नशे की बढ़ती आदत पर आंख मूंद लेने से काम नहीं चलेगा. शाहिद कपूर, आलिया भट्ट अभिनीत अनुराग कश्यप की फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ चाहे अच्छी हो या बुरी, इस समस्या को उठाती है, तो पंजाब की भाजपा समर्थक सरकार को आलोचना से बचाने के लिए इसे काटनेछांटने की सर्टिफिकेशन बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी की कोशिशों को मुंबई उच्च न्यायालय ने रोक कर चिंतकों को राहत दी है. जब से देश का धार्मिक माहौल गरमाया है, संस्कृति, संस्कार, परंपरा का व्यापार चमक रहा है और जो भी इस के खिलाफ कुछ बोलता या करता है या इस की पोल खोलता है उस का जबरन मुंह बंद करने की कोशिश की जा रही है. न्यायालय आमतौर पर सरकारों पर कंट्रोल कर रहे हैं पर न्यायिक प्रक्रिया महंगी और समय लेने वाली है और इस की बड़ी कीमत देनी पड़ती है.
‘उड़ता पंजाब’ पर चली लगभग 70 कैंचियों में से केवल एक को रख कर मुंबई उच्च न्यायालय ने भले ही सरकार को जताने की कोशिश की हो कि देश पर एक सोच का राज नहीं है, पर सच यह है कि यह सरकार और सरकार द्वारा नियंत्रित संस्थाएं इस प्रकार के काम करती रहेंगी, क्योंकि यह स्पष्ट है कि आम नागरिक सही होते हुए भी सरकार से हर बार पूरी तरह टक्कर नहीं ले सकता. हर छोटे मामले पर उच्च न्यायालय में जाना और पूरे मीडिया को अपनी तरफ कर लेना संभव नहीं है. नशे के खिलाफ फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ बनी तो है पर फिल्म वाले भी दूध के धुले नहीं हैं. आजकल फिल्मों में धड़ल्ले से शराब पीने की आदत डलवाई जा रही है. पक्की बात है कि शराब के 4-5 बड़े निर्माता करोड़ों रुपए इन फिल्म निर्माताओं को दे रहे हैं ताकि फिल्मों में शराब पीते ऐसे दिखाया जाए मानो पानी पिया जा रहा हो. पहले भी पार्टियों में शराब पीते दिखाया जाता था पर केवल खलनायक कैरेक्टरों द्वारा. अब हीरोइनें पीती हैं और कुछ मामलों में मांएं भी पीती दिखाई जा रही हैं.
नशा शराब का हो या मादक दवाओं का शुरुआत तो वहीं से होती है. पंजाब तो वह राज्य है जहां हमेशा से 6 नदियां बहती हैं, छठी शराब की. अब शराब की जगह मादक दवाओं ने ले ली है और पंजाब का हर घर ही नहीं, हर बच्चा इस का आदी हो गया है. जैसे अंगरेजों ने चीनियों को अफीमची बनाया था (हालांकि वे मात्र 5-6 फीसदी को अफीम बेच पाए थे) वैसे ही पंजाब की पूरी सरकारी फौज मादक दवाओं के लेनदेन की गंगा में नहा रही है और अपने अगले सात जन्मों के लायक पैसा जमा कर रही है. पंजाब जिस पर देश को पहले गर्व होता था आज बीमार है और इस बीमारी पर अच्छी, बुरी बकवास कैसी भी फिल्में बननी चाहिए, कहानियां लिखी जानी चाहिए.
उच्च न्यायालय ने पंजाब सरकार की इज्जत बचाने की कोशिश पर पानी फेर कुछ तो दवा गटर में डाली है.
पिछले दिनों कृषि पर कर लगाए जाने की खबरों से किसानों में खलबली सी मच गई थी, मगर अब इन खबरों पर विराम लगाते हुए कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा है कि ऐसा करने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कतई कोई इरादा नहीं है. किसानों के हितों को सब से महत्त्वपूर्ण बताते हुए राधामोहन सिंह ने कहा कि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य उम्मीदों से भी ज्यादा बढ़ाया जाएगा.
प्रधानमंत्री की मृदा (मिट्टी) परीक्षण योजना को कामयाबी का जामा पहनाने में जुटे राधामोहन सिंह ने कहा कि ऐसी मशीन बनाई गई है, जिस के जरीए किसान खुद अपनी मिट्टी की जांच कर सकेंगे. यह कारगर मशीन अगले साल से किसानों को मिलनी शुरू हो जाएगी.
दलहन का उत्पादन बढ़ाने की कोशिश के तहत एक खास ऐलान करते हुए राधामोहन सिंह ने कहा कि देश में 100 से ज्यादा जगहों पर दलहन के बीज हब बनाए जाएंगे. कृषि मंत्री ने बताया कि खेती की बेहतरी के लिए इस साल देश भर में 50 नए ‘कृषि विज्ञान केंद्र’ खोलने का लक्ष्य रखा गया है.
सूखे की मार के बावजूद खेती की पैदावार में कमी न होने पर खुशी जाहिर करते हुए राधामोहन सिंह ने किसानों का शुक्रिया अदा किया. इस के लिए उन्होंने देश के कृषि वैज्ञानिकों का भी आभार जताया. उन्होंने कहा कि देश के माहिर कृषि वैज्ञानिकों ने उन्नत किस्म के उम्दा बीज तैयार किए हैं, जो कम पानी और सूखे वाले इलाकों में भी अच्छी पैदावार दे रहे हैं.
राधामोहन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना एक बेहद महत्त्वकांक्षी योजना है. पंजाब को छोड़ कर देश के 20 खास सूबों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू कर दिया है.
राधामोहन सिंह ने कहा कि इनसानों द्वारा पैदा की गई मुसीबतों और कुदरती आपदाओं के असर को कम करने की खातिर कई कदम उठाए गए हैं. उम्मीद है कि इन कदमों का बेहतर नतीजा जल्द ही सामने आएगा.
बीते 2 साल की कारगुजारियों का खुलासा करते हुए राधामोहन सिंह ने कहा कि कामकाज की रफ्तार और सरकार का मिशन काबिलेगौर है. विकास की नईनई योजनाएं बनाई गई हैं. कृषि उत्पाद का लागत मूल्य घटाना और किसानों की आमदनी बढ़ाना, सरकार के लिए बड़ी चुनौतियां थीं. इन से निबटने के लिए सरकार ने कारगर कोशिशें की हैं.
किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए सरकार कृषि के साथ उस से जुड़े उद्यमों को खास तरजीह दे रही है. कृषि मंत्री का कहना है कि अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए किसान खेती के साथसाथ पशुपालन, मधुमक्खीपालन और मत्स्यपालन जैसे काम भी कर सकते हैं. किसानों को रियायती दरों पर पर्याप्त कर्ज भी मुहैया कराया जा रहा है.
आज के प्रतियोगी युग में अमूमन विद्यार्थी पहले से ही अपना लक्ष्य निर्धारित कर के चलते हैं और उसी के अनुसार कोर्स का चयन भी करते हैं, लेकिन मनचाहे कोर्स में ऐडमिशन के लिए, प्रतियोगी परीक्षा में अच्छी रैंक न आने के चलते वांछित कोर्स में ऐडमिशन से वंचित रह जाते हैं. ऐसे में अधिकतर विद्यार्थी अपना मन बदल कर किसी दूसरे कोर्स या क्षेत्र का रुख कर लेते हैं, लेकिन कुछ इरादे के पक्के या अपनी राह न बदलने की चाह रखने वाले विद्यार्थी एक साल ड्रौप कर मनचाहा कोर्स पाना चाहते हैं. उन का मानना है कि वे इस बार ड्रौप कर 12वीं में अगले वर्ष जरूरत अनुसार अच्छे अंक लाएंगे तो उन्हें मनचाहा कोर्स अवश्य मिल जाएगा.
मन बना कर किसी कोर्स के लिए तैयार होना व अपना लक्ष्य निर्धारित करना बुरा नहीं. उस के लिए एक बार असफल रहने पर दोबारा प्रयास भी सराहनीय कदम है, लेकिन तभी जब विद्यार्थी लगन व मेहनत से पिछले वर्ष से भी अधिक पढ़ाई करें. देखने में आता है कि अधिकतर इस तरह के विद्यार्थी ड्रौप तो कर लेते हैं पर अगले वर्ष फिर उसी लचीलेपन से तैयारी करते हैं व पूरे वर्ष का समय मिलने के बावजूद आज नहीं कल जैसी बातों पर चलते हुए आखिर में उसी स्तर की तैयारी तक सीमित रह जाते हैं जैसी पिछले वर्ष की थी. नतीजा वही ढाक के तीन पात. कभीकभी तो वे पिछले वर्ष से भी कम अंक ला कर अपना माथा पीट लेते हैं. ऐसे में उन के पास सिवा पछतावे के कुछ नहीं रहता. ऐसे विद्यार्थी जो साल ड्रौप कर रहे हैं उन के सामने पिछले वर्ष वाला वही कोर्स है, उन्होंने तैयारी भी कर रखी है. नोट्स भी उन के पास हैं, टीचर्स, पढ़ाई व ऐग्जाम के पैटर्न से भी वे वाकिफ हैं, तो फिर कमी क्यों, बल्कि उन्हें तो ड्रौप कर टौप करना चाहिए.
ड्रौप करना साल की बरबादी न बने
जब विद्यार्थी यह सोच कर ड्रौप करते हैं कि अगले वर्ष हम इस से भी अच्छा प्रदर्शन कर के दिखाएंगे ताकि अपने मनचाहे लक्ष्य को पा सकें, तो उन्हें पिछले वर्ष से अच्छी तैयारी करनी होगी ताकि ड्रौप करने का फायदा हो. ऐसा न हो कि पिछले वर्ष की भांति फिर वैसी ही तैयारी करें और अपना मनचाहा लक्ष्य पाने से वंचित रह जाएं. ऐसे में ड्रौप करना उज्ज्वल भविष्य की राह खोलने के बजाय साल बरबादी का ही कारण बनेगा, जिस का आप को हमेशा मलाल रहेगा.
कमियों को पहचानें
अगर आप ने ड्रौप किया है तो यह तो आप जानते ही हैं कि उस का कारण क्या है. किस विषय में आप पिछड़ गए थे या किस कारण आप को मनचाहा कोर्स या रिजल्ट नहीं मिल पाया, तो आप को अपना ध्यान उस विषय पर केंद्रित करने की ज्यादा जरूरत है. साथ ही उस विषय में आप के अंक किस कारण कम आए यह भी जानने की आवश्यकता है. इस के साथ यह भी जरूरी है कि उस विषय की कमियां दूर करते हुए कहीं आप अन्य विषयों में यह सोच कर लापरवाह न हो जाएं कि इन में तो पिछले वर्ष अच्छे अंक आए थे, इसलिए इन में कम तैयारी भी चलेगी. आप का ऐसा सोचना घातक सिद्ध हो सकता है. कहीं ऐसा न हो जिस विषय में आप के कम अंक आए थे उस में तो टौप पर पहुंच जाएं और बाकियों में फिसड्डी बन जाएं. ऐसे में ड्रौप का क्या फायदा? अत: पिछले वर्ष की अपनी कमियों को पहचानें और इस वर्ष तैयारी करते हुए उन कमियों को दूर करें व ड्रौप को टौप में बदलें.
कोर्स पुराना तैयारी नई
अमूमन पहले तो मनचाहा पाने की चाह में अधिक मेहनत व पढ़ाई का संकल्प ले विद्यार्थी ड्रौप कर लेते हैं, फिर यह सोच कर कि वही कोर्स, वही किताबें तैयारी से मुंह मोड़ यह सोचते हैं कि पढ़ा हुआ ही तो है कर लेंगे, जबकि भले कोर्स वही पुराना है लेकिन तैयारी तो आप नए सिरे से कर रहे हैं, तभी तो पिछले वर्ष रह गई कमियों को दूर कर अच्छे अंक ला पाएंगे. अब तो आप हर चीज से अवगत हैं, कोर्स की हर बारीकी आप के सामने है, तो क्यों न पुराने कोर्स की नए सिरे से तैयारी करें. नोट्स बनाएं और उन बिंदुओं को भी समझें जिन्हें पिछली बार छोड़ बैठे थे. तभी तो होगा ड्रौप का फायदा.
प्रिपरेशन पैटर्न बदलें
पिछले वर्ष ऐग्जाम की तैयारी का आप का पैटर्न कैसा था इस पर गौर करें और उस के कमजोर बिंदुओं को दूर करने की सोचें. पिछले वर्ष आप को प्रिपरेशन का समय ऐग्जाम के समय ही मिला, जबकि अब आप ऐग्जाम व उस के पैटर्न से भलीभांतिपरिचित हैं. इसलिए शुरू से ही प्रिपरेशन करें व पिछले वर्ष के पैटर्न को बदल, टाइमटेबल को इस तरह बनाएं कि खेलने, खाने के साथसाथ पढ़ाई व प्रिपरेशन भी होती रहे और अंत में आप टौपर बन कर निकलें.
फेलियर नहीं हैं आप
ड्रौप कर पुरानी कक्षा में दोबारा बैठने का मतलब यह कतई नहीं कि आप फेल हो कक्षा में बैठे हैं, बल्कि अपने रिजल्ट के सुधार से है. अत: इस बात का खयाल रखें कि भले आप को अपने जूनियर्स के साथ कक्षा में बैठना है लेकिन आप किसी रूप में फेलियर नहीं हैं. इस से आप का मनोबल ऊंचा रहेगा. ऐग्जाम पैटर्न या तैयारी संबंधी बातों पर अगर नए सहपाठी आप से चर्चा करें तो बेहिचक उन्हें गाइड करें. इस से आप का भी परीक्षा में नतीजे को बेहतर करने के प्रति रुझान बढ़ेगा. ध्यान रहे इस समय आप के उत्साह में कमी नहीं आनी चाहिए.
ड्रौप करने पर निम्न बातों का भी ध्यान रखें :
– अपनी पिछले वर्ष की पढ़ाई व तैयारी पर गौर करें व पिछली कमियां दूर कर तैयारी करें.
– आप के जिस विषय में कम अंक आए उस में क्या कमी रही, इस बार उसे दूर करने का प्रयास करें.
– हर प्रश्न का उत्तर लिख कर याद करें. प्रिपरेशन के बाद ऐसा समझें कि आप परीक्षा दे रहे हैं. अत: किताब, नोट्स आदि बंद कर कोरे कागज पर प्रश्न लिखें और खुद उस का उत्तर लिखें. इस से जहां लिखने की प्रैक्टिस होगी वहीं तैयारी भी होगी.
– हर विषय की तैयारी टाइमटेबल के अनुसार करें.
– ड्रौप करने में सीधे ऐग्जाम की तैयारी ही शुरू हो जाती है. इस हिसाब से आप के पास पढ़ाई के बजाय परीक्षा की तैयारी का ही पूरा वर्ष है, तो जम कर तैयारी कर सकते हैं.
– यह सोच कर तैयारी न करें कि पिछले वर्ष सब पढ़ लिया है, बल्कि नए सिरे से तैयारी करें.
इस प्रकार कुछ बातों का खयाल रख अगर आप ड्रौप ईयर में तैयारी करेंगे तो न केवल अपने वांछित विषय के अंकों में सुधार कर पाएंगे बल्कि अन्य विषयों में भी अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे. इस प्रकार आप ड्रौप को टौप में बदलने में कामयाब होंगे.
आरती के मोबाइल की घंटी बजी, अनजान नंबर देख कर उस ने सोचा कि हो सकता है कोई जानकार हो, अत: कौल अटैंड की, ‘‘हैलो.’’ दूसरी तरफ से एक मर्दाना आवाज आई ‘‘हैलो. मुझे आकाश से बात करनी है.’’ आरती के लिए फोनकर्ता बिलकुल अनजान था. वह किसी आकाश को नहीं जानती थी. लिहाजा, उसे कहना पड़ा, ‘‘सौरी, रौंग नंबर.’’
‘‘कोई बात नहीं, हम आप से ही बात कर लेते हैं. हमें आप का नाम तो नहीं पता पर आप की आवाज बहुत मधुर है. प्लीज, फोन मत रखिएगा.’’
‘‘यह क्या बदतमीजी है, कहा न रौंग नंबर है,’’ आरती सकपकाई.
‘‘प्लीज, आप इसे राइट नंबर बना दीजिए न,’’ उधर से आवाज आई. इस पर गुस्से से आरती ने फोन काट दिया. इस के बाद उस के पास अकसर इसी नंबर से फोन आने लगे. फोनकर्ता उस की तारीफ करता और उस के सामने दोस्ती का प्रस्ताव भी रखता. आरती ने तंग आ कर इस बात से अपने परिजनों को अवगत कराया. आरती के परिजनों ने उसे आड़े हाथों लिया और पुलिस की धमकी दी, तब कहीं छुटकारा मिला. आरती समझदार थी जो उस ने पहले ही अपने कदमों को संभाल लिया. टैक्नोलौजी के इस युग में कुछ शातिरों ने मिस्ड कौल को हथियार बना लिया है. ऐसे गिरोह सक्रिय हैं जो मिस्ड व रौंग कौल दे कर भोलीभाली लड़कियों को पहले अपने जाल में फंसाते हैं फिर उन का गलत इस्तेमाल करते हैं.
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के शिक्षित परिवार की पूजा को मिस्ड कौल के जाल में फंसने की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी. बीए की पढ़ाई कर रही पूजा के मोबाइल पर रौंग कौल आई. कौल कोई युवक कर रहा था. इस के बाद अकसर उसे ऐसी कौल्स आने लगीं. अब पूजा को भी युवक से बातें करना अच्छा लगने लगा. यह सिलसिला दोस्ती से शुरू हो कर प्यार तक जा पहुंचा. पूजा ने आंखें बंद कर उस युवक पर विश्वास कर लिया.
युवक मेरठ का रहने वाला था. उस की बातों में आ कर एक दिन पूजा अपना घर छोड़ कर उस के पास चली आई. युवक ने उसे एक होटल में ठहराया और शादी का वादा कर के उस का शारीरिक शोषण किया, लेकिन ऐनवक्त पर विवाह करने से मना कर दिया. पूजा को एहसास हो गया कि वह बुरी तरह छली गई है. पूजा के परिजन भी उसे ढूंढ़ते हुए वहां पहुंच गए. परिवार को धोखा देने का उसे काफी पछतावा हुआ तो उस ने जहरीला पदार्थ खा कर आत्महत्या कर ली. हालांकि उस का यह कदम गलत था, इस कायरता के बजाय उसे युवक को सबक सिखाना चाहिए था.
गाजियाबाद की रहने वाली 9वीं की छात्रा दीपा बमुश्किल ऐसे गैंग के चंगुल से निकली. दीपा अकेले ट्यूशन आतीजाती थी. बेटी संपर्क में रहे इसलिए परिजनों ने उसे मोबाइल दे दिया. दीपा के मोबाइल पर अज्ञात नंबर से मिस्ड कौल आई. 2-3 बार ऐसा हुआ, तो दीपा ने पलट कर कौल कर दी. यही दीपा की सब से बड़ी गलती थी. एक युवक ने उसे अपनी दिलकश बातों के जाल में उलझा लिया. उस युवक ने दीपा को रंगीन सपने दिखाए और वह उन में खोती चली गई. फोन पर ही दोस्ती व प्यारभरी बातें हुईं. 2 महीने के इस खेल के बाद जब उस शातिर युवक को पूरा विश्वास हो गया कि दीपा अब उस के कहे अनुसार चलेगी, तो उस ने उसे घर छोड़ कर आगरा आने को कहा. यह उस की नादानी ही थी कि वह ऐसा करने के लिए तैयार हो गई.
आगरा पहुंच कर उसे पता चला कि वह छली गई है. वह जिस युवक के पास गई थी उस का नाम संजय था. उस ने अपने दोस्तों के सामने दीपा को पेश करने की कोशिश की. दीपा अपनी नादानी पर बहुत पछता रही थी. उस ने मौका पा कर अपने परिजनों को पूरी बात बताई, दीपा की बात सुनते ही परिजनों ने पुलिस को सूचित किया, पुलिस और उस के परिजनों ने उस की बताई जगह पर पहुंच कर संजय को हिरासत में ले कर दीपा को मुक्त कराया. गाजियाबाद के तत्कालीन एसपी शिव हरि मीणा के अनुसार संजय व उस के 3 दोस्त ऐसी ही नादान लड़कियों को फंसा कर उन का शोषण कर के छोड़ देते थे. इस से पहले मथुरा की एक युवती को भी वे अपने जाल में फंसा चुके थे. दरअसल, इस तरह के लोग पहले मिस्ड कौल करते हैं फिर बैक कौल का इंतजार करते हैं. यदि कोई लड़की फोन पर होती है तो चालाकी से उस से बातें करने लगते हैं और फिर उसे अपने जाल में उलझाते हैं, लेकिन अगर कोई पुरुष फोन पर होता है, तो रौंग नंबर बता कर सौरी बोलते हुए बात खत्म कर देते हैं.
ऐसा करने वाले बेहद शातिर किस्म के लोग होते हैं. बातोंबातों में युवतियों से उन के घरपरिवार की पूरी जानकारी हासिल कर लेते हैं. ऐसा वे इसलिए करते हैं ताकि पकड़े जाने का खतरा कम रहे. दूसरा मकसद उन से नकदी व आभूषण हासिल करना भी होता है. युवतियां आसानी से उस अजनबी पर विश्वास कर लेती हैं जिसे उन्होंने कभी देखा तक नहीं होता. उम्र के इस नाजुक दौर में उन्हें वह अपने सपनों का राजकुमार नजर आने लगता है. मुरादाबाद जिले में रौंग नंबर से शुरू हुई दोस्ती लव, सैक्स और धोखे में बदल गई. पुलिस ने ऐसे 2 युवकों को गिरफ्तार किया जो रौंग नंबर के जरिए युवतियों को अपने जाल में फंसाते थे, उन्हें सपने दिखा कर उन का गलत इस्तेमाल करते थे. युवक तब पकड़ में आए जब एकसाथ 4 युवतियां लापता हुईं. जांचपड़ताल में उन युवकों के कमरे से युवतियों को भी बरामद किया गया. उन की कोशिश उन्हें बेचने की थी. दोनों शातिरों ने मोबाइल के जरिए ही चारों युवतियों को प्रेमजाल में फंसाया था. यदि पुलिस समय पर नहीं पहुंचती तो पता नहीं उन युवतियों का क्या हश्र होता.
राधा अपने बुरे दिनों को याद कर के सहम जाती है जब वह रौंग नंबर के चक्कर में एक युवक के चंगुल में फंस गई थी. अकसर फोन पर लंबीलंबी बातें होतीं. जब राधा उस शातिर के प्यार में पूरी तरह फंस गई तब उस ने उसे मिलने के लिए बुलाया. दोनों एक होटल में रुके, अगले दिन वह उसे स्टेशन पर छोड़ कर लापता हो गया. राधा ने परिजनों का विश्वास और इज्जत दोनों गंवा दी थीं. रौंग कौल करने वाले अपने शिकार को जाल में फांसने के सारे हथकंडे जानते हैं, इसलिए बेहतर यही है कि मिस्ड व रौंग कौल को नजरअंदाज कर देना चाहिए.
ऐसे बोलते हैं डायलौग
– मुझे आप से बात करनी है.
– आप की आवाज तो बहुत मधुर है.
– काश, आप मेरी दोस्त होतीं तो कितना अच्छा होता.
– आवाज इतनी मीठी है, तो आप कितनी सुंदर होंगी.
– आप की आवाज पर तो कोई भी मोहित हो जाए.
– एक बार हम से दोस्ती कर के देखिए, बहुत खुश रखेंगे आप को.
– मेरी कोई दोस्त नहीं है, एकदम अकेला हूं, प्लीज आप मेरी दोस्त बन जाएं.
– मैं बदनसीब हूं जो आप मुझ से दोस्ती करने से इनकार कर रही हैं.
– आप से बात कर के बहुत खुशी हो रही है.
जानकारों की राय
युवतियों को फंसाने वाले कई बार पकडे़ जाते हैं. अगर कोई बारबार मिस्ड कौल करता है या फोन कर के परेशान करता है, तो मामले को खुद सुलझाने के बजाय इस की सूचना समय रहते पुलिस को देनी चाहिए.
– रुचिता चौधरी, पुलिस अधीक्षक
जरा सी लापरवाही युवतियों पर भारी पड़ जाती है. उन्हें अपने अभिभावकों से ऐसी बातें छिपानी नहीं चाहिए. अभिभावक भी अपने बच्चों पर विशेष नजर रखें, क्योंकि सिर्फ मोबाइल दे देने से ही उन की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती.
– अतुल शर्मा, समाजसेविका
उम्र के नाजुक दौर में छोटीछोटी बातें हमें अपनी ओर आकर्षित करती हैं. भावनात्मक रूप से युवतियों को बहलाना आसान होता है, इसी का फायदा ऐसे लोग उठाते हैं. लकीर पीटने से अच्छा है कि लड़कियों से अभिभावकों को खुल कर बात करनी चाहिए.
– डा. सुभाष सिंह, चिकित्सा अधीक्षक
साहेबान, लोग कहते हैं कि खूबसूरत लड़कियां तो अच्छेअच्छों को तिगनी का नाच नचा देती हैं. एक समय था, जब हम इस बात से बिलकुल सहमत नहीं थे. हमारा मानना था कि मर्द लोग औरतों को तिगनी का नाच नचाते हैं. लेकिन पिछले दिनों हमारे दफ्तर में जो तमाशा हुआ था, उस की बदौलत हमें आज यकीन करना पड़ रहा है कि औरतें मर्दों को न केवल तिगनी का नाच नचा सकती हैं, बल्कि चाहें तो वे पूरी दुनिया पर राज भी कर सकती हैं. उस दिन सोमवार था. दफ्तर में कदम रखने पर हमें अपनी एडवरटाइजिंग एजेंसी के गिनेचुने चेहरे ट्यूबलाइट की तरह चमकते दिखाई दिए. हम से रहा नहीं गया. हम ने तुरंत अपने दफ्तर के सुपरस्टार कन्हई चपरासी से पूछा, ‘‘क्यों भैया कन्हई, आज सभी के चेहरों पर बोनस मिलने वाली खुशी क्यों दिखाई दे रही है?’’
कन्हई ने फौरन अपने तंबाकू खाने से काले पड़े दांत दिखाए और बोला, ‘‘अविनाश बाबू, आज दफ्तर में दिल्ली वालों की जबान में ‘टोटा’, यूपी वालों की जबान में ‘छमिया’ और बिहार वालों की जबान में ‘कट्टो’ काम करने आ रही है.’’ दफ्तर में काम करने वाली लड़कियों का आनाजाना लगा ही रहता था, इसलिए हम ने कन्हई की बात को हलके तौर पर लिया और अपने काम में लग गए. ठीक 11 बजे कन्हई की ‘छमिया’ ने दफ्तर में कदम रखा. उस पर नजर पड़ते ही हमें अपने दिल की धड़कन रुकती सी महसूस हुई. सही में ‘कट्टो’ थी वह. लंबा कद, दूध जैसा रंग, सेब जैसे गाल, रसभरे होंठ, बड़ीबड़ी आंखें, कमर तक लंबे बाल और बदन की नुमाइश करते मौडर्न कपड़े.
उसे देखते ही हमें यकीन करना पड़ा कि उस का बस चलता, तो वह पूजा भट्ट की तरह शरीर पर पेंट करा कर दफ्तर आती. दफ्तर की डिगनिटी मेनटेन रखने के लिए उस ने मजबूरी में कपड़े पहने थे. उस का डैस्क मेरे डैस्क के सामने था, लिहाजा उस पर बैठने के लिए वह थोड़ा झुक गई. उस का झुकना था कि उस के उभार न चाहते हुए भी हमारी आंखों में गड़ कर रह गए. यह नजारा देख कर हमारा कलेजा मुंह को आने में एक पल भी नहीं लगा. काफी देर तक हम चुपचाप बैठे रहे और अपनी तख्ती जैसी सपाट बीवी को पानी पीपी कर कोसते रहे. वह ‘छमिया’ की तरह हरीभरी क्यों नहीं थी? वह एक तख्ती की तरह क्यों थी?
ऐसी बात नहीं थी कि उस ‘छमिया’ के अंग प्रदर्शन से बस हमारी ही हालत पतली हुई थी. हम से ज्यादा बुरी हालत तो चौबेलालजी की थी. वे रहरह कर सांप की तरह जीभ बाहर निकाल कर अपने सूखे होंठों को तर कर रहे थे. ‘छमिया’ के अंग प्रदर्शन से दिलीप का चश्मा ही चटक गया था. वे अपने बैग से फौरन दूसरा चश्मा नहीं निकालते, तो शायद उन्हें टूटे चश्मे से ही पूरा दिन गुजारना पड़ जाता. ‘छमिया’ की जवानी की नुमाइश ने मीना को हीन भावना के गहरे कुएं में धकेल दिया था, क्योंकि वह भी हमारी बीवी की तरह तख्ती जैसी थी. ठीक 12 बजे ‘डाकू हलाकू’ ने दफ्तर में कदम रखा. साहेबान, हमारे अन्नदाता बौस दफ्तर में इसी नाम से जाने जाते हैं. उन का चेहरा विलेन अमरीश पुरी की तरह लगता था, लेकिन उस दिन उन की निगाह झुक कर काम कर रही ‘छमिया’ के उभारों पर पड़ी, तो उन का चेहरा कौमेडियन जौनी लीवर की तरह दिखाई देने लगा. उन्होंने फौरन ‘छमिया’ को चैंबर में आने का आदेश दिया.
‘छमिया’ बड़ी अदा से उठी. उस ने हाथों से ही अपना हुलिया ठीक किया और कूल्हे मटकाते हुए ‘डाकू हलाकू’ के चैंबर में घुस गई. उस की चाल देख कर एक बार तो हमारा भी मन हुआ कि हम अपनी मानमर्यादा को भूल कर उसे वहीं दबोच लें और फिर ‘इंसाफ का तराजू’ फिल्म शूट कर डालें. पर चूंकि हम डालडा घी की पैदाइश थे, इसलिए हम ने अपने मन को जबरन मारा और अपने काम में लग गए. 15 मिनट बाद ‘छमिया’ ‘डाकू हलाकू’ के चैंबर से बाहर आई, तो लुटीपिटी दिखाई दे रही थी. उस के सलीके से प्रैस किए कपड़ों पर जगहजगह से सिलवटें दिखाई दे रही थीं. सीट पर बैठते ही वह भुनभुनाई, ‘‘यह भी कोई बात हुई. काम 2 लोगों का और तनख्वाह एक की. सैक्रेटरी वाला काम कराना था, तो तनख्वाह भी उसी हिसाब से देनी थी…’’
अगले दिन भी यही किस्सा हुआ. ‘छमिया’ ‘डाकू हलाकू’ के चैंबर से भुनभुनाते हुए बाहर आई और अपनी सीट पर बैठ कर बड़बड़ाई, ‘‘नहीं चलेगा. बिलकुल नहीं चलेगा. तनख्वाह एक जने की और काम 2 जनों का. इस टकलू को तिगनी का नाच न नचाया, तो मेरा नाम भी नताशा नहीं.’’ चूंकि हमारे अन्नदाता के हम पर ढेरों एहसान थे, इसलिए हम उन के फेवर में बोले, ‘‘मैडम, हमारे बौस ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. वे चाहें तो तुम्हें चींटी की तरह मसल सकते हैं.’’
हमारी इस बात पर ‘छमिया’ खूंटा तुड़ी गाय की तरह हमारे करीब आई और भौंहों को सींगों के आकार में ढालते हुए बोली, ‘‘कितने की शर्त लगाते हो?’’ हमारा उस से शर्त लगाने का कोई इरादा नहीं था, फिर भी न जाने कैसे हमारे मुंह से निकल गया, ‘‘सौसौ रुपए की. आप ने हमारे अन्नदाता को तिगनी का नाच नचाया, तो सौ रुपए हमारी तरफ से और उन्होंने आप को चींटी की तरह मसल…’’
‘‘मुझे मंजूर है…’’ हमारी बात पूरी होने से पहले ही वह बोल पड़ी, ‘‘कल आप सौ रुपए तैयार रखना.’’ हम जानते थे कि इस जंग में हार सरासर ‘छमिया’ की होगी, इसलिए हम ने अगले दिन सौ रुपए तैयार रखने का वादा फौरन कर दिया. अगले दिन ‘छमिया’ ने दफ्तर में कदम रखा, तो हमारा दिल मानो धड़कना बंद हो गया. उस कमबख्त ने सच में सौ रुपए हमारी जेब से निकलवाने की सोच रखी थी. मिनी स्कर्ट और चुस्त टौप में उस की जवानी फूटफूट कर बाहर आ रही थी. उस का डैस्क हमारे डैस्क के सामने था, इसलिए जब वह अपनी जगह पर बैठी, तो हमारी सांसें गले में फंसने लगीं. हम ने तुरंत पानी के गिलास का सहारा लिया, वरना दफ्तर में यकीनन एंबुलैंस बुलानी पड़ जाती. जैसेतैसे हम ने अपना ध्यान उस की चिकनी टांगों से हटाया और अपने काम में बिजी हो गए. ठीक समय पर ‘डाकू हलाकू’ दफ्तर में आया और ‘छमिया’ को इशारा कर के अपने चैंबर में चला गया.
‘छमिया’ अपनी जगह से उठ कर हमारे सामने आई और हाथ फैला कर बोली, ‘‘जल्दी से सौ रुपए निकालो.’’ हम किसी अडि़यल घोड़े की तरह बिदके, ‘‘पहले ‘डाकू हलाकू’ को तिगनी का नाच तो नचाओ.’’
‘‘मैं वही काम करने जा रही हूं…’’ ‘छमिया’ बड़े सब्र से बोली, ‘‘थोड़ी देर बाद तुम्हारे साहब तुम्हारे सामने बिना कपड़ों के आ गए, तो मेरे खयाल से यह तिगनी का नाच ही होगा?’’
‘‘बिलकुल होगा…’’ हमारा सिर हैंडपंप के हत्थे की तरह हिला, ‘‘लेकिन यह काम तुम्हारे बस का नहीं है.’’
‘‘बहाने मत बनाओ और सौ रुपए का नोट निकाल लो.’’ ‘‘सौ रुपए निकालने में हमें कोई हर्ज नहीं है…’’ हम बड़ी उदारता से बोले, ‘‘लेकिन मोहतरमा, हमें पता तो चले कि आप यह तमाशा दिखाने में कैसे कामयाब होंगी?’’ ‘‘देखो, मेरे पास क्लोरोफार्म है…’’ ‘छमिया’ बोली, ‘‘तुम्हारे अन्नदाता जब मुझ से सैक्रेटरी वाला काम लेंगे, तब मैं उन्हें किसी तरीके से क्लोरोफार्म सुंघा दूंगी. उन के बेहोश होने के बाद मैं उन के सारे कपड़े अपने कब्जे में करूंगी और फिर कुछ फाइलों में आग लगा कर यहां से रफूचक्कर हो जाऊंगी.’’ हम ‘छमिया’ को यों देखने लगे, मानो वह वाकई यह काम करने जा रही है. थोड़ी देर बाद हमारे मुंह से निकला, ‘‘सारी बात समझ में आ गई, लेकिन फाइलों को आग लगाने वाली बात…’’
‘‘आग लगने पर ही तो तुम्हारा टकलू बिना कपड़ों के बाहर आएगा…’’ वह खीज कर बोली, ‘‘अब तुम मेरा कीमती समय बरबाद न करो और जल्दी से सौ रुपए निकालो.’’
हालांकि ‘छमिया’ का मनसूबा सिक्काबंद था, फिर भी हमें ‘डाकू हलाकू’ पर सौ फीसदी यकीन था. लिहाजा, हम ने अपने बटुए से सौ रुपए निकाले और ‘छमिया’ के हवाले कर दिए.
‘छमिया’ ने सौ का नोट अपनी गुप्त जेब में ठूंसा और हाई हील के सैंडिल ठकठका कर ‘डाकू हलाकू’ के चैंबर में घुस गई.
पौने घंटे बाद छमिया बाहर आई. अपना अंगूठा दिखा कर जब उस ने अपनी जीत की तसदीक की, तो हमारा दिल सौ रुपए के गम में डूबने सा लगा. उस समय ‘छमिया’ के हाथ में एक पौलीथिन बैग था. उस ने बैग में रखे हमारे अन्नदाता के कपड़े दिखाए और वहां से फुर्र हो गई. तभी हमें अपने अन्नदाता के चैंबर से धुआं बाहर निकलता दिखाई दिया. चूंकि हम जानते थे कि हमारे बौस बेहोशी की हालत में पड़े होंगे, इसलिए हम फौरन अपनी जगह से उठे और उन के चैंबर की तरफ बढ़ गए. इस से पहले कि हम चैंबर का दरवाजा खोल पाते ‘आगआग’ का शोर मचा कर ‘डाकू हलाकू’ अपने चैंबर से बाहर निकल आए. यकीनन छमिया ने उन्हें कम मात्रा में क्लोरोफार्म सुंघाया था. उस समय वाकई उन की हालत देखने लायक थी. लिहाजा, सभी के मुंह से एक चीख सी निकल गई.
‘डाकू हलाकू’ के जब होशोहवास जागे, तो वे मारे शर्म के छलांगें मार कर स्टोररूम में घुस गए.
साहेबान, ऐसी बात नहीं है कि इस तमाशे में सारा कुसूर ‘डाकू हलाकू’ का था. हम उन्हें जरा भी दोष नहीं देंगे. पर हम इतना जरूर कहेंगे कि मुंह बंधा कुत्ता कभी शिकार नहीं करता. ‘छमिया’ ने डबल तनख्वाह के लालच में भड़काऊ कपड़े पहन कर उन के मुंह खून लगाया था. छमिया यह सब नहीं करती, तो यह तमाशा भी नहीं होता. आज की तारीख में हमें अन्नदाता ‘डाकू हलाकू’ से पूरी हमदर्दी है, फिर भी तमाशे के दौरान उन की हालत देख कर हम यही कहेंगे कि जिस औरत ने ‘डाकू हलाकू’ को भरे दफ्तर में नंगा कर दिया, वह कोशिश करे तो क्या नहीं कर सकती.
असुरक्षित सैक्स संबंध कायम करने के कारण आज एचआईवी यानी एड्स की बीमारी तेजी से बढ़ रही है. शुरूशुरू में इस के रोगी को पता ही नहीं चलता कि वह एड्स से ग्रस्त है और जब इस के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं तब तक काफी देर हो चुकी होती है. ऐसे एड्स के रोगियों का इलाज संभव नहीं है. भारत में एचआईवी रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. हालांकि इस बीमारी को ले कर सरकारी व गैरसरकारी स्तर पर काफी प्रचारप्रसार किया जाता है, जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं फिर भी लोग इस की गिरफ्त में आ ही जाते हैं. इस रोग से बचने का एकमात्र उपाय है सुरक्षित सैक्स.
इस रोग से ग्रसित लोगों की विडंबना यह है कि जहां उन्हें हिकारत भरी नजरों से देखा जाता है वहीं वे अपने मौलिक अधिकार भी खो देते हैं. इस रोग के वायरस किस देश से आए अभी तक इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, पर आज विश्व के सभी देश एचआईवी को ले कर चिंतित हैं. वैज्ञानिक इस रोग की वैक्सीन बनाने में जुटे हैं पर अब तक किसी को कामयाबी नहीं मिली है. जहां तक भारत की बात है तो यहां एचआईवी या एड्स से पीडि़त लोगों को दोगुनी परेशानी उठानी पड़ती है. यहां केवल उस के अपने जज्बातों के झकझोरने एवं आहिस्ताआहिस्ता मृत्यु के द्वार तक जाने के एहसास की ही पीड़ा नहीं है, बल्कि अपने मित्रों एवं आत्मीय जनों द्वारा बहिष्कृत करने का दर्द भी है. एक बार यदि आप की एचआईवी की पुष्टि हो गई, जो एड्स का कारण है, तो आप अपने मूलभूत मानवाधिकारों से वंचित हो जाते हैं.
सूत्रों के अनुसार भारत में अभी भी करीब 165 लाख लोग एचआईवी से प्रभावित हैं यानी दुनिया में सब से अधिक एचआईवी प्रभावित लोग भारत में हैं जबकि हम अब भी इस विषय पर बात करने से कतराते हैं. चेन्नई स्थित ‘इंडियन नैटवर्क फौर पीपुल लिविंग विद एचआईवी/एड्स’ के अध्यक्ष हिकुटो येपथोमी कहते हैं, ‘‘हम एड्स से प्रभावित लोगों को शक्तिवान बनाने की आशा करते हैं और इस के लिए सरकार से अपील करेंगे कि वह उन के मूलभूत मानवाधिकारों जैसे नौकरी, घर, शिक्षा, चिकित्सा एवं बीमा अधिकारों की रक्षा के लिए नियम बनाए, वहीं दूसरी तरफ, व्यावहारिक रूप में, किसी की गोपनीयता के अधिकारों की भी सुरक्षा अति आवश्यक है. कुछ परियोजनाएं संगठन ने बनाई हैं, यह स्वयं में एक कठिन कार्य है, समाज को तो छोड़ो अस्पताल में भी एड्सग्रस्त को इलाज के लिए मना कर दिया जाता है.’’
पूर्व केंद्रीय मंत्री रेनुका चौधरी का कहना है कि हर सदी में ऐसी बीमारी हुई है जिस ने बहुत से लोगों को मौत के द्वार तक पहुंचाया है. जैसे पहले कुष्ठ रोग एवं क्षयरोग होते थे वैसे अब एड्स है. ‘नाको’ (नैशनल एड्स कंट्रोल और्गेनाइजेशन) के प्रमुख, राव ने बताया कि सरकार इस के लिए कुछ प्रशिक्षण देने जा रही है और हम उन के लिए नौकरी, सुरक्षा, चिकित्सा आदि का वादा करते हुए उन के अधिकारों की रक्षा के विषय में विचार कर रहे हैं. फिलहाल इस समय हम सब व्यस्त हैं, इस से मुंह छिपाने में. एड्स से प्रभावित व्यक्ति छिपना पसंद करता है, भारत में जहां सोडोमी (गुदामैथुन) आज भी एक अपराध माना जाता है, वहां उपेक्षा, तानों समलैंगिक एवं आक्रोश का सामना करने के बजाय और अधिक छिपने का प्रयास करते हैं. इन परिस्थितियों में एक स्त्री दूसरी स्त्री के साथ कैसे सो सकती है?
बहु यौनिक संबंधों वाले विलोम लैंगिक लोग इस विषय पर तभी चर्चा कर पाएंगे जब उन्हें डींग मारने की आवश्यकता से छुटकारा मिले, यौन परिवर्तित लोग तो अदृश्य ही रहते हैं, वहीं उभय लिंगियों को ये सब बतलाने एवं समाज की कानाफूसी मोल लेने की क्या पड़ी है, जबकि वे आसानी से सामान्य व्यक्ति का बहाना बना सकते हैं. यहां कोई भी सैक्स पर बात नहीं करता इसलिए यह बहुत कठिन कार्य है. देश को इस यौन रोग संक्रमण से कैसे बचाया जाए इस पर गंभीरता से सोचना होगा, साथ ही समयसमय पर लोगों को इस भयावह जानलेवा बीमारी से सचेत कर सुरक्षित यौन संबंध बनाने के लिए बताना होगा. एक बहुत ही सुंदर सलोना, सुगढ़, स्वस्थ एवं शक्ति से भरपूर मित्र भी एड्स से प्रभावित हो सकता है. यह केवल वेश्यागमन से ही नहीं बल्कि हर किसी को जो असुरक्षित क्रियाओं जैसे बहु यौनिक संबंधों, नशे के लिए प्रयुक्त सुइयों या किसी के शरीर में बाहरी खून चढ़ाया गया हो उसे भी हो सकता है, किंतु यदि आप इस वर्ग में नहीं आते तो क्या सुरक्षित हैं? नहीं बिलकुल नहीं. आप को अपने सहयोगी के विषय में भी जानना आवश्यक है कि वह कितना सुरक्षित व्यवहार करता है? क्या आप दोनों के संबंध सिर्फ आप दोनों तक ही सीमित है या फिर सहगामी किसी तीसरे का सहभोगी भी है? अगर आप आंख मूंद कर उस के ऊपर विश्वास कर उस के साथ संबंध बनाते हैं तो भी क्या आप असुरक्षित हैं?
अपने मूल आधार को पहचानिए, अपने एवं अपने सहयोगी और उस की रुचियों के विषय में अधिक से अधिक जानकारी आवश्यक है, क्योंकि संक्रमण को रोकने के लिए यही प्रथम कदम होगा. अपने देश की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिस्थितियां ही कुछ ऐसी हैं कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए स्वयं को बचा पाना दुर्लभ है, यद्यपि वह बचना जानता है फिर भी अज्ञानता उसे कठिन बना देती है और जैसा कि हम करते जा रहे हैं एड्स प्रभावित की सामाजिक बहिष्कार की सीमारेखाएं एड्स के विरुद्ध इस लड़ाई को और अधिक असंभव बना देंगी. हमें अपने मूल्यों के पुनअर्वलोकन की आवश्यकता है. अब केवल पठनीय विषय ही नहीं रहे, वे जीवन या मृत्यु की कुंजी हैं. बहुतों के लिए धीरेधीरे समाप्त हो जाना बेहतर है बजाय सार्वजनिक होने पर अवांछनीय लांछन के खतरे को मोल लेने के और एक बार यदि आप को एड्स हो गया तो उसे समाज में स्वीकार करना ज्यादा मुश्किल है. यहां तक कि बडे़बड़े लोग जैसे हडसन और फ्रेडी मरकरी को स्वीकारने पर कठिनाई हुई, यहां तक कि सुप्रसिद्ध खिलाड़ी मैजिक जौनसन और ग्रेग लुगोनिस ने कोशिश की कि कोई उस के घाव से बहते हुए खून को न छुए फिर भी स्पष्ट रूप से स्वीकार न कर सके, यह बहुत स्पष्टवादी समाज में भी होता है.
भारत में दुनिया में सब से अधिक एड्स प्रभावित व्यक्ति हैं इसलिए हमारे पास समय बरबाद करने के लिए नहीं बचा है, हमें संभलना होगा अभी, क्योंकि अपने दंभपूर्ण नैतिकता एवं छुआछूत के कफन को फेंक देने के बाद ही हम स्वयं की रक्षा करने की शुरुआत कर सकते हैं और इस प्रकार एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं.
राहुल गांधी ने एक बार फिर पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. गुजरात के भीतर दलितों की पिटाई के मामले में जिस वक्त संसद के भीतर हंगामा हो रहा था, उस वक्त कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कैमरे में सोते हुए नजर आए. इसे लेकर सोशल मीडिया में कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा जा रहा है. राहुल गांधी को इससे पहले भी कई बार संसद की कार्यवाही के दौरान सोते हुए देखा जा चुका है.
दरअसल मसला लोकसभा में उस वक्त का है जब गृहमंत्री राजनाथ सिंह गुजरात में दलितों की पिटाई के मामले पर जवाब दे रहे थे. जिस वक्त राजनाथ सिंह दलितों के इस मसले पर सरकार का पक्ष रख रहे थे, ठीक उसी वक्त राहुल गांधी कैमरे पर सोते हुए दिखाई दिए. जबकि लोकसभा के भीतर की इन तस्वीरों में साफ दिख रहा है कि राजनाथ सिंह के जवाब के दौरान भी कांग्रेस पार्टी के सांसद वहां हंगामा कर रहे थे. शोर मचा रहे थे. लेकिन, टीवी पर दिखाया गया कि इन सब का राहुल गांधी पर कोई असर नहीं पड़ रहा है. वो आंख बंद कर बैठे हुए हैं.
राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी इससे पहले भी कई बार दलितों के मसले को जोरशोर से उठा चुके हैं. लेकिन, राहुल गांधी की इस नींद ने उन पर ये सवाल उठाने शुरु कर दिए हैं कि क्या दलितों के नाम सिर्फ वो राजनीति करते हैं. मसला उठाकर उसे भूल जाते हैं. या फिर इन मसलों को लेकर वो बहुत ज्यादा गंभीर नहीं है. फिलहाल इस मामले पर पार्टी की सफाई अभी आनी बाकी है. हालांकि सफाई भी हर बार की तरह ये ही होगी कि राहुल गांधी संसद के भीतर सो नहीं रहे थे बल्कि राजनाथ सिंह के बयान को ध्यान से सुन रहे थे. लेकिन, तस्वीरें झूठ नहीं बोलती हैं.
जहां एक ओर गुजरात में दलितों की पिटाई के मामले पर कांग्रेस ने जांच के लिए एक ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी बनाने की मांग की है. वहीं राजनाथ सिंह ने इस घटना को दुखद बताया था और कहा था कि प्रधानमंत्री भी इस घटना से दुखी हैं. हालांकि राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा था कि उनके शासनकाल में दलितों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुए हैं. इन सब के बीच राहुल गांधी के सोते हुए की तस्वीरें वायरल होने के बाद हंगामा और बढ़ गया है. बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने वाली कांग्रेस पार्टी खुद कठघरे में नजर आ रही है. इससे पहले राहुल गांधी को पिछले सत्र के दौरान भी महंगाई जैसे अहम मसले पर चर्चा के दौरा सोते हुए देखा गया था.
लिंक पर क्लिक कर आप भी देखिए राहुल गांधी को सोते हुए…
सवाल
क्या किडनी प्राप्त करने वाले व्यक्ति का ब्लड ग्रुप दाता के ब्लड ग्रुप के समान होना चाहिए?
जवाब
हां, आदर्श स्थिति यही है. लेकिन अगर ब्लड ग्रुप मैच नहीं होता तो किसी अन्य दाता से ऐक्सचेंज कर सकते हैं, जिस का रक्त समूह उस के प्राप्तकर्ता से मैच नहीं होता है. लेकिन इनकंपैटिबल किडनी ट्रांसप्लांट के कारण दानकर्ता और प्राप्तकर्ता का रक्त समूह अलगअलग होने पर किडनी प्रत्यारोपण संभव है.
पहले यह समस्या थी कि असमान ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति की किडनी प्राप्तकर्ता की सामान्य प्रतिरोधी क्षमता पर हमला कर उस की जान को खतरे में डाल देती है. लेकिन अब एबीओ इनकंपैटिबल ट्रांसप्लांट नामक इम्यून कंडीशनिंग प्रक्रिया के जरीए प्राप्तकर्ता दूसरे ब्लड ग्रुप वाले दानकर्ता की किडनी को ग्रहण करने में सक्षम हो पाता है.
अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.