गांव में रहने वाले दिनेश के पास खेतीबारी के लिए अच्छीखासी जमीन व बड़ा सा घर था. उस के गांव के आसपास कोई अच्छा स्कूल नहीं होने की वजह से उस ने अपने बच्चे को अच्छी तालीम दिलाने के लिए शहर के एक नामीगिरामी स्कूल में यह सोच कर दाखिला दिलाया कि वहां उसे पढ़ने के लिए समय से बिजली मिलेगी. दिनेश ने अपने 5 साला बेटे का दाखिला शहर के एक स्कूल में करा दिया था, लेकिन उस के पास शहर में रहने के लिए कोई अपना निजी मकान नहीं था, इसलिए उसे किराए के एक मकान की जरूरत आ पड़ी. बेटे को पढ़ाने के लिए दिनेश ने 2 कमरे का मकान किराए पर लिया. उस का किराया 4 हजार रुपए महीना था. मगर जैसे ही दिनेश ने वहां रहना शुरू किया, तो मकान मालिक ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया. उस ने दिनेश के ऊपर अपनी तमाम तरह की शर्तें लादनी शुरू कर दीं.
मकान मालिक ने कहा कि उस के घर पर ज्यादा लोगों का आनाजाना नहीं होना चाहिए. मकान का मेन गेट रात के 9 बजे के बाद किसी भी हालत में नहीं खुलेगा, इसलिए 9 बजे के पहले घर आ जाना होगा. बिजली और पानी का बिल भी अलग से देना होगा. दिनेश ने जल्दबाजी में किराए का मकान ले तो लिया था, लेकिन मकान मालिक से किसी तरह का कोई एग्रीमैंट नहीं किया गया था, इसलिए वह न चाहते हुए भी फंस सा गया था. मकान मालिक की रोजरोज की नईनई शर्तों से तंग आ कर वह नया मकान ढूंढ़ने में लग गया, लेकिन मकान मालिकों की गैरजरूरी शर्तों के चलते उसे अपने मनमाफिक मकान नहीं मिल पा रहा था. आखिरकार 2 महीने की भागदौड़ के बाद उसे एक ऐसा मकान मिल पाया, जहां पहले से ही नियम व शर्तों का एक एग्रीमैंट किया गया था और वह उस मकान में शिफ्ट हो गया. इस के बावजूद उस मकान मालिक ने भी तमाम शर्तें लादनी शुरू कर दीं. दिनेश ने कोर्ट में जाने की धमकी दी और कहा कि एग्रीमैंट के तहत किए गए नियम व शर्तों को तोड़ने की दशा में वह उस के ऊपर केस करेगा. इस के बाद उस मकान मालिक द्वारा दिनेश को किसी तरह से परेशान नहीं किया गया.
कुछ यही हाल एक प्राइवेट स्कूल में टीचर सुनीता का भी था. वह 2 साल से शहर में रह रही थी, लेकिन मकान मालिक के रोजरोज के नए हथकंडों की वजह से 2 साल में 8 बार मकान बदलने को मजबूर हुई थी. सुनीता का कहना है कि अकसर हम अपने घरों से दूर अच्छी तालीम, नौकरी व कारोबार के लिए शहरों में चले आते हैं, जहां हमें रहने के लिए किराए के मकान की जरूरत होती है. ऐसे में जब हम कोई भी किराए का मकान लेते हैं, तो उसे मकान मालिक द्वारा हमारे ऊपर ऐसे नियम व शर्तें लाद दी जाती हैं, जिन्हें पूरा करना मुमकिन नहीं होता है. सुनीता के मुताबिक, मकान मालिकों द्वारा मकान के किराए के साथ बिजली का बिल भी अलग से लिया जाता है, उस के बावजूद मेन स्विच से अकसर बिजली काट दी जाती है, जिस से कभीकभी अंधेरे में ही गुजारा करना पड़ता है. दोपहिया, चारपहिया गाड़ी रखने वालों के लिए पार्किंग के लिए रोज की किचकिच से दोचार होना पड़ता है.
शहर में रह कर प्राइवेट नौकरी करने वाले अनिल किराए के एक मकान में रहते हैं. उन का कहना है कि मकान लेने के पहले उन्होंने मकान मालिक को 10 हजार रुपए एडवांस पगड़ी के रूप में दिए, लेकिन जब उन्होंने उस रकम की रसीद मांगी, तो मकान मालिक द्वारा देने से इनकार कर दिया गया. बाद में उस मकान को छोड़ते समय मकान मालिक द्वारा पगड़ी के रूप में जमा की गई रकम को वापस करने से मना कर दिया गया.
मकान मालिक ने साफतौर पर कह दिया कि उसे कोई भी रकम पगड़ी के रूप में नहीं दी गई थी. अनिल ने बताया कि उन के यहां आने वाले दोस्तों को ले कर अकसर मकान मालिक द्वारा एतराज जताया जाता था, जबकि मकान मालिक के यहां हर रोज आनेजाने वालों की भीड़ लगी रहती थी, जिस से उन के कमरे से होने वाली बातचीत व होहल्ला की वजह से उन के बच्चों को पढ़नेलिखने में परेशानी होने लगी. जब इस बात की शिकायत उन्होंने मकान मालिक से की, तो उस ने कहा कि वह कमरा छोड़ दे या तो इसी तरह के माहौल में रहना सीख जाए. अकसर शहरों में किराए पर उठने वाले मकानों की हालत जर्जर होती है. उस के हिसाब से मकान मालिकों द्वारा किराए के रूप में भारीभरकम रकम की मांग की जाती है.
किराए पर मकान दिलाने का काम करने वाले संजय ने बताया, ‘‘हम जब भी किराए पर मकान लें, तो मकान मालिक से यह तय कर लें कि किराए की रकम की या तो वे रसीद देंगे या उस रकम का भुगतान मकान मालिक के बैंक खाते में किया जाएगा.
‘‘अगर मकान मालिक द्वारा इस तरह की शर्तों में हीलाहवाली की जाती है, तो इस की शिकायत आप नगरनिगम, नगर पालिका, नगर पंचायतों के दफ्तर में कर सकते हैं, क्योंकि अकसर मकान मालिकों द्वारा नगरनिगमों या नगर पालिकाओं से यह बात छिपाई जाती है कि वे अपने मकान को किराए पर देने का काम करते हैं. वजह, नगरीय इलाकों में नगर निकायों द्वारा किराए पर उठने वाले मकानों के हाउस टैक्स, वाटर टैक्स और उस पर लगने वाले तमाम तरह के टैक्स की दर ज्यादा होती है.
‘‘इसी टैक्स की चोरी के मकसद से मकान मालिकों द्वारा नगर निकायों में मकान किराए पर उठाने की बात दर्ज नहीं कराई जाती है. ‘‘इस के अलावा नगर निकायों में दर्ज किराए पर उठने वाले मकानों के मासिक किराए की रकम को नगर निकायों द्वारा ही तय किया जाता है. ‘‘अगर आप किराए पर मकान लेने जा रहे हैं, तो नगर निकाय के दफ्तर से यह जरूर साफ कर लें कि आप के द्वारा किराए पर लिया जाने वाला मकान नगर निकाय में दर्ज है कि नहीं. अगर वह मकान दर्ज है, तो नगर निकाय द्वारा तय किराए की रकम के बारे में पता कर लें और उस से ज्यादा रकम मांगने की दशा में आप इस की शिकायत नगर निकाय के दफ्तर में कर सकते हैं.’’ संजय ने यह भी बताया कि अगर मकान मालिक द्वारा आप के साथ किसी तरह की बदसुलूकी या नियमशर्तों का उल्लंघन किया जाता है, तो भी आप इस की शिकायत करने से न हिचकें