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सफर अनजाना

यह वाकेआ उस समय का है जब मेरा छोटा पुत्र, आईआईटी खड़गपुर के द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत था. वह अपनी छुट्टियां बिता कर वापस खड़गपुर के लिए निकला. उस समय गुर्जर आंदोलन का राजस्थान में जोर था तथा सारे मार्गों को उन्होंने रोक रखा था. दिल्ली हो कर खड़गपुर जाना तय हुआ. दिल्ली से सुबह 7 बजे की गाड़ी थी. सो, हम ने रात 10 बजे की बस से उस के लिए रिजर्वेशन करा लिया. जयपुर से दिल्ली का रास्ता 5 घंटे का है. मुश्किल का दौर यहीं से शुरू हो गया जब रेलमार्ग अवरोध होने की वजह से बसें देरी से चल रही थीं.

10 बजे की बस रात 12 बजे आई तथा बेटे की सीट पर पहले से कोई बैठा था और उस के पास भी उसी नंबर का टिकट था. उसे तो वैसे ही देर हो रही थी, सो, जैसेतैसे कंडक्टर की सीट पर बैठा और बस रवाना हुई. आधे रास्ते पर पता चला कि गुर्जरों ने आगे रास्ता जाम कर रखा है. वहां 3 बसें पहले से खड़ी थीं. सभी बस ड्राइवरों ने निर्णय लिया कि दूसरे रास्ते से बस निकाल ले जाएंगे. जैसेतैसे बस सुबह 6 बजे दिल्ली पहुंची. आटो पकड़ कर वह स्टेशन पहुंचा तो पता चला कोहरे की वजह से गाड़ी 8 घंटे लेट है. कोई चारा न देख कर वह अपनी बूआ के घर चला गया तथा दोबारा पता करने पर बताया गया कि गाड़ी 14 घंटे लेट है. आखिरकार, रात 9 बजे गाड़ी दिल्ली से रवाना हुई मगर मुसीबत का दौर अभी खत्म नहीं हुआ था. आगे गाड़ी 2 घंटे और लेट हो गई और करीब 8 बजे टाटानगर पहुंची.

अब पता चला कि नक्सली हमलों की वजह से रात 8 बजे के बाद वहां से कोई भी गाड़ी रवाना नहीं होती तथा सुबह 6 बजे दिन निकलने पर ही गाड़ी रवाना होगी. खड़गपुर वहां से सिर्फ 2 घंटे की दूरी पर है. सारी रात खड़ी ट्रेन में गुजार कर अगले दिन 9 बजे वह अपने होस्टल पहुंचा. मोबाइल फोन की वजह से हमें भी पलपल की खबर लगती रही और इस तरह हम ने भी उस के साथ कभी न भूलने वाला सफर तय किया.

अंजू भाटिया, जयपुर (राज.)

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मैं अपने परिवार बेटेबहूबच्चे के साथ लंबी दूरी की ट्रेन में यात्रा कर रहा था. एसी क्लास का कन्फर्म टिकट था. जब हम ट्रेन में अपनी सीट पर पहुंचे तो वहां अन्य परिवार को बैठा हुआ पाया. हम ने अपनी सीट मांगी तो वे बोले, ‘‘हम न तो सीट खाली करेंगे न ही सामान रखने देंगे.’’ इतने में ही टिकट चैकर आ गए. उन के कहने पर वे अपनी सीटों पर जाने के लिए उठे. और हम को सीटें मिल गईं.

सरन बिहारी माथुर, दुर्गापुर (प.बं.)

अन्ना का दर्द

वैसे तो हमेशा ही दुखी रहते हैं लेकिन दिल्ली के एक मंत्री संदीप कुमार का सैक्स वीडियो वायरल हो जाने के बाद अन्ना हजारे कुछ ज्यादा ही दुखी हो रहे हैं. मानो, जवान लड़की ने घर से भाग कर नाक कटा दी हो और इस मामले के जिम्मेदार अरविंद केजरीवाल हैं जिन्होंने मंत्रियों के चरित्र के बारे में ज्यादा छानबीन नहीं की थी. हालांकि अन्ना के भड़कने के पहले ही केजरीवाल सफाई दे चुके थे कि अब चरित्र प्रमाणपत्र किसी के माथे पर तो लगा नहीं रहता.

इस महान दुख से व्यथित अन्ना हजारे फिर कोई आंदोलन करने की सोच रहे हों तो हैरानी नहीं होनी चाहिए, बल्कि खुश होना चाहिए क्योंकि वाकई देश को फौरी तौर पर एक बड़े आंदोलन की सख्त जरूरत है क्योंकि देश के युवा फेसबुकफेसबुक और व्हाट्सऐपव्हाट्सऐप खेलते बोर हो चले हैं.

किराए की कोख में सरकारी घुसपैठ

मेघा और शशांक को वैवाहिक बंधन में बंधे 3 साल हो चुके थे. चूंकि कैरियर में सैटल होने के चलते दोनों का विवाह देर से हुआ था इसलिए दोनों चाहते थे कि जल्द ही दोनों की जिंदगी में एक हंसतेखिलखिलाते स्वस्थ शिशु का आगमन हो जो उन के जीवन को संपूर्णता दे सके. काफी प्रयासों के बाद भी जब मेघा गर्भवती नहीं हुई तो दोनों ने डाक्टरी जांच कराई जहां पता चला कि मेघा के गर्भाशय में संक्रमण है जिस के चलते वह कभी मां नहीं बन पाएगी. यह सुन कर मेघा व शशांक के मातापिता बनने के सपने पर मानो पानी फिर गया.

वे पूरी तरह निराश हो गए थे. तभी उन के एक दोस्त ने उन्हें बच्चे का सुख पाने के लिए सरोगेसी की सहायता लेने की सलाह दी. लेकिन मेघा और शशांक को शक था कि क्या सरोगेसी के जरिए जन्म लेने वाला बच्चा बायोलौजिकली उन दोनों का ही होगा या उस में सरोगेट मां का अंश होगा? डाक्टर ने उन्हें बताया कि सरोगेसी में सरोगेट मां की सिर्फ कोख होती है और जन्म लेने वाले बच्चे का डीएनए दंपती का ही होता है. तब जा कर दोनों को तसल्ली हुई और उन्होंने काफी दुरूह प्रक्रिया के बाद सरोगेसी क्लीनिक के जरिए सरोगेट मां यानी किराए की कोख का चुनाव किया.

9 महीने के लंबे इंतजार के बाद आखिर वह दिन आ ही गया कि जब वे अपने बच्चे को गले लगाने वाले थे. नर्सिंग होम के लेबररूम के बाहर बैठे दोनों के लिए एकएक पल काटना मुश्किल हो रहा था. कुछ देर बाद आखिर वह घड़ी आ गई जिस का उन्हें इंतजार था. लेबररूम से बच्चे के रोने की आवाज सुन कर दोनों की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे. जैसे ही नर्स ने बाहर आ कर उस नन्ही सी जान को उन की गोद में दिया, उन्हें लगा मानो उन्होंने दुनियाभर की खुशियां पा ली हों. खुशी के अनमोल क्षण में वे उस सरोगेट मां को बारबार धन्यवाद कर रहे थे जिस ने 9 महीने उन के इस अंश को अपनी कोख में रख कर उन्हें यह खुशी दी थी. आज उन की गोद में जो नन्ही सी जान उन्हें मातापिता बनने की खुशी दे रही थी वह उस सरोगेट मां के प्रयासों की बदौलत संभव हो पाई थी. मेघा और शशांक की तरह सरोगेसी के माध्यम से हर साल हजारों दंपतियों की सूनी गोद भरती है और उन के जीवन में बच्चे की किलकारियां गूंजती हैं.

भ्रांति : सरोगेट मां और बच्चे के होने वाले पिता के बीच शारीरिक संबंध बनने से बच्चे का जन्म होता है और सरोगेट मां से जन्म लेने वाले बच्चे का संबंध होता है. लेकिन सरोगेसी के बारे में आम लोगों की यही धारणा है कि यह सिर्फ एक भ्रांति है और सर्वथा गलत है. सरोगेट एक्सपर्ट्स के मुताबिक, किसी महिला में गर्भधारण की संभावना न के बराबर होने पर सरोगेसी तकनीक अपनाई जाती है. इस में पुरुष के शुक्राणु और महिला के अंडाणु को ले कर इनक्यूबेटर में गर्भ जैसा माहौल दिया जाता है. भ्रूण तैयार होने पर उसे किसी तीसरी महिला में इंजैक्ट कर दिया जाता है और बायोलौजिकली सरोगेट मां से बच्चे का कोई संबंध नहीं होता है.

अगर भारत की बात की जाए तो अकेले भारत का सरोगेसी बाजार सालाना 13,400 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का है. भारत में जहां सरोगेसी का खर्च 10 लाख से 31 लाख रुपए है वहीं विदेश में यह खर्च 50-60 लाख रुपए से ज्यादा आता है. यही वजह है कि सरोगेसी के लिए विदेशी भारत का रुख करते हैं. भारत में शहर, अस्पताल व सरोगेसी से जुड़े लोगों की आर्थिक स्थिति के हिसाब से खर्च का आंकड़ा घटताबढ़ता रहता है.

सरोगेसी की प्रक्रिया

आईवीएफ यानी इनविट्रोफर्टिलाइजेशन में कृत्रिम या बाहरी वातावरण में फर्टिलाइजेशन यानी निषेचन होता है. यहां जीव के पलने की शुरुआत होती है. फिर भू्रण को कोख में पालने की प्रक्रिया अपनाई जाती है. स्त्री के अंडाणु प्राप्त करने के लिए स्त्री को दवाइयां दे कर अंडाशय में अंडाणु तैयार करने की कोशिश की जाती है. इस के बाद सोनोग्राफी द्वारा अंडाणुओं के विकास का निरीक्षण किया जाता है और एनेस्थिसिया दे कर स्त्री के अंडाणु प्राप्त किए जाते हैं और फिर पुरुष से प्राप्त शुक्राणुओं का लैब में मेल कराया जाता है. 2 से 5 दिनों में बने भू्रण को सरोगेट मां के गर्भाशय में दाखिल कराया जाता है.

इन स्थितियों में जरूरत होती है सरोगेसी की :

–       आईवीएफ उपचार फेल हो गया हो.

–       बारबार गर्भपात हो रहा हो.

–       भ्रूण आरोपण उपचार की विफलता के बाद.

–       गर्भ में कोई विकृति होने पर.

–       गर्भाशय या श्रोणि विकार होने पर.

–       दिल की खतरनाक बीमारियां होने पर. जिगर की बीमारी या उच्च रक्तचाप होने पर या उस स्थिति में जब गर्भावस्था के दौरान महिला को गंभीर हैल्थ प्रौब्लम होने का डर हो.

–       गर्भाशय के अभाव में.

–       यूट्रस के दुर्बल होने की स्थिति में.

सरोगेसी के प्रकार

जेस्टेशनल सरोगेसी : इस विधि में परखनली विधि से मातापिता के अंडाणु व शुक्राणु को मेल करवा कर भू्रण को सरोगेट मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. इस में बच्चे का जैनेटिक संबंध मातापिता दोनों से होता है. इस पद्धति में सरोगेट मां को ओरलपिल्स दे कर अंडाणुविहीन चक्र में रखा जाता है ताकि बच्चा होने तक उस के अपने अंडाणु न बन सकें.

ट्रेडिशनल सरोगेसी : इस प्रकार में पिता के शुक्राणु को स्वस्थ महिला के अंडाणु के साथ प्राकृतिक रूप से निषेचित किया जाता है. शुक्राणुओं को सरोगेट मां के नैचुरल ओव्युलेशन के समय डाला जाता है. इस प्रकार में बच्चे का जैनेटिक संबंध सिर्फ पिता से होता है.

कब हुई सरोगेसी की शुरुआत

अनौपचारिक तौर पर तो सरोगेसी दबेछिपे हर देश में होती आई है. ओल्ड टेस्टामैंट्स नाम की किताबों में ऐसा संकेत भी मिलता है कि यह यहूदी समाज में स्वीकृत था. हालांकि, यूरोपीय संस्कृतियों में सरोगसी होती थी लेकिन अतीत में इसे सामाजिक और कानूनी नियमों के तहत औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया था. आस्ट्रेलिया में सरोगसी प्रक्रिया पिछले शताब्दी तक अनौपचारिक रूप से होती थी. आस्ट्रेलिया में पहले सरोगसी का मामला 1988 में आया था. इस प्रक्रिया द्वारा पैदा होने वाली पहली आईवीएफ बच्ची एलिस किर्कमान, मेलबर्न में 23 मई, 1988 को हुई थी. मार्च 1996 में आस्ट्रेलिया में सरोगेसी को कानूनी व्यवस्था में शामिल किया गया. उस समय एक महिला ने अपने भाई तथा भाभी के आनुवंशिक भ्रूण को अपनी कोख में उपजने दिया. इस मामले को आस्ट्रेलियन कैपिटल टेरिटोरी कानून के तहत आगे बढ़ने दिया गया. लेकिन इस बच्चे के पैदा होने के साथ मीडिया की दिलचस्पी और सरोगेसी से संबंधित मसले पर काफी हंगामा हुआ था.

सरोगेसी : भारतीय संदर्भ में

भारत में यह प्रक्रिया सस्ती रही है. इस वजह से इस का चलन यहां भी काफी पहले से है. मई 2008 के एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने इसे कमर्शियल तौर पर करने अनुमति दी थी जिस के चलते विदेशी इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए भारत में ज्यादा आने लगे. भारतीय सरकार ने 2008 में एक विधान प्रारूप पेश किया था जो आज ए आर टी रैग्युलेशन ड्राफ्ट बिल के रूप में है. फिलहाल यह बिल पास नहीं हुआ जबकि सरकार सरोगेसी से संबंधित एक नया विधयेक इसी साल लाई है.

सरोगेसी : नया कानून

भारत वैश्विक स्तर पर सरोगेसी का व्यावसायिक केंद्र बन चुका है. लेकिन सरोगेसी से जुड़े किसी कानून के अभाव में इस से जुड़े अनेक मुद्दों पर बहस चलती रहती है. अब केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरोगेसी (नियमन) विधेयक 2016 को संसद में रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है जिस में अविवाहित जोड़ों, लिवइन में रहने वाले लोगों, बच्चे को अपनाने वाले अकेले महिला या पुरुष और समलैंगिकों द्वारा सरोगेसी के माध्यम से जन्मे बच्चे को अपनाने पर रोक का प्रस्ताव है. इस बिल को संसद के अगले सत्र में पेश किया जाएगा. इस के अंतर्गत एक राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड बनाया जाएगा और उस के नीचे राज्यों में बोर्ड होंगे. राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड के प्रमुख केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री होंगे और 3 महिला सांसद इस की सदस्य होंगी. 2 सांसद लोकसभा से होंगी और एक राज्यसभा से.

निजता का उल्लंघन

कहने को तो इस विधेयक में कोख को किराए पर देने वाली मां के अधिकारों की रक्षा और इस तरह के बच्चों के अभिभावकों को कानूनी मान्यता देने का प्रावधान है लेकिन सच यह है कि अब सरकारी कानूनों की आड़ में न सिर्फ निजता का उल्लंघन किया जाएगा बल्कि जरूरतमंद परिवारों, जिन्हें बिना किसी सरकारी अड़चन के सरोगेसी के जरिए बच्चा मिल जाता था, को सरकारी दफ्तरों में एडि़यां रगड़नी पड़ेंगी, रिश्वतें खिलानी पड़ेंगी और सरकारी बाबुओं के ऊटपटांग सवालों के जवाब देने होंगे.

पहले यह होता था कि जिसे बच्चे की जरूरत है और जो किराए पर कोख दे रहा है, आपसी यानी म्यूचुअल लैवल पर तय कर लेते थे कि कितने पैसे और किन परिस्थितियों में सरोगेसी को अंजाम देना है. इस क्रम में सरोगेसी विशेष एजेंसियों द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है. इन एजेंसियों को आर्ट क्लीनिक कहते हैं, जो इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च की गाइडलाइंस के अनुसार काम करती हैं. सरोगेसी का एक एग्रीमैंट बनवाया जाता है. लेकिन अब सरकारी विधेयक के आने से मामला औफिसऔफिस सरीखा हो जाएगा. जिस प्रस्तावित बिल के बहाने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व्यावसायिक सरोगेसी को पूरी तरह प्रतिबंधित करने और परोपकारी सरोगेसी को नियमित करने का दावा कर रही हैं, शायद जानती नहीं हैं कि इस से पहले बने सरकारी विधेयक और कानून प्रक्रियाओं को न सिर्फ जटिल बनाते रहे हैं बल्कि आमजन को धक्के खाने पर मजबूर भी करते रहे हैं. भ्रष्टाचार की गंगोत्री भी इन्हीं सरकारी बिलों के संकरे रास्ते से गुजरती है.

देश का नुकसान

प्रस्तावित कानून के अनुसार, सरोगेसी के लिए दंपती की शादी को कम से कम 5 साल हो जाने चाहिए. अगर कोई दंपती 1 या 2 साल में ही बच्चा चाहता हो और मैडिकल जांच के जरिए उसे पता चल जाता है कि पत्नी गर्भधारण करने में सक्षम नहीं है तो क्या वे अधिकार नहीं रखते कि सरोगेसी के जरिए अभिभावक बन सकें. अब अगर तुषार कपूर ने शादी नहीं की है तो क्या वे सरोगेसी के जरिए एक बच्चे के पिता बन कर कुछ गलत कर रहे हैं? इस से भला देश या सरकार को क्या नुकसान हो सकता है?

विदेशी दंपतियों को सरोगेसी के लिए अनुमति न देना भी अतार्किक है. अगर विदेशी इस देश में किराए की कोख लेने आते हैं तो इसलिए कि यहां उन्हें इस प्रक्रिया पर कम धन खर्च करना पड़ता है, साथ ही, इस से मैडिकल टूरिज्म को बढ़ावा भी मिलता है. अगर विदेशी दंपती यहां से सरोगेसी नहीं करवाएंगे तो वे नेपाल, बंगलादेश जैसे किसी गरीब एशियाई देश का रुख कर लेंगे. इस से देश का ही आर्थिक नुकसान होगा.

सरोगेसी जरूरत है, शौक नहीं

केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज कहती हैं कि सरोगेसी को कुछ लोगों ने शौक बना लिया है. सैलिब्रिटीज के कितने ही ऐसे उदाहरण सामने हैं जिन के अपने 2-2 बच्चे हैं, बेटा और बेटी दोनों हैं, तब भी उन्होंने सरोगेट बच्चा किया है. सुषमा कहती हैं कि यह अनुमति जरूरत के लिए है, शौक के लिए नहीं. और न इसलिए कि पत्नी पीड़ा सहना नहीं चाहती, इसलिए चलो सरोगेट बच्चा कर लेते हैं.

यह तर्क  कुछ ऐसा ही है जैसे कोई महिला प्रसव पीड़ा से बचने या मैडिकल कौंप्लीकेशन से बचने के लिए सामान्य तरीके से डिलीवरी के बजाय सिजेरियन प्रक्रिया अपनाती है तो क्या सरकार उसे भी अनुचित मानेगी, कहेगी कि नहीं, आप शौकिया सिजेरियन करवा रहे हैं और मैडिकल सुविधाओं का फायदा उठा कर पीड़ा से बचना चाहते हैं. दरअसल, यह मामला नितांत निजी है और अपनी कोख को किराए पर देने के लिए भला किसी को क्यों सरकारी बाबुओं के दफ्तरों की धूल फांकनी पड़े? अगर सैलिब्रिटीज शौकिया यह काम करते भी हैं, तो वे तो प्लास्टिक सर्जरी से ले कर कौस्मेटिक सर्जरी तक सब करवाते हैं. क्या वह सब भी गलत है? उन का पैसा और उन की सहूलियत से सरकार को भला क्यों एतराज हो सकता है? इस प्रक्रिया में वे न तो किसी का नुकसान करते हैं और न ही किसी तरह का भ्रष्टाचार. वे ऐसा करते हैं तो सिर्फ इसलिए कि उन के पास पैसे हैं और वे इस सुविधा का लाभ उठा कर खूबसूरत और फिट दिखना चाहते हैं. इसी तरह अगर वे सरोगेसी के जरिए मातापिता बनने का सुख हासिल करना चाहते हैं और अगर वे खर्च करते हैं तो एक तरह से वे सरोगेसी के बाजार में रोजगार पैदा करते हैं. अब जिन महिलाओं ने आमिर खान या शाहरुख खान के लिए सरोगेसी की होगी, उन्हें न सिर्फ अच्छा पैसा मिला होगा बल्कि उन के लिए मैडिकल सुविधाओं का भी खासा ध्यान रखा गया होगा.

परोपकार का दिखावा

एक तरफ सरकार परोपकारी सरोगेसी को नियमित करने का दावा करती है वहीं बिल में यह प्रावधान भी डाल दिया गया है कि किसी महिला को पूरी जिंदगी में सिर्फ एक बार सरोगेट मां बनने की इजाजत होगी. होना तो यह चाहिए था कि जब तक औरत शारीरिक तौर पर अपनी कोख किराए पर देने में सक्षम है, तो उसे रोका नहीं जाए.

वैसे भी, देश में सरोगेट मदर खोजना कोई आसान काम नहीं है. उस पर अगर जीवन में एक बार किराए पर कोख देने का नियम बनता है तो न जाने कितने जरूरतमंद लोग, जिन्हें बच्चे की ख्वाहिश है, खाली गोद ही रहने पर विवश होंगे. इसी तरह विधेयक में यह भी कहा गया है कि सरोगेसी से हुए बच्चे अपनाने वाले दंपती के लिए महिला की उम्र 23 से 50 वर्ष के बीच और पुरुष की उम्र 26 से 55 वर्ष के बीच होनी चाहिए. यह मामला भी सरकारी दखलंदाजी का नहीं है और पूरी तरह से डोनर और उसे लेने वाले इंसान की शारीरिक व मैडिकल नियम के आधार पर होना चाहिए. यह काम विशेषज्ञों का है.

समलैंगिक व लिवइन वर्ग

क्या समलैंगिक देश या समाज का हिस्सा नहीं हैं? जब एक सिंगल पेरैंट बच्चे को पाल सकता है तो समलैंगिक इस अधिकार से वंचित क्यों हो? परिवार बनाना उन का भी मौलिक अधिकार है, उन्हें भी बच्चा रखने, मातापिता बनने का हक है और उन्हें यह अधिकार मिलना चाहिए. इसी तरह लिवइन रिलेशनशिप को जब कानूनी मान्यता है तो उन्हें एक परिवार क्यों नहीं माना जाए और उन्हें बच्चा पैदा करने की अनुमति क्यों न दी जाए?

अगर सरोगेसी विधेयक को नए नियमों के साथ संसद में मंजूरी मिल गई तो हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ेंगे. इतना ही नहीं, ऐसा करने से लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़ों या फिर समलैंगिकों के अधिकारों का भी हनन होगा.

समलैंगिक और लिवइन पार्टनर्स के लिए सरोगेसी को प्रतिबंधित किया जाना कहीं से सही नहीं है क्योंकि सेरोगेसी न केवल निसंतान दंपती, बल्कि समलैंगिक लोगों को भी मां या पिता बनने का सुखद एहसास कराने में मदद करती है.

सरोगेसी व्यावसायिक नहीं

अधिकांश दंपती के लिए सरोगेट मदर का चुनाव करते समय गोपनीयता सब से महत्त्वपूर्ण होती है, ऐसे में पारिवारिक सरोगेसी वाली बात गलत है. सरोगेसी पर प्रस्तावित नए कानून में प्रावधान है कि व्यावसायिक सरोगेसी हो ही नहीं सकती. कोई भी गरीब महिला पैसे कमाने के एवज में अपनी कोख को किराए पर देगी तो इसे गैरकानूनी माना जाएगा. सरकार के इस कदम के पीछे की मंशा गरीब व पिछड़े इलाकों की महिलाओं का शोषण रोकने की है. इसलिए किराए की कोख को तभी स्वीकृति मिलेगी जब इस का उद्देश्य परोपकार यानी किसी का भला करना हो. कोई महिला तभी अपनी कोख को किसी के लिए भरेगी जब उस में चिकित्सा व बीमा को छोड़ कर किसी भी तरह के पैसे का लेनदेन न हुआ हो. व्यावसायिक सरोगेसी के चलते कई बार डोनर महिला के स्वास्थ्य संबंधी हितों को अनदेखा किया जाता रहा है जिसे आगे चल कर शारीरिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

एक धारणा यह भी है कि विदेशी विदेश में सरोगेसी के लिए भारत की तुलना में बेहद मोटा खर्चते हैं. जबकि भारत में यही काम काफी सस्ता होता है. इस के अलावा गांवदेहात या आदिवासी इलाकों की कोख को किराए पर लेने की वजह यह भी रहती है कि वे मांस, मछली, शराब, सिगरेट आदि की आदी नहीं होतीं, इसलिए ऐसी महिला की कोख से स्वस्थ बच्चा पैदा होगा.

इस धारणा के चलते गरीब व जरूरतमंद महिलाओं को पैसों का लालच दे कर उन्हें अपनी कोख का सौदा, चिकित्सकीय सीमाओं को पार कर, बारबार करने के लिए मजबूर किया जाता है और इस व्यापार में शामिल फर्टिलिटी रिजर्व सैंटर्स के बिचौलिए विदेशियों से जितना पैसा लेते हैं उस का बेहद छोटा हिस्सा उन गरीब महिलाओं की झोली में गिरता है. सरकार के इस नए कानून से गरीब महिलाओं का शोषण होगा. लेकिन अगर सरकार गरीबों की कमाई का रास्ता पूरी तरह बंद करने के बजाय मैडिकल शर्तों, फर्टिलिटी व इस से जुड़े ऐग्रीमैंट्स आदि को पारदर्शी बना कर महिलाओं का शोषण होने से रोकती तो शायद इस से जरूरतमंद महिलाओं को खासी आर्थिक मदद मिलती.

सजा का प्रावधान

 देश में सरोगेसी से जुड़े कई मामलों में बच्चे के बीमार, अविकसित या लिंग के आधार पर उसे छोड़े जाने की भी घटनाएं हुई हैं. असल में कुछ साल पहले आस्ट्रेलियाई जोड़े ने एक सरोगेसी से मिले बच्चे को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया था कि वह डाउन सिंड्रोम से पीडि़त था. इसी तरह दिल्ली में 2 साल पहले एक विदेशी जोड़ा सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को इसलिए छोड़ गया था कि उसे बेटी चाहिए थी. इस तरह के मामलों पर रोक लगाई जा सके, इस के लिए प्रस्तावित कानून में सरोगेसी से हुए बच्चे को छोड़ने पर आर्थिक दंड व 10 साल की सजा का प्रावधान रखा है.

बिल के मुताबिक, विदेशी नागरिकों को भारत में सरोगेसी कराने की अनुमति नहीं होगी. और अगर कोई दंपती सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को नहीं अपनाता, तो उन्हें 10 साल तक की जेल या 10 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है. अगर दंपती का कोई अपना बच्चा हो या फिर उन्होंने कोई बच्चा गोद ले रखा हो, तो उन्हें सरोगेसी की इजाजत नहीं होगी. सरोगेसी की अनुमति तभी दी जाएगी जब दंपती में से कोई भी पार्टनर बांझपन का शिकार हो, जिस के कारण दंपती अपना बच्चा पैदा नहीं कर सकते हों.

मेरा शरीर, मेरा अधिकार

तुषार कपूर अगर बिना शादी के बच्चा चाहते हैं और मैडिकल साइंस उपलब्ध करा रही है, तो  सरकार को क्या दिक्कत है? विधेयक की एक अन्य बात, कि शादी के 5 साल बाद ही सरोगेसी के लिए इजाजत होगी, इस का क्या आधार है? कोई दंपती जिसे विवाह के पहले ही साल पता चल गया कि वे मातापिता नहीं बन सकते तो वह 5 साल इंतजार क्यों करे? क्या यह कहा जा रहा है कि 5 साल तंत्रमंत्रजादूटोना आजमा लें, फिर सरोगेसी के बारे में सोचें?

सरोगेट मां, जो बच्चा अपने गर्भ में रखती है, अकेले ही रखती है. जो बीमारियां उसे प्रैग्नैंसी के दौरान होती हैं, वे भी वह अकेली ही झेलती है, लेबरपेन भी अकेली ही झेलती है, बच्चा भी अकेले ही पैदा करती है. फिर वह सरोगेट मां बने या न बने, इस का निर्णय सरकार क्यों ले? एक बेऔलाद को औलाद मिल सके, बच्चे की राह देख रहे सूने घर में किलकारी गूंजे, इस से अच्छा भला और क्या हो सकता है? सरोगेट मांएं किसी और के बच्चे को अपनी कोख में रखती हैं और फिर बेऔलाद मातापिता को उन का बच्चा दे देती हैं. इस नेक काम को करने का अधिकार महिला के पास ही होना चाहिए, न कि सरकार को इस मामले में अपनी टांग अड़ानी चाहिए.

कुल मिला कर एक औरत को अपने शरीर के साथ क्या करना है और क्या नहीं, यह अधिकार उसी के पास होना चाहिए. रही बात किराए की कोख के कारोबार को कमर्शियल किए जाने की, तो सरकारी बिल से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. बिचौलिए तब निजी एजेंट नहीं होंगे तो सरकारी बाबू हो जाएंगे. सरकारी दफ्तरों में क्या कम शोषण होता है? अब जो पैसे 2 लोग आपस में मिल कर तय कर लेते थे, सरकारी अड़चनों के चलते उस की हिस्सेदारी तो होगी ही, साथ में निजता का उल्लंघन होगा, सो अलग. आखिर सरकार अपने ही डंडे से हर काम क्यों करना चाहती है?                     

सरोगेसी के सहारे फिल्मी सितारे

–       बौलीवुड अभिनेता तुषार कपूर सरोगेसी के जरिए पिता बने हैं.

–       आमिर खान को पहली पत्नी से इरा और जुनैद हैं जबकि किरण राव से शादी के बाद उन्होंने सरोगेसी को चुना. आजाद सरोगेसी द्वारा हुई उन की संतान है.

–       गौरी खान और शाहरुख खान की तीसरी संतान अबराम भी सरोगेसी से हुआ है.

–       सोहेल और सीमा खान के बेटे योहाना भी सरोगेट की गई संतान है.

–       सतीश कौशिक ने अपने बेटे को खोने के बाद सरोगेसी का सहारा लिया. वंशिका उन की सरोगेसी के जरिए जन्म ली हुई बेटी है.

–       बौलीवुड डायरैक्टर और कोरियोग्राफर फराह खान और उन के पति शिरीष कुंद्रा ने मातापिता बनने के लिए आईवीएफ तकनीक का सहारा लिया और उन्हें 3 बच्चे हुए.

सरकारी चाबुक

–       अविवाहित जोड़े, एकल, लिवइन में रहने वाले और समलैंगिकों पर रोक.

–       अगर कोई दंपती सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को नहीं अपनाता है तो उन्हें 10 साल तक की कैद या 10 लाख रुपए तक का जुर्माना.

–       कोई महिला एक ही बार सरोगेट मदर बन सकती है.

–       5 साल से शादीशुदा दंपती ही अपना सकते हैं यह तरीका.

–       23 से 50 साल तक पत्नी और 26 से 55 साल तक पति की उम्र होनी जरूरी है.

–       सरोगेसी क्लीनिकों को रखना होगा 25 साल का रिकौर्ड.

खास जानकारी

–       भारत में सरोगेसी में महाराष्ट्र अग्रणी है. इस के बाद गुजरात, आंध्र प्रदेश और दिल्ली के नंबर आते हैं. भारत में सरोगेसी के इच्छुक लोगों में बड़ी संख्या विदेशियों की रहती है.

–       व्यावसायिक सरोगेसी के लिए भारत को तरजीह दी जाती है. इस के बाद थाईलैंड और अमेरिका का नंबर आता है.

–       ला कमीशन के मुताबिक, सरोगेसी को ले कर विदेशी दंपतियों के लिए भारत एक पसंदीदा देश बन चुका है.

–       डिपार्टमैंट औफ हैल्थ रिसर्च को भेजे गए 2 स्वतंत्र अध्ययनों के मुताबिक, हर साल भारत में 2,000 विदेशी बच्चों का जन्म होता है, जिन की सरोगेट मां भारतीय होती हैं.

–       देशभर में करीब 3,000 क्लीनिक विदेशी सरोगेसी सर्विस मुहैया करा रहे हैं.

–       कमर्शियल सरोगेसी यूके,  आस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, जरमनी, स्वीडन, न्यूजीलैंड, जापान और थाइलैंड में बैन है.

 नए नियम

–       सिर्फ निसंतान भारतीय दंपतियों को ही किराए की कोख के जरिए बच्चा हासिल करने की अनुमति होगी.

इस अधिकार का इस्तेमाल विवाह के 5 वर्ष बाद ही किया जा सकेगा.

–       एनआरआई और ओसीआई कार्ड धारक इस का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे.

–       अविवाहित युगल, एकल मातापिता, लिवइन में रह

रहे परिवार और समलैंगिक किराए की कोख से बच्चे हासिल नहीं कर सकते.

–       एक महिला अपने जीवनकाल में एक ही बार कोख किराए पर दे सकती है.

–       कोई दंपती सरोगेसी से जन्म लिए बच्चे को अपनाने से इनकार करता है या प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो 10 साल तक की कैद और 10 लाख रुपए जुर्माना लगेगा.

–       सरोगेसी क्लीनिक का रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य होगा.

(ललिता गोयल एवं राजेश कुमार)

सरकार के इस कदम से न जाने कितनी मांओं को खाली हाथ वापस लौटने पर मजबूर होना पड़ेगा और साथ ही, कई जटिल कानूनी प्रक्रियाओं में उलझना पड़ेगा.

मैं 21 वर्षीय विवाहिता हूं. सहवास के बाद मैं तुरंत खड़ी हो जाती हूं. क्या इसीलिए मैं गर्भधारण नहीं कर पा रही.

सवाल

मैं 21 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 1 साल हो चुका है. अभी तक मुझे मातृत्व सुख नहीं प्राप्त हुआ है. सहवास में निवृत्त होने के बाद मैं तुरंत खड़ी हो जाती हूं. क्या इसीलिए मैं गर्भधारण नहीं कर पा रही? गर्भधारण करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? क्या मुझे किसी तरह की जांच करानी चाहिए?

जवाब

अभी आप की उम्र बहुत कम है और शादी में भी सिर्फ 1 वर्ष ही हुआ है, इसलिए मातृत्व को ले कर आप को अभी चिंतित होने की जरूरत नहीं है. अभी कुछ वर्ष आप वैवाहिक जीवन का आनंद लें. शारीरिक और मानसिक तौर पर जब आप मातृत्व वहन करने के योग्य हो जाएंगी तब इस विषय में सोचें. जहां तक सहवास के बाद खड़े हो जाने की बात है तो इस से गर्भधारण करने में कोई व्यवधान नहीं पड़ता.

 

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मैंने कितना अच्छा काम किया है, यह दर्शक तय करेंगे: आर्ट मलिक

1979 में फिल्म ‘‘मोंक’’ में एक बिजनेसमैन, 1982 में ब्रिटिश सीरियल ‘‘ज्वेल इन द क्राउन’’ में हरी कुमार, 1984 में ‘‘पैसेज टू इंडिया’’ में महमूद अली, 1992 में फिल्म ‘‘सिटी आफ ज्वाय’’ में अशोका, हाल ही में ब्रिटेन के चैनल फोर पर प्रसारित सीरियल ‘‘इंडियन समर’’ में भारतीय महाराजा अमृतपुर, फिल्म ‘ट्यू लाइज’ में इस्लामिक आतंकवादी, भारतीय फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ में मिल्खा सिंह के पिता संपूरण सिंह के किरदार लोगों के दिलों दिमाग में बसे हुए हैं. इन किरदारों को निभाने वाले अभिनेता आर्ट मलिक भी लोगों के दिलो दिमाग में छाए हुए हैं. 62 वर्षीय अभिनेता आर्ट मलिक लंदन में रहते हैं. अब वह सात अक्टूबर को प्रदर्शित हो रही राकेश ओमप्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ में राजस्थानी किरदार में नजर आने वाले हैं.

62 वर्षीय ब्रिटिश अभिनेता आर्ट मलिक ने 1979 में ब्रिटिश सीरियल व फिल्म में अभिनय करना शुरू किया था और 1980 में ही उन्हे बतौर अभिनेता अंतरराष्ट्रीय शोहरत मिल गयी थी. आर्ट मलिक के अभिनय करियर पर गौर किया जाए, तो एक बात स्पष्ट रूप से उभरती है कि आर्ट मलिक ने कई ब्रिटिश व अमरीकन फिल्म व सीरियलों में न सिर्फ भारतीय पृष्ठभूमि के किरदार निभाए, बल्कि 1982 से अब तक वह कई बार भारत शूटिंग के लिए आ चुके हैं. आर्ट मलिक ने पहली बार राकेश ओमप्रकाश मेहरा निर्देशित हिंदी फिल्म ‘‘भाग मिल्खा भाग’’ में अभिनय किया था और अब उनकी दूसरी हिंदी फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ है, जिसके निर्देशक भी राकेश ओमप्रकाश मेहरा ही हैं.

आर्ट मलिक ने फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ में अभिनेत्री सैयामी खेर के राजस्थानी लड़की शुचि के पिता का किरदार निभाया है. इस फिल्म के लिए आर्ट मलिक ने सैयामी खेर, हर्षवर्धन कपूर, के के रैना व अनुज कपूर के साथ शूटिंग की. इस फिल्म में वह अतिशुद्ध हिंदी बोलते हुए नजर आएंगे. जबकि आर्ट मलिक ठहरे ब्रिटिश नागरिक. उपर से 37 वर्षों से ब्रिटिश व अमरीकन लहजे वाली अंग्रेजी भाषा ही बोलते आए हैं. ऐसे में वह शुद्ध हिंदी भाषा कैसे बोल पाए?

जब हमने आर्ट मलिक यही सवाल किया, तो आर्ट मलिक ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका से एक्सक्लूसिव बात करते हुए कहा-‘‘आपने बहुत अच्छा सवाल किया. मैंने अब तक ब्रिटेन व अमरीका में बने अंग्रेजी भाषा की ही फिल्में व सीरियल किए हैं. मगर यदि मैं हिंदी में कोई फिल्म करने जा रहा हूं, तो मेरी अंग्रेजी फिल्मों की पहचान रखने वाले कह सकें कि मैंने हिंदी में भी अच्छा काम किया है. मैं चाहता था कि सभी हिंदी भाषी और हिंदी भाषा की फिल्में देखने वाले कह सकें कि मैं अच्छी हिंदी बोल सकता हूं. अच्छी हिंदी फिल्म कर सकता हूं. इसलिए मैंने अपनी तरफ से हिंदी भाषा पर काम किया. फिल्म में अच्छी हिंदी बोली है. पर मैने हिंदी में कितना अच्छा काम किया है, यह दर्शक ही तय करेंगे.’’

आर्ट मलिक ने आगे कहा-‘‘हम राजस्थान में शूटिंग कर रहे थे. मैं अपने आस पास के सभी कलाकारों, ड्रायवर, स्पाट ब्वाय व दूसरे अन्य लोगों से हिंदी में ही बात करता था. मेरे लिए हर दिन एक नई चुनौती भरा दिन हुआ करता था. मैं अपने ड्रायवर से कह देता था कि मुझे यह संवाद पढ़कर सुनाए और उस वक्त मैं उसके उच्चारण को बड़े ध्यान से सुनता था. सेट पर अनुज चैधरी या हर्षवर्धन कपूर या सैयामी से भी मैं संवाद पढ़वाता था. मसलन-मैं कहूंगा कि ‘बहोत हो गया’. पर हिंदी में यह होगा ‘बहुत हो गया.’ इस तरह से सभी अल्फाज सही बोलने थे. मेरा किरदार राजस्थान का है. वैसे राकेश ने मेरी हिंदी के उच्चारण को सही बताने के लिए अलका अमीन को मेरे साथ किया था. अलका अमीन अभिनेत्री हैं और मुंबई में ही रहती हैं. वह भी राजस्थान आयी हुई थी. मैंने जो कुछ सही किया है, उसका श्रेय अलका अमीन को  जाता है.’’

उन्होंने आगे कहा-‘‘मैं काम तो सैयामी खेर, अनुज चैधरी व हर्षवर्धन कपूर के साथ कर रहा था. सेट पर मैं अक्सर सैयामी खेर या अनुज से पूछता था कि मैं इस शब्द का सही उच्चारण कर रहा हूं. यदि कहीं समस्या होती, तो वह कह देते थे कि इसे इस तरह से कर सकते हैं. के के रैना भी मेरी मदद करते थे.’’

जब हमने आर्ट मलिक से राजस्थान को लेकर सवाल किया, तो आर्ट मलिक ने कहा-‘‘मैं आज से चौंतीस वर्ष पहले 1982 में टीवी सीरियल ‘ज्वेल इन द क्राउन’ की शूटिंग के लिए पहली बार ब्रिटेन से भारत पहुंचा था. हमने इस सीरियल की शूटिंग राजस्थान में की थी. मुझे राजस्थान बहुत पसंद आया था. अब चौंतीस वर्ष बाद जब फिर से राजस्थान पहुंचा, तो इस बार भी मुझे राजस्थान बहुत पसंद आया. पर अब काफी बदलाव आ गया है. अब तो पूरा भारत बदल चुका है. अब भारत तो वैश्विक शक्ति बन चुका है. अर्थ यानी कि इकानोमी को लेकर भी भारत विश्व पटल पर अपनी हैसियत रखता है. फिल्मों के निर्माण में भारत अब किसी से पीछे नहीं है. हौलीवुड की ही तरह भारत में भी आधुनिक तकनीक के साथ फिल्में बन रही हैं. लोग माने या न माने, मगर भारतीय फिल्में हौलीवुड फिल्मों को जबरदस्त टक्कर दे रही हैं.’’

पिछले 34 वर्षों के अंतराल में भारत में आए बदलाव को आप किस तरह से देखते हैं? इस सवाल पर आर्ट मलिक ने कहा-‘‘बहुत बड़ा बदलाव है. मैंने पहले ही कहा कि भारत की आर्थिक स्थिति बहुत बेहतर है. जिंदगी बदल चुकी है. हालात यह हो गए हैं कि कल तक भारत के लोग दूसरे देशों की तरफ भाग रहे थे, पर अब लोग भारत की तरफ भाग रहे हैं. सच कहूं तो भारत के लोग खुद अपने देश की क्षमता व ताकत को नही समझ पा रहे हैं.’’

जब हमने आर्ट मलिक से पूछा कि ब्रिटेन में रहते हुए उन्होंने ब्रिटिश व अमरीकन फिल्मों व सीरियलों में जो किरदार निभाए, उससे भारत के प्रति उनका एक पैशन नजर आता है. यह पैशन क्या है? इस सवाल पर आर्ट मलिक पहले तो जोर से हंसे, फिर कहा-‘‘मुझे नही मालूम….पर भारत को लेकर मैं हमेशा पैशनेट रहा हूं. यह एक अति खूबसूरत देश है. सच कह रहा हूं भारत में रहने लोग खुद ब खुद भारत को नहीं समझते. हम हजारों किलोमीटर दूर बैठे देखते हैं कि कैसे इस देश ने तरक्की की है. विविध धर्म व विविध भाषा के लोग कैसे एक साथ रहते हैं. आखिर यह देश किस तरह से चलता है? पहले ब्रिटिश राज्य में पुर्तगाल व ब्रिटेन सहित कई देशों के लोग भारत गए थे. मगर भारत की आजादी के बाद हम देख रहे थे कि भारतीय रोजगार या अन्य वजहों से भारत छोड़कर दूसरे देशों की तरफ भाग रहे हैं. मगर अब हालात ऐसे हो गए हैं कि यूरोप व पश्चिमी देशों के लोग भारत जाना चाहते हैं. भारत जाकर काम करना चाहते हैं. भारत में व्यापार करना चाहते हैं. लोग देखना व समझना चाहते हैं कि भारत की कार्यशैली क्या है, वह किस तरह तरक्की कर रहा है. अब लोग भारतीयों से मिलना चाहते हैं. मेरी राय में भारत के लिए यह खुशनुमा, बहुत प्यारा और अच्छा समय है. मेरे दोस्त अक्सर आकर हमसे कहते हैं कि वह भारत गए थे. वह हमारे पास आकर भारत का गुणगान करते हैं.’’

जब हमने उनसे पूछा कि 37 साल के अभिनय करियर में वह सिनेमा मे आए बदलाव को किस तरह से देखते हैं? तो आर्ट मलिक ने कहा-‘‘परिवर्तन प्रकृति का नियम है. पहले लोग अपनी कहानियों पर फिल्म बनाते थे. उस वक्त ब्रिटिश या हौलीवुड की फिल्मों व सीरियलों में लीड किरदार उनके अपने ही होते थे. पर अब ऐसा नही रहा. अब तो कई फिल्म व सीरियल में लीड किरदार भारतीय कलाकार निभा रहे हैं. यह असाधारण बदलाव है. अब ब्रिटेन या अमरीका का फिल्मकार कहता है कि हम अपने बारे में तो जानते हैं, पर हमें दूसरों के बारे में जानने की जरुरत है. इस वजह से भी अब भारत में हौलीवुड फिल्मकार शूटिंग करने पहुंच रहे हैं. यही वजह है कि भारतीय फिल्मों के दर्शक दूसरे देशों में तेजी से बढ़े हैं. मैं दावे के साथ यह बात कह रहा हूं कि भारतीय फिल्में भारतीय डायसफोरा के बियांड पसंद की जा रही हैं. आपको पता ही होगा कि राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ का यूरोपीय प्रीमियर अगले सप्ताह हमारे यहां लंदन में ‘लंदन फिल्म फेस्टिवल’ में हो रहा है. यह बहुत अच्छी बात है.’’

फुटबाल देखने के शौकीन आर्ट मलिक से जब हमने उनके अन्य शौक को लेकर सवाल किया, तो आर्ट मलिक ने कहा-‘‘अब 62 वर्ष का हो गया हूं. मेरा अपना परिवार है. मेरे घर में बहुत बड़ी लायब्रेरी है. जिसमें हजारों किताबें हैं. गार्डनिंग करने का भी शौक है. जब मैं घर पर रहता हूं तो मुझे बागवानी करना अच्छा लगता है. मेरी लायब्रेरी में हर तरह की किताबें हैं .इनमें फिक्शन , नान फिक्शन व आटो बायोग्राफी का भी समावेश है. मेरी अपनी आदत रही है कि जब किसी ने मुझसे कहा कि यह किताब पढ़ी जानी चाहिए, तो मैंने उस किताब को खरीदा और पढ़ा. फिर वह किताब मेरी लायब्रेरी का हिस्सा बन गई. मैने ‘अनादर डे’, ‘कराची’, ‘राइज किंग्सटन एंड एक्स्प्लेन’ जैसी कुछ लघु कहानियां भी लिखी हैं.’’ 

‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से लौटा आत्मविश्वास

उडी हमले में सेना के 18 जवानों के शहीद होने के बाद से केन्द्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी बैकफुट पर चली गई थी. लोकसभा चुनाव के समय उस समय प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान को लेकर जिस तरह के बयान दिये थे. अब वही उस पर भारी पड़ने लगे थे. इनमें 2 तरह के बयान सबसे ज्यादा चर्चा में रहे. पहला 56 इंच का सीना और दूसरा 1 सिर के बदले 10 सिर काट के लाने वाले बयान प्रमुख रहे. उडी हमले के बाद पूरे देश में सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक में नरेन्द्र मोदी के लोकसभा चुनाव वाले बयान चर्चा में आ गये. केवल प्रधानमंत्री ही नहीं, पूरी भाजपा पार्टी बैकफुट पर दिखने लगी. देश भर से लोगों का सरकार और पार्टी पर दबाव बढ़ गया.

उडी हमले के एक सप्ताह के बाद केरल में भाजपा नेशनल कांउसलिंग की मीटिंग में पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से उडी हमले पर सार्वजनिक रूप से बयान दिया. इस बयान में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के विकास और पाकिस्तान की बदहाली की चर्चा की. इसके साथ ही साथ केन्द्र सरकार ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में पाकिस्तान की आलोचना, सिन्धू जल समझौता और सार्क सम्मेलन के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने का शुरुआत कर दी. भारत पाकिस्तान से मोस्ट फेवरेट नेशन का दर्जा वापस लिये जाने पर भी विचार करने लगा.

केन्द्र सरकार के इतने सारे प्रयासों के बाद भी देश के लोगों में सरकार के प्रति भरोसा नहीं बन पा रहा था. देश का आम जनमानस इस बात के लिये तैयार नहीं था कि पाकिस्तान को केवल कूटनीति के मुद्दे पर जबाव दिया जाये. देश की जनभावना यह थी कि पाकिस्तान को उसकी भाषा में ही जवाब दिया जाये. जिस तरह से उसने देश की सेना के सोते हुये जवानों पर कायराना हमला किया है, उसी तरह से भारत को पाकिस्तान में घुस कर जवाब देना चाहिये.

केन्द्र सरकार पर इस बात का दबाव था. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष में रहते ऐसे ही जबाव देने की बात करते थे. अब बारी खुद कुछ कर दिखाने की थी. 29 सितम्बर की रात भारत ने पीओके में ‘सर्जिकल स्ट्राइक‘ करके 40 आतंकवादियों को मार गिराया, उसके बाद से देश में केन्द्र सरकार के प्रति भरोसा बढ़ गया है. जिससे केन्द्र सरकार का खुद आत्मविश्वास वापस आ गया है. पूरी घटना को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सफल रणनीति और साहसिक कदम को सफलता का श्रेय दिया जा रहा है. इससे भाजपा और केंद्र सरकार जनता के बीच साख बचाने में सफल हो गई है.

अभी जनता भले ही खुश हो और केन्द्र सरकार अपने आत्मविश्वास को बढ़ा हुआ महसूस कर रही हो, पर यह मसला इतना सरल नहीं है. पाकिस्तान की तरफ से सीमा पर उत्पात मचाने की संभावना बनी हुई है. जिसका असर न केवल भारत-पाकिस्तान के आपसी रिश्तों पर पड़ेगा, बल्कि पूरा दक्षिण एशिया तनाव के माहौल में है. इसका असर भारत के विकास और शांति पर पड़ेगा. भारत और पाकिस्तान दोनो ही परमाणु सम्पन्न देश हैं. ऐसे में आपसी संबंधों को सहज करने की कोशिश होनी चाहिये. देशहित में है कि भारत-पाक के रिश्तों को लेकर राजनीतिक फायदे का प्रयास नहीं होना चाहिये. जिससे यह संबंध जल्द सहज हो सकेंगे.

                   

बेहतर है रिलायंस जियोचैट, जानें खासियत

विदेशी ऐप्लीकेशन भारत में काफी ज्यादा संख्या में इस्तेमाल की जाती हैं. व्हाट्सऐप, फेसबुक जैसी ऐप्स पहले भी भारत में काफी फेमस हैं. लाखों, करोड़ों यूजर्स व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करते हैं.

लेकिन लगता है भारत की एक चैट ऐप अब इन सभी ऐप्स को टक्कर दे सकती है. हम बात कर रहे हैं रिलायंस के जियोचैट की. यह ऐप व्हाट्सऐप और हाइक जितनी ही मजेदार है साथ ही कई नए और आकर्षक फीचर्स के साथ आती है. इस ऐप को गूगल प्ले और आईट्यून्स स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है.

जियोचैट के काफी सारे फीचर्स आपको व्हाट्सऐप, फेसबुक मैसेंजर जैसे लगेंगे, लेकिन इस ऐप में काफी कुछ खास और अलग है. अब सबसे बड़ा सवाल है कि व्हाट्सऐप की इतनी लोकप्रियता होने के बाद क्या यह ऐप अपनी जगह बना पाएगी?

इसीलिए यहां हम बात कर रहे हैं उन खास फीचर्स की जो इसे अन्य से बेहतर साबित करते हैं.

नॉर्मल मैसेजिंग

जियोचैट ऐप में आप अपने नंबर से साइन अप कर मैसेज भेजना शुरू कर सकते हैं. यह बेहद सिम्पल है. तीनों ही ऐप हमेशा के लिए फ्री हैं. आप अपने दोस्तों को बिना इंटरनेट के भी मैसेज कर सकते हैं, आप जैसे ही इंटरनेट से कनेक्ट होंगे आपके मैसेज डिलीवर हो जाएंगे.

ग्रुप चैट

जियो चैट की सबसे अच्छी बात है कि इस ऐप में आप 500 सदस्यों तक का ग्रुप बना सकते हैं. जबकि व्हाट्सऐप में इसकी लिमिट 256 तक है.

इमेज और फाइल

आप तीनों ही ऐप में पीडीएफ, डॉक्स, एमपी3 और इमेज आदि भेज सकते हैं. जबकि जियो चैट में आप इमेज को भेजते हुए उस पर डूडल कर सकते हैं जो कि व्हाट्सऐप पर फिलहाल तो नहीं है.

वॉइस कॉल

तीनों ही ऐप में वॉइस कॉल सपोर्ट दिया गया है. आप अपने दोस्तों को कभी भी कॉल कर सकते हैं वो भी एक दम फ्री.

वीडियो कॉलिंग

जियो चैट में वीडियो कॉल का सपोर्ट है. इससे भी मजेदार बात यह है कि आप इसमें ग्रुप वीडियो कॉल भी कर सकते हैं. जबकि मैसेंजर में आप एक के साथ ही वीडियो कॉल कर सकते हैं.

फॉलो करें चैनल्स

जियो चैट यूजर्स को पॉपुलर ब्रांड और कंपनियां चैनल के जरिए फॉलो करने की सुविधा देती हैं. जिससे यूजर्स लेटेस्ट ट्रेंड्स और प्रमोशनल ऑफर को जान पाएं.

घर पहुंचते ही खुद हट जाएगा फोन का पासवर्ड

कई लोग फोन को सुरक्षित रखने के लिए पासवर्ड या पैटर्न लॉक का इस्तेमाल करते हैं. अगर आप चाहते हैं कि घर पर या किसी भरोसेमंद जगह पर बार-बार पासवर्ड डालने की जरूरत न पड़े तो एंड्रॉयड में इससे बचने का भी विकल्प है.

इसके लिए ‘सेटिंग्स’ में जाएं और वहां दिए गए ‘स्मार्ट लॉक’ के फीचर पर टैप करें. फिर ‘ट्रस्टेड प्लेसेस’ पर जाएं और यहां उन स्थानों की लोकेशन दें जहां पहुंचने पर फोन का पासवर्ड अपने आप हट जाए.

फोन का यह फीचर जीपीएस सेंसर का इस्तेमाल करता है. हालांकि यह सुविधा एंड्रॉयड 5.0 लॉलीपॉप या उसके ऊपर के वर्जन के स्मार्टफोन यूजर ही इस्तेमाल कर सकते हैं.

इससे नीचे के एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करने वाले यूजर फोन में ‘स्मार्ट लॉक स्क्रीन’ एप्लीकेशन इंस्टॉल कर सकते हैं.

गलती से डिलीट हुए नोटिफिकेशन वापस पाएं

कई बार यूजर गलती से नोटिफिकेशन पैनल पर दिखने वाली सभी नोटिफिकेशन डिलीट कर देते हैं. अगर उन्हें कुछ समय बाद यह लगे कि कोई नोटिफिकेशन जरूरी थी तो उसे वापस पाया जा सकता है.

इसके लिए अपने स्क्रीन के किसी खाली हिस्से पर लंबे टाइम तक प्रेस करें. फिर विजेट्स पर जाएं. इसे स्वाइप करने पर सेटिंग शॉर्टकट का विकल्प दिखेगा.

इसके बाद एक मेन्यू खुलेगा जहां पर आप नोटिफिकेशन लॉग पर टैप करें. इसके बाद डिस्प्ले या होमस्क्रीन पर नोटिफिकेशन लॉग का शॉर्टकट आ जाएगा. इस पर क्लिक करने से यूजर नोटिफिकेशन हिस्ट्री चेक कर सकते हैं.

भारत में जल्द लागू होगा DRS: कोहली

भारतीय टेस्ट कप्तान विराट कोहली ने कहा कि उनकी टीम ने DRS (डिसीजन रिव्यू सिस्टम) पर चर्चा की है और निश्चित रूप से भविष्य में इसे शामिल किया जाएगा. कोहली ने कहा, 'हम कड़ा फैसला नहीं करेंगे क्योंकि हमने ही पहले कहा था कि हम DRS का इस्तेमाल नहीं करेंगे.'

उन्होंने कहा, 'हमारे लिए यह कहना कि अंपायरों ने गलती की और यह हमारे खिलाफ गए, यह तार्किक नहीं है. बहाने बनाने की कोई जगह नहीं है. एक बार यह DRS शुरु हो जाए और चलने लगे तो हम इसकी कमियों के बारे में सोच सकते हैं.'

जब इस युवा कप्तान से हाल में संदेहास्पद फैसलों के बारे में पूछा गया जो DRS की अनुपस्थिति में भारत के खिलाफ गए तो उन्होंने कहा, 'उन चीजों के बारे में मैं यहां बैठकर हां या नहीं कह सकता हूं. हमने चर्चा की थी. हमने इस बारे में बैठकें की हैं. ऐसे कुछ क्षेत्र हैं, जिनके बारे में बहस की जा सकती है, विशेषकर हॉक आई पर गेंद की दिशा मालूम करना. इस पर चर्चा या बहस हो सकती है. हमें निश्चित रुप से इसके बारे में सोचने की जरुरत है. लेकिन मैं यहां बैठकर फैसला नहीं ले सकता हूं.'

बता दें कि कानपुर टेस्ट में न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियमसन ने रविंद्र जडेजा की बाहर जाती गेंद को खेलने की कोशिश में इस पर हल्का सा बल्ला लगा दिया, जो विकेटकीपर रिद्धिमान साहा के पास पहुंचा लेकिन अंपायर ने बल्ले के गेंद को छूने की आवाज नहीं सुनी और उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

उल्लेखनीय है कि बीसीसीआई हमेशा ही DRS पर क्रिकेट की पूरी दुनिया के खिलाफ रहा है और दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड हमेशा अपने शुरुआती पक्ष के साथ अडिग रहा है कि वह इस तकनीक का विरोध जारी रखेगा क्योंकि यह 'फुलप्रूफ' नहीं है. बोर्ड अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने हालांकि पिछले महीने कहा था कि वह 'हॉक आई' के बिना DRS को स्वीकार कर सकते हैं.

सस्ते स्मार्टफोन हैं खतरनाक

बाजार में कम कीमत के स्मार्टफोन की बाढ़ आई हुई है. लेकिन आईटी मंत्रालय का कहना है कि ये सस्ते फोन साइबर सुरक्षा के लिए लिहाज से सुरक्षित नहीं हैं. ऐसे फोन से बैंक के लेनदेन, क्रेडिट कार्ड के लेनदेन या किसी अन्य योजना का सत्यापन करना खतरनाक हो सकता है. साइबर चोर इनमें आसानी से सेंध लगा सकते हैं. मंत्रालय इस बारे में जल्द एक परामर्श जारी करने की तैयारी में हैं.

इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्यौगिकी विभाग की एक आंतरिक रिपोर्ट में कहा गया है कि मोबाइल फोन के जरिये ऑनलाइन लेनदेन तेजी से बढ़ रहा है. मोबाइल फोन तमाम योजनाओं में ओटीपी सत्यापन का जरिया बन रहे हैं. लेकिन यह साइबर सुरक्षा के लिहाज से चिंताजनक है. इसकी दो वजहें हैं. एक, मोबाइल में साइबर सुरक्षा के इंतजामों को लेकर कोई ठोस मानक या नीति नहीं बनी है. दूसरे, लोगों के हाथ में तेजी से सस्ते स्मार्टफोन आ गए हैं, जिनमें साइबर सुरक्षा को लेकर न तो पहले से प्रावधान है, न ही कर पाना संभव है.

आईटी मंत्रालय के विशेषज्ञों के अनुसार, साढ़े पांच हजार रुपये से कम कीमत वाले स्मार्टफोन साइबर हमले के हिसाब से सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं. इन फोन के एंड्रायड प्लेटफार्म में साइबर सुरक्षा उपायों की कमी है.

विशेषज्ञों का कहना है कि साइबर चोरी के हमले के अलावा ऐसे फोन में मौजूद अन्य किस्म के डाटा चोरी की संभावना भी ज्यादा है. विशेषज्ञों के अनुसार, महंगे फोन में सुरक्षा इंतजाम होते हैं, इसलिए उन्हें यह खतरा कम है. लेकिन यह कहना सही नहीं है कि वे पूरी तरह सुरक्षित हैं.

क्यों असुरक्षित हैं कम कीमत के मोबाइल

– एंड्राइड में कई किस्म के हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर होते हैं. सस्ते फोन में इन्हें ओपन सोर्स से तैयार किया जाता है, जिसमें सॉफ्टवेयर कोड सीक्रेट नहीं होता.

– फोन में इनबिल्ड साइबर सुरक्षा एप होने चाहिए. लेकिन सस्ते फोन में इन बिल्ड साइबर सुरक्षा एप या तकनीक नहीं होती.

– सस्ते स्मार्टफोन में मेमोरी कम होती है. ऐसे में उसमें सुरक्षा से जुड़े सॉफ्टवेयर डालना मुश्किल है, क्योंकि उन्हें लोड करने के लिए फोन में खाली मेमोरी होनी चाहिए.

– इसलिए जिन लोगों को स्मार्टफोन से बैंक और क्रेडिट कार्ड संबंधी कार्य करने हों वे फोन खरीदते समय उपरोक्त फीचर्स की जानकारी अवश्य ले लें.

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