केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू कर दी हैं. सरकारी साहबों के मजे तो पहले ही थे, अब और ज्यादा हो गए हैं. ठीक है, सरकारी नौकरी के लिए काफी पढ़ाई करनी पड़ती है, काफी दौड़धूप करनी होती, काफी परीक्षाओं में बैठना होता है और न जाने कहांकहां से सिफारिशें लगानी होती हैं: पर फिर भी जो सरकार के बाबुओं से ले कर अफसरों को मिल रहा है, उस से साफ है कि क्यों 3 करोड़ लोग इन नौकरियों के लिए मरे जा रहे हैं.

जिस देश में एमए, बीए चपरासी की नौकरी के लिए अर्जी देते हैं, वहां साफ है कि सरकारी नौकरी के अलावा जीवन सुधारने का कोई तरीका नहीं है. लाखों लड़केलड़कियां हर साल मातापिता का हजारों रुपया कोचिंग क्लासों, अर्जियों के साथ लगने वाली फीस, परीक्षा सैंटरों पर जाने पर खर्च कर देते हैं. इस दौरान वे निठल्ले बैठे रहते हैं, वह अलग है. सब से बड़ी बात है कि हर सरकारी नौकरी में रिश्वत का मौका है. हर सरकारी कर्मचारी के पास ढेरों तरीके होते हैं आम आदमी को लूटने के. हम कहते हैं कि मुगलों ने देश को लूटा, अंगरेजों ने लूटा, पर असल लूट आज चल रही है जब देश का असली खजाना तीनचौथाई तो सरकारी शाहों पर खर्च होता है और एकचौथाई बरबाद होता है.

आम आदमी को लूट कर जमा किया गया टैक्स देश की सेवा कहलाई जाती है. कैसी सेवा? देश कहां से खुश है? न देश में पढ़ाई ठीक है, न शहरों की गलियां, न गांवों की नहरें, न अस्पताल, न अदालतें. देश ठीक है तो किस तरह से? ठीक है, देश चल रहा है, पर इसलिए कि लोग, आम लोग, जो सरकार में नौकर नहीं हैं, काम करने में लगे हैं. किसान, मजदूर, व्यापारी, तकनीकी मेकैनिक, सेवा देने वाले आदि रातदिन मेहनत करते है. उन्हें नहीं मालूम कि उन की मेहनत का कितना हिस्सा सरकार हड़प कर जाती है, पर जो बच जाता है उसी के लिए उन्हें काम करना पड़ता है, क्योंकि उसी से वे पेट भर सकते हैं, घर चला सकते हैं, परिवार को पाल सकते हैं.

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