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रियो: सानिया-बोपन्ना मिश्रित युगल क्वार्टर फाइनल में

भारत की सानिया मिर्जा और रोहन बोपन्ना की जोड़ी ऑस्ट्रेलिया की सामंथा स्टोसुर और जॉन पीयर्स को सीधे सेटों में हराकर रियो ओलंपिक मिश्रित युगल वर्ग के क्वार्टर फाइनल में पहुंच गई है. ओलंपिक में भारत की पदक उम्मीद माने जा रहे सानिया और रोहन ने पहले दौर का मुकाबला 73 मिनट में 7-5, 6-4 से जीता.

चौथी वरीयता प्राप्त भारतीय जोड़ी को जमने में समय लगा लेकिन लय हासिल करने के बाद उसने मुड़कर नहीं देखा. दुनिया की नंबर एक महिला युगल खिलाड़ी सानिया ने जीत के बाद कहा, ‘ओलंपिक में पदक जीतना बेहतरीन होगा क्योंकि मैने अभी तक नहीं जीता है. हमारे लिए यह सबसे बड़ी उपलब्धि होगी. हम इसके लिये पूरा प्रयास करेंगे.’

टेनिस सेंटर पर सर्द हवाओं के बीच भारी संख्या में भारतीय समर्थक यहां मैच देखने के लिए जुटे थे. रफेल नडाल और मार्क लोपेज के पुरुष युगल सेमीफाइनल मैच के दो घंटे से अधिक खिंच जाने के कारण यह मैच विलंब से शुरू हुआ. दर्शकों में लिएंडर पेस, खेलमंत्री विजय गोयल और साइ महानिदेशक इंजेती श्रीनिवास शामिल थे.

पहले सेट में दोनों टीमों ने नौवें गेम तक कोई अंक नहीं गंवाया. इसके बाद पीयर्स की सर्विस टूटी और भारतीय जोड़ी ने 5-4 से बढ़त बना ली. अगले गेम में हालांकि भारतीयों ने बढत खो दी और स्कोर 5-5 हो गया. सेट हाथ से निकलने से पहले भारतीयों ने विरोधी की सहज गलती का फायदा उठाकर लगातार चार अंक बनाये और स्टोसुर की सर्विस तोड़कर 36 मिनट में पहला सेट जीत लिया.

दूसरे सेट में ऑस्ट्रेलियाई जोड़ी दबाव में दिखी और पीयर्स के डबलफाल्ड से भारतीयों ने 3-2 की बढ़त बना ली. दर्शक दीर्घा से ‘कम ऑन इंडिया’ का शोर भी तेज होने लगा था. सानिया और रोहन ने 4-2 की बढ़त कर ली और दसवें गेम में तीन ऐस लगाकर बोपन्ना ने मैच का फैसला कर दिया.

उन्होंने अपने पर से दबाव हटाने का श्रेय सानिया को देते हुए कहा, ‘मुझे मजबूती से खेलना ही था. हवाओं से मुझे परेशानी हुई और जमने में समय लगा.’ उन्होंने कहा, ‘मैं बेहतर महसूस कर रहा था क्योंकि उनके साथ मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाता हूं. हमने विरोधी टीम पर काफी दबाव बनाया. पहले सेट में उतना अच्छा नहीं खेल सके लेकिन दूसरे सेट में धैर्य बनाये रखते हुए मैंने सानिया की सर्विस पर आक्रामक प्रदर्शन किया.’

क्वार्टर फाइनल में भारतीय जोड़ी का सामना ब्रिटेन के गैर वरीय एंडी मर्रे और हीथर वाटसन की जोड़ी से होगा जिन्होंने स्पेन के डेविड फेरर और कार्लो सुआरेज नवारो को 6-3, 6-3 से हराया. बोपन्ना ने कहा,‘एंडी सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से है और कोर्ट को बखूबी कवर करता है. हमें अपने खेल पर फोकस करना होगा.’

चार साल पहले लंदन में सानिया और लिएंडर पेस मिश्रित युगल क्वार्टर फाइनल में पहुंचे थे. रियो में महिला और पुरुष एकल युगल में भारतीय चुनौती पहले ही दौर में खत्म हो गई.

क्यों नहीं धर्म नशे को बंद करा सका

हर धर्म एक बात से सब से ज्यादा डरता है और वह है खुली  स्वतंत्र बात. धर्म अपने विरोधियों के बल और आक्रमण को तो सह लेता है पर अपनों में से किसी की भी कैसी भी आलोचना से बहुत डरता है. हिंदी फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ से पंजाब की धार्मिक पार्टियों- अकाली दल व भारतीय जनता पार्टी का डर निर्मूल न था और इसीलिए परम भक्त और सैंट्रल बोर्ड औफ फिल्म सर्टिफिकेशन के चैयरमैन पहलाज निहलानी ने उस पर मनचाही कैंचियां चलवाईं.

फिल्म में न तो नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ कुछ है न प्रकाश सिंह बादल की अकाली सरकार के खिलाफ पर 2017 के चुनावों से पहले यह रंग देना कि मादक नशीली दवाओं का धंधा पंजाब के घरघर में घुस गया है और औरतें भी इस धंधे को चलाने में मदद करती हैं, ऐसी स्वीकारोक्ति है जिस से डरना स्वाभाविक है.

पंजाब में ड्रग्स का धंधा असल में शराब की बोतलों पर चढ़ कर आया है. वहां शराब पीनापिलाना फैशन और शान की बात है. हर घर में शराब की बोतलों को सजा कर रखा जाता है. औरतें भी जम कर पीती हैं. पंजाब के गानों में शराब और नशे की ऐसी जम कर महिमा गाई गई है कि देवीदेवता भी ईर्ष्या कर बैठें.

फिर जब पंजाब में बिहार से मजदूर पहुंचे तो उन से जम कर काम लेने के लिए उन्हें नशे की आदत डाली गई. तंबाकू, खैनी के आदी तो वे थे ही, नशे को उन्होंने दोनों हाथ लिया. जब नशे की खेती हो रही हो तो कौन बचेगा? धर्म का पंजाब में खूब जोर है. क्यों धर्म नशे को बंद नहीं करा सकता? जहां लोगों को पूजास्थल पर ले जाने के लिए लाखों में तैयार करा जा सकता है, अपनी तरह की पोशाक पहनने की जबरदस्ती की जा सकती है, खानेपीने पर बंदिशें लगाई जा सकती हैं, तो वहां नशे की सूइयां लगाने को बंद क्यों नहीं करा जा सकता?

पंजाब तो ऐसा इकलौता राज्य है, जहां धर्म के नाम पर बनी 2 पार्टियों का राज है. वहां पहलाज निहलानी को फिल्म सैंसर करने का हुक्म तो दिया जा रहा था, पर जनता को नशे की गिरफ्त से निकालने का नहीं. ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म अपनेआप में अकहानी फिल्म है. निर्मातानिर्देशक नशे को दिखाने में इतने मगरूर हो गए कि कहानी नशेबाजों के बीच खो गई. ये वही फिल्मकार हैं, जो आजकल शराब का जम कर प्रचार कर रहे हैं और हर दूसरी फिल्म में नायक ही नहीं नायिकाएं भी शराब के घूंट भरती नजर आ रही हैं.

जब एक नशे को मान्यता मिलती है तो दूसरे को क्यों नहीं? सिगरेट पर लंबी धार्मिक पाबंदी से साफ है कि धर्म ने कभी इस नशे पर एतराज जताया था पर अब बाकी नशों पर वह पाबंदी उड़ गई. पंजाब से तो उड़ ही गई.

एंड्रायड फोन में कैसे बढाएं स्‍पेस

क्‍या आप एंड्रायड फोन यूजर हैं और फोन इस्‍तेमाल करने के कुछ ही समय बाद, आपके फोन में स्‍पेस की दिक्‍कत आने लगी है जिसके कारण न तो आप तस्‍वीरें ले पाते हैं और न ही कोई गाना या वीडियो डाउनलोड कर पाते हैं.

कई एंड्रायड यूजर्स को इस समस्‍या से गुजरना पड़ता है. इस तरह की दिक्‍कत, कम स्‍पेस की वजह से आती है या फिर फोन पूरी तरह से भर जाता है. कई ट्रिक्‍स के जरिए आप फोन में स्‍पेस को खाली कर सकते हैं और इतनी जगह बना सकते हैं कि किसी एप को इंस्‍टॉल कर सकें या बाकी के शौक पूरें कर पाएं.

आइए जानते हैं कि किस प्रकार एंड्रायड फोन में स्‍पेस को बनाएं और अपर्याप्‍त स्‍टोरेज की समस्‍या को दूर करें

एप कैच डेटा हटा दें

हर एप का कैच डेटा होता है जो फोन में जगह घेरता है. आप फोन के फाइल मैनेजर में जाकर डिलीट कैच एप डेटा कर दें. इससे थोड़ा स्‍पेस हो जाएगा. हर एप में ऐसा करें.

वाट्सएप डाउनलोड पर नियंत्रण रखें

वाट्सएप में आने वाली हर इमेज और वीडियो को डाउनलोड न करें और अगर करते हैं तो देखने के बाद डिलीट कर दें. इससे काफी स्‍पेस की बचत होगी.

बेकार के एप हटाएं

जो एप का इस्‍तेमाल आपके द्वारा नहीं किया जाता है उन्‍हें फोन में कतई न रखें. वो सिर्फ जगह घेरती हैं.

ब्राउज हिस्‍ट्री क्‍लीयर करें

आप इंटरनेट पर जो भी सर्च करें, उसे भी क्‍लीयर कर दें. इससे फोन, उस हिस्‍ट्री को बनाएं रखने मे स्‍पेस की खपत नहीं करेगा.

बैकअप फोटो हटाएं

जो फोटो आपने पहले से बैकअप में ले ली हों, उन्‍हें फोन से हटाने में ही समझदारी है. इससे काफी स्‍पेस आपके पास होगा.

डाउनलोड फोल्‍डर को क्‍लीन कर दें

आपके फोन में जो भी डाउनलोड फोल्‍डर हो, उसे हटा दें. इससे फोन में काफी स्‍पेस आ जाएगा.

केसरिया हो गये नीले स्वामी प्रसाद

जिस मनुवाद और सवर्णवाद को कोसते-कोसते स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा में अपने कद को बड़ा बनाया था, भाजपा में शामिल होने के बाद वह अपनी पुरानी पहचान कैसे मिटा पायेंगे. स्वामी प्रसाद ने मूर्तिपूजा और पूजा पद्वित को लेकर तमाम तरह की बातें कहीं थी, जो भाजपा के लोग न तब हजम कर पाये थे और न अब हजम कर पायेंगे. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा में कितना स्वीकार होंगे, सहज रूप से समझा जा सकता है.

राजनीति में विचारों का अपना अलग महत्व होता है. इन विचारों की वजह से नेता की नीति तय होती है. उसकी नीति से ही जनाधार बढ़ता है. दल बदल और नीतियों से समझौता करना दोनों अलग विषय होते हैं. भाजपा ने लोकसभा चुनाव के समय कई दलित नेताओं को पार्टी में शामिल किया था. समय के साथ यह नेता ससंद में जरूर पहुंच गये, कुछ मंत्री भी बन गये, पर असल में वह अपनी जमीन खो चुके हैं. आज जब दलित मुद्दों पर वह बोलते हैं तो उनकी बेचारगी देखने वाली होती है.

स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा में नंबर 2 के नेता थे. बसपा प्रमुख मायावती क्या चाहती थी और क्या सोचती थी यह वह जानते थे. दलित मुद्दों को लेकर विधानसभा में स्वामी प्रसाद मौर्य मुखर रहते थे. अकेले स्वामी प्रसाद ही ऐसे थे जिनसे समाजवादी पार्टी और भाजपा दोनो घबराती थी. असल में राजनीति में मुद्दे अब मायने नहीं रखते. नेता अपने कद को बढ़ाना चाहते हैं. नेताओं की इच्छा होती है कि वह अपने घर परिवार को भी राजनीति में स्थापित कर ले. ऐसे में वह अपने लाभ के हिसाब से फैसले लेते हैं. कई बार हवा का रूख जब सही होता है, तो सही होता है, तो लाभ मिलता है और कई बार हवा का रूख भांपने में जब कठिनाई होती है तो खेल बिगड़ भी जाता है.

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के केसरिया रंग में डूब कर कई दलित नेता चुनाव जीत गये थे. अब उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में पहले जैसी बात नहीं है. ऐसे में केसरिया चोला पहनने वाले नीले रंग में रगे स्वामी प्रसाद मौर्य और जुगुल किशोर जैसे बसपाई नेताओं का क्या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता है? यह तय है कि भाजपा में इनको वह स्थान नहीं मिलना जो बसपा में मिलता था. कई दलित नेता जो भाजपा में शामिल हुये वह भाजपा में घुलमिल नहीं पाये है. वह अब खुलकर बोल भी नहीं पाते. ऐसे नेता किसी बड़े भाजपा नेता का पल्लू पकडे ही नजर आते हैं. यह सच है कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता, पर विचारों को छोड़ पाना सरल नहीं होता. विचारों को छोड़ने का नुकसान नेता को होता है चाहे वह मायावती हों या स्वामी प्रसाद मौर्य. अब देखना यह है कि रंग बदल कर कितना चुनावी रंग जमा पाते है स्वामी प्रसाद मौर्य.                  

बुरे फंसे रणबीर कपूर

रणबीर कपूर के सितारे गर्दिश से उबर ही नहीं पा रहे हैं. रणबीर कपूर अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि उनके सितारे चमकना शुरू हों और वह पुनः फिल्मों में अभिनय करें, उनकी फिल्में बाक्स आफिस पर धमाल करें, मगर उनके सितारे उनका साथ नहीं दे रहे हैं. सूत्रों के अनुसार करण जौहर अपनी फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ को दिवाली के समय रिलीज करने वाले हैं, जिसमें ऐश्वर्या राय बच्चन व रणबीर कपूर सहित दर्जन भर कलाकार हैं. रणबीर कपूर ने अपने सितारों को चमकाने के लिए ही अपने मित्र अयान मुखर्जी की सुपर हीरो वाली फिल्म ‘‘ड्रागान’’ अनुबंधित की है.

रणबीर कपूर खुश थे कि सब कुछ सही हो जाएगा. क्योंकि अयान मुखर्जी अपनी फिल्म ‘‘ड्रागान’’ की शूटिंग जनवरी 2017 में शुरू करना चाहते हैं. मगर  रणबीर कपूर की यह खुशी टिक नहीं पायी. अब खबर है कि राज कुमार हिरानी ने संजय दत्त की बायोपिक फिल्म की शूटिंग भी जनवरी 2017 में करना चाहते हैं. जिसमें रणबीर कपूर की ही मुख्य भूमिका हैं. दोनों ही फिल्में बहुत अलग हैं. दोनों ही फिल्मों में रणबीर कपूर का गेटअप व लुक बहुत अलग है. ऐेसे में एक साथ दोनों फिल्मों की शूटिंग करना संभव नहीं. मगर बेचारे रणबीर कपूर क्या करें..उन्हे लग रहा है कि वह फिर बुरे फंस गए..अब वह किस फिल्म को ठुकराएं और आफत मोल लें.

अमेरिका में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं प्रशांत गुप्ता

फिल्म ‘‘नीरजा’’ में एक अमेरिकन का किरदार निभाने वाले प्रशांत गुप्ता की अमेरिका में काफी पूछ होने लगी है. इसी के चलते अमेरिका में दो तीन कार्यक्रमों में उन्हें भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए बुलाया जा चुका है. खुद इस बारे में प्रशांत गुप्ता कहते हैं-‘‘मुझे जो अमेरिका में सम्मान दिया जा रहा है, उसको लेकर मैं बहुत अभिभूत हूं. मुझे लांग आइलैंड, न्यूयार्क में बाबी देओल के साथ इंडिया डे परेड पर ग्रैंड मार्शल के तौर पर बुलाया गया. मेरे लिए तो यह बहुत बड़े सम्मान की बात थी कि मुझे मुंबई से न्यूयार्क के आईलैंड बुलाया गया. वहां का मेरा अनुभव बहुत सुखद रहा. मेरी मुलाकात तमाम ऐसे प्रशंसकों से हुई, जिन्हें मैं जानता तक नहीं था. इसके बाद मुझे दूसरी बार अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को शहर में यूनिक फिल्म फेस्टिवल में अम्बेसडर के रूप में बुलाया गया. यह दोनों अवसर मुझे अगस्त माह में मिले.’’

भारत में प्रशांत गुप्ता तमाम फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं. खुद प्रशांत गुप्ता कहते हैं-‘‘मैंने नसीरूद्दीन शाह और अरशद वारसी के साथ फिल्म इरादा की है. इसके अलावा प्रसन्नजीत के साथ मैंने एक युद्ध फिल्म की है.’’

ये फोन बन गया है ISIS आतंकियों का फेवरेट

हाल ही में आई NBC न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार नोकिया 105 ISIS लड़ाकों का सबसे पसंदीदा डिवाइस बन गया है. भारत में ये फोन 830 रुपए से 1200 रुपए की रेंज में मिल रहा है. इसकी कीमत इंटरनेशनल मार्केट में कहीं भी 30 डॉलर से ज्यादा नहीं है. ये फोन आखिर क्यों ISIS आतंकियों का पसंदीदा फोन बन गया है….

 – बॉम्ब ट्रिगर के लिए

बॉम्ब ट्रिगर के लिए दो फोन का इस्तेमाल होता है एक कॉल करने के लिए और दूसरा सिग्नल भेजने के लिए. इसके लिए सबसे बेस्ट डिवाइस नोकिया 105 है.

– बैटरी लाइफ

ये बहुत सस्ता होने के साथ-साथ सबसे ज्यादा बैटरी लाइफ देता है. ये फोन दो दिन तक बिना चार्ज के रह सकता है.

– बेहद सस्ता और आसानी से उपलब्ध

नोकिया 105 काफी सस्ता है और आसानी से उपलब्ध है. इंटरनेशनल मार्केट में इसकी कीमत 30 डॉलर से ज्यादा कहीं नहीं है.

– वाइब्रेशन है बहुत स्ट्रॉन्ग

नोकिया 105 का वाइब्रेशन फीचर काफी स्ट्रॉन्ग है इस वजह से भी ये बॉम्ब का ट्रिगर बनाने के लिए उपयुक्त फोन है.

– किसी ऐप का नहीं होता इस्तेमाल

इस फोन में कैमरा और बाकी किसी ऐप का ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता इसलिए इस ट्रैक करना बाकी स्मार्टफोन्स के मुकाबले थोड़ा मुश्किल है. इसी के कारण, ये हैंग भी नहीं होता.

– कहां से मिलते हैं फोन

ISIS को ये फोन अधिकतर छोटे बिजनेस मैन से मिलते हैं. ये पूरी तरह से लीगली खरीदे जाते हैं.

– कंपनी क्यों नहीं लेती कोई एक्शन

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी इसको लेकर कोई एक्शन नहीं ले सकती है. क्योंकि ये लीगल तौर पर छोटे बिजनेस ओनर को बेचे जाते हैं.  NBC News की रिपोर्ट के अनुसार ईराक में कंपनी 10 मोबाइल फोन से ज्यादा किसी एक वेंडर को नहीं दे रही है इसका यही कारण है.

– उपलब्धता बहुत ज्यादा

माइक्रोसॉफ्ट नोकिया के इस फोन की उपलब्धता काफी ज्यादा है. कन्ज्यूमर गुड्स मार्केट में इस फोन की काफी मांग है. इसलिए ये ISIS का पसंदीदा फोन बन गया है.

नहीं रहे पाक के ‘लिटिल मास्टर’

पाकिस्तान के पूर्व कप्तान और महान बल्लेबाज हनीफ मुहम्मद का लंबे समय तक फेफड़ों के कैंसर से जूझने के बाद निधन हो गया. हनीफ का आगा खान अस्पताल में इलाज चल रहा था. अस्पताल के प्रवक्ता ने 81 साल की उम्र में इस दिग्गज बल्लेबाज के निधन की पुष्टि की है.

प्रवक्ता ने कहा, ‘सांस से जुड़ी समस्याओं के कारण उन्हें आईसीयू और वेंटीलेटर पर रखा गया था और उनका निधन हो गया.’ वह 30 जुलाई से वेंटिलेटर पर थे और उनकी हालत नाजुक थी. इससे पहले भी हनीफ की दिल की धड़कन लगभग छह मिनट के लिए रूक गयी थी और डाक्टरों ने उन्हें ‘क्लीनिकल तौर पर मृत’ घोषित कर दिया था लेकिन बाद में डाक्टरों को उनकी धड़कन वापस लाने में सफलता मिल गयी.

इससे पहले हनीफ के बेटे शोएब मुहम्मद ने अस्पताल से कई लोगों को बताया कि उनके पिता का निधन हो गया है लेकिन कुछ ही मिनटों बाद उन्होंने फिर से घोषणा की कि उनका निधन नहीं हुआ और वह जीवित हैं.

शोएब ने कहा, ‘उनके दिल की धड़कन छह मिनट के लिए रूक गयी थी लेकिन डॉक्टर उनकी दिल की धड़कन वापस लाने में सफल रहे.’ लेकिन कुछ घंटों बाद शोएब ने फिर पुष्टि की कि उनके पिता का निधन हो गया है.

शोएब ने कहा, ‘उन्होंने अपनी बीमारियों से कड़ी जंग लड़ी और चार साल पहले फेफड़ों के कैंसर का पता चलने के बाद पिछले कुछ वर्षों से वह काफी बीमार थे.’ पूर्व टेस्ट बल्लेबाज शोएब ने कहा, ‘हमारा परिवार शोक में डूबा है लेकिन हम सिर्फ उनके प्रशंसकों से कह सकते हैं कि उनके लिए दुआ करें कि अल्लाह उन्हें जन्नत में जगह दे. वह पिछले कुछ हफ्तों से काफी दर्द में थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.’

हनीफ उस पाकिस्तानी टीम के सदस्य थे जिसने पहली बार 1954-55 में भारत का दौरा किया था. उन्होंने 55 टेस्ट मैच खेले थे और वेस्टइंडीज के खिलाफ 1957-58 में 337 रन की यादगार पारी खेली थी. यह टेस्ट इतिहास की सबसे लंबी पारी है और 40 साल से अधिक समय तक प्रथम श्रेणी क्रिकेट की सबसे लंबी पारी भी रही. हनीफ ने अपने टेस्ट करियर में 12 शतक की मदद से 43.98 की. औसत से 3915 रन बनाए. उन्होंने अपने प्रथम श्रेणी करियर में 238 मैचों में 52.32 की औसत से 17059 रन बनाए.

आईसीसी ने हनीफ के निधन पर शोक प्रकट किया

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने पूर्व पाकिस्तानी कप्तान और आईसीसी हाल आफ हेम में शामिल हनीफ मोहम्मद के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि वह कई बल्लेबाजों के लिये प्रेरणास्रोत थे.

आईसीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डेविड रिचर्डसन ने एक बयान में कहा, ‘हनीफ के निधन की खबर काफी दुखद है, मैं और आईसीसी में हर कोई उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहेगा. हनीफ बल्लेबाजी को काफी उंचाई तक ले गये थे और कई बल्लेबाजों ने उनसे प्रेरणा ली.’

उन्होंने कहा, ‘उनका खेल में योगदान अपार है और इतने वर्षों में उनकी बल्लेबाजी का जैसा प्रभाव था, उसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है. हनीफ का वेस्टइंडीज के खिलाफ तिहरा शतक महान पारी थी और वह आईसीसी क्रिकेट हाल आफ फेम में शामिल होने वाले पहले खिलाड़ियों में से एक थे.’

दर्शकों को बांधकर रखती है “रूस्तम”

1959 में नेवी अफसर के एम नानावटी के साथ हुए हादसे से प्रेरित फिल्म ‘‘रूस्तम’’ में देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के साथ साथ इस बात की ओर भी इशारा किया गया है कि एक ईमानदार फौजी देश की रक्षा करते करते अपने परिवार की रक्षा नहीं कर पाता है. फिल्म की लंबाई अधिक होने के बावजूद फिल्म अंत तक दर्शकों को बांधकर रखती है. फिल्म में नाटकीयता काफी है.

कहानी की शुरूआत आईएनएस मैसूर पर तैनात नेवी कमांडर रूस्तम पावरी (अक्षय कुमार) से होती है, जिनका यह जलयान छह माह से पहले ही मुंबई वापस लौट आता है. रूस्तम की गिनती एक देशभक्त व ईमानदार फौजी के रूप मेंहोती है. रूस्तम अपने घर पहुंचते हैं. घर पर उनकी पत्नी सिंधिया पावरी (ईलियाना डिक्रूजा) मौजूद नहीं होती हैं. घर की नौकरानी जमनाबाई (उषा नाडकर्णी) से पता चलता है कि सिंधिया पावरी दो दिन से घर से बाहर है.

रूस्तम को बेडरूम में फूलों के गुच्छे के साथ पत्र मिलता है, जिससे रूस्तम के मन में कुछ शंका पैदा होती है और वह अलमारी खोलता है, उसे कई प्रेम पत्र मिलते हैं. वह प्रेम पत्र पढ़ना शुरू करता है, जिनसे पता चलता है कि वह पत्र विक्रम मखीजा (अर्जन बाजवा) ने रूस्तम की पत्नी सिंधया पावरी के नाम लिखे हैं. रूस्तम, विक्रम के घर पर फोन लगाते हैं, फोन विक्रम का नौकर उठाता है और कहता है कि विक्रम घर पर नहीं है. रूस्तम अपनी गाड़ी लेकर विक्रम के घर के सामने पहुंचता है, तो वह बालकनी में अपनी पत्नी सिंधिया और विक्रम मखीजा को देखता है.

वह चुपचाप घर आकर व्हिस्की पीने लगता है. दूसरे दिन सुबह सिंधिया घर लौटती हैं, जिसके माथे पर चोट लगी होती है. वह सिंधिया से पूछताछ करने की बजाय आईएनएनस मैसूर जलयान पर जाकर बंदूक लेता है. रास्ते में जीपीओ से दिल्ली फोन करता है और फिर विक्रम के आफिस पहुंचता है. विक्रम आफिस में नहीं मिलता. तो वह विक्रम के घर पहुंचता है और विक्रम को सीन में तीन गोली दाग देता है. फिर खुद पुलिस स्टेशन जाकर आत्मसमर्पण कर देता है.

विक्रम मखीजा की बहन प्रिया मखीजा (ईशा गुप्ता) हर हाल में रूस्तम को जेल भिजवाना चाहती है. वह रूस्तम को सजा दिलाने के पब्लिक प्रोसीक्यूटर यानी कि वकील लक्ष्मण खंगाणी (सचिन खेड़ेकर) की सेवाएं लेती है. इस केस की जांच पड़ताल इंस्पेक्टर लोबो (पवन मल्होत्रा) शुरू करते हैं. अदालत में जज (अनंग देसाई) केस की सुनवाई शुरू करते हैं और साथ में नौ सदस्यीय ज्यूरी भी होती है. रूस्तम पावरी खुद अपना मुकदमा लड़ते हैं, वह वकील की सेवाएं नहीं लेते. उधर एक समाचार पत्र का संपादक रूस्तम के पक्ष में जनता के बीच माहौल बनाने की जिम्मेदारी लेकर समाचार पत्र में खबरें छापना शुरू करता है.

अदालत में इस मुकदमे की सुनवाई के साथ ही इस कहानी की परते खुलना शुरू होती हैं. पता चलता है कि विक्रम मखीजा बहुत बड़ा सौदागर है. वह कई विदेशी कंपनियों का भारत में प्रतिनिधित्व करता है और कई गलत कामों में लिप्त है. उसके काम में उसकी बहन प्रिया भी साथ देती है. अदालत में साबित होता है कि विक्रम मखीजा को बहुत जल्द गुस्सा आता है. गुस्से में वह बंदूक निकाल लेता है. अदालत के सामने रूस्तम तर्क देता है कि वह विक्रम के घर उससे यह पूछने गया था कि उसने उसके साथ ऐसा क्यों किया? विक्रम के स्वभाव से परिचित होने की वजह से ही वह आत्मरक्षा के लिए बंदूक लेकर गया और उसने आत्मरक्षा के लिए ही बंदूक चलायी, जिसमें व्रिकम मारा गया. उधर इंस्पेक्टर लोबो जांच करते करते रूस्तम के दिल्ली फोन का पता लगाकर दिल्ली में डिफेंस सेक्रेटरी केजी बख्शी से मिलता है. केजी बख्शी इंस्पेक्टर लोबो को उस फोन की रिकार्डिंग देता है, जिसमें रूस्तम कहता है कि वह विक्रम को छोड़ेगा नहीं. इंस्पेक्टर लोबो वह रिकार्डिंग भी अदालत को देता है. अब अदालत के जज ज्यूरी का निर्णय जानकर दूसरे दिन फैसला सुनाने वाले हैं.

इधर जेल में रूस्तम शतरंज खेल रहा है, तो वहीं इंस्पेक्टर लोबो भी परेशान है. वह रूस्तम के पास जेल में जाता है. वहां रूस्तम उसे असलियत बताते कहता है- ‘‘विक्रम ने नेवी के एडमिरल कामत को खरीद रखा था और उसने मुझसे व मेरी पत्नी से भी दोस्ती की थी. मुझे खास मकसद से छह माह के लिए लंदन भेजा गया था. जिससे मैं भारत सरकार यानी कि रक्षा मंत्रालय द्वारा खरीदे जाने वाले एअरक्राफ्ट के सही होने की पुष्टि कर दूं. पर मैंने देखा तो वह एअरक्राफ्ट जंग खाया हुआ था. मैने मना कर दिया. तो विक्रम ने मुझे दस लाख रूपए देने की बात की, जबकि उसे इसके एवज में पांच करोड़ रूपए मिल रहे थे. मैने उसे मना कर दिया और लंदन में ही मौजूद रक्षा सचिव केजी बख्शी को सच्चाई बतायी. तो केजी बख्शी ने कहा कि विक्रम मुझे बीस लाख रूपये देगा.

मेरे मना करने पर विक्रम के कहने पर मेरा तबादला किया गया और मुझे समय से पहले आईएनएस मैसूर में भारत लौटना पड़ा. विक्रम के घर जाने से पहले मैंने के जी बख्शी को फोन किया था, उन्होंने मुझसे कहा था कि विक्रम से उन्होंने बात कर ली है. वह मुझसे मिलकर मामला सुलझा लेगा. मैने बख्शी से कहा था कि एअरक्राफ्ट की रिपोर्ट का पन्ना मेरे पास है, जिसे मैं रक्षा मंत्रालय भेजकर सबकी पोल खोल दूंगा. इसलिए उसने आधी रिकार्डिंग देकर मेरे खिलाफ काम किया.’’

जब इंस्पेक्टर लोबो ने कहा कि रूस्तम ने यह सच अदालत को क्यों नहीं बताया, तो रूस्तम ने कहा,‘‘मै आम जनता के सामने नेवी व रक्षा मंत्रालय की छवि खराब नहीं करना चाहता. देशभक्त हूं. देश की रक्षा करते करते मैं अपने परिवार की रक्षा नहीं कर पाया. दूसरे दिन अदालत मे जूरी के नौ में से आठ सदस्य रूस्तम को बरी कर देते हैं. पूरी जनता खुश हो जाती है.

कुछ माह पहले प्रदर्शित फिल्म ‘‘1920 लंदन’’ देखकर बहुत निराशा हुई थी, पर ‘रूस्तम’ देखकर इस बात का अहसास ही नही होता कि ‘रूस्तम’ का निर्देशन ‘1920 लंदन’ के निर्देशक टीनू सुरेश देसाई ने ही किया है. ‘‘रूस्तम’’ एक परिपक्व निर्देशक की फिल्म लगती है. फिल्म में रोमांच के तत्व के साथ साथ इमोशन, एक्शन सहित सब कुछ है. अक्सर वह फिल्में काफी नीरस हो जाती हैं, जिनमें कोर्टरूम ड्रामा होता है, पर टीनू सुरेश देसाई के निर्देशन का कमाल ही कहा जाएगा कि फिल्म शुष्क या नीरस नहीं होती है. कोर्टरूम ड्रामा भी अच्छे से पेश किया गया है. पचास के दशक को यथार्थ रूप में परदे पर पेशस करने में भी वह सफल रहे हैं.

कहानी व पटकथा लेखक विपुल रावल ने यदि थोड़ी कसावट की होती, तो यह फिल्म ज्यादा बेहतर हो जाती. फिल्म थोड़ी सी लंबी हो गयी है. बीच बीच में कहानी की गति धीमी भी होती है. इसके अलावा फिल्म में कोर्टरुम की कार्यवाही, जज व ज्यूरी के आने जाने को यथार्थ के धरातल पर पेश करने के चक्कर में भी फिल्म कुछ लंबी हुई है, जिससे बचा जा सकता था.

यदि यह फिल्म एक काल्पनिक कथा है तो यह सवाल उठना लाजमी है कि पत्नी का गैर मर्द के साथ रिश्ता बनाने को सही ठहराने के लिए क्या देश की सुरक्षा से जुड़े मामले को जोड़ा जाना सही है? नेवी अफसर रूस्तम के किरदार में अक्षय कुमार ने अपनी चिरपरिचित शेली में बेहतर अभिनय किया हैं, पर अभी उन्हे अपने चेहरे पर भाव लाने के लिए मेहनत करने की जरुरत नजर आती है. ईलियाना डिक्रूजा, ईशा गुप्ता, सचिन खेड़ेकर ने भी अपने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है.

फिल्म के कैमरामैन संतोष ठुंडयिल ने भी बेहतरीन काम किया है. फिल्म का गीत संगीत ठीक ही है. कुल मिलाकर ‘‘रूस्तम’’ कोई अद्भुत फिल्म नहीं है. पर अक्षय कुमार के प्रशंसकों और रोमांचक फिल्म देखने के शौकीनों के लिए यह फिल्म ठीक है.

दो घंटे 32 मिनट की अवधि वाली फिल्म का निर्माण नीरज पांडे, शीतल भाटिया, जी स्टूडियो, लेखक विपुल के रावल, निर्देशक टीनू सुरेश देसाई, संगीतकार अंति तिवारी, जीत गांगुली, राघव सचर तथा कलाकार हैं-अक्षय कुमार, ईलियाना डिक्रूजा, ईशा गुप्ता, अर्जन बाजवा, उषा नाउकर्णी, अनंग देसाई, ब्रजेंद्र काला व अन्य.

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ब्राजील के रियो में ओलिंपिक चल रहा है, लेकिन रियो डि जेनेरियो का एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है.

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