लड़कियों के बीच कितनी भी अच्छी दोस्ती क्यों ना हो, वे एकदूसरे से कितनी भी बातें शेयर क्यों ना करतीं हों, लेकिन जब बारी आती है तारीफ करने की तो ‘‘ठीक है, अच्छी है, ओकेओके है.’’ कह कर बात बदल देती हैं. अगर कभी उन की फ्रैंड उन से ज्यादा अच्छी ड्रैस पहन कर आ जाए तो मन ही मन ईर्ष्या करने लगती हैं कि आखिर इस की ड्रैस मुझ से अच्छी कैसे हो सकती है. जरूर किसी ने गिफ्ट दिया होगा. उस की तारीफ करने की बजाय उस में कमियां निकालना शुरू कर देती हैं.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ लड़कियां ही एकदूसरे की तारीफ नहीं करतीं, बल्कि आज के समय में हम सब तारीफ में कंजूसी करते हैं. किसी की कोई चीज अच्छी लगती है तो उस की तारीफ तो नहीं करते लेकिन उस के बारे में सारी चीजें पूछ लेते हैं कि कहां से खरीदा है, कितने का खरीदा है.

दरअसल हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हम सोचते हैं कि अगर हम ने सामने वाले की तारीफ की तो वह खुद को हम से सुपीरियर ना समझने लगे.

लेकिन ऐसा करना सही नहीं है. आप किसी की तारीफ में भले ही दो शब्द कहते हों लेकिन आप के इस दो शब्द से सामने वाले का कौंफिडैंस बढ़ता है और वह चीजों को और भी अच्छे से करने का प्रयास करने लगता है. मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि तारीफ से किसी भी इंसान का जीवन बदला जा सकता है और तारीफ करने वाला भी सुखद अनुभव करता है. किसी की तारीफ करना यह बताता है कि आप का नजरिया पौजेटिव है और आप दूसरों को देख कर ईर्ष्या नहीं करते. जब आप किसी की तारीफ करते हैं तो सामने वाले की नजरों में आप के लिए सम्मान और भी ज्यादा बढ़ जाता है. साधारण सी बात है लोग भी उन्हीं के साथ रहना पसंद करते हैं और उन्हीं पर विश्वास करते हैं जिन के साथ से उन्हें खुशी मिलती है.

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