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पैसों के लेन देन में जल्द ही आएगा बड़ा बदलाव

कैशलेस ट्रांजैक्शन बढ़ाने के लिए आरबीआई नियमों में बदलाव करने जा रहा है. जिसके जरिए छोटी दुकान से लेकर हॉस्पिटल, बस, सरकारी ऑफिस आदि हर जगह कार्ड से पेमेंट किए जाएंगे. इसके लिए देश के छोटे शहरों और कस्बों में में इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने का प्लान है.

आरबीआई का प्लान क्या है ?

आरबीआई द्वारा पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम इन इंडिया 2018 के विजन प्लान में कहा गया है, कि अभी कैशलेस ट्रांजैक्शन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है. उसके अनुसार कैशलेस ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने के लिए छोटी दुकान से लेकर हॉस्पिटल, बस, सरकारी ऑफिस सब को शामिल किया जाएगा. इसके तहत इन सभी लोकेशन पर कार्ड से पेमेंट का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाएगा. जिसमें एटीएम से लेकर पीओएस मशीन के इन्साटलेशन पर फोकस होगा.

बदलेंगे नियम  

आरबीआई के अनुसार मौजूदा नियम के जरिए टारगेट को पूरा करना आसान नहीं है. ऐसे में पेमेंट एंड सेटलमेंट सर्विसेज के लिए नियमों को आसान किया जाएगा. जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लोग कार्ड पेमेंट का इस्तेमाल कर सके. नए नियम ट्रांजैक्शन चार्ज में कमी लाने से लेकर ऑपरेशनल कॉस्ट में कमी लाने पर जोर रहेगा.

व्हाइट लेवल एटीएम लगाना होगा आसान  

आरबीआई एटीएम का इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने के लिए व्हाइट लेवल एटीएम के नियम भी आसान करने पर विचार कर रहा है. उसके अनुसार मौजूदा नियमों से जैसी उम्मीद थी, वैसा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं हो पाया है. ऐसे में कंपनियों के लिए व्हाइट लेवल एटीएम लगाना आसान होगा. इसमें टियर-2, टियर-3 और कस्बों में व्हाइट लेवल एटीएम लगाने पर इन्सेंटिंव भी मिल सकता है.

नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन भी मिलाएगा हाथ

-एनपीसीआई से मिली जानकारी के अनुसार वह खास तौर पर तीन से चार प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है.

-इसके तहत कैशलेस कैंपस, डिजिटल गांव, कैशलेस कॉलेज एडमिशन प्रोसेस जैसे प्रोजेक्ट्स को बैंकों के साथ शुरू किया जाएगा.

-इन प्रोजेक्ट्स का उद्देश्य कैशलेस ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देना है. इसके लिए प्रमुख बैंकों के साथ बातचीत भी शुरू कर दी गई है

कैसे काम करेगा ये मॉडल

1.पूरी तरह से डिजिटल होगा गांव

इसके तहत गांवों को ऐसे डेवलप किया जाएगा, जहां पर रोज-मर्रा के कामकाज ऑनलाइन होंगे. इसमें बिल पेमेंट से लेकर, स्कूल फीस जमा करने सहित दूसरे यूटिलिटी से जुड़े काम होंगे.

2.कैशलेस कैंपस

-स्कूल, ऑफिस और दूसरे मार्केट प्लेस ऐसे डेवलप किए जाएंगे, जहां कैश का यूज नहीं होगा.

-सारे पेमेंट ऑनलाइन या फिर कार्ड के जरिए किए जाएंगे, जिसमें पीओएस मशीन से लेकर पेमेंट आउटलेट आदि का यूज होगा.

3.कैशलेस कॉलेज एडमिशन प्रोसेस

-इसी तरह बैंकों के साथ मिलकर कॉलेज एडमिशन प्रोसेस को कैशलेस किया जाएगा. यानी इस तरह के कॉलेज में एडमिशन का पूरा प्रोसेस बिना कैश के होगा.

ट्राई सीरीज पर ऑस्ट्रेलिया का कब्ज़ा

वेस्टइंडीज में चल रही ट्राई सीरीज पर ऑस्ट्रेलिया ने कब्ज़ा कर लिया. केंसिंग्टन ओवल के मैदान पर हुए फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया ने वेस्टइंडीज को 58 रन से हरा दिया. टॉस जीतने के बाद पहले बल्लेबाजी करने उतरी ऑस्ट्रेलियाई टीम ने निर्धारित 50 ओवर में 9 विकेट पर 270 रन बनाए. 271 रन का पीछा करते हुए वेस्टइंडीज की पूरी टीम सिर्फ 212 रन बना पाई और 58 रन से यह मैच हार गई.

हालांकि वेस्टइंडीज की शुरुआत अच्‍छी रही. जॉनसन चार्ल्स और एंड्रू फ्लेचर के बीच 49 रन की साझेदारी हुई. पहले विकेट के रूप में फ्लेचर के 9 रन बनाकर आउट होने के बाद डैरेन ब्रावो(6),मार्लोन सैमुएल्स (6) और चार्ल्स (45) जल्दी-जल्दी आउट हो गए. वेस्टइंडीज पर दबाव आ गया.

कीरोन पोलार्ड और दिनेश रामदीन ने पारी को संभालने की कोशिश जरूर की लेकिन पोलार्ड के 20 बनाकर आउट होने के बाद टीम की हार लगभग तय हो गई. दिनेश रामदीन ने 40 रन बनाए. 

ऑस्ट्रेलिया के तरफ से जोश हाजेलवुड ने शानदार गेंदबाज़ी करते हुए वेस्टइंडीज की कमर तोड़ दी. हाजेलवुड ने 9.4 ओवर गेंदबाज़ी करते हुए 50 रन देकर पांच विकेट हासिल किए. मिचेल मार्श ने भी अच्‍छी गेंदबाजी की और 10 ओवर में सिर्फ 32 रन देकर तीन विकेट हासिल किए.

ऑस्ट्रेलिया की तरफ से विकेट कीपर मैथ्यू वेड ने सर्वाधिक 57 रन बनाए. सलामी बल्लेबाज आरॉन फिंच ने 47 रन की पारी खेली. वेस्टइंडीज के खिलाफ फिंच का यह सर्वाधिक स्कोर है. कप्तान स्टीवन स्मिथ ने भी 46 रन बनाया. मिचेल मार्श ने भी 32 रन बनाए.

अपने बेटे को लेकर साबरमती आश्रम गए इरफान

पश्चिमी देशों की ही भांति अब हमारे देश में भी ‘वूमन्स डे’, ‘मदर्स डे’, ‘फादर्स डे’ मनाए जाने की परंपरा शुरू हो गयी है. बौलीवुड के कलाकार तो इस तरह के दिनों को प्रचार का एक नया हथियार मानकर चलने लगे हैं. इस तरह के दिन आते ही बौलीवुड की हस्तियां अपनी प्रतिक्रियांए देने के अलावा कई तरह के कार्यक्रम करने लगे हैं. हाल ही में ‘‘फादर्स डे’’ मनाया गया. इस वर्ष भी अजय देवगन, शाहरुख खान से लेकर कई बौलीवुड हस्तियों ने तरह के के प्रपंच रचे. मगर लोगों को सबसे बड़ा आश्चर्य तो मशहूर अभिनेता इरफान को लेकर हुआ. इरफान उन कलाकारों में से हैं, जो कि बौलीवुड के साथ साथ हौलीवुड में भी अपने अभिनय की पताका फहरा रहे हैं. इसके बावजूद वह भारतीय रीति रिवाजों व परंपरा में अमिट विश्वास रखते हैं. पर इस वर्ष ‘‘फादर्स डे’’ मनाने के लिए इरफान अपने बेटे के साथ महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम पहुंच गए.

इरफान के साबरमती आश्रम से वापस आने के दो तीन दिन बाद जब हमारी मुलाकात हुई, तो हमने इरफान से पूछा-‘‘हाल ही में आप ‘फादर्स डे’ मनाने के लिए अपने बेटे के साथ गुजरात में महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम गए थे. इसके पीछे आपकी क्या सोच थी?’’

तब ‘‘सरिता’’ पत्रिका से एक्सक्लूसिव बात करते हुए इरफान ने कहा-‘‘मैं दो तीन बार गुजरात जा चुका हूं. पर ठीक से गुजरात को समझने या गुजरात घूमने का अवसर कभी नहीं मिला. मैं फिल्म ‘डी डे’, तिग्मांशु धूलिया की फिल्म ‘साहब बीबी और गैंगस्टर’ के अलावा ‘पीकू’ की शूटिंग के लिए गया, पर गुजरात को समझने का मौका नहीं मिला. अचानक कुछ दिन पहले ‘फादर्स डे’ की चर्चा शुरू हो गयी. हम सभी बिना सोचे समझे पश्चिमी देशों के कल्चर को अपने उपर लादते हुए कोई न कोई डे मनाने लगे हैं. हम अपने देश व समाज की जो परंपरा, रीति रिवाज या रिच्युअल हैं, उनके मायने भूलते जा रहे हैं.

आप किसी भी त्यौहार को उठाकर देख लीजिए. उस त्यौहार की शुरूआत क्यों हुई थी और अब उस त्यौहार की आड़ में क्या हो रहा है. सभी त्यौहार बेमानी होते जा रहे हैं. पर यदि यही बात आपने या हमने कह दी, तो लोग गुस्सा हो जाते हैं. इसलिए ‘फादर्स डे’ को लेकर कुछ कहने की बजाय मैंने सोचा कि हम इसे इस तरह अपनाएं कि हमें तकलीफ न हो. तो मैंने सोचना शुरू किया कि मेरे लिए ‘फादर’/पिता कौन है? मैंने सोचा कि यदि मैं अपने पिता से इस दिन बात करता हूं, तो कोई बड़ा मसला निकलता नहीं है. फिर आज की पीढ़ी सब कुछ बाहर तलाश रही है.

काफी सोचने के बाद मैंने सोचा कि हम अपने बच्चों को बताएं कि देश का राष्ट्रपिता कौन है? मेरा बेटा अपने पिता यानी कि मुझे जानता है. वह अपने दादाजी को भी जानता है. ऐसे में वह ‘फादर्स डे’ नए मायने के साथ कैसे मनाएगा? हम तो अपने घर पर जन्मदिन का केक भी नहीं काटते है. तो मेरे दिमाग में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का ख्याल आया. मैंने एक दिन अपने बेटे से गांधी जी के बारे में पूछा. तो पता चला कि वह जानता है कि हर नोट पर गांधी का चेहरा होता है. इससे अधिक वह कुछ बहुत ज्यादा जानकारी नहीं रखता है. मैंने महसूस किया कि युवा पीढ़ी के मन में गांधीजी को लेकर कोई आकर्षण है ही नहीं.

सच कह रहा हूं,जब रिचर्ड एटेनब्रो ने महात्मा गांधी पर फिल्म ‘गांधी’ बनायी, तब हमारे देश के तमाम लोगों को अहसास हुआ कि गांधीजी कितने बडे़ हीरो थे. हम सभी को अपने जीवन में हीरो जरूर ढूंढ़ना चाहिए. काफी सोचने के बाद मुझे लगा कि मुझे अपने बेटे को लेकर गुजरात के साबरमती आश्रम जाना चाहिए. हम जब अपने बेटे के साथ गांधी आश्रम से लौटकर आए, तो उसने गांधी पर बनी फिल्म देखने की इच्छा जाहिर की. पिता के तौर पर मैं यही कर सकता हूं कि किसी चीज के प्रति उसके अंदर उत्सुकता जगाऊं. आज की जो नयी पीढ़ी है, हम उसे सिर्फ एक्सपोजर दे सकते हैं. उसने वहां पर चरखा भी काटा. मैंने भी चरखा काटा.’’

हमारे यह पूछ जाने पर कि गांधी आश्रम जाने के बाद उनके बेटे की प्रक्रिया क्या रही? इस पर ‘‘सरिता’’ पत्रिका से इरफान ने कहा-‘‘वहां पर बहुत भीड़ थी. उस वक्त बेटे से ज्यादा बात नहीं हो पायी. पर मैंने उसके चेहरे पर खुशी देखी. उसके मन में आश्रम में रखे हुए गांधी जी के चश्में, खड़ाउ आदि को लेकर उत्सुकता जगी कि यह असली हैं या..अब जब मुझे मौका मिलेगा, तब मैं उसे समझाउंगा कि गांधी जी के लिए सिम्पलीसिटी के क्या मायने थे और जिंदगी में सफलता के लिए सिम्पलीसिटी कितनी जरूरी है. अन्यथा हम लोग बहुत कुछ खोते जा रहे हैं. आज की तारीख में चरखा हममें से किसी को भी आकर्षित नहीं करता. वह कहीं मौजूद ही नही है. ना टीवी पर, ना फिल्मों में. चरखा से मेरा मतलब सिम्पलीसिटी से है.’’

क्या उनके बेटे ने साबरमती के आश्रम में गांधी के ‘अहिंसा ही परम धर्म है, को लेकर कोई सवाल नही किया? मेरे इस सवाल पर इरफान ने कहा-‘‘उसने कई सवाल किए हैं. पर उसके हर सवाल का जवाब वहां भीड़ में दे पाना संभव नहीं था. पर मैं अवसर मिलते ही उसे उसके सवालों को लेकर सब कुछ समझाउंगा. देखिए, गांधीजी ने कभी यह नहीं कहा कि मेरा धर्म हिंदू हैं या मुसलमान. गांधी जी ने कहा अहिंसा मेरा धर्म है. जबकि अहिंसा तो कोई धर्म है ही नहीं. तो उनकी बात को समझना जरुरी है. मेरा कहना है कि इंसान को उसी तरह अपना धर्म चुनना चाहिए, जिस तरह से वह अपना करियर चुनता है. हिंदू, मुस्लिम, सिख इसाई यह सब तो बड़ी मोटी बात हैं. यह सब धर्म नही है.’’

पर आपको नहीं लगता  कि ‘फादर्स डे’ या ‘मदर्स डे’ आदि का  बाजारीकरण हो गया है? मेरे इस सवाल पर इरफान ने कहा-‘‘जी हां! यह बाजारीकरण है. आज की तारीख में तो पूरे देश का बाजारीकरण हो गया है. हम पूरे देश को दुकान बना रहे हैं. हम भूल रहे हैं कि दुकान दुकान होती है और घर घर होता है. घर में रहना एक अलग बात होती है. जबकि दुकान में आदान प्रदान होता है, जिससे आपको पैसा मिलता है. पर देश या जिंदगी को लेकर ऐसा नहीं सोच सकते. जिंदगी एक साइकल है. आपने खाना खाया है, तो आपका शरीर कभी दूसरे प्राणियों के लिए खाना बनेगा. हम खाना खाने के बाद लोगों को कुछ तो दें. जहर देने से प्रकृति बिगड़ेगी जैसे कि हम प्लास्टिक देते हैं. यदि इसी तरह से हम जहर देते रहें तो संसार बनेगा नहीं.’’

आपने सिम्पलीसिटी और आम आदमी के प्रतीक के रूप में ‘फादर्स डे’ मनाने के लिए महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम को चुना. कहीं इसका संबंध आपकी 15 जुलाई को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘मदारी’’ से तो नही है? इस सवाल पर बड़ी बेबाकी से इरफान ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका से कहा-‘‘महात्मा गांधी के आश्रम और उनकी सिम्पलीसिटी का मेरी फिल्म ‘मदारी’ से सीधा कोई संबंध नही हैं. संबंध यह जरूर हो सकता है कि सिनेमा का काम होता है कि वह दर्शक का मनोरंजन करने के साथ साथ उसे एक सोच दे. यानी कि फिल्म देखकर दर्शक कुछ सोचना चाहें. उसके अंदर एक उत्सुकता जगाने का काम सिनेमा करता है. गांधीजी भी यही करते थे. सिनेमा लोगों का मनोरंजन करता है,पर गांधीजी मनोरंजन नहीं करते थे. वह लोगों को सिर्फ इनकरेज/ प्रोत्साहित करते थे. वह देश तथा मानव जाति को बहुत गहरे स्तर पर एक दिशा निर्धारित करना चाह रहे थे. उनका जो सपना था, वह आजादी के बाद साकार नहीं हुआ.

आजादी से पहले वह स्टार थे. लोग उन्हें देखने व सुनने के लिए उमड़ पड़ते थे. लेकिन आजादी के बाद लोग भूल गए. पर महात्मा गांधी ने जो कुछ कहा है, उससे देश के हर इंसान का परिचित होना जरूरी है. वह सिर्फ आत्मंचिंतन नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति के चिंतन की बात कर रहे थे. उनका सपना विकसित ग्रामीण था. वह आज जिस विकास की बात हो रही है, गांधी जी ने इस विकास का सपना नहीं देखा था. उनकी नजर में सड़क बन जाना या बिजली आ जाना विकास नहीं है. वह कहते थे कि आजादी का कोई मतलब नहीं, जब तक आप अंदर से आजाद नहीं हैं. आप अभी भी अंदर से गुलाम हैं, आपके अंदर अपने देश की परंपरा, देश की सभ्यता संस्कृति, देश के ट्रेडिशन के प्रति सम्मान नहीं है, तो आप कभी भी आजाद नही है. हमारे मन में अभी भी अंग्रेज ही बैठे हुए हैं.’’

तो क्या फिल्म ‘‘मदारी’’ का प्रभाव आम इंसान पर नहीं पड़ेगा? हमारे इस सवाल पर इरफान ने कहा-‘‘यह तो रहस्य है. फिल्म रिलीज के बाद क्या काम करेगी, कह नहीं सकता. मेरी राय में जब तक मैं अभिनय कर रहा होता हूं या फिल्म बन रही होती है, वह तब तक हमारी होती है. एक बार वह सिनेमा घर पहुंच गयी, तो फिर वह दर्शकों की प्रापर्टी हो जाती है. आखिरकार सिनेमा एक एक्सप्रेशन है, एक भाव है. सिनेमा दर्शकों तक एक अनुभूति पहुंचाता है. उस अनुभूति से दर्शक क्या अर्थ निकालता है, यह तो इस बात पर निर्भर करता है कि उस दर्शक की कौन सी खिड़की खुली हुई है. अभी हम लोग जो बात कर रहे हैं, उसे सामने बैठा इंसान सुनकर या जो पढ़ेगा, वह हमारी बातचीत को बहुत बोरिंग मान सकता है. कोई इसे फिलासफी की संज्ञा दे सकता है. तो कोई पता नहीं हमारी बातों का क्या अर्थ लगा ले. यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी कौन सी खिड़की खुली हुई है.’’ 

खुल गया विदेशों में जमा ‘काले धन’ का राज

विदेशी बैंक खातों में अघोषित आय छिपाने वालों के खिलाफ कार्रवाई में केंद्र सरकार को सफलता हाथ लगने लगी है. इसी सिलसिले में इनकम टैक्स अथॉरिटीज ने अब तक 13,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के काले धन का पता लगा लिया, वह भी महज दो चरणों (साल 2011 और 2013) में मिली सूचनाओं के आधर पर.

जिनिवा के एचएसबीसी बैंक में कम-से-कम 400 भारतीयों के डिपॉजिट्स के मामलों में इनकम टैक्स अथॉरिटीज ने 8,186 करोड़ रुपये की अघोषित आय का खुलासा किया जो विदेशी खातों के बारे में अब तक का सबसे बड़ा खुलासा है. एक इनकम टैक्स असेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक, 31 मार्च 2016 तक ऐसे खाता धारकों से 5,377 करोड़ रुपये टैक्स की मांग की जा चुकी है. एचएसबीसी जिनिवा बैंक में भारतीयों के खातों की जानकारी साल 2011 में फ्रांस की सरकार ने दी थी.

वहीं, साल 2013 में इंटरनैशनल कंसॉर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआइजे) की वेबसाइट से मिली जानकारी के आधार पर इनकम टैक्स अधिकारियों ने 700 भारतीयों के विदेशी खातों में 5,000 करोड़ रुपये की आघोषित आय का पता लगा लिया.

आईसीआइजे की वेबसाइट से पकड़ में आए काला धन को लेकर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने क्रिमिनल कोर्ट्स में अब तक 55 प्रॉसिक्युशन कंप्लेंट्स दायर कर चुका है. इन सब मामलों में जान-बूझकर टैक्स नहीं भरने का आरोप लगाया गया है. वेरिफिकेशन प्रोसेस के दौरान ऐसे लोगों द्वारा झूठा बयान दिए जाने को मुकदमे का आधार बनाया गया है.

एचएसबीसी जिनिवा के 75 केस में टैक्स अथॉरिटीज ने प्रॉसिक्युशन प्रोसिडिंग्स शुरू कर दी है. क्रिमिनल कोर्ट्स ने ज्यादातर प्रॉसिक्युशन कंप्लेंट केसेज में संज्ञान लिया है जिससे एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) के लिए प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट (पीएमएलए) के तहत कठोर कार्रवाई शुरू करने का रास्ता साफ हो जाएगा. अभी-अभी संशोधित ब्लैक मनी अनडिस्क्लोज्ड फॉरन इनकम ऐंड ऐसेट्स ऐक्ट जान-बूझकर की गई टैक्स से बचने की कोशिशों को पीएमएलए के तहत अपराध घोषित करने की अनुमति देता है. इससे ईडी को यह अधिकार मिल जाता है कि वह आरोपी के विदेश में अघोषित संपत्ति के मूल्य के बराबर की देसी संपत्ति जब्त कर सके.

इनकम टैक्स रिपोर्ट कहती है कि आईसीआईजे मामलों में जिन भारतीयों के नाम सामने आए हैं उनमें कई ने ब्लैक मनी डिक्लेरेशन विंडो के तहत संपत्ति के खुलासे किए. सरकार ने पिछले साल सीमित समय के लिए अघोषित संपत्ति की घोषणा करने का मौका दिया था. हालांकि, जिन लोगों के खिलाफ इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने पहले ही जांच शुरू कर दी, वह राहत पाने के योग्य नहीं हैं.

कोपा अमेरिका: लगातार दूसरी बार चैम्पियन बना चिली

चिली ने साउथ अमेरिका के सबसे बड़े फुटबॉल टूर्नामेंट कोपा अमेरिका कप के फाइनल में अर्जेंटीना को पेनल्टी शूटआउट में 4-2 से हरा दिया है. चिली ने लगातार दूसरी बार इस खिताब पर कब्जा जमाया है. अर्जेंटीना को बड़ा झटका तब लगा जब टीम के कप्तान लियोनेल मेसी ही पेनल्टी शूटआउट को गोल में बदलने से चूक गए.

मैच के लिए निर्धारित 90 मिनट में कोई भी टीम गोल नहीं कर सकी. साथ ही अर्जेंटीना और चिली दोनों ही टीमों ने काफी रफ खेल दिखाया. दोनों ही टीमों के खिलाड़ी ज्यादातर समय तक मैदान पर आपस में झगड़ते दिखाई दिए, जिसकी वजह से दोनों टीमों को एक-एक रेड कार्ड भी मिला.

चिली की ओर से मारसिलो डेएज और अर्जेंटीना की ओर से मार्कोस रोजो को रेड कार्ड मिले, जिसके बाद दोनों ही टीमों ने 10-10 खिलाड़ियों के साथ मैच में संघर्ष किया.

23 साल बाद अर्जेंटीना ने कोपा अमेरिका जीतने का मौका गंवा दिया. बड़े टूर्नमेंट में यह लगातार तीसरा मौका है जब अर्जेंटीना ने फाइनल मैच में हार का सामना किया हो.

कोपा अमेरिका के पिछले फाइनल में भी अर्जेंटीना को चिली को हाथों हार का सामना करना पड़ा था. फाइनल मुकाबले में चिली की ओर से सिल्वा ने विनिंग पेनल्टी लगाई.

यात्रा से मुझे ऊर्जा मिलती है: अनुषा दांडेकर

बचपन से अभिनय का शौक रखने वाली वीजे, अभिनेत्री, मॉडल और सिंगर अनुषा दांडेकर ने कई फिल्मों, टीवी शो और विज्ञापनों में काम किया. उन्होंने ‘मुंबई मैटिनी’, ‘डेली बेली’,’विरुद्ध’ आदि कई फिल्मों में काम किया. वह एक सिंगर भी हैं और अपनी पहली एल्बम ‘बेटर देन योर एक्स’ के गाने भी उन्होंने गाए हैं. उनका नाम वीजे रणविजय सिंह के साथ जुड़ा, कई सालों तक वे साथ रहे और फिर उनका रिश्ता टूट गया

उसके बाद उनका अफेयर टीवी एक्टर करन कुंद्रा के साथ हुआ और आज तक उन्हीं के साथ हैं. ह्यूमर और एडवेंचर पसंद करने वाली अनुषा को देश विदेश की यात्रा करना, वहां के लोंगों से मिलना, खाने को एन्जॉय करना सब पसंद है. इन दिनों वह थाईलैंड टूरिज्म की ब्रांड एम्बेसेडर बनी हैं. मिलकर बात करना रोचक था. पेश है अंश.

यात्रा आपको कितनी स्फूर्ति देती है?

यात्रा से मुझे नई ऊर्जा मिलती है, क्योंकि ऍम टीवी की वीजे बनने के बाद मैंने काफ़ी ट्रेवलिंग की है, हर बार यात्रा करने के बाद मुझे एक सुकून मिलता है. अपने दैनिक जीवन से निकलकर हर किसी को साल में एक बार कही घूमने जाना आवश्यक है, इससे आपको फिर से काम करने की प्रेरणा मिलती है. इसके अलावा मुझे कभी भी जेट्लेग नहीं होता, जब सब सोते हैं, तब मैं सोती हूं. इसलिए मुझे कही भी कभी भी जाने में आपत्ति नहीं होती.

आप अपनी खूबसूरती को बनाये रखने के लिए क्या करती हैं ?

मुझे जब भूख लगती है, मैं खाना खा लेती हूं, वर्कआउट नियमित करती हूं, खूब सोती हूं. हेल्दी फ़ूड लेती हूं, जिसमें फ्रेश फलों का जूस अवश्य होता है.

आप अगर खुद कही घूमने जाना चाहती हैं, तो अपने साथ किसे लेकर जाना चाहेंगी?

वैसे तो परिवार के साथ जाना अच्छा लगता है पर कई बार हमउम्र के साथ जाना भी अच्छा होता है. इससे आप की पसंद मेल खाती है, आप कुछ ‘एक्स्प्लोर’ कर सकते हैं, मैं अपनी दो फ्रेंड के साथ थाईलैंड गई थी, मैंने वहां खूब मज़े किये. मैंने 13 घंटे लगातार शौपिंग की. ये शायद मेरे बॉयफ्रेंड या परिवार के साथ नहीं हो पाता.

थाईलैंड की सबसे खास बात क्या है?

वहां की संस्कृति, लोग, खाना, शौपिंग बहुत अच्छा है और साथ ही समुद्री तट बहुत साफ़ है. मैं आने वाले समय में मुंबई के समुद्री तट को भी वैसा ही साफ़ सुथरा देखना चाहती हूं. ये जिम्मेदारी यहां के लोगों की है कि वे अपने क्षेत्र को साफ़ रखें. इसके अलावा थाईलैंड की चेंग्मई के मायामॉल में हेंडीक्राफ्ट की काफ़ी सारी चीजें मिली, जिसे वहां  के लोंगों ने अपने हाथ से बनाया हुआ है, जिसे हम दैनिक जीवन में प्रयोग कर सकते हैं. मैंने चोकर, वालेट्स, कपड़े चप्पल आदि ख़रीदे. मुझे हमेशा से शौपिंग मेनिया है.

आप क्या फूडी हैं ?

खाने में ‘सी फ़ूड’ बहुत पसंद है. हर तरह के फ़ूड को मैं एक्स्प्लोर करना पसंद करती हूँ.

आप शादी कब करने वाली हैं ?

अभी इस बारें में सोचा नहीं है, काम में व्यस्त हूं.

खुश रहने का तरीका क्या है ?

जब आप पॉजिटिव रहते हैं, अधिक टेंशन नहीं लेते, अपने रिश्ते के बारे में हो या अपने रिलेशनशिप के बारें में, अधिक नहीं सोचते, सकारात्मक उर्जा चारों तरफ़ फैलाते हैं, वही सफलता की कुंजी है. इसके अलावा आप खुश हैं, जो आप कर रहे हैं वह आपके मन मुताबिक है.

आगे क्या करने वाली हैं?

ब्रांड एम्बेसडर बनने के बाद अभी काफ़ी काम करने हैं. इसके अलावा एम टीवी का नए शो ‘इंडियास नेक्स्ट टॉप मॉडल’ करने वाली हूं.

गले की फांस बने सुब्रमण्यम स्वामी

राजनीति में बडबोलापन तब तक अच्छा लगता है, जब तक उसके निशाने पर विरोधी हों. जब निशाना खुद अपनी ओर होता है तो यह पंसद नहीं आता. बडबोले नेताओं को जब आगे बढाया जाता है, तो वह अपनी लक्ष्मण रेखा भूल जाते हैं. ऐसे नेता गले की फांस बन जाते हैं. सुब्रमण्यम स्वामी जब तक कांग्रेस पर हमला कर रहे थे, तब तक भाजपा नेताओं को वह खूब पसंद आ रहे थे. रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन तक पर किया गया हमला भाजपा नेताओं को पसंद आया.

सोशल मीडिया से लेकर भाजपा के बाकी प्रचारतंत्र में सुब्रमण्यम स्वामी के बयानों को खूब प्रचार दिया जा रहा था. इससे उत्साह में आये सुब्रमण्यम स्वामी अपनी लक्ष्मण रेखा भूल कर सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम पर सवाल उठाने लगे. सुब्रमण्यम स्वामी ने उनको हटाने की मांग कर दी. मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम का मसला सीधे वित्त विभाग से जुडा था. जो भाजपा के नम्बर 2 की हैसियत रखने वाले मंत्री अरुण जेटली से जुडा विभाग है. सुब्रमण्यम स्वामी के बयान को अप्रत्यक्ष रूप से अरुण जेटली पर हमला माना गया.

भाजपा में हो रही इस बयानबाजी ने विरोधी दलों को चुटकी लेने का मौका दे दिया. इससे भाजपा खुद को असहज महसूस करने लगी. खुद अरुण जेटली ने सुब्रमण्यम स्वामी का नाम लिये बिना अनुशासन में रहने और सोच समझ कर बोलने की हिदायत दी. इस बात पर सुब्रमण्यम स्वामी और भी ज्यादा भड़क गये. वह बोले की यदि मैने अनुशासन की उपेक्षा की तो ब्लडबाथ होगा, जिसका मतलब था कि खून की नदी बह जायेगी. ट्विटर के जरीये नेताओं के इस साइबर वार ने भाजपा के अंदर की राजनीति को गरम कर दिया है.

सुब्रमण्यम स्वामी अपने तीखे कटाक्ष के लिये बहुत मशहूर हैं. वह मंत्रियों के पहनावे को लेकर भी व्यंगय कर चुके हैं. सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि ‘भाजपा को अपने विदेश जाने वाले मंत्रियों को पारंपरिक और आधुनिक भारतीय वस्त्र पहनने का निर्देश देना चाहिये. कोट और टाई में वे वेटर लगते है. भाजपा में इस टिप्पणी को सुब्रमण्यम स्वामी-अरुण जेटली ट्विटर वार से जोड कर देखा जा रहा है.

दरअसल सुब्रमण्यम स्वामी के बयानों को विरोधी दल चटपटे अंदाज में लेते हैं, जिससे भाजपा के नेताओं को अच्छा नहीं लगता है. राजनीति के जानकार मानते हैं कि सुब्रमण्यम स्वामी बेलौस अंदाज के नेता हैं. अपने बडबोलेपन के लिये वह चर्चित रहे हैं. अब तक उनके निशाने पर कांग्रेस खासकर गांधी परिवार रहता था. यह भाजपा को पसंद आता था. भाजपा के राज्यसभा सदस्य बनने के बाद सुब्रमण्यम स्वामी पार्टी में अपनी हैसियत बढ़ाना चाहते हैं. इसके लिये बड़े नेताओं पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला कर रहे हैं.

सुब्रमण्यम स्वामी खुद को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और संघ का करीबी भी बताते हैं. अपनी बात को पुख्ता करने के लिये वह दिखाते हैं कि वह जो चाहे वह बोल सकते हैं, उनका कोई कुछ नहीं कर सकता. अरुण जेटली को निशाने पर लेने के कारण भाजपा के लिये मुश्किल आ गई है. भाजपा के कुछ नेता यह मानते हैं कि सुब्रमण्यम स्वामी को दो टूक समझाने की जरूरत आ गई है. सुब्रमण्यम स्वामी अब सत्तारूढ दल के सदस्य है .ऐसे में उनके बयानों को केवल निजी बयान नहीं माना जा सकता. इसे भाजपा में बढ़ रही गुटबाजी के रूप में भी देखा जा रहा है, जो पार्टी की छवि के लिये अच्छा नहीं है.

गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से कैंसर होने की संभावना प्रबल रहती है, क्या यह सच है?

सवाल

मैं 37 साल की घरेलू महिला हूं. 6 वर्षों से मैं गर्भनिरोधक गोलियां खा रही हूं. लेकिन मैं ने सुना है कि इन गोलियों के सेवन से कैंसर होने की संभावना प्रबल रहती है. क्या यह सच है?

जवाब

5 साल से अधिक समय से गर्भनिरोधक गोलियां खाने वाली महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर का खतरा अधिक रहता है. हालांकि इन दिनों गर्भनिरोधक गोलियों में हारमोन की मात्रा कम रखी जाती है, इसलिए इस का खतरा अपेक्षाकृत कम हो गया है. लेकिन जिस महिला के परिवार में ब्रैस्ट कैंसर की पृष्ठभूमि रही हो उसे ऐसी गोलियों का सेवन करने से बचना चाहिए.

 

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करवट बदलने पर मुझे स्तनों में दर्द महसूस होता है, मुझे किस प्रकार की जांच करानी चाहिए?

सवाल

मैं 47 साल की कामकाजी महिला हूं. 42 वर्ष की उम्र में ही मैं रजोनिवृत्त हो चुकी हूं. लेकिन उस के बाद से करवट बदलने पर मुझे स्तनों में दर्द महसूस होता है. मुझे किस प्रकार की जांच करानी चाहिए?

जवाब

इसे मस्टाल्जिया कहा जाता है. स्तनों में दर्द स्तनरोग का कोई भी लक्षण हो सकता है. आप को एक योग्य कैंसर सर्जन से स्तनों की जांच करानी चाहिए और मैमोग्राम की जांच भी करानी चाहिए. यदि आप के स्तन सख्त हैं और आप के सर्जन को जांच के दौरान किसी तरह की गांठ आदि की आशंका है, तो आप के लिए ब्रैस्ट का एमआरआई कराना ज्यादा उपयुक्त होगा.

 

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भावना कंठ: हौसलों से लगे सपनों को पंख

उसने अपने सपनों को तो बचपन में ही पंख लगा लिए थे और जवानी की दहलीज पर कदम रखने के बाद अपने हौसलों और लगन से सपनों को हकीकत की जमीन पर उतार भी लिया. यह बताते हुए देश की पहली महिला फाइटर पायलट भावना कंठ के पिता तेजनारायण कंठ की आंखों में खुशी के आंसू छलछला उठते  हैं. वह फख्र के साथ कहते हैं कि उनकी बेटी की यह आदत है कि वह अपने लक्ष्य को पहले तय कर लेती है और उसके बाद उसे हासिल करने के लिए पूरी लगन और मेहनत के साथ जुट जाती है. हर युवा को ऐसा ही करना चाहिए.

बिहार के दरभंगा जिला के बाउर गांव की रहने वाली भावना जब 8वीं क्लास में पढ़ती थी, तो उसी समय उसने यह तय कर लिया था कि वह पायलट बनेगी. भावना का जन्म बिहार के बरौनी रिफाइनरी टाउनशिप में हुआ था और उन्होंने बरौनी रिफाइनरी डीएवी स्कूल से इंटर की पढ़ाई की. उसके बाद उसने कोटा के विद्या मंदिर स्कूल में दाखिला लिया और इंजीनियरिंग की तैयारी शुरू की. बंगलुरू के बीएमएस कौलेज औफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रीकल से बीटेक की डिग्री ली है. साल 2014 में उसे भारतीय वायुसेना में शार्ट सर्विस कमीशन मिला और उसके बाद उसे फाइटर पायलट की ट्रेनिंग के लिए चुना गया. हैदराबाद के एयरक्राफ्रट एकेडमी में उन्होंने फाइटर प्लेन उड़ाने की ट्रेनिंग में जम कर पसीना बहाया और अपने बचपन के सपनों को अपने हौसलों से सच कर डाला. उन्होंने 150 घंटे तक फाइटर प्लेन उड़ाने की ट्रेनिंग ली है.

भावना के पिता कहते हैं कि भावना को बैंडमिंटन और बौलीबौल खेल का शौक रहा है. साल 2015 में जब वायुसेना में महिला फाइटर पायलट को बहाल करने का रास्ता साफ हुआ, तो भावना के सपनों को पूरा होने के दरवाजे भी खुल गए. भावना के पिता कहते हैं कि बेटी की वजह से उनका नाम भी इतिहास में दर्ज हो गया है. वह बताते हैं कि भावना जब स्कूल में पढ़ती थी तो बार-बार यह सवाल पूछती थी कि लड़कियां एनडीए में क्यों नहीं जाती हैं? पायलट बनने के लिए क्या-क्या करना होता है? पायलट बनने के लिए क्या तैयारियां करनी होती है? इसकी ट्रेनिंग कहां होती है? ऐसे दर्जनों सवालों को जबाव भावना के पिता को देना पड़ता था. बेटी की लगन को देखकर उन्होंने उसे पायलट बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी.

इंडियन औयल कारपौरेशन में इंजीनियर के पद पर तैनात तेजनरायण कंठ उर्फ मोहन कंठ की 3 संतानों में भावना सबसे बड़ी है. वह बचपन से पढ़ाई में बेहतरीन रही. उनकी मां राधा देवी कहती है कि पहले तो यह यकीन ही नहीं हुआ कि उनकी नन्ही परी पफाइटर पायलट बन गई है. उनकी मासूम बेटी भला इतना बड़ा जेट फाइटर प्लेन कैसे उड़ा पाएगी? अब वह स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस के साथ कलाबाजियां करेगी और दुश्मनों के छक्के छुड़ाएगी. भावना की बहन तनुजा कंठ और भाई नीलांबर कंठ भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं.

बिहार की भावना के साथ गुजरात की मोहना सिंह और मध्य प्रदेश की अवनि चतुर्वेदी ने भी पिछले 18 जून को भारतीय वायुसेना में फाइटर प्लेन के पायलट के तौर पर शामिल होकर एक बार फिर यह साबित किया है कि महिलाएं किसी भी रूप में मर्दो से कमतर और कमजोर नहीं हैं. भारत भी अब उन 20 देशों में शामिल हो गया है, जहां महिलाएं फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं. सबसे पहले तुर्की की सबीहा 23 साल की उमर में साल 1936 में पहली महिला फाइटर प्लेन पायलट बनी थीं. वह तुर्की के पहले राष्ट्रपति मुस्तफा कमाल अतातुर्क की गोद ली हुई बेटी थीं. भावना, अवनि और मोहना ने सबीहा के बनाए रास्ते पर मुस्तैदी के साथ अपना कदम बढ़ा दिया है.

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