15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ था. इस आजादी को 69 वर्ष हो रहे हैं. पर यह आजादी क्या है? आजादी के बाद देश ,समाज व सिनेमा में क्या बदलाव आए? इस पर विचार करने की जरूरत है. इसीलिए हमने दस साल पहले फिल्म ‘‘रंग दे बसंती’’ से युवा पीढ़ी के अंदर जोश भरने वाले फिल्मकार राकेश ओम प्रकाश मेहरा से बात की.

भ्रष्टाचार पर ‘‘रंग दे बंसती’, धर्म व जात पात के खिलाफ ‘‘दिल्ली 6’’, खेल के साथ देश के बंटवारे पर ‘‘भाग मिल्खा भाग’’ बनाने के बाद अब राकेश ओम प्रकाश मेहरा प्रेम की व्याख्या करने वाली फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ बनायी है, जो कि सात अक्टूबर को प्रदर्शित होगी.

राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने हमारा यह सवाल सुनने के बाद कहा- ‘‘सच कहूं तो उस वक्त देश का बंटवारा हुआ था या हमें आजादी मिली थी, यह बात आज तक मेरी समझ में नही आयी. जहां तक सिनेमा का सवाल है तो, लेखक व निर्देशक वही कहानी बता सकेगा, जो उसे तंग करती है.’’

राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने अपनी बात को आगे बढाते हुए कहा- ‘‘जब देश को आजादी मिली थी, तब एक नया जोश था.उमंग थी, तब ‘साथी हाथ बढा़ना रे’, यह देश है वीर जवानों का’गीत बने थे.

उस वक्त कमाल का सिनेमा बना. ‘दो आंखे बारह हाथ’,‘नया दौर’ जैसी फिल्में बनी. उस वक्त देश वासियों के साथ साथ फिल्मकारों के दिल में भी था कि चलो देश बनाते हैं. मगर देश बना नहीं. अचानक युवा वर्ग को नौकरियां नहीं मिली. भ्रष्टाचार बढ़ गया. बंगाल फेमिना आ गया. महाराष्ट्र में अकाल पड़ गया. पाकिस्तान के साथ दो तीन युद्ध हो गए. चीन से चपट खायी. हाल यह हुआ कि ‘जिन्हें हिंद पर नाज है, वह कहां हैं? कहां हैं? कहां हैं? मतलब, ‘नहीं चाहिए यह दुनिया, यह ताजो यह तख्त.’ और तब हमारा हीरो वह बन गया, जो उस वक्त ब्लैक में सिनेमा की टिकट बेचता था. काला बाजारी करता था. देव आनंद पहले अभिनेता थे, जो नेगेटिव यानी कि नकारात्मक किरदार निभाकर हीरो/नायक बना.

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