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भूकंप की चेतावनी देगा ये ऐप

वैज्ञानिकों ने एक ऐसा एंड्रॉयड एप लॉन्च किया, जो स्मार्टफोन से सूचनाएं इकट्ठा कर संभावित भूकंप का पता लगा सकता है. यह ऐप आपको भविष्य में आने वाले भूकंप के बारे में आगाह करेगा. बर्कले स्थित कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के एक दल की ओर से विकसित 'माइशेक' एप गूगल प्ले स्टोर से हासिल किया जा सकता है.

ऐप उपयोगकर्ता के फोन में काम करता रहता है और फोन में मौजूद एक्सेलरोमीटर हर वक्त कंपन को रिकॉर्ड करता रहता है. यदि यह कंपन भूकंप की प्रकृति का होता है, तो इस कंपन के आंकड़े कैलीफोर्निया स्थित बर्कले सिस्मोलॉजिकल लैबोरेटरी के पास विश्लेषण के लिए चले जाते हैं.

अंग्रेजी भाषा में यह ऐप 12 फरवरी को लॉन्च किया गया था और तब से अब तक दुनियाभर में 1,70,000 लोगों ने इस ऐप को डाउनलोड किया है. बर्कले सिस्मोलॉजिकल लैबोरेटरी के निदेशक और विश्वविद्यालय के पृथ्वी और ग्रह विज्ञान

विभाग में प्रोफेसर और अध्यक्ष रिचर्ड एलेन ने कहा, 'हमें लगता है कि माइशेक से भूकंप की चेतावनी और तीव्र तथा अधिक सटीक हो सकती है.'

फरवरी से अब तक इस ऐप के नेटवर्क ने चिली, अजेंटीना, मेक्सिको, मोरक्को, नेपाल, न्यूजीलैंड, ताईवान, जापान में भूकंप का पता लगाया है. इस नेटवर्क ने 2.5 तीव्रता जैसे छोटे और इक्वोडोर में 16 अप्रैल, 2016 को आए 7.8 तीव्रता जैसे बड़े भूकंपों को दर्ज किया है.

जाओ, उठा कर पटको और देर से आओ

रियो ओलंपिक के लिये भारतीय दल के सदभावना दूत और बालीवुड अभिनेता सलमान खान ने खेल के महाकुंभ में भाग ले रहे खिलाड़ियों को उनकी आधिकारिक जर्सी सौंपने के बाद ब्राजील जाने लेकिन देर से लौटने यानि पदक के साथ वापस आने की शुभकामनाएं दी.

ओलंपिक में जाने वाले खिलाड़ियों के विदाई कार्यक्रम में सलमान और मशहूर संगीत निर्देशक ए आर रहमान विशेष तौर पर उपस्थित थे. उन्होंने भारतीय ओलंपिक संघ और खेल मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में खिलाड़ियों को उनकी जर्सी और गुलदस्ते भेंट किये.

इससे पहले आईओए अध्यक्ष एन रामचंद्रन, महासचिव राजीव मेहता और जिम्नास्ट दीपा करमाकर ने रियो के लिये भारतीय खिलाड़ियों की आधिकारिक जर्सी और ब्लेजर को पेश किया.

जितनी देर से हो आना

सलमान ने समारोह में मौजूद ऐथलीटों को एक और सलाह दी. उन्होंने कहा कि आपसे बस यही कहूंगा कि जा रहे तो वहां से जितनी देर से हो सके वापस लौटना. उनके कहने का मतलब था कि जो खिलाड़ी जितनी देर तक मैदान में टिका रहेगा उसके उतने ही आगे तक जाने की संभावना होगी और वह मेडल जीतेगा.

प्रेशर में नहीं रहना

उन्होंने टेनिस स्टार सानिया मिर्जा से पूछा कि क्या आप प्रेशर में खेलती हैं. इस पर सानिया ने कहा कि हां वह मैदान पर प्रेशर में होती हैं. सलमान ने कहा कि यह अपना-अपना अंदाज होता है कि कोई प्रेशर लेता है और कोई प्रेशर देता है. मगर आपमें से कोई प्रेशर में मत रहना. सवा करोड़ देशवासियों की शुभकामनाएं आपके साथ है.

हाल में अपनी फिल्म सुल्तान में पहलवान की भूमिका निभाने वाले सलमान ने कहा, ‘करोड़ों देशवासियों की प्रार्थनाएं आपके साथ है. अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करो और बाकी उपर वाले (ईश्वर) के उपर छोड़ दो. लेकिन सब कुछ उपर वाले पर ही नहीं छोड़ना.’

जाओ और उठाकर पटकोः सलमान खान

सलमान ने विदाई समारोह में एथलीटों से कहा, 'मैं आप लोगों से पहले भी मिला था तब अच्छा लगा था और जब आज मिल रहा हूं तो भी अच्छा लग रहा है. मेरा आपसे यही कहना है कि अपना बेस्ट करो और रियो से जितना लेकर आ सकते हो, ले आओ.'

सुपर स्टार ने कहा, 'पूरे देश की दुआएं और प्रार्थनाएं आपके साथ हैं, बाकी आप सब ऊपर वाले पर छोड़ दो. मैं मुंबई से यहां इसलिए आया हूं कि आपको प्यार, मोहब्बत और सम्मान वाली विदाई दे सकूं. आप में जीतने की क्षमता है और आप कर सकते हैं. जाओ और उठा उठाकर पटको.'

जब हम ऑस्कर जीत सकते हैं तो ओलंपिक मेडल भी जीतेंगेः रहमान

सलमान के साथ भारतीय दल के दूसरे गुडविल एम्बैसडर और ऑस्कर विजेता संगीतकार ए आर रहमान भी मौजूद थे. रहमान ने कहा, 'आप यह देखकर हैरान हो रहे होंगे कि यहां एक संगीतकार क्यों मौजूद है. मेरा मानना है कि संगीत दिलों को जोड़ता है. मैं पहले सोचता था कि हमें ऑस्कर क्यों नहीं मिलता है लेकिन हमें ऑस्कर मिला. इसी तरह हमारे खिलाड़ी भी ओलंपिक में मेडल जीत सकते हैं.'

रहमान ने खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा, 'दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है. जीतने का एक ही मंत्र है कि लगातार अच्छा प्रदर्शन करो और कभी उम्मीद मत छोड़ो. ओलंपिक में भी हम दुनिया को दिखा सकते हैं कि हम क्या कर सकते हैं.' रहमान ने फिर फिल्म लगान का गाना 'बढ़े चलो बढ़े चलो…' भी गाया.

सलमान और रहमान ने इस अवसर पर मौजूद भारतीय खिलाड़ियों को रियो ओलंपिक की जर्सी और फूलों का गुलदस्ता भेंट किया. शुरुआत टेनिस स्टार सानिया मिर्जा से हुई और फिर यह सिलसिला बैडमिंटन खिलाड़ी पी वी सिंधू, बी सुमित रेड्डी, किदाम्बी श्रीकांत ,पहलवान बबीता, रविंदर खत्री, हरदीप सिंह, साक्षी मलिक, संदीप तोमर और विनेश फोगाट से होता हुआ महिला जिमनास्ट दीपा करमाकर तक पहुंचा.

सानिया की जोड़ीदार प्रार्थना थोंबरे, जूडोका अवतार सिंह, टेबल टेनिस खिलाड़ी मणिका बत्रा, तैराक साजन प्रकाश और शिवानी, कुश्ती कोच जगमिंदर सिंह और कुलदीप सिंह, जिमनास्टिक कोच नंदी, टेबल टेनिस कोच संदीप गुप्ता, बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद, हॉकी खिलाड़ी विकास दाहिया और जूडो कोच यशपाल को भी ओलंपिक जर्सी भेंट की गई.

पहलवान योगेश्वर दत्त कार्यक्रम में नहीं पहुंचे. उनकी अनुपस्थिति से हालांकि सवाल पैदा कर दिये क्योंकि वह योगेश्वर ही थे जिन्होंने सलमान को ओलंपिक दल का दूत बनाने का विरोध किया था.

आईओए सूत्रों के अनुसार योगेश्वर अस्वस्थ होने के कारण कार्यक्रम में नहीं पहुंच पाए. महिला पहलवान बबिता कुमारी ने उनकी जर्सी ली.

इंगलैंड का ईयू से हटना

इंगलैंड द्वारा यूरोपीय यूनियन को छोड़ देने का फैसला दुखदायी है. बड़े सपनों के साथ अलगअलग भाषाओं, अलग तरह के इतिहास, आपसी युद्धों की यादों, अलग रीतिरिवाजों, बहुधर्मी, बहुरंगी बातों को भुला कर एक संयुक्त यूरोप की 26 साल पहले जो कल्पना की गई थी वह अब धराशायी हो गई है. प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने काफी प्रचार किया कि ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से बाहर न जाए पर 51.9 फीसदी जनता ने जनमत संग्रह के तहत फैसला कर के ब्रुसैल्स से मुंह मोड़ लिया.

यूरोपीय यूनियन ने यूरोप में क्रांति ला दी हो, ऐसा कुछ हुआ नहीं. जो यूरोपीय देश यूनियन से बाहर रहे उन्हें लंबीचौड़ी हानि नहीं हुई. बौर्डरों को समाप्त करने से जिन्हें इधर से उधर जाना था, उन्हें आराम हुआ पर चूंकि यूरोपीय यूनियन एक देश, एक संसद, एक राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री वाला मौडल न बना सका, इसलिए उस की सदस्यता हर देश में हमेशा एक राजनीतिक हथियार बनी रही.

जैसे तिलक और टोपी हिंदू और मुसलिम को एक ही करैंसी के बावजूद अलग करते हैं वैसे ही, हर देश में अलगअलग राजनीतिक दलों की उपस्थिति ने वह रूप नहीं बनाया जिस में गाजर और गोभी को अलग से पहचाना न जा सके. वह सिर्फ मिक्स्ड वैजीटेबल जैसा बन पाया और जरा सी आर्थिक तकलीफ होते ही उन में अलगाववाद उभर आया.

ब्रिटेन वैसे भी यूरोप की मुख्य जमीन से अलग था. टनल से उसे जोड़ा गया था पर समुद्र ने उस में अलगाव का खारा पानी मिला रखा था. अंगरेज यूरोपीय कानूनों, उदारता, जरमनी के बढ़ते प्रभाव, ग्रीस, इटली की आर्थिक समस्याओं से डरने लगे थे. उन्हें लगा था कि पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका से भाग कर आ रहे शरणार्थियों का बोझ उन्हें भी उठाना पड़ेगा.

यूरोपीय यूनियन ने शत्रुओं को भी काबू करने में सफलता नहीं पाई. रूस के व्लादिमीर पुतिन हर रोज धमकियों में बात करते. आतंकवादी जब चाहे, जहां चाहे हमला कर रहे थे और यूरोपियन यूनियन, अमेरिका की तरह पश्चिमी एशिया, अफगानिस्तान व पाकिस्तान को सजा देने की हिम्मत नहीं रखता था. ऐसे में सदस्यता का कोई मतलब नहीं रह जाता.

इंगलैंड के यूरोपीय यूनियन छोड़ने के बाद दुनियाभर में छोटे देशों की मांग बढ़ने लगेगी. आज के इंटरनैटी युग में सीमाएं कुछ परेशान करती हैं पर रोकती नहीं हैं. हवाई अड्डों पर वीजा कंट्रोल पर लाइनें लगती हैं पर महीनों नहीं लगतीं. जो यूरोपीय देश यूरोपीय यूनियन से बाहर हैं, वे भी मजे में हैं.

भारत के लिए कठिनाइयां खड़ी हो सकती हैं. अब तक अलग राज्य की ही मांग कभीकभार होती थी, अब अलग देश की मांग भी तूल पकड़ सकती है. कश्मीर, नागालैंड, बोड़ोलैंड, मध्य प्रदेश के माओवादी इलाके ऐसी जगहें हैं जो इंगलैंड के अलग हो कर स्वतंत्र रहने से प्रेरणा ले सकती हैं.

अलग अलग लड़कर कमजोर होंगे दलित

उत्तर प्रदेश में दलितों की लड़ाई लड़ने का दावा कई दल कर रहे हैं. देखने वाली बात यह है कि बहुजन समाज पार्टी से अलग होने के बाद भी यह दल एकजुट होकर एक मंच पर नहीं आ रहे हैं. बसपा नेता मायावती पर करीब करीब एक जैसे आरोप लगाने वाले दलित नेता आर के चौधरी और स्वामी प्रसाद मौर्य अपने अलग अलग दल बनाकर दलितों के भले की बात करने का दावा कर रहे हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने लोकतांत्रिक बहुजन मंच और आरके चौधरी ने बीएस-4 नाम से अपने अपने दल बनाये हैं.

यह दोनो ही नेता बसपा के पुराने नेता हैं. इनकी सोच दलितों के भले की है. यह दलितों की भलाई के काम भी करना चाहते हैं. बसपा से अलग होकर इनके पास यही रास्ता बचा है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब बसपा छोड़ी तो यह बात उठी कि वह सपा, कांग्रेस या भाजपा में जा सकते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी अलग राह चुनते हुये नई पार्टी का गठन किया है. अपनी पार्टी के प्रचार प्रसार के लिये वह बहुत सारी रैलियों और चुनावी दौरों की घोषणा भी कर चुके हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य की राह पर ही चलते हुये आरके चौधरी ने भी अपनी अलग पार्टी बनाई और रैली का ऐलान किया. आरके चौधरी पहले भी अपनी पार्टी बीएस-4 बना चुके थे. जब वह पहली बार बसपा से अलग हुये थे. इस बार आरके चौधरी ने अपनी रैली में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बुलाया है. आरके चौधरी और स्वामी प्रसाद मौर्य एक जैसे काम करने के बाद के बाद भी एक मंच पर एकत्र नहीं हो पा रहे हैं. बात केवल आरके चौधरी और स्वामी प्रसाद मौर्य की नहीं है. दलितों की अगुवाई करने वाले बहुत सारे नेता एक जैसी सोच रखने के बाद भी एकजुट नहीं हो पा रहे हैं. पूरे देश में यही हालात हैं.

बसपा के जनक कांशीराम इस बात को जानते समझते थे. वह पूरे दलित समाज को एक साथ लेकर चलना चाहते थे. कांशीराम के बाद बसपा मायावती की जेबी पार्टी बनकर रह गई. पार्टी में बना अनुशासन तानाशाही में बदल गया. इसकी वजह से ही पुराने बसपा के नेता पार्टी में घुटन का अनुभव करने लगे. इसके पहले भी बसपा से अलग हुये नेता बहुत प्रयास करने के बाद भी अपनी हालत मजबूत नहीं कर पाये, जिसकी वजह से बसपा में तानाशाही बढ़ती गई.

बसपा को लगता है कि दलित केवल चुनाव चिन्ह के नाम पर उसको वोट देगा.अ ब हालात बदल चुके हैं. पिछले कई सालों में चुनाव दर चुनाव यह बात खुलकर सामने आई भी है. इसके बाद भी बसपा के अगुवा इस बात को समझने को तैयार नहीं हैं. बसपा से अलग हुये नेता भले ही अपना भला न कर पाये हों, पर वह बसपा का नुकसान करने में सफल रहे हैं.

1993 में सपा और बसपा एकजुट होकर चुनाव लड़े, तो भाजपा उत्तर प्रदेश से बाहर हो गई. पर जैसे ही सपा-बसपा अलग हुये भाजपा की ताकत बढ़ती गई. 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा बसपा की आपसी कलह को अपने लिये सही मान रही है. बसपा से अलग हुये नेताओं की सोच है कि अगर वह अपने स्तर पर विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर ले गये, तो चुनावों के बाद बेहतर हालत में होकर दूसरे दल से समझौता करेंगे. अलग अलग होकर यह दल भाजपा और सपा से क्या मुकाबला करेंगे, यह चुनाव के बाद समझ आयेगा. दलितों की आपसी लड़ाई का लाभ सपा और भाजपा को जरूर होगा. अब तक जो बसपा मुख्य लड़ाई में दिख रही थी, अब पिछड़ती नजर आ रही है.                    

मूंगफली रहे निरोग

मूंगफली एक तिलहनी फसल है. दुनिया में भारत मूंगफली का सब से ज्यादा उत्पादन करने वाला देश है. लेकिन भारत की औसत उपज काफी कम है. भारत में मूंगफली की फसल गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब, ओडिशा, आंध्र प्रदेश व राजस्थान में सब से ज्यादा उगाई जाती है. इस की खेती खरीफ व गरमी के मौसम में की जाती है. मूंगफली की कम पैदावार के कारणों में सब से बड़ा कारण है इस फसल पर रोगों का प्रकोप. किसान रोगों से फसल को बचा कर मूंगफली की पैदावार बढ़ा सकते हैं. मूंगफली के रोग हैं:

कालर राट

यह रोग ‘एसपरजिल्लस नाइजर’ नामक कवक से होता है. यह रोग सभी इलाकों में पाया जाता है. बीज बोने के बाद किसी भी अवस्था में इस का संक्रमण हो सकता है. यह रोग बोआई के करीब 20 से 40 दिनों के अंदर दिखाई पड़ता है. रोग की शुरुआत में पौधों का मुख्य अक्ष मुरझा जाता है लेकिन जमीन के ऊपरी तनों व जड़ों पर कोई असर दिखाई नहीं देता. कुछ समय बाद मुख्य अक्ष मर जाता है.

जमीन की सतह के साथ एक धब्बा बन जाता है जो कि फफूंद के बीजाणुओं से ढक जाता है, जैसेजैसे रोग आगे बढ़ता है पौधों का कौलर भाग मुरझाने लगता है. पौधों की नीचे वाली पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. कौलर रोट का सब से खास लक्षण सूखे मौसम में तुरंत मुरझा कर सूख जाना है. बाद में रोग लगे भागों

का झड़ना शुरू होता है और फिर पौधे नष्ट हो जाते हैं.

रोकथाम

* साफ व बिना रोग लगे बीज इस्तेमाल करने चाहिए.

* टूटे हुए, कटे हुए और संक्रमित बीजों को निकाल देना चाहिए.

* बीज को अच्छी तरह सुखा कर जमा करना चाहिए.

* बिना रोग लगे अच्छे बीजों की बोआई करनी चाहिए.

* बीजों को बोआई से पहले 2 ग्राम कार्बंडाजिम या

3 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

* कवकनाशी और कीटनाशी दोनों रसायनों से बीजों को उपचारित करने से ज्यादा फायदा होता है.

* फसल चक्र अपनाएं.

* खेत में समय पर सिंचाई करें.

* रोगी पौधों के अवशेषों को खेत में न रहने दें.

टिक्का या पत्तीधब्बा रोग

यह रोग भी कवक से फैलने वाला होता है, जो 2 तरह का होता है:

अगेती धब्बा रोग : यह रोग सरकोस्पोरा अरेचिडीकोला नाम के कवक से होता है. सब से पहले रोग के लक्षण पत्तियों पर धब्बों के रूप में दिखाई पड़ते हैं. फसल बोने के करीब 30 दिनों बाद गोल या किसी भी आकार के धब्बे बनते हैं. पत्ती की ऊपरी सतह पर धब्बे का रंग लाल, भूरा या काला व निचली सतह पर हलका भूरा होता है.

पिछेती धब्बा रोग : यह रोग ‘फीयोआइसेरीयोप्सिस परसोनेटा’ फफूंद से फैलता है. यह रोग ज्यादा नुकसानदायक होता है, क्योंकि इस का फैलाव तेजी से होता है. इस रोग के कारण बने धब्बों का आकार छोटा या गोलाकार और रंग गहरा भूरा या काला होता है. धब्बे पत्तियों के अलावा तने पर भी बनते हैं. रोग जब बढ़ जाता है, तो पत्तियां गिर जाती हैं और पैदावार में कमी आती है.

ये दोनों ही प्रकार के रोग जमीन व बीज से होते हैं. फसल पर रोग शुरू में ही तेजी से बढ़ने लगता है. 25 से 30 डिगरी व अधिक नमी रोग को बढ़ावा देती है. रोग का दूसरा संक्रमण खड़ी फसल में पौधे से पौधे और खेत से दूसरे खेत में हवा, कीट व बारिश के द्वारा होता है.

रोकथाम

* रोग लगी फसल के ठूंठों को फसल कटाई के बाद खेत से निकाल कर गड्ढे में दबा दें या जला दें.

* फसलचक्र अपनाएं.

* खेत के अंदर व आसपास उगे खरपतवारों को समय पर निकालते रहें.

* फसल पर रोग के लक्षण दिखाई देते ही कार्बंडाजिम 0.1 फीसदी या मेंकोजेब 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव करें. जरूरत के हिसाब से 10 से 15 दिनों के अंतर पर छिड़काव दोहराएं.

रोली रोग या किट्ट रोग

यह रोग ‘पक्सीनिया अरेचिडिस’ नामक कवक से होता है. सब से पहले पत्ती की निचली सतह पर संतरे के रंग के छोटेछोटे दाने दिखाई देते हैं. बाद में ये दाने पत्ती की ऊपरी

सतह पर उभर आते हैं. दानों की बनावट गोलाकार होती है. इस रोग के लक्षण पौधे के सभी ऊपरी भागों पर दिखाई देते हैं. रोग लगे पौधों के दाने सिकुड़े व छोटे रह जाते हैं. पैदावार में कमी आती है.

रोकथाम

* फसलचक्र अपनाएं और खेत में लगातार मूंगफली की फसल न लें.

* खेत के आसपास के खरपतवारों को खत्म करें

* रोग के लक्षण दिखाई देते ही मेंकोजेब 0.2 फीसदी या क्लोरोथेलोनिल 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव करें. इस से टिक्का रोग की भी रोकथाम हो जाती है.

कालिका क्षय

यह रोग ‘पी नट बड नेक्रोसिस वायरस’ से होता है व थ्रिप्स कीट से फैलता है. शुरू में इस रोग से नई निकली पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे व धारियां बन जाती हैं. बाद में मुलायम पत्तियां निकलने के बाद ये सूखना शुरू हो जाती हैं. रोग के बढ़ जाने पर पौधे की बढ़वार रुक जाती है व पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है. रोगी पौधे के बीज सिकुड़े व छोटे रह जाते हैं.

रोकथाम

* बोआई देरी से करें (जुलाई के पहले या दूसरे सप्ताह में).

* बीज की मात्रा सामान्य से अधिक रखें.

* कतार से कतार की दूरी सामान्य से कम रखें.

* मूंगफली के साथ बाजरा या ज्वार की मिलीजुली खेती (1:3) करने से रोग में कमी होती है.

* फसल 40 दिनों की हो जाने पर डाइमिथोएट या मोनोक्रोटोफास का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.

* मूंगफली की रोगरोधी किस्मों का इस्तेमाल करें जैसे कादिरी 3, आईसीजीएस 11, आईसीजीवी 86388, आईसीजीबी 86029, टेग 24, बीएसआर 1.

मूंगफली का पुंज

विषाणु रोग

यह रोग ‘पी नट क्लंप वायरस’ के नाम से भी जाना जाता है. इसे विषाणु गुच्छा रोग भी कहते हैं. इस रोग के कारण पौधे बौने हो कर गहरे हरे रंग के गुच्छों में बदल जाते हैं. खेत में रोग के लक्षण शुरू में छोटेछोटे समूहों में दिखते हैं. बाद में पूरे खेत में रोग फैल जाता हैं. यह रोग जमीन में पाए जाने वाले ‘पोलीमिक्सा ग्रेमिनिस’ नामक कवक द्वारा होता है.

रोकथाम

* खरपतवारों को खेत से निकालते रहें.

* बीमारी लगी फसल से मिले बीजों का इस्तेमाल न करें.

* मूंगफली के रोग लगे खेतों में रबी मौसम में सरसों की फसल लगाएं.

* रोग लगे खेतों में मूंगफली बोने से पहले गरमी के मौसम में बाजरे की बोआई करें. बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के आसपास रखें. बोआई के 15 दिनों बाद बाजरे के पौधों को निकाल दें. उस के बाद मूंगफली बोएं.

* मूंगफली बोते समय कापर आक्सीक्लोराइड कवकनाशी का 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बना कर कूड़ों में छिड़काव करें.

पीलिया रोग

यह रोग पोषक तत्त्वों की कमी का रोग है. इस रोग में फसल पीली पड़ जाती है व उपज में कमी आती है.

रोकथाम

जिन खेतों में मूंगफली में पीलिया रोग लगता है, वहां 3 साल में 1 बार बोआई से पहले 250 किलोग्राम गंधक या 25 किलोग्राम हरा कसीस प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. या हरा कसीस के 0.5 फीसदी घोल (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) या गंधक के अम्ल का 1 मिलीलीटर प्रति 1 लीटर पानी में घोल बना कर 2 बार छिड़काव करें. पहला छिड़काव फूल आने से पहले करें व दूसरा फूल आने के बाद करें.

आम की तोड़ाई के बाद रखरखाव

आम एक लजीज फल तो है ही साथ ही किसानों के लिए मोटे मुनाफे का जरीया भी है. ज्यादातर देखने में आता है कि आम को तोड़ने से ले कर खरीदारों तक पहुंचाने पर खास ध्यान नहीं दिया जाता, जिस से एक ओर जहां किसानों की आमदनी बहुत ही कम हो जाती है, वहीं दूसरी ओर फसलों का नुकसान भी बढ़ जाता है. वैसे आम की तोड़ाई के बाद होने वाले कुछ खास कामों में कुछ खास बातों का ध्यान रख कर फसल में होने वाले नुकसान को बचाने के साथ ही साथ किसान आसानी से अपनी आमदनी अच्छीखासी बढ़ा सकते हैं. तोड़ाई का समय : आम की तोड़ाई का सही समय सुबह और शाम होता है, क्योंकि उस समय बाग व फलों का तापमान कम होता है, नतीजतन तोड़े गए फलों की भंडारण कूवत बढ़ जाती है.

तोड़ाई का तरीका : पके फलों की तोड़ाई 8 से 10 मिलीमीटर लंबे डंठल के साथ करनी चाहिए. ऐसा करने से फल पकने पर उस पर दागधब्बे नहीं पड़ते हैं और भंडारण कूवत 2 से 3 दिन बढ़ जाती है. इस के साथ ही तोड़ाई के समय फलों को चोट व खरोंच न लगने दें व उन्हें धूलमिट्टी से बचाएं.

प्रीकूलिंग (पूर्वशीतलन) : पके फल पेड़ से टूटने के बाद खराब होने शुरू हो जाते हैं. इस की सब से खास वजह तापमान का ज्यादा होना है. फलों को तोड़ने के बाद उन की प्रीकूलिंग बहुत जरूरी है. इस से ताजे तोड़े गए फलों की गरमी कम हो जाती है, जिस से पकने का काम धीमा हो जाता है. गरमी के दिनों में फल तोड़ने पर उस के अंदर का तापमान, हवा के तापमान से बहुत अधिक होता है.

खराब होने से बचाने के लिए फलों का तापमान तोड़ने के तुरंत बाद ही लगभग 40 डिगरी फारेनहाइट तक लाना जरूरी होता?है. इस काम को प्रीकूलिंग कहते हैं. यही वजह है कि फलों को रात में या बहुत सुबह तोड़ने की सलाह दी जाती है, जिस से वातावरण की गरमी फल में कम से कम हो. प्रीकूलिंग के काम को बर्फ, पानी, हवा और वैक्यूम के जरीए कर सकते हैं.

तोड़ाई के बाद खास काम

तोड़ाई के बाद होने वाले खास काम इस तरह हैं:

* तोड़ाई के बाद फलों को छायादार जगह पर रखना चाहिए, ताकि उन का भीतरी तापमान कम हो जाए.

* तोड़ाई के बाद फलों को साफ पानी से धो कर छाया में सुखाने के बाद पेटी में बंद करना चाहिए.

* फलों को एथरेल नामक रसायन के 750 पीपीएम (1.8 मिलीलीटर प्रति लीटर) के कुनकुने पानी के घोल में 5 मिनट तक डुबो दें. इस के बाद पूरी तरह से सुखा कर भंडारित करें. इस से सारे फल पीला रंग विकसित कर समान रूप से पकते हैं. इस विधि के जरीए कच्चे फलों को भी समान रूप से पकाया जा सकता है.

छंटाई व ग्रेडिंग : फलों को रंगरूप, गुण व आकार के अनुसार छांट कर अलग करना श्रेणीकरण कहलाता है. खराब या अनचाहे फलों को छांट कर पहले ही अलग कर देना चाहिए. यह पैकिंग से पहले बहुत जरूरी है, क्योंकि पैकिंग के अंदर रोग बहुत तेजी से फैलते हैं.

पैकिंग : पैकिंग के वक्त निम्न जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए:

*  तोड़ाई के बाद फलों को साफ पानी से धो कर छाया में सुखाने के बाद पेटीबंदी करनी चाहिए.

* आम के रोग जैसे ऐंथ्रेक्नोज, स्टेम एंड राट व ब्लैक राट की रोकथाम के लिए फलों को 0.05 फीसदी कार्बंडाजिम के कुनकुने पानी में 5 से 15 मिनट तक डुबो कर रखने के बाद सुखा कर पेटीबंदी करनी चाहिए.

* बक्सों में फलों को रखते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी फल को थोड़ा सा भी नुकसान न हो, नहीं तो फल सड़ कर खत्म हो जाएंगे. फलों की पैकिंग एकदूसरे से सट कर होनी चाहिए, जिस से फल

हिलडुल न सकें. हर फल को डाईफिनील से उपचारित किए हुए टिश्यू पेपर से लपेटना चाहिए. बक्से में ऊपरनीचे किसी मुलायम चीज की तह लगा देनी चाहिए.

* यदि आम को दूसरे देशों में भेजना हो तो पैकिंग नालीदार कार्ड बोर्ड के बक्सों में की जाती है. इन की बगल में हवा के आवागमन के लिए कुछ छेद होते हैं. बक्से के अंदर बहुत से खाने होते हैं. हर खाने में 1 आम रखा जाता है.

लेबलिंग : फलों को अगर सीधे स्थानीय बाजार में न बेचना हो तो तोड़ाई के बाद बक्सों या टोकरियों पर लेबल जरूरी लगाना चाहिए. लेबल पर खासतौर पर फल का नाम, प्रजाति का नाम, श्रेणी, साइज व मात्रा के बारे में लिखा होना चाहिए.

भंडारण : शीत भंडारण विधि में आम की कई प्रजातियों जैसे दशहरी, मल्लिका, आम्रपाली को 12 डिगरी सेंटीग्रेड, लंगड़ा को 14 डिगरी सेंटीग्रेड और चौसा को 8 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान व 85 से 90 फीसदी आर्द्रता पर 3 से 4 हफ्ते तक रखा जा सकता है. दशहरी फलों को 3 फीसदी डाई हाईड्रेटेड कैल्शियम क्लोराइड के घोल में 500 मिलीमीटर वायुमंडलीय दाब पर 5 मिनट के लिए उपचारित कर के कम तापमान (लगभग 12 डिगरी सेंटीग्रेड) में 27 दिनों तक भंडारित कर सकते हैं.

आम की तोड़ाई यंत्र के जरीए

 

हमारे देश का एक खास फल आम है. खास फल होने के बावजूद आम के व्यापार में लगे बागबान कई बार इस से खास आमदनी नहीं कर पाते हैं. इस का सब से बड़ा करण देश के बागबानों का बागबानी की उन्नत तकनीकों से दूर रहता और अनपढ़ होना है. शायद यही कारण है  कि आज भी आम, अमरूद, शहतूत जैसे फलों की तोड़ाई लग्घी या हाथ के भरोसे ही की जाती है.

आम की तोड़ाई लग्घी या हाथ से करने के कारण एक ओर जहां समय और मेहनत की जरूरत पड़ती है, तो वहीं फलों के फटने, चोटिल होने, धूल से सन जाने और चेंपा (आम का विशेष प्रकार का रस) के कारण आम बेहद बदसूरत हो जाता है. इस से आमों की कीमत कम मिलती है और बागबानों या इस काम में लगे लोगों को भारी नुकसान होता है.

आम की परंपरागत तोड़ाई में होने वाले नुकसान से नजात पाने और अधिक मुनाफा बढ़ाने के लिए लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागबानी संस्थान (सिस) के इंजीनियरिंग विभाग की टीम ने आम की तोड़ाई का एक खास यंत्र विकसित किया है. इस यंत्र की  खासीयतें इस प्रकार हैं:

 

* यह पेड़ों पर 4 मीटर ऊंचाई तक पकड़ने, खींचने और डंठल से गुच्छों के कतर लेने के सिद्धांत पर काम करता है.

* यह खासतौर से डिजाइन किए गए 4 मीटर लंबे अल्यूमीनियम पाइप और नायलोन के नेट से बनाया जाता है.

* इस से आम की सतह पर किसी भी प्रकार के नुकसान  होने जैसे फटने, चोटिल होने,

धूलगर्दे से सन जाने और चेंपा (आम का विशेष प्रकार का रस) की गुंजाइश नहीं होती है. इस से फल बहुत ही खूबसूरत और अच्छी कीमत वाले साबित होते हैं.

* इस से 1 घंटे में लगभग 800 फल तोड़े जा सकते हैं, जिस से आम की तोड़ाई में लगने वाली मेहनत घट  जाती है.

* इस यंत्र की खास बनावट के कारण आम की तोड़ाई के समय किसी भी प्रकार की दुर्घटना होने की संभावना नहीं होती है.

* इस यंत्र से कम से कम 2 दिन फलों का टिकाऊपन बढ़ जाता है व तोड़ाई के समय होने वाले नुकसान में 2 से 3 फीसदी तक की कमी हो जाती है.

* इस यंत्र की खरीदारी के लिए आप केंद्रीय उपोष्ण बागबानी संस्थान, लखनऊ के इंजीनियरिंग विभाग के डा. अनिल कुमार वर्मा से उन के मोबाइल नंबर 09935866769 पर

संपर्क कर सकते हैं. संस्थान का पता है : इंजीनियरिंग विभाग, केंद्रीय उपोष्ण बागबानी संस्थान, लखनऊ : 227107.                                                                – मनीष अग्रहरि ठ्ठ

 

 

 

उन्नत खेती करने वालों को मिला ‘फार्म एन फूड अवार्ड’

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले के बांसी में 25 जून को किसान सम्मान समारोह का आयोजन किया गया, जिस में उन्नत खेती करने वाले किसानों को ‘फार्म एन फूड अवार्ड’ से सम्मानित किया गया. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला परियोजना निदेशक प्रदीप पांडेय व विशिष्ठ अतिथि उप कृषि निदेशक डा. राजीव कुमार थे. समारोह के मुख्य अतिथि प्रदीप पांडेय ने कहा कि जिले में किसानों के प्रति ऐसा कार्यक्रम सुखद अनुभूति पैदा कर रहा?है. आने वाले समय में इस तरह के आयोजन समयसमय पर होते रहने चाहिए. इन से किसानों में नया जोश और नई क्रांति का संचार होगा.

विशिष्ठ अतिथि डा. राजीव कुमार ने कहा कि किसान देश की सवा अरब आबादी के पेट भरने का जिम्मा अपने कंधे पर ले कर चल रहे?हैं. ऐसे में उन का सम्मान करना बहुत जरूरी है. उन्होंने कृषि से संबंधित अनेक जानकारियां?भी किसानों को दीं. कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिक डा. एसके तोमर, डा. एके पांडेय, एसके मिश्रा और कार्यक्रम संयोजक मंगेश दुबे के अलावा पूर्व विधायक ईश्वर चंद्र शुक्ला, श्रीधर मिश्र, मृत्युंजय मिश्र व सचिंद्र शुक्ला आदि भी मौजूद थे.

दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन समूह की नामीगिरामी कृषि पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ एक लंबे अरसे से किसानों के हितों के लिए काम कर रही है. इस पत्रिका के जरीए देश के मशूहर कृषि वैज्ञानिक किसानों को खेती की नई से नई जानकारियां मुहैया कराते रहते हैं. अपने जानकारी भरे लेखों के जरीए कृषि वैज्ञानिक किसानों की कदमकदम पर मदद करते हैं. इस के अलावा वे किसानों के तमाम सवालों के जवाब भी ‘फार्म एन फूड’ के जरीए देते हैं. पत्रिका द्वारा किसानों को दिए जाने वाले अवार्ड काफी मशहूर हो रहे हैं.

मोहम्मद कैफ बने छत्तीसगढ़ रणजी टीम के कप्तान

टीम इंडिया के पूर्व आलराउंडर क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को छत्तीसगढ़ की पहली रणजी टीम का कप्तान और मेंटर बनाया गया हैं. वैसे 36 साल के कैफ को कप्तान बनाने का फैसला चौंकाने वाला है क्योंकि वे लगभग 10 साल से भारतीय इंटरनेशनल टीम से बाहर हैं.

टीम का बॉलिंग कोच जयपुर के पी. कृष्णकुमार को बनाया गया है. वर्ष 2002 में लॉर्ड्स में खेली गई नेटवेस्ट ट्रॉफी में भारत-इंग्लैंड के उस मैच को कौन भूल सकता है जिसमें कैफ और युवराज की जोड़ी ने भारत को 6 विकेट से जीत दिलाई थी.

कैफ ने पूर्व कप्तान गांगुली के कप्तानी की तारीफ की. उन्होंने कहा कि गांगुली की कप्तानी के दौरान ही उनके साथी युवराज सिंह, वीरेन्द्र सहवाग, हरभजन सिंह जैसी प्रतिभाएं निकलीं. कैफ का कहना है कि उनका प्यार, पैशन सबकुछ क्रिकेट है और आज वे जो कुछ भी हैं, क्रिकेट की वजह से ही हैं. नेटवेस्ट ट्रॉफी उनके जीवन का टर्निंग वॉइंट साबित रही है.

कैफ ने बताया कि इससे पहले वे दो साल तक आंध्र रणजी टीम से खेल चुके हैं तथा उनका पूरा उद्देश्य यंग टैलेंट को बाहर निकालना है. उन्हें पूरा यकीन है कि अब छत्तीसगढ़ रणजी टीम से भी प्रतिभाएं बाहर निकलेंगी और भारतीय टीम में जगह बनाएंगी.

मोहम्मद कैफ रणजी में 10 हजार रन भी बना चुके हैं. छत्तीसगढ़ स्टेट क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बलदेव सिंह भाटिया ने बताया कि कैफ के साथ ही संघ ने सुलक्षण कुलकर्णी को टीम का कोच बनाया है.

भाटिया ने कहा कि नियम के अनुसार संघ बाहर के तीन खिलाडिय़ों को रख सकता है, उन्होंने मोहम्मद कैफ का ही चुनाव किया. उन्होंने कहा कि संघ यह चाहता था कि ऐसे खिलाड़ी लाएं, जो यहां की रणजी टीम को निखारने के साथ ही छत्तीसगढ़ को अपना समझे और कैफ का चयन इसलिए किया गया है.

कैफ का अब तक क्रिकेट कॅरियर

वर्ष 2000 मे टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण, कुल 13 मैच ही खेले

2002 में इंग्लैंड के खिलाफ पहला अंतरराष्ट्रीय वन डे मैच खेला

2006 में मो. कैफ की कप्तानी में उत्तरप्रदेश रणजी चैम्पियन बना

कुल 125 वनडे मैच खेलकर 2753 रन बनाए हैं

प्रथम श्रेणी के मैचों में 1974 रन बना चुके है

2014-15 में आंध्रप्रदेश टीम की जिम्मेदारी संभाली

जैविक खेती से करें उम्दा उत्पादन ज्यादा कमाई का बढि़या साधन

फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए अंगरेजी खाद व कीड़ेमार दवाओं का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. इन्हें इस्तेमाल करना आसान है,लेकिन महंगी होने व जरूरत से ज्यादा, बारबार डालने से किसानों की जेब कटती है, नकली निकलने पर ये बेअसर रहती हैं. इस के अलावा जानकारी की कमी से भी किसान इन्हें जल्दीजल्दी  व ज्यादा डालते हैं.

देखादेखी व बगैर सोचेसमझे अंगरेजी खाद व कीड़ेमार दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल से हवा, पानी व मिट्टी की हालत दिनोंदिन खराब हो रही है. इन का जहरीला असर फसल में आने से नित नई बीमारियां बढ़ रही हैं. इस कारण से भी जानवर व इनसान ज्यादा बीमार पड़ रहे हैं. लिहाजा इस बारे में सोचना व इस समस्या को सुलझाना बहुत जरूरी है.

रसायनों के बढ़ते जहरीले असर से समूची आबोहवा को बचाने के लिए दुनिया भर में जैविक खेती जैसे कारगर तरीके अपनाए जा रहे हैं. हालांकि बहुत से किसान अंगरेजी खाद व कीड़ेमार दवाओं का इस्तेमाल जरूरी मानते हैं, जबकि इन के बगैर खेती करना मुश्किल नहीं है.

सरकारी कोशिशें

पहाड़ी इलाकों में आज भी अंगरेजी खाद व कीड़ेमार दवाओं का इस्तेमाल बहुत कम होता है. गौरतलब है कि बीते साल 2015 में सिक्किम सरकार ने अंगरेजी खाद व कीटनाशकों पर रोक लगा कर एक आरगेनिक मिशन चलाया था, जो पूरी तरह से सफल रहा. नतीजतन जैविक खेती में सिक्किम आज पूरे देश में एक उदाहरण है. इस के अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व उत्तराखंड राज्य भी जैविक खेती में आगे हैं. सरकार पूरे देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने पर खास जोर दे रही है, लेकिन किसानों के अपनाए बिना यह काम मुमकिन नहीं है. केंद्र सरकार के किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी साल 2015 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक साल 2010-11 में सिर्फ 4 लाख 42 हजार हेक्टेयर रकबा जैविक खेती के तहत था.

साल 2011-12 में बढ़ कर यह 5 लाख 55 हजार हेक्टेयर हो गया था, लेकिन साल 2012-13 में घट कर 5 लाख 4 हजार हेक्टेयर व साल 2013-14 में फिर से बढ़ कर 7 लाख 23 हजार हेक्टेयर हो गया था. यह देश में मौजूद खेती के कुल रकबे का सिर्फ 0.6 फीसदी है, जो कि काफी कम है. लिहाजा इसे बढ़ाना होगा. बीते 15 सालों से केंद्र सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अलग से एक नेशनल प्रोजेक्ट चला रखा है. साल 2004-05 में राष्ट्रीय बागबानी मिशन ने इसे अपनाया. साल 2010-11 में देश के 7 राज्यों में जैविक खेती को बढ़ाने के लिए 400 करोड़ रुपए दिए गए. साल 2012-13 में केंद्र सरकार ने 1 हजार करोड़ रुपए जैविक खेती के लिए रखे थे, जो काफी नहीं हैं. जैविक खेती के प्रचारप्रसार, जागरूता व ट्रेनिंग वगैरह को बढ़ावा देने के लिए साल 2004 से गाजियाबाद में जैविक खेती पर एक नेशनल  सेंटर चल रहा है. बेंगलूरू, भुवनेश्वर, पंचकुला, इंफाल, जबलपुर व नागपुर में उस के 6 रीजनल सेंटर हैं. इन में जैविक खेती को बढ़ाने, जैव तकनीक निकालने, उन्हें किसानों तक पहुंचाने, जैव उर्वरकों की जांचपरख करने जैसे काम होते हैं, लेकिन असलियत यह है कि ज्यादातर

काम सिर्फ कागजों पर दौड़ते हैं. ज्यादातर किसानों को जैविक खेती की स्कीमों की जानकारी नहीं है खेती व बागबानी महकमों के निकम्मे मुलाजिम भी किसानों को जैविक खेती की जानकारी नहीं देते. लिहाजा इतने सारे सरकारी तामझाम का कोई फायदा नजर नहीं आता. साल 2015 से 2018 तक 14 फसलें कवर करते हुए जैविक खेती वाली 50-50 एकड़ जमीन वाले 10 हजार समूह बनाने का मकसद तय किया गया है. ज्यादातर किसानों में शिक्षा व रुचि की कमी है. खासकर छोटी जोत वाले, गरीब किसानों को जैविक खेती का असल मतलब, मकसद, तौरतरीकों व इस से होने वाले फायदों की जानकारी ही नहीं है. ऊपर से बाजार में जैव उर्वरक व जैव कीटनाशियों के नाम पर कबाड़ भी खूब धड़ल्ले बिक रहा है. इस से नुकसान किसानों का व फायदा उसे बनाने व बेचने वालों का होता है.

क्या है जैविक खेती

जैविक कचरे की मदद से जमीन की उपजाऊ ताकत व उपज बढ़ाना जैविक खेती का मकसद है. इस में एक तय समय में सब से पहले किसी खेत को रासायनिक असर से छुटकारा दिला कर उस के कुदरती रूप में बदला जाता है. इस के बाद जैविक काम उपज के कई हिस्सों में पूरे किए जाते हैं. कुल मिला कर जैविक खेती में रसायनों का इस्तेमाल किए बगैर सारा जोर खेती के कुदरती तौरतरीकों पर ही दिया जाता है. खेत की तैयारी, बीज शोधन, बोआई, जमाव बढ़ाने, कीड़े मारने, खरपतवार के सफाए में रसायनों व अंगरेजी खादों का इस्तेमाल कम से कम व आखिरी दौर में बिलकुल नहीं किया जाता. हरी खाद, गोबर की खाद व कंपोस्ट खाद को डाल कर ऐसा फसलचक्र अपनाया जाता है, जिस में जमीन को उपजाऊ बनाने वाली दलहनी फसलें भी शामिल रहती हैं.

रासायनिक उर्वरकों की जगह इफको व कृभको जैसे कारखानों में बने जैव उर्वकर डालें. अपने देश में अब इन की कमी नहीं है. करीब 5 लाख 50 हजार छोटेबड़े निर्माता हैं, जो जैव उर्वरकों का उत्पादन कर रहे हैं. ताजा आंकड़ों के मुताबिक साल 2011-12 में 40325 मीट्रिक टन, साल 2012-13 में 46837 मीट्रिक टन व साल 2013-14 में 65528 मीट्रिक टन जैव उर्वरकों का उत्पादन भारत में हुआ था, जिस के अभी और बढ़ने की उम्मीद है. जैविक खेती में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटपतंगों की रोकथाम भी सुरक्षित तरीकों से की जाती है. उदाहरण के तौर पर लाइट व फैरोमेन ट्रैप, नजदीकी मुख्य फसल से कीड़े खींचने वाली ट्रैप क्राप, ट्राइकोडर्मा कार्ड, ट्राइकोगामा, ब्यूवेरिया बेसियाना फफूंद वगैरह कारगर बायोएजेंट्स के इस्तेमाल व कीड़े खाने वाले पक्षी और परजीवियों वगैरह को बचा, बढ़ा कर फसलों की हिफाजत की जाती है और उपज को सुरक्षित रखा जाता है. इस के अलावा खेत में खरपतवारों का सफाया भी रासायनिक दवाओं से न कर के मशीनों व औजारों के जरीए निराईगुड़ाई वगैरह से ही किया जाता है. रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल किए बिना खेती करने से प्रति हेक्टेयर उपज की लागत व मेहनत थोड़ी बढ़ सकती है, लेकिन उपज बेचते वक्त उन की भरपाई हो जाती है.

आरगैनिक फूड्स से कमाई

आम जनता की औसत आमदनी बढ़ने से खानपान व रहनसहन के तौरतरीके बदले हैं. सेहत के लिए जागरूकता बढ़ी है. अब लोग आरगेनिक फूड प्रोडक्ट्स को पसंद करते हैं. इस वजह से शहरी बाजारों, बड़ेबड़े मौल्स, होटलों व डिपार्टमेंटल स्टोरों वगैरह में अलग से बिकने वाले आरगैनिक फल, सब्जी, मसाले, दालें व अनाज आदि की मांग तेजी से बढ़ रही है. इसी वजह से खेती व डेरी वगैरह के आरगैनिक उत्पादों की कीमत बाजार में आम उपज के मुकाबले ज्यादा मिलती है. लिहाजा किसानों को बाजार के बदलते रुख को पहचान कर समय के अनुसार खेती के तरीकों में बदलाव करना चाहिए. किसान जैविक खेती के जरीए पैदा उम्दा उपज बेच कर अपनी आमदनी में आसानी से इजाफा कर सकते हैं.

प्रचारप्रसार व ट्रेनिंग जरूरी

केंद्र व राज्यों की सरकारों को देश के सभी इलाकों में जैविक खेती के बारे में प्रचारप्रसार कराना चाहिए. ताकि इस में किसानों की दिलचस्पी जागे, जागरूकता व हिस्सेदारी बढ़े. खासकर गांव के इलाकों में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों व सहकारी संस्थाओं वगैरह की मदद इस काम में ली जा सकती है. इस के अलावा जैविक उत्पादों का आसान प्रमाणीकरण और उन की बिक्री का सही इंतजाम किया जाना भी बहुत जरूरी है. हालांकि पिछले दिनों भारतीय कृषि कौशल विकास परिषद, एएससीआई संस्था का गठन किया गया है, लेकिन उस के नतीजे भी सब को साफ दिखाई देने चाहिए. किसानों को जैविक खेती करने की तकनीक समझाने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें आसानी से ट्रेनिंग, पैसा व छूट आदि दूसरी सुविधाएं दी जाएं. हुनर बढ़ाने के मकसद से चल रही प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में खेती से जुड़े 15 कामों की ट्रेनिंग में जैविक खेती भी शामिल है. किसान कौशल विकास के नजदीकी सेंटर पर जा कर जैविक खेती का हुनर सीख सकते हैं. बीएससी (कृषि) पास या डिप्लोमाधारकों को 2 महीने की खास ट्रेनिंग, खेती से जुड़े कामधंधे के लिए कर्ज व उस पर 44 फीसदी तक की छूट दी जा रही है. इस की जानकारी राष्ट्रीय कृषि प्रबंधन संस्थान, हैदराबाद के फोन नंबर 040-24016709 से कर सकते हैं.

क्या करें किसान

दरअसल, 60 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति के बाद से पैदावार तो बेशक बढ़ी, लेकिन रासायनिक उर्वरकों व जहरीले कीटनाशकों के कुप्रभाव आज भी खतरा साबित हो रहे हैं. किसानों के कुदरती दोस्त केंचुए आदि बहुत से जीव खेतों से खत्म हो रहे हैं, जिस से मिट्टी का भुरभुरापन खत्म होता जा रहा है. जमीन की ऊपरी परत कड़ी व खारी हो जाने से पैदावार घटी है. फल, सब्जी व मसालों के स्वाद व अनाज के गुण भी अब पहले जैसे नहीं रह गए हैं. खेती के माहिरों का कहना है कि गरमी में गहरी जुताई जरूर करें, ताकि कीड़े, उन के अंडे व खरपतवार आदि खुदबखुद खत्म हो जाएं और कीटनाशकों की जरूरत ही न पड़े.

वैज्ञानिकों व होशियार किसानों ने पौधों से तैयार कीड़ेमार व घासफूस नाशक अर्क, जैवकीटनाशी और बदबूदार कीटनाशक वगैरह खोजे हैं. मटका खाद, गोमूत्र, नीम पत्ती, निंबौली, मट्ठा, लहसुन व करंज की खली जैसे सभी कारगर नुस्खों को इकट्ठा कर के परखने के बाद सरकार को ऐसी जानकारी छपवा कर कृषि विज्ञान केंद्रों वगैरह के जरीए किसानों तक पहुंचानी चाहिए, ताकि किसान उन्हें खुद बना कर इस्तेमाल कर सकें. अपने इलाके की आबोहवा के अनुसार रोग व कीट प्रतिरोधी किस्में चुनें. फसल की बिजाई हमेशा सही समय से करें. खेती में सुधार व बदलाव करना बेहद जरूरी है. खेत साफ रखें. रोगी व कीड़ों के असर वाले पौधे तुरंत हटा कर नष्ट कर दें. जानवरों के मलमूत्र व सड़ेगले कार्बनिक पदार्थों के लिहाज से मुरगी, मछली व पशु पालना जैविक खेती में मददगार साबित होता है.

जैविक खेती के फायदे

जमीन को उपजाऊ बनाए रखने के लिए जरूरी है कि रसायनों का इस्तेमाल कम से कम या बिल्कुल भी न हो. उन की जगह किसान नाडेप खाद, चीनी मिलों से हासिल सड़ी हुई प्रेसमड, नीम, सरसों, नारियल व मूंगफली की खली या वर्मी कंपोस्ट खाद डाल कर जैविक खेती करें, ताकि खेतों की मिट्टी में पानी को ज्यादा वक्त तक बनाए रखने की कूवत भी बनी रहे. साथ ही साथ इस से जल, जंगल व जमीन सुरक्षित रह सकेंगे. उपज की क्वालिटी अच्छी होगी, जिस से किसानों की कमाई बढ़ेगी. जैविक खेती करने वाले किसान यदि अपने उत्पादों का रजिस्ट्रेशन कृषि एवं प्रसंस्कृत उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, एपीडा, नई दिल्ली में करा लें तो उन्हें खुद अपनी उपज को अच्छी कीमत पर बड़े व अमीर देशों को सीधे भेजने का मौका मिल सकता है. अब वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश में जैविक खेती व आरगैनिक फूड्स का बोलबाला होगा और किसानों को उन की उपज की वाजिब कीमत मिलेगी. बशर्ते किसान जैविक खेती करने की पहल करें. जैविक खेती के बारे में सलाहमशविरा या ज्यादा जानकारी इस पते पर ली जा सकती है.

निदेशक, राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र, सेक्टर 19, हापुड़ रोड, कमला नेहरू नगर, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश. फोन नंबर : 0120-2764906, 2764212.

जैविक खेती को बढ़ावा

केंद्र सरकार के किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी साल 2015 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक चलाए जा रहे 8 मिशनों में राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन, एनएमएसए सब से अहम है. इस के तहत जैविक खेती को खास बढ़ावा देने के लिए नीचे लिखे कामों के लिए राज्य सरकारों के जरीए पैसे से मदद की जाती है. लिहाजा जरूरत आगे आ कर इन से भरपूर फायदा उठाने की है.

सब्जीमंडी या खेती के कचरे से कंपोस्ट बनाने, नई तकनीक से तरल जैव उर्वरक या जैव कीटनाशी बनाने की यूनिट लगाने, तैयार जैव उर्वरक या जैव कीटनाशी की जांच करने वाली लैब लगाने, मौजूदा लैब्स को मजबूत करने, खेतों में जैविक सामान बढ़ाने, सामूहिक रूप से जैविक खेती करने, आनलाइन भागीदारी गारंटी सिस्टम चलाने, जैविक गांव अपनाने, ट्रेनिंग देने, प्रदर्शन करने, जैविक पैकेजों के विकास पर खोजबीन करने और जैविक खेती के लिए  रिसर्च व ट्रेनिंग संस्थान चलाने के लिए पैसे से मदद मुहैया कराई जाती है.

प्रमाणीकरण

जैविक खेती में उत्पादों का प्रमाणीकरण कराना सब से अहम कड़ी है. सारी मेहनत का दारोमदार इसी पर टिका रहता है. सर्टीफिकेशन ही असल पहचान है, जिस से पता चलता है कि कौन सा उत्पाद वाकई आरगैनिक है. लिहाजा जैविक खेती करने वाले किसानों को इस के मानकों व नियमों वगैरह की जानकारी होना जरूरी है. भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय जैविक उत्पाद कार्यक्रम एनपीओपी के तहत वाणिज्य विभाग द्वारा आरगैनिक इंडिया के नाम से बनाई नियमावली में सारे मानक व नियम आदि दिए गए हैं.

यह नियमावली और जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण करने वाली 24 संस्थाओं की सूची राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र, एनसीओएफ, गाजियाबाद की वैबसाइट ठ्ठष्शद्घ.स्रड्डष्ठ्ठद्गह्ल.ठ्ठद्बष्.द्बठ्ठ से डाउनलोड की जा सकती है. इस के अतिरिक्त पिछले दिनों सरकार ने भागीदारी गारंटी योजना पीजीएस चालू की है. इस के तहत जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण पीजीएस ग्रीन व पीजीएस आरगैनिक के रूप में किया जाता है. इस नई स्कीम की जानकारी भी राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र की साइट से ली जा सकती है. 

 

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