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..तो सचिन टीम से और धोनी कप्तानी से जाते

बीसीसीआई की सिलेक्टर्स कमेटी के चेयरमैन पोस्ट से हटते ही संदीप पाटिल ने दो बड़े खुलासे किए हैं. पहला, 'अगर सचिन तेंदुलकर रिटायरमेंट का एलान नहीं करते तो हम उन्हें ड्रॉप कर देते'. दूसरा, 'कई मौकों पर हमने महेंद्र सिंह धोनी को कप्तानी से हटाने के बारे में बात की थी, पर धोनी का टेस्ट से रिटायरमेंट लेना शॉकिंग था'.

सचिन के रिटायरमेंट को लेकर संदीप पाटिल ने क्या कहा

पाटिल ने कहा '12 दिसंबर 2012 को हम (सिलेक्टर्स) नागपुर में सचिन से मिले और उनके फ्यूचर प्लान के बारे में पूछा'. हालांकि हम सिलेक्टर्स के बीच सचिन के रिटायरमेंट को लेकर एक आम सहमति बन गई थी. बोर्ड को भी इस बारे में बता दिया गया था.

शायद सचिन यह बात समझ गए थे और अगली बैठक में ही उन्होंने कहा कि वो वनडे से रिटायरमेंट के बारे में सोच रहे हैं. अगर सचिन रिटायरमेंट का फैसला नहीं लेते तो हम उन्हें जरूर टीम से निकाल देते.

बता दें कि दिसंबर 2012 में सचिन ने वनडे क्रिकेट से रिटायरमेंट ले लिया था.

सचिन के रिटायरमेंट पर पहले भी बोल चुके हैं पाटिल

पहली बार सवाल पर वे चुप रहे. दूसरी बार भी जब यही पूछा गया तो बोले, ''हमने सचिन पर रिटायरमेंट लेने का दबाव बनाया या नहीं, यह सीक्रेट ही रहे तो बेहतर है.

हम सिलेक्टर्स सिर्फ बीसीसीआई के प्रति ही जवाबदार हैं. मीडिया हमसे कुछ उगलवा नहीं सकेगा.

सचिन ने टेस्ट से कब लिया था रिटायरमेंट

सचिन 16 नवंबर, 2013 को आखिरी बार इंटरनेशनल मैच के लिए मैदान पर थे. मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में सचिन ने वेस्ट इंडीज के खिलाफ अपना आखिरी टेस्ट खेला. इसमें उन्होंने 74 रन बनाए थे. इससे पहले जनवरी 2011 से सचिन ने टेस्ट में कोई सेन्चुरी नहीं बनाई थी.

करियर के आखिरी दो साल में 19 टेस्ट में सचिन ने 31.86 के एवरेज से 956 रन बनाए थे.

शिखर, विराट, रोहित और पुजारा जैसे खिलाड़ियों के टीम में जगह बनाने से सचिन के बैटिंग ऑर्डर पर भी सवाल उठे थे.

धोनी का टेस्ट से रिटायरमेंट हमारे लिए शॉकिंग था

सचिन के अलावा पाटिल ने धोनी को लेकर भी खुलासा किया. उन्होंने कहा कि हम उन्हें कप्तानी से हटाने के बारे में सोच रहे थे, लेकिन उस वक्त 2015 का वर्ल्ड कप सामने था इसीलिए हमने कोई फैसला नहीं लिया.

हालांकि, पाटिल ने कहा, 'टेस्ट टीम से धोनी का रिटायरमेंट लेना हमारे लिए शॉकिंग था.'

संदीप पाटिल ने इसके साथ ही यह भी साफ किया कि इस बात में कोई सच्चाई नहीं है कि गौतम गंभीर और युवराज सिंह जैसे सीनियर खिलाड़ियों को टीम से बाहर करने में धोनी का हाथ था.

पाटिल ने कहा, "बेशक हमने इस पर (धोनी को कप्तानी से हटाने पर) संक्षिप्त चर्चा की थी, लेकिन हमने सोचा कि इसके लिए समय सही नहीं है, क्योंकि विश्व कप (2015) पास में है…" उन्होंने कहा, "हमें महसूस हुआ कि नए कप्तान को कुछ समय दिया जाना चाहिए. विश्वकप को ध्यान में रखते हुए हमने धोनी को कप्तान बनाए रखा. मेरा मानना है कि विराट को सही समय पर कप्तानी मिली. विराट छोटे प्रारूपों में भी टीम की अगुवाई कर सकता है, लेकिन अब इसका फैसला नई चयनसमिति को करना होगा."

संदीप पाटिल ने महेंद्र सिंह धोनी के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के फैसले को हैरान करने वाला बताया, क्योंकि टीम तब ऑस्ट्रेलिया में जूझ रही थी. उन्होंने कहा, "वह कड़ी श्रृंखला थी. मैं यह नहीं कहूंगा कि धोनी एक डूबते जहाज के कप्तान थे, लेकिन चीजें हमारे अनुकूल नहीं हो रही थीं. ऐसे में हमारा एक सीनियर खिलाड़ी संन्यास लेने का फैसला करता है. यह हैरान करने वाला था, लेकिन आखिर में यह उनका (धोनी का) निजी फैसला था."

जब संदीप पाटिल से धोनी और विराट कोहली की कप्तानी की तुलना करने के लिए कहा गया, तो उनका जवाब था कि दोनों एक दूसरे से बेहद अलग हैं. उन्होंने कहा, "उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव. हर कप्तान की इच्छा होती है कि वह अपनी ही तरह की टीम बनाए, और वह अपने खिलाड़ियों की क्षमताओं को जानता है. विराट को 'एंग्री यंगमैन' के रूप में जाना जाता है, लेकिन उनकी उग्रता नियंत्रित है. धोनी शांत रहते हैं, लेकिन हमेशा अपने मन की बात कह देते हैं. मुझे धोनी के युवराज और गंभीर के साथ संबंधों को लेकर छपने वाली खबरें पढ़कर निराशा होती है. धोनी ने कभी उनके चयन का विरोध नहीं किया."

संदीप पाटिल ने कहा, "उन्हें (गंभीर और युवराज को) टीम से बाहर करने का फैसला पूरी तरह से चयनकर्ताओं का था तथा धोनी ने गंभीर और युवराज को बाहर करने को लेकर कोई बात नहीं की. दोनों कप्तानों ने कभी किसी खिलाड़ी का विरोध नहीं किया."

सेक्स सीन पर राधिका आप्टे की चुप्पी

एक बहुत पुरानी कहावत है- ‘‘ओखली में सिर दिया, तो मूसलों से क्या डर. ’’ मगर बौलीवुड में कई अभिनेत्रियां परदे पर कुछ खास दृश्य निभाने से परहेज नहीं करती हैं, मगर उन दृश्यों पर जब सवाल किए जाते हैं, तो चुप्पी साध लेती हैं. पुणे के मशहूर न्यूरोलाजिस्ट डाक्टर माता पिता की बेटी राधिका आप्टे इन दिनों फिल्म ‘‘पार्च्ड’’ में दिए गए अपने सेक्स दृश्यों को लेकर चर्चा में हैं. यूं तो यह फिल्म भारत में 23 सितंबर को प्रदर्शित हो रही है, मगर यह फिल्म कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में शिरकत कर चुकी है.

इतना ही नहीं फिल्म ‘‘पार्च्ड’’ के वह सेक्स दृश्य इंटरनेट पर एक माह पहले ही लीक हो चुके हैं, जिनमें राधिका आप्टे नजर आती हैं. इन लीक हुए सेक्स दृश्यों पर फिल्म के अभिनेता आदिल हुसेन व एक निर्माता असीम बजाज काफी कुछ कह चुके हैं. लेकिन फिल्म की निर्देशक लीना यादव व दूसरे निर्माता अजय देवगन सिर्फ इतना ही कह रहे हैं कि फिल्म पायरेसी बंद होनी चाहिए.

मगर इन लीक हुए दोनों सेक्स दृश्यों में प्रमुखता के साथ नजर आने वाली अदाकारा राधिका आप्टे ने चुप्पी साध रखी है. यहां तक कि फिल्म के प्रमोशन के वक्त जब राधिका आप्टे से पत्रकारों ने सवाल किए, तो भी राधिका आप्टे  चुप रही. इतना ही नहीं फिल्म के पीआर ने भी पत्रकारों से बार बार यही आग्रह किया कि राधिका से इन सेक्स दृश्यों को लेकर सवाल न किए जाएं. अब सवाल यह है कि जिन दृश्यों को आपने सिनेमा के परदे पर अभिनय से संवारा है, जिन्हे पूरे विश्व का दर्शक देख रहा है, उन दृश्यों पर बात करने से कतराने की जरुरत क्यों? यदि अब लग रहा है कि वह गलत है, तो ऐसे दृश्यों को अभिनीत ही नहीं करना चाहिए था. यदि आपने सही किया है, तो उस पर खुलकर बात करनी चाहिए.

बाल वेश्यावृत्ति पर बबिता मोड़गिल की ‘‘सडेन क्राय’’

भारत ही नहीं पूरे विश्व में बाल वेश्यावृत्ति जैसा जघन्य व अति घिनौना अपराध तेजी से अपना पैर पसारते जा रहा है. इस जघन्य अपराध पर अंकुश लगाने के लिए समाज के हर इंसान के बीच जागृति लाना बहुत जरुरी है. इसी बात को ध्यान में रखकर हिमाचल प्रदेश के अंबा जिले की मूल निवासी बबिता मोड़गिल ने नब्बे मिनट की एक यथार्थ परक फिल्म ‘‘सडेन क्राय’’ का निर्माण किया है.

इस फिल्म की चर्चा चलने पर बबिता मोड़गिल ने कहा-‘‘मेरी नजर में सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है. बल्कि बाल वेश्यावृत्ति जैसे घिनौने अपराध का पर्दाफाश किया जाना चाहिए. मैं तो फिल्म ‘आएशा’ के प्रोडक्शन से भी जुड़ी रही हूं. मेरी रूचि दिमागी रूप से सोचने पर मजबूर करने वाली व सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ बातें करने वाली फिल्में ज्यादा पसंद है. जब मुझे एक समाचार चैनल के माध्यम से बाल वेश्यावृत्ति के बारे में पता चला, तो मुझे बहुत पीड़ा हुई. उसके बाद मैं कई ऐसी जगहों पर गयी, जहां दलालों के चंगुल में फंसी हुई सैकड़ों मासूम लड़कियां नारकीय व दर्दनाक जिंदगी जीने पर मजबूर हैं. इस घिनौने व्यवसाय में कई सफेदपोश लोग लिप्त मिले. यह सब देखकर मैने ‘सडन क्राय’ फिल्म बनाने का निर्णय लिया, जिसमें निर्देशक पंकज पुरोहित ने मेरी काफी मदद की.’’

सोशल मीडिया ने मराठी सिनेमा का परिदृश्य बदला: रवि जाधव

विज्ञापन जगत की बहुत बड़ी नौकरी छोड़कर रवि जाधव ने जब पहली बार 2010 में महाराष्ट्र की लुप्त कला ‘‘लावणी’’ और ‘‘तमाशा’’ के कला फार्म को अपनी मराठी भाषा की फिल्म ‘‘नटरंग’’ की विषयवस्तु बनाया था, उस वक्त तमाम लोगों की राय थी कि रवि जाधव अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं और फिल्म ‘‘नटंरग’’ बाक्स आफिस पर पानी भी नहीं मांगेगी. मगर जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई, तो इसने बाक्स आफिस पर सफलता बटोरी, राष्ट्रीय पुरस्कार बटोरे और पूरे मराठी सिनेमा का परिदृश्य तक बदल दिया. इतना ही नहीं उसके बाद रवि जाधव ने एक लघु फिल्म ‘मित्र’ सहित ‘बालक पालक, ‘बाल गंधर्व’, ‘टाइमपास’ जैसी पांच मराठी भाषा की फिल्में निर्देशित की, इन सभी फिल्मों ने भी राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय व अन्य पुरस्कार बटोरे. यहां तक कि 2014 में प्रदर्शित रवि जाधव की मराठी भाषा की फिल्म ‘‘टाइम पास’’ पहली मराठी फिल्म थी, जिसने बाक्स आफिस पर पैंतिस करोड़ रूपए कमाए थे.

अब जब वही रवि जाधव अपने करियर की पहली हिंदी फिल्म ‘‘बैंजो’’ में संगीत के एक ऐसे वाद्ययंत्र पर फिल्म लेकर आ रहे हैं, जिससे महाराष्ट्र को छोड़कर दूसरे राज्यों के लोग परिचित नही हैं. महाराष्ट्र में भी संगीत का यह वाद्ययंत्र धीरे धीरे लुप्त होता जा रहा है. ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या फिल्म ‘‘बैजो’’ से रवि जाधव अपनी अब तक की सफलता का रिकार्ड बरकरार रख पाएंगे? पर रवि जाधव अपनी फिल्म की सफलता को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं.

जब रवि जाधव से हमारी मुलाकात हुई, तो हमने उनके सामने सीधा सवाल यही रखा कि उन्हे ‘बैंजो’ पर फिल्म बनाने की जरुरत क्यों महसूस हुई? इस पर ‘‘सरिता’’ पत्रिका से बात करते हुए रवि जाधव ने कहा-‘‘स्ट्रीट संगीत को जो मुकाम मिलना चाहिए, वह भारत में अब तक नहीं मिला है, उसी पर हमारी यह फिल्म है. जबकि विदशों में स्ट्रीट म्यूजिक बहुत सम्मान जनक स्थिति में है. वहां पर कई गानों के जानर ऐसे हैं, जो कि स्ट्रीट म्यूजिक से आए हैं. हम आजकल ‘की बोर्ड’ वाला या मिक्स संगीत ही सुनते हैं. जबकि लाइव संगीत बहुत बेहतरीन व ज्यादा कर्ण प्रिय होता है. अभी भी गांवों में शादी के अवसर पर या चुनावी सभाओं में लोग बैंजो व लाइव संगीत सुनना पसंद करते हैं. पर बैंजो बजाने वालों को अभी भी सम्मान नही मिला. अभी लोग इन पर पैसा फेंकते हैं और यह लोग मुंह से पैसा उठाते हैं, यह सब मुझसे देखा नहीं गया. इसी बात ने मुझे इस वाद्ययंत्र पर पटकथा लिखने के लिए मजबूर किया.’’

‘बैजो’ पर मराठी फिल्म बनाने की बजाय रवि जाधव ने हिंदी फिल्म बनाने की बात क्यों सोची? मेरे इस सवाल पर रवि जाधव ने कहा-‘‘हर इंसान का सपना बालीवुड से जुड़ना होता है, पर मुझे ऐसा कभी नहीं लगा. मैंने ऐसा कोई सपना देखा नहीं. मेरा सपना महज गुणवत्ता वाला सिनेमा बनाना ही रहा. मेरी राय में बालीवुड से जुड़ने के लिए सही समय, सही कहानी चाहिए. मैं कई कहानियों पर काम कर रहा था. पर वह बौलीवुड के लिए फिट नहीं बैठ रही थी. जब ‘बैंजो’ की पटकथा तैयार हुई, तो मुझे लगा कि इसे हर भाषा व हर वर्ग का दर्शक पसंद करेगा. इसलिए इसे मैंने हिंदी में बनाया. यह कहानी/फिल्म स्ट्रीट म्यूजीशियन के बारे में है. स्ट्रीट म्यूजीशियन सिर्फ महाराष्ट् में नहीं, बल्कि पूरे भारत देश में हैं. बंगाल में भी महाराष्ट्र की तरह बैंजो अलग है, उनका अपना एक अलग जोन है. पंजाब व गुजरात में भी बैंजों है. तो मुझे लगा कि यह कहानी राष्ट्रीय स्तर पर कही जानी चाहिए.’’

फिल्म ‘बैंजो’ की पटकथा लिखने से पहले शोध कार्य के सवाल पर रवि जाधव ने कहा-‘‘मैं करीबन साठ बैंजो बजाने वालों से जाकर मिला. उनसे लंबी बात की. उनका वीडियो फिल्माया. यह लोग पूरे दिन यही काम नहीं करते. यह सभी कहीं नौकरी करते हैं. जब शादी का सीजन हो या गणेशोत्सव हो या नवरात्री उत्सव का समय आता है, तब यह सब पैसा कमाने के लिए अल्पावधि के लिए बैंजो बजाते हैं. लोग इन्हे पैसा दे देते हैं, पर इज्जत नहीं मिलती. पैसा भी बहुत ज्यादा नहीं मिलता. यह लोग शादी में बैंजो बजाते हैं, पर कोई इन्हे मंडप में आकर भोजन करने के लिए नहीं कहता. 2010 में मैंने इन पर शोधकार्य शुरू किया था. मेरी फिल्म में महाराष्ट्र व मुंबई के पांच छह मशहूर बैंजो वादक नजर आएंगे. उससे पहले गूगल पर सर्च करने पर केवल स्पैनिश बैंजो ही दिखाई पड़ते थे. इनके गाने या इनके बैंजो की आवाज को गूगल भी नहीं पहचानता था. पर मेरी फिल्म का हिस्सा बनने के बाद अब कुछ बैंजो बजाने वाले यूट्यूब व गूगल पर अपने वीडियो डाल रहे हैं.’’

रवि जाधव आगे कहते हैं-‘‘बैंजो बजाना बहुत कठिन है. कोई भी लाइव आर्केस्ट्रा दो या तीन घंटे से ज्यादा नहीं चलता है. इसे आठ घंटे बजाना बहुत मुश्किल होता है. हाथों में सूजन आ जाती है. उंगलियां कट जाती हैं. पर बैंजो वाले गरीब होते हैं, इसलिए यह बजाते हैं और लोग इसकी धुन पर जमकर नाचते हैं. इनका एकमात्र मकसद होता है-‘आप नाचते हुए नहीं थकोगे और हम बजाते हुए नहीं थकेंगे.’’

एक वक्त वह था, जब पहले मराठी सिनेमा समाप्त सा हो गया था. पर अब कहा जा रहा है कि मराठी सिनेमा का सुनहरा दौर चल रहा है. मगर इस बात से रवि जाधव पूरी तरह से सहमत नही है. वह कहते हैं-‘‘ऐसा न कहें. ‘श्वास’ मराठी फिल्म ही है, जो कि आस्कर तक गयी थी. हर वर्ष दो तीन मराठी फिल्में बनती रही हैं. हां! बीच में ह्यूमरस फिल्मों की वजह से मराठी सिनेमा का स्तर काफी गिरा था. पिछले पांच वर्ष में मराठी सिनेमा ने काफी तरक्की की है. मैंने तो ‘नटरंग’ के समय में सोशल मीडिया का उपयोग किया था. लोगों ने मुझसे पूछा था कि आप सोशल मीडिया पर अपनी खुद की तारीफ क्यों कर रहे हो? पर मैंने सोशल मीडिया पर काफी बात की थी. ‘नटरंग’ ने उस जमाने में जो व्यापार किया था, वह लोगों की आंखें खोलने वाला था. उसके बाद से लोग ज्यादा सोशल मीडिया से जुड़ रहे हैं. मराठी सिनेमा के बदलाव में सोशल मीडिया ने भी अहम भूमिका निभायी है.’’

आपको क्यों लगता है कि सोशल मीडिया की वजह से मराठी सिनेमा में बदलाव आया? हमारे इस सवाल पर रवि जाधव ने कहा-‘‘फिल्म की मार्केटिंग बहुत खर्चीला है. मराठी सिनेमा साठ से अस्सी लाख में बनता रहा है. अब दो करोड़ तक में बन रहा है. फिल्म का निर्माण करने के बाद तमाम मराठी निर्माताओं के पास मार्केटिंग के लिए पैसा नही होता. जबकि सोशल मीडिया पर पैसा नहीं खर्च होता. मैं 2010 से चिल्ला रहा हूं कि यदि आप सोशल मीडिया का उपयोग समझदारी से करेंगे, तो यह फायदा देगा. आने वाले समय में यह प्रचार का हथियार बनने वाला है. अब सोशल मीडिया पर ज्यादा कमेंट्स और लाइक्स मिलने लगे हैं. अब तो लोग अपनी फिल्म का ट्रेलर, प्रोमो वगैरह भी सोषशल मीडिया पर लांच करने लगे हैं. यह बढ़ना ही है. हां! सोशल मीडिया की कमी यह है कि कि एक ही सोशल मीडिया का उपयोग करते करते इंसान दो साल में थक जाता है. वह दूसरी तरफ मुड़ जाता है. पहले आर्कुट था, फिर फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आ गए. सोशल मीडिया से बाक्स आफिस पर प्रभाव पड़ेगा, यह मानना गलत है. फिल्म का प्रचार तो आपको हर माध्यम में करना पड़ेगा.’’

महाराष्ट्र सरकार की फिल्म नीति व सब्सिडी से मराठी सिनेमा को कितना फायदा हुआ? इस सवाल पर वह कहते हैं-‘‘सब्सिडी से मराठी सिनेमा को फायदा व नुकसान दोनो हो रहा है. जो वास्तविक फिल्मकार हैं, उन्हे फायदा हो रहा है. सुमित्रा भावे जैसे फिल्मकार अच्छा रचनात्मक काम कर पा रहे हैं. मगर सब्सिडी हासिल करने के लिए नए नए फिल्मकार आ रहे हैं और घटिया सिनेमा बना रहे हैं.’’

जब हमने रवि जाधव से कहा कि आपकी मराठी भाषा की पहली फिल्म ‘नटरंग’ की ही तरह ‘बैंजो’ को भी राष्ट्रीय पुरसकार मिल जाएगा? तो रवि जाधव ने कहा-‘‘मैं पुरस्कार की बात नहीं सोचता. मैं चाहता हूं कि फिल्म ‘बैजों’ देखने के बाद यदि लोग अपनी गाड़ी से कहीं जा रहे हों और उन्हे रास्ते में बैंजो वादक मिल जाए, तो वह रूके और उन्हे सम्मान दें या उनकी प्रशंसा करें, तो भी यह मेरी सफलता होगी.’’

क्या कबीर खान और सलमान खान के बीच दूरियां बढ़ी हैं?

2012 में प्रदर्शित सफल ‘यशराज फिल्मस’ की फिल्म ‘‘एक था टाइगर’’ का निर्देशन कबीर खान ने किया था और इस फिल्म में सलमान खान के साथ कटरीना कैफ ने अभिनय किया था. लेकिन अब ‘यशराज फिल्मस’ इस फिल्म का सिक्वअल ‘टाइगर जिंदा है’ के नाम से बनाने जा रहा है, जिसमें सलमान खान के साथ कटरीना कैफ ही अभिनय करने वाली हैं. मगर फिल्म के निर्देशक के तौर पर कबीर खान की जगह ‘सुल्तान’ फेम अली अब्बास जफर के आ जाने से बौलीवुड में अफवाहों का दौर जारी है.

बौलीवुड में चर्चाएं हैं कि कबीर खान और सलमान खान के बीच दूरियां बढ़ गयी हैं. तो कुछ लोग चर्चा कर रहे हैं कि ‘सुल्तान’ को मिली सफलता से सलमान खान की नजदीकियां अली अब्बास जफर के संग हो गयी हैं. तो दूसरी तरफ अली अब्बास जफर ‘यशराज फिल्मस’ के काफी करीबी हैं, इसी के चलते फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ के निर्देशन से कबीर खान का पत्ता कट हो गया और उनकी जगह अली अब्बास जफर आ गए.

मगर कबीर खान और सलमान खान के नजदीकी सूत्रों की माने तो बौलीवुड में यह सब गलत अफवाहे फैली हुई हैं. सूत्रों का दावा है कि सलमान खान और कबीर खान के संबंध आज भी पहले जैसे ही प्रगाढ़ हैं. वास्तव में कबीर खान किसी भी सफल फिल्म के सिक्वअल को बनाकर पैसा कमाने में यकीन नहीं करते. इसके अलावा कबीर खान हर फिल्म के साथ सिर्फ निर्देशक नहीं बल्कि लाइन प्रोड्यूसर के रूप में जुड़े रहना चाहते हैं, जो कि ‘यशराज फिल्मस’ की अपनी नीति के खिलाफ है. इन दो वजहों से ‘टाइगर जिंदा है’ का निर्देशन अली अब्बास जफर को मिल गया.

पार्च्ड: काश इस फिल्म का नाम होता ‘सेक्स और गांव’

फिल्म ‘‘पार्च्ड’’ खत्म होने के बाद दिमाग में एक ही बात आती है कि काश इस फिल्म का नाम होता-‘‘सेक्स और गांव’’. यह फिल्म नारी उत्थान के नाम पर महज  सेक्स के प्रति जागरूकता पैदा करती है. फिल्म में यह सवाल जरुर उठाया गया है कि हमारे यहां अभी भी औरतों को महज भोग्या ही समझा जाता है. तो वहीं फिल्मकार ने इस फिल्म में यह भी रेखांकित किया है कि एक औरत के लिए यौन संबंध की चाहत या अपने शरीर पर अपना हक जताना शर्म की बात नहीं है.

फिल्म ‘‘पार्च्ड’’ की कहानी के केंद्र में गुजरात राज्य के एक गांव की चार औरतें लज्जो (राधिका आप्टे), रानी (तनिष्ठा चटर्जी), जानकी (लहर खान) व बिजली (सुरवीन चावला) हैं. यह ऐसे गांव की कहानी है, जहां सभी सिर्फ सेक्स व दारू के ही चक्कर में नजर आते हैं. लज्जो (राधिका आप्टे) और रानी (तनिष्ठा चटर्जी) गांव में पड़ोसी व दोस्त हैं. लज्जो का पति मनोज (महेश बलराज) एक नम्बर का शराबी है. उसके बगल में ही रानी रहती है. रानी, अपनी सास और बेटे गुलाब (रिद्धिसेन) के साथ रहती है. रानी विधवा है, उसे अपने बेटे की चिंता रहती है. जिसके कारण वह उसकी शादी जल्दी जानकी (लहर खान) से करवा देती है. गुलाब की शादी के बाद रानी की सास मर जाती है. वह अकेली रह जाती है.

बेटा गुलाब अपनी पत्नी जानकी के बाल छोटे होने से गांव के कुछ लोगों के हंसने के कारण उससे दूर रहता है. रात रात भर घर ही नहीं आता है. गुलाब अपने लोफर दोस्तों के साथ हर समय बियर पीना, झगड़ा करना यही सब करता है. दारू पी कर अपनी पत्नी जानकी को भी मारता है. रानी इससे बहुत दुःखी है.

गुलाब की शादी के बाद रानी की सहेली बिजली (सुरवीन चावला) जो एक नाचने वाली वेश्या है, वह भी रानी से मिलने आती है, जिसे देख कर सब गांव वाले चौंक जाते हैं. और आपस में बातें करने लगते हैं. इसलिए बिजली तुरंत चली जाती है. रानी बाद में बिजली के डेरे पर ही उससे मिलने जाती है. साथ में लज्जो भी जाती है. तीनों मिलकर बहुत सारी बातें करती हैं. इतना ही नहीं कुछ समय बाद पता चलता है कि बिजली के यौन संबंध रानी के पति के साथ रहे हैं.

लज्जो का पति लज्जो को ‘बांझ औरत’ कहकर अक्सर पीटता रहता है. लज्जो अपना दर्द बिजली से बयां करती है. तब बिजली, लज्जो को बताती है कि उसको बच्चा नहीं हो रहा है, तो उसके पति में कमी होगी. उसके बाद बिजली, लज्जो को लेकर रात में पहाड़ी पर एक पुरूष (आदिल हुसेन) के पास ले जाती है. जहां लज्जो उस पुरूष के साथ यौन संबंध बनाकर आनंद की अनुभति करती है और वह पेट से हो जाती है.

उधर रानी की बहू जानकी से मिलने उसके घर पर उसका एक दोस्त आता है. गुलाब सदैव घर से बाहर रहता है. गुलाब एक लड़की प्रीति के साथ सेक्स संबंध बनाना चाहता है, इसके लिए उसे ढेर सारे रूपए चाहिए. तो एक दिन गुलाब, रानी के पैसे चुरा लेता है. रानी अपनी बहू जानकी के उपर शक जताती है. जब गुलाब घर लौटता है, तो जानकी अपने पति से सास के पैसे के बारे में सवाल कर देती है. जिससे गुलाब उसे बहुत मारता है. रानी यह सब देख कर बहुत दुःखी होती है. वह  बहू से बात करती है कि वह अपने दोस्त को बुला ले और उसके साथ चली जाए. रानी बहू जानकी को उस लड़के के साथ भेज देती है. रानी व लज्जो दोनों घर से अकेले बिजली के डेरे पर जाती हैं. तीनों वहां से गाड़ी लेकर घूमने चली जाती हैं.

इसी गांव में किशन (सुमीत व्यास) और उसकी पत्नी भी रहते हैं, जो शहर से गांव में आकर सब औरतों को सिलाई का काम लाकर देते हैं और सब को अर्थिक रूप से मदद करते हैं. लेकिन यह बात रानी के बेटे गुलाब को बुरी लगती है. वह अपने दोस्तों के साथ किशन को मारकर घायल कर देता है. किशन अस्पताल पहुंच जाता है. इस घटना के बाद किशन व उसकी पत्नी गांव छोड़ कर चले जाते हैं.

गांव में दशहरा का मेला लगा है. दशहरा के मेले में जाने से पहले जब लज्जो के पति मनोज को पता चलता है कि लज्जो गर्भवती है, तो वह लज्जो को बहुत मारता है. वह कहता है कि उसके पेट में किसका बच्चा है? लज्जो कहती है कि गांव में सभी के सामने वह बोल दे कि मैं बच्चा नहीं पैदा कर सकता, तो वह मान लेगी. फिर लोग उसे क्यों ताने मारते हैं? दोनों में मारपीट होती है. इसी मार पीट में घर में आग लग जाती है और इस आग में मनोज जल जल जाता है.

लज्जो दशहरा के मेले में जाकर रानी व बिजली से मिलती. पूरी कहानी बयां करती है. लज्जो मेले से निकल कर गांव से गाड़ी में शहर की तरफ भागती हैं. तीनों रास्ते में बहुत खुश है.

‘शब्द’ और ‘तीन पत्ती’ जैसी फिल्मों की निर्देशक लीना यादव ने निर्देशक के तौर पर प्रगति की है. इस फिल्म के कुछ दृश्य उन्होंने आम भारतीय फिल्मों से इतर व बेहतर तरीके से लिए हैं. कुछ सीन इस बात की ओर इशारा करते हैं कि उन पर विदेशी सिनेमा का प्रभाव आ चुका है. शायद इसकी वजह उत्कृष्ट हौलीवुड फिल्मों के कैमरामैन रूसेल का इस फिल्म का कैमरामैन होना भी हो सकता है. क्योंकि पटकथा के स्तर पर वह कई जगह मार खा जाती हैं. औरतों के मुद्दे सही ढंग से उभर ही नहीं पाते हैं. फिल्म में ग्रामीण परिवेश को बेहतर तरीके से उकेरा जा सकता था. पुरूष मानसिकता को सही परिपेक्ष्य में नहीं पेश कर पायीं. औरतों के शोषण के नाम पर कुछ भी नया नहीं परोसा गया. क्या नारी स्वतंत्रता व नारी की खुशी महज सेक्स या यानी कि यौन संबंधों तक ही सीमित है? क्या हर रिश्ते को महज यौन संबंधों की कसौटी पर ही कसा जाना चाहिए? नारी उत्थान के नाम पर भी सेक्स व गंदी गालियों का परोसा जाना जायज नहीं ठहराया जा सकता.

फिल्म का नकारात्मक पक्ष यह है कि फिल्मकार ने अपनी फिल्म को बहुत गलत ढंग से प्रचारित किया. लीना यादव व अजय देवगन यह चिल्लाते रहे कि फिल्म नारी उत्थान की बात करती है, जो कि फिल्म देखकर महज झूठ का पुलिंदा साबित होता है. दूसरी बात फिल्म के प्रोमो से भी फिल्म की गलत तस्वीर पेश की गयी. जिस तरह के  प्रोमो वगैरह आए थे, उससे उम्मीद बंधी थी कि यह एक हार्ड हीटिंग फिल्म होगी, पर इसे ‘सेक्स एंड सिटी’ का घटिया भारतीय करण ही कहा जा सकता है. फिल्म के अंत को भी सही नहीं ठहराया जा सकता. फिल्म में अनावश्यक गंदी गालियों का समावेश है. नारी पात्र भी गंदी गालियां बकते हुए नजर आते हैं. नारी प्रधान फिल्म के रूप में भी यह निराश करती है. शहरी लड़कियां व औरतें भी शायद इस फिल्म को न पसंद करें.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो फिल्म तनिष्ठा चटर्जी की ही फिल्म है. फिल्म में तनिष्ठा चटर्जी की आंखें उनकी बेबसी व उनका दर्द बयां करती हैं. इस फिल्म में उनके किरदार की कई परते हैं. राधिका आप्टे उम्मीद पर खरी नहीं उतरती. सुरवीन चावला के संवादों में पंजाबी टच ही नजर आाता है. आदिल हुसेन के किरदार के पास राधिका आप्टे यानी कि लज्जो के संग यौन संबंध स्थापित करने के अलावा कुछ करने का है ही नहीं.

‘‘टू लाइज’, ‘टाइटानिक’, ‘एंट मैन’’ जैसी फिल्मों के कैमरामैन रूसेल कारपेंटर ने कमाल की फोटोग्राफी की है. फिल्म का संगीत ठीक है. लगभग दो घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘पार्च्ड’’ का निर्माण अजय देवगन, असीम बजाज, गुलाब सिंह तनवर, लीना यादव, रोहन जगदाले ने किया है. लेखक व निर्देशक लीना यादव, एडीटर केविन टेंट, कैमरामैन रूसेल कारपेंटर, गीतकार स्वानंद किरकिरे, नृत्य निर्देशक अशेले लोबो व कास्ट्यूम डिजायनर आशिमा बेलापुरकर हैं.

फिल्म के कलाकार हैं: तनिष्ठा चटर्जी, राधिका आप्टे, सुरवीन चावला, आदिल हुसेन, महेश बलराज, रिद्धिसेन, लहर खान व अन्य.

एक राष्ट्र, एक बजट

देश के बजट से जुड़ी प्रक्रिया में बड़ा बदलाव करते हुए सरकार ने अलग रेल बजट की व्यवस्था खत्म कर दी. 92 वर्षों से रेल बजट को आम बजट से अलग पेश किया जा रहा था. कैबिनेट ने आम बजट को फरवरी के अंत के बजाय एक महीना पहले पेश करने का प्रस्ताव भी मंजूर कर लिया. यह प्रस्ताव फाइनेंस मिनिस्ट्री ने दिया था.

आम बजट को एक महीना पहले पेश करने से बजट प्रस्तावों को वित्त वर्ष के पहले दिन यानी 1 अप्रैल से लागू करने में आसानी होगी और उसी दिन से सरकारी खर्च शुरू हो सकेगा. बुधवार को किए गए अन्य निर्णयों में कैबिनेट ने आम बजट में योजनागत और गैर-योजनागत खर्च की श्रेणियों को खत्म करने की मंजूरी दी. योजना आयोग को भंग कर दिए जाने के बाद से यह वर्गीकरण बेमतलब हो चुका था.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया, 'यूनियन कैबिनेट ने तय किया है कि आगामी वर्ष से रेल बजट और आम बजट को मिला दिया जाएगा.' उन्होंने कहा कि रेलवे से जुड़े सभी प्रस्ताव आम बजट का हिस्सा होंगे. उन्होंने कहा कि अब केवल एक विनियोग विधेयक होगा. जेटली ने कहा कि मौजूदा प्रक्रिया में बजट लागू करने में देर होती है. उन्होंने कहा कि बजट आमतौर पर मई में पास होता है, लेकिन मॉनसून के कारण सितंबर-अक्टूबर में ही यह प्रभावी ढंग से लागू हो पाता है. उन्होंने कहा कि राज्यों के विधानसभा चुनावों का कैलेंडर देखकर आम बजट की तारीख पर फैसला किया जाएगा.

कई कमेटियों ने रेल बजट को खत्म करने की सिफारिश की थी. उनकी दलील थी कि रेल बजट पर राजनीति का असर बहुत ज्यादा होता है और इस दबाव में किराया बढ़ाना लगभग असंभव हो जाता है. ब्रिटिश शासकों ने 1924 में अलग रेल बजट की व्यवस्था शुरू की थी. रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि अलग रेल बजट न होने से रेलवे को सालाना 9700 करोड़ रुपये की राहत मिलेगी क्योंकि इसे केंद्र को डिविडेंड पेमेंट नहीं करना होगा.

WhatsApp को टक्कर देने आया गूगल का Allo मैसेंजर

गूगल ने अपने चैट ऐप एलो लॉन्च कर दिया है. एलो मैसेजिंग ऐप में बिल्ट-इन सर्च इंजन है. यह ऐप मोबाइल नंबर की मदद से काम करता है. आप अपने गूगल अकाउंट को भी इससे जोड़ सकते हैं. इस ऐप में इमोजी और स्टिकर्स को काफी प्रमुखता दी गई है.

खास बात ये है कि @google लिखते ही यूजर इंस्टैंट सर्च कर पाएगा और आपको चैट भी नहीं रोकनी होगी. व्हाट्सऐप और हाइक के अधिकतर फीचर्स गूगल के इस ऐप में हैं.

हालांकि इस ऐप से आप कॉलिंग और फाइल शेयरिंग नहीं कर पाएंगे. लेकिन खबरों के मुताबिक गूगल अपने दूसरे ऐप DUO पर वीडियो कॉलिंग के अलावा ऑडियो कॉलिंग भी शुरु कर सकता है.

 अब मैन टू मशीन होगी बात…

– सबसे ज्यादा चर्चा है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले Google Assistant की, जो यूजर की हर उस काम में मदद करेगा, जिसे करने के लिए अभी डेस्कटॉप या लैपटॉप पर कई बटन यूज करने पड़ते हैं.

– यूजर इसे गूगल प्ले स्टोर और एप्पल स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं.

– गूगल ने मई में अपनी सालाना डेवलपर कॉन्फ्रेंस की 10 बड़ी अनॉउसमेंट में इस Allo को लॉन्च करने का प्लान शेयर किया था.

– यूजर की हर तरह की यूटिलिटी के हिसाब से गूगल नंबर 1 सर्च इंजन है. यह USP फेसबुक या WhatsApp के साथ नहीं है.

– अब गूगल ने इसी खूबी को Allo में इनबिल्ट कर दिया है. इसमें यूजर को चैट करने के लिए WhatsApp जैसा ऑप्शन है और किसी भी मदद के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंटरफेज है जो आपके तकरीबन हर सवाल का जवाब देती है.

– एक तरह से ये 'मैन टू मशीन टॉकिंग' का नया दौर शुरू हो रहा है जिसमें एक गूगल बॉट (रोबोट) किसी भी यूजर से सीधे बात करेगा.

Allo मैसेंजर की 9 बड़ी खूबियां जो WhatsApp में नहीं

1. टेक एक्सपर्ट डेथर बोहन के मुताबिक ये Allo इसलिए स्पेशल है कि यूजर का पूरा डेटा गूगल सर्वर पर सेव रहेगा. अगर यूजर न चाहे तो वो इन्कॉग्निटो मोड का यूज करके एंड टु एंड एन्क्रिप्शन के जरिए प्राइवेसी रख सकता है. WhatsApp ने करीब चार साल बाद ये फीचर 2016 में दिया जबकि गूगल Allo में पहले दिन से होगा.

2. अभी एक स्मार्ट यूजर मोबाइल में कम से कम तीन मैसेजिंग ऐप यूज करता है. फैमिली और ऑफिस ग्रुप्स के लिए WhatsApp, ज्यादा दोस्तों से जुड़ रहने के लिए Facebook मैसेंजर और बाकी कामों के लिए Snapchat, WeChat या Telegram. अब गूगल Allo मैसेंजर से इन सभी के फीचर्स एक साथ देने जा रहा है.

3. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले गूगल असिस्टेंट रोबोट का स्मार्टफोन में अपनी तरह का पहला इंटिग्रेशन है जो यूजर के सवालों और सर्च के लिए होगा.

4. गूगल असिस्टेंट यूजर की लोकेशन यूज करके उसकी प्रोफाइल बनाएगा, लेकिन इसे शेयर करना यूजर की मर्जी पर है. एक बार लोकेशन शेयर करने के बाद ये यूजर को एक लोकल गाइड की तरह मदद करेगा.

5. वेदर, गेम, स्पोर्ट्स, फन, गोइंग आउट और ट्रांसलेशन जैसे गूगल के प्रॉडक्ट सीधे यूज करने को मिलेंगे जिससे नई ब्रॉउजर विंडो नहीं खोलनी पड़ेगी और डाटा बचेगा.

6.किसी स्पोर्ट्स इवेंट का स्कोर जानना है तो आप यहां Game पर क्लिक करेंगे. इसके बाद गूगल का ऐसिस्टेंट 7 ऑप्शन देगा जिनमें स्कोर, टीम शेड्यूल, स्पोर्ट्स न्यूज जैसी जानकारियां होंगी. यहां से जो भी एक्स्ट्रा इन्फॉर्मेशन गूगल असिस्टेंट से चैट पर लेना चाहें, ले सकते हैं.

7. यूजर अपने चैट मैसेजेस के फॉन्ट का साइज रीयल टाइम में बढ़ा सकेगा और भेज भी सकेगा. ये ठीक वैसे होगा जैसे डेस्कटॉप ब्राउजर की विंडो का साइज पर्सेंट में बढ़ता है.

8. यूजर रीयल टाइम में किसी भी फोटो पर उंगली से लिखकर या डिजाइन बनाकर भेज सकेगा. गूगल असिस्टेंट की तरफ से इसके लिए सजेशन भी मिलेंगे.

9.Smart Reply फीचर गूगल के Allo की बड़ी ताकत है. इसमें यूजर किसी भी मैसेज पर फास्ट रिप्लाई कर सकता है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से उसे सजेशंस भी मिलेंगे. गूगल बोट आपको मिलने वाले मैसेज पर नजर रखेगा और रिप्लाई करने में फन स्टीकर्स सजेस्ट करके मदद करेगा. जैसे किसी फ्रेंड ने आपको पालतू बिल्ली की फोटो भेजी तो यूजर को Cute सेंड करना का ऑप्शन आएगा और टैप करते ही मैसेज सेंड हो जाएगा.

रितु रानी ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी से लिया संन्यास

भारत की पूर्व महिला हॉकी कप्तान रितु रानी ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास ले लिया. वह रियो ओलंपिक जाने वाली भारतीय टीम में शामिल नहीं किए जाने के बाद काफी नाराज थी.

रितु को रियो ओलंपिक की टीम से रवैये संबंधित कारण का हवाला देते हुए विवादास्पद तरीके से बाहर किया गया था. हालांकि उन्हें भोपाल में शुरू हुए राष्ट्रीय शिविर के लिए 29 संभावितों में शामिल किया गया था.

हालांकि, 24 वर्षीय मिडफील्डर ओलंपिक टीम से बाहर किए जाने से अभी तक नाराज है और उन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय करियर खत्म करने का फैसला किया. हॉकी इंडिया के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा ने कहा, "हमें दो तीन दिन पहले रितु रानी का मेल मिला जिसमें उन्होंने बताया कि वह राष्ट्रीय शिविर से नहीं जुड़ सकती क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास ले रही हैं."

उन्होंने कहा, "यह उनका निजी फैसला है और हॉकी इंडिया उनके फैसले का सम्मान करता है. हॉकी इंडिया खेल और देश को दी गई उनकी सेवाओं के लिए शुक्रिया कहना चाहेगा."

रितु की कप्तानी में ही भारतीय महिला टीम ने 36 साल के अंतराल बाद रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था. उनकी कप्तानी में ही राष्ट्रीय टीम ने 2014 इंचियोन एशियाई खेलों में कांस्य और 2013 एशियाई चैम्पियंस ट्राफी में रजत पदक जीता था.

ओलंपिक टीम से बाहर किये जाने के बाद रितु ने पटियाला के पंजाबी गायक हर्ष शर्मा से 18 अगस्त को शादी कर ली थी.

सत्ता पर शिकंजा कसते व्लादिमीर पुतिन

रूस में रविवार को हुए संसदीय चुनाव में व्लादिमीर पुतिन की पार्टी ने स्टेट ड्यूमा की, जो कि रूसी संसद का निचला सदन है, तीन-चौथाई सीटें जीत लीं और शेष सीटों पर भी उनके प्रति वफादार पार्टियों के उम्मीदवार ही विजयी हुए. यह नतीजा इस सबके बावजूद आया है कि रूस आर्थिक मंदी का शिकार है, उसके खिलाफ पश्चिमी मुल्कों ने आर्थिक प्रतिबंध लगा रखा है और देश के भीतर कुछ इलाकों में नागरिक आजादी के सरकारी दमन के खिलाफ बवाल जारी है. आखिर यह क्या है?

सोवियत संघ के विघटन के 25 वर्षों के बाद ऐसा लगता है कि रूस एक चक्र पूरा करके छद्म-संसद के दौर में फिर लौट आया है, जिसका एकमात्र काम वर्चस्ववादी शासक को वैधता प्रदान करना है. सोवियत संघ के विघटन के बाद के संविधान ने सांसदों की बजाय राष्ट्रपति और मंत्रिमंडल को पहले ही काफी सारे अधिकार सौंप दिए थे, बस ड्यूमा एक मंच था, जहां विपक्ष क्रेमलिन से सवाल कर सकता था और उसकी नीतियों की आलोचना कर सकता था. मगर अब यह मंच भी गया.

यह सही है कि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के तौर पर 17 साल के कार्यकाल के बाद पुतिन को करीब 80 फीसदी रूसियों की हिमायत हासिल है. यह चौंकाने वाली बात है. इसके मूल में उनका वह प्रजानायकीय दावा है कि वह रूस को अमेरिका के बराबर खड़ा करके रहेंगे. पुतिन रूस की तमाम मुसीबतों के लिए अमेरिका को दोषी ठहराते रहे हैं और यह भी कहते हैं कि वह रूस को उसका गौरव दोबारा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन कड़वी हकीकत यही है कि पुतिन के राजनीतिक विरोधियों को बड़े सुनियोजित तरीके से जेलों में बंद किया गया, देश से बाहर निकाला गया, उन्हें प्रताड़ित किया गया और कई बार तो उनकी हत्या भी हुई.

पुतिन छह साल के एक और राष्ट्रपति काल के लिए आजाद हैं. उनका मौजूदा कार्यकाल अगले साल तक है. तब तक सत्ता पर उनका शिकंजा और कस चुका होगा. रूस के तमाम संसदीय चुनाव वास्तव में यही दिखाते हैं कि जिन रूसियों ने सच्चे लोकतंत्र के लिए कभी कोशिश की थी, वे या तो कुचल दिए गए या फिर हाशिये पर डाल दिए गए.

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