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चाहत सरकारी नौकरी की

केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू कर दी हैं. सरकारी साहबों के मजे तो पहले ही थे, अब और ज्यादा हो गए हैं. ठीक है, सरकारी नौकरी के लिए काफी पढ़ाई करनी पड़ती है, काफी दौड़धूप करनी होती, काफी परीक्षाओं में बैठना होता है और न जाने कहांकहां से सिफारिशें लगानी होती हैं: पर फिर भी जो सरकार के बाबुओं से ले कर अफसरों को मिल रहा है, उस से साफ है कि क्यों 3 करोड़ लोग इन नौकरियों के लिए मरे जा रहे हैं.

जिस देश में एमए, बीए चपरासी की नौकरी के लिए अर्जी देते हैं, वहां साफ है कि सरकारी नौकरी के अलावा जीवन सुधारने का कोई तरीका नहीं है. लाखों लड़केलड़कियां हर साल मातापिता का हजारों रुपया कोचिंग क्लासों, अर्जियों के साथ लगने वाली फीस, परीक्षा सैंटरों पर जाने पर खर्च कर देते हैं. इस दौरान वे निठल्ले बैठे रहते हैं, वह अलग है. सब से बड़ी बात है कि हर सरकारी नौकरी में रिश्वत का मौका है. हर सरकारी कर्मचारी के पास ढेरों तरीके होते हैं आम आदमी को लूटने के. हम कहते हैं कि मुगलों ने देश को लूटा, अंगरेजों ने लूटा, पर असल लूट आज चल रही है जब देश का असली खजाना तीनचौथाई तो सरकारी शाहों पर खर्च होता है और एकचौथाई बरबाद होता है.

आम आदमी को लूट कर जमा किया गया टैक्स देश की सेवा कहलाई जाती है. कैसी सेवा? देश कहां से खुश है? न देश में पढ़ाई ठीक है, न शहरों की गलियां, न गांवों की नहरें, न अस्पताल, न अदालतें. देश ठीक है तो किस तरह से? ठीक है, देश चल रहा है, पर इसलिए कि लोग, आम लोग, जो सरकार में नौकर नहीं हैं, काम करने में लगे हैं. किसान, मजदूर, व्यापारी, तकनीकी मेकैनिक, सेवा देने वाले आदि रातदिन मेहनत करते है. उन्हें नहीं मालूम कि उन की मेहनत का कितना हिस्सा सरकार हड़प कर जाती है, पर जो बच जाता है उसी के लिए उन्हें काम करना पड़ता है, क्योंकि उसी से वे पेट भर सकते हैं, घर चला सकते हैं, परिवार को पाल सकते हैं.

सरकारी शाहों को वैसे वेतन आयोग का इंतजार नहीं करना पड़ता. उन का वेतन हर साल भी बढ़ता है और महंगाई होने पर भी बढ़ता है. अगर नहीं बढ़ता तो आम आदमी का नहीं बढ़ता. दशकों से किसानमजदूर का रहनसहन वैसे का वैसा ही है. हां, 2 कमीजें उस के पास आ गई हैं, पर उस के लिए जिम्मेदार नई तकनीक है, जिस ने कपड़ा सस्ता कर दिया. उसे जूते मिल गए, क्योंकि पैट्रो प्रोडक्ट से चप्पलजूते सस्ते हो गए. दवाइयां मिल गईं, क्योंकि तकनीक की वजह से 8-10 रुपए में ठीक हुआ जा सकता है. सरकार की फौज का इस्तेमाल तो सरकार जनता को लूटने के लिए करती है या जमा हुए पैसे को अपनों में बांटने में. सातवें वेतन आयोग की खुशी मनाई जाएगी, पर उन एक करोड़ लोगों का क्या होगा जो इस दीवाली का पैसा देंगे?

वुमन सैफ्टी ऐप्स 24×7

आज समाज चाहे कितना आगे बढ़ गया हो, कितना हाईटैक हो गया हो लेकिन युवतियों की सुरक्षा के मामले में पीछे ही है. आज जब युवतियां मल्टीनैशनल कंपनियों में काम कर देर रात घर लौटती हैं तो मन में डर बना रहता है. समाज में घटित घटनाएं हमें सचेत रहने को भी आगाह करती हैं.

भले ही खुद चाहे सही क्यों न हों या फिर चाहे कितने भी सैफ रास्ते से घर क्यों न लौटें लेकिन गंदी मानसिकता वालों की निगाह से नहीं बच सकती. लेकिन इस कारण घर से बाहर निकलना नहीं छोड़ा जा सकता. ऐसे में युवतियों को चाहिए कि वे खुद की सैफ्टी बरतें.

आज के हाईटैक दौर में वुमन सैफ्टी के लिए काफी उपाय हुए हैं. अब तक युवतियां जिस स्मार्टफोन का इस्तेमाल ऐंटरटैनमैंट के लिए या फिर सैल्फीज क्लिक करने के लिए करती रही हैं, अब उस का इस्तेमाल खुद की सेफ्टी के लिए कर के डर को हमेशा के लिए बाय कह सकती हैं. जिस के लिए जरूरी है आप के फोन में कुछ ऐप्स.

प्रस्तुत हैं सेफ्टी ऐप्स जो आप को हर मौके पर सुरक्षित रखने में कारगर भूमिका निभा सकते हैं.

आई फील सेफ ऐप

आई फील सेफ नामक ऐप युवतियों को सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में अहम रोल अदा करता है. इस ऐप को मोबाइल स्टैंडर्ड एलाइंस औफ इंडिया द्वारा बनाया गया है लेकिन इसे निर्भया ज्योति ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जाएगा. हाल ही में एक कार्यक्रम में इस का लोकार्पण निर्भया की मां आशा देवी और पिता बद्रीनाथ सिंह ने किया.

इस ऐप की खासियत यह है कि यह बिना नैटवर्किंग या बिना सिम के भी काम करता है और पूरे भारत में इस का लाभ उठाया जा सकता है. इसे डाउनलोड करने में कोई खर्च भी नहीं आता.

आप को सिर्फ इतना करना है कि पहले इसे अपने प्लेस्टोर से डाउनलोड कर लें, जिस से आप को फोन में एक वर्चुअल बटन मिलेगा, जिसे ‘पावर का सैफ्टी बटन’ कहते हैं, को 5 बार दबा कर अलार्म संचालित करना होगा, जिस से यह ऐप खतरे की स्थिति में खुद ही 100 नंबर पर फोन कर के पीडि़त व्यक्ति की बिलकुल सही जानकारी देगा. सिर्फ एक बार सूचित कर के अपने फर्ज से इतिश्री नहीं करेगा बल्कि हर 30 सैकंड में स्थान को ट्रैक करते हुए इस की सूचना यूजर के इमरजैंसी कौंटैक्ट्स को देने के साथसाथ इमरजैंसी कौल सैंटर टीम को भी देगा जिस से पीडि़त को समय रहते हर संभव मदद पहुंचाई जा सके.

विद यू ऐप

खतरा आप के सामने खड़ा है ऐसे में आप फोन से कौंटैक्ट नंबर निकाल कर किसी को फोन करेंगे तब तक बहुत देर हो जाएगी. ऐसी स्थिति से निबटने के लिए विद यू ऐप आप का साथ निभाएगा. क्योंकि इस का पावर बटन 2 बार दबाने पर अलर्ट मैसिज जैसे ‘आई एम इन डैंजर’ हर 2 मिनट में आप के रजिस्टर्ड इमरजैंसी नंबर्स को मैसिज विद करंट लोकेशन के साथ भेजेगा, जिस से आप खतरे से बच सकती हैं.

स्क्रीम अलर्ट

यह फ्री सैफ्टी ऐप है जो ऐसा कार्य करता है कि सुनने वाला तुरंत अलर्ट हो जाए और पीडि़त व्यक्ति की मदद के लिए हाथपैर दौड़ाने शुरू कर दे. जैसे ही आप इमरजैंसी की स्थिति में इस का पावर बटन दबाएंगी वैसे ही महिला की आवाज में सुनने वाले को चिल्लाने की आवाजें आनी शुरू हो जाएंगी, जो आप खतरे में है का मैसिज देने के लिए काफी है.

स्मार्ट 24×7

स्मार्ट 24×7 ऐप को युवतियों और वृद्धों की सुरक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है, जिसे कई राज्यों की पुलिस ने भी कारगर माना है. यह ऐप संदिग्ध परिस्थिति में इमरजैंसी कौंटैक्ट्स को पैनिक अलर्ट भेजता है. साथ ही इस में वौइस रिकौर्ड और फोटोज ले कर पुलिस के साथसाथ इमरजैंसी कौल सैंटर को भी भेजने की सुविधा रहती है. इस में यूजर को सिर्फ पैनिक बटन दबा कर उसे कौन सी सर्विस चाहिए उसे चुन कर अपनी सहमति दर्ज करनी होती है.

शेक टू सेफ्टी

भले ही इस ऐप का नाम थोड़ा बड़ा है लेकिन यह इस्तेमाल करनें में उतना ही आसान है. इस में यूजन को सिर्फ अपने स्मार्टफोन को हिलाना या फिर पावर बटन को 4 बार दबाना होगा जिस से एसओएस टैक्स्ट या फिर रजिस्टर्ड नंबर्स पर कौल चली जाएगी. यह स्क्रीन लौक होने पर भी वर्क करेगा. लेकिन इस में आप को फोन को हिलाने या फिर पावर बटन दबाने के औप्शन को चुनना होगा.

पुकार

यह करंट लोकेशन के साथ इमरजैंसी कौंटैक्ट्स को थोड़ीथोड़ी देर बाद एसएमएस अलर्ट भेजता रहता है. और यह भी बताता है कि फोन साइलैंट पर होने के कारण उस अलर्ट मैसिज पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

सेफ्टीपिन

जैसा ऐप का नाम है वैसा ही ऐप का काम है यानी यह ऐप युवतियों को सुरक्षा प्रदान करता है. इस में सभी महत्वपूर्ण फीचर्स जैसे जीपीएस ट्रेकिंग, इमरजैंसी कौंटैक्ट नंबर्स, सेफ जगहों की जानकारी, मानचित्र के माध्यम से पिन्स सेफ और अनसेफ जगहों को दर्शाती है आदि शामिल होते हैं. इस से खतरों को टाला जा सकता है.

सर्किल औफ 6

सर्किल औफ 6 ऐप का मतलब अपने इस सर्किल में 6 विश्वासयोग्य फ्रैंड्स को ऐड करना होगा जो मुसीबत की घड़ी में आप को बाहर निकाल सकें. बस इसे औन करने की देर होगी और यह औटोमैटिकली एसएमएस अलर्ट उन्हें भेज देगा. तो हुआ न यह ऐप बड़े काम का.

आई एम शक्ति ऐप

शक्ति ऐप का खतरे की स्थिति में इस्तेमाल करने के लिए आप की 2 मिनट के भीतरभीतर 5 बार पावर बटन को प्रैस करना होगा जिस से अलर्ट एसएमएस जीपीएस लोकेशन के साथसाथ आप के इमरजैंसी कौंटैक्ट्स के पास पहुंच जाए.

हिम्मत

हिम्मत से बढ़े चलो चाहे कितनी भी बाधाएं आएं, डरो नहीं. यह बात हिम्मत ऐप के संदर्भ में सटीक बैठती है, क्योंकि जिस युवती के मोबाइल में यह ऐप डाउनलोड होता है वह घबराती नहीं बल्कि मुकाबला करती है.

युवतियों की सुरक्षा के लिए इस ऐप को बनाने की सिफारिश दिल्ली पुलिस ने की थी. इसलिए अगर आप इस ऐप को यूज करना चाहते हैं तो आप को दिल्ली पुलिस की वैबसाइट पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा और जैसे ही रजिस्ट्रेशन पूरा होगा वैसे ही आप को ओटीपी यानी वनटाइम पासवर्ड मिलेगा जिसे आप को ऐप को डानलोड करने के समय मांगे गए नंबर में भरना होगा.

इस से जेसे ही यूजर मुसीबत की घड़ी में बटन दबाएगा वैसे ही उस की लोकेशन, औडियोवीडियो डायरैक्ट दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम तक पहुंच जाएगी जिस से पुलिस वहां पहुंच पाएगी.

इस तरह इन ऐप्स का यूज कर के आप अपनी सुरक्षा खुद कर सकती हैं.

सब पर चलाएं मैजिक: सनी लियोनी

सफलता के लिए सैक्सुअली आकर्षण का होना जरूरी है. यह बात केवल ग्लैमर वर्ल्ड के लिए ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में इस का असर देखने को मिलता है. हर कोई चाहे वह पुरुष हो या महिला इस की चाहत रखता है. यही सोच फिल्म अभिनेत्री सनी लियोनी भी रखती हैं. 2011 से बौलीवुड में कदम रख चुकी इस अभिनेत्री ने अपनी एक खास जगह बना ली है. उन्हें आज हर तरह की फिल्म और टीवी शो में काम करने का मौका मिल रहा है. वे खुद को धन्य मानती हैं कि आज उन का नाम हर निर्मातानिर्देशक जानता है. उन की इस कामयाबी के पीछे उन का सैक्सी लुक है, जिस की मांग आजकल फिल्मकारों को होती है.

कनाडा के ओंटारिओ में जन्मीं सनी लियोनी का असली नाम करनजीत कौर वोहरा है. सनी के पिता चंडीगढ़ के पंजाबी सिख हैं और मां हिमाचल प्रदेश के सिरमौर की हैं. बचपन से ही सनी चुस्त थीं, हमेशा युवकों के साथ हौकी खेलती थीं. आइस स्केटिंग उन्हें काफी पसंद था. जब करनजीत 13 वर्ष की थीं तब उन के मातापिता अमेरिका के कैलिफोर्निया में जा कर बस गए. उन की पढ़ाई वहीं पूरी हुई. सनी की इच्छा थी कि वे नर्स बनें. डाक्टर के काम से वे नर्स के काम को ज्यादा अहम मानती थीं. इस के लिए उन्होंने नर्सिंग का कोर्स भी किया. कोर्स के दौरान अपनी फ्रैंड के कहने पर वे मौडलिंग के लिए एक फोटोग्राफर से मिलीं और एक मैगजीन के कवर पर भी स्थान प्राप्त कर लिया. यहीं से उन की पोर्न की नींव पड़ी. सनी ने 21 साल की उम्र में पोर्न इंडस्ट्री में कदम रखा. मैगजीन के कवर पेज पर फोटो प्रकाशित होने के बाद सनी के पास औफर्स की भरमार लग गई. अमेरिका के सब से बडे़ पोर्न प्रोडक्शन हाउस से सनी को 3 साल का ऐग्रीमैंट मिला. साथ ही उन्हें पोर्न फिल्म इंडस्ट्री में भी ऐंट्री मिली.

उस दौरान सनी 35 पोर्न फिल्मों की हीरोइन बनीं और 25 पोर्न फिल्मों का उन्होंने निर्देशन किया. शुरूशुरू में वे केवल समलैंगिक पोर्न फिल्में ही किया करती थीं, जिन में वे सिर्फ युवतियों के साथ अभिनय करती थीं, लेकिन बाद में उन की पौपुलैरिटी देख कर उन्हें पुरुषों के साथ भी फिल्में करने के औफर मिलने लगे. अंत में वे पुरुषों के साथ फिल्म करने को राजी हुईं. उस ने मैट एर्रिक्सन के साथ कुछ फिल्में कीं.

मैट काफी दिनों तक उन के मंगेतर भी रहे, लेकिन जब उन्होंने दूसरे पुरुषों के साथ पोर्न फिल्में करनी शुरू कीं तो उन का रिश्ता टूट गया और सनी अब अपना प्रोडक्शन हाउस चला रहे डेनियल वीबर से मिलीं, उन के साथ कई फिल्में कीं और आज वे उन के पति हैं, जो उन का पूरा काम देखते हैं. सनी भारत बिग बौस टीवी शो के जरिए आईं, जहां वे 49 दिन रहीं. वहीं निर्मातानिर्देशक महेश भट्ट ने उन्हें फिल्म ‘जिस्म टू’ का औफर दिया, जिसे उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया. यहीं से उन का बौलीवुड का सफर शुरू हुआ. इस के बाद ‘रागिनी एमएमएस टू’, ‘एक पहेली लीला’, ‘मस्तीजादे’, ‘वन नाइट स्टैंड’ आदि फिल्मों में काम किया. उन्हें हिंदी बोलना और समझना अच्छी तरह आता है, वे यूथ की पसंदीदा ऐक्टै्रस हैं, इसलिए ‘स्प्लिटविला 9’ में एक बार फिर शो होस्ट कर रही हैं, उन से मिल कर बात करना रोचक था. पेश हैं, सनी से हुई बातचीत के मुख्य अंश :

इस शो से जुड़ने की वजह और आप का सैक्सी लुक कितना आकर्षित करता है?

मुझे इस शो की थीम पसंद आई. मैं अपने सैक्सी लुक पर अधिक ध्यान नहीं देती, लेकिन इसी लुक की वजह से मैं इस शो का हिस्सा बनी हूं. इस शो के सभी युवक और युवतियां गुडलुकिंग हैं. सारे युवक सिक्स पैक वाले हैं. सब की अच्छी बौडी है. युवतियां भी सुंदर हैं.

लव में शारीरिक आकर्षण का होना कितना आवश्यक होता है?

सब से पहले आप उस की पर्सनैलिटी को ही देखते हैं. उस की कदकाठी, चेहरा, हेयरस्टाइल सबकुछ. उस के बाद ही उस से प्यार होता है. अगर वही सही नहीं है तो आकर्षण कैसा?

आप ने हिंदी कैसे सीखी, जबकि आप विदेश में पलीबढ़ीं?

मैं ने हिंदी का टीचर रखा था. मेरे लिए हर कोई ट्यूटर है. स्टाफ से ले कर टीम के सभी लोगों से मैं कुछ न कुछ हमेशा सीखती हूं.

विदेश और इंडिया की फिल्म इंडस्ट्री में क्या अंतर पाती हैं?

बहुत अंतर है. दोनों एकदम अलग हैं. यहां मुझे अधिकतर काम अपनी फिगर पर मिल रहा है, जबकि अमेरिका में मेरी अलग पहचान थी. मैं ने कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे यहां इतना काम मिलेगा. मेरे लिए यहां काम करना ‘ड्रीम कम ट्रू’ वाली बात है.

अब तक की जर्नी कैसी रही?

5 साल की इस जर्नी में बहुत सारे उतारचढ़ाव आए, जिन से मैं ने काफी कुछ सीखा. लोग मेरी पिछली जिंदगी के बारे में पूछते हैं. लेकिन उस दौरान मुझे जो काम मिला मैं ने कर्मठता से उसे पूरा किया. तब मुझे वह ठीक लगा. अब नहीं लगता इसलिए कुछ अलग करने की कोशिश कर रही हूं. जब आप सैलिब्रिटी होते हैं तो आप की जिंदगी एक खुली किताब होती है. आप कुछ भी छिपा नहीं सकते. मैं एक बात और कहना चाहती हूं कि सैक्सुअली अट्रैक्टिव होने के साथसाथ अगर आप नौलेज भी अच्छीखासी रखते हैं तो अधिक से अधिक लोग आप के दीवाने बन जाएंगे.

यहां की संस्कृति से आप कैसे सामंजस्य बैठाती हैं?

मैं रियल लाइफ में पंजाबी हूं, मुझे यहां के संस्कार पता हैं. यहां का फूड मैं बहुत पसंद करती हूं. काम के समय कुछ भी खा लेती हूं. पर फ्राइडे व सैटरडे को पिज्जा नाइट या इटालियन फूड का दिन होता है, जबकि संडे को साधारण खाना खाती हूं. मेरे घर का माहौल हमेशा पंजाबी रहा है. मेरे घर में हमेशा मेरी मां पंजाबी खाना बनाती थीं.

एडल्ट फिल्मों से फैमिली फिल्मों में आने की अपनी इमेज को आप कैसे देखती हैं?

मैं ने कभी अपनी इमेज को बदलना नहीं चाहा. मुझे अपने जीवन से प्यार है. मैं जो भी हूं उस में खुश हूं. मैं ने हर तरह के अभिनय किए. अभी मेरी सारी फिल्में सीरियस परफौर्मैंस वाली हैं, एडल्ट नहीं. अगर दर्शकों को वे पसंद आएंगी तो मैं वैसी और भी फिल्में करूंगी.

एडल्ट फिल्मों में धर्म की दखलंदाजी कितनी होती है, फिर चाहे वह फिल्म विदेशी हो या स्वदेशी?

हर जगह सैंसरशिप है. यहां पर सवा अरब लोग हैं, इसलिए आवाज तेज होती है. विदेश में भी लोग हंगामा करते हैं और मैं इसे सही मानती हूं. अगर आप की उम्र 18 वर्ष है तो आप एडल्ट फिल्म अवश्य देखें, क्योंकि लाइफ की नैचुरल चीजों को जानना भी जरूरी है. लेकिन ये फिल्में समाज को गलत राह पर ले जा रही हैं, इसे मैं नहीं मानती, क्योंकि शोर मचाने वाले लोग ही ऐसी फिल्में अधिक देखते हैं.

आप की यंग जनरेशन से कितनी प्रतियोगिता है, जबकि आप की उम्र अब बढ़ रही है?

मैं ने हर काम उलटा किया और अब इंडस्ट्री में आई हूं लेकिन काम मिल रहा है. मेरे हिसाब से महिला को खुद तय करना पड़ता है कि कब वह शादी करे, कब बच्चा पैदा करे और कब काम करे. आज की जनरेशन यही चाहती है और करती भी है. लिमिटेशंस क्यों हों कि हम यह करें और वह न करें. ये सब हम खुद तय करते हैं. मैं ने शादी की और अब फिल्में कर रही हूं. मेरी किसी से कोई प्रतियोगिता नहीं है.

क्या बौलीवुड में आप की कोई फ्रैंड है?

मैं अभी यहां कुछ ऐसे लोगों से मिली हूं, जिन से मैं पहले कभी मिली नहीं थी. इन में प्रियंका चोपड़ा खास हैं.

आप का ड्रीम क्या है?

मेरे फ्रैंड्स व फैमिली स्वस्थ और सुरक्षित रहें और मैं अच्छा काम कर के सब का दिल जीतूं. मेरी निर्देशक संजय लीला भंसाली के साथ काम करने की इच्छा है.

कुछ मलाल रह गया है?

व्यक्तिगत रूप से ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं ने जो भी किया अपनी मरजी से किया. मुझे लगा कि उस समय वही सही था. मुझे किसी ने यह नहीं कहा कि आप को यही करना है. मेरी लाइफ बहुत अच्छी है और मैं इस से खुश हूं.

अभी आप को शाहरुख खान के साथ फिल्म ‘रईस’ में एक गाना फिल्माने का मौका मिला. क्या इसे आप अपने कैरियर का अच्छा समय मानती हैं?

अवश्य, क्योंकि मैं न तो फिल्म इंडस्ट्री से थी और न ही यहां कोई मेरा अपना है. ऐसे में जब मुझे शाहरुख खान का फोन आया तो मैं चौंक गई और पूछने लगी कि क्या आप सही में सनी को ही फोन लगा रहे हैं? मुझे उन के साथ काम करने का मौका पा कर अच्छा लगा. अभी अरबाज खान के साथ भी एक फिल्म कर रही हूं.

कोई दूसरी लिसा नहीं बन सकती: लिसा हेडन

अपने बोल्ड अंदाज के लिए मशहूर हीरोइन लिसा हेडन एक मौडल और भरतनाट्यम डांसर हैं. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म ‘आयशा’ से की थी, जिस का औफर अनिल कपूर ने उन्हें एक रैस्टोरैंट में देख कर दिया था. इस के बाद उन्होंने फिल्म ‘क्वीन’ में सिंगल मदर का किरदार निभाया था. इस फिल्म में उन की ऐक्टिंग की खूब तारीफ हुई थी. फिर उन्होंने फिल्म ‘शौकीन’ में काम किया और फिर ‘हाउसफुल 3’ में दिखाई दीं.

पेश हैं, लिसा हेडन से हुई बातचीत के खास अंश:

फिल्म ‘हाउसफुल 3’ में इतने सारे सितारों के साथ काम करने का तजरबा कैसा रहा?

बहुत अच्छा था, लेकिन पहली बार इतने कलाकारों के साथ एक कौमेडी फिल्म में काम करना मेरे लिए बड़ी बात थी. मेरी जिम्मेदारी इस में ज्यादा थी, क्योंकि मुझे सब के साथ सही तालमेल के साथ ऐक्टिंग करनी थी. मैं ने नरगिस और जैकलीन के साथ अच्छा समय बिताया था.

आप को ऐसा नहीं लगा कि इतने बड़े कलाकारों में आप कहीं छिप न जाएं?

मुझे फिल्म की सारी बातें पता थीं. सभी कलाकारों के लिए इस में करने के लिए कुछ न कुछ था, क्योंकि यह 6 कलाकारों की फिल्म थी. यह एक टीम की फिल्म थी, कोई ज्यादा या कोई कम नहीं.

कौमेडी करना आप को कितना पसंद है?

मुझे कौमेडी करना बहुत पसंद है. इसे करने में मजा आता है. मेरे लिए यह एक नया जोनर है. मेरे हिसाब से कौमेडी हर दुखी इनसान को सुकून देती है, उसे हंसा सकती है. आज के माहौल में यह बहुत जरूरी है.

कोई फिल्म आप को आगे बढ़ने में कितना सहयोग देती है?

फिल्म ‘क्वीन’ से पहले लोग यह नहीं समझ पाते थे कि मैं ऐक्टिंग कर पाऊंगी. फिल्म ‘क्वीन’  मेरे लिए एक मौका था यह दिखाने का कि मैं केवल एक मौडल ही नहीं, बल्कि कलाकार भी हूं. फिल्म ‘आयशा’ में मेरा किरदार बहुत छोटा था. इस फिल्म में मुझे अपना हुनर दिखाने का मौका नहीं मिला. वैसे, ‘क्वीन’ ही मेरी ऐसी पहली फिल्म थी, जिस में मैं अपनेआप को साबित कर पाई. उस के बाद लोगों ने यह सोचना बंद कर दिया कि मैं उन की फिल्म में काम कर पाऊंगी या नहीं. आज मैं यह सोचती हूं कि मुझे कोई भी किरदार मिले, मैं अच्छा काम करूंगी.

आप बौलीवुड के कौनकौन से डायरैक्टरों के साथ काम करना चाहती हैं?

लिस्ट बहुत बड़ी है. मेरे हिसाब से एक अच्छा डायरैक्टर एक अच्छे कलाकार को जन्म देता है. मैं करन जौहर, साजिदफरहाद, विशाल भारद्वाज, जोया अख्तर वगैरह के साथ काम करना चाहती हूं.

बौलीवुड में गौडफादर न होने पर काम मिलना कितना मुश्किल होता है?

मेरे हिसाब से अगर आप अच्छा काम करते हैं और अगर वह किरदार आप के ऊपर फिट बैठता है, तो कोई और उस रोल को नहीं कर सकता. कोई दूसरी लिसा हेडन नहीं बन सकती.

आप की खूबसूरती का क्या राज है?

जल्दी सो जाना और खूब पानी पीना. मेरी जिंदगी का मूल मंत्र है कि माइंड को फ्री कर के काम करें.

साल भर लीजिए गन्ने के रस का स्वाद

गन्ने का रस आमतौर पर गन्ने के सीजन में ही मिलता था. सड़कों पर ठेला गाडि़यों पर इस को बेचने का काम होता है. गन्ने का रस निकालने वाली मशीनें कई तरह की होती हैं. इन में कुछ को बिजली की मोटर से चलाया जाता है, तो कुछ को हाथ से भी चलाया जाता है. गन्ने को ठीक तरह से धोने के बाद मशीन में डाला जाता है, जिस से उस का रस निकलता है. गन्ने के रस को और स्वादिष्ठ बनाने के लिए उस में नीबू, पुदीना और काला नमक मिलाया जाता है. अब सड़कों की जगह पर जूस की बड़ीबड़ी दुकानों पर भी गन्ने का रस मिलने लगा है. जूस की बड़ी दुकानों में गन्ने को छील कर उस का जूस निकाला जाता है. अब यह साल भर मिलने लगा है. सड़कों पर जो गन्ने का रस 5 से 10 रुपए प्रति गिलास मिलता है, बड़ी जूस की दुकानों पर वह 40 रुपए प्रति गिलास बिकता है.

कई गन्ना किसान अब अपने खेत में लंबे समय तक गन्ना रखते हैं ताकि बेमौसम गन्ना बेच कर मुनाफा कमा सकें. रसदार प्रजाति के गन्ने की मांग जूस के लिए सब से ज्यादा होती है. गन्ने का जूस बेचने के लिए केवल जूस निकालने की मशीन, गन्ना और एक छोटी अच्छी जगह की जरूरत होती है. लखनऊ में ‘गन्नेवाला’ नाम से जूस की एक दुकान है, जिस में साल भर गन्ने और दूसरी किस्म के जूस मिलते हैं. दरअसल, समय के साथसाथ लोगों को गन्ने के जूस के फायदे पता चलने लगे हैं, जिस की वजह से साल भर गन्ने के जूस की मांग रहती है. केवल एक जगह पर ही नहीं, शहर के दूसरे हिस्सों में भी बेमौसम गन्ने के जूस की खपत होती है. ऐसे में गन्ने के जूस का कारोबार बढ़ने लगा है, जिस से गन्ना किसानों को ज्यादा फायदा होने की संभावना बढ़ गई है. अब गन्ने की खेती केवल चीनी, खांडसारी और गुड़ पर ही निर्भर नहीं रह गई है. गन्ने का जूस नई संभावना के रूप में देखा जा रहा है. जानकार लोगों का कहना है कि गन्ने का जूस जिस तरह से फायदेमंद होता है, उस से इस का प्रचलन दिनोंदिन बढ़ता जाएगा. यह एक अच्छे कारोबार के रूप में उभरेगा. गन्ने के रस को बेचने में दोगुना मुनाफा होता है. ऐसे में इस को बेचने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है.

थकान से भरे दिन में 1 गिलास गन्ने का रस मिल जाए तो आप को स्वाद भरी ताजगी मिल जाती है. गन्ने का रस बहुत ही सेहतमंद और गुणकारी पेय है. इस में कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन, मैग्नीशियम और फास्फोरस जैसे जरूरी पोषक तत्त्व पाए जाते हैं. इन से हड्डियां मजबूत बनती हैं और दांतों की समस्या भी कम होती है. गन्ने के रस के ये पोषक तत्त्व शरीर में खून के बहाव को भी सही रखते हैं. वहीं इस रस में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से लड़ने की ताकत भी होती है. 

गन्ने का रस पीने के फायदे

गन्ने के रस में मौजूद कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन और मैग्नीशियम की मात्रा इस के स्वाद को क्षारीय मतलब खारा करती है. इस रस में मौजूद ये तत्त्व कैंसर से बचाते हैं. गन्ने का रस कई तरह के कैंसर से लड़ने में मददगार है. प्रोस्टेट और स्तन कैंसर से लड़ने में भी इसे कारगर माना जाता है.

हाजमा ठीक रखता है

गन्ने के रस में पोटैशियम की अधिक मात्रा होने की वजह से यह शरीर के पाचनतंत्र के लिए बहुत फायदेमंद है. यह रस हाजमा सही रखने के साथसाथ पेट में संक्रमण होने से भी बचाता है. गन्ने का रस कब्ज की समस्या को भी दूर करता है.

मक्का थ्रैसर हो या मल्टीक्रौप थ्रैसर गहाई से करें कमाई

फसलों की गहाई में आज थ्रैसर की खास अहमियत है. जो काम आम तरीके से करने में काफी समय लगता था, वही काम अब मशीनों ने आसान कर दिया?है. आज बाजार में कई प्रकार के मल्टीक्रौप थ्रैसर मौजूद हैं, जिन के पुर्जों में हलका सा बदलाव कर के या चलाते समय उन को इस्तेमाल करने की तकनीक को थोड़ा हेरफेर कर के कई अलगअलग फसलों की गहाई आसानी से की जा सकती?है. मक्का, सोयाबीन,?ज्वार, बाजरा, सरसों, मूंग, चना, उड़द वगैरह फसलों की गहाई अच्छी क्वालिटी वाले थ्रैसर से की जा सकती है.

अगर हम अच्छी मशीन इस्तेमाल नहीं करते?हैं, तो हमें अपने अनाज में टूटफूट ज्यादा मिलेगी या साथसुथरा अनाज नहीं मिलेगा, इसलिए अनाज में टूटफूट से बचाव के लिए गहाई मशीन यानी थ्रैसर मशीन का सही चयन करना जरूरी है. कुछ मशीन निर्माता कुछ खास फसलों के लिए खास थ्रैसर भी बनाते हैं. आज तमाम कंपनियां थ्रैसर बना रही हैं, जिन में साइको एग्रोटेक कंपनी योद्धा के नाम से थ्रैसर बना रही है. इस के अलावा अमर मक्का थ्रैसर, ग्रिल एग्रो आदि अनेक कंपनियां मक्का थ्रैसर व मल्टी क्रौस थ्रैसर बना रही हैं. कुछ कृषि यंत्र निर्माता अलगअलग अनाज के लिए खास थ्रैसर भी बनाते हैं. चूंकि ऐसे थ्रैसर किसी खास फसल के लिए ही बनाए जाते हैं, तो जाहिर है कि उन से बेहतर नतीजे मिलेंगे. आइए जानते?हैं मक्का थ्रैसर में बारे में, जिसे खासतौर पर मक्के की गहाई के लिए बनाया गया है.

प्रकाश मक्का थ्रैसर

इस थ्रैसर के बाबत हमारी बात अनिल कुमार गर्ग से हुई जिन्होंने बताया, ‘हम किसानों के लिए कई कृषि यंत्र तैयार कर रहे?हैं. आज के समय में ज्यादातर किसान हमारे द्वारा बनाए गए कृषि यंत्रों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं. यह थ्रैसर हम ने खासतौर से मक्के की गहाई के लिए बनाया है. इसे 45 हार्सपावर के किसी भी ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाया जा सकता?है. इसे 35 हार्सपावर के ट्रैक्टर के साथ भी चला सकते हैं, लेकिन तब अनाज की गहाई की कूवत कम हो सकती?है.

‘हमारे इस प्रकाश मक्का थ्रैसर की कीमत 1 लाख 20 हजार रुपए से 1 लाख 30 हजार रुपए तक?है. 1-2 साल में ही कमाई कर के यह थ्रैसर अपनी कीमत वसूल कर देत है. ‘हमारे इस थ्रैसर की मांग उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे तमाम राज्यों में है. कोई भी किसान इस थ्रैसर के बारे में जानने के लिए मोबाइल नंबर 9897591803 पर फोन कर सकता है.’

गणेश राज थ्रैसर

गणेश एग्रो कंपनी के पास  गेहूं, मक्का, ज्वार, जीरा, धनिया, सरसों, चना, सौंफ, अरंड, सोयाबीन, ग्वार व चावल आदि की गहाई के लिए कई मौडल मौजूद हैं. कंपनी का कहना?है कि उस के पास हैवी चैसिस व हैवी फ्लाई व्हील के साथ थ्रैसर मौजूद हैं. दानेदाने की शुद्धता की गारंटी है. आप गणेश एग्रो कंपनी में?टौल फ्री नंबर 18001200313 पर या 912764273442, 267446 पर फोन कर के अधिक जानकारी ले सकते हैं.

अमर मल्टी क्रौप थ्रैसर 

35 से 40 हौर्स पावर और अधिक कूवत वाले ट्रैक्टर से चलने वाले थ्रैसर इस कंपनी में भी मौजूद हैं. प्रोडक्ट क्वालिटी के लिए इस कंपनी को साल 1993 में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है. कंपनी में कई प्रकार के थ्रैसर मौजूद हैं, जिन की कीमत 20 हजार रुपए से ले कर सवा लाख रुपए तक?है. ये थ्रैसर 5 हौर्स पावर मोटर से ले कर 80 हौर्स पावर तक के ट्रैक्टर के साथ चलाए जा सकते हैं. इस कंपनी के जगदेव सिंह का कहना?है कि उन के मल्टी क्रौप थ्रैसर से धान को छोड़ कर सभी फसलों की गहाई की जा सकती है. थ्रैसर के साथ बुकलेट दी जाती है, जिस में पूरी जानकारी होती?है कि किस अनाज के लिए थ्रैसर से किस तरह से काम लेना है. थ्रैसर में क्याक्या बदलाव करना है, यह जानकारी भी दी होती है. ज्यादा जानकारी के लिए अरविंद सिंह के मोबाइल नंबर 09780000067 और जगदेव सिंह के मोबाइल नंबर 098726579 और बलदेव सिंह के मोबाइल नंबर 09872018040 पर बात की जा सकती है.

पशु बीमा योजना : किसानों का हुआ मोहभंग

सरकार द्वारा दी जा रही छूट कम कर दिए जाने और किस्त पर सर्विस टैक्स लगाने से महंगे पशुओं का बीमा कराने से किसानों व पशुपालकों का मोहभंग हो गया है. इस के चलते सरकार द्वारा पशु अस्पतालों को दिए गए सालाना टारगेट भी कई जगहों पर पूरे होते नजर नहीं आ रहे हैं. पशु सेहत महकमा के अफसरों द्वारा किसानों को योजना के फायदे नहीं बताने से भी पशुपालक व किसान पशुओं का सरकारी बीमा कराने से कतरा रहे हैं.

पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने पशुधन बीमा योजना शुरू की थी. 2 साल पहले तक किस्त की राशि पर 75 फीसदी तक छूट सरकार द्वारा दी जाती थी. छूट ज्यादा होने के कारण किसान अपने पशुओं का बीमा कराने के लिए आसानी से तैयार हो जाते थे. महंगे पशुओं की मौत होने पर क्लेम का पैसा मिलने के कारण किसानों को काफी राहत भी मिलती थी. लेकिन अब सरकार ने किस्त पर मिलने वाली रकम को 75 फीसदी से घटा कर 50 फीसदी कर दिया है.

इस के अलावा किस्त के पैसे पर भी बीमा कंपनी द्वारा 4 फीसदी से बढ़ा कर 14 फीसदी तक सर्विस टैक्स लगा दिया गया है. इतना ही नहीं. बीमा कंपनी द्वारा किसानों से किस्त तो पूरी वसूली जाती है, लेकिन किसानों को बीमा कराने के लिए तैयार पशु चिकित्सकों को ही करना पड़ता है. इस के लिए उन्हें किसी तरह का कमीशन भी बीमा कंपनी की ओर से नहीं दिया जाता है. यही वजह है कि पशु डाक्टर भी अब किसानों व पशुपालकों के पशुओं का बीमा कराने के मामले में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. नतीजा यह है कि इस से बीमा का टारगेट ही पूरा नहीं हो पा रहा है.    

पशुधन बीमा योजना का मकसद

पशुधन बीमा योजना सरकार द्वारा चलाई जा रही एक योजना है, जो 10वीं पंचवर्षीय योजना के साल 2005-06 व 2006-07 में प्रयोग के तौर पर देशभर के 100 जिलों में लागू की गई थी. इस योजना की शुरुआत  किसानों व पशुपालकों को पशुओं की मौत के कारण हुए नुकसान से सुरक्षा मुहैया कराने व पशुधन व उन के उत्पादों के गुणवत्तापूर्ण विकास के लिए की गई थी. योजना के तहत दूध देने वाले मवेशियों का बीमा उन की उस समय की बाजार की कीमत के आधार पर किया जाता है. बीमा का पैसा 50 फीसदी तक दान दिया जाता है. अनुदान का पूरा पैसा केंद्र सरकार देती है.

कीमती पशुओं का नहीं होता है बीमा

ध्यान देने वाली बात तो यह है कि बीमा कंपनी के अनुसार 60000 रुपए कीमत तक के ही पशुओं का बीमा किया जाता है. जबकि वर्तमान में भैंसों की कीमत 60000 रुपए से ले कर 1 लाख रुपए से भी ज्यादा है. सरकारी बीमा कराने से मोहभंग होने का एक बड़ा करण यह भी है. गौरतलब है कि किसान अधिकतर केवल भैंसों का या फिर जर्सी गायों का ही बीमा कराते हैं. देशी गायों व बकरियों वगैरह का बीमा किसान किसी भी कीमत पर कराने को तैयार नहीं होते हैं. 60000 रुपए की कीमत के पशु का बीमा कराने पर प्रीमियम 1800 रुपए बनता है. इस में से 50 फीसदी यानी 900 रुपए किसान को देना होता है. इस पर शासन की ओर से 14 फीसदी सर्विस टैक्स लगा दिए जाने से किसान को 1152 रुपए देने पड़ते हैं. इस के बावजूद क्लेम लेने के लिए किसानों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है.

संक्रामक बीमारी से मौत पर नहीं मिलता क्लेम

बेहद दिलचस्प बात तो यह है कि ज्यादातर पशुओं की मौत संक्रामक बीमारियां फैलने के कारण होती है, लेकिन बीमा कंपनी की शर्तों में खुरपका, मुंहपका, गलघोंटू आदि बीमारियों के अलावा भैंस की चोरी हो जाने और करंट से पशु की मौत हो जाने पर भी बीमा हुए पशु का क्लेम देने का नियम नहीं है.

नहीं मिला टारगेट

जयपुर जिले के चाकसू ब्लाक के पशु चिकित्साधिकारी ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि कंपनी की कड़ी शर्तों की वजह से टारगेट पूरा करने में परेशानी आ रही है. पशुओं का बीमा यूनाइटेड इंश्योरेंस कंपनी द्वारा किया जाता है, लेकिन इस साल जयपुर जिले के चिकित्साधिकारी व विभाग को बीमा कंपनी की ओर से कोई टारगेट नहीं दिया गया है. ओमप्रकाश ने आगे बताया कि पिछले 2 सालों से जयपुर जिले समेत प्रदेश के तकरीबन सभी इलाकों में यह योजना बंद सी पड़ी है. केवल दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों द्वारा ही पशुओं का बीमा किया जा रहा है. इस से किसान व पशुपालक सरकार द्वारा दी जाने वाली छूट का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं. साथ ही दूध देने वाले पशुओं के अलावा दूसरे पशुओं को भी फायदा नहीं मिल पा रहा है.

ऐसे करें सितंबर में मुख्य खेतीबारी

जमीन और मौजूदा साधनों के मुताबिक अलगअलग इलाकों में अलगअलग खेती हो सकती है, लेकिन यह जरूर तय हो जाता है कि किस महीने में किसान कौन सी फसल की पैदावार करें. इस का तरीका यदि तकनीकी ज्ञान, उचित देखरेख व प्रबंधन वाला भी हो, तो बेहतर उपज पाई जा सकती है. सितंबर का महीना खेतीबाड़ी के लिहाज से खास माना जाता है. इस में कुछ बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए.

धान : धान में नाइट्रोजन की दूसरी व आखिरी टाप ड्रेसिंग बाली बनने की शुरुआती स्थिति (रोपाई के 50-55 दिनों बाद) में ज्यादा उपज वाली प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम (65 किलोग्राम यूरिया) व सुगंधित प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 15 किलोग्राम (33 किलोग्राम यूरिया) की दर से करें. खेत में टाप ड्रेसिंग करते समय 2-3 सेंटीमीटर से अधिक पानी नहीं होना चाहिए. धान में बालियां फूटने व फूल निकलने के समय सही नमी बनाए रखने के लिए जरूरत के अनुसार सिंचाई करें.

तना छेदन की रोकथाम के लिए ट्राइकोग्रामा नाम के परजीवी को 8-10 दिनों के अंतर पर छोड़ना चाहिए या प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम कार्बोफ्यूरान दवा का इस्तेमाल करें. इस के अलावा क्लोरापायरीफास 20 ईसी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.

धान के भूरे फुदके से बचाव के लिए खेत से पानी निकाल दें. नीम आयल 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. जीवाणुधारी रोग व जीवाणु झुलसा रोग की रोकथाम के लिए पानी निकाल दें. नाइट्रोजन की टाप ड्रैसिंग बंद कर दें.

एग्रीमाइसीन 100 का 75 ग्राम या स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 15 ग्राम व 500 ग्राम कौपर आक्सीक्लोराइड को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतर पर 2-3 बार छिड़काव करें. भूरा धब्बा रोग की रोकथाम के लिए जिंक मैगनीज कार्बामेट 75 फीसदी 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

मक्का : मक्का में ज्यादा बरसात होने पर पानी के निकलने का इंतजाम करें. फसल में नर मंजरी निकलने की अवस्था व दाने की दूधियावस्था सिंचाई के लिहाज से खास है. यदि बारिश न हुई हो या खेत में नमी की कमी हो, तो किसानों को सिंचाई कर देनी चाहिए.

ज्वार : किसानों को ज्वार से उपज लेने के लिए बारिश न होने पर नमी की कमी होने पर बाली निकलने के समय और दाने भरते समय सिंचाई कर देनी चाहिए. ज्वार में अर्गट व शर्करीय रोग हो जाते हैं. इन की रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए. थीरम का 0.15 फीसदी घोल बना कर फूल आने के समय से 7 से 10 दिनों के अंतर पर 2-3 बार छिड़काव कर देना चाहिए. दूसरे छिड़काव के दौरान उक्त दवा के साथ 0.1 फीसदी कार्बरिल नामक कीटनाशी को मिला देना चाहिए.

बाजरा : बाजरे की उन्नत व संकर प्रजातियों में नाइट्रोजन की बाकी आधी मात्रा यानी 40-50 किलोग्राम (87-107 किलोग्राम यूरिया) की टाप ड्रेसिंग बोआई के 25 से 30 दिनों बाद कर देनी चाहिए.

मूंग/उड़द : इस की उन्नत फसल के लिए खेत का सही रहना बहुत जरूरी है. यदि बारिश कम होती है, तो किसानों को कलियां बनते समय पर्याप्त नमी को बनाए रखने के लिए सिंचाई करनी चाहिए. फलीछेदक कीट की सूडि़यां जो फली के अंदर छेद कर के दानों को खाती हैं, की रोकथाम के लिए निबौली का 5 फीसदी या क्यूनालफास 25 ईसी  की 1.25 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

सोयाबीन : इस फसल की बेहतर उपज के लिए बारिश न होने पर किसान फूल व फली बनते समय सिंचाई करें. सोयाबीन में पीला मोजैक नामक बीमारी हो जाती है. इस की रोकथाम के लिए पौधों की सही जांचपड़ताल कर लें. ज्यादा प्रभावित हुए पौधों को निकाल दें, जबकि कम प्रभावित पौधों पर डाईमिथोएट 30 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए.

गन्ना : किसानों को इस महीने उन गन्नों को बांधने का काम करना चाहिए जिन की अच्छी पैदावार हो. पहले कतार के अंदर ही सवा से डेढ़ मीटर की ऊंचाई पर गन्ने को उस के पत्तों से बांध दें. आगे चल कर एक कतार के गन्ने को दूसरी कतार के गन्ने से बांध देना चाहिए. ऐसे में यह ध्यान रखना चाहिए कि बांधते समय ऊपर की पत्तियां न टूटें. पायरिला रोग की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर फास्फेमिडान 300-400 मिलीलीटर या मिथाइला ओ डिमेटान 1.5 लीटर का 1000 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. गन्ने में गुरदासपुर बोरर  व शीर्ष बेधक यानी टाप बोरर की रोकथाम के लिए डायमिथोएट की प्रति हेक्टेयर 1.5 लीटर मात्रा का 800-1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

तोरिया : इस की बोआई के लिए सितंबर का दूसरा पखवाड़ा सब से अच्छा माना जाता है. टा 9, भवानी, पीटी 30 व पीटी 507 तोरिया की अच्छी प्रजातियां मानी जाती हैं. प्रति हेक्टेयर बोआई के लिए 4 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. बोआई के लिए किसानों को

हमेशा उपचारित बीजों का इस्तेमाल ही करना चाहिए. तोरिया की बोआई 30×10 सेंटीमीटर पर, 3 से 4 सेंटीमीटर गहरे कूड़ों में करनी चाहिए. उर्वरकों का इस्तेमाल जमीन के परीक्षण के आधार पर करना चाहिए. यदि जमीन परीक्षण न हो, तो सिंचित दशा में बोआई के समय प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फेट व 50 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए. असिंचित दशा में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फेट व 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. फास्फोरस तत्त्व के लिए सिंगल सुपर फास्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए. यदि सिंगल सुपर फास्फेट मौजूद न हो तो प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम गंधक का इस्तेमाल करना चाहिए.

सब्जियों की खेती : इस महीने टमाटर व गांठगोभी के बीजों की बोआई नर्सरी में करनी चाहिए. पत्तागोभी की अगेती किस्मों जैसे पूसा हाईब्रिड 2 गोल्डनएकर की बोआई 15 सितंबर तक और मध्यम व पछेती किस्मों जैसे पूसा ड्रमहेड, संकर क्विस्टो की बोआई 15 सितंबर  के बाद शुरू करनी चाहिए. शिमला मिर्च में रोपाई के समय प्रति हेक्टेयर 15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फेट व 60 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए. पत्तागोभी की रोपाई इस महीने के आखिरी हफ्ते से शुरू करनी चाहिए. पत्तागोभी की रोपाई से पहले 200-250 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद या 80 क्विंटल नाडेप कंपोस्ट मिला दें और रोपाई के समय 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फेट व 60 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करें. टमाटर में कम बढ़ने वाली प्रजातियों के लिए रोपाई की दूरी 60×60 सेंटीमीटर और ज्यादा बढ़ने वाली प्रजातियों में दूरी 80×60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. टमाटर की रोपाई के समय प्रति हेक्टेयर 250-300 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या 70-80 क्विंटल नाडेप कंपोस्ट के साथ 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फेट, 60-80 किलोग्राम पोटाश व जिंक व बोरान की कमी होने पर 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट व 8-10 किलोग्राम बोरैक्स का इस्तेमाल होना चाहिए. मध्यवर्गीय फूलगोभी जैसे इंप्रूव्ड जापानी, पूसा दीपाली, पूसा कार्तिकी की रोपाई के लिए पूरा महीना ही सही है. प्याज की रोपाई के 30 दिनों बाद खरपतवार निकाल कर प्रति हेक्टेयर 35 किलोग्राम नाइट्रोजन यानी 76 किलोग्राम यूरिया की टाप ड्रेसिंग कर दी जाए तो बेहतर होता है.

रोपाई के 45 दिनों बाद प्रति हेक्टेयर बैगन में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, मिर्च में 35-40 किलोग्राम नाइट्रोजन व फूलगोभी में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन की दूसरी व आखिरी टाप ड्रेसिंग कर दें तो अच्छा है. बैगन में तना व फल छेदक बीमारी की रोकथाम के लिए बीमार भाग को तोड़ कर अलग कर दें.

नीम गिरी 4 फीसदी का छिड़काव 10 दिनों के अंतर पर करना चाहिए. मूली की एशियाई किस्मों जैसे जापानी हाइट, पूसा चेतकी, हिसार मूली नं. 1, कल्याणपुर 1 की बोआई इस महीने शुरू की जा सकती है. मूली के लिए प्रति हेक्टेयर 6-8 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है.

मेथी की अगेती फसल के लिए 15 सितंबर से बोआई की जा सकती है. इस के लिए प्रति हेक्टेयर 15-30 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. बारिश खत्म होते ही इस महीने हरी पत्ती के लिए धनिया की प्रजाति पंत हरीतिमा व आजाद धनिया 1 की बोआई शुरू कर सकते हैं. अगेती बोआई के लिए आलू की कुफरी अशोका व कुफरी चंद्रमुखी किस्में भी अच्छी हैं. इन की बोआई 25 सितंबर  से किसानों को शुरू कर देनी चाहिए.

बागबानी : लीची के 1 साल के पौधों के लिए 5 किलोग्राम गोबर/कंपोस्ट खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फास्फेट व 50 ग्राम पोटाश और 10 साल या उस से ज्यादा उम्र के पेड़ों के लिए 50 किलोग्राम गोबर/कंपोस्ट खाद, 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फेट और 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की दर से इस्तेमाल की जानी चाहिए. जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 0.4 फीसदी जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करें. आम में गमोसिस की रोकथाम के लिए प्रति पेड़ 250 ग्राम जिंक सल्फेट, 250 ग्राम कापर सल्फेट, 125 ग्राम बोरैक्स व 100 ग्राम बुझा चूना (10 साल या अधिक उम्र के पेड़ों के लिए) जमीन में मिलाएं. बारिश नहीं होती, तो हलकी सिंचाई भी करें. आम में एंथै्रक्नोज रोग से बचाव के लिए कापर आक्सीक्लोराइड की 3 ग्राम मात्रा 1 लीटर

पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

इस महीने में आंवले में फल सड़न रोग हो जाता है. इस की रोकथाम के लिए ब्लाइटाक्स 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव किया जाना चाहिए. आंवले में शुष्क विगलन (काला गूदा रोग) रोग से 80-90 फीसदी फल अंदर से काले हो कर  अक्तूबरनवंबर में गिर जाते हैं. इस की रोकथाम के लिए 6 ग्राम बोरैक्स प्रति लीटर पानी में घोल कर 15 दिनों के अंतर पर 2 छिड़काव किए जाने चाहिए. आंवले में इंदर बेला कीट की रोकथाम के लिए डाईक्लोरोवास 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल में रुई भिगो कर तार की मदद से छेदों में डाल कर चिकनी मिट्टी से बंद कर दें.

केले में प्रति पौधा 55 ग्राम यूरिया पौधे से 50 सेंटीमीटर दूर घेरे में इस्तेमाल कर के हलकी गुड़ाई कर के मिट्टी में मिला देना चाहिए. केले में बनाना बीटिल रोग हो जाता है. उस की रोकथाम के लिए क्वीनालफास 1.25 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर देना चाहिए. कार्बोफ्यूरान 3-4 ग्राम या फोरेट 2 ग्राम प्रति पौधे की दर से तने के चारों ओर मिट्टी में मिलाएं व इतनी ही मात्रा गोफे में डालें. फूल व सुगंध पौधे : इस मौसम में रजीनगंधा के स्पाइक की कटाईछंटाई की जानी चाहिए. ग्लैडियोलस की रोपाई की तैयारी के लिए प्रति वर्गमीटर 10 किलोग्राम गोबर की खाद/कंपोस्ट, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 100 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश रोपाई के 15 दिनों पहले अच्छी तरह से मिलाना चाहिए.

पशुपालन व दूध उत्पादन : पशुओं में एचएस व बीक्यू का टीका लगवा देना चाहिए. इस महीने पशु खुरपकामुंहपका के शिकार भी हो जाते हैं. रोकथाम के लिए टीका लगवाएं और रोग से ग्रस्त पशुओं के घावों को पोटैशियम परमैगनेट से धोएं. 2 टीकों के बीच 15-20 दिनों का अंतर जरूर रखना चाहिए. नवजात बच्चों को खीस जरूर दें. सभी पशुओं को पेट के कीड़े मारने की दवा पिलाएं. गंदे पोखरों व तालाबों में पशुओं  को जाने से रोकें. उन्हें साफ पानी ही पीने के लिए दें. साफ दूध उत्पादन के लिए पशु व दूध के बरतन वगैरह की सफाई का ध्यान रखा जाना चाहिए. पशुओं के बांझपन व गर्भ की जांच भी समयसमय पर कराना चाहिए.

मुरगीपालन : मुरगीखाने में कैल्शियम के लिए सीप का चूरा रखें. मुरगियों को पेट के कीड़े मारने की दवा दें. मुरगीखाने में 15-16 घंटे रोशनी का इंतजाम करें. मुरगियों के बिछावन को लगातार उलटतेपलटते रहना चाहिए. यह भी ध्यान रखें कि मुरगीखाने में हर मुरगी के लिए 3 वर्गमीटर जगह जरूरी है.

(सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी पर आधारित)

औषधीय फसल सदाबहार की वैज्ञानिक खेती

कैथेरेंथस रोजियस, पेरीविंकल या विंका रोजियस ‘एपोसाइनेसी’ कुल का पौधा है. इसे हिंदी में सदाबहार या सदाफूल, मराठी में नयन, तेलुगू में विलार्गननरू और पंजाबी में रतन जोति कहते हैं. साल 1958 में अचानक इस पौधे की पत्तियों में एल्केलायड ढूंढ़ निकाले गए और इस में सर्पगंधा वाले एल्केलायड भी मिले, जो उच्च रक्तचाप को भी प्रभावित करते हैं. इस पौधे में सारे संसार के पौधों से ज्यादा एल्केलायड पाए गए हैं. करीब 65 एल्केलायड केवल पत्तियों से ही प्राप्त हुए हैं. ये आधुनिक इलाजों में विनब्लास्टिन प्रकार के एल्केलायड के कारण हुआ है, जो पौधों की नई पत्तियों से निकाला जाता है. इस की पत्तियों में विनब्लाटिन और विनक्रिस्टिन होते हैं, जिन का कैंसर रोधी औषधियों में इस्तेमाल किया जाता है, जो एंटीफिब्रिलिक और हाइपोटेंसिव रसायन हैं. यूरोप में इस की जड़ों को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा?है. जड़ों से अज्मालीसीन एल्केलायड निकाला जाता है, जिस का रक्त कोशिकाओं की कोमलता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. विनक्रिस्टीन सल्फेट का इस्तेमाल पुरानी ल्यूकेमिया (मुख्यतया बच्चों के ल्यूकेमिया) के इलाज में किया जाता है. इस से मिलने वाली दवा बहुत महंगी पड़ती है, क्योंकि 10-15 टन पत्तियों से सिर्फ 1 औंस के करीब दवा हासिल होती है. संयुक्त राज्य अमेरिका के जीए स्वेडा और उन के सहयोगियों ने इस के पौधों से एल्केलायड निकालने की तकनीक का विकास किया.

यह पेशाब बढ़ाने वाला, दस्त रोकने वाला और?घावों को?भरने वाला होता है. यह ब्लडप्रेशर को सही रखता है. भारत और जमैका में इस का इस्तेमाल मधुमेह के इलाज और कीटों के जहर को हटाने

के लिए किया जा रहा है.

पौधा

केथेरेंथस रोजियस बहुवर्षीय शाकीय पौधा है. यह तेजी से बढ़ता है. आमतौर पर पौधों की ऊंचाई 1 मीटर तक होती?है, जिस से कई शाखाएं निकल कर 60-70 सेंटीमीटर के?घेरे में फैल जाती?हैं. इस के फूल सफेद या बैगनी रंग के होते?हैं. इस के फलीदार फलों में करीब 20-30 बीज पाए जाते?हैं.

इस की निम्न 3 प्रजातियां होती हैं, जो फूलों के रंगों पर तय की गई?हैं.

* गुलाबी पंखडि़यों वाली

* सफेद रंग वाली

* सफेद फूलों के बीच में गुलाबी, बैगनी व मखमली रंग वाली

मौजूदगी

यह भारत, फिलीपींस, आस्ट्रेलिया, दक्षिणी वियतनाम, श्रीलंका, इजराइल व वेस्टइंडीज आदि देशों में पाया जाता है. इसे बागों में आमतौर पर सुंदरता के लिए उगाया जाता है. ये जंगलों में भी फैल गया?है व रेतीले स्थानों में साल भर फल देता रहता है. ये भारत के समुद्रीय तटों के किनारे भी फैल गया है.

खेती

सदाबहार भारत भर में बहुत फैला हुआ पाया जाता है. इस से जाहिर होता है कि इस के लिए किसी खास प्रकार की जमीन की जरूरत नहीं होती. यह हर प्रकार की मिट्टी में सरलता से उग सकता है. समुद्र तटीय भागों में यह जंगली तौर पर काफी मात्रा में पाया जाता है. यह हलकी दोमट व रेतीली मिट्टी, सीमांत (मार्जिनल) जमीन और सूखा रोधी जगहों पर सरलता से उगाया जा सकता है.

जलवायु

यह उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण भागों में अच्छी तरह बढ़ता है. भारत में इस की खेती के लिए अच्छी जलवायु पाई जाती है. सदाबहार उत्तरी भारत के उपोष्ण भागों में भी उगता है, लेकिन जाड़ों में कम तापमान होने के कारण पौधों की बढ़वार धीमी होती?है. सदाबहार की खेती के लिए करीब 100 सेंटीमीटर बारिश वाले भाग सही पाए गए हैं.

किस्में

इस की व्यावसायिक फसल बाजारू बीजों से बोई जाती है, जिन में कई रंग वाले फूल मिले होते?हैं. सदाबहार एक ऐसा पौधा है, जो सजावटी भी है और इस की जड़ों व पत्तियों में औषधि के गुण भी होते हैं. केंद्रीय औषधियां एवं संगध पौधा संस्थान लखनऊ ने इस की निर्मल किस्म निकाली है, जो अधिक पैदावार देती है और उस में ईयबैंग कालररोट और जड़ सड़न रोग भी नहीं लगते?हैं. इस के फूल काफी सुंदर होते?हैं, लिहाजा यह आर्थिक लाभ के साथसाथ बागों की शोभा भी बढ़ाता है. भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलूरू ने इस की 15 नई किस्मों का विकास किया है.

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व्यावसायिक खेती के लिए बीज नए पौधों की फसल से लिए जाते हैं. बीज 1 साल से ज्यादा पुराने नहीं होने चाहिए. पौधशाला में बीजों द्वारा पौध तैयार की जाती है. कभीकभी बीज सीधे खेत में ही बो दिए जाते?हैं. 1 हेक्टेयर के लिए करीब 25 किलोग्राम बीज लगते हैं, जो ड्रिल द्वारा 45 सेंटीमीटर की दूरी की लाइनों में बोते हैं. स्थानांतरित खेती के लिए 500 ग्राम बीजों के पौध पौधशाला की क्यारियों में उगाए जाते हैं, जो 1 हेक्टेयर के लिए सही होते?हैं. इस की जड़ों और तने की कटिंग द्वारा भी पौधे उगाए जा सकते हैं. कटिंग को इंडोल इसिटिक एसिड (आईएए), इंडोल ब्यूटीरिक एसिड (आईबीए) और नेफ्थलीन एसिटिक एसिड (एनएए) से उपचारित करने पर जड़ें ज्यादा और जल्दी निकलती हैं. कटिंग द्वारा पौधों की बोआई स्थानांतरण कर के खेत में की जाती है.

खेत की तैयारी

बोआई से पहले खेत को भली प्रकार से हल से 2-3 बार जोतना चाहिए, ताकि उस की मिट्टी भुरभुरी हो जाए. खेत में इसी समय जोतने के साथसाथ 10-15 टन गोबर की खाद मिला देनी चाहिए. फिर खेत में क्यारियां व सिंचाई की नालियां बना देनी चाहिए. अगर 250 किलोग्राम हड्डी या राक फास्फेट और नीम की पिसी खली खेत में मिला दी जाए तो रासायनिक उर्वरकों की जरूरत नहीं होती.

भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान बेंगलूरू के परीक्षणों से पता चला है कि उर्वरकों के इस्तेमाल से जड़ों व उन में

मौजूद एल्केलायड की मात्रा और उपज में इजाफा होता है.

बोआई

बड़े पैमाने पर सदाबहार की खेती करने के लिए खेतों को जोत कर व समतल कर के बीजों को सीधे ही मानसून (जूनजुलाई) के महीनों में खेतों में बो दिया जाता है. 1 हेक्टेयर खेत के लिए 2.5 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है. बीजों को नम और महीन बालू में अच्छी तरह मिला कर लाइनों में बो दिया जाता है.

स्थानांतरण विधि

बीजों की मात्रा यदि कम हो तो इस विधि से सदाबहार के पौधे तैयार किए जाते?हैं.

1 हेक्टेयर खेत के लिए 300 ग्राम बीजों की जरूरत होती है. बीजों को नर्सरी की क्यारियों में वर्षाकाल से 2 महीने पहले बोना चाहिए. बीज 8-10 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं. जब पौधे

8-10 सेंटीमीटर ऊंचे हो जाते हैं, तब जड़ सहित उखाड़ कर खेत में लाइन से लाइन की दूरी

45 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी

30 सेंटीमीटर रखते हुए रोपाई की जाती है. इस प्रकार 1 हेक्टेयर खेत में तकरीबन 74000 पौधे लग जाते हैं.

खाद

खेत की तैयारी के समय करीब 15 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए. हरी खाद खेत की तैयारी से पहले लगा कर व सड़ा कर लाभकारी साबित होती है. दिल्ली में किए गए परीक्षणों से पता चला है कि 80 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर सिचिंत खेतों के लिए और 40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर असिंचित खेतों के लिए (जो वर्षा पर निर्भर रहते?हैं) लाभकारी होती है. नाइट्रोजन को 3 भागों में बांट कर देना सही होता है. इस की तिहाई मात्रा खेत की तैयारी के समय और बाकी मात्रा 2 भागों में यानी बोआई के 45 दिनों बाद व 90 दिनों बाद देनी चाहिए. एनपीके की दर 40:30:30 प्रति हेक्टेयर देने से फसल अच्छी हासिल होती है.

निराई

शुरू में 2 बार निराई की जरूरत होती है. पहली निराई बोआई के 2 महीने बाद की जाती है और दूसरी 4 महीने पर की जाती है. फ्ल्यूकोरेलिन 0.75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या एलाक्लोर 1.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के छिड़काव से बहुत तरह के खरपतवारों पर काबू पाया जा सकता है.

सिंचाई

जिन जगहों पर साल भर नियमित बारिश होती रहती है, वहां इस की फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन जहां पर कम बारिश होती है और मानसून देर से आता है, वहां पर इस की फसल को 4-5 बार सिंचाई की जरूरत होती है.

फसल की कटाई

जड़ें : बोआई के बाद जैसेजैसे पौधा बढ़ता?है, उस के अंदर एल्केलायड व अन्य रसायन भी बढ़ते हैं. जब पौधे 6 से 8 महीने के हो जाते?हैं, तब विनक्रिस्टिन तत्त्व सब से ज्यादा जड़ों में पाया जाता है. इसलिए इस समय पहली बार पुरानी जड़ों की तोड़ाई की जा सकती है. फिर 3 महीने बाद जड़ें दोबारा तोड़ी जा सकती हैं. दक्षिण भारत में जड़ों की खुदाई बोआई के 6 महीने बाद शुरू करना ठीक रहता है. उत्तरी भारत में 260 दिनों में जड़ों का भार व उन में रसायन सब से ज्यादा पाया जाता है, इसलिए यह ही जड़ों की खुदाई का सही समय होता है. 200 दिनों बाद 2-4 बार पत्तियों की तोड़ाई भी की जा सकती है और 6-8 महीने बाद जड़ों की खुदाई की जाती?है.

पूरी फसल करीब 8-10 महीने में तैयार होती है. इस समय अजमलिन प्रकार के एल्केलायड ज्यादा होते हैं. पौधों को जमीन से 7-8 सेंटीमीटर ऊपर से काटते हैं और तनों, पत्तियों और बीजों को सुखाने के लिए डाल देते हैं. जब खेत खाली हो जाता है, उस समय खेत को अच्छी तरह से सींच कर मिट्टी को ठीक से नम कर देते हैं. इस के बाद खेत में जुताई की जाती?है, जिस से जड़ें ऊपर निकल आती हैं. इन जड़ों को जमा कर के और धो कर छाया में सुखाने के लिए फैला दिया जाता है.

पत्ती, तना और बीज : पत्तियों की फसल 2 बार काटी जाती है, पहली फसल बीज बोने के 6 महीने बाद और फिर 8 महीने के बाद. आखिरी पत्तियों की फसल उस समय काटी जाती है, जब सभी पौधे ही खेतों से अलग कर दिए जाते हैं. पौधों की कटी फसल को छायादार स्थान पर सूखने के लिए फैला दिया जाता?है.

फसल सूखने पर हलकी पिटाई की जाती है. इस से बीज अलग हो जाते हैं. बीजों को अगली फसल बोने के लिए सुरक्षित रख दिया जाता है.

पत्तियों और तनों को अलगअलग रखा जाता है. सिंचित अवस्था में पत्तियों, तनों

और जड़ों की उपज क्रमश: 36, 15 और

15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलती है. अच्छे

बीजों के लिए पूरी तरह पके बीजों को ही जमा करना चाहिए.

रोग और कीट

कभीकभी पौधों की पत्तियों पर लिटिल लीफ (मोजेक) रोग लग जाता है. यह रोग विषाणुओं के कारण होता है. इस से पौधों की बढ़वार रुक जाती?है. रोग से छुटकारा पाने के लिए प्रभावित पौधों को जड़ से उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

पीथियम बटलेरी का कार डाइबैक रोग उत्तरी भारत में मानसून के समय पाया जाता है. 10-15 दिनों के अंतर से डाइथेन जेड 78 छिड़कने से इस रोग को?ठीक किया जा सकता?है. फ्यूजेरियम मुरझाना रोग व उकठा रोग आदि भी इस पर लगते हैं. इन्हें रोकने के लिए फसल बोने या रोपाई से पहले फफूंदीनाशक दवा से उपचारित करना अच्छा रहता है.

इसे कोई कीट हानि नहीं पहुंचाता है. ओलिअंडर होक कीट कुछ स्थानों पर पाया गया?है. यह पौधा कड़वा होता है, इस कारण इसे कोई जानवर भी नहीं खाता.

उपज

तकरीब 3.6 टन सूखी पत्तियां और 1.5 टन सूखी जड़ें और 4.5 टन तने प्रति हेक्टेयर प्राप्त होते?हैं. अकोला से जड़ों की 660 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज हासिल हुई, जिस में 2.6 फीसदी एल्केलायड था. केवल बारिश पर निर्भर रहने वाली फसल से 2 टन पत्तियां, 1?टन तने व 0.75 टन जड़ें प्रति हेक्टेयर हासिल होती हैं.

फसल चक्र

1. सदाबहार-सनाय-सरसों

2. सदाबहार-सनाय-धनिया

इन फसलचक्रों के साथ सदाबहार के खेतों से अधिक आय होती है. सदाबहार के पौधों को यूकेलिप्टस के पेड़ों के साथ छाया में भी भली प्रकार उगा सकते हैं.

औषधीय नजरिए से महत्त्वपूर्ण समस्त एल्केलायड में विनिक्रिस्टिन नामक एल्केलायड सब से ज्यादा मात्रा में पत्तियों में पाया जाता है. व्यापारिक आधार पर विनक्रिस्टिन (एज्मोलिसिन) और विनब्लास्टिन के अलावा रिसर्पीन इंडोल रोबेसिन और सर्पेंटाइन नामक एल्केलायड इस की जड़ों में सब से ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं. अमेरिका में विनप्लाटिन सल्फेट के रूप में बाजारों में बल्बे व्यापारिक नाम से और विनक्रिस्टिन सल्फेट को आनकोवित (एली लिली) के नाम से बेचा जाता है. एली लिली (यूएसए) और भारत की सिपला दोनों दवा कंपनियां इस पौधे को भारत से मंगा कर एल्केलायड हासिल कर के बाजारों में तमाम दवाओं के नाम से बेच रही?हैं.

निर्यात

भारत एक खास देश?है, जहां से सदाबहार के पूरे पौधे, पत्तियां व जड़ें विदेशों को?भेजी जाती हैं. दूसरे देश जैसे मलेशिया, मेडागास्कर और मोजाम्बिक से भी सदाबहार की जड़ें व पत्तियां निर्यात की जाती?हैं.

सदाबहार की जड़ों और पत्तियों की लगातार बढ़ती हुई मांग के कारण इस की कीमत भी बढ़ती जा रही?है. जून 1973 में जड़ों की कीमत केवल 5 रुपए प्रति किलोग्राम थी, जो साल 1999 में 20 रुपए प्रति किलोग्राम तक जा पहुंची. इस की पत्तियों व तनों के मूल्यों में भी इजाफा हुआ है.

निर्यात की उम्मीदें

निर्यात की मात्रा बढ़ाने के लिए सदाबहार की खेती पर बल देना होगा. साथ ही वैज्ञानिक ढंग से पौधों में एल्केलायडों की मात्रा पर शोध कर के इस के गुणों को बढ़ाने के उपाय करने होंगे. फसल की खुदाई के बाद सुखाई व भंडारण वगैरह पर ज्यादा ध्यान देना होगा. वैसे हमारे यहां इस समय 1500 से 2000 हेक्टेयर रकबे में सदाबहार की खेती की जा रही?है, पर आने वाले वक्त में निर्यात बढ़ाने के लिए अधिक रकबे में इस की खेती करनी पड़ेगी.

 डा. अनंत कुमार, डा. हंसराज सिंह, डा. विरेंद्र पाल*
(कृषि विज्ञान केंद्र गाजियाबाद, *हस्तिनापुर)

 

 

नीलगायों पर सियासत, खेती हो रही चौपट

जब बिहार में किसानों और खेती को बचाने के लिए नीलगायों को मारने का जिम्मा पेशेवर शिकारियों को सौंपा गया, तो पटना से ले कर दिल्ली तक की सियासत गरमा गई. केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने अपने ही दल और सरकार के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडे़कर के खिलाफ आग उगलना शुरू कर दिया. बिहार में मोकामा के दियारा इलाकों में नीलगायों के बढ़ते आतंक को रोकने के लिए जब उन्हें मारने का काम शुरू किया गया, तो मेनका ने केंद्र और राज्य सरकार की बखिया उधेड़ते हुए कहा कि पता नहीं जानवरों को मारने की कौन सी हवस पैदा हो गई है? अपने साथी मंत्री के आरोपों के जवाब में जावड़ेकर सफाई  दर सफाई देते रहे, पर मेनका अपनी रौ में बहती रहीं. प्रकाश ने कहा कि बिहार सरकार ने नीलगायों को मारने की अनुमति मांगी थी और कानून के तहत मंजूरी दी गई है.

नीलगायों को मारना केंद्र की कोई योजना नहीं है. नीलगायों पर मची राजनीति से भौंचक किसानों का कहना है कि मेनका गांधी को नीलगायों की वकालत करने से पहले किसानों की हालत को देखना चाहिए. नीलगायों के खौफ से लाखों एकड़ उपजाऊ खेत खाली पड़े हैं. मोकामा के दियारा इलाकों में 6 जून से नीलगायों को मारने का काम शुरू हो गया और 9 जून तक 300 से ज्यादा नीलगायों को मारा जा चुका है. इस के लिए हैदराबाद के शिकारी नवाब शफाथ अली खान और उन की टीम को लगाया गया है. नीलगायों को मारने से मेनका इस कदर खफा हुईं कि उन्होंने केंद्र सरकार और बिहार सरकार दोनों को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि आरटीआई से पता चला है कि किसी भी राज्य ने जानवरों को मारने की मंजूरी नहीं मांगी है. वहीं नीतीश सरकार पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के बाद बिहार में होने वाला यह पहला इतना बड़ा प्राणी संहार है.

मेनका ने कहा कि गुजरात में  1 लाख 86 हजार नीलगायें हैं और वे अकसर मूंगफली, अरंडी, बाजरा, गन्ना, कपास आदि फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं. इस के बाद भी वहां एक भी नीलगाय नहीं मारी गई. गौरतलब है कि साल 2007 में ही केंद्र सरकार ने गुजरात सरकार को नीलगायों को मारने की मंजूरी दी थी.

मेनका ने आगे कहा कि क्या अब गोवा में मोरों को मारा जाएगा? क्या बंगाल में हाथियों को मारने की इजाजत दी जाएगी? हिमाचल में बंदरों की संख्या ज्यादा है, तो क्या बंदरों को मारा जाएगा? क्या चंद्रपुर में जंगली सूअरों को निशाना बनाया जाएगा? सरकार को सोचना चाहिए कि जंगलों के कटने और आग लगने की वजह से ही जानवर बाहर निकल आते हैं.

मेनका के आरोपों के जवाब में जदयू के प्रदेश प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि केंद्र सरकार ने 1 दिसंबर 2015 को ही नीलगायों और जंगली सूअरों को मारने की इजाजत दी थी. उस समय मेनका गांधी ने उस का विरोध क्यों नहीं किया? अगर मेनका को नीलगायों से प्रेम है, तो उन्हें खेतों से हटा कर कहीं और रखने का इंतजाम करवाएं.

नीरज ने कहा कि मेनका गांधी को पता नहीं है कि नीलगायों की वजह से बिहार समेत कई राज्यों के किसान तबाह हो रहे हैं. नीलगायों से फसलों को बचाने के लिए साल 2007 में किसानों का बड़ा आंदोलन हो चुका है और उसी के बाद पटना हाई कोर्ट ने भारत सरकार को कार्यवाही करने का आदेश दिया था. उस के बाद ही नीलगायों और जंगली सूअरों को अनुसूची 3 से हटा कर अनुसूची 5 में डाला गया और उन के शिकार की इजाजत दी गई. वन्य प्राणी अधिनियम 1972 की धारा 11 बी के तहत कहा गया है कि इन के शिकार के लिए पेशेवर शिकारियों की मदद ली जाए. बिहार के 20 जिलों में पूरी तरह से और 11 जिलों के सीमित इलाकों में नीलगायों के शिकार की इजाजत है. वहीं 10 जिलों में जंगली सूअरों का शिकार करने की मंजूरी है.

गौरतलब है कि पटना जिले के मोकामा के दियारा इलाकों में पिछले कई सालों से नीलगायों का आतंक मचा हुआ है और वहां के किसानों ने खेती करना बंद कर दिया है. नीलगायों के झुंड दलहन,तिलहन, रबी, खरीफ समेत सब्जियों की फसलों को पलक झपकते ही चर जाते हैं या बरबाद कर देते हैं. फतुहा से ले कर बड़हिया तक फैले मोकामा दियारा क्षेत्र में 1 लाख 67 हजार हेक्टेयर में खेती की जाती है, पर पिछले कुछ सालों से हजारों हेक्टेयर खेत खाली पड़े हैं. सरकारी आंकड़ों में बिहार में करीब 25 हजार नीलगायें हैं.

नीलगायों के आतंक से परेशान उत्तर बिहार के कई इलाकों में किसान हजारों एकड़ खेतों में खेती नहीं कर पा रहे हैं. उन की मेहतन और पूंजी को एक झटके में ही नीलगायें चर जाती हैं. किसानों के सामने सिर पीटने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता है. बिहार में हर साल नीलगायें किसानों को करीब 600 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाती हैं. उन के खौफ की वजह से पिछले साल करीब 25 हजार हेक्टेयर खेत खाली रह गए. राज्य के पटना, भोजपुर, बक्सर, रोहतास, औरंगाबाद, सिवान, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, सारण, बेगूसराय और मधुबनी में नीलगायें और जंगली सूअर करीब 21 हजार टन अनाज गटक जाते हैं, जिस से किसानों को हर साल 600 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है.

उत्तर बिहार के गंगा और सोन नदी के तटीय इलाकों में नीलगायों के आतंक से किसान परेशान और खेती तबाह है. मोतीहारी जिले के पिपरा गांव के किसान मलंग लाल ने बताया कि उन्होंने अरहर की खेती के लिए कर्ज ले कर बीज, खाद से ले कर सिंचाई तक का इंतजाम किया था, लेकिन उन की सारी फसल को नीलगायें चट कर गईं. अब महाजन का कर्ज चुकाना बहुत बड़ी समस्या बन गया है.

मोतिहारी के तुरकौलिया, पीपरा, कोटवा, हरसिद्धि सहित कई प्रखंडों में नीलगायों के उत्पात ने खेती और किसानों को तबाह कर दिया है. नीलगायों के आतंक की वजह से गंगा और सोन नदी के तटीय इलाकों की करीब 70 हजार एकड़ जमीन पर किसान खेती नहीं कर पा रहे हैं. लहलहाती फसलों को नीलगायें पलक झपकते ही खा जाती हैं और किसान अपनी मेहनत और पूंजी के लुटने का तमाशा देखते रह जाते हैं.

किसान रामेश्वर यादव ने बताया कि पहले तो पटाखों की आवाज से डर कर नीलगायें भाग जाती थीं, लेकिन अब उन पर पटाखों के धमाकों का कोई असर नहीं होता है. फसलों को बचाने के लिए किसानों को हर महीने करीब 2 हजार रुपए पटाखों पर खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन अब वे भी फायदेमंद नहीं साबित हो रहे हैं. नीलगायें अगर किसी किसान की फसलों को बरबाद कर देती हैं, तो सरकार की ओर से उसे मुआवजा मिलता है. फसल के नुकसान होने पर प्रति हेक्टेयर 10,000 रुपए का अनुदान दिया जाता है. कृषि मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि जिन इलाकों में नीलगायों का ज्यादा आतंक है, उन इलाकों के किसानों को इस बात के लिए जागरूक किया जा रहा है कि वे जेट्रोफा की खेती करें. उसे नीलगायों से कोई खतरा नहीं होता है. किसानों को जेट्रोफा के पौधे भी मुहैया कराए जा रहे हैं. लेकिन जेट्रोफा की खेती करने में किसानों की कोई दिलचस्पी नहीं है. किसान मनीराम का कहना है कि उन्हें मुआवजा नहीं बल्कि नीलगायों से हमेशा के लिए नजात दिलाई जाए.

नीलगायों की आबादी काफी तेजी से बढ़ती है. 1 मादा नीलगाय 1 साल में 4 बच्चे पैदा करती है और उस के बच्चे भी 1 साल के अंदर ही बच्चे पैदा करने लायक हो जाते हैं. इस वजह से नीलगायों की संख्या में तेजी से इजाफा होता जा रहा है.

वेटनरी डाक्टर कौशल किशोर कहते हैं कि साल 2003 में नीलगायों के बंध्याकरण का काम शुरू किया गया था, लेकिन वह योजना काफी समय पहले ही बंद हो गई. बगैर किसी ठोस प्लानिंग के नौसिखिए और अनाड़ी लोगों को बंध्याकरण के काम में लगा दिया गया था, जिस से नतीजा शून्य रहा. वन प्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत नीलगायों को संरक्षित जंगली जानवर का दर्जा मिला हुआ है, जिस की वजह से किसान नीलगायों को मार भी नहीं सकते हैं. नीलगायों को मारने वाले को जेल और जुर्माने की सजा देने का इंतजाम है, जिस की वजह से किसान नीलगायों से परेशान हो कर खेती नहीं कर पाने की सजा भुगतने के लिए मजबूर हैं.  

अब नीलगायों को बिजली का झटका

नीलगायों के आतंक से फसलों को बचाने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाएगा. इस के तहत लोहे के तारों से खेतों की घेराबंदी कर के उस में सौर ऊर्जा का करंट प्रवाहित किया जाएगा. प्रयोग के तौर पर पटना के सरकारी कृषि फार्म की घेराबंदी की जा रही है. गौरतलब है कि पटना,  मुजफ्फरपुर, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, भोजपुर, भभुआ, बक्सर आदि जिलों में लहलहाती फसलों को नीलगायों के झुंड चट कर जाते हैं. नीलगाय 10 फुट की ऊंचाई तक छलांग लगा सकती है और वह खासकर दलहनी फसलों को अपना निशाना बनाती है. धान, गेहूं, मक्का को खाने के बाद जब उस का पेट भर जाता है, तो खड़ी फसलों को रौंद कर बरबाद कर देती है. इस से किसानों को काफी नुकसान होता है. घेराबंदी वाले तारों में सौर ऊर्जा के जरीए करंट दौड़ाया जाएगा. करंट डायनमो के जरीए पैदा होगा और उस के झटके से नीलगायों की मौत नहीं होगी. करंट का झटका लगने के बाद नीलगायें खेतों की ओर दोबारा जाने की हिम्मत नहीं करेंगी. इस के लिए किसानों को पैसा भी दिया जाएगा

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