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अर्थव्यवस्था के अनुकूल माहौल से बाजार में उत्साह

भारतीय सेना के सीमापार जा कर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने के बाद भारत व पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव का बाजार पर नकारात्मक असर देखने को मिला.

बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई के सूचकांक में उतार चढ़ाव के बीच निवेशकों में उत्साह का माहौल रहा. सूचकांक में 7 अक्टूबर तक लगातार 3 दिनों की गिरावट के बावजूद बाजार में आटोमोबाइल्स क्षेत्र में वाहनों की बिक्री का आंकड़ा बढ़ने से मारुति व होंडा सहित कई प्रमुख कंपनियों के शेयरों के साथ ही बैंकिंग क्षेत्र में तेजी का रुख रहा. रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के ब्याज दरों में कमी करने के निर्णय से भी बाजार में अच्छा संकेत गया.

हालांकि इस दौरान भारतीय सेना के सीमापार जा कर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने के बाद भारत व पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव का बाजार पर नकारात्मक असर देखने को मिला लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ के भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत रहने संबंधी आकलन और सकल घरेलू उत्पाद  यानी जीडीपी दर 7.5 प्रतिशत से ज्यादा रहने के अनुमान से बाजार में अच्छा माहौल रहा.

सलमान संग ऐश्वर्या

जब से ऐश्वर्या राय बच्चन ने कुछ शर्तों के साथ सलमान खान के साथ फिल्म करने की मंशा जाहिर की है, तब से बौलीवुड में लोग आश्चर्यचकित हैं. सब को पता है कि सलमान खान और ऐश्वर्या राय के बीच कैसा रिश्ता रहा है और इस रिश्ते में किस तरह की कड़वाहट आई थी. एक पुरानी कहावत है, ‘मजबूरी में गधे को भी बाप बनाना पड़ता है.’ ऐश्वर्या के अति नजदीकी सूत्रों की मानें तो ऐश्वर्या इसी कहावत पर अमल कर रही हैं.

अभिषेक बच्चन के साथ विवाह करने के बाद से ऐश्वर्या राय बच्चन का कैरियर निरंतर पतन की ओर ही अग्रसर रहा. आराध्या की मां बनने के 5 साल बाद ऐश्वर्या राय ने अपने कैरियर की नई शुरुआत फिल्म‘जज्बा’ के साथ की लेकिन यह बौक्सऔफिस पर धराशायी हो गई. ‘सरबजीत’ की भी कमजोर कड़ी ऐश्वर्या राय बच्चन साबित हुईं. अपने अभिनय कैरियर को पटरी पर लाने के लिए ऐश्वर्या राय बच्चन ने करण जौहर के निर्देशन में मल्टीस्टारर फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में कई बोल्ड व किसिंग सीन दे डाले.

ऐसे में अपनेआप को सुर्खियों में बनाए रखने के लिए तथा नई फिल्म पाने के लिए कुछ तो शिगूफा छोड़ना ही पड़ेगा.

प्रियंका की किरकिरी

इंटरनैशनल स्टारडम का लुत्फ उठा रहीं प्रियंका चोपड़ा ने एक मैगजीन के कवर पर कुछ ऐसा पहन लिया जिस ने उन की नींद हराम कर दी है. कवर पर छपी तसवीर में उन्होंने जो टीशर्ट पहनी है, उस पर रिफ्यूजी, इमिग्रेंट और ट्रैवलर लिखा है और ट्रैवलर  पर राइट मार्क लगा है जबकि शेष टैक्स्ट को क्रौस किया गया है. तसवीर में शरणार्थियों, प्रवासियों और विदेशियों के प्रति असंवेदनशीलता के चलते उन की आलोचना हो रही है.कइयों को यह प्रचार आपत्तिजनक लग रहा है और वे सीरिया शरणार्थी समस्या व विस्थापित लोगों का हवाला दे कर उन्हें जम कर कोस रहे हैं.   

इस बीच, पत्रिका ने सफाई में हालांकि कहा कि उस ने कवर में प्रवासी, विदेशियों और रिफ्यूजी से भेदभाव न करने और उन के प्रति घृणा नहीं रखने के संदेश की बात की है. लेकिन तब तक प्रियंका की जितनी किरकिरी होनी थी, हो गई. प्रियंका ने जरूर चुप्पी साध रखी है इस मसले पर.

अफवाहों के सहारे दीपिका

किसी ने कहा था कि अफवाहों के बल पर अभिनय कैरियर की नैया पार नहीं की जा सकती. मगर बेचारी दीपिका पादुकोण को तो महज अफवाहों का ही सहारा है. पर अफसोस की बात यह है कि दीपिका पादुकोण अपने प्रचारक या अपने बिजनैस मैनेजर अथवा अपने किसी शुभचिंतक की सलाह पर जो भी अफवाहरूपी गुब्बारा उड़ाती हैं, उस की हवा 2 दिनों में ही निकल जाती है और उन का दांव हर बार खाली जाता है.

फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ के बाद से दीपिका के कैरियर पर काला साया छाया हुआ है. इस साए से छुटकारा पाने के लिए प्रयासरत हैं. आएदिन वे किसी न किसी तरह की खबर को फैला या अफवाह उड़ा कर खुद को सुर्खियों में रखने का प्रयास कर रही हैं. अफसोस यही है कि उन की सारी खबरें या अफवाहें ज्यादा समय तक टिक नहीं पातीं. इतना ही नहीं, इस तरह खुद को सुर्खियों में बनाए रखने के बावजूद उन्हें फिल्म नहीं मिल पा रही है.

नील की सगाई

अभिनेत्रियों की तरह अब अभिनेता भी कैरियर की थमी गाड़ी देख घर बसाने का काम पूरा कर ले रहे हैं जो एक लिहाज से ठीक भी है. अब हर कोई सलमान खान नहीं हो सकता न. हाल में अभिनेता नील नितिन मुकेश ने मुंबई की रुक्मिणी सहाय से सगाई की है. और अगले साल शादी कर लेंगे.

मुंबई में हुए बेहद निजी समारोह में नील ने किसी फिल्मी सितारे को बुलाने के बजाय परिवार को ही अहमियत दी और सगाई कार्यक्रम को बिना वजह का पेजथ्री इवैंट नहीं बनने दिया. उन की होने वाली पत्नी रुक्मिणी एविएशन इंडस्ट्री से जुड़ी हैं.

खास बात यह है कि नील के लिए लड़की पसंद करने का काम उन के घर वालों ने किया है. यानी मामला अरेंज्ड है. वैसे, बौलीवुड में बहुत कम फिल्मी कलाकार ही अरेंज्ड मैरिज करते हैं. इस से पहले शहिद कपूर और मीरा राजपूत की अरेंज्ड मैरिज हुई थी.

सोशल मीडिया और कामचोरी

जब से सोशल मीडिया का क्रेज लोगों के सिर चढ़ा है और इंटरनैट के टैरिफ सस्ते हुए हैं, उन के आलस और कामचोरी में इजाफा हुआ है. ऐसा मानना है अभिनेत्री कंगना रानौत का. वे हमेशा से ही डिजिटल प्लेटफार्मों से दूरी बना कर रखती हैं क्योंकि उन्हें लगता है जिंदगी में सोशल मीडिया की घुसपैठ ने उन्हें सुस्त बना दिया है. वे कहती हैं कि सोशल मीडिया में बातों को नकारात्मक बना कर पेश किया जाता है. इस के अलावा सोशल मीडिया के चलते लोग अपनों के लिए भी वक्त नहीं निकाल पाते. सब स्मार्टफोन्स में बिजी हैं. इस की लत हमें बहाने बनाने पर मजबूर करती है. बात बिलकुल सही है. इस की लत अकर्मण्य और आलसी बना रही है. इस से एक जरूरी दूरी रखने में ही भलाई है.

फिलहाल कंगना अभिनेता सैफ अली खान व शाहिद कपूर के साथ विशाल भारद्वाज के निर्देशन में बन रही फिल्म ‘रंगनू’ की शूटिंग में व्यस्त हैं.  

टेस्ट की घटती लोकप्रियता

इंदौर टेस्ट मैच में भारत ने न्यूजीलैंड को 321 रनों से मात दे कर 3 टेस्ट मैचों की सीरीज में क्लीनस्वीप कर लिया. विराट कोहली की कप्तानी में भारत ने घरेलू धरती पर ऐसा कारनामा पहली बार किया है. भारतीय क्रिकेट और भारतीय खिलाडि़यों के साथसाथ प्रशंसकों के लिए भी यह खुशी की बात है.

क्रिकेट का कलात्मक सौंदर्य वाकई टेस्ट मैचों में ही देखने को मिलता है. लेकिन फटाफट क्रिकेट यानी आईपीएल मैचों की बढ़ती लोकप्रियता से टेस्ट मैचों का भविष्य खतरे में है. दर्शक भी फटाफट क्रिकेट में ज्यादा रुचि लेते हैं. 20-20 मैचों के टिकट फटाफट बिक जाते हैं जबकि टेस्ट मैचों के दौरान स्टेडियम खाली रहते हैं.

पहले एक टेस्ट मैच पूरे 5 दिन चलता था लेकिन अब शायद ही कोई मैच 5 दिन तक चलता है. ज्यादातर मैच 3 दिन में ही समाप्त हो जाते हैं. खिलाडि़यों में न तो अब धैर्य दिखता है और न ही 5 दिन तक खेलने का जज्बा. खिलाड़ी भी अब चाहते हैं कि सबकुछ फटाफट हो. जबकि टेस्ट मैचों में खिलाडि़यों के खेलने की क्षमता का पता चलता है. बल्लेबाजों को अपनी खेलप्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है कि वे कितनी देर तक क्रीज पर डटे रह सकते हैं. ठीक इसी तरह गेंदबाजों को भी यह दिखाने का मौका मिलता है कि उन की गेंदबाजी में कितनी धार है.

मगर समय के साथ खिलाड़ी भी बदल गए हैं. टेस्ट मैच को भी वे फटाफट क्रिकेट की तरह खेलना चाहते हैं और चाहते हैं कि तेजी से रन बनाएं. शायद यही वजह है कि अब टेस्ट मैच में 1 दिन में 300 से अधिक रन भी बन जाते हैं. इस से नतीजा जल्दी ही निकल आता है और टेस्ट मैच 3 या 4 दिन में ही समाप्त हो जाता है. आईपीएल धीरे धीरे टेस्ट मैच को खा रहा है. यदि इस पर खेल पदाधिकारी ध्यान नहीं देंगे तो आनेवाले समय में टेस्ट मैच का अस्तित्व समाप्त भी हो सकता है.

बच्चों के मुख से

बड़े भाई की शादी के बाद बहू घर पर आई तो रस्में शुरू हो गईं. कंगना खिलाई हो रही थी. थाल में दूध डाल कर उस में अंगूठियां डाल देते हैं दूल्हादुलहन की. फिर उन से कहते हैं, अंगूठी ढूंढ़ो. जो पहले ढूंढ़ लेता है वह जीतता है. ऐसे 3 बार करते हैं. जो तीसरी बार जीतता है वही जिंदगीभर अपने जीवनसाथी से जीतेगा, ऐसा माना जाता है. रस्म हो रही थी. सभी लोग आनंद ले रहे थे. इतने में मेरा 14 साल का भांजा बोला, ‘‘मामा, मैं जब शादी करूंगा तो सब रस्मों की प्रैक्टिस घर से ही कर के जाऊंगा जिस से कि हारूं नहीं.’’ यह सुन कर सब जोर से हंस पड़े.

– विकास भटनागर, कल्याण (महा.)

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मेरा 6 वर्षीय भतीजा बहुत भोला एवं हाजिरजवाब है. एक बार हम परिजन गपें मार रहे थे. मेरे देवर ने कहा, ‘भाभी, ज्यादातर गाने औरतों, पर ही क्यों बनाए जाते हैं, जैसे ‘नानी तेरी मोरनी को…’ या ‘दादी अम्मा दादीअम्मा मान जाओ…’ या ‘तू कितनी अच्छी है तू कितनी भोली है ओ मां…’ आदि.’ मैं ने कहा, ‘‘पुरुषों पर भी बनते हैं. वैसे, अभी मुझे कोई गाना याद नहीं आ रहा है…’’

मेरा भतीजा हमारी बातें सुन रहा था. बीच में ही तपाक से बोल पड़ा, ‘ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे…’ है. दरअसल, ‘विविध भारती’ पर कुछ देर पहले ही हम सब ने ‘ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे…’ फिल्मी गाना सुना था. ना ना – ना ना तो उसे सुनाई एवं समझ आया पर बाकी के गाने का मतलब वह नहीं समझा. सो, वह समझ बैठा कि वह गाना ‘नाना’ पर है. उस के भोलेपन एवं हाजिरजवाबी पर हम सभी हंस पड़े.

– संध्या, बेंगलुरु (कर्नाटक)

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मेरी ननद का बेटा युवराज 3 साल का था. उसे तीर, धनुष, तलवार (प्लास्टिक वाली) से खेलने का बहुत शौक था. दिनभर किसी राजामहाराजा की तरह खटाखट तलवार चलाता. एक दिन मैं ने यों ही पूछा, ‘‘बाबू, तुम ये दिनभर तीर, धनुष, तलवार क्यों चलाते रहते हो?’’ तो अचानक से मेरी तरफ देखते हुए बजाय मेरे सवाल का जवाब देने के, कहने लगा, ‘‘मामीजी, आप के होंठ एकदम धनुष जैसा दिखते हैं.’’ मैं क्या कहती, उस ने तो मुझे लाजवाब कर दिया था.

– चंद्रकला बाहेती, तिनसुकिया (असम)

मेरे पापा

जब बहस छिड़ती है कि पुरुषों को घर के कामों में हाथ बंटाना चाहिए या नहीं, तो मेरे मानसपटल पर मेरे पापा स्वत: ही छा जाते हैं.

मेरे पापा मेरी मां के हर छोटेबड़े कामों में हाथ बंटाते थे. वे औफिस जाने से पहले सब्जियों को इतनी बारीकी और सलीके से काटते थे कि देखने वाले प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते थे. अभी भी जब लोग मुझ से पूछते हैं, ‘‘इतनी बढि़या सब्जी काटनी किस से सीखी?’’ तो मेरा जवाब होता है, ‘‘पापा से.’’

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– सुधा विजय, मदनगीर (न.दि.)

मेरे पिताजी मेरी सब से छोटी बहन को ले कर स्कूल में उसे दाखिल करवाने गए. उन दिनों हम सब भाईबहन एक ही स्कूल ‘लेडी इरविन हाईस्कूल’, ‘शिमला’ में पढ़ा करते थे. बहन का दाखिला नर्सरी क्लास में करवाया गया. 2 दिनों तक तो वह खुश हो कर स्कूल जाती रही लेकिन तीसरे दिन उस ने स्कूल जाने से एकदम इनकार कर दिया. मां के बहुत पूछने पर बोली, ‘‘मिस से मुझे डर लगता है.’’

पिताजी ने अगले दिन उस का हाथ पकड़ा और चल दिए स्कूल की ओर उसे छोड़ने. कक्षा में प्रवेश करते ही सामने बैठी अध्यापिका पर उन की नजर गई. मिस गहरी लाल लिपस्टिक में थीं और टांग पर टांग रखे कुरसी में धंसी बैठी थीं. प्रकृति ने दिल खोल कर उन्हें सेहत भी दी थी. वे डर के मारे उलटे पांव कक्षा से वापस लौट आए और सीधे पिं्रसिपल के औफिस में जा पहुंचे. प्रिंसिपल से बोले, ‘‘आप ने छोटेछोटे बच्चों के लिए नर्सरी कक्षा में किस तरह की अध्यापिका रखी हुई है?’’

पिं्रसिपल आश्चर्यचकित हो उन की ओर देख कर पूछने लगीं, ‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

पिताजी बोले, ‘‘उन्हें देख कर तो मैं ही डर गया. भला, बच्चे नहीं डरेंगे?’’ प्रिंसिपल खूब हंसीं और उसी दिन अध्यापिका को बदल दिया गया.

– मंजू कश्यप, चंडीगढ़ (यू.टी.)

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मुझे बचपन से क्रिकेट खेलने का शौक था, उस के कारण मेरा काफी समय क्रिकेट खेलने में निकल जाता. पढ़ाई के लिए वक्त नहीं मिलता था. एक दिन शाम को क्रिकेट खेल कर मैं घर आया तो पापा ने मुझे सख्ती से समझाया कि वक्त बरबाद करने के लिए नहीं, जिंदगी संवारने के लिए होता है. अगर क्रिकेट खेलना चाहते हो तो साथ में अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान दो.

मैं ने तय कर लिया कि आगे एकएक सैकंड का सदुपयोग करूंगा. संघर्ष के दिनों में उन की हौसलाअफजाई ने मेरी हिम्मत टूटने नहीं दी. आज मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर के टाटा कंपनी में कार्यरत हूं. साथ ही, क्रिकेट की अनेक गतिविधियों में भी मैं आगे रहता हूं. 

– अंकुर 

भारत चीन के बीच नदियां बनी हथियार

मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त. कुछ ऐसा ही हो रहा है चीन के मामले में. उरी हमले के बाद भारत सोच रहा था कि पाकिस्तान के सथ हुए सिंधु जल विवाद की समीक्षा की जाए. तभी राजनीतिक हलकों से आशंका प्रकट की गई थी कि इस के जवाब में पाकिस्तान का मित्र चीन ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रोक सकता है. यह खबर फैलने से पहले चीन ने अपनी सब से बड़ी परियोजना हाइड्रो प्रोजैक्ट के लिए तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी को बंद कर दिया. चीन के इस कदम से भारत के असम, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में पानी की आपूर्ति में कमी आ सकती है. हालांकि चीन ने भारत व पाक के बीच चल रहे तनाव को ले कर किसी का पक्ष नहीं लिया है और बातचीत से मामले का हल निकालने की अपील की है मगर  पाकिस्तान धमकी दे चुका है कि अगर भारत ने सिंधु नदी का पानी रोका तो वह चीन के जरिए ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रुकवा

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने परियोजना के प्रशासनिक ब्यूरो के प्रमुख झांग युन्बो के हवाले से कहा कि तिब्बत के शिगाजे में यारलुंग झांग्बो (ब्रह्मपुत्र का तिब्बती नाम) की सहायक नदी शियाबुकू पर बन रही लाल्हो परियोजना में 4.95 अरब युआन (74 करोड़ डौलर) का निवेश किया गया है. शिगाजे को शिगात्जे के नाम से भी जाना जाता है. यह सिक्किम से लगा हुआ है. ब्रह्मपुत्र शिगाजे से हो कर अरुणाचल आती है. यह अभी साफ नहीं हुआ है कि नदी का प्रवाह रोकने का नदी के निचले बहाव वाले देशों, जैसे भारत और बंगलादेश में जल प्रवाह पर क्या असर होगा. भारत और पाकिस्तान के बीच तो नदी जल को ले कर अंतर्राष्ट्रीय संधि है मगर चीन और भारत के बीच ब्रहपुत्र के पानी को ले कर कोई संधि नहीं है. पिछले साल चीन ने 1.5 अरब डौलर की लागत वाले जम पनबिजली स्टेशन का संचालन शुरू कर दिया था, जिसे ले कर भारत में चिंताएं उठी थीं. ब्रह्मपुत्र नदी पर बना यह पनबिजली स्टेशन तिब्बत में सब से बड़ा पनबिजली स्टेशन है.

लेकिन चीन कहता रहा है कि उस ने भारत की चिंताओं पर ध्यान दिया है. उस ने साथ ही जल प्रवाह रोकने की आशंकाओं को दूर करते हुए कहा कि उस के बांध नदी परियोजनाओं के प्रवाह पर बने हैं जिन्हें जल रोकने के लिए नहीं बनाया गया है. चीन से संकेत मिले हैं कि तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी की मुख्यधारा पर 3 और पनबिजली परियोजनाओं के कार्यान्वयन की मंजूरी दी गई है. भारत-चीन सीमा विवाद के बाद भारत-चीन जल विवाद भी अब गंभीर रूप लेता नजर आ रहा है. चीन ने  पिछले साल तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बनी अपनी सब से बड़ी पनबिजली परियोजना- जम हाइड्रोपावर स्टेशन की सभी 6 इकाइयों का समावेश पिछले पावर ग्रिड में कर दिया है. इस परियोजना से जल आपूर्ति में बाधा होने की आशंका पर भारत की चिंता बढ़ गई थी. तब से ही भारत को डर है कि चीन इन बांधों से पानी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है. कभी वह पानी छोड़ कर भारत के उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में बाढ़ का गंभीर खतरा ला सकता है तो कभी पानी रोक कर सूखे के हालात पैदा कर सकता है.

शन्नान प्रिफेक्चर के ग्यासा काउंटी में स्थित जम हाइड्रो पावर स्टेशन को जांगमू हाइड्रोपावर स्टेशन के नाम से भी जाना जाता है. यह ब्रह्मपुत्र नदी के पानी का इस्तेमाल करता है. ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत में यारलुंग जांगबो नदी के नाम से जाना जाता है. यह नदी तिब्बत से भारत आती है और फिर यहां से बंगलादेश जाती है. इस बांध को विश्व के सब से ज्यादा ऊंचाई पर बने पनबिजली केंद्र के रूप में जाना जाता है. यह अपने किस्म की सब से बड़ी परियोजना है जो एक साल में 2.5 अरब किलोवाट प्रति घंटे बिजली उत्पादन करेगी. परियोजना के प्रबंधन ने कहा, ‘‘यह मध्य तिब्बत की बिजली की किल्लत दूर करेगी और बिजली की कमी वाले क्षेत्र में विकास लाएगी. यह मध्य तिब्बत का एक अहम ऊर्जा आधार भी है.’’ इस बीच, चीन यह कह कर भारत की चिंताएं दूर करने की कोशिश कर रहा है कि ये ‘रन औफ द रिवर’ परियोजनाएं हैं जिन का डिजाइन पानी के भंडारण के लिए नहीं किया गया है.

भारत की चिंता

ब्रह्मपुत्र पर भारत के एक अंतरमंत्रालय विशेषज्ञ समूह यानी आईएमईजी ने 2013 में कहा था कि ये बांध ऊपरी इलाके में बनाए जा रहे हैं. समूह ने निचले इलाकों में जल के प्रवाह पर इन के प्रभाव के मद्देनजर इन पर निगरानी का आह्वान किया था. समूह ने रेखांकित किया था कि 3 बांध-जिएशू, जांगमू और जियाचा-एकदूसरे से 25 किलोमीटर के दायरे में और भारतीय सीमा से 550 किलोमीटर की दूरी पर हैं. वर्ष 2013 में बनी सहमति के अनुसार, चीनी पक्ष ब्रह्मपुत्र की बाढ़ के आंकड़े जून से अक्तूबर के बजाय मई से अक्तूबर के दौरान प्रदान करने में सहमत हुआ था. 2008 और 2010 के नदी जल करारों में जून से अक्तूबर के दौरान आंकड़े प्रदान करने का प्रावधान था. भारत को चिंता है कि अगर पानी बाधित किया गया तो ब्रह्मपुत्र नदी की परियोजनाएं, खासतौर पर अरुणाचल प्रदेश की अपर सियांग और लोअर सुहांस्री परियोजनाएं प्रभावित हो सकती हैं.

आजकल दुनिया में जल विवाद आम होते जा रहे हैं क्योंकि दुनिया में तेजी से पेयजल का अभाव बढ़ता जा रहा है और  वह तेल की तरह अमूल्य वस्तु बनने लगा है. कई सामरिक विशेषज्ञ भविष्यवाणी करते रहे हैं कि भविष्य में विश्व में कई स्थानों पर पानी के कारण तनाव पैदा हो सकते हैं. इस की सब से बड़ी मिसाल तो हमारे सामने ही है, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के बाद पानी गंभीर विवाद का मुद्दा बन कर उभर रहा है. मई 2007 में समाचार एजेंसी यूपीआई के एडिटर इमिरेटस मार्टिन वाकर ने अपनी रिपोर्ट में कहा था, ‘इस समय पृथ्वी का सब से खतरनाक स्थान इराक या गाजा पट्टी में नहीं है, न ही ईरान और उत्तर कोरिया की भूमिगत प्रयोगशालाओं में है. वह विश्व की छत तिब्बत के पूर्वी पठार पर है. यह वह स्थान है जो उस नदी का स्रोत है जिसे चीनी सांगपो कहते हैं. यह समुद्रतल से 14,000 फुट ऊपर है और विश्व में सर्वोच्च है. भारत और बंगलादेश में इस नदी को ब्रह्मपुत्र कहा जाता है जिस पर बंगलादेश अपने आधे पेयजल के लिए निर्भर है. बंगलादेश की फसलें इसी नदी के पानी से लहलहाती हैं. भारत के असम राज्य के लिए तो ब्रह्मपुत्र जीवनरेखा का काम करती है. ब्रह्मपुत्र तिब्बत के पठार की वह सब से बड़ी नदी है जिस का उद्गम कैलाश पर्वत के पास वाले हिमखंड में होता है. करीब 4,000 मीटर की ऊंचाई से बहने वाली यह सब से बड़ी नदी है. तिब्बत में 2,057 किलोमीटर तक बहने के बाद सांगपो नदी जब भारत में प्रवेश करती है तब हो जाती है-ब्रह्मपुत्र. इस नदी की एक विशेषता यह है कि भारतीय सीमा के पास नामचा बरवा पहाड़ (7,782 मीटर) के पास वह बड़ी तेजी से यू टर्न लेती है.

यहीं पर चीन दुनिया का सब से बड़ा बांध बना रहा है और बड़े पैमाने पर नहरों, जलसेतु और सुरंगों के जरिए इस के पानी को उत्तरी चीन के सूखे इलाकों की तरफ मोड़ना चाहता है. यह भी चर्चा है कि तिब्बत से निकलने वाली 2 और बड़ी नदियों यांगत्से और होआंग हो पर भी चीन ऐसी ही परियोजनाएं शुरू कर रहा है. लेकिन चीन की ब्रह्मपुत्र पन बिजली परियोजना से भारत और बंगलादेश बुरी तरह प्रभावित होने वाले हैं. यही कारण है कि यह हिस्सा दुनिया का सब से खतरनाक हिस्सा बन सकता है. इस कारण पानी भारत-चीन के पहले से तनावग्रस्त रिश्तों में विवाद का एक नया मुद्दा बन कर उभर रहा है. इस विवाद में भी पलड़ा चीन का ही भारी है क्योंकि चीन ने तिब्बत पर कब्जा करने के बाद दुनिया के दूसरे सब से बड़े जल स्रोत पर कब्जा जमा लिया है. विशाल ग्लेशियरों, भूमिगत जल के विपुल स्रोतों और समुद्रतल से काफी ज्यादा ऊंचाई के कारण पोलर ध्रुवों के बाद तिब्बत विश्व का ताजा पेयजल का सब से बड़ा स्रोत है.

जीवनदायिनी ब्रह्मपुत्र

विश्व की 10 में से 3 प्रमुख नदियां :ब्रह्मपुत्र (जिसे तिब्बत में सांगपो कहते हैं), यांगत्जे और मेकांग का स्रोत तिब्बत के पठार में है. तिब्बत से निकलने वाली अन्य नदियां हैं – होआंग हो (या पीली नदी), सालवीन, अरुण, करनाली, सतलज और सिंधु. इन नदियों का 90 प्रतिशत पानी बह कर चीन, भारत, बंगलादेश, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड, म्यांमार, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम देशों में पहुंचता है. दक्षिण एशिया में हमारे लिए ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलज, अरुण और करनाली नदियां प्रमुख हैं जिन का पानी करोड़ों लोगों को जीवन देता है.

एक अनुमान के मुताबिक, हिमालय का 10 से 20 प्रतिशत हिस्सा बर्फीले हिमखंडों से ढका है और करीब 30 से 40 प्रतिशत अतिरिक्त हिस्सा मौसमी बर्फ से. हिमालय का करीब 1,00,000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा हिमखंडों से ढका है और इस में करीब 12,000 क्यूबिक किमी ताजे पानी का भंडार है. इसे हम पानी का एक आश्चर्यकारक टैंक कह सकते हैं.

बारहों मास बहने वाली इन नदियों का पानी इन हिमखंडों से ही निकलता है. मानसून के पानी पर निर्भर क्षेत्र में पानी का यह एक स्थिर स्त्रोत है क्योंकि इन क्षेत्रों में मानसून की बरसात साल के कुछेक महीनों में ही होती है. मौसमी वर्षा पर आधारित नदियों के खाके से अलग बहतीं और समूचे दक्षिण एशिया को निरंतर पानी की आपूर्ति करतीं तिब्बत की नदियां इसीलिए महत्त्वपूर्ण हैं. तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी अकसर शांत होती है और इस में नाव चलाई जा सकती है. वह भारत में अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले से हो कर असम में प्रवेश करती है जहां उस से 2 अन्य नदियां दिहांग और लोहित मिलती हैं.

आलोचकों का कहना है कि नीचे रहने वाले लोग पूरी तरह से चीन के बांध अधिकारियों की दया पर निर्भर हो जाएंगे जो कभी भी बाढ़ ला सकते हैं या उन के पानी की आपूर्ति रोक सकते हैं. इस बात में काफी दम भी है. भारत और बंगलादेश सूखे वाले मौसम में पर्याप्त पानी की सप्लाई और बारिश में बाढ़ से बचाव के लिए चीनी अधिकारियों पर निर्भर हो जाएंगे जो जब चाहे पानी छोड़ या रोक सकते हैं.

राजनीतिक हथियार बनता जल

भारत व चीन के बीच उभर रहे इस पानी विवाद पर टिप्पणी करते हुए रक्षा मामलों के विशेषज्ञ बह्म चेलानी कहते हैं, ‘‘चीन और भारत दोनों ही जल संकट से त्रस्त हैं. खेती और बड़े उद्योगों को ध्यान में रखते हुए इन दोनों देशों में पानी की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है. साथ ही, बढ़ते मध्यवर्ग को पानी की अधिक आवश्यकता पड़ रही है. अगर पानी की मांग वर्तमान दर से बढ़ती रही तो इस की कमी के कारण उद्योग और कृषि की विकास दर में कमी आ जाएगी. प्रमुख भारतीय नदियों का उद्गम तिब्बत है और खतरनाक बात यह है कि चीन आज तिब्बत क्षेत्र से अन्य नदियों को जोड़ने की बड़ी परियोजनाओं पर काम कर रहा है. ‘‘इस से इस क्षेत्र से निकलने वाली नदियों का पानी भारत नहीं पहुंच पाएगा. और भारत व अन्य संबद्ध देशों की अनेक नदियां सूख जाएंगी, किंतु इस से पहले कि पानी स्थानांतरित करने की ये परियोजनाएं चालू हों, चीन को एक व्यवस्थागत नीति तैयार कर लेनी चाहिए और जिन देशों में चीन के उद्गम वाली नदियां बहती हैं उन से उसे परस्पर सहयोग पर आधारित समझौता कर लेना चाहिए.’’

चीन का शह व मात का खेल

चेलानी आगाह करते हैं, ‘‘बड़े बांध, बैराज, नहरें और सिंचाई तंत्र पानी को एक राजनीतिक हथियार में बदल सकते हैं. एक ऐसा हथियार जो युद्ध के दौरान विध्वंस मचा सकता हैं और शांतिकाल में संबद्ध देशों का असंतोष दूर कर सकता है. यहां तक कि नाजुक समय में पानी के संबंध में उपयुक्त आंकड़े जारी न कर के इसे एक राजनीतिक उपकरण की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. लाभ की स्थिति में रहने वाले देश के खिलाफ प्रभावित देशों को अपनी सैन्य क्षमता इतनी बढ़ा लेनी चाहिए कि पानी पर नियंत्रण के मामले में नुकसान की स्थिति के बीच संतुलन बिठाया जा सके.’’ हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश में पिछले वर्षों के दौरान आई बाढ़ का कारण यही है कि चीन ने अपनी परियोजनाओं से पानी छोड़ने के संबंध में भारत को पूर्व सूचना जारी नहीं की थी. असलियत यह है कि तिब्बत से निकलने वाली अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय नदियों पर चीन बांध बनाने में जुटा है. जिन नदियों पर अब तक कोई परियोजना शुरू नहीं की गई है वे सिंधु और सलवीन हैं. सिंधु पाकिस्तान से होती हुई भारत पहुंचती है जबकि सलवीन और म्यांमार थाईलैंड से गुजरती है. चीन के येनान प्रांत में स्थानीय निकाय भूकंप संभावित क्षेत्र में सलवीन नदी पर बांध बनाने की योजना बना रहा है. भारत चीन पर बराबर दबाव बना रहा है कि वह पारदर्शिता अपनाए, पानी से संबंधित आंकड़ों का आदानप्रदान करे, किसी भी नदी के प्राकृतिक प्रवाह को न मोड़े और सीमापार से भारत में आने वाली नदियों का जल कम न करे.

भारत का मीडिया पिछले कई वर्षों से सरकार को आगाह कर रहा था कि  चीन सरकार तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बना कर उस के जलप्रवाह को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है. ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को अवरुद्ध कर के अथवा उस की दिशा बदल कर चीन उत्तरपूरब में पूरे पर्यावरण को बदल सकता है.

ऐसी दशा में चीन ब्रह्मपुत्र का प्रयोग भारत के खिलाफ एक हथियार के रूप में कर सकता है. चीन जिस प्रकार से पाकिस्तान का प्रयोग कर के भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है, कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी कि इस जल हथियार का प्रयोग भी भविष्य में किया जाए. अभी तो भारत सिंधु जल संधि का हथियार ही प्रयोग करना चाहता था. लेकिन उस को चीन ने यह दिखा कर भौचक्का कर दिया है कि वह पाकिस्तान के पक्ष में ब्रह्मपुत्र का पानी रोक सकता है. इस तरह पानी को ले कर शह और मात का खेल चल रहा है.

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