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मेहनत का कोई शौर्टकट नहीं होता: टीना डाबी

जिंदगी में अगर ठान लिया कि हमें यह मुकाम हासिल करना है, तो ऐसा कोई कारण नहीं कि सफलता न मिले. लेकिन इस के लिए हमें कड़ी मेहनत, फोकस व संयम की जरूरत पड़ती है. इन्हीं सब के बूते टीना डाबी ने पहली बार में ही यूपीएससी में टौप कर सब को चौंका दिया. महज 22 वर्ष की उम्र में अपने पहले ही प्रयास में देश की सब से प्रतिष्ठित यूपीएससी की परीक्षा में टौप करना गौरव की बात होती है. दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा रही टीना डाबी अपनी मां को प्रेरणा बताते हुए कहती हैं कि वे अपनी मां के मार्गदर्शन के कारण ही इस मुकाम तक पहुंची हैं. बता दें कि टीना की मां हेमाली ने बेटी की पढ़ाई के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी. पिता जसवंत डाबी दूरसंचार विभाग में अधिकारी हैं.

टीना की इस सफलता पर उन की मां का कहना है कि उन की बेटी उन की हीरो है. टीना के पिता इस रिजल्ट से काफी गौरवान्वित हैं. उन का कहना है कि महज 22 साल की उम्र में टीना ने पहली कोशिश में ही जो मुकाम हासिल किया है वह उन के लिए गर्व और आश्चर्य की बात है. आइए जानते हैं, टीना की सफलता की कहानी उन्हीं की जबानी :

जब आप को यूपीएससी में टौप करने की सूचना मिली, तब कैसा महसूस हुआ?

मुझे बेहद खुशी हुई. यह मेरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिन रहा. सब से अधिक खुशी इस बात की रही कि मैं ने अपने मातापिता के सपने को पूरा किया.

हर सफलता के पीछे जहां आप की मेहनत सब से बड़ा रोल निभाती है, वहीं आप का कोई न कोई रोल मौडल भी होता है. आप अपना रोल मौडल किसे मानती हैं?

इस सफलता का श्रेय मैं खुद को देने के साथसाथ अपनी मां को देती हूं. मेरी मां मेरी आदर्श हैं. वे चाहती थीं कि मैं राजनीति विज्ञान की पढ़ाई करूं. मैं ने इस का चुनाव किया और परीक्षा पास की. यह मेरा मुख्य विषय था. मां ने शुरू से ही मुझे आगे बढ़ाया और कहा कि मैं सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करूं, आईएएस बनूं.

परिवार से कितना सपोर्ट मिला?

परिवार के सपोर्ट के बिना मेरे लिए यह सफलता प्राप्त करना मुश्किल था. मेरी सफलता के पीछे परिवार के साथसाथ धैर्य, फोकस और अनुशासन का भी बहुत बड़ा हाथ है.

आखिर आप ने हरियाणा को ही क्यों चुना?

मैं हमेशा से चुनौतीपूर्ण राज्य में काम करना चाहती थी इसलिए मैं ने हरियाणा को चुना. हम जानते हैं कि वहां युवक और युवतियों का अनुपात काफी कम है, इसलिए मैं वहां महिला सशक्तिकरण के लिए अपना योगदान देना चाहती हूं.

आप की सफलता की बात सोशल साइट्स पर खूब वायरल हुई. साथ ही यह भी कि तैयारी के दौरान आप ने करीब एक साल तक अपना फेसबुक अकाउंट डिऐक्टिवेट रखा? इस बात में कितनी सचाई है?

हां, यह सच है. मुझे अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना था, इसलिए मैं सोशल मीडिया से भी दूर हो गई थी, लेकिन रिजल्ट आने के बाद मैं ने अपना फेसबुक अकाउंट फिर से ऐक्टिवेट कर दिया. लेकिन ऐसा नहीं था कि इस दौरान मैं ने अपनेआप को एक कमरे में बंद कर लिया हो.

दोस्तों से मिलनाजुलना होता रहा या वह भी बंद था?

मैं 15-20 दिन में अपने दोस्तों से मिलने जाती थी व शौपिंग भी करती थी.

अपनी तैयारी के बारे में भी कुछ बताइए?

कामयाबी के लिए धैर्य रखना बहुत जरूरी है. साथ ही परीक्षा में सफलता के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति का होना भी जरूरी है. जैसा कि आप को पता ही होगा कि मैं ने श्रीराम कालेज औफ कौमर्स, दिल्ली से राजनीति विज्ञान में ग्रैजुएशन की. मैं ने 20 साल की आयु में ही ग्रैजुएशन कर ली थी, लेकिन 21 साल का न होने के कारण मैं यूपीएससी की परीक्षा में नहीं बैठ सकती थी. इसी वजह से एक साल तक कोचिंग ली और 2015 में सिविल सेवा की परीक्षा के लिए आवेदन किया. अगर हम कठिन परिश्रम करें और पूरी लगन से लक्ष्य पर टिके रहें, तो सफलता अवश्य मिलती है.

आप की सफलता में आप के कालेज का कितना योगदान है?

कोई किसी भी कालेज से पढ़े, वह हमेशा अपने कालेज को बैस्ट ही बताता है. हम जो अपनी कालेज लाइफ में पढ़ते हैं, वह हमारे साथ जीवनभर रहता है. पर मैं कहूंगी कि लेडी श्रीराम कालेज के छात्रों की नींव काफी मजबूत होती है.

जो युवकयुवतियां सिविल सेवा की तैयारी कर रहे हैं, उन के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी?

सिविल सेवा में सफलता के लिए कड़ी मेहनत की जरूरत होती है. आप को धैर्य रखना पड़ता है. पूरे साल परीक्षा चलती रहती है, इस दौरान आप को मानसिक रूप से हमेशा तैयार रहना पड़ता है.

इस परीक्षा की तैयारी कर रहे युवकयुवतियों को एक दिन भी गंवाना नहीं चाहिए. मेहनत करें क्योंकि मेहनत का कोई शौर्टकट नहीं होता.               

खरीदार और उस के अधिकार

जब कोई इनसान बाजार से किसी भी चीज को खरीदता है, तब वह उपभोक्ता यानी खरीदार कहलाता है. हम सभी उपभोक्ता हैं, क्योंकि रोज ही हम अपने इस्तेमाल की कोई न कोई चीज खरीदते रहते हैं. इन चीजों में दूध, सब्जी, कापी, पैंसिल, कपड़े, फर्नीचर व बिजली का सामान जैसी बहुत सी चीजें आती हैं. उपभोक्ता इन चीजों को खरीदने के लिए पैसा, समय, ताकत व दिमाग आदि का इस्तेमाल करता है. रोजाना इस्तेमाल में आने वाली चीजें हम बाजार में कई जगहों से खरीद सकते हैं जैसे कि दुकान, फुटपाथ, बाजार, थोक की दुकान या केंद्रीय भंडार.

उपभोक्ता आमतौर पर बाजार की सही जानकारी नहीं रखते, जैसे कि कौन सी नईनई चीजें बाजार में बिक रही हैं, कौन सी चीज कहां अच्छी व सस्ती मिल सकती है. बेचने वाला खरीदने वाले की इस नादानी का फायदा उठाता है और गलत तरीके इस्तेमाल करता है जैसे कि कम तोलना, सही चीज न देना, मिलावट करना आदि. इस तरह से बेचने वाला तो ज्यादा फायदा कमाता है, लेकिन उपभोक्ता अपना पैसा खर्च कर के भी पूरी तसल्ली नहीं पाता. इसलिए बाजार से किसी चीज को खरीदते समय उपभोक्ता को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जैसे किसी एक चीज की अलगअलग कीमतें होना, चीजों का बाजार में न मिलना, मिलावट होना, गलत मापतोल होना, घटिया किस्म होना आदि.

ऐसे में जरूरत है कि खरीदारों को उन के अधिकारों  प्रति जागरूक किया जाए और चीजों के बारे में पूरी जानकारी दी जाए ताकि वे धोखाधड़ी का शिकार न हो सकें. उन को अपने अधिकारों व कर्तव्यों की सही जानकारी होनी चाहिए.

खरीदार के अधिकार

– सुरक्षा का अधिकार

– जानकारी का अधिकार

– चयन का अधिकार

– सुनवाई का अधिकार

– क्षतिपूर्ति का अधिकार

– उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार

– सूचना का अधिकार

– स्वस्थ वातावरण का अधिकार

उपभोक्ता यानी खरीदारों के अधिकारों के अलावा कुछ कर्तव्य भी हैं. उन को चाहिए कि अपने कर्तव्यों के प्रति सावधान रहें, दिमाग से खरीदारी करें व अधिकारों का गलत इस्तेमाल न करें.

खरीदार के कर्तव्य

– उचित कीमत व गुणवत्ता वाली चीजें खरीदना.

– खरीदारी से पहले मापतोल की जांच करना.

– लेबल को ठीक तरह से पढ़ना.

– झूठे व लुभावने विज्ञापनों से बचना.

– वस्तु का बिल, नकद रसीद, गारंटी आदि लेना.

– वस्तुओं को अच्छी दुकानों से खरीदना.

– काला बाजार से चीजें न खरीदना.

– सरकारी मान्यता वाली वस्तुओं का इस्तेमाल करना.

– अधिकारों की जानकारी होना.

आज का खरीदार कम आमदनी, ज्यादा दाम और दुकानदारों के खराब रवैए से दुखी रहता है. चीजों में मिलावट करना और ग्राहक को वस्तु के बारे में गलत बताना जैसी बातें आम हैं. उत्पादक ज्यादा से ज्यादा फायदा कमाना चाहते हैं और इस से खरीदार को क्या नुकसान होगा इस बारे में वे बिल्कुल नहीं सोचते.

अब खरीदारों को नुकसान न हो इस के लिए सरकार ने कई कार्यक्रम शुरू किए हैं. ग्राहकों को जागरूक करने के लिए सरकार अखबार, टीवी व रेडियो में कई विज्ञापन दे रही है. इन विज्ञापनों में बताया जाता है कि उपभोक्ता के क्या अधिकार हैं व उन के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार क्या कर सकती है.

‘जागो ग्राहक जागो’  सरकार द्वारा चलाया गया ऐसा ही एक कार्यक्रम है, जिस में उपभोक्ता को जानकारी दी जाती है कि अगर उन के साथ धोखाधड़ी होती है तो वे कहां और कैसे शिकायत कर सकते हैं और सरकार किस प्रकार दोषी दुकानदार को सजा दे सकती है.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है. इस के लिए 3 स्तरीय न्याय दिलाने वाली प्रणाली शुरू की गई है. कई स्तरों पर उपभोक्ता मंच बनाए गए हैं. ये मंच उपभोक्ता के अधिकारों और हितों की सुरक्षा के लिए काम कर रहे हैं. हर जिले, राज्य व केंद्र में मंच या आयोग बनाए गए हैं, जहां उपभोक्ता अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं. जिला स्तर पर 20 लाख से 1 करोड़ रुपए तक के मुआवजे की शिकायत सुनी जाती है और राष्ट्रीय स्तर पर 1 करोड़ रुपए से ऊपर के मुआवजे की सुनवाई होती है. सुप्रीम कोर्ट में आखिरी सुनवाई होती है. इस नियम के तहत आयोग में 3 महीने के भीतर शिकायत पर कार्यवाही कर के फैसला सुनाने की व्यवस्था की गई है. न्यायालय में शिकायत के लिए कोई फीस नहीं भरनी पड़ती.

लिहाजा उपभोक्ता संरक्षण और उस के अधिकारों को जान कर उपभोक्ता धोखाधड़ी के शिकार होने से बच सकते हैं और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो सकते हैं.     

– डा. रजिया परवेज

किसानों के सवाल, कृषि मंत्री के जवाब

फेसबुक के जरीए केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने देश के किसानों से सीधे बात की. इस दौरान किसानों ने केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह पर सवालों की बौछार कर दी. कुछ सवाल सरकार के कामों की तारीफ वाले थे, तो कुछ सवाल योजनाओं के जमीन पर न उतरने से जुड़े थे. कुछ किसानों ने सरकार को योजना लागू करने के सुझाव भी दिए. 1 घंटे की फेसबुक चर्चा में राधामोहन सिंह से 417 सवाल पूछे गए, जिन में से 3 सौ से ज्यादा सवालों के जवाब उन्होंने तुरंत दिए.

राधामोहन सिंह का कहना है कि इस चर्चा से वे काफी खुश हैं. फेसबुक के जरीए किसानों से बातचीत का सिलसिला वे हर महीने जारी रखेंगे. इस के अलावा वे जल्दी ही ट्विटर के जरीए भी बातचीत का सिलसिला शुरू करने वाले हैं.

किसानों के मन में उठे भ्रम को दूर करने की कोशिश में राधामोहन सिंह ने हर सवाल का जवाब देने की कोशिश की, लेकिन योजनाओं के जमीन पर न उतर पाने वाले सवाल पर वे थोड़ा गंभीर जरूर हुए.

उत्तर प्रदेश  के कुशीनगर के वशिष्ठ सिंह ने राधामोहन सिंह से सीधे सवाल दागा कि क्या वजह है कि केंद्र की कृषि योजनाओं की जानकारी जिले में नहीं मिल पा रही है?

वहीं एक दूसरे प्रश्नकर्ता पुष्पेंद्र सिंह ने मंत्री महोदय से सवाल किया कि केंद्र की योजनाएं जमीन पर क्यों नहीं उतर पा रही हैं?

इस सवाल के बारे में राधामोहन सिंह ने कहा कि कृषि योजनाओं के लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों पर है. आंध्र प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में कृषि योजनाओं की रफ्तार बेहद तेज है. वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार सरीखे राज्यों में योजनाओं की रफ्तार अच्छी नहीं है. उन्होंने कम रफ्तार वाले राज्यों से योजनाओं की गति बढ़ाने की बात कही. उन का कहना है कि कृषि योजनाओं को लागू करना राज्यों की रुचि पर निर्भर है.

राधामोहन सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षी योजना मृदा हेल्थ कार्ड के बंटवारे का काम काफी धीमा है. इस मामले में कृषि मंत्रालय ने राज्य सरकार को चिट्ठी लिखी है.

राधामोहन सिंह ने कहा कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव से इस बारे में बात की है. उन्होंने हर किसान के हाथ में ‘मृदा हेल्थ कार्ड’ देने का भरोसा दिलाया है.  

चीन से मुंह की खाई

परमाणु सामग्री को बेचने वाले देशों में शामिल होने के लिए इस बार नरेंद्र मोदी ने एड़ी से चोटी का जोर लगा दिया, पर चीन से बुरी तरह मुंह की खाई. चीन अड़ा रहा कि वे देश, जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इस न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप के सदस्य नहीं बन सकते और अपने देश में बनाए गए परमाणु उपकरण दूसरों को नहीं बेच सकेंगे. नरेंद्र मोदी ने इस मामले को इस ढंग से लिया मानो सोमनाथ का मंदिर बनवाना हो और बनवाना है तो बनवाना ही है. उन्होंने न केवल पहले कई देशों की यात्रा की, बल्कि अमेरिका को पूरी तरह मना लिया. पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश और पिछले भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ हुए समझौते के बाद यह काम कठिन न था और अमेरिका खुद चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है, फिर भी अमेरिका हजारों टैलीफोन कालों के बावजूद दक्षिणी कोरिया में जमा हुए देशों में बहुतों को मना लेने के बाद भी चीन को टस से मस न कर पाया.

परमाणु सामग्री बेचने का हक पाने के बाद देश का यह उद्योग बहुत पनप सकता है. और क्षेत्रों में हम चाहे कैसे भी हों, परमाणु और स्पेस टैक्नोलौजी में हमारे वैज्ञानिक दुनिया के वैज्ञानिकों का मुकाबला कर रहे हैं. हालांकि उत्तरी कोरिया, दक्षिणी अफ्रीका, इजरायल, पाकिस्तान, ईरान आदि के पास भी यह तकनीक है, पर इन से दुनिया के दूसरे देश डरते हैं. लेकिन भारत पर अभी सब को भरोसा है कि वह कभी आक्रामक न होगा और अपनी सरहदें पार न करेगा. फिर भी चीन ने भारत को इस विशिष्ट ग्रुप में घुसने न दे कर साबित कर दिया है कि विदेश नीति नाचगानों और गर्मजोशी के साथ झप्पी मारने पर निर्धारित नहीं होती, बल्कि अपने हितों पर निर्भर होती है. चीन का हित यह है कि भारत को न परमाणु सामग्री मिले और न वह बेच पाए, क्योंकि चीन के दूसरे सब से बड़े पड़ोसी भारत से उस का सीमा विवाद गहरा है.

चीन की नाराजगी का कारण यह भी है कि तिब्बती राजाओं ने सदियों पूर्व हिमालय के इस पार की पहाडि़यों पर अकसर राज किया है और भारत के मैदानी इलाकों के राजाओं ने इन पहाड़ी क्षेत्रों को केवल पूजनीय बना कर छोड़ रखा था. इतिहास का हवाला दे कर चीन बहुत सा इलाका मांगता रहता है, पर वह आणुविक युद्ध का खतरा मोल नहीं लेना चाहता. चीन और भारत दोनों एशियाई देश 30 साल पहले एक से गरीब थे. चीन हालांकि कभी भारत की तरह गुलाम नहीं रहा, पर चीनी कुलियों और भारतीय कुलियों में फर्क नहीं रहा. आज भारत काफी पीछे है और चीन कोई मौका नहीं देना चाहता कि भारत दौड़ में उस के पास आ जाए. विदेश नीति में गहरी चोट लगा कर चीन को कुछ और मिले न मिले, उस ने भारत व नरेंद्र मोदी को औकात तो दिखा दी.

जिमनास्ट दीपा: छोटी लड़की का बड़ा कमाल

रबड़ की गुडि़या के नाम से मशहूर 22 साल की दीपा कर्माकर आज एक बड़ी सैलिब्रिटी बन गई है. उस का सैलिब्रिटी बनना तो तय था, क्योंकि वह लंबे अरसे से जिमनास्टिक जैसे साहसिक खेल में लगातार उम्दा प्रदर्शन कर रही थी. रियो टैस्ट इवैंट में स्वर्ण पदक जीत कर उस ने दिखा दिया कि वह बड़े मुकाबले को तैयार है. इस ऐतिहासिक सफलता के साथ दीपा को उस युवा ब्रिगेड में शामिल होने का गौरव हासिल हुआ है जो ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करेगी. जिमनास्टिक में दीपा ओलंपिक क्वालिफाई करने वाली एकलौती भारतीय खिलाड़ी है. उस ने कलात्मक स्पर्धा में खेलने का हक हासिल किया है.

आज पूरा देश पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा जैसी जगह की लड़की दीपा कर्माकर का कायल है. आखिर कायल क्यों न हो, 52 साल बाद ओलंपिक में देश के लिए एकलौती भागीदारी इस खिलाड़ी के जज्बे की कहानी बयां करती है. वाकई यह एक बहुत बड़ी कामयाबी है. इस से पहले वर्ष 1964 में टोक्यो ओलंपिक में भारत ने आखिरी बार जिमनास्टिक में भाग लिया था. दीपा अब ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में  ओलंपिक में भाग ले रही है. इसी शहर में आयोजित टैस्ट इवैंट चैंपियनशिप में उस ने अपने अद्भुत प्रदर्शन से उन नामीगरामी जिमनास्टों को हैरत में डाल दिया, जिन की इस खेल में लंबे समय से बादशाहत कायम थी. दीपा जिमनास्टिक की जिस विधा ‘प्राडूनोवा वौल्ट’ में कुलांचें भरती है, यह सब से मुश्किल विधा है. दुनिया की महज 5 महिलाओं ने अब तक इसे किया है. रियो में दुनिया के 14 जिमनास्टों में उस का प्रदर्शन सब से बेहतरीन (15,066 अंक) रहा था. ओलंपिक में उस ने कलात्मक स्पर्धा में खेलने का हक हासिल किया है. कुल मिला कर करीब 5 दशक बाद कोई भारतीय युवती जिमनास्टिक में भारत की नुमाइंदगी कर रही है.

अनोखी संघर्षगाथा

महज 6 साल की उम्र में दीपा के पिता दुलाल कर्माकर, जो भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) में भारोत्तोलन कोच हैं, ने बेटी को जबरन जिमनास्टिक कोच बिश्वेश्वर नंदी के हाथों सौंप दिया. यह देख कर नंदी खुद हैरानपरेशान थे, क्योंकि नन्ही दीपा पौस्चुरल डिफौर्मिटी की शिकार थी. उस के पैर सपाट थे, जो जिमनास्टिक के लिए प्रतिकूल स्थिति नहीं मानी जाती. खुद दीपा का खेलों के प्रति ज्यादा लगाव भी नहीं था, लेकिन पिता 2 बेटियों में से एक को खेल में उतारना चाहते थे. दीपा ने अपने पैरों में लोच लाने के लिए रातदिन एक कर दिया.

आखिर उसे सफलता मिल ही गई. फिर तो कोच नंदी दीपा के जज्बे को देख कर पूरे उत्साह से उसे प्रशिक्षण देने में जुट गए. प्रशिक्षण का यह दौर काफी लंबा चला. लंबे इंतजार के बाद वर्ष 2007 में जलपाइगुड़ी में आयोजित जूनियर नैशनल चैंपियनशिप  में 14 साल की दीपा ने अपना सिक्का जमाया. तब से जीत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, अब तक उस की झोली में 77 पदक आ चुके हैं. इन में 67 स्वर्ण पदक हैं. ये पदक उस ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जीते हैं. दीपा अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी है.

दिल्ली कौमनवैल्थ खेल

राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन का इनाम दीपा को वर्ष 2010 में दिल्ली में आयोजित कौमनवैल्थ खेलों में भारतीय टीम के सदस्य के रूप में जुड़ने से मिला. उस दौरान उस ने टीम सहयोगी आशीष कुमार के प्रदर्शन को देखा था, जिस ने भारतीय जिमनास्टिक के इतिहास में पदक जीतने का गौरव हासिल किया था. कैंप के दौरान आशीष से उसे खेल के कई गुर सीखने को मिले. इस नैशनल कैंप से जुड़ने का फायदा उसे 2011 के नैशनल गेम्स में मिला. त्रिपुरा राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए उस ने 5 स्वर्ण पदक जीते.

वर्ष 2014 में कौमनवैल्थ खेल दीपा के लिए नई सौगात ले कर आए. वह क्वालिफाई करने के बाद फाइनल में पहुंची. एक समय पैर में सूजन आने से उस का भाग लेना तय नहीं था, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी और कांस्य पदक जीत कर इतिहास रच दिया. इस के बाद तो उस की जिंदगी ही बदल गई. खेल पंडितों ने उसे गंभीरता से लेना शुरू कर दिया. 2015 की एशियाई चैंपियनशिप में जीते कांस्य पदक ने दीपा की पदकों की भूख और बढ़ा दी. वह रियो ओलंपिक के लिए टिकट पाने की तैयारियों में जुट गई. वह विश्व चैंपियनशिप में अपने इस सपने को साकार करना चाहती थी, लेकिन मामूली अंतर से पिछड़ गई,  लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी बल्कि हार को प्रेरणा बनाया और 6 महीने के भीतर ही वह कमाल कर दिखाया जो भारतीय जिमनास्टिक इतिहास में कोई खिलाड़ी न कर पाया. दीपा को मिला कर कुल 12 खिलाडि़यों को ओलिंपियन कहलाने का हक मिला.

जिमनास्टिक में आशीष कुमार याद आते हैं. आशीष ने ग्वांगझू एशियाई खेलों में पदक जीता था. आशीष से भारत को बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन उसे बेहतर कोच नहीं मिला. यह सवाल लाजमी है कि क्या दीपा आगे बेहतर कर पाएगी?

सपना साकार करना चाहती हूं

दीपा कहती है कि ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने का मेरा वर्षों पुराना सपना पूरा होने के बाद अब मैं पदक जीतने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हूं. जिमनास्टिक शुरू करने के बाद मैं ओलंपिक में खेलना चाहती थी और देश का नाम रोशन करनाचाहती हूं. राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में बुनियादी ढांचा अच्छा है. भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) ने वहां नया स्पिंग बोर्ड लगाने का वादा किया है. मैं पिछले साल विश्व चैंपियनशिप में रियो के लिए टिकट पाना चाहती थी, लेकिन सफल नहीं हो पाई, इसलिए मैं ने रियो टैस्ट इवैंट को लक्ष्य बनाया. मैं उस में सफल हो गई. नंदीजी मुझे 16 साल से कोचिंग दे रहे हैं, लेकिन उन की भी अपनी सीमाएं हैं. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर करने के लिए अच्छे कोच की जरूरत है. मैं खुश हूं कि खेल मंत्रालय ने मुझे टारगेट ओलंपिक स्कीम में शामिल किया है.

दीपा का ओलंपिक में पदक जीतने का सपना है, लेकिन यह राह आसान नहीं है. उस के पास विश्वस्तरीय कोचिंग की कोई सुविधा तक नहीं है.

त्रिपुरा में टेलैंट

त्रिपुरा में जिमनास्टिक की लोकप्रियता कुछ ज्यादा ही रही है. 70 के दशक में मंटू देबनाथ और कल्पना देबनाथ जैसे जिमनास्ट उभर कर आए थे. हालांकि वे ओलंपिक तक नहीं पहुंच पाए थे, लेकिन दीपा के प्रदर्शन ने त्रिपुरा के युवा खिलाडि़यों के लिए रास्ते खोल दिए हैं

क्या यह गर्म कप का निशान है फेल्प्स की जीत की वजह

ओलंपिक में अपना 19वां गोल्ड मेडल जीतने वाले माइकल फेल्प्स 4X100 मीटर फ्री स्टाइल मुकाबले में जब तैराकी कर रहे थे तब पूरी दुनिया की नजर उनपर थी. इसके दो कारण थे, पहला यह कि उनकी गति और तैराकी देखने में बेहद आकर्षक लगती है और दूसरा कारण उनके कंधे और पीठ पर दिख रहे गहरे रंग के निशान.

दरअसल यह निशान कपिंग थैरिपी के हैं. इस थैरेपी में कांच के छोटे कपों को गर्म किया जाता है. इसके बाद उस गर्म कप को खिलाड़ी के शरीर के कुछ हिस्सों को रखा जाता है. इस थैरिपी से शरीर के मसल ढीले होते हैं और उन्हें आराम मिलता है. इस थैरेपी से शरीर का दर्द दूर होता है और खून का प्रवाह भी नियमित रहता है.

4X100 मीटर फ्री स्टाइल रिले में अमेरिका की तैराकी टीम ने 9.92 सेकंड में रेस पूरी कर जीत दर्ज की. इस मुकाबले में फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया ने क्रमश: रजत और कांस्य पदक अपने नाम किया.

माइकल फेल्प्स 31 साल के हैं और अब तक ओलंपिक में 5 बार हिस्सा ले चुके हैं. इन 5 ओलंपिक में वह कुल 23 पदक जीत चुके हैं जिनमें 19 स्वर्ण पदक शामिल हैं. ओलंपिक के इतिहास में माइकल फेल्प्स सबसे ज्यादा स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ी हैं.

उनके बाद रूस की जिमनास्ट लुरीसा लातनीना हैं जिन्होंने नौ ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते हैं. लंदन ओलंपिक 2012 के बाद फेल्प्स ने सन्यास की घोषणा की थी लेकिन दो साल बाद 2014 में ही वह संन्यास से वापस लौट आए थे.

90 करोड़ एंड्रॉएड फोन पर बग का खतरा

सॉफ्टवेयर में पाई गई गड़बड़ी की वजह से करोड़ों एंड्रॉएड फोन का डेटा हैकरों के हाथ पड़ने का खतरा पैदा हो गया है.

सॉफ्टवेयर में इन बग्स की खोज चेकप्वाइंट के शोधकर्ताओं ने अमरीकी कंपनी क्वॉलकॉम के बनाए चिपसेट्स पर चल रहे सॉफ्टवेयर की जांच के दौरान इस खतरे का पता लगाया है.

कंपनी के मुताबिक करीब 90 करोड़ फोन में क्वॉलकॉम के प्रोसेसर का इस्तेमाल हो रहा है.

हालांकि अभी तक इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि साइबर चोर इन खामियों का फायदा उठा सके हैं.

चेकप्वाइंट से जुड़े अधिकारी माइकल शाउलव कहते हैं, "मुझे पूरा यकीन है कि आने वाले तीन-चार महीनों में साइबरचोर इन खामियों का फायदा उठाने लगेंगे.''

जो मोबाइल फोन इससे प्रभावित हो सकते हैं वो हैं:

ब्लैकबेरी प्रीव और डीटेक 50

ब्लैकफोन 1 और ब्लैकफोन 2

गूगल नेक्सस 5 एक्स, नेक्सस 6 और नेक्सस 6पी

एचटीसी वन, एचटीसी एम 9 और एचटीसी 10

एलजी जी4, एलजी जी5 और एलजी वी10

मोटोरोला का न्यू मोटो एक्स

वनप्लस वन, वनप्लस 2 और वनप्लस 3

सैमसंग गैलेक्सी एस7 और सैमसंग एस7 ऐज (अमरीकी वर्जन)

सैमसंग एस7ऐज

सोनी एक्सपीरिया जेड अल्ट्रा

ये गड़बड़ियां फोन में ग्राफिक्स से जुड़े सॉफ्टवेयर और फोन के अंदर की प्रक्रियाओं के बीच का कम्यूनिकेशन चलाने वाले कोड में पाई गईं.

एयर इंडिया के साथ मनाइए आजादी का जश्न

एयरलाइंस कंपनी एयर इंडिया की तरफ से 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर खास ऑफर्स दिए जा रहे हैं. इसमें 9 से 15 अगस्त के बीच टिकट बुक करवाने वाले को भारी छूट मिलेगी. एयर इंडिया की तरफ से इसे उनका अब तक का सबसे बेस्ट ऑफर बताया जा रहा है. डोमेस्टिक फ्लाइट के लिए 1199 रुपए से  3799 रुपए तक का किराया है. जबकि विदेश यात्रा के लिए 15999 रुपए से 49999 रुपए तक का किराया है.

इसमें 9 से 15 अगस्त के बीच टिकट बुक करवाने वाले को भारी डिस्काउंट मिलेगा. डोमेस्टिक फ्लाइट पर सबसे कम किराया 1199 रुपए है जबकि विदेश यात्रा के लिए सबसे सस्ती फ्लाइट 15999 रुपए है. इस ऑफर के तहत जो भी घरेलू फ्लाइट की टिकट बुक करवाएगा वह 22 अगस्त से 30 सितंबर के बीच सफर कर सकता है और विदेश जाने  वालों को 15 सितंबर से 15 दिसंबर के बीच जाने का मौका मिलेगा. हर जगह का किराया अलग-अलग है.  वेबसाइट www.airindia.in पर जाकर बाकी जगहों के बारे में अधिक जानकारी ली जा सकती है.

गौर हो कि यह ऑफर 9 से 15 अगस्त के बीच टिकट बुक करवाने पर ही मिलेग. घरेलू टिकट की बुकिंग करवाने वाले यात्री 22 अगस्त और 30 सिंतबर 2016 के बीच सफर कर पाएंगे. विदेश के लिए टिकटों की बुकिंग पर 15 सितंबर से 15 दिसंबर के बीच मुसाफिरों को यात्रा करने का मौका मिलेगा. यानी इस ऑफर के तहत मिलनेवाले टिकटों पर आप इसी अवधि के बीच घरेलू या अंतरराष्ट्रीय सफर कर सकते हैं.

आग लगाए सैक्सी फिगर

‘वाउ, क्या फिगर है, 36-24-36, लगता है मार ही डालेगी’, ‘यार, सिर्फ एक बार पलट कर देख ले’, ‘कसम से क्या लगती है’, ‘इसे देख कर तो अच्छेअच्छों की हार्टबीट बढ़ जाएगी’, ‘चलती है तो इसे देख कर वह गाना याद आता है’, ‘तोबा ये मतवाली चाल, झुक जाए फूलों की डाल… ‘पता नहीं अपनी सैक्सी फिगर से यह कितनों पर बिजलियां गिराती होगी?’ ये सभी बातें हो रही थीं औफिस की नई जौइनिंग स्मिता के बारे में, जिस ने हाल ही में कंपनी जौइन की थी. उस की सैक्सी फिगर ने सब के दिल को इस कदर घायल कर दिया था कि हर कोई बस, उस की एक झलक पाने को बेकरार रहता. हर रोज इस इंतजार में रहता कि वह आज क्या पहन कर आने वाली है.

अगर वह किसी से हंस कर बात कर ले तो उस का तो इस खुशफहमी में पूरा दिन ही निकल जाता. औफिस के कई युवकों को औफिस से छुट्टी न करने और रोज आने का एक अच्छा बहाना मिल गया था, वहीं युवतियों को स्मिता की सैक्सी फिगर ने टफ कंपीटिशन दे दिया था. हर कोई पीठ पीछे उस की सैक्सी फिगर की तारीफ करता और जानना चाहता कि आखिर उस की सैक्सी फिगर का राज क्या है?

जिसे देखो उस के आसपास मंडराने के बहाने ढूंढ़ता रहता. कभी काम के बहाने तो कभी लंच औफर करने, तो कभी चायकौफी पर इनवाइट करने का मौका ढूंढ़ता. औफिस कलीग्स के अलावा बौस भी चाहते थे कि स्मिता औफिस के हर इंपोर्टैंट प्रौजैक्ट का हिस्सा बने, क्योंकि उस की सैक्सी फिगर हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करती थी. स्मिता के उदाहरण से आप समझ ही गए होंगे कि सैक्सी फिगर किसी की भी पर्सनैलिटी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होती है. दरअसल, सैक्सी फिगर का अर्थ जीरो साइज फिगर नहीं बल्कि वह फिगर होती है जो ग्लैमरस हो, भीड़ में सब से अलग दिखे. इस फिगर में एक खास सैक्स अपील होती है जो सब को आकर्षित करती है. वर्तमान दौर में जीरो फिगर और फ्लैशी फिगर आउटडेटेड हैं जबकि कर्वी फिगर का दौर चल रहा है. एक वैल टोंड बौडी जिस के परफैक्ट कर्व्स हों, वही सैक्सी फिगर कहलाती है.

सैक्सी फिगर यानी कर्वी फिगर

हर युवती हौलीवुड और बौलीवुड सैलिब्रिटीज की तरह 36-24-36 की कर्वी यानी सैक्सी फिगर पाना चाहती है, ताकि वह अपनी सैक्सी फिगर से सब के दिलों में आग लगा सके और युवक उस की सैक्सी फिगर को देख कर कह उठें, ‘ब्लू आइज, हिप्नोटाइज कर दी मैंनूं, आई स्वैयर छोटी ड्रैस में बौंब लगदी मैंनूं. कत्ल करे तेरा बौंब फिगर…’ अगर हौलीवुड की बात की जाए तो जैनिफर लोपेज, किम कार्दशियन और बौलीवुड की बात की जाए तो हूमा कुरैशी का कर्वी यानी सैक्सी फिगर दिलों में आग लगा रहा है. कर्वी फिगर के कर्वी कट पर जींसस्कर्ट, इंडियनवैस्टर्न सभी कुछ जंचता है. इस फिगर वाली युवतियां अपने बालों, कपड़ों और औवर औल लुक के साथ ऐक्सपैरिमैंट कर सकती हैं.

कर्वी फिगर और फैशनेबल ड्रैसेज

कर्वी व सैक्सी फिगर पर हाई स्लिट ड्रैसेज हौट व स्टाइलिश दिखती हैं. औफ शोल्डर या वन शोल्डर टौप्स उन की खूबसूरती को उभारते हैं. शौर्ट स्कर्ट विद स्लीवलैस क्रौप टौप, हाईहील व स्किनी जींस विद हौट ऐंड सैक्सी ब्राटौप जब वे पहनती हैं तोयुवक कह उठते हैं, ‘हाई हील ते नचें तो तू बड़ी जंचें…’

सैक्सी फिगर कैसे पाएं

सैक्सी फिगर का सपना हर युवती का होता है, वह भी बौलीवुड स्टार्स करीना व दीपिका की तरह अपनी सैक्सी फिगर से आग लगाना चाहती है. ऐसी फिगर के लिए शरीर के 3 मुख्य हिस्सों की टोनिंग पर ध्यान देने की जरूरत होती है. चैस्ट, बैस्ट ऐंड बै्रस्ट. इन हिस्सों की टोनिंग के लिए स्विमिंग, जिमिंग व वर्कआउट करें. चढ़ने के लिए लिफ्ट के बजाय सीढि़यों का प्रयोग करें. सैक्सी फिगर का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा सैक्सी टोंड लैग्स भी होती हैं. शौर्ट ड्रैसेज ऐसे सैक्सी टोंड लैग्स पर खूब जंचती हैं. अगर सैक्सी टौंड लैग्स की बात की जाए तो करीना, कैटरीना, बिपाशा, दीपिका आदि सैक्सी टोंड लैग्स की मालकिन हैं, जोअपनी सैक्सी टौंड लैग्स से दर्शकों के दिलों में आग लगाती हैं.

डाइट फौर सैक्सी फिगर

सुबह की शुरुआत चायकौफी के बजाय गरमपानी, नीबू व शहद से करें. ग्रीन टी पीएं. एक बार ज्यादा खाने के बजाय हर 2 घंटे बाद थोड़ाथोड़ा खाएं. जंक व फास्टफूड की जगह फ्रैश फ्रूट्स, फ्रैश जूस व ड्राईफू्रट्स खाएं. दिन में खूब पानी पीएं ताकि वर्कआउट के बाद भी त्वचा हाइड्रेट रहे व उस की चमक बरकरार रहे. रात का खाना सोने से 2 घंटे पहले खाएं.

शेप्ड फिगर के और भी हैं फायदे

–  एक अध्ययन के अनुसार किसी भी युवती को अपने प्यार से भी ज्यादा खुशी खुद की सैक्सी फिगर को देखने से मिलती है यानी शेप्ड या सैक्सी फिगर औरों को आकर्षित तो करती ही है अंदरूनी खुशी भी देती है.

–  वे युवतियां जो छरहरी यानी सैक्सी फिगर की मालिक होती हैं लंबी आयु जीती हैं. उन की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम सैक्सी फिगर वालों की अपेक्षा अधिक होती है.

–  जौब, शादी, दोस्तों में आप को प्रैफरैंस मिलता है. सैक्सी फिगर ही पहला आकर्षण होता है जो सामने वाले को अपनी ओर आकर्षित करता है. सोशल गैदरिंग में, फैमिली फंक्शन में कैमरा सैक्सी फिगर के आसपास ही घूमता रहता है.

–  औफिस में हर कोई सैक्सी फिगर वाली युवती की मदद के लिए तैयार रहता है. उस के आसपास मंडराता है.

फिगर की बदौलत करोड़ों दिलों पर राज

सनी लियोनी, पूनम पांडे, किम कार्दशियन आदि कुछ ऐसे जानेमाने नाम हैं, जिन्होंने करोड़ों दिलों में आग लगाई है. गूगल पर, ट्विटर पर हर कोई उन के एक ट्वीट और इंस्टाग्राम पर उन की एक झलक के इंतजार में रहता है. किम कार्दशियन शो ‘कीप अप विद द कार्दशियन’ तो पूरी तरह उन के यहां तक पहुंचने के सफर पर आधारित है अर्थात चाहे सनी लियोनी हो, पूनम पांडे हो, जैनिफर लोपेज या किम हो इन सभी की सक्सैस व लाइमलाइट का राज इन की सैक्सी फिगर है जिस ने इन्हें पौपुलर व लाखों दिलों की धड़कन बनाया. इन सैक्सी फिगर की मलिकाओं की सक्सैस से एक बात तो साबित होती है कि अगर कोई सैक्सी फिगर की मलिका है तो उसे सफल और प्रसिद्ध होने से कोई नहीं रोक सकता. साउथ इंडियन फिल्मों में अभिनेत्रियों की ब्यूटी का मापदंड उन के ‘नेवल शो’ से निर्धारित किया जाता है यानी जितनी सैक्सी फिगर उतनी अधिक दर्शकों के दिलों में आग लगाने की क्षमता.

रियो: गैजेट्स जो ऐथलीट्स को रखेंगे कूल

ओलंपिक जैसा खास मौका हो तो खिलाड़ियों और खेलों के शौकीनों को ध्यान में रखते हुए टेक कंपनियां बाजार में नए गैजेट्स क्यों न उतारें? आइए देखें कौन-कौन से नए कूल गैजेट्स ओलंपिक खिलाड़ियों को रखेंगे कूल…

कूलिंग हूड : कूलिंग हूड एक ऐसा कवर है जो आपके चेहरे, सिर और गर्दन को कवर करता है और इसकी इनर लेयर्स ठंडा पानी स्टोर करती हैं. इसका फ्रेम आंखों को न सिर्फ सुरक्षा कवच देता है बल्कि चेहरे से चिपका ठंडा हिस्सा कूल इफेक्ट देता है ताकि दो इवेंट्स के बीच खिलाड़ी जल्दी रिकवर कर सके, एनर्जी जुटा सके.

NFC एनेबल्ड रिंग : इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट कंपनी वीजा ओलंपिक  में ऑफिशियल सर्विस प्रोवाइडर है. कंपनी ने अपनी वीजा पेमेंट रिंग को लॉन्च करने के लिए भी ओलंपिक  का मौका चुना. अपने पायलट प्रॉजेक्ट के तहत कंपनी ने पहली NFC एनेबल्ड रिंग लॉन्च की. दुनियाभर के 45 ऐथलीट अपनी उंगलियों में इस जूलरी को पहने दिखेंगे. इसे पहनने वाले एक टैप के जरिए NFC पेमेंट टर्मिनल्स से खरीदारी कर सकेंगे.

हैलो स्पोर्ट हेडबैंड : ओलंपिक  में सभी ऐथलीट अपना बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं और अमेरिका की हैलो न्यूरोसाइंस उन्हें अपने बेहतरीन फॉर्म में रहने में मदद कर रही है. हैलो स्पोर्ट हेडबैंड इसे पहनने वालों के दिमाग में एनर्जी फूंकने का काम करता है, जिससे उसे अपना बेहतरीन प्रदर्शन करने का सिग्नल मिलता है. यह हेडबैंड मुलायम फोम से बना है और एनर्जी पल्स पर ध्यान तक नहीं जाता और वह अपना काम कर जाती हैं.

व्हूप 2.0 : इस ओलंपिक  के दौरान ऐथलीट्स सभी तरह की सेंसर टेक्नॉलजीज का इस्तेमाल करेंगे. ऐथलीट्स व्हूप 2.0 रिस्टबैंड पहनेंगे जो उनका हार्टरेट, टेंरपरेचर, मोशन, सोने के पैटर्न और कई और चीजों का रिकॉर्ड रखेगा. वहीं, इसका साथी ऐप इस कच्चे डाटा का विश्लेशण करेगा और सुझाव देगा कि ऐथलीट को कब आराम की जरूरत है. बताएगा कि वह कितना थक गया है, उसे डायट बदलने की जरूरत है आदि.

सोलोज स्मार्टग्लासेस : टेक स्टार्टअप सोलोज ने अमेरिका की ,साइकलिंग टीम के साथ मिलकर स्मार्टग्लास वर्जन तैयार किया. और, इस ओलंपिक्स में वे लोग इस आइवेअर को इस्तेमाल करते नजर आएंगे जिन्होंने इसे तैयार करने में मदद की.

हिक्सो : हिक्सो दस्तानों के अंदर पहना जाता है, जो पंच गिनने, उसकी टाइमिंग, स्पीड और स्ट्रइक की इंटेंसिटी मापने का काम करता है. इससे कोच को बॉक्स्र की टेक्नीक और अटैक करने की रणनीति के बारे में पता चलता है.

वर्ट जूपिटर मॉनिटर : अमेरिकी महिला वॉलिबॉल टीम के लिए वर्ट जूपिटर मॉनिटर और हिक्सो ट्रैकर कनाडा की बॉक्सिंग टीम के इस्तेमाल के गैजेट्स हैं. वर्ट के जरिए जंप की संख्या और हाइट का डाटा प्राप्त होता है जो बाद ऐप के जरिए रियल टाइम में बदला जा सकता है. इससे कोच को यह जानने में मदद मिलेगी कि कौन-सा खिलाड़ी ज्यादा तनाव में है जिससे उसे चोट का खतरा हो सकता है.

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