देश के बजट से जुड़ी प्रक्रिया में बड़ा बदलाव करते हुए सरकार ने अलग रेल बजट की व्यवस्था खत्म कर दी. 92 वर्षों से रेल बजट को आम बजट से अलग पेश किया जा रहा था. कैबिनेट ने आम बजट को फरवरी के अंत के बजाय एक महीना पहले पेश करने का प्रस्ताव भी मंजूर कर लिया. यह प्रस्ताव फाइनेंस मिनिस्ट्री ने दिया था.
आम बजट को एक महीना पहले पेश करने से बजट प्रस्तावों को वित्त वर्ष के पहले दिन यानी 1 अप्रैल से लागू करने में आसानी होगी और उसी दिन से सरकारी खर्च शुरू हो सकेगा. बुधवार को किए गए अन्य निर्णयों में कैबिनेट ने आम बजट में योजनागत और गैर-योजनागत खर्च की श्रेणियों को खत्म करने की मंजूरी दी. योजना आयोग को भंग कर दिए जाने के बाद से यह वर्गीकरण बेमतलब हो चुका था.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया, 'यूनियन कैबिनेट ने तय किया है कि आगामी वर्ष से रेल बजट और आम बजट को मिला दिया जाएगा.' उन्होंने कहा कि रेलवे से जुड़े सभी प्रस्ताव आम बजट का हिस्सा होंगे. उन्होंने कहा कि अब केवल एक विनियोग विधेयक होगा. जेटली ने कहा कि मौजूदा प्रक्रिया में बजट लागू करने में देर होती है. उन्होंने कहा कि बजट आमतौर पर मई में पास होता है, लेकिन मॉनसून के कारण सितंबर-अक्टूबर में ही यह प्रभावी ढंग से लागू हो पाता है. उन्होंने कहा कि राज्यों के विधानसभा चुनावों का कैलेंडर देखकर आम बजट की तारीख पर फैसला किया जाएगा.
कई कमेटियों ने रेल बजट को खत्म करने की सिफारिश की थी. उनकी दलील थी कि रेल बजट पर राजनीति का असर बहुत ज्यादा होता है और इस दबाव में किराया बढ़ाना लगभग असंभव हो जाता है. ब्रिटिश शासकों ने 1924 में अलग रेल बजट की व्यवस्था शुरू की थी. रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि अलग रेल बजट न होने से रेलवे को सालाना 9700 करोड़ रुपये की राहत मिलेगी क्योंकि इसे केंद्र को डिविडेंड पेमेंट नहीं करना होगा.
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