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सरकार की जीएसटी से उम्मीदें बढ़ीं

सरकार को उम्मीद है कि गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) आने के बाद टैक्स रेवेन्यू बढ़ौतरी होगी. यह अनुमान बहुत से विशेषज्ञों की राय से अलग है जिन्होंने जीएसटी से टैक्स मशीनरी में रुकावटें आने और रेवेन्यू ग्रोथ कम होने की चेतावनी दी थी. पिछले सप्ताह जारी किए गए मीडियम टर्म एक्सपेंडिचर फ्रेमवर्क में सरकार ने अगले दो वर्षों में टैक्स-टु-जीडीपी रेशियो बढ़ने की उम्मीद जताई है. फाइनेंशियल ईयर 2015 में टैक्स-टु-जीडीपी रेशियो 10.7% थी.

मौजूदा फाइनेंशियल ईयर में इसके 10.8% रहने का अनुमान है. सरकार का अनुमान है कि ऊंची इकनॉमिक ग्रोथ, जीएसटी और पॉलिसी से जुड़े उपायों के चलते फाइनेंशियल ईयर 2018 में जीडीपी में ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू 10.9% और फाइनेंशियल ईयर 2019 में 11.1% रह सकता है. सरकार को उम्मीद है कि अगले फाइनेंशियल ईयर में प्लान और नॉन-प्लान को हटाने से कैपिटल स्पेंडिंग पर अधिक ध्यान दिया जाएगा.

केंद्र का कहना है, 'बड़ा मुद्दा एक्सपेंडिचर को लेकर है जो रेवेन्यू-कैपिटल एक्सपेंडिचर असंतुलन से संबंधित है. 2017-18 के बजट में प्लान और नॉन-प्लान के मर्जर के साथ कैपिटल और रेवेन्यू एक्सपेंडिचर पर फोकस किया जाएगा. सरकार अपने कुल एक्सपेंडिचर में कैपिटल कंपोनेंट बढ़ाने के लिए उपाय करेगी.' सरकार का मानना है कि नॉन-डिवेलपमेंटल एक्सपेंडिचर में ग्रोथ कम करने से कुल खर्च में कमी आएगी और यह फाइनेंशियल ईयर 2017 में जीडीपी के अनुमानित 13.1% से घटकर फाइनेंशियल ईयर 2019 में 12.2% हो जाएगा. फाइनेंशियल ईयर 2018 में सैलरी पर खर्च में बढ़ोतरी 12% और फाइनेंशियल ईयर 2019 में 8% होने का अनुमान है. सरकार आने वाले वर्षों में बड़े डिसइनवेस्टमेंट टारगेट नहीं रखेगी. 

केंद्र का कहना है कि अगले दो वर्षों में सब्सिडी रिफॉर्म जारी रहेंगे. फाइनेंशियल ईयर 2017 में सब्सिडी पर खर्च घटकर जीडीपी का 1.5% होने का अनुमान है, जो फाइनेंशियल ईयर 2016 में 1.8% था. किसी समय सरकार की वित्तीय स्थिति को बिगाड़ने में फ्यूल सब्सिडी का बड़ा योगदान होता था, लेकिन पेट्रोल और डीजल के प्राइस से कंट्रोल हटाने के बाद इस सब्सिडी में काफी कमी आई है. फाइनेंशियल ईयर 2019 में इसके 21,500 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.

स्वर्णपरी बनने से एक कदम दूर सिंधु

पीवी सिंधु ने जापान की नोजोमी ओकुहारा को सीधे गेम में हराकर रियो ओलंपिक की बैडमिंटन प्रतियोगिता के महिला एकल के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई हैं. इसके साथ ही उन्होंने कम से कम रजत पदक पक्का कर लिया है.

विश्व चैंपियनशिप में दो बार की कांस्य पदक विजेता सिंधु ने जापान की आल इंग्लैंड चैंपियन के खिलाफ 49 मिनट तक चले मैच में 21-19, 21-10 से जीत दर्ज की. हैदराबाद की रहने वाली विश्व में दसवें नंबर की सिंधु को फाइनल में दो बार की विश्व चैंपियन और शीर्ष वरीय स्पेनिश खिलाड़ी कारोलिना मारिन से भिड़ना होगा.

बेहद प्रतिभाशाली सिंधु अपनी सीनियर साइना नेहवाल से भी एक कदम आगे निकलने में सफल रही जिन्होंने लंदन 2012 में कांस्य पदक जीतकर भारत को बैडमिंटन में पहला पदक दिलाया था.

सिंधु का ओकुहारा के खिलाफ रिकॉर्ड 1-3 था लेकिन भारतीय खिलाड़ी अच्छी रणनीति के साथ उतरी थी और उन्होंने अपने रिटर्न और ड्राप्स से जापानी खिलाड़ी को लंबी रैलियों में उलझाकर रखा.

पहला गेम 29 मिनट तक चला. सिंधु ने शुरू में ही 4-1 की बढ़त बना ली और फिर ओकुहारा की गलतियों का फायदा उठाकर जल्द ही इसे 8-4 कर दिया. भारतीय खिलाड़ी ने अपनी प्रतिद्वंद्वी को लंबी रैलियों में उलझाये रखा और इस बीच अपने खूबसूरत ड्राप्स से अंक बनाए.

सिंधु ने 32 स्ट्रोक्स चली रैली में फोरहैंड रिटर्न से अंक बनाकर अपनी बढ़त 9-6 की और फिर मध्यांतर तक वह 11-6 से आगे रही. इस हैदराबादी खिलाड़ी ने अपने स्मैश और ड्राप्स से ओकुहारा को बैकफुट पर भेज दिया. इस बीच ओकुहारा ने बेसलाइन से लगातार नेट पर शॉट लगाए.

सिंधु जब 14-10 से आगे चल रही थी तब उनका शॉट बाहर चला गया. जब स्कोर 18-16 था तब सिंधु ने जापानी खिलाड़ी के एक अच्छे रिटर्न को बेहतरीन तरीके से वापस किया और फिर अपने कद का फायदा उठाकर अंक बनाया. इसके बाद ओकुहारा के शॉट के नेट पर पड़ने से वह गेम प्वाइंट पर पहुंची. ओकुहारा ने इसके बाद फिर से नेट पर शॉट मारा जिससे सिंधु पहला गेम जीतने में सफल रही.

दूसरे गेम में सिंधु ने फिर से 3-0 से बढ़त बनाई लेकिन जापानी खिलाड़ी भी हार मानने के मूड में नहीं थी. उन्होंने वापसी करके 5-3 से बढ़त बना दी. सिंधु को तब शटल को कोर्ट के अंदर रखने में दिक्कत हुई.

इसके बाद दोनों खिलाड़ी 5-5 से 8-8 तक बराबरी पर चलती रही. सिंधु ने फिर से बढ़त बनायी लेकिन इसके बाद उनका शॉट फिर से बाहर चला गया. मध्यांतर तक हालांकि सिंधु ने 11-10 से मामूली बढ़त बना रखी थी.

मध्यांतर के बाद सिंधु ने आक्रामक रवैया अपनाया. कोर्ट के दूसरे छोर से उन्होंने लगातार 11 अंक बनाकर जीत दर्ज की. इस बीच उन्होंने कई दर्शनीय स्ट्रोक लगाए और जापानी खिलाड़ी की चुनौती को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया. अपने शानदार रिटर्न से उनके पास दस मैच प्वाइंट थे और फिर करारे स्मैश से इतिहास में अपना नाम दर्ज कर दिया.

इससे पहले मारिन ने लंदन ओलंपिक की चैंपियन चीन की ली झूरेई को 21-14, 21-14 से हराया. मारिन भी पहली बार ओलंपिक फाइनल में पहुंची हैं.

जब भारत का अधिकतर दल बिना मेडल के देश लौट रहा है, वही सिंधु का मेडल खास हो जाता है.

सिंधु बारे में खास बातें

पुसरला वेंकटा सिंधु (पीवी सिंधु) का जन्म 5 जुलाई 1995 को हुआ था. पीवी सिंधु के माता-पिता दोनों ही पेशेवर वॉलीबॉल खिलाड़ी रह चुके हैं. सिंधु के पिता पीवी रमन्ना को वॉलीबॉल के लिए अर्जुन पुरस्कार मिल चुका है.

सिंधु ने 7-8 साल की उम्र में ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था. बेटी की रुचि को देखते हुए उनके पिता ट्रेनिंग के लिए रोज घर से 30 किलोमीटर दूर गाचीबौली ले जाते थे.

पीवी सिंधु हैदराबाद में गोपीचंद बैडमिंटन अकैडमी में ट्रेनिंग लेती हैं और उन्हें 'ओलिंपिक गोल्ड क्वेस्ट' नाम की एक नॉन-प्रॉफिट संस्था सपॉर्ट करती है.

सिंधु को यहां तक पहुंचाने में पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद का अहम योगदान है. सिंधु जब 9 साल की थीं, तब से गोपीचंद उन्हें ट्रेनिंग दे रहे हैं. हालांकि, सिंधु को शुरुआती ट्रेनिंग महबूब अली ने दी थी.

30 मार्च 2015 को सिंधु को भारत के चौथे उच्चतम नागरिक सम्मान, पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

2014 में सिंधु ने एफआईसीसीआई ब्रेकथ्रू स्पॉर्ट्स पर्सन ऑफ द इयर 2014 और एनडीटीवी इंडियन ऑफ द इयर 2014 का अवार्ड जीता.

पिछले तीन साल से सिंधु सुबह 4:15 बजे ही उठ जाती हैं और बैडमिंटन की प्रैक्टिस करती हैं. एक रेलवे कर्मचारी और पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी सिंधु के पिता ने 8 महीने की छुट्टी ली थी, ताकि वह अपनी बेटी का ट्रेनिंग के दौरान समर्थन कर सके.

2010 में वह महिलाओं का टूर्नमेंट उबेर कप में भारतीय टीम का हिस्सा रही थीं. 2014 में ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में सिंधु सेमीफाइनल तक पहुंचने में कामयाब रही थीं. जबकि 2015 में वे डेनमार्क ओपन के फाइनल तक पहुंचीं. इसी साल उन्होंने मलेशिया मास्टर्स ग्रां प्री में एकल खिताब भी जीता है.

10 अगस्त 2013 को सिंधु भारत की पहली एकल खिलाड़ी बनीं, जिन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में कोई पदक (कांस्य) जीता. सिंधु के बारे में उनके आदर्श गोपीचंद कहते हैं कि सिंधु कभी हार नहीं मानतीं और वह जो ठान लेती हैं, उसे पूरा करने में जी जान लगा लेती हैं.

पहली बार किए ये कारनामें

सिंधु ओलंपिक के फाइनल में पहुंचने वाली इतिहास की पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं. विश्व चैंपियन में पदक हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला एकल खिलाड़ी हैं.

उपलब्धियां

विश्व चैंपियनशिप में पीवी सिंधु ने 2013 और  2014 में 2 कांस्य पदक जीते. 2014 में उन्होंने इंचियोन एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में भी कांस्य हासिल किया.

ताकत

सिंधु की फिटनेस शानदार है. लंबी रैलियां खेलने में वह माहिर हैं और उनके ताकतवर स्मैश का विपक्षी खिलाड़ी के पास कोई जवाब नहीं होता. उनकी लंबाई उनको घातक बना देती है.

विरासत में खेल

पीवी सिंधु को खेल की स्पिरिट विरासत में मिली है. उनके पिता पीवी रमन्ना और मां पी विजया, दोनों वॉलीबॉल के खिलाड़ी रहे हैं. रमन्ना को तो अपने खेल में शानदार प्रदर्शन के लिए साल 2000 में अर्जुन पुरस्कार भी मिल चुका है.

पॉजीटिव माइंड

पिछले साल एक इंटरव्यू में सिंधु ने कहा था कि टॉप-10 में आना भी आसान नहीं होता, लेकिन वहां बने रहना बहुत मुश्किल है. इसके लिए लगातार अच्छा खेलना होता है. जहां तक मेरे वर्ल्ड नंबर एक बनने की बात है, मैं खुद को अभी तीन-चार साल देना चाहूंगी.

टेक कंपनियों की खामियों से पैसे बना रहे भारतीय

मनीष भट्टाचार्य को तीन साल पहले एजुकेशन लोन चुकाने के लिए कमाना जरूरी हो गया था. कंप्यूटर साइंस स्टूडेंट भट्टाचार्य ने पैसे कमाने के लिए सारी एनर्जी एक चीज में लगा दी, जो थी बग बाउंटी. बग बाउंटी में टेक्नॉलजी कंपनियां हैकर या साइबर क्रिमिनल की नजर पड़ने से पहले अपने सॉफ्टेवयर के बग, एरर और सिक्यॉरिटी की खामियां ढूंढने के लिए इनाम देती हैं. भट्टाचार्य को 100 डॉलर की पहली बाउंटी 2013 में आसना से मिली थी. उन्होंने उसके सॉफ्टवेयर में सिक्यॉरिटी की एक छोटा सी खामी ढूंढी थी.

बिहार के भागलपुर के मनीष ने दो साल में इतना कमा लिया कि उसने अपना स्टूडेंट लोन चुका दिया और वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर भी हो गया. वह बताते हैं, 'मुझे सबसे बड़ा 5,000 डॉलर (लगभग 3.5 लाख रुपये) का रिवॉर्ड गूगल से मिला था.' दिग्गज टेक्नॉलजी कंपनी ने उनको यह रिवॉर्ड रिमोट लॉगइन में मौजूद रिस्क का पता लगाने के लिए दिया था. लेकिन अकेले मनीष ही भारत में बग ढूंढने वाले एक्सपर्ट नहीं हैं, जो साइबर स्पेस में यहां-वहां खामियों और दिक्कतों का पता लगाते रहते हैं.

शुरुआती क्राउडसोर्सिंग कंपनियों में एक बगक्राउड की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2016 तक दुनियाभर के बग बाउंटी प्रोग्राम में साइन-अप हैकर्स में 28.2 पर्सेंट इंडिया से थे. इनके बाद अमेरिका (24.4%), ब्रिटेन (3.9%), पाकिस्तान (3.5%) और ऑस्ट्रेलिया (2.4%) का नंबर था. बग बाउंटी का आइडिया 1995 में पेश किया गया था. तब नेटस्केप ने अपने वेब ब्राउजर में बग ढूंढने के लिए हैकर्स को इनाम देने का ऐलान किया था.

सिक्यॉरिटी रिस्क के बारे में बताने वाले हैकर्स को जोखिम की गंभीरता के हिसाब से रिवॉर्ड देने के लिए फेसबुक, गूगल, एपल, ट्विटर और याहू जैसी दिग्गज कंपनियों के अपने प्रोग्राम हैं या फिर थर्ड पार्टी कंपनियों के साथ काम करती हैं. यहां तक कि जनरल मोटर्स, खान अकैडमी, स्टारबक्स और यूनाइटेड एयरलाइंस के भी अपने बग बाउंटी प्रोग्राम हैं. इन सबके बावजूद मुट्ठीभर इंडियन कंपनियां ही बग बाउंटी हंटर्स को अपने कोड में झांकने देने को तैयार हैं. जो कंपनियां इसके लिए तैयार हैं, उनमें पेटीएम, ओला और मोबिक्विक जैसी स्टार्टअप शामिल हैं.

क्राउड-सिक्यॉरिटी कंपनी बग्सबाउंटी के डायरेक्टर अंकुश जौहर कहते हैं, 'बग बाउंटी सिक्यॉरिटी सिस्टम के तैयार होने के बाद शुरू होती है. जब इंटरनल सिक्यॉरिटी वाली टीम को लगता है कि सिस्टम में मौजूद सभी खामियों का पता लगा लिया गया है तो वे क्राउड सिक्यॉरिटी के पास आती हैं.' बग्सबाउंटी को एथिकल हैकर्स के एग्रीगेटर की तरह देखा जा सकता है.

नरसिंह पर लगा चार साल का बैन

भारतीय पहलवान नरसिंह यादव की किस्मत ने अचानक से फिर पलटी खाई और खेल पंचाट ने राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक एजेंसी द्वारा उन्हें दी गई क्लीन चिट को खारिज करते हुए ओलंपिक से बाहर करने के साथ डोप टेस्ट में नाकाम रहने के कारण चार साल का प्रतिबंध लगा दिया.

विश्व डोपिंग निरोधक एजेंसी (वाडा ) ने नाडा द्वारा नरसिंह को दी गई क्लीन चिट के खिलाफ खेल पंचाट में अपील की थी. खेल पंचाट ने कल चार घंटे तक चली सुनवाई के बाद जारी बयान में कहा, ‘संबंधित पक्षों को सूचित किया जाता है कि अपील स्वीकार कर ली गई है और नरसिंह यादव पर आज से चार साल का प्रतिबंध लगाया जाता है और अगर उस पर पहले अस्थायी निलंबन लगाया गया था तो वह अवधि इसमें से कम कर दी जायेगी.’

इसमें कहा गया, ‘ इसके अलावा 25 जून 2016 से लेकर अब तक नरसिंह के सभी प्रतिस्पर्धाओं में नतीजे खारिज हो जायेंगे और उनके पदक, अंक, पुरस्कार वापिस ले लिये जायेंगे.

खेल पंचाट की पैनल यह मानने को तैयार नहीं है कि वह साजिश का शिकार हुआ है. इसके कोई सबूत नहीं है कि उसकी कोई गलती नहीं थी और डोपिंग निरोधक नियम उसने जान बूझकर नहीं तोड़े. इसीलिये पैनल ने उस पर चार साल का प्रतिबंध लगाया.’ इसके साथ ही नरसिंह के रियो ओलंपिक के सफर की विवादों से भी दुखद दास्तान का अंत हो गया.

नरसिंह का नाम ओलंपिक कार्यक्रम में था और उसे क्वालीफिकेशन दौर में फ्रांस के जेलिमखान खादजिएव से खेलना था लेकिन खेल पंचाट के फैसले ने उनकी सारी उम्मीदें तोड़ दी. नरसिंह पूरे समय कहते रहे कि उनके विरोधियों ने उनके खिलाफ साजिश करके उनके खाने या पीने में कुछ मिला दिया था.

खेल पंचाट ने कहा, ‘ वाडा ने भारत के नाडा के फैसले के खिलाफ खेल पंचाट के तदर्थ विभाग में आपात याचिका दायर की थी. नरसिंह 25 जून और पांच जुलाई को दो डोप टेस्ट में नाकाम रहे. नरसिंह ने कहा कि वह साजिश के शिकार हुए हैं. वाडा ने अनुरोध किया कि उन पर चार साल का प्रतिबंध लगाया जाये.’

पिछले साल लॉस वेगास में विश्व चैम्पियनशिप कांस्य पदक जीतकर कोटा हासिल करने वाले नरसिंह का रियो तक का सफर कठिनाई से भरा रहा. उन्हें दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार पर तरजीह देकर चुना गया था. सुशील ने नरसिंह को दिल्ली उच्च न्यायालय में घसीटा और कानूनी लड़ाई के बाद फैसला नरसिंह के पक्ष में गया.

एशियाई खेलों के कांस्य पदक विजेता नरसिंह जून में डोप टेस्ट में प्रतिबंधित स्टेरायड के सेवन के दोषी पाये गए थे. सोनीपत स्थित साइ सेंटर में उनके रूममेट भी डोप टेस्ट में नाकाम रहे लेकिन भारतीय कुश्ती महासंघ ने नरसिंह का यह कहकर साथ दिया कि वह साजिश के शिकार हुए हैं. ओलंपिक से कुछ दिन पहले उन्हें नाडा ने क्लीन चिट दी और कहा कि वह साजिश का शिकार हुए हैं. वाडा ने हालांकि इस फैसले को खेल पंचाट में चुनौती दी थी.

वर्चुअल वर्ल्ड के आकर्षण से टूट रहा है परिवार

बेटे और पति के साथ मीनल का खातापीता और हंसताखिलता परिवार था. जब लोग बेटे के लिए कितनी मन्नते मांगते हैं, तब बिन मांगे इस जोड़े की मुराद पूरी हो गई. दांपत्य को 18-19 साल हो गए थे. अब बेटा 15 साल को हो गया था. 10वीं में पढ़ता है. पति की मीडिया में ठीकठाक नौकरी थी. मीनल भी एक एनजीओ में काम करती थी. ढाई साल पहले पति को वीआरएस लेना पड़ गया. इस के बाद घर पर यों ही बैठेठाले बोर होने लगे. चूंकि मीडियापर्सन रहे हैं इसलिए खबरों की दुनिया से जुड़े रहने की लत थी. हमेशा से खबरें ही उन का खाना, पहनना, ओढ़ना व बिछाना रही हैं. दूसरी कोई हौबी नहीं थी. हां, पहले पुराने फिल्मी गाने थोड़ाबहुत सुन लिया करते थे. पर धीरेधीरे इस से भी किनारा कर लिया. टीवी पर खबरें देख कर उन के भीतर खलबली मचने लगती थी. पति की बेचैनी देख मीनल ने उन्हें व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर और ब्लौग में सक्रिय होने की सलाह दे दी, जो उस के पति को बहुत पसंद आई. अब वे सोशल मीडिया में सक्रिय हो गए. पहले 2-4 घंटे से इस की शुरुआत हुई. फिर धीरेधीरे सोशल मीडिया की ऐसी लत लगी कि 14-18 घंटे तक वे औनलाइन नजर आने लगे.

देशदुनिया के हर छोटेबड़े मुद्दे पर लंबीलंबी और जबरदस्त बहस में शामिल होने लगे. विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की गतिविधियों की उन के द्वारा की गई समालोचना और विचारों पर बड़ीबड़ी हस्तियों का ध्यान जाने लगा. यहां तक कि फेसबुक, ट्विटर पर उन की दी गई सलाह पर ढेरों कमैंट्स आने लगे. बस, यहीं से उन का दिमाग बिगड़ने लगा. अब तो समय पर नहाना, खाना व सोना तो दूर, घरपरिवार की छोटीबड़ी बातों या समस्याओं पर ध्यान देने के लिए समय कम पड़ने लगा. सारा दिन घर पर होते हुए भी उन की दुनिया कंप्यूटर, फेसबुक, ट्विटर, ब्लौग तक सिकुड़ती चली गई. उन्हें बस अपने सोने, जगने, खाने व नहाने से मतलब रह गया, वह भी जब उन का दिल करे.

अब घर पर उन की उपस्थिति किसी फर्नीचर की तरह ही बन कर रह गई. दूसरी किसी भी बात से लेनादेना नहीं रहा. सामान्य बातबात पर चिढ़ने लगते. तंग आ कर पत्नी और बेटे ने उन्हें उन के  ‘वर्चुअल वर्ल्ड’ पर ही छोड़ दिया. जाहिर है इस से परिवार से उन की दूरी बन गई. हफ्तेहफ्ते तक घर पर किसी से बातचीत नहीं होती थी. वर्चुअल वर्ल्ड में लंबे समय तक बने रहने के कारण मन में अवसाद घिरने लगा. लेकिन फिर भी किसी बात पर एक बार गुस्सा आ गया तो फिर तो कुछ पूछना ही नहीं. गालीगलौज से ले कर मारपीट पर उतारू होने लगे. इन सब का असर किशोर बेटे के मानस और उस की पढ़ाई पर पड़ने लगा. मनोचिकित्सक से काउंसिलिंग के मुद्दे पर भी वे भड़क जाते. अब मीनल के लिए बरदाश्त के बाहर ह गया. एक दिन उस ने अपने बेटे के साथ घर ही छोड़ दिया. इस तरह एक परिवार फेसबुक की बलि चढ़ गया.

यह तो महज एक केस स्टडी है. अभी हाल ही में मुंबई में फेसबुक की वजह से एक दंपत्ती का रिश्ता तलाक तक पहुंच गया. हालांकि अदालत में पेशी के दौरान दोनों ने माना कि दोनों ही फेसबुक में ज्यादा से ज्यादा समय बिताया करते थे. जिस से उन का निजी जीवन खत्म हो गया था. पर उन के मन में अभी भी एकदूसरे के प्रति प्रेम बाकी था. इसीलिए उन का संबंध टूटने से बच गया. लेकिन तमिलनाडु के एक मामले में ऐसा नहीं हुआ. केवल फेसबुक नहीं, बल्कि सोशल मीडिया के तमाम माध्यम दिनोंदिन एक बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं. फेसबुक समेत ट्विटर, यूट्यूब, व्हाट्सऐप जैसे तमाम सोशल मीडिया पर अब तक जाने कितने इलजाम लगते रहे हैं और ये सभी इलजाम गंभीर हैं. इन के चलते आत्महत्या से ले कर दोस्ती में दरार, घरपरिवार टूटने तक की घटनाएं आम हैं. कुछ समय पहले इंगलैंड में एक सर्वेक्षण कराया गया था जिस के नतीजे बेहद चौंकाने वाले आए. सर्वे रिपोर्ट में कहा गया था कि इंगलैंड में हर तीसरे तलाक के पीछे फेसबुक की अहम भूमिका होती है.

सनक वर्चुअल वर्ल्ड की

मनोचिकित्सक प्रथमा चौधुरी कहती हैं कि सोशल मीडिया में लाइक या कमैंट ही नहीं, सैलिब्रिटीज के लेटेस्ट ट्वीट की खबर रखना भी प्रतिष्ठा से जुड़ा मामला बन गया है. साथ ही, आज की युवा पीढ़ी ज्यादातर अपने जीवन की हरेक छोटीबड़ी बात को सोशल नैटवर्किंग साइट पर शेयर करती है. दरअसल, सोशल मीडिया जो माहौल देता है, उस से बच कर निकल पाना मुश्किल होता है. एक समय था जब टीनएजर में टैक्स्ट मैसेज और लंबेलंबे फोन कौल की सनक हुआ करत थी. सनक तो अब भी है, पर सोशल मीडिया की. सोशल मीडिया की खिड़की, वह खिड़की बन चुकी है जहां देशविदेश और समय की कोई सीमा नहीं है. संपर्क बनना, बनाना और किसी को भी ढूंढ़ लेना आसान है. यह एक अलग ही दुनिया है. इस दुनिया में बहुतकुछ मनमाफिक होता है. इसी कारण व्यक्ति वास्तविक दुनिया से कोसों दूर, वर्चुअल वर्ल्ड में जीने के आदी हो जाते हैं. जीवन का हर पल कितने पोस्ट और कमैंट ‘लाइक’ किए गए, इस की गिनती में ही उलझ कर रह जाता है. प्रथमा चौधुरी कहती हैं कि यह कोई सामान्य समस्या नहीं है, यह लगातार गंभीर होती चली जाती है और व्यक्ति गहरे अवसाद, निराशा के गर्त में समाता चला जाता है.

एडिक्शन डिसऔर्डर

कोलकाता के जानेमाने मनोचिकित्सक जयरंजन राम का कहना है कि मीनल के पति का मामला सौ फीसदी फेसबुक एडिक्शन डिसऔर्डर का है. आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में फेसबुक एडिक्शन डिसऔर्डर को फैड कहते हैं. कुछ लोग हैं जिन्हें ट्विटर की लत लग जाती है. ऐसा मामला ट्विटर एडिक्शन डिसऔर्डर यानी टैड कहलाता है. वहीं इंटरनैट एडिक्शन डिसऔर्डर भी बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है. इस के शिकार 24 घंटे इंटरनैट पर बने रहते हैं और इस से निजी जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है. जयरंजन यह भी कहते हैं कि आजकल हर उम्र के आम से ले कर खास तक का फेसबुक या अन्य किसी सोशल मीडिया पर अपना अकाउंट जरूर होता है. समाज में सोशल मीडिया पर अपना अकाउंट होना स्टेटस सिंबल बन गया है. जिस के जितने ज्यादा फ्रैंड या फौलोअर, उस का उतना बड़ा स्टेटस. यही कारण है कि अगर किसी पोस्ट को एक भी लाइक न मिले या पोस्ट पर एक भी कमैंट नहीं किया गया हो तो यह प्रतिष्ठा का सवाल बन जाता है.

जैविक व्याख्या

फेसबुक की लत की जैविक व्याख्या करते हुए जयरंजन राम कहते हैं कि हमारे शरीर में कई तरह के हार्मोन होते हैं. अलगअलग तरह की उत्तेजना में इन का स्राव होता है. जब हमें कोई बात अच्छी लगती है, सम्मान मिलता है, पुरस्कार मिलता है, यहां तक कि सैक्स करते हुए व्यक्ति को जब सुख की अनुभूति होती है, तब भी डोपामाइन हार्मोन का स्राव दिमाग में होता है. यह एक न्यूरोट्रांसमीटर रासायनिक है. जब किसी व्यक्ति को शराब या ड्रग की लत लग जाती है तब हमारे दिमाग में डोपामाइन हार्मोन अधिक सक्रिय होता है और इस का स्राव अधिक मात्रा में होता है. सोशल मीडिया पर लगातार बैठे रहने के कारण डोपामाइन का स्राव अधिक से अधिक मात्रा में होता है, इस से प्रतिक्रियास्वरूप मन में अवसाद और निराशा घिरने लगती है. अवसाद और निराशा के कारण व्यक्ति हताश होता चला जाता है. ऐसे व्यक्ति को तुरंत और लगातार काउंसिलिंग की जरूरत होती है. लेकिन इतने से ही काम नहीं चलता, साथ में दवा की भी जरूरत होती है.   

फैड और टैड के लक्षण

फेसबुक या ट्विटर का एडिक्शन कुछ खास लक्षणों को देख कर समझा जा सकता है

–       सोशल मीडिया के एकसाथ बहुत सारे विंडो खोल कर बैठना. परिवार और पारिवारिक सदस्यों की उपेक्षा करने लगना. वास्तविक दुनिया के मित्रों या पारिवारिक सदस्यों के साथ समय बिताने, सिनेमा देखने और खेलकूद के प्रति उदासीन हो जाना. ये सब करने के बजाय फेसबुक में लगे रहना कहीं अधिक अच्छा लगता है.

–       फेसबुक से बाहर निकलने के बाद स्वभाव में बदलाव दिखना, जैसे चिड़चिड़ाहट और हर वक्त गुस्से से पेश आना. पारिवारिक सदस्यों व बच्चों को झिड़कना, बुरी तरह से पेश आना. फैड का गंभीर मरीज कभीकभी मारपीट पर भी उतारू हो जाता है.

–       सोशल नैटवर्किंग साइट के चक्कर में रातरात भर जगे रहना. नींद पूरी न होने के कारण दिनभर चिड़चिड़ाहट. कुल मिला कर फेसबुक में लगे रहने वाले व्यक्ति में अनिद्रा का लक्षण भी फैड की ओर इशारा करता है.

–       फेसबुक एडिक्शन का मरीज अपनी वौल या अपने पोस्ट पर कमैंट और लाइक देखने या उन के बारे में बात करने के लिए बेचैन रहता है.

–       गर्लफ्रैंड के साथ वास्तविक डेट पर जाने के बजाय औनलाइन डेटिंग करने के लिए मनाना.

–       अगर संबंधित व्यक्ति के फेसबुक पर परिचित के बजाय 60 प्रतिशत फ्रैंड अनजान व्यक्ति हैं तो निश्चित रूप से यह फैड का मामला है.

–       सोशल नैटवर्किंग साइट में लगे रहने की समयसीमा का बढ़ते जाना. जब तक संतोष या मनमाफिक प्रतिक्रिया न मिले, तब तक लगे रहना.

–       बारबार प्रोफाइल पिक्चर का बदलना.

–       इस के अलावा व्यग्रता, उत्कंठा, तनाव इस के लक्षण हैं.

सोशल नैटवर्किंग साइट एडिक्शन से बचाव के उपाय

–               फेसबुक हो या ट्विटर या अन्य कोई सोशल नैटवर्किंग साइट हो, कम से कम आधा घंटा और अधिक से अधिक 1 घंटा काफी है. इस से ज्यादा सक्रियता एडिक्शन की ओर ले जाती है.

–               सोशल नैटवर्किंग साइट को जीवन बना लेने के बजाय मनोरंजन या समय बिताने के एक जरिए के रूप में देखना बेहतर है.

–               सोशल नैटवर्किंग साइट का पालतू बनने या इसे अपना पालतू बनाने में ज्यादा समय देने के बजाय कोई हौबी या शौक पाल लेना चाहिए, जैसे बागबानी, किताबें पढ़ना, दोस्तों के साथ हैंगआउट, गाना सुनना, सिनेमा देखने जाना आदि.

–               हमेशा सकारात्मक चीजों के बारे में सोचना चाहिए.

यौन उत्पीड़न रोकने को कंपनियों की कार्यशालाएं

देश की राजनीति में यौन उत्पीड़न बड़ा मुद्दा बना हुआ है और इस बुराई पर रोक लगाने के लिए चर्चा का दौर जारी है. ऐसे में एक मोबाइल सेवाप्रदाता कंपनी के इस संदेश, ‘‘हम ने 3जी, 4जी का इतिहास बनाया है, परंपराओं और मूल्यों का नहीं,’’ का मतलब कंपनियों में यौन उत्पीड़न नहीं हो, इस तरफ विशेष ध्यान दिलाता है. यह अलग बात है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं. इस का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 2014 में महिला आयोग में यौन उत्पीड़न की 346 घटनाएं दर्ज की गईं जबकि 2013 में यह आंकड़ा 249 था. वर्ष 2011 में महज 169 मामले ही दर्ज किए गए थे.

ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एडिडास, डोमिनोज, डनकिन, आईबीएम, बीएमएस, कोकाकोला जैसी मशहूर कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए कार्यशालाएं आयोजित कर के उन्हें समझा रही हैं कि किस तरह की हरकत कार्यस्थल पर यौन शोषण के दायरे में है, साथ ही, उन से कैसे बचना है तथा इस तरह की हरकत पर किस तरह की सजा का प्रावधान किया गया है. इन कंपनियों में छोटेछोटे समूह बना कर एक निश्चित अवधि तक कर्मचारियों को यौन उत्पीड़न रोकने के लिए जरूरी जानकारी दी जाती है. इन कार्यशालाओं में कर्मचारी रोकथाम के उपायों पर बातें करते हैं. उन्हें विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण भी दिया जाता है. कार्यशालाओं में कर्मचारियों को यह भी बताया जा रहा है कि यौन उत्पीड़न की घटनाओं में दंड का प्रावधान क्या है और यौन अपराध के खिलाफ किस तरह के कदम उठाने हैं. इस तरह के प्रयास कार्यस्थल पर यौन अपराध की घटनाएं रोकने में जरूर सफल होंगे लेकिन यौन अपराध जैसे संगीन मामलों में झूठे आरोप लगाने पर दंड के विधान को भी प्रचारित किया जाना चाहिए.

लोकप्रिय ब्रैंड की तर्ज पर बनेंगे खादी कपड़े

खादी को लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार ने खादी वस्त्र निर्माण तथा इन की बिक्री का दायरा बढ़ाने का फैसला किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर प्रसारित अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में देशवासियों से खादी का प्रचलन बढ़ाने के लिए हर व्यक्ति से कम से कम एक कपड़ा खादी से बना पहनने का आह्वान किया था. उस

के बाद गुजरात विश्वविद्यालय ने दीक्षांत समारोह में खादी पहनने की घोषणा कर के हलचल मचा दी और अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी मुंबई ने दीक्षांत समारोह में इस्तेमाल होने वाले 3,500 वस्त्र बनाने का आदेश दे कर खादी को सम्मानित किया है. सरकार अब खादी को खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग यानी केवीआईसी से बाहर ला कर इस का दायरा बढ़ाना चाहती है और उसे रेमंड तथा फैबइंडिया के ब्रैंड की तरह लोकप्रिय बनाना चाहती है. ये मशहूर ब्रैंड जिस तरह के लोकप्रिय कपड़े बना रहे हैं, खादी विभाग से उसी तरह के कपड़े बनाने के लिए कहा गया है. केवीआईसी देश के हर वर्ग की ख्वाहिश के अनुरूप खादी वस्त्र तैयार करना चाहता है, इस के अलावा वूलन, लिनेन, सिल्क में खादी का लोकप्रिय पहनावा तैयार करने पर विचार किया जा रहा है.

सरकार का यह प्रयास अच्छा है और इस से खादी में नई ताकत आएगी. लेकिन इस से गांव को जोड़ने का प्रयास होना चाहिए. खादी को स्थानीय स्तर पर रोजगार का बड़ा जरिया बनाया जा सकता है लेकिन स्थानीय स्तर पर कौशल विकास के साथ ही आधुनिक मशीनें भी स्थापित करनी होंगी. हवाईअड्डे पर दुनिया का सब से बड़ा चरखा लगा कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को नमन किया जा सकता है. उन्होंने चरखे को ग्रामीण जीवन की अर्थव्यवस्था का आधार बताया था.

शेयर बाजार 28,000 अंक के पार

शेयर बाजार में तेजी बरकरार है. जुलाई में मिडकैप ने जो ऊंचाई पकड़ी है वह ढाईतीन साल बाद देखने को मिली है. घरेलू स्तर पर अच्छे प्रवाह तथा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद से बाजार का मूड तेजी से बदला और नैशनल स्टौक एक्सचेंज 9,000 अंक की तरफ बढ़ रहा है. बौंबे स्टौक एक्सचेंज का सूचकांक 28,000 अंक को पार कर चुका है. बाजार में तेजी का सिलसिला लगभग पूरे जुलाई माह में देखने को मिला. जुलाई 11 को सूचकांक 11 माह के शीर्ष स्तर पर पहुंचा और उस ने 500 अंक की उछाल भरी. जुलाई 25 को नैशनल स्टौक एक्सचेंज 15 माह के शीर्ष पर पहुंचा. पूरे माह के दौरान सूचकांक में कई बार अच्छी तेजी देखने को मिली.

इस बीच, अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी नोमूरा की रिपोर्ट आई है जिस में कहा गया है कि वर्तमान में भारत दुनिया में सब से तेजी से बदल रहा है और उस का बाजार प्रभावी तरीके से उभर रहा है. इस का कारण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए लंबी अवधि की कई महत्त्वपूर्ण योजनाएं हैं. उस के शोधकर्ताओं का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को जो दीर्घकालिक आधार दिया जा रहा है उस से अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और जीडीपी बढ़ेगा.

नोमूरा का अनुमान है कि 2017 में भारत का जीडीपी 8 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा. वर्ष 2015 में यह 7.3 प्रतिशत था और इस बार इस के 7.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है.

खेल कहीं व्यवसाय न बन जाए

सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई में सुधार को ले कर जस्टिस लोढ़ा कमेटी की ज्यादातर सिफारिशें मंजूर कर ली हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बीसीसीआई लोढ़ा पैनल की सिफारिशें 6 महीने में लागू करे. अब बोर्ड में मंत्री और अधिकारी शामिल नहीं हो पाएंगे, राजनेताओं पर कोई पाबंदी नहीं है. बीसीसीआई में अब 1 व्यक्ति 1 पद का नियम लागू होगा. खिलाडि़यों का अपना संघ होगा. बीसीसीआई अधिकारियों की उम्रसीमा 70 वर्ष होगी. ओवर के बीच विज्ञापन पर बीसीसीआई ब्रौडकास्टर से बात कर हल निकालेगा. इस के अलावा सट्टेबाजी वैध हो और आरटीआई का दायरा हो, यह संसद पर छोड़ दिया गया.

उम्मीद की जा रही है कि इस से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई में कुछ पारदर्शिता जरूर आएगी. अदालत ने सिर्फ प्रशासनिक पक्ष पर अपना फैसला दिया है. जाहिर है यदि प्रशासनिक पक्ष सुधरेगा तो बाकी चीजें भी सुधर जाएंगी. लेकिन मोदी सरकार की तरह, यहां भी खुद न बैठ कर अपने करीबी को बैठा दिया जाएगा, ऐसा संभव है.

चूंकि बीसीसीआई के पास अकूत पैसा है और सब से धनी संस्था भी है इसलिए हर राजनेता, उद्योगपति या फिर पहुंच रखने वाला व्यक्ति इस संस्था की ओर ललचाता है, हर कोई इस की मलाई खाना चाहता है. शायद इसीलिए इस संस्था में शुरू से ही राजनेताओं, उद्योगपतियों और पहुंच व पावर रखने वाले लोगों का एकछत्र राज रहा है.

बीसीसीआई में पारदर्शिता, मनमानी और भ्रष्टाचार को ले कर सवाल उठने लगे, बावजूद इस के, जवाबदेही किसी की नहीं. मामला इतना बढ़ गया कि सुप्रीम कोर्ट को इस में दखल देना पड़ा.

यह केवल क्रिकेट की ही बात नहीं है, तकरीबन हर खेल संघों में राजनेताओं या रसूखदारों की घुसपैठ है जो केवल पैसा बनाने या अपने स्वार्थ के कारण खेलों का इस्तेमाल करते हैं. यही वजह है कि लगभग हर खेल की स्थिति दयनीय होती जा रही है. अब खिलाड़ी भी देश के लिए नहीं, बल्कि पैसों के लिए खेलते हैं. इसे यदि गंभीरता से नहीं सोचा गया तो शायद खेल खेल नहीं रहेगा, व्यवसाय बन कर रह जाएगा.    

डोपिंग का जाल

जब भी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाएं शुरू होती हैं, चाहे वे एशियाई खेल हों, कौमनवैल्थ गेम्स हों या फिर ओलिंपिक, कुछ खिलाड़ी डोपिंग मामले में फंस जाते हैं, जैसा कि भारतीय रेसलर नरसिंह यादव और इंद्रजीत सिंह डोपिंग के जाल में उलझ गए थे. उस के बाद नरसिंह ने नाडा को लिखित में दिया कि वह निर्दोष है और उन्हें फंसाया गया है. जब से रियो ओलिंपिक में हिस्सेदारी को ले कर नरसिंह यादव का नाम सामने आया है तब से ही वे विवादों में घिर गए. ओलिंपिक विजेता रेसलर सुशील कुमार ने तब आपत्ति दर्ज की थी और वे अदालत पहुंच गए जहां सुशील कुमार फेल हो गए थे और नरसिंह यादव पास.

मगर राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक यानी नाडा द्वारा कराई गई जांच में नरसिंह यादव फेल हो गए. लेकिन नरसिंह ने तब भी लड़ा था जब सुशील कुमार ने ट्रायल की मांग की थी और इस बार भी लड़ा और यह साबित कर दिया कि नरसिंह उन खिलाडि़यों में से नहीं हैं जो हार मान जाते हैं. नाडा की अदालत ने उसे बरी कर दिया. इसी के साथ 74 किलोग्राम भार में रियो ओलिंपिक में जाने का उन का रास्ता साफ हो गया. लेकिन इस घटना ने फिर से डोपिंग की प्रवृत्ति पर सोचने के लिए विवश कर दिया है कि आखिर ऐसी दवाओं का सेवन करने की जरूरत क्यों पड़ती है जबकि दुनियाभर में डोपिंग को ले कर आचार संहिता है जिस का सभी देश पालन करते हैं. इस के लिए नाडा व वाडा यानी वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी ने कड़े नियम भी बना रखे हैं. बावजूद इस के, डोपिंग के मामले कम होने के बजाय बढ़ते जा रहे हैं.

खिलाडि़यों के लिए कई दवाओं पर प्रतिबंध लगा हुआ है लेकिन प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में खिलाड़ी ऐसी दवाओं का सेवन इसलिए करते हैं ताकि उन का रक्त संचार तेज हो जाए. दवाओं के सेवन के बाद वे अपनेआप को ज्यादा ताकतवर महसूस करने लगते हैं, उन की खेलने की क्षमता बढ़ जाती है. रूस में ऐसी दवाओं पर प्रतिबंध नहीं है, इसलिए ओलिंपिक महासंघ ने वहां के खिलाडि़यों पर प्रतिबंध लगा रखा है. हाल के दशकों में डोपिंग के मामले विश्वभर में बढ़ रहे हैं और तकरीबन हर खेल में खिलाड़ी इस मामले में फंस रहे हैं. चाहे वह क्रिकेट हो, टैनिस हो, फुटबौल हो, कुश्ती हो या फिर अन्य खेल. खिलाडि़यों, कोच, देश और खेल पदाधिकारियों को डोपिंग को ले कर सोचना होगा क्योंकि केवल कड़ा नियम बना देने से अगर डोपिंग के मामले रुक जाते तो शायद एक भी मामला सामने नहीं आता. खिलाड़ी इस बात को जानतेसमझते हैं कि अगर वे डोपिंग में पकड़े जाएंगे तो उन का कैरियर चौपट हो जाएगा, फिर भी वे ऐसी दवाओं का सेवन करते हैं. अगर खेल को डोपिंग मुक्त करना है तो इस के लिए खिलाडि़यों को ही आगे आना होगा क्योंकि वे अगर ऐसी दवाओं का सेवन ही नहीं करेंगे तो शायद ही कोई मामला सामने आए. कृत्रिम ताकत के सहारे पदक जीत लेना कोई खिलाड़ी नहीं कहलाएगा.

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