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साइना बनीं IOC एथलीट आयोग की सदस्य

भारत की शीर्ष महिला बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल को अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक की सदस्य समिति में शामिल कर लिया गया है. अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) एथलीट आयोग ने साइना नेहवाल को अपना सदस्य नियुक्त किया है.

आईओसी के अध्यक्ष थॉमस बाक ने साइना को भेजे पत्र में कहा, 'रियो ओलंपिक के दौरान आईओसी एथलीट आयोग के चुनाव में आपकी उम्मीदवारी को देखते हुए अध्यक्ष से बातचीत के बाद आपको एथलीट आयोग का सदस्य नियुक्त करने में हमें काफी प्रसन्नता हो रही है.'

आयोग की अध्यक्ष एंजेला रूगियेरो हैं. इसमें नौ उपाध्यक्ष और 10 अन्य सदस्य है. आयोग की अगली बैठक अगले महीने छह तारीख को होगी. पूर्व विश्व नंबर वन साइना घुटने की चोट से जूझ रही थीं और अब वह नवंबर में बैडमिंटन कोर्ट पर वापसी करने में जुटी हुई हैं. साइना के पिता हरवीर सिंह ने अपनी बेटी के आईओसी पैनल के सदस्य चुने जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की है.

26 वर्षीय साइना अब तक 20 से अधिक अंतरराष्ट्रीय खिताब जीत चुकीं हैं. इसके अलावा वह राजीव गांधी खेल रत्न, पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित की जा चुकीं हैं.

किसानों को रूला रहा ‘प्याज’

अक्टूबर में प्याज की कीमत पिछले साल के इसी महीने के मुकाबले 80% और अक्टूबर 2014 से तकरीबन 66% कम है. साथ ही, केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियों की तरफ से खरीदा गया 50% प्याज पहले ही वेयरहाउसों में सड़ रहा है. लासलगांव एपीएमसी में प्याज की न्यूनतम कीमत पिछले दो महीने से 2 रुपये प्रति किलो है, जबकि कर्नाटक से खरीफ सीजन के प्याज की आवक भी शुरू हो गई है.

एसएफएसी केंद्र सरकार की तरफ से तैयार किए गए प्राइस स्टैबलाइजेशन फंड (पीएसएफ) का मैनेजर है. हालांकि, एजेंसी के टॉप अधिकारियों ने इसके प्रोक्योरमेंट ऑपरेशंस के बारे में जानकारी साझा करने से मना कर दिया. महाराष्ट्र के प्याज कारोबार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, नेफेड और एसएफएसी की तरफ से खरीदे गए 50 फीसदी से भी ज्यादा प्याज के सड़ जाने का अनुमान है. बाकी प्याज औसतन खरीद मूल्य के महज 50 फीसदी पर बेचे गए.

एसएफएसी ने 12,567 टन प्याज की खरीदारी की थी और 15 सितंबर के मुताबिक, एजेंसी सिर्फ 5,518.55 टन प्याज बेच सकी. हालांकि, एसएफएसी के टॉप अधिकारियों ने सड़ चुके प्याज और एजेंसी को हुए नुकसान के बारे में जानकारी नहीं दी. मध्य प्रदेश सरकार ने 62 करोड़ का 10.42 लाख टन प्याज खरीदा था. इनमें से 70 फीसदी प्याज वेयरहाउसों में ही सड़ गए. नेशनल एग्रीकल्चरल को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन (नेफेड0 ने 5,000 टन प्याज खरीदा था.

धूप से चार्ज होगा ये पावर बैंक

स्मार्टफोन चार्जिंग की समस्या से आप परेशान हैं, तो आपके लिए ये अच्छी खबर है. ट्रैवलिंग से पहले या ऐसी जगह जहां बिजली न हो, तो अब आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि बिना बिजली के चार्ज होनेवाला पावरबैंक कम कीमत में आपको मिल जाएगी. दिल्ली की ही एक कंपनी UIMI टेक्नोलॉजी ने ऐसा पावरबैंक लॉन्च किया है जो बिना बिजली के भी चार्ज होता है.

6,000mAh की बैटरी क्षमता वाले इस पावरबैंक की स्नैपडील पर कीमत 699 रुपए है. इसकी वारंटी 1 साल है. इसमें एलईडी इंडीकेटर है, यह माइक्रो यूएसबी से कनेक्ट होता है और पूरी तरह चार्ज होने में 6 घंटे लेता है. कंपनी का दावा है कि यह पहला मेक इन इंडिया पावरबैंक है. खासियत यह है कि इसे धूप से भी चार्ज कर सकते हैं. इसके लिए इसमें सोलर पैनल भी दिया गया है.

यह आम पावरबैंक जैसा ही है जिसे आप बिजली से भी चार्ज कर सकते हैं. इसमें सिंगल इनपुट पोर्ट और दो यूसबी पोर्ट दिया गया है जिसे एक साथ दो डिवाइस चार्ज कर सकते हैं. इसमें एलईडी लाइट है और कंपनी के मुताबिक यह वॉटर और डस्ट प्रूफ भी है.

यह पावर बैंक ई-कॉमर्स वेबसाइट अमेजॉन, स्नैपडील, फ्लिपकार्ट और पेटीएम पर मिलेगा. इसमें रबर फिनिश दिया गया है और यह डीप स्काई ब्लू और लाइम ग्रीन कलर वैरिएंट में उपलब्ध होगा.

फ्लेक्सी फेयर की स्पीड में स्लो पड़ीं प्रीमियम ट्रेनें

रेलवे को अपनी कमाई बढ़ाने के लिए प्रायोगिक तौर पर राजधानी, शताब्दी और दुरंतो ट्रेनों में फ्लेक्सी किराया प्रणाली लागू करना महंगा पड़ रहा है. इससे इन ट्रेनों के पैसेंजर्स अब दूसरी ट्रेनों में टिकट कराना बेहतर समझते हैं. यही वजह है कि एक ओर शताब्दी और राजधानी जैसी ट्रेनों में सीटें खाली चल रही हैं, वहीं दूसरी एक्सप्रेस ट्रेनों में जगह फुल है.

हफ्ते में कई बार ऐसा भी हो रहा है जब राजधानी, शताब्दी और दुरंतों का टिकट हवाई टिकट के बराबर या उससे भी महंगा हो जा रहा है, ऐसे में लोग इन ट्रेनों के बजाय फ्लाइट को ज्यादा प्राथमिकता देने लग गए हैं. बीते महीने से सितंबर में देश भर की सभी शताब्दी, राजधानी एवं दुरंतो एक्सप्रेस ट्रेनों में फ्लेक्सी फेयर सिस्टम लागू किया था. इससे इन ट्रेनों के 90 फीसदी पैसेंजर्स को पहले के मुकाबले महंगा किराया देकर सफर करना पड़ रहा है. यहां तक कि आखिर में टिकट लेने वालों को डेढ़ गुना तक किराया देना पड़ता है. इसके चलते 30-35 प्रतिशत लोग अब राजधानी और शताब्दी जैसी ट्रेनों में सफर करने के बजाए सामान्य किराए वाली ट्रेनों में सफर करना बेहतर समझते हैं.

यह हाल है लखनऊ-दिल्ली रूट का

फ्लेक्सी फेयर लागू होने के बाद लखनऊ से नई दिल्ली के बीच चलने वाली स्वर्ण शताब्दी में भीड़ घट गई है. शताब्दी में जहां रोजाना सैकड़ों सीटें खाली हैं, वहीं गोमती एक्सप्रेस और गरीब रथ जैसी गाड़ियों में एसी चेयरकार फुल है. इसके अलावा पैसेंजर रात की ट्रेन लखनऊ मेल को तरजीह दे रहे हैं. रेल मंत्रालय के प्रवक्ता अनिल कुमार सक्सेना ने कहा, 'फ्लेक्सी फेयर से रेलवे के फायदे-नुकसान का आंकलन तीन महीने बाद किया जाएगा.'

शताब्दी और राजधानी खाली, गोमती फुल

शताब्दी में 19 अक्टूबर के बाद दिवाली के दौरान छोड़कर अन्य दिनों का आसानी से रिजर्वेशन मिल रहा है. हर ट्रिप में सैकड़ों सीटें खाली हैं. लेकिन गरीब रथ में चेयरकार और थर्ड एसी का टिकट वेटिंग में चल रहा है. इसी तरह राजधानी में सेकंड एसी और थर्ड एसी में कन्फर्म टिकट मिल रहा है. यहां तक कि गोमती एक्सप्रेस में भी चेयरकार और सेकंड एसी फुल है. जबकि दिल्ली जाने वाले पैसेंजर अभी तक गोमती एक्सप्रेस को कोई तवज्जो नहीं देते थे.

340 से 580 रुपये महंगा हुआ सफर

राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली जाने वालों को सेकंड एसी की पहली 10 प्रतिशत सीटों के लिए 1520 रुपये किराया देना पड़ता है. इसके बाद बढ़ते-बढ़ते यह किराया 2100 रुपये तक पहुंच जाता है. वहीं राजधानी के थर्ड एसी से दिल्ली जाने पर पहले 1150 रुपये और आखिर में 1560 रुपये किराया देना पड़ता है. जबकि शताब्दी में सफर करने पर पहले जहां 970 रुपये का टिकट बनता है वहीं आखिर में यह टिकट 1310 रुपये तक पहुंच जाता है.

इस मामले में कोहली का कोई तोड़ नहीं!

टीम इंडिया की नई ‘रन मशीन’ विराट कोहली हर मैच के साथ नए रिकॉर्ड बनाते जा रहे हैं. बीते 16 अक्‍टूबर को न्‍यूजीलैंड के खिलाफ उन्‍होंने 85 रनों की नाबाद पारी खेली, तो 27 साल के इस क्रिकेटर ने एक बात और पुख्‍ता कर दी. वह यह कि रनों का पीछा करते वक्‍त कोहली कुछ अलग टेंपरामेंट से बल्‍लेबाजी करते हैं.

अब अपने दम पर टीम इंडिया को जीत की तरफ ले जाते विराट कोहली को देखकर आश्‍चर्य नहीं होता. आंकड़े भी उन्‍हीं का साथ देते हैं. भारतीय क्रिकेट टीम ने रनों का पीछा करते हुए जो 61 मैच जीते हैं, उनमें खेलते हुए विराट कोहली ने 86.15 के औसत से रन बनाए हैं.

यही नहीं, इन मैचों में उन्‍होंने 13 शतक भी जड़े. ऐसे में अगर यह कहा जाए कि वह रनों का पीछा करने के मामले में माइकल बेवन और एमएस धोनी से बेहतर हैं, तो गलत नहीं होगा. जब बेवन और धोनी ने कई मैचों की सूरत बदली है, कोहली ने अपनी ‘क्‍लास’ बरकरार रखी है. 2008 में डेब्‍यू करने के बाद, कोहली ने हर पायदान पर अपना लोहा मनवाया है. वनडे में खासतौर पर उनका प्रदर्शन बेहद शानदार रहा है.

सफल मैचों में खेलते हुए धोनी का औसत 102.08 और बेवन का औसत 86.05 है, लेकिन कोहली लगातार अच्‍छा प्रदर्शन कर आगे निकल रहे हैं. कई मौकों पर तो उन्‍हें पूरी पारी को अपने कंधों पर धोना पड़ता है. टेस्‍ट टीम का कप्‍तान बनने के लिए विराट कोहली थोड़े गंभीर जरूर हुए हैं, लेकिन खेल के प्रति उनका एग्रेशन उसी तरह बरकरार है. खुद धोनी इस बात को मानते हैं कि अब वे कोहली से सलाह लेने लगे हैं.

बीते दिनों धोनी ने कहा था, ”मैं कोहली से पहले से ही सलाह लेने लगा हूं. यदि आप किसी मैच को देखेंगे तो आपको लगेगा कि मैं उससे ज्‍यादा बात करता हूं क्‍योंकि किसी बात को लेकर दो लोगों के बयान अलग तरह के होंगे.” कोहली के भीतर अभी सालों का क्रिकेट बाकी है, ऐसे में उम्‍मीद है कि वे रिकॉर्ड्स तोड़ना जारी रखेंगे.

जियो के Blue और Orange पैक में क्या फर्क है?

रिलायंस जियो इंफोकॉम ने सितंबर की शुरुआत में अपनी 4जी सर्विस की शुरुआत की थी. 5 सितंबर से कंपनी वेलकम ऑफर दे रही है, जो 31 दिसंबर तक काम करेगा. वहीं 5 सितंबर से पहले रिलायंस जियो प्रिव्यू ऑफर के तहत सिम बेच रही थी. हालांकि प्रिव्यू ऑफर में भी सिम मुफ्त था और वेलकम ऑफर में भी, लेकिन दोनों के ऑफर्स में थोड़ा फर्क है. प्रिव्यू ऑफर में में 90 दिन के लिए अनलिमिटेड 4जी, अनलिमिटेड वॉयस कॉलिंग और एसएमएस जैसी सुविधाएं दी गई थी. वहीं 5 सितंबर से शुरू हुए वेल्कम ऑफर में यह अवधि 31 दिसंबर तक की है. वेलकम ऑफर के आते ही प्रिव्यू ऑफर को खत्म कर दिया गया था.

मुफ्त सुविधाओं के मिलने के कारण देश में रिलायंस जियो की सर्विस का 16 मिलियन ( 1.6 करोड़) लोग इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं अभी कुछ लोग इस सिम को खरीदने की कोशिश में लगे हैं तो कुछ एक्टिवेट होने का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन एक बात है जो अधिकतर लोगों के समझ में नहीं आई. कंपनी की ओर से दो तरह के सिम कार्ड दिए गए हैं. एक वो जो ऑरेंज कलर के पैक में थे और दूसरे ब्लू कलर के पैक में हैं. शायद ही किसी ग्राहक को इन दोनों के बीच का फर्क पता हो, लेकिन हम आपको इन दोनों का अंतर समझाने वाले हैं.

ऑरेंज जियो 4जी सिम: रिलायंस जियो ने बाजार में इस सिम को लाने और सभी 4जी उपभोक्ताओं के लिए इसे उपलब्ध कराने से पहले इसकी टेस्टिंग रखी थी. ऑरेंज कलर पैकेट वाले जियो सिम इस दौरान ही आए थे. शुरुआत में ये सिम रिलायंस जियो के कर्मचारियों को दिए गए थे, वहीं बाद में रिलायंल डिजिटल स्टोर्स और एक्सप्रेस मिनी स्टोर्स पर भी इन्हें भेजा गया था.

ब्लू जियो 4जी सिम: इन सिम कार्ड्स को विशेष तौर पर 5 सितंबर से शुरू हुए eKYC प्रोसेस के लिए लाया गया था. हालांकि जब ऑरेंज सिम का स्टॉक खत्म हो गया तब कंपनी को इन सिम का सहारा लेना पड़ा है. वैसे अब अधिकतर जगहों पर ब्लू पैक वाले जियो सिम ही दिए जा रहे हैं.

ऑफर में नहीं है फर्क: हालांकि ऐसा नहीं है कि पैक के बदल जाने से ग्राहकों को मिलने वाले ऑफर में भी फर्क हो. आप किसी भी कलर का सिम लेते हैं तो इसमें एक सामन ही सुविधा होगा. दोनों में ही अनलिमिटेड कॉल्स, एसएमएस और अनलिमिटेड 4जी डेटा का ऑफर दिया जा रहा है.

आखिरकार बोले करण जोहर

अपरोक्ष रूप से सारे कदम उठाने, सारे हथकंडे अपनाने, अपने पक्ष में बॉलीवुड से जुड़े कुछ लोंगो की एक फौज खड़ी कर लेने, मुंबई के पुलिस कमिश्नर से मुलाकात कर अपनी फिल्म के प्रदर्शन के वक्त सुरक्षा की मांग कर लेने के बाद अंततः अब करण जोहर को बोलना ही पड़ा.

उड़ी पर आतंकवादी हमले के एक माह बाद, भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के बीस दिन बाद और फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के प्रदर्शन के महज दस दिन पहले करण जोहर ने वीडियो संदेश के साथ साथ लिखा हुआ संदेश मीडिया में पहुंचाकर ऐलान किया है कि अब वह पाकिस्तानी कलाकारों के संग फिल्म नहीं बनाएंगे.

काश! आतंकवादी हमले के बाद पाक कलाकारों पर बैन की आवाज उठते ही आज की ही तरह करण जोहर ने अपनी बात कह दी होती, तो शायद पिछले एक माह से जो शोर मचा हुआ था, वह न मचता.

शायद बौलीवुड दो खेमों में बंटने से बच जाता. पर करण जोहर ने बोलने में इतनी देर कर दी कि आज करण जोहर के बयान पर हर इंसान अपने अपने नजरिए से सोच रहा है. पिछले एक माह से जिस तरह से पाक कलाकार फवाद खान के कारण करण जोहर की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’विवादों में रही है, उसका उन्हे बॉक्स आफिस पर कितना फायदा मिलेगा, यह तो वक्त ही बताएगा. पर अब तक अपनी चुप्पी को वह अपनी देशभक्ति का नाम दे रहे हैं.

बहरहाल,मंगलवार,18 अक्टूबर को लगभग पौने दो मिनट के वीडियो संदेश में करण जोहर ने कहा है- ‘‘पिछले दो सप्ताह से मेरी चुप्पी पर जो लोग सवाल उठाते रहे हैं, उन्हें बताना चाहूंगा कि मैं इसलिए चुप रहा, क्योंकि मै दिल से देशभक्त हूं. मेरे लिए देश पहले है. कुछ लोग मुझे देशद्रोही कह रहे थे, इससे मुझे काफी दुःख हो रहा था. मैं आहत हो रहा था. मैं पूरी ताकत के साथ कहना चाहता हूं कि मेरे लिए मेरा देश पहले है, बाकी सब कुछ बाद में. मेरे लिए मेरे देश के अलावा कुछ भी मायने नहीं रखता. मैं अपने काम, अपनी फिल्मों के माध्यम से देशभक्ति फैलाना चाहता हूं. मैंने यही काम अपने सिनेमा के माध्यम से किया है. मैं अपनी फिल्मों के माध्यम से मोहब्बत का पैगाम देकर देशभक्ति करना चाहता हूं. जब पिछले वर्ष सितंबर से दिसंबर के मध्य मैं अपनी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की शूटिंग कर रहा था, तब भारत व पाक के बीच संबंधं बिलकुल ही अलग थे. हमारी सरकार ने पड़ोसी देश के साथ शांतिपूर्ण संबंध स्थापित करने की दिशा में कई सकरात्मक कदम उठाए थे, मैंने उस वक्त उसका समर्थन किया था. आज जो भावनाएं हैं, मैं उनका भी सम्मान करता हूं. मैं इन भावनाओं को समझता हूं. क्योंकि मुझे भी उसका अहसास है.’’

करण जोहर ने आगे कहा-‘‘मै देश के लोगों की भावनाओं की कद्र करता हूं. और कहना चाहूंगा कि मैं भविष्य में पड़ोसी देश के कलाकारों के संग काम नहीं करूंगा. लेकिन मैं उसी ताकत के साथ यह बताना चाहूंगा कि फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में पाक कलाकार के अलावा मेरी युनिट के 300 सौ भारतीयों ने भी अपना खून पसीना बहाया है. मुझे नहीं लगता कि फिल्म के प्रदर्शन को रोकना इनके साथ न्याय होगा.’’

करण जोहर ये भी कहा- ‘‘मैं भारतीय सेना की इज्जत करता हूं और भारतीय सेना को सलाम करता हूं, वह जो कुछ भी हम भारतीयों की रक्षा के लिए करते हैं. मैं किसी भी तरह के आतंकवाद की निंदा करता हूं. खासकर आतंकवाद के उस रूप की जो मुझे व मेरे देशवासियों को प्रभावित करेगा. मैं उम्मीद करता हूं कि आप सभी लोग इस बात को समझने की कोशिश करेंगे कि हम लोग किन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं. हकीकत यही है कि मुझे किसी भी चीज से ज्यादा अपने देश से प्यार है.’’

‘टायलेट’ मुहीम के लिए ‘मिर्जिया’ ने जुटाए डेढ़ करोड़ रुपये

भारत में बाक्स आफिस पर राकेश ओम प्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ की बहुत बुरी हालत हुई है. जबकि छह अक्टूबर को लंदन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ, जहां इसका 15 मिनट तक खड़े होकर लोगों ने तालियां बजाकर स्वागत किया. इसी फेस्टिवल में राकेश ओम प्रकाश ने अपनी ‘टायलेट’ मुहीम के लिए फिल्म ‘मिर्जिया’ के एक शो का आयोजन किया. फिल्म का शो खत्म होने पर उन्होंने दर्शकों से ‘टायलेट’ मुहीम पर बात की और उनसे अनुदान देने के लिए कहा. इस पर वहां बीस मिनट में ही एक लाख पचहत्तर हजार पौंड यानी कि करीबन डेढ़ करोड़ रूपए इकट्ठे हुए.

खुद राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका को बताया-‘‘लंदन में फिल्म ‘मिर्जिया’ के खास शो के खत्म होने के बाद हमने दर्शकों को टायलेट मुहीम के बारे में बताया. फिर महज 20 मिनट में एक लाख़ पचहत्तर हजार पौंड जमा हुए. इसी के साथ हमने वहां पर ‘मिर्जिया’ दिखाकर एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी है. सिर्फ आज के लिए नहीं हमेशा के लिए. अब हम आजीवन वहां से ‘टायलेट’ मुहीम के लिए पैसा इकट्ठा कर भारत के सरकारी स्कूलों में टायलेट का निर्माण व उनका रखरखाव करते रहेंगे. हमें  अपने एनजीओ के काम के लिए एक जरिया चाहिए था, वह मिल गया. वहां पर लोगों को हमारा काम करने का साफ सुथरा तरीका पसंद आया.

देखिए, हम यह काम ‘युवा अनस्टापल’ के साथ मिलकर कर रहे हैं. हमने ‘केपीएमजी’ को इस मुहीम का पूरा एकाउंट संभालने के लिए कहा है. आई आई एम अहमदाबाद से कहा है कि इसका जो असर है, उसे स्टडी करें. इस तरह अच्छा काम लोग कर रहे हैं. जो पैसा आ रहा है, जो खर्च हो रहा है, उसका हिसाब एक अलग स्वतंत्र संस्था रख रही है. जो टायलेट/ शौचालय बनाए जा रहे हैं, वह किस तरह का काम है, वह सब लोगों के सामने हैं, जिसे लोग कभी भी देख सकते हैं. हमारी मुहीम पूरी पारदर्शिता के साथ चल रही है. यह सारी जानकारी वेबसाइट पर हर माह डालते हैं.’’

देश जितना हिंदुओं का है, उतना मुसलमानों का भी: राकेश ओमप्रकाश मेहरा

सामाजिक सरोकारों से जुड़े फिल्मकार राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने अपनी फिल्म ‘‘रंग दे बसंती’’ में देश के रक्षामंत्री को इसलिए गोली मरवायी थी कि उन दिनों उन्होंने निजी जिंदगी में देखा था कि हमारे देश के बच्चे मिग विमान उड़ा उड़ाकर मर रहे थे और हमारे रक्षामंत्री सुबह उठकर पार्क में मार्निंग वाक पर जा रहे हैं, वहां से वापस लौटकर बयान बाजी करते हैं कि ‘यह बच्चे होश नहीं जोश में ज्यादा है.’. यह वहीं राकेश ओम प्रकाश मेहरा हैं, जिनकी नई फिल्म ‘मिर्जिया’ को उड़ी आतंकवादी हमले के बाद पैदा हुई स्थिति के चलते पाकिस्तान में बैन कर दिया गया.

कल जब राकेश ओम प्रकाश मेहरा से हमारी मुलाकात उनके आफिस में हुई, तो हमने भारत में पाकिस्तानी कलाकारों के बैन पर मचे कोहराम पर सवाल किया, तो राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका से एक्सक्लूसिव बात करते हुए कहा-‘‘मैं जो शोर मच रहा है, उसका हिस्सा नहीं बनना चाहता. मगर इस मुद्दे पर चुप भी नहीं रह सकता. देखिए, उड़ी सहित कुछ दूसरी जगहों पर भी आतंकवादी हमले हुए. कई मांओ ने अपने बेटे खोए. कई छोटे छोटे बच्चे अनाथ हो गए. कई परिवार अनाथ हो गए. बहनों ने भाई खो दिए. पत्नियों ने पति खो दिए. इन आतंकवादी हमलों में हमारे जो जवान शहीद हुए हैं, वह सभी काफी कम उम्र के हैं. युवा परिवार टूटे हैं. युवा विधवाएं हुई हैं. इनके बच्चे बहुत छोटे व कुछ तो एकदम नासमझ हैं.’’

राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने आगे कहा-‘‘यह समय दो काम करने के लिए है. एक काम तो इन परिवार वालों के दुःख दर्द को बांटने का है. दूसरा ऐसा काम किया जाए, जिससे कोई भी दूसरा देश हमारे देश की तरफ आंख उठाकर न देख सके. हमें यह दोनों काम प्राथमिकता के आधार पर करने पड़ेंगे. तीसरा काम यह कि हमने एक सरकार को चुना है, जिसकी जिम्मेदारी इस देश की कानून व्यवस्था व सुरक्षा को बनाए रखना है. अब हमें सरकार पर छोड़ना पड़ेगा कि वह इस दिशा में किस तरह से काम करती है, पर हमें उस पर दबाव भी बनाकर रखना पड़ेगा कि सरकार कुछ कड़े कदम उठाए. फिलहाल, सरकार इस दिशा में अच्छे कदम उठा रही है. तो अब सरकार जो कुछ कर रही है, उसके लिए हमें सरकार के साथ खड़े रहना होगा. उसे पूरा सपोर्ट करना चाहिए. युद्ध तो अंतिम विकल्प है. जिससे बचना चाहिए, समझदारी यही कहती है. सबसे पहले बातचीत व हर तरह के दबाव का उपयोग किया जाना चाहिए. पर यदि हमें युद्ध करना पड़े, तो हम वह भी करेंगे.

देखिए हमारी सरकार पिछले दो वर्ष से पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने व दोस्ती को बढ़ाने के लिए कदम उठाती आ रही है. पर इतना बड़ा पोलीटिकल फाल आउट हुआ है, इकानामिक फाल आउट भी हो रहा है, तो इस मुकाम पर यदि थोड़ा सा कल्चरल फाल आउट हो गया, तो क्या तकलीफ है. मैं यह सवाल हर उस इंसान से पूछ रहा हूं जो कि पाक कलाकारों की बंदिश के खिलाफ है? हमें इस मसले पर इतना शोर नहीं मचाना चाहिए.

हम तो एक साल पहले यही प्रयास कर रहे थे कि दोस्ती का हाथ बढ़े. हमारी तरफ से अच्छी डिप्लोमैसी हो रही थी. उसी समय शायद यह फिल्में बन रहीं थी. अब जो फिल्में बन गयी हैं, तो उन्हे निकलने दो. हमें यह नियम बना देना चाहिए कि इस तारीख के बाद जिस फिल्म की शूटिंग होगी, उस पर नियम लागू है. हमारी व पाकिस्तान की सोच में फर्क है. हम बंदर वाला काम नहीं करेंगे, हमें अपना बड़प्पन भी दिखाना है. लेकिन हम कोई भी काम अपने सैनिकों या सैनिकों के परिवार के आंसुओं की कीमत पर नहीं करेंगे.

उन्होंने आगे कहा-‘‘अब सवाल आता है कि पूरे विश्व में कला व कलाकार की कोई सीमा नहीं होती. यानी कि कलाकार हमेशा देश की सीमाओं से परे रहता है. पर अब जो हालात बने हैं, उसमें यह परिभाषा हमें निगलनी पड़ेगी. अब तक जो कलाकार आए, वह देश द्वारा दिए गए वीजा पर ही आए. कानून वर्क परमिट पर उन्होंने भारत में काम किया. जिन्हे जिन्हे यह वीजा और वर्क परमिट मिला, उन्होंने यहां काम कर लिया. किसी स्थानीय पार्टी की गुंडागर्दी से हमें डरना नहीं चाहिए. क्योंकि यह हमारा चरित्र ही नहीं है. ऐसे लोगों को चुप कराने का काम कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाल रहे लोगों की है.’’

वह आगे कहते हैं-‘‘जो होना था, वह हो गया. देखिए, यह पिछले साठ वर्ष से हो रहा है. हम इसी में गोल गोल घूम रहे हैं. हर तीन वर्ष बाद स्थिति आती है कि इन्हे बैन कर दिया जाए. फिर स्थिति आती है कि इन्हे इजाजत दे दी जाए. पर मेरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस दिशा में हमारा अगला कदम क्या होगा? हम आगे कैसे बढ़ें? जो समस्या है, उसका हल क्या निकाला जाए? हमें इन कलाकारों से कहना चाहिए कि आप कलाकार हैं. आपको हमारे देश में काम करना है. आप अपना देश छोड़कर हमारे देश की कानूनन विधिवत तरीके से नागरिकता ले लो और यहीं रहो. यह कलाकार कहें कि हम पाकिस्तानी नहीं है. आप भारत सरकार के सामने अपना निवेदन पेश करें कि आप भारत की नागरिकता चाहते हैं. आप अकेले मुसलमान नहीं हैं. हमने शुरू से यह रखा है कि भारत देश जितना हिंदुओं का है, उतना मुसलमानों का भी है. हमारा यही चरित्र है. पर आपको भारत की नागरिकता पाने के लिए डिजर्व करना पड़ेगा. आपको बताना पड़ेगा कि आप भारत की नागरिकता क्यों चाहते हैं. आपके निवेदन पर हमारी सरकार विचार करेगी. हमें कलाकार नहीं दोगलेपन से परहेज है.’’

देखिए, मेरे लिए उस जवान के परिवार का दुःख अहमियत रखता है. सिर्फ शहीद हुआ सैनिक व उसका परिवार ही नहीं, उनके अलावा हमारा जो सैनिक देश की सीमा पर खड़ा है और उनकी मांएं रात में सो नहीं पा रही हैं, उन्हें क्या जवाब दूं. क्या यह कहूं कि हम कलाकार की आरती सजा रहे हैं? यह कलाकार हैं, इन्हें  आने दो. हमारे लिए आज यह बहुत बड़ी बात है कि शहीद सैनिक के परिवार और देश की सीमा पर खडे़ सैनिक के परिवार को किस बात से शांति मिलती है?’’

पाक कलाकारों के बैन का विरोध करने वाले लोग अपने बच्चों को सीमा पर भेजें. इन सभी को चाहिए कि यह अपने परिवार से एक एक बंदा सीमा पर एकदम आगे भेजकर दिखाओ, उसके बाद बात करो. ‘कलाकार की सीमा नहीं होती है’ यह बोलते हुए अच्छा लगता है और बड़प्पन का अहसास मुझे भी होता है.

पाकिस्तान ने हमारी फिल्म ‘मिर्जिया’ को बैन कर दिया, इसके यह मायने नहीं है कि हम भी वही करें. पर हम यह कह रहे हैं कि आप पहले अपनी नागरिकता बदलिए, तब हमारे देश में काम कीजिए. वैसे भी आपको आपके देश में ज्यादा काम दिया नही जाता. आप वहां गाना गाते हो और कोई आपके पीछे बम फेंक कर निकल जाता है. आपकी वहां कोई अभिव्यक्ति नहीं है.’’ मैं देश की भावना समझता हूं. मेरी नजर में उड़ी में शहीद हुआ सैनिक भी मेरा भाई है. आज मैं मुंबई के बांदरा इलाके में चैन की नींद सो रहा हूं, क्योंकि वह वहां पर खड़ा हुआ है.

अनुराग कश्यप के बयान कि ‘प्रधानमंत्री ने अब तक अपनी पाकिस्तान यात्रा के लिए माफी नहीं मांगी है’ का जिक्र चलने पर राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने कहा-‘‘यह तो बहुत ही ज्यादा दुःखद बात है. यदि आपके दिल में आपके देश के प्रधानमंत्री के लिए इज्जत नहीं है, भले ही आपकी विचार धारा अलग हो, तो इसके मायने यह हैं कि आपको अपने देश के प्रति इज्जत नहीं है. मेरी राय में हर पत्रकार को चाहिए कि ऐसे लोगों के बयानों को समाचार पत्र में  न छापें.’’ 

किशोरों में बढ़ती ईर्ष्या की प्रवृत्ति

किशोरावस्था उम्र का वह पड़ाव है जब किशोरकिशोरियों में एकदूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगी रहती है, लेकिन कभीकभी यह होड़ ईर्ष्या में तबदील हो जाती है. ईर्ष्या की कई वजहें होती हैं, जैसे अमीर व स्मार्ट बौयफ्रैंड, सहपाठी का कक्षा में फर्स्ट आना, फर्राटेदार अंगरेजी बोलना, दोस्तों के पास महंगे मोबाइल फोन का होना आदि. श्वेता 10वीं कक्षा की स्टूडैंट थी. वह देखने में बहुत खूबसूरत थी. सभी लड़कियां उसे ब्यूटी क्वीन कह कर बुलाती थीं लेकिन वह अन्य किशोरियों की तरह चंचल नहीं थी. वह हमेशा शांत रहती और क्लास में फर्स्ट आती थी. सुरेश भी श्वेता की क्लास में पढ़ता था. वह अमीर घर का था, देखने में स्मार्ट. जब वह क्लास में आता तो सभी लड़कियों की नजरें उस पर ही टिक कर रह जातीं. सभी लड़कियां उस से दोस्ती करने को लालायित रहतीं, पर वह किसी को लिफ्ट नहीं देता था.

उस का दिल कब श्वेता पर आ गया किसी को पता ही नहीं चला. श्वेता और सुरेश के प्यार के चर्चे अब पूरे स्कूल में होने लगे. बात तब हद से गुजर गई जब क्लास के कुछ मनचलों ने श्वेता को धमकी दी कि वह सुरेश से दोस्ती तोड़ दे वरना उस के साथ बहुत बुरा होगा. श्वेता ने जब यह बात सुरेश को बताई तो वह बौखला गया और उन लड़कों के पास जा कर बोला, ‘‘यार, तुम लोगों ने श्वेता को धमकी दे कर अच्छा नहीं किया. हम सब एक क्लास में पढ़ते हैं, हमारे बीच कोई ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए. हमें एकदूसरे के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए. अगर मेरी और श्वेता की दोस्ती है तो तुम्हें क्या हर्ज है अपने अच्छे व्यवहार से तुम भी किसी को दोस्त बना सकते हो. क्लास में और भी अच्छी लड़कियां हैं अगर वे तुम में इंट्रैस्टेड हैं तो तुम उन के साथ दोस्ती कर लो. फिर हम सब दोस्त मिल कर ऐंजौय किया करेंगे.’’

सुरेश की बात ने उन पर असर किया. इस की प्रतिक्रियास्वरूप प्रदीप बोला, ‘‘सुरेश ठीक कह रहा है. हमें श्वेता और सुरेश से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए.’’ किशोरों में ही नहीं किशोरियों में भी बौयफ्रैंड को ले कर अकसर ईर्ष्या देखी गई है. कभीकभी यह ईर्ष्या इतनी बढ़ जाती है कि अवसाद का कारण बन जाती है. मोहिनी 9वीं कक्षा में पढ़ती थी. उस की क्लास में हर लड़की का बौयफ्रैंड था. मोहिनी भी दूसरी लड़कियों की देखादेखी बौयफ्रैंड बनाना चाहती थी, पर नाटी व काली होने की वजह से कोई लड़का उस की तरफ अट्रैक्ट नहीं होता था. नतीजतन उसे अपनी सहेलियों से ईर्ष्या होने लगी और वह उन से कटीकटी रहने लगी. इस का असर उस पर ऐसा पड़ा कि उस ने उस स्कूल को ही छोड़ दिया.

बौयफ्रैंड और गर्लफ्रैंड को ले कर किशोरकिशोरियों में अकसर ईर्ष्या की भावना पैदा होती है, पर किसी को आगे बढ़ते देख भी किशोर मन में ईर्ष्या की भावना पनपने लगती है.

दिनेश क्लास में तो फर्स्ट आता ही था साथ ही अन्य ऐक्टिविटीज में भी वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. इस साल उस ने इंटरस्कूल डिबेट कंपीटिशन जीता था. स्कूल के प्रिंसिपल ने भी दिनेश की पीठ थपथपा कर उस की इस जीत पर उसे बधाई दी थी, लेकिन विनीत दिनेश की जीत से कुढ़ कर रह गया. एक दिन दिनेश जब प्लेग्राउंड से क्लास की ओर जा रहा था तो विनीत और उस के  दोस्तों ने उस पर कमैंट पास करते हुए कहा, ‘‘भई, रट्टू तोता बाजी मार ले गया. जीत तो तब कही जाती जब बिना रटे डिबेट जीतता.’’ दिनेश चाहता तो विनीत को उलटासीधा कह सकता था, पर शिष्टाचार में रहते हुए उस ने बस इतना ही कहा, ‘‘दोस्तो, अगली बार तुम लोग भी रट कर डिबेट में हिस्सा लेना. मुझे उम्मीद है कि जीत तुम्हारी ही होगी.’’

यह सुन कर विनीत और उस के दोस्त एकदूसरे का मुंह ताकते रह गए लेकिन विनीत दिनेश को गले लगाते हुए बोला, ‘‘दोस्त, हम ने तुम्हें अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर तुम ने हमारी आंखें खोल दीं. यू आर रियली ग्रेट माई डियर दिनेश.’’ इस तरह की ईर्ष्या की घटनाएं स्कूलों में किशोरकिशोरियों के बीच अकसर देखने को मिलती हैं.

किशोरियों में एकदूसरे की ब्यूटी को ले कर ईर्ष्या होना आम बात है. सुंदर किशोरियों के मिजाज सातवें आसमान पर रहते हैं. वे बातबात पर अपनी फिगर और फेस की तारीफ करती नहीं थकतीं. ऐसे इतराती हैं मानो कोई अप्सरा हों. ऐसी किशोरियों को देख कर दूसरी किशोरियों में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है, जो अंदर ही अंदर उन्हें बेचैन करती रहती है. ऐसी किशोरियों को ईर्ष्या करने की कोई आवश्यकता नहीं है. उन्हें अपने दूसरे गुणों को उभारने का प्रयास करना चाहिए. उन्हें उन लोगों को उदाहरण के तौर पर देखना चाहिए जिन्होंने बदसूरत होते हुए भी अपनेअपने क्षेत्र में बुलंदियों को छुआ और लोगों के दिलों में बस गईं.

महान कवयित्री महादेवी वर्मा शक्लसूरत में साधारण थीं, लेकिन अपने लेखन से वे लोगों का दिल जीतने में सफल रहीं. ऐसे न जाने कितने उदाहरण भरे पड़े हैं.

भाई बहनों के बीच ईर्ष्या

केवल दोस्तों के बीच ही ईर्ष्या नहीं होती बल्कि सगे भाईबहनों के बीच भी ईर्ष्या देखने को मिलती है. वैसे तो मातापिता अपने सभी बच्चों को सामान्य रूप से प्यार करते हैं, पर ऐसा देखने में आया है कि उन बच्चों को अधिक प्यार व उन की तारीफ रिश्तेदारों से करते हैं जो पढ़ने में तेज होते हैं. दूसरों के सामने तारीफ करने से दूसरे भाईबहनों में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है और वे उस से बातबात में झगड़ने लगते हैं.

रोहित, रश्मि और राहुल भाईबहन थे. राहुल बड़ा था और रोहित छोटा. राहुल क्लास में हमेशा फर्स्ट आता पर एक साल बीमार हो जाने की वजह से राहुल की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाई. उस की क्लास में थर्ड पोजिशन आई जबकि रोहित और रश्मि अपनीअपनी क्लास में फर्स्ट आए. बात यहीं खत्म हो जाती अगर मातापिता दूसरों के सामने राहुल की बुराई न करते, लेकिन राहुल की बुराई करने से उस ने इस असफलता को दिल पर ले लिया और अपने भाईबहन से ईर्ष्या तो करने ही लगा बल्कि मातापिता के साथ भी शिष्टता भूल बैठा. वह सब से अलगअलग रहने लगा और बातबात पर मातापिता को उलटासीधा कहने से भी बाज न आता. इसलिए बच्चों के बीच ईर्ष्या के लिए बहुत हद तक पेरैंट्स भी जिम्मेदार होते हैं.

ईर्ष्या से कैसे बचें

पौजिटिव सोच रखें

हमेशा अच्छा सोचें. अगर असफलता को गंभीरता से न लें और न ही सफल व्यक्तियों को देख कर कुढ़ें. उन जैसा बनने का प्रयास करें तो एक दिन सफलता अवश्य आप के कदम चूमेगी. ईर्ष्या करने से आप का मनोबल गिरेगा और आप अपना कौन्फिडैंस खो बैठेंगे. महान मुक्केबाज मुहम्मद अली जब पहली बार बौक्सिंग रिंग में उतरे थे तो उन्हें दूसरे मुक्केबाज ने चंद मिनट में ही हरा दिया था, पर मुहम्मद अली ने उस दिन ही पक्का इरादा कर लिया था कि वे बौक्सिंग के विश्व चैंपियन बन कर रहेंगे. उन की पौजिटिव थिंकिंग ने उन को विश्व चैंपियन बना दिया. इसी तरह महान धावक मिल्खा सिंह ने हार में भी जीत तलाशी और ओलिंपिक में गोल्ड मैडल प्राप्त किया. सही सोच और कुछ कर दिखाने के जज्बे ने उन्हें विश्व का महान धावक बना दिया. लोग मिल्खा सिंह को उड़न सिख के नाम से संबोधित करते हैं.

मेहनत से आगे बढ़ें 

किशोरकिशोरियों को एकदूसरे को आगे बढ़ता देख ईर्ष्या होने लगती है. वे यह नहीं सोच पाते कि क्यों पीछे रह गए और दूसरे कैसे आगे बढ़ गए? सब से पहले उन्हें अपनी कमियां तलाशने की जरूरत है. कमियां तलाश कर सुनियोजित ढंग से आगे बढ़ने के रास्ते तलाशिए. इस के लिए भले ही कितनी मेहनत करनी पड़े.

ईर्ष्या नहीं तारीफ करें

अगर दोस्त के पास स्मार्टफोन है या दूसरे गैजेट्स हैं तो उस से ईर्ष्या न करें, बल्कि खुल कर उस के स्मार्टफोन व गैजेट्स की तारीफ करें. दोस्त खुश हो जाएगा और अपनी चीजें आप से शेयर भी करेगा. अगर दोस्त क्लास में फर्स्ट आता है या डिबेट व अन्य खेलों में विजयी होता है तो भी उसे बधाई देना न भूलें. दोस्त के कपड़ों की तारीफ करें और कहें, ‘यार, इन कपड़ों में तो तू हीरो जैसा लगता है,’ फिर देखिए वह आप का कितना पक्का दोस्त बन जाएगा.

स्वस्थ स्पर्धा हो

सभी किशोरों में एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी रहती है, पर कुछ किशोरकिशोरियां आगे तो बढ़ना चाहते हैं लेकिन शौर्टकट अपनाते हैं और इस तरह आगे भी निकल जाते हैं. यह सफलता स्थायी नहीं होती और न ही कौन्फिडैंस पैदा करती है. आप हमेशा अंदर ही अंदर यह जरूर महसूस करेंगे कि शौर्टकट से आज तो सफलता मिल गई पर आगे क्या होगा. इसलिए आपस में स्वस्थ स्पर्धा होनी चाहिए. कभीकभी किशोरकिशोरियों में ईर्ष्या इतनी हद तक बढ़ जाती है कि वे बदला लेने पर उतर आते हैं. उन का ऐसा सोचना ठीक नहीं है बल्कि उन्हें अपनी अहमियत दिखानी चाहिए और श्रेष्ठ बनने का प्रयास करना चाहिए, न कि दूसरे को बरबाद करने में अपनी पूरी ऐनर्जी लगानी चाहिए. इसलिए हमेशा पौजिटिव सोचें और दोस्तों के अच्छे काम की दिल खोल कर प्रशंसा करें.

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