन बिक्री की जाती है.

क्या है तकनीक?

– इस फर्नीचर में इस्तेमाल होने वाला कपड़ा फायरप्रूफ होगा. इस कपड़े पर खास तरह की कैमिकल कोटिंग की जाएगी जो कपड़े को फायरप्रूफ बनाएगी.

– इस खास फर्नीचर को बनाने में फैब्रिक रबिंग टेस्ट किया जाता है. इस टेस्ट में कपड़े को मशीन के दोनों ओर बांध दिया जाता है और फिर मशीन उसे रगड़ती है. इस रगड़ में जितने कपड़े में जितने रोएं उठते हैं उसी पर फैब्रिक की गुणवत्ता तय होती है.

– आमतौर पर 30 हजार रगड़ बर्दाश्त करने वाले फैब्रिक पर यदि रोएं न उठे तो उसे अच्छा माना जाता है. लेकिन इस फर्नीचर के लिए 45 से 85 हजार रबिंग क्षमता रखी गई है.

– फर्नीचर को दीमक प्रूफ बनाने के लिए एक कैमिकल तैयार किया गया है जिसका उपयोग लकड़ी पर ट्रीटमेंट देने के लिए किया जाएगा. जिससे लकड़ी दीमकप्रूफ हो जाएगी.

– इस फर्नीचर को रिंकल फ्री बनाने के लिए लोहे की कील की जगह लकड़ी की विशेष किलों को प्रयोग किया गया है.

अन्य स्टार्टअप बिजनैस पर एक नजर

1. छत पर बनाएं किचन गार्डनः thelivinggreen.com प्रतीक तीवारी द्वारा वर्ष 2013 में र्स्टाटअप इंडिया के तहत शुरू किया गया बिजनैस है. यह कंपनी शहरी घरों की छत पर किचन गार्डन सैटअप करने का काम करती है.

2. सेंटेड जूतेः खुशबूदार जूते बनाने वाली यह कंपनी वर्ष 2014 में करण विज द्वारा स्थापित की गई थी. और्गेनिक कौटन से बने यह जूते बहुत ही हल्के होते हैं. इनकी कीमत भी ज्यादा नहीं है. 1800 रुपए से 2700 रुपए तक में यह आपको  scentra.com  में आसानी से मिल जाएंगे.

3. औन डिमांड औफिसः बड़ी बड़ी मैट्रो सिटीज में रहनें को जगह नहीं मिलती औफिस खोलने के लिए मनचाही जगह मिल पाना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में कौशल सांघवी ने वर्ष 2015 में औन डिमांड औफिस की सुविधा के लिए breathingroom.com नाम से एक औनलाइन पोर्टल की शुरुआत की, जहां मात्र 79 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से कोई भी अपना औफिस सैटअप कर सकता है.

राबड़ी के चलते बदली गई आरएसएस की ड्रेस

आरएसएस का पोशाक बदलने का फैसला उसका व्यक्तिगत या संस्थागत फैसला है, जिस पर एक दिलचस्प खुलासा आरजेडी मुखिया लालू यादव ने यह कहते किया है कि ऐसा उनकी पत्नी राबड़ी देवी के एक आक्रामक और तर्क पूर्ण बयान के चलते हुआ. हुआ इतना था कि इसी साल जनवरी के महीने मे राबड़ी देवी ने संघ पर निशाना साधते कहा था कि यह कैसा संगठन है, जिसमे बुढ़े यानि उम्र दराज लोगों को भी हाफ पैंट पहनना पड़ती है, क्या इससे उन्हे सार्वजनिक स्थानों पर जाने मे शर्म महसूस नहीं होती?

हालांकि संघ मे ड्रेस बदलने की कवायद लम्बे वक्त से चल रही थी, लेकिन राबड़ी के ताने ने उसे जल्द फैसला लेने मजबूर कर दिया. संघ के इस फैसले मे रहस्य या हिंदुत्व ढूँढ़ रहे लोगों की उत्सुकता ख़त्म हो जानी चाहिये और महाभारत का दुर्योधन वध का प्रसंग याद कर तसल्ली कर लेना चहिये जिसमे उसका पूरा शरीर वज्र का नहीं हो पाया था, क्योंकि मारे शर्म के वह अधोवस्त्र पहने रहा था. तब भी वजह एक महिला थी और अब लालू की माने तो ड्रेस बदलने के चर्चित मामले का श्रेय उनकी पत्नी को जाता है.

ड्रेस कोड़ हर कभी तय होता रहता है, पर उम्र के चलते बुजुर्गों को इससे छूट मिली हुई थी, लेकिन राबड़ी के कहने पर आरएसएस को शर्म आई, यह कहना ज़रूर अतिशयोक्ति और आत्म मुग्धता बाली वात है. तय है अगर लालू को अहसास होता कि संघ उनकी पत्नी को इतनी गम्भीरता से लेगा, तो वे बजाय ड्रेस के मानसिकता बदलने पर कटाक्ष करवाते.

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