विज्ञापन जगत की बहुत बड़ी नौकरी छोड़कर रवि जाधव ने जब पहली बार 2010 में महाराष्ट्र की लुप्त कला ‘‘लावणी’’ और ‘‘तमाशा’’ के कला फार्म को अपनी मराठी भाषा की फिल्म ‘‘नटरंग’’ की विषयवस्तु बनाया था, उस वक्त तमाम लोगों की राय थी कि रवि जाधव अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं और फिल्म ‘‘नटंरग’’ बाक्स आफिस पर पानी भी नहीं मांगेगी. मगर जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई, तो इसने बाक्स आफिस पर सफलता बटोरी, राष्ट्रीय पुरस्कार बटोरे और पूरे मराठी सिनेमा का परिदृश्य तक बदल दिया. इतना ही नहीं उसके बाद रवि जाधव ने एक लघु फिल्म ‘मित्र’ सहित ‘बालक पालक, ‘बाल गंधर्व’, ‘टाइमपास’ जैसी पांच मराठी भाषा की फिल्में निर्देशित की, इन सभी फिल्मों ने भी राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय व अन्य पुरस्कार बटोरे. यहां तक कि 2014 में प्रदर्शित रवि जाधव की मराठी भाषा की फिल्म ‘‘टाइम पास’’ पहली मराठी फिल्म थी, जिसने बाक्स आफिस पर पैंतिस करोड़ रूपए कमाए थे.

अब जब वही रवि जाधव अपने करियर की पहली हिंदी फिल्म ‘‘बैंजो’’ में संगीत के एक ऐसे वाद्ययंत्र पर फिल्म लेकर आ रहे हैं, जिससे महाराष्ट्र को छोड़कर दूसरे राज्यों के लोग परिचित नही हैं. महाराष्ट्र में भी संगीत का यह वाद्ययंत्र धीरे धीरे लुप्त होता जा रहा है. ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या फिल्म ‘‘बैजो’’ से रवि जाधव अपनी अब तक की सफलता का रिकार्ड बरकरार रख पाएंगे? पर रवि जाधव अपनी फिल्म की सफलता को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं.

जब रवि जाधव से हमारी मुलाकात हुई, तो हमने उनके सामने सीधा सवाल यही रखा कि उन्हे ‘बैंजो’ पर फिल्म बनाने की जरुरत क्यों महसूस हुई? इस पर ‘‘सरिता’’ पत्रिका से बात करते हुए रवि जाधव ने कहा-‘‘स्ट्रीट संगीत को जो मुकाम मिलना चाहिए, वह भारत में अब तक नहीं मिला है, उसी पर हमारी यह फिल्म है. जबकि विदशों में स्ट्रीट म्यूजिक बहुत सम्मान जनक स्थिति में है. वहां पर कई गानों के जानर ऐसे हैं, जो कि स्ट्रीट म्यूजिक से आए हैं. हम आजकल ‘की बोर्ड’ वाला या मिक्स संगीत ही सुनते हैं. जबकि लाइव संगीत बहुत बेहतरीन व ज्यादा कर्ण प्रिय होता है. अभी भी गांवों में शादी के अवसर पर या चुनावी सभाओं में लोग बैंजो व लाइव संगीत सुनना पसंद करते हैं. पर बैंजो बजाने वालों को अभी भी सम्मान नही मिला. अभी लोग इन पर पैसा फेंकते हैं और यह लोग मुंह से पैसा उठाते हैं, यह सब मुझसे देखा नहीं गया. इसी बात ने मुझे इस वाद्ययंत्र पर पटकथा लिखने के लिए मजबूर किया.’’

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