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अमर जब होटल में पहुंचा, तो रात के साढ़े 9 बज गए थे. क्लाइंट कमरा नंबर 12 में ठहरा हुआ था.अमर ने डोरबैल बजाई, तो खुद क्लाइंट ने दरवाजा खोला.  अमर का परिचय पा कर उसे दोचार सुनाते हुए क्लाइंट ने कहा, ‘‘आप को समय पर आना चाहिए था. अभी मैं एक लड़की के साथ बिजी हूं.’’

‘‘सौरी सर, मैं कल दोबारा आ जाऊंगा. बताइए, कितने बजे आऊं?’’

‘‘कल मैं किसी दूसरे काम में बिजी हूं...’’ कुछ सोच कर क्लाइंट ने कहा, ‘‘आप ऐसा कीजिए कि भीतर आ जाइए. फाइल तैयार है. सिर्फ मेरा दस्तखत करना बाकी रह गया है.’’

अमर कमरे में आ गया. जैसे ही अमर की बैड पर नजर पड़ी, तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. बैड पर कोई और नहीं, बल्कि उस की प्रेमिका रह चुकी संगीता थी. वह अपने बदन पर चादर लपेटे हुए थी. अमर का मन कमरे से भाग जाने को हुआ, मगर उस ने ऐसा नहीं किया. थोड़ी देर बाद फाइल ले कर अमर क्लाइंट के साथ दरवाजे पर आया. न चाहते हुए भी उस ने पूछ लिया, ‘‘सर, यह लड़की आप की गर्लफ्रैंड है क्या?’’

‘‘नहीं, कालगर्ल है. आज शाम को ही एक दलाल से इसे बुक किया था.’’

अमर को लगा, जैसे किसी ने उसे बहुत ऊंचाई से नीचे फेंक दिया हो. अमर को संगीता से बिछड़े हुए 2 साल हो गए थे. इस बीच उस ने न जाने कहांकहां उसे ढूंढ़ा, मगर वह उसे नहीं मिली. अमर बिहार के समस्तीपुर जिले के एक गांव का रहने वाला था. ग्रेजुएशन करते ही उसे दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई थी. वह कुंआरा था, इसलिए अपने मातापिता, भाईबहन को गांव में छोड़ कर दिल्ली अकेले ही आया था. नौकरी जौइन करने के बाद अमर को जिस बिल्डिंग में किराए का फ्लैट मिला था, उसी में संगीता अपने पिता के साथ दूसरी मंजिल पर रहती थी. घर से अमर का दफ्तर बहुत दूर था, इसलिए आनेजाने के लिए उस ने मोटरसाइकिल खरीद ली थी. शुरू में तो नहीं, मगर बाद में अमर ने इस बात पर ध्यान दिया कि शाम को जैसे ही उस की मोटरसाइकिल बिल्डिंग के अहाते में आती है, दूसरी मंजिल की बालकनी में झट से 20-22 साला एक खूबसूरत लड़की आ कर उसे देखने लगती है.

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