आज के जमाने में सैल्फी जिसे किसी ने हिंदी अनुवाद में ‘खुद खेंचू’ कह डाला है, गजब की चीज है. फोटो खींचते समय चीज या रसगुल्ला किसी को भी याद कर के मुंह बनाया जा सकता है.
कुछ आत्महत्या करने वाले नौजवान इसे आजमा रहे हैं. आत्महत्या कर के बुजदिली का खिताब पाने से अच्छा है, किसी ऊंचाई की छोर पर पहुंचो, हाथ के मोबाइल को सैल्फी मोड में तानो और बैलेंस बिगड़ जाने की तर्ज में, किसी खाई या उफनती नदी के हवाले अपनेआप को कर दो. अखबार की सुर्खियों में स्वयं खिंचित अंतिम सैल्फी फोटो आ जाती है.
हमें अच्छी तरह याद है. मेला या मीनाबाजार जब कसबे में लगता था तो एक फोटोग्राफर का स्टाल लगा होता था. ढांचे वाली कार या मोटरसाइकिल के साथ फोटो खिंचवाने वाले शौकीनों की एक जमात होती थी. उस जमाने में पत्नी को मीनाबाजार घुमवा देना यानी आज के फौरेन ट्रिप से ज्यादा अहमियत वाला किस्सा था. वह चटखारे लेले कर मीनाबाजार पुराण सालछह महीने जरूर चलाती. अगली बार मीनाबाजार लगने की प्रतीक्षा जोरों से रहती.
उस जमाने में 10-20 देखे गए स्टाल की एकएक चीज की सैल्फी उन की नजरों में खिंची रहती थी. इसी में यदि पति ने फोटो खिंचवाने का प्लान बना लिया तो पत्नी सहित हम सरीखे, 10-12 साल के बच्चों में अति उत्साह का अतिरिक्त संचारी भाव जागृत हुआ रहता था. अपनेअपने स्तर पर हम सब आईने के सामने भिन्नभिन्न पोज बनाने की धुन में व्यस्त हो जाते थे. उधर, फोटोग्राफर को हमारी फोटो फैंटेसी से भला क्या सरोकार होना. दोनों पैर जोड़ कर हाथ जांघ पर रखते हुए सैकंडों में क्लिक कर देता था. मीनाबाजार में खिंचवाए इकलौते फोटो का साजसंभाल जबरदस्त तरीके से होता था.
बाकायदा 7-8 फोटो के संकलन को फ्रेम में जड़वा कर आनेजाने वाले मेहमानों पर अपनी संपन्नता की धौंस जमाई जाती थी. आज वे दिन होते तो मौत की छलांग वाले वीडियो छलांग लगाने वाले की हिम्मत को दाद देते फेसबुक में आएदिन डाले जाते.
दिलचस्प सैल्फी किस्सों में कुछ दर्दनाक यों हैं कि नासिक में पिकनिक मनाने के चक्कर में एक सैल्फी शौकीन को झरनों का बैकग्राउंड मोह इस कदर भारी पड़ा कि सैल्फी से श्रद्धांजलि वाली फोटो फ्रेम में आ गए. ऐसे ही एक जोड़ा ईलूईलू करतेकरते झगड़ बैठा और जब जोड़े की प्रेमिका ने सुसाइड किया तो एक सैल्फी की पूंछ पकड़ कर केस की गिरहें खोली गई थीं. एक सिरफिरे को तेज रफ्तार चलती ट्रेन के साथ सैल्फी लेने की ख्वाहिश थी. उस की ख्वाहिश तो पूरी हुई लेकिन जनाब अंतिम सैल्फी के साथ विदा हो गए.
ऐसा नहीं कि सैल्फी का शौक सिर्फ युवा ही पाले बैठे हों? बड़ीबड़ी हस्तियां भी सैल्फी के खतरनाक संक्रमण से पीडि़त हैं. हमारी मर्डर गर्ल मल्लिका शेरावत को ही ले लीजिए. जब उन्हें लगा कि बेरोजगारी का दुखदायी दौर आ रहा है तो मैडम सीधा अमेरिका पहुंच गईं और जैसेतैसे जुगाड़ कर राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ एक सैल्फी झपट ली. कुछ दिन तक इसी सैल्फी से सोशल मीडिया में मन बहलातेबहलाते मल्लिका बेरोजगारी का गम भूल गईं.
सैल्फी मोड के अन्य किस्सों की कमी नहीं, सेन डियागो में सांप के साथ सैल्फी लेने के चक्कर में सांप ने ऐसा चुंबन दिया कि इलाज में लाखों डौलर फूंक डाले. एक खबर यह भी है कि किसी झाड़ी में छिपे जानलेवा जानवर को बाहर खींच कर उस के साथ तसवीर लेने का शौक 15,300 डौलर की चपत दे गया.
कुछ सिरफिरों की सुरक्षा मानकों को ताक में रख कर सैल्फी लेने को क्या कहा जाए?एक घटना ह्यूस्टन शहर की बताते चलें. एक युवक कनपटी पर रिवौल्वर रख कर सैल्फी ले रहा था. अनहोनी में ट्रिगर का वहीं दबना भी लिखा था, सो दब गया. पुलिस के मुताबिक 19 साल के डिलियन ओलोसो स्मिथ की सैल्फी के लिए कुछ अलग करने की चाहत ने उस की जान ले ली. और हां, इंस्टाग्राम में अधिक ‘लाइक’ पाने की होड़ ने, एक सैल्फीबाज को सक्रिय ज्वालामुखी के मुहाने तक भेज दिया. वहीं अपने देशी खतरों के खिलाड़ी मास्टर ने डी एम मैडम के साथ सैल्फी खींचने की सनक दिखा दी. बेचारे को वाया सैल्फी थाने की हवा खानी पड़ी. सो होनी को मोबाइल टाल नहीं पाया.
इधर मैं सैल्फी, मीनाबाजार और फोटोग्राफी पर नब्बू के साथ चाय की गुमटी में बीते जमाने के फ्लैशबैक में था, उधर कहीं पास में माइक से भागवत पुराण में कोई संत, जैसा कि अकसर होता है, प्रवचन की मुख्यधारा से हट कर किस्सेकहानियों में भक्तों को बांधने का उपक्रम कर रहे थे. भक्तजनो, इस मिथ्या संसार में आसक्ति ही सभी विवाद की जड़ है. रिश्तों में आसक्ति, पद के प्रति आसक्ति, प्रतिष्ठा के लिए मोह, व्यापार के लिए दौड़भाग, जीतहार के लिए मारकाट, किसी को नीचा दिखाने, किसी से ऊंचा दिखने के लिए आमरण अनशन, ये सब आसक्ति हैं, मोह में फंसे होने का पक्का सुबूत है. मेरा आप सब से आग्रह है कि कल की सभा में आप आएं तो सैल्फी ले कर आएं…
पता नहीं माइक में क्या व्यवधान आया सो बंद हो गया. नब्बू ने कहा, गुरुजी महाराज का प्रवचन अच्छा चल रहा था, अचानक सैल्फी वाली ओछी बात क्यों कह दी? मैं ने चाय के कप को फेंकते हुए कहा, पंडाल पीछे है, चल देख लें. प्रवचन सुनने वाले पुरुषमहिलाओं की अच्छीखासी तादाद थी. प्रवचन किसी यूपी साइड का पंडित कर रहा था. हमारे प्रवेश के बाद माइक वाले ने जैनरेटर मोड में माइक को शुरू कर दिया.
वे बोले, ‘‘आप सब सैल्फी सुन कर अपनेअपने मोबाइल की तरफ देखने लगे, बंधुओ, मेरा आशय एंड्रौयड या स्मार्टफोन से लिए जाने वाले सैल्फी से नहीं है.
‘‘गुणीजनो, हमारे शास्त्रों में सैल्फी का मतलब है ‘आत्मचिंतन’, हम में से हर आदमी चिंतन करता है जिसे मन, दिमाग या बुद्धि संचालित करती है. कल जब आप इस सभा में शामिल हों तो आत्मचिंतन की सैल्फी ले कर आएं. अब प्रश्न यह है कि आत्मचिंतन का सब्जैक्ट क्या हो? मेरी राय में आप सब अपने वर्तमान को टारगेट रखें. जो जिस व्यवसाय में है उस में वह कितना वफादार है, कितनी ईमानदारी की गुंजाइश है और वह कितना दे पाता है? इस सैल्फी का प्रयोग आप महीने में एक बार कर लेंगे तो यकीन मानिए आप की चरबी कम होगी, मोटापा घटेगा, ब्लडप्रैशर ठीक रहेगा, टैंशन दूर होंगे. आज की सभा को यहीं विराम देता हूं.’’
दूसरे दिन हम नब्बू के साथ उत्सुकता से पंडित महाराज और भक्तजनों के बीच होने वाले संवाद को सुनने के लिए पहुंचे. पंडाल लगभग खाली था. पंडित के चेले पंडाल का मुआयना करकर के जा रहे थे. उन में हम ने एक को पकड़ा, ‘‘क्यों, सभा होगी कि नहीं?’’
वह खिसियाया दिख रहा था, ‘देख तो रहे हो, आप 2 आदमियों के लिए कोई प्रवचन होगा क्या?’ वह बुदबुदाया, ‘अपने महाराज भी प्रवचन की टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में ज्ञान की ऊंचीऊंची फेंक गए. कौन सुनता है आजकल, क्या जरूरत थी भला? अच्छा चढ़ावा मिल रहा था. अब तंबू उखाड़ने की नौबत है. भुगतो. कौन आदमी है जो ईमानदार है इस जमाने में, बताओ.’ आत्मचिंतन की सैल्फी में विद्रूप चेहरा किस को भाता है, कोई, कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं बचता. महाराज, उधर, अकेले में अपनी सैल्फी ले रहे हैं. देखो, कहीं दौरा न पड़ जाए उन्हें.