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जीरा फसल सही देखभाल से अच्छे दाम

अकसर इस्तेमाल किया जाने वाला जीरा बीज मसाले वाली एक खास फसल है. इस का इस्तेमाल मसाले के अलावा दवा बनाने के लिए भी किया जाता है. इस के बीजों में 2.5 से 4.5 फीसदी तेल पाया जाता है. इस तेल का तत्त्व क्यूमिनोल है, जिस के कारण जीरे के बीजों में खुशबू होती है. बाहर भेजे जाने वाले जीरे में कोई गंदगी किसी किस्म की मिलावट नहीं होनी चाहिए जीरा या किसी भी खाने की चीज में मिलावट होने से कई प्रकार की बीमारियां हो सकती?हैं.

जीरे की फसल में कटाई के बाद उस के भंडारण के समय अकसर छोटेछोटे जीवों का प्रकोप हो जाता है. इन छोटे कीड़ों में कवक (मोल्ड) व जीवाणु मुख्य होते?हैं, जो रासायनिक क्रिया द्वारा जहर पैदा करते हैं. जो फफूंद जहर बनाते हैं, उन्हें  विष फफूंद कहते हैं. ये विष फफूंद मसालों की खुशबू को खत्म कर देते हैं और उन के द्वारा बनाए हुए फफूंद विष सेहत के लिए नुकसानदायक होते?हैं और कैंसर भी पैदा कर सकते?हैं.

भारत से अमेरिका, ब्रिटेन, जरमनी, यूरोप, जापान व कनाडा वगैरह देशों को जीरा भेजा जाता है. इन देशों में खाने के सामान को ले कर काफी कड़े नियम हैं. इसलिए जीरा व दूसरी खाने की वस्तुएं साफसुथरे ढंग से तैयार की गई होनी चाहिए. अमेरिकन मसाला व्यापार संगठन ने साफसफाई की एक सीमा तय कर दी है. अगर जीरे के नमूने में मरे हुए कीटपतंगे, जानवरों का मलमूत्र या अन्य गंदी चीजें मिली हों तो अमेरिका के नियमों पर वह खरा नहीं उतरता.

यदि जीरे में पाई गई कमियां दूर नहीं हो पातीं, तो भेजा हुआ माल या तो फेंक दिया जाता है या फिर भेजे जाने वाले देश को वापस कर दिया जाता?है, जिस से बहुत नुकसान होता है. इसलिए जीरा फसल में कटाईसफाई व भंडारण सही ढंग से करना चाहिए.

जीरा फसल की कटाई समय पर करें. कटाई के समय जीरा फसल के बीजों को मिलावटी पदार्थ से बचाना चाहिए. खयाल रखें कि इस में चूहों, जानवरों और चिडि़यों के बाल, मूलमूत्र, पंख वगैरह न हों. सभी मिलावटी पदार्थों का ध्यान रखना चाहिए, जिस से एफ्लाटाक्सिन विष फफूंद नहीं पनपे. जीरे

में सालमोनेला व ईकोली की मौजूदगी नहीं होनी चाहिए.  

कटाई के बाद जीरा फसल की सफाई के लिए पक्के फर्श का इस्तेमाल करें या प्लास्टिक की शीट, त्रिपाल पर रखें. बरसात की संभावना होने पर खलिहान को त्रिपाल से ढक कर रखें, जिस से जीरा भीगे नहीं. भंडारण या रखरखाव के समय सही नमी का इंतजाम करें और जीरे को साफसूखी बोरियों में भरें.

कटाई के बाद भंडारण के दौरान ध्यान रखें कि वहां चूहे या परिंदे न घुसने पाएं. रेत व अन्य कचरे की मिलावट से जीरे को बचाएं. भंडारगृह में मसाला भरी बोरियों को सीधे फर्श पर न रखें. बोरियों को दीवार से सटा कर भी न रखें, क्योंकि इस से नमी का खतरा रहता है और नमी से विष फफूंद पनपते हैं.

इस प्रकार जीरे की फसल की कटाई, सफाई, ग्रेडिंग व?भंडारण में सावधानियां बरत कर किसान मुनाफा कमा सकते हैं.

जंगली जानवरों से फसल सुरक्षा

आजकल जंगली जानवरों से फसलों की सुरक्षा करना किसानों के लिए बहुत कठिन होता जा रहा है. जंगली जानवरों की रोकथाम के लिए कई साधन इस्तेमाल किए जाते हैं, जिन में सोलर फैंसिंग बाड़, फसल रक्षक मशीन, मेहंदी बाड़ वगैरह खास हैं. इसी दिशा में ओमसाईं एग्रीबायोटेक प्रा. लि. ने ऐसे अर्क तैयार किए?हैं, जिन के फसल में किनारों पर छिड़काव करने से जंगली जानवरों की रोकथाम हो जाती है और वे फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते.

सांई नील रतन : जंगली जानवरों से फसल सुरक्षा के लिए यह पूरी तरह से हर्बल व विष रहित दवा है. यह कुदरती पौधों के द्वारा बनाया जाता है, इस की महक से ही जंगली जानवर दूर चले जाते हैं. इस नील रतन को 1 बार इस्तेमाल करने से 15-20 दिनों तक नीलगाय से फसल पूरी तरह सुरक्षित रहती है. पालतू पशुओं पर इस घोल का कोई खराब असर नहीं होता.

प्रयोग विधि : 100 मिलीलीटर नील रतन को 30 लीटर पानी में मिला कर फसल के ऊपरी हिस्से पर छिड़काव करें. घोल बनाने से पहले बोतल को अच्छी तरह हिला लें.

साईं सू रक्षक : चूहे, बंदर, जंगली सूअर जैसे जंगली जानवरों से फसल की सुरक्षा के लिए सू रक्षक देशी वनस्पतियों से तैयार किया गया है. जिन इलाकों में इन जीवजंतुओं से फसल को खतरा रहता?है, वहां यह सू रक्षक इस्तेमाल करना चाहिए.

प्रयोग विधि : 100 मिलीलीटर सू रक्षक को 30 लीटर पानी में मिला कर खेत की मेड़ से 5 फुट अंदर तक मिट्टी पर छिड़काव करें. इस्तेमाल करने से पहले बोतल को अच्छी तरह हिला लें.

ज्यादा जानकारी के लिए ओम साईं एग्रीबायोटेक प्रा. लि. कंपनी के डायरेक्टर डा. पीके सिंह से उन के मोबाइल नंबर 0935942950, 09451208981 पर संपर्क कर सकते हैं.

लीची,आम,आंवला व अमरूद के बागों की रोपाई

फलों की मांग दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. फल वाले पौधों को लगा कर किसान ज्यादा फायदा कमाने लगे हैं. किसान फल वाले पेड़ों को लगा कर मिट्टी व पानी को बचाते हुए प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल से अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं. फल के पेड़ों से ज्यादा लाभ कमाने के लिए बागों को लगाते समय खास बातों को ध्यान में रखना चाहिए.

फल वाले पौधों का चुनाव

बागबानी की सफलता के लिए फल वाले पौधों का चुनाव स्थान, मिट्टी की किस्म, सिंचाई के साधन व जमीन के अंदर के पानी की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए करते हैं. शीतोष्ण जलवायु में सेब, आड़ू, चेरी आदि व समशीतोष्ण जलवायु में लीची, अंगूर, लोकाट आदि और उष्ण जलवायु में आम, अमरूद, आंवला, कटहल आदि लगाना ठीक रहता है.

जगह का चुनाव

रोपाई के लिए फल वाले पौधों का चुनाव करने के बाद सही जगह का चुनाव सफल बागबानी के लिए जरूरी है. जगह चुनने के लिए निम्न बातें ध्यान में रखना जरूरी है:

* चुनी गई जगह में पानी नहीं भरा होना चाहिए और मिट्टी का पीएच मान 7-8 के करीब होना चाहिए.

* सिंचाई व जल निकास का अच्छा इंतजाम होना चाहिए.

* वाहन आनेजाने का सही रास्ता होना चाहिए.

* जगह गांव के पास होनी चाहिए.

बाग का रेखांकन

बाग की रोपाई में बाग के रेखांकन को ध्यान में रखते हैं. हर पौधे की वृद्धि के लिए काफी जगह होनी चाहिए ताकि उस का रखरखाव करने में कोई परेशानी न हो. इस बात को ध्यान में रखते हुए आम, अमरूद, लीची व आंवला की रोपाई वर्गाकार व आयताकार तरीके से करनी चाहिए. आम, अमरूद, लीची व आंवला की  रोपाई में लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी इस तरह रखते हैं:

आम   10×10 मीटर, लीची 12×10 मीटर, आंवला 10×18 मीटर, अमरूद 6×6 मीटर. बाग का रेखांकन बहुत जरूरी है. रेखांकन ठीक न होने पर बाग की उत्पादकता पर असर पड़ता है. बाग का रेखांकन करने के लिए पौधे की तय दूरी से आधी दूरी पर खेत के एक कोने से पहली लाइन बनाते हैं. पहली लाइन के बाद सभी लाइनें पौधों हेतु निर्धारित पूरी दूरी पर बनाते हैं. जहां लाइनें एकदूसरे को काटती हैं, उसी जगह पर गड्ढा खोदते हैं.

गड्ढों की खुदाई

आम, आंवला व लीची के लिए 3×3×3 फुट और अमरूद व बेल के लिए 2×2×2 फुट के आकर के गड्ढे खोदते हैं. खुदाई करने के बाद गड्ढों को धूप में खुला छोड़ देते हैं, जिस से उन में मौजूद नुकसानदायक कीट व रोगों की विभिन्न अवस्थाएं खत्म हो जाएं. इस के बाद गड्ढे को गोबर की खाद, बालू व उसी खेत की मिट्टी को 1:1:1 में मिला कर जमीन से 20 सेंटीमीटर ऊंचाई तक भरते हैं. इस मिश्रण में 100 ग्राम ट्राइकोडर्मा भी मिला देते हैं. गड्ढा भरने के बाद उस की सिंचाई कर देते हैं. जिस से गड्ढा बैठ जाए. इस के बाद बैठे हुए गड्ढों में दोबारा उसी मिश्रण को भर देते हैं और गड्ढे के स्थान पर कुछ निशान लगा देते हैं.

पौध का चुनाव

आम, अमरूद, लीची व आंवला की रोपाई के लिए मुख्य प्रजातियां निम्न प्रकार हैं :

आम : दशहरी, दशहरी 51, लंगड़ा, चौसा, आम्रपाली व बंबइया.

अमरूद : लखनऊ 49, इलाहाबादी, सफेदा व ललित.

लीची : रोज सैंटेड, कलकतिया व साही.

आंवला : बनारसी, बलवंत, नरेंद्र आंवला 6, नरेंद्र आंवला 7, नरेंद्र आंवला 10, चकइया व फ्रांसिस.

रोपाई के लिए पौध किसी जानीमानी पौधशाला से खरीदें. फल की स्वस्थ पौध निम्न मानक के अनुसार होनी चाहिए :

* पौध की औसत ऊंचाई 75-100 सेंटीमीटर हो.

* पौधे के तने की मोटाई 1 से 1.5 सेंटीमीटर हो.

* ग्राफ्टिंग व बडिंग किए गए पौधे की उम्र करीब 1 साल हो.

* पौधा रोग व बीमारियों से मुक्त हो.

पौध की रोपाई

आम, अमरूद, लीची व आंवला के पौधों की रोपाई जुलाई व अगस्त महीने में करते हैं. रोपाई के समय पिंडी के आकार का गड्ढा मुख्य गड्ढे में ऊपरी सतह के बीच में बनाते हैं. इस के बाद पौधे की पिंडी की उस में इस प्रकार से रोपाई करते हैं कि पिंडी का ऊपरी हिस्सा जमीन की सतह से 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे रहे. रोपाई शाम के समय करने के बाद हलकी सिंचाई कर देते हैं. पौधा लगाते समय इस बात का खास ध्यान रखते हैं कि किसी भी हालत में पौधे की पिंडी न टूटने पाए.

खास सावधानियां

*  आम व आंवला के बाग में अच्छी फसल लेने के लिए 10 फीसदी दूसरी प्रजाति के पौधे परागणकर्ता पौधों के रूप में लगाएं, जैसे दशहरी आम का बाग लगाते समय 10 फीसदी पौधे बंबई हरा या पीला के लगाएं. इसी तरह लंगड़ा या चौसा प्रजाति के आमों का बाग लगाते समय 10 फीसदी पौधे दशहरी आम के लगाएं.

* हर तीसरी लाइन में तीसरा पौधा परागणकर्ता पौधा लगाएं.

* आंवले की पौध की रोपाई करते समय एक जगह पर एक से अधिक प्रजातियों की रोपाई करें.

* जल्दी पकने वाली प्रजातियों के पौधे एक जगह पर और देर से पकने वाली प्रजातियों के पौधे दूसरी जगह पर लगाएं ताकि फल तैयार होने पर तोड़ने में परेशानी न हो.

* जंगल के पास बाग न लगाएं.

* लगाए गए पौधों में ग्राफ्टिंग/बडिंग से नीचे (मूलवृंत से निकले) कल्ले तोड़ते रहें.

* बागों में सहफसली खेती के रूप में दलहनी, तिलहनी व सब्जियों वाली फसलों का ही चयन करें. किसी भी दशा में रोपित पौधे से ज्यादा ऊंचाई वाली फसलों का चयन न करें.

* पौधों की रोपाई के बाद उर्वरक डालने के लिए और रोगों व कीटों से पौधों की हिफाजत के लिए समयसमय पर विशेषज्ञों की सलाह लेते रहें.                              

डा. अनंत कुमार, डा. वीरेंद्र पाल*, डा. हंसराज सिंह व डा. प्रमोद मडके
(कृषि विज्ञान केंद्र गाजियाबाद, * कृषि विज्ञान केंद्र हस्तिनापुर)

चुस्तदुरुस्त रहने के लिए कैसा हो खानपान

इस भागमभाग वाली जिंदगी में सुबह से ले कर रात तक चुस्तदुरुस्त रहना अपनेआप में एक बड़ी चुनौती है. आमतौर पर तो लोगों में हमेशा सुस्ती सी छाई रहती है और वे थकान का रोना रोते रहते हैं. सुबह 5-6 बजे के करीब ज्यादातर लोगों का मन बिस्तर छोड़ने को नहीं करता. उन्हें लगता है कि अभी नींद पूरी नहीं हुई और बदन में थकावट भरी पड़ी है. यह थकान का एहसास तमाम लोगों को हर वक्त रहता है. ऐसे में वे जो भी करते हैं, मजबूरन मन मार कर करते हैं.

दरअसल यह थकान की शिकायत खानपान में लापरवाही की वजह से होती है. अगर इनसान अपना खानपान सही रखे और थोड़ीबहुत कसरत करे, तो वह एकदम फिट और फुर्तीला रह सकता है. कुछ खास बातों पर ध्यान दे कर थकान के असर से छुटकारा पाया जा सकता है:

एक बार में ज्यादा न खाएं

कुछ लोग जब भी खाने बैठते हैं, तो जरूरत से ज्यादा खाना खा लेते हैं. ऐसे लोग आमतौर पर 2 या 3 बार ही खाना खाते हैं. मगर यह तरीका सेहत व चुस्ती के लिहाज से सही नहीं है. ऐसे लोग लंबी डकार ले कर कई बार सोना पसंद करते हैं और हमेशा थकावट की शिकायत करते रहते हैं. स्वास्थ्य व चुस्ती के लिहाज से थोड़ाथोड़ा कर के कई बार खाना ज्यादा ठीक रहता है. खाने में वही चीजें चुनें जो सेहत के लिए अच्छी मानी जाती हैं. ऐसी चीजों को 3-4 घंटे के अंतराल पर खाते रहें. जब भी भूख महसूस हो तो स्वादानुसार ब्रेडबटर, बिस्कुट या फल वगैरह खाएं. ज्यादा चिकनाई वाली तलीभुनी चीजें कम से कम खाएं. उम्दा किस्म की चीजें भी एकसाथ बहुत ज्यादा मात्रा में न खाएं.

भूख लगने पर ही खाएं

हर वक्त बेवजह खाना भी ठीक नहीं होता. अकसर कोई मनपसंद पकवान सामने आने पर लोग बगैर भूख के भी अच्छीखासी मात्रा खा जाते हैं. यह तरीका मुनासिब नहीं है. खानपान के माहिर डाक्टरों का कहना है कि शरीर की जरूरत के हिसाब से अपनेआप भूख महसूस होने लगती है. उस वक्त मनपसंद चीजें खाना फायदेमंद होता है. भूख लगने पर भी न खाने से थकान पैदा होना लाजिम है, लिहाजा ऐसे में लापरवाही नहीं करनी चाहिए. भूख लगे तो जरूरत के हिसाब से फल, मेवे, बिस्कुट या मैंगोशेक जैसी चीजों का सेवन करना चाहिए. बीचबीच में थोड़ाथोड़ा खाते रहने से ब्लडशुगर की मात्रा सही बनी रहती है और व्यक्ति खुद को चुस्तदुरुस्त महसूस करता है.

पोषक तत्त्वों से भरपूर

वैसे तो सीमित मात्रा में खाने पर कोई चीज खराब नहीं होती, लिहाजा इच्छा के हिसाब से कुछ भी खाने में हर्ज नहीं है. कोई भी चीज में यकीनन शराब, तंबाकू, पान व गुटका वगैरह शामिल नहीं हैं. मतलब यह कि प्रतिबंधित व नशे वाली चीजों को छोड़ कर वेज या नानवेज किस्म का कोई भी खाना खराब नहीं होता. अलबत्ता यह ध्यान रखना जरूरी है कि पोषक तत्त्वों से भरपूर चीजें ही सेहत के लिए मुफीद होती हैं. मसलन प्रोटीन वाली चीजें और फाइबर वाली चीजें खाना हमेशा फायदेमंद होता है. प्रोटीन से शरीर को काफी मात्रा में ऊर्जा मिलती है और फाइबर ऊर्जा को लंबे अरसे तक बरकरार रखता है. फाइबर वाली चीजों से पाचन क्रिया भी द  रुस्त रहती है. शरीर की जरूरत के मुताबिक थोड़ीबहुत फैट वाली चीजें खाना भी सही रहता है. पोषक तत्त्वों से भरपूर चीजों में दाल, चावल व रोटी के साथसाथ दूध, दलिया व कार्नफ्लैक्स जैसी चीजें भी इस्तेमाल की जा सकती हैं, पर हर चीज एक नपीतुली मात्रा में खाना ही ठीक है.

आयरन और विटामिन

खानेपीने की चीजों में आयरन की मौजूदगी का खास खयाल रखना चाहिए, क्योंकि आयरन भरपूर होने से शरीर में खून की कमी नहीं होने पाती. आयरन के इस्तेमाल से ही खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा सही रहती है. डाक्टरों का कहना है कि रोजाना 2 सेब खाने से आयरन का हिसाब सही रहता?है. 1 सेब नाश्ते के वक्त सुबह व दूसरा शाम के वक्त खाना सही रहता है. यहां भी वही थोड़ा खाने का मामला लागू होता है, यानी ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक बार में ही 1 किलोग्राम सेब निबटा लिए जाएं. ऐसा करने से फायदे के बजाय नुकसान ही होगा. आयरन के लिए अनार का जूस भी काफी कारगर रहता है, मगर इस के साथ मौसमी का जूस या नीबू का रस जरूर लेना चाहिए. मौसमी या नीबू के विटामिन सी के बल पर आयरन का असर बेहतर होता?है.

आयरन व विटामिनों के लिहाज से हरी पत्तेदार सब्जियां, सहजन, राजमा, मौसमी फल व भीगे हुए बादाम रोजाना के खाने में शामिल करने चाहिए. भीगे चने, मूंग व सोयाबीन का इस्तेमाल भी कारगर साबित होता है.

जो लोग नान वेजीटेरियन होते हैं वे मटन, चिकन व अंडे जैसी चीजों का सेवन कर के शरीर में आयरन की मात्रा सही रख सकते हैं. दूध, दही व पनीर जैसी चीजें भी शरीर की थकान मिटाने व सेहत बेहतर बनाने में कारगर साबित होती है. चाय, काफी व कोल्डड्रिंक जैसी चीजों का कम से कम इस्तेमाल करना बेहतर रहता है.

मसला डाइटिंग का

मोटापा अपनेआप में थकान की वजह बन जाता है. इस का दिल पर भी असर पड़ता है. यानी मोटापा घटाना बहुत जरूरी है. वजन बढ़ना तो आसान है, पर उसे कम करना मुश्किल होता है. ऐसे में डाइटीशियन से सलाह ले कर डाइटिंग करना बेहतर रहता है. आमतौर पर कार्बोहाइड्रेट से भरपूर आलू, चावल व चीनी वगैरह से शरीर को भरपूर ऊर्जा मिलती है. पर डाइटिंग करने वाले इन चीजों से परहेज करने लगते हैं. वे किसी माहिर की सलाह के बगैर ही आलू, चावल, चीनी व मिठाइयां आदि खाना छोड़ देते हैं. नतीजतन कमजोरी के शिकार हो जाते हैं. बेहतर तो यही है कि किसी माहिर डाक्टर की सलाह ले  कर ही डाइटिंग की जाए.

मोटापे की ओर बढ़ रहे लोगों को मिठाइयां खाना काफी कम कर देना चाहिए. उन्हें साबुत अनाज, ओटमील, मशरूम, खीरा, टमाटर, गाजर, ब्राउन राइस जैसी चीजों का ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए. चोकर वाले आटे की रोटी मोटे लोगों के लिए मुफीद होती है. उन्हें चीनी के साथसाथ नमक खाना भी कम कर देना चाहिए. नाश्ते में प्रोटीन वाली चीजें ज्यादा लेनी चाहिए.

टहलें और कसरत करें

चुस्तदुरुस्त बने रहने के लिए सही खानपान के साथसाथ थोड़ीबहुत कसरत करना व टहलना भी जरूरी है. रोजाना थोड़ीबहुत कसरत जरूर करें. स्कूलों में सिखाई गई कसरत से भी काफी फायदा होता है. वैसे आजकल टीवी पर भी कसरत करना सिखाया जाता है, उस के मुताबिक भी कसरत की जा सकती है. इसी तरह रोजाना थोड़ी देर टहलना भी जरूरी है. 10-15 मिनट से ले कर आधा घंटे तक टहलना काफी साबित होगा. टहलने और कसरत करने से शरीर में आक्सीजन की मात्रा बढ़ती है, जो थकान व तनाव दूर भगाती है. इस प्रकार नपातुला खानपान अपना कर और थोड़ीबहुत कसरत कर के हमेशा चुस्त और फुर्तीला रहा जा सकता?है. ऐसे लोगों के शरीर पर थकान का नामोनिशान तक नहीं रहता.

मेसी ने इंटरनेशनल फुटबॉल को कहा अलविदा

चिली के हाथों कोपा अमेरिका कप हारने के बाद अर्जेंटीना के फॉरवर्ड फुटबॉल खिलाड़ी लियोनेल मेसी ने अंतरराष्ट्रीय खेल से संन्यास की घोषणा कर दी है. मेसी अब अर्जेंटीना के लिए नहीं खेलेंगे लेकिन बार्सेलोना फुटबॉल कप के लिए अपना खेल जारी रखेंगे.

मेसी को इस वक्त दुनिया का सबसे लाडला फुटबॉलर खिलाड़ी कहना गलत नहीं होगा. उन्होंने अर्जेंटीना में एक इंटरव्यू के दौरान अपने संन्यास की घोषणा की है. अर्जेंटीना फुटबॉल संघ के साथ मेसी की कुछ समस्याएं भी जग जाहिर थीं.

अर्जेंटीना के लिए इंटरनेशनल फुटबॉल के मेजर टूर्नामेंट में यह लगातार सातवीं हार है. इसमें कोपा अमेरिका के अलावा कनफडरेशन्स कप और फीफा वर्ल्ड कप भी शामिल हैं. 2014 वर्ल्ड कप में मेस्सी की टीम को जर्मनी के खिलाफ खिताबी मुकाबले में हार झेलनी पड़ी थी.

इन सभी हार के लिए मेस्सी को बहुत आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है. उनके लिए यहां तक कहा गया कि वो देश की जर्सी को महसूस ही नहीं करते और ना ही राष्ट्रीय गान गाते हैं. कुछ दिन पहले उन्होंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर लिखा था – AFA एक मुसीबत है…!!

'जितना कर सकता था किया

कोपा अमेरिका के फायनल में चौथी बार हार का स्वाद चखने के बाद 29 साल के बार्सेलोना खिलाड़ी ने कहा 'मेरे लिए राष्ट्रीय टीम का साथ यहीं खत्म होता है. मैं जितना कर सकता था किया, चैंपयिन नहीं होना दुख पहुंचाता है.'

स्‍टार फुटबॉलर लियोनेल मेसी ने अंतरराष्‍ट्रीय फुटबॉल से संन्‍यास ले लिया. मेसी ने यह निर्णय कोपा अमेरिका के 100वें संस्‍करण के फाइनल में हार के बाद लिया. अर्जेंटीना के मेसी ने कोपा अमेरिका के फाइनल में पेनल्‍टी शूटआउट मिस किया था. इससे हतोत्‍साहित होकर मेसी ने ऐसा कदम उठाया.

सबसे महंगे हैं मेसी

फुटबॉल खिलाड़ियों के काल्पनिक स्थानांतरण को लेकर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक अर्जेंटीना के स्टार खिलाड़ी लियोनेल मेसी की कीमत 15.9 करोड़ डॉलर आंकी गई है. पुर्तगाल के क्रिस्टियानो रोनाल्डो की कीमत इस अध्ययन के मुताबिक 11.4 करोड़ डॉलर आंकी गई है.

यह अध्ययन वालेंसिया के विश्वविद्यालय द्वारा फुटबॉल खिलाड़ियों की कीमत आंकने की रूपरेखा के अंतर्गत किया गया. इससे पता चला कि यह दो खिलाड़ी पूरे विश्व में सबसे महंगे फुटबॉल खिलाड़ी हैं और अगर आज कोई क्लब इन्हें लेना चाहे तो वह इनकी क्या कीमत लगाएगा.

मेसी के नाम कई बड़े रेकॉर्ड्स

मेसी के नाम कई बड़े रेकॉर्ड हैं. वह 2008 में ओलिंपिक में अपने देश के लिए गोल्ड मेडल जीत चुके हैं. मेसी 5 बार फीफा के सर्वश्रेष्छ खिलाड़ी का पुरस्कार भी जीत चुके हैं. मेसी अपने क्लब बार्सिलोना को रेकॉर्ड 8 बार स्पेन की प्रतिष्ठित ला लीगा का चैंपियन बना चुके हैं.

जीका-डेंगू के मच्छर फसेंगे माइक्रोसॉफ्ट के जाल में

जीका और डेंगू के मच्छरों के खतरे से निपटने के लिए माइक्रोसॉफ्ट ने एक ऐसा प्रोटोटाइप ट्रैप बनाया है, जिसकी मदद से इन मच्छरों जनित बीमारियों का पता लगाकर बचा जा सकेगा. इस प्रोटोटाइप ट्रैप को माइक्रोसॉफ्ट के प्रोजेक्ट प्रीमोनीशन के तहत विकसित किया गया है. जीका और डेंगू जैसे मच्छरों से होने वाली बीमारी का पता लगाने और उसकी निगरानी व रोकथाम के लिए कंपनी की ट्रैप टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एक बड़ी खोज मानी जा रही है.

कंपनी के आधिकारिक बयान में कहा गया है इस तकनीक के माध्यम से कीट विज्ञानशास्त्रियों (एंटोमोलोजिस्ट) को तेजी से अवलोकन और रोकथाम के लिए जरूरी डेटा को जल्दी हासिल करने में काफी आसानी होगी.

3 करोड़ लोगों को हर साल जानलेवा बीमारी का करना पड़ता है सामना

ट्रैप नुमा यह मशीन वैज्ञानिकों को खुद अंतर करने में मदद करेगी कि मच्छर पकड़ना चाहते हैं, या कीड़ा. इससे उन मच्छरों को पकड़ने में काफी मदद होगी जिन्हें वे पकड़ना चाहते हैं. ट्रैप बहुत आसानी से काम करेगा इसमें बैटरी पॉवर्ड माइक्रोप्रोसेसर है जो डेटा को इकट्ठा करेगा और डाउनलोड करके उसको क्लाउड को भेज देगा.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर साल इन मच्छरों से 3 करोड़ लोगों को जानलेवा बीमारी का सामना करना पड़ता है. ट्रैप अभी प्रायोगिक चरण में है और विश्व में कई स्थानों पर टेस्ट किया जा रहा है. ट्रैप में और सुधार के लिए स्थानीय सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा डेटा माइक्रोसॉफ्ट रिसर्चर्स और कोलेबोरेटर्स को भेजा जा रहा है.

VIDEO: इस हॉट एक्ट्रैस का है सबसे परफेक्ट फिगर

इस दुनिया में खूबसूरती को लोग अपनी-अपनी नजरों से मापते हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने मॉडल, एक्ट्रैस और टी.वी. प्रेजेंटर केली ब्रूक को दुनिया की सबसे परफेक्ट फिगर वाली महिला माना है. हालांकि, परफेक्ट फिगर को लेकर वैज्ञानिकों का अपना पैमाना है.

आपको बता दें कि इसके पहले टेक्सास यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने फेमस एक्ट्रैस केंट लास को परफेक्ट लेडी बताया था. इसके बाद एक अलग शोध में यह पाया गया कि मॉडल केली ब्रूक का बिलकुल परफेक्ट फिगर है. टेक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का मानना है कि एक प्रोफशनल मॉडल की बॉडी विश्व का सबसे परफेक्ट शरीर होता है.

बताया जा रहा है कि वैज्ञानिकों ने परफेक्ट लेडी के लिए कुछ मापक तय किए हैं. उनका मानना है कि एक परफेक्ट औरत की हाईट 1.68 मीटर और उसके ब्रेस्ट, वेट और हिप्स की साइज़ 99-63-91 होती है.

दशहरी के मुकाबले बढ़ रहे दूसरे आम

दशहरी आम के साथ लखनऊ का बहुत पुराना रिश्ता है. लखनऊ में अनेक किस्म के ऐसे आम हैं, जिन का जोड़ पूरी दुनिया में नहीं है. आम की बागबानी में नए और युवा लोग सामने आ रहे हैं. ऐसे किसानों से लखनऊ के आमों को नई पहचान मिल रही है. ऐसे पढ़ेलिखे बागबान आम की नई मार्केटिंग कर रहे हैं, जिस से लोगों को यह पता चल सका है कि लखनऊ में केवल दशहरी आम ही नहीं होता. यहां हुस्नआरा, श्रेष्ठा, अरुणिमा, अंबिका, सेंसेशन, सफेदा, चौसा और टामी एडकिन जैसे आम भी होते हैं.

ऐसे ही प्रगतिशील किसानों में एक नाम है सुरेशचंद्र शुक्ला का. लखनऊ के माल ब्लाक में स्थित नरौना गांव के रहने वाले सुरेश चंद्र शुक्ला ने बीएससी वनस्पति विभाग से किया. इस के बाद वे अपने गांव की जमीन पर लगे आमों के बाग को संवारने में जुट गए और नए सिरे से आमों का बाग तैयार किया. उन्होंने आम के साथसाथ दूसरे फलों और जड़ीबूटियों पर भी काम करना शुरू किया. कुछ सालों के अंदर ही सुरेश चंद्र शुक्ला का नाम लखनऊ के सब से बड़े बागबानों में शुमार हो गया. आज वे आम को नई पहचान देने का काम कर रहे हैं. 42 एकड़ जमीन पर आम की 271 किस्में उन के यहां लगी हैं. उन के साथ 5-7 दूसरे परिवारों का पालनपोषण भी हो रहा है. उद्यान रत्न सहित दूसरे दर्जनों अवार्ड जीत चुके सुरेश चंद्र शुक्ला को देख कर तमाम किसान आम की बागबानी करने लगे हैं.

आम की बागबानी पर सुरेश चंद्र शुक्ला कहते हैं, ‘आम अपनेआप में अनोखी किस्म का पेड़ होता है. एक ही आम का पेड़ कई किस्म के आम दे सकता है. ऐसे दूसरे पेड़ कम दिखते हैं. लखनऊ की जमीन की मिट्टी की खासीयत के कारण यहां के आम का स्वाद अनोखा होता है. आम का फल छोटा हो या बड़ा, देशी हो या हाईब्रिड, सभी को इस्तेमाल किया जा सकता है. मगर बिजली और दूसरी परेशानियों के चलते लखनऊ में आम को सही तरह से रखा नहीं जा सकता, इसलिए बागबानों को ज्यादा मुनाफा नहीं मिलता है.’

आम पकने के बाद 1 हफ्ते से ज्यादा तक रोका नहीं जा सकता. हाल के कुछ सालों में आम की कई नई प्रजातियां आई हैं, जिन के आम जल्दी खराब नहीं होते. भारत में अल्फांसो आम सब से ज्यादा टिकाऊ होता है. इसी कारण अल्फांसो का विदेशों में सब से ज्यादा निर्यात होता है. आम की प्रजाति सुधारने का काम तेजी से होना चाहिए. तभी इस की मार्केटिंग बेहतर हो सकती है और बागबानों का मुनाफा बढ़ सकता है. आम की मार्केटिंग और उस की प्रजातियों के सुधार की दिशा में काम हो रहा है. लखनऊ में केवल दशहरी की ही मार्केटिंग पर जोर दिया जाता है. असल में यहां दूसरे किस्म के आम भी खूब पैदा होते हैं और उन को भी बाहर बेचा जाता है. हुस्नआरा आम दशहरी आम के मुकाबले कहीं ज्यादा समय तक चलता है.

सुरेश चंद्र शुक्ला कहते हैं, ‘मैं ने चीन यात्रा के समय वहां देखा था कि  वहां आम को 3-4 की पैकिंग में बेचा जाता था. वहां फाइबर प्लेट में आमों को रख कर ऊपर से सेलोफिन से पैक कर के बेचा जाता था. मैं ने उसी तरह की पैकिंग कर के हुस्नआरा के आमों को लखनऊ के मौल्स, मिठाईशौप और एयरपोर्ट पर बिक्री के लिए रखवाया. सभी जगहों से बहुत अच्छा नतीजा मिला.’

हर आम का अपना अलग स्वाद होता है. अपने रंगरूप और स्वाद से कुछ आम लोगों को बहुत आकर्षित करते हैं. जो आम ज्यादा दिनों तक चल सकें वे अच्छे माने जाते हैं. आम तरहतरह के वजन वाले होते हैं. 50 ग्राम वजन के देशी आमों से ले कर 4 किलोग्राम वजन वाले हाथीझूल आम भी मशहूर हैं. हुस्नआरा, श्रेष्ठा, अरुणिमा, अंबिका, सेंसेशन, टामी एडकिन, कृष्णभोग, नाजुक बदन, केसर चिकला खास, रामकेला, पपीतिया व अल्फांसो जैसे बहुत सारे आम ऐसे हैं, जो काफी दिनों तक चलते हैं. दशहरी आम का पेड़ हर साल एक जैसी फसल नहीं देता है. बाकी आम हर साल अच्छी फसल देते हैं.

अपनी बागबानी के बारे में सुरेश चंद्र शुक्ला कहते हैं, ‘मैं पेड़पौधों का बहुत शौकीन रहा हूं. मैं जहां भी घूमने जाता था, वहां से आम के साथसाथ दूसरे किस्म के पेड़ भी ला कर अपने बाग में लगाता था. आम के अलावा मेरे बाग में आंवला, कमरख, चंदन, लीची, रुद्राक्ष, इलायची, कपूर व हींग के पेड़ भी हैं. मेरे एक आम को उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री ने शुक्लापसंद नाम दिया था. मैं जल्द ही बिना बीज वाले जामुन का उत्पादन भी करने वाला हूं. इस के अलावा वैज्ञानिकों के साथ मिल कर शुगरफ्री आम की प्रजाति भी विकसित करने में लगा हूं.’

काश दिल्ली के हर ऑटो में मेरी तस्वीर लगे: स्वरा भास्कर

आम धारणा यह है कि बौलीवुड की चर्चित अदाकारा स्वरा भास्कर को अभिनय व सिनेमा से जुड़ने की प्रेरणा उनकी मां इला भास्कर से मिली, जो कि जेएनयू में सिनेमा की प्रोफेसर हैं. पर हकीकत इसे जुदा है. जब स्वरा भास्कर ने सिनेमा से जुड़ने का फैसला किया, उस वक्त उनकी मां इला भास्कर अंग्रेजी साहित्य पढ़ाया करती थी और उनके पिता उदय भास्कर नेवी में थे. अपने माता पिता की सिफारिश के बिना कुछ करने के लिए ही स्वरा भास्कर ने अभिनय के क्षेत्र में अपना करियर बनाने का निर्णय लिया था.

‘‘सरिता’’ पत्रिका से बात करते हुए खुद स्वरा भास्कर कहती हैं-‘‘जब मैं बड़ी हो रही थी, उस वक्त मेरी मां अंग्रेजी साहित्य पढ़ाया करती थी. मेरे पिता उस वक्त नेवी में थे. तो एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में मेरी परवरिश हुई. सिक्स्थ पे कमीशन के बाद हम अपर मिडल क्लास में पहुंच गए. हमने अच्छे स्कूल व कालेज में पढ़ाई की. फिर मैने सोचा कि मैंने जिंदगी में जो शिक्षा पायी है, उसका कैसे उपयोग करूं. मैने सोचा कि मैं ऐसी जगह काम करने का प्रयास करूं, जहां मेरे माता पिता की कोई पहचान न हो, उनकी कोई सिफारिश न चल सके.’’

इस पर जब हमने स्वरा भास्कर से पूछा कि उस वक्त उनकी मां सिनेमा नहीं पढ़ा रही थी, तो फिर उन पर सिनेमा का प्रभाव कहां से पड़ा? इस पर स्वरा भास्कर ने बताया-‘‘मुझे लगता है कि बौलीवुड का प्रभाव जाने अनजाने हर इंसान पर पड़ ही जाता है. हम चाह कर भी नहीं बच पाते हैं. बचपन में हम दूरदर्शन पर ‘चित्रहार’ देखा करते थे. यह कार्यक्रम हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा था. आप कह सकते हैं कि ‘चित्रहार’ ने मेरी जिंदगी खराब कर दी. उन दिनों दिल्ली के ऑटो में पीछे की तरफ प्लास्टिक में फिल्म स्टारों के पोस्टर लगे होते थे. तो मेरे दिमाग में भी आया कि इसी तरह से मेरे भी पोस्टर लगने चाहिए. यही मेरी सफलता का पैमाना था.’’

तो क्या स्वरा भास्कर सफल हो गयी? इस सवाल पर स्वरा ने कहा-‘‘सफल हो गयी हूं. लोग मुझे कलाकार के तौर पर पहचानते हैं. लेकिन दिल्ली के ऑटो में अभी तक मेरी तस्वीर नहीं लगी.’’

देश में सिगरेट की बिक्री में गिरावट

पिछले एक साल के दौरान देश में सिगरेट की बिक्री 8 फीसदी गिरी है. यह पिछले 15 साल की सबसे बड़ी सालाना गिरावट है. सरकार की तरफ से चलाए स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता अभियान और एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी का सिगरेट की बिक्री पर बुरा असर पड़ा है. भारत में सालाना 88 अरब सिगरेट स्टिक्स की बिक्री होती है. वॉल्यूम के लिहाज से ग्लोबल मार्केट में भारत की हिस्सेदारी 2 फीसदी है.

जापानी फाइनैंशल फर्म नोमुरा ने यूरोमॉनिटर डेटा का जिक्र करते हुए कहा, 'वॉल्यूम घटने से साल 2015 में भारत में सिगरेट इंडस्ट्री की ग्रोथ सिर्फ 1.9 फीसदी रही थी, जबकि पांच साल पहले यह 10.3 फीसदी थी. यह इस बात का संकेत है कि इंडस्ट्री में स्ट्रक्चरल बदलाव हो रहा है.' वित्त वर्ष 2012 से 2016 के बीच सिगरेट पर एक्साइज ड्यूटी 118 फीसदी और वैट 142 फीसदी बढ़ा है.

केंद्र सरकार अब सिगरेट के पैक पर 85 फीसदी पिक्टोरियल स्वास्थ्य चेतावनी दे रही है, जो पहले 40 फीसदी थी. सिगरेट इंडस्ट्री की मार्केट लीडर आईटीसी लिमिटेड का मार्केट के 80 फीसदी हिस्से पर कब्जा है. कंपनी के प्रॉफिट में 80 फीसदी हिस्सा इस सेगमेंट का है. आईटीसी के प्रवक्ता ने कहा कि ज्यादा टैक्स और पिक्टोरिटयल वॉर्निंग्स बढ़ने से अवैध सिगरेट की बिक्री बढ़ गई है.

उन्होंने कहा, 'यूरोमॉनिटर इंटरनैशनल की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि भारत अवैध सिगरेट का चौथा सबसे बड़ा बाजार बन गया है. इससे हर साल 9,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है. स्मगलिंग वाले सिगरेट पर पिक्टोरियल वॉर्निंग्स नहीं होतीं. पैकेट से ऐसा अहसास होता है कि वह सुरक्षित है, जिससे कीमत में और तेजी आती है.'

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