अब तक देश में बढ़ते यौन हिंसा के मामलों में सिर्फ जनता का ही आक्रोश सड़कों पर दिखता आया है. लेकिन नए साल के मौके पर पहली बार दिल्ली पुलिस आयुक्त भीमसेन बस्सी का वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में जबरदस्त आक्रोश तब दिखा जब उन्होंने रेपिस्टों को गोली मारने सरीखा विवादास्पद बयान दे डाला. बयान पर भले ही संवैधानिक व कानूनीतौर पर असहमति जताई जा रही हो लेकिन इस तरह के बयान जाहिर करते हैं कि देश में किस तरह से इंसानियत को शर्मसार करने वाले दरिंदे मासूमों का यौन उत्पीड़न कर रहे हैं. बलात्कार व यौन हिंसा के लगातार बढ़ते मामलों को देख जब राजधानी के पुलिस आयुक्त को इतना उबाल आ सकता है तो जरा सोचिए जिन पर यह दरिंदगी बीतती होगी. उन का व उन के परिवार क्या हाल होता होगा.

कुन्नू पड़ोसी युवक था. उस का अकसर नरेश के घर पर आनाजाना था. विश्वास के दायरे में एक दिन वह नरेश की 5 साल की मासूम बेटी गुडि़या को चौकलेट का लालच दे कर अपने साथ ले गया. कामुकता का शिकार कुन्नू गुडि़या को अपने घर की छत पर ले गया और उसे हवस का शिकार बनाने लगा. खून से लथपथ बेचारी गुडि़या दर्द से तड़पती रही. कामांध की संवेदनाएं जैसे मर चुकी थीं. आखिरकार गुडि़या तड़पतड़प कर बेहोश हो गई. इस के बाद भी हैवान का दिल नहीं पसीजा. इस बीच गुडि़या के परिजन उसे खोजते हुए छत पर पहुंचे तो दिल दहला देने वाला नजारा देख कर सन्न रह गए. वह बेहोश गुडि़या के शरीर को नोच रहा था.

कुन्नू रंगेहाथों पकड़ा गया और लहूलुहान गुडि़या को अस्पताल में भरती कराया गया. अंदरूनी घावों व अत्यधिक रक्तस्राव से गुडि़या की सांसों की डोर हमेशा के लिए टूट गई. इस बारे में सोचने भर से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

यह दर्दनाक घटना महज एक उदाहरण भर है. वहशी व दरिंदगी भरे इस तरह के मामले आएदिन समाज व इंसानियत को शर्मसार कर रहे हैं. मासूम बच्चियां कामुकता की शिकार हो रही हैं. यह हाईटैक हो चुके उस समाज में कोढ़ग्रस्त इंसानियत की हकीकत भी है जिसे ‘सभ्य’ कहा जाता है. बेटियों को पूजने के ढोंग से ले कर कई तरह की बातें की जाती हैं, लेकिन इस के बावजूद, मासूम बेटियां ही सब से ज्यादा खतरे में हैं. उस उम्र में भी जिस में वे भोलेपन के पायदान पर गंदे इरादों से पूरी तरह अनजान होती हैं. उन की मासूमियत को हैवानियत के पंजों तले रौंदा जाता है. समाज में हर रोज हजारों जोड़ी गंदी नजरें ‘गुडि़या’ जैसी मासूमियत को खोजती हैं और उन्हें नोंच लेना चाहती हैं. दूसरे शब्दों में, असुरक्षा का यह ऐसा दायरा है जो अभिभावकों की फिक्र बढ़ा रहा है.

सभ्य समाज का यह बदरंग चेहरा है, जहां 2 साल की बच्ची तक हवस का शिकार बना ली जाती है. वासना के भूखे नर भेडि़ए कब किस मासूम को अपना शिकार बना लें, कोई नहीं जानता. 7 वर्षीय निशा एक दिन घर के बाहर खेल रही थी. इसी बीच मूलचंद नामक अधेड़ उसे बहाने से एक निर्माणाधीन प्लौट में ले गया और उस के साथ गलत काम करने का प्रयास किया. निशा के शोर मचाने पर सड़क पर आतेजाते लोग वहां पहुंचे और मूलचंद को पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया. निशा ने हिम्मत कर के शोर न मचाया होता तो वह न सिर्फ दरिंदगी का शिकार होती, बल्कि पहचान छिपाने के लिए आरोपी उस की हत्या भी कर सकता था. दुराचार के बाद हत्या की वारदातें भी घटित होती हैं. विकृत मानसिकता व असंवेदनशीलता को दर्शाने वाली ऐसी घटनाएं देश के कोनेकोने में हो रही हैं. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के बाबूपुरवा क्षेत्र में घर के बाहर से खेलते हुए लापता हुई ढाई साल की बच्ची का शव झाडि़यों में पड़ा पाया गया. वह अर्द्धनग्न हालत में थी और उस के गले में गमछा कसा हुआ था. एक वहशी ने हैवानियत का शिकार बनाने के बाद उसे बेरहमी से मार डाला था. पुलिस ने दुष्कर्म के आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया. पहचाने जाने के डर से उस ने बच्ची की हत्या की थी.

शामली जिले की 7 वर्षीय रीना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. एक पड़ोसी युवक टिंकू ने रीना को अकेले पा कर अपनी हवस का शिकार बनाया. रीना व टिंकू के परिवारों के बीच मेलजोल था. टिंकू की नीयत रीना पर बिगड़ गई. वह उसे बहाने से खेत में ले गया और उस के साथ बलात्कार किया. टिंकू को लगा कि रीना उस का भेद खोल देगी, तो उस ने सलवार से गला घोंट कर रीना की हत्या कर दी. शव मिलने के बाद शक के आधार पर टिंकू को गिरफ्तार कर लिया गया. जयपुर के सांगानेर स्थित एक मदरसे में 7 वर्षीय बच्ची तालीम लेने के लिए गई. अंधेरा होने के बाद जब वह घर नहीं पहुंची तो परिजनों ने उस की तलाश शुरू की. बच्ची की रोने की आवाज सुन कर वे छत पर पहुंचे. वह खून से सनी बिलख रही थी. बच्ची को आईसीयू में भरती कराया गया. उसे किसी कामांध की करतूत से भीतरी चोटें आई थीं.

ग्वालियर में एक अधेड़ पृथ्वीराज 2 साल की पड़ोस की बच्ची को बिस्कुट दिलाने के बहाने ले गया और उस के साथ बुरा काम किया. उस दरिंदे की हैवानियत के बाद मासूम बच्ची को गहन चिकित्सा के बाद 48 घंटे बाद होश आया और पूरी तरह ठीक होने में 3 माह लग गए. घर से ले कर स्कूल तक बच्चियां असुरक्षित हैं. राजधानी दिल्ली में ही एक 4 वर्षीय नर्सरी की छात्रा के साथ कैब चालक ने छेड़छाड़ की. बच्ची ने यह बात घर आ कर बताई तो उस की मां की शिकायत पर चालक मनोज कुमार को जेल भेज दिया गया. गोहाना में एक निजी स्कूल में पढ़ने वाली 3 साल की बच्ची रोते हुए घर पहुंची. उस की छाती पर दांत से काटने का निशान मिला. उस के साथ एक बस चालक ने स्कूल की छुट्टी के बाद यौन शोषण किया. चालक को पुलिस ने जेल में डाल दिया.एक नामचीन स्कूल में दूसरी कक्षा की छात्रा के साथ सफाईकर्मी द्वारा यौनशोषण का मामला प्रकाश में आया. महाराष्ट्र के अकोला स्थित नवोदय स्कूल की 55 छात्राओं ने शिक्षकों पर यौनशोषण का आरोप लगाया.

इस तरह के मामलों पर सामाजिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि आज लोगों की वासना सीमाओं को लांघ चुकी है. इस के लिए वह माहौल के अलावा फिल्मों व टैलीविजन को भी बड़ा जिम्मेदार मानते हैं. पारिवारिक मूल्यों का पतन भी इस का जिम्मेदार है. एलएलआरएम मैडिकल कालेज के प्रमुख अधीक्षक डा. सुभाष सिंह कहते हैं कि मासूम बच्चियों के मामले जब अस्पताल में आते हैं, तो वे चौंक जाते हैं. पता चलता है कि संवेदना किस हद तक दम तोड़ रही है. बलात्कारी किसी न किसी रूप में परिवार के संपर्क में रहने वाला होता है. ऐसी घटनाएं बच्ची की मानसिकता पर जिंदगीभर के लिए कटु आघात डाल सकती हैं. ऐसे मामलों को पतन के तौर पर देख कर सटीक कदम उठाए जाने चाहिए.

बीते कुछ वर्षों में बच्चों का यौन शोषण बढ़ा है. 50 फीसदी मामलों में बच्चों का शोषण वहां होता है जहां उन का विश्वास या रोजमर्रा का कोई रिश्ता हो. भारत में बच्चों का एक बड़ा हिस्सा यौन उत्पीड़न का शिकार है. हर 5 में से 1 बच्चा शिकार होता है. 5 से 12 साल की उम्र में बच्चे सब से ज्यादा शिकार होते हैं. घरों से ले कर स्कूल तक यह सिलसिला चलता है.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, सख्त कानून बनाए जाने के बावजूद पिछले दशक में सब से ज्यादा तेजी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में दर्ज की गई है. वर्ष 2004 में बलात्कार के 18,233 मामले दर्ज किए गए, वहीं वर्ष 2014 में ये बढ़ कर 36,735 हो गए. बलात्कार के अपराध में 101.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसी तरह वर्ष 2004 में हत्या के 33,608 मामले दर्ज किए गए, वहीं वर्ष 2014 में ये 33,981 हो गए. हत्या के अपराध में 1.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई. सभी मामले दर्ज होते हों, ऐसा नहीं है. पिछले 10 सालों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है.

मासूमियत का शिकार करने वाला किस शक्ल में होगा, यह पहचान करना थोड़ा कठिन है. हरियाणा के एक नामी स्कूल की अध्यापिका नाम न छापने की शर्त पर बताती हैं कि जब वे छोटी थीं तो उन के यहां काम करने वाले नौकर ही उन के साथ गंदी हरकतें करते थे. बड़े हो कर उन्हें हकीकत समझ आ गई. स्तब्ध करने वाली एक घटना इलाहाबाद में हुई. बाल सुधार गृह में एक 6 साल की बच्ची ने अपने साथ हुए अत्याचार की बात एक दंपती को बताई जिस के बाद सुधार गृह की अधीक्षक उर्मिला गुप्ता को निलंबित करते हुए चौकीदार विद्याभूषण को गिरफ्तार कर लिया गया. वह बाल सुधार गृह में आने वाली बच्चियों का यौन उत्पीड़न करता था. उस ने कुबूल किया कि उस ने 10 साल से कम उम्र की कई लड़कियों के साथ दुराचार किया था.

मनोविज्ञानियों की राय में पारिवारिक मूल्यों का पतन भी इस तरह के मामलों का जिम्मेदार है. हर मनुष्य बुराइयों के साथ जन्म लेता है. कुछ लोग अपनी बुराइयों पर नियंत्रण कर लेते हैं. जो ऐसा नहीं कर पाते उन में दुष्कर्म की भावना जैसी बुराई भी घर बना लेती है. इस तरह की मनोवृत्ति का शिकार व्यक्ति बच्चियों की मासूमियत और जानपहचान का गलत फायदा उठाते हैं. वे इस की ताक में रहते हैं. उन के लिए वे सौफ्ट टारगेट होती हैं. यह सच है कि अमानवीय घटनाओं के आंकड़े पूरी सामाजिक व्यवस्था पर सवाल हैं. देश में बच्चों की आबादी का एक खासा हिस्सा यौन शोषण का शिकार है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...