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इन्हें भी आजमाइए

– गर्भावस्था के दौरान पानी पीने को ले कर सावधानी बरतनी होती है. मगर रोजरोज और अधिक पानी पीना बोरिंग हो जाता है, इसलिए अपने मनपसंद जूस की आइस क्यूब जमा लीजिए और उस को आइसक्रीम की तरह चाटती रहिए.

– सैल्फ ग्रूमिंग जरूरी है. आप की इमेज अच्छी है मगर बाहर से आप की पर्सनैलिटी प्रभावशाली नहीं है, तो भी लोग आप को इतना वैलकम नहीं करेंगे. इसलिए बालों को संवारें, ऐक्सरसाइज कर के फिट रहें, साफ कपड़े पहनें और अपने को स्मार्ट लुक दें.

– 40 के बाद भी जवान दिखना चाहते हैं तो जितना हो सके उतना पानी पिएं क्योंकि पानी पीने से चेहरा हमेशा हाइड्रेट बना रहेगा. आप चाहें तो ग्रीन टी को नियमित पी सकते हैं.

– दालचीनी पाउडर के साथ 2 चम्मच औलिव औयल या फिर पैट्रोलियम जैली मिला कर चेहरे पर लगाएं, इस से चेहरे की महीन रेखाएं बिलकुल साफ हो जाएंगी.

– बालों के कलर को अधिक समय तक बनाए रखना चाहते हैं तो बाल गरम पानी से न धोएं. इस से बालों का कलर जल्दी निकल जाता है.

– दांतदर्द के लिए हींग के पाउडर को थोड़े से नारियल के तेल या सरसों के तेल में मिला कर दांतों और मसूढ़ों पर मालिश करें, दर्द से राहत मिलेगी.

आत्मसम्मान

रवि को फ्लैट अच्छा लगा. हवादार, सारे दिन की धूप, बड़े कमरे, बड़ी रसोई, बड़े बाथरूम. पहली नजर में ही रवि को पसंद आ गया. दाम कुछ अधिक लग रहा है, दूसरे ब्रोकर्स कम कीमत में फ्लैट दिलाने को कह रहे थे परंतु रवि मनपसंद  फ्लैट, जैसे उस की कल्पना थी वैसा, पा कर कुछ अधिक कीमत देने को तैयार हो गया. पत्नी रीना और बच्चों को भी फ्लैट पसंद आया. लोकेशन औफिस के पास होने के कारण रवि ने उस फ्लैट को खरीदने के लिए ब्रोकर से कहा. फ्लैट के मालिक से शाम को डील फाइनल करने के लिए समय तय हो गया.

रवि ने ब्रीफकेस में चैकबुक रखी और कैश निकालने के लिए बैंक गया. कार को बैंक के बाहर पार्क कर रवि ने बैंक से कैश निकाला. लगभग 10 मिनट बाद रवि जब बैंक से बाहर आया तब उस समय बहुत सी कारें आड़ीतिरछी पार्क थीं.

रवि सोचने लगा कि कार पार्किंग से कैसे बाहर आए. 2 कारों के बीच जगह थी. रवि कार को वहां से निकालने के लिए कार को उन 2 कारों के बीच में करने लगा, परंतु तेजी से एक बड़ी सी महंगी कार उन 2 कारों के बीच खाली जगह पर गोली की रफ्तार से दनदनाती हुई आई और रवि की कार के सामने तेजी से ब्रेक मार कर रुक गई.

कार में बैठा नवयुवक कीमती मोबाइल फोन पर बात कर रहा था और हाथ से कुछ इशारे कर रहा था जो रवि समझ नहीं सका. नवयुवक मोबाइल पर बात करता हुआ इशारे करता जा रहा था. रवि ने कार से उतर कर नवयुवक से अनुरोध किया कि उसे अपनी कार को निकालना है, सो प्लीज, उसे निकलने दीजिए, फिर आप इसी जगह पार्क कर लीजिए.

तभी वह युवक ताव में आ कर कहने लगा, ‘‘बुड्ढे, कार यहीं खड़ी होगी, इतनी देर से इशारा कर रहा हूं, कार पीछे कर. मेरी कार यहीं खड़ी होगी. समझा बुड्ढे या दूसरे तरीके से समझाना पड़ेगा. मेरे से बहस कर रहा है. पीछे हटा मच्छर को, नहीं तो मसल दूंगा, जरा सी आगे की तो उड़ जाएगी, पीछे हट. मेरी कार यहीं पार्क होगी.’’

इतना सुन कर रवि ने किसी अनहोनी से घबरा कर कार पीछे की और नवयुवक ने कार वहां पार्क की और गोली की रफ्तार से कार को लौक कर के मोबाइल पर बात करता हुआ चला गया. महंगी कार, सिरफिरा नवयुवक शायद कोई चाकू, पिस्तौल जेब में हो, चला दे. आजकल कुछ पता नहीं चलता. छोटीछोटी बातों पर आपा खो कर नवयुवक गोलीचाकू चला देते हैं. यही सोच कर रवि ने कार पीछे कर ली और लुटेपिटे खिलाड़ी की तरह होंठ पर हाथ रख कर सोचने लगा.

एक आम व्यक्ति की कोई औकात नहीं है. माना अमीर नहीं है, नौकरी करता है, मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता है. एक छोटी सी कार उस की नजर में बड़ी संपति है, मगर एक मगरूर इंसान ने उसे मच्छर बना दिया. कोई कीमत नहीं है छोटी कार की. अमीर आदमी की नजर में वह और उस की कार की कोई कीमत नहीं. न सही, किसी के बारे में वह क्या कर सकता है. उस नवयुवक के घमंड को देख कर उस ने दांतों तले उंगली दबा ली.

वह इंतजार करने लगा कि आसपास खड़ी कोई कार हिले, तो वह अपनी कार को हिलाए. लगभग 20 मिनट बाद उस के पास खड़ी कार हटी, तब रवि को शांति मिली. उस का दिमाग, जो अब तक कई सौ मील दूर तक की कल्पना कर चुका था, जमीन पर आया, कार स्टार्ट की और घर वापस आया.शाम को रवि, रीना ब्रोकर सतीश के साथ फ्लैट मालिक ओंकारनाथ के औफिस पहुंचे. सतीश ने सेठ ओंकारनाथ का गुणगान शुरू किया. ‘‘सेठजी का क्या कहना, धन्ना सेठ हैं. प्रौपर्टी में निवेश करते हैं. पूरे देश में, हर कोने में सेठजी की प्रौपर्टी मिलेगी. बस, शहर का नाम लो, प्रौपर्टी हाजिर है. 100 से अधिक प्रौपर्टी हैं सेठजी की.’’

‘‘आज इस समय 140 प्रौपर्टीज हैं,’’ सेठजी ने पुष्टि की. ‘लोन मेरा पास हो गया है. आप प्रौपर्टी के कागजों की कौपी दे दें. मुझे पेमैंट की कोई चिंता नहीं है. अधिक से अधिक एक सप्ताह में पूरी पेमैंट हो जाएगी. प्रौपर्टी के कागज बैंक में दिखा कर लोन की पेमैंट हो जाएगी. बयाना मैं अभी दे देता हूं. सौदा पक्का कर लेते हैं. बस, आप एक बार कागज दिखा दीजिए,’’ रवि ने सेठजी से कहा.

‘‘ठीक है. अलमारी की चाबी मेरे लड़के के पास है. फोन कर के बुलाता हूं,’’ कह कर सेठजी ने फोन किया. 2 मिनट बाद सेठजी के लड़के ने औफिस में प्रवेश किया. मोबाइल पर बात करतेकरते अलमारी खोली और फाइल टेबल पर रखी. रवि ने लड़के को देखा. लड़का वही सुबह वाला नवयुवक था, जिस की महंगी कार ने उस की कार को निकलने नहीं दिया और घमंड में रवि का उपहास किया. रवि ने उसे पहचान लिया. बुड्ढा, मच्छर, उड़ा दूंगा, कार यहीं पार्क करूंगा, नहीं निकलने दूंगा कार, ये शब्द उस के कानों में बारबार गूंज रहे थे. रवि उस लड़के को लगातार देखता रहा. सतीश ने फाइल रवि की ओर करते हुए चुप्पी तोड़ी.

‘‘तसल्ली कर लीजिए और बयाना दे कर सौदा पक्का कीजिए.’’

‘‘सतीशजी, अब इस की कोई जरूरत नहीं है. आप कोई दूसरा सौदा बताना.’’

‘‘क्या बात है, रविजी, आप के सपने का फ्लैट आप को मिल रहा है, जिस की तलाश कर रहे थे, वह आप के सामने है.’’ रवि ने ब्रीफकेस को बंद किया और सौदा न करने पर खेद व्यक्त  किया और जाने के लिए कुरसी से उठा, ‘‘रीना, कोई दूसरा फ्लैट देखेंगे, अब चलते हैं.’’

‘‘मिस्टर रवि, कोई बात नहीं, आप फ्लैट खरीदना नहीं चाहते, यह आप का निर्णय है. परंतु मैं इस का कारण जानना चाहता हूं, क्योंकि आप इस फ्लैट के लिए उत्सुक थे. फाइल देखना चाहते थे. जब फाइल सामने रखी, तो बिना फाइल देखे इरादा बदल लिया,’’ सेठजी ने रवि से बैठने के लिए कहा.

‘‘सेठजी, यह मत पूछिए.’’

‘‘कोई बात नहीं. यदि कोई कड़वी बात है, वह भी बताओ. कारण जानना चाहता हूं.’’ ‘‘सेठजी, बात आत्मसम्मान की है. आज सुबह बहुत गालियां सुनी हैं. ठेस पहुंची है. कलेजे को चीर गई हैं बातें,’’ कह कर सुबह का किस्सा सुनाया, ‘‘वह नवयुवक और कोई नहीं, आप के सुपुत्र हैं. इसी कारण मैं ने अपने सपने को तोड़ा. जिस तरह के फ्लैट की चाह थी, जिस के लिए अधिक रकम देने को तैयार था, वही सौदा तोड़ रहा हूं. मेरा आत्मसम्मान मुझे सौदा करने की इजाजत नहीं देता. आप के सामने आर्थिक रूप में मेरी कोई औकात नहीं है. परंतु अमीरों का गरीबों की बिना बात के तौहीन करना उचित नहीं है. सिर्फ विनती की थी, कार निकालने के  लिए, 10-15 सैकंड में क्या फर्क पड़ता. कार मुझे तो निकालनी थी, पार्क तो आप की कार ही होती, परंतु आप के बरखुरदार ने मेरी खूब बेइज्जती की.’’ उठतेउठते रवि ने एक बात कही, ‘‘सेठजी, आप ने रुपएपैसों से अपने लड़के की जेबें भर रखी हैं. थोड़ी समझदारी, दुनियादारी की तालीम दीजिए. संयम रखना सिखाइए. इज्जत दीजिए और इज्जत लीजिए.’’

रवि चला गया. औफिस में रह गए सेठजी और उन के सुपुत्र. सेठजी कुछ कह नहीं सके. लड़के ने मोबाइल से फोन मिलाया और दनदनाता हुआ औफिस से बाहर चला गया.

VIDEO: इस राखी पर तो शर्म करो मनचलों, तुम्हारे घर में भी बहनें हैं..

राखी पर जहां भाई बहन इस त्योहार को मनाने के लिए खुशी में सराबोर हैं, वहीं एक बार ये वीडियो जरूर देखिए. इस लड़की को कुछ लड़कों ने छेड़ा…फिर जो हुआ वो हम सभी के लिए एक सबक है. उन सभी के लिए सबक है, जो सड़क पर छींटाकशी करते हैं.

वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें

बरसात हो गई

तनहाई में मिलनामिलाना

अजब सी बात हो गई

हम को पता न चला

दिन कब रात हो गई

इक चेहरा तेरा उस पर

गजब की कशिश

आंखों की आंखों से

होंठों की होंठों से बात हो गई

हुई जब से मुहब्बत खुद पर

नाज करते हैं हम

ऐसा लगता है जैसे बांहों में

कायनात हो गई

तेरे रूप के उजाले से

दिन निकलता है अंगड़ाई के साथ

गेसुओं को इस तरह झटका तुम ने

कि रात हो गई

मेरी आरजू को इस तरह

गुदगुदाया है तुम ने

अरमान जाग उठे दिल में

रिमझिम बरसात हो गई.

       – वीना कपू

VIDEO: इस राखी पर तो शर्म करो मनचलों, तुम्हारे घर में भी बहनें हैं

हमारे देश में जितनी मुश्किलों और तकलीफों का सामना महिलाओं को करना पड़ता है, उतना शायद ही किसी और को करना पड़ता होगा. हर कदम पर कठिनाईयों और हर मोड़ पे चुनौतियां तैयार रहती हैं इनका इम्तिहान लेने के लिए. हमारे समाज में जहाँ लड़कियों के लिए समस्याओं का अम्बार लगा है, उन्ही समस्याओं में से एक है ईव टीजिंग यानि छेड़खानी.

ये वो समस्या या यूं कहे कि लड़कियों के लिए वो अभिशाप है, जिससे लड़कियों को तकरीबन रोज़ ही दो-चार होना पड़ता है. शायद ही कोई ऐसी लड़की या महिला होगी जिसे इस शर्मिंदगी से न गुजरना पड़ा हो. हमारे देश और समाज में ऐसे मनचलों की कोई कमी नहीं है जो लड़कियों को अपनी निजी संपत्ति समझते हैं. स्कूल-कालेज या सिनेमा के जब छूटने का समय होता है, तब देखिये कि शोहदों का कैसा जमावड़ा लगता है बाहर. लड़कियों को तो ऐसे घूरते हैं कि जैसे वो इनके बाप की जागीर हैं, अश्लील कमेन्ट पास करना, सीटी मारना, आंख मारना, लड़कियों का पीछा करना, उनका रास्ता रोकना जैसे दुष्कर्मों का तो जैसे इन शोहदों को लाइसेन्स मिला हुआ है और वो भी माँ-बाप ने दे रखा है कि जाओ….छेड़ो लड़कियों को…..कोई तुम्हे रोकने-टोकने वाला नहीं है.

जितनी बेखौफी से ये लोग लड़कियों को छेड़ते हैं उसे देखकर तो यही लगता है कि घरवालों ने नहीं बल्कि सरकार ने ही इन्हें इजाज़त दे रखी है. महिलाओं के साथ पुरुषों द्वारा किया जाने वाला यह शर्मनाक बर्ताव कभी-कभी इतना भयानक होता है कि इससे तंग आकर लड़कियां खुदखुशी तक कर लेती हैं. उन्हें इस कठोर निर्णय तक पहुँचाने के लिए कौन जिम्मेदार है?

कोई यह नहीं देखता या सोचता कि लड़की ने ऐसा क्यों किया होगा? उल्टा उस पर ही आक्षेप लगा देतें हैं कि लड़की का ही चाल-चलन ठीक नहीं होगा, तभी उसने ऐसा किया लेकिन सच्चाई जानने की तो कोई कोशिश भी नहीं करता. और कोई करे भी तो क्यों? इस समाज के ठेकेदार ही हैं…मर्द….अपने को मर्द तो बड़ी शान से कहतें हैं पर कर्म तो चूहों जैसा करतें हैं. अब आप ही बताइए कि किसी भी लड़की को छेड़ के बाइक या साईकिल पर भाग जाना कहाँ की मर्दानगी है. अगर वास्तव में मर्द के बच्चे हो तो वही रुक कर दिखाओ. किसी को अश्लील बात कहकर भाग जाने से बड़ा बुजदिली का काम कोई नहीं है.

लड़कियों के साथ छेड़खानी बहुत ही आम बात हो गई है. पुलिस और प्रशासन चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, लेकिन इस समस्या से छुटकारा मिलना तो दूर की बात है, ये समस्या कम तक नहीं हुई है. महिला पुलिस को सादे कपड़ों में स्कूल-कालेज और सिनेमाओं के बाहर तैनात करके तथा ऑपरेशन दीदी भी चला कर देख लिया पर नतीजा सिफर ही निकला. अब इस मुसीबत से कैसे निपटा जाए या इन मनचलों को कैसे सबक सिखाया जाए. इस का एक ही हल दिखाई देता है कि हर लड़की अपनी सुरक्षा खुद करे और अपनी पुलिस खुद बने. अपने को शारीरिक व मानसिक दोनों तरह से मजबूत बनाये और जब कोई मनचला उसे छेड़ने कि जुर्रत करे तो चुप-चाप सहने की बजाय उसका मुंहतोड़ जवाब दे. अभी तक ये शोहदे यही समझतें हैं कि इन लड़किओं के बसकी कुछ नहीं है, ये तुम्हारी हर बदतमीजी बिना कोई विरोध किए सहती रहेंगी क्योकि लड़कियां इनकी प्राइवेट प्रोपर्टी हैं.

लेकिन अब इन्हें भी यह याद दिलाना जरूरी है कि इनके घरों में भी माँ-बहने हैं और किसी दूसरे की बहन -बेटियों को छेड़ने से पहले दस बार सोचो. लड़कियां न तो शारीरिक रूप से कमजोर हैं और न ही मानसिक रूप से ये बात इन मनचलों को समझानी होगी….ऐसे नहीं तो वैसे…..बस चुप रहने की बजाय उसका सामना करना होगा….क्योंकि ये महिलाओं के सम्मान की लड़ाई है और अपने सम्मान की रक्षा करने का सबको अधिकार है. जो महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाएगा उसे उसका परिणाम भी भुगतना होगा.

जब एक बच्चा हो हैंडीकैप

दृष्टिहीन सुनीता को अपने जीवन में रोशनी का अभाव उतना नहीं सताता जितना उसे अपने भाईबहन के व्यवहार से दुख पहुंचता है. दरअसल, सुनीता के भाईबहन न सिर्फ उसे अंधी कह कर कोसते हैं बल्कि अपने कैरियर बनाने में उसे सब से बड़ी रुकावट भी मानते हैं. सुनीता के मातापिता अपनी दृष्टिहीन बच्ची को आत्मनिर्भर बनाने का अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करते हैं और इस काम में उन की अधिकांश जमापूंजी भी खर्च हो गई है. पैसे के अभाव में सुनीता के दोनों भाईबहनों की उच्च शिक्षा में रुकावटें आईं जिस के चलते चिढ़ की वजह से वे अपने दोस्तों के सामने अपनी बहन को अंधी कह कर पुकारने में भी गुरेज नहीं करते.

रामकुमार का 14 वर्षीय मूकबधिर पुत्र धीरज इस मामले में बेहद संतुष्ट है कि उसे आत्मनिर्भर बनाने में मातापिता के साथ उस के भाईबहन का भी उसे पूरा सहयोग मिलता है. अपने छोटे भाई धीरज से बातचीत करने और उसे समझने में किसी तरह की खुद को कोई परेशानी न हो, इस के लिए बड़े भाई ने बाकायदा ट्रेनिंग ली है. मातापिता धीरज का कुछ ज्यादा ही खयाल रखते हैं, इस से भी बड़े भाई को प्रेरणा मिलती है. रामकुमार की पूरी कोशिश यही रहती है कि धीरज को कभी भी अपनी कमियों का एहसास न हो. टैलीविजन पर फिल्म के किसी दृश्य पर जब सभी खिलाखिला पड़ते हैं तब धीरज को खामोश देख कर झट उस की बहन इशारों में उसे दृश्य का मतलब समझाती है तो वह भी खिलखिला पड़ता है.

परिवार में विकलांगों के प्रति व्यवहार कहीं प्रेम से भरा होता है और कहीं उपेक्षा का. आप जब अपने विकलांग बच्चे की उपेक्षा करते हैं तो उस का आत्मविश्वास डगमगा जाता है और वह जो कर सकता है वह भी नहीं कर पाता. वहीं प्रेम से भरा व्यवहार उसे सामान्य से बेहतर बनाता है. पेशे से व्यवसायी रमेश अग्रवाल के घर जब पहला बेटा हुआ तो घर खुशियों से भर गया लेकिन उन की यह खुशी तब मातम में बदल गई जब उन्हें यह पता चला कि उन का बच्चा न बोल सकता है न चल सकता है. इस तरह 3 साल के बाद भी अनेक इलाज व अन्य प्रयासों से बच्चे की लाचारी दूर न हो सकी. इस दौरान उन के घर में 2 सामान्य बच्चों ने भी जन्म लिया.

समय गुजरता रहा, बच्चे जवान हुए. अब उन के घर से भाइयों की कुछ इस तरह की खीझ भरी आवाजें सुनाई देती हैं:

‘‘आखिर इस का बोझ हम कब तक सहन करें, हमारा अपना भविष्य भी तो है?’’अपने युवा भाइयों की ऐसी ही कड़वी बातें सुन कर एक दिन अमितेष ने आत्महत्या कर ली. मरने से पहले लिखे पत्र में उस ने अपने भाइयों को लिखा था, ‘‘शारीरिक रूप से विकलांग मुझे कुदरत ने बनाया है लेकिन मानसिक रूप से विकलांग तुम दोनों ने बनाया है.’’

 वर्षों से विकलांगों के बीच काम कर रही स्वाति व्यास अपना अनुभव बताती हैं कि कई ऐसे परिवार हैं जहां विकलांग बच्चे को बोझ समझा जाता है. बचपन से मिली उपेक्षा और अपनी शारीरिक कमजोरियों की वजह से वह हीनता का शिकार हो जाता है जबकि मातापिता और भाईबहनों को चाहिए कि वे उसे ज्यादा से ज्यादा समय दें. अपने विकलांग भाई या बहन की खूबियों को उभारने में सहयोग दें तो यकीनन वह विकलांग बच्चा सामान्य से खुद को ज्यादा बेहतर साबित कर सकता है.

सहयोगी हों परिवार के सदस्य

अभिजीत जोशी एक ऐसे खुशहाल परिवार से है जहां मातापिता ने उन्हें अपने 2 सामान्य बच्चों से अलग नहीं समझा और न ही भाईबहनों ने उसे अपने से अलग समझा. यही वजह है कि सुविजीत और विजिता की तरह अभिजीत भी बतौर कंप्यूटर इंजीनियर एक अच्छी कंपनी में नौकरी कर रहा है. परिवार के सभी सदस्यों को मिल कर घर के विकलांग सदस्य के साथ सहयोग करना चाहिए और उस का हौसला बढ़ाना चाहिए ताकि वह आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ सके. उसे उस की विकलांगता या कमी का बारबार एहसास दिला कर उसे कमजोर न बनाएं.

पूर्वजन्म का पाप नहीं

परिवार के सदस्यों के व्यवहार का अध्ययन करते हुए यह बात भी सामने आई कि कई परिवार अपने विकलांग बच्चे को अपने या उस के पूर्वजन्म के पापों का नतीजा मानते हैं. बचपन में पोलियो का शिकार हुई नेहा को अपने परिवार से भरपूर स्नेह और सहयोग तो मिलता है लेकिन कभी वह अपने मंझोले भाई के मुंह से यह सुन कर रोंआसी हो जाती है कि उस की यह अपंगता उस के पूर्वजन्म के किए पापों का नतीजा है. यह वैज्ञानिक सत्य है कि विकलांगता बच्चे को किसी बीमारी की वजह से होती है न कि पूर्वजन्म के पापों से. नेत्र रोग विशेषज्ञों का मानना है कि जन्म से अंधापन या शारीरिक विकृति आनुवंशिक समस्या या फिर विटामिन की कमी से होती है. गलत दवाओं का प्रयोग, आनुवंशिकता, सिफलिस, रूबिला वायरल इनफैक्शन होने से अंधापन, बहरापन और कटेफटे होंठ जैसी विकलांगता का शिकार गर्भ में पल रहा शिशु हो सकता है. विकलांगता पूर्वजन्म के पापों को फल है, ऐसी धारणा विकलांगों को न सिर्फ हतोत्साहित करती हैं बल्कि कभीकभी उन्हें आत्मघाती कदम उठाने के लिए विवश भी करती है. अपनी विकलांगता को ले कर हीनता का शिकार व्यक्ति यदि अपनी तकदीर को कोसता रहे तो यह शारीरिक विकलांगता से ज्यादा मानसिक विकलांगता है.

अपने लक्ष्य के प्रति जो लोग पूरी तरह समर्पित होते हैं उन्हें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है. चाहे वे सामान्य व्यक्ति हो या अपंग.

समाज की मानसिकता

कुदरत की मार झेल रहे विकलांगों को समाज जब कभी बेचारा कह कर दया दिखाता है तो स्वाभिमानी विकलांगों के लिए इस से बढ़ कर और कोई गाली नहीं होती. चलने और देखने में असमर्थ रायपुर निवासी कांती लाल बरलोटा समाज के ऐसे व्यवहार से सख्त नाराज होते हैं. वे कहते हैं, ‘‘मैं सामान्य लोगों से भी बेहतर करने की क्षमता रखता हूं. प्रकृति ने मुझ से कुछ छीना है तो बदले में मुझे दूसरी विशेषता दी है. विकलांगों को समाज का सहयोग चाहिए न कि दया. ‘‘आप किसी दृष्टिहीन को रास्ता पार कराते हैं या किसी अपाहिज को सहारा दे कर उस को मंजिल तक पहुंचाते हैं तो यह न सोचें कि आप किसी पर दया या उपकार कर रहे हैं बल्कि यह सोचें कि आप इंसान हैं और एक इंसान के प्रति अपना मानवीय फर्ज अदा कर रहे हैं.’’

मातापिता की मुश्किलें

भाईबहन के अतिरिक्त जब घर में हैंडीकैप बच्चा हो तो मातापिता को भी अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. चूंकि उन्हें एक स्वस्थ बच्चे की अपेक्षा हैंडीकैप बच्चे को अधिक समय देना पड़ता है, उस की अधिक देखभाल करनी पड़ती है इसलिए कई बार स्वस्थ बच्चा इस बात को समझे बिना कि उस के हैंडीकैप भाईबहन को अधिक अटैंशन व देखभाल की जरूरत है वह पेरैंट्स से शिकायत करते हैं कि वे उस का कम ध्यान रखते हैं. ऐसे में मातापिता को अपने स्वस्थ बच्चे को प्यार से समझाने की जरूरत होती है कि आप का भाईबहन स्पैशल है और उसे आप के व हमारे अधिक प्यार और देखभाल की जरूरत है. जब भाई या बहन अपने हैंडीकैप भाईबहन की देखभाल के लिए कुछ स्पैशल करें तो उन्हें शाबाशी दीजिए, कोई रिवार्ड दीजिए ताकि स्वस्थ बच्चे के मन में अपने हैंडीकैप भाईबहन के प्रति ईर्ष्या या द्वेष पनपने के बजाय प्यारदुलार, सहयोग की भावना पनपे.

मिसाल हैं ये

दोनों हाथों से विकलांग वेदराम ने न तो समय को कोसा न ही अपाहिज होने पर जारजार रोए बल्कि समाज में अपने को स्थापित करने के लिए तथा अपने जैसों को प्रेरणा देने के लिए कड़ी मेहनत की और आखिर वह मुकाम पा ही लिया जिस की कल्पना की थी. रामपुर जिला उद्योग केंद्र में लिपिक के पद पर कार्यरत 40 वर्षीय वेदराम निर्मलकर के दोनों हाथ नहीं हैं. इस के लिए वेदराम ने अपने पैरों से ही हाथ का काम लेना शुरू किया और एमए तक की पढ़ाई कर ली. निर्मलकर पैरों में पैन दबा कर न केवल तेजी से अंगरेजी लिखते हैं बल्कि उन की सधी हुई लिखावट देख कर लोग दंग रह जाते हैं. वे पैरों से कपड़े धोते हैं, माचिस जला कर स्टोव पर चाय बना लेते हैं और तो और, सुई में धागा भी डाल लेते हैं.

नैशनल ज्योग्राफिक पर मार्शल आर्ट प्रशिक्षक के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर काम कर रहे पूरन चौहान की विकलांगता का समाज ने खूब मजाक उड़ाया तो उन्होंने उसे अपनी ताकत बना लिया. यही वजह है कि आज पूरन चौहान मार्शल आर्ट के क्षेत्र में कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं.

निर्देशन करेंगे अरशद

मुन्नाभाई सीरीज के सर्किट यानी अभिनेता अरशद वारसी ने फिल्म ‘जौली एलएलबी’ के जरिए काफी वाहवाही बटोरी थी लेकिन कमाई का गणित यह कहता है कि सफल फिल्मों के सीक्वल्स में बड़े सितारे की मौजूदगी से फिल्म ज्यादा कारोबार करती हैं. लिहाजा, जब ‘जौली एलएलबी’ का सीक्वल प्लान हुआ तो फिल्म में उन की जगह अक्षय कुमार को ले लिया गया और हताश अरशद ने यही कहा कि आप चाहे कितनी भी अच्छी ऐक्ंिटग कर लें, आप की फिल्म नैशनल अवार्ड जीत ले, लेकिन बड़े सितारे को ले कर जो कमाई हो सकती है वह अच्छे अभिनेता से भरपाई नहीं हो सकती है. खैर, अरशद हिम्मत हारने वालों में से नहीं हैं. जल्द ही वे डायरैक्टर के अवतार में नजर आने वाले हैं. अरशद के मुताबिक उन की फिल्म निश्चित तौर पर बोरिंग नहीं होंगी. वे कुछ फिल्मों की कहानी भी लिख चुके हैं.

 

आत्मविश्वास से लबरेज लीजा

अभिनेत्री लीजा रे ब्लड कैंसर से काफी अरसा पीडि़त रहीं. इस दौरान न सिर्फ उन का फिल्मी कैरियर ठप रहा बल्कि इलाज के दौरान हुई थेरैपी से उन के सारे बाल भी चले गए. इतना सब होने के बाद लीजा ने हिम्मत नहीं हारी और कैंसर को पटखनी दे कर न सिर्फ अपना आत्मविश्वास बनाए रखा बल्कि फिल्मों में सम्मानजनक वापसी भी की. लीजा फिल्मों में काम करने के अलावा सोशल ऐक्टिविस्ट भी हैं. हालांकि इन दिनों वे अपने संघर्ष को, आत्मविश्वास से जीतने की खुशी को कविताओं के माध्यम से जाहिर कर रही हैं. जब से उन्होंने अपनी लिखी कविताओं को सोशल मीडिया अकाउंट ‘इंस्टाग्राम’ पर शेयर करना शुरू किया है, उन के चाहने वालों से उन्हें काफी सराहना मिल रही है. लीजा जल्द ही कई फिल्मों में नजर आएंगी.

सलमान के ‘अच्छे दिन’

कई सालों से लगातार कमाऊ फिल्में दे रहे अभिनेता सलमान खान के वाकई अच्छे दिन आ गए लगते हैं. पहले ‘सुलतान’ की रिकौर्डतोड़ कमाई और अब चिंकारा शिकार मामले में राहत की खबर ने उन्हें खुश कर दिया है. जोधपुर हाईकोर्ट ने काला हिरण और चिंकारा शिकार के मामले में सलमान खान को बड़ी राहत देते हुए उन्हें बरी कर दिया है. यह मामला करीब 18 साल से चल रहा था और सलमान को कई बार जेल के दरवाजे तक भी ले गया था. इस केस से जुड़े 2 मामलों में सलमान पर अरेस्ट होने का खतरा मंडरा रहा था. लेकिन अब कोर्ट ने उन्हें रिहा करने का फैसला सुनाया है तो इस फैसले के खिलाफ राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की बात की है.

लोगों की संवेदनाएं सीमित हो रही हैं: कैलाश सत्यार्थी

मानव तस्करी एवं बाल व बंधुआ मजदूरी विषय पर दिल्ली में आयोजित सम्मेलन में देशभर से आए कई लोगों ने भाग लिया जो इस दिशा में काम कर रहे हैं. सम्मेलन में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी से बात करने का मौका मिला. उन्होंने सरकार की नीतियों, बालशोषण, मानव तस्करी जैसे संवेदनशील मुद्दों के साथसाथ आज के समाज पर भी खुल कर बातचीत की.

हमारा समाज बहुत संवेदनहीन होता जा रहा है. इस की मुख्य वजह क्या है?

मैं यह नहीं मानता कि समाज संवेदनहीन हो रहा है. मैं कहूंगा कि समाज की संवेदनाएं सीमित हो रही हैं. यह स्वार्थ की वजह से है, समाज में स्वार्थ की भावना बढ़ रही है. हम अपने भाईबहनों और अपने बच्चों के लिए बड़े संवेदनशील हैं लेकिन हमारी वह संवेदना हमारे पड़ोसी के बच्चे के लिए नहीं है. समाज के अन्य बच्चों के लिए नहीं है. जो बच्चे सड़क पर अपनी जिंदगी बिता रहे हैं उन के लिए नहीं है. मुझे लगता है कि इस के पीछे दोतीन चीजें हैं. एक तो समाज में बहुत ज्यादा लालच बढ़ता जा रहा है क्योंकि इतनी चीजें बिक रही हैं बाजार में. इतनी सुविधाएं हैं. विलासिता की सामग्री, मौजमस्ती के तरीके. ऐसे में लोगों को लगता है कि पैसे होंगे तभी ये चीजें उन के पास होंगी. लोग यह भी समझने लगे हैं कि पैसा कमाया जा सकता है केवल अपने लिए सोच कर और अपने समय का, बस अपने लिए इस्तेमाल कर के. इसलिए समाज में लालच बढ़ रहा है. दूसरा कारण यह है कि समाज में स्वार्थ बढ़ रहा है. हम बहुत ज्यादा स्वार्थी होते जा रहे हैं. हमें लगने लगा है कि अपने छोटे से दायरे में रह कर हम ज्यादा खुश रह सकते हैं. तीसरी वजह है, भविष्य को ले कर असुरक्षा का भाव. यह भी लोगों में बढ़ता जा रहा है. लोगों को लग रहा है कि पता नहीं, कल क्या होगा? इसलिए अभी कमा लो. अभी जो करना है, कर लो. इस प्रकार असुरक्षा का डर भी इंसान को बहुत स्वार्थी बनाता है. इन सभी चीजों का जो तालमेल है उस में इजाफा कर रहा है हमारा विज्ञापन उद्योग. मीडिया की भी भूमिका है. सोशल मीडिया की भी बहुत बड़ी भूमिका है.

इंसान स्वार्थ और लालची सोच की वजह से अपना दायरा सीमित करता जा रहा है, जबकि हम वसुधैव कुटुंबकम की बात करते हैं. ग्लोबलाइजेशन तेजी से हुआ है और हो रहा है, ऐसे में सीमित संवेदनाएं, स्वार्थ और आत्मकेंद्रित सोच के साथ आगे कैसे बढ़ा जा सकता है?

इस का समाधान यह है कि हम यह सोचना शुरू करें कि जिस दुनिया में हम रह रहे हैं वह दुनिया बहुत ज्यादा एकदूसरे से जुड़ी हुई है. एकदूसरे के डर, एकदूसरे की सुरक्षा, एकदूसरे का भविष्य, यह सब जुड़ा हुआ है और अब और तेजी से जुड़ रहा है. पिछले 20 से 30 साल पहले यह हमारी समझ में नहीं आता था. हम बोलते जरूर हैं कि भारत में वसुधैव कुटुंबकम की सोच को ले कर हम आगे बढ़ रहे हैं. विश्व हमारा परिवार है लेकिन अब आप खुद देखिए कि जब से ग्लोबल टेरैरिज्म बढ़ा है, कोई कहीं कुछ करता है और उस का खमियाजा किसी को कहीं और भुगतना पड़ता है. आज दुनिया में कोई यह नहीं बोल सकता कि भई, यह तो पाकिस्तान की समस्या है या भारत की समस्या है या किसी अन्य देश की समस्या है. लगभग सभी समस्याएं विश्वव्यापी हो गई हैं.

इसी प्रकार ग्लोबल वार्मिंग है. क्लाइमेट चेंज की बात है. अब सब को पता है कि कोई एक देश इस का समाधान नहीं खोज सकता. इसी प्रकार जब मंदी का दौर आया तो उस ने पूरी दुनिया को हिला दिया. ये सब बातें हमारे दिमाग में आनी बहुत जरूरी हैं. आज के समय में सभी समस्याएं और उन के समाधान आपस में जुड़े हुए हैं. कोई सरकार या व्यक्ति अकेले इन समस्याओं का समाधान नहीं निकाल सकता. ये बातें हम सभी को समझनी चाहिए.

अब, सिर्फ उपदेशों से काम नहीं चलेगा. हमें उपदेशात्मक बातें करने के बजाय उन बातों को व्यवहार में लाने के नए तरीके खोजने की जरूरत है. इस काम में सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जा सकता है.

क्या इस का कोई सटीक समाधान आप देखते हैं?

समस्याओं का समाधान तभी होता है जब लोग सामाजिक समस्याओं का समाधान करने में दिल से दिलचस्पी लेते हैं. समाज स्वार्थ के दायरे से बाहर आ कर चुप्पी तोड़े बालविवाह के खिलाफ, बाल मजदूरी के खिलाफ, शोषण के खिलाफ, बंधुआ मजदूरी के खिलाफ, महिलाओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ. एक सामान्य भारतीय नागरिक के तौर पर हमें अपने आसपास दुकानों में, फैक्टरियों में यदि कोई बाल मजदूरी करा रहा है या किसी के घर में डोमैस्टिक हैल्पर है तो हम मेहरबानी कर के उस से कहें कि देखिए, हम आप के घर में पानी भी नहीं पिएंगे, चाय पीना तो दूर की बात है. इस प्रकार समाज के हर तबके को आगे आना होगा. अगर हमारी सिविल सोसाइटी सख्ती से इस बात का विरोध करे कि किसी बच्चे से मजदूरी नहीं कराई जाएगी, इस संबंध में जो कानून हैं उन का सख्ती से पालन होगा, तो बदलाव जरूर आएगा. कानून की बात करें तो हमारे देश में कानून तो बहुत अच्छे हैं लेकिन समस्या यह है कि उन का असर कुछ ठोस नजर नहीं आता. न ही उन कानूनों का सख्ती से पालन किया जाता है. ऐसा अधिकांश मामलों में हम देखते हैं. यही बाल मजदूरी और बंधुआ मजदूरी जैसी समस्याओं के संदर्भ में भी साफ दिखाई देता है.

हम यही चाहते हैं कि अच्छा और सख्त कानून होना चाहिए और उस कानून का सख्ती से पालन भी होना चाहिए. इस की पूरी जिम्मेदारी अकेले सरकार की नहीं है बल्कि सभी एजेंसियों की है और समाज के सभी तबकों की भी है.

समाज में प्यार का माहौल किस प्रकार बनाया जा सकता है? क्योंकि यदि इंसान दूसरे इंसान से प्यार करेगा तो वह फिर उस का शोषण नहीं करेगा.

मुझे लगता है कि इस की शुरुआत हमें खुद से ही करनी चाहिए. सब से प्रेम करो, यह उपदेश की बात नहीं होनी चाहिए बल्कि यह हमारे चरित्र का हिस्सा होनी चाहिए, हमारे जीवन जीने के तरीके में शामिल होनी चाहिए. इस बात को मैं बारबार कहता हूं, अपनी नोबेल स्पीच में भी मैं ने कहा कि हम ने सूचनाओं का, बाजार का, व्यापार का, वैश्वीकरण कर दिया. बहुत तेजी से भूमंडलीकरण हो गया लेकिन दूसरी तरफ जो करुणा है, कंपैशन है उस का वैश्वीकरण नहीं हो पा रहा है. मैं यह कहता हूं कि बच्चों के अधिकार के लिए, बच्चों की शिक्षा के लिए, उन की आजादी के लिए जो मेरा संघर्ष है वह कहीं न कहीं वैश्वीकरण का हिस्सा है. वैचारिक तौर पर या दार्शनिक तौर पर मैं इस को मानता हूं कि यह करुणा के वैश्वीकरण का जनआंदोलन है. इसे कुछ लोग कानूनी तौर पर देखते हैं, कुछ एक प्रोजैक्ट के रूप में देखते हैं तो कुछ एनजीओ के तरीके से देखते हैं. लेकिन मेरा जो वैचारिक आधार है वह यही है.

सरकार के प्रयासों से आप कितने संतुष्ट हैं?

पिछले दिनों जो सब से अच्छी घटना हुई है वह यह कि केंद्र सरकार ने बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास का प्रावधान जारी किया है. यह स्वागतयोग्य है. पहली बार पुनर्वास की जो राशि है वह 20 हजार रुपए से बढ़ा कर 3 लाख रुपए तक कर दी गई है. हम मोटे तौर पर जो मांग कर रहे हैं वह यह है कि नियमों में संशोधन कर के सुनिश्चित किया जाए कि जो समरी ट्रायल का प्रावधान है वह 30 दिनों के भीतर पूरा कर के जो दोषी हैं उन्हें सजा मिलनी चाहिए. जो संबंधित अधिकारी हैं उन्हें इस के लिएजिम्मेदार ठहराना चाहिए, जवाबदेह बनाना चाहिए.

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