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सुब्रह्मण्यम स्वामी के तीर

भगवा ब्रिगेड की शह पा कर भारतीय जनता पार्टी के नए राज्यसभा सदस्य सुब्रह्मण्यम स्वामी ने संहारक का रूप धारण कर लिया है. पहले उन्होंने रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को अनफिट कह कर देश की असलियत बताने का जिम्मेदार ठहरा दिया जिस से खिन्न हो कर राजन ने दोबारा गवर्नर न बनने का निर्णय ले लिया. अब, सुब्रह्मण्यम स्वामी केंद्र सरकार के आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मणयन के पीछे पड़ गए हैं. उन्हें गलतबयानी व तथ्यों को गलत ढंग से प्रस्तुत करने का अपराधी बता रहे हैं.

दोनों आर्थिक विशेषज्ञ कितने सही हैं, कितने गलत, यह निर्णय करना न तो आम जनता के वश का है, न ही आम सांसद के. यहां तक कि प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री पक्के तौर पर सुबह्मण्यम के आरोपों को नकार नहीं सकते क्योंकि आर्थिक तथ्य होते ही ऐसे हैं कि हर व्यक्ति उन्हें अपनी दृष्टि से देख सकता है. कौन विशेषज्ञ कितना सफल रहा या कितना असफल, यह फैसला भी करना बहुत कठिन है क्योंकि दुनियाभर में हो रही गतिविधियां देश के फैसलों को प्रभावित करती हैं.

आमतौर पर सरकारें इन मामलों में चुप रहती हैं क्योंकि नेता इन मामलों के बारे में बहुत कम जानते हैं. आज की इकोनौमिक्स की भाषा बहुत दुरूह है, टेढ़ेसीधे ग्राफ समझ नहीं आते. सड़कों पर झंडे जला कर कुरसी पर बैठने वालों के लिए आर्थिक मुद्दे एल्बर्ट आइंसटाइन के सापेक्ष सिद्धांत को पूरी तरह समझने की तरह हैं.

स्वामी इस मामले में माहिर हैं. वे तथ्यों को अपनी दृष्टि से प्रस्तुत कर सकते हैं. वे 20-30 पृष्ठों के लंबे पत्र घंटों में तैयार कर सकते हैं. उन के पास हर बात का तर्क होता है. वे सोनिया पर भी हमला कर सकते हैं और रघुराम राजन व अरविंद सुब्रह्मण्यन पर भी.

केंद्र सरकार स्वामी द्वारा सोनिया पर हमले करने पर तालियां बजाए और दूसरों पर हमला करने से उन्हें रोके, ऐसा न तो संभव है और न स्वामी जैसा अक्खड़ व्यक्ति होने देगा. इस हमले का शिकार कौन होगा, यह बड़ी पहेली है.

खतरनाक हैं फर्जी ‘पोकेमॉन गो’ ऐप्स

'पोकेमॉन गो' गेम की लोकप्रियता को देखते हुए गूगल प्ले स्टोर पर कुछ लोगों ने फर्जी और खतरनाक ऐप्स डाल दिए हैं. ​सॉफ्टवेयर सिक्यॉरिटी कंपनी ESET ने कहा है कि ये ऐप्स फोन के लिए खतरनाक हैं. कंपनी ने बताया कि किसी ने गूगल प्ले स्टोर पर 'पोकेमॉन गो अल्टिमेट' नाम का संदिग्ध ऐप डाल दिया था. इस ऐप को बहुत से लोग डाउनलोड कर चुके हैं.

ESET के मुताबिक यह पहला ऐसा मैलवेयर वाला ऐप है, जो कि फोन की स्क्रीन को लॉक कर देता है. फॉर्च्यून पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक, इस ऐप को डाउलोड करने के बाद जब रन करके इंस्टॉल किया जाता है, 'पोकेमॉन गो' के बजाय 'PI Network' नाम का ऐप इंस्टॉल हो जाता है. जो भी इस ऐप को रन करता है, उसका फोन फ्रीज हो जाता है.

फोन को ठीक करने के लिए बैटरी निकालकर रीबूट करना पड़ता है. रीबूट करने के बाद आपको ऐप्स में 'PI Network' कहीं नहीं मिलेगा. लगेगा कि वह ऐप गायब हो गया, मगर यह बैकग्राउंड में रन करते हुए फेक ऐड क्लिक जेनरेट करता रहता है. अगर आपने भी ऐसा कोई ऐप इंस्टॉल कर लिया है तो उसे तुरंत हटा दें. इसे हटाने के लिए फोन के ऐप्लिकेशन मैनेजर में जाना होगा.

पोकेमॉन गो दरअसल ऑगुमेंटेट रिऐलिटी ऐप है, जो कैमरे और जीपीएस के जरिए काम करता है. इसमें पोकेमॉन नाम के वर्चुअल क्रीचर को पकड़ना होता है, जो डिवाइस के कैमरे पर नजर आता है. यह गेम पूरी दुनिया बहुत पॉप्युलर हो चुका है. यह अभी कुछ ही देशों में रीलीज किया गया है, इसलिए अन्य जगहों के लोग संदिग्ध और फेक ऐप्स इंस्टॉल कर रहे हैं.

ESET ने 'पोकेमनॉ गो' और 'पोकेमॉन गो गाइड ऐंड चीट्स' जैसे नामों वाले कई अन्य खराब ऐप्स भी पाए हैं. अभी तो इन ऐप्स को गूगल प्ले स्टोर से हटा दिया गया है, मगर अभी मिलते-जुलते नामों वाले ऐप्स मौजूद हैं.

'पोकेमॉन गो' गूगल प्ले स्टोर और ऐपल के ऐप स्टोर पर अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फिलिपीन्स, न्यू जीलैंड, ब्रिटेन और जर्मनी में उपलब्ध है. जल्द ही यह भारत, सिंगापुर, ताइवान और इंडोनेशिया में भी लॉन्च होगा.

अभी भी हैसियत से ज्यादा है स्मृति के पास

फिर एक लड़की के हाथ से किताब छीन कर उसे सिलाई मशीन थमा दी गई, ऐसे कई कमेंट्स सोशल मीडिया पर वायरल हुये थे, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रीमण्डल के फेरबदल में बेरहमी युक्त समझदारी दिखाते स्मृति ईरानी से मानव संसाधन विकास मंत्रालय छीनकर उन्हे कपड़ा मंत्रालय थमा दिया था. स्मृति की इस पदानवाति का हर किसी ने स्वागत ही किया था, तो इसकी कई वजहें थीं, जिनमे अहम यह थी कि वे खुद को इस मंत्रालय के काबिल साबित नहीं कर पाईं, उल्टे नाकाबिल हैं यह कई बार उन्होने सिद्ध किया. शायद इसी वजह से रामचन्द्र गुहा ने उन्हें दंभी और घमंडी तक कह डाला था.

दरअसल में यह राय हर उस आम आदमी की थी जो स्मृति ईरानी की अपरिपक्वता को समझ चुका था और यह कह रहा था कि महज उपकृत करने या मोहवश नरेंद्र मोदी को स्मृति को मंत्री नहीं बनाना चाहिए था, जो वामपंथी बुद्धिजीवियों के विरोध पर खिसियानी बिल्ली का सा वरताव करते दिखीं. मोदी जी को अपनी जल्दबाजी और गलती समझ आई, तो एक सधे नेता की तरह उन्होने उसे सुधार भी लिया और स्मृति ईरानी का कद घटाने का मौका चुके नहीं, लेकिन स्मृति ने अपना बचपना, अपरिपक्वता और ठसक नहीं छोड़ी.

अब सीधे सीधे तो पर कुतरे जाने पर कुछ कह नहीं सकती थीं, इसलिए सांकेतिक विरोध करते नए मंत्री को प्रभार देने का प्रोटोकाल भी उन्होंने नहीं निभाया और बौखलाहट में यह बयान और दे बैठीं कि मीडिया अभी भी उनके पीछे भागता है और कुछ तो लोग कहेंगे. लोगों के कुछ बोलने की तो वजह रही नहीं थी, लेकिन नरेंद्र मोदी की खीज, खिन्नता और गुस्सा एक बार फिर बोले, बोले क्या गरजे बरसे, जब उन्होंने स्मृति को छह केबिनेट कमेटियों में से एक में भी नहीं लिया और पार्लियामेंटरी अफेयर्स कमेटी से भी उन्हें चलता कर भद्द पीट दी.

इससे ज्यादा और बेइज्जती करना प्रधानमंत्री की शान के खिलाफ होता. उम्मीद है अब स्मृति को समझ आ रहा होगा कि सियासत का परदा और फ्रेम कम से कम टीवी के पर्दे से तो बहुत बड़े  होते हैं, जिसमें गंभीरता, ज़िम्मेदारी और वजनदारी से काम करना पड़ता है, नहीं तो पर्दे से गायब होने में देर नहीं लगती. अब स्मृति को जो उनके पास छोड़ा गया है, उसे बचाए रखने की कोशिश करनी चाहिए, नहीं तो बात अध जल गगरी छलकत जाये वाली होगी.

तो ये हैं ‘मोहन जोदाड़ो’ का असली सच…?

इन दिनों ‘‘लगान’’ फेम निर्देशक आशुतोष गोवारीकर की नई फिल्म ‘‘मोहन जोदाड़ो’’ की काफी चर्चाएं हो रही हैं. आशुतोष गोवारीकर इस फिल्म को ऐतिहासिक फिल्म और वह भी हड़प्पा सभ्यता व संस्कृति के काल खंड की फिल्म के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. लेकिन इस फिल्म का ट्रेलर आने के बाद से लोग इस फिल्म को लेकर न सिर्फ नाराज हैं, बल्कि कई तरह के सवाल उठा रहे हैं. अब लोगों को अहसास हो रहा है कि आशुतोष गोवारीकर निर्देशित फिल्म ‘‘मोहन जोदाड़ो’’ कोई ऐतिहासिक फिल्म नहीं, बल्कि यह भी आम मुंबईया मसाला फिल्म ही है.

जी हां! फिल्म ‘‘मोहन जोदाड़ो’’ के ट्रेलर से यह साफ प्रतीत होता है कि यह फिल्म हड़प्पा सस्कृति या सभ्यता की बजाय एक प्रेम कहानी वाली फिल्म है. पूरी तरह से आम बौलीवुड मसाला फिल्म है, जिसे ऐतिहासिक होने का तमगा भर दे दिया गया है.

अब देखना यह है कि जैसे जैसे फिल्म के रिलीज का समय नजदीक आता है, वैसे वैस इस फिल्म को लेकर किस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं? इस मसले पर आशुतोष गोवारीकर क्या कहते हैं, यह अभी तक साफ नहीं हुआ है.

वरुण धवन, इफ्तारी और ढिशुम

बौलीवुड में हर कलाकार अपने चेहरे पर कई चेहरे लगाए रखता है. उनके असली चेहरे को भांपना हर किसी के लिए बड़ा मुश्किल होता है. तभी तो लोग अभिनेता वरुण धवन का चेहरा भी नहीं पहचान सके. हाल ही में मुस्लिम बंधुओं का रमजान का माह समाप्त हुआ है. इस बार रमजान के माह में अभिनेता वरुण धवन मुंबई के मुस्लिम बाहुल्य इलाके भिंडी बाजार व मोहम्मद अली रोड पर इफ्तारी करते नजर आए. सिर्फ इतना ही नहीं वरुण धवन ने इस बात को तस्वीरों के साथ जमकर प्रचारित कराया.

वरुण धवन के प्रशंसक इससे वरुण धवन की धर्म निरपेक्षता के कायल हो गए कि वह मुस्लिम समुदाय के साथ रमजान के माह में इफ्तारी भी करते हैं. पर रमजान के माह में मुंबई के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में वरुण धवन के जाने का सच सामने आ गया है. वास्तव में वरुण धवन ने अपने भाई रोहित धवन के निर्देशन में फिल्म ‘‘ढिशुम’’ में सऊदी अरब में रहने वाले पुलिस अफसर जुनैद अंसारी का किरदार निभाया है. इसी के चलते यानी कि अपनी फिल्म के प्रचार के तहत ही वरुण धवन रमजान माह में मुस्लिम समुदाय के साथ इफ्तारी करते नजर आए और उसे प्रचारित भी करवाया.

हाल में जब वरुण धवन से हमारी मुलाकात हुई, तो हमने वरुण धवन से सीधा सवाल कर दिया,‘‘तो क्या फिल्म ‘ढिशुम’ के प्रचार के लिए ही आप पिछले दिनों रमजान माह में भिंडी बाजार व मोहम्मद अली रोड गए थे?

इस पर ‘‘सरिता’’ पत्रिका से वरुण धवन ने कहा-‘‘मैं मुंबई के भिंडी बाजार व मोहम्मद अली रोड घूमने गया था. क्योंकि मेरी जडे़ वहां से हैं. पर यह मेरी फिल्म ‘ढिशुम’ के प्रचार का हिस्सा नहीं था. मैं अभिनेता बनने से पहले बचपन में अक्सर मोहम्मद अली रोड व भिंडी बाजार जाया करता था. जब रमजान शुरू हुआ, तो मुझे लगा कि जाना चाहिए. इसलिए गया था.’’

जेंटस पार्लरों में चलता गरम जिस्म का खेल

बिहार की राजधनी पटना के हर इलाके में जेन्टस पार्लर की भरमार है. चमचमाते और रंग बिरंगे पार्लर मनचले युवकों और मर्दों को खुलेआम न्यौता देते रहते हैं. पार्लर के आस-पास गहरे मेकअप किए इठलाती, बलखाती और मचलती लड़कियां मोबाइल फोन पर बातें करती दिख जाती हैं. अपने परमानेंट कस्टमरों को सेक्सी बातों से रिझाती-पटाती नजर आ ही जाती है. इन पार्लर में हर तरह की ‘सेवा’ दी जाती है.

कुर्सी के हेडरेस्ट के बजाए लड़कियों के सीने पर सिर रख कर शेव बनाने और फेस मसाज का आनंद लीजिए या फिर लड़कियों के गालों पर चिकोटियां काटते हुए मसाज का मजा लीजिए. फेस मसाज, हाफ मसाज से लेकर फुल मसाज की सर्विस हाजिर है. जैसा काम, वैसी फीस. याने पैसा फेंकिए और केवल तमाशा मत देखिए, बल्कि खुद भी तमाशों में शामिल होकर दैहिक सुख का भरपूर आनंद उठाइए.

जेंटस पार्लरों में कस्टमर से मनमाने रेट वसूले जाते हैं. शेव बनाने की फीस 500 से 1000 रूपए हैं. फेस मसाज कराना है तो 1000 से 2000 तक ढीले करने होंगे. हाफ बौडी मसाज के लिए 3000 से 5000 रूपए डाउन करने पड़ेगें और फुल बौडी मसाज की तो रेट नहीं है. जैसा कस्टमर वैसी फीस और सुंदर ‘मसाजर’ को तो मनमाना फीस देने को कस्टमर लाइन लगाए रहते हैं.

पटना के बोरिंग रोड, फ्रेजर रोड, एक्जीविशन रोड, डाकबंगला रोड, कदमकुंआ, पीरबहोर, मौर्यलोक कम्प्लेक्स, स्टेशन रोड, राजा बाजार, कंकड़बाग, एसके नगर आदि इलाकों में जेन्टस या मेंस मसाज पार्लर की भरमार है. पिछले कुछ महीनों से पुलिस की छापामारी से जेंटस पार्लरों का धंधा कुछ मंदा तो हुआ है, पर पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है. थानों के मिलीभगत से जेंटस पार्लरों का खेल चल रहा है.

कुछ साल पहले तक मसाज पार्लरों  में नेपाली और बांग्लादेशी लड़कियों की भरमार थी, पर अब उनकी संख्या कम हुई है और बिहार और उत्तर प्रदेश की ज्यादातर लड़किया उनमें काम कर रही है. इनमें ज्यादातर गरीब घरों की लड़किया ही होती हैं, जो पेट की आग बुझाने के लिए लोगों के सेक्स की आग को बुझाने का धंधा करने को मजबूर हैं.

फ्रेजर रोड के एक पार्लर में काम करने वाली सलमा बताती हैं कि उसका शोहर उसे छोड़ कर मुंबई भाग गया. अपनी और 7 साल की बेटी को पालने के लिए उसे मसाज पार्लर में काम करना पड़ा. उसी तरह पति की मौत के बाद ससुराल वालों की मार-पीट की वजह से रोहतास से भाग कर पटना पहुंची सोनी काम की खोज में बहुत भटकी पर उसे कोई काम नहीं मिला. उसकी सहेली ने उसे जेन्टस पार्लर में काम दिलाया. वह बताती है कि पहले तो उसे मर्दों की सेक्सी आंखों और हरकतों से काफी शर्म आती थी. कई बार यह काम छोड़ने का मन किया, पर मरता क्या न करता. अब इन सबकी आदत हो गई है. सर, सारी, थैंक्यू, मोस्ट बेलकम, नौटी ब्वाय आदि सीख गई हूं. समाज सेवक प्रवीण सिन्हा कहते हैं कि पार्लर में काम करने वाली ज्यादातर लड़कियों और औरतों के पीछे बेबसी और मजबूरी की कहानी होती हैं. कुछेक लड़कियां ही ऐसी होती हैं जो ऐश-मौज करने और मंहगे शौकों को पूरा करने के लिए मसाज करने और जिस्म बेचने का काम करती हैं.

आसपास के लोगों की कई शिकायतों के बाद कभी-कभार पुलिस जागती है और एक साथ कई मसाज पार्लर पर छापामारी कर कई लड़कियों, पार्लर संचालिकाओं और दर्जनों कस्टमरों को पकड़ कर ले जाती है. पुलिस देह का धंधा करने के आरोप में लड़कियों और ग्राहकों की धरपकड़ करती है. 2-3 दिन तो पार्लर पर ताला दिखता है और फिर  पुलिस, कानून और समाज के ठेकेदारों को ठेंगा दिखाते हुए धंधा चालू हो जाता है और बेधड़क चलता रहता है. पता नहीं पुलिस की इस ड्रामेबाजी का मतलब क्या है?

पुलिस के एक आला अफसर कहते हैं कि जिस्मानी धंधे की शिकायत मिलने के बाद पुलिस छापामारी करती है. प्रिवेंशन आफ इममारल ट्रैफिक एक्ट के तहत शिकायतों के बाद छापामारी की जाती है. पार्लर से पकड़ी गई लड़कियां या औरतें यह नहीं बताती हैं कि उन्हें जर्बदस्ती या लालच देकर या टार्चर कर काम कराया जा रहा है. वह तो पुलिस को यही बयान देती है कि वह अपनी मर्जी से काम कर रही है. अगर वह देह बेचने को मजबूर नहीं की गई है तो प्रिवेंशन आफ इममारल ट्रैफिक एक्ट बेमानी हो जाता है. इससे कानून कुछ कर नहीं पाता है.

पुलिस के एक रिटायर्ड औफिसर की मानें तो पार्लर पर छापामारी पुलिस के पैसा उगाही का जरिया भर है. पुलिस को पता है कि ऐसे मसाज पार्लर पर कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती है, वह महज रौब-धौंस दिखा कर ‘वसूली’ कर लड़कियों और संचालकों को छोड़ देती है. जो पार्लर सही समय पर थानों में चढ़ावा नहीं चढ़ाते हैं, वहीं छापामारी भी की जाती है. पटना हाई कोर्ट के वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि जिस्म के धंधे और यौन शोषण की शिकायत पर कानूनी कार्रवाई तभी हो सकती है, जब वह दबाब में हो. जब किसी महिला को जबरन या खरीद-बिक्री के लिए यौन शोषण नहीं किया जा रहा है, तो वह कानूनन वेश्यावृत्ति नहीं माना जाएगा. पार्लर से पकड़ी गई लड़कियां कभी यह नहीं कहती है कि उससे जबरन कोई काम कराया जा रहा है. फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि पार्लर में जिस्मफरोशी का धंधा चलता है?

VIDEO: पाकिस्तान के इस टीवी शो में हिन्दुओं को कहा गया…

कट्टरपंथी, अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का कोई भी मौका नहीं चूकते. चाहे वो 'बीफ' का मुद्दा हो या 'भारत माता की जय' का, ये कट्टरपंथी रह-रह कर अल्पसंख्यकों को याद दिलाते रहते हैं कि आप अल्पसंख्यक है और इस देश में वही मानना पड़ेगा, जो हम कहते हैं. पर अल्पसंख्यकों की ये हालत सिर्फ हमारे देश में ही नहीं है.

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं का भी यही हाल है. पाकिस्तान के Neo TV पर एक कॉमेडी शो 'सवा तीन' में कॉमेडियन 'साजन अब्बास' ने पाकिस्तान में मौजूद हिन्दू अल्पसंख्यकों के लिए जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया है. उसने एक बात तो साफ़ कर दी कि पाकिस्तान में भी अल्पसंख्यकों के हालात भी ज्यादा अच्छी नहीं है.

आज की तनावपूर्ण जिंदगी में हंसी-मज़ाक के लिए कॉमेडी का होना जरुरी है. पर कॉमेडी के नाम पर किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करना कहां तक सही है?

आप भी देखिए पाकिस्तान के इस शो में हिन्दुओं को क्या कहा गया…

 

लड़खड़ाईं स्मृति

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को भोपाल में योग कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी क्योंकि वहां के योगप्रेमी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चीन यात्रा पर थे. लाल परेड मैदान पर आयोजित समारोह में योग के दौरान स्मृति असहज दिखीं और योग क्रियाओं के दौरान 3-4 बार लड़खड़ाईं तो मौजूद नेताओं और अधिकारियों का कुम्भक, रेचक और पूरक सबकुछ मंत्राणी पर केंद्रित हो कर रह गया कि कहीं ऐसा न हो कि वे गिर जाने की हद तक लड़खड़ा जाएं.

सिद्ध हो गया कि योग सियासी शिगूफा भर है और खुद मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य इसे नहीं कर पाते. दरअसल,  योग को लोग अब पूंजीवाद और नई धार्मिक दुकानदारी से जोड़ कर भी देखने लगे हैं, तो बात हैरानी की नहीं. फजीहत से बचने के लिए बेहतर होगा कि आगामी सालों में स्मृति जैसे मंत्रियों को हरिद्वार में योग का प्रशिक्षण दिलवाया जाए.

इस्तीफे के बाद भी

भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी के चेयरमैन एस के राय ने 25 जून को अपना इस्तीफा सरकार को सौंप दिया. इस से इस बात की पुष्टि हुई कि वित्त मंत्रालय में सबकुछ ठीकठाक नहीं है. वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन की तरह शायद एस के राय भी काम करने में खुद को असहज महसूस करने लगे थे, तो आश्चर्य की बात नहीं. हालांकि राय ने इस्तीफे की वजह नहीं बताई है, इसलिए अंदाजा लगाने वालों ने अंदाजा यही लगाया कि कम पगार इस की वजह हो सकती है. एलआईसी के चेयरमैन का वेतन 1.7 लाख रुपए महीने होता है.

एलआईसी की अपनी एक अलग साख है जो बीमा के प्रति जागरूकता पैदा करने का नेक काम कर रही है. ऐसे में शीर्ष स्तर से इस्तीफे उसे प्रभावित करने वाले तो हैं ही, साथ ही यह भी बताते हैं कि निष्कासनों, इस्तीफों और मनमानी नियुक्तियों का दौर अभी जारी रहेगा.

सौभाग्यवती भव

उत्तर प्रदेश में चुनावी उठापटक शुरू हो गई है जिस का बड़ा एहसास उस वक्त भी हुआ जब सपा प्रमुख मुलायम सिंह की बहू अपर्णा ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह  के पैर छुए. रिवाज यही है कि जब कोई विवाहिता पैर छुए तो तो बुजुर्ग उसे सौभाग्यवती बने रहने का आशीर्वाद देते हैं, जो राजनाथ ने भी दिया.

इस चुनावी पैरछुआई के अपने अलग माने हैं. छुटभैयों से ले कर महारथी तक अपने से बड़े नेता के पैर छूते हैं. इस में भी ज्यादा मजा विरोधी पार्टी के वरिष्ठ नेता के पैर छूने में आता है क्योंकि छूने वाले के मन में श्रद्धा कतई नहीं रहती. शिष्टाचार और संस्कार अब उफान मार रहे हैं जिस का फायदा मुलायम कुनबा भी उठाने में चूक नहीं रहा. पैर छूने से बड़ीबड़ी कठिनाइयां टल जाती हैं. वैसे भी, शिष्टाचार और सम्मान का इस से बेहतर तरीका कोई और नहीं जो पैर छुआने वाले का अहम तुष्ट करता है.

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