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जांच के लिए मिट्टी का सही नमूना लेने का तरीका

नए दौर की खेती में खेत की मिट्टी की जांच कराना बेहद जरूरी हो गया है. पुराने वक्त में किसान मिट्टी की जांच के बारे में सोचते भी नहीं थे. तब अपने तरीके से बुजुर्ग व माहिर लोग मिट्टी की अच्छाई या कमियां भांप लेते थे, मगर परीक्षण यानी जांच का कोई रिवाज या तरीका नहीं था. बहरहाल, अब उम्दा खेती के लिहाज से मिट्टी की जांच कराए बगैर कुछ भी तय नहीं हो पाता. किस मिट्टी में कौन सी व किस किस्म की फसल लगानी चाहिए, इस का फैसला मिट्टी की जांच के बाद ही हो पाता है. खेत में कौन सी और कितनी खाद डालनी है, यह भी मिट्टी की जांच के मुताबिक ही तय किया जाता है.

मिट्टी का सही नमूना लेने की वजह

मिट्टी के रासायनिक परीक्षण के लिए सब से जरूरी है उस के सही नमूने लेना. अलगअलग खेतों की मिट्टी में तो फर्क हो ही सकता है, बल्कि अकसर एक ही खेत के अलगअलग हिस्सों की मिट्टी में भी अंतर पाया जाता है. इसीलिए जांच के लिए मिट्टी का सही नमूना लेना बहुत जरूरी है. मिट्टी का नमूना गलत होने से जांच का नतीजा भी गलत ही मिलेगा. खेत की उपजाऊ कूवत की जानकारी के लिए जरूरी है कि जांच के लिए मिट्टी का जो नमूना लिया गया है, उस में खेत के हर इलाके की मिट्टी शामिल हो.

नमूने लेने के मकसद

रासायनिक जांच के लिए खेत की मिट्टी के नमूने जमा करने के खास मकसद इस प्रकार हैं:

* खेत की मिट्टी की सेहत की जानकारी हासिल करना.

* फसल में रासायनिक खादों के इस्तेमाल की सही मात्रा तय करने के लिए.

* ऊसर व अम्लीय जमीन के सुधार और उसे उपजाऊ बनाए रखने के लिए.

* पेड़ या बाग लगाने में जमीन की कूवत परखने के लिए सही तरीका

जरूरी मकसदों को पूरा करने की खातिर मिट्टी का नमूना लेना बेहद जरूरी है. सही नमूना हासिल करने का तरीका निम्न प्रकार से है:

जमीन की निशानदेही : खेत के जो हिस्से देखने में, फसलों के आधार पर, जलनिकासी के लिहाज से, मिट्टी की किस्म के हिसाब से और उपज के लिहाज से फर्क लगें, उन सभी हिस्सों पर निशान लगाएं. खेत के निशान लगे हर हिस्से को अलग खेत माना जा सकता है, लिहाजा जांच के लिए हर हिस्से से मिट्टी का नमूना लें.

नमूना लेने के औजार : मिट्टी का सही तरीके से नमूना लेने के लिए मिट्टी जांच ट्यूब, बर्मा, कुदाल और खुरपी का इस्तेमाल किया जा सकता है.

इस तरह लें नमूना

सब से पहले खेत के ऊपरी भाग की घासफूस वगैरह साफ करें. इस के बाद जमीन की सतह से हल की गहराई यानी करीब 15 सेंटीमीटर तक मिट्टी जांच ट्यूब या बर्मा द्वारा मिट्टी की एकसार टुकड़ी निकालें. अगर खुरपी या कुदाल का इस्तेमाल करना हो तो वी (वी) के आकार का 15 सेंटीमीटर गहरा गड्ढा बनाएं. एक ओर से ऊपर से नीचे तक 2-3 सेंटीमीटर मोटाई की मिट्टी की एकसार टुकड़ी काटें. एक खेत की 10-12 अलगअलग बेतरतीब जगहों से मिट्टी की टुकडि़यां निकालें. सभी टुकडि़यों को एक बरतन या साफ कपड़े में इकट्ठा करें. अगर खड़ी फसल वाले खेत से नमूना लेना हो, तो मिट्टी का नमूना पौधों की लाइनों के बीच वाली खाली जगह से लें. यदि खेत में क्यारियां बना दी गई हों या लाइनों में खाद डाल दी गई हो, तो ऐसी हालत में मिट्टी का नमूना लेते वक्त खास एहतियात बरतें. खयाल रखें कि रासायनिक उर्वरक या खाद की पट्टी वाली जगह से नमूना नहीं लेना चाहिए. जहां पहले गोबर की खाद का ढेर लगा रहा हो, वहां से भी नमूना नहीं लेना चाहिए. खेत में जहां गोबर की खादी डाली गई हो, उस जगह से भी नमूना नहीं लेना चाहिए. जहां पुरानी बाड़ या सड़क रही हो या जो जगह बाकी खेत से फर्क लगे, वहां से भी मिट्टी का नमूना नहीं लेना चाहिए.

मिट्टी मिला कर नमूना बनान

किसी खेत की अलगअलग जगहों से तसले या कपड़े में जमा किए गए नमूनों को छाया में रख कर सुखाएं. मिट्टी के नमूनों को धूप या आंच पर रख कर न सुखाएं. एक खेत से जमा किए गए नमूनों को अच्छी तरह मिला कर एक नमूना बनाएं और उस में से करीब आधा किलोग्राम मिट्टी का नमूना लें, जो पूरे खेत का नमूना होगा.

नमूने में लेबल लगाना

हर नमूने के साथ अपने नाम, पते और खेत के नंबर का लेबल लगाएं. 2 लेबल तैयार करें, जिन में से एक थैली के अंदर डालना होगा और दूसरा बाहर लगाना होगा. लेबल तैयार करने के लिए बाल पेन का इस्तेमाल करना बेहतर रहता है. लेबल की एक कापी अपने रिकार्ड के लिए भी बनाएं.

सूचना पर्चा

खेत व खेत की फसलों का पूरा विवरण सूचना पर्चे में दर्ज करें. यह सूचना आप के मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड को फायदेमंद बनाने में मददगार होगी. सूचना पर्चा कृषि विभाग के अफसर से भी हासिल किया जा सकता है. मिट्टी के नमूने के साथ सूचना पर्चे में किसान का नाम, पता (गांव, पोस्ट, पंचायत, प्रखंड, जिला, पिन कोड नंबर), फोन नंबर, प्लाट नंबर, नमूना लेने की तारीख, नमूने की गहराई, जमीन की किस्म (ऊपरी/ मध्यम/नीची), जल संसाधन (सिंचित/ बारिश आधारित), ली जाने वाली फसल/ फसलचक्र (खरीफ, रबी) व इस्तेमाल की गई खादों/ रसायनों का ब्योरा दर्ज होना चाहिए.

नमूने बांधना

मिट्टी के हर नमूने को एक कपड़े की साफ थैली में डालें. ऐसी थैलियों में नमूने न डालें, जो पहले खाद आदि के लिए इस्तेमाल की जा चुकी हों. इस नमूने के बारे में बनाया गया एक लेबल थैली के अंदर डालें. इस के बाद थैली को अच्छी तरह से बंद कर के उस के बाहर भी एक लेबल लगा दें.

मिट्टी की जांच कहां कराएं

किसान भाई अपनी सहूलियत के मुताबिक अपने इलाके की नजदीकी मिट्टी जांच प्रयोगशाला में अपने खेतों की मिट्टी के सही नमूने की जांच करवा सकते हैं. थैली में बांधे गए नमूने को प्रयोगशाला में भेज कर किसान अपने खेत की मिट्टी की सेहत की पूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं. उसी के मुताबिक खादों व उर्वरकों का इस्तेमाल कर के किसान लंबे अरसे तक खेत से उम्दा व भरपूर फसल हासिल कर सकते हैं. मिट्टी की जांच की सुविधा देश के तमाम कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि विज्ञान केंद्रों में होती है. कई इलाकों में अलग से मिट्टी जांच प्रयोगशालाएं भी काम कर रही हैं. किसान भाई अपनी सुविधा के हिसाब से मिट्टी की जांच करा सकते हैं.

मिट्टी की जांच दोबारा कब

एक बार मिट्टी की जांच कराने के बाद करीब 3-4 साल के अंतराल पर अपने खेत की मिट्टी की जांच दोबारा करा लेनी चाहिए. जब भी खेत की हालत नमूने लेने लायक हो, तब नमूने ले लेने चाहिए. यह जरूरी नहीं है कि मिट्टी की जांच बोआई के समय ही कराई जाए. अपनी जमीन की मृदा यानी मिट्टी की जांच वक्तवक्त पर करा कर खेती के मोरचे पर हमेशा आगे रहने की कोशिश करनी चाहिए.

आम के खास रोगों का इलाज

आम भारत की खास फसल है. भारत के अलावा आम पाकिस्तान, अमेरिका, फिलीपींस, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण अफ्रीका, जांबिया, माले, ब्राजील, पेरू, केन्या, जमायिका, तंजानिया, मेडागास्कर, जायरे, हैती, आईवरी कोस्ट, थाईलैंड, इंडोनेशिया व श्रीलंका आदि देशों में भी उगाया जाता है. भारत में आम उगाने वाले इलाकों में सब से ज्यादा रकबा उत्तर प्रदेश में है. आम की सब से ज्यादा पैदावार आंध्र प्रदेश में होती है. आम गरम व कम ठंडी आबोहवा में पैदा होता है. यह 4.4 से 43.4 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान वाले इलाकों में उगता है, लेकिन 24.4 से 26.4 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान वाला इलाका इस के लिए सब से अच्छा माना गया है.

आम नम व सूखी दोनों प्रकार की जलवायु में उगता है. लेकिन जिन इलाकों में जून से सितंबर तक अच्छी बारिश होती है व बाकी महीने सूखे रहते हैं वहां आम की फसल अच्छी होती है. आकर्षक रंग, स्वाद व सुगंध वाले इस फल में विटामिन ए व बी काफी मात्रा में होते हैं. आम का इस्तेमाल फल की हर अवस्था में किया जाता है. कच्चा आम चटनी, अचार व कई तरह के पेय बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के अलावा इस से कई तरह के शरबत, जैम, जैली व सीरप वगैरह बनाए जाते हैं. गरम व सूखी आबोहवा में उगने वाले आम के पेड़ों व फलों को रोगों से बचाना बहुत जरूरी है. आम में लगने वाली खास बीमारियों व उन की रोकथाम के बारे में यहां बताया जा रहा है:

सफेद चूर्णिल आसिता : गरम व नम आबोहवा और ठंडी रातों में यह बीमारी ज्यादा लगती है. बौरों और नई पत्तियों पर सफेद या सफेद चूर्णिल वृद्धि दिखाई पड़ती है. बीमारी पेड़ के ऊपर से शुरू हो कर नीचे की ओर फूल, नई पत्तियों और पतली शाखाओं पर फैल जाती है. इस से पेड़ की बढ़वार रुक जाती है. फूल और पत्तियां गिर जाती हैं. यदि बीमारी लगने से पहले फल लग गए हों तो वे कच्ची अवस्था में ही गिर जाते हैं. यह बहुत ही नुकसानदायक बीमारी है, जो कभीकभी पूरी फसल को बरबाद कर देती है. इस की वजह से फूलों की संख्या में भारी कमी आ जाती है.

रोकथाम

* रोकथाम के लिए 0.05 से 0.1 फीसदी कैराथेन/ 0.1 फीसदी बाविस्टीन/ 0.1 फीसदी बेनोमिल/ 0.1 फीसदी कैलेक्जीन का छिड़काव करना फायदेमंद होता है.

* घुलनशील गंधक (0.2 फीसदी) नामक कवकनाशक दवाओं का घोल बना कर पहला छिड़काव जनवरी में, दूसरा फरवरी के शुरू में और तीसरा छिड़काव फरवरी के अंत में करना चाहिए.

काला धब्बा या एंथ्रेकनोज : यह बीमारी पेड़ों की कोमल टहनियों, फलों और फूलों पर देखी जा सकती है. इस की वजह से पत्तियों पर भूरे या काले रंग के गोल आकार के धब्बे पड़ जाते हैं, जिस से पत्तियों की बढ़वार रुक जाती है और वे सिकुड़ जाती हैं. कभीकभी रोगग्रस्त ऊतक सूख कर गिर जाते हैं, जिस से पत्तियों में छेद दिखाई पड़ते हैं. बीमारी ज्यादा लग गई हो तो पत्तियां गिर जाती?हैं. कच्चे फलों पर काले धब्बे बनते हैं. धब्बे के नीचे का गूदा सख्त हो कर फट जाता है और फल गिर जाते हैं. इस बीमारी से फल सड़ जाते हैं.

रोकथाम

* बीमार टहनियों की छंटाई कर के उन्हें गिरी हुई पत्तियों के साथ जला देना चाहिए.

* छंटाई के बाद पेड़ पर कवकनाशी रसायनों जैसे कापर आक्सीक्लोराइड 0.3 फीसदी का छिड़काव 15 दिनों के अंतर पर करना चाहिए.

* रोगी पेड़ों पर 0.2 फीसदी ब्लाइटाक्स 50, फाइटलोन या बोर्डो मिश्रण (0.8 फीसदी) नामक दवाओं के घोल का फरवरी से मई के बीच तक 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए. बाविस्टीन (0.1 फीसदी) रोग को कम करने में बहुत फायदेमंद होता है.

* फल को 0.05 फीसदी कार्बेंडाजिम के घोल में डुबो कर भंडारित करें.

काली फफूंदी चोटी मोल्ड : भारत में फलों व बगीचों की यह एक सामान्य बीमारी है. यह आम पर हमला करने वाले कीटों से होती है. ये कीट पेड़ की पत्तियों व हरी टहनियों पर मीठा रस छोड़ते हैं. इस रस पर काली फफूंद तेजी से बढ़ती है और कवक काले रंग के बीजाणु बनाता है. इस से पत्तियां और टहनियां काली व भद्दी दिखती हैं. पौधा या पेड़ खाना बनाने के लायक नहीं रह जाता है. पत्तियां कमजोर हो कर गिर जाती हैं.

रोकथाम

* स्केल कीट गुजिया व भुनका कीटों की रोकथाम मुनासिब कीटनाशक से करने पर उन से निकलने वाले पदार्थ की कमी के कारण फफूंद भी लग जाती है.

* इलोसाल (900 ग्राम प्रति 450 लीटर पानी) का 10-15 दिनों के अंतर पर छिड़काव बहुत फायदेमंद होता है.

* इस के अलावा वेटासुल (विलनशील गंधक)+मेटासिड (मिथाइल पैराथियान)+गोंद (0.2 फीसदी-0.1 फीसदी-0.3 फीसदी) का छिड़काव फायदेमंद होता है.

* इस रोग से बचाव के लिए सब से पहले कीटनाशक जैसे मैलाथियान, पेराथियान या निकाटिन सल्फेट (0.05 फीसदी) का छिड़काव करना चाहिए. इस के बाद ब्लाइटाक्स 50 (0.2 फीसदी) का छिड़काव 2 बार करना चाहिए.

पत्ती अंगमारी : यह बीमारी आम की पूरी पत्तियों पर अकसर देखी जाती है. पत्तियों पर गोल, हलके भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं. ये धब्बे गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं. इन का घेरा चौड़ा कुछ उठा हुआ और गहरे बैगनी रंग का होता है. पुराने धब्बों का रंग राख के समान हो जाता है.

रोकथाम

* इस रोग को कम करने के लिए रोगी पत्तियों को इकट्ठा कर के जला देना चाहिए.

* बेनोमिल (0.2 फीसदी) या कापर आक्सीक्लोराइड (0.3 फीसदी) का छिड़काव करना कारगर होगा.

चोटी सुखन : इसे उल्टा सूखा रोग या शीर्ष मरण रोग कहते हैं, यह रोग बाट्रीयोडिप्लोडिया थियोब्रोमी नामक फफूंद के कारण होता है. यह रोग साल में कभी भी देखा जा सकता है. लेकिन इसे अक्तूबर और नवंबर  में ज्यादा देखा जा सकता है. इस में सब से पहले पत्तियों पर गहरे धब्बे बनते हैं, जिस की वजह से पत्तियां  पीली हो कर गिर जाती हैं व टहनी नंगी हो कर ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती है. इस रोग के कारण अकसर पीले रंग का गाढ़ा स्राव भी निकलते देखा गया है.

रोकथाम

* टहनी जहां तक सूख गई हो, उस के 10 सेंटीमीटर नीचे से पेड़ के स्वस्थ भाग के साथ काट कर अलग करने के बाद कौपर आक्सीक्लोराइड (0.3 फीसदी) का 15 दिनों के अंतर पर 2 बार छिड़काव करना चाहिए.

* कलम के लिए उपयोग की जाने वाली शाखा का निरोग होना जरूरी है. साल में 2 बार बोर्डो पेस्ट मुख्य तने पर लगाएं.

* ऐसे बाग जहां पर यह रोग अधिक व बारबार होता हो वहां नेप्थलीन एसिटिक एसिड का छिड़काव अक्तूबर व नवंबर में करना चाहिए.

तने से गोंद निकलना : इसे गमोसिस रोग कहते हैं. यह एक फफूंद जनित रोग है. यह रोग बरसात के आखिर में  ज्यादा दिखाई देता है. इस में मुख्य तने, शाखा और पेड़ों की छाल पर गोंद का रिसाव देखा गया है व दरार जैसा फटा हुआ दिखाई देता है. कुछ समय के बाद पौधा सूख जाता है.

रोकथाम

* तेज चाकू से छाल हटा कर बोर्डो पेस्ट का लेप लगाएं. पेड़ को निरोगी बनाए रखने के लिए समयसमय पर कवकनाशक रसायनों का छिड़काव करते रहना चाहिए.

* बाग में पत्तियों पर धब्बों की रोकथाम के लिए कापर आक्सीक्लोराइड का

छिड़काव करते रहना चाहिए जिस से यह रोग कम होता है.

* कापर सल्फेट को 500 ग्राम प्रति पेड़ की दर से पेड़ों के चारों तरफ डालना फायदेमंद होता है.

जीवाणु कैंकर : यह रोग पत्तियों और फलों पर काले धब्बे के रूप में देखा जा सकता है. फलों में फटने के लक्षण भी दिखाई देते हैं. पहले रोग लगी सतह पर गीले धब्बे बनते हैं, जो बाद में उभरे से कैंकर बन जाते हैं. 1 से 4 मिलीमीटर के ये धब्बे पत्तियों पर बनते हैं, जो बाद में गहरे भूरे कैंकर में बदल जाते हैं. रोग के बढ़ने पर पत्तियां पीली पड़ कर गिर जाती हैं.

रोकथाम

* बाग की बराबर निगरानी और साफसफाई रखना जरूरी है. रोग लगे फलों, पत्तियों और टहनियों को जला कर नष्ट कर देना चाहिए.

* रोग ज्यादा लगने पर स्ट्रोप्टोमाइक्लीन (300 पीपीएम) और साथ में कापर आक्सीक्लोराइड (.03 फीसदी) का छिड़काव करें.

गुच्छा रोग : इस रोग में पेड़ों की शाखाओं व फूलों की बनावट खराब हो जाती है. नई शाखाएं व फूल गुच्छों के रूप में बदल जाते हैं. शाखा  गुच्छा रोग अधिकतर नर्सरी के छोटे पौधों में पाया जाता है. लेकिन बड़े पेड़ों पर भी यह रोग देखा जा सकता है. पुष्प गुच्छा रोग में सारे फूल गुच्छों का रूप धारण कर लेते हैं. बाद में कभीकभी इन गुच्छों में से छोटीछोटी पत्तियां ठीक तरह से निकल आती हैं. इन गुच्छों में फल नहीं आते हैं.

रोकथाम

* पौध हमेशा स्वस्थ पौधों से ही तैयार करनी चाहिए. रोग लगे भागों को काट कर नष्ट कर देना चाहिए. अक्तूबर के महीने में 2 ग्राम अल्फा नेफ्थलीन एसिटिक एसिड प्रति 10 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करने से उपज बढ़ाई जा सकती है.

* सब से पहले निकलने वाले पुष्प गुच्छों को हाथ से तोड़ देना चाहिए.

काला सिरा या कोयली रोग : यह रोग विषैली गैस के कारण होता है. इसे कोयली या सिरा विगलन रोग के नाम से भी जाना जाता है. ईंट के भट्ठों के पास लगे पेड़ों के फल इस रोग से प्रभावित होते हैं. फल के आगे के सिरे पर काला धब्बा बनता है, जो पूरे सिरे को ढक लेता है. बाद में चपटा हो जाता है. रोग लगी त्वचा सख्त व कुछ दबी होती है. अंदर का ऊतक मीठा हो जाता है.

रोकथाम

* रोकथाम के लिए आम के बाग को ईंट के भट्टों से दूर लगाना चाहिए. भट्ठों में ऊंची चिमनियों का इस्तेमाल करने से भी रोग के फैलाव को रोका जा सकता है.

* अप्रैलमई के दौरान रोग शुरू होने से पहले सोडियम बाईकार्बोनेट या बोरेक्स के 0.6 फीसदी घोल का 10 दिनों के अंतर पर 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए.

लाल जंग : यह रोग एक एलगी द्वारा पैदा होता है. इस में ईंट जैसे लाल रंग का उठा

हुआ धब्बा पत्तियों पर बनता है. यह धब्बा वेलवेटी होता है. यह एलगी टहनियों पर भी दिखाई देती है.

रोकथाम

* बरसात शुरू होने से पहले कापर आक्सीक्लोराइड की  3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

गजब की गायिका अकासा

मुंबई में पैदा हुई अकासा सिंह गायक और संगीतकार अरविंदर सिंह की बेटी हैं. उन का फिल्म ‘सनम तेरी कसम’ में गाया पहला हिंदी गाना ‘तू खींच मेरी फोटो…’ सभी को बहुत पसंद आया. अकासा सिंह महज 12 साल की उम्र से ही स्टेज शो करती आ रही हैं. जब वे 17 साल की थीं, तब उन्होंने गायक मीका सिंह के साथ शो करना शुरू किया था. उन्हें ‘ब्राउन रंग’ वीडियो से बहुत नाम मिला, जो यूट्यूब पर खूब हिट रहा था. उम्मीद है कि हमें बहुत जल्द उन के गाए नए गानों को सुनने का मौका मिलेगा.

अब मैं सैक्स सिंबल नहीं रहा – जौन अब्राहम

जौन अब्राहम ने साल 2003 में अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म ‘जिस्म’ से की थी और उन की इमेज एक सैक्स सिंबल की बन कर रह गई थी.फिल्म ‘दोस्ताना’ में उन्होंने एक मजाकिया किरदार निभाया था. ‘गरम मसाला’, ‘देशी बौयज’ जैसी हलकीफुलकी फिल्में भी वे करते रहे, पर अचानक साल 2012 में उन्होंने स्पर्म डोनेट पर बनी फिल्म ‘विकी डोनर’ पेश की, जिस में नए हीरो आयुष्मान खुराना को लिया गया था. इस फिल्म को जबरदस्त कामयाबी मिली थी.   इस के बाद जौन अब्राहम ने श्रीलंका के जाफना इलाके में 80 के दशक में हुई सिविल वार पर एक राजनीतिक ऐक्शन फिल्म ‘मद्रास कैफे’ बनाई, जिस में उन्होंने रौ एजेंट का दमदार किरदार निभाया था.

पेश हैं, जौन अब्राहम के साथ हुई लंबी बातचीत के खास अंश:

एक कलाकार के तौर पर आज आप खुद को कहां पाते हैं?

मुझे लगता है कि मैं आज की तारीख में खुद के बल पर खड़ा हो सकता हूं, इसलिए मैं खुश हूं. पर अभी भी मुझे बहुत आगे जाना है. बहुतकुछ नया करना है. अपने अंदर के कलाकार को और अच्छा बनाना है.

आप के कैरियर की शुरुआत फिल्म ‘जिस्म’ से सैक्स सिंबल के रूप में हुई थी, फिर आप ने कौमेडी, ऐक्शन और गंभीर फिल्में भी कीं. क्या यह बदलाव आसान था?

यह सच है कि मैं फिल्मों में सैक्स सिंबल के रूप में आया?था. आज भी ज्यादातर लोग मुझे सैक्स सिंबल के रूप में ही देखते हैं. लेकिन दर्शकों ने मुझे फिल्म ‘जिस्म’ के बाद ‘दोस्ताना’, ‘धूम’, ‘न्यूयौर्क’, ‘नौ दो ग्यारह’, ‘शूट आउट एट वडाला’ जैसी फिल्मों में भी पसंद किया.  जब मैं ने फिल्म ‘मद्रास कैफे’ बनाई, तो बौलीवुड के फिल्मकारों की नजर मुझ पर गई और उन्हें मेरे टैलैंट पर भरोसा हुआ.

इस के बाद तो कलाकार के तौर पर आप की जिम्मेदारी बढ़ गई होगी?

मुझे लगता है कि मेरी जिम्मेदारी बढ़नी चाहिए, पर कुछ मीडिया वाले ऐसे भी होते हैं, जो आप की वह जिम्मेदारी समझते नहीं हैं. यह अफसोस की बात है कि मुझे हर फिल्म के साथ अपनी काबिलीयत को साबित करना पड़ता है.

इतने साल फिल्मों में काम करने के बाद भी आप को साबित करने की जरूरत क्यों पड़ती है?

शायद इस की वजह यह है कि मैं ने मौडलिंग से फिल्मों में कदम रखा. और बौलीवुड में ऐसा माना जाता है कि एक अच्छा मौडल कभी अच्छा ऐक्टर नहीं हो सकता. फिल्म ‘मद्रास कैफे’ के बाद मैं कह सकता हूं कि मुझ पर से यह तमगा हट गया है.

फिल्म प्रोडक्शन के क्षेत्र में उतरने की क्या वजह रही?

मैं जिस तरह की फिल्मों को देखना पसंद करता हूं, उसी तरह की फिल्मों को बनाने और उन में कुछ अलग रूप में नजर आने के लिए ही  फिल्म बनाने लगा हूं.

‘विकी डोनर’ और ‘मद्रास कैफे’ जैसी बेहतरीन फिल्में बनाने के बाद कोरियन फिल्म ‘द मैन फ्रौम नो व्हेअर’ को हिंदी में ‘रौकी हैंडसम’ के नाम से रीमेक करने की बात कैसे दिमाग में आई?

यह बहुत अच्छी फिल्म है. एक कलाकार के तौर पर मुझे बहुत मजा आया. इस फिल्म में जबरदस्त ऐक्शन है. ऐक्शन के पीछे जो इमोशन होता है, उस का चित्रण बहुत जरूरी होता है. वह सब इस फिल्म में है. इस फिल्म में जो इमोशन हैं, वे हर इनसान की आंखों से आंसू ला देंगे.  मैं ने इस में ड्रग माफिया के खिलाफ जंग छेड़ने वाले नौजवान का किरदार निभाया है. इस फिल्म में मेरे तीन लुक हैं.

आप फुटबाल के खेल को ले कर भी कोई फिल्म बनाने वाले थे?

जी हां, इस फिल्म का नाम है ‘1911.’ यह फिल्म कोलकाता की मशहूर मोहन बागान टीम की ऐतिहासिक विजय पर आधारित है. इस फिल्म के डायरैक्टर सुजीत सरकार और लेखक सौमिक सेन हैं. साल 1911 में मोहन बागान ने इंगलैंड की मशहूर यौर्कशौयर टीम को हरा कर एक नए इतिहास को रचा था. उसी कहानी को इस फिल्म में पेश किया गया है. उस दौरान भारतीय टीम ने नंगे पैर धोती पहन कर फुटबाल खेली थी, जबकि ब्रिटिश टीम ने हाफ पैंट व जूते पहन रखे थे.

इन दिनों औरतों के साथ जोरजुल्म की वारदातें बड़ी तेजी से बढ़ी हैं. इस पर आप क्या कहेंगे?

इस तरह की वारदातें चिंता की बात हैं. कल तक मुंबई को बहुत महफूज समझा जाता था, पर अब यहां भी औरतों के खिलाफ ऐसी वारदातें तेजी से बढ़ी हैं. आज जरूरत इस बात की है कि हर मांबाप अपने बेटे को समझाए कि उन्हें किस तरह से लड़कियों व औरतों की इज्जत करनी चाहिए और हमेशा उन की हिफाजत करनी चाहिए. जरूरत है कि औरतों के प्रति अपराध करने वाले अपराधियों को सख्त से सख्त सजा दी जाए. ऐसे मसलों पर हमारे देश के नेताओं को बहुत सोचसमझ कर बयानबाजी करनी चाहिए.

क्या कभी आप ने खुद औरतों की हिफाजत की कोई मुहिम लड़ी है?

कई बार हम चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाते हैं. मुझे अच्छी तरह से याद है, जब मैं कालेज में पढ़ता था और लोकल ट्रेन से सफर करता था. तब मैं ने देखा था कि रेलवे प्लेटफार्म पर एक लड़का जबरन एक लड़की को धक्का दे कर चला गया. मैं ने दौड़ कर उस लड़के को पकड़ा. मैं उसे पुलिस को देना चाहता था, पर लड़की के कहने पर उसे छोड़ना पड़ा, क्योंकि लड़की खुद उस लड़के पर कोई भी आरोप लगाने के लिए तैयार नहीं थी. पर अब जिस तरह से समाज में बदलाव आ रहा है, वह सुखद है. अब हर औरत अपने हक को जानने व समझने लगी है. अब वह जोरजुल्म के खिलाफ आवाज उठाना भी जानती है.

दादागीरी से नहीं परिश्रम और लगन से मिलती है मंजिल

शमा से उजाला भी फैलता है और आग भी लग सकती है. दादागीरी भी एक ऐसा फेनोमेना है जिस की परिभाषा बहुत विस्तृत है. अपने व्यक्तित्व को निखारने और कैरियर को संवारने के लिए जोश व लगन के साथ परिश्रम और डिटरमिनेशन का नाम ही दादागीरी है. अत्याचार के खिलाफ उठ खड़े होना भी दादागीरी है जोकि सराहनीय है, क्योंकि समाज को ऐसे ही दादाओं की जरूरत है, जो आगे बढ़ें और अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद कर सकें. हां, इस सीमा से आगे बढ़ने पर वही दादागीरी स्वयं और समाज दोनों के लिए बरबादी का कारण बन कानून के खिलाफ हो सकती है और भारतीय दंड विधान की धाराओं के अनुसार दंडनीय हो सकती है.

दादागीरी के अंतर्गत भारतीय दंड विधान की निम्न धाराएं लागू होती हैं :

1. धारा 141 से 149 तक.

2. धारा 319 से 338 तक.

3. धारा 349 से 374 तक.

4. धारा 405 से धारा 409 तक.

5. धारा 499 से धारा 510 तक.

किशोरों में बहुत जोश होता है. वे मौके और माहौल का खयाल किए बिना ऐसे कार्यों में कूद पड़ते हैं जो आगे चल कर उन के भविष्य के लिए कठिनाइयां खड़ी कर सकते हैं.

दादागीरी का नकारात्मक पहलू

मैडिकल, इंजीनियरिंग तथा अन्य प्रोफैशनल कालेजों में दादागीरी का अत्यंत भयानक रूप नजर आता है. कड़े परिश्रम के बाद छात्र इन संस्थाओं में प्रवेश पाते हैं. अपने परिवारों से दूर होस्टल्स में उन्हें रहना पड़ता है. अजनबी माहौल में अनजाने लोगों के साथ सामंजस्य बैठाना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में उन्हें रैगिंग के आतंक से भी जूझना पड़ता है. पूर्वी और दक्षिण भारत में आमतौर पर देखा गया है कि वहां के सीनियर छात्र फ्रैशर्स के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, कुछ तो बड़े भाई या बड़ी बहन जैसा प्यार देते हैं और पढ़नेलिखने व अन्य कार्यों में भी उन्हें प्रोत्साहित करते हैं.

इस के विपरीत उत्तर भारत के प्रोफैशनल कालेजों में सीनियर छात्रों का फ्रैशर्स के साथ ऐसा दुर्व्यवहार होता है मानो उन्हें किसी पुरानी दुश्मनी का बदला चुकाना है. उदाहरणार्थ अपनी परीक्षा के लिए जूनियर्स से नोट्स तैयार करवाना, अपने कपड़े धुलवाना, अपना बिस्तर ठीक करवाना, छोटेमोटे खर्च के लिए धमकी दे कर रुपए वसूल करना, उन का मोबाइल आदि छीन कर अपने कब्जे में रखना. इस तरह की दादागीरी दिखा कर वे नए छात्रों का जीना मुहाल कर देते हैं. जो फ्रैशर्स इन अत्याचारों को सहन नहीं कर पाते उन्हें मारापीटा और अपमानित किया जाता है. कभीकभी यौन उत्पीड़न से वे इतने क्षुब्ध हो जाते हैं कि आत्महत्या तक कर बैठते हैं. कुछ वर्ष पहले इसी तरह हिमाचल के एक मैडिकल कालेज में फर्स्ट ईयर के एक छात्र अमन कचरू की वहां के सीनियर छात्रों ने बेदर्दी से पीटपीट कर हत्या कर दी थी. अमन के मातापिता पर क्या गुजरी होगी, यह सोच कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

इसी तरह दिल्ली में आर्किटैक्चर के सुप्रसिद्ध कालेज स्कूल औफ प्लानिंग ऐंड आर्किटैक्चर में बिहार के एक छात्र को दाखिला लेने के कुछ ही दिन के भीतर रैगिंग के नाम पर इतना परेशान और आतंकित किया गया कि उसे जान बचा कर भागना पड़ा. एक सफल आर्किटैक्ट बनने का उस का सपना चकनाचूर हो गया.

दादागीरी या वक्त की आवाज (सकारात्मक पहलू)

यदि हिम्मत वाले युवा अपने जोश और जज्बे को, अपने व्यक्तित्व को शालीन बनाने और अपने कैरियर को बेहतर बनाने के लिए दादागीरी का इस्तेमाल करें तो प्रशंसनीय है. समाज में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए भी अगर वे आगे आते हैं तो इस तरह की दादागीरी भी प्रशंसनीय है, लेकिन दुर्बल को सताने में दादागीरी दिखाना कतई ठीक नहीं. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की पचासों योजनाएं हैं, जिन का लाभ जरूरतमदों तक नहीं पहुंच पाता, क्योंकि बिचौलिए और दलाल सरकारी कर्मचारियों से सांठगांठ कर सारा माल समेट लेते हैं. यदि दादागीरी का दमखम रखने वाले समाज सेवक इन दलालों को हटा कर सरकारी योजनाओं का लाभ गरीबों व जरूरतमंदों तक पहुंचाने में सहायता करें तो यह उत्तम दरजे की दादागीरी होगी. नगरों और विशेषकर महानगरों में सड़कों एवं अन्य सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं तथा बच्चों के साथ जो दुर्व्यवहार होता है उसे रोकने में दादागीरी की क्षमता रखने वाले युवक बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं. उन का यह बहुमूल्य योगदान कानून और समाज दोनों के हित में होगा.

इसी प्रकार विभिन्न दुर्घटनाओं में सड़क तथा दुर्घटनास्थल पर तड़प रहे घायलों को प्राथमिक उपचार देने और अस्पताल पहुंचाने में भी मदद कर सकते हैं. दूसरों की सहायता, परिश्रम एवं लगन से ही मंजिल मिल सकती है.

पर्यटन से पहले कुछ ध्यान देने योग्य बातें

लीजिए, फिर घूमनेफिरने का मौसम आ गया है. ऊंचेऊंचे पहाड़, कलकल बहती नदियां और खूबसूरत नैसर्गिक नजारे आप की प्रतीक्षा कर रहे हैं. पत्रपत्रिकाओं या टेलीविजन पर पर्यटन स्थलों के सुंदरसुंदर दृश्यों को देख कर सहज ही घूमने का मन बन जाता है. लेकिन ठहरिए, केवल मन ही पर्यटन के लिए पर्याप्त नहीं है. आप ने अगर पर्यटन पर जाने का मन बना लिया है तो आप को मन के अलावा और कुछ भी सोचना पड़ेगा.

सब से पहले तो आप को हकीकत के धरातल पर बैठ कर अपना कार्यक्रम बनाना पड़ेगा. आप घूमने जा रहे हैं तो आप को यह देखना बहुत जरूरी है कि 3 महीने पहले आप ने घूमने के लिए जो दिन निर्धारित किए हैं, आप 3 माह बाद उन दिनों को तो निकालने की स्थिति में रहेंगे. कहीं उस दौरान आप के बच्चे की कोई परीक्षा तो नहीं है या कोई विवाह या उत्सव आदि की तारीख तो नहीं टकरा रही. ऐसा नहीं कि आप पूरी तैयारी कर लें और फिर इस कारण से आप का निकलना संभव नहीं हो पाए.

कार्यक्रम बनाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. सब से पहले हम जब कमरे में बैठ कर कार्यक्रम बनाते हैं और नक्शा देखते हैं तो सबकुछ आसान लगता है.

मेरे एक मित्र संजय ने यही किया. कार्यक्रम बनाना तो शुरू किया जम्मू का, लेकिन धीरेधीरे पटनीटाप, डलहौजी, कांगड़ा, धर्मशाला आदि भी कार्यक्रम में शामिल हो गए. फिर नक्शा देखा तो सोचा कि चलो हरिद्वार, ऋषिकेश भी घूम लेंगे. फिर किसी ने कह दिया कि वहां तक जा रहे हो तो मसूरी, बदरीनाथ भी हो आना. और नतीजा यही रहा कि इतना लंबा कार्यक्रम जब समय आया तो असंभव लगने लगा और फिर सारा परिवार घर में ही बैठा रह गया. इसलिए जरूरत से ज्यादा विस्तार वाले कार्यक्रम फेल हो जाते हैं. आप कितने लोग घूमने जा रहे हैं. वे किस उम्र के हैं. यदि आप के साथ वृद्धजन हैं तो उन की बीमारी आदि का खयाल रखना पड़ेगा. यदि हाल ही में कोई आपरेशन हुआ है तो अधिक चढ़ाईउतराई वाली जगह से बचना पड़ेगा.

जगह का चयन

जगह का चयन करते समय मौसम का अवश्य ध्यान रखें. गरमी की छुट्टियों में घूमने जा रहे हैं और आप को पर्यटन का वास्तविक आनंद लेना है तो ठंडी जगहों का चयन करें. हां, सर्दी के मौसम में दक्षिण भारत व समुद्रीतट वाली जगहों पर जाया जा सकता है. लू के मौसम में गरम जगहों पर जाया भी जाए तो दिन में यात्रा न कर गरमी से बचा जा सकता है. ऐसी जगहों पर सुबह थोड़ा जल्दी तैयार हो कर घूमा जा सकता है. दोपहर में आराम कर शाम को धूप उतरने के बाद भी घूम सकते हैं.

रिजर्वेशन

यात्रा की अच्छी शुरुआत के लिए सब से जरूरी है रिजर्वेशन. जहां आप जा रहे हैं वहां जाने के लिए साधन की उपलब्धता तय कर लें. यदि आप ट्रेन से जा रहे हैं तो 3 महीने पहले ही इस बारे में ध्यान देना पड़ेगा, क्योंकि यदि आप का रिजर्वेशन पक्का हो गया तो आप यात्रा के बारे में काफी निश्चिंत हो जाएंगे. यदि आप का प्रोग्राम 50 प्रतिशत भी हो तो भी रिजर्वेशन तो करवा ही लेना चाहिए, क्योंकि न जाने की दशा में टिकट कैंसिल भी करवाए जा सकते हैं. उस से अधिक पैसे भी नहीं कटते.

मुझे ऐसा ही एक वाकया तिरुअनंतपुरम का याद आता है. मेरा रिजर्वेशन कन्फर्म था लेकिन मुझे वहां एक सज्जन मिले जो सपत्नीक वहां घूमने आए थे. उन का रिजर्वेशन वेटिंग में था, उन का मन किसी चीज में नहीं लग रहा था, वह बारबार यही सोच रहे थे कि किसी तरह बस, रिजर्वेशन कन्फर्म हो जाए. वह बता रहे थे कि 2 महीने से कितनी ही बार हमारा प्रोग्राम बनाबिगड़ा. न जाने कितनी बार यह सोच कर बैठ गए कि चलो, फिर कभी चलेंगे. इस तरह मन परेशान हो तो घूमने का आनंद ही जाता रहता है.

होटल बुकिंग

ट्रेन के रिजर्वेशन के बाद नंबर आता है होटल का. किसी भी अनजान शहर में पहुंच कर मनपसंद होटल ढूंढ़ना सहज काम नहीं है. इसलिए होटल पहले से ही बुक हो जाए तो अच्छा रहता है. नहीं तो शहर में पहुंचते ही पहले होटल ढूंढ़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और कई बार इस काम में आधा दिन लग जाता है. आजकल जहां हम किसी स्थान को 1-2 दिन से अधिक नहीं दे पाते, वहां इस काम में समय व्यर्थ करना बेमानी है.

और फिर इस से भी बड़ी बात शांति और सुकून की है. जब आप घूमने ही जा रहे हैं तो आप की मानसिकता शांत होनी चाहिए. जितनी अव्यवस्था होगी उतना ही आप का घूमना निरर्थक हो जाएगा. एक बार मैं मनाली में चेकआउट कर रहा था तो कमरे में से निकलते वक्त मैं ने देखा कि एक परिवार सामने ही बैठा था. मैं जैसे ही बाहर निकला, वे भीतर घुस गए. मैं ने पूछा तो पता चला कि ये लोग रात को ही मनाली पहुंच गए थे. पर गरमी का सीजन होने के कारण उन्हें कहीं जगह नहीं मिली तो फिर मजबूरी में पूरी रात टैक्सी में ही निकालनी पड़ी और मुंहमांगे दामों पर यह कमरा मिला है.

इसीलिए जहां तक हो सके इन परेशानियों से बचना चाहिए. एक बात और ध्यान में रखने की है कि लोग दूसरी जगह जाते हैं तो बहुत से जानपहचान वाले लोग औपचारिकतावश किसी रिश्तेदार या परिचित का पता दे देते हैं और फिर आग्रह भी करते हैं कि आप उन से जरूर मिल कर आना.

अब यहां यह तो ठीक है कि आप किसी का पता ले लें क्योंकि कभी इमरजेंसी में कोई बड़ी मुसीबत हो जाए तो अप्रोच किया जा सकता है लेकिन अनावश्यक रूप से किसी से मिलना- जुलना बिलकुल बेकार है, क्योंकि जब आप एक जगह को 1 या 2 दिन से ज्यादा समय नहीं दे पाते, ऐसे में किसी ऐसे व्यक्ति के घर जा कर समय व्यर्थ करना बेमानी है जिस से पहले कभी मिले ही नहीं और आगे कभी मिलने की संभावना भी नहीं है.

खरीदारी

एक परेशानी अमूमन सभी घूमने वालों के साथ बहुत ज्यादा होती है, वह है खरीदारी की. कई लोगों को मैं ने इतनी ज्यादा खरीदारी करते देखा है कि लगता है कि वे लोग कहीं घूमने नहीं बल्कि कहीं शापिंग करने गए थे. पर्यटन पर खरीदारी करना वैसे भी खतरनाक है. एक तो यह आप का बजट बिगाड़ देता है. दूसरे, आप पहले ही बड़ी मुश्किल से अपना समय निकाल पाए हैं. यह समय आप का शांति और सुकून से वहां के दर्शनीय स्थलों को देखने का है न कि खरीदारी करने का. ऐसी जगहों पर शापिंग करते वक्त कम से कम कपड़े तो नहीं खरीदने चाहिए क्योंकि कपड़े खरीदने में समय बहुत लगता है. अभी थोडे़ दिन पहले मैं केरल घूमने गया था. खरीदारी के नाम पर एक दुकान से गरम मसाले खरीद लिए और घर आ कर छोटेमोटे पैकेट बना कर सभी को दे दिए. इस से मेरा अधिक समय व्यर्थ नहीं हुआ. इसी तरह एक बार जम्मू गए तो वहां से अखरोट खरीद लिए और वापस आ कर लोगों में बांट दिए. अधिक वैरायटी के चक्कर में पड़े तो आप का घूमना व्यर्थ हो जाएगा.

एक बात और, यदि आप जहां घूमने जाने का कार्यक्रम बना रहे हैं तो पहले से उस की जानकारी जमा कर लें तो बेहतर रहता है. अगर आप घर से ही यह तय कर लें कि आप को उस शहर के कौनकौन से स्थान घूमने हैं तो आप व्यवस्थित रूप से घूम सकेंगे. फिर इस बात का अफसोस नहीं रहेगा कि आप जब वापस लौटें तो कोई आप को यह कहने वाला मिले कि अरे, आप ने फलां जगह तो देखी ही नहीं. जानकारी जुटाने का सर्वश्रेष्ठ साधन यही है कि सरिता के इस पर्यटन विशेषांक को सहेज कर रखें. इस की बहुमूल्य जानकारी हमेशा आप के काम आएगी. जब भी खाली समय में पढ़ेंगे तो आप के आगे घूमने की संभावना बनी रहेगी. सरिता द्वारा मुफ्त दी जा रही लघु रेलवे  समय सारिणी भी घर पर होनी चाहिए. गाडि़यों के बारे में जानकारी मिलने से आप सुविधानुसार प्रोग्राम बना सकेंगे.

इन सब बातों के साथ एक बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि आप का घूमने का कार्यक्रम बहुत ही कसा हुआ नहीं होना चाहिए. भले ही 1-2 जगह कम देख लें लेकिन भागदौड़ या आपाधापी बिलकुल नहीं होनी चाहिए. एक बार मेरे साथ यही हुआ. दार्जिलिंग घूमने के लिए न्यूजलपाईगुड़ी उतरे तो पता चला कि आज भारत बंद है इसलिए दार्जिलिंग जाने का कोई साधन उपलब्ध नहीं है. हालांकि ट्रेन में रिजर्वेशन था लेकिन ट्रेन भी बंद थी.

बाहर निकले तो देखा, चाय की दुकानें तक बंद थीं. फिर एक व्यक्ति से टैक्सी की बात की तो उस ने भी यही कहा कि कल सुबह से पहले कोई साधन दार्जिलिंग के लिए नहीं मिल पाएगा. फिर उस से दूसरे दिन की बात कर कुछ लड़कों की मदद से एक होटल किया. यदि आप के साथ ऐसा कभी कुछ हो जाए कि आप जहां जाएं वहां बंद, दंगा या कोई अन्य घटना घटित हो जाए तो फौरन किसी होटल में चले जाएं क्योंकि आप को एक तो सुरक्षा भी मिलेगी और दूसरे कम से कम खानापीना तो मिल ही जाएगा. ऐसी आपात स्थितियों को ध्यान में रखते हुए थोड़ा समय अतिरिक्त ले कर चलना चाहिए. मैं ने एक दिन अतिरिक्त रख रखा था इसलिए भले ही एक दिन व्यर्थ रहा पर दूसरे दिन दार्जिलिंग घूम पाए. समय रहने से आप के आगे के प्रोग्राम भी व्यवस्थित रहते हैं और सब से बड़ी बात जो रिजर्वेशन आदि आप ने करवा रखे हैं वे कैंसिल नहीं करवाने पड़ेंगे.

पैसे की व्यवस्था

जाते समय पैसों की व्यवस्था समुचित होनी चाहिए. एटीएम में पर्याप्त मात्रा में पैसे होने चाहिए ताकि इमरजेंसी में आप को वहां रुकना पड़े तो आप को परेशानी न आए. जो एटीएम कार्ड आप के पास है उस की शाखा से जा कर यह मालूम भी कर लें कि उस का एटीएम या सहयोगी शाखा का एटीएम उस जगह है अथवा नहीं जहां आप जा रहे हैं. बहुत अधिक कैश साथ में ले कर न चलें. जो कैश हो भी उसे एक ही जगह न रखें तो बेहतर होगा. यात्रा में डेबिट या क्रेडिट कार्ड बहुत काम आते हैं अत: एकदो कार्ड आप के लिए काफी सुविधाजनक रहेंगे. अपना बजट बनाते समय यह भी ध्यान में रखें कि अमूमन पर्यटन पर बजट से अधिक खर्च हो ही जाता है, अत: अपने बजट से कुछ अधिक ही पैसे का इंतजाम रखें.

अंत में सब से बड़ी बात है स्थान का चुनाव. स्थान का चुनाव करते समय आप अपने परिवार का अवश्य ध्यान रखें. यदि आप किसी बड़े शहर में रहते हैं और बहुत ज्यादा भागदौड़ वाली जिंदगी जीते हैं तो आप स्थान के चयन में यह जरूर देखें कि जहां आप जा रहे हैं वह जगह वैसी तो नहीं है जिस माहौल में आप रोजाना जी रहे हैं. अगर आप शोरशराबे वाली जगह रहते हैं तो आप को किसी शांत जगह का चुनाव करना चाहिए. इस से आप को बहुत सुकून मिलेगा. आप पर्यटन से तरोताजा हो कर आएंगे व अपने जीवन को सुचारु रूप से जी सकेंगे. तो फिर देर किस बात की, सोचिए, समझिए और निकल जाइए.

सपना

सरपट दौड़ती बस अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी. बस में सवार नेहा का सिर अनायास ही खिड़की से सट गया. उस का अंतर्मन सोचविचार में डूबा था. खूबसूरत शाम धीरेधीरे अंधेरी रात में तबदील होती जा रही थी. विचारमंथन में डूबी नेहा सोच रही थी कि जिंदगी भी कितनी अजीब पहेली है. यह कितने रंग दिखाती है? कुछ समझ आते हैं तो कुछ को समझ ही नहीं पाते? वक्त के हाथों से एक लमहा भी छिटके तो कहानी बन जाती है. बस, कुछ ऐसी ही कहानी थी उस की भी…

नेहा ने एक नजर सहयात्रियों पर डाली. सब अपनी दुनिया में खोए थे. उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें अपने साथ के लोगों से कोई लेनादेना ही नहीं था. सच ही तो है, आजकल जिंदगी की कहानी में मतलब के सिवा और बचा ही क्या है. वह फिर से विचारों में खो गई… मुहब्बत… कैसा विचित्र शब्द है न मुहब्बत, एक ही पल में न जाने कितने सपने, कितने नाम, कितने वादे, कितनी खुशियां, कितने गम, कितने मिलन, कितनी जुदाइयां आंखों के सामने साकार होने लगती हैं इस शब्द के मन में आते ही.

कितना अधूरापन… कितनी ललक, कितनी तड़प, कितनी आहें, कितनी अंधेरी रातें सीने में तीर की तरह चुभने लगती हैं और न जाने कितनी अकेली रातों का सूनापन शूल सा बन कर नसनस में चुभने लगता है. पता नहीं क्यों… यह शाम की गहराई उस के दिल को डराने लगती है… एसी बस के अंदर शाम का धुंधलका पसरने लगा था. बस में सवार सभी यात्री मौन व निस्तब्ध थे. उस ने लंबी सांस छोड़ते हुए सहयात्रियों पर दोबारा नजर डाली. अधिकांश यात्री या तो सो रहे थे या फिर सोने का बहाना कर रहे थे. वह शायद समझ नहीं पा रही थी. थोड़ी देर नेहा यों ही बेचैन सी बैठी रही. उस का मन अशांत था. न जाने क्यों इस शांतनीरव माहौल में वह अपनी जिंदगी की अंधेरी गलियों में गुम होती जा रही थी.

कुछ ऐसी ही तो थी उस की जिंदगी, अथाह अंधकार लिए दिग्भ्रमित सी, जहां उस के बारे में सोचने वाला कोई नहीं था. आत्मसाक्षात्कार भी अकसर कितना भयावह होता है? इंसान जिन बातों को याद नहीं करना चाहता, वे रहरह कर उस के अंतर्मन में जबरदस्ती उपस्थिति दर्ज कराने से नहीं चूकतीं. जिंदगी की कमियां, अधूरापन अकसर बहुत तकलीफ देते हैं. नेहा इन से भागती आई थी लेकिन कुछ चीजें उस का पीछा नहीं छोड़ती थीं. वह अपना ध्यान बरबस उन से हटा कर कल्पनाओं की तरफ मोड़ने लगी. उन यादों की सुखद कल्पनाएं थीं, उस की मुहब्बत थी और उसे चाहने वाला वह राजकुमार, जो उस पर जान छिड़कता था और उस से अटूट प्यार करता था.

नेहा पुन: हकीकत की दुनिया में लौटी. बस की तेज रफ्तार से पीछे छूटती रोशनी अब गुम होने लगी थी. अकेलेपन से उकता कर उस का मन हुआ कि किसी से बात करे, लेकिन यहां बस में उस की सीट के आसपास जानपहचान वाला कोई नहीं था. उस की सहेली पीछे वाली सीट पर सो रही थी. बस में भीड़ भी नहीं थी. यों तो उसे रात का सफर पसंद नहीं था, लेकिन कुछ मजबूरी थी. बस की रफ्तार से कदमताल करती वह अपनी जिंदगी का सफर पुन: तय करने लगी. नेहा दोबारा सोचने लगी, ‘रात में इस तरह अकेले सफर करने पर उस की चिंता करने वाला कौन था? मां उसे मंझधार में छोड़ कर जा चुकी थीं. भाइयों के पास इतना समय ही कहां था कि पूछते उसे कहां जाना है और क्यों?’

रात गहरा चुकी थी. उस ने समय देखा तो रात के 12 बज रहे थे. उस ने सोने का प्रयास किया, लेकिन उस का मनमस्तिष्क तो जीवनमंथन की प्रक्रिया से मुक्त होने को तैयार ही नहीं था. सोचतेसोचते उसे कब नींद आई उसे कुछ याद नहीं. नींद के साथ सपने जुड़े होते हैं और नेहा भी सपनों से दूर कैसे रह सकती थी? एक खूबसूरत सपना जो अकसर उस की तनहाइयों का हमसफर था. उस का सिर नींद के झोंके में बस की खिड़की से टकरातेटकराते बचा. बस हिचकोले खाती हुई झटके के साथ रुकी.

नेहा को कोई चोट नहीं लगी, लेकिन एक हाथ पीछे से उस के सिर और गरदन से होता हुआ उस के चेहरे और खिड़की के बीच सट गया था. नेहा ने अपने सिर को हिलाडुला कर उस हाथ को अपने गालों तक आने दिया. कोई सर्द सी चीज उस के होंठों को छू रही थी, शायद यह वही हाथ था जो नेहा को सुखद स्पर्श प्रदान कर रहा  था. उंगलियां बड़ी कोमलता से कभी उस के गालों पर तो कभी उस के होंठों पर महसूस हो रही थीं. उंगलियों के पोरों का स्पर्श उसे अपने बालों पर भी महसूस हो रहा था. ऐसा स्पर्श जो सिर्फ प्रेमानुभूति प्रदान करता है. नेहा इस सुकून को अपने मनमस्तिष्क में कैद कर लेना चाहती थी. इस स्पर्श के प्रति वह सम्मोहित सी खिंची चली जा रही थी. नेहा को पता नहीं था कि यह सपना था या हकीकत, लेकिन यह उस का अभीष्ट सपना था, वही सपना… उस का अपना स्वप्न… हां, वही सपनों का राजकुमार… पता नहीं क्यों उस को अकेला देख कर बरबस चला आता था. उस के गालों को छू लेता, उस की नींद से बोझिल पलकों को हौले से सहलाता, उस के चेहरे को थाम कर धीरे से अपने चेहरे के करीब ले आता. उस की सांसों की गर्माहट उसे जैसे सपने में महसूस होती. उस का सिर उस के कंधे पर टिक जाता, उस के दिल की धड़कन को वह बड़ी शिद्दत से महसूस करती, दिल की धड़कन की गूंज उसे सपने की हकीकत का स्पष्ट एहसास कराती. एक हाथ उस के चेहरे को ठुड्डी से ऊपर उठाता… वह सुकून से मुसकराने लगती.

नींद से ज्यादा वह कोई और सुखद नशा सा महसूस करने लगती. उस का बदन लरजने लगता. वह लहरा कर उस की बांहों में समा जाती. उस के होंठ भी अपने राजकुमार के होंठों से स्पर्श करने लगते. बदन में होती सनसनाहट उसे इस दुनिया से दूर ले जाती, जहां न तनहाई होती न एकाकीपन, बस एक संबल, एक पूर्णता का एहसास होता, जिस की तलाश उसे हमेशा रहती. बस ने एक झटका लिया. उस की तंद्रा उसे मदहोशी में घेरे हुए थी. उसे अपने आसपास तूफानी सांसों की आवाज सुनाई दी. वह फिर से मुसकराने लगी, तभी पता नहीं कैसे 2 अंगारे उसी के होंठों से हट गए. वह झटके से उठी… आसपास अब भी अंधियारा फैला था. बस की खिड़की का परदा पूरी तरह तना था. उस की सीट ड्राइवर की तरफ पहले वाली थी, इसलिए जब भी सामने वाला परदा हवा से हिलता तो ड्राइवर के सामने वाले शीशे से बाहर सड़क का ट्रैफिक और बाहरी नजारा उसे वास्तविकता की दुनिया से रूबरू कराता. वह धीरे से अपनी रुकी सांस छोड़ती व प्यास से सूखे होंठों को अपनी जबान से तर करती. उस ने उड़ती नजर अपनी सहेली पर डाली, लेकिन वह अभी भी गहन निद्रा में अलमस्त और सपनों में खोई सी बेसुध दिखी.

उस की नजर अचानक अपनी साथ वाली सीट पर पड़ी. वहां एक पुरुष साया बैठा था. उस ने घबरा कर सामने हिल रहे परदे को देखा. उस की हथेलियां पसीने से लथपथ हो उठीं. डर और घबराहट में नेहा ने अपनी जैकेट को कस कर पकड़ लिया. थोड़ी हिम्मत जुटा कर, थूक सटकते हुए उस ने अपनी साथ वाली सीट को फिर देखा. वह साया अभी तक वहीं बैठा नजर आ रहा था. उसे अपनी सांस गले में अटकी महसूस हुई. अब चौकन्नी हो कर वह सीधी बैठ गई और कनखियों से उस साए को दोबारा घूरने लगी. साया अब साफ दिखाई पड़ने लगा था. बंद आंखों के बावजूद जैसे वह नेहा को ही देख रहा था. सुंदरसजीले, नौजवान के चेहरे की कशिश सामान्य नहीं थी. नेहा को यह कुछ जानापहचाना सा चेहरा लगा. नेहा भ्रमित हो गई. अभी जो स्वप्न देखा वह हकीकत था या… कहीं सच में यह हकीकत तो नहीं? क्या इसी ने उसे सोया हुआ समझ कर चुंबन किया था? उस के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं.

‘क्या हुआ तुम्हें?’ यह उस साए की आवाज थी. वह फिर से अपने करीब बैठे युवक को घूरने लगी. युवक उस की ओर देखता हुआ मुसकरा रहा था. ‘क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?’ युवक पूछने लगा, लेकिन इस बार उस के चेहरे पर हलकी सी घबराहट नजर आ रही थी. नेहा के चेहरे की उड़ी हवाइयों को देख वह युवक और घबरा गया. ‘लीजिए, पानी पी लीजिए…’ युवक ने जल्दी से अपनी पानी की बोतल नेहा को थमाते हुए कहा. नेहा मौननिस्तब्ध उसे घूरे जा रही थी. ‘पी लीजिए न प्लीज,’ युवक जिद करने लगा.

नेहा ने एक अजीब सा सम्मोहन महसूस किया और वह पानी के 2-3 घूंट पी गई. ‘अब ठीक हो न तुम?’ उस ने कहा. नेहा के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला. पता नहीं क्यों युवक की बेचैनी देख कर उसे हंसी आने लगी. नेहा को हंसते देख वह युवक सकपकाने लगा. तनाव से कसे उस के कंधे अब रिलैक्स की मुद्रा में थे. अब वह आराम से बैठा था और नेहा की आंखों में आंखें डाल उसे निहारने लगा था. उस युवक की तीक्ष्ण नजरें नेहा को बेचैन करने लगीं, लेकिन युवक की कशिश नेहा को असीम सुख देती महसूस हुई.

‘आप का नाम पूछ सकती हूं?’ नेहा ने बात शुरू करते हुए पूछा.

‘आकाश,’ युवक अभी भी कुछ सकपकाया सा था.

‘मेरा नाम नहीं पूछोगे?’ नेहा खनकते स्वर में बोली.

‘जी, बताइए न, आप का नाम क्या है?’ आकाश ने व्यग्र हो कर पूछा.

‘नेहा,’ वह मुसकरा कर बोली.

‘नेहा,’ आकाश उस का नाम दोहराने लगा. नेहा को लगा जैसे आकाश कुछ खोज रहा है.

‘वैसे अभी ये सब क्या था मिस्टर?’ अचानक नेहा की आवाज में सख्ती दिखी. नेहा के ऐसे सवाल से आकाश का दिल बैठने लगा.

‘जी, क्या?’ आकाश अनजान बनते हुए पूछने लगा.

‘वही जो अभीअभी आप ने मेरे साथ किया.’

‘देखिए नेहाजी, प्लीज…’ आकाश वाक्य अधूरा छोड़ थूक सटकने लगा.

‘ओह हो, नेहाजी? अभीअभी तो मैं तुम थी?’ नेहा अब पूरी तरह आकाश पर रोब झाड़ने लगी.

‘नहीं… नहीं, नेहाजी… मैं…’ आकाश को समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या कहे. उधर नेहा उस की घबराहट पर मन ही मन मुसकरा रही थी. तभी आकाश ने पलटा खाया, ‘प्लीज, नेहा,’ अचानक आकाश ने उस का हाथ थामा और तड़प के साथ इसरार भरे लहजे में कहने लगा, ‘मत सताओ न मुझे,’ आकाश नेहा का हाथ अपने होंठों के पास ले जा रहा था. ‘क्या?’ उस ने चौंकते हुए अपना हाथ पीछे झटका. अब घबराने की बारी नेहा की थी. उस ने सकुचाते हुए आकाश की आंखों में झांका. आकाश की आंखों में अब शरारत ही शरारत महसूस हो रही थी. ऐसी शरारत जो दैहिक नहीं बल्कि आत्मिक प्रेम में नजर आती है. दोनों अब खिलखिला कर हंस पड़े. बाहर ठंड बढ़ती जा रही थी. बस का कंडक्टर शीशे के साथ की सीट पर पसरा पड़ा था. ड्राइवर बेहद धीमी आवाज में पंजाबी गाने बजा रहा था. पंजाबी गीतों की मस्ती उस पर स्पष्ट झलक रही थी. थोड़ीथोड़ी देर बाद वह अपनी सीट पर नाचने लगता. पहले तो उसे देख कर लगा शायद बस ने झटका खाया, लेकिन एकदम सीधी सड़क पर भी वह सीट पर बारबार उछलता और एक हाथ ऊपर उठा कर भांगड़ा करता, इस से समझ आया कि वह नाच रहा है. पहले तो नेहा ने समझा कि उस के हाथ स्टेयरिंग पकड़ेपकड़े थक गए हैं, तभी वह कभी दायां तो कभी बायां हाथ ऊपर उठा लेता. उस के और ड्राइवर के बीच कैबिन का शीशा होने के कारण उस तरफ की आवाज नेहा तक नहीं आ रही थी, लेकिन बिना म्यूजिक के ड्राइवर का डांस बहुत मजेदार लग रहा था.

आकाश भी ड्राइवर का डांस देख कर नेहा की तरफ देख कर मुसकरा रहा था. शायद 2 प्रेमियों के मिलन की खुशी से उत्सर्जित तरंगें ड्राइवर को भी खुशी से सराबोर कर रही थीं. मन कर रहा था कि वह भी ड्राइवर के कैबिन में जा कर उस के साथ डांस करे. नेहा के सामीप्य और संवाद से बड़ी खुशी क्या हो सकती थी? आकाश को लग रहा था कि शायद ड्राइवर उस के मन की खुशी का ही इजहार कर रहा है.

‘बाहर चलोगी?’ बस एक जगह 20 मिनट के लिए रुकी थी.

‘बाहर… किसलिए… ठंड है बाहर,’ नेहा ने खिड़की से बाहर झांकते हुए कहा.

‘चलो न प्लीज, बस दो मिनट के लिए.’

‘अरे?’ नेहा अचंभित हो कर बोली. लेकिन आकाश नेहा का हाथ थामे सीट से उठने लगा.

‘अरे…रे… रुको तो, क्या करते हो यार?’ नेहा ने बनावटी गुस्से में कहा.

‘बाहर कितनी धुंध है, पता भी है तुम्हें?’ नेहा ने आंखें दिखाते हुए कहा.

‘वही तो…’ आकाश ने लंबी सांस ली और कुछ देर बाद बोला, ‘नेहा तुम जानती हो न… मुझे धुंध की खुशबू बहुत अच्छी लगती है. सोचो, गहरी धुंध में हम दोनों बाइक पर 80-100 की स्पीड में जा रहे होते और तुम ठंड से कांपती हुई मुझ से लिपटतीं…’

‘आकाश…’ नेहा के चेहरे पर लाज, हैरानी की मुसकराहट एकसाथ फैल गई.

‘नेहा…’ आकाश ने पुकारा… ‘मैं आज तुम्हें उस आकाश को दिखाना चाहता हूं… देखो यह… आकाश आज अकेला नहीं है… देखो… उसे जिस की तलाश थी वह आज उस के साथ है.’

नेहा की मुसकराहट गायब हो चुकी थी. उस ने आकाश में चांद को देखा. न जाने उस ने कितनी रातें चांद से यह कहते हुए बिताई थीं कि तुम देखना चांद, वह रात भी आएगी जब वह अकेली नहीं होगी. इन तमाम सूनी रातों की कसम… वह रात जरूर आएगी जब उस का चांद उस के साथ होगा. तुम देखना चांद, वह आएगा… जरूर आएगा… ‘अरे, कहां खो गई? बस चली जाएगी,’ आकाश उस के कानों के पास फुसफुसाते हुए बोला. वह चुपचाप बस के भीतर चली आई. आकाश बहुत खुश था. इन चंद घंटों में वह नेहा को न जाने क्याक्या बता चुका था. पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना और जाने से पहले पिता की जिद पूरी करने के लिए शादी करना उस की विवशता थी. अचानक मातापिता की एक कार ऐक्सिडैंट में मृत्यु हो गई. उसे वापस इंडिया लौटना पड़ा, लेकिन अपनी पत्नी को किसी और के साथ प्रेमालाप करते देख उस ने उसे तलाक दे दिया और मुक्त हो गया.

रात्रि धीरेधीरे खत्म हो रही थी. सुबह के साढ़े 3 बज रहे थे. नेहा ने समय देखा और दोबारा अपनी अमूर्त दुनिया में खो गई. जिंदगी भी कितनी अजीब है. पलपल खत्म होती जाती है. न हम समय को रोक पाते हैं और न ही जिंदगी को, खासकर तब जब सब निरर्थक सा हो जाए. बस, अब अपने गंतव्य पर पहुंचने के लिए आधे घंटे का सफर और था. बस की सवारियां अपनी मंजिल तक पहुंचेंगी या नहीं यह तो कहना आसान नहीं था, लेकिन आकाश की फ्लाइट है, वह वापस अमेरिका चला जाएगा और वह अपनी सहेली के घर शादी अटैंड कर 2 दिन बाद लौट जाएगी, अपने घर. फिर से वही… पुरानी एकाकी जिंदगी.

‘‘क्यों सोच रही हो?’’ आकाश ने ‘क्या’ के बजाय ‘क्यों’ कहा तो उस ने सिर उठा कर आकाश की तरफ देखा. उस की आंखों में प्रकाश की नई उम्मीद बिखरी नजर आ रही थी.

‘तुम जानते हो आकाश, दिल्ली बाईपास पर राधाकृष्ण की बड़ी सी मूर्ति हाल ही में स्थापित हुई है, रजत के कृष्ण और ताम्र की राधा.’

‘क्या कहना चाहती हो?’ आकाश ने असमंजस भाव से पूछा.

‘बस, यही कि कई बार कुछ चीजें दूर से कितनी सुंदर लगती हैं, पर करीब से… आकाश छूने की इच्छा धरती के हर कण की होती है लेकिन हवा के सहारे ताम्र रंजित धूल आकाश की तरफ उड़ती हुई प्रतीत तो होती है, पर कभी आकाश तक पहुंच नहीं पाती. उस की नियति यथार्थ की धरा पर गिरना और वहीं दम तोड़ना है वह कभी…’

‘राधा और कृष्ण कभी अलग नहीं हुए,’ आकाश ने भारी स्वर में कहा.

‘हां, लेकिन मरने के बाद,’ नेहा की आवाज में निराशा झलक रही थी.

‘ऐसा नहीं है नेहा, असल में राधा और कृष्ण के दिव्य प्रेम को समझना सहज नहीं,’ आकाश गंभीर स्वर में बोला.

‘क्या?’ नेहा पूछने लगी, ‘राधा और कान्हा को देख कर तुम यह सोचती हो?’ आकाश की आवाज की खनक शायद नेहा को समझ नहीं आ रही थी. वह मौन बैठी रही. आकाश पुन: बोला, ‘ऐसा नहीं है नेहा, प्रेम की अनुभूति यथार्थ है, प्रेम की तार्किकता नहीं.’

‘क्या कह रहे हो आकाश? मुझे सिर्फ प्रेम चाहिए, शाब्दिक जाल नहीं,’ नेहा जैसे अपनी नियति प्रकट कर उठी.

‘वही तो नेहा, मेरा प्यार सिर्फ नेहा के लिए है, शाश्वत प्रेम जो जन्मजन्मांतरों से है, न तुम मुझ से कभी दूर थीं और न कभी होंगी.’

‘आकाश प्लीज, मुझे बहलाओ मत, मैं इंसान हूं, मुझे इंसानी प्यार की जरूरत है तुम्हारे सहारे की, जिस में खो कर मैं अपूर्ण से पूर्ण हो जाऊं.’’

‘‘तुम्हें पता है नेहा, एक बार राधा ने कृष्ण से पूछा मैं कहां हूं? कृष्ण ने मुसकरा कर कहा, ‘सब जगह, मेरे मनमस्तिष्क, तन के रोमरोम में,’ फिर राधा ने दूसरा प्रश्न किया, ‘मैं कहां नहीं हूं?’ कृष्ण ने फिर से मुसकरा कर कहा, ‘मेरी नियति में,’ राधा पुन: बोली, ‘प्रेम मुझ से करते हो और विवाह रुक्मिणी से?’

कृष्ण ने फिर कहा, ‘राधा, विवाह 2 में होता है जो पृथकपृथक हों, तुम और मैं तो एक हैं. हम कभी अलग हुए ही नहीं, फिर विवाह की क्या आवश्यकता है?’

‘आकाश, तुम मुझे क्या समझते हो? मैं अमूर्त हूं, मेरी कामनाएं निष्ठुर हैं.’

‘तुम रुको, मैं बताता हूं तुम्हें, रुको तुम,’ आकाश उठा, इस से पहले कि नेहा कुछ समझ पाती वह जोर से पुकारने लगा. ‘खड़ी हो जाओ तुम,’ आकाश ने जैसे आदेश दिया.

‘अरे, लेकिन तुम कर क्या रहे हो?’ नेहा ने अचरज भरे स्वर में पूछा.

‘खड़ी हो जाओ, आज के बाद तुम कृष्णराधा की तरह केवल प्रेम के प्रतीक के रूप में याद रखी जाओगी, जो कभी अलग नहीं होते, जो सिर्फ नाम से अलग हैं, लेकिन वे यथार्थ में एक हैं, शाश्वत रूप से एक…’ नेहा ने देखा आकाश के हाथ में एक लिपस्टिक थी जो शायद उस ने उसी के हैंडबैग से निकाली थी, उस से आकाश ने अपनी उंगलियां लाल कर ली थीं.

‘अब सब गवाह रहना,’ आकाश ने बुलंद आवाज में कहा.

नेहा ने देखा बस का सन्नाटा टूट चुका था. सभी यात्री खड़े हो कर इस अद्भुत नजारे को देख रहे थे. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती आकाश की उंगलियां उस के माथे पर लाल रंग सजा चुकी थीं. लोगों ने तालियां बजा कर उन्हें आशीर्वाद दिया. उन के चेहरों पर दिव्य संतुष्टि प्रसन्नता बिखेर रही थी और मुबारकबाद, शुभकामनाओं और करतल ध्वनि के बीच अलौकिक नजारा बन गया था. आकाश नतमस्तक हुआ और उस ने सब का आशीर्वाद लिया. बाहर खिड़की से राधाकृष्ण की मूर्ति दिख रही थी जो अब लगातार उन के नजदीक आ रही थी… पास… और पास… जैसे आकाश और नेहा उस में समा रहे हों.

‘‘नेहा… नेहा… उठो… दिल्ली आ गया. कब तक सोई रहोगी?’’ नेहा की सहेली बेसुध पड़ी नेहा को झिंझोड़ कर उठाने का प्रयास करने लगी. कुछ देर बाद नेहा आंखें मलती हुई उठने का प्रयास करने लगी.

सफर खत्म हो गया था… मंजिल आ चुकी थी. लेकिन नेहा अब भी शायद जागना नहीं चाह रही थी. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था… वे सब क्या था? काश, जिंदगी का सफर भी कुछ इसी तरह चलता रहे… वह पुन: सपने में खो जाना चाहती थी.

सुशासन लाइए बाकि खुद आ जाएगा

मंदिरों में या मंचों पर भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, ओडिसी नाच करने और किसी दूसरे नृत्य में मुंबइया टाइप फिल्मी डांस करने में आखिर फर्क क्या है? पत्थर के देवता तो नाच देख कर तालियां बजाते नहीं हैं. मंदिर हो या कोई हाल या फिर कमरा, तालियां तो हाथों से लोग ही बजाते हैं और ये हाथ पुजारियों के हों, महंतों के हों, भक्तों के हों, नृत्यप्रेमियों के हों या फिर दीवानों के, क्या कोई फर्क पड़ता है?

जिस देश में मंदिरों में नाचों की लंबी पुरानी परंपरा रही हो और मंदिरों में नाचने वाली लड़कियां वहीं से आती हों जहां से कमरों या कोठों पर जाती हैं, तो संस्कारी होने का नाटक करने का क्या मतलब रह जाता है? महाराष्ट्र सरकार का मुंबई व दूसरे शहरों के डांस बारों को बंद करने की जिद एकदम बेमतलब की है. वहां अगर बंद करना है तो बार को बंद करो, डांस को नहीं पर महाराष्ट्र सरकार जो मस्तानी के इतिहास को बारबार गर्व से दोहराती है उन्हीं मस्तानियों पर कानूनी फंदा डाल रही है, जो 100-200 रुपए कमाने के लिए घंटों मेकअप करती हैं और थकाऊउबाऊ सीलन भरे कमरों में नकली हंसी के साथ नाचती हैं. अगर डांस को इसलाम की तरह नापाक माना जाता तो भी बात दूसरी थी. इसलाम भी इसे कभी भी कहीं भी बंद नहीं कर पाया. औरतें नहीं नाचीं तो मर्द नाचने लगे और नाच अगर अच्छा है तो आदमीऔरत में फर्क कैसा?

सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल में एक सुनवाई में सही कहा कि अगर ये लड़कियां नाच कर पैसा कमाती हैं, तो सड़कों पर भीख मांगने से तो अच्छा ही है. असल में नाच और वेश्यावृत्ति  पर लगी तरहतरह की रोकों को खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि ये जीवन का हिस्सा हैं. औरतों का नाचना और पुरुषों के साथ सोना दोनों उन के अपने सुख के लिए हैं, ये कोरी कमाई के साधन नहीं हैं. हर जना कमाई का कोई साधन ढूंढ़ता है और दूसरों के लिए कुछ काम करता है जिस से दूसरों को सुख मिले और फिर चाहे वह काम पिकासो जैसे पेंटर का हो, जुबीन मेहता जैसे संगीतकार का हो, मन्ना डे जैसे गायक का हो, बिरजू महाराज जैसे कत्थक नर्तक का हो, माइकल जैक्सन, सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली, मैरी कौम का हो. ये सब काम पेट भरने के लिए, अपने सुकून और दूसरों को सुख देने के लिए किए जाते हैं और इन सब के बदले पैसे मांगे जाते हैं या लिए जाते हैं. जब ये लोग देह या देह का अंग बेच कर कमाई करते हैं और सम्मान भी पाते हैं तो डांस बार या ब्रोथल वाली लड़कियों पर अंकुश क्यों?

यह दोगलापन हमारे चरित्र का हिस्सा है. इस में हम कहते कुछ हैं, असलियत कुछ और होती है. इन लड़कियों का विरोध करने वाले पहले मौके पर लड़कियों को पाने के लिए बेचैन हो जाते हैं. जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक, प्रशासनिक व सामाजिक ढांचा इस तरह का हो कि औरतों को हर क्षेत्र में सुरक्षा मिले यानी घरों में, बाजारों में, दफ्तरों में, पर्यटन स्थलों पर और सब से ज्यादा इस तरह के बुरे समझे जाने वाले व्यवसायों में. वे अपनी कमाई कर सकें, अपना पैसा सुरक्षित रख सकें. उन्हें अपना शरीर जबरन किसी को न सौंपना पड़े और न ही उन्हें जबरन देह या डांस व्यापार में झोंका जा सके. यह काम तो सरकार कर नहीं पा रही उलटे संस्कार, सत्कार, सत्कर्म का बहाना बना रही है.

‘यादव-मुसलिम‘ समीकरण को चाहिये ‘एक्स्ट्रा डोज‘

राजनीति में ‘मतभेद‘ और ‘मनभेद’ दोनो का ही कोई बहुत मतलब नहीं रह गया. अपने लाभ के हिसाब से ‘दोस्ती‘ और ‘दुश्मनी‘ के नयेनये जुमले बनते और बिगडते रहते है. जनता भी नेताओं के इस चमत्कार को कभी ‘नमस्कार‘ करती है तो कभी ‘नकार’ देती है.राजनीतिक दल और विचारधारा को समय के हिसाब से तय होने लगे है.9 साल बाद समाजवादी पार्टी में शमिल हुये बेनी प्रसाद वर्मा ने 2012 के विधानसभा और 2014 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के खिलाफ एक से एक श्रंगारयुक्त शब्दों का प्रयोग किया.कई बार तो बात इतनी बढ गई कि कांग्रेस के हाईकमान से सपा नेताओ ने शिकायत तक की.2009 में बेनी प्रसाद वर्मा कांग्रेस के टिकट पर गोंडा से लोकसभा का चुनाव जीता और कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए-2 सरकार में केन्द्रीय मंत्रीं थे.मुलायम सिंह यादव की पार्टी यूपीए-2 को समर्थन कर रही थी.ऐसे में कांग्रेस के लिये बेनी को चुप रखना मुश्किल था.मुलायम की पार्टी की भी जरूरत कांग्रेस को थी.बेनी प्रसाद वर्मा ने मुलायम के लिये जिन श्रंगारयुक्त शब्दों का प्रयोग करते वो कांग्रेस के गले में हडडी की तरह फंस जाते थे.

9 साल बाद बेनी प्रसाद वर्मा को समझ आया कि वह कांग्रेस के योग्य ही नहीं थे. कांग्रेसी कल्चर में रचबस नहीं पा रहे थे.2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद बेनी प्रसाद वर्मा ने चुप्पी साध ली.इसके बाद बेनी प्रसाद वर्मा ने 13 मई को अपनी चुप्पी तोडी और कहा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का विरोध करने का नैतिक साहस नहीं जुटा पा रहे से इस कारण वापस सपा में शामिल हो गये.सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने उनको खुलेमन से पार्टी में शामिल किया.बेनी प्रसाद वर्मा और मुलायम सिंह यादव सोशलिस्ट पार्टी के जमाने से एक साथ है.लोकदल और जनता पार्टी के समय एक साथ रहे.समाजवादी पार्टी की नींव रखने में भी दोनो साथ थे.उस समय समाजवादी पार्टी को यादव कुर्मी दोनो ही जातियों के वोट चाहिये थे.समय के साथ बेनी प्रसाद वर्मा और मुलायम के बीच दूरी आई. बेनी की नम्बर 2 की कुर्सी छिन गई.

2012 में बहुमत की सरकार बनाने के बाद सपा में यादव मुसिलम समीेकरण की तूती बोलने लगी.यादवों में अब सपा का एकाधिकार खत्म हो गया है.वहां भी छोटेछोटे नेता उभर आये है.जो पार्टी के परिवारवाद से परेशान है.2014 के लोकसभा चुनाव में ‘यादव -मुसलिम’ समीकरण का भ्रम टूटा तो विधानसभा चुनाव के पहले सपा में दूसरी जातियों को शामिल करने की पहल शुरू हो गई.सपा यह भूल गई कि बेनी प्रसाद वर्मा कुर्मियों के नेता नहीं रह गये है.वह अपने जिले बाराबंकी में अपने बेटे का चुनाव नहीं जितवा पाये.कांग्रेस में बाराबंकी से बेनी प्रसाद वर्मा का मुकाबला पीएल पुनिया से था तो सपा में बेनी प्रसाद वर्मा का मुकाबला अरविंद सिंह ‘गोप’ से है.

ऐसे में पुराने जैसे सुखद भविष्य की कल्पना मुश्किल है.सपा को बेनी प्रसाद वर्मा कुर्मी वोट और किरण पाल सिंह से जाट वोट हासिल होता दिख रहा है.सपा की मुश्किल यह है कि जदयू नेता नीतीश कुमार ने शराब बंदी और मंडल कमीशन का सहारा लेकर उत्तर प्रदेश में नये समीकरण गढने को काम शुरू किया है.जिससे सपा की बेचैनी बढ गई है.अब वह अपने पुराने ‘यादव-मुसलिम‘ समीकरण के बूते जीत होती नहीं दिख रही है.ऐसे में एक बार फिर से ‘मतभेद‘ और ‘मनभेद’ भुलाकर नये समीकरण तलाशने का काम तेज होता दिख रहा है.

पढ़ाई को आसान बना रहे एडटेक स्टार्टअप्स

इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग से शुरू हुए एजुकेशन टेक स्टार्टअप के ट्रेंड ने भारत के एजुकेशन सिस्टम में बड़ा बदलाव किया है. इंटरनेट और टेक्नोलॉजी के इस दौर ने हर काम को आसान बना दिया है. इसका असर पढ़ाई करने के तरीके पर भी पड़ा है. आज छात्रों को अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए कोचिंग पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, बल्कि इंटरनेट की दुनिया में आज कई ऐसे स्टार्टअप उपलब्ध हैं, जिन्होंने छात्रों के लिए पढ़ाई से संबंधित समस्याओं को दूर करने से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने तक की प्रक्रिया को काफी आसान बना दिया है. शिक्षण की प्रक्रिया को आसान बनानेवाले इन स्टार्टअप्स को एडटेक का नाम दिया गया है. यदि आप भी अपनी पढ़ाई करने के तरीके को आसान व बेहतर बनाना चाहते हैं, तो इन एडटेक स्टार्टअप्स की मदद ले सकते हैं.

एम्बाइब ( Embibe)

एम्बाइब एंटरप्रेन्योर्स की एक टीम द्वारा चलाया जानेवाला ऑनलाइन पोर्टल है, जो छात्रों को घर बैठे कोचिंग देने व जेइइ, एम्स, एआइपीएमटी, कैट जैसी प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कराने में मदद करता है. इस पोर्टल की शुरुआत टीसीएस की एंप्लाइ रह चुकी 33 वर्षीय अदिति अवस्थी ने की थी. अदिति का मकसद प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करनेवाले छात्रों को एक ऐसा प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराना था, जो तैयारी के प्रति सही मार्गदर्शन देने में उनकी मदद कर सके. आज दस लाख से भी अधिक संख्या में छात्र इस वेबपोर्टल का प्रयोग कर रहे हैं.

विजआइक्यू (WizIQ)

विजआइक्यू एजुकेशन सर्विस प्रोवाइड करनेवालों के लिए एक वेब आधारित प्लेटफॉर्म है, जहां लाइव शिक्षण कार्य किया जा सकता है. यहां आप अपनी ऑनलाइन एकेडमी बना सकते हैं और छात्रों को एजुकेशन सर्विस प्रोवाइड कर सकते हैं.

टॉपर (Toppr)

यह एडटेक फर्म आइआइटी जेइइ, प्री मेडिकल के लिए छात्रों को ट्रेनिंग देने और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए फाउंडेशन कोर्सेज भी उपलब्ध कराता है. यह कांपीटिशन की तैयारी करनेवाले छात्रों को असीमित प्रैक्टिस टेस्ट उपलब्ध कराता है और यहां छात्रों को लर्निंग मटीरियल भी उपलब्ध कराया जाता है. इसके अलावा अगर छात्रों को किसी तरह का संदेह होता है, तो वे लाइव चैट के जरिये उसे दूर कर सकते हैं.

आइप्रूफ इंडिया (iProfIndia)

आइप्रूफ खुद को भारत में सबसे बड़ी टेबलेट पीसी आधारित एजुकेशन कॉन्टेंट डिलिवरी कंपनी और डिजिटल एजुकेशन लाइब्रेरी होने का दावा करती है, जो अपने एडवांस्ड एंड्रॉयड एप्लिकेशन के माध्यम से स्टडी का स्मार्ट तरीका उपलब्ध कराती है. इसके एंड्रॉयड एप्स ऑफलाइन मोड पर भी काम करते हैं.

कॅरियरगाइड (CareerGuide)

कॅरियर गाइड ऐसा एडटेक प्लेटफॉर्म है, जो अभ्यर्थियों को कॅरियर से जुड़े सभी तरह के सवालों के जवाब उपलब्ध कराता है. इसके पास विभिन्न क्षेत्रों के चर्चित कॅरियर एक्स्पर्ट्स का मार्केटप्लेस है, जिनसे छात्र जुड़ सकते हैं और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े सवालों का जवाब हासिल कर सकते हैं.

 एजुकार्ट (EduKart)

एजुकार्ट एक ऑनलाइन एंट्रेंस कोचिंग साइट है, जो हर छात्र की एंट्रेंस की तैयारी संबंधी जरूरतों को पूरा करती है. विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बैठनेवाले छात्रों के लिए कोर्सों के अलावा यह कंपनी मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग, मेडिकल, सिविल सर्विसेज, बिजनेस, लॉ और अन्य विभिन्न कोर्सों में मदद चाहनेवाले लोगों के लिए अंडरग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट के ऑनलाइन कोर्सेज प्रदान करती है.

अपग्रेड (UpGrad)

अगर आप वर्किंग प्रोफेशनल हैं और अपने स्किल को बढ़ाना चाहते हैं, तो इस काम में अपग्रेड आपकी मदद करेगा. यह स्टार्टअप वर्किंग प्रोफेशनल के लिए ऑनलाइन हायर एजुकेशन प्रोग्राम ऑफर करता है.

इसके एकेडमिक एडवाइजरी बोर्ड में काफी अनुभवी फैकल्टी है. यह कंपनी वन-टू-वन एकेडेमिक और नॉन एकेडेमिक सपोर्ट अपने छात्रों को उपलब्ध कराती है. यह अपने स्टूडेंट्स को लाइव प्रोजेक्ट्स, केस स्टडीज, ग्रुप असाइनमेंट्स, लाइव लेक्चर्स तक एक्सेस आदि उपलब्ध कराती है.

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