मोटरसाइकिल टैक्सियां देश के बहुत से हिस्सों में अरसे से चल रही हैं पर उन्हें शायद ही कहीं सरकार से विधिवत लाइसैंस मिलता था. इस का अर्थ था कि पुलिस वालों को हक था कि जब चाहें उन्हें रोक कर वसूली कर लें. अब औनलाइन टैक्सी सेवा देने वाली कंपनी उबर ने भारत में बाइक टैक्सी को भी बुक करने का कार्यक्रम बनाया है. अपने मोबाइल से जहां खड़े हों वहां का पता बताओ और दोपहिया वाहन सामने हाजिर और बैठ कर जहां मरजी जाओ. यह प्रयोग बहुत अच्छा है और इसे और जोरशोर से अपनाना चाहिए. असल में तो हर शहर में 4-5 कंपनियां पैदा हो जाएं जो इस तरह की सेवाएं देने को तैयार हों ताकि पैसा एक अमेरिकी कंपनी को भी न पहुंचे और शहर की आय शहर में ही रहे.
युवतियों के लिए युवती चालक वाली बाइक या स्कूटी सर्विस मिलने लगे तो बहुत सी छेड़खानी बंद हो जाएगी और युवतियों को भीड़भाड़ वाले टैंपो या रिकशों पर निर्भर नहीं रहना होगा जिन में छेड़खानी भी होती है और मैलेकुचैलों के साथ पसीने की बदबू भी सहनी पड़ती है. फैलते शहरों के साथ ये सुविधाएं जमाने को देनी होंगी और भला हो इंटरनैट का कि बहुत सी बातें अपनेआप होने लगी हैं. हम तो यह सुझाव देंगे कि जो भी अपनी मोटरसाइकिल या स्कूटी पर किसी को ले जाने को तैयार हो, वह स्पेयर हैलमेट ले कर चले. जिस ने इशारा किया उस से पूछा और यदि डायरैक्शन न बदलनी हो तो 10 या 20 रुपए में उसे उस के गंतव्य तक छोड़ दिया.
युवाओं को यह काम हलका नहीं, ऊपरी जेबखर्च की कमाई समझना चाहिए. यह युवाओं में आत्मविश्वास बढ़ाने का काम है और यदि प्रयोग सफल हुआ तो शहरों में ही नहीं कसबों और गांवों में भी यह सेवा इशारों से बिना मोबाइल ऐप के साथ शुरू हो सकती है.बढ़ते शहरों में असल मुसीबत बस स्टौप से घर पहुंचने तक होती है और बाइक टैक्सी इस का सफलतम सुरक्षित उपाय है जिस में अपराध की गुंजाइश भी बहुत कम है.
आज युवाओं को विदेशी कंपनियों के उदाहरणों का लाभ उठाना चाहिए और उन के प्रयोगों का सरलीकरण कर सेवाएं देने का काम शुरू करना चाहिए. विदेशी कंपनियां बहुत बड़े पैमाने पर काम करती हैं पर बहुत कामों में तामझाम की जरूरत नहीं होती. जैसे देशभर में कहीं पैडल रिकशा कंपनी नहीं है वैसे ही बाइक टैक्सी को कंपनी के चक्करों से निकाल कर निजी हाथों में रखना सफल काम होगा जिस में कम पूंजी, थोड़ी मेहनत और कुछ बुद्धिमानी से बहुत काम हो सकेगा.