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मौडलिंग के लिये चोरी का सहारा

उत्तर प्रदेश की राजधानी में पुलिस ने दो लड़कियों सहित दो ऐसे स्टूडेंट्स को चोरी के इल्जाम में पकड़ा, जिन्होंने लग्जरी लाइफ जीने के लिए 25 लाख रुपये की चोरी की. ऐसी घटनाओं से पता चलता है कि युवा अपराध की तरफ किस तरह से भाग रहे हैं. छोटे छोटे शहरों से पढाई करने बड़े शहरों में आ रहे युवाओं के माता पिता उनके सपनों को पूरा करने के लिये अपनी घर जमीन बेचकर पढ़ने के लिये स्कूल भेजते हैं. बडे शहरों की चकाचौंध में फंस कर युवा अपराध की दुनिया में उलझ जाते हैं. यह कहानी है मीनाक्षी, अंशिका, श्रीधर और शांतनु की.

मीनाक्षी और अंशिका सीआरपीएफ कमांडेंट रमेश कुमार के गोमतीनगर स्थित घर में किरायेदार के रूप में रहती थी. मीनाक्षी लखनऊ विश्ववि़द्यालय से एमबीए की पढाई कर रही थी. उसके पिता पिता छत्तीसगढ़ में अकाउंटेंट हैं. मीनाक्षी के साथ रहने वाली दूसरी लडकी अंशिका सेठ विशम्बर नाथ कॉलेज में बीबीए की पढाई कर रही थी. उसके पिता की मौत हो चुकी है. अंशिका का भाई हरदोई जिले में ग्राम प्रधान है. अंशिका और मीनाक्षी की दोस्ती श्रीधर और शांतनु से थी. यह भी पढाई कर रहे थे. श्रीधर बाबू बनारसीदास कॉलेज का बीडीएस में तीसरे साल की पढाई कर रहा था. उसके पिता रिटायर शिक्षक हैं. शांतनु भी एमबीए की पढाई करता था और लखनऊ के मुंशी पुलिया इलाके में रहता था.

सीआरपीएफ कमांडेंट रमेश कुमार का घर तीन फ्लोर का बना है.पहली मंजिल पर अलग किरायेदार रहते थे. दूसरी मंजिल पर यह दोनो छात्रायें रहती थी.तीसरी मंजिल को रमेश कुमार ने अपने लिये रखा था. रमेश कुमार झारखंड में पोस्टेड है. कुछ समय पहले रमेश कुमार ने अपनी एक जमीन 25 लाख में बेची थी. रमेश कुमार ने यह पैसा घर में तिजोरी में बंद कर रख दिया था. यह बात इन लडकियों को पता चल गई. यह लोग अब उस पैसे को चोरी करने के फिराक में जुट गई. इन लोगों ने पत्रकारपुरम से डुप्लीकेट चाबी बनाने वाले से तिजोरी की चाबी बनवाई और 25 लाख रूपये चोरी कर लिये. इस कैश में चारों ने 6.6 लाख रुपए आपस में बांट लिये. चोरी के पैसे मीनाक्षी और अंशिका ने अपनेअपने लिये स्कूटी खरीद ली. श्रीधर ने पल्सर 220 बाइक खरीदी और शांतनु ने सुजकी की जिल्सर मोटरसाइकिल खरीदी.

अपनी शान औ शौकत को बढाने के लिये मंहगे मोबाइल फोन, ज्वेलरी और होटलबाजी की. मीनाक्षी को मौडलिंग का भी शौक था. इसी पैसे से वह फोटोशूट कराने के लिये हवाई जहाज से मुम्बई गई. मीनाक्षी को घर से हर महीने 25,000 रुपए पॉकेट मनी के रूप में मिलते थे. अंशिका का भाई उसे हर महीने 10,000 रुपए भेजता था. इसके बाद भी इन दोनों लड़कियों के शौक ऐसे थे कि घर के पैसे से पूरे नहीं होते थे.

20 जून को मकान मालिक रमेश ने अपने एक परिचित युवक को झारखंड से लखनऊ वास्तुखंड इलाके में अपने घर कुछ काम से भेजा. जब वह युवक रमेश के घर का ताला खोल अंदर गया, तो घर का पूरा सामान फैला मिला. जिसके बाद उसने रमेश को सूचना दी. गोमती नगर में रहने वाले रमेश के ससुर सुखेन कुमार सिंह ने घर जाकर देखा और चोरी की पुष्टि कर गोमतीनगर थाने में मकुदमा दर्ज करवाया. पुलिस ने शक के आधार सेकेंड फ्लोर पर रह रहीं लड़कियों से पूछताछ की. सख्ती से पूछताछ के बाद लड़कियों ने चोरी की बात कबूल ली. पुलिस ने इन लोगों से 17 लाख रुपए बरामद किये. पुलिस को दो बाइक और दो स्कूटी समेत चोरी का सामान भी बरामद किया है. पुलिस ने पकड़े गए अरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया है.

नीतीश की शराबबंदी, रघुवर की बेचैनी

शराबबंदी को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री और झारखंड के मुख्यमंत्री के बीच सियासी और जुबानी गोलीबारी तेज होती जा रही है. नीतीश बिहार के बाद पड़ोसी राज्य झारखंड में भी शराबबंदी की मुहिम छेड़ चुके हैं और वहां की महिलाओं को शराब के खिलाफ जागरुक बना रहे हैं. पिछले 10 मई को नीतीश ने झारखंड के धनबाद जिले से शराबबंदी की मुहिम शुरू की थी, जिससे रघुवर दास बेचैन हो उठे हैं.

रघुवर ने नीतीश को साफ तौर पर कह दिया है कि झारखंड में बिहार मौडल नहीं, बल्कि गुजरात मौडल ही चलेगा. नीतीश झारखंड में अपनी मर्जी थोपने की कोशिश नहीं करें. वहीं नीतीश रघुवर की खिल्ली उड़ाते हुए कहते हैं कि उनकी शराबबंदी की मुहिम से भाजपा खेमें में घबराहट फैल चुकी है. वहीं रघुवर नीतीश को झूठा मुख्यमंत्री तक करार दे चुके हैं.

पिछले 20 जून को प्रेस कान्फ्रेंस में रघुवर दास ने नीतीश को सबसे झूठा मुख्यमंत्री करार देते हुए कहा कि नीतीश ने उन्हें झारखंड के 29 हजार गांवों का नक्शा सौंपने का वादा किया था, पर उसके लिए फीस की पहली किश्त जमा करने के बाद भी नक्शा नहीं सौंपा गया हैं.

शराबबंदी से आगे जाकर रघुवर कहते हैं कि बिहार की प्रतिभा का नीतीश ने अपमान किया है. उनके राज में शिक्षा का माहौल पूरी तरह से चौपट हो गया है. रुपयों के की ताकत पर टौपर बनाए जा रहे राज्य में असली प्रतिभा घुट-घुट कर दम तोड़ रही है. शिक्षा माफियाओं को सरकार ने पूरी छूट और संरक्षण दे रखा है. उन्होंने बिहार के प्रतिभावान छात्रों को खुला न्यौता दिया कि वे लोग उच्च शिक्षा के लिए झारखंड आएं. उन्होंने दावा किया कि झारखंड में नेशनल और इंटरनेशनल लेवल के शैक्षणिक संस्थान खोले जा रहे हैं. इंडियन स्कूल औफ माइंस, सेंट्रल यूनिवर्सिटी आईआईएम, लौ यूनिवर्सिटी, रक्षा शक्ति विश्विद्यालय, बीआईटी सिंदरी, एक्सएलआरआई जैसे संस्थान पहले से ही हाई एजुकेशन के मामले में परचम लहरा रहे हैं. इसके अलावा नेतरहाट स्कूल और सैनिक स्कूल जैसे स्कूल में नेशनल लेबल की पढ़ाई हो रही है.

उन्होंने नीतीश पर तंज कसते हुए कहा कि बिहार की बदनाम एजुकेशन सिस्टम से बिहारी छात्रों का बाहर निकलना जरूरी है. बिहार में बेरोजगारी और अशिक्षा की वजह से ही लोगों में शराब पीने की गलत आदत पड़ी है. नीतीश कुमार उंगली कटा कर शहीद कहलाना चाहते हैं. गलत लोगों के संगति में फंस कर वह उलजलूल हरकते कर रहे हैं.

अपनी सभाओं में रघुवर दास ने कहते फिर रहे हैं कि नीतीश की शराबबंदी की बात करना सौ चूहे खा कर बिल्ली के हज करने की कहावत की तरह ही है. उन्होंने अपने पिछले 10 साल के राज में गली-गली में शराब की दुकानें खुलवा दी और बिहारियों को नशेड़ी बना कर रख दिया, अब शराब की दुकाने बंद करने का ढोल पीट रहे हैं. अब वह झारखंड में शराबबंदी के लिए सभाएं करते फिर रहे हैं. गोड्डा के उपचुनाव में हरा कर झारखंड की जनता उन्हें ठुकरा चुकी है. नीतीश कुमार झारखंड की जनता को मूर्ख नहीं समझें.

रघुवर के नीतीश पर निशाना साधने से राजद सुप्रीमो और उनके सियासी दोस्त लालू यादव बौखला उठे हैं. लालू कहते हैं कि झारखंड में हमेशा ही बिहारियों के साथ गलत सलूक किया गया है. पिछले कई सालों से झारखंड में रह रहे बिहारियों के साथ दूसरे दर्जे के नागरिक की तरह व्यवहार किया जाता रहा है. रघुवर अपने राज्य के एजुकेशन सिस्टम को अपने पास ही रखें.

रघुवर के बयान पर पलटवार करते हुए जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं कि झारखंड में नीतीश की शराबबंदी की मुहिम को कामयाब होता देख रघुवर दास तिलमिला उठे हैं और उन्हें अपनी जमीन खिसकती हुई महसूस होने लगी है. बिहार शुरू से पढ़ाई-लिखाई में अव्वल रहा है और किसी एक घटना (टौपर घोटाला) को लेकर बिहार का अपमान करना ठीक नहीं है.

नीतीश कुमार ने रघुवर दास पर तीर चलाते हुए कहा है कि रघुवर शराबबंदी को लेकर गंभीर नहीं हैं. उन्होंने उन्हें पत्र लिख कर झारखंड में शराबबंदी की गुजारिश की थी, पर इसके उलट बिहार से सटे इलाके में झारखंड सरकार ने शराब का कोटा बढ़ा दिया है. पलामू, चतरा, गढ़वा और गिरीडीह जिलों में शराब को कोटा 15 से 50 फीसदी तक बढ़ा दिया गया है. कोडरमा, चतरा, गढवा और देवघर जिलों में 30 से 40 फीसदी शराब का कोटा बढ़ा दिया गया है. उन्होंने रघुवर दास को चेताने वाले लहजे में कहा कि अगर रघुवर अपने राज्य में शराबबंदी लागू कराएंगे, तो उन्हें वहां की जनता और महिलाओं का भरोसा हासिल होगा, अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो अगले विधान सभा चुनाव के बाद बाबूलाल मरांडी झारखंड में मुख्यमंत्री बनेंगे, तो वह पूरी मुस्तैदी से शराबबंदी लागू करेंगे. गौरतलब है कि मरांडी और नीतीश पिछले दिनों नए-नए सियासी दोस्त बने हैं.       

किसान बढ़ाएं दलहनी फसलें गुरबत के दलदल से निकालेंगी दालें

दलहन की खेती को बढ़ावा देने के लिए साल 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दलहन साल के तौर पर मनाने का ऐलान किया गया है. अपने देश में दालों की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं. लिहाजा दलहन की ज्यादा पैदावार के बावजूद आम आदमी  के लिए दाल खाना मुश्किल हो गया है. कहने को भारत दुनिया भर में सब से बड़ा दाल पैदा करने वाला देश है, लेकिन आम आदमी की थाली दाल से खाली है. दूसरे देशों को दालें भेजने की जगह, हम वहां से दालें मंगवाते हैं. दरअसल, भारत में दालों की पैदावार, मांग से बहुत कम है. आजादी के बाद बीते 69 सालों में दलहनी फसलों की खेती को बढ़ावा देने के नाम पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिस से हमारा देश दालों के उत्पादन में आगे होता. ऊपर से कालाबाजारिए दालों की जमाखोरी से कीमतें बढ़ा कर खूब पैसे बनाते हैं.

दलहन फंसी दलदल में

अपने देश में दालों की सालाना खपत लगभग 225 लाख टन है, जबकि दालों का उत्पादन 175 लाख टन से नीचे है. मजबूरन लाखों टन दालें हर साल दूसरे देशों से मंगवानी पड़ती हैं. लिहाजा दलहनी फसलों का रकबा और पैदावार बढ़ाने की जरूरत है. दलहनी फसलों की किसानों को मिलने वाली कीमत में कम बढ़ोतरी होने से भी ज्यादातर किसान इन की खेती नहीं करना चाहते हैं. साल 2013-14 में अरहर, मूंग व उड़द के न्यूनतम समर्थन मूल्य क्रमश: 4300, 4500 व 4300 रुपए प्रति क्विंटल थे, जो साल 2014-15 में बढ़ कर क्रमश: 4350, 4600 व 4350 रुपए प्रति क्विंटल हो गए थे. यह 100 से 50 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़त कम है. दलहन की पैदावार में मध्य प्रदेश पहले, महाराष्ट्र दूसरे व राजस्थान तीसरे नंबर पर है. देश में हो रहे दालों के कुल उत्पादन में इन राज्यों की हिस्सेदारी क्रमश: 25, 16 व 12 फीसदी है. दलहन की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकारी महकमे दिनरात एक करने का नाटक करते हैं, जबकि असल में दलहन की बढ़त के लिए सरकारी विभाग कुछ नहीं कर रहे हैं.

दलहनी फसलों का रकबा, उन की औसत उपज व उत्पादन घट रहा है. दरअसल, हमारे देश के ज्यादातर किसानों को आज भी खेती की नई तकनीकों के बारे में कुछ नहीं पता है. लिहाजा वे सिंचित व उपजाऊ जमीन में गेहूं, गन्ना व धान और कम उपजाऊ व असिंचित जमीन में दलहनी फसलें उगाते हैं. उन्हें अच्छी क्वालिटी के बीज सही समय व सही कीमत पर आसानी से नहीं मिलते. कई बार सूखा व ओले पूरी फसल बरबाद कर देते हैं. लिहाजा दलहनी फसलें अकसर दूसरी फसलों के मुकाबले पीछे रह जाती हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 2014 में देश भर में दलहनी फसलों का कुल रकबा 252 लाख हेक्टेयर था, जो साल 2015 में सीधे 20 लाख हेक्टेयर घट कर 232 लाख हेक्टेयर रह गया. दलहन की प्रति हेक्टेयर औसत उपज साल 2013 में 789 किलोग्राम थी, जो साल 2014 में घट कर 785 किलोग्राम व साल 2015 में 744 किलोग्राम ही रह गई. इसी तरह दलहन का कुल उत्पादन साल 2014 के दौरान 192 लाख टन था, जो साल 2015 में घट कर सिर्फ 172 लाख?टन ही रह गया.

बढ़ावा बहुत जरूरी

भारत की खास दलहनी फसलों में चना, अरहर, उड़द, मूंग, मसूर, राजमा, लोबिया व मटर आदि शामिल हैं. दलहनी फसलों में चने का हिस्सा सब से बड़ा 47 फीसदी है, लेकिन साल 2014 के मुकाबले साल 2015 के दौरान चने के रकबे में 20 फीसदी, उत्पादन में 27 फीसदी व प्रति हेक्टेयर उपज में 9.4 फीसदी की कमी आई है. देश के ज्यादातर हिस्सों में रोजाना खाई जाने वाली अरहर की दाल का रकबा साल 2015 के दौरान 37 लाख हेक्टेयर, उत्पादन 28 लाख टन व प्रति हेक्टेयर औसत उपज 750 किलोग्राम थी. साल 2014 के मुकाबले 2015 के दौरान अरहर के रकबे में 3.7 फीसदी, उत्पादन में 15.5 फीसदी व औसत उपज में 11.6 फीसदी की कमी आई. ऐसे में जरूरी है कि दलहनी फसलों की खेती में हो रही इस कमी की असली वजहें खोजी जाएं और उन्हीं के मुताबिक मौजूदा सभी मामले सुलझाए जाएं. सरकार ने दलहनी फसलों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना व राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में दालों पर खास ध्यान देते हुए उन्हें शामिल कर रखा है. इस के अलावा एक्सेलेरेटेड पल्स प्रोग्राम है जिस में नीति आयोग मदद कर रहा है. 60 हजार दलहन गांवों का चयन किया गया है, लेकिन फिर भी दालों की पैदावार नहीं बढ़ रही है. दलहनी फसलों के अच्छे बीजों के उत्पादन व उन के बंटवारे का सही इंतजाम नहीं है. दलहनी फसलों के बीज किसानों की करीब 25 फीसदी मांग ही पूरी कर पाते हैं. आमतौर पर दलहनी फसलों की ओर किसानों का झुकाव कम रहता है. इस के कई कारण हैं जैसे कीड़े, बीमारी, खरपतवार, खराब मौसम, कम उपज व ढुलमुल खरीद व्यवस्था.

फायदेमंद हैं दलहनी फसलें

ज्यादातर किसान यह सच नहीं जानते कि दलहनी फसलें उगाने से किसानों को काफी फायदा होता है. इस से एक तो उपज की कीमत अच्छी मिलती है, साथ ही मिट्टी की उपजाऊ ताकत भी बढ़ती है. दरअसल, दलहन की जड़ों में मौजूद बैक्टीरिया हवा से नाइट्रोजन खींच कर जमीन में जमा करते रहते हैं. इसलिए फसल में कैमिकल उर्वरक डालने का खर्च बचता है और जमीन को कुदरती खाद का फायदा मुफ्त में मिल जाता है. बहुत से किसान नहीं जानते कि दलहनी फसलों से खरपतवारों से भी छुटकारा मिलता है. माहिरों का कहना है कि लगातार गेहूं, गन्ना व धान जैसी फसलें लेते रहने से खेतों में कई तरह की घासफूस हो जाती हैं, लेकिन सनई, ढेंचा, मूंग व उड़द आदि फसलें शुरुआत में खुद बहुत तेजी से फैल कर जमीन को ढक लेती हैं. लिहाजा खेत में उगे खरपतवारों को पूरी हवा, रोशनी व पानी आदि न मिलने से बढ़ने का मौका नहीं मिलता. दलहनी फसलों की पकी हुई फलियों से मिली दालों में खनिज और विटामिनों से भरपूर लौह व जिंक की अच्छी मात्रा पाई जाती है. इन्हें फलियों  से निकालने के बाद जो कचरा बचता है, उसे चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. दालों को देश के हर इलाके के भोजन में पसंद किया जाता है.

दलहनी फसलों के बारे में ट्रेनिंग, सलाह व बीज आदि देने के लिए कानुपर में भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान काम कर रहा है. इस संस्थान के माहिरों ने अब तक ज्यादा उपज देने वाली 35 ऐसी अच्छी व रोगरोधी किस्में निकाली हैं, जिन्हें अलगअलग इलाकों की मिट्टी व आबोहवा के अनुसार अपनाया जा सकता है.

लगाएं मिनी दाल मिल

फिर भी नकदी फसलों के मुकाबले दलहनी फसलों की खेती में ज्यादातर किसानों को फायदा नजर नहीं आता. लिहाजा उन्हें इस बात के लिए भी जागरूक किया जाए कि वे अपनी उपज की कीमत बढ़ाएं. तैयार उपज मंडी ले जा कर आढ़तियों को न सौंपें. आटा चक्की, धान मशीन व तेल के स्पैलर लगाने के साथसाथ किसान दाल की प्रोसेसिंग भी करें. ज्यादातर किसान पोस्ट हार्वेस्ट टैक्नोलौजी यानी कटाई बाद की तकनीक

नहीं जानते.

दाल बनाने का काम मुश्किल नहीं है. लिहाजा किसान तकनीक सीखें व अकेले या मिल कर मिनी दाल मिल लगाएं. दालें तैयार करें और थोक व खुदरा दुकानदारों को बेचें. होटलों, कैंटीन व मैस आदि को सप्लाई करने पर किसानों को उन की दलहनी उपज की कीमत ज्यादा मिलेगी. मिनी दाल मिल की जानकारी के लिए किसान उद्यमी निदेशक, केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान मैसूर; निदेशक, केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान भोपाल; निदेशक, केंद्रीय फसल कटाई उपरांत की अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, लुधियाना या निदेशक, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर से संपर्क कर सकते हैं.

उम्मीद की किरण

ज्यादातर सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट व निकम्मे हैं. वे मोटी पगार ले कर भी अपना काम ठीक से नहीं करते, लेकिन भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर में कृषि प्रसार के सीनियर साइंटिस्ट डा. पुरुषोत्तम ने व्हाट्सऐप पर 10 एग्री. पल्स गु्रप चला कर, फेसबुक पर दलहन प्रचार समूह बना कर व ट्विटर के जरीए हजारों किसानों की जानकारी बढ़ाने का काम किया है. वैज्ञानिकों के अलावा कई किसानों ने भी दलहनी फसलों पर काफी खोजबीन की है. सिहोर के राजकुमार राठौड़ ने कुदरती तौर पर विकसित व ज्यादा उपज देने वाली अरहर की अच्छी किस्म ऋचा 2000 के चयन से बीज तैयार किया है. राजकुमार के मुताबिक किसान इसे खेत की मेंड़ों पर मई से जुलाई या सितंबर व अक्तूबर में लगा सकते हैं. इस के बीज की दर प्रति एकड़ 1 किलोग्राम रखें व कोई भी रासायनिक उर्वरक न डालें. अंगरेजी खाद की जगह 5 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद पेड़ की छाया में रख कर उस में 5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा, 5 लीटर गौमूत्र, 5 किलोग्राम बरगद की मिट्टी व 2 पैकेट राइजोबियम कल्चर हलके पानी के साथ मिलाएं. 12 घंटे बाद यह खाद खेत में सुबह या शाम के समय डाल कर कल्टीवेटर से मिट्टी में मिला दें. इस के बाद रिज्डबेड पर 3-3 फुट की दूरी पर 2 बीज 2-3 इंच गहराई पर बोएं और बेड से बेड की दूरी 4 से 5 फुट रखें.

देश में चने की प्रति हेक्टेयर सब से ज्यादा पैदावार 1439 किलोग्राम आंध्र प्रदेश में होती है. इस के बाद दूसरे नंबर पर गुजरात में 1215 किलोग्राम व तीसरे नंबर पर पंजाब में 1211 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है. प्रति हेक्टेयर सब से ज्यादा अरहर की औसत उपज बिहार में 1667 किलोग्राम, अंडमान निकोबार में 1500 किलोग्राम व प. बंगाल में 1429 किलोग्राम पाई गई है. जाहिर है कि हमारी मिट्टी व आबोहवा में दलहनी फसलों की पैदावार बढ़ सकती है.

उम्दा किस्मों के बीज

बहुत से किसान दलहन की अच्छी किस्मों के प्रमाणित बीज लेने के लिए इधरउधर धक्के खाते रहते हैं, लेकिन उन्हें आसानी से अच्छे बीज नहीं मिलते. लिहाजा बीज लेने के इच्छुक किसान नेशनल सीड कारपोरेशन (एनएससी), उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम, नजदीकी कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र, राज्य सरकार के सीड स्टोर, सहकारी बीज भंडार या भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान से संपर्क कर सकते हैं.

12 से 14 नवंबर 2016 को दिल्ली में एक महा सम्मेलन होगा. इस में भारत व कई देशों के वैज्ञानिक, अफसर, व्यापारी व उद्यमी ‘पोषण सुरक्षा व टिकाऊ खेती में दलहन’ विषय पर बातचीत करेंगे, लेकिन इस सम्मेलन में किसानों को भी जरूर बुलाया जाना चाहिए, ताकि सब्जी, मसाले व अनाज वगैरह में रिकार्ड पैदावार लेने वाले किसान दलहनी फसलों की उपज बढ़ा सकें.

दलहन के बारे में ज्यादा जानकारी व सलाह के लिए इच्छुक किसान अपने जिले के कृषि विभाग, नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या इस पते पर संपर्क कर सकते हैं:

निदेशक, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर  208024 (उत्तर प्रदेश).
फोन : 0512-2570264

दलहन की उम्दा किस्में

भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के माहिरों ने दलहनी फसलों की कई ऐसी उम्दा किस्में निकाली हैं, जो ज्यादा पैदावार देती हैं और उन में कीड़े व बीमारी लगने का खतरा भी नहीं रहता. इन में चने की आईपीसी 2005-62, 2004-1, 2004-98, 97-67, उज्जवल, शुभ्रा, डीसीपी 92-3 और मसूर की प्रिया, नूरी, शेरी, अंगूरी व आईपीएल 316, 526 और मूंग की मोती, सम्राट, मेहा व आईपीएम 0-3 और उड़द की बसंत बहार, उत्तरा, आईपीयू 2-43 व 07-3 और मटर की प्रकाश, विकास, आर्दश, अमन, आईपीएफ 4-9 व आईपीएफडी 6-3, 10-12 और अरहर की आईपीए 203, पूसा 992 व आईसीपीएल 88039 खास किस्में हैं.

अब मोबाइल रखेगा आपके दिल का ख्याल

क्‍या आप जानते हैं कि सभी फोन में हार्ट रेट को मापने की टेक्‍नोलॉजी नहीं दी गई है लेकिन गैलेक्‍सी एएस6 में यह आने लगी है. किसी भी वयस्‍क व्‍यक्ति के लिए इस तरह का फोन एक सुपर गिफ्ट साबित हो सकता है जिसमें आप फोन सम्‍बंधी सारी जरूरतों को पूरा करने के बाद, इससे हार्ट रेट को भी काउंट कर सकते हैं.

पल्‍स ऑक्‍समीटर तकनीक की मदद से करता है हार्ट रेट डिटेक्‍ट

हार्ट रेट पर नजर रखने वाली यह तकनीक काफी सरल होती है. इसमें पल्‍स ऑक्‍समीटर तकनीकी होती है जो उंगली के पोरे को रखते ही रंग बदल लेती है – त्‍वचा के अंदर के रक्‍तसंचरण के आधार पर ऐसा होता है. इस प्रक्रिया के लिए सिर्फ लाइट सोर्स और मापन करने वाले सॉफ्टवेयर की आवश्‍यकता होती है.

काफी आसान है एप यूज करना

कैमरा पर जिस तरह फोटो खिंचना आसान होता है ठीक उसी तरह यह भी आसान होता है. आपको ज्‍यादा मशक्‍कत करने की जरूरत नहीं पड़ती है.

कम बैटरी खर्च करती है

गूगल प्‍ले स्‍टोर में कई हार्ट-रेट मॉनीटर दिए गए हैं जो यूजर्स को कई तरीके के फीचर्स उपलब्‍ध करवाते हैं लेकिन अगर आप इंस्‍टेंट हार्ट रेट को इंस्‍टॉल करते हैं तो आपको आसानी रहेगी, इसमें बहुत ज्‍यादा बैट्री भी खर्च नहीं होती है.

सेहत का भी रखता है ख्‍याल

इंस्‍टेंट हार्ट-रेट, पूरे दिन में कई बार आपके हार्ट रेट को ट्रैक कर लेता है और पूरे डेटा को एक साथ आपको दिखा देता है. इसे आप गूगल फिट या अजुमिओ एकाउंट के साथ सिंक भी कर सकते हैं. यह एप, कुछ बेसिक हेल्‍थ टॉरगेट भी देते हैं. आपकी आयु, वजन और सामान्‍य फिटनेस के आधार पर यह एप आपको बताता है कि आपको कितनी कैलोरी को दिन में बर्न करना है और कितना चलना है.

फ्री और पेड दोनों तरह के वर्जन उपलब्‍ध

अगर आप एन के फ्री वर्जन को बार-बार एड आने के कारण इस्‍तेमाल नहीं करना चाहते हैं तो पेड वर्जन ले लें. इसके लिए आपको भारी कीमत चुकाने की जरूरत नहीं पड़ती है. लेकिन आपको एड से परेशान होने की जरूरत नहीं.

सोलर पंप किसानों का हमदम

यकीनन सोलर सिंचाई पंप किसानों और खेतों के लिए काफी मददगार साबित होने लगा है. सोलर प्लांट लगाने के लिए सरकारी लेबल पर कई तरह के अनुदान और मदद दी जा रही है. गांवों में बिजली की कमी और जबतब बारिश न होने से किसानों और खेती को हर साल करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है. सिंचाई के बगैर फसलें सूख जाती हैं और किसान सिर पीटते रह जाते हैं. महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान आदि राज्यों में बड़े पैमाने पर सोलर बिजली से खेतों की सिंचाई होने लगी है, पर देश के ज्यादातर राज्यों में अभी भी किसान इस से मुंह फेरे बैठे हैं.

पटना के सोलर प्लांट सामानों के डीलर एसके दास कहते हैं कि आमतौर पर लोग मानते हैं कि सोलर बिजली प्लांट महंगा होता है या इस के लगाने से खास फायदा नहीं होता है, क्योंकि अगर आसमान पर बादल छा गए तो सोलर प्लांट काम नहीं करेगा. बारिश के मौसम में तो यह पूरी तरह से फेल हो जाता है.

मौसम विभाग की मानें तो साल के 365 दिनों में से 225 से 250 दिन अच्छी धूप वाले होते हैं, इस से सोलर बिजली प्लांट के सही तरीके से काम नहीं करने के आसार काफी कम होते हैं. धूप वाले दिनों में सोलर प्लांटों से काफी बिजली पैदा हो सकती है. सोलर प्लांटों की मदद से सोलर पंप आसानी से चलाए जा सकते हैं. धीरेधीरे ही सही पर अब किसानों को सोलर बिजली और सिंचाई पंप की अहमियत समझ में आने लगी है.

आमतौर पर 1 किलोवाट का सोलर पंप लगाने पर सवा 2 लाख रुपए लागत आती है. सरकार की ओर से इस की कुल लागत की 30 फीसदी छूट मिलती है. इस हिसाब से कुल खर्च 1 लाख 60 हजार रुपए ही बैठता है. ‘मिनिस्ट्री आफ न्यू एंड रिन्यूबल एनर्जी’ 1 से 10 किलोवाट तक का सोलर प्लांट लगाने के लिए 30 फीसदी तक की सब्सिडी देता है. इतना ही नहीं कुल लागत की 50 फीसदी रकम बैंक से बतौर कर्ज ली जा सकती है, जिस पर महज 5 फीसदी ही सूद लगता है. सोलर पैनल की गारंटी 25 साल की होती है और उस की बैटरी की गारंटी 4 से 5 साल की होती है.

बाजार में 2 हौर्स पावर और 4.6 हौर्स पावर के सोलर पंप मौजूद हैं. 2 हौर्स पावर के पंप की कीमत 2 से 3 लाख रुपए है. सरकारी अनुदान के बाद इस की कीमत सवा लाख रुपए के करीब होती है. 4.6 हौर्स पावर वाले पंप की कीमत 8 लाख रुपए के आसपास है, जबकि अनुदान के बाद इस की कीमत साढ़े 3 लाख रुपए पड़ती है. 2 हार्स पावर का पंप 10 मीटर की गहराई से पानी खींच सकता है. इस से रोजाना डेढ़ लाख लीटर पानी खेतों में पहुंचाया जा सकता है. 4.6 हौर्स पावर का पंप 30 मीटर गहराई से पानी खींच सकता है और यह हर रोज सवा 2 लाख लीटर पानी से खेतों की सिंचाई कर सकता है.

कृषि वैज्ञानिक वेदनारायण सिंह कहते हैं कि गांवों में बिजली की भारी कमी की वजह से किसानों को खेती में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और सिंचाई के लिए भाड़े पर डीजल पंपिंग मशीन लेने से किसानों की खेती की लागत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. किसानों को सोलर पंप मुहैया कराने से उन की खेती की लागत में कमी आएगी.

बिहार के कृषि मंत्री राम विचार राय कहते हैं कि हर साल बारिश की कमी की वजह से किसानों का पैसा बरबाद होता है और सरकार को भी राहत और मुआवजे के नाम पर हर साल अरबों रुपए बांटने पड़ते हैं. ‘सौर क्रांति सिंचाई योजना’ के तहत 3 सालों में 1 लाख किसानों को सोलर पंप मुहैया कराए जाने की योजना बनाई गई है. सोलर प्लांट से जहां पर्यावरण का बचाव होता है, वहीं किसानों की बिजली पर निर्भरता कम होती है. हर साल सूखे की चपेट में आए जिलों को राहत पैकेज दिए जाते हैं. सूबे के जुमई, मुंगेर, शेखपुरा, लखीसराय, बेगूसराय, समस्तीपुर, नवादा, गोपालगंज, मधुबनी और भागलपुर जिलों में हर साल कम बारिश की वजह से सूखे के हालात पैदा होते हैं. सोलर बिजली और पंप से खेती और किसानों की दशा और दिशा में भारी बदलाव आ सकता है.                       

किसान ने बनाई खूबियों वाली सस्ती कंबाइन मशीन

भारत की कृषिजोत छोटी है और खेतों तक जाने वाले रास्ते संकरे व पेड़ों से घिरे होते हैं. ऐसे में इन खेतों तक बड़े कृषि यंत्रों को ले जाना मुश्किल होता?है. खेती में काम आने वाले जुताई, बोआई, मड़ाई वगैरह के कृषि यंत्र अलगअलग फसलों के लिए अलगअलग तरह के होते हैं.

मड़ाई के कृषि यंत्र फसल के अनुसार अलगअलग तरह के बने होते हैं, जिन के द्वारा गेहूं, धान, राई वगैरह  की मड़ाई की जाती है. छोटे किसानों के लिए अपनी फसल की मड़ाई के लिए महंगे व बड़े यंत्र खरीदना मुश्किल होता है. ऐसे में कभीकभी मड़ाई में देरी हो जाती है और देरी की वजह से कई बार बारिश या अन्य वजहों से फसल खराब भी हो जाती है.

किसानों की इन्हीं परेशानियों को देखते हुए उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के विकास खंड कप्तानगंज के गांव खरकादेवरी के रहने वाले 12वीं तक पढ़े नवाचारी किसान आज्ञाराम वर्मा ने एक ऐसी कंबाइन मशीन ईजाद की है, जो कई खूबियों के साथ कम लागत से तैयार की जा सकती है. यह विचार उन के दिमाग में तब आया जब साल 2015 में उन की तैयार गेहूं की फसल बरसात की वजह से कई बार भीग गई और वह अपने गेहूं की फसल की मड़ाई नहीं कर पाए. उन्होंने सोचा क्यों न एक ऐसी गेहूं कटाईमड़ाई की मशीन तैयार की जाए जो कटाई व मड़ाई करने के साथसाथ भूसा भी तैयार कर सके.

आज्ञाराम वर्मा ने इन्हीं परेशानियों को ध्यान में रख कर एक ऐसी कंबाइन मशीन का खाका तैयार किया, जो गेहूं की मड़ाई करने के साथसाथ भूसा भी तैयार कर सकती थी. इस के बाद वे इस मशीन को बनाने में जुट गए. इस के लिए उन्होंने लोहे के तमाम पुर्जे व जरूरी सामान खुले बाजार से खरीद कर अपनी एक वर्कशाप तैयार कर के मशीन बनानी शुरू कर दी. 11 नवंबर 2015 को उन्होंने एक ऐसी कंबाइन मशीन बना कर तैयार की, जो छोटी होने के साथसाथ किसी भी संकरे रास्ते से खेतों में पहुंचाई जा सकती थी.

उन के द्वारा तैयार की गई इस कंबाइन मशीन को बनाने में बहुत ही कम खर्च आया. करीब 2 लाख 75 हजार रुपए में बनी इस कंबाइन मशीन का वजन 18 क्विंटल है. यह अन्य कंबाइन मशीनों से करीब 5 गुना सस्ती है. साथ ही इस की खूबियां इसे और भी बेहतर बनाती हैं. इस मशीन को चलाने के लिए किसी तरह की ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती है और मशीन में आने वाली खराबी को किसान खुद ठीक कर सकता है. इस के लिए अधिक पावर के ट्रैक्टर की भी आवश्यकता नहीं होती है. यह कंबाइन मशीन गेहूं की फसल को जड़ के साथ काटती है.

खूबियां बनाती हैं बेहतर : इस कंबाइन मशीन की खूबियां इसे बेहतर साबित करती हैं. इस मशीन द्वारा 1 घंटे में करीब 1 एकड़ खेत की कटाई की जा सकती है. 7 फुट चौड़े कटर वाली इस मशीन में 9 बेल्टों का प्रयोग किया गया है. इस में इस्तेमाल किए गए सभी कलपुर्जे बाजार में आसानी से मिल जाते हैं और मशीन में किसी तरह की खराबी आ जाने से इस को आसानी से ठीक किया जा सकता है. इस मशीन से एकसाथ गेहूं की कटाई व भूसा बनाने का काम किया जा सकता है. इस के लिए मशीन में अलगअलग 2 भंडारण टैंक लगाए गए हैं. मशीन के बगल में मड़ाई के दौरान गेहूं का भंडारण हो जाता है व मड़ाई से निकलने वाला भूसा मशीन के ऊपर लगे टैंक में चला जाता है.

इस मशीन को ट्रैक्टर के आगे या पीछे जोड़ कर चलाया जा सकता है. ट्रैक्टर के पीछे जोड़ने के लिए 20 हजार रुपए खर्च होते हैं व 20 मिनट का समय लगता है व आगे जोड़ने में 20 हजार रुपए खर्च आता है व 1 घंटे का समय लगता है. फसल की मड़ाई के बाद इस कंबाइन मशीन को ट्रैक्टर से अलग कर के ट्रैक्टर को दूसरे इस्तेमाल में भी लाया जा सकता है.

किसान आज्ञाराम वर्मा द्वारा तैयार की गई मशीन को देखने के लिए दूरदूर से लोग आ रहे हैं और उन के द्वारा तैयार की गई इस मशीन की भारी मांग बनी हुई है. बस्ती जिले के सांसद हरीश द्विवेदी ने किसान आज्ञाराम वर्मा के खेतों में जा कर खुद इस मशीन से गेहूं की मड़ाई कर के इस की खूबियों को जांचापरखा. उन का कहना है कि यह मशीन छोटे किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगी.

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती में कृषि अभियंत्रण के वैज्ञानिक इंजीनियर वरुण कुमार का कहना है कि आज भी खेतीकिसानी में काम में आने वाली मशीनें महंगी हैं, जिस की वजह से सभी किसान उन का फायदा नहीं ले पाते हैं. ऐसे में किसान आज्ञाराम वर्मा द्वारा तैयार की गई कंबाइन मशीन छोटे किसानों को आसानी से मिल सकेगी.

इस के पहले भी किसान आज्ञाराम वर्मा ने खेती से जुड़ी कई खोजों की हैं. उन्होंने जहां अधिक चीनी की परते वाली गन्ने की नई प्रजाति कैप्टन बस्ती के नाम से विकसित की है, वहीं गेहूं की नई किस्म एआर 64 भी विकसित की है. वे वर्तमान में खुशबूदार धान की नई किस्म को तैयार करने पर काम कर रहे हैं. आज्ञाराम वर्मा को उन की खोजों की वजह से राष्ट्रीय नव प्रवर्तन संस्थान द्वारा मार्च में 1 हफ्ते के लिए राष्ट्रपति भवन में अपने गन्ने की नई प्रजाति को प्रदर्शित करने का मौका भी दिया गया था. इसी के साथ ही केंद्रीय कृषि मंत्री द्वारा उन्हें नवाचारी किसान के रूप में सम्मानित भी किया गया है.

आज्ञाराम वर्मा का कहना है कि कोई भी किसान चाहे तो खेती में काम आने वाले नए कृषि यंत्रों व बीज वगैरह को ईजाद कर सकता है, क्योंकि वह खेती के दौरान आने वाली तमाम समस्याओं को महसूस करता है. उस दौरान उस के दिमाग में परेशानियों को दूर करने के लिए तमाम ऐसे खयाल आते?हैं, जो किसी भी नई मशीन या बीजों को जन्म दे सकते हैं.

आज्ञाराम वर्मा द्वारा तैयार यह मशीन छोटे किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है. आज्ञाराम ने अपनी इस कंबाइन मशीन का नाम कैप्टन बस्ती रखा है. इस मशीन के बारे में अधिक जानकारी के लिए आज्ञाराम वर्मा के मोबाइल नंबरों 7398349644 व 9721885878 पर संपर्क किया जा सकता है.

किसानों पर भारी बैंकों की मनमानी

इटहर गांव के रहने वाले किसान रामसूरत कई दिनों से किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने के लिए बैंक का चक्कर लगा रहे थे, लेकिन बैंक वालों द्वारा कोई न कोई कमी निकाल कर हर बार उन्हें लौटा दिया जाता था. रामसूरत ने थकहार कर किसान क्रेडिट कार्ड न बनवाने का फैसला लिया, जिस की वजह से उन के बोए गए गन्ने की फसल को समय से खाद व पानी न मिल पाया. इस वजह से गन्ने की फसल अच्छी नहीं हुई.

एक दिन रामसूरत की मुलाकात बैंक के एक दलाल से हुई, जिस ने रामसूरत को बिना झंझटों के ही किसान के्रडिट कार्ड बनवाने का तरीका बताया. बैंक दलाल के बताए तरीके के अनुसार रामसूरत ने बैंक वालों को रिश्वत दी और फिर उन का क्रेडिट कार्ड आसानी से बन गया. इसी तरह किसान सुरेंद्र ने भैंस खरीदने के लिए बैंक से कर्ज लेने की अर्जी दी, लेकिन बैंक वालों ने उसे कोई कारण बताए बिना ही उस की अर्जी खारिज कर दी. बैंकों द्वारा किसानों को कर्ज न देने के लाखों बहाने बनाए जाते हैं. किसानों के लिए चलने वाली तमाम योजनाओं में बैंकों की महत्तवपूर्ण भूमिका होती है. बैंकों को खेतीकिसानी के लिए आसान शर्तों पर कर्ज देने को भारत सरकार ने कहा है, लेकिन बैंक किसानों को आसानी से कर्ज नहीं देते हैं.

कई बार किसानों को अपनी खेती की जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंक से कर्ज लेने के लिए सालों तक चक्कर लगाना पड़ता है, लेकिन बैंकों द्वारा सिर्फ उन्हीं किसानों को कर्ज देने में दिलचस्पी दिखाई जाती है, जो पढ़ेलिखे होते हैं या पहुंच वाले होते हैं. भोलेभाले किसान बैंक से कर्ज तभी ले पाते हैं, जब वे किसी दलाल की मदद लेते हैं. किसान क्रेडिट कार्ड बनाने में भारी गड़बड़झाला : खेती की रीढ़ माने जाने वाले किसान क्रेडिट कार्ड बनाने में बैंकों द्वारा भारी गड़बड़झाला किया जा रहा?है. किसान नेता मंगेश दूबे का कहना?है कि किसान जब बैंक में क्रेडिट कार्ड बनवाने के लिए अर्जी देता?है, तो बैंक किसान की खेती के रकबे के अनुसार कर्ज तय करता?है. कितना कर्ज किसान

को देना?है, बैंक यह किसान द्वारा ली जाने वाली फसल के अनुसार तय करता?है. सरकार ने अलगअलग फसलों के अनुसार किसान क्रेडिट कार्ड की कर्ज सीमा तय करने का हुक्म दिया?है.

मंगेश दूबे ने बताया कि बैंक द्वारा कर्ज सीमा की जानकारी किसानों को नहीं दी जाती?है, जबकि मनमाने तरीके से किसानों की कर्ज सीमा तय की जा रही?है. कृषि महकमे व बैंकों द्वारा किसानों के क्रेडिट कार्ड को बनाने के लिए जो कर्ज सीमा तय है, उस में धान की फसल के लिए 29 हजार रुपए प्रति एकड़, गेहूं की फसल के लिए 27 हजार रुपए प्रति एकड़, मक्के की फसल के लिए 17 हजार रुपए प्रति एकड़, गन्ने की फसल के लिए 47 हजार रुपए प्रति एकड़, आलू की सामान्य फसल पर 42 हजार रुपए प्रति एकड़ व हाईब्रिड फसल पर 59 हजार रुपए प्रति एकड़, सरसों, चना व मटर के लिए 17 हजार रुपए प्रति एकड़ और केले की खेती के लिए 1 लाख, 43 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से कर्ज सीमा तय करनी होती है. किसान अपनी खेती की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस पैसे को कभी भी बैंक से निकाल सकता?है.

कर्ज सीमा तय करने में भी बैंकों द्वारा खेल खेला जा रहा?है. अगर कोई किसान बैंक वालों को रिश्वत दे तो वह भले ही धान या गेहूं की फसल लेता हो, उसे केले या आलू की खेती के नाम पर कर कर्ज दिया जाता?है. जबकि केले की खेती करने वाले किसान को बैंक वालों को रिश्वत न देने की वजह से धान या गेहूं पर

मिलने वाला कर्ज दिया जाता?है. इस के चलते किसान क्रेडिट कार्ड के पैसों को जमा करने में देरी होती?है.

बैंकों के चलते नहीं मिल पाता फसलबीमा का लाभ : किसानों द्वारा उन की बोई गई फसल को सूखे या बरसात की वजह से हुए नुकसान से उबारने के लिए

फसलबीमा योजना जिसे अब प्रधानमंत्री फसलबीमा योजना के नाम से जाना जाता है, को चलाया गया?है. इस के तहत बीमा की गई फसल की किस्त की रकम की कटौती बैंकों द्वारा किसान द्वारा बनवाए गए क्रेडिट कार्ड की कर्ज सीमा पर की जाती?है. इस मसले पर किसान राममूरत मिश्र का कहना?है कि बैंक का यह मानना?है कि अगर किसान के केसीसी की कर्ज सीमा 1 लाख रुपए तय की गई है, तो उस की बोई गई फसल में से 1 लाख रुपए की आमदनी मिलती होगी. ऐसे में किसान की कर्ज सीमा पर ही बीमा किस्त की रकम को काटा जाता?है, जोकि प्रधानमंत्री बीमा योजना के तहत कुल कर्ज सीमा का 5 फीसदी बाजारू फसलों पर, 1.5 फीसदी रबी की फसल पर व 2 फीसदी खरीफ की फसल पर तय है.

किसान अगर फसल लेने के लिए अपनी 1 लाख रुपए की कर्ज सीमा से 30 हजार रुपए निकालता है तो भी बैंक द्वारा 1 लाख रुपए पर किस्त की रकम काटी जाती?है, जबकि फसल के नुकसान की दशा में बैंक का यह मानना?है कि किसान ने जितना पैसा बैंक से निकाला था उतने ही रुपए की फसल का नुकसान हुआ होगा और इसी को आधार बना कर फसल की बीमा रकम का भुगतान किया जाता?है. ज्यादातर मामलों में किसानों को यह बताया ही नहीं जाता कि उन के किसान क्रेडिट कार्ड से बीमा की किस्त की रकम काटी गई?है. इस वजह से किसान फसल के नुकसान की दशा में भी बीमा रकम नहीं पा पाता है.

सहायता योजनाओं का फायदा नहीं मिल पा रहा : कृषि महकमे द्वारा किसानों को आसानी से कृषि यंत्र मुहैया कराने के लिए किसान समूहों के जरीए मशीनरी बैंक चलाए जा रहे?हैं. इस में कुल 10 लाख रुपए की लागत आती?है, जिस में कृषि महकमे द्वारा 8 लाख रुपए का अनुदान दिया जाता है. बाकी के 2 लाख रुपए में से 1 लाख रुपए किसान को लगाने होते हैं. जबकि 1 लाख रुपए बैंक से कर्ज लेने होते?हैं. इस योजना के तहत पिछले साल पूर्वांचल के कई किसान समूहों को चुना गया था, लेकिन 1 लाख रुपए के कर्ज के लिए बैंकों द्वारा कई बार चक्कर लगवाए गए, तब कहीं जा कर किसानों को कर्ज की रकम

मिल पाई और कई समूहों को बैंक से कर्ज न मिलने की दशा में इस योजना का लाभ नहीं मिल पाया.

इसी तरह उत्तर प्रदेश में डेरी और पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए 100 दुधारू पशुओं की कामधेनु योजना और 50 दुधारू पशुओं की मिनी कामधेनु योजना चल रही है. इस में किसानों को 5 साल के लिए 1 करोड़ व 50 लाख रुपए के ब्याज मुक्त कर्ज दिए जाते हैं, लेकिन बैंकों ने इस का लाभ उन्हीं लोगों को दिया जो राजनीतिक पहुंच वाले थे. मध्यम व छोटे किसानों को इस योजना से दूर रखा गया, जिस की वजह से यह योजना असफल होती नजर आ रही?है. जबकि बैंकों को कर्ज की पूरी रकम पर लगने वाले ब्याज की रकम सरकार द्वारा चुकाई जाती?है.

इस के अलावा कृषि कार्यों के लिए आसान शर्तों पर कृषि स्नातक बेरोजगारों के लिए तमाम योजनाएं चलाई जा रही?हैं, जिन में कृषि महकमे द्वारा एग्री क्लीनिक खोलने के लिए माली सहयोग दिया जाता?है. इस में सामान्य व पिछड़ी श्रेणी के लिए कुल लागत का 36 फीसदी व अनुसूचित व अनुसूचित जनजाति की श्रेणियों को 44 फीसदी का योगदान दिया जाता?है. बाकी का पैसा?बैंक से कर्ज लेना होता है. इस मसले पर बुंदेलखंड के झांसी में एग्री क्लीनिक चलाने वाले रवी नरायन व्यास का कहना?है कि उन के जिले में बैकों की मनमानी के चलते हजारों कृषि स्नातक बेरोजगार घूम रहे हैं, जबकि एग्री क्लीनिक के खुलने से किसानों को एक ही छत के नीचे खाद, बीज, कीटनाशक व सलाह मिलने में आसानी होती है.

रवी नरायन व्यास के अनुसार उन्होंने शुरू में 2 लाख रुपए का बैंक से कर्ज ले कर एग्री क्लीनिक की शुरुआत की, जिस का?भुगतान उन के द्वारा समय से किया गया. जब उन्हें दोबारा कर्ज की जरूरत पड़ी तो बैंक द्वारा उन की फाइल को बिना किसी कारण बताए लटका कर रखा गया. वह पिछले 5 महीने से कर्ज के लिए दौड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें कर्ज की रकम नहीं दी गई.

किसानों के मुद्दे पर काम कर रहे सेना के रिटायर्ड कर्नल केसी मिश्र का कहना है कि किसानों को फसल के लिए समय से खाद, बीज, सिंचाई, मड़ाई, कीटनाशक आदि के लिए पैसों की जरूरत पड़ती?है. इस के साथ ही परिवार की जरूरतों को पूरा करने, बच्चों की पढ़ाईलिखाई, शादी वगैरह के लिए भी खर्च करने होते हैं, जिस के लिए किसान खेती पर ही निर्भर होता?है. ऐसी दशा में अपनी खेती की जरूरतों को पूरा करने के लिए किसान बैंक से आसान शर्तों पर कर्ज मिलने की आशा रखता?है, लेकिन बैंकों को इस तरह की छूट मिली है कि वे किसी भी अर्जी को बिना कारण बताए रद्द कर सकते?हैं.

कर्नल केसी मिश्र के अनुसार किसानों को आसान शर्तों पर कर्ज दिए जाने के लिए सरकार द्वारा एक मानक तय किया जाना चाहिए जिस की जानकारी के लिए प्रचारप्रसार किया जाना जरूरी?है.

किसान राममूर्ति मिश्र का कहना?है कि खेती के अलावा किसानों को कृषि से जुड़े दूसरे रोजगारों को शुरू करने के लिए भी कर्ज की शर्तों में ढील देनी होगी और?बैंक को दलालों के कब्जे से मुक्त कराना होगा. अगर कोई भी किसान पशुपालन, बकरीपालन, मत्स्यपालन, रेशम कीटपालन सहित कृषि के अन्य कामों को करने के लिए बैंक से कर्ज लेना चाहे तो उसे परेशान न किया जाए. तभी किसानों के लिए चलाई जा रही योजनाएं सफल हो पाएंगी.   ठ्ठ

खेती में फसल चक्र का महत्त्व

किसी जमीन पर एक तय समय तक फसलों को इस तरह हेरफेर कर उगाना, जिस से जमीन की उपजाऊ ताकत को नुकसान न हो, फसल चक्र कहलाता है. लगातार कई सालों से धानगेहूं फसल चक्र से मिट्टी की उपजाऊ ताकत व जैव पदार्थों में तेजी से गिरावट आई है. साथ ही खास प्रकार के घास कीट व रोगों का असर बढ़ रहा है, जिस से उपज व गुणवत्ता में कमी आती जा रही है. लिहाजा फसलों को हेरफेर कर उगाने से जमीन व किसान दोनों को ही फायदा होता है. आमतौर पर फसल चक्रों को निम्न 4 भागों में बांटा जा सकता है.

* ऐसे फसल चक्र जिन के पहले या बाद में खेत को परती छोड़ा जाता है जैसे धान परती.

*  वे फसल चक्र जिन में मुख्य फसल के पहले या बाद में हरी खाद उगा कर मिट्टी में मिला देते हैं जैसे हरी खाद धानगेहूं.

* ऐसे फसल चक्र जिन में वायुमंडल से नाइट्रोजन ले कर जमीन में मिलाने के लिए दलहनी फसलों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे धानमटरलोबिया (चारा).

* जमीन की उपजाऊ ताकत का ध्यान न रखते हुए थोड़े समय के लिए अनाज की फसल के बाद अनाज की फसल उगाना जैसे धानगेहूं, मक्काधान.

फसल चक्र से लाभ

* जमीन की उपजाऊ ताकत बनी रहती है, जिस से पोषक तत्त्व लंबे समय तक मौजूद रहते हैं और उत्पादन बढ़ जाता है. इस के लिए गहरी जड़ वाली फसल के बाद उथली जड़ वाली फसल की बोआई करनी चाहिए.

* फसल चक्र में दलहनी फसल अपनाने से नाइट्रोजन उर्वरक की बचत होती है, क्योंकि इस की जड़ों में गांठें होती हैं जो वातावरण से नाइट्रोजन सोख कर फसलों को देती हैं.

* फसल चक्र अपनाने से खरपतवार व कीटबीमारियों का असर कम होने से खरपतवारनाशी व पेस्टीसाइड पर खर्च कम किया जा सकता है.

* सालभर आमदनी होती है व फसल उत्पाद की गुणवत्ता अच्छी होती है.

* जमीन की नमी रोक कर दूसरी फसल को दी जा सकती है.

* खेती की तमाम जरूरतों को पूरा करना मुमकिन है, इस से मिश्रित खेती को बढ़ावा मिलता है.

ध्यान रखने लायक बातें

*  जमीन का प्रकार, फसल की किस्म, उस में लगने वाला वक्त व जरूरी चीजों की मौजूदगी.

* फार्म पर पशुओं की तादाद व नस्ल.

* कीटबीमारियों का प्रकोप व समय की जानकारी.

* उत्पाद की कीमत, मौजूदगी व यातायात की सुविधा.

* मजदूर की कीमत व मौजूदगी और बाजार की मांग.

अच्छे फसल चक्र के गुण

* फसल चक्र अपनाने लायक हो जो मिट्टी, जलवायु और पैसे के लिहाज से ठीक हो.

* फसल चक्र में जमीन का पूरा इस्तेमाल हो.

* फसल चक्र में जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ाने वाली फसल शामिल हो, जिस से जमीन में जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ सके.

* पशुओं के लिए सालभर पोषणयुक्त हरा चारा मिल सके.

* उत्पादन लागत कम करने के लिए जरूरी चीजों व मजदूरों का पूरा इस्तेमाल हो.

* फसल चक्र में उस इलाके की सब से ज्यादा फायदा देने वाली नकदी फसल ज्यादा बड़े रकबे में होनी चाहिए.

फसल चक्र का मिट्टी में असर

* बाजरा में अरहर, मूंगफली से बाजरा चना के मुकाबले कम मिट्टी का नुकसान (80 से 90 फीसदी).

* दलहन खाद्यान्न व खाद्यान्न दलहन फसल चक्र मिट्टी में जीवाणुओं को बढ़ाता है.

* मिट्टी की नमी के आधार पर फसल चक्र अपनाना चाहिए, जैसे खरीफ में परती के स्थान पर बाजरा, ज्वार, दलहनी मूंगफली को बोना चाहिए. रबी में सामान्य से गहरी जड़ वाली फसल में नमी रोकने की कूवत ज्यादा होती है.

फसल चक्र आकलन

फसल सूचांक : फसल की संख्या/ कुल समय ×100

शुद्ध आय : कुल आय-उत्पादन लागत

लागत लाभ अनुपात : कुल आय/कुल खर्च

 

डा. हंसराज सिंह, डा. विपिन कुमार, डा. अरविंद कुमार, डा. अनंत कुमार व डा. पीएस तिवारी (कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद)

खेतीकिसानी से जुड़े जुलाई के जरूरी काम

झमाझम बारिश वाला जुलाई का महीना खेती के लिहाज से खासा मुफीद होता है. गरमी की तपती प्यासी जमीन की प्यास सही मानों में जुलाई के दौरान ही बुझती है. गहराई तक पानी समाने के बाद सही मानों में जमीन सोना और हीरेमोती उगलने लायक हो जाती है. भीगेभीगे मौसम का सुकून किसानों के चेहरों पर?भी नजर आता?है और वे पूरी शिद्दत के साथ खेती के कामों में जुटे रहते हैं.

पेश है जुलाई के दौरान होने वाले खेती के खासखास कामों का ब्योरा. सही मानों में जुलाई धान की फसल के लिए जाना जाता है, मगर धान के अलावा भी जुलाई से जुड़े तमाम अहम काम होते?हैं, इन्हीं सब पर एक नजर:

* शुरुआत धान से करें तो इस अहम फसल की रोपाई का काम हर हालत में इसी महीने निबटा लेना चाहिए. उम्दा रोपाई के लिए करीब 3 हफ्ते की पौध का इस्तेमाल बेहतर रहता है.

* धान के पौधों की रोपाई सीधी रेखा में करीब 15 सेंटीमीटर के फासले पर करनी चाहिए. एकसाथ 2 पौधे रोपना बेहतर रहता है.

* धान की रोपाई के बाद 4 दिनों के अंदर खेत में बढ़ने वाले खरपतवारों को खत्म करने का इंतजाम करना जरूरी?है. इस के लिए एनीलोफास 30 ईसी या?ब्यूटाक्लोर 50 ईसी का इस्तेमाल करें.

* आमतौर पर किसान धान की सीधी बोआई करते?हैं, मगर सीधी बोआई का काम 10 जुलाई के आसपास खत्म कर लेना चाहिए.

* धान की सीधी बोआई करने में तो कोई हर्ज नहीं?है, मगर इस में धान की किस्म का खयाल रखना जरूरी है. असिंचित हालत में धान की सीधी बोआई के लिए 90 से 100 दिनों में पकने वाली किस्में मुफीद रहती हैं.

* धान की सीधी बोआई के लिए 70 से 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

* बोआई से पहले धान के बीजों को करीब 12 घंटे तक पानी में भिगो कर रखें. फिर बीजों को पानी से निकाल कर 45 घंटे तक

ढेर बना कर रखें, इस दौरान बीजों का अंकुरण हो जाएगा.

* अंकुरण होने के बाद बीजों को सीधी रेखा में 20 सेंटीमीटर का फासला रखते हुए बोएं.

* गन्ने के लिहाज से भी जुलाई की अहमियत होती है. इस महीने गन्ने के खेतों की अच्छी तरह देखभाल करनी चाहिए, वरना फसल पर असर पड़ सकता है.

* बारिश के मौसम में खरपतवार खूब पनपते हैं, लिहाजा गन्ने के खेतों से खरपतवारों को चुनचुन कर निकाल देना मुनासिब रहता?है.

* गन्ने के कीटों के मामले में भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, क्योंकि कीटों का बढ़ता असर गन्ने की क्वालिटी बिगाड़ देता?है.

* गन्ने को तबाह करने वाले तनाबेधक व शीर्षबेधक कीटों की रोकथाम के लिए थायोडान 35 ईसी या नुवाक्रान 40 ईसी दवा का छिड़काव करना चाहिए.

* पाइरिला व सफेद मक्खी से गन्ने को बचाने के लिए मैथालियान 50 ईसी या मेटासिस्टाक्स 25 ईसी दवा का छिड़काव करना कारगर रहता?है.

* अरहर की जल्दी तैयार होने वाली किस्मों की बोआई अगर अभी तक न की गई हो, तो यह काम जुलाई की शुरुआत में ही यानी पहले हफ्ते के दौरान निबटा लें.

* अरहर की बोआई के लिए 15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बोआई करने से पहले बीजों को कार्बंडाजिम से उपचारित करना न भूलें.

* अरहर की बोआई सीधी लाइनों में 45 सेंटीमीटर के फासले से करें.

* उड़द की जल्दी तैयार होने वाली किस्मों की बोआई के लिहाज से जुलाई का महीना मुफीद रहता?है. 15 जुलाई के बाद उड़द की बोआई की जा सकती?है.

* मूंग की बोआई के लिए भी जुलाई का महीना मुनासिब रहता है. इस की समय पर तैयार होने वाली किस्मों की बोआई महीने के आखिरी हफ्ते में करनी चाहिए. अगर मूंग बोने का इरादा हो, तो समय रहते बोआई निबटा लें.

* सोयाबीन की फसल का वजूद दिनबदिन बढ़ता जा रहा?है. इस की बोआई के लिए भी जुलाई का महीना मुफीद है. 10 जुलाई तक सोयाबीन की बोआई का काम निबटाएं.

* सोयाबीन की बोआई के लिए 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बोआई 45 सेंटीमीटर के फासले से कतारों में करें.

* जुलाई में तिल की बोआई भी की जाती?है. अगर इस का इरादा हो, तो 15 जुलाई तक यह काम कर डालें.

* तिल की बोआई के लिए 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बोआई कूंड़ों में 30 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए करें.

* मूंगफली की बोआई के लिए भी जुलाई का महीना मुफीद रहता?है. मूंगफली की बोआई 15 जुलाई तक कर लेनी चाहिए.

* मूंगफली की गुच्छेदार किस्मों के लिए 80-90 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बोआई सीधी रेखा में 45 सेंटीमीटर के अंतर पर करें.

* मूंगफली की फैलने वाली किस्मों के लिए 60-80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बोआई सीधी रेखा में 30 सेंटीमीटर के अंतर पर करें.

* मूंगफली के बीजों को बोआई करने से पहले कार्बंडाजिम से उपचारित कर लेना चाहिए. ऐसा करने से जमाव अच्छा होता?है और पौधे स्वस्थ रहते?हैं.

* अगर ज्वार की बोआई बाकी रह गई हो, तो उसे जुलाई के पहले हफ्ते में निबटाएं.

* ज्वार की बोआई के लिए

15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बोआई 45 सेंटीमीटर के फासले पर सीधी लाइनों में करें.

* बैगन की रोपाई का काम 1 से 15 जुलाई के बीच करें. तैयार की गई क्यारियों में 60×60 सेंटीमीटर के फासले पर बैगन की रोपाई शाम के वक्त करें. रोपाई के बाद हलकी सिंचाई करें.

* तनाछेदक व फलछेदक कीड़ों से बैगन को बचाने के लिए सेविन नामक दवा का इस्तेमाल करें.

* तुरई की रोपाई जुलाई के पहले हफ्ते के दौरान 100×50 सेंटीमीटर की दूरी पर करें. बरसात के मौसम वाली इस तुरई के लिए मचान भी बना सकते?हैं.

* खेत की अच्छी तरह तैयारी कर के 60×45 सेंटीमीटर के फासले पर टमाटर की रोपाई करें.

* पहले बोए गए?टमाटर के खेत में ढंग से निराईगुड़ाई करें और जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें.

* टमाटर की फसल में झुलसा रोग के लक्षण दिखाई दें, तो बचाव के लिए इंडोफिल 45 दवा का छिड़काव करें.

* अब तक टमाटर के जो फल तैयार हो चुके हों, उन की तोड़ाई करें और बाजार में भेजने का बंदोबस्त करें.

* जुलाई में शकरकंद की बोआई की जाती?है. इरादा हो तो बाकायदा खेत तैयार कर के 60 सेंटीमीटर के फासले पर लाइनों में शकरकंद की रोपाई करें.

* खीरा वर्ग वाली सब्जियों की क्यारियों की निराईगुड़ाई करें. कीटों से बचाव के लिए सेविन या थायोडान दवा का छिड़काव करें. तैयार सब्जियों की तोड़ाई कर के बाजार भेजें.

* अमरूद, आंवला व नीबू के बाग लगाने के लिए जुलाई का महीना मुनासिब होता है. इच्छानुसार पौधे लगाएं. बाग में पानी की निकासी का इंतजाम सही रखें.

* अंगूर की मध्य समय में पकने वाली किस्मों के फल तैयार हो चुके होंगे, उन्हें तोड़ कर मार्केट भेजें. अगर फल विगलन बीमारी के लक्षण नजर आएं तो उस का इलाज कराएं.

* जुलाई में लीची की रोपाई की जाती?है. लीची के नए पौधे तैयार करने के लिए गूटी बांधने का काम करें.

* जुलाई में केले की रोपाई भी की जाती?है. बाग से केले की रोपाई के लिए तलवार जैसी दिखने वाली पुत्तियों का चुनाव करें.

* बरसात के झमाझम मौसम में अपने मवेशियों का खास खयाल रखें. उन्हें तेज बरसात में लगातार भीगने से बचाएं, वरना बीमार होने का खतरा हो सकता?है.

* बरसात व गरमी के असर से पशु अकसर बीमार पड़ जाते?हैं. जरा भी अंदेशा लगे तो माहिर पशु चिकित्सक से जांच कराएं.

* अपनी गायभैंसों व मुरगेमुरगियों को बारिश के कहर से बचाने का सही बंदोबस्त करें. जरूरत के मुताबिक उन के शेड या आवास की मरम्मत कराएं.

* बारिश के दिनों में तमाम तरह के कीड़ेमकोड़े व सांप वगैरह निकलते रहते?हैं, जो पशुओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं. लिहाजा इस मामले में चौकन्ने रहें. पशुओं के रहने

वाली जगह पर रात के वक्त रोशनी का पूरा इंतजाम रखें.

* अगर गाय या भैंस गरमी में आए तो वक्त रहते गाभिन कराने का इंतजाम करें. इस काम के लिए पशुचिकित्सक की मदद लें.   ठ्ठ

काम का ऐप ढूंढ़ने के लिए भी हैं कई ऐप

एंड्रायड स्मार्टफोन के लिए ऐप ढूंढना कोई आसान काम नहीं है. कई लोग स्मार्टफोन पर ऑफिस का ढ़ेर सारा काम निपटा देते हैं.

ऐसे लोग हमेशा नए ऐप की तलाश में रहते हैं जो उनके अपॉइंटमेंट, ईमेल, शेड्यूल, मीटिंग और कांफ्रेंस कॉल जैसी जरूरी बातों को याद रखे.

लेकिन भला गूगल प्ले स्टोर के 17 लाख से भी ज्यादा ऐप में से आप पांच इंच की स्क्रीन पर कैसे कोई भी काम के ऐप ढूंढ सकता है?

एप्पल स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों की भी यही दिक्कत है क्योंकि उसके ऐप स्टोर में भी लगभग उतने ही ऐप हैं. ऐसे ही लोगों के लिए ऐप सर्च इंजन बनाया गया है.

ऐप क्रॉलर की वेबसाइट पर जब आप जाएंगे तो तरह- तरह के काम के लिए आपको ऐप मिल जाएंगे.

पजल गेम या कैमरा या फिर वीडियो शेयरिंग के लिए ऐप चाहिए तो बस सर्च कीजिये और फिर जो भी ऐप आपके सामने हैं उनके बारे में पढ़िए और डाउनलोड करने की तैयारी कीजिये.

ऐप क्रॉलर आपको ये भी बताता है कि कौन सा म्यूजिक प्लेयर फिलहाल काफी पसंद किया जा रहा है या फिर सोशल मीडिया पर किस ऐप को सबसे ज्यादा डाउनलोड किया जा रहा है. समय काटने के लिए भी ऐप चाहिए तो वो आपको मिल जाएगा.

ऐप पिकर भी ऐप की दुनिया के बारे में पूरी खबर रखता है और तरह तरह की जानकारी आपको देता है.

अगर ऐसे ऑनलाइन या मोबाइल गेम पर नजर रखना है जिन्हें पहले खरीदना पड़ता था और अब वो फ्री डाउनलोड किये जा सकते हैं तो वो जानकारी यहां मिल जायेगी.

ऐप ग्रैविटी पर आपको एंड्रायड और एप्पल स्मार्टफोन दोनों के लिए ऐप का विकल्प मिलता है.

यहाँ पर तरह तरह के ऐप के रिव्यु मिलेंगे जिससे ये समझ सकते हैं कि कोई भी ऐप आपके कितने काम का है.

जो लोग रिव्यु करते हैं उन्हें फॉलो भी किया जा सकता है ताकि आपको किसी भी ऐप के बारे में जानकारी मिलती रहे. अगर आप चाहें तो अपने पसंदीदा ऐप को भी चुन सकते हैं.

एप्पल इस्तेमाल करने वालों के लिए भी ऐपऐप , फाइंड , ऐप शॉपर और आई मोर और उसके जैसे वेबसाइट पर ढेर सारे ऐप के विकल्प मिल सकते हैं.

हमेशा की तरह इस बात का ध्यान रखिये कि जो भी ऐप डाउनलोड कर रहे हैं वो आपके लिए ठीक है या नहीं.

जिन्होंने उसे डाउनलोड किया है उनके रिव्यु पहले पढ़ना जरूरी है और ये भी पहले जानना चाहिए कि डाउनलोड करने पर वो स्मार्टफोन से ज्यादा जानकारी तो नहीं लेगा.

अगर उस ऐप के लाखों डाउनलोड होंगे तो इसका मतलब ये है कि कई लोगों ने उसे पसंद किया है.

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