असुरक्षित सैक्स संबंध कायम करने के कारण आज एचआईवी यानी एड्स की बीमारी तेजी से बढ़ रही है. शुरूशुरू में इस के रोगी को पता ही नहीं चलता कि वह एड्स से ग्रस्त है और जब इस के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं तब तक काफी देर हो चुकी होती है. ऐसे एड्स के रोगियों का इलाज संभव नहीं है. भारत में एचआईवी रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. हालांकि इस बीमारी को ले कर सरकारी व गैरसरकारी स्तर पर काफी प्रचारप्रसार किया जाता है, जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं फिर भी लोग इस की गिरफ्त में आ ही जाते हैं. इस रोग से बचने का एकमात्र उपाय है सुरक्षित सैक्स.
इस रोग से ग्रसित लोगों की विडंबना यह है कि जहां उन्हें हिकारत भरी नजरों से देखा जाता है वहीं वे अपने मौलिक अधिकार भी खो देते हैं. इस रोग के वायरस किस देश से आए अभी तक इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, पर आज विश्व के सभी देश एचआईवी को ले कर चिंतित हैं. वैज्ञानिक इस रोग की वैक्सीन बनाने में जुटे हैं पर अब तक किसी को कामयाबी नहीं मिली है. जहां तक भारत की बात है तो यहां एचआईवी या एड्स से पीडि़त लोगों को दोगुनी परेशानी उठानी पड़ती है. यहां केवल उस के अपने जज्बातों के झकझोरने एवं आहिस्ताआहिस्ता मृत्यु के द्वार तक जाने के एहसास की ही पीड़ा नहीं है, बल्कि अपने मित्रों एवं आत्मीय जनों द्वारा बहिष्कृत करने का दर्द भी है. एक बार यदि आप की एचआईवी की पुष्टि हो गई, जो एड्स का कारण है, तो आप अपने मूलभूत मानवाधिकारों से वंचित हो जाते हैं.
सूत्रों के अनुसार भारत में अभी भी करीब 165 लाख लोग एचआईवी से प्रभावित हैं यानी दुनिया में सब से अधिक एचआईवी प्रभावित लोग भारत में हैं जबकि हम अब भी इस विषय पर बात करने से कतराते हैं. चेन्नई स्थित ‘इंडियन नैटवर्क फौर पीपुल लिविंग विद एचआईवी/एड्स’ के अध्यक्ष हिकुटो येपथोमी कहते हैं, ‘‘हम एड्स से प्रभावित लोगों को शक्तिवान बनाने की आशा करते हैं और इस के लिए सरकार से अपील करेंगे कि वह उन के मूलभूत मानवाधिकारों जैसे नौकरी, घर, शिक्षा, चिकित्सा एवं बीमा अधिकारों की रक्षा के लिए नियम बनाए, वहीं दूसरी तरफ, व्यावहारिक रूप में, किसी की गोपनीयता के अधिकारों की भी सुरक्षा अति आवश्यक है. कुछ परियोजनाएं संगठन ने बनाई हैं, यह स्वयं में एक कठिन कार्य है, समाज को तो छोड़ो अस्पताल में भी एड्सग्रस्त को इलाज के लिए मना कर दिया जाता है.’’
पूर्व केंद्रीय मंत्री रेनुका चौधरी का कहना है कि हर सदी में ऐसी बीमारी हुई है जिस ने बहुत से लोगों को मौत के द्वार तक पहुंचाया है. जैसे पहले कुष्ठ रोग एवं क्षयरोग होते थे वैसे अब एड्स है. ‘नाको’ (नैशनल एड्स कंट्रोल और्गेनाइजेशन) के प्रमुख, राव ने बताया कि सरकार इस के लिए कुछ प्रशिक्षण देने जा रही है और हम उन के लिए नौकरी, सुरक्षा, चिकित्सा आदि का वादा करते हुए उन के अधिकारों की रक्षा के विषय में विचार कर रहे हैं. फिलहाल इस समय हम सब व्यस्त हैं, इस से मुंह छिपाने में. एड्स से प्रभावित व्यक्ति छिपना पसंद करता है, भारत में जहां सोडोमी (गुदामैथुन) आज भी एक अपराध माना जाता है, वहां उपेक्षा, तानों समलैंगिक एवं आक्रोश का सामना करने के बजाय और अधिक छिपने का प्रयास करते हैं. इन परिस्थितियों में एक स्त्री दूसरी स्त्री के साथ कैसे सो सकती है?
बहु यौनिक संबंधों वाले विलोम लैंगिक लोग इस विषय पर तभी चर्चा कर पाएंगे जब उन्हें डींग मारने की आवश्यकता से छुटकारा मिले, यौन परिवर्तित लोग तो अदृश्य ही रहते हैं, वहीं उभय लिंगियों को ये सब बतलाने एवं समाज की कानाफूसी मोल लेने की क्या पड़ी है, जबकि वे आसानी से सामान्य व्यक्ति का बहाना बना सकते हैं. यहां कोई भी सैक्स पर बात नहीं करता इसलिए यह बहुत कठिन कार्य है. देश को इस यौन रोग संक्रमण से कैसे बचाया जाए इस पर गंभीरता से सोचना होगा, साथ ही समयसमय पर लोगों को इस भयावह जानलेवा बीमारी से सचेत कर सुरक्षित यौन संबंध बनाने के लिए बताना होगा. एक बहुत ही सुंदर सलोना, सुगढ़, स्वस्थ एवं शक्ति से भरपूर मित्र भी एड्स से प्रभावित हो सकता है. यह केवल वेश्यागमन से ही नहीं बल्कि हर किसी को जो असुरक्षित क्रियाओं जैसे बहु यौनिक संबंधों, नशे के लिए प्रयुक्त सुइयों या किसी के शरीर में बाहरी खून चढ़ाया गया हो उसे भी हो सकता है, किंतु यदि आप इस वर्ग में नहीं आते तो क्या सुरक्षित हैं? नहीं बिलकुल नहीं. आप को अपने सहयोगी के विषय में भी जानना आवश्यक है कि वह कितना सुरक्षित व्यवहार करता है? क्या आप दोनों के संबंध सिर्फ आप दोनों तक ही सीमित है या फिर सहगामी किसी तीसरे का सहभोगी भी है? अगर आप आंख मूंद कर उस के ऊपर विश्वास कर उस के साथ संबंध बनाते हैं तो भी क्या आप असुरक्षित हैं?
अपने मूल आधार को पहचानिए, अपने एवं अपने सहयोगी और उस की रुचियों के विषय में अधिक से अधिक जानकारी आवश्यक है, क्योंकि संक्रमण को रोकने के लिए यही प्रथम कदम होगा. अपने देश की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिस्थितियां ही कुछ ऐसी हैं कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए स्वयं को बचा पाना दुर्लभ है, यद्यपि वह बचना जानता है फिर भी अज्ञानता उसे कठिन बना देती है और जैसा कि हम करते जा रहे हैं एड्स प्रभावित की सामाजिक बहिष्कार की सीमारेखाएं एड्स के विरुद्ध इस लड़ाई को और अधिक असंभव बना देंगी. हमें अपने मूल्यों के पुनअर्वलोकन की आवश्यकता है. अब केवल पठनीय विषय ही नहीं रहे, वे जीवन या मृत्यु की कुंजी हैं. बहुतों के लिए धीरेधीरे समाप्त हो जाना बेहतर है बजाय सार्वजनिक होने पर अवांछनीय लांछन के खतरे को मोल लेने के और एक बार यदि आप को एड्स हो गया तो उसे समाज में स्वीकार करना ज्यादा मुश्किल है. यहां तक कि बडे़बड़े लोग जैसे हडसन और फ्रेडी मरकरी को स्वीकारने पर कठिनाई हुई, यहां तक कि सुप्रसिद्ध खिलाड़ी मैजिक जौनसन और ग्रेग लुगोनिस ने कोशिश की कि कोई उस के घाव से बहते हुए खून को न छुए फिर भी स्पष्ट रूप से स्वीकार न कर सके, यह बहुत स्पष्टवादी समाज में भी होता है.
भारत में दुनिया में सब से अधिक एड्स प्रभावित व्यक्ति हैं इसलिए हमारे पास समय बरबाद करने के लिए नहीं बचा है, हमें संभलना होगा अभी, क्योंकि अपने दंभपूर्ण नैतिकता एवं छुआछूत के कफन को फेंक देने के बाद ही हम स्वयं की रक्षा करने की शुरुआत कर सकते हैं और इस प्रकार एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं.