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तो इस्तीफा दे देते ज्योतिरादित्य सिंधिया

अगर देश के दस शीर्ष महत्वाकांक्षी नेताओं की सूची बनाई जाए, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम उसमे शामिल हो ही जाएगा. ग्वालियर राजघराने के चाकलेटी चेहरे वाले इस नेता से अब अपने गृह प्रदेश मध्य प्रदेश की दुर्दशा बर्दाश्त नहीं हो रही है, बर्दाश्त तो उनसे हालांकि यह भी नहीं हो रहा है कि कांग्रेस जाने कब तक यूं ही सत्ता से बाहर रहते बात बात पर बवाल मचाते राजनीति की मुख्य धारा में बने रहने की कोशिश करती रहेगी, पर सिंधिया को यह ज्ञान विरासत में अपने पिता माधवराव सिंधिया से मिला है कि राजनीति अनिश्चितताओं का समुच्चय है, इसलिए धैर्य रखना चाहिए.

कभी कभी यह धैर्य नाम का गुण साथ छोड़ देता है तो सिंधिया अपने दिल की भड़ास भी नहीं रोक पाते. अपने संसदीय क्षेत्र गुना–शिवपुरी अब अक्सर वे आते जाते रहते हैं और सांसद होने के नाते सरकारी विभागों की मीटिंगों मे भी शामिल होकर मतदाता को जता देते हैं कि देखो तुम्हारी चिंता और फिक्र में मुझे इन अधिकारियों के मुंह लगना पड़ता है, इसलिए अगली दफा भी संसद पहुंचा देना.

ऐसी ही एक मीटिंग में वे राज्य और उनके क्षेत्र की परेशानियों को लेकर बिफर पड़े और पूरी ईमानदारी से क्रोधित हुये, तो एक बारगी तो मौजूद अधिकारी भी सहम गए क्योंकि उनका गुस्सा दुर्वासा सरीखा था. जितनी देर वे गुस्से में बोले उतनी देर अधिकारियों ने इस राजसी क्रोध को सम्मान दिया और पिन ड्रॉप साईलेंस रखा.

बहरहाल सिंधिया के क्रोध का विसर्जन इन शब्दों के साथ हुआ कि अगर मैं मुख्य मंत्री होता तो इस्तीफा दे देता. तब कहीं जाकर मौजूद अफसरों को समझ आया कि श्रीमंत का यह गुस्सा दरअसल में खुद के सीएम न होने को लेकर था, तो उन्होने गज भर लंबी राहत की सांस ली कि बात चिंता या घबराने की नहीं, सांसद महोदय दिल में दबी एक ख़्वाहिश भर जाहिर कर रहे हैं. सिंधिया की रवानगी के बाद जाहिर है कुछ ने यह भी कहा होगा कि काश आप प्रदेश के मुख्यमंत्री होते.

बाइक टैक्सी अच्छा प्रयोग

मोटरसाइकिल टैक्सियां देश के बहुत से हिस्सों में अरसे से चल रही हैं पर उन्हें शायद ही कहीं सरकार से विधिवत लाइसैंस मिलता था. इस का अर्थ था कि पुलिस वालों को हक था कि जब चाहें उन्हें रोक कर वसूली कर लें. अब औनलाइन टैक्सी सेवा देने वाली कंपनी उबर ने भारत में बाइक टैक्सी को भी बुक करने का कार्यक्रम बनाया है. अपने मोबाइल से जहां खड़े हों वहां का पता बताओ और दोपहिया वाहन सामने हाजिर और बैठ कर जहां मरजी जाओ. यह प्रयोग बहुत अच्छा है और इसे और जोरशोर से अपनाना चाहिए. असल में तो हर शहर में 4-5 कंपनियां पैदा हो जाएं जो इस तरह की सेवाएं देने को तैयार हों ताकि पैसा एक अमेरिकी कंपनी को भी न पहुंचे और शहर की आय शहर में ही रहे.

युवतियों के लिए युवती चालक वाली बाइक या स्कूटी सर्विस मिलने लगे तो बहुत सी छेड़खानी बंद हो जाएगी और युवतियों को भीड़भाड़ वाले टैंपो या रिकशों पर निर्भर नहीं रहना होगा जिन में छेड़खानी भी होती है और मैलेकुचैलों के साथ पसीने की बदबू भी सहनी पड़ती है. फैलते शहरों के साथ ये सुविधाएं जमाने को देनी होंगी और भला हो इंटरनैट का कि बहुत सी बातें अपनेआप होने लगी हैं. हम तो यह सुझाव देंगे कि जो भी अपनी मोटरसाइकिल या स्कूटी पर किसी को ले जाने को तैयार हो, वह स्पेयर हैलमेट ले कर चले. जिस ने इशारा किया उस से पूछा और यदि डायरैक्शन न बदलनी हो तो 10 या 20 रुपए में उसे उस के गंतव्य तक छोड़ दिया.

युवाओं को यह काम हलका नहीं, ऊपरी जेबखर्च की कमाई समझना चाहिए. यह युवाओं में आत्मविश्वास बढ़ाने का काम है और यदि प्रयोग सफल हुआ तो शहरों में ही नहीं कसबों और गांवों में भी यह सेवा इशारों से बिना मोबाइल ऐप के साथ शुरू हो सकती है.बढ़ते शहरों में असल मुसीबत बस स्टौप से घर पहुंचने तक होती है और बाइक टैक्सी इस का सफलतम सुरक्षित उपाय है जिस में अपराध की गुंजाइश भी बहुत कम है.

 आज युवाओं को विदेशी कंपनियों के उदाहरणों का लाभ उठाना चाहिए और उन के प्रयोगों का सरलीकरण कर सेवाएं देने का काम शुरू करना चाहिए. विदेशी कंपनियां बहुत बड़े पैमाने पर काम करती हैं पर बहुत कामों में तामझाम की जरूरत नहीं होती. जैसे देशभर में कहीं पैडल रिकशा कंपनी नहीं है वैसे ही बाइक टैक्सी को कंपनी के चक्करों से निकाल कर निजी हाथों में रखना सफल काम होगा जिस में कम पूंजी, थोड़ी मेहनत और कुछ बुद्धिमानी से बहुत काम हो सकेगा.

यूपी: नये ठिकाने की तलाश में जुटे अफसर

उत्तर प्रदेश में विधसानसभा चुनाव आने का समय बाकी है. खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कह चुके हैं कि 250 से 300 दिन बाकी हैं. उत्तर प्रदेश की सरकार में नाक का बाल बने कुछ अफसर चुनाव बाद के परिणाम का अंदाजा लगाकर पलटी मारने की कोशिश करने लगे है. अफसरों की माने तो विधनसभा चुनाव के बाद प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी का पलडा भारी है. कयास इस बात के भी लगाये जा रहे है कि भाजपा और बसपा चुनाव बाद एकजुट को सरकार बना सकते हैं. कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा नेता मायावती ने कहा था कि उनकी सरकार आने पर अखिलेश सरकार के कामों के भ्रष्टाचार की जांच की जायेगी. इसके बाद अफसरशाही बेचैन हो गई है. सबसे ज्यादा चिंता टौप ब्यूरोक्रेट्स की है. जो इस सरकार के फैसलों में भागीदार रहे है. तमाम अफसर मायावती के साथ अपने सपंर्को का नवीनीकरण करने में जुट गये हैं.

मायावती की अपेक्षा भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से ऐसे अफसरों का मिलना सरल होता है. भाजपा नेताओं के पास ऐसे कई रिटायर अफसर पहले से जुडे है. यह रिटायर अफसर इन नये अफसरों के बीच सेतू का काम कर रहे हैं. भाजपा नेता लालजी टंडन की पौत्री की लखनऊ में शादी थी. इसमें बहुत सारे प्रमुख नेताओं और अफसरों को न्यौता दिया गया था. प्रदेश सरकार के कई आला अफसर इस शादी के बहाने भाजपा नेताओं से करीबी बनाते देखे गये. यह अफसर जानते है कि नेताओं से संबंध रख कर नई सरकार में पेशबंदी करनी सरल हो जायेगी. मौका शादी का था उसमें जाने पर कोई बुराई भी नहीं थी. इसलिये अफसरों को इससे बेहतर मौका और कोई समझ नहीं आया. पिछले 20 सालों से उत्तर प्रदेश की नौकरशाही एक तरह से राजनीतिक चोला ओढ चुकी है. आम जनता तक जानती है कि किस सरकार में कौन प्रभावी अफसर होगा और कौन हाशिये पर चला जायेगा.

नौकरशाही के इस राजनीतिकरण में नेताओं और अफसरों दोनो को लाभ होता है. यह एक दूसरे के पूरक बनकर काम करते है. पहले नौकरशाही के केवल कुछ बडे अफसर ही बदलते थे, अब हालात यहां तक पहुंच गये है कि थाना, कचहरी, तहसील और शिक्षा विभाग तक में अपनी पसंद के लोगों को रखा जाने लगा है. नौकरशाही भी अपने उपर इस तरह का बिल्ला चिपका चुनाव के बाद लाभ लेने में लग जाते है. टौप ब्यूरोक्रेट्स से शुरू हुई यह परपंरा अब क्लर्क और बाबूशाही तक पहुंच गई है. यह बात भी है कि इस बंटवारे के बाद भी कुछ अफसर हर जगह अपने को फिट करने की कवायद में सफल हो जाते है. ऐसे अफसर समय रहते ही पाला बदलने की हिकमत जानते है. संतुलन साधने की कला में माहिर ऐसे अफसरों में चुनाव के पहले बेचैनी बढने लगी है. वह नये राजनीतिक समीकरण में जुट गये है.

शहरी युवतियों में ज्यादा है गर्भपात का चलन

टीवी अभिनेत्री प्रत्यूषा बनर्जी की आत्महत्या की जांच जैसे जैसे आगे बढ रही है, कई चौंकाने वाले राज खुल रहे है. डाक्टरी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि प्रत्यूषा 3 माह की गर्भवती थी. गर्भपात के लिये डाक्टर की सलाह पर प्रत्यूषा ने गर्भपात का फैसला किया था. नेशनल सैंपल सर्वे आफिस से मिले आंकडे भी बताते है कि प्रत्यूषा जैसी बहुत सारी लडकियां गर्भपात का सहारा लेने लगी है. सर्वे के आंकडों को देखें तो पता चलता है कि गांव की लडकियों के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में रहने वाली लडकियां गर्भपात का ज्यादा सहारा लेती है. नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) ने देश भर के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सर्वे कर जो आंकडे सामने रखे उनसे पता चलता है कि शहरी किशोरियों में गर्भपात का चलन अधिक है. 20 साल से कम आयु वर्ग की 0.7 फीसदी ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली लडकियां ही गर्भपात की दवाओं का सेवन करती है.

शहरी क्षेत्रों में रहने वाली लडकियों में यही आंकडा पूरी तरह से बदल जाता है. 20 साल से कम आयु वर्ग की शहरी लडकियों में 13.6 प्रतिशत लडकियां गर्भपात की गोलियों का सेवन करती है. 20 से 24 आयु वर्ग में भी शहरी लडकियों में गर्भपात अधिक होता है. इस आयु वर्ग में ग्रामीण क्षेत्र की 1.3 फीसदी गर्भपात का सहारा लेती हैं. जबकि शहरी इलाकों में यह प्रतिशत बढकर 1.6 हो जाता है.

जनवरी से जून 2014 के बीच हुये सर्वे के आधार पर ‘हेल्थ इन इंडिया’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में बढ रही गर्भपात की घटनाओं को समझने के लिये अध्ययन करने की जरूरत है. सामान्य तौर पर एकत्र की गई जानकारी के आधार पर कहा जा सकता है कि शहरी क्षेत्रों में करियर और रोजगार की तलाश में ज्यादा लडकियां घरों से बाहर रहती हैं, ऐसे में इस तरह के हालात बन जाते है. गांव के मुकाबले शहरों में गर्भपात के ज्यादा साधन मौजूद होने से भी यह तादाद बढी दिखती है.

गर्भपात यौनशिक्षा से जुडा मसला है. हमारे देश में यौन शिक्षा या सेक्स एजुकेशन को सही नहीं माना जाता है. नैतिकता के आधार पर इसका विरोध बडे पैमाने पर होता है. सेक्स को रोकना संभव नहीं है. शहरी क्षेत्रों में लडकियां कम उम्र में ही सेक्स संबंधों की ओर आकर्षित होने लगी हैं. ऐसे में वह असुरक्षित सेक्स का शिकार हो जाती हैं. केवल लडकियां ही नहीं लडको को भी सुरक्षित सेक्स का पता नही होता है. गर्भ ठहरने के बाद भी तब तक लडकियां घर वालों को नहीं बताती जब तक पेट दर्द या दूसरी परेशानी न खडी हो जाये.

ऐसे में अगर समाज में सेक्स एजूकेशन को बढावा मिले तो इस तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है. शादी से पहले गर्भवती लडकी को समाज में गिरी नजरों से ही देखा जाता है ऐसे में उसके सामने आत्महत्या जैसे ही हालात उत्पन्न हो जाते है. जिससे वह ऐसे खतरनाक कदम उठाने को मजबूर हो जाती है.

हादसों की शिकार लखनऊ मेट्रो

उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार विधानसभा चुनावों में अपने विकास के एजेंडें के साथ जाना चाहती है. इसमें सबसे बडा मुद्दा लखनऊ मेट्रो है. प्रदेश सरकार शुरू से ही यह योजना बना कर चल रही है कि विधानसभा चुनाव के पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लखनऊ मेट्रो को हरी झंडी दिखा दें. सरकार के 2 बडे अफसर मुख्य सचिव आलोक रंजन और प्रमुख सचिव सूचना नवनीत सहगल लखनऊ मेट्रों की प्रगति पर लगातार नजर रखे हुये है.

लखनऊ मेट्रो के एमडी कुमार केशव को भी पता है कि लखनऊ मेट्रो मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है. वह विधानसभा चुनाव के पहले लखनऊ की मेट्रो ट्रेन को पटरी पर दौडते देखना चाहते है. लखनऊ मेट्रों में सलाहकार की भूमिका में ई.श्रीधरन है. जिनको मेट्रो मैन के रूप में जाना जाता है. दिल्ली मेट्रो के निर्माण में उनकी प्रमुख भूमिका थी. लखनऊ मेट्रो के निर्माण में लखनऊ मेट्रो रेल कारपोरेशन और एलएंडटी संस्थाये लगी है. एलएंडटी देश की सबसे बेहतर संस्था है.

देखा जाये तो सरकार के स्तर पर लखनऊ मेट्रो का काम बेहतरीन लोग कर रहे है. इसके बाद भी लखनऊ मेट्रो के निर्माण में बेहद लापरवाही बरती जा रही है. इसका सबसे बडा उदाहरण है कि 15 दिन के अंदर 2 बार लखनऊ मेट्रो के निर्माण की पोल खुल गई. पहली बार पुल की सीमेंट गिरने से हादसा हुआ. उस समय उस जगह पर कोई नहीं था इसलिये कोई घायल नहीं हुआ. दूसरी बार निर्माण सामाग्री गिरने से कुछ लोग घायल हो गये. इन 2 हादसों ने लखनऊ मेट्रो के निर्माण में घटिया सामाग्री के प्रयोग की पोल खोल दी है.

लखनऊ मेट्रो के एमडी कुमार केशव ने इसकी समीक्षा और जांच करने की पहल शुरू कर दी है. इस घटना से यह साफतौर पर दिख रहा है कि लखनऊ मेट्रो के निर्माण में कोताही बरती जा रही है. अगर सरकारी बाबूशाही मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट के साथ ऐसा कर सकती है तो बाकी का क्या हाल होगा समझा जा सकता है? सरकारी प्रचार में लखनऊ मेट्रो को करीब करीब बना मान लिया गया है.

अखिलेश सरकार यह सोच रही है कि लखनऊ मेट्रो का पहला चरण समय पर शुरू हो जायेगा, तो विधान सभा चुनावों में वोट बढ जायेंगे. यह सच है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विकास की तमाम योजनाओं को शुरू कर दिया है. परेशानी की बात यह है कि सरकारी नौकर अपने कामों से सरकार की छवि को मजबूत नहीं होने दे रहे है. जिससे जनता में नाराजगी है. प्रदेश की जनता की आवाज मुख्यमंत्री तक पहुंच नहीं रही है. ऐसे में वह वहीं समझ रहे है जो अफसर उनको समझा रहे हैं.

जनता के नाम पर कुछ लोग सरकार की झूठी तारीफ करके सरकार का भला करने का दिखावा कर रहे हैं. समय रहते सरकार ने इस तरह की बातों को संज्ञान में नहीं लिया तो अखिलेश की उम्मीदों की रेल लखनऊ मेट्रो चुनाव में कोई चमत्कार नहीं कर पायेगी. सरकार और सरकारी योजनाओं को जनता के बीच जा कर उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना पडेगा. किसी गांव में जिले के डीएम के रात गुजारने मात्रा से भला नहीं होगा.

कलरफुल फुटवेयर का जलवा

फैशन की दौड़ में हर चीज मैचिंग ही हो यह जरूरी नहीं है. हर बार अपने आउटफिट से सैंडल को मैच करना बहुत ही मुश्किल काम है. अगर आप के पास सैंडल की एक बैस्ट पेयर खरीदने का समय और बजट है तो आप ब्लैड हील्स सैंडल ही खरीदना ठीक समझती है. वैसे भी हर लड़की की वार्डरोब में एक ब्लैक हील्स सैंडल जरूर शामिल रही है. जो हर आउटफिट के साथ मैच करती है. पर अब समय आ गया है ब्लैक सैंडल को बायबाय कहने का और अपने वार्डरोब में न्यू कलर वाले फुटवेयर को शामिल करने का.

ब्लैक कलर को करें रिप्लेस

युवाओं की पसंद को ध्यान में रखते हुए. अब मार्केट में कलरफुल फ्लैट चप्पलों और हाई हील्स सैंडिलों की बहार है. फिर चहो आप की ड्रैस किसी भी सिलुएट या कलर पैलेट में हो, ये फुटवेयर हर ड्रैस के साथ खूबसूरत लगेंगे और आप इस फैशन ट्रैंड को फालो करते हुए दिखेंगे स्टाइलिश.

हील्स का चुनाव

अगर आप ऊेशनेबल दिखना चाहती हैं तो चुनिए ऐसी हील्स वाली सैंडल जो आप के किसी भी आउटफिट के साथ मैच करे. ऐसे में अब बाजार में और ज्यादा वर्सटाइल हील्स के सैंडल मौजूद हैं. जो प्लेन ब्लैक्स से बेहतर दिखते हैं. लेपर्ट प्रिंट और फ्लोरल्स से ले कर चंकी न्यूड हील्स तक. मैचिंग हील्स पहनने में काफी बदलाव आया है. ऐसी हील्स जिन की जरूरत आप को हर मौके पर पड़ेगी जैसे,

चंकी हील्स सैंडल, प्लैटिनम हाई हील्स सैंडल ब्लौक हील्स सैंडल, वैजेस हील सैंडल, क्लार्क हील्स सैंडल, प्लेटफौर्म सैंडल, फ्लोरल ब्लू पंपस सैंडल आदि.

फ्लैट कलरफुल फुटवेयर

अगर आप मैचिंग के शौकीन हैं तो मार्केट में आप को कम कीमत में स्टाइलिश और कलरफुल चप्पलें आसानी से मिल जाएंगी. इस में आप स्ट्रैप वाली, एंब्राइडरी वाली और स्टोन वर्क वाली मोती वर्क वाली कलरफुल फ्लैट चप्पलें खरीदें जिन को पहन कर आप हर दिन टशन मार सकती हैं इन में कई वैराइटी और कलर मौजूद हैं आप अपनी पसंद के अनुसार इस का चुनाव कर सकती हैं गरमियों के मौसम को ध्यान में रखते हुए इस में पैरों को कवर करने वाली फ्लैट फुटवेयर भी मौजूद हैं जो गरमी में पैरों को काले होने से भी बचाएंगी.

कीमत

मार्केट में हाई हील्स वाली सैंडिलों की कीमत 1000 से शुरू होती है जबकि डेली वेयर फ्लैट फुवेयर की कीमत 150 से शुरू होती है. इन फुटवेयर का चुनाव आप ओकेजन के अनुसार कर सकती हैं.

एक रिसर्च के अनुसार हील्स की प्रत्येक इंच के अनुसार शरीर का 25% भार पैर के अगले भाग पर बढ़ जाता है यानी कि सैंडल की हील 2 इंच होने पर 50% और 3 इंच होने पर 75% शरीर का भार पैर की उंगलियों पर पड़ता है. जबकि फ्लैट फुटवेयर से शरीर का समान भार पैर पर पड़ता है.

फुटवेयर खरीदें पर ध्यान से

सैंडल व जूते हमेशा दोपहर के बाद ही खरीदें क्योंकि तब तक चलनेफिरने से पांव में भारीपन आ चुका होता है. जिस से नाप सही हो.

फ्लैट फुटवेयर खरीदते समय सावधानी

कभी भी एकदम फ्लैट चप्पलें न खरीदें. हल्की फ्लैटफौम हील्स लें जो चलने में कंफर्टेबल हो. इस से पैरों की मांसपेशियों पर ज्यादा जोर नहीं पड़ता है.

‘शुद्धि’ के बाद अब ‘राम लखन’ का रीमेक भी डिब्बे में

लगता है करण जोहर के सितारे भी गर्दिश में ही चल रहे हैं. कलाकारों के चयन को लेकर मची आपा धापी के बाद करण जोहर को ‘शुद्धि’ का निर्माण बंद करना पड़ा था. और अब सूत्र बता रहे हैं कि करण जोहर ने ‘राम लखन’ के रीमेक वाली फिल्म को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया है.

सूत्रों के अनुसार इस फिल्म के कलाकारों का मसला भी हल नही हो पा रहा था. जब से इस फिल्म की  घोषणा हुई थी, तब से इस फिल्म के कई कलाकारों की अदला बदली हो चुकी है. पर अंतिम रूप से कौन राम या लखन की भूमिका निभाएगा यह तय नहीं हो पा रहा था, कहां समस्या थी, यह तो करण जोहर ही बेहतर जानते होंगे.

तो दूसरी तरफ इस रीमेक फिल्म का निर्देशन रोहित शेट्टी को करना था. ‘दिलवाले’ के बाद से रोहित शेट्टी के सितारे इतने गर्दिश में चल रहे हैं, कि कोई उनके साथ काम करने को तैयार नहीं है. सूत्र बताते हैं कि इसी वजह से करण जोहर ने भी इस फिल्म को बंद करने में ही अपनी भलाई समझी. देखना यह है कि इस बात की पुष्टि करण जोहर कब करते हैं.

संता बंता प्रा. लिमिटेड: बोर कर देगी ये फिल्म

फिल्म ‘संता बंता’ की कहानी फिजी में रह रहे भारतीय उच्चायुक्त शंकर (अयूब खान) के अपहरण से शुरू होती है. शंकर का पता लगाने के  लिए भारत में रॉ के अधिकारी हनुमंत सिंह (टीनू आनंद) अपने सहयोगी (विजय राज) से कहते हैं कि वह मशहूर भारतीय जासूसों संता और बंता का पता लगाकर उन्हे इस मिशन पर फिजी भेजे. पर हनुमंत का सहयोगी दो नकली जासूसों संतेश्वर सिंह उर्फ संटा (बोमन ईरानी) और बंटेश्वर सिंह उर्फ बंटा (वीर दास) को भेज देता है. फिजी में संता व बंता की मदद के लिए रॉ एजेंट अकबर (संजय मिश्रा) हैं. संटा बंटा मजाक करते रहते हैं. पर जासूसी की एबीसीडी नहीं पता. जिसकी वजह से वह बार बार फंसते रहते हैं.

इस बीच यह पता चलता है कि अपहरणकर्ता सेर रॉ अधिकारी का सहयोगी विजय राज भी मिला हुआ है. पर अंत में शंकर को छुड़ा लिया जाता है. पता चलता है कि शंकर के अपहरण के पीछे शंकर के खास दोस्त व व्यापारी सुल्तान (राम कपूर) और शंकर की पत्नी करीना (नेहा धूपिया) का ही हाथ था. यह दोनो मारे भी जाते हैं.

बेसिर पैर की कहानी, घटिया पटकथा, घटिया जोक्स व घटिया निर्देशन वाली फिल्म ‘‘संता बंता प्रा.लिमिटेड’’ हंसाने की बजाय बोर करती है. फिल्म में जानी लीवर, बृजेश हीरजी व विजय पाटकर के किरदार जबरन ठूंसे गए हैं. इनके पात्रों का कहानी से कोई संबंध ही नही है. आम इंसानों के बीच संता सिंह और बंता सिंह के जोक्स काफी मशहूर हैं. यह दो पात्र मशहूर हैं. मगर इन्हीं पात्रो को लेकर कोई निर्देशक इतनी घटिया फिल्म भी बना सकता है, इसकी किसी ने कल्पना नहीं की होगी. फिल्म की कहानी, संवाद या पात्र किसी भी तरह से दर्शकों के साथ नहीं जुड़ पाते हैं. निर्देशक ने हास्य के कई महारथी कलाकारों को अपनी इस फिल्म से जोड़ा, मगर वह इनका उपयोग करने में बुरी तरह से असफल रहे.

जब कहानी, पटकथा व निर्देशन सब कुछ घटिया स्तर का हो, तो बेचारे बोमन ईरानी या वीर दास अपनी परफार्मेंस की बदौलत फिल्म को कितना आगे ले जा पाते. इसलिए इस फिल्म का बाक्स आफिस पर कोईभविष्य नहीं है.

112 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘संता बंता प्रा.लिमिटेड’’ की निर्माता शीबा आकाश दीप व वायकाम18, निर्देशक आकाश दीप सब्बीर, संगीतकार जस्सी कत्याल, नदीक अहमद , जयदेव कुमार, लेखक असद अजमेरी व पवन सोनी तथा कलाकार हैं- वीर दास, बोमन ईरानी, विजय राज, नेहा धूपिया, लिसा हेडन,जानी लीवर, राम कपूर, संजय मिश्रा, अयूब खान, टीनू आंनद, बृजेश हीरजी, विजय पाटकर, सोनू निगम.

निल बटे सन्नाटाः सपनों और हकीकत की बेहतरीन फिल्म

हर इंसान को सपने देखने और उन्हे पूरा करने के लिए मेहनत करने का हक है. हर इंसान मेहनत के बल पर अपने सपनों को पूरा कर सकता है. कुछ लोग आपके सपनों को पंख लगाने में मददगार साबित होंगे. इस तरह का सकारात्मक संदेश देने वाली ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ मां व बेटी के अनोखे रिश्तों को भी पेश करती है. फिल्म में गणित जैसे अति शुष्क विषय को भी मनोरंजक तरीके से पढ़ाया व पढ़ा जा सकता है, इस बात को भी यह फिल्म रेखांकित करती है. तो वहीं शिक्षा व्यवस्था पर कटाक्ष भी करती है.

फिल्म ‘निल बटे सन्नाटा’ की कहानी उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में लोगों के घरों में जाकर काम करने वाली बाई उर्फ चंदा सहाय (स्वरा भास्कर) और उनकी बेटी अपेक्षा (रिया शुक्ला) के इर्द गिर्द घूमती है. मां बेटी के बीच बड़ा प्यारा सा रिश्ता है. मगर चंदा सहाय को अपनी बेटी की शिक्षा की चिंता सताती रहती है. वह इस बारे में अक्सर अपनी एक घर की मालकिन व डाक्टर (रत्ना पाठक शाह) से जिक्र करती रहती है. डाक्टर मैडम अपनी बातों से चंदा की चिंता खत्म कर देती हैं. जब अपेक्षा दसवीं में पहुंचती है, तो चंदा की चिंता बढ़ जाती है. चंदा को पता है कि की उसकी बेटी गणित विषय में बहुत कमजोर है. उसे पास अपनी बेटी को ट्यूशन पढ़वाने के लिए धन नहीं है. उधर अपेक्षा का मन पढ़ाई में कम टीवी देखने, गाने सुनने,नाचने व खेल में ज्यादा लगता है. क्योंकि उसके दिमाग में शुरू से यह बात भरी हुई है कि डाक्टर का बेटा डाक्टर, इंजीनियर का बेटा इंजीनियर और बाई की बेटी को बाई ही बनना है.

एक दिन जब चंदा प्यार से अपेक्षा से पूछती है कि वह क्या बनना चाहती है, तो अपेक्षा यही बात कह देती है. इससे चंदा के सारे सपने चूर हो जाते हैं. वह कभी नहीं चाहती कि उसकी बेटी भी उसी की तरह घर घर जाकर काम करने वाली कामवाली बाई बने. वह तो अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहती है. डाक्टर मैडम एक सलाह देने के साथ साथ जिस सरकारी स्कूल में अपेक्षा पढ़ती है, उसी सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल श्रीवास्तव (पंकज त्रिपाठी) से मिलकर दसवीं कक्षा में चंदा को प्रवेश दिलवा देती है. यह बातअपेक्षा को अच्छी नहीं लगती.

पहले दिन कक्षा में पहुंचने पर सभी लड़के व लड़कियां चंदा का मजाक उड़ाते हैं कि अब आंटी भी उनके साथ पढ़ेंगी. इस दसवीं कक्षा को गणित प्रिंसिपल श्रीवास्तव ही पढ़ाते हैं. श्रीवास्तव का गणित पढ़ाने का अंदाज बहुत अनूठा है. चंदा को पता चल जाता है कि एक चुपचाप सा रहने वाला लड़का पढ़ाई और खासकर गणित में बहुत तेज है, तो वह उसके साथ बैठना शुरू करती है. चंदा उस लड़के से गणित सीखती है. उस लड़के का मानना है कि गणित याद करने का नहीं बल्कि समझने और उसे जीवन से जोड़ने पर मजा देता है. इस लड़के का मानना है कि गणित के हर सवाल में ही जवाब निहित होता है. इसलिए कई बार पढ़कर सवाल समझने की जरुरत होती है. चंदा धीरे धीरे अपेक्षा के दोस्तों सहित सभी विद्यार्थियों को अपनी तरफ कर लेती है. इससे अपेक्षा और चंदा यानी कि बेटी व मां के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है.

एक दिन अपेक्षा अपनी मां से शर्त लगा लेती है कि यदि गणित में अपेक्षा के नंबर चंदा से ज्यादा आ गए, तो चंदा स्कूल जाना बंद कर देगी. उसके बाद अपेक्षा भी उसी तेज लड़के के साथ बैठना शुरू करती है, उससे गणित सीखती है. छमाही परीक्षा में चंदा को गणित में 52 और अपेक्षा को 58 नंबर मिलते है. फिर चंदा स्कूल जाना बंद कर देती है, लेकिन अचानक सड़क पर जिले के कलेक्टर (संजय सूरी) से चंदा की मुलाकात होती है, जिसके बाद उसकी समझ में आता है, कि उसे अपनी बेटी को कलेक्टर बनाना है. और वह फिर सेस्कूल जाने लगती है.

अब अपेक्षा को गुस्सा आ जाता है. इधर चंदा कलेक्टर से उनके बंगले पर मिलकर जानकारी हासिल करती है कि कोई भी इंसान किस तरह कलेक्टर बन सकता है. अब वह बेटी की पढ़ाई के लिए ज्यादा पैसा इकट्ठा करने के लिए कक्षा के उसी लड़के की मदद से एक ढाबे पर भी नौकरी करने लगती है. स्कूल भी जाती रहती है. इससे नाराज होकर अपेक्षा फिर से पुराने ढर्रे पर लौट आती है. वह चंदा से कहती है कि चंदा अपने सपनों को उस पर न थोपे. अपेक्षा कहती है कि गरीब इंसानों के कोई सपने नहीं होते. चंदा चुप रहकर मेहनत करती रहती है. वह हार नहीं मानती है. एक दिन अपेक्षा देखती है कि उसकी मां किसी के साथ स्कूटर पर बैठकर आयी है. तो वह उस पर शक कर बैठती है. फिर वह अपनी मां को पैसे छिपाकर रखते हुए देखती है.

दूसरे दिन अपेक्षा मां के सारे पैसे चुराकर अपने दोस्तो के साथ पार्टी मनाती है. खरीददारी करती है. जब मांउसे चोरी करने के लिए पीटती है, तो अपेक्षा बहुत कड़वे शब्द अपनी मां से कहती है. दो चार दिन बाद वही लड़का अपेक्षा को समझाता है कि उसकी मां सिर्फ अपेक्षा के सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत करती है और अपेक्षा का शक दूर करने के लिए उसे रात में साढ़े आठ बजे उस गैरेज पर बुलाता है, जहां वह काम करता है और फिर अपेक्षा को दूर से दिखाता है कि चंदा किस तरह ढाबे पर काम कर रही है. सच जानकरअपेक्षा को खुद पर गुस्सा आता है. उसके बाद अपेक्षा पढ़ाई पर ध्यान देती है और एक दिन आईएएस बनती है. चंदा कहती है कि हर इंसान के सपने उसके सपने होते है. किसी भी इंसान के सपनों पर किसी दूसरे का कोई हक नहीं होता.

सौ मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ दर्शकों को न सिर्फ बांधकर रखती है, बल्कि दर्शकों के दिलों में घर कर जाती है. सिनेमा घर से निकलते समय दर्शक कुछ तो अपने साथ लेकर ही जाएगा. एक साधारण सी कहानी व अति साधारण पात्रों को इस तरह से फिल्म में पेश किया गया है, हर वर्ग का दर्शकखुद को रिलेट कर सकता है. फिल्म देखकर कहीं से भी इस बात का अहसास नहीं होता कि फिल्म की निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी की यह पहली फीचर फिल्म है.

मां बेटी के बीच आपसी प्यार, आपसी झगड़े, स्कूल का जीवन, निजी जिंदगी की जीवन शैली आदि को बेहतरीन तरीके से कैमरे में कैद किया गया है. एक अति संजीदा विषय पर बनी यह अति संजीदा,संवेदनशील व भावुक क्षणों वाली फिल्म है. फिल्म में बड़ी खूबसूरती से बिना किसी भाषण बाजी के शिक्षा के व्यवसायीकरण पर भी कटाक्ष है. एक गंभीर विषय को ह्यूमर व मनोरंजक तरीके से पेश कर अश्विनी अय्यर तिवारी ने अति बेहतरीन काम किया है. फिल्म का संगीत पक्ष भी अच्छा है. मां बेटी के रिश्तों को उकेरने वाली इस बेहरतीन फिल्म को पूरे परिवार के साथ देखा जाना चाहिए.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो स्वरा भास्कर व रिया शुक्ला ने मां-बेटी के किरदारों में जान डाल दी है. गरीब मगर महत्वाकांक्षी मां चंदा के किरदार को जिस तरह से परदे पर स्वरा भास्कर ने अपने अभिनय से उकेरा है, उसके लिए वह बधाई की पात्र हैं.. प्रिंसिपल व गणित विषय के शिक्षक के किरदार को जिस सहजता से पंकज त्रिपाठी ने निभाया है, वह लोगों के दिलो दिमाग पर छाया रहता है. रत्ना पाठक शाह अच्छी अदाकारा हैं ही. पर पहली बार उन्होंने एक अलग तरह का किरदार निभाया है.

‘जार पिक्चर्स’’, ‘‘कलर येलो प्रोडक्शन’’ और ‘‘ईरोज इंटरनेशनल’’ निर्मित फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ के निर्माता अजय राय, आनंद एल राय, संजय शेट्टी, नितेश तिवारी, निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी, गीतकार मनोज यादव, श्रेयश जैन व नितेश तिवारी, पटकथा लेखक अश्विनी अय्यर तिवारी, नीरज सिंह, प्रांजल चैधरी, नितेश तिवारी, कहानी नितेश तिवारी, कैमरामैन गवेमिक अरे तथा कलाकार हैं – स्वरा भास्कर,रिया षुक्ला,रत्ना पाठक शाह, पंकज त्रिपाठी.

हांगकांग: ऑलराउंडर इरफान ढाई साल के लिए निलंबित

क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने हांगकांग के ऑलराउंडर इरफान अहमद को ढाई साल के लिए निलंबित कर दिया. अहमद पर संहिता के उल्लंघन का आरोप लगा था और 4 नवंबर, 2015 को आईसीसी ने उनको अस्थायी रूप से निलंबित किया था. दूसरी ओर खुद अहमद ने भी यह बात स्वीकार की थी कि उन्होंने आईसीसी की भ्रष्टाचार निरोधी संहिता का उल्लंघन किया था.

इसके बाद आगे की जांच आईसीसी की भ्रष्टाचार निरोधी इकाई (एसीयू) द्वारा की गई थी. एसीयू ने अपने बयान में कहा कि भले ही अहमद पर भ्रष्टाचार में शामिल होने के कोई सबूत नहीं मिले, लेकिन जनवरी, 2012 से जनवरी, 2014 के दौरान भ्रष्टाचार में शामिल होने के लिए जिन्होंने उनसे संपर्क किया या जिन्होंने उन्हें पेशकश की, उनके बारे में वह पूरी जानकारी देने में नाकाम रहे.

इसके बाद अहमद को ढाई साल के लिए निलंबित कर दिया गया. उन्होंने यह सजा स्वीकार कर ली है और इस तरह वह इस फैसले के खिलाफ अपील नहीं कर सकते हैं.

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