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स्टेशन पर चलता था सेक्स रैकेट : भाग 1

विजय बद्री बेशक दिव्यांग था लेकिन वह था बहुत शातिर. कम उम्र की लड़कियों से वह न सिर्फ भीख मंगवाता था, बल्कि जवान दिखने के लिए वह उन्हें हारमोंस के इंजेक्शन भी लगाता था ताकि उन से जिस्मफरोशी करा कर मोटी कमाई हो सके. लेकिन पुलिस ने…   गोरखपुर पूर्वोत्तर रेलवे मंडल के मंडल सुरक्षा आयुक्त अमित कुमार मिश्रा के निर्देश पर मंडल के सभी रेलवे स्टेशनों एवं ट्रेनों में सघन जांच का अभियान चलाया जा रहा था. दरअसल, अमित कुमार मिश्रा को सूचना मिली थी कि कुछ ऐसे गैंग सक्रिय हैं, जो कम उम्र की लड़कियों को अपने जाल में फांस कर जिस्मफरोशी का धंधा कराते हैं. उन के निर्देश पर बादशाह नगर रेलवे सुरक्षा बल के एसआई वंशबहादुर यादव 25 सितंबर, 2019 की सुबह आनेजाने वाली ट्रेनों की जांच कर रहे थे. ट्रेनों की जांच करने के बाद उन की नजर प्लेटफार्म नंबर-1 पर बैठे बालकों पर पड़ी.

एक पेड़ के निकट रुक कर वह उन को निहारने लगे. वहां 2 किशोरों के साथ 2 किशोरियां थीं. उन्हें देख कर पहले उन्होंने सोचा कि शायद ये ट्रेन में भीख मांग कर गुजारा करने वाले खानाबदोश या बंगलादेशियों के बच्चे होंगे और सामान एकत्रित कर के अपने गंतव्य स्थान पर कुछ देर में चले जाएंगे, किंतु पेड़ की आड़ में छिप कर देखने के बाद उन्हें उन की गतिविधियां कुछ संदिग्ध लगीं.

तब उन के नजदीक जा कर उन्होंने उन से पूछा, ‘‘तुम लोग कौन हो? सुबहसुबह यहां प्लेटफार्म पर क्या कर रहे हो?’’

पुलिस वाले को अपने पास देख कर वे चारों सहम गए और सुबकने लगे. उन चारों को सुबकते देख एसआई वंशबहादुर यादव को मामला कुछ संदिग्ध लगा. उन्होंने सहानुभूति दिखाते हुए उन चारों को चाय पिला कर ढांढस बंधाते हुए पूछा, ‘‘आखिर बात क्या है, बताओ. तुम इस तरह रो क्यों रहे हो? कुछ तो बताओ, तभी तो मैं तुम्हारे लिए कुछ करूंगा.’’

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कुछ देर खामोश रहने के बाद किशोरों के साथ बैठी दोनों किशोरियों ने अपनी आपबीती एसआई वंशबहादुर को सुनाई. उन्होंने बताया कि एक दिव्यांग व्यक्ति ने उन्हें अपने कब्जे में कर रखा था और वह उन से जिस्मफरोशी का धंधा कराता था. किसी तरह वे उस के चंगुल से निकल कर आई हैं.

उन की व्यथा सुन कर एसआई आश्चर्य में पड़ गए. उन का दिल करुणा से भर आया. उन दोनों किशोरियों ने अपने नाम गुंजा व मंजुला खातून और किशोरों ने विजय व आनंद बताए. किशोरियों ने बताया कि यहां से वे वैशाली एक्सप्रैस से अपनी रिश्तेदारी में बहराईच जाने के लिए प्लेटफार्म पर बैठी हुई ट्रेन का इंतजार कर रही थीं.

एसआई वंशबहादुर यादव ने उन की व्यथा सुनने के बाद यह जानकारी ऐशबाद रेलवे स्टेशन पर स्थित आरपीएफ के थानाप्रभारी एम.के. खान को फोन द्वरा दे दी.

चूंकि मामला गंभीर था इसलिए उस दिव्यांग व्यक्ति को तलाशने के लिए उन्होंने सिपाही उमाकांत दुबे, धर्मेंद्र चौरसिया, महिला सिपाही अंजनी सिंह व अर्चना सिंह को एसआई वंशबहादुर के पास भेज दिया. इस के बाद वंशबहादुर पुलिस टीम के साथ उस दिव्यांग की तलाश में मुंशी पुलिया के पास उस के अड्डे पर गए, लेकिन वह वहां नहीं मिला.

उन किशोरियों ने बताया था कि वह दिव्यांग व्यक्ति उन दोनों को ही ढूंढ रहा होगा. वह उन्हें ढूंढता हुआ बादशाह नगर प्लेटफार्म तक जरूर आएगा. इस के बाद पुलिस टीम इधरउधर छिप कर उस के आने का इंतजार करने लगी. कुछ देर बाद करीब 11 बजे के वक्त वह दिव्यांग व्यक्ति बादशाह नगर रेलवे स्टेशन पर आता हुआ दिखाई दिया. किशोरियों ने उसे पहचान लिया.

उन्होंने बताया कि वह करीब एक साल से इसी व्यक्ति के चंगुल में थीं. पुलिस टीम ने उस दिव्यांग को हिरासत में ले लिया और उसे बादशाह नगर रेलवे पुलिस चौकी ले आए.

पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने उन दोनों किशोरियों एवं किशोरों को पहचानते हुए यह स्वीकार किया कि इन लड़कियों से अनैतिक कार्य और किशोरों से भीख मांगने का धंधा कराता था. रेलवे पुलिस को यह भी पता चला कि मुंशी पुलिया के निकट यह दिव्यांग व्यक्ति पुलिस चौकी के पीछे झोपड़ी में रहता था. उस ने अपना नाम विजय बद्री उर्फ बंगाली बताया. वह पश्चिमी बंगाल का निवासी था.

आरोपी की गिरफ्तारी की सूचना पर रेलवे सुरक्षा बल ऐशबाद के थानाप्रभारी एम.के. खान भी बादशाह नगर रेलवे पुलिस चौकी पर पहुंच गए.

चूंकि मामला सिविल पुलिस का था, इसलिए थानाप्रभारी के निर्देश पर एसआई वंशबहादुर मेमो डिटेल बना कर उन दोनों किशोरों विजय व आनंद और दोनों किशोरियों गुंजा और मंजुला खातून को साथ ले कर थाना गाजीपुर पहुंचे.

उन्होंने गाजीपुर थानाप्रभारी राजदेव मिश्रा को पूरी बात बताई तो उन्होंने विजय बद्री के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 370, 370ए के अंतर्गत 25 सितंबर, 2019 को मुकदमा दर्ज कर लिया.

गाजीपुर थाने में मुकदमा दर्ज हाने के बाद थानाप्रभारी ने उक्त प्रकरण की जांच विकास नगर पुलिस चौकी के इंचार्ज एसआई दुर्गाप्रसाद यादव को सौंप दी. जांच मिलते ही दुर्गाप्रसाद ने आरोपी दिव्यांग विजय बद्री से पूछताछ की तो उस ने अन्य आरोपियों सुमेर व शमीम के नाम भी बताए. पुलिस ने अन्य आरोपियों की खोजबीन शुरू कर दी.

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एसआई दुर्गाप्रसाद यादव ने दोनों किशोरियों से पूछताछ की तो पता चला कि उन में से एक असम व एक बिहार की रहने वाली थी. उन के पिता लखनऊ शहर आ कर रिक्शा चलाते थे. उन के घर की हालत खस्ता थी. किसी तरह से केवल पेट भरने लायक रोटी मिल पाती थी.

मंजुला खातून विकासनगर के पास स्थित गांव चांदन में अपने पिता के साथ रहती थी. वहीं से वह कामधंधे की तलाश में निकली तो वह मुंशी पुलिया के पास झुग्गी में रहने वाले दिव्यांग विजय बद्री के संपर्क में आई. कुछ दिनों तक बद्री ने मंजुला की काफी मेहमाननवाजी की.

विजय बद्री के पास कुछ औरतें आती थीं. उस ने मंजुला को उन औरतों से मिलवाया. उन महिलाओं ने मंजुला को गोमतीनगर, इंदिरानगर और विकास नगर की पौश कालोनियों में भीख मांगने के काम पर लगा दिया.

इसी बीच गुंजा भी विजय बद्री के संपर्क में आ गई. गुंजा को भी उस ने मंजुला के साथ भीख मांगने के काम पर लगा दिया. बाद में उन दोनों को बादशाह नगर चौराहे व रेलवे स्टेशन के आसपास भेजा जाने लगा. वे ट्रेन में भी भीख मांगने लगीं. अधिकांशत: गुंजा व मंजुला खातून बादशाह नगर स्टेशन से ट्रेन में सवार हो कर काफी दूर तक भीख मांगने निकल जाया करती थीं.

शाम को वह अपने अड्डे पर जब वापस नहीं पहुंचतीं तो विजय बद्री खुद उन की तलाश में निकल पड़ता था. धीरेधीरे उस के यहां काम करने के दौरान गुडंबा निवासी विजय व आनंद से उन का संपर्क हुआ. ये दोनों किशोर भी भीख मांगने का धंधा किया करते थे. ये चारों दिन भर में लगभग एकएक हजार रुपए कमा कर लाते थे. विजय बद्री इस काम के लिए उन्हें रोजाना 200 रुपए दिया करता था.

गुंजा व मंजुला दोनों किशोरियों ने जांच के दौरान पुलिस को बताया कि विजय बद्री ने मुंशी पुलिया पुलिस चौकी के पीछे गोल्फ चौराहे पर ठहरने का अड्डा बना रखा था. जांच में पता चला कि विजय बद्री पश्चिमी बंगाल से आ कर उत्तर प्रदेश में बस गया था.

सिरकटी लाश का रहस्य

राजिंदर कुमार रोजाना की तरह सुबह 9 बजे काम पर जाने के लिए घर से निकला था. उस की मां बिशनो ने उसे दोपहर के खाने का टिफिन तैयार कर के दिया था. 20 वर्षीय राजिंदर मेनबाजार बटाला में रेडीमेड कपड़ों की दुकान पर काम करता था.

वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. कुछ साल पहले उस के पिता शिंदरपाल की मृत्यु हो गई थी. पिता की मौत के बाद रिश्तेदारों ने भी परिवार का साथ छोड़ दिया था. किसी से सहायता की उम्मीद नहीं थी. घर के आर्थिक हालात ऐसे नहीं बचे थे कि राजिंदर पढ़ाई आगे जारी रख पाता. इसलिए उस ने पढ़ाई बीच में छोड़ कर काम करना शुरू कर दिया था.

राजिंदर के परिवार में उस की मां बिशनो के अलावा एक बहन नीलम थी. वह जो कमाता था, उस से जैसेतैसे घर खर्च चल पाता था. 19 सिंतबर, 2019 की सुबह राजिंदर काम पर गया. शाम को वह अपने समय पर घर नहीं लौटा तो मां को चिंता हुई. क्योंकि इस से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था. वह ठीक साढ़े 8 बजे काम से घर लौट आता था.

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राजिंदर का इंतजार करतेकरते जब रात के 10 बज गए तो मां बिशनो और बहन नीलम कुछ पड़ोसियों के साथ उसे ढूंढने निकलीं. सब से पहले वे उस दुकान पर गईं, जहां राजिंदर काम करता था. उस समय दुकान बंद हो चुकी थी.

दुकान मालिक के घर जा कर पूछने पर पता चला कि राजिंदर अपने समय से पहले ही 7 बजे छुट्टी ले कर चला गया था. घर वालों ने राजिंदर के खास दोस्तों से पूछताछ की. इस के अलावा हर संभावित ठिकाने पर उस की तलाश की गई, लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

अंत में हार कर पड़ोसियों की सलाह पर बिशनो ने बेटे राजिंदर के लापता होने की रिपोर्ट थाना सिविल लाइंस बटाला की पुलिस चौकी सिंबल में दर्ज करवा दी.

चौकी इंचार्ज एसआई बलविंदर सिंह ने उन्हें राजिंदर को जल्द तलाशने का आश्वासन दिया. राजिंदर का फोटो ले कर उन्होंने जिले के सभी थानों में भिजवा दिया और अस्पतालों में भी उस की तलाश करवाई गई. पर राजिंदर का कहीं कोई पता नहीं चला.

बिशनो ने बेटे के लापता होने में अपनी ही कालोनी गांधी कैंप निवासी अशोक प्रीतम दास पर शक जताया था. अशोक उसी मोहल्ले में रहता था और उस का बिशनो के घर काफी आनाजाना लगा रहता था.

करीब एक महीना पहले अशोक की पत्नी की रहस्यमयी हालात में मृत्यु हो गई थी. अशोक का बेडि़यां बाजार में अपना खुद का हेयरकटिंग सैलून था.

राजिंदर अशोक का अपने घर आने का विरोध करता था. उस की कई बार अशोक से झड़प भी हो चुकी थी. इस बात को ले कर राजिंदर की अपनी मां से भी कई बार कहासुनी हुई थी. उस ने मां से भी कह दिया था कि वह अशोक को अपने घर आने से रोके.

एसआई बलविंदर ने अशोक को थाने बुला कर उस से पूछताछ की. अशोक ने बताया कि उसे राजिंदर से मिले एक महीना हो गया है और कई दिनों से वह उस के घर भी नहीं गया. बातचीत में अशोक बेकसूर लगा तो एसआई बलविंदर सिंह ने उसे घर भेज दिया और राजिंदर की तलाश जारी रखी.

22 सितंबर, 2019 को सेंट फ्रांसिस स्कूल के पीछे मोहल्ला भट्ठा इंदरजीत में रहने वालों ने प्रधान अमरीक सिंह को बताया कि उन के घर के सामने वाले हंसली नाले से बड़ी भयानक दुर्गंध आ रही है.

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अमरीक सिंह कुछ लोगों को साथ ले कर नाले के पास पहुंचे. उन्होंने देखा कि वहां बोरी में बंद किसी आदमी की लाश पड़ी थी. लाश की टांगें बोरे से बाहर थीं. अमरीक सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना पुलिस चौकी सिंबल के इंचार्ज एसआई बलबीर सिंह को दी.

सूचना मिलते ही बलबीर सिंह मौके के लिए रवाना हो गए और यह जानकारी थाना सिविल लाइंस बटाला के एसएचओ मुख्तियार सिंह को दे दी. थानाप्रभारी भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मौके पर पहुंच कर लाश को नाले से बाहर निकलवाया. बोरी में मृतक का सिर नहीं था. हां, धड़ जरूर था. कंधों से बाजू कटे हुए थे. कपड़ों के नाम पर मृतक के शरीर पर केवल अंडरवियर था.

कई दिनों से लाश नाले के पानी में पड़ी रहने से बुरी तरह से गल चुकी थी, जिस की पहचान मुश्किल थी. वैसे भी बिना सिर के मृतक की शिनाख्त करना असंभव काम था.

पहचान के लिए मृतक के शरीर पर ऐसा कोई निशान नहीं था, जिस के सहारे पुलिस उस की शिनाख्त कराती. सिर और बाजू कटी लाश मिलने से पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी, दहशत का माहौल बन गया था.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम बुलवा कर पंचनामे की कारवाई की गई. थानाप्रभारी ने लाश मिलने की जानकारी अपने आला अधिकारियों को दे दी थी. इस के कुछ देर बाद एसएसपी उपिंदरजीत सिंह घुम्मन, एसपी (इनवैस्टीगेशन) सूबा सिंह और डीएसपी (सिटी) बालकिशन सिंगला भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए थे.

पुलिस ने नाले में आसपास मृतक के कटे हुए अंग तलाशने की मुहिम शुरू कर दी. पुलिस को यह पता नहीं था कि हत्यारे ने मृतक के शेष अंग वहीं फेंके थे या उन्हें किसी दूसरी जगह ठिकाने लगाया था.

काफी खोजने के बाद भी कटे हुए अंग नहीं मिले. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने अज्ञात युवक की लाश 72 घंटों के लिए सिविल अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दी और अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

अपनी तफ्तीश के पहले चरण में चौकी इंचार्ज बलबीर सिंह ने पिछले दिनों शहर से लापता हुए लोगों की लिस्ट चैक की. लिस्ट में राजिंदर का नाम भी था. चौकी इंचार्ज बलबीर सिंह ने 23 सितंबर को राजिंदर के परिवार वालों को बुलवा कर जब लाश दिखाई तो उस की मां बिशनो और बहन नीलम ने शरीर की बनावट और अंडरवियर से लाश की शिनाख्त राजिंदर के रूप में की.

राजिंदर 19 सितंबर, 2019 को लापता हुआ था और 22 सितंबर को उस की लाश नाले से मिली. चूंकि मां बिशनो ने मोहल्ले के ही अशोक पर शक जताया था, जिस से एक बार पुलिस पूछताछ भी कर चुकी थी. अब लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद चौकी इंचार्ज उसी दिन अशोक को पूछताछ के लिए दोबारा थाने ले आए. इस बार भी वह अपने पहले बयान पर अड़ा रहा. पर जब उस से सख्ती की गई तो उस ने राजिंदर की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया.

अगले दिन अशोक को अदालत में पेश कर उस का 4 दिनों का पुलिस रिमांड लिया गया. रिमांड के दौरान सब से पहले उस से पूछा गया कि राजिंदर के शरीर के बाकी अंग उस ने कहां फेंके थे.

24 सितंबर को अशोक की निशानदेही पर पुलिस और नायब तहसीलदार जसकरण सिंह के नेतृत्व वाली टीम ने नाले से मृतक राजिंदर का सिर और बाजू ढूंढ निकाले. इन हिस्सों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया गया और पोस्टमार्टम के बाद लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई.

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रिमांड के दौरान अशोक कुमार ने पुलिस को बताया कि बिशनो के पति की मृत्यु के बाद राजिंदर कुमार की मां बिशनो के साथ उस का करीब 7 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था. वह बिशनो से मिलने रोज उस के घर जाया करता था. उस समय राजिंदर और उस की बहन छोटे थे. सो उन्हें कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. जब बच्चे बड़े हुए तो राजिंदर उसे और मां को संदेह की नजरों से देखने लगा था.

वह उस के वहां आने का विरोध करता था. बिशनो के संबंधों का पता अशोक की पत्नी को भी था. इस बात को ले कर वह भी घर में क्लेश करती थी. तब अशोक गुस्से में उस की पिटाई कर देता था. दूसरी ओर राजिंदर के विरोध से अशोक भी काफी परेशान था. वह उसे अपने रास्ते का कांटा समझने लगा था. इस कांटे को रास्ते से हटाने के लिए अशोक कुमार ने राजिंदर की हत्या करने की एक खौफनाक साजिश रच ली.

अपनी योजना के अनुसार, 19 सितंबर की शाम वह राजिंदर से मिला और कोई जरूरी बात करने के बहाने उसे अपने घर ले गया. घर ले जा कर अशोक ने राजिंदर को चाय पिलाई, जिस में नशे की दवा मिली हुई थी. चाय पीते ही राजिंदर एक ओर लुढ़क गया.

राजिंदर के लुढ़कते ही अशोक ने पहले गला दबा कर उस की हत्या की और उस के बाद दातर (हंसिया) से बड़े आराम से उस का सिर काट कर धड़ से अलग किया. फिर दोनों बाजू काटे. यह सब करने के बाद अशोक ने राजिंदर के शव को बोरी में डाल कर बांधा और अपनी साइकिल पर रख कर रात के अंधेरे में हंसली नाले में फेंक आया.

रिमांड के दौरान पुलिस ने अशोक की निशानदेही पर दातर, साइकिल, अपने और राजिंदर के जलाए हुए कपड़ों की राख भी बरामद कर ली. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस इस मामले में मृतक की मां बिशनो की भूमिका की भी जांच कर रही है. हालांकि पुलिस ने इस बारे में अभी स्पष्ट खुलासा नहीं किया है.

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राजिंदर की बहन पर भी अशोक बुरी नजर रखता था. अब पुलिस इस बारे में भी जांच कर रही है. अगर कोई बात सामने आती है तो मृतक की मां बिशनो पर भी काररवाई की जाएगी. एक माह पहले अशोक की पत्नी की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई थी. पुलिस इस बात की जांच भी कर रही है कि बिशनो के चक्कर में कहीं अशोक ने ही तो अपनी पत्नी को कोई जहरीली चीज दे कर मारा था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

‘पुलिस कमिश्नर सिस्टम‘ से रुकेगा अपराध

नोएडा पुलिस के दामन पर लगे दाग और लखनऊ में खराब होती कानून व्यवस्था पर उठ रही आवाजों को रोकने के लिये उत्तर प्रदेश सरकार ने इन दोनो जिलों में कमिश्नरी सिस्टम लागू कर दिया है. उत्तर प्रदेश में पुलिस के राजनीतिक दुरूपयोग पुराना इतिहास है. ऐसे में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम के रूप में पुलिस को मिलने वाले अधिकार से जनता का कितना लाभ होगा समझने वाली बात है. दिल्ली और हैदराबाद में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम कितनी सफल रही है यह वहां की पुलिस के कारनामों से समझ आता है.

देश में राजधानी दिल्ली सहित 15 राज्यों के 71 शहरों में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू है. देश का सबसे चर्चित निर्भया कांड दिल्ली पुलिस के दामन पर दाग सा है. निर्भया को न्याय मिलने में जिस तरह से देरी हुई वह दिल्ली के कमिश्नरी सिस्टम को दिखाता है. 2012 से 2019 के बीच दिल्ली पुलिस कितनी बेहतर हुई यह ‘पुलिस वकील’ संघर्ष और ‘जेएनयू प्रकरण’ में पुलिस की विवेचना से समझा जा सकता है. ‘जेएनयू प्रकरण’ में उसकी जांच इसका उदाहरण है. छात्र ही नहीं वहां के शिक्षकों तक के मुकदमें नहीं लिखे गये दिल्ली पुलिस आरोपियो के गलत फोटो जारी करके लोगों को भ्रमित कर रही. जेएनयू के पहले अदालत में पुलिस वकील संघर्ष में उसकी नाकामी पूरे देश ने देखी है. पुलिस अपने ही महिला अफसर को न्याय नहीं दिला पाई.

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दिल्ली की ही तरह से हैदराबाद एक और शहर है जहां पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू है. हैदराबाद पुलिस कितनी पेशेवर है यह अभी एक घटना ने इसको बता दिया है. हैदाराबाद में महिला डाक्टर का अपहरण करके उसके साथ बलात्कार, फिर हत्या और बाद में पहचान छिपाने के लिये जला दिया जाता है. हैदराबाद की पेशेवर पुलिस जब आरोपियों को घटना स्थल पर ले जाती है तो 4 निहत्थे आरोपी हैदराबाद की बहादुर हथियारीधारी पुलिस के 10 जवानों पर इतना भारी पडते है कि उनको रोकने के लिये पुलिस को 4 आरोपियों को गोली मार देनी पड़ती है. आरोपियों के मरने से सारी विवेचना और दरकिनार हो जाती है.

दिल्ली और हैदराबाद में वही पुलिस  कमिश्नरी सिस्टम लागू है जो अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और नोएडा में लागू हो गया है. नोएडा में आईपीएस वैभव कृष्ण का एक विवादित वीडियो जारी होने के बाद पुलिस विभाग में रिश्वतखोरी का एक बड़ा खुलासा हुआ. जिसके तार राजधानी लखनऊ ही नहीं सरकार और संगठन तक से जुडे दिख रहे थे. योगी सरकार ने जनता के ध्यान को अपराध और रिश्वतखोरी के जंजाल से दूर रखने के लिये पुलिस प्रणाली की जगह कमीश्री सिस्टम को लागू कर उसमें उलझाने का काम किया है.

आईएएस बनाम आईपीएस की लडाई है कमीश्नर सिस्टम :    

पुलिस को जब भी अधिक अधिकार मिलते है वह उनको दुरूपयोग करती है. यही कारण है कि पुलिस को प्रशासनिक अधिकार कम से कम दिये जाते रहे है. पुलिस को नियंत्रण में रखने के लिये प्रशासन को अधिक जवाबदेह माना जाता है. दोनो ही स्तर के अधिकारियों की टेनिंग और कार्यशैली में भी अंतर होता है. उत्तर प्रदेश में वैसे ही पुलिस राजनीतिक दबाव में काम करती है. मायावती और अखिलेश सरकार में खुद भाजपा इस बात को बारबार कहती थी. यही कारण है कि 1990 के बाद 4 बार भाजपा के मुख्यमंत्री बने पर पुलिस को ज्यादा अधिकार देने का काम नहीं किया. प्रतापगढ के विधायक रघुराज प्रताप सिंह के खिलाफ मायावती सरकार की पुलिस ने किस तरह से काम किया सभी हो पता है. भाजपा ही उस समय पोटा के दुरूपयोग की बात कर रही थी. भाजपा के दखल के बाद ही पोटा कानून खत्म किया गया था.

नाम बदलने से अगर सुधार होता तो योगी सरकार की परेशानियां कभी नहीं बढ़ती. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुर्सी पर बैठते ही नाम बदलने की शुरूआत सी कर दी थी. नाम बदलने से हालात बदलने के टोटके पर प्रदेश सरकार अभी भी कायम है. उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराधों को रोकने के लिये पुलिस के पुराने सिस्टम की जगह पर उत्तर प्रदेश के 2 जिलों लखनऊ और नोएडा में ‘कमिश्नरी सिस्टम’ को लागू किया गया है. उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा ‘कमिश्नरी सिस्टम’ को अपराध रोकने का ‘ब्रम्हास्त’ बताया जा रहा है. यह दावा भी किया गया कि ‘कमिश्नरी सिस्टम’ को 1977 से रोका गया था. जिस हिम्मत का काम विपक्ष ही नहीं भाजपा की कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह सरकार नहीं कर पाई वह काम योगी सरकार ने कर दिखाया है.

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कैसे कम होगी आम आदमी की मुश्किले :

‘कमिश्नरी सिस्टम’ को लागू करने के समय यह संदेश भी जनता को दिया जा रहा है कि अब तक पुलिस के पास अधिकार कम थे. हर काम में पुलिस को डीएम और कमीश्नर का मुंह देखना पड़ता था. वहां से पुलिस को समय पर आदेश नही मिलता था जिसकी वजह से अपराध को रोका नहीं जा पा रहा था. अब ‘कमिश्नरी सिस्टम’ इन कमियों को दूर कर देगा. ‘कमिश्नरी सिस्टम’ पुलिस महकमे के लिए उम्मीद से ज्यादा देने वाला फैसला है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसको ‘यूपी की आम जनता के हित में लिया ऐतिहासिक फैसला माना है.’ मुख्यमंत्री ने कहा है कि ‘आम आदमी के लिए अब त्वरित न्याय होगा. आम लोगों के दरवाजे पर ही न्याय मुहैया होगा. यह फैसला लगातार बेहतर हो रही कानून व्यवस्था को और और बेहतर करेगा. जब तक पुलिस में भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा. थानो पर मुकदमे दर्ज नहीं होगे तब तक आम आदमी को न्याय नहीं मिल सकेगा.

योगी सरकार ने कहा कि पिछले कई दशकों से यूपी में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने की मांग कई दशको से उठ रही थी. धरमवीर कमीशन (तीसरे राष्ट्रीय पुलिस आयोग) ने 1977 भी पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने की सिफारिश की थी. नौकरशाही के एक बड़े तबके और राजनीतिक आकाओं ने सालों से इसे दबा कर रखा था. अब तक राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में यूपी में कमिश्नर सिस्टम लागू नहीं हो पाया. पूर्व में कोई भी मुख्यमंत्री इसे लागू नहीं कर पाया. सरकारें पुलिस को फ्री हैंड देने से डरती रहीं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी दृढ राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण इसको लागू करने का साहस किया. उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री हेल्पलाइन की शुरूआत बडे जोरशोर से हुई थी. उसमें आने वाली ज्यादातर शिकायतों का केवल कागजी निस्तारण हो रहा है.

बढ़ेगा पुलिस का राजनीतिक दुरूपयोग

पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने के पक्ष में राजनीतिक संरक्षण में अपराधियों, माफियाओं व अपराध को बढावा देने वालों के दिन अब खत्म हो जायेंगे. मुख्यमंत्री ने हर विरोध को दरकिनार करते हुये त्वरित, पारदर्शी और जनहित के लिये कमिश्नर सिस्टम को लागू कर दिया है. पुलिस को पर्याप्त अधिकार के साथ पर्याप्त जवाबदेही वाला यह कानून लागू होने के बाद अब दंगाइयों, उपद्रवियों के बुरे दिन, बल प्रयोग के लिए पुलिस को नहीं करना पड़ेगा मजिस्ट्रेट का इंतजार नहीं करना होगा. अब जो दंगा करेगा, उपद्रव करेगा, आमजन और पुलिस पर हमला करेगा सार्वजनिक संपत्तियों को बर्बाद करेगा, उससे सीधे निपटेगी पुलिस. अब गुडों, माफियाओं, सफेदपोशों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई के लिए पुलिस को मजिस्ट्रेटों के कार्यालयों में भटकना नहीं पड़ेगा पुलिस को खुद होगा गुंडों, माफियाओं और सफेदपोशों को चिन्हित कर उनके खिलाफ त्वरित कार्रवाई का पूरा अधिकार होगा.

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अपराधियों, माफियाओं और सफेदपोशों के असलहों के लाइसेंस कैंसिल करने के लिए भी पुलिस के पास हुए सीधे अधिकार होगे. 151 और 107, 116 जैसी धाराओं में पुलिस को गिरफ्तार कर सीधे जेल भेजने का अधिकार होगा. देश के 15 राज्यों के 71 शहरों जिनमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरू, अहमदाबाद, राजकोट, बड़ौदा, हैदराबाद, त्रिवेंद्रम आदि शामिल हैं, वहां ये सिस्टम लागू है. सवाल उठता है क्या इन राज्यों में अपराध नहीं है ? ऐसे में साफ लगता है कि उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराधों से लोगों का ध्यान हटाने के लिये योगी सरकार ने यह फैसला लागू किया है. पुलिस के ताकतवर होने से इसके दुरूपयोग का खतरा बढ़ेगा. नागरिकता कानून के विरोध में राजधानी लखनऊ में हिंसा के मामलें में पुलिस पर पक्षपात के गंभीर आरोप लगे है. पुलिस से यह मांग हो रही है कि वह घटना के दिन वाले सभी वीडिया जारी करके दिखाये कि जिन लोगों को पकड़ा गया वह वीडियों में हिंसा करते कहा दिख रहे है ?

सास अच्छी तो बहू भी अच्छी

साल 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘सौ दिन सास के’ में ललिता पवार द्वारा निभाया गया भवानी देवी का किरदार हिंदी फिल्मों की सासों का प्रतिनिधित्व किरदार था. ललिता पवार एक नहीं बल्कि कई फिल्मों में क्रूर सास की भूमिका में दिखी थीं.

एक दौर में तो वे क्रूर सास का पर्याय बन गई थीं और आज भी जिस किसी बहू को अपनी सास की बुराई करनी होती है, वह ये पांच शब्द कह कर अपनी भड़ास निकाल लेती है ‘वह तो पूरी ललिता पवार है.’

60 साल बाद भी यह फिल्म प्रासंगिक है तो महज इस वजह के चलते कि पहली बार एक क्रूर सास को सबक सिखा कर सही रास्ते पर लाने वाली बहू मिली थी. ललिता पवार अपनी बड़ी बहू आशा पारेख पर बेइंतहा अत्याचार करती रहती है.

क्योंकि वह गरीब घर की थी और बिना दहेज के आई थी. छोटी बहू बन कर रीना राय घर आती है तो उस से जेठानी पर हो रहे अत्याचार बरदाश्त नहीं होते और वह क्रूरता का बदला क्रूरता से लेती है.

फिल्म पूरी तरह पारिवारिक मामलों से लबरेज थी जिस में ललिता पवार बहुओं को प्रताडि़त करने के लिए बेटी दामाद को भी मिला लेती है. नीलू फुले इस फिल्म में एक धूर्त और अय्याश दामाद के रोल में थे, जो ललिता पवार को बहलाफुसला कर उन की सारी जायदाद अपने नाम करवा कर उन्हें ही गोदाम में बंद कर देते हैं.

चूंकि हिंदी फिल्म थी, इसलिए अंत सुखद ही हुआ. सास को अक्ल आ गई, अच्छेबुरे की भी पहचान हो गई और क्रूर सास को बहुओं ने मांजी मांजी कहते माफ कर दिया.

लेकिन अब ऐसा नहीं होता. आज की बहू सास की क्रूरता और प्रताड़ना को न तो भूलती है और न ही उसे माफ करती है. बदले दौर में सासें भी हालांकि समझदार हो चली हैं और जो ललिता पवार छाप हैं, उन्हें समझदार हो जाना चाहिए नहीं तो बुढ़ापे में या अशक्तता में बहू कोई रहम न कर के अपने साथ हुए दुर्व्यवहार का सूद समेत बदला लेने से नहीं चूकेगी.

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ऐसा ही एक दिलचस्प मामला इंदौर का है, जिस में सासबहू की लड़ाई थाने तक जा पहुंची. रिटायर्ड सीएसपी प्रभा चौहान का अपनी सबइंसपेक्टर बहू श्रद्धा सिंह से विवाद हो गया. सास ने थाने में रिपोर्ट लिखाई तो बहू ने अपनी बहन और मां के साथ एक दिन देर रात घर में आ कर उन्हें पीटा और हाथ में काटा भी.

अब बहू भी भला क्यों खामोश रहती, उस ने भी सास के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी कि सास ने अपने बेटे यानी उस के पति और ननद के साथ मिल कर उस की मां और बहन को घर में घेर कर मारापीटा.

बकौल श्रद्धा घटना की रात जैसे ही वह घर में दाखिल हुई तो सास के गालियां देने पर विवाद हुआ. मैं ने उन्हें शालीलता से बात करने को कहा तो विवाद घर की दहलीज पार कर थाने तक जा पहुंचा. बात सिर्फ आज की नहीं है बल्कि सास शादी के बाद से ही उसे प्रताडि़त करती थी.

इस मामले में दिलचस्पी वाली एकलौती बात यही है कि बहू ने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार पर सास को माफ नहीं किया.

मुमकिन है कि कुछ गलती उस की भी रही हो, लेकिन इंदौर की ही एक काउंसलर की मानें तो आजकल की बहुएं आशा पारेख और रीना राय की तरह सास को माफ नहीं करतीं बल्कि ऐसे टोनेटोटकों से परेशान कर देती हैं कि उसे छठी का दूध याद आ जाता है. उसे पछतावा होता है कि काश शुरू में बहू को परेशान न किया होता तो आज ये दिन नहीं देखने पड़ते और बुढ़ापा चैन से कट रहा होता.

भोपाल की एक प्रोफेसर सविता शर्मा (बदला नाम) की मानें तो उन की शादी कोई 25 साल पहले हुई थी. शादी के बाद सास का व्यवहार ललिता पवार जैसा ही रहा. वह बातबात पर टोकती थी और हर काम में मीनमेख निकालती थी.

पति के प्यार और उन के मां से लगाव होने के कारण वह अलग नहीं हो पाई और सास के बर्ताव से समझौता कर लिया लेकिन शुरुआती दिनों के दुर्व्यवहार को वे भूल नहीं पाईं.

सविता के मुताबिक मैं ने उस की (उन की नहीं) हर ज्यादती बरदाश्त की लेकिन जब वह मेरे मम्मीपापा को भलाबुरा कहतीं तो मेरा खून खौलता कि जो कुछ कहना है मुझ से कहो, मांबाप को तो बीच में मत घसीटो.

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अब हालत यह है कि उन की सास पैरालिसिस के चलते बिस्तर में पड़ी कराहती रहती हैं और चायपानी तक के लिए उन की मोहताज रहती हैं. सविता कहती हैं, ‘उन की इस हालत को देख कर मुझे खुशी भी होती है और कभीकभी दुख भी होता है. मैं चाह कर भी उन की वैसी सेवा नहीं कर पाती जैसी कि एक बहू को करनी चाहिए.’

यूं पति ने मां की सेवा के लिए नौकरानी रखी है लेकिन वह चौबीसों घंटे तो नहीं रह सकती. जब वे मुझ से चाय मांगती हैं तो मुझे शादी के बाद के वे शुरुआती दिन याद हो आते हैं, जब मैं खुद की चाय बनाने के लिए उन की इजाजत की मोहताज रहती थी.

कई बार तो बिना चाय पिए ही कालेज चली जाती थी. अब जब वे 4-5 बार आवाज लगा कर चाय मांगती हैं तब कहीं जा कर उन के पलंग के पास स्टूल पर चाय रख कर पांव पटक कर चली आती हूं, ताकि उन्हें अपना किया याद आए. मैं समझ नहीं पा रही कि ऐसा करने से सुख क्यों मिलता है और मैं बीती बातों को भुला क्यों नहीं पा रही.

यानी सविता वही कर रही हैं जो सास ने उन के साथ किया था. इस से साफ लगता है कि वे अभी तक आहत हैं और सास को अपने किए की सजा नहीं दे रहीं तो अहसास तो करा ही रही हैं कि जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे.

सविता के बेटे की भी 2-3 साल में शादी हो जाएगी. वे कहती हैं मैं ने अभी से तय कर लिया है कि अपनी बहू के साथ वैसा व्यवहार नहीं करूंगी जो मेरी सास ने मेरे साथ किया था. जाहिर है सविता अपनी सास की हालत को देख कर कहीं न कहीं दुखी भी हैं कि अगर वे कांटे बोएंगी तो उन्हें भी कांटों का ही गुलदस्ता मिलेगा.

समाजशास्त्र की प्रोफेसर सविता मानती हैं कि आजकल की बहुएं ज्यादा बंदिशें बरदाश्त नहीं करतीं. वे आजाद खयालों की होती हैं. बहू चाहेगी तो उसे मैं जींसटौप पहनने दूंगी. बेटे के साथ घूमनेफिरने जाने देने से रोकूंगी नहीं, क्योंकि यह उस का हक भी है और इच्छा भी.

भावुक होते वे कहती हैं कि मैं उसे इतना प्यार दूंगी कि अगर कभी मुझे पैरालिसिस का अटैक आ जाए तो मांगने के पहले वह खुद चाय दे और कुछ देर मेरे पास बैठ कर बतियाए भी.

इंदौर की प्रभा और श्रद्धा की तरह आए दिन सासबहू के विवाद कलह और मारापीटी के मामले हर थाने में दर्ज होते हैं जिन की असल वजह अधिकतर मामलों में सास का वह व्यवहार होता है जो उस ने शादी के बाद बहू से किया होता है.

इसलिए सविता जैसी सास बनने जा रही महिलाओं ने अच्छी बात यह सीख ली है कि उन्हें अपनी बहू के साथ वह व्यवहार नहीं करना है, जिस से बुढ़ापे में उन्हें बहू की प्रताड़नाएं झेलनी पड़ें.

जाहिर है अच्छी सास बनने के लिए आप को बहू का खयाल रखना पड़ेगा. बहू जब शादी कर घर में आती है तो उस के जेहन में सास की इमेज ललिता पवार या शशिकला जैसी होती है, जबकि वह चाहती है कि निरुपा राय, कामिनी कौशल, उर्मिला भट्ट और सुलोना जैसी सास जो हर कदम पर बहू का खयाल रखते हुए उस का साथ दें.

इसलिए अगर बुढ़ापा सुकून से काटना है तो बहू को सुकून से रखना ही बेहतर भविष्य सुखशांति और सेवा की गारंटी है. वैसे भी आजकल एकल होते परिवारों में सास का एकलौता सहारा आखिर में बहू ही बचती है. अगर उस से भी संबंध शुरू से ही खटास भरे होंगे तो उन का अंत हिंदी फिल्मों जैसा सुखद तो कतई नहीं होगा.

इस में कोई शक नहीं कि सासें अब बदल रही हैं. क्योंकि उन्हें अपने बुढ़ापे की चिंता है और यह भी मालूम है कि बहू ही वह एकलौता सहारा होगी जो उसे सुख आराम दे पाएगी. तो फिर खामख्वाह क्यों ललिता पवार जैसा सयानापन दिखाते हुए बेवजह का पंगा लिया जाए.

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यानी बहू बुढ़ापे और अशक्तता के दिनों के लिए एक ऐसा इंश्योरेंस है, जिस में प्रीमियम प्यार और अपनेपन के अलावा आत्मीयता का भरना है, इस से रिटर्न अच्छा मिलेगा. हालांकि हर मामले में ऐसा होना जरूरी नहीं लेकिन बहू से अच्छा व्यवहार करना कोई हर्ज की बात नहीं. यह वक्त की मांग भी है जिस से घर में सुखशांति बनी रहती है और बेटा भी खुश और बेफिक्र रहता है. शादी के बाद के शुरुआती दिन बहू के लिए तनाव भरे होते हैं, वह सास के व्यवहार को ले कर स्वभावत: आशंकित रहती है.

ऐसे में अगर आप उसे सहयोग और प्यार दें तो वह यह भी नहीं भूलती कि सास कितनी भली है, लिहाजा बुढ़ापे में वह पैर भले ही न दबाए, लेकिन पैर तोड़ेगी नहीं, इस की जरूर गारंटी है.

प्रभा सिंह और सविता की सास ने अगर शुरू में बहू को अच्छे से रखा होता तो आज वे एक सुखद जिंदगी जी रही होतीं, प्यार दिया होता तो प्यार ही मिलता.

राजनीति की तरह घर की सत्ता भी पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है लेकिन जो सासें इमरजेंसी लगा कर तानाशाही दिखाती हैं, उन्हें जेल की सी ही जिंदगी जीना पड़ती है इसलिए जरूरी है कि परिवार में भी लोकतंत्र हो, आजादी हो, अधिकारों पर अतिक्रमण न हो और कमजोर पर अत्याचार न हों.

क्योंकि जो बहू आज कमजोर है कल को सत्ता हाथ में आते ही ताकतवर हो जाएगी और बदला तो लेगी ही. इसलिए अभी से संभल जाइए और बहू को बजाए क्रूरता के प्यार से अपने वश में रखिए.

यह इनवैस्टमेंट अच्छे दिनों की गारंटी है खासतौर से उस वक्त की जब आप अशक्त, असहाय बीमार और अकेली पड़ जाती हैं, तब वह बहू ही है जो उसी तरह आप का ध्यान रखेगी जैसा शादी के बाद आप ने उस का रखा था.

क्रूरता की इंतिहा

जमाना कितना भी आगे बढ़ गया हो, देश में कितना ही तकनीकि विकास हो गया हो, लोग चाहे कितने ही शिक्षित बन गए हों पर कुछ लोग अपनी मानसिकता से अंधविश्वासी बने हुए हैं. इसीलिए गलीनुक्कड़ पर दुकान जमाए बैठे नीमहकीम, मुल्लामौलवी और तांत्रिक उन्हें अब भी चंद पैसों के लिए अपने जाल में फंसा ही लेते हैं.

ये लोग अंधविश्वासी लोगों का न केवल शोषण करते हैं बल्कि कभीकभी उन के हाथों ऐसा अपराध करवा देते हैं, जिस की वजह से उन्हें अपनी सारी जिंदगी सलाखों के पीछे काटनी पड़ती है. हाल ही में पंजाब की एक महिला तांत्रिक ने एक महिला को अपने सम्मोहन के जाल में फांस कर ऐसा जघन्य अपराध करा दिया, जिसे सुन कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं.

पंजाब में थाना सदर बटाला के अंतर्गत एक गांव है काला नंगल. 32 वर्षीय बलविंदर सिंह उर्फ बिंदर अपनी 27 वर्षीय पत्नी जसबीर कौर के साथ इसी गांव में रहता था. वैसे बलविंदर सिंह मूलरूप से अमृतसर के गांव अकालगढ़ दपिया का निवासी था. लेकिन अपनी शादी के बाद वह अपनी पत्नी को साथ ले कर अपनी ननिहाल काला नंगल में रहने लगा था.

इस गांव में उस के नाना गुरनाम सिंह, मामा संतोख सिंह और बड़ा मामा जगतार सिंह रहते थे. उस के ननिहाल वाले कोई अमीर आदमी नहीं थे. बस मेहनतमजदूरी कर अपना परिवार चलाने वाले लोग थे. बिंदर भी उन के साथ खेतों में मेहनतमजदूरी करने लगा.

बिंदर के मामा के साथ उन की पत्नियां भी खेतों में काम करने जाया करती थीं. ताकि घर में ज्यादा पैसे आए. उन के देखादेखी बिंदर की पत्नी भी उन के साथ काम करने जाती थी.

बिंदर के पड़ोस में पूर्ण सिंह का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी जोगिंदर कौर के अलावा बेटा हरप्रीत सिंह, उस की पत्नी रविंदर कौर, बेटी नीतू अमन और राजिंदर कौर थीं. हालांकि नीतू और राजिंदर कौर दोनों ही शादीशुदा थीं पर वह अधिकतर अपने मायके में ही डेरा जमाए रहती थीं. ये सब लोग उन्हीं के खेतों के साथ वाले खेत में काम करते थे, जिस में बिंदर और उस के मामामामी काम किया करते थे, यह भी कहा जा सकता है कि ये दोनों परिवार साथसाथ काम करते थे.

27 अप्रैल, 2019 की बात है. सुबह के लगभग 11 बजे का समय था. कुछ लोग उस समय खेतों में काम पर लगे हुए थे तो कुछ लोग पेड़ों के नीचे बैठे सुस्ता रहे थे.

बिंदर का मामा संतोख सिंह, उस की पत्नी कंवलजीत कौर, मामा जगतार सिंह और बिंदर की पत्नी जसबीर कौर साथ बैठे इधरउधर की बातें कर रहे थे कि उन के बीच बैठी जसबीर कौर अचानक गायब हो गई.

उन लोगों ने सोचा शायद वह लघुशंका के लिए गई होगी और किसी ने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया. सब अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए थे. शाम के 5 बजे यानी छुट्टी का समय हो गया पर तब तक जसबीर कौर किसी को दिखाई नहीं दी. अब पूरे परिवार को चिंता ने घेर लिया कि आखिर सब के बीच जसबीर कहां गायब हो गई. जसबीर कौर इन दिनों गर्भवती थी. उसे सातवां महीना चल रहा था.

सब ने मिल कर सोचा कि कहीं तबीयत खराब होने के कारण वह घर तो नहीं चली गई. घर पहुंचने पर पता चला कि वह वहां भी नहीं थी. उसे फिर पूरे गांव में ढूंढा गया पर उस का कहीं पता नहीं चला.

जसबीर के मायके और अन्य रिश्तेदारियों में भी उसे तलाशा गया. कुल मिला कर रातभर की खोज के बाद भी जसबीर का कहीं सुराग नहीं लगा. अगली सुबह 28 अप्रैल को सब लोगों ने थाना सदर बटाला जा कर जसबीर कौर के रहस्यमय तरीके से लापता होने की सूचना दी. पुलिस ने जसबीर कौर का फोटो ले कर उस की तलाश शुरू कर दी.

जसबीर कौर के लापता होने की वजह किसी की समझ में नहीं आ रही थी, क्योंकि न तो वो पैसे वाले लोग थे जो कोई फिरौती के लिए उस का अपहरण करता और न ही जसबीर कौर चालू किस्म की औरत थी. वह बेहद शरीफ औरत थी.

सरपंच परजिंदर सिंह और साबका सरपंच नवदीप सिंह भी यही सोचसोच कर हैरान थे. पुलिस और बिंदर के परिजन अपनेअपने तरीके से जसबीर की तलाश में जुटे  थे. इसी दौरान किसी ने सरपंच नवदीप सिंह और बिंदर को बताया कि जसबीर के गायब होने वाले दिन यानी 27 अप्रैल को उसे पूर्ण सिंह की पत्नी जोगिंदर कौर और पड़ोसन राजिंदर कौर के साथ उन के घर की तरफ जाते देखा गया था.

इस बात का पता चलते ही सरपंच नवदीप सिंह कुछ गांव वालों के साथ पूर्ण सिंह के घर पहुंचे और जसबीर के बारे में पूछा.

उस समय घर पर पूर्ण सिंह, उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटा गुरप्रीत, उस की बहू रविंदर कौर और दोनों बेटियां नीतू व राजिंदर कौर मौजूद थीं. उन्होंने बताया कि जसबीर कौर दोपहर को उन के घर आई तो जरूर थी पर 3 बजे वापस अपने घर चली गई थी. जसबीर कौर का पता लगने की जो आशा दिखाई दे रही थी वह जोगिंदर कौर के बताने से बुझ गई थी.

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जसबीर की तलाश फिर से शुरू की गई. पर न जाने क्यों सरपंच नवदीप को ऐसा लगने लगा कि जसबीर के गायब होने का राज पूर्ण सिंह और उस का परिवार जानता है. यही बात बिंदर और उस के दोनों मामाओं को भी खटक रही थी. आखिर 29 अप्रैल, 2019 को शाम को सरपंच नवदीप और परजिंदर  के साथ पूरे गांव ने पूर्ण सिंह के घर पर धावा बोल दिया.

उन्होंने उस के घर के चप्पेचप्पे की तलाशी लेनी शुरू कर दी. उन्हें घर में एक जगह बड़ा संदूक दिखाई दिया. वह संदूक कमरों के पीछे पशुओं के बाड़े के पास पड़ा था. संदूक पर मक्खियां भिनभिना रही थीं और उस में से अजीब सी दुर्गंध आ रही थी.

सरपंच नवदीप ने बढ़ कर जब उस संदूक को खोल कर देखा तो उन के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. संदूक में जसबीर कौर की लाश थी जो जगहजगह से कटी हुई थी. थोड़ी ही देर में यह खबर गांव भर में फैल गई. पूरा गांव पूर्ण सिंह के घर की ओर दौड़ने लगा.

बिंदर ने सरपंच नवदीप सिंह के साथ थाना बटाला जा कर इस की सूचना एसएचओ हरसंदीप सिंह को दी. एसएचओ तुरंत एएसआई बलविंदर सिंह, सितरमान सिंह, लेडी एएसआई अंजू बाला, लेडी हवलदार जसविंदर कौर, बलजीत कौर, हवलदार दिलबाग, सुखजीत सिंह, लखविंदर सिंह, सिपाही जगदीप सिंह और सुखदेव सिंह को साथ ले कर पूर्ण सिंह के घर पहुंच गए.

मौके पर पहुंच कर पुलिस ने सब से पहले जसबीर कौर की लाश अपने कब्जे में ली. इस के बाद पूर्ण सिंह उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटे की पत्नी रविंदर कौर तथा एक महिला तांत्रिक जगदीशो उर्फ दीशो को गिरफ्तार कर लिया.

इस हत्याकांड से जुड़े अन्य 3 आरोपी नीतू, अमन और राजिंदर कौर फरार होेने में कामयाब हो गए थे. एसएचओ हरसंदीप सिंह ने एसपी बटाला एच.एस. हीर, डीएसपी बलबीर सिंह को भी घटना की सूचना दे दी थी.

कुछ देर में दोनों पुलिस अधिकारी क्राइम टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. मृतका जसबीर कौर का पेट चीरा हुआ था. वह 7 महीने की गर्भवती थी. पुलिस ने जब लाश बरामद की तो उस के पेट से बच्चा गायब था.

इस बारे में पुलिस के साथ आरोपियों से पूछताछ की गई तो प्रथम पूछताछ में ही रविंदर कौर ने अपना अपराध स्वीकर कर लिया. उस ने बताया कि उस के परिवार के लोगों ने मृतका का पेट चीर कर उस के गर्भ से बच्चा निकाला था. इन लोगों ने गर्भवती महिला के पेट को चीर कर गर्भ से बच्चा निकालने की जो कहानी बताई वह वास्तव में रोंगटे खडे़ कर देने वाली निकली.

इस कहानी की मुख्य अभियुक्ता रविंदर कौर की शादी लगभग 12 साल पहले हुई थी. उस के 4 बच्चे थे. रविंदर कौर बचपन से ही आजादखयाल की महत्त्वाकांक्षी औरत थी. वह अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहती थी. उसे अपने ऊपर किसी भी तरह की बंदिश पसंद नहीं थी.

अपने स्वार्थपूर्ति के लिए रिश्ते बदलना, बनाना उस का मनपसंद खेल था. करीब 6 साल पहले जब उस की आंख पूर्ण सिंह के बेटे हरप्रीत सिंह के साथ लड़ीं तो वह अपने चारों बच्चों सहित अपने पुराने पति को अलविदा कह कर हरप्रीत सिंह की पत्नी बन उस के घर आ गई थी.

अब इसे रविंदर की बदकिस्मती कहें या उस की ढलती उम्र समझें अथवा नए पति हरप्रीत सिंह की शारीरिक कमी. बात कुछ भी रही हो पर हरप्रीत के साथ शादी के 5 साल बीत जाने के बाद भी वह उस के बच्चे की मां नहीं बन पाई थी. बच्चा न जनने के कारण उस की सास जोगिंदर कौर हर समय उसे कोसती रहती और ताने देती थी. जिस कारण रविंदर कौर बड़ी परेशान थी.

एक बार उस की एक खास सहेली ने उसे बताया कि पास के गांव में जगदीशो उर्फ दीशो नाम की महिला तांत्रिक रहती है, जिस के आशीर्वाद से कई बांझ औरतों की गोद हरी हुई है. तुम उस के पास चलो.

सहेली के कहने पर रविंदर कौर तांत्रिक दीशो से मिली. दीशो कुछ टाइम तक अपनी ढोंग विद्या से उस से पैसे ऐंठ कर उल्लू बनाती रही. अंत में उस ने स्पष्ट कह दिया ‘‘रविंदर तुम्हारी कोख पर ऐसे जिन्न का साया है जो अब कभी तुम्हें मां नहीं बनने देगा. हां एक तरीका है अगर तुम उसे कर सको तो मैं तुम्हें बताऊं?’’

‘‘मैं कुछ भी करने को तैयार हूं.’’ रविंदर कौर बोली.

‘‘तो सुनो, अपने अड़ोसपड़ोस में कोई ऐसी औरत तलाश करो जो गर्भवती हो और तुम अभी कुछ दिन अपने घर से बाहर मत निकलना. अपने बारे में यह बात भी फैला दो कि तुम गर्भ से हो. इस के बाद क्या करना है यह मैं तुम्हें बाद में बताऊंगी.’’ दीशो ने सलाह दी.

दीशो के कहने पर रविंदर कौर ने वैसा ही किया. साथ ही यह बात अपनी सास और ननदों को भी बता दी. उन्हीं दिनों जसबीर कौर गर्भवती थी. यह बात रविंदर कौर ने तांत्रिक दीशो को बता दी. दीशो ने फिर एक भयानक योजना बनाई.

घटना वाले दिन रविंदर कौर पड़ोस के खेतों में काम कर रही जसबीर को इशारे से बुला कर वह उसे अपने घर ले गई. उस ने जसबीर को बताया था कि एक बड़ी देवी उन के घर आई हुई है. वह उस से आशीर्वाद ले ले ताकि उस का बच्चा सहीसलामत पैदा हो.

जसबीर नीयत की साफ थी और भोली भी. रविंदर कौर की बातों को वह समझ नहीं पाई और उस के घर चली गई. वहां पहले से ही रविंदर कौर के परिवार के सब लोग मौजूद थे. सो समय व्यर्थ न करते हुए सब ने किसी तरह जसबीर को अपने कब्जे में ले कर दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

दम घुटते ही जसबीर एक ओर लुढ़क गई. वह मर चुकी थी. तभी तांत्रिक दीशो ने अपने साथ लाए सर्जिकल ब्लेड से उस का पेट चीर कर पेट का शिशु बाहर निकाल लिया. शिशु को गोद में ले कर जब देखा तो पता चला कि जसबीर कौर के साथसाथ वह भी मर चुका है. मां और बच्चे की मौत के बाद उन सब के हाथपैर फूल गए.

अब क्या किया जाए? सब के सामने अब यही एक प्रश्न था. काफी सोचविचार के बाद तय किया गया कि शिशु के शव को घर में बनी सीढि़यों के नीचे गाड़ दिया जाए और जसबीर की लाश कमरे के बाहर रखे संदूक में छिपा दिया जाए.

बाद में मौका मिलने पर जसबीर की लाश के टुकड़े कर नहर में बहा देंगे. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं लगेगी कि जसबीर कहां गई. बाद में यह अफवाह फैला देंगे कि वह अपने किसी यार के साथ भाग गई होगी.

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एसएचओ हरसंदीप सिंह ने भादंवि की धारा 302, 313, 316, 201 और 120 बी के तहत पूर्ण सिंह, जोगिंदर कौर, रविंदर कौर, गुरप्रीत सिंह, नीतू, अमन और राजिंदर कौर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर चारों अभियुक्तों पूर्ण सिंह, उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटे की पत्नी रविंदर कौर और महिला तांत्रिक जगदीशो उर्फ दीशो को गिरफ्तार कर पहली मई को अदालत में पेश कर पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड के दौरान इस हत्याकांड की मुख्य आरोपी रविंदर कौर की निशानदेही पर ड्यूटी मजिस्ट्रैट अजय पाल सिंह और नायब तहसीलदार तथा पुलिस के उच्च अधिकारियों व गांव वालों की मौजूदगी में उन के घर में सीढि़यों के नीचे दफनाए गए मृतका जसबीर के शिशु को जमीन खोद कर बाहर निकला. फिर मांबेटे का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवाया गया. अन्य 3 दोषियों की निशानदेही पर घर से खून सने कपडे़ और सर्जिकल ब्लेड बरामद कर लिया गया.

बहरहाल जो 4 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, उन्हें सीखचों के पीछे से बाहर आने का मौका कब मिलेगा, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. वह बाहर आ पाएंगे या नहीं, किसी को पता नहीं है. अदालत से उन्हें कितनी सजा मिलती है, यह भी अभी भविष्य के गर्भ में है.

लेकिन इतना तय है कि समाज में अंधविश्वास की जड़ें बहुत गहरे तक जमी हुई हैं. ये जड़ें कैसे और कब उखड़ सकेंगी, कोई नहीं जानता.

कहानी सौजन्य: मनोहर कहानी

प्यार का ऐसा अंजाम तो सपने में भी नहीं सोचा

सोशल मीडिया पर जहां मी टू जैसे कैंपेन चल रहे हैं, वहीं एक मौडल को इस की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी. वजह, फेसबुक फ्रैंड ने ही मौडल बनने आई कुलीग के साथ ऐसी हरकत कर डाली कि उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

मलाड (पश्चिम) में माइंडस्पेस के पास झाड़ियों के बीच ट्रैवल बैग में 20 साल की मौडल की लाश मिलने से हड़कंप मच गया. बैग के अंदर एक महिला की लाश थी जिस के सिर पर चोट थी. उस के शव को कुशन और बेडशीट से कवर किया हुआ था.

हालांकि सीसीटीवी फुटेज में एक कार दिखी है जिस के अंदर बैठे एक शख्स ने सड़क किनारे सूटकेस फेंका था. इसी के आधार पर पुलिस ने आरोपी की पहचान की और उसे उस की बिल्डिंग से पकड़ लिया गया. आरोपी की पहचान 20 साला मुजम्मिल सईद के रूप में हुई. आरोपी सेकंड ईयर का छात्र है. वह मिल्लत नगर अंधेरी (पश्चिम) में रहता था. वहीं मृतका का नाम मानसी दीक्षित है जो राजस्थान से मुंबई मौडल बनने का सपना ले कर आई थी.

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पुलिस के मुताबिक, मानसी राजस्थान के कोटा शहर की रहने वाली थी, आरोपी मुजम्मिल सईद हैदराबाद का रहने वाला है. मानसी आरोपी से इंटरनेट के जरीए मिली थी. दोनों ने अंधेरी स्थित आरोपी के फ्लैट में मुलाकात की थी. दोपहर में दोनों के बीच किसी बात पर बहस हो गई, जिस के बाद मुजम्मिल सईद ने गुस्से में मानसी को किसी चीज से सिर पर मारा जिस से उस की मौत हो गई.

घटना को अंजाम देने के बाद सईद ने मानसी के शव को बैग में भरा और अंधेरी से मलाड तक एक प्राइवेट कैब बुक की. इस के बाद उस ने मलाड के माइंडस्पेस के पास झाड़ियों में बैग को फेंक दिया और वहां से फरार हो गया.

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पुलिस को इस घटना की जानकारी कैब ड्राइवर ने दी. कैब ड्राइवर ने सईद को झाड़ियों में बैग फेंक कर आटोरिक्शा में फरार होते देखा था. पुलिस ने तुंरत मौके पर पहुंच कर मामले की जांच शुरू की और मानसी का शव बरामद कर लिया.

मुजम्मिल ने बताया कि हादसे के दौरान मानसी उस के फ्लैट में थी. उस ने गुस्से में मानसी के सिर पर स्टूल मार दिया जिस से अनजाने में मानसी की मौत हो गई. आरोपी ने हत्या की बात कबूल कर ली है.

रोमा के कई रंग : भाग 2

दोनों युवकों ने पीछे मुड़ कर भागने का प्रयास किया तो पीछे से एक ट्रक आ जाने के कारण वे भाग न सके और हड़बड़ाहट में बाइक सहित सड़क के बीच में गिर पड़े. इस के बाद पुलिस टीम ने फुरती के साथ उन्हें पकड़ लिया.

पूछताछ में दोनों युवकों ने अपने नाम पते विकास व कपिल निवासी गांव मांडला, थाना पुरकाजी, मुजफ्फरनगर व हाल निवासी गांव रावली महदूद बताए.

इस के बाद पुलिस दोनों को ले कर रुड़की कोतवाली पहुंची और उन से सुदेश पाल की हत्या की बाबत पूछताछ की. पहले तो विकास और कपिल पुलिस को टरकाते रहे, मगर जब कोतवाल अमरजीत सिंह ने सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने पुलिस के सामने सुदेश पाल की हत्या में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली. विकास ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार थी.

विकास कई सालों से सिडकुल स्थित महिंद्रा कंपनी में नौकरी कर रहा था. पिछले 4 सालों से अंगरेश नाम की एक युवती उस के मकान में किराए पर रह रही थी. इसी वजह से अंगरेश के भाई अर्जुन व उस की पत्नी रोमा का उस के यहां आनाजाना लगा रहता था.

उसी दौरान विकास की मुलाकात रोमा से हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई. दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे. उन के अवैध संबंधों के बारे में जब विकास के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उसे समझाया. इस के बाद विकास ने रोमा का साथ छोड़ दिया.

यह बात 2 साल पहले की है. इस के बाद रोमा रावली महदूद छोड़ कर शंकरपुरी में आ कर रहने लगी.

4 महीने पहले गांव शंकरपुरी के आकाश ने विकास को बताया कि रोमा रिश्ते में उस की मौसी लगती है और उस के मन में अभी भी उस के लिए पहले जैसा प्यार है.

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यह सुनते ही विकास के मनमस्तिष्क में रोमा की यादें ताजा हो गईं. वह रोमा से मिलने पहुंच गया. नतीजा यह हुआ कि विकास और रोमा दोबारा छिपछिप कर मिलने लगे. इसी दौरान विकास ने रोमा को अपने नाम से खरीद कर एक मोबाइल फोन व सिमकार्ड दे दिया था. रोमा और विकास की मोबाइल पर अकसर बातें होती रहतीं.

एक दिन रोमा ने विकास को बताया कि उस के अपने जेठ सुदेश पाल के साथ भी अवैध संबंध थे, लेकिन अब वह सुदेश पाल को पसंद नहीं करती. जबकि सुदेश पाल अब भी उस के साथ जबरन संबंध बनाने के लिए परेशान करता रहता है.

रोमा ने बताया कि सुदेश पाल को हमारे अवैध संबंधों की भी जानकारी हो गई है. अब वह हमारे बीच में दीवार बन कर खड़ा हो गया है. अगर तुम सुदेश को निपटा दो तो हम दोनों एक हो सकते हैं. रोमा की यह बात सुन कर विकास को गुस्सा आ गया. उस ने अपने दोस्त आकाश व रोमा से मिल कर सुदेश पाल की हत्या की योजना बनाई.

हत्या करने के बाद वे जेल न जा सकें, यानी पुलिस से बचने के लिए उन्होंने यूट्यूब पर हत्या से संबंधित कई वीडियो देखीं. उन से पता चला कि हत्या करने के बाद पुलिस से बचने के लिए क्या करना चाहिए.

पूरी योजना बनने के बाद रोमा ने सुदेश पाल का मोबाइल नंबर भी उपलब्ध करा दिया. योजना के अनुसार इस हत्या में उन्हें किसी लूटे हुए मोबाइल फोन का प्रयोग करना था.

इस बारे में विकास ने अपने परिचित कपिल से बात की तो उस ने पहली सितंबर, 2019 को लूटा हुआ एक मोबाइल फोन उपलब्ध करा दिया. फिर 4 सितंबर को आकाश ने ही उस के व कपिल के साथ जा कर घटनास्थल की रेकी कराई.

आकाश व रोमा ने ही विकास को बताया था कि सुदेश पाल बोरवैल लगाने का काम करता है और तुम भी उसे इसी बहाने अज्ञात जगह ले जा कर उस की हत्या कर देना.

8 सितंबर को विकास व कपिल सुबह 7 बजे काले रंग की पल्सर बाइक से रावली महदूद से चले. शंकरपुरी पहुंचने के बाद विकास ने उसी लूटे हुए मोबाइल से सुदेश पाल को फोन किया और बोरवैल के लिए जगह दिखाने की बात की. धंधे का मामला था, बोरवैल की जगह देखने के लिए सुदेश पाल गांव के बाहर आ गया.

इस के बाद विकास और कपिल सुदेश पाल को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव शेरपुर-बाजुहेड़ी मार्ग के निकट एक खेत में ले गए. वहां पहुंचते ही उन दोनों ने क्लच के तार का फंदा बना कर सुदेश पाल के गले में डाल कर उस का गला घोंट दिया. इस के तुरंत बाद उन्होंने चाकू से उस का गला भी रेत डाला. जिस से उन दोनों के कपड़ों पर खून के धब्बे भी लग गए.

गांव रावली महदूद वापस जाते समय उन्होंने अपने कपड़े व चाकू मेहवड़ पुल के पास ईंट भट्ठे की ओर वाली झाडि़यों में छिपा दिए. इस के बाद दोनों पुलिस से छिपते घूम रहे थे.

पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर सुदेश पाल की हत्या में प्रयुक्त चाकू, खून से सने कपड़े, काले रंग की पल्सर बाइक तथा हत्या में इस्तेमाल किए गए 3 मोबाइल फोन भी बरामद कर लिए.

इस के बाद एसएसपी सेंथिल अवुदई कृष्णराज एस. ने थाने में प्रैसवार्ता कर के सुदेश पाल हत्याकांड का खुलासा किया और आरोपियों को मीडिया के सामने पेश किया. पुलिस ने रोमा को भी हिरासत में ले लिया. उस ने भी पुलिस के सामने सुदेश पाल की हत्या की साजिश रचने में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली.

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अगले दिन यानी 12 सितंबर, 2019 को सुदेश पाल की हत्या का तानाबाना बुनने वाले आरोपी आकाश को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. मृतक सुदेश पाल 5 बेटियों का पिता था. जिन में से वह भारती, आरती व साक्षी की शादी कर चुका था. बेटा न होने के कारण उस ने अपने भाई अर्जुन के बेटे प्रभात को गोद ले लिया था.

कथा लिखे जाने तक आरोपीगण विकास, कपिल, आकाश और रोमा जेल में थे. थानाप्रभारी अमरजीत सिंह इस प्रकरण की जांच पूरी करने के बाद आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट कोर्ट में भेजने की तैयारी में लगे थे.

रोमा के कई रंग : भाग 1

अगर मरने और मारने वाले दोनों के अवैध संबंध किसी एक महिला से हों तो दोनों को जलन तो हो सकती है, पर मारनेमरने की स्थिति नहीं आती. लेकिन रोमा ने एक अवैध संबंध वाले को दूसरे से मरवा दिया. कैसे…

8सितंबर, 2019 का दिन था. उस समय सुबह के करीब पौने 9 बजे थे. तभी जिला हरिद्वार के रुड़की स्थित थाना सिविललाइंस के थानाप्रभारी अमरजीत सिंह के पास शेरपुर गांव के पूर्वप्रधान अनुज का फोन आया.

उस ने बताया कि शेरपुर बाजुहेड़ी मार्ग पर एक आदमी की लाश पड़ी है, जो खून से लथपथ है. लाश मिलने की खबर सुनते ही थानाप्रभारी सबइंसपेक्टर अंकुर शर्मा, सिपाही अरविंद व आशुतोष को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

उन्होंने इस मामले की सूचना सीओ चंदन सिंह बिष्ट, एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर तथा एसएसपी सेंथिल अवूदई कृष्णराज एस. को दे दी. घटनास्थल कोतवाली से मात्र 2 किलोमीटर दूर था. इसलिए वह 10 मिनट में ही मौके पर पहुंच गए.

लाश गांव के मुखिया दयाराम सैनी के गन्ने के खेत में पड़ी थी. अच्छी बात यह थी कि पुलिस के आने से पहले ही मृतक की शिनाख्त हो चुकी थी. शव मिलने की सूचना पर जब गांव शंकरपुरी के लोग मौके पर पहुंचे तो उन्होंने उस की शिनाख्त शंकरपुरी निवासी बोरवैल ठेकेदार सुदेश पाल के रूप में कर दी.

तब तक वहां मृतक सुदेश पाल की पत्नी देशो देवी भी पहुंच गई थी. देशो देवी ने थानाप्रभारी को बताया कि आज सुबह 8 बजे सुदेश मोबाइल पर किसी व्यक्ति से बात करते हुए घर से बाहर चले गए थे. इस के बाद गांव के कुछ लोगों ने सुदेश को 2 युवकों के साथ बाइक पर बैठ कर शेरपुर गांव की ओर जाते देखा था.

इसी बीच सीओ चंदन सिंह बिष्ट भी घटनास्थल पर पहुंच गए. दोनों अधिकारियों ने जब सुदेश पाल के शव का गहन निरीक्षण किया तो पाया कि हत्यारों ने सुदेश का गला किसी धारदार हथियार से रेता था. लाश की स्थिति देखनेसमझने के बाद सीओ चंदन सिंह ने वहां मौजूद देशो देवी व अन्य लोगों से सुदेश के बारे में पूछताछ की.

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घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने सुदेश की लाश को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दिया.

सुदेश पाल की हत्या से उस के परिवार में  कोहराम मच गया था. गांव वाले भी इस बात से हैरान थे कि उस की हत्या आखिर किस ने की. इस हत्या के विरोध में सैकड़ों गमजदा ग्रामीण थाना सिविललाइंस पहुंच गए. थानाप्रभारी से मुलाकात कर उन्होंने हत्यारों को तत्काल गिरफ्तार कर कड़ी सजा दिलवाने की मांग की.

पुलिस ने सुदेश पाल की पत्नी देशो देवी की ओर से आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. पोस्टमार्टम के बाद दोपहर बाद सुदेश पाल का शव उस के परिजनों को सौंप दिया गया.

उसी शाम एसपी (देहात) नवनीत सिंह ने सुदेश पाल की हत्या के खुलासे के लिए सीओ चंदन सिंह बिष्ट के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अमरजीत सिंह सहित एसएसआई प्रमोद चौधरी, थानेदार अंकुर शर्मा व संजय नेगी सहित अपराध अन्वेषण यूनिट प्रभारी रविंद्र कुमार, एएसआई देवेंद्र भारती, जाकिर, अशोक, महीपाल, रविंद्र खत्री आदि को शामिल किया गया. जांच टीम ने सब से पहले घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज चैक किए.

इस के बाद पुलिस टीम ने मुखबिरों से क्षेत्र में सुरागरसी कराई. मृतक के परिजनों से भी व्यापक पूछताछ की गई. पूछताछ के दौरान टीम को जानकारी मिली कि सुदेश सीधासादा व्यक्ति था.

वह बोरवैल का ठेकेदार था. गांव में उस की किसी से दुश्मनी भी नहीं थी. उस के छोटे भाई अर्जुन की पत्नी रोमा के पास विकास नाम के युवक का आनाजाना था, जिस का सुदेश अकसर विरोध करता था.

विकास मूलरूप से गांव मांडला थाना पुरकाजी, जिला मुजफ्फरनगर का रहने वाला था. मगर वह पिछले 8 सालों से हरिद्वार के थाना रानीपुर क्षेत्र के गांव रावली महदूद में रह रहा था. यह जानकारी मिलते ही जांच टीम के शक की सुई विकास की ओर घूम गई. पुलिस ने जब विकास से संपर्क करने का प्रयास किया तो पता चला कि वह सुदेश की हत्या के बाद से ही घर से गायब है.

इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि सुदेश की हत्या के तार अवश्य ही विकास से जुड़े हुए हैं. इस के बाद जांच टीम ने विकास को गिरफ्तार करने के लिए मुखबिरों को सुरागरसी पर लगा दिया.

पुलिस को सुदेश की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली थी, उस में उस की मौत का कारण गला घोंटना व धारदार प्रहारों के कारण शरीर से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

11 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अमरजीत सिंह सुबह 11 बजे अपने कार्यालय में बैठे थे, तभी उन के खास मुखबिर ने सूचना दी कि सुदेश पाल की हत्या का आरोपी विकास थोड़ी देर पहले अपने एक साथी के साथ पल्सर बाइक पर बहादराबाद क्षेत्र में देखा गया था. यह सूचना महत्त्वपूर्ण थी.

अमरजीत सिंह ने तत्काल एसएसआई प्रमोद चौधरी, एसआई संजय नेगी, अंकुश शर्मा, सीआईयू प्रभारी रविंद्र कुमार, एएसआई देवेंद्र भारती व सिपाही जाकिर, अशोक, महीपाल, रविंद्र खत्री, नीरज राणा व सचिन अहलावत को साथ लिया और 15 मिनट में बहादराबाद पहुंच गए.

वहां पहुंच कर उन्होंने पुलिस की 2 टीमें बनाईं. अमरजीत सिंह ने पुलिस की एक टीम को सिडकुल-सलेमपुर रोड पर वाहन चैकिंग के लिए लगाया और दूसरी टीम को बहादराबाद हाइवे पर काले रंग की पल्सर बाइक की तलाश में लगा दिया.

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लगभग 2 घंटे बाद पुलिस टीम को काले रंग की पल्सर बाइक सिडकुल सलेमपुर रोड पर आती दिखाई दी. बाइक पर 2 युवक सवार थे. पुलिस ने जब उन्हें रुकने का इशारा किया, तो वे सकपका गए.

प्यार की कीमत : 3 लाशें

परेशानी की हालत में हरमन सिंह कुएं के चारों ओर चक्कर लगाते हुए गहरी सोच में डूबा हुआ था.

नवनीत कौर उर्फ बेबी कुएं की मुंडेर पर बैठी थी. उस के चेहरे पर भी चिंता के बादल मंडरा रहे थे. दोनों ही सोच में डूबे थे पर किसी से कुछ कह नहीं पा रहे थे. अचानक हरमन रुका और उस ने बेबी के नजदीक जा कर कहा, ‘‘हमारे पास इस समस्या का और कोई इलाज नहीं है, सिवाय इस के कि हम घर से भाग कर शादी कर लें. बाद में जो होगा, देखा जाएगा.’’

‘‘नहीं हरमन, हम ऐसा नहीं कर सकते.’’ चिंतित बेबी ने डरते हुए कहा. अपनी बात जारी रखते हुए उस ने आगे बताया, ‘‘मैं ने अपनी मां से अपनी शादी के बारे में बात की थी. मां ने वादा किया था कि वह बापू को मना लेगी. मेरे खयाल से हमें कुछ दिन और इंतजार करना चाहिए.’’

‘‘मैं ने भी अपने बापू को सब कुछ बता दिया है. शायद वह राजी हो जाएं. पर समस्या यह है कि तेरे बापू ने तेरे लिए जो लड़का ढूंढा है, जिस से अगले हफ्ते तेरी सगाई हो रही है. उस वक्त हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’ हरमन ने चिंतातुर होते हुए कहा.

‘‘मैं फिर कहती हूं कि हमें कुछ दिन और इंतजार करना चाहिए. अगर कोई चारा न बचा तो हम घर से भाग कर शादी कर लेंगे.’’ बेबी ने इतना बता कर बात खत्म कर दी. इस के बाद  दोनों अपनेअपने रास्ते चले गए. यह बात 2 अगस्त, 2019 की है.

भारतपाक सीमा पर स्थित तरनतारन के गांव नौशेरा के निवासी थे सरदार जोगिंदर सिंह. वह खेतीबाड़ी का काम करते थे. उन के 4 बच्चे थे, 2 बेटे और 2 बेटियां. सब से बड़ी बेटी सरबजीत कौर की शादी उन्होंने कर दी थी. उस से छोटा बेटा 22 वर्षीय हरमन अपने पिता के साथ खेतों में काम करता था.

हरमन से छोटी थी 19 वर्षीय प्रभदीप कौर, जिस की शादी के लिए वर की तलाश की जा रही थी. इन सब से छोटा 16 वर्षीय पवनदीप सिंह था. यह परिवार अपने आप में मस्त मगन रहने वाला शांत स्वभाव का था.

4 साल पहले जोगिंदर सिंह की पत्नी अमरजीत कौर की मृत्यु हो गई थी. उस समय गांव के ही बीर सिंह ने जोगिंदर सिंह और उस के परिवार का बड़ा ध्यान रखा था. बीर सिंह भले ही छोटी जाति का मजहबी सिख था, पर बीर सिंह और जोगिंदर सिंह की आपस में बड़ी गहरी दोस्ती थी.

पूरा गांव उन की दोस्ती की मिसाल देता था. दोनों एकदूसरे को भाई मानते थे, पर यह बात कोई नहीं जानता था कि आगे चल कर उन की दोस्ती एक ऐसे मुकाम पर जा पहुंचेगी कि जिस की कीमत लहू दे कर चुकानी पड़ेगी.

बीर सिंह भी नौशेरा ढाला गांव का निवासी था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की उस ने शादी कर दी थी और बाकी बच्चे अभी अविवाहित थे. बीर सिंह और जोगिंदर के आपस में अच्छे संबंध होने के कारण दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर काफी आनाजाना था.

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इसी आनेजाने के दौरान जोगिंदर के बेटे हरमन की आंखें बीर सिंह की बेटी नवनीत कौर उर्फ बेबी से लड़ गईं. दोनों बचपन से साथ खेलेबढ़े थे, युवा होने पर जब दोनों ने एकदूजे को देखा तो अपनाअपना दिल हार बैठे.

गांव के बाहर खेतों में किसी न किसी बहाने से दोनों की मुलाकातें होने लगीं. दिन पर दिन उन का प्यार परवान चढ़ने लगा और फिर अंत में वह दिन भी आ गया, जिस की दोनों ने कल्पना भी नहीं की थी.

बीर सिंह ने अपनी बेटी बेबी के लिए लड़का खोज लिया था और वह जल्द ही उस के हाथ पीले करना चाहता था. हरमन और बेबी के प्रेम संबंधों की दोनों परिवारों को भनक तक नहीं थी. बहरहाल, बेबी के कहने पर उस की मां ने अपने पति बीर सिंह से जब हरमन के रिश्ते की बात की तो उस ने साफ और कड़े शब्दों में इनकार कर दिया.

इस के बाद हरमन और बेबी के पास शादी करने के लिए घर से भागने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा था. सो आपस में सलाह कर वे दोनों अगस्त के पहले सप्ताह में घर से भाग गए. हरमन ने अपनी बड़ी बहन की सहायता से गुरुद्वारा साहिब में बेबी से शादी कर ली.

दोनों ने जाति की दीवार तोड़ कर एक साथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए शादी तो कर ली, पर उन्हें क्या पता था कि इस की कीमत हरमनजीत सिंह के पूरे परिवार को चुकानी पड़ेगी.

बीर सिंह और उस के बेटों को जब इस बात का पता चला तो उन का खून खौल उठा. उन्होंने हरमन और बेबी को तलाशने की बहुत कोशिश की पर वे नहीं मिले. इस बीच गांव वालों के सामने बलबीर सिंह बीरा, उस के बेटों वरदीप सिंह, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह की ओर से हरमन और उस के परिवार को धमकाया जा रहा था.

शादी के बंधन में बंध जाने के बाद घर की जिम्मेदारी के चलते हरमन कोई भी विवाद नहीं चाहता था. इसी कारण लगभग डेढ़ महीने पहले विवाह के तुरंत बाद वह गांव छोड़ कर चला गया था.

29 जुलाई, 2019 को बीर सिंह और उस के बेटों को खबर मिली कि हरमन बेबी के साथ 2 दिनों से अपने घर आया हुआ है. यह खबर मिलने के बाद वे लोग पूरी तैयारी के साथ रात होने का इंतजार करने लगे. इस से पहले बीर सिंह के बेटे वरदीप सिंह, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह हाथों में नंगी तलवारें ले कर जोगिंदर के घर के आसपास मंडराते रहे थे.

खतरे का अंदेशा भांप कर हरमन ने चुपके से अपनी पत्नी बेबी को अपने घर से निकाला और बहन के गांव पहुंचा दिया. घटना वाली रात 29 तारीख को रात का खाने के बाद हरमन अपने पिता जोगिंदर सिंह के साथ छत पर सोने चला गया. उस का छोटा भाई पवनदीप सिंह और बहन प्रभदीप कौर नीचे कमरे में सो गए थे.

रात करीब डेढ़ बजे हरमन को अपने घर की चारदीवारी के पास कुछ आहट सुनाई दी. उस ने नीचे झांक कर देखा तो दंग रह गया. बीर सिंह अपने बेटों और कुछ अन्य लोगों के साथ घर की चारदीवारी फांदने की कोशिश कर रहा था.

यह देख वह घबरा गया और उस ने अपने पिता को जगा कर सचेत किया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे संकट में वह अपने परिवार को बचाने के लिए क्या करे. तब तक बीर सिंह अपने लोगों के साथ चारदीवारी फांद कर घर के आंगन में दाखिल हो चुका था.

हरमन ने छत से गली में छलांग लगाई और ‘बचाओ बचाओ’ का शोर मचाते हुए अपने ताया बलकार सिंह के घर की तरफ दौड़ा. तब तक कुछ और गांव वाले भी उठ कर अपने घरों से बाहर निकल आए और हरमन को भागते हुए देखा पर किसी की समझ में यह बात नहीं आई कि हरमन क्यों भाग रहा है.

हरमन ने अपने ताया को जा कर पूरी बात बताई. वह अपने छोटे भाई और बेटों के साथ तुरंत भाई जोगिंदर सिंह के घर की ओर दौड़े पर जब वह वहां पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

बीर सिंह अपने बेटों, दामाद और अपने साथियों के साथ हरमन के परिवार की लाशें बिछा कर जा चुका था. शोर सुन कर पड़ोसी भी जमा हो गए थे. हरमन के ताऊ चाचा और पड़ोसियों ने पूरे गांव में बीर सिंह और उस के बेटों की तलाश की, पर वे गांव से फरार हो गए थे. बीर सिंह ने छत पर सो रहे जोगिंदर सिंह तथा नीचे कमरे में सो रहे पवनदीप सिंह और प्रभदीप कौर की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी थी.

सुबह जैसेजैसे दिन का उजाला फैलता गया, गांव में दहशत का माहौल बनता गया. इस तिहरे हत्याकांड ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया था. घटना की सूचना मिलते ही एसपी हरजीत धारीवाल, डीएसपी कमलजीत सिंह औलख और थाना सराय अमानत खां के प्रभारी इंसपेक्टर प्रभजीत सिंह क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम सहित मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

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शुरुआती जांच में सामने आया कि किसी तेज धार और नुकीले हथियारों से इस वारदात को अंजाम दिया गया था. सब से अधिक घाव जोगिंदर सिंह के सीने और गरदन में पाए गए जबकि बेटी प्रभदीप कौर की छाती और पेट पर वार किए गए थे.

16 वर्षीय मासूम पवनदीप सिंह के सिर के पीछे गहरे घाव पाए गए. तीनों लाशों का पंचनामा कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को बयान दर्ज करवाते समय हरमनजीत सिंह इस कदर सहमा हुआ था कि करीब से मौत को देखने के बाद उसे अपने व अपनी पत्नी बेबी के भविष्य की चिंता सता रही थी. वह बारबार सुरक्षा के लिए पुलिस अधिकारियों के समक्ष हाथपांव जोड़ रहा था.

हरमन और उस की पत्नी बेबी की सुरक्षा के लिए पुलिस ने उन्हें 2 गनमैन दिए. हरमन के बयानों पर थाना सराय अमानत खां में आरोपियों के खिलाफ 30 जुलाई को 11 आरोपियों बलबीर सिंह उर्फ बीरा, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह, गोविंदा, हैप्पी, मनी, बिक्रम सिंह, बिचित्र सिंह, जोगा सिंह व 3 अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज कर के गिरफ्तारी के लिए छापेमारी शुरू कर दी गई.

तीनों शवों का पोस्टमार्टम सिविल अस्पताल तरनतारन में 3 डाक्टरों के पैनल से करवाया गया. डीएसपी कमलजीत सिंह औलख की अगुवाई में बनाई गई विशेष टीम द्वारा दिनरात एक कर दिया गया. जिस के चलते 2 अगस्त, 2019 को इस हत्याकांड से जुड़े 3 आरोपी बीर सिंह, उस का दामाद जोबनजीत सिंह और बेटा वरदीप सिंह पुलिस के हाथ लग गए.

इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड बीर सिंह का दामाद जोबनजीत सिंह था. नाबालिग वरदीप सिंह को जुवेनाइल एक्ट के तहत अदालत में पेश कर के बाल सुधार गृह फरीदकोट भेज दिया गया. जबकि बीर सिंह व उस के दामाद को 2 दिन के रिमांड पर ले कर पूछताछ की गई.

गिरफ्तारी के बाद पूछताछ के दौरान बीर सिंह ने बताया कि उस का रिश्ता जोगिंदर सिंह के साथ भाइयों जैसा था. लेकिन जोगिंदर के बेटे ने हमारी इज्जत खराब कर दी. जिस की वजह से वह समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रह गया था. तब मजबूरी में उसे अपराध के लिए मजबूर होना पड़ा था.

बीर सिंह और उस के दामाद जोबन सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने वह तेजधार चाकू और हथियार बरामद कर लिए, जिन से जोगिंदर सिंह और उस के परिवार को मौत के घाट उतारा गया था. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद बीर सिंह और जोबन को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया था.

कथा लिखे जाने तक पुलिस बाकी फरार आरोपियों की तलाश में जुटी थी. इस मामले से जुड़े अभी 11 आरोपी अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह, गोविंदा, हैप्पी, मनी, बिक्रम सिंह, बिचित्र सिंह, जोगा सिंह व 3 अज्ञात लोगों का कथा लिखने तक सुराग नहीं लग पाया था.

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दूसरी ओर हरमनजीत सिंह के साथ प्रेम विवाह करने वाली नवनीत कौर बेबी का कहना है कि अभी केवल मेरे पिता की ही गिरफ्तारी हुई है. पुलिस को चाहिए कि इस मामले से जुड़े सभी आरोपियों को पकड़ कर जेल में डाले.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

उत्तर प्रदेश : अपराध का अधर्म राज

सतयुग से ले कर कलयुग तक नारी को छलने का काम पुरुषों ने किया. शारीरिक शोषण के लिए गंधर्व विवाह और फर्जी कोर्ट मैरिज तक धोखे में रख कर की. हर युग में महिला को ही दोषी ठहराया गया. कानून से ले कर समाज तक पुरुष की जगह नारी को ही दोषी माना गया. उन्नाव कांड में भी इस की झलक देखने को मिल रही है.

पूरे देश में उत्तर प्रदेश ही ऐसा प्रदेश है जहां धर्म का राज है. राज्य के  मुखिया के तौर पर गोरखनाथ रक्षा पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की कुरसी पर आसीन हैं. मुख्यमंत्री के रूप में अपनी कुरसी पर बैठने से पहले मुख्यमंत्री के सरकारी आवास को पवित्र गंगाजल से शुद्ध भी किया गया था. 2017 से 2019 के बीच गंगा में बहुत सारा पानी बह गया है. पूरे प्रदेश में गाय और गंगा की पूजा हो रही है.

एक तरह से पूरे प्रदेश में रामराज्य की अवधारणा को जमीन पर उतार दिया गया है. उस युग का जाति और वर्ग आज फिर सत्ता वाले का बड़ा पैतरा बन गया है. धर्म के इस राज में अपराध का अधर्म छाया हुआ है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 60 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले में पिछड़ी विश्वकर्मा जाति की लड़की से प्रेमविवाह, उत्पीड़न और विरोध करने पर जिंदा जला देने की घटना घट जाती है. समाज और प्रशासन से खिन्न परिवार ने हिंदू रीतिरिवाज के बजाय लड़की को दफनाने का रास्ता अपनाया.

यह वही उन्नाव है जहां एक और संत सच्चिदानंद हरि साक्षी महाराज सांसद हैं. ऐसा नहीं है कि उन्नाव में महिला हिंसा की यह पहली घटना है. इस के पहले भाजपा के ही विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को लड़की से बलात्कार, उस के पिता की हत्या की साजिश और लड़की पर जानलेवा हमले के आरोप में अदालत ने दोषी करार दिया है.

इन 2 बड़ी घटनाओं को छोड़ दें तो उन्नाव में ऐसी तमाम और घटनाएं भी रहीं जिन में महिलाओं के साथ हिंसा हुई. देखा जाए तो यह हाल पूरे उत्तर प्रदेश का है. आंकड़ों को देखें तो महिलाओं के साथ हिंसा की सब से अधिक घटनाएं उत्तर प्रदेश में हो रही हैं. उन्नाव में रेप के बाद जलाने की घटना में भले ही प्रशासन ने तेजी दिखाई हो पर अधिकतर घटनाओं को पुलिस दबाने का प्रयास करती है.

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रसूखदारों का दबाव

उत्तर प्रदेश में अपराध का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा है. 2015 में यह आंकड़ा 35,908 था जो 2016 में 11 फीसदी से भी अधिक बढ़ा और अपराध की संख्या बढ़ कर 49,262 पर पहुंची. 2017 में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा ने सारे रिकौर्ड तोड़ दिए और आंकड़ा 56 हजार पर पहुंच गया है. पूरे देश में महिलाओं के साथ हो रही हिंसा में अकेले उत्तर प्रदेश का 15.6 प्रतिशत का योगदान रहा है. 2017 के एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में बलात्कार के बाद महिलाओं के मर्डर की संख्या सब से ज्यादा सामने आई है.

2017 में ऐसे 67 मामले सामने आए थे. दहेज उत्पीड़न मामले में भी महिलाओं को प्रताडि़त करने के मामलों में भी उत्तर प्रदेश सब से आगे है.

सभी 29 राज्यों के आंकड़ों पर ध्यान दें तो 2017 में महिलाओं के साथ हुई हिंसा के 34,5989 मामले सामने आए हैं. यह 2016 के 33,8954 मामलों के मुकाबले काफी ज्यादा हैं. उत्तर प्रदेश में अपराध इसलिए बढ़े हुए हैं क्योंकि यहां पुलिस पीडि़त की मदद करने से पहले यह देखती है कि मामला किस के खिलाफ है. रसूखदार मामलों में पीडि़त के बजाय पुलिस आरोपित के साथ खड़ी नजर आती है.

कुलदीप सेंगर ही नहीं, शाहजहांपुर में भाजपा के ही पूर्व केंद्रीय मंत्री और राममंदिर आंदोलन के सारथी संत स्वामी चिन्मयानंद के मामले में भी ऐसा हुआ. ला कालेज में कानून की पढ़ाई कर रही लड़की ने जब स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ शारीरिक शोषण का मुकदमा लिखाया तो लड़की के खिलाफ ब्लैकमेलिंग का मुकदमा लिख कर उसे भी जेल भेज दिया.

गैरबिरादरी में प्रेम का हश्र

उन्नाव में हिंदूपुर गांव में लड़की को जलाने की घटना बताती है कि उत्तर प्रदेश जाति और धर्म की बेडि़यों में जकड़ा हुआ है. 20 साल की पिछड़ी जाति की लड़की के साथ ब्राह्मण जाति के लड़के का प्रेम होता है. लड़की पिछड़ी जाति के गरीब परिवार से थी और लड़का गांव के प्रभावशाली परिवार का था. गंवई प्रेमसंबंधों के बाद लड़की के शादी पर जोर दिए जाने के बाद 19 जनवरी, 2018 को नोटरी शपथपत्र के जरिए शिवम त्रिवेदी ने उस से शादी कर ली. दोनों अपने गांव से दूर रायबरेली शहर के साकेत नगर में रहने लगे.

घरवालों का दबाव पड़ा तो शिवम शादी से मुकरने लगा. दोनों के बीच सुलह कराने के लिए लड़की को मंदिर में ले जा कर गैंगरेप किया गया. 12 दिसंबर, 2018 को लड़की लालगंज कोतवाली मुकदमा दर्ज कराने पहुंची. वहां पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया. 20 दिसंबर को लड़की ने एसपी रायबरेली को रजिस्टर्ड डाक से अपना शिकायती पत्र भेजा. इस की भी कोई सुनवाई नहीं हुई.

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पुलिस से निराश हो कर पीडि़त लड़की ने रायबरेली में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराने के लिए पत्र दिया. 10 जनवरी, 2019 को मजिस्ट्रेट ने एफआईआर दर्ज कराने का आदेश दिया. इस के बाद भी पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया. 26 फरवरी को कोर्ट की अवमानना का नोटिस दिया गया. तब पुलिस ने दबाव में आ कर 5 मार्च को मुकदमा दर्ज किया. उस के बाद पीडि़ता मुख्यमंत्री से शिकायत करने पहुंची तो

22 सितंबर को आरोपियों ने कोर्ट में सरैंडर कर दिया. पुलिस के देर से मुकदमा दर्ज करने और लचर जांच के चलते ही आरोपियों को जल्दी जमानत मिल गई.

लड़की को इस बात की हैरानी थी कि इतनी जल्दी शिवम जमानत पर कैसे जेल से बाहर आ गया. लड़की ने अपने परिवार को यह बात बताई और कहा कि कल वह रायबरेली जा कर अपने वकील से मिल कर पता करेगी कि यह कैसे हो गया. रायबरेली जाने के लिए लड़की को कानपुर से रायबरेली जाने वाली ट्रेन सुबह 5 बजे मिलनी थी.

जलने के बाद चरित्र हनन

3 दिसंबर, 2019 की सुबह पीडि़त लड़की ट्रेन पकड़ने के लिए अपने घर से निकली. घर से बिहार स्टेशन करीब 2 किलोमीटर दूर था. पीडि़त लड़की सुबह 4 बजे घर से निकली. जाड़े का समय था. रास्ते में अंधेरा भी था. लड़की के पिता ने उसे स्टेशन छोड़ने के लिए कहा तो उस ने बूढ़े पिता की परेशानी को देखते हुए उन्हें मना कर दिया. खुद ही घर से निकल गई.

गांव से स्टेशन के रास्ते में कुछ रास्ते ऐसे थे जहां कोई नहीं रहता था. इसी जगह पर लड़की पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी गई. लड़की खुद को बचाने के लिए मदद की तलाश में दौड़ रही थी. जली हालत में लड़की खुद को बचाने के लिए दौड़ी तो आग और भड़क गई और उस के कपड़े जल कर जिस्म से चिपक गए.

रास्ते में एक जगह कुछ लोग दिखे तो लड़की वहीं गिर पड़ी. लड़की के कहने पर रास्ते पर रहने वालों ने 112 नंबर पर जानकारी दी. शिकायत पर पहुंची पुलिस को लड़की ने जली हालत में पुलिस और प्रशासन को अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल कर जलाने वालों के नाम बताए. 90 फीसदी जली हालत में लड़की को पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और फिर देश की राजधानी दिल्ली इलाज के लिए ले जाया गया. पीडि़त लड़की ने जिंदगी और मौत के बीच 3 दिन संघर्ष करने के बाद दम तोड़ दिया. लड़की के पिता को दुख है कि घटना के दिन वह उसे छोड़ने स्टेशन तक क्यों नहीं गए. लड़की खुद अपनी लड़ाई लड़ रही थी. इस कारण वह विश्वास में थे. इस के पहले वह उसे छोड़ने स्टेशन तक जाते थे.

शिवम त्रिवेदी और दूसरे आरोपियों के परिवार के लोग घटना का तर्क देते कहते हैं कि गुनाह उन के घरवालों ने नहीं किया, उन को साजिश के तहत फंसाया जा रहा है. वे कहते हैं कि लड़की को जलाने की घटना जिस समय की है उस समय उन के लड़के घरों में सो रहे थे. पुलिस ने उन को सोते समय घर से पकड़ा है. अगर उन्होंने अपराध किया होता तो आराम से घर में सो नहीं रहे होते.

इन के समर्थक बताते हैं कि जेल से शिवम के छूटने के बाद लड़की ने उस को फिर से जेल भिजवाने की धमकी दी. इस के बाद खुद पर मिट्टी का तेल डाल कर खुद को जलाने का काम किया. ये लोग सोशल मीडिया पर इस बात का प्रचार भी कर रहे हैं कि शिवम को फंसाने और जेल भिजवाने के नाम पर 15 लाख रुपए की फिरौती लड़की मांग रही थी. इस में से 7 लाख रुपए शिवम के परिवार वाले दे भी चुके थे.

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दबाव में जागी सरकार

उन्नाव की घटना पर सरकार तब जागी जब कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया से ले कर उन्नाव पहुंचने तक विरोध दर्ज किया. समाजवादी पार्टी नेता पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की विधानसभा के बाहर धरनाप्रदर्शन किया और बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने प्रदेश के राज्यपाल से मिल कर उत्तर प्रदेश में महिला अपराध पर अपनी शिकायत दर्ज कराई. राजनीतिक दलों के साथ समाज के लोग भी सड़कों पर उतरे और सरकार के खिलाफ विरोधप्रदर्शन किया. इस के बाद भी भाजपा सरकार में मंत्री धन्नी सिंह ने कहा, ‘‘समाज अपराधशून्य तो रामराज में भी नहीं रहा.’’

उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले को हलका करने के लिए लड़की के घरवालों को मुआवजा देने का काम किया. लड़की के घरपरिवार वालों को 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद, गांव में 2 मकान और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया गया. उन्नाव के मामले के बाद तमाम ऐसी घटनाएं प्रकाश में आने लगीं. इन घटनाओं से समाज की हकीकत का पता चलता है. इस बार रेप कांड सामाजिक है. समाज उन्नाव जिले की घटना को प्रेमप्रसंग मान कर दरकिनार कर रहा है.

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, जहां प्रेम को रोकने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा शपथ ग्रहण करते ही ‘एंटी रोमियो दल’ का गठन किया गया था. मामला एक ही धर्म के लोगों का था. ऐसे में ‘एंटी रोमियो दल’ और पुलिस के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी.

धर्म आधारित सत्ता तो रामायण और महाभारत काल से ही छले जाने पर औरत को ही दोषी मानती थी. अहल्या को पत्थर बना दिया जाना, सीता को घर से निकाला जाना और कुंती का पुत्र को त्याग करने जैसी बहुत सी घटनाएं उदाहरण हैं. ऐसे में उन्नाव के हिंदूपुर गांव की पिछड़ी जाति की लड़की के जलने के बाद भी समाज सच नहीं मान रहा तो कोई बड़े आश्चर्य वाली बात नहीं है.

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