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भूत के डर से घाटे में बेच दिया घर

मशहूर फुटबॉलर डेविड बेकहम फ्रांस के साउथ ऑफ फ्रांस मैंनेस में मौजूद अपने घर को बेचने जा रहे हैं. लोगों का कहना है कि डेविड इस घर को इसलिए बेच रहे हैं क्योंकि इस घर में भूत है.

डेविड बेकहम ने इस घर को साल 2003 में 13 करोड़ रुपये में खरीदा था. जबकि 40 करोड़ से ज्यादा खर्च घर को आधुनिक रूप देने पर खर्च किया था. लेकिन डेविड अब अपने इस बंगले को आधी कीमत पर बेचने को मजबूर हैं.

विक्टोरिया को पसंद था घर

डेविड के पड़ोसियों का कहना है कि इस घर में पुराने मालिक की आत्मा रहती है. घर खरीदते समय बेकहम परिवार को इस बात का पता नहीं था. घर खरीदने के कुछ ही दिन बाद उन्हें पता चला कि इस घर में भूत है. डेविड ने यह घर अपनी पत्नी विक्टोरिया के कहने पर लिया था. लेकिन जब विक्टोरिया को यह बात पता चली तो उन्होंने इस घर में रहने से साफ इनकार कर दिया.

दोस्तों के घर रुकते हैं बेकहम

बेकहम के जानने वालों को कहना है कि वह जब भी अपने परिवार के साथ फ्रांस आते हैं तो इस घर में रुकने के बजाय अपने दोस्तों के यहां रहते हैं. बेकहम दंपत्ति ने इस घर को आधुनिक रूप देने के लिए 40 करोड़ से ज्यादा राशि खर्च की थी. इस घर के अलावा डेविड बेकहम का लंदन और लॉस एंजेलिस में भी घर है.

छह बेडरूम वाला आलीशान घर

इस घर में छह बड़े कमरे हैं. तीन रिसेपशन रूम, चार बाथरूम, नौकरों का कमरा और एक विशाल स्विमिंग पूल है. बेकहम का यह बंगला 200 एकड़ के इलाके में फैला हुआ है.

घर में पुराने मालिक की आत्मा!

डेविड के पहले इस घर में रिटायर्ड यूरोपीय राजदूत लेस्ली डक और उनकी पत्नी कैथरीन डे चार्मर रहते थे. दोनों ही काफी जिंदादिल थे. घर पर मेहमानों का आना जाना लगा रहता था. लेस्ली को अपना घर बेहद पसंद था इसलिए वह हमेशा पार्टी का बहाना ढूंढते रहते थे.

लोगों को इकट्ठा कर लेस्ली अपने हीरो पीयरे चार्ल्स की कहानियां सुनाया करते थे. चार्ल्स फ्रांस की सेना में नेपोलियन के समय सेना प्रमुख था. लेकिन उसने हार से बचने के लिए आत्महत्या कर ली थी.

पड़ोसियों ने देखा भूत

2001 के आसपास लेस्ली बीमार रहने लगे. उसके शरीर ने काम करना बंद कर दिया. वह हर काम के लिए अपनी बीवी पर निर्भर हो गए. लेकिन लेस्ली को यह मंजूर नहीं था. वह किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे. लेस्ली के लिए ऐसी जिंदगी हार की तरह थी.

इसलिए एक दिन अपने हीरो चार्ल्स की तरह उन्होंने भी खुद को गोली मार ली. लेस्ली की मौत के बाद कैथरीन भी वहां से चली गई. लेकिन पड़ोसियों का दावा है कि उन्होंने कई बार लेस्ली जैसे दिखने वाले एक व्यक्ति को घर की छत और खिड़की पर खड़े देखा है.

अब पीएफ गिरवी रखकर ले सकेंगे घर

एंप्लॉयी प्रॉविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन (ईपीएफओ) जल्द ही अपने चार करोड़ से अधिक सब्सक्राइबर्स के लिए प्रविडंट फंड गिरवी रखकर लो-कॉस्ट घर खरीदने की एक स्कीम ला सकता है. इस स्कीम में पीएफ अकाउंट से ईएमआई चुकाने की सुविधा भी मिल सकती है.

लेबर सेक्रटरी शंकर अग्रवाल ने बताया, ‘हम ईपीएफओ के सब्सक्राइबर्स के लिए एक हाउसिंग स्कीम पर काम कर रहे हैं. इसके तहत सब्सक्राइबर्स को अपने पीएफ अकाउंट में जमा रकम गिरवी रखकर घर खरीदने की अनुमति मिलेगी.’ स्कीम के तौर-तरीकों पर विचार किया जा रहा है. इनमें लोन के लिए सब्सक्राइबर्स की पात्रता और लो-कॉस्ट हाउस की परिभाषा जैसी बातें शामिल होंगी.

पिछले वर्ष 16 सितंबर को हुई सीबीटी की मीटिंग में ईपीएफओ सब्सक्राइबर्स के लिए लो-कॉस्ट घर खरीदने के प्रपोजल पर विचार किया गया था. मीटिंग के दौरान सब्सक्राइबर्स के लिए हाउजिंग की सुविधा पर बनी एक्सपर्ट कमिटी की एक रिपोर्ट भी पेश की गई थी. कमिटी ने एक ऐसी स्कीम का सुझाव दिया था जिसमें सब्सक्राइबर्स को घर खरीदने के लिए पीएफ अकाउंट में जमा रकम से अडवांस लेने के साथ ही ईएमआई के भुगतान के लिए भविष्य में पीएफ कंट्रीब्यूशन को गिरवी रखने की अनुमति देने की बात थी.

मैं अमर हो सकता हूं: उसेन बोल्ट

ओलंपिक खेलों में 100 मीटर फर्राटा दौड़ का लगातार तीसरा स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचने वाले दुनिया के सबसे तेज धावक जमैका के उसेन बोल्ट ने कहा है कि वह अमर होने से सिर्फ एक कदम दूर हैं.

उल्लेखनीय है कि बोल्ट ने रियो ओलंपिक में हुए 100 मीटर फर्राटा दौड़ के फाइनल में 9.81 सेकेंड का समय निकाला और अमेरिकी धावक जस्टिन गाटलिन को पछाड़ते हुए लगातार तीसरी बार ओलंपिक स्वर्ण पदक हासिल किया.

गाटलिन जहां सेकेंड के 800वें हिस्से से बोल्ट से पीछे रह गए और उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा, वहीं कनाडा के आंद्रे डी ग्रासे ने 9.91 सेकेंड का समय निकालते हुए कांस्य पदक पर कब्जा जमाया.

बोल्ट के इसके साथ ही ओलंपिक में स्वर्ण पदकों की संख्या बढ़कर सात हो गई और उन्होंने फर्राटा दौड़ के इतिहास में खुद को महानतम धावक के तौर पर स्वीकार भी कर लिया.

बोल्ट की निगाहें अब लगातार तीन ओलंपिक में तीन-तीन स्वर्ण पदकों की हैट्रिक पूरी करने पर है. वह बीजिंग ओलंपिक और लंदन ओलंपिक में 100 मीटर स्पर्धा के अलावा 200 मीटर और चार गुणा 100 मीटर स्पर्धाओं में भी स्वर्ण पदक विजेता हैं.

बोल्ट ने 100 मीटर का स्वर्ण जीतने के बाद कहा, 'यह शानदार था. मैं बहुत तेज नहीं दौड़ सका, लेकिन जीत हासिल कर मैं खुश हूं. मैंने आपसे कहा था कि मैं यह कारनामा करने जा रहा हूं.'

बोल्ट ने कहा, 'कोई कह रहा था कि मैं अमर हो गया. दो और पदक लाने हैं, फिर मैं सच में अमर हो जाऊंगा.' बोल्ट पिछले महीने ही ओलंपिक की ट्रायल स्पर्धा के दौरान चोटिल हो गए थे, जिसके बाद उन्हें उपचार लेना पड़ा था.

बोल्ट ने कहा कि उन्हें अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी गाटलिन को हरा पाने के लिए अपनी फिटनेस और क्षमता पर कभी भी शंका नहीं थी. गाटलिन स्पर्धा में दूसरे स्थान पर रहे. उन्होंने फाइनल से पहले सीजन का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था.

स्वर्ण पदक जीतने के बाद रियो डी जनेरियो में बोल्ट को दर्शकों की ओर से बेइंतहा समर्थन मिला, हालांकि गाटलिन की हंसी उड़ाई गई.

इस ट्रेन में होगा फ्लाइट में ट्रेवल करने का एहसास

इंडियन रेलवे अगले छह महीने में एक नई ट्रेन पटरियों पर उतारने की तैयारी में है. तेजस मौजूदा शताब्दी जैसी ट्रेन होगी लेकिन इसके फीचर लगभग वैसे ही होंगे, जैसे विमान यात्रियों को देखने को मिलते हैं. इस ट्रेन में सारी आधुनिक सुविधाएं होंगी और सीट पर ही पैसेंजरों के मनोरंजन की सुविधा भी मुहैया करायी जाएगी.

इंडियन रेलवे के एक सीनियर अफसर के मुताबिक रेलवे इस ट्रेन की तैयारी कर रहा है और उम्मीद है कि तेजस की पहली ट्रेन अगले साल फरवरी तक तैयार होकर आ जाएगी. माना जा रहा है कि तेजस को उन रूटों पर चलाया जाएगा, जहां दिन में ही सफर पूरा हो जाए. इस ट्रेन की विशेषता यह होगी कि इसमें एक्जीक्यूटिव क्लास ओर एसी चेयरकार के ही सभी कोच होंगे. रेलवे का कहना है कि कोच में लगभग दो दर्जन नए फीचर होंगे. इसके कोच तैयार करने का काम तेजी से चल रहा है.

रेलवे अधिकारियों का कहना है कि इस ट्रेन में पैसेंजरों का सफर न सिर्फ कम्फर्टेबल होगा बल्कि आनंददायक भी होगा. इस ट्रेन में पैसेंजरों को सफर के दौरान वाई फाई की सुविधा मिलेगी और ट्रेन में ही चाय, काफी की वेंडिंग मशीनें लगाई जाएंगी. इस तरह से पैसेंजर ट्रेन में ही तैयार चाय काफी का आनंद ले सकेंगे.

ट्रेन में स्मोक डिटेक्शन सिस्टम, सीसीटीवी, जीपीएस आधारित इन्फार्मेशन सिस्टम और एलईडी जैसे फीचर तो जोड़े ही गए हैं, साथ ही ट्रेन में विमानों की तरह ही बॉयो वैक्यूम टॉयलेट लगाए जा रहे हैं. सेंसर आधारित पानी की टूटी होगी, पैसेंजरों को ट्रेन में ही हाथ सुखाने की मशीन लगाई जाएगी और टिशू पेपर भी मुहैया कराए जाएंगे. ट्रेन में वाटर लेवल इंडीकेटर होगा और डस्टबिन लगे होंगे.

ट्रेन के बाहर कोच नंबर और पैसेंजर इंफॉर्मेशन सिस्टम पूरा डिजिटल होगा. इसके अलावा इस ट्रेन के कोच के दरवाजे भी ऑटोमेटिक होंगे. इन दरवाजों में सेंसर लगे होंगे, जिससे पैसेंजर के गेट में फंसने का खतरा नहीं होगा. रेलवे का कहना है कि फिलहाल तेजस की तीन ट्रेनें तैयार करने का काम चल रहा है. इन ट्रेनों के कोच में एसी चेयरकार होंगी.

अब देश में होगी ‘एलईडी क्रांति’

मोदी ने अपने सरकार की तारीफ करते हुए कहा है कि उनके सरकार के हस्तक्षेप से उर्जा के किफायती इस्तेमाल वाले एलईडी बल्ब की दर 350 रपये प्रति इकाई से घट कर 50 रपये पर आ गयी है और देश भर में 77 करोड़ एलईडी बल्ब लगा कर सालाना 1.25 लाख करोड़ रपये की बचत का लक्ष्य रखा गया है.

लाल किले की प्राचीर से अपने तीसरे स्वतंत्रता दिवस संबोधन में उन्होंने कहा कि लाइट इमिटिंग डायोड (एलईडी) बल्बों से न केवल बिजली की बचत होती है बल्कि कार्बनडायओक्साइड उत्सर्जन में भी कमी आती है और यह पर्यावरण एवं अर्थव्यवस्था में योगदान देता है.

मोदी ने कहा, अगर एलईडी बल्ब लोगों के जीवन, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था में बदलाव ला सकता है, तो सरकार को इसकी कार्य संस्कृति में बदलाव लाने की भी कोशिश करनी चाहिए. सरकार के हस्तक्षेप से एलईडी बल्ब की कीमत 50 रपये पर आ गयी जो पहले 350 रपये थी.

घरों एवं सार्वजनिक लाइटिंग में एलईडी के उपयोग से बिजली की खपत में 50% से 90% तक की कमी आ सकती है. सरकार ने अबतक 13 करोड़ से अधिक एलईडी बल्ब वितरित किये हैं और अगले तीन साल में थोक आर्डर के जरिये 70 करोड़ से अधिक बल्ब वितरित करने का उसका लक्ष्य है.

घरेलू कुशल लाइटिंग कार्यक्रम (डीईएलपी) के तहत सरकार प्रतिस्पर्धी बोली के जरिये एलईडी बल्ब खरीदती है और प्रतिस्पर्धी दर पर उसे ग्राहकों को उपलब्ध कराती है. 

भारत-वेस्टइंडीज टेस्ट: ब्रावो-रोहित पर लगा जुर्माना

भारतीय बल्लेबाज रोहित शर्मा और वेस्टइंडीज के डेरेन ब्रावो पर आईसीसी की आचार संहिता का उल्लंघन करने पर 15 फीसदी मैच शुल्क का जुर्माना लगाया गया है.

दोनों खिलाड़ियों को भारत और वेस्टइंडीज के बीच डेरेन सैमी राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में संपन्न हुए तीसरे टेस्ट मैच के दौरान उल्लंघन का दोषी पाया गया.

सेंट लूसिया टेस्ट के आखिरी दिन फील्ड अंपायरों को दोनों खिलाडि़यों को कई बार एक दूसरे से न उलझने और एक दूसरे पर छींटाकशी न करने के लिए कहना पड़ा.

यह मैच भारत ने 237 रनों के अंतर से जीत लिया और चार मैचों की टेस्ट सीरीज में 2-0 से अजेय बढ़त हासिल कर ली.

मैच की समाप्ति के बाद दोनों खिलाड़ियों ने अपना दोष मान लिया और मैच रेफरी रंजन मदुगले द्वारा लगाए गए जुर्माने को भी स्वीकार कर लिया. अब उनके खिलाफ किसी तरह की सुनवाई की जरूरत नहीं है.

दोनों खिलाड़ियों पर फील्ड अंपायरों रॉड टकर और निजेल लांग ने आईसीसी की आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया था, जिसका तीसरे अंपायर ग्रेगरी ब्रैथवेट और चौथे अंपायर निजेल डुगुइड ने समर्थन किया.

अनोखा बंधन

अमर जब होटल में पहुंचा, तो रात के साढ़े 9 बज गए थे. क्लाइंट कमरा नंबर 12 में ठहरा हुआ था.अमर ने डोरबैल बजाई, तो खुद क्लाइंट ने दरवाजा खोला.  अमर का परिचय पा कर उसे दोचार सुनाते हुए क्लाइंट ने कहा, ‘‘आप को समय पर आना चाहिए था. अभी मैं एक लड़की के साथ बिजी हूं.’’

‘‘सौरी सर, मैं कल दोबारा आ जाऊंगा. बताइए, कितने बजे आऊं?’’

‘‘कल मैं किसी दूसरे काम में बिजी हूं…’’ कुछ सोच कर क्लाइंट ने कहा, ‘‘आप ऐसा कीजिए कि भीतर आ जाइए. फाइल तैयार है. सिर्फ मेरा दस्तखत करना बाकी रह गया है.’’

अमर कमरे में आ गया. जैसे ही अमर की बैड पर नजर पड़ी, तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. बैड पर कोई और नहीं, बल्कि उस की प्रेमिका रह चुकी संगीता थी. वह अपने बदन पर चादर लपेटे हुए थी. अमर का मन कमरे से भाग जाने को हुआ, मगर उस ने ऐसा नहीं किया. थोड़ी देर बाद फाइल ले कर अमर क्लाइंट के साथ दरवाजे पर आया. न चाहते हुए भी उस ने पूछ लिया, ‘‘सर, यह लड़की आप की गर्लफ्रैंड है क्या?’’

‘‘नहीं, कालगर्ल है. आज शाम को ही एक दलाल से इसे बुक किया था.’’

अमर को लगा, जैसे किसी ने उसे बहुत ऊंचाई से नीचे फेंक दिया हो. अमर को संगीता से बिछड़े हुए 2 साल हो गए थे. इस बीच उस ने न जाने कहांकहां उसे ढूंढ़ा, मगर वह उसे नहीं मिली. अमर बिहार के समस्तीपुर जिले के एक गांव का रहने वाला था. ग्रेजुएशन करते ही उसे दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई थी. वह कुंआरा था, इसलिए अपने मातापिता, भाईबहन को गांव में छोड़ कर दिल्ली अकेले ही आया था. नौकरी जौइन करने के बाद अमर को जिस बिल्डिंग में किराए का फ्लैट मिला था, उसी में संगीता अपने पिता के साथ दूसरी मंजिल पर रहती थी. घर से अमर का दफ्तर बहुत दूर था, इसलिए आनेजाने के लिए उस ने मोटरसाइकिल खरीद ली थी. शुरू में तो नहीं, मगर बाद में अमर ने इस बात पर ध्यान दिया कि शाम को जैसे ही उस की मोटरसाइकिल बिल्डिंग के अहाते में आती है, दूसरी मंजिल की बालकनी में झट से 20-22 साला एक खूबसूरत लड़की आ कर उसे देखने लगती है.

पता करने पर मालूम हुआ कि उस लड़की का नाम संगीता है. धीरेधीरे अमर को लगने लगा कि वह संगीता को प्यार करने लगा है, उस के बिना नहीं रह पाएगा. एक दिन अमर संगीता को अपने दिल का हाल बताने के लिए बेचैन हो गया. जैसे ही वह शाम को दफ्तर से आया, संगीता को बालकनी में देखा. अमर ने संकेत से उसे बताया कि वह उस के पास आ रहा है. संगीता ने उसे मना नहीं किया. फिर वह खुश हो कर उस के फ्लैट पर पहुंच गया. संगीता दरवाजे पर खड़ी थी. उस ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया, फिर उसे अंदर ले गई. अमर को बैठा कर संगीता चायनाश्ता लाने के लिए जाने लगी, तो उस ने उसे रोक कर अपने पास बैठा लिया. अमर ने पहले उसे अपने बारे में बताया, फिर कहा कि वह उसे प्यार करता है और शादी करना चाहता है.

‘‘क्या आप को पता है कि मैं विधवा हूं? मेरा डेढ़ साल का एक बेटा है?’’

अमर को संगीता की इस बात पर यकीन नहीं हुआ. उस ने कहा, ‘‘अभी तुम्हारी उम्र 22 साल की होगी. इतनी कम उम्र में तुम्हारी शादी हो गई, बच्चा भी हो गया और विधवा भी हो गई…’’

‘‘मुझे लगता है कि तुम मुझ से शादी नहीं करना चाहती हो, इसलिए ऐसा कह रही हो.’’

संगीता कुछ कहती, उस से पहले ही एक कमरे से बच्चे के रोने की आवाज सुनाई पड़ी. संगीता उठ कर उस कमरे में चली गई. जब वह आई, तो उस की गोद में एक खूबसूरत बच्चा था.

‘‘यही मेरा बेटा है. इस का नाम रोहित है.’’

यह सुन कर अमर दुखी हो गया. वह जानता था कि उस के घर वाले हरगिज किसी विधवा से उस की शादी नहीं होने देंगे. ऊपर से वह एक बच्चे की मां भी थी. ‘‘दरअसल, बात यह है कि जब मैं 11वीं कक्षा में पढ़ती थी, तो मुझे एक लड़के से प्यार हो गया था. वह मेरे साथ ही पढ़ता था. ‘‘मेरे पिता को पता चल गया था कि मैं प्यारमुहब्बत के चक्कर में फंस गई हूं. उन्होंने उस लड़के के पिता से शादी की बात कर डाली, फिर मेरी पढ़ाई छुड़वा कर उस लड़के से शादी कर दी गई. ‘‘शादी का एक साल होतेहोते मैं विधवा हो गई. एक सड़क हादसे में मेरे पति की मौत हो गई थी. उस समय मैं पेट से थी.

‘‘उस के बाद मुझ पर कहर टूट पड़ा. ससुराल वालों ने ‘डायन’ कह कर घर से निकाल दिया और मैं मायके आ गई. ‘‘मेरे पिता ने तो इस सदमे को बरदाश्त कर लिया, मगर मेरी मां बरदाश्त न कर सकीं. दिल का दौरा पड़ने से उन की मौत हो गई. ‘‘मां की मौत के बाद मैं ने खुदकुशी करने की कोशिश की, मगर पिता ने मुझे बचा लिया.

मुझे समझाया कि बच्चे को हर हाल में जन्म देना होगा और उस के लिए जीना होगा. ‘‘उन्होंने यह भी कहा कि अगर मैं खुदकुशी कर लूंगी, तो उन का क्या होगा? इस बुढ़ापे में उन्हें कौन देखेगा?

‘‘पिता की बात बिलकुल ठीक थी. मैं अपने मातापिता की एकलौती औलाद थी. मैं खुदकुशी कर लेती, तो उन्हें देखने वाला कोई नहीं बचता.

‘‘समय पर मैं ने बच्चे को जन्म दिया और पूरा ध्यान उस की परवरिश पर लगा दिया. ‘‘मैं दूसरी शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन पिता हर हाल में मेरी दूसरी शादी करना चाहते थे. उन का कहना था कि उन की मौत के बाद मुझे कौन देखेगा?

‘‘मजबूर हो कर मैं ने पिता को अपनी दूसरी शादी की सहमति दे दी. लेकिन मेरी यह शर्त थी कि मैं उसी से शादी करूंगी, जो मेरे बेटे को अपना नाम देगा.

‘‘लड़के की तलाश शुरू होती, उस से पहले मैं ने अचानक एक दिन आप को देखा और दिल में बसा लिया. ‘‘मैं चाहती थी कि पहले आप मुझे अपने दिल का हाल बताएं, उस के बाद मैं अपने बारे में सबकुछ आप को बता दूंगी. अब आप जो फैसला करेंगे, मुझे मंजूर होगा.’’ संगीता की आपबीती सुन कर अमर चिंता में पड़ गया. वह आननफानन कोई फैसला नहीं करना चाहता था. घर वालों को मनाने की बात कह कर वह वहां से चला गया. अमर संगीता से शादी करना चाहता था. इस के लिए उस ने गांव जा कर अपने घर वालों को मनाने का फैसला किया, पर वह गांव न जा सका. 2 दिन बाद ही उस का ट्रांसफर दिल्ली से कोलकाता हो गया.

कोलकाता में उसे तुरंत दफ्तर जौइन करना था, इसलिए वह संगीता को ट्रांसफर की सूचना दिए बिना दिल्ली से चला गया. अमर ने सोचा था कि कोलकाता में दफ्तर जौइन करने के बाद वह छुट्टी ले कर गांव जाएगा. उस के बाद खुशखबरी ले कर संगीता से मिलेगा. लेकिन उस का सोचा नहीं हुआ. नए दफ्तर में इतना ज्यादा काम था कि उसे अगले 4 महीने तक छुट्टी नहीं मिली. संगीता का कोई फोन नंबर उस के पास नहीं था, इसलिए वह उस से बात भी न कर सका. 4 महीने बाद जब अमर को छुट्टी मिली, तो उस ने पहले संगीता से मिलने का विचार किया. संगीता से मिल कर वह उसे बता देना चाहता था कि वह उस से हर हाल में शादी करेगा और उस के बेटे को अपना नाम देगा. अमर संगीता के फ्लैट पर गया, तो वहां कोई दूसरा था. पूछताछ करने पर पता चला कि उस के जाने के एक महीने बाद ही संगीता के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी.

उस के बाद संगीता फ्लैट बेच कर अपने मामा के साथ चली गई. उस का मामा कहां रहता था, यह किसी को पता नहीं था. गांव न जा कर अमर उसी दिन से संगीता की तलाश में लग गया. छुट्टी रहने तक उस ने बहुत सी जगहों पर उस की तलाश की, उस के बाद वह कोलकाता चला गया. अमर कोलकाता आ गया था, मगर उस ने संगीता की तलाश बंद नहीं की थी. इसी तरह 2 साल बीत गए थे. आज अमर क्लाइंट से मिलने मेघदूत होटल गया, तो वहां संगीता को कालगर्ल के रूप में देख कर उसे गहरा धक्का लगा था. बहुत सोचने के बाद अमर ने संगीता से मिलने का फैसला किया. कुछ दिनों की कोशिश के बाद एक दलाल से अमर को संगीता के घर का पता चल गया.

एक दिन शाम के 5 बजे अमर संगीता के फ्लैट पर गया. कालबैल बजाने पर नौकरानी ने दरवाजा खोला. अमर ने जब उसे अपना परिचय दिया, तो वह उसे दरवाजे पर खड़ा कर संगीता से पूछने चली गई. थोड़ी देर बाद नौकरानी आई और अमर को अपने साथ भीतर ले गई. संगीता एक कमरे में बैठी थी. उस के पास ही उस का बेटा रोहित था. वह खिलौनों के साथ खेल रहा था. संगीता ने उसे बैठने के लिए कहा, तो वह सोफे पर उस के पास ही बैठ गया.

अमर के कुछ कहने से पहले संगीता ने ही कहा, ‘‘आप तो मुझे छोड़ कर चले गए थे, फिर 2 साल बाद मुझ से मिलने क्यों आए हैं?’’

‘‘मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं, फिर तुम्हें कैसे छोड़ सकता हूं…’’

अमर ने अपनी ट्रांसफर वाली बात बता दी. उस ने उसे यह भी बताया कि वह उस की तलाश में कैसे और कहांकहां भटकता रहा था. संगीता चिंता में पड़ गई. अब तक जिसे वह बेवफा समझ रही थी, वह तो उसे अटूट प्यार करता था. उस के लिए उस ने किसी से शादी भी नहीं की थी. कुछ सोचने के बाद संगीता ने कहा, ‘‘उस दिन आप मुझ से मिल कर गए तो लगा कि आप जरूर अपने घर वालों को मना कर मुझ से शादी करेंगे. लेकिन जब 2 दिन बाद आप एकदम लापता हो गए, तो मुझे शक हुआ. ‘‘पता करने पर मालूम हुआ कि आप तो अपना ट्रांसफर करा कर कोलकाता चले गए हैं. आप ने फ्लैट भी छोड़ दिया है.

‘‘आप का कोई फोन नंबर भी मेरे पास नहीं था, जो आप से कुछ पूछती. मैं चाहती तो कोलकाता के दफ्तर में जा कर आप से मिल सकती थी, मगर किस हक से मिलती? आप की मैं थी ही कौन?

‘‘एक महीने बाद पिता ने आप के बारे में पूछा, तो छिपा न सकी. कह दिया कि आप मुझ से शादी नहीं करेंगे.‘‘मैं ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि अब मैं किसी से भी शादी नहीं करूंगी. बेटे की परवरिश में मैं अपनी सारी जिंदगी बिता दूंगी. ‘‘मैं ने अपना फैसला भी पिता को बता दिया. मेरे इस फैसले से पिता को जबरदस्त सदमा पहुंचा और उन की मौत हो गई.

‘‘पिता की मौत पर मामा आए थे. मुझे समझाबुझा कर उन्होंने फ्लैट बेच दिया, फिर मुझे अपने साथ ले गए. ‘‘मेरा ननिहाल कानपुर में था. वहां 2-3 महीने तक सबकुछ ठीकठाक चला, उस के बाद मुझे घर की नौकरानी बना दिया गया.

‘‘मेरा एक ममेरा भाई था. वह मुझ से 2 साल छोटा था. उस की मुझ पर बुरी नजर थी. मैं उस से बच कर रहती थी. ‘‘एक दिन उसे मौका मिल ही गया. घर के सारे लोग किसी रिश्तेदार की शादी में गए थे. वह भी गया था. मगर न जाने कैसे थोड़ी देर बाद ही वह लौट आया और मुझ पर टूट पड़ा.

‘‘उस शैतान से मैं अपनी लाज बचा न सकी. उस ने मेरा रेप कर के ही छोड़ा. ‘‘मैं चुप रहने वालों में से नहीं थी. घर वाले जब रिश्तेदार के यहां से लौट कर आए, तो मैं ने उस की करतूत सभी को बता दी.

‘‘उस के बाद मुझ पर कहर टूट पड़ा. सभी ने मुझे ही कुसूरवार माना.

‘‘फ्लैट का रुपया मामा के पास था. मामा ने बगैर रुपए दिए धक्के मार कर घर से निकाल दिया. ‘‘मैं अपने बेटे के साथ इस उम्मीद से दिल्ली गई थी कि पिता की कंपनी में मुझे नौकरी मिल जाएगी, पर वहां नौकरी नहीं मिली. ‘‘कंपनी में काम कर रहे एक शख्स ने एक पता दे कर यह कह कर मुझे कोलकाता भेज दिया कि वहां नौकरी जरूर मिल जाएगी. कोलकाता आ कर पता चला कि उस शख्स ने मुझे जिस के पास भेजा था, वह सैक्स रैकेट चलाता था.

‘‘मेरी जिंदगी तो बरबाद हो चुकी थी, अब मैं बेटे की जिंदगी बरबाद नहीं होने देना चाहती थी, इसलिए सैक्स रैकेट से जुड़ गई. ‘‘एक साल बाद मैं उस रैकेट टीम से अलग हो गई. अब मैं अपना काम खुद करती हूं.’’ संगीता चुप हो गई, तो अमर ने कहा, ‘‘जो होना था, वह हो गया. अब तुम मुझ से शादी कर लो.’’ यह सुन कर संगीता हैरान रह गई. संगीता को हैरत में पड़ा देख अमर ने ही कहा, ‘‘मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं, इसलिए सबकुछ जानने के बाद भी तुम से शादी करूंगा.

‘‘तुम्हारे लिए मुझे अपने घर वालों से रिश्ता तोड़ना होगा तो तोड़ दूंगा…’’ संगीता ने सोचनेसमझने के लिए अमर से एक दिन का समय लिया. अगले दिन सुबह जब अमर संगीता के घर गया, तो वहां का अजीब सा मंजर देख कर परेशान हो गया. फ्लैट पर पुलिस थी. संगीता की नौकरानी भी वहां थी. पूछताछ करने पर अमर को पता चला कि संगीता ने रात के किसी पहर में खुदकुशी कर ली थी. सुबहसवेरे जब नौकरानी काम करने आई, तो फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद था. जब संगीता ने दरवाजा नहीं खोला, तो नौकरानी ने पड़ोसी को बताया और उस ने पुलिस को सूचना दी.

पुलिस आई और फ्लैट का दरवाजा तोड़ कर अंदर गई. संगीता सीलिंग फैन से झूल रही थी. संगीता ने पुलिस के नाम सुसाइड नोट लिखा था. उस में लिखा था कि वह अपने काम से खुश नहीं है, इसलिए खुदकुशी कर रही है. संगीता ने एक खत अमर के नाम भी लिखा था. उस खत में लिखा था, ‘पाप का बोझ ले कर अब मैं जीना नहीं चाहती, इसलिए दुनिया से विदा ले रही हूं. उम्मीद है कि मेरे बेटे रोहित को आप अपना नाम देंगे.’ अमर ने पुलिस को बताया कि संगीता उस की बिनब्याही पत्नी थी और रोहित उन दोनों के प्यार की निशानी है. पुलिस ने रोहित को अमर के हवाले कर दिया.

‘‘देश का बंटवारा हुआ था या आजादी मिली थी, समझ नहीं पाया’’

15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ था. इस आजादी को 69 वर्ष हो रहे हैं. पर यह आजादी क्या है? आजादी के बाद देश ,समाज व सिनेमा में क्या बदलाव आए? इस पर विचार करने की जरूरत है. इसीलिए हमने दस साल पहले फिल्म ‘‘रंग दे बसंती’’ से युवा पीढ़ी के अंदर जोश भरने वाले फिल्मकार राकेश ओम प्रकाश मेहरा से बात की.

भ्रष्टाचार पर ‘‘रंग दे बंसती’, धर्म व जात पात के खिलाफ ‘‘दिल्ली 6’’, खेल के साथ देश के बंटवारे पर ‘‘भाग मिल्खा भाग’’ बनाने के बाद अब राकेश ओम प्रकाश मेहरा प्रेम की व्याख्या करने वाली फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ बनायी है, जो कि सात अक्टूबर को प्रदर्शित होगी.

राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने हमारा यह सवाल सुनने के बाद कहा- ‘‘सच कहूं तो उस वक्त देश का बंटवारा हुआ था या हमें आजादी मिली थी, यह बात आज तक मेरी समझ में नही आयी. जहां तक सिनेमा का सवाल है तो, लेखक व निर्देशक वही कहानी बता सकेगा, जो उसे तंग करती है.’’

राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने अपनी बात को आगे बढाते हुए कहा- ‘‘जब देश को आजादी मिली थी, तब एक नया जोश था.उमंग थी, तब ‘साथी हाथ बढा़ना रे’, यह देश है वीर जवानों का’गीत बने थे.

उस वक्त कमाल का सिनेमा बना. ‘दो आंखे बारह हाथ’,‘नया दौर’ जैसी फिल्में बनी. उस वक्त देश वासियों के साथ साथ फिल्मकारों के दिल में भी था कि चलो देश बनाते हैं. मगर देश बना नहीं. अचानक युवा वर्ग को नौकरियां नहीं मिली. भ्रष्टाचार बढ़ गया. बंगाल फेमिना आ गया. महाराष्ट्र में अकाल पड़ गया. पाकिस्तान के साथ दो तीन युद्ध हो गए. चीन से चपट खायी. हाल यह हुआ कि ‘जिन्हें हिंद पर नाज है, वह कहां हैं? कहां हैं? कहां हैं? मतलब, ‘नहीं चाहिए यह दुनिया, यह ताजो यह तख्त.’ और तब हमारा हीरो वह बन गया, जो उस वक्त ब्लैक में सिनेमा की टिकट बेचता था. काला बाजारी करता था. देव आनंद पहले अभिनेता थे, जो नेगेटिव यानी कि नकारात्मक किरदार निभाकर हीरो/नायक बना.

अन्यथा उन दिनों हीरो तो स्कूल शिक्षक हुआ करता था. पहले पुलिस आपके मोहल्ले में आ जाए, तो पूरा मोहल्ला बदनाम हो जाता था. पर कहां चोर हीरो बनने लगा. 1965 के काल में जब इतना बुरा हाल हुआ, तो हमने पलायनवाद ढूंढ़ लिया. हमारा हीरो नाचने लगा. पहली बार नाचा. इससे पहले सिनेमा की शुरूआत से हीरो नाचता नहीं था. वह गीत भले गा लेता था. राज कपूर,अशोक कुमार और दिलीप कुमार तो देव आनंद से बड़े हीरो रहे हैं. के एल सहगल से बड़ा स्टार रहा ही नहीं.

जब शम्मी कपूर साहब पहली बार नाचे थे, मेरी उनसे बात भी हुई, उन्होंने खुद कबूल किया था कि उन्हें भी यह बात बहुत बाद में समझ में आयी थी. क्योंकि देश रो रहा था. उसे खुशियों की जरूरत थी. जो उसकी रोज की जिंदगी में नहीं मिल रही थी. उस वक्त हम ट्रेन पकड़ने के लिए रेलवे स्टेशन रवाना होते समय मानकर चलते थे कि जहां हमें पहुंचना है, वहां पहुंचने तक ट्रेन सोलह से 17 घंटे लेट होनी ही है.

ट्रेन कहीं भी रूक जाएगी. पटरी से उतर जाएगी, एक्सीडेंट हो जाएगा. जेब कतरे या डाकू ट्रेन के डिब्बे में घुस जाएंगे. तो हमने अपने सिनेमा में पलायनवाद डाला. और फिल्म में हमारा हीरो नाचने लगा. अब शायद समय बदला. बीच में डार्क स्टेज आ गया था. हमने ऐसा हीरो पैदा किया, जो सिस्टम के विरुद्ध था. तब ‘सत्यकाम’ जैसी फिल्में बनी.

अमिताभ बच्चन जी की कई फिल्में इसी तरह की आयीं.फिर चाहे वह‘दीवार’रही हो या ‘त्रिशूल’ या कोई अन्य.जब हमने सिस्टम के खिलाफ स्मगलर बन गए, हमने स्मगलर को अपना हीरो बना दिया, तो समाज का पतन का परिचायक था. स्मगलर को पैसा दिखता है और लोगों को उस वक्त पैसा ही चाहिए था.

फिर हीरो ही गायब हो गए. बीस तीस साल तक फिल्म से हीरो गायब रहा. क्योंकि समाज से ही हीरो गायब हो चुका था. किसको हीरो बनाएं. तब दकियानूसी बातें होने लगीं. उस वक्त फिल्मकार ने सोचा कि किसी को हीरो नहीं बनाते.

पोलीटीशियन/ राजनेता को ही गालियां बकते जाओ,वही हीरो हो गया. हीरो वाली बात थी ही नहीं. हीरो वह होता है जो आपको प्रेरणा दे. वैसा प्रेरणा देने वाला कोई आया ही नहीं.तो फिल्मों में मसाला, धूम धड़ाम, एक्शन,सब पिरोया जाने लगा. पलायनवाद एक नए स्तर पर पहुंच गया.’’

अपनी ही लय में बोलते हुए उन्होंने आगे कहा- ‘‘अब सुनने में आया है कि इकोनामी खुली है, जिसकी वजह से चीजें बदली हैं. कहा जा रहा है कि लोगों के पास पैसा आ गया. मुझे लगता है कि कन्जूमेरिज्म आ गया है. प्रगति आयी या नहीं, यह मेरी समझ में नहीं आ रहा. क्योंकि अभी भी गरीब तो बेचारा गरीब ही है. आपने गरीब के लिए आफिस जाने के लिए ऐसी कोई ए.सी. ट्रेन बनाकर नहीं दी, जिसमें वह आराम से बैठकर आ जा सके. उसे दूसरे का पसीना नहीं सूंघना पड़ता. उसका मोबाइल छीनकर कोई न भागता. हर दिन आठ दस लोग लोकल ट्रेन में चढ़ते उतरते मरते हैं.

अभी लोग रेलवे पटरी पर बैठकर शौच करते हैं और ट्रेन उन्हे उड़ाकर ले जाती है. तो सिनेमा वही बनेगा, जो समाज व देश में हो रहा है. या समाज को रिफलेक्ट करेगा या उसे न्याय संगत बताएगा. समाज में जो कुछ हो रहा है, उससे सिनेमा प्रेरित होगा अथवा उससे वह आपको पलायनवाद देगा.’’

वह आगे कहते हैं- ‘‘सिनेमा की यह जो स्थिति है,उसके लिए फिल्मकार या गैर फिल्मकार या आम जनता या राजनेता किसी का दोष नहीं है.उन्होने न तो अच्छा काम किया और न ही बुरा काम किया.’’

‘‘यदि फिल्मकार समाज का बदलाव कर रहा है,तो इसके यह मायने नहीं कि वह बहुत भारी काम कर रहा है. हम फिल्मकार कोई बड़ा काम नहीं कर रहे हैं. हमारा काम दर्शकों का मनोरंजन करना, उसको कहानी सुनाना है, यह मानना बहुत जरुरी है अन्यथा मेरी नानी मुझे थप्पड़ मार देगी. उसका कहना है कि मान लिया तुमने सब कुछ कर लिया,पर मोरल आफ स्टोरी क्या है? मैं खुश हूं या नहीं, यह महत्वपूर्ण नहीं है. देश बदल रहा है या नहीं, यह अति महत्वपूर्ण है. देश बदलेगा,तभी समाज व हम बदलेंगे.’’  

अब हमारे देश में हीरो कम कैसे हो गए? इस सवाल पर ‘‘सरिता’’पत्रिका से राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने कहा- ‘‘क्योंकि हमने सही बात नहीं सिखायी. हम बच्चे को सिखाते हैं कि चिंता मत कर. तेरा ड्रायविंग लायसेंस बनकर आ जाएगा. रेड लाइट क्रास करने पर वह कुछ रूपए देकर जिस तरह से आगे बढ़ जाता है,उससे लड़के को लगा कि यह तो ज्यादा आसान है.तो कहीं न कहीं परिवार के स्तर पर ही हमने अपने अंदर के हीरो को मार दिया. तो परदे पर हीरो कैसे नजर आएगा. परदे पर हमने हीरो को सिर्फ नारे लगाते ही दिखाया. इसीलिए हीरो खत्म हो गए.

फिल्मी अंदाज में पकड़े गये संदीप और नीतू के हत्यारे

संदीप और नीतू की कहानी प्यार, स्वार्थ और बेवफाई के रंग में पूरी तरह से रंगी थी. उनकी हत्या भी फिल्मी अंदाज में हुई जब दोनो अपने ही साथियों का शिकार हो गये. लखनऊ जोन के आईजी ए सतीश गणेश, एसएसपी मंजिल सैनी और एसएसपी एटीएफ अमित पाठक की बेहतर पुलिसिंग से हत्यारों को उस समय पकड़ लिया गया जब वह मुंबई जाने वाले हवाई जहाज पर बैठ गये थे और जहाज उडान भर चुका था.

पुलिस की पहल पर एयरपोर्ट एथॅारिटी ने विमान को रनवे छोडने से पहले ही रोक दिया. कहानी की शुरूआत भी फिल्मों से प्रेरित है. इलाहाबाद के रहने वाले इमरान ने मुम्बई जाकर एक्टिंग की दुनिया में नाम करने की सोची. वहां रहने और अपने खर्चे पूरे करने के लिये उसने सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली. एक बार उसकी डयूटी फिल्म डायरेक्टर रामगोपाल वर्मा के फिल्म में लग गई. वहां उसने देखा कि फिल्मों में अपराध को किस तरह से पेश किया जाता है.

इमरान को यहां जीवेश मिला. जीवेश से मिलकर इमरान ने अपराध का ठेका लेने वाला एक गिरोह बना लिया. लोगों का अपहरण कर फिरौती वसूल करने को अपना धंधा बना लिया. राजस्थान, दिल्ली और लखनऊ उसके निशाने पर थे. इसी क्रम में इमरान की मुलाकात संदीप और नीतू से हुई.

नीतू खुद को महिला आयोग का सदस्य बताकर लोगों को प्रभावित करती थी. वह संदीप के साथ लिव इन रिलेशन में रहती थी. दोनों इमरान के साथ जुड़ चुके थे. वह भी अपहरण के धंधे में लग गये. एक दिन संदीप और नीतू ने उत्तर प्रदेश जल निगम के सेक्शन अफसर 56 साल के सलीम फरीदी के अपहरण की योजना बनाई.

फिरौती में 3 करोड़ वसूलने का इंरादा था. नीतू और संदीप उनको जानते थे. ऐसे में इन दोनो ने उनको लखनऊ के सहारागंज मौल के पास बुलाया और वहां से उनका अपहरण कर लिया. अपहरण करने के बाद इमरान उनको लेकर इलाहाबाद गया.

जहां फिरौती की बातचीत की तो पता चला कि सलीम फरीदी की माली हालत 3 करोड़ देने वाली नहीं है. जब सौदा 10 लाख में पट गया.

फिरौती की रकम पाने के बाद नीतू का कहना था कि फरीदी को मार दिया जाये क्योंकि वह उसे पहचानता है. संदीप चाहता था कि नीतू को मार दिया जाये यह अब बोझ हो गई है. नीतू संदीप से अपना पीछा छुड़ाना चाहती थी.

इमरान फरीदी से वादा कर चुका था कि वह फिरौती की रकम मिलने के बाद जान से नहीं मारेगा. ऐसे में जब नीतू ने फरीदी को मारने की जिद की तो इमरान ने नीतू को गोली मार दी. संदीप फिरौती की रकम में अपना हिस्सा मांगने लगा तो उसने संदीप को जान से मार दिया.

संदीप और नीतू की हत्या के बाद इमरान और जीवेश मुम्बई भागने की फिराक में जुट गये. लखनऊ के अमौसी एयरपोर्ट से दोनो ने अपना मुम्बई का टिकट कटाया और जहाज में बैठ गये. इस बात की सूचना लखनऊ पुलिस को लग चुकी थी. तब तक जहाज रनवे से उड़ान भरने की तैयारी में स्पीड पकड़ चुका था. इसी बीच विमान की इमरजेंसी लैंडिग का संकेत मिला.विमान रनवे पर रूका तो पुलिस ने विमान को घेर लिया. विमान के अंदर से पुलिस ने इमरान और जीवेश को पकड़ लिया.

लखनऊ पुलिस ने 24 घंटे के अंदर इलाहाबाद में हुये डबल मर्डर के सनसनीखेज कांड को उजागर कर दिया. आईजी जोन ए सतीश गणेश ने कहा कि बेहतर पुलिसिंग और तालमेल से किये गये काम से यह संभव हो पाया. उत्तर प्रदेश के डीजीपी जावीद अहमद ने पुलिस टीम को 50 हजार इनाम की घोषणा की.

संदीप और नीतू भले ही एक दूसरे के साथ लिव इन रिलेशन में रह रहे थे पर दोनों के बीच भरोसा और विश्वास नहीं रह गया था. जिसकी वजह से इमरान ने एक के बाद एक दोनो की हत्या करके फिरौती की रकम को खुद की हड़प करने की सोची और पकड़ा गया.                

  

‘पद्मावती’ में नहीं होंगे रणवीर सिंह

पिछले कुछ सप्ताह के दौरान ‘सरिता’ पत्रिका ने आपको यह खबर दी थी कि संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती में रणवीर सिंह नही होंगे. मगर अंग्रेजी मीडिया लगातार लिखता आया है कि पद्मावती में अलाउद्दीन खिलजी के किरदार में रणवीर सिंह होंगे. पर अब यह साफ हो गया है कि फिल्म पद्मावती में रणवीर सिंह नहीं होंगे. अब इस बात को अंग्रेजी मीडिया ने भी मान लिया है.

यदि संजय लीला भंसाली के नजदीकी सूत्रों पर यकीन किया जाए, तो फिल्म पद्मावती में दीपिका पादुकोण भी नहीं होगी.

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