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कानून की पेचीदगियों को समझना जरूरी

आम लोगों में कानून से जुड़ी कई ऐसी भ्रांतियां व्याप्त हैं जो उन्हें सिर्फ आर्थिक ही नहीं, सामाजिक नुकसान भी पहुंचा सकती हैं. आप ऐसे किसी कन्फ्यूजन में हों, तो उन्हें दूर कर लें. लोन में गारंटर के रूप में साइन करने में हर्ज नहीं : गारंटर के रूप में रघुनाथ ने 4 साल पहले अपने बचपन के दोस्त विपिन के होमलोन के पेपर्स पर बिना सोचेसमझे साइन कर दिए. पेपर साइन करते वक्त उस के मन में 2 विचार थे. पहला, विपिन तो पुराना दोस्त है, मुझ से गलत पेपर्स साइन नहीं करवाएगा. दूसरा, अरे गारंटर के लिए साइन ही तो कर रहा हूं, लोन कौन सा मुझे चुकाना है. वह तो विपिन की जिम्मेदारी है.

उस के दोनों ही विचार तब गलत साबित हो गए जब उस के पास बैंक का नोटिस आया और गारंटर के रूप में लोन चुकाने के लिए कड़ा तकाजा. वकीलों से बातचीत करने के बाद ही उसे पता चला कि किसी भी कानूनी कागज पर बिना सोचेसमझे साइन करना कितना भारी पड़ सकता है. यह भी बाद में पता चला कि गारंटर के रूप में साइन करना महज कागजी खानापूर्ति नहीं होती, बल्कि कर्जदार के कर्ज न चुकाने की सूरत में बैंक गारंटर पर कानूनी कार्यवाही कर के उस से भी वसूली कर सकता है. आप भी जान लें कि एक गारंटर के रूप में आप की जिम्मेदारी तभी संपूर्ण होती है जब बैंक को लोन की रकम पूरी मिल जाती है. कर्जदार की मृत्यु या उस के डिफौल्टर होने पर ऋण चुकाने की जिम्मेदारी गारंटर की होती है. जब तक लोन का रीपेमैंट नहीं हो जाता तब तक आप की क्रैडिट रिपोर्ट पर भी इस का असर पड़ता है और आप को खुद के लिए लोन मिलने में दिक्कत आ सकती है.

वारिस को संपत्ति का हक देने के लिए औनलाइन वसीयत काफी : इन दिनों कई वैब पोर्टल और कंपनियां औनलाइन वसीयत लिखने के लिए उपलब्ध हैं जहां आप उन के मार्गदर्शन के मुताबिक सूचनाएं दर्ज करते हुए अपनी वसीयत लिख सकते हैं. आप की दी गई सूचनाओं को इकट्ठा कर के वैबसाइट खुद ही आप की वसीयत ड्राफ्ट कर देगी. इस में करीब 10 हजार रुपए खर्च होंगे.

कई लोग वसीयत ड्राफ्ंिटग हो कर आने पर समझते हैं कि बस, अब काम पूरा हो गया. लेकिन, भारतीय कानून औनलाइन विल को स्वीकार नहीं करता. आप को इस ड्राफ्ंिटग का पिं्रट लेना होगा और 2 गवाहों के सामने इस पर अपने हस्ताक्षर करने होंगे. बिना गवाहों या आप के हस्ताक्षर के, इस ड्राफ्ंिटग का कोई कानूनी महत्त्व नहीं समझा जाएगा. जरूरी तो नहीं है पर बेहतर होगा कि आप इसे रजिस्टर भी करवा लें. हां, वसीयत लिखते वक्त ध्यान रखें, जिसे अपनी संपत्ति देनी हो उस का घरेलू या आधाअधूरा नाम न लिखें, अगर नकद रकम है तो रकम का स्पष्ट उल्लेख करें, अचल संपत्ति का पूरा ब्योरा, नाप आदि अवश्य दें.

किसी भी प्रतिनिधित्व के लिए लेटर औफ अथौरिटी पर्याप्त : वैसे तो अपने फाइनैंशियल मैटर्स की देखभाल यथासंभव खुद ही करनी चाहिए लेकिन काम अधिक हो, तो व्यक्तिगत रूप से हर काम करना संभव नहीं हो पाता. ऐसे में हम किसी व्यक्ति को अधिकारपत्र या फिर लेटर औफ अथौरिटी दे देते हैं. पत्रवाहक उस पत्र को दिखा कर कई रूटीनवर्क कर सकता है, जैसे बैंक से अकाउंट स्टेटमैंट लाना, चैकबुक लाना, किसी कार्यालय से कागजात लाना या किसी व्यक्ति या संस्था विशेष के पास रखा कोई सामान लाना आदि. लेकिन यह कोई रजिस्टर्ड डौक्यूमैंट नहीं है, इसलिए इसे किसी बड़े लेनदेन या जटिल फाइनैंशियल ट्रांजैक्शन के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. जमीनजायदाद की खरीदफरोख्त आदि के लिए आप को अपने प्रतिनिधि को पावर औफ अटौर्नी देनी पड़ेगी.

इस में लेनदेन विशेष का ब्योरा सिलसिलेवार दर्ज रहता है और यह किसी खास लेनदेन के लिए ही इस्तेमाल किया जा सकता है. आप को किसी को पावर औफ अटौर्नी देते वक्त कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए कि व्यक्ति विश्वसनीय हो, अपने अधिकारों का दायरा समझता हो, आप को पता हो कि आप उस व्यक्ति को क्याक्या अधिकार दे रहे हैं और डौक्यूमैंट में उस के रद्द होने की समयसीमा व ब्योरा भी दर्ज होना चाहिए.

कोर्ट के बाहर सैटलमैंट कर लेने के बाद कुछ नहीं हो सकता : कांति प्रसाद और उस के बिजनैस पार्टनर प्रशांत के बीच विवाद हो गया. बात कोर्टकचहरी तक पहुंच गई. लेकिन फिर कांति प्रसाद के पार्टनर ने उस से आउट औफ कोर्ट सैटलमैंट करने की बात कही. कांति की भी कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने में दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उस ने हामी भर ली. लेकिन बाद में उसे पता चला कि प्रशांत ने समझौते में छिपी शर्तें डाल कर उस के साथ धोखा किया है. कांति प्रसाद हाथ मल कर रह गया क्योंकि उसे लगा था कि अब कुछ नहीं हो सकता. बहुत सारे लोग ऐसा ही सोचते हैं. लेकिन यह सच नहीं है. सच यह है कि धोखाधड़ी के मामले में आप हमेशा कोर्ट जा सकते हैं. कोर्ट इस बात की समीक्षा करेगा कि समझौता या इकरारनामा किस मंशा से और किन परिस्थितियों में किया गया. अगर कोर्ट उस में धोखाधड़ी या गलत मंशा पाता है तो करार को रद्द कर देगा. अगर आर्बिट्रेशन एग्रीमैंट भी किया गया है और आप उस से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप किसी वकील के मारफत उस के खिलाफ अपील कर सकते हैं.

कोर्ट में ओरिजिनल पेपर जमा करने पड़ते हैं : कई लोग कोर्ट में कागजात जमा करते वक्त बड़ी भूल कर बैठते हैं और यह सोच कर कि कोर्ट फोटोकौपी स्वीकार नहीं करेगा, वास्तविक कागजात जमा कर बैठते हैं. ऐसे में आप के कागजात खो सकते हैं. प्रोसीजर के मुताबिक, जब आप कोर्ट में कोई याचिका या मुकदमा दायर करते हैं, तो प्रमाण के रूप में वास्तविक दस्तावेज की सर्टिफाइड फोटोकौपी और एफिडेविट जमा करने की जरूरत होती है. हां, जब सुनवाई के लिए आप को बुलाया जाए तब जज आप से वास्तविक कागजात दिखाने को कह सकते हैं, जो आप को साथ रखने चाहिए. लेकिन आप के पास किसी कारणवश वास्तविक कागजात नहीं हैं, तो आप उस वक्त भी उन्हें गैजेटेड औफिसर द्वारा सर्टिफाइड फोटोकौपी दिखा सकते हैं. आप को वास्तविक कागजात अपने वकील को भी सौंपने चाहिए. ओरिजिनल डौक्यूमैंट्स आप स्कैन कर के कंप्यूटर या अपने मेल में सेव कर लें.

कंज्यूमर कोर्ट में जाने के लिए वकील जरूरी नहीं : उत्पादकों, सेवाप्रदाताओं व अन्य कंपनियों से परेशान कई लोग उपभोक्ता अदालत में सिर्फ इस डर से नहीं जाते हैं कि कौन कोर्टकचहरी के चक्कर में पड़े और ऊपर से वकील की मोटी फीस भी चुकानी पड़ेगी. सच तो यह है कि कंज्यूमर कोर्ट में जाने के लिए वकील की जरूरत नहीं होती, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी रूलिंग दे दी है. वर्ष 2000 में मुंबई डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर फोरम ने उपभोक्ता द्वारा 2 टूर औपरेटर्स के खिलाफ दी गई अर्जी को यह कह कर ठुकरा दिया था कि आप को वकील के मारफत आना होगा. लेकिन बाद में फोरम के इस निर्णय के खिलाफ कोर्ट ने कहा कि कंज्यूमर फोरम में शिकायत के लिए वकील की कोई जरूरत नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने विस्तारपूर्वक अपने निर्णय में सलाह दी कि कंज्यूमर कोर्ट की कार्यवाही का तरीका ऐसा होना चाहिए कि सामान्यजन भी अपना पक्ष पेश कर सकें.

जब चाहें कोर्ट में केस कर सकते हैं: भारतीय कानून किसी भी नागरिक को न्याय पाने का पूरा मौका देता है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि आप जब चाहें कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. सिविल केस वर्ष 1963 के लिमिटेशन ऐक्ट के दायरे में ही दर्ज किए जा सकते हैं. इस के तहत कोई मुकदमा आप घटना या शिकायत के 3 महीने से ले कर 3 साल के भीतर ही दायर कर सकते हैं. समयसीमा मामले के ऊपर निर्भर करती है. अगर आप तय समयसीमा में मुकदमा दायर नहीं करते तो इसे समयातीत करार दे कर रिजैक्ट किया जा सकता है. ज्यादातर प्रतिवादी के वकील ऐसे केस का विरोध ज्यादा करते हैं. हां, कभीकभी परिस्थितियों में कोर्ट समयसीमा के बाद भी किसी मामले पर सुनवाई कर सकता है. अगर केस दायर करने वाला व्यक्ति नाबालिग है या मानसिक रूप से अक्षम है, तो उस के लिए समयसीमा में छूट दी जा सकती है.

मैं पैतृक संपत्ति को जिसे चाहूं गिफ्ट कर सकता हूं : माना कि एचयूएफ (हिंदू संयुक्त परिवार) की स्थापना कर के आप कतिपय टैक्स लाभ अर्जित कर सकते हैं लेकिन प्रौपर्टी के अंतरण को ले कर कुछ प्रतिबंध होते हैं. बौंबे हाईकोर्ट द्वारा कुछ समय पहले किए गए एक फैसले के मुताबिक, एचयूएफ के संयुक्तरूप से मालिकाना हक वाली पैतृक संपत्ति को आप तभी किसी को दे सकते हैं जब आप परिवार के अकेले जीवित सदस्य हों.

किसी भी एचयूएफ में संपत्ति का मालिकाना हक सभी सदस्यों का संयुक्त रूप से होता है, इसलिए किसी भी सदस्य का उस पर संपूर्ण अधिकार नहीं हो सकता. ऐसे में कोई वह संपत्ति तीसरे व्यक्ति को गिफ्ट में या रकम के बदले नहीं दे सकता.

 

(यह लेख कोलकाता हाईकोर्ट के वकील इंद्रनील चंद्र और स्नेहा गिरी से बातचीत पर आधारित है).    

बिखरी जुल्फों की स्याही

बस सांसों की गरमी है
लफ्ज नहीं दरम्यान बचे
बीते शर्मोहया के दिन
प्रणय के बस तूफान बचे

बांहों के हैं पाश कसे से
बिखरी जुल्फों की स्याही
अधर न रह जाएं प्यासे से
मन में न रेगिस्तान बचे

दूर हुई काया की पीड़ा
रोमरोम गुलजार हुए
भोर तलक न होश में आए
शेष न कुछ अरमान बचे

दीवारों के नयन झुके हैं
परदे हैं महकेमहके सेबच्चोंके मुखसे
दर्पन फूल करें सरगोशी
दीये की कैसे जान बचे.

       

– अनुराग मिश्र ‘गैर’

सर्जिकल स्ट्राइक के माने

सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान सीमा पर युद्घ नहीं हुआ लेकिन उस को ले कर चुनावी मैदानों में युद्घ हो रहा है. नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उस पर ज्यादा छाती ठोंकने की जरूरत नहीं है. उन्होंने यह केवल अपनी साख को सुरक्षित रखने के लिए कहा है या यह भाजपा नेताओं को निर्देश है, मालूम नहीं. सेना द्वारा स्ट्राइक को अंजाम दिए जाने के बाद आए भाजपाई बयानों को  ले कर विवाद जारी है. कांग्रेस सर्जिकल स्ट्राइक को सेना का अपना मामला बनाए रखने की सलाह दे रही है और दावा कर रही है कि उस के शासन के दौरान भी इस तरह की स्ट्राइक की गई थीं.

यह सर्जिकल स्ट्राइक आतंकवाद का खात्मा कर देगी, इस की कोई गारंटी नहीं है. हर देश अपनी सुरक्षा के लिए कभीकभार दूसरे देश में, तो कभी अपने देश में ही नाटकीय लगने वाली सैनिक कार्यवाहियां करता  रहता है. न्यूयौर्क के ट्विन टावर्स पर आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान व इराक को नेस्तनाबूद कर डाला. पर हुआ  क्या? आतंकवाद आज भी वैसा ही है. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कुछ सप्ताहों में ही श्रीनगर से कुछ दूर बने 75 कमरे वाले एंटरप्रैन्योर डैवलपमैंट सैंटर पर केवल 2 आतंकवादियों ने हमला कर दिया और सैंटर को पूरा नष्ट करने बाद ही इन 2 को मारा जा सका. सर्जिकल स्ट्राइक क्यों, कैसे और किस लाभ के लिए की गई, यह सेना का मामला है. यह आतंकवाद की कमर तोड़ दे या पाकिस्तान की सरकार को झुकने को मजबूर कर दे, यह कल्पना नहीं की जानी चाहिए. यह पहले से साबित हो चुका है कि देशों में शांति मेजों पर बैठ कर आती है, युद्घ के मैदानों से नहीं. हम सेना के बल पर पाकिस्तान के सिरफिरे कट्टरवादियों को भयभीत कर चुप करा सकेंगे, ऐसा नहीं लगता.

सर्जिकल स्ट्राइक पर ज्यादा शोर सेना के लिए घातक हो सकता है क्योंकि हम सेना को उकसा रहे हैं कि वह इस तरह के और ऐक्शन ले, चाहे जरूरी हों या नहीं. सेना का काम खामोश रह कर देश की रक्षा करना होता है. सेना किसी भी राजनीतिक दल के प्रचार का हिस्सा न बने, यह देश के लोकतंत्र के लिए आवश्यक है. सेना की कार्यवाही पर श्रेय लेंगे तो जवाब में दूसरे दल भी सेना को घसीटेंगे और तब सेना के हाथ बंध जाएंगे जो देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक होगा. पाकिस्तान से युद्घ का जो माहौल बनाया जा रहा है, वह निरर्थक है. इसी देश ने नहीं, सभी देशों ने इस तरह के युद्घ देखे हैं. पर जनता की खुशहाली युद्घ जीतने से नहीं, दूसरी चीजों से आती है. द्वितीय विश्वयुद्घ के बाद जरमनी और जापान हार गए थे पर आज देखें कि वे कहां हैं. दोनों के पास सेनाएं नाम की हैं पर आज उन की जनता सुरक्षित है, सुसंस्कृत है और सुखी भी.

गौरव खन्ना और आकांक्षा चामोला 24 नवंबर को करेंगे शादी

इन दिनों टीवी इंडस्ट्री के कलाकार प्रेम विवाह को अहमियत दे रहे हैं. ऐसी ही एक शादी अब 24 नवंबर को कानपुर में होने जा रही है. जी हां! सीरियल ‘‘तेरे बिन’’ के कलाकार गौरव खन्ना अपने लंबे समय की प्रेमिका और सीरियल ‘‘स्वारांगिनी’’ में शीर्ष भूमिका निभा रही अभिनेत्री आकांक्षा चमोला के साथ 24 नवंबर को शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. गौरव खन्ना के परिवार वालों ने जो षाशादी का कार्ड बांटा है, वह काफी अनूठा है और चर्चा का विषय बना हुआ है.

इस निमंत्रण कार्ड के अनुसार यह षादी 24 नवंबर को कानपुर में संपन्न होगी. पर उससे पहले  23 नवंबर को सगाई, संगीत सेरेमनी के साथ साथ एक रिसेप्शन पार्टी का आयोजन किया गया है. 24 नवंबर को पंजाबी रीति रिवाजों के साथ शादी होगी. उसके बाद 25 नवंबर को माता की चौकी का आयोजन किया गया है. आकांक्षा चमोला का दावा है कि शादी के मौके पर पहनने के लिए सारी पोशाकें दोनों ने एक साथ मिलकर खरीदी हैं.

इस शादी को लेकर गौरव खन्ना कहते है-‘‘मेरी जिंदगी में तमाम खूबसूरत लड़कियां आयीं. मैंने तमाम लड़कियों के साथ काम किया. पर आकांक्षा से मिलते ही मुझे लगा था कि इनमें कुछ अलग बात है. पहली ही मुलाकात में मुझे अहसास हुआ कि मैं इनके साथ पूरी जिदंगी बिता सकता हूं. इसीलिए हम शादी कर रहे हैं. आकांक्षा और मुझमें बहुत समानताएं हैं. हां! मैं थोड़ा संकोची किस्म का इंसान हूं. पर वह सामाजिक इंसान हैं.’’

आकांक्षा कहती हैं-‘‘हम दोनों ही सीरियल की शूटिंग में काफी व्यस्त हैं. पर हमने अपनी शादी के लिए बीस दिन की छुट्टी ली है. इन बीस दिनों में ही शादी की तौयारियां, शादी के समारोह के साथ साथ शादी के बाद कुछ रिश्तेदारों से मिलने जाने वाले हैं. पर हनीमून पर जाने का अभी कोई इरादा नहीं है. क्योंकि हम दोनों बहुत व्यस्त हैं और बीस दिन से ज्यादा की छुट्टी नही मिल सकती थी.

अभिषेक बच्चन का करियर संवारेंगे मिलाप झवेरी

एक बहुत पुरानी कहावत है- ‘‘भगवान ने मिलायी जोड़ी, एक अंधा और एक कोढ़ी’’.’’ बौलीवुड में लोग इस कहावत को तब से गुनगुना रहे हैं, जब से खबर मिली है कि अब अभिषेक बच्चन के करियर को मिलाप झवेरी संवारेंगे.      

अभिषेक बच्चन का अभिनय करियर लगभग डूबा हुआ है. उनकी पिछली कई फिल्में लगातार असफल होती रही हैं. आज की तारीख में उनके पास कोई काम नहीं है. तो दूसरी तरफ मिलाप झवेरी द्वारा लिखित तथा निर्देशिसत ‘‘मस्तीजादे’’ और उनके द्वारा लिखित ‘‘द ग्रेट ग्रैंड मस्ती’’ जैसी घटिया एडल्ट सेक्स कामेडी वाली फिल्में बाक्स आफिस पर बुरी तरह से मात खा चुकी हैं. और अब यह दोनों एक दूसरे का सहारा बनने जा रहे हैं. इसी के चलते लोग ‘‘भगवान ने मिलायी जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी..’’ गुनगुना रहे हैं. मगर इसे गुनगुनाने वाले लोगों को कुछ लोग जवाब भी दे रहे हैं कि फिल्में असफल होती है, कलाकार या निर्देशक असफल नहीं होता.

सूत्रों की माने तो अभिषेक बच्चन के डूबते करियर को फिर से उभारने का बीड़ा अभिषेक बच्चन के खास दोस्त बंटी वालिया ने उठाया है. बंटी वालिया, अभिषेक के लिए फिल्म का निर्माण करने जा रहे हैं. सूत्रों का दावा है कि अभिषेक बच्चन के अभिनय वाली इस फिल्म की पटकथा तैयार नहीं है. इस फिल्म के लिए पटकथा लेखक व निर्देशक की बंटी वालिया को लंबे समय से तलाश थी. पर बालीवुड में उन्हें कोई निर्देशक मिला नहीं, जो अभिषेक की फिल्म को निर्देशित करने के लिए तैयार हो सके. बड़ी मुश्किल से मिलाप झवेरी तैयार हुए हैं. तो अब मिलाप अभिषेक बच्चन को ध्यान में रखकर फिल्म की पटकथा लिखने जा रहे हैं, जिसका निर्देशन वही करेंगे. फिल्म के निर्माता होंगे बंटी वालिया. पटकथा पूरी होने के बाद फिल्म की नायिका का चयन किया जाएगा.

यह फिल्म पूरी तरह से एक्शन ड्रामा वाली फिल्म होगी, जो कि अभिषेक बच्चन और मिलाप झवेरी दोनों के लिए एक नया अनुभव होगा. अब तक अभिषेक बच्चन व मिलाप झवेरी ने इस तरह की कोई फिल्म नहीं की है.

बच्चन परिवार की यह बेरुखी

अमिताभ बच्चन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अमूमन वह हर कलाकार की फिल्म के प्रदर्शन से पहले अपने ट्विटर, ब्लाग व फेसबुक पर उस कलाकार की तारीफों के पुल बांधते रहते हैं. हर फिल्म के प्रदर्शन से पहले आयोजित होने वाले शो व फिल्म के प्रीमियर पर सपरिवार पहुंचते हैं. फिल्म देखकर उस फिल्म की तारीफ में जो कुछ भी कह सकते हैं, वह कहते रहते हैं. मगर उनका अपनी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ को लेकर चुप रहना हर किसी के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है. अब तक उन्होंने इस फिल्म के किसी गाने, ट्रेलर या ऐश्वर्या राय बच्चन के अभिनय को लेकर भी अपने ट्विटर, ब्लाग या फेसबुक पर कुछ भी नहीं लिखा.

इतना ही नहीं करण जोहर ने सोमवार को अपनी फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’ का एक खास शो आयोजित किया, जिसमें रणबीर कपूर के पिता ऋषि कपूर सहित पूरे कपूर परिवार के साथ साथ अनुष्का शर्मा का पूरा परिवार मौजूद था. लेकिन इस शो में अमिताभ बच्चन के परिवार से कोई नहीं पहुंचा. यहां तक कि इस फिल्म में अभिनय करने वाली ऐश्वर्या राय बच्चन भी नहीं पहुंची. हर कलाकार की फिल्म देखने पहुंचने वाला बच्चन परिवार अपने ही परिवार की सदस्य की फिल्म के समय नामौजूद रहा. इससे बौलीवुड से जुड़े लोग आश्चर्यचकित हैं तथा बौलीवुड में अटकलों का बाजार गर्म हो चुका है.

बौलीवुड में अटकलें गर्म हैं कि  क्या अमितभ बच्चन और करण जोहर के संबंध बिगड़ चुके हैं? क्या करण जोहर और ऐश्वर्या राय के बीच तलवारे खिंच गयी हैं? बौलीवुड के बिचौलियों का मानना है कि अमिताभ बच्चन अब तक करण जोहर को अपना पारिवारिक सदस्य मानते रहे  हैं. लेकिन जिस तरह से करण जोहर ने फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन और रणबीर कपूर के उपर अति बोल्ड व गर्मागर्म अंतरंग दृश्यों को फिल्माया है, उससे अमिताभ बच्चन नाराज हैं. सूत्रों का मानना है कि अमिताभ बच्चन को करण जोहर से ऐसी उम्मीद नहीं थी. इसी के चलते बच्चन परिवार ने ‘ऐ दिल है मुश्किल’ से किनारा कर लिया है. वैसे जिन दृश्यों को लेकर अमिताभ बच्चन को आपत्ति थी, उन चार दृश्यों पर सेंसर बोर्ड ने कैंची चलवाकर छोटा कर दिया है.

तो दूसरी तरफ बौलीवुड में यह चर्चा भी गर्म है कि जब से ऐश्वर्या को इस बात की जानकारी हुई है कि फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ में उनका किरदार अनुष्का शर्मा के मुकाबले काफी छोटा है, तब से वह करण जोहर से नाराज हैं. इसी नाराजगी के परिणाम स्वरूप बच्चन परिवार ने फिल्म के खास शो का बहिष्कार किया.

जबकि बौलीवुड का एक तबका अमिताभ बच्चन के इस रवैए को फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ में पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान की मौजूदगी से जोड़कर देख रहा है. इन लोगों का मानना है कि अमिताभ बच्चन अपने आपको सबसे बड़ा देशभक्त मानते हैं. वह ऐसा कोई कदम उठाना पसंद नहीं करते, जो देश या देश के लोगों की भावनाओं उनके अपने प्रशंसकों की भावनाओं से मेल ना खाएं. लोगों का मानना है कि अमिताभ बच्चन को इस बात का अहसास है कि देश के लोगों में और उनके प्रशंसकों में पाकिस्तान के प्रति काफी गुस्सा है. इसी के चलते उन्होंने अपने पूरे परिवार के साथ ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के खास शो से दूरी बनाकर संकेत दे दिया है. इस तरह की सोच रखने वालों से बौलीवुड के कुछ लोग सवाल पूछ रहे हैं कि, यदि यही सच है, तो  क्या अमिताभ बच्चन के प्रशंसक भी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ से दूरी बनाकर रखेंगे?

करण जोहर की फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के खास शो से अमिातभ बच्चन परिवार की दूरी ने बौलीवुड में अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है. पर पूरा बच्चन परिवार इस मसले पर कुछ भी कहने को तैयार नही हैं. कहीं यह भी फिल्म के प्रचार का एक हिस्सा तो नहीं है.

सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े

बेचारे राम गोपाल वर्मा..अपने असफल करियर को सही ढंग से पटरी पर लाने के लिए फिल्मकार राम गोपाल वर्मा ने इस बार काफी सोच समझकर फिल्म ‘‘सरकार 3’’ बनाने का निर्णय लिया था. इस फिल्म से जुड़े हर मसले पर निर्णय लेते समय उन्होंने काफी फूंक फूंक कर कदम रखा. वह पिछले एक सप्ताह से अपनी इस फिल्म की शूटिंग लगातार कर रहे हैं. फिल्म ‘‘सरकार 3’’ में सुभाष नागरे का किरदार निभा रहे अभिनेता अमिताभ बच्चन भी कठिन मेहनत कर रहे हैं. सूत्रों के अनुसार अमिताभ बच्चन ने  सुबह तीन बजे तक फिल्म ‘सरकार 3’ के लिए शूटिंग की और फिर दस बजे गाने की रिकार्डिंग के लिए भी पहुंच गए.

मगर फिल्म ‘‘सरकार 3’’ भी  अदालती पचड़े में फंस गयी है. ज्ञातब्य है कि ‘सरकार 3’ राम गोपाल वर्मा निर्देशित फिल्म ‘सरकार’ की तीसरी फ्रेंचाइजी है. बहरहाल, इसी सप्ताह फिल्म ट्रेड पत्रिकाओं में नरेंद्र हिरावत एंड कंपनी के वकीलों ने नोटिस छापकर फिल्म ‘‘सरकार 3’’ पर कापीराइट का दावा किया है. इस नोटिस में लिखा है-‘‘हमारे ग्राहक /क्लाइंट व फिल्म वितरक नरेंद्र हिरावत के पास ही इस फिल्म के मूल फिल्म के नगेटिव हैं. इस फिल्म का कापीराइट, नगेटिव्स का राइट आदि का पूर्ण स्वामित्व उन्हीं के पास है. इस फिल्म का सिक्वअल, प्रीक्वल, रीमेक सहित जो भी अधिकार हो सकते हैं, वह सारे अधिकार उन्ही के पास हैं. इसलिए इस पर ‘सरकार 3’ बनाने का हक राम गोपाल वर्मा को नहीं है.’’ इस नोटिस में लिखा है कि इस नोटिस को राम गोपाल वर्मा के अलावा फिल्म से जुड़े सभी कलाकारों को भेजी गयी है.

इतना ही नहीं नरेंद्र हीरावत ने भी कहा है-‘‘मैने सुना है कि राम गोपाल वर्मा ने ‘सरकार 3’ की शूटिंग शुरू कर दी है. यदि उन्होंने हमारी नोटिस को तवज्जो नहीं दिया, तो हम अदालत जाकर शूटिंग रोकने का आदेश लेकर आएंगे. फिल्म शुरू करने से पहले राम गोपाल वर्मा ने हमसे कोई बात भी नहीं की.’’

इस साल अमिताभ बच्चन जिन दो सिक्वअल फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं, उनमें से ‘आंखे 2’ के बाद ‘सरकार 3’ दूसरी फिल्म होगी, जो  कि अदालती पचड़े में फंसेगी.  फिल्म ‘‘सरकार 3’’ में अमिताभ बच्चन, मनोज बाजपेयी, जैकी श्राफ, यामी गौतम, अमित साध, रोनित राय व अन्य कलाकार अभिनय कर रहे हैं.

5 करोड़ रुपये वसूलने की करण जोहर की योजना

बौलीवुड और इससे जुड़े लोग निराले ही कहे जाएंगे. बौलीवुड के फिल्मकारों के आगे सारे व्यवसायी असफल ही कहे जाएंगे. जी हां! करण जोहर ने अपनी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ को प्रदर्शित करने के एवज में ‘आर्मी वेलफेअर फंड’ में पांच करोड़ देने का वादा किया है, मगर करण जोहर अपनी जेब से यह धनराशि नहीं देने वाले हैं, बल्कि दर्शकों से पैसे वसूल करके ही देने वाले हैं.

यह एक कटु सत्य है. अब ऐश्वर्या राय बच्चन, रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा और पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान के अभिनय से सजी करण जोहर की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ को देखने के लिए एक दर्शक को 2200 रुपए देने पड़ सकते हैं. जी हां! करण जोहर ने अपनी फिल्म के लिए टिकट दर काफी बढ़ा दी है. हमें पता चला है कि मल्टीप्लैक्स में पीवीआर ने सबसे ज्यादा टिकट के दाम बढ़ाएं हैं. दिल्ली में पीवीआर प्लेटिनम सुपीरियर सीट के लिए एक दर्शक को 2200 रुपये देने पड़ रहे हैं. जबकि प्लेटिनम सीट के लिए 2000 रुपये देने पड़ रहे हैं.

इतना ही नहीं गुड़गांव का अम्बीएंस मल्टीप्लैक्स गोल्ड क्लास के लिए एक टिकट के सोलह सौ रुपये ले रहा है. मजेदार बात यह है कि मुंबई में 800 रुपये से ज्यादा की टिकट किसी भी मल्टीप्लैक्स में नहीं है. और वह भी मुंबई के कुर्ला इलाके के पीवीआर मल्टीप्लैक्स में ही 800 रुपये की टिकट है. अब इस तरह टिकट के दाम में बढ़ोतरी करके कितने दिन में कितने करोड़़ इकट्ठे होते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

पिछले एक दो वर्षो से यह रिवाज सा बन गया है कि जब भी कोई बड़ी फिल्म प्रदर्शित होती है, तो हर मल्टीप्लैक्स टिकट के दाम बढ़ा देता है, इसका हिस्सा निर्माता की झोली में भी जाता है. इसके बावजूद अतीत में कई बड़ी फिल्में अपनी लागत नहीं वसूल कर पायीं. जबकि सौ रूपए की टिकट के दाम के बावजूद मराठी भाषा की फिल्म ‘‘सैराट’’ ने सौ करोड़़ कमा लिए. इससे यह बात भी उभरकर आती है कि टिकट के दाम बढ़ाने से सिनेमाघर के अंदर जाने वाले दर्शकों की संख्या में कमी आती है और बढ़ी हुई टिकट दर के ही चलते दर्शक सिनेमाघर में फिल्म देखने की बजाय पायरेसी से मिली फिल्म या इंटरनेट पर या फिर डेढ़ माह का इंतजार कर टीवी पर फिल्म को देखना पसंद करता है. यदि इस पर बौलीवुड के फिल्मकार गौर करेंगे, तो पाएंगे कि उनके टिकट के दाम बढ़ाने का असली खामियाजा उन्हे ही भुगतना पड़ता है.

इस पर टिप्पणी करते हुए एक वेबसाइट से बात करते हुए फिल्म वितरक अक्षय राठी ने कहा है-‘‘इस तरह टिकट के दाम बढ़ाने के पीछे दर्शकों को दूध पिलाना मकसद नहीं होता. बल्कि फिल्म की पायरेसी हो, उससे पहले ज्यादा लाभ कमाने की मंशा होती है. पर कुछ दर्शकों के लिए एक टिकट के लिए नौ सौ रूपए के साथ ही पापकार्न और कोक का दाम चुकाना तथा घर से सिनेमा घर तक आने जाने का किराया खर्च करना बहुत महंगा सौदा होता है. पर कहते हैं कि जिन्हे फिल्म देखना है, वह तो देखेंगे ही.’’

अब इस तरह बड़ी फिल्म के नाम पर सिनेमा घरों में टिकट के दाम बढ़ाना कितना जायज है,इस पर बहस तो होनी ही चाहिए. ज्ञातब्य है कि कुछ दिन पहले तक ‘‘महाराष्ट् नवनिर्माण सेना’’, करण जोहर की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ को प्रदर्शित होने न देने का ऐलान किया था. पर फिल्म के प्रदर्शन से एक सप्ताह पहले एक समझौते के तहत करण जोहर ने फिल्म के प्रदर्शन के एवज में ‘आर्मी वेलफेअर फंड’ में पांच करोड़ रूपए देने का वादा किया था.

उधर ‘एमएनएस’ ने जिस तरह फिल्म के निर्माता को ‘आर्मी वेलफेअर फंड’ में पांच करोड़ देने के लिए बाध्य किया है, उसका भारतीय सेना के पूर्व सैनिकों के साथ साथ रेणुका शहाणे, शबाना आजमी, अजय देवगन सहित कुछ कलाकारों ने जोरदार तरीके से विरोध किया है.

उधर सीमा पार से भी भारतीय सेना के निर्णय की तारीफ की जा रही है. जी हां! एक अखबार के मुताबिक पाकिस्तानी सिनेमाघर मालिकों ने भारतीय सेना के इस निर्णय की तारीफ की है, किसी से भी जबरन ‘आर्मी वेलफेअर फंड’ में पैसे देने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए.’’ 

सपा में जारी है ‘घात-प्रतिघात’

72 घंटे से अधिक तक चला समाजवादी का पार्टी हाई वोल्डेज ड्रामा अब भी खत्म नहीं हो रहा है. समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव पहली बार कमजोर पड़ते दिखे हैं. उनके लिये बेटे अखिलेश यादव को दरकिनार करना सरल नहीं है, तो भाई शिवपाल को भी छोड़ना मुश्किल काम है. ऐसे में फौरीतौर पर मुलायम ने सुलह समझौते को दिखा कर अखिलेश-शिवपाल के बीच सुलह करा दी. इस सुलह के बाद भी आपस में ‘घात-प्रतिघात’ जारी है. सुलह समझौते की तय शर्ते भी पूरी नहीं हुई है. अब मुलायम खुद कुछ भी बोलने से बच रहे हैं.

एक तरफ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल और उनके साथी मंत्रियों का निलंबन वापस नहीं किया, तो प्रदेश का पार्टी मुखिया होने के नाते शिवपाल यादव ने रामगोपाल यादव का पार्टी से निष्कासन वापस नहीं लिया. पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अगले मुख्यमंत्री के नाम पर चुनाव के बाद तय करने को कहा है.

समाजवादी पार्टी के इस विवाद में मुलायम यह चाहते थे कि न किसी की जीत हो न किसी की हार हो. चुनाव तक सभी एक रहें, इसके बाद पार्टी अपना नेता समय देखकर तय करेगी. अपने स्तर पर मुलायम ने यह बात पूरी की. इसके बाद भी अखिलेश और शिवपाल दोनो ही अपने अपने दांव चलने से बाज नहीं आ रहे हैं.

ऐसे में अब मुलायम ने इस झगड़े से दूरी बना ली है. समाजवादी पार्टी में मचे घमासान का असर मुलायम की सेहत पर भी पड़ रहा है. इस विवाद को सुलझाने के दौरान 2 बार उनकी तबीयत खराब हुई. अखिलेश और शिवपाल दोनो ही यह कह रहे है कि नेताजी यानि मुलायम सिंह यादव की बात सभी मानेंगे. ऐसे में मुलायम चाहते हैं कि समय के साथ सब सुलझ जाये.

मुलायम के लिये एक पक्ष का चुनाव करना संभव नहीं है. ऐसे में वह बिना किसी तरह के अतिरिक्त विवाद के मसले को ठंडा करने में लगे हैं. पार्टी शिवपाल के हवाले और सरकार अखिलेश के हवाले कर मुलायम बीच का रास्ता निकाल रहे हैं. जिस तरह से पार्टी और सरकार के बीच सुलह समझौते की शर्तों को पूरा नहीं किया जा रहा. इससे साफ है कि मामला रफादफा नहीं हुआ है.

ताजा घटनाक्रम में शिवपाल यादव ने अखिलेश मंत्रिमंडल के सदस्य पवन कुमार पांडेय को 6 साल के लिये पार्टी से बाहर कर दिया है. पवन पांडेय पर समाजवादी पार्टी के एमएलसी आशू मलिक को थप्पड मारने का आरोप है. पार्टी के इस कदम का सरकार की तरफ से क्या जबाव आता है यह देखने वाली बात होगी.

कोहली से सीखूंगा रन कैसे बनाते हैः टॉम लाथम

न्यूजीलैंड टीम के इस दौरे के सबसे अच्छे बल्लेबाज साबित हुए टॉम लाथम भारतीय बल्लेबाज विराट कोहली के मुरीद हो गए हैं. कीवी टीम के ओपनर लाथम ने कहा है कि उन्हें विराट कोहली से सीखने की जरूरत है.

लाथम ने कहा है कि उन्हें विराट से यह सीखने की जरूरत है कि विराट कैसे अपनी पारियों को आगे बढ़ाते हैं और उन्हें बड़े स्कोर में तब्दील करते हैं.

लाथम ने कहा है, 'अगर आपको जीतना है तो बड़े शतक बनाने होते हैं. विराट कोहली को देखिए. वह भारत के लिए जिस तरह से मैच फिनिश करते हैं. मुझे उम्मीद है कि मैं उनकी तरह मैच फिनिश कर सकूंगा.'

लाथम ने पिछले तीनों वनडे में शानदार खेल दिखाया है, बस वह अपनी पारी को आगे बढ़ा पाने में नाकाम रहे हैं. उन्होंने पहले वनडे में 79 नाबाद, दूसरे वनडे में 46 और तीसरे वनडे में 61 रन बनाए थे.

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