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इशांत नहीं खेलेंगे भारत का एतिहासिक 500वां टेस्ट

टीम इंडिया को बड़ा झटका लगा है. तेज गेंदबाज इशांत शर्मा बीमार होने के कारण भारत के 500वें टेस्ट से बाहर हो गए हैं. 27 साल के इशांत चिकनगुनिया से ग्रस्त हैं. बता दें कि देश की राजधानी में इस समय चिकनगुनिया का कहर फैला हुआ है. ये इंडियन फास्ट बॉलर दिल्ली के ही रहने वाले हैं.

भुवनेश्वर-शमी संभालेंगे जिम्मेदारी

ये फास्ट बॉलर कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में 22 सितंबर से न्यूजीलैंड के खिलाफ शुरू होने वाले तीन मैचों की टेस्ट सीरीज के ओपनिंग मैच में नहीं खेलेंगे. खबरों की मानें तो इशांत शर्मा के विकल्प की अभी किसी खिलाड़ी के नाम की घोषणा नहीं की गई है. भुवनेश्वर कुमार और मोहम्मद शमी मेजबान टीम की ओर से नई बॉल की जिम्मेदारी संभालेंगे.

कौन हो सकता है विकल्प?

इशांत की जगह कौन हो सकता है शामिल? मैच में भुवी और शमी पर बड़ी जिम्मेदारी होगी. एक और विकल्प यह है कि विराट कोहली फास्ट बॉलर के रूप में उमेश यादव को शामिल कर सकते हैं.

पिछले कुछ वर्षों से भारतीय गेंदबाजी की अगुवाई कर रहे इशांत ने अब तक भारत की तरफ से 72 टेस्ट मैचों में 36.71 की औसत से 209 विकेट लिये हैं. उन्होंने हाल के वेस्टइंडीज दौरे में चार टेस्ट मैचों में आठ विकेट लिये थे. इशांत भारतीय टीम के पहले ऐसे खिलाड़ी हैं जो फिटनेस के कारण पहले टेस्ट मैच से बाहर हुए हैं. न्यूजीलैंड की टीम हालांकि फिटनेस मामलों से जूझ रही है.

वहीं न्यूजीलैंड के ऑलराउंडर जेम्स नीशाम पसली की चोट के कारण कानपुर टेस्ट मैच में नहीं खेल पाएंगे जबकि तेज गेंदबाज टिम साउथी टखने की चोट की वजह से पिछले सप्ताह ही तीन टेस्ट मैचों की श्रृंखला से बाहर हो गये थे.

एक नए समाज की कुलबुलाहट

रोहित वेमुला, बुरहान वानी, हार्दिक पटेल व कन्हैया भारत की राजनीति को एक नया मोड़ देते दिखते हैं. पहले 2 ने मर कर और दूसरे 2 ने जीवित रहते हुए लगभग अकेले प्रशासन को चुनौती दी है और बहुत सी राजनीति अब इन के इर्दगिर्द घूम रही है. कश्मीर के पढे़लिखे घरों के किशोर और युवा आर्मी की गोलियों, पैलेट गन के छर्रों से डरे बिना बुरहान वानी के सहीगलत सपने को पूरा कर रहे हैं. रोहित वेमुला मर कर देशभर के दलितों का भीमराव अंबेडकर जैसा आदर्श बन गया है.

कन्हैया और हार्दिक पटेल अपना अलग एजेंडा रखते हैं, पर यह जरूर है कि बिना पुरानी पार्टियों पर कब्जा किए वे अलग रास्ता तय कर रहे हैं और लाखों युवा उन के पीछे झंडा लिए नहीं चल रहे तो भी साथ हैं. यह बदलाव भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस ही नहीं सभी पार्टियों के लिए खतरा बन रहा है, क्योंकि इन युवा नेताओं की इच्छा सत्ता पर कब्जा करने की नहीं, सत्ता के तौरतरीके में बदलाव की है, आजादी की है.

यह आजादी हर वर्ग के लिए अलग है. कश्मीर में वे भारत सरकार के चंगुल से आजादी मांग रहे हैं. रोहित वेमुला को दलितों के साथ होने वाले अत्याचारों से आजादी की चाह थी. कन्हैया गरीबी, भेदभाव, सरकारी आतंक के खिलाफ है, हार्दिक पटेल पिछड़े गुजरातियों को सवर्णों की तानाशाही से आजादी चाहता है. इन युवाओं के रास्ते, कारण, समर्थक अलग हैं पर यह पक्का है कि छोटेबड़े सभी इन युवा उभरती शक्तियों के प्रभाव से असमंजस में हैं. युवा इन में आका देख रहे हैं तो प्रशासन इन में खतरा देख रहा है और इन को कुचलना चाहता है, जड़मूल से.

दुनियाभर के युवा आज चौराहे पर खड़े हैं. उन के हाथ में टैक्नोलौजी है और वे अपनी बात कह सकते हैं. उन्हें अब अनसुना नहीं किया जा सकता. पर वे रास्ता कौन सा चुनें, उन्हें समझ नहीं आता. इन पक्के बने रास्तों में उन की रुचि नहीं, क्योंकि उन की मिल्कीयत पर बूढ़ी पीढ़ी का कब्जा है जो उन्हें रास्ता तो देती है, पर जमने की जगह नहीं.

कश्मीर और पश्चिम एशिया में इस विरोध ने विद्रोह का रूप ले लिया है. बहुत सी जगह युवा नशे में खोने लगे हैं. बंधेबंधाए तौरतरीके छूट रहे हैं और समलैंगिक विवाह होने लगे हैं, लिव इन पौपुलर हो रहा है. ये सब उसी युवा विद्रोह का प्रतीक हैं जिस के आगे बुरहान वानी, रोहित वेमुला, कन्हैया कुमार और हार्दिक पटेल हैं.

बदलाव अच्छा होगा या बुरा, पता नहीं. यह बुलबुला है जो युवापन खोते ही समाप्त हो जाएगा या फिर इन युवा नेताओं की जगह नए युवा नेता तैयार हो कर आ जाएंगे मशाल थामने, कहा नहीं जा सकता, लेकिन इतना पक्का है कि भारत हो या कहीं और एक नया समाज बनने को कुलबुला रहा है. इस का अगला पड़ाव क्या है, अभी पता नहीं.

पहले सुरक्षा के इंतजाम तो कीजिए

चाहे जितनी बड़ी बड़ी बातें हों, होती रहेंगी. एक छोटी सी बात समझ में नहीं आ रही. हमारी सुरक्षा व्यवस्था में आखिर क्या खामी है कि महज चार हमलावरों से हम अपने जवानों की हिफाजत नहीं कर पाये?

हर हमले के बाद सुनते हैं – हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे. अरे, पत्थर से जवाब देने से रोका किसने है – पर ये कोई बताएगा कि ईंट से बचने के अब तक क्या उपाय किये गये हैं. पत्थर की बात तो बाद में आएगी – पहले कोई ये तो बताये कि ईंट को काउंटर करने के लायक क्यों नहीं हैं?

जिम्मेदार कौन?

ऐसी शहादत भी देनी पड़ेगी, उरी में तैनात जवानों ने कभी सोचा भी न होगा. घर बार छोड़ कर हजारों किलोमीटर दूर वे तो हर पल सीने पर गोली खाने को तैयार थे. चौकस निगाहों से अलर्ट ड्यूटी की थकान मिटाने के लिए वे तो पल भर की झपकी लेने गये थे – और उठने से पहले ही उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया.

ऐसा क्यों लगता है कि हमने अपने जवानों को मौत के मुंह में धकेल दिया. हमारी चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था में आखिर कौन सा पैबंद लगा है कि हर बार कुछ किराये के टट्टू गोला बारूद लादे टपक पड़ते हैं – और आंखों में धूल झोंक कर अपना काम कर जाते हैं.

खबरों से पता चला है कि हमले में कश्मीर में लगे कर्फ्यू का भी रोल है. ढाई महीने से लगे कर्फ्यू ने जम्मू कश्मीर के लोगों को ही नहीं खुफिया विभाग को भी डिस्कनेक्ट कर दिया है. कर्फ्यू के चलते न तो इंफॉर्मर खुफिया अफसरों तक पहुंच पा रहे हैं और न ही खुफिया विभाग के लोग अपने सोर्स तक.

कानून से लेकर सिस्टम तक सब तो अंग्रेजों के जमाने का चल ही रहा है – ये खुफिया सूचनाएं क्या अब भी हम बाबा आदम के जमाने वाले तरीके से करते हैं. ये कौन सा डिजिटल इंडिया है कि इंटेलिजेंस के कामों में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की बजाए इंफॉर्मर के पैदल आने का इंतजार करते हैं. माना कि फोन बंद हैं, इंटरनेट बंद है – तो क्या खुफियाकर्मी छुट्टी मना रहे हैं?

आखिर कब तक?

आखिर जवानों की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक कैसे हुई? क्या किसी हाई लेवल मीटिंग में इन बातों पर भी चर्चा होती है या बस यही तय होता है कि उठ कर जाने के बाद कौन क्या ट्वीट करेगा और टीवी पर क्या बाइट देगा? क्या आतंकी वाकई इतने स्मार्ट हैं कि किसी को भनक तक नहीं लग रही या हमने भेदिये पाल रखे हैं.

कौन बख्शा नहीं जाएगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा? रूस और अमेरिका की यात्रा रद्द करने के साथ ही राजनाथ सिंह कह रहे हैं कि पाकिस्तान को अलग थलग करना पड़ेगा. अब तो ये बयान दिलासा भर से ज्यादा नहीं लगते. जो दोषी-मोहरे थे वे मार गिराए गये या एक ने खुद को ही उड़ा लिया. जो सरहद पार बैठे उनके आका हैं वे कभी हाथ नहीं आने वाले. हमे साफ तौर पर समझ लेना चाहिये कि हर बार कोई कसाब हाथ लग पाएगा, कतई जरूरी नहीं.

मुंबई हमले को लेकर पाकिस्तान को इतने सबूत सौंपे गये होंगे जिन्हें अब गिनना भी मुश्किल हो रहा है. पठानकोट अटैक को लेकर भी रस्म अदायगी पूरी हो चुकी है. फिर कौन से दोषी बख्शे नहीं जाएंगे?

क्या वो मसूद अजहर जो खुलेआम राजनाथ सिंह को चुनौती देता है? या पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जो खुलेआम आग उगल रहे हैं – 'कश्मीरी नौजवानों ने लड़ाई में जान डाल दी.' या पाक रक्षा मंत्री जो परमाणु बम के इस्तेमाल की धमकी दे रहे हैं या आर्मी चीफ राहिल शरीफ जो कहते फिर रहे हैं हमने चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं.

आखिर हम कौन से सर्जिकल ऑपरेशन की बात करते हैं? क्या वैसा सर्जिकल ऑपरेशन जैसा ऐबटाबाद में अमेरिका ने किया था? क्या वैसा सर्जिकल ऑपरेशन जैसा म्यांमार में कथिक आतंकी ठिकानों पर हुआ था? हम किस बूते हम सर्जिकल ऑपरेशन की बात सोचें – जब हम अपने जवानों को कुछ देर चैन की नींद सोने भी नहीं दे सकते. म्यांमार वाली बात तो याद ही होगी. पहले ढोल पीट पीट कर बताया और जब उधर से खंडन आ गया तो लीपापोती होने लगी.

अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर बस यात्रा की तो नरेंद्र मोदी ने बगैर कार्यक्रम बनाये नवाज को पहुंच कर बधाई धी. वाजपेयी को कारगिल का तोहफा मिला तो मोदी को पठानकोट का. बुधवार के चलते ही सही, हरी साड़ी पहनकर सुषमा भी पाकिस्तान गयी थीं – और ज्यादा दिन नहीं राजनाथ सिंह भी बगैर लंच किये लौट आये. बताया भी – बेइज्जती को बताने में संकोच हो रहा है.

बीजेपी के एक नेता दांत के बदले जबड़ा निकालने की बात कर रहे हैं. आखिर आपके दांत इतने खट्टे क्यों पड़ गये. आखिर कौन सा सेंसोडाइन लगाते हैं साहब? अगर पतंजलि वाले का असर न हो रहा हो तो इम्पोर्ट ही कर लीजिए लेकिन बगैर दांत के गिदड़भभकी से कब तक काम चलाएंगे.

न तो कारगिल के लिए पीठ में छुरा भोंकने की बात करने से कुछ होगा – और न पठानकोट को लेकर छाती पीटने से. सर्जिकल ऑपरेशन से भी पहले जरूरी है कि हम सुरक्षा इंतजामों को पुख्ता करें – ताकि हकीकत में कोई परिंदा भी पर न मार पाये.

कबड्डी विश्व कप में भारत की अगुवाई करेंगे अनूप कुमार

हरियाणा के स्टार राइडर अनूप कुमार अगले महीने अहमदाबाद में होने वाले कबड्डी विश्व कप में भारतीय टीम की अगुवाई करेंगे. ऑलराउंडर मनजीत छिल्लर को उप कप्तान बनाया गया है.

भारत ने सात अक्तूबर से शुरू होने वाले इस टूर्नामेंट के लिये 14 सदस्यीय टीम का चयन किया है. टूर्नामेंट में कुल 12 टीमें भाग लेंगी. मेजबान भारत के अलावा जो अन्य देश में इसमें हिस्सा लेंगे उनमें ईरान, दक्षिण कोरिया, बांग्लादेश, अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, पोलैंड, थाईलैंड, जापान, अर्जेंटीना और केनिया शामिल हैं.

बलवान सिंह भारतीय टीम के मुख्य कोच और ई भास्करन सहायक कोच होंगे. बलवान ने यहां कहा, ‘अहमदाबाद में अभ्यास शिविर में कड़ा अभ्यास किया गया जिससे हम भारतीय टीम में सही खिलाड़ियों को चुनने में सफल रहे. हमारा लक्ष्य आगामी विश्व कप के लिये संतुलित टीम का चयन करना था.’

उन्होंने कहा, ‘हमें इस साल टूर्नामेंट के अधिक प्रतिस्पर्धी होने की उम्मीद है. भारतीय टीम को इसमें कड़ी चुनौती मिलेगी.’ दिग्गज क्रिकेटर और 1983 विश्व कप विजेता टीम के कप्तान कपिल देव ने टीम की जर्सी को जारी किया. कपिल ने अनूप को अपने ऑटोग्राफ वाली वह रंगीन टी शर्ट भी सौंपी जो उन्होंने भारत की आस्ट्रेलिया में पहली एकदिवसीय श्रृंखला के दौरान पहनी थी.

कपिल ने कहा, ‘अगर खेल के दौरान कोई गलती हो जाती है तो कप्तान को उसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए और यदि टीम अच्छा प्रदर्शन करती है तो उसे इसका श्रेय पूरी टीम को देना चाहिए.’

टीम इस प्रकार है

अनूप कुमार (कप्तान, हरियाणा), अजय ठाकुर (हिमाचल प्रदेश), दीपक हुड्डा (हरियाणा), धर्मराज चेरालथन (तमिलनाडु), जसवीर सिंह (हरियाणा), किरण परमार (गुजरात), मनजीत छिल्लर (उप कप्तान, पंजाब), मोहित छिल्लर (पंजाब), नितिन तोमर (उत्तर प्रदेश), प्रदीप नारवाल (हरियाणा), राहुल चौधरी (उत्तर प्रदेश), संदीप नारवाल, सुरेंद्र नाडा और सुरजीत (सभी हरियाणा)

“जिंदगी एक ब्रा की तरह है”

‘अरे! तुमने ब्रा को ऐसे ही खुले में सूखने को डाल दिया?’ ‘तुम्हारी ब्रा का स्ट्रैप दिख रहा है इसे ठीक से कवर करो’, ‘देखो, कैसी लडकी है उसने सफ़ेद ड्रेस के नीचे काली ब्रा पहनी है, जरा भी समझ नहीं है’. ब्रा के बारे में ऐसी स्टेटमेंट हर युवा होती लड़की को आम सुनने को मिलती है.

भारतीय समाज  में अगर कोई लड़की छोटी स्कर्ट पहन ले या बिना ब्रा के बिना शर्ट या टॉप पहन ले तो न केवल हंगामा खड़ा हो जाता है, बल्कि उसे यह भी महसूस कराया जाता है कि मानों वह न्यूड है. दरअसल, भारतीय रूढ़िवादी समाज में ब्रा को लड़कियों के कपड़ों में एक ज़रूरी चीज़ माना जाता है, अगर आपने इसे पहन लिया तो ठीक और अगर पहनने के बाद यह कपड़ों से झांकती नज़र आ जाए तो और बड़ी मुसीबत. लोग आपको घूर घूरकर आपका जीना मुश्किल कर देते हैं. जैसे ही कोई लड़की किशोरावस्था में प्रवेश करती है, उसके लिए ब्रा पहनना एक ज़रूरी नियम बन जाता है. समझ नहीं आता क्या एक लड़की यह तय नहीं कर सकती कि वह क्या पहने और क्या नहीं. अपने शरीर के साथ क्या करे क्या यह एक लड़की का अधिकार नहीं होना चाहिए?

चोली के पीछे का इतिहास

औरतें ना जाने कब से अपने वक्षों का दम घोंटती चली आ रही हैं. इसका कोई अंदाज़ा नहीं, लेकिन लाइफ पत्रिका के मुताबिक 30 मई, 1889 को फ्रांस की हरमिनी काडोले ने पहली आधुनिक ब्रा बनाई थी. पर औरतें रुमाल से लेकर कॉर्सेट्स और वेस्ट्स से सदियों से अपने वक्षों को कसती आ रही हैं. विक्टोरियन काल में महिलाएं कोर्सेट पहनती थीं, जो एक तरह की जैकेट होती थी. इसे  कमर के पीछे डोरियों से बहुत ज्यादा कस कर बांधा जाता था, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से नुकसानदेह था.

ब्रा पहनने की वजह

ब्रा पहनने के पीछे औरतों की मजबूरी है या चाहत इस बारे में अलग अलग महिलाओं की अलग अलग धारणा है. जहां कुछ औरतें खुद को सेक्सी और कॉंफिडेंट फील कराने के लिए ब्रा पहनती हैं, तो वहीं कुछ महिलाएं  पुरुषों को उत्तेजित करने के लिए लेस वाली या पुश-अप ब्रा पहनती हैं. जबकि कुछ महिलाएं मजबूरीवश खुद को समाज की घूरती निगाहों से बचाने के लिए  ब्रा पहनती हैं.

बॉलीवुड की टॉप ऐक्ट्रेस में शुमार की जाने वाली प्रियंका चोपड़ा से हाल ही में  एक फैशन वेबसाइट इनस्टाइल द्वारा जब पूछा गया कि क्या वे अभी चल रहे ट्रेंड के अनुसार शर्ट की जगह सिर्फ ब्रा पहनना चाहेंगी, तो उन्होंने सीधे मना करते हुए कहा, 'नहीं मैं सिर्फ ब्रा नहीं पहन सकतीं मैं थोड़ा शर्मीली हूं, इसलिए मैं शर्ट पहनना ज्यादा पसंद करूंगी. मेरा मानना है कि ब्रा छुपी होनी  चाहिए, दिखनी  नहीं चाहिए'. अगर बात  मेरे बेडरूम के आस-पास  पहनने या फिर जहां तक लोगों को पता न चल सके तब तक तो ठीक है.

एक घंटे ब्रा पहनने का चैलेंज 

आप सामने वाले की परेशानी का अंदाजा आप तब तक नहीं लगा सकते, जब तक कि आप खुद उस स्थिति से नहीं गुजरें. इस बात को समझाने के लिए हाल ही में सोशल मीडिया पर दिल्ली ओल्ड फिल्म की तरफ से यूट्यूब पर एक वीडियो अपलोड किया. गर्ल्स को ब्रा पहनने के बाद कितनी तकलीफ होती है इस बात को इस वीडियो में बड़े ही फनी और इंटरेस्टिंग अंदाज में दिखाया गया है. इस वीडियो को अभी तक तकरीबन 10 लाख लोगों ने देखा है और कुछ लोगों ने इस पर अच्छे तो कुछ ने भद्दे कमेंट भी किए है. इस वीडियो में पहले लड़कियों ने ब्रा पहनने से होने वाली परेशानी बताई और कहा कि इससे रेशेज, खुजली और पसीना भी आता है और  अगर सही साइज की  ब्रा ना हो तो परेशानी और भी बढ़ जाती है. बाद में इसी वीडियो में लड़कियां लड़कों  को एक घंटे तक ब्रा पहनने का चैलेंज देती हैं. लेकिन लड़के 5 मिनट से ज्यादा ब्रा पहन कर नहीं रह पाते और मान लेते हैं कि ब्रा पहनना सचमुच बड़ी दिक्कत वाला काम है. इस वीडियो में कई लड़कों ने बारी-बारी से ब्रा पहनी और सबने यही कहा कि 1 घंटे  ब्रा पहनने में ही उन्हें दिन में तारे नज़र आ  गए.

क्या कहती है रिसर्च

1990 के बाद जो शोध किये गए हैं उनमें पाया गया है कि लंबे समय में ब्रा असल में नुकसान पहुंचाती है. एक फ्रेंच स्टडी के हिसाब से ब्रा पहनने के कई नुकसान हैं और औरतों को सलाह दी कि अगर मुमकिन हो तो वे ब्रा ना पहनें. 2013 में जब इस रिसर्च को पब्लिक किया गया तो इसमें बताया गया कि ब्रा पहनने से ब्रेस्ट टिशूज़ का बढ़ना रुक जाता है और शोध में बिना ब्रा वाले ब्रेस्ट्स ज़्यादा स्वस्थ पाए गए. चूंकि ये शोध सिर्फ 18-35 के बीच की औरतों पर किया गया था तो ये कहा नहीं जा सकता कि इससे बड़ी उम्र की औरतों के लिए ब्रा ना पहनना कितना फायदेमंद होगा.

शोध के अनुसार करीब 70 से 80 प्रतिशत महिलाएं गलत साइज की ब्रा पहनती हैं और कसरत के दौरान स्पोर्ट्स ब्रा नहीं पहनती हैं जिससे वे सेहत से जुड़े गंभीर खतरों का शिकार हो जाती है. इतना ही नहीं गलत साइज की ब्रा पहनने वाली  महिलाएं पीठ और कंधों से जुड़ी समस्या से जूझती हैं. गलत साइज  की ब्रा के कसे स्ट्रैप्स और हुक्स की वजह से आपको रैशेज़ और घाव हो सकते हैं और डाइजेशन में भी परेशानी हो सकती है साथ ही पीठ, कमर और कंधों में दर्द के अतिरिक्त ब्रेस्ट कैंसर, हार्टबर्न और ब्लड सर्कुलेशन में भी दिक्कत आ सकती है.

ब्रा लेस हो कर जलवा बिखेरती हसीनाएं

ब्रा के शायद इन्ही नुकसानों को देखते हुए कुछ हसीनाएं ब्रा के नाम से इतना चिढती हैं  कि पब्लिक प्लेस में या किसी समारोह में भी इन्हें ब्रा पहनना बिलकुल पसंद नहीं आता और वे बिना ब्रा पहने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने हुस्न का जलवा बिखेरती हैं. इन हसीनाओं में अगर बॉलीवुड अभिनेत्रियों की बात की जाए तो बोल्ड एन्ड सेक्सी दीपिका पादुकोण, सनी लियोन के अलावा ट्विटर गर्ल पूनम पांडे चर्चा में रही हैं. इसके अतिरिक्त दुनिया की सबसे प्रसिद्द सुपर मॉडल हेल्दी क्लूम, इन्टरनेट क्वीन किम कर्दशियान और संगीत की दुनिया में एक के बाद एक सुपर हिट गीत देने वाली रिहाना जो सभी  तराशे हुए फिगर की मलिकायें हैं बिना ब्रा के जलवे बिखेरते दिखाई देती हैं.

नो ब्रा, नो प्रॉब्लम कैम्पेन 

महिलाओं के ड्रेस कोड को लेकर आये दिन नए नए फरमान जारी होते रहते हैं और साथ ही ड्रेसकोड के ख़िलाफ़ विरोध भी होता रहता है. पिछले साल विम्बल्डन में कनाडा की खिलाडी यूजिनी बुशार्ड को सिर्फ इसलिए चेतावनी दे दी गयी क्योंकि उन्होंने अपनी सफ़ेद ड्रेस के नीचे ब्लैक कलर की ब्रा पहन रखी थी. यह खापी फरमान नहीं तो  और क्या है? ऐसा ही कुछ अमेरिका के मोंटाना के स्कूल की एक छात्रा केटलिन के साथ भी हुआ जब वह 'शोल्डरलेस ब्लैक ब्लाउज़' के नीचे अंडरगार्मेंट नहीं पहन के आई तो उसकी टीचर ने उसे  डांट लगाई  और 'कवर अप' करने के लिए कहा. छात्रा को इस बात के लिए फटकार भी  लगाई गई कि उसके  शर्ट के नीचे ब्रा नहीं पहनने से दूसरे छात्र असहज हो सकते हैं. इसके खिलाफ स्कूल की छात्राओं ने ना सिर्फ स्कूल में बिना ब्रा पहने प्रदर्शन किया बल्कि 'नो ब्रा, नो प्रॉब्लम' के नाम से फेसबुक पेज भी शुरू किया. इन छात्राओं ने कहा कि उन्हें ये ना सिखाया जाए कि उन्हें क्या पहनना है और क्या नहीं. केटलिन ने मीडिया से कहा कि ये अगर उनका शरीर सही ढंग से ढका हुआ है तो ये किसी और के लिए चिंता की बात नहीं होनी चाहिए. केटलिन ने कहा, असल में जिस तरह मुझे कहा गया कि लोग असहज महसूस कर रहे हैं तो इस पर मुझे आपत्ति है क्योंकि ये मेरा शरीर है. मुझे नहीं पता कि ये दूसरे के लिए कैसे असहजता उत्पन्न कर सकता है?

'नो ब्रा, नो प्रॉब्लम' पेज पर दुनिया भर से संदेश आ रहे हैं. इस पर पेज एक यूजर ने  यह भी कहा, "किसी भी लड़की या महिला को ब्रा तभी पहननी चाहिए जब वह खुद चाहे और कम्फ़र्टेबल महसूस करे. किसी और को ये कहने का अधिकार नहीं है कि वह क्या पहने और क्या नहीं पहने. जब हम पुरुष, नहीं चाहें, तो कोई हमें अंडरवियर पहनने के लिए नहीं कह सकता तो फिर महिलाओं के साथ ऐसा भेदभाव क्यों?

जिंदगी एक ब्रा की तरह है

एमटीवी पर आने वाले शो ‘गर्ल्स ऑन टॉप’ में ईशा का किरदार निभा रही  और बेहद बिंदास और अपनी हर बात बेबाकी से बोलने वाली सलोनी ने उन लोगों को जो महिलाओं की ब्रा की स्ट्रैीप दिखने पर भद्दे कमेंट्स करते  हैं करारा जवाब दिया है . सलोनी ने इंस्टाग्राम पर एक बोल्ड तस्वीर के साथ एक बेहद बोलेड मेसेज दिया है. तस्वीर में सलोनी अपने हाथ में ब्रा लिए नजर आ रही हैं और उन्होंने मैसेज दिया है कि पुरुष बिना शर्ट के या अपने बॉक्सर्स में इधर-उधर घूम सकते हैं, लेकिन लड़कियां अपनी ब्रा में भी नहीं नजर आ सकतीं, ऐसे लोगों ने यकीनन समाज को नुकसान पहुंचाया है. सलोनी का कहना है-‘जिंदगी एक ब्रा की तरह है और महिलाओं को अपनी सेक्शुहअलिटी को लेकर और ज्यादा खुलने की जरूरत है. मुझे सच में समझ नहीं आता कि इनरवियर में प्रोब्लम क्या है? मैं पहनती हूं. क्या मुझे इन्हें पूरी तरह छुपाकर ऐसा अभिनय करना चाहिए कि मैंने इनरवियर पहने ही नहीं हैं?  मेरे लिए ये सिर्फ एक कपड़े का टुकड़ा है जो मेरे ब्रेस्ट को ढकता है. जैसे कि एक स्कर्ट मेरे पैरों को ढकती है, और बाजू मेरे कंधों को. तो इसमें परेशानी क्या है? मेरा यकीन करें, हमारे ब्रेस्ट धार्मिक या पवित्र नहीं हैं, वो केवल हमारे शरीर का हिस्सा हैं. महिलाओं से कहना बंद करो कि वे ब्रेस्ट को लेकर असहज महसूस करें. इनरवियर कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे छुपा कर रखा जाए.

सलोनी ने सही कहा कि ब्रा सिर्फ एक कपडे का टुकड़ा है और उसे पहनने या न पहनने  की आज़ादी एक महिला को ही होनी चहिये उसके दिखने को शर्म या झिझक का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए. क्योंकि एक लंबे दिन के बाद जब एक महिला इस ब्रा रुपी बंधन को उतार फेंकती है तो वह जिस आज़ादी को महसूस करती है यह  सिर्फ वही  जानती है. अगर कोई महिला ब्रा पहनकर खुद को कॉन्फिडेंट और खूबसूरत महसूस करती है तो यह उसकी सोच उसका अधिकार है. उस पर किसी को बंदिश लगाने का अधिकार नहीं है. कब तक समाज स्कर्ट, जीन्स, बुर्के या ब्रा जैसी चीज़ों को लेकर आधी आबादी पर अपनी रूढ़िवादी सोच का शिकंजा कसता रहेगा? 

फेसबुक पर मेरी एक क्लासफैलो से फ्रैंडशिप हुई. मैं उसे कैसे बताऊं कि मुझे उस से प्यार हो गया है.

सवाल

मैं 20 वर्षीय छात्र हूं. फेसबुक पर मेरी एक क्लासफैलो से फ्रैंडशिप हुई. वह कालेज में तो मुझ से बात भी नहीं करती पर फेसबुक पर चैट करती है. मैं उसे कैसे बताऊं कि मुझे उस से प्यार हो गया है?

जवाब

फेसबुक पर बातचीत होती है तो फेसबुक पर ही लिख डालिए ‘आई लव यू’. फिर उस से बातोंबातों में जानिए कि क्या वह आप को प्यार करती है. अगर वह सिर्फ फ्रैंड रिक्वैस्ट कुबूल करने के कारण फेसबुक पर बात करती है तो रहने दें वरना कालेज में भी बात करने की कोशिश करें. हो सकता है बातों का सिलसिला ऐसा चले कि कहने की जरूरत ही न पड़े और प्रेम के तार उधर भी झनझना उठें.

 

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VIDEO: कलयुगी पिता ने जब बेटी को बनाया हवस का शिकार

अब तक देश में बढ़ते यौन हिंसा के मामलों में सिर्फ जनता का ही आक्रोश सड़कों पर दिखता आया है. लेकिन नए साल के मौके पर पहली बार दिल्ली पुलिस आयुक्त भीमसेन बस्सी का वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में जबरदस्त आक्रोश तब दिखा जब उन्होंने रेपिस्टों को गोली मारने सरीखा विवादास्पद बयान दे डाला. बयान पर भले ही संवैधानिक व कानूनीतौर पर असहमति जताई जा रही हो लेकिन इस तरह के बयान जाहिर करते हैं कि देश में किस तरह से इंसानियत को शर्मसार करने वाले दरिंदे मासूमों का यौन उत्पीड़न कर रहे हैं. बलात्कार व यौन हिंसा के लगातार बढ़ते मामलों को देख जब राजधानी के पुलिस आयुक्त को इतना उबाल आ सकता है तो जरा सोचिए जिन पर यह दरिंदगी बीतती होगी. उन का व उन के परिवार क्या हाल होता होगा.

कुन्नू पड़ोसी युवक था. उस का अकसर नरेश के घर पर आनाजाना था. विश्वास के दायरे में एक दिन वह नरेश की 5 साल की मासूम बेटी गुडि़या को चौकलेट का लालच दे कर अपने साथ ले गया. कामुकता का शिकार कुन्नू गुडि़या को अपने घर की छत पर ले गया और उसे हवस का शिकार बनाने लगा. खून से लथपथ बेचारी गुडि़या दर्द से तड़पती रही. कामांध की संवेदनाएं जैसे मर चुकी थीं. आखिरकार गुडि़या तड़पतड़प कर बेहोश हो गई. इस के बाद भी हैवान का दिल नहीं पसीजा. इस बीच गुडि़या के परिजन उसे खोजते हुए छत पर पहुंचे तो दिल दहला देने वाला नजारा देख कर सन्न रह गए. वह बेहोश गुडि़या के शरीर को नोच रहा था.

कुन्नू रंगेहाथों पकड़ा गया और लहूलुहान गुडि़या को अस्पताल में भरती कराया गया. अंदरूनी घावों व अत्यधिक रक्तस्राव से गुडि़या की सांसों की डोर हमेशा के लिए टूट गई. इस बारे में सोचने भर से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

यह दर्दनाक घटना महज एक उदाहरण भर है. वहशी व दरिंदगी भरे इस तरह के मामले आएदिन समाज व इंसानियत को शर्मसार कर रहे हैं. मासूम बच्चियां कामुकता की शिकार हो रही हैं. यह हाईटैक हो चुके उस समाज में कोढ़ग्रस्त इंसानियत की हकीकत भी है जिसे ‘सभ्य’ कहा जाता है. बेटियों को पूजने के ढोंग से ले कर कई तरह की बातें की जाती हैं, लेकिन इस के बावजूद, मासूम बेटियां ही सब से ज्यादा खतरे में हैं. उस उम्र में भी जिस में वे भोलेपन के पायदान पर गंदे इरादों से पूरी तरह अनजान होती हैं. उन की मासूमियत को हैवानियत के पंजों तले रौंदा जाता है. समाज में हर रोज हजारों जोड़ी गंदी नजरें ‘गुडि़या’ जैसी मासूमियत को खोजती हैं और उन्हें नोंच लेना चाहती हैं. दूसरे शब्दों में, असुरक्षा का यह ऐसा दायरा है जो अभिभावकों की फिक्र बढ़ा रहा है.

सभ्य समाज का यह बदरंग चेहरा है, जहां 2 साल की बच्ची तक हवस का शिकार बना ली जाती है. वासना के भूखे नर भेडि़ए कब किस मासूम को अपना शिकार बना लें, कोई नहीं जानता. 7 वर्षीय निशा एक दिन घर के बाहर खेल रही थी. इसी बीच मूलचंद नामक अधेड़ उसे बहाने से एक निर्माणाधीन प्लौट में ले गया और उस के साथ गलत काम करने का प्रयास किया. निशा के शोर मचाने पर सड़क पर आतेजाते लोग वहां पहुंचे और मूलचंद को पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया. निशा ने हिम्मत कर के शोर न मचाया होता तो वह न सिर्फ दरिंदगी का शिकार होती, बल्कि पहचान छिपाने के लिए आरोपी उस की हत्या भी कर सकता था. दुराचार के बाद हत्या की वारदातें भी घटित होती हैं. विकृत मानसिकता व असंवेदनशीलता को दर्शाने वाली ऐसी घटनाएं देश के कोनेकोने में हो रही हैं. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के बाबूपुरवा क्षेत्र में घर के बाहर से खेलते हुए लापता हुई ढाई साल की बच्ची का शव झाडि़यों में पड़ा पाया गया. वह अर्द्धनग्न हालत में थी और उस के गले में गमछा कसा हुआ था. एक वहशी ने हैवानियत का शिकार बनाने के बाद उसे बेरहमी से मार डाला था. पुलिस ने दुष्कर्म के आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया. पहचाने जाने के डर से उस ने बच्ची की हत्या की थी.

शामली जिले की 7 वर्षीय रीना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. एक पड़ोसी युवक टिंकू ने रीना को अकेले पा कर अपनी हवस का शिकार बनाया. रीना व टिंकू के परिवारों के बीच मेलजोल था. टिंकू की नीयत रीना पर बिगड़ गई. वह उसे बहाने से खेत में ले गया और उस के साथ बलात्कार किया. टिंकू को लगा कि रीना उस का भेद खोल देगी, तो उस ने सलवार से गला घोंट कर रीना की हत्या कर दी. शव मिलने के बाद शक के आधार पर टिंकू को गिरफ्तार कर लिया गया. जयपुर के सांगानेर स्थित एक मदरसे में 7 वर्षीय बच्ची तालीम लेने के लिए गई. अंधेरा होने के बाद जब वह घर नहीं पहुंची तो परिजनों ने उस की तलाश शुरू की. बच्ची की रोने की आवाज सुन कर वे छत पर पहुंचे. वह खून से सनी बिलख रही थी. बच्ची को आईसीयू में भरती कराया गया. उसे किसी कामांध की करतूत से भीतरी चोटें आई थीं.

ग्वालियर में एक अधेड़ पृथ्वीराज 2 साल की पड़ोस की बच्ची को बिस्कुट दिलाने के बहाने ले गया और उस के साथ बुरा काम किया. उस दरिंदे की हैवानियत के बाद मासूम बच्ची को गहन चिकित्सा के बाद 48 घंटे बाद होश आया और पूरी तरह ठीक होने में 3 माह लग गए. घर से ले कर स्कूल तक बच्चियां असुरक्षित हैं. राजधानी दिल्ली में ही एक 4 वर्षीय नर्सरी की छात्रा के साथ कैब चालक ने छेड़छाड़ की. बच्ची ने यह बात घर आ कर बताई तो उस की मां की शिकायत पर चालक मनोज कुमार को जेल भेज दिया गया. गोहाना में एक निजी स्कूल में पढ़ने वाली 3 साल की बच्ची रोते हुए घर पहुंची. उस की छाती पर दांत से काटने का निशान मिला. उस के साथ एक बस चालक ने स्कूल की छुट्टी के बाद यौन शोषण किया. चालक को पुलिस ने जेल में डाल दिया.एक नामचीन स्कूल में दूसरी कक्षा की छात्रा के साथ सफाईकर्मी द्वारा यौनशोषण का मामला प्रकाश में आया. महाराष्ट्र के अकोला स्थित नवोदय स्कूल की 55 छात्राओं ने शिक्षकों पर यौनशोषण का आरोप लगाया.

इस तरह के मामलों पर सामाजिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि आज लोगों की वासना सीमाओं को लांघ चुकी है. इस के लिए वह माहौल के अलावा फिल्मों व टैलीविजन को भी बड़ा जिम्मेदार मानते हैं. पारिवारिक मूल्यों का पतन भी इस का जिम्मेदार है. एलएलआरएम मैडिकल कालेज के प्रमुख अधीक्षक डा. सुभाष सिंह कहते हैं कि मासूम बच्चियों के मामले जब अस्पताल में आते हैं, तो वे चौंक जाते हैं. पता चलता है कि संवेदना किस हद तक दम तोड़ रही है. बलात्कारी किसी न किसी रूप में परिवार के संपर्क में रहने वाला होता है. ऐसी घटनाएं बच्ची की मानसिकता पर जिंदगीभर के लिए कटु आघात डाल सकती हैं. ऐसे मामलों को पतन के तौर पर देख कर सटीक कदम उठाए जाने चाहिए.

बीते कुछ वर्षों में बच्चों का यौन शोषण बढ़ा है. 50 फीसदी मामलों में बच्चों का शोषण वहां होता है जहां उन का विश्वास या रोजमर्रा का कोई रिश्ता हो. भारत में बच्चों का एक बड़ा हिस्सा यौन उत्पीड़न का शिकार है. हर 5 में से 1 बच्चा शिकार होता है. 5 से 12 साल की उम्र में बच्चे सब से ज्यादा शिकार होते हैं. घरों से ले कर स्कूल तक यह सिलसिला चलता है.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, सख्त कानून बनाए जाने के बावजूद पिछले दशक में सब से ज्यादा तेजी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में दर्ज की गई है. वर्ष 2004 में बलात्कार के 18,233 मामले दर्ज किए गए, वहीं वर्ष 2014 में ये बढ़ कर 36,735 हो गए. बलात्कार के अपराध में 101.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसी तरह वर्ष 2004 में हत्या के 33,608 मामले दर्ज किए गए, वहीं वर्ष 2014 में ये 33,981 हो गए. हत्या के अपराध में 1.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई. सभी मामले दर्ज होते हों, ऐसा नहीं है. पिछले 10 सालों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है.

मासूमियत का शिकार करने वाला किस शक्ल में होगा, यह पहचान करना थोड़ा कठिन है. हरियाणा के एक नामी स्कूल की अध्यापिका नाम न छापने की शर्त पर बताती हैं कि जब वे छोटी थीं तो उन के यहां काम करने वाले नौकर ही उन के साथ गंदी हरकतें करते थे. बड़े हो कर उन्हें हकीकत समझ आ गई. स्तब्ध करने वाली एक घटना इलाहाबाद में हुई. बाल सुधार गृह में एक 6 साल की बच्ची ने अपने साथ हुए अत्याचार की बात एक दंपती को बताई जिस के बाद सुधार गृह की अधीक्षक उर्मिला गुप्ता को निलंबित करते हुए चौकीदार विद्याभूषण को गिरफ्तार कर लिया गया. वह बाल सुधार गृह में आने वाली बच्चियों का यौन उत्पीड़न करता था. उस ने कुबूल किया कि उस ने 10 साल से कम उम्र की कई लड़कियों के साथ दुराचार किया था.

मनोविज्ञानियों की राय में पारिवारिक मूल्यों का पतन भी इस तरह के मामलों का जिम्मेदार है. हर मनुष्य बुराइयों के साथ जन्म लेता है. कुछ लोग अपनी बुराइयों पर नियंत्रण कर लेते हैं. जो ऐसा नहीं कर पाते उन में दुष्कर्म की भावना जैसी बुराई भी घर बना लेती है. इस तरह की मनोवृत्ति का शिकार व्यक्ति बच्चियों की मासूमियत और जानपहचान का गलत फायदा उठाते हैं. वे इस की ताक में रहते हैं. उन के लिए वे सौफ्ट टारगेट होती हैं. यह सच है कि अमानवीय घटनाओं के आंकड़े पूरी सामाजिक व्यवस्था पर सवाल हैं. देश में बच्चों की आबादी का एक खासा हिस्सा यौन शोषण का शिकार है.

वीडियो में दिखाई गयी इस लड़की के बाप ने भी उसके साथ किया कुछ ऐसा ही, जिससे तंग आकर बेटी ने अपने बाप के साथ जो किया, वो आपको भी देखना चाहिए.

कलयुगी पिता ने जब बेटी को बनाया हवस का शिकार

अब तक देश में बढ़ते यौन हिंसा के मामलों में सिर्फ जनता का ही आक्रोश सड़कों पर दिखता आया है. लेकिन नए साल के मौके पर पहली बार दिल्ली पुलिस आयुक्त भीमसेन बस्सी का वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में जबरदस्त आक्रोश तब दिखा जब उन्होंने रेपिस्टों को गोली मारने सरीखा विवादास्पद बयान दे डाला. बयान पर भले ही संवैधानिक व कानूनीतौर पर असहमति जताई जा रही हो लेकिन इस तरह के बयान जाहिर करते हैं कि देश में किस तरह से इंसानियत को शर्मसार करने वाले दरिंदे मासूमों का यौन उत्पीड़न कर रहे हैं. बलात्कार व यौन हिंसा के लगातार बढ़ते मामलों को देख जब राजधानी के पुलिस आयुक्त को इतना उबाल आ सकता है तो जरा सोचिए जिन पर यह दरिंदगी बीतती होगी. उन का व उन के परिवार क्या हाल होता होगा.

कुन्नू पड़ोसी युवक था. उस का अकसर नरेश के घर पर आनाजाना था. विश्वास के दायरे में एक दिन वह नरेश की 5 साल की मासूम बेटी गुडि़या को चौकलेट का लालच दे कर अपने साथ ले गया. कामुकता का शिकार कुन्नू गुडि़या को अपने घर की छत पर ले गया और उसे हवस का शिकार बनाने लगा. खून से लथपथ बेचारी गुडि़या दर्द से तड़पती रही. कामांध की संवेदनाएं जैसे मर चुकी थीं. आखिरकार गुडि़या तड़पतड़प कर बेहोश हो गई. इस के बाद भी हैवान का दिल नहीं पसीजा. इस बीच गुडि़या के परिजन उसे खोजते हुए छत पर पहुंचे तो दिल दहला देने वाला नजारा देख कर सन्न रह गए. वह बेहोश गुडि़या के शरीर को नोच रहा था.

कुन्नू रंगेहाथों पकड़ा गया और लहूलुहान गुडि़या को अस्पताल में भरती कराया गया. अंदरूनी घावों व अत्यधिक रक्तस्राव से गुडि़या की सांसों की डोर हमेशा के लिए टूट गई. इस बारे में सोचने भर से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

यह दर्दनाक घटना महज एक उदाहरण भर है. वहशी व दरिंदगी भरे इस तरह के मामले आएदिन समाज व इंसानियत को शर्मसार कर रहे हैं. मासूम बच्चियां कामुकता की शिकार हो रही हैं. यह हाईटैक हो चुके उस समाज में कोढ़ग्रस्त इंसानियत की हकीकत भी है जिसे ‘सभ्य’ कहा जाता है. बेटियों को पूजने के ढोंग से ले कर कई तरह की बातें की जाती हैं, लेकिन इस के बावजूद, मासूम बेटियां ही सब से ज्यादा खतरे में हैं. उस उम्र में भी जिस में वे भोलेपन के पायदान पर गंदे इरादों से पूरी तरह अनजान होती हैं. उन की मासूमियत को हैवानियत के पंजों तले रौंदा जाता है. समाज में हर रोज हजारों जोड़ी गंदी नजरें ‘गुडि़या’ जैसी मासूमियत को खोजती हैं और उन्हें नोंच लेना चाहती हैं. दूसरे शब्दों में, असुरक्षा का यह ऐसा दायरा है जो अभिभावकों की फिक्र बढ़ा रहा है.

सभ्य समाज का यह बदरंग चेहरा है, जहां 2 साल की बच्ची तक हवस का शिकार बना ली जाती है. वासना के भूखे नर भेडि़ए कब किस मासूम को अपना शिकार बना लें, कोई नहीं जानता. 7 वर्षीय निशा एक दिन घर के बाहर खेल रही थी. इसी बीच मूलचंद नामक अधेड़ उसे बहाने से एक निर्माणाधीन प्लौट में ले गया और उस के साथ गलत काम करने का प्रयास किया. निशा के शोर मचाने पर सड़क पर आतेजाते लोग वहां पहुंचे और मूलचंद को पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया. निशा ने हिम्मत कर के शोर न मचाया होता तो वह न सिर्फ दरिंदगी का शिकार होती, बल्कि पहचान छिपाने के लिए आरोपी उस की हत्या भी कर सकता था. दुराचार के बाद हत्या की वारदातें भी घटित होती हैं. विकृत मानसिकता व असंवेदनशीलता को दर्शाने वाली ऐसी घटनाएं देश के कोनेकोने में हो रही हैं. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के बाबूपुरवा क्षेत्र में घर के बाहर से खेलते हुए लापता हुई ढाई साल की बच्ची का शव झाडि़यों में पड़ा पाया गया. वह अर्द्धनग्न हालत में थी और उस के गले में गमछा कसा हुआ था. एक वहशी ने हैवानियत का शिकार बनाने के बाद उसे बेरहमी से मार डाला था. पुलिस ने दुष्कर्म के आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया. पहचाने जाने के डर से उस ने बच्ची की हत्या की थी.

शामली जिले की 7 वर्षीय रीना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. एक पड़ोसी युवक टिंकू ने रीना को अकेले पा कर अपनी हवस का शिकार बनाया. रीना व टिंकू के परिवारों के बीच मेलजोल था. टिंकू की नीयत रीना पर बिगड़ गई. वह उसे बहाने से खेत में ले गया और उस के साथ बलात्कार किया. टिंकू को लगा कि रीना उस का भेद खोल देगी, तो उस ने सलवार से गला घोंट कर रीना की हत्या कर दी. शव मिलने के बाद शक के आधार पर टिंकू को गिरफ्तार कर लिया गया. जयपुर के सांगानेर स्थित एक मदरसे में 7 वर्षीय बच्ची तालीम लेने के लिए गई. अंधेरा होने के बाद जब वह घर नहीं पहुंची तो परिजनों ने उस की तलाश शुरू की. बच्ची की रोने की आवाज सुन कर वे छत पर पहुंचे. वह खून से सनी बिलख रही थी. बच्ची को आईसीयू में भरती कराया गया. उसे किसी कामांध की करतूत से भीतरी चोटें आई थीं.

ग्वालियर में एक अधेड़ पृथ्वीराज 2 साल की पड़ोस की बच्ची को बिस्कुट दिलाने के बहाने ले गया और उस के साथ बुरा काम किया. उस दरिंदे की हैवानियत के बाद मासूम बच्ची को गहन चिकित्सा के बाद 48 घंटे बाद होश आया और पूरी तरह ठीक होने में 3 माह लग गए. घर से ले कर स्कूल तक बच्चियां असुरक्षित हैं. राजधानी दिल्ली में ही एक 4 वर्षीय नर्सरी की छात्रा के साथ कैब चालक ने छेड़छाड़ की. बच्ची ने यह बात घर आ कर बताई तो उस की मां की शिकायत पर चालक मनोज कुमार को जेल भेज दिया गया. गोहाना में एक निजी स्कूल में पढ़ने वाली 3 साल की बच्ची रोते हुए घर पहुंची. उस की छाती पर दांत से काटने का निशान मिला. उस के साथ एक बस चालक ने स्कूल की छुट्टी के बाद यौन शोषण किया. चालक को पुलिस ने जेल में डाल दिया.एक नामचीन स्कूल में दूसरी कक्षा की छात्रा के साथ सफाईकर्मी द्वारा यौनशोषण का मामला प्रकाश में आया. महाराष्ट्र के अकोला स्थित नवोदय स्कूल की 55 छात्राओं ने शिक्षकों पर यौनशोषण का आरोप लगाया.

इस तरह के मामलों पर सामाजिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि आज लोगों की वासना सीमाओं को लांघ चुकी है. इस के लिए वह माहौल के अलावा फिल्मों व टैलीविजन को भी बड़ा जिम्मेदार मानते हैं. पारिवारिक मूल्यों का पतन भी इस का जिम्मेदार है. एलएलआरएम मैडिकल कालेज के प्रमुख अधीक्षक डा. सुभाष सिंह कहते हैं कि मासूम बच्चियों के मामले जब अस्पताल में आते हैं, तो वे चौंक जाते हैं. पता चलता है कि संवेदना किस हद तक दम तोड़ रही है. बलात्कारी किसी न किसी रूप में परिवार के संपर्क में रहने वाला होता है. ऐसी घटनाएं बच्ची की मानसिकता पर जिंदगीभर के लिए कटु आघात डाल सकती हैं. ऐसे मामलों को पतन के तौर पर देख कर सटीक कदम उठाए जाने चाहिए.

बीते कुछ वर्षों में बच्चों का यौन शोषण बढ़ा है. 50 फीसदी मामलों में बच्चों का शोषण वहां होता है जहां उन का विश्वास या रोजमर्रा का कोई रिश्ता हो. भारत में बच्चों का एक बड़ा हिस्सा यौन उत्पीड़न का शिकार है. हर 5 में से 1 बच्चा शिकार होता है. 5 से 12 साल की उम्र में बच्चे सब से ज्यादा शिकार होते हैं. घरों से ले कर स्कूल तक यह सिलसिला चलता है.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, सख्त कानून बनाए जाने के बावजूद पिछले दशक में सब से ज्यादा तेजी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में दर्ज की गई है. वर्ष 2004 में बलात्कार के 18,233 मामले दर्ज किए गए, वहीं वर्ष 2014 में ये बढ़ कर 36,735 हो गए. बलात्कार के अपराध में 101.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसी तरह वर्ष 2004 में हत्या के 33,608 मामले दर्ज किए गए, वहीं वर्ष 2014 में ये 33,981 हो गए. हत्या के अपराध में 1.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई. सभी मामले दर्ज होते हों, ऐसा नहीं है. पिछले 10 सालों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है.

मासूमियत का शिकार करने वाला किस शक्ल में होगा, यह पहचान करना थोड़ा कठिन है. हरियाणा के एक नामी स्कूल की अध्यापिका नाम न छापने की शर्त पर बताती हैं कि जब वे छोटी थीं तो उन के यहां काम करने वाले नौकर ही उन के साथ गंदी हरकतें करते थे. बड़े हो कर उन्हें हकीकत समझ आ गई. स्तब्ध करने वाली एक घटना इलाहाबाद में हुई. बाल सुधार गृह में एक 6 साल की बच्ची ने अपने साथ हुए अत्याचार की बात एक दंपती को बताई जिस के बाद सुधार गृह की अधीक्षक उर्मिला गुप्ता को निलंबित करते हुए चौकीदार विद्याभूषण को गिरफ्तार कर लिया गया. वह बाल सुधार गृह में आने वाली बच्चियों का यौन उत्पीड़न करता था. उस ने कुबूल किया कि उस ने 10 साल से कम उम्र की कई लड़कियों के साथ दुराचार किया था.

मनोविज्ञानियों की राय में पारिवारिक मूल्यों का पतन भी इस तरह के मामलों का जिम्मेदार है. हर मनुष्य बुराइयों के साथ जन्म लेता है. कुछ लोग अपनी बुराइयों पर नियंत्रण कर लेते हैं. जो ऐसा नहीं कर पाते उन में दुष्कर्म की भावना जैसी बुराई भी घर बना लेती है. इस तरह की मनोवृत्ति का शिकार व्यक्ति बच्चियों की मासूमियत और जानपहचान का गलत फायदा उठाते हैं. वे इस की ताक में रहते हैं. उन के लिए वे सौफ्ट टारगेट होती हैं. यह सच है कि अमानवीय घटनाओं के आंकड़े पूरी सामाजिक व्यवस्था पर सवाल हैं. देश में बच्चों की आबादी का एक खासा हिस्सा यौन शोषण का शिकार है.

बढ़ गया भारत का विदेशी कर्ज

भारत का विदेशी ऋण मार्च 2016 की समाप्ति पर एक साल पहले के मुकाबले 10.6 अरब डॉलर यानी 2.2 प्रतिशत बढ़कर 485.6 अरब डॉलर हो गया. विदेशी ऋण में यह वृद्धि विशेषतौर पर प्रवासी भारतीय जमा और दीर्घकालिक कर्ज बढ़ने की वजह से हुई. मार्च 2016 की समाप्ति पर दीर्घकालिक विदेशी ऋण 402.2 अरब डॉलर था.

एक साल पहले के मुकाबले यह 3.3 प्रतिशत अधिक रहा. कुल विदेशी ऋण में दीर्घकालिक कर्ज का हिस्सा 82.8 प्रतिशत रहा. मार्च 2015 में यह 82 प्रतिशत था. ‘भारत का विदेशी ऋण: 2015-16 की स्थिति’ नामक सालाना स्थिति रिपोर्ट के 22वें इश्यू में यह जानकारी दी गई है.

आर्थिक मामले विभाग द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है. दीर्घकालिक ऋण विशेषतौर पर प्रवासी भारतीयों की जमा राशि बढ़ने से विदेशी ऋण में वृद्धि हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक अल्पकालिक विदेशी ऋण इस दौरान 2.5 प्रतिशत घटकर 83.4 अरब डॉलर रह गया. एक साल पहले मार्च में यह 84.7 अरब डॉलर पर था.

अल्पकालिक कर्ज में कमी आने की मुख्य वजह व्यापार से जुड़े कर्ज में कमी आना रहा है. कुल विदेशी कर्ज में अल्पकालिक विदेशी ऋण का हिस्सा 18 प्रतिशत से घटकर 17.2 प्रतिशत रह गया. देश के विदेशी ऋण में बड़ा हिस्सा दीर्घकालिक कर्ज का है.

धोनी के घर, स्कूल और दफ्तर में शूट हुई उनकी बायोपिक

30 सितंबर को भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी पर बनी फिल्म एमएस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी, रिलीज होने जा रही है. यकीन मानिए, यह बॉलीवुड में अब तक बनी तमाम बायोपिक मूवी से एकदम अलग है. फिल्म विश्वसनीय है और इसमे दिखाए गए सारे तथ्य वैसे ही हैं, जैसे घटे हैं. इस बात की पुष्टि खुद महेंद्र सिंह धोनी ने भी की है.

धोनी के पूरे देश में करोड़ो फैन हैं जो धोनी के हर एक मूव पर बहुत ही करीब से नजर रखते हैं. ऐसे में एमएस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी उनके लिए अपने आदर्श व रियल हीरो की निजी जिंदगी में झांकने का एक मौका देने जा रही है. एमएस धोनी के मेकर्स ने धोनी की बायोपिक फिल्म को तथ्यपूर्ण और रियलिस्टिक टच देने की भरपूर कोशिश है. फिल्म हूबहू वैसी लगे जैसी वास्तिकता में घटी हो, इसके लिए लिए मेकर्स ने धोनी की जीवन से जुड़ी तमाम जगहों पर जाकर शूटिंग पूरी की है.

उन्होंने धोनी के पुराने घर जहां वो अपने क्रिकेटिंग करियर के संघर्ष के दौरान परिवार के साथ रहते थे, वहां विशेष रूप से शूटिंग की गई है. फिर चाहे वो रांची का स्कूल हो या फिर खड़गपुर रेलवे स्टेशन जहां धोनी टीटी के रूप में कार्यरत थे, इन सभी जगहों पर फिल्म की शूटिंग की है. इन सभी के पीछे मेकर्स की यही कोशिश रही है कि फिल्म को ज्यादा से ज्यादा विश्वसनीय बनाया जाए.

अब तक आए ट्रेलर और गाने यह बताने के लिए काफी हैं कि फिल्म में धोनी से जुड़ी बारीक से बारीक चीजों पर बहुत गहराई से काम किया गया है. एमएस धोनी के ट्रेलर की पॉपुलरटी करीब महीनेभर बाद भी कम नहीं हुई है और वो अभी भी सभी डिजिटल प्लेटफार्म पर टॉप लिस्ट में शुमार है. तभी तो फिल्म के ट्रेलर ने बॉलीवुड में ट्रेलर के मामले में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं.

टीवी से फिल्म की ओर मुड़े अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के अभिनय की तारीफ चारों ओर हो रही है. धोनी के किरदार को निभाना इतना आसान कभी नहीं था लेकिन उन्होंने धोनी को जीवंत करने के लिए जी तोड़ मेहनत की है. महेंद्र सिंह की असली जिंदगी और उनके अनोखे संघर्ष को पर्दे पर उतारने के लिए एमएस धोनी की टीम ने जबर्दस्त काम किया है. फिल्म का निर्माण अरुण पाण्डेय और फॉक्स स्टार स्टूडियो ने संयुक्त रूप से किया है.

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