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खतरे में Yahoo यूजर्स की सिक्योरिटी

अमेरिकी इंटरनेट कंपनी Yahoo के करोड़ों यूजर्स को इन दिनों परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि हैकर्स ने याहू के करीब 50 करोड़ यूजर्स के अकाउंट हैक कर लिए हैं. इस बात की पुष्टि याहू ने रात को ट्विटर पर की.

आपको बता दें कि हैक किए गए डाटा में यूजर्स के नाम के अलावा, ईमेल के एड्रेस, फोन नंबर, DOB और हैश पासवर्ड सहित कई तरह जानकारियां शामिल हैं. हालांकि याहू ने यह भी कहा है हैकर्स ने अनप्रोटेक्टेड पासवर्ड्स, पेमेंट कार्ड डाटा या बैंक अकाउंट से जुड़ी जानकारी नहीं चोरी नहीं की.

इतने बड़े साईबर अटैक के बाद याहू ने बताया कि अकाउंट से जानकारी चोरी होने के मामले में वह अब कानूनी एजेंसियों के  साथ मिलकर जांच कर रही है. हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि अनप्रोटेक्टेड पासवर्ड्स, पेमेंट कार्ड डाटा या बैंक अकाउंट से जुड़ी जानकारी नहीं चोरी हुई.

याहू के मुताबिक 2014 में हुई यह हैकिंग राष्ट्र-समर्थित थी. याहू ने अपने सभी यूजर्स को चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि उन्होंने साल 2014 से अपने पासवर्ड नहीं बदले हैं तो वो तुरंत अपने पासवर्ड बदल लें. याहू का कहना है कि तकनीकी जगत में राष्ट्र समर्थित ऑनलाइन हैकिंग और चोरी आम बात हो गई है.

गौरतलब है कि जुलाई में याहू को अमरीकी टेलीकॉम कंपनी वेरिजॉन ने 480 करोड़ डॉलर में खरीदने की डील की थी. साइबर एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस हैकिंग की वजह से याहू की वेरिजॉन कम्युनिकेशन के साथ हुई डील पर भी असर पड़ सकता है.

लेकिन अभी तक इस बात की जानकारी नहीं मिल पाई है कि इस हैंकिग का असर याहू की बिक्री या उसके मूल्यांकन पर होगा या नहीं. गौरतलब है कि Yahoo कंपनी पर साईबर अटैक की बात इस साल अगस्त में तब सामने आई थी जब ‘पीस’ नाम के एक हैकर ने कथित तौर पर 20 करोड़ याहू अकाउंट से संबंधित डेटा बेचने की केशिश की थी.

निहलानी, चौहान और सियासत के बीच फंसी ‘दंगा’

फिल्म का नाम ही दंगा है जिस पर सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी और एफटीआईआई के मुखिया गजेंद्र चौहान के बीच दिखावे का ही सही दंगल शुरू हो गया है जिससे उत्सुकतावश ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देखें. निर्माता मिलन भौमिक की इस फिल्म मे गजेंद्र जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भूमिका में हैं, फिल्म राजनैतिक ही कही जाएगी जो हिंसा से भरी पड़ी है. हिंसा यानि दंगे जो साल 1946 में कोलकाता में हुये थे, तब मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान बनाए जाने का प्रस्ताव रखा था, जिसे कांग्रेस ने खारिज कर दिया था. इस पर  पूरा देश सांप्रदायिक उन्माद मे डूब गया था, कोलकाता में ज्यादा मार काट हुई थी.

भगवा अखाड़े के इन दो पट्ठों के बीच 1946 के दंगों को लेकर मतभेद क्यों हैं, इस सवाल का सटीक और तार्किक  जबाब ढूँढे से किसी को नहीं मिल रहा है. पहलाज निहलानी  की दलील यह है कि फिल्म हिंसा प्रधान है और उसमें सही तथ्यों का अभाव है, इससे देश की कानून व्यवस्था को खतरा हो सकता है (शुक्र है किसी ने तो कानून व्यवस्था का होना माना) अलावा इसके इसमें एक नेता के खिलाफ भद्दे संवाद हैं, जो बाद में देश के प्रधानमंत्री बने. निहलानी सीधे पंडित जवाहरलाल नेहरू का नाम ले देते तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ना था, क्योकि दंगा नाम की इस फिल्म मे इनके और दूसरे दो चार लोगों के अलावा किसी की दिलचस्पी है नहीं.

गजेंद्र चौहान इस फिल्म में केंद्रीय पात्र श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भूमिका में हैं और बड़े उत्साहित होकर बताते हैं कि वे इस किरदार में इतने डूब गए थे कि उन्हे लगता था कि मुखर्जी की आत्मा उनमे आ गई है. बहरहाल निहलानी की दलीलों को खारिज करते वे यह भी कहते हैं कि बिना इतिहासकारों से सलाह-मशविरा किए सेंसर बोर्ड का यह तय करना कि हत्याए नहीं हुईं गलत है. तो फिर सच क्या है,  सच यह है कि बात सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम लट्ठा जैसी है, दूसरे नजरिए से यह जंगल में मोर नाचा किसने देखा जैसी भी है. ये दोनों अपनी काबिलियत साबित करने खामोखाह में श्यामा प्रसाद मुखर्जी को महिमामंडित करने की कोशिश में लगे हैं, जिसे सरकार और नरेंद्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त करना भी कहा जा सकता है.

अधिकांश लोग खासतौर से नई पीढ़ी तो बिलकुल नहीं जानती कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी आखिर थे कौन. निहलानी का बयान बताता है कि वह दंगा का प्रमोशन है जिसमे यह बताया गया है कि अगर मुखर्जी पहल नहीं करते, तो जिन्ना की जिद के चलते पश्चिम बंगाल पाकिस्तान का हिस्सा होता. अभी कुछ दिन पहले ही भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी के कार्यकर्ताओं से अपील की थी कि वे अपने घरों के पुराने  बक्से तलाशें और ढूँढे, शायद भाजपाइयों का आजादी की लड़ाई में योगदान से ताल्लुक रखता कोई फोटो या पुर्जा मिल जाए, तो उसे पार्टी कार्यालय को भेजें जिससे यह साबित किया जा सके कि भाजपा ने भी आजादी की लड़ाई में योगदान दिया था.

अब यह दीगर बात है कि पुराने बक्सों में कोई कागज या सबूत कार्यकर्ताओं को अपने पूर्वजों के योगदान का नहीं मिला और बात आई गई हो गई. दंगा कागज का टुकड़ा नहीं, बल्कि सोच समझकर बनाई गई फिल्म है, जिसमे यह साबित करने की कोशिश की गई लगती है कि अगर मुखर्जी एतराज नहीं जताते, तो देश का बड़ा हिस्सा नेहरू पाकिस्तान को थाल में सजाकर दे देते. यह कोशिश जिसे साजिश कहना बेहतर होगा, कामयाब होती दिख नहीं रही, फिर भी दिल को बहलाने प्रयास अच्छा है. साफ दिख रहा है कि इतिहास के पुनर्लेखन का पावन कार्य बेहद कमजोर और नाजानकार लोगों के हाथ मे भज भज मंडली ने थमा दिया है, जिन्हें विवाद पैदा करने की भी समझ और सलीका नहीं.

राहुल का गुस्सा और मोदी का एजेंडा

उरी अटैक से पूरा देश बहुत गुस्से में है. राहुल गांधी का गुस्सा भी स्वाभाविक है. खासकर तब जबकि उन्होंने अरुण जेटली को पहले ही अलर्ट किया था – 'कश्मीर में आपको बड़ी प्रॉब्लम आ रही है.' जिस अरुण जेटली को यही भरोसा नहीं कि ना जाने राहुल गांधी कब सीखेंगे, वो भला उनकी बातों पर कितना ध्यान देते, इसलिए यूं ही कह दिया होगा – 'कश्मीर में कोई प्रॉब्लम नहीं है.' मालूम नहीं, जेटली को ये पक्का यकीन कैसे हुआ कि कोई खुफिया अधिकारी राहुल से मिलकर कुछ बताया नहीं होगा!

जय जवान, जय किसान

अपनी किसान यात्रा में खाट लूटे जाने को स्वाभाविक प्रतिक्रिया मान कर चलने वाले राहुल गांधी को किसानों की हालत देखते ही विजय माल्या की याद आ जाती और फिर वो मोदी सरकार को जीभर कोसते देखे गये. एक तरफ किसान कर्ज में डूबे हुए हैं और दूसरी तरफ माल्या बैंकों का पैसा लेकर भाग जा रहे हैं और सरकार कुछ नहीं कर रही. सच में ये तो अंधेरगर्दी है. अब इसे सूट बूट की सरकार न कहा जाये तो क्या कहा जाये.

अगर राहुल गांधी को लगता है कि सरकार न तो किसानों के लिए कुछ कर रही है और न ही जवानों के लिए तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है. उरी का हमला जवानों की सुरक्षा में बड़ी चूक है. दिन रात मुस्तैद रह कर पूरे मुल्क को चैन की नींद सोने का मौका देने वाले जवानों को तो थकान मिटाने का भी मौका नहीं मिला. थोड़ी झपकी क्या ली कि आतंकवादियों ने उन्हें मौत की नींद सुला दिया.

जिस तरह न्यायपालिका में अकाउंटेबिलिटी को लेकर बहस जारी है, उस तरह सेना में भी ऐसी चूकों के लिए बात होनी चाहिये. अगर कारगिल और मुंबई हमले को छोड़ भी दें तो पठानकोट के बाद उरी अटैक क्यों हुआ? जाहिर है सुरक्षा में बड़ी चूक हुई है – और जो भी सैन्य अफसर हों सिर्फ ये कह कर कि मुहंतोड़ जवाब दिया जाएगा जिम्मेदारी से बच नहीं सकते.

जवानों की शहादत के बाद भी सरकारी तौर पर भेदभाव देखने को मिले हैं. पत्रकार नवीन पाल फेसबुक पर लिखते हैं, "किसी ने दस लाख और किसी ने बारह लाख. क्या ये मुमकिन नहीं था कि जिन भी राज्यों ने सहायता राशि का एलान किया वो अपने नागरिकों के साथ बाकी शहीदों को भी बराबर राशि का एलान करते? इससे उनके सरकारी खजाने पर महज पांच सात करोड़ का असर पड़ता पर इससे देश में संदेश बड़ा जाता कि हम एक हैं."

बिहार में तो एक शहीद की पत्नी का गुस्सा फूट ही पड़ा, "मेरा पति शहीद हुआ है. वो शराब पीकर या नाले में गिरकर नहीं मरा." इतना सुनने के बाद बिहार सरकार को समझ आई और तब कहीं जाकर पांच लाख से बढ़ाकर शहीद के परिवार को 11 लाख का चेक दिया गया.

'जय जवान जय किसान'. लगता है सरकारें अब ये नारा भी भूलने लगी हैं – जबकि 2 अक्टूबर आने में ज्यादा दिन बाकी नहीं हैं.

जीत का इवेंट मैनेजमेंट नहीं होता

उरी हमले के बाद प्रधानमंत्री ने देश को भरोसा दिलाया है कि दोषी बख्शे नहीं जाएंगे. प्रधानमंत्री की बातों पर यकीन के साथ उम्मीद की जानी चाहिये कि इस बार पठानकोट से कुछ अलग रिजल्ट होगा. वैसे प्रधानमंत्री को पता होना चाहिये कि देश के लोग बहुत इंतजार के मूड में नहीं दिख रहे. यहां तक कि ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के सर्वे में भी 60 फीसदी से ज्यादा लोगों ने सैन्य बल के इस्तेमाल का सपोर्ट किया है. इसी सर्वे में शामिल आधे से अधिक लोगों ने मोदी की पाकिस्तान नीति को भी नामंजूर कर दिया है.

ये बात अलग है कि सर्वे में शामिल लोग बयान को कार्रवाई का हिस्सा नहीं मानते, जैसा कि केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने दावा किया था. ऐसे सर्वे में शामिल लोगों को डिप्लोमैटिक एक्शन की बात भी बहुत समझ में नहीं आती, देश के अंदर के कानून की बात और है – बाहर के लिए उन्हें बस आंख के बदले आंख वाली भाषा ही समझ आती है. वैसे सर्वे में शामिल वे ही लोग होते हैं जो वोट देकर सरकार चुनते हैं.

राहुल गांधी के भाषण में फिलहाल जो तेवर दिख रहा है चुनावों से पहले मोदी की बातें इससे भी धारदार हुआ करती थीं, लेकिन सत्ता की अपनी जिम्मेदारियां और मजबूरियां होती हैं. वैसे पाकिस्तान शुरू से ही मोदी के एजेंडे में दिखा – शपथ के मौके पर सार्क देशों के नेताओं को बुलाने के साथ ही मोदी ने नवाज शरीफ से अलग से खास तौर पर मुलाकात की. शरीफ को बर्थडे विश करने लाहौर भी पहुंचे – और जब भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मुमकिन हुआ मोदी और नवाज को साथ साथ देखा गया.

निश्चित रूप से ये इवेंट मैनेजमेंट था. अब राहुल गांधी इन इवेंट्स की बात कर रहे हैं या फिर जो मैडिसन स्क्वायर पर आयोजित हुआ था. या फिर मोदी की विदेश यात्राओं के दौरान उन कार्यक्रमों को लेकर जिनमें 'मोदी-मोदी' की गूंज सुनाई दे रही थी.

राहुल गांधी को एतराज किस इवेंट से है ये साफ नहीं हो पा रहा है. क्या राहुल गांधी को मोदी का लाहौर दौरा ठीक नहीं लगा? फिर तो उन्हें वाजपेयी की लाहौर यात्रा से भी शिकायत होगी. तो क्या समझा जाए कि राहुल के चलते ही दस साल तक प्रधानमंत्री रहने के बावजूद मनमोहन सिंह एक बार भी लाहौर नहीं जा सके – या फिर उस जगह जहां वो पैदा हुए थे.

क्या राहुल गांधी को सुषमा स्वराज का हरी साड़ी में इस्लामाबाद जाना अच्छा नहीं लगा या राजनाथ सिंह का बगैर लंच किये पाकिस्तान से लौट आना? कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी भी उन्हीं लोगों की तरह सोच रहे हैं जैसे सर्वे में शामिल लोग. आखिर वे आम लोग ही तो हैं – और राहुल भी तो उन्हीं की बात करते हैं.

अगर राहुल पीएम होते…

अभी अभी की तो बात है ऑल पार्टी मीट में कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष ने प्रधानमंत्री को कश्मीर समस्या सुलझाने के लिए पूरा मैंडेट दिया था. बाद में विपक्षी दलों के नेताओं का डेलीगेशन भी कश्मीर गया था – अब अलगाववादियों ने उनसे मिलने से इंकार कर दिया तो उसमें इवेंट मैनेजमेंट जैसा तो कुछ नहीं लगता. राहुल गांधी का आरोप ये भी है कि जब से जम्मू कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार बनी है स्थिति बदतर हो गयी है. राहुल गांधी कहते हैं, "मैं पाकिस्तान के कृत्य की निंदा करता हूं. हालांकि, इसके लिए जमीन कश्मीर में एनडीए द्वारा की जा रही राजनीति ने ही तैयार की है. पीएम मोदी ने पीडीपी के साथ गठबंधन कर के कश्मीर में आतंक के लिए रास्ता खोला. हमारे जवान शहीद हुए हैं और मैं इसकी निंदा करता हूं."

लेकिन राहुल के इस बयान में पीडीपी के साथ बीजेपी के गठबंधन से आतंक के लिए रास्ता खोले जाने की बात नहीं समझ आ रही है. कानून व्यवस्था लागू करना सूबे की सरकार की जिम्मेदारी होती है – और जम्मू कश्मीर में अब तक सबसे लंबा कर्फ्यू लगा रहा है. निश्चित रूप से ये महबूबा सरकार की नाकामी है. मगर, बात सिर्फ इतनी भर ही है या कुछ और भी?

मान लेते हैं कि पीडीपी के सत्ता में आने के बाद ही मसरत आलम की रिहाई हुई थी, लेकिन जल्द ही उसे जेल भी भेज दिया गया. अभी तो ये महबूबा मुफ्ती ही हैं जो अलगाववादियों को अपनी हरकतों से बाज आने की बात कर रही हैं. जो महबूबा कल तक सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में मारे गये लोगों के साथ खड़ी होती रहीं, वो सवाल खड़े कर रही हैं कि पत्थरबाज सड़कों पर दूध-ब्रेड लेने नहीं निकले थे.

क्या बीजेपी और पीडीपी के गठबंधन की सरकार नहीं होती तो महबूबा ऐसे कभी बोल पातीं? कोई भी लड़ाई कैसे जीती जाती है? क्या लड़ाई जीतने का कोई खास तरीका हो सकता है? एक तरीके से एक ही लड़ाई जीती जा सकती है – दूसरी नहीं, ऐसा माना जाता है.

वैसे गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष भरत सोलंकी का दावा है कि अगर राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री होते तो कश्मीर समस्या इतनी खराब स्थिति में नहीं पहुंचती. अब ये तो किस्मत की बात है – क्योंकि हर कोई नसीबवाला नहीं होता.

ICC ने आचार संहिता और UDRS में किया बदलाव

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) ने खिलाड़ियों और खिलाड़ियों के सहयोगी स्टाफ के लिए आइसीसी आचार संहिता तथा अंपायर निर्णय समीक्षा प्रणाली (यूडीआरएस) में ‘अंपायर की कॉल’ में बदलाव किए हैं.

आचार संहिता के अपराधों की सूची या प्रत्येक अपराध के लिए चेतावनी, जुर्माना, निलंबन आदि में कोई बदलाव नहीं किया गया है, लेकिन संहिता का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ी के नाम पर नकारात्मक अंक जमा होंगे, जिससे लगातार गलतियां करने वाले खिलाड़ी को निलंबित किया जा सकता है.

नकारात्मक अंक किसी भी खिलाड़ी के खाते में दो साल तक जमा रहेंगे और सभी खिलाड़ी 22 सितंबर से शून्य बैलेंस से शुरुआत करेंगे. एलबीडब्ल्यू को लेकर ‘अंपायर की कॉल’ से संबंधित यूडीआरएस का नियम भी 22 सितंबर से ही प्रभावी होगा.

इन नियमों के तहत पहला मैच रविवार को दक्षिण अफ्रीका और आयरलैंड के बीच बेनोनी में खेला जाएगा. इस परिवर्तन के बाद यह माना जा रहा है कि इससे गेंदबाजों को अधिक फायदा मिलेगा तथा मैदानी अंपायर का फैसला तीसरे अंपायर को भेजे जाने पर अधिक बल्लेबाजों को आउट दिया जाएगा.

खुल रही है धीरे-धीरे ‘जियो’ की पोल

रिलायंस जियो की धमाकेदार लॉन्चिंग के बाद अब धीरे-धीरे चुनौतियां सामने आने लगी हैं. अनलिमिटेड वॉयस कॉलिंग और सिर्फ 4जी नेटवर्क पर सबसे सस्‍ता डाटा देने का वादा करने वाली जियो कॉल ड्रॉप की समस्‍या से जूझ रही है. कंपनी द्वारा जारी किए गए एक बयान के मुताबिक, जियो की 80 फीसदी से ज्‍यादा कॉल फेल हो जा रही हैं.

पिछले सप्‍ताह एक बयान में जियो ने कहा, ”पिछले कुछ सप्‍ताह में समस्‍या बेहद गंभीर हो गई है, हर 100 में से 80 कॉल फेल हो रही हैं.” हालांकि जियो ने इसके लिए एयरटेल और वोडाफोन जैसे बड़े ऑपरेटर्स पर आरोप मढ़ा है.

जियो का कहना है कि प्रतिद्वंदी ऑपरेटरों ने पर्याप्‍त इंटरकनेक्‍शन प्‍वाइंट्स नहीं मुहैया कराए. यूजर्स को “सुपीरियर वॉयस टेक्‍नोलॉजी का फायदा” नहीं लेने दिया गया.

धीरे धीरे लोग इससे परेशान होने लगे हैं और उनकी शिकायतों की लिस्ट भी लंबी होती जा रही है.

ये हैं यूजर्स की रिलायंस जियो से शिकायत

यूजर्स ने बताया कि उन्हें काफी दिक्कते आ रही हैं. कई लोगों ने यह भी बताया कि इंटरनेट अब पहले जैसा फास्ट नहीं, तो किसी ने कहा कि इंटरनेट तो चल रहा है लेकिन कॉल नहीं हो रही है.

कुछ लोगों ने बताया है कि उन्होंने 20 दिन पहले सिम लिए हैं , लेकिन अभी तक एक्टिवेट नहीं हुआ है. लोगों की यह भी शिकायत है कि कस्टमर सपोर्ट काफी घटिया है. काफी देर के बाद बात भी होती है तो समस्या का समाधान नहीं मिलता.

हालांकि इनमें से कई यूजर्स का यह भी मानना है कि यह फ्री है तो हमें कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए, जब पैसे देने होंगे तो शिकायत करेंगे.

अब हम आपको बताते हैं कि आपके पास जियो है तो इन दिक्कतों का सामना कर सकते हैं.

स्टेबल नेटवर्क की प्रॉब्लम: कभी आपको 15Mbps स्पीड मिलेगी और अगले ही पल 100Kbps तक की स्पीड हो जाती है. 5 सितंबर के बाद से नेटवर्क की दिक्कतें बढ़ गई हैं. अगर आप कार में हैं या पैदल चलते हुए नेटवर्क लगातार आता जाता रहता है. ऐसे में इंटरनेट काफी स्लो चलता है.

वॉयस कॉल की समस्या: कई लोग महीने भर से जियो सिम से इंटरनेट तो चला रहे हैं लेकिन उससे एक बार भी कॉल नहीं किया है. वजह ये है कि इससे किसी को कॉल लगती ही नहीं है. कॉल लग जाए तो भी वॉयस क्वालिटी काफी बदतर है. हालांकि एप टु एप कॉलिंग इससे कुछ ठीक है लेकिन इसके लिए दोनों तरफ VoLTE वाला स्मार्टफोन जरूरी है.

सिम कार्ड काम नहीं कर रहा है!

5 सितंबर के बाद से कंपनी के मुताबकि जियो सिम सभी 4G स्मार्टफोन में चलेगा . लेकिन कई लोगों के लिए ऐसा नहीं है. 4G डिवाइस होने के बाद भी सिम काम नहीं कर रहा है. ऐसे मामले ज्यादातर एक साल पुराने स्मार्टफोन में दिख रहे हैं. हालांकि इसके 11 ऐप्स इंस्टॉल करके और सेटिंग्स में बदलाव करके कुछ लोगों के लिए यह काम कर रहा है.

सैक्स करने से बढ़ती है खूबसूरती

क्या सैक्स का सुंदरता से संबंध है? सुनने में भले ही अटपटा लगे पर है सोलह आने सच. कोई महिला अपनी खूबसूरती बढ़ाने व निखारने के लिए भले ही कई तरह के ब्यूटी प्रोड्क्ट्स व जिम में अपना पैसा बहाएं. मगर हम आप से यह कहें कि खूबसूरती बढ़ाने के लिए सैक्स सब से असरकारक है तो गलत नहीं होगा. दरअसल यह बात हम नहीं कह रहे हैं शोध से साबित हुआ है कि सैक्स करने से हारमोन निकलते हैं जिन से त्वचा को लाभ पहुंचता है, रक्त प्रवाह बढ़ता है, जिस से शरीर में निखार आता है, सुंदरता बढ़ती है, पर इसे असरकारक तब माना गया है जब सैक्स को कुदरती तरीके से किया गया हो.

सैक्सः जीवन की गहराई तक जुड़ा है

स्कौटलैंड के रौयल एडिनबर्ग हौस्पीटल के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा नुस्खा बताया है जो मानवीय जीवन का एक अहम हिस्सा है. शोधकर्ताओं ने इस बारे में कुछ दिशानिर्देश भी जारी किए हैं. वे हैं प्रेमपूर्वक सैक्स यानि सिर्फ पति पत्नी के साथ ही सैक्स करने से मनचाहा परिणाम मिलता है. क्योंकि अनसेफ सैक्स से न सिर्फ तमाम तरह की बीमारियों का खतरा रहता है बल्कि स्ट्रैस भी बढ़ता है. इस से मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है, नतीजतन एगिंग की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है.

बढ़ती उम्र घटाए खूबसूरती बढ़ाए

सैक्स कुदरती रूप से आनंद और उत्साह का संचार करता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि कम अंतराल में सैक्स करने से (हफ्ते में कम से कम 3 बार) आदमी की उम्र उस की असली उम्र की तुलना में कम दिखती है, सैक्सुअल एक्टीविटी किसी एक्सरसाइज से कम नहीं है. इस से स्किन को यंग बनोन वोल और खुशी बढ़ाने वाले हार्मोन्स रिलीज होते हैं. इस से आप का चेहरा ग्लो करने लगता है और स्किन में कसाव आता है.

जानिए क्या क्या हैं फायदे

  • सैक्स इंसान की सेहत बनाए रखने में मदद करता है.
  • यह कैलोरी बर्न करने का काम करता है साथ ही दिल और दिमाग को सेहतमंद बनाए रखता है.
  • सैक्स कुदरती रूप से खूबसूरती में इजाफा करता है.
  • यह खूबसूरती बढ़ाने वाले प्रोडक्ट्स और स्टाइल के मुकाबले 20 (बीस) ही नजर आता है.
  • सैक्स कर के अपनी त्वचा की उम्र को 4 साल तक कम कर सकते हैं.
  • सैक्स एक कुदरती उपाय जो खूबसूरती बढ़ाए
  • सैक्स के यह कुदरती उपाय आप के चेहरे की शाइन बढ़ा सकते हैं.

खुशी का एहसास

सैक्स उन एक्टीविटीज में से है. जिस में दिमाग एकसाथ एक्साइट और रिलैक्स होता है. सैक्स के दौरान शरीर में औक्सीजन की मात्रा बढ़ती है और इस से कोशिकाओं को नई एनर्जी मिलती है. इस से आप का मूड बेहतर रहता है.

स्वस्थ बाल

सैक्स के दौरान ब्लड सर्कुलेशन बढ़ जाता है. इस से बालों को एक नेचुरल मौइश्चराइजर मिलता है. इस से आप के बाल चमकदार बनते हैं.

त्वचा को रखें कोमल और स्थिर

जो महिलाएं नियमित सैक्स करती हैं उन की त्वचा में अहम किरदार निभाने वाले हार्मोन एस्ट्रोजेन का स्राव अधिक होता है. इस के साथ ही त्वचा को कुदरती रूप से कोमल और स्थिर बनाने वाले हार्मोन कोलेजन का स्राव भी अधिक होता है.

झुर्रियों से बचाएं

भले ही आप सूरज की हानिकारक किरणों से दूर रहें लेकिन फिर भी आप को झुर्रियां हो सकती हैं. ये झुर्रियां आप के हृदय तक रक्त पहुंचाने वाली धमनियों को हो सकती हैं. इस से दिल पर बुरा असर पड़ सकता है. दिल और चेहरे पर झुर्रियां पड़ने की प्रक्रिया समान है. सैक्स से आप के शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ जाता है जिस से चेहरे पर कुदरती चमक आ जाती है.

स्तनों का आकार बढ़ाएं

स्तनों को महिलाओं की खूबसूरती का अहम हिस्सा माना जाता है. सैक्स के दौरान स्तनों का आकार 25 फीसदी तक बढ़ जाता है इसलिए जानकार मानते हैं कि जो महिलाएं अपनी सैक्स लाइफ से अधिक संतुष्ट होती हैं उन का शरीर अधिक सुडौल होता है.

पेट की चर्बी हटाएं

शरीर में अगर कौलेस्ट्रौल का स्तर अधिक हो जाए, तो इस का सीधा असर हमारे पेट पर पड़ता है. यहां अतिरिक्त वसा इकट्ठा होने लगती है. औक्सीटोसिन इस से निजात दिलाता है यानि और्गेज्म से आप के शरीर पर जमा अतिरिक्त चर्बी दूर होती है.

तनाव दूर करें

तनाव से आप के चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लगती हैं. और्गेज्म के दौरान शरीर में बड़ी मात्रा में औक्सीटोसिन का स्राव होता है. यह तनाव के काफी उत्तरदायी माने जाने वाले कौरटिसोल हार्मोन को दूर करता है.

आत्मविश्वास में करें इजाफा

जिन लोगों को अपने जीवन का लक्ष्य पता होता है, वे अधिक आकर्षक होते हैं सैक्स और व्यायाम मस्तिष्क के समान क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हैं आप अपने आसपास की दुनिया के बारे में अच्छा महसूस करते. आप मानसिक रूप से अधिक शांति एकाग्र, शक्तीमान और सामर्थ्यवान महसूस करते.

इन उपायों को अपना कर अपनी सैक्स लाइफ को बेहतर बनाने की कोशिश कीजिए इस से सेहतमंद तो होगी ही साथ ही खूबसूरती भी निखर जाएगी.

ऐप्स से करें ‘पीरियड्स लौक’

आज की भागदौड़भरी लाइफ को अगर पासवर्ड भरी लाइफ कहा जाए तो गलत नहीं होगा. हम अपने जीमेल अकाउंट, फेसबुक पावर्ड, फोन पासवर्ड, एटीएम पिन व कई तरह के अन्य पासवर्ड को याद रखने में इतना ज्यादा ध्यान देते हैं कि अपने हर महीने की सब से महत्वपूर्ण डेट को भूल जाते हैं. जी हां, हम पीरियड्स डेट के बारे में बात कर रहे हैं. अधिकांश महिलाओं को अपने पीरियड्स डेट्स याद नहीं होते, वे अंदाज से तारीख बताती हैं. अगर इस महीने की तारीख बता भी दें तो पिछले महीने की तारीख नहीं बता पातीं. तारीख याद नहीं रहने की वजह से कई बार उन्हें छोटीछोटी प्रौब्लम्स से भी गुजरना पड़ता है.

लेकिन अब आप को पीरियड्स की तारीख याद रखने की जरूरत नहीं. आप का एक टच आप के पीरियड्स डेट को लौक कर के आप को टैंशन फ्री रखेगा. आप सोच रही होंगी भला कैसे, तो कुछ ऐसे कि आप अपना मोबाइल तो हमेशा अपने पास रखती होंगी, तो बस अपने फोन में पीरियड ट्रैकर ऐप्स डाउनलोड कर के, तारीख याद रखने की झंझट से छुटकारा पा कर अपने पीरियड्स को हैप्पी पीरियड्स बनाइए.

पीरियड ट्रैकर ऐप्स केवल एंड्रायड फोन में ही नहीं चलते बल्कि आईफोन में भी डाउनलोड किए जा सकते हैं. कुछ में एक साधारण सा कैलेंडर होता है जबकि कुछ में सर्विकल म्यूकस और शरीर के तापमान को भी मापा जा सकता है. ये ऐप्स केवल पीरियड्स की तारीख ही नहीं बताते बल्कि इन से आप अपनी प्रैगनैंसी भी प्लान कर सकती हैं. ये ऐप्स आप को बताते हैं कि आप कब कंसीव कर सकती हैं, कब फर्टिलिटी ज्यादा होती है. कब संबंध बनाने से बचना चाहिए. इस में आप पीरियड्स के दौरान होने वाले शारीरिक बदलाव व फीलिंग के नोट्स भी तैयार कर सकती हैं.

ये हैं कुछ पीरियड्स ट्रैकर ऐप

पीरियड ट्रैकर लाइट (Period Tracker Lite)

यह फ्री ऐप है जिसे आप अपने फोन के प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकती हैं. इस ऐप की खास बात यह है कि इस का इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता है. इस में बस आप को अपने पीरियड के पहले और आखिरी दिन एक क्लिक करना होगा. इस के बाद ऐप आप को इस डाले गए सूचना के आधार पर यह बताता है कि आप का पीरियड साइकल कितने दिनों का होगा, महीने के किन दिनों में कंसीव करने की संभावना अधिक होगी साथ ही रिमाइंडर आप को बताते रहता है कि किस तारीख को आप का पीरियड आने वाला है.

पिंक पैड (Pink Pad)

यह ऐप पीरियड ट्रैकर होने के साथसाथ महिलाओं से जुड़े कई विषयों पर जरूरी जानकारी भी देता है. इस पीरियड ट्रैकर में पूरी दुनिया की महिलाओं द्वारा लिखे गए पोस्ट भी मिलेंगे, जो फैशन, ब्यूटी और हैल्थ जैसे विषयों पर होते हैं. इस ऐप की खास बात यह है कि इस में पीरियड का काउंट डाउन आप के होम स्क्रीन पर दिखाई देता है जिस से आप को ऐप ओपन कर के यह देखने की भी जरूरत नहीं कि पीरियड्स में कितने दिन बाकी हैं.

क्लू (Clue)

यह ऐप काफी आकर्षक तरीके से डिजाइन किया गया है. इस में आप को अपने पीरियड की तारीख और सर्कल के बारे में लिखना होता है. कुछ महिलाओं में यह सर्कल 28 दिन का होता है तो कुछ में 30 दिन का. यह ऐप इस सूचना का इस्तेमाल कर आप को अगले महीने के पीरियड तारीख और अंडोत्सर्ग के बारे में बताता है. इस ऐप में आप अपने मूड व शारीरिक बदलाव व हार्मोनल लक्षण के बारे में एक कस्टम टैग भी बना सकती हैं. इस में आप ने कब सैक्स किया और गर्भ निरोधक दवाइयों को खाने का रिमाइंडर भी लगा सकती हैं.

मंथली साइकल्स (Monthly Cycles)

इस का इस्तेमाल करना काफी आसान है, आप आसानी से अपने पीरियड्स को मौनिटर व मैनेज कर सकती हैं. इस कैलेंडर में मैंस्ट्रूअल सर्कल को हाइलाइट करने के लिए कलर डौट्स का इस्तेमाल किया जाता है. इस ऐप की एक ही कमी है, इस में पौप अप विज्ञापन आते हैं.

साइकल्स (Cycles)

यह ऐप उन महिलाओं के लिए उपयोगी है जो मूड और अन्य लक्षणों को ट्रैक नहीं करना चाहतीं, सिर्फ यह जानना चाहती हैं कि कब उन का पीरियड आने वाला है.

इस के अलावा माय साइकल्स (My Cycles), पी लौग (P Log), फर्टिलिटी फ्रैंड मोबाइल (Fertility Friend Mobile), लव साइकल्स मेंस्ट्रुअल कैलेंडर (Love Cycles Menstrual Calender), किंडरा (Kindara), आई पीरियड (I Period), पीरियड फ्री (Period Free) कई ऐप्स हैं जिन्हें डाउनलोड कर के पीरियड्स डेट को लौक किया जा सकता है.

पीरियड ट्रैकर ऐप्स के फायदे

– इन ऐप्स में आप की प्राइवेसी का पूरा ध्यान रखा जाता है.

– जो महिलाएं कंसीव करना चाहती हैं उन्हें यह ऐप महीने के सब से फर्टाइल दिनों की जानकारी देता रहता है, साथ ही जो अपनी प्रैगनैंसी टालना चाहती हैं उन्हें भी पता चलता है कि किस दौरान संबंध बनाना सुरक्षित नहीं है.

– इस के रिमाइंडर से पता चलता है कि पीरियड्स में कितने दिन बचे हैं, जिस से आप को पैड व हैल्थ हाइजीन प्रौडक्ट्स कैरी करने में आसानी होती है.

– आप को अपने मैंस्ट्रुअल सर्कल के बारे में पता चलता रहता है. अगर कभी पीरियड्स संबंधी कोई समस्या होती है तो आप को अपने पिछले सारे रिकौर्ड डाक्टर को बताने में आसानी होती है.

– इन ऐप की सहायता से आप ट्रैक कर सकती हैं कि आप का पीरियड सर्कल नौर्मल चल रहा है या नहीं.

बहू पोतों से मिलने की आस में पथराई बूढ़ी आंखें

वतन की हिफाजत के लिए अपने जिगर के टुकड़ों को कुरबान करने वाली मांएं खुद पर फख्र महसूस करती हैं. हालांकि बेटों के बिछोह का गम उन्हें कई बार टीस देता है, पर उस से ज्यादा अपने लोगों की बेरुखी तंग करती है.

इस दर्द के लिए शब्द नहीं

‘‘जवान बेटे के बिछोह के दर्द को कौन सी मां अपने शब्द दे सकती है…’’ कहतेकहते छाती में जमा दर्द उन की आंखों में आ कर पिघलने लगता है. तकरीबन सवा साल पहले अरुणाचल प्रदेश में 8 नक्सलियों से हुई मुठभेड़ में 34 साला मेजर आलोक माथुर मारे गए थे. पिछली 26 जनवरी को उन्हें मरणोपरांत वीरता सेना मैडल मिला था. आलोक की मां मधु माथुर कहती हैं कि सरकारी नियमकायदों में मां की ममता के लिए कहीं कोई जगह नहीं है. अपने 2 नन्हे पोतों में उन्होंने बचपन के उस आलोक की इमेज को देखना चाहा था. जब वे रसोईघर में होती थीं और वह गलबहियां डालते हुए कहता, ‘मां, आज क्या पका रही हो?’

सरकार से जितनी भी रकम और दूसरी सुविधाएं मिलती हैं, वे सब मारे गए सैनिक की पत्नी के नाम से होती हैं. जवान पति की मौत के बाद ज्यादातर लड़कियां मायके में रहना पसंद करती हैं. मातापिता एक समय बाद उन की दूसरी शादी भी कर देते हैं, क्योंकि पहाड़ सी जिंदगी उन के सामने होती है. हालांकि इस में कुछ गलत भी नहीं है. बहू को तो दूसरा जीवनसाथी मिल गया, मदद भी मिल गई, पर मां कहां ढूंढ़ेगी अपने खोए बेटे को?

बेटे की बहादुरी पर फख्र

राजस्थान के झुंझुनूं जिले के जयपहाड़ी गांव के जगदीश सिंह शेखावत को याद कर उन की मां अजय कंवर अपने आंसू नहीं रोक पाती हैं. 3 बेटों को सेना में भेज चुकीं अजय कंवर के लाड़ले ने दुश्मन को खत्म करने के बाद ही इस दुनिया को अलविदा कहा था. वह बचपन में पिता की टोपी लगा कर हमेशा सेना में जाने की ही बात करता था. सीकर जिले के भैरूपुरा गांव की चावली देवी को अपने बेटे की कुरबानी पर गर्व है. वे चाहती हैं कि उन का पोता अरविंद भी फौज में ही भरती हो. चावली देवी ने बताया कि उन का बेटा महेश कुमार जाट रैजीमैंट में जम्मूकश्मीर के लौगावा सैक्टर में तैनात था. पिछले साल 23 जनवरी की सुबह पहाड़ी पर आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में वह मारा गया.

लौटा तिरंगे में लिपट कर

किसी भी मां के लिए उस के बेटे की मौत से बड़ा शायद ही कोई गम हो. झुंझुनूं जिले के पिलानी कसबे के शहीद मेजर प्रदीप शर्मा की मां प्रेमलता का दामन भी आंसुओं से भरा है. मेजर प्रदीप शर्मा अपनी बहन की सगाई की तैयारी के लिए आने का वादा कर के गए थे. वे लौटे तो सही, पर तिरंगे में लिपटे हुए. मां के लिए यह सब से बड़ा सदमा था, जिस से वे अब तक नहीं उबर पाई हैं. प्रदीप शर्मा के शहीद होने के बाद उस का सामान संदूकों में घर लाया गया, लेकिन उन्होंने संदूकों को आज तक नहीं खोला है.

याद करो कुरबानी

हर 26 जनवरी और 15 अगस्त पर सवेरे से ही पूरे मुल्क में देशभक्ति से भरे गीतों के रेकौर्ड बजते हैं, ‘जो शहीद हुए हैं उन की, जरा याद करो कुरबानी…’ न चाहते हुए भी कमला देवी के सीने में छिपा दर्द उन की बूढ़ी आंखों में आ बैठता है.

वे कहती हैं, ‘‘मेरे बेटे ने तो देश के नाम पर अपने प्राणों की बलि दे दी, पर मेरे बहूपोते को मुझ से कोई मिला दे.’’ कमला देवी का बेटा रवींद्र साल 1975 में पाकिस्तान में गुप्तचरी के लिए नबी अहमद बन कर गया था. वहां सेना में भरती के लिए प्रवेश परीक्षा दी और उस का सलैक्शन भी हो गया. अपने काम को अंजाम देते सेना को हथियार सप्लाई करने वाले एक शख्स की बेटी जाने कब उस की जिंदगी में चली आई और वे एकदूसरे को दिल दे बैठे, पता ही नहीं चला. जल्दी ही दोनों शादी के बंधन में बंध कर जिंदगीभर के साथी हो गए. उस दिन तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा, जब वे एक बेटे के मातापिता बने.

पाकिस्तान में रहने के तकरीबन 8 साल बाद रवींद्र पकड़ा गया और फिर उस पर शुरू हुआ जोरजुल्म ढाने का ऐसा कहर, जो 18 साल तक चलता रहा. इस के चलते वह टीबी की बीमारी का शिकार हो गया. आखिरकार नवंबर, 2001 में उस की मौत हो गई. कारगिल की लड़ाई पर रवींद्र के बारे में एक बड़े अफसर ने कहा था कि यह खूनखराबा न होता, अगर रवींद्र जैसा जांबाज जासूस हमारे खुफिया महकमे के पास होता. आज रवींद्र का बेटा जवान हो गया है. उस की पाकिस्तानी मां भी उसे बताती होगी कि उस के पिता का परिवार हिंदुस्तान में रहता है, जहां उस की दादी है, बूआ है, भाईबहन हैं, चाचा हैं, पर सियासत के खूनी खेल के चलते वे चुप रहते होंगे और मन ही मन सोचते होंगे कि दुनिया की सारी दुश्मनी की दीवारें टूट जाएं और सभी अपने बिछड़े परिवारों से मिल सकें.

ऐ नक्सली, हम ने आप का क्या बिगाड़ा था

20 साल की क्षमा प्रिया के हाथों की मेहंदी का रंग अभी सुर्ख ही था और उस का सुहाग उजड़ गया. कुछ समय पहले ही क्षमा ने दिवाकर  के नाम की मेहंदी रचाई थी. उस के पति दिवाकर की मौत नक्सली हमले में हो गई. जैसे ही उस के भाई विपिन ने उसे दिवाकर की मौत के बारे में खबर दी कि समूचा घर चीखपुकार में डूब गया. क्षमा रोतेबिलखते हुए बारबार यही कह रही थी, ‘‘मेरे दिवाकर को कुछ नहीं हुआ है… वह ठीक है… लोग हमारी शादी से जलते हैं, इसलिए झूठी बातें फैला रहे हैं… क्यों मार दिया मेरे पति को? ऐ नक्सली, हम ने आप का क्या बिगाड़ा था… बताइए…’’ इतना कहतेकहते वह फिर से बेहोश हो गई.

लोग उसे होश में लाने की कोशिश करते हैं. उसे चुप कराने की कोशिश करते रहे, पर उस की सिसकियां और हिचकियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. वह आसपास खड़े हर किसी को उम्मीद भरी नजरों से देखती है कि कोई तो कह दे कि उस का पति जिंदा है. उस के बाद वह फिर से दहाड़ें मार कर रोने लगती. दिवाकर कुमार की मां सुनीता देवी और पिता तुनकलाल तिवारी को तो मानो काठ मार गया है. 5 औलादों में से उन का एक बेटा शहीद हो गया था.

दिवाकर कुमार बिहार के खगडि़या जिले के परबत्ता ब्लौक के झंझरा गांव का रहने वाला था. 27 जून, 2016 को उस की शादी गोपालपुर मानसी टोला के रहने वाले राजेश्वर प्रसाद की बेटी क्षमा प्रिया से हुई थी.इसी तरह 30 साल की मीरा की जिंदगी में भी नक्सलियों ने अंधेरा फैला दिया है. उस के पति अनिल कुमार सिंह ने नक्सली मुठभेड़ में अपनी जान गंवा दी है. बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव के ‘शहीद मर्द’ रोड पर बने अनिल का घर मातम में डूबा हुआ है. ‘शहीद मर्द’ महल्ले के रहने वाले अनिल ने मरतेमरते खुद को आखिर जांबाज ‘शहीद मर्द’ साबित कर डाला. सीआरपीएफ के जवान अनिल कुमार सिंह का बचपन काफी परेशानियों में गुजरा था. परमेश्वरपुर गांव के रहने वाले रामचंद्र सिंह के 2 बेटों और 2 बेटियों में अनिल सब से छोटा था. बचपन में ही अनिल के सिर से पिता का साया उठ गया था. उस की मां चिंता देवी ने काफी परेशानियों से जूझते हुए बच्चों की परवरिश की थी.

साल 2000 में अनिल कुमार सिंह की सीआरपीएफ में बहाली हुई थी. अनिल की बेटी आकांक्षा 5 साल की और बेटा अभिनव 2 साल का है. 23 साल की नम्रता सिंह की आंखों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. कोबरा बटालियन के कमांडो उस के पति रवि कुमार ने नक्सलियों से लोहा लेते हुए अपनी जान दे दी. बिहार के सिवान जिले के असांव थाने के खरदरा गांव के मिथिलेश कुमार सिंह का 25 साला बेटा रवि कुमार 8 जुलाई, 2016 को 40 दिनों की छुट्टी बिता कर ड्यूटी पर लौटा था. रवि के पिता मिथिलेश भी सीआरपीएफ में हैं और फिलहाल वे अगरतला में तैनात हैं. रवि ने 19 साल की उम्र में ही सीआरपीएफ जौइन कर ली थी और साल 2012 में उस की शादी असांव थाना इलाके के ही शिऊरी गांव की नम्रता सिंह से हुई थी. अभी उन के कोई औलाद नहीं है. बिहार के 3 जवानों के अलावा पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के दीपक घोष, दक्षिणी दिनाजपुर के पोलाश मंडल, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के हरविंदर पवार, आजमगढ़ के सिनोद कुमार, मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मनोज कुमार, मणिपुर के थैवाल जिले के उपेंद्र सिंह, पंजाब के होशियारपुर जिले के रमेश कुमार भी नक्सली हमले में शहीद हो गए.

दरअसल, कैमूर की सोनदाहा पहाडि़यों पर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश की पुलिस ने मिल कर सर्च आपरेशन शुरू किया था. 19 जुलाई, 2016 की रात बिहार के रोहतास, कैमूर, औरंगाबाद, गया, उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, चंदौली और झारखंड के गढ़वा, पलामू और चंपारण जिलों की पुलिस टीम मिल कर यह आपरेशन चला रही थी. बिहार के गया और औरंगाबाद जिले की सरहद पर डुमरी नाला के पास दर्जनों लैंड माइंस धमाके और अंधाधुंध गोलीबारी कर के नक्सलियों ने सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के 10 जवानों की जान ले ली. एडीजी, हैडक्वार्टर सुनील कुमार ने बताया कि नक्सली हमले में कोबरा बटालियन के 10 जवान शहीद हुए हैं और 5 बुरी तरह से जख्मी हो गए है. जवानों की जवाबी कार्यवाही में 6 नक्सली मारे गए, जिन में से 3 की लाशें बरामद हुई हैं. नक्सलियों की लाश के पास से 2 इंसास राइफल, एक एके-47, एक अंडर बैरल ग्रेनेड और एक रौकेट लौंचर बरामद हुआ.

गया जिले के आमस के डुमरी नाला के पास तकरीबन 340 आईईडी (इंप्रोवाइज्ड ऐक्सप्लौजिव डिवाइस) फटे थे. उसे 3 सौ मीटर के दायरे में लगाया गया था. 18 जुलाई, 2016 को हुई नक्सली वारदात के बाद चलाए गए इस सर्च आपरेशन में तकरीबन 50 आईईडी बरामद किए गए, जिन्हें जंगल में ही डिफ्यूज कर दिया गया. नक्सलियों की ऐसी कार्यवाही से साफ हो जाता है कि उन्होंने कोबरा जवानों को अपने जाल में फंसाने की पूरी प्लानिंग कर रखी थी. आधी रात को सर्च आपरेशन पर निकले जवान अचानक हुए लैंड माइंस धमाके से घबरा गए और जब तक वे खुद को संभाल पाते, तब तक नक्सलियों ने गोलियों की बौछार शुरू कर दी. नक्सली हमले में जख्मी हुए जवानों ने बताया कि नक्सलियों ने तकरीबन डेढ़ किलोमीटर के दायरे में लैंड माइंस बिछा रखी थीं और सभी एक के बाद एक फट रही थीं. ब्लास्ट में 15-20 जवान बुरी तरह से जख्मी हो गए. जख्मी जवान खुद को संभालने की कोशिश में ही लगे थे कि उन के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी गई. घायल जवान तड़पते हुए मौके पर ही दम तोड़ने लगे और गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच कोई कुछ नहीं कर पा रहा था. जवानों को अंदाजा है कि नक्सलियों की तादाद तकरीबन डेढ़ सौ रही होगी.

सिक्योरिटी एजेंसियों के होश इस बात को ले कर उड़े हुए हैं कि नक्सलियों ने एकसाथ 340 लैंड माइंस कैसे लगा दीं? इस तरह से लैंड माइंस बिछाने का काम श्रीलंका का उग्रवादी संगठन लिट्टे किया करता था. लिट्टे घातक तरीके से लैंड माइंस का इस्तेमाल करने के लिए बदनाम रहा है. नक्सलियों ने परत दर परत लैंड माइंस बिछा कर बड़ी तबाही की पूरी तैयारी कर रखी थी. सारी लैंड माइंस फटी नहीं, वरना और भी बड़ा नुकसान हो सकता था. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, नक्सलियों ने पुलिस को फंसाने के लिए यह जाल बिछाया था. एक करोड़ रुपए का इनामी नक्सली और झारखंड स्पैशल एरिया कमेटी के मुखिया मोतीलाल सोरेन उर्फ विजय यादव उर्फ संदीप के जंगल में छिपे होने की झूठी खबर उन्होंने फैला दी थी. आमतौर पर बारिश के मौसम में नक्सलियों के खिलाफ आपरेशन रोक दिया जाता है. इस के बाद भी संदीप की खोज में पुलिस टीम को जंगल भेज दिया गया. वहीं पुलिस की लापरवाही यह भी रही कि संदीप के बारे में जानकारी मिलने पर उस की पुष्टि कराने की कोशिश नहीं की गई और आननफानन पुलिस टीम को जंगल में भेज दिया गया. संदीप साल 2011 में चाईबासा जेल से फरार हुआ था. वह ज्यादातर समय अपने दस्ते के साथ सरांडा, कोल्हान और पोड़ाहाट के जंगलों में बिताता है. इस के अलावा वह झारखंड के रांची, लातेहार, पलामू, बुंडू, अड़की और ओडिशा के क्योंझर और सुंदरगढ़ जिलों के जंगलों में आताजाता रहता है. इस के अलावा बिहार के औरंगाबाद, गया और जमुई जिलों के जंगलों में भी उस की गहरी पैठ है.

अपने साथियों के बीच ‘बड़े सरकार’ के नाम से मशहूर संदीप साल 2013 में संकरा जंगल में पुलिस की घेराबंदी में बुरी तरह फंस गया था. इस के बाद भी वह बड़ी चालाकी से पुलिस पर फायरिंग करता हुआ बच निकला था.

संदीप बिहार, झारखंड, ओडिशा पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है. 45-46 साल का संदीप हिंदी, भोजपुरी, संथाली, मगही, सादरी, उडि़या, बंगला वगैरह बोलियां बेझिझक बोल लेता है. इस से वह हर राज्य के नक्सलियों और गांव वालों के साथ आसानी से घुलमिल जाता है  सूत्रों ने बताया कि आईबी ने झारखंड पुलिस को सूचना दी थी कि संदीप का दस्ता डुमरी इलाके में है. उस के साथ पलामू का सबजोनल कमांडर पवन और श्रवण भी अपने साथियों के साथ डुमरी पहुंच चुका है. नक्सली बड़ी वारदात को अंजाम देने की कोशिश में लगे हुए हैं. इस की सूचना बिहार के गया और औरंगाबाद के एसपी को भी दी गई थी. उसी सूचना के आधार पर औरंगाबाद पुलिस और सीआरपीएफ के कोबरा बटालियन के जवानों ने सर्च आपरेशन शुरू किया था. पुलिस के आला अफसर मानते हैं कि नक्सलियों को पुलिस के आपरेशन की भनक लग गई थी, तभी उन्होंने पुलिस के आनेजाने के रास्तों पर लैंड माइंस बिछा दी थीं.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, 16 जुलाई, 2016 को औरंगाबाद के एसपी बाबूराम की अगुआई में कोबरा-205 बटालियन के 120 जवान मदनपुर थाने के बादम की ओर से सोनदाहा की पहाडि़यों और जंगल की ओर नक्सलियों की खोज में निकले थे और उसी दिन शाम तक उन्हें वापस लौटना था. सर्च आपरेशन में नक्सलियों का कुछ पता नहीं चला, तो टीम को एक दिन और रुकने को कहा गया.

18 जुलाई, 2016 को 25-25 जवानों की टुकडि़यां बना कर डुमरी नाला के घने जंगल की ओर निकल गईं. इस की भनक नक्सलियों को लग गई. 2 टुकडि़यां तो आगे निकल गईं, पर पीछे से आ रही 2 टुकडि़यां नक्सलियों के जाल में फंस गईं. धमाकों की आवाज सुन कर आगे निकली दोनों टुकडि़यों ने मोरचा संभाला और नक्सलियों का जम कर मुकाबला किया. पुलिस का दावा है कि उन के जवानों की जवाबी फायरिंग में 8-10 नक्सली मारे गए. पुलिस को 4 नक्सलियों की लाशें मिली हैं, जिन में से एक की पहचान इनामी नक्सली आजाद के रूप में हुई है. नक्सलियों ने जिस जगह पर जवानों पर हमला किया, वहां किसी के लिए पहुंचना आसान नहीं है. डुमरी नाला तक पहुंचने के लिए पहाड़ और घने जंगल की पूरी जानकारी पुलिस और सुरक्षा बलों को भी नहीं थी. यह जगह गया से 80 किलोमीटर दूर है, वहीं औरंगाबाद से 60 किलोमीटर और झारखंड के डाल्टनगंज से सौ किलोमीटर दूर है. बिहार के डीजीपी पीके ठाकुर डुमरी नाला के पास पुलिस पर हुए नक्सली हमले को बड़ी चूक मानते हुए कहते हैं कि इस से सुरक्षा बलों को कड़ा सबक मिला है. अब पुलिस को फूंकफूंक कर कदम उठाना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि सीआरपीएफ के साथ बेहतर तालमेल बिठा कर सख्ती के साथ नक्सलियों के खिलाफ आपरेशन चलाया जाएगा. 20 जुलाई, 2016 को रांची में 4 राज्यों के पुलिस अफसरों की बैठक में नक्सली समस्या पर मंथन हुआ. बिहार समेत झारखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ पुलिस के आला अफसरों ने नक्सली समस्या से निबटने के लिए तालमेल बिठाने की जुगत भिड़ाई.   

आतंकियों से ज्यादा नुकसान करते नक्सली

देशभर के नक्सली इलाकों में साल 2015 में 247 और साल 2014 में 221 नक्सली मुठभेड़ हुईं. देश के 9 राज्यों के 106 जिले नक्सली बैल्ट कहे जाते हैं. छत्तीसगढ़ राज्य के सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर सब से ज्यादा नक्सल असर वाले इलाके हैं. आतंकी हमले से ज्यादा भयावह हालत नक्सली हमलों की है. साल 2015 में नक्सली हमलों में देशभर में कुल 155 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, वहीं पूर्वोत्तर के उग्रवाद प्रभावित इलाकों में 57 जवानों ने जान गंवाई. कश्मीर के आतंकी हमलों में देश ने 41 जवानों को खोया. पिछले साल नक्सली हमलों में 181 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. बिहार में जून, 2013 में 5 सौ से ज्यादा नक्सलियों ने जमुई में ‘धनबादपटना इंटरसिटी ऐक्सप्रैस’ ट्रेन को हाईजैक कर लिया था. ट्रेन में 3 लोगों की हत्या कर दी थी. सितंबर, 2010 में नक्सलियों ने 4 पुलिस वालों को बंधक बना लिया था और एक पुलिस वाले को मार डाला था. नवंबर, 2005 में जहानाबाद जेल पर नक्सलियों ने धावा बोल दिया था. इस हमले में 2 सुरक्षाकर्मी और एक कैदी मारे गए, पर जेल का फाटक टूटने से 250 कैदी फरार हो गए थे.

रिश्तों की नई परिभाषाएं

रिश्ता चाहे कोई भी हो, हर रिश्ते का अपना महत्त्व है. कुछ रिश्ते जन्म से बनते हैं. जो खून के रिश्ते होते हैं लेकिन जैसेजैसे हम जिंदगी के सफर में आगे बढ़ते जाते हैं. हमें कुछ ऐसे लोग मिलते हैं जिन से कई बार जानेअनजाने अनकहे रिश्ते बन जाते हैं. जिन का कोई नाम नहीं होता लेकिन जब बनते हैं तो दिल की गहराइयों से बनते हैं और उम्रभर निभाए जाते हैं. ये रिश्ते कभी भी, कहीं भी बन सकते हैं. मशहूर क्रिमिनल साइकोलौजिस्ट अनुजा कपूर का कहना है कि अब इन सब से अलग आजकल रिश्तों की कई नई परिभाषाएं देखी जा रही हैं और वो है हाईटेक रिश्ते की, अजैप्टेड रिश्तों की.

हाईटैक रिश्ते

तेजी से बदलते दौर में इंटरनैट और सोशल नैटवर्किंग साइड ने रिश्तों की नई परिभाषा तैयार की है. बिजी लाइफ स्टाइल के चलते अब युवा इन साइट्स के जरिए ही संबंधों को बढ़ा रहे हैं. सोशल नैटवर्किंग साइट एक ऐसा वर्चुअल वर्ल्ड है. जिस में चैटिंग, फोटो लाइकिंग की आदत कई तरह के दोस्तों से मुलाकात कराती है. हालांकि यह जरूरी नहीं होता कि सभी दोस्त हमारी उम्मीदों पर खरा ही उतरे. हम उस की सभी इच्छाओं को पूरा कर पाएं. इन में से कुछ खास दोस्त भी बन जाते हैं और कुछ ऐसे भी होते हैं जो बोझ बन जाते हैं. जिन से पीछा छुड़ाना मुश्किल होता है. इन सब से अलग एक रिश्ता अडौप्टेड होता है जिस की बौंडिंग खास होती है.

अडौप्टेड रिश्ता

ये वो रिश्ते होते हैं, जिन्हें हम सोचसमझ, देखपरख कर कमी होने के बाद भी स्वीकार करते हैं. इस रिश्ते में कोई फोर्स नहीं है बस उस की फिजिकली कमी के साथ सामने वाले की बेहतरी के लिए अडौप्ट करना जैसे मां न बन पाने पर किसी गरीब व अनाथ बच्चे को गोद लेना. आप में बच्चा न होने की कमी है और आप ने ऐसे बच्चे को गोद लिया जो आप की लाईफ का खालीपन तो भरेगा ही साथ ही उस अनाथ बच्चे की परवरिश भी हो जाएगी. ऐसा ही एक फेमस अडौप्टेड रिश्ता है एसिड विक्टिम लक्ष्मी का. जिस में लक्ष्मी की फिजिकल कमी को जानते हुए भी पत्रकार आलोक दीक्षित ने उसे स्वीकार किया. ऐसे रिश्ते मन की सच्चाई के रिश्ते कहलाते हैं. ऐसे रिश्तों को हम एैक्सैप्ट करने के साथ जिंदगी भर संभालने के लिए अडौप्ट भी करते हैं. ऐसे रिश्तों को निभाना थोड़ा मुश्किल होता है और ऐसे रिश्तों में सब से खास बात यह होती है कि आप को सामने वाले को टैलेंट के समझना होगा.

अडौप्टेड रिश्ते निभाएं कुछ इस तरह

ऐसे रिश्ते में आप अपनी समझदारी से ऐसी सिचुऐशन बना सकते हैं कि दूसरा आप को बेहतर ढंग से समझ सके और रिश्ते को निभा सके. सामने वाले की जरूरतों और परेशानियों के जाने बिना अगर आप यह उम्मीद करते हैं कि वह हमेशा आप के अनुसार चलता रहे तो यह संभव नहीं.

रिलेशन बनाना भी एक आर्ट

कहते हैं कोई भी रिश्ता बनाना आसान है और उसे उम्र भर निभाना बहुत मुश्किल. बात चाहे पर्सनल रिलेशन की हो या प्रोफेशनल रिलेशन की. किसी भी रिलेशन की नींव व्यवहार, विचार और समझ से रखी जाती है. अगर आप रिश्ते को कामयाब बनाना चाहते हैं तो आप के लिए यह जानना जरूरी है आप सामने वाले की हर बात को समझ सके. इस के लिए आप को अपनी समझ का खास दायरा बढ़ाना है तभी आप का रिश्ता कामयाब होगा.

रिलेशन को परफैक्ट बनाएं ऐसे

रिश्ते चाहे पर्सनल लाइफ में बने हो या सोशल मीडिया पर उन्हें सहेज कर रखना भी एक कला है. जिस तरह से पर्सनल लाइफ में रिश्ते एक दिन में नहीं बन जाते उसी तरह सोशल मीडिया में भी रिश्ते बनाने के लिए उसे पनपने का समय देना जरूरी है. इस के साथसाथ यह भी जरूरी है कि रिश्तों में समझदारी, ईमानदारी बरती जाए. बात सोशल मीडिया की हो या पर्सनल लाइफ की उसे उतना ही दिखाएं जितना जरूरी है. अपने रिश्ते की हर एक्टिविटीज को लोगों को बताने व पोस्ट करने से बचना चाहिए. अपनी पर्सनल बातों को पब्लिकली होने से संबंधों को दिखावटी होने का ही एहसास होता है. हैड औफ रिसर्च मार्टिन ग्राफ के अनुसार सोशल मीडिया रिश्तों को बनाने से ज्यादा बिगाड़ने का काम कर रहा है और जो भी इस पर ज्यादा एक्टिव रहते हैं उन के रिश्ते बिगड़ने के पीछे इस की महत्त्वपूर्ण भूमिका देखी गई है. शोध के अनुसार जो लोग 36 महीने या उस से कम में रिलेशन में रहे उन की रिलेशनशिप बिगड़ने में सोशल नैटवर्किंग का खास रोल है क्योंकि सोशल मार्केट में ट्रांसपरेंसी नहीं होती है और आप भ्रम में जीते हैं इसलिए अपने रिश्ते को कुछ इस तरह से सहेजे जो उम्र भर तक आप के साथ हो.

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