भगवा ब्रिगेड की शह पा कर भारतीय जनता पार्टी के नए राज्यसभा सदस्य सुब्रह्मण्यम स्वामी ने संहारक का रूप धारण कर लिया है. पहले उन्होंने रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को अनफिट कह कर देश की असलियत बताने का जिम्मेदार ठहरा दिया जिस से खिन्न हो कर राजन ने दोबारा गवर्नर न बनने का निर्णय ले लिया. अब, सुब्रह्मण्यम स्वामी केंद्र सरकार के आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मणयन के पीछे पड़ गए हैं. उन्हें गलतबयानी व तथ्यों को गलत ढंग से प्रस्तुत करने का अपराधी बता रहे हैं.
दोनों आर्थिक विशेषज्ञ कितने सही हैं, कितने गलत, यह निर्णय करना न तो आम जनता के वश का है, न ही आम सांसद के. यहां तक कि प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री पक्के तौर पर सुबह्मण्यम के आरोपों को नकार नहीं सकते क्योंकि आर्थिक तथ्य होते ही ऐसे हैं कि हर व्यक्ति उन्हें अपनी दृष्टि से देख सकता है. कौन विशेषज्ञ कितना सफल रहा या कितना असफल, यह फैसला भी करना बहुत कठिन है क्योंकि दुनियाभर में हो रही गतिविधियां देश के फैसलों को प्रभावित करती हैं.
आमतौर पर सरकारें इन मामलों में चुप रहती हैं क्योंकि नेता इन मामलों के बारे में बहुत कम जानते हैं. आज की इकोनौमिक्स की भाषा बहुत दुरूह है, टेढ़ेसीधे ग्राफ समझ नहीं आते. सड़कों पर झंडे जला कर कुरसी पर बैठने वालों के लिए आर्थिक मुद्दे एल्बर्ट आइंसटाइन के सापेक्ष सिद्धांत को पूरी तरह समझने की तरह हैं.
स्वामी इस मामले में माहिर हैं. वे तथ्यों को अपनी दृष्टि से प्रस्तुत कर सकते हैं. वे 20-30 पृष्ठों के लंबे पत्र घंटों में तैयार कर सकते हैं. उन के पास हर बात का तर्क होता है. वे सोनिया पर भी हमला कर सकते हैं और रघुराम राजन व अरविंद सुब्रह्मण्यन पर भी.
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