लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के दौरान देश का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के मामले को सिर पर चढ़ा लेना एक हद दर्जे की मूर्खता माना जाएगा. भारतीय जनता पार्टी के नेता अफजल गुरु की फांसी के मामले पर हुए विरोध को देशद्रोह का नाम दे कर हिंदू धर्म को थोपने की कोशिशों के विरोध को छिपाने का काम कर रहे हैं. देशभक्ति केवल कुछ की बपौती नहीं है. इस का एकाधिकार केवल उसी को नहीं दिया गया है जो पूजापाठ को देशभक्ति का पर्याय मानता है. हिंदू देवीदेवताओं के आगे सिर नवाना देश के लिए कोई बलिदान नहीं है. धर्म यहां के लोगों का निजी मामला है और इसे मानने, इस का प्रचार करने का लोगों का मौलिक अधिकार है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की आत्महत्या पर उठे सवालों को बहुत गंभीरता से उछाल रहे थे और उन को सबक सिखाने के लिए अफजल गुरु के नाम पर हंगामा खड़ा कर के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को कठघरे में खड़ा कर दिया गया और दलितों और पिछड़ों के साथ हो रहे भेदभाव को दबा दिया गया है. देशभक्ति धर्मभक्ति से कहीं अलग है. देश में प्रचलित किसी धर्म या सभी धर्मों का विरोध कर के भी देशभक्त बना रहा जा सकता है. असल में जो किसी धर्म को नहीं मानते, वे ही असल में देशभक्त होते हैं और वे ही अपनी आईडैंडिटी देश के रूप में देते हैं. जो धर्मभक्त हैं, वे हिंदू, मुसलिम, ईसाई या सिख पहले हैं, देश के वासी बाद में. धर्मभक्तों की निष्ठा बंटी होती है. उन के लिए जो उन का धर्म न माने वह देश में रह कर, देश का नागरिक हो कर भी पराया है और यही धर्मभक्त देशभक्त का लबादा ओढ़ कर अदालत में हाथापाई कर रहे हैं.

इतिहास में भी कभी धर्म के नाम पर राज नहीं चले. राजा जरूर किसी धर्म को मानते थे, पर हर राजा हर धर्म के लोगों को पलनेबसने देता था. इस का मुख्य कारण था कि जब हिंदू राजाओं का राज था, तो वैदिक पौराणिक धर्म को मानने वाले अत्यंत अल्पमत में थे. उन की जगह मुसलिम विदेशियों ने ली और वे भी अल्पमत में रहे. जो भारतवासी मुसलमान बने, वे शासकों के लिए पराए ही थे. अंगरेजों ने भी धर्म परिवर्तन न के बराबर कराया. जो ईसाई देश में दिखते हैं, वे कैथोलिक हैं, जबकि ब्रिटिश प्रोटैस्टैंट के हैं. प्रोटैस्टैंटों ने उस तरह हिंदू समाज के दबेकुचलों को ईसाई नहीं बनाया, जैसा मौलवियों या कैथोलिक पादरियों ने बनाया.

आज कोशिश की जा रही है कि पिछले दरवाजे से देश पर पौराणिक हिंदू प्रणाली थोप दी जाए, जिस में पंडों और दानदाताओं की चले. इस में देश का अंधविश्वासी समाज घिरा है, पर समझदार और बराबरी का हकदार हिस्सा इस आक्रमण को कितना सह पाएगा, यह देखने की बात है? पश्चिम एशिया का इसलामिक स्टेट गवाह है कि कुछ लोग बंदूक व ताकत के सहारे धर्म की आड़ में हर तरह का संहार कर सकते हैं. यहां अबू बकर अल बगदादी का खलीफापन और हिटलर का यहूदी विरोधी कट्टर ईसाई नाजी संप्रदाय दोहराना सफल नहीं होगा, पर देश उस ओर बढ़ रहा है.

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