Download App

सारथी या दलाल

कृष्ण को सीधेसीधे दलाल कहते तो कई विवादों से घिर जाते, इसलिए अमर सिंह ने पहले यह कहा कि आप चाहें तो मुझे दलाल या बिचौलिया कह सकते हैं, हालांकि मैं कृष्ण के पांवों की धूल भी नहीं, पर वे भी मध्यस्थ थे. कृष्ण का महाभारत में रियल रोल उजागर करने वाले अमर सिंह की हाल ही में सपा में वापसी हुई है और मुलायम सिंह ने उन्हें सम्मान देने के साथ राज्यसभा भेज दिया है.

द्वापर युग में क्षत्रियों ने एक यादव का सहारा लिया था, कलियुग में यादव क्षत्रिय का दामन थाम रहे हैं यानी गंगा उलटी बह रही है. कृष्ण ने पांडव और कौरवों के बीच कलह पैदा की थी तो अमर सिंह यादव कुनबे में कलह की वजह बने हुए हैं. कृष्ण को, एक तरह से खुद की तरह, सत्ता का दलाल कहने की हिम्मत पर बधाई के पात्र तो वे हैं जो एक चैनल को दिए इंटरव्यू में मायावती को अखिलेश यादव की बूआ भी बता गए.

 

श्रापनुमा भविष्यवाणी

जवाहरलाल नेहरू से ले कर कपिल सिब्बल और अरुण जेटली तक कई वकील कामयाब राजनेता साबित हुए पर रामजेठमलानी की कामयाबी वकालत तक ही सिमट कर रह गई क्योंकि वे किसी के भरोसेमंद नहीं रह पाए. सपा के सहारे राज्यसभा में पहुंचे जेठमलानी अब मुलायम सिंह की जीहुजूरी में जुट गए हैं. समाजवादी सिंधी सभा द्वारा लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में रामजेठमलानी नरेंद्र मोदी पर बरसते रहे कि उन्होंने अपने चुनावी वादे पूरे नहीं किए और भाजपा उत्तर प्रदेश में भी चुनाव हारेगी, तो तय करना मुश्किल हो गया कि वे दुर्वासा शैली में श्राप दे रहे हैं या भृगु की स्टाइल में भविष्यवाणी कर रहे हैं. यह भड़ास या कुंठा रंग लाएगी या नहीं, इस में अभी वक्त है पर अंतर यह है कि जेठमलानी नमकहलाली अधिनियम का हालफिलहाल निष्ठा से पालन कर रहे हैं.

शीला की महत्ता

उत्तर प्रदेश में शीला दीक्षित को सीएम प्रोजैक्ट करने का कांग्रेसी मंतव्य अगर कोई है तो वह इतना भर है कि वह बसपा से गठबंधन कर सकती है. उस की मंशा ब्राह्मण और दलित वोटों को साधना है जिन का जी भाजपा से उचट रहा है. न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि देशभर के ब्राह्मण भाजपा से त्रस्त हो चुके हैं लेकिन वे विकल्पहीनता से गुजर रहे हैं. यही हालत दलितों की है जो भाजपाई झुनझुने से खुश तो हैं पर आश्वस्त नहीं. सोनिया गांधी नहीं चाहती थीं कि कांग्रेसी दुर्दशा का ठीकरा उन के या राहुल, प्रियंका के सिर फोड़ा जाए, लिहाजा उन्होंने एक ऐसा चेहरा आगे कर दिया जिस की वफादारी में उन्हें शक नहीं है.

गेंद अब मायावती के पाले में है कि वे कांग्रेस से तालमेल पसंद करेंगी या नहीं. बसपा तीसरे और कांग्रेस चौथे नंबर पर हालफिलहाल गिनी जा रही हैं. दोनों मिल कर पहले या दूसरे नंबर का सपना देखें, तो यह उन का लोकतांत्रिक हक है.

अलग पहचान बनाते भारतीय मूल के अमेरिकी

अमेरिका में भारतीय मूल के लगभग 30 लाख लोग हैं जो अमेरिकी जनसंख्या का लगभग 1 प्रतिशत से थोड़ा ही कम है. वैसे तो 1635 में जेमस्टोन वर्जिनिया में पहला ईस्ट इंडियन अमेरिका आया था पर पहला कन्फर्म्ड भारतीय 1790 में ब्रिटिश जहाज से मद्रास से व्यापार के सिलसिले में आया था. 1894 और 1900 के बीच सिखों का समूह कैलिफोर्निया प्रांत में आया जिस में पंजाब के किसान और श्रमिक थे. इन में से कुछ विभिन्न प्रांतों में स्थित लकड़ी की मिलों में काम करते थे. 1912 में कैलिफोर्निया के स्टौकटन में पहला गुरुद्वारा बना. 1913 में अखोय कुमार मजूमदार भारतीय मूल के पहले अमेरिकी नागरिक बने पर 1923 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, उन की नागरिकता रद्द कर दी गई थी क्योंकि वहां के संविधान के अनुसार ईस्ट इंडियन अमेरिका का नागरिक नहीं हो सकता था. 1946 में लूस केल्लर ऐक्ट पास होने के बाद अब कोई भी भारतीय अमेरिकी नागरिक हो सकता है.

वर्ष 2000 तक लगभग साढ़े 16 लाख भारतीय मूल के अमेरिकी लोग थे जो 2010 तक बढ़ कर साढ़े 28 लाख हो चुके थे. ऐसा अमेरिका में टैक्नोलौजी बूम के चलते हुआ. आईटी और कंप्यूटर के क्षेत्र में यहां भारतीयों की संख्या बढ़ने लगी थी. चीन के बाद भारतीय ही अमेरिका में सब से ज्यादा अप्रवासी यानी विदेशी मूल के लोग हैं. ज्यादातर लोग आईटी के क्षेत्र में हैं पर आजकल अन्य क्षेत्रों में भी भारतीयों ने यहां अपनी साख बना ली है.

शिक्षा और आय में आगे

आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय अन्य अप्रवासियों और यहां तक कि औसत अमेरिकन से भी आगे हैं. 71 प्रतिशत भारतीय स्नातक या उस से उच्च डिगरी रखते हैं जबकि राष्ट्रीय औसत केवल 28 प्रतिशत ही है. दूसरी ओर लगभग 40 प्रतिशत भारतीय स्नातकोत्तर डिगरी वाले हैं जो अमेरिका के राष्ट्रीय औसत का लगभग 5 गुना ज्यादा है. वहीं, भारतीयों की औसत वार्षिक आय लगभग 88 हजार अमेरिकी डौलर है जबकि राष्ट्रीय औसत आय 49 हजार डौलर ही है. यह मुकाम भारतीयों ने अपनी लगन और परिश्रम से प्राप्त किया है.

अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों में लगभग 51 प्रतिशत हिंदू हैं, बाकी अन्य धर्मों–ईसाई, इसलाम, सिख, जैन आदि धर्मों के लोग हैं. अपनेअपने धर्म को मानने की यहां छूट है. अमेरिकी समाज बहुत ही खुला है. यहां सभी एकदूसरे को बराबर की दृष्टि से देखते हैं. यहां साधारणतया कोई दंगाफसाद नहीं होता. इक्केदुक्के छिटपुट हिंसा के नस्लीय मामले मिल सकते हैं. दरअसल, किसी के पास फालतू समय ही नहीं है. यहां कर्म ही ध्येय है और श्रम की प्रतिष्ठा है.

अनुशासित भारतीय

अन्य अप्रवासियों की तुलना में भारतीयों ने अमेरिकी समाज में आसानी से समावेश कर अपनी जगह बना ली है. इस की एक वजह इन की अंगरेजी भाषा पर पकड़ भी है. यहां भारतीयों के अनेक रेस्टोरैंट और ग्रौसरी के स्टोर्स हैं. भारतीय भोजन अमेरिकी और अन्य देशों के नागरिक भी शौक से खाते हैं. यहां कोई त्योहार या उत्सव वीकडेज पर पड़ने पर उसे सप्ताहांत में छुट्टी के दिन ही सामूहिक रूप से मनाते हैं क्योंकि वीकडेज में वे अपने काम को सर्वोच्च महत्त्व देते हैं. उसी तरह जन्मदिन या शादी की एनीवर्सरी वीकडेज पर हुई तो उसे व्यक्तिगत तौर पर भले ही घर में मना लें, पार्टी तो सप्ताहांत में ही रखते हैं. मगर यहां भी भारतीय सभी पर्वत्योहार परंपरागत मनाते हैं पर किसी प्रकार का शोरशराबा वर्जित है. हम नियमों का उल्लंघन अपने देश में आराम से कर लेते हैं पर यहां ऐसा करने का साहस नहीं है. अपने यहां लाइन तोड़ने, शोर मचाने, सड़कों पर थूकने या कचरा फेंकने जैसे नियमों का उल्लंघन भले करते हों, पर यहां आते ही हम बिलकुल बदल जाते हैं और अनुशासित रहते हैं.

अमेरिका के अनेक प्रांतों में भारत के विभिन्न प्रांतों के लोग बसे हैं. सब अपनी परंपरानुसार पर्वत्योहार मनाते हैं और अन्य प्रांत के लोगों को भी आमंत्रित करते हैं. यहां भारतीयों के लिए रेडियो स्टेशन, टीवी चैनल और समाचारपत्र व सिनेमाहौल भी हैं जो बौलीवुड की हिंदी फिल्मों के अतिरिक्त अन्य भाषाओं की फिल्में भी दिखाते हैं.

लगभग आधे भारतीय तो अमेरिका के 4 प्रांतों– कैलिफोर्निया, न्यूयार्क, न्यूजर्सी और टैक्सास में बसे हैं. सब से ज्यादा भारतीय कैलिफोर्निया राज्य में हैं क्योंकि आईटी की सब से ज्यादा कंपनियां यहीं पर हैं. सैन फ्रांसिस्को का वह एरिया जो सिलिकौन वैली कहलाता है यहीं पर है, उस में भी 1995 से 2000 या उस के बाद आने वालों की संख्या सब से ज्यादा है.

अमेरिकी नागरिकता और कायदे

कुछ लोगों को कंपनी सीधे अस्थायी वर्क वीजा एच1बी पर बुलाती है. इस में अधिकतर युवा होते हैं, फिर ये अपनी पत्नी व बच्चों को आश्रित वीजा एच4 पर लाते हैं. अगर इन के बच्चे अमेरिका में पैदा हुए तो वे जन्म से अमेरिकी नागरिक होते हैं. फिर ज्यादा दिन रहने पर इन युवाओं को ग्रीन कार्ड मिल सकता है जिसे स्थायी नागरिक कहते हैं. और चंद वर्षों यानी लगभग 5 साल होतेहोते अमेरिकी नागरिकता के हकदार हो जाते हैं. दूसरा तरीका है स्नातक करने के बाद यहां विद्यार्थी वीजा एफ1 पर एमएस स्नाकोत्तर कर के यहां नौकरी में आते हैं और फिर ऊपर बताई गई विधि के अनुसार नागरिक तक बन सकते हैं. भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा यहां आईटी क्षेत्र में कार्यरत है. अमेरिका में प्रवेश के लिए उपरोक्त एच1बी  और एफ1 वीजा गेटपास है. जैसा कि पहले कहा गया है अमेरिका में सर्वाधिक शिक्षित भारतीय तो हैं ही, इन के बच्चे भी कुछ कम नहीं हैं. जहां भी भारतीय समुदाय है वहां के स्कूलों में भारतीय और चीनी बच्चों की संख्या ज्यादा है और वे पढ़ाई में भी आगे हैं. यहां राष्ट्रीय स्तर पर स्पैलिंग की प्रतिस्पर्धा में 1999 से अब तक 73 प्रतिशत विजेता भारतीय बच्चे रहे हैं. जहां भारत के विद्यालयों में सिर्फ पढ़ाई पर ही ध्यान दिया जाता है वहीं अमेरिका में बच्चों को पहली कक्षा से खेलकूद में प्रोत्साहित किया जाता है. यहां लगभग सभी बच्चे स्कूल के अतिरिक्त अन्य गतिविधियों में भाग लेते हैं, जैसे तैराकी, चेस, पियानो, गिटार, आइस स्कैटिंग आदि जो सप्ताहांत में किए जाते हैं और फिर गरमी की छुट्टी में ये ऐक्टिविटीज और ज्यादा होती हैं. इस छुट्टी में बच्चे विशेष तैराकी और आइस स्कैटिंग की ट्रेनिंग लेते हैं. इन में भारतीय बच्चों की संख्या भी काफी होती है.

जानीमानी हस्तियां

अमेरिका में काफी तादाद में भारतीय उच्च पदों पर हैं और कुछ तो विश्व में भी अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा चुके हैं. विज्ञान के क्षेत्र में हरगोविंद खुराना, सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर को नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं. संगीत में जुबिन मेहता भारत का नाम रोशन कर चुके हैं. आईटी में विनोद खोसला, संजय मल्होत्रा, शांतनु नारायण, संजय झा, सत्या नडेला व सुंदर पिचई विश्वविख्यात हैं. अंतरिक्ष में कल्पना चावला और सुनीता विलियम, बैंकिंग में विक्रम पंडित, पेप्सी प्रमुख इंदिरा नुई को कौन नहीं जानता है. सुंदरता में नीना दाबुलुरी 2014 की मिस अमेरिका रह चुकी हैं. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी भारतीयों की प्रतिभा को पहचानते हुए प्रीतिंदर भरारा को अटौर्नी जनरल और विवेक मूर्ति को सर्जन जनरल पद पर नियुक्त किया.

राजनीति में बौबी जिंदल अमेरिका के लूसिआना राज्य के 3 बार गवर्नर रह चुके हैं और 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के एक उम्मीदवार भी थे हालांकि नवंबर में उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था. वे अमेरिका के किसी प्रांत के भारतीय मूल के पहले गवर्नर हैं. अमेरिका के संविधान के अनुसार, जिस का जन्म अमेरिका में नहीं हुआ है वह राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ सकता है. अनेक अन्य प्रतिष्ठित भारतीय अमेरिका में सम्मानित पदों पर हैं.

अमेरिका में भारतीय परंपरा

जहां भारतीयों ने अपनी परंपरा व संस्कृति को अमेरिका में भी बरकरार रखा है वहीं वे अमेरिका के प्रमुख त्योहारों में भी खुलेदिल से भाग लेते हैं, जैसे हैलोवीन के मौके पर भारतीय बच्चे पड़ोस के अमेरिकी घरों में जा कर ‘ट्रिक या ट्रीट’ का आनंद लेते हैं और अगर छोटे बच्चे अकेले जाने योग्य नहीं, तो मातापिता उन्हें साथ ले कर जाते हैं. क्रिसमस के अवसर पर भारतीय भी अपने घरों में क्रिसमस ट्री को सजा कर रंगबिरंगे बल्बों से रोशनी करते हैं. अमेरिकी लोगों की तरह भारतीय भी मन लगा कर काम करते हैं. सप्ताह के प्रथम 5 दिन काम करते हैं, बाकी के 2 दिन अपनेअपने व्यक्तिगत कार्य और मनोरंजन के लिए रखते हैं. सप्ताहांत में वे गेम्स, सिनेमा या कहीं भ्रमण पर निकलते हैं. इस के अलावा शौपिंग, ग्रौसरी, कपड़ों की धुलाई, घर की सफाई व बागबानी आदि में व्यस्त रहते हैं.

यहां लेबर बहुत महंगी होती है, इसलिए ज्यादातर काम स्वयं करना पड़ता है. भारत की तरह महरी, धोबी, ड्राइवर आदि की सुविधा नहीं है. अमेरिकी लाइफ बहुत फास्ट है. वे समय नष्ट नहीं करना चाहते, यहां तक कि खाने में भी. यही कारण है कि यहां फास्टफूड काफी प्रचलित हैं और अधिकतर काम स्वचालित यंत्रों द्वारा किए जाते हैं. यहां धुले कपड़े खुले में नहीं सुखाने पड़ते हैं, ये मशीन में ही पूरी तरह सूख जाते हैं. भारतीय भी इस से अछूते नहीं हैं. यहां सभी देशों के लोग आ कर बस गए हैं. सो, उन देशों के व्यंजन भी उपलब्ध हैं. बीचबीच में भारतीय भी अवकाश के दिन इस का आनंद लेते हैं. समय की कीमत यहां सभी को पता है, इसलिए ज्यादा मिलनाजुलना नहीं होता. अगर कहीं जाना भी हुआ तो पहले से फोन पर समय लेते हैं और ठीक समय पर ही जाते हैं. लौंग वीकेंड यानी शनिवार व रविवार के आगेपीछे कोई अवकाश हुआ तो भारतीय भी इस का भरपूर आनंद लेना नहीं भूलते. पहले से ही योजना बना कहीं दूर घूमने निकल जाते हैं.

राष्ट्रभक्ति और कानून

ऐसा नहीं है कि भारतीयों को सफलता हाथ पर हाथ रखे मिली हो. इस के लिए उन्हें भरपूर परिश्रम करना पड़ा है. अपनों को सात समंदर पार छोड़ बिछुड़ने की मानसिक पीड़ा सताती है. फिर यहां के बिलकुल नए वातावरण में अपने को ढालने में समय लगता है. अपने देश में बोले जाने वाली अंगरेजी और अमेरिकी अंगरेजी के उच्चारण में बहुत अंतर है. यहां की जीवनशैली भिन्न है. भारत की तरह ‘चलता है’ कल्चर यहां सोच भी नहीं सकते हैं. आप किसी भी देश, धर्म या जाति के हों, सब के लिए एक ही कानून है. यहां के लोग राष्ट्रभक्त होते हैं. भारतीय चाहे किसी भी धर्म के हैं, उन्हें या उन के बच्चों को अवसर पड़ने पर राष्ट्रगान गाना होता है.

यहां के यातायात नियम हमारे यहां से भिन्न ही नहीं, विपरीत भी हैं और ड्राइव करते समय हौर्न नहीं बजाना है. यहां अपने टीचर या बौस, चाहे कितना भी सीनियर हो, को उस के फर्स्ट नेम से संबोधित करना होता है, सर या मैडम नहीं. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कुछ वर्ष पहले ‘ओबामा केयर’ नियम बनाया था जिस के अंतर्गत यहां के बुजुर्ग स्थायी निवासियों को बहुत मामूली खर्च पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध है. इस लिहाज से भारतीय मूल के लोग अपने मातापिता को यहां का स्थायी निवासी (ग्रीन कार्ड) कार्ड ले कर यहां उन का उचित इलाज करा सकते हैं, जो चाहें तो 4-5 साल में नागरिकता भी प्राप्त कर सकते हैं. इस तरह बुजुर्ग मातापिता अमेरिका में बसे अपने बच्चों के साथ अब आराम से रह सकते हैं. अमेरिका अभी भी भारतीय युवाओं का ड्रीम डैस्टिनैशन है.           

..इसलिए सही से चार्ज नहीं होता आपका फोन

कई बार ऐसा होता है कि फोन को चार्जिंग पर लगाने के बाद भी फोन सही से चार्ज नहीं करता है. अगर ऐसा है तो जरूरी नहीं कि आपका फोन खराब हो गया हो या उसकी बैट्री वीक हो गई हो.

कई बार बहुत छोटी सी वजह के कारण भी फोन चार्ज नहीं हो पाता है. हम आपको बताने जा रहे हैं कि अगर आपका फोन सही से चार्ज नहीं हो रहा है तो आपको सबसे पहले किन बातों का ध्‍यान रखना

धूल या लिंट हटाएं

अगर आपका फोन सारा वक्‍त आपकी जींस या पॉकेट में रहता है तो उसमें लिंट या डस्‍ट जाने के चांसेस काफी ज्‍यादा रहते हैं. इसलिए, किसी फाइन ब्रश से मोबाइल के चार्जर प्‍वाइंट को साफ कर लें. क्‍योंकि लिंट या धूल, पोर्ट को ब्‍लॉक कर देते हैं जिससे फोन सही तरीके से चार्ज नहीं हो पाता है.

केबल बदलें

अगर आपको फोन चार्ज करने में दिक्‍कत आ रही है तो केबल को बदल दें. इससे फर्क पड़ेगा. कई बार लम्‍बे समय तक फोन के साथ आने वाली केबल को इस्‍तेमाल करने से भी दिक्‍कत आने लगती है.

एडाप्‍टर

धूल हटा दी, केबल भी चेंज करके देख ली, लेकिन फोन अभी भी चार्ज नहीं हो रहा है तो अपने चार्जर के एडाप्‍टर को बदल लें और किसी अन्‍य एडाप्‍टर से चार्ज करके देखें.

बैट्री

किसी भी फोन की बैट्री की एक लिमिट होती है ऐसे में आपका फोन पुराना होने की स्थि‍ति में बैट्री की समस्‍या हो सकती है. बैट्री को बदल कर देखें, अगर फोन सही से बैकअप दे रहा है तो साफ है कि आपको फोन में नई बैट्री लगानी होगी.

सही चार्जिंग सोर्स

कभी भी कहीं भी अपने चार्जर को बेकार से वायर के साथ जोड़कर फोन चार्ज न करें. फोन को चार्जिंग पर हमेशा वॉल सॉकेट से ही लगाएं, इससे वो प्रॉपर तरीके से चार्ज हो पाएगा.

बैट्री को कैलीब्रेट करें

कुछ मामलों में, फोन का बैट्री लेवल सही शो नहीं करता है. ऐसे में आपको चार्ज करने के बाद देखना चाहिए कि फोन कितने समय तक चल जाता है.

पानी की समस्‍या

कई बार फोन में पानी गिर जाने से फोन चार्ज करना बंद कर देता है. ऐसे में आपको फोन को खोलकर सुखा देना चाहिए, हो सके तो बैट्री को भी बदल देना चाहिए. इससे फोन में नमी नहीं आएगी और वो सही से चार्ज करने लगेगा.

डिवाइस बंद कर दें

अगर आपका फोन चार्ज नहीं होता है या धीमे चार्ज होता है तो उसे स्‍वीच ऑफ करके चार्ज करें. इससे वो फुल चार्ज हो जाएगा और आपको अंदाजा भी हो जाएगी कि इसे चार्ज करने में पहले के मुकाबले कितना समय लग रहा है.

रोल बैक

नया एंड्रायड वर्जन या सॉफ्टवेयर, बैट्री लाइफ के साथ हैवॉक को क्रिएट करता है. विशेषकर, पुरानी डिवाइस, नए सॉफ्टवेयर का लाभ उठाने के लिए ऑप्‍टीमाइज नहीं होती हैं. ऐसे में आप एंड्रायड के सॉफ्टवेयर को रोल बैक कर सकते हैं जिससे फास्‍ट चार्जिंग दुबारा होने लगेगी.

रियो में जीतो मेडल और बनों करोड़पति

रियो ओलंपिक में पदक जीतने पर उत्तराखंड सरकार अपने खिलाड़ियों पर जमकर धनवर्षा करने की तैयारी में है. खेल नीति के अनुसार स्वर्ण पदक जीतने पर डेढ़ करोड़ रुपये का पुरस्कार खेल विभाग देगा. वहीं खिलाड़ियों के लिए खेल विभाग बड़ी घोषणा भी कर सकता है.

प्रदेश में साल 2014 में खेल नीति लागू होने के बाद खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतने पर मिलने वाली पुरस्कार राशि को बढ़ा दिया गया था. खेल नीति लागू होने के बाद यह पहला ओलंपिक है, इसमें उत्तराखंड के एक साथ चार खिलाड़ी अपना जलवा बिखेरने को तैयार हैं. मनीष रावत, नितेंद्र सिंह रावत और गुरमीत सिंह एथलेटिक्स में अपना दम दिखाएंगे.

वहीं वंदना कटारिया हॉकी टीम में जलवा बिखेरेंगी. ओलंपिक के लिए टिकट हासिल कर देश भर में उत्तराखंड का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों पर ओलंपिक के बाद खेल विभाग धनवर्षा करेगा. वहीं पदक जीतने पर 50 लाख रुपये से अधिक का ईनाम खिलाड़ियों को मिलेगा.

खेल विभाग की मानें तो ओलंपिक के बाद प्रदेश लौटने पर चारों खिलाड़ियों का विशेष सम्मान होगा. वहीं सूत्रों की मानें तो पदक विजेता खिलाड़ी के लिए राज्य सरकार कोई बड़ी घोषणा भी करने की तैयारी में है. हालांकि यह घोषणा क्या होगी, इस बारे में अभी कोई जानकारी नहीं दी जा रही.

उपनिदेशक खेल अजय अग्रवाल ने बताया कि ओलंपिक में भाग लेने वाला उत्तराखंड के खिलाड़ी के लिए भी पुरस्कार का प्रारूप खेल नीति में रखा गया है. अगर कोई खिलाड़ी स्वर्ण, रजत, कांस्य जीतता है, तो उसको पदक के अनुसार पुरस्कार दिया जाएगा.

टीम में खेलें तो भी व्यक्तिगत के बराबर पुरस्कार

खेल विभाग ने ओलंपिक सहित अन्य प्रतियोगिताओं में व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए 50 लाख रुपये से अधिक का ईनाम रखा है. वहीं टीम प्रतिस्पर्धा जैसे हॉकी, फुटबाल सहित अन्य खेलों में भारतीय टीम में शामिल होकर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में खेलने वाले प्रदेश के एक खिलाड़ी को भी व्यक्तिगत के बराबर पुरस्कार दिया जाएगा.

ये है ओलंपिक खिलाड़ी का पुरस्कार

पदक व्यक्तिगत/टीम स्पर्धा           पुरस्कार

स्वर्ण                                          15000000

रजत                                          10000000

कांस्य                                           5000000

प्रतिभाग                                         500000

तारीफ में ना करें कंजूसी

लड़कियों के बीच कितनी भी अच्छी दोस्ती क्यों ना हो, वे एकदूसरे से कितनी भी बातें शेयर क्यों ना करतीं हों, लेकिन जब बारी आती है तारीफ करने की तो ‘‘ठीक है, अच्छी है, ओकेओके है.’’ कह कर बात बदल देती हैं. अगर कभी उन की फ्रैंड उन से ज्यादा अच्छी ड्रैस पहन कर आ जाए तो मन ही मन ईर्ष्या करने लगती हैं कि आखिर इस की ड्रैस मुझ से अच्छी कैसे हो सकती है. जरूर किसी ने गिफ्ट दिया होगा. उस की तारीफ करने की बजाय उस में कमियां निकालना शुरू कर देती हैं.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ लड़कियां ही एकदूसरे की तारीफ नहीं करतीं, बल्कि आज के समय में हम सब तारीफ में कंजूसी करते हैं. किसी की कोई चीज अच्छी लगती है तो उस की तारीफ तो नहीं करते लेकिन उस के बारे में सारी चीजें पूछ लेते हैं कि कहां से खरीदा है, कितने का खरीदा है.

दरअसल हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हम सोचते हैं कि अगर हम ने सामने वाले की तारीफ की तो वह खुद को हम से सुपीरियर ना समझने लगे.

लेकिन ऐसा करना सही नहीं है. आप किसी की तारीफ में भले ही दो शब्द कहते हों लेकिन आप के इस दो शब्द से सामने वाले का कौंफिडैंस बढ़ता है और वह चीजों को और भी अच्छे से करने का प्रयास करने लगता है. मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि तारीफ से किसी भी इंसान का जीवन बदला जा सकता है और तारीफ करने वाला भी सुखद अनुभव करता है. किसी की तारीफ करना यह बताता है कि आप का नजरिया पौजेटिव है और आप दूसरों को देख कर ईर्ष्या नहीं करते. जब आप किसी की तारीफ करते हैं तो सामने वाले की नजरों में आप के लिए सम्मान और भी ज्यादा बढ़ जाता है. साधारण सी बात है लोग भी उन्हीं के साथ रहना पसंद करते हैं और उन्हीं पर विश्वास करते हैं जिन के साथ से उन्हें खुशी मिलती है.

तारीफ करने के हैं कई फायदे

– तारीफ करने से आप के बीच एक रिलेशन डेवलप होता है जिस से सामने वाले के अंदर यह विश्वास पैदा होता है कि आप उसे जो भी सुझाव देंगे सही होगा.

– लोग आप से बातें छुपाते नहीं, बल्कि बताना पसंद करने लगते हैं.

– आप की पौजिटिव पर्सनाल्टी से खुश होते हैं और आप के साथ रहना पसंद करते हैं.

– किसी के लिए आप के दिमाग में निगेटिव विचार नहीं आता और आप हैप्पी हैप्पी फील करते हैं.

– जब करें तारीफ तब इन बातों का भी ध्यान रखें.

– आप को पता है कि उस व्यक्ति से काम निकल सकता है इसलिए उस की तारीफ न करें और हां तारीफ के बदले किसी काम या मदद की अपेक्षा ना रखें.

– तारीफ करते समय अपनी सीमा, दूसरे व्यक्ति की सहजता का ध्यान रखें, ऐसी कोई बात ना कहें जिस से सामने वाले को बुरा लगे.

– जब कोई आप की तारीफ करे तो बदल में आप भी तारीफ ना करें. ऐसा करने से लगता है कि आप बदले में सामने वाले की तारीफ कर रहे हैं. बल्कि जब कोई तारीफ करे तो उसे मुसकरा कर धन्यवाद करें.

– जिस चीज के लिए आप की तारीफ की जा रही है उस की कीमत ना बताने लगें कि आप ने उसे कहां से और कितने में खरीदा है.

– अगर कोई तारीफ ना करे तो खुद से अपनी तारीफ ना करने लगें. आप का ऐसा व्यवहार सामने वाले को अजीब लग सकता है.

– तारीफ में बनावटीपन ना हो बल्कि खुल कर ईमानदारी से तारीफ करें.

क्यों उत्साहित हैं तनिष्ठा चटर्जी

बौलीवुड अदाकारा तनिष्ठा चटर्जी का एक पैर भारत में दूसरा पैर विदेश में रहता है. इसकी मूल वजह उनकी फिल्में हैं. तनिष्ठा चटर्जी बौलीवुड की उन अभिनेत्रियों में से हैं, जो कि हौलीवुड फिल्मों में अभिनय करने के अलावा बौलीवुड की उन फिल्मों में अभिनय कर रही हैं, जिनके वर्ल्ड प्रीमियर विदेश में किसी न किसी अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में पहले होते रहते हैं. अब तक ‘पाच्र्ड’ सहित उनकी कई बौलीवुड फिल्मों के वर्ल्ड प्रीमियर विदेशी धरती पर वहां के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में हो चुके हैं, पर यह फिल्में भारत में अब तक रिलीज नहीं हुई हैं.

अब खबर है कि एक बार फिर तनिष्ठा चटर्जी सितंबर माह में जापान के टोरंटो शहर जा रही हैं. इस बार वह भारतीय मूल के हौलीवुड स्टार देव पटेल व हौलीवुड कलाकारों निकोल किडमैन व रूनी मारा के अभिनय से सजी अपनी हौलीवुड फिल्म ‘‘लायन’’ के लिए टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का हिस्सा बनने वाली हैं. इससे तनिष्ठा चटर्जी बहुत उत्साहित हैं.

हौलीवुड फिल्म ‘‘लायन’’ ऐसी फिल्म है, जिसका कुछ हिस्सा भारत के कलकत्ता शहर में फिल्माया गया था. कलकत्ता में शूटिंग के दौरान निकोल किडमैन नहीं आ पाई थी. कलकत्ता में इस फिल्म के लिए तनिष्ठा चटर्जी व देव पटेल ने शूटिंग की थी. तो अब टोरंटो में तनिष्ठा चटर्जी पहली बार निकोल किडमैन से मुलाकात करेंगी. खुद तनिष्ठा चटर्जी कहती हैं-‘‘मैं बहुत खुश और उत्साहित हूं कि सितंबर माह में टोरंटो में फिल्म ‘लायन’ के वर्ल्ड प्रीमियर के दौरान मेरी मुलाकात व गपशप निकोल किडमैन से हो सकेगी.’’     

फिल्म ‘‘लायन’’ की चर्चा करते हुए तनिष्ठा चटर्जी ने आगे कहा-‘‘मैं आस्ट्रेलिया में अपनी एक फिल्म की शूटिंग कर रही थी, तभी फिल्म ‘लायन’ के निर्देशक गर्थ डाविस का ईमेल आया था, जिसमें उन्होंने मेरे अभिनय की तारीफ करते हुए फिल्म ‘लायन’ से जुड़ने का आफर दिया था. मेरा किरदार फिल्म का अहम हिस्सा है. किरदार को लेकर  कुछ कह नहीं सकती. मैने अपने किरदार के बारे में बताया, तो फिल्म का रहस्य खुल जाएगा.’’

अक्षय कुमार ने कबूला सबसे बड़ा सच

फिल्म हो या टीवी सीरियल, हर माध्यम में लेखक की भूमिका अहम होती है. मगर बौलीवुड में लेखक को कोई महत्व ही नहीं दिया जाता. एक फिल्म के सफल होने का सारा श्रेय फिल्म में अभिनय करने वाले कलाकार ही बटोर लेते हैं. इन कलाकारों का मानना है कि सब कुछ वही करते हैं. जबकि सबसे बड़ा सच यह है कि यदि फिल्म की कहानी अच्छी न हो, पटकथा अच्छी न लिखी गयी हो, तो फिल्म का निर्देशक व कलाकार की सारी मेहनत बेकार हो जाती है.पर इस सच को स्वीकार करने का साहस कोई कलाकार या निर्देशक नहीं दिखाता. मगर दो दिन पहले 12 अगस्त को प्रदर्शित हो रही अपनी फिल्म ‘‘रूस्तम’’ के प्रचार के मद्देनजर मीडिया से बात करते हुए अक्षय कुमार ने इस सच को अपरोक्ष रूप से स्वीकार किया.

वास्तव में जब कुछ पत्रकारों ने अक्षय कुमार से सवाल किया कि फिल्म ‘‘रूस्तम’’ में उन्होंने एक देशभक्त इंसान, पत्नी से प्यार करने वाला तथा हत्यारे का किरदार निभाया है. इस तरह के किरदार को निभाना उनके लिए कितना कठिन था. इस सवाल पर अक्षय कुमार ने कहा-‘‘एक कलाकार के तौर पर इस तरह के किरदार निभाना मेरे लिए कभी भी मुश्किल नहीं होता. हम तो वही कैमरे के सामने अभिनय करते हैं, जो कि फिल्म की पटकथा में लिखा होता है. मगर यह काम पटकथा लिखने वाले लेखक के लिए जरुर कठिन होता है. मुझे तो सिर्फ अभिनय करना होता है.’’

छवि बिगाड़ती ‘रेप पॉलिटिक्स’

‘रेप पॉलिटिक्स’ ने उत्तर प्रदेश की छवि को फिर से बिगाडने का काम शुरू कर दिया है. उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर में हाईवे पर गाडी को रोक कर मां-बेटी के साथ रेप की घटना ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को गर्म कर दिया है. दिल्ली में लोकसभा से लेकर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक राजनीतिक बयानबाजी से तेज हो गई है. राज्यसभा में जब बसपा नेता मायावती ने उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध का मुद्दा उठाया और प्रदेश की समाजवादी सरकार को बर्खास्त करने की मांग शुरू कर दी. मायावती का जवाब देती सपा नेता अभिनेत्री जया बच्चन ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध पर राजनीति नहीं होनी चाहिये. बुलन्दशहर रेप कांड को समाजवादी नेता और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री आजम खां ने राजनीति से प्रेरित बताकर राजधानी लखनऊ में रेप पर विवाद को हवा दी तो भाजपा के प्रवक्ता आईपी सिंह ने आग में घी डालने का काम किया.

महिलाओं के खिलाफ अपराध को बहुत ही संवेदनशील होकर देखने की जरूरत होती है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बुलदंशहर प्रकरण को बहुत तेजी से हल करने का काम किया. उनकी मंशा को समझते हुये पुलिस विभाग के आला अफसर मौके पर गये. यह बात सही है कि पुलिस अगर हाईवे पर पेट्रोलिंग सही से करती तो ऐसे अपराध न होते. पुलिस की कमी है कि वह गश्त को सही तरह से अंजाम नहीं देती. अपराध के खिलाफ होने वाले मुकदमो में पहले लेवल में ही गंभीर नहीं होती है. ऐसे में अपराध होने की दशा में सरकार की छवि खराब होती है. उत्तर प्रदेश के बदांयू कांड को लोग अभी भूले नहीं है. पेड पर लटकी लडकियों की लाश ने प्रदेश सरकार दबाव में आ गई थी.

नेताओं को अपराध के खिलाफ आवाज उठाते समय अपने बयानों को समझबूझ कर बोलना चाहिये. कई बार नेता ऐसे बयान मामलों को हल्का करने के लिये देते है तो कई बार खुद को चर्चा में लाने के लिये ऐसे बयानों का सहारा लेते है. मीडिया भी ऐसे बयानों को हवा देने का काम करती है. इन सबका प्रभाव प्रदेश की छवि पर पडता है. दूसरे राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में पर्यटक बहुत कम आते है. उसके बाद हाईवे पर होने वाली घटनायें उनको डराने का काम करती है. पर्यटक ही नहीं दूसरे तमाम लोग अब परिवार के साथ रात में सफर करने से बचते है. प्रदेश के ऐसे हालात ठीक नहीं होते है. अपराध का राजनीति हल नहीं हो सकता. अपराध एक तरह की सामाजिक बीमारी है. इसको कानून व्यवस्था और जागरूकता के बल पर ही रोका जा सकता है.

उत्तर प्रदेश बहुत ही शांत और सुखद सफर वाला प्रदेश है. हाइवे पर ऐसी घटनाओं को रोकना चाहिये. इस मुद्दे पर राजनीति न करके ठोस कदम उठाने चाहिये. जो लोग सत्ता में हैं उनकी जिम्मेदारी ज्यादा होती है पर दूसरे नेताओं को भी राजनीति न करने का ख्याल रखना चाहिये. नेताओं के गैर जिम्मेदारी भरे बयान प्रदेश की छवि को खराब करते हैं. राजनीति में कुठिंत बयानबाजी को रोकना चाहिये. ऐसे बयानों को मीडिया भी प्रचारित करने से रोके तो यह बंद हो सकते है. रेप का शिकार मांबेटी अपनी परेशानियों में जूझ रही है. बेटी बीमार है. रेप की शिकार नाबालिग लडकियां मानसिक बीमारी का शिकार हो जाती हैं. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि समाज के लोग भी जागरूक हो और महिलाओं के खिलाफ एकजुट प्रयास करें. अपराधी को कानून सजा से सामाजिक बहिष्कार भी हो.                          

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें