हर धर्म एक बात से सब से ज्यादा डरता है और वह है खुली स्वतंत्र बात. धर्म अपने विरोधियों के बल और आक्रमण को तो सह लेता है पर अपनों में से किसी की भी कैसी भी आलोचना से बहुत डरता है. हिंदी फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ से पंजाब की धार्मिक पार्टियों- अकाली दल व भारतीय जनता पार्टी का डर निर्मूल न था और इसीलिए परम भक्त और सैंट्रल बोर्ड औफ फिल्म सर्टिफिकेशन के चैयरमैन पहलाज निहलानी ने उस पर मनचाही कैंचियां चलवाईं.
फिल्म में न तो नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ कुछ है न प्रकाश सिंह बादल की अकाली सरकार के खिलाफ पर 2017 के चुनावों से पहले यह रंग देना कि मादक नशीली दवाओं का धंधा पंजाब के घरघर में घुस गया है और औरतें भी इस धंधे को चलाने में मदद करती हैं, ऐसी स्वीकारोक्ति है जिस से डरना स्वाभाविक है.
पंजाब में ड्रग्स का धंधा असल में शराब की बोतलों पर चढ़ कर आया है. वहां शराब पीनापिलाना फैशन और शान की बात है. हर घर में शराब की बोतलों को सजा कर रखा जाता है. औरतें भी जम कर पीती हैं. पंजाब के गानों में शराब और नशे की ऐसी जम कर महिमा गाई गई है कि देवीदेवता भी ईर्ष्या कर बैठें.
फिर जब पंजाब में बिहार से मजदूर पहुंचे तो उन से जम कर काम लेने के लिए उन्हें नशे की आदत डाली गई. तंबाकू, खैनी के आदी तो वे थे ही, नशे को उन्होंने दोनों हाथ लिया. जब नशे की खेती हो रही हो तो कौन बचेगा? धर्म का पंजाब में खूब जोर है. क्यों धर्म नशे को बंद नहीं करा सकता? जहां लोगों को पूजास्थल पर ले जाने के लिए लाखों में तैयार करा जा सकता है, अपनी तरह की पोशाक पहनने की जबरदस्ती की जा सकती है, खानेपीने पर बंदिशें लगाई जा सकती हैं, तो वहां नशे की सूइयां लगाने को बंद क्यों नहीं करा जा सकता?