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सासूजी का परहेज

धर्मपत्नी का खुश होना जायज था. कहावत भी है- ‘मायके से कुत्ता भी अगर आता है तो प्रिय लगता है.’ लेकिन यहां तो हमारी सासूजी आ रही  कभी-कभी सोचता हूं राजधानी में रहना भी सिरदर्द से कम नहीं होता है. अधिकतर रिश्तेदार नेताओं से काम निकलवाने यहां आते रहते हैं. अब सब से रिश्तेदारी या दोस्ती तो है नहीं, लेकिन मना कर के संबंध थोड़े ही खराब करेंगे. मेहमान आए तो उन की देखरेख, नाश्ता, भोजन का इंतजाम करने में हालत पतली हो जाती है. पत्नी मेरे मायके से आए मेहमानों पर मुंह फुला लेती हैं.

उन के मायके वालों पर मेरा बजट बैठ जाता है. किंतु किस से शिकायत करें? और कब तक रोना रोएं? मेरी बहुत ही मोटी सासूजी के आने की खुशी पत्नी के चेहरे पर ऐसी खिल रही थी मानो बरसात के बाद इंद्रधनुष खिला हो. मुसीबत कभी कह कर तो आती नहीं है और हुआ भी ऐसा ही. हमारी सासूजी गांवकसबे की हैं. सो, बाथरूम में जो पांव फिसला तो स्वयं को संभालने के लिए नल को पकड़ा. नल पाइप सहित हाथों में आ गया. कमरे में मेरा मतलब कमर में हलकी सी मोच आ गई. एकदो प्लास्टिक की बाल्टियां उलट गईं. पत्नीजी ने घबरा कर पूछा, ‘‘अम्मा, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं बिटिया, बाल्टी गिर गई थी.’’

‘‘इतनी जोर से आवाज आई थी?’’

‘‘बाल्टी के साथसाथ मैं भी थी,’’ दर्दभरी आवाज सासूजी की थी.

‘‘दरवाजा तोड़ते तो 5-7 हजार का नकद नुकसान होता, इसलिए पत्नीजी ने निवेदन किया तो सासूजी कराहते हुए बाहर आईं.

हमें भी धर्मपत्नी ने चीख कर बुला लिया था. हमारी सासूजी लंगड़ाती हुई बाहर आईं. वे परेशान कम, पत्नी अधिक परेशान ?थीं. सासूजी पलंग पर लेट गईं. पत्नी ने हम से कहा, ‘‘डाक्टर को यहीं बुला लें या अस्पताल ले चलें?’’

‘‘अस्पताल ले चलते हैं,’’ हम ने सरल विकल्प चुना. डाक्टर घर आ कर 500-1000 रुपए पीट लेता. हमारी राय से सासूजी सहमत नहीं थीं, फिर भी दिल रखने को तैयार हो गईं. हमारी धर्मपत्नी ने मेकअप किया और नई डिजाइन की साड़ी पहन कर आटो-रिक्शे में अपनी अम्मा को ले कर चढ़ गईं. पहला अस्पताल सरकारी था. हम आगे बढ़ने लगे तो सासूजी ने कराहते हुए कहा, ‘‘यहीं ले चलो, दर्द बहुत है.’’ हम वहीं उतर गए. अस्पताल बड़ा था. थोड़ी देर म ही काफी मरीज भी आने शुरू हो गए थे. केवल डाक्टर नहीं आए थे. सासूजी लोटपोट हो रही थीं. तब ही एक कमसिन सी लड़की गले में आला लटकाए अपने चैंबर में गई. हमारा क्रमांक 1 पर ही था. सो, हम सासूजी को ले कर अंदर गए. सासूजी को उस ने देखा और बीपी देख कर नाम पूछा.

‘‘सविता.’’

‘‘गुड,’’ डाक्टरनी ने कहा, ‘‘क्या तकलीफ है?’’

‘‘कमर में चोट लगी है और चक्कर आ रहे हैं.’’

‘‘ओह,’’ कह कर उस ने उन की कमर पर हाथ से टटोला फिर गंभीर स्वर में उन की बेटी से कहा, ‘‘देखिए, दुर्घटना से सुरक्षा बड़ी चीज है.’’

‘‘मतलब?’’ पत्नी ने प्रश्न किया.

‘‘मुझे शक है सिर में चोट है, कहीं कोई हैमरेज न हो, इसलिए सीटी स्कैन करवा लें तथा सोनोग्राफी व एक्सरे भी करवा लें. ब्लड, यूरिन स्टूल टैस्ट भी लिख रही हूं. सब फ्री में हो जाएगा. रिपोर्ट ले आएं फिर दवा देंगे.’’

‘‘थैंक्यू डाक्टर,’’ पत्नी ने कहा.

‘‘अरे, जैसी आप की मां वैसी हमारी मम्मी,’’ उस डाक्टरनी ने हंस कर कहा. हमारे दिल में एक मीठा व शरारती सा खयाल आया कि काश, हम बीमार होते तो वह पत्नी को क्या कहती? जैसे आप के पति वैसे हमारे पति. इस कल्पना से ही मन गदगद हो गया.

हम सासूजी को ढो कर इधर-उधर ले जाने के पहले एटीएम से रुपए निकलवा कर लाए. सीटी स्कैन, सोनोग्राफी और एक्सरे, खून सब की जांच करवाई. सीटी स्कैन, सोनोग्राफी, एक्सरे, खून की जांच फ्री थी. सब होते-होते दोपहर हो गई थी. सासूजी को भूख लग आई थी. खानेपीने में कभी कोई समझौता नहीं करने के परिणामस्वरूप ही वे थोड़ी ओवरवेट भी थीं.

उन्होंने नीबू, मसालेदार भेलपूरी, खाने की इच्छा जाहिर की और यदि नहीं मिले तो गरम पकौड़े, टमाटर की चटनी के साथ खाने की फरमाइश की. हम नौकरों की तरह बाजार में मारे-मारे घूमते हुए उन के लिए गोभी और आलू के गरमागरम पकौड़े ले आए जो वे हरीमिर्च और टमाटर की चटनी के साथ चटकारे लेले कर खाने लगीं. दर्द कहीं भी चेहरे पर प्रकट नहीं हो रहा था. खाखा कर उन्होंने एक जोरदार डकार ली और हमें आदेश दे कर कहा, ‘‘जाओ, हमारी रिपोर्ट ले आओ.’’

हम जा कर भीड़ में सासूजी की रिपोर्ट ले आए. तब तक वह कमसिन डाक्टर भी आ गई थी. उस ने रिपोर्ट देखी, फिर सासूजी को देखा और कहा, ‘‘सब ठीक है, थोड़ा परहेज करना होगा.’’

‘‘आप को स्टोन की शिकायत है, हाई बीपी भी है, शुगर भी है.’’

‘‘तो क्या खाना है?’’

‘‘आप को पत्तागोभी, पालक, दूध की बनी कोई भी वस्तु, मीठा, मिठाई, नमकीन, भजिए, पकौड़े, तीखी मिर्च वाली वस्तुएं नहीं खानी हैं,’’ डाक्टर ने पूरी लिस्ट थमा दी.

‘‘अरे, फिर मैं खाऊंगी क्या?’’

‘‘देखिए अम्माजी, आप दूध, पालक, पत्तागोभी, टमाटर खाएंगी तो पथरी की तकलीफ होगी. अधिक चटपटे मसालेदार खाने पर हाई ब्लडप्रैशर हो कर ब्रेन हैमरेज का अधिक खतरा है. खट्टी वस्तुएं खाएंगी तो अल्सर की परेशानी होगी. आप को डायबिटीज निकली है, मिठाई और मीठी वस्तुएं खाएंगी तो  कभी भी कुछ भी हो सकता है,’’ डाक्टरनी ने कहा.

‘‘मेरी कमर का दर्द?’’

‘‘देखिए, दर्द तो सैकंडरी चीज है, अभी तो महत्त्वपूर्ण है कि आप का बीपी कंट्रोल हो, शुगर कंट्रोल हो, स्टोन की तकलीफ न हो वरना ब्रेन हैमरेज होने का खतरा है.’’

ब्रेन हैमरेज की बात सुनते ही हमारी पत्नी वहीं साड़ी का पल्लू मुंह में दे कर रोने लगी. मन में आया कि उन्हें क्या समझाऊं? अरी बेगम, अम्मा जिंदा हैं, परहेज करेंगी तो ठीक हो जाएंगी. अभी दुनिया से थोड़ी ही गई हैं. लेकिन कौन दीवार से सिर फोड़े. हम ने ऊपरी मन से पत्नी को सांत्वना दी और कहा, ‘‘दर्द के इलाज से पहले अम्मा से परहेज करवा लेते हैं फिर आ कर बताते हैं.’’

‘‘वैरी गुड, मैं भी यही चाहती हूं,’’ डाक्टरनी ने कहा, ‘‘सौ बीमारियों का एक इलाज परहेज है. आप इन का परहेज करवाएं और 5 दिनों बाद लाएं. फिर मैं दवाएं लिख दूंगी. अम्माजी, आप चिंता मत करें, जल्दी ठीक हो जाएंगी.’’

हम ने मन ही मन विचार किया, ‘जल्दी ठीक हो जाएंगी या इतना परहेज कर के जल्दी ही मरखप जाएंगी.’ सासूजी को बीमारी और चोट का दुख उतना नहीं था जितना परहेज का था. हम ने फाइल को वहीं जमा किया और लौट आए. धर्मपत्नी भारी दुखी थीं. फ्रिज में चीज, पनीर, चिकन, अंडे, मक्खन जो रखा था उस का क्या होगा? हम अपनी खुशी बिलकुल जाहिर नहीं कर पाए थे. सासूजी का परहेज रात से ही प्रारंभ हो गया था. सादा भोजन, सादा जीवन, उबली सब्जी, थोड़ा सा करेले का सूप, नीम के पत्तों का सलाद, थोड़ी सी छाछ. फ्रिज में रखा सामान खराब न हो जाए, इसलिए मजबूरी में पत्नीजी ने हमें खिलाया. हम मन ही मन बहुत खुश थे कि ‘हे सासूजी, आप की चोट लगने पर मुझे ये सब खाने को मिला. काश, आप हमेशा ही चोटिल होती रहें.’

एक रात लगा कि घर में चोर घुस आए. हम ने हिम्मत की और जैसे ही ड्राइंगरूम की बत्ती जलाई तो देखा सासूजी फकाफक खा रही थीं. हमें देख कर शरमा गईं. तभी पत्नी भी आ गईं. पूरा सामान फ्रिज में से निकाल कर बैडरूम में रख दिया और फ्रिज में ताला लगा दिया. सासूजी की सूरत देखने लायक थी. 8-10 दिनों में सासूजी के कमरे यानी कमर में भी आराम हो गया था. पहले से वे स्वस्थ भी दिखाई देने लगी थीं. हमारी पत्नी ने कहा, ‘‘परहेज करवाते हुए 15 दिन हो गए हैं, अब दवाएं लिखवा लाते हैं.’’ हम क्या विरोध करते? हम फिर उसी सरकारी अस्पताल में गए. अस्पताल के कर्मचारी ने सासूजी से नाम पूछा, उन्होंने बताया, सविता. अपनी फाइल ले कर हम डाक्टरनी के पास गए. वह बिलकुल खाली बैठी थी. हमें आया देख खुश हो कर कह उठी, ‘‘और अम्माजी कैसी हैं?’’

‘‘ठीक हूं.’’ कह कर उन्होंने फाइल उन की टेबल पर रखी. डाक्टरनी ने फाइल देखी, रिपोर्ट देखी, ब्लड रिपोर्ट देखी, फिर अम्माजी को ध्यान से देखा.

सासूजी ने कहा, ‘‘मैं पूरे परहेज से रह रही हूं. लेकिन ऐसी जिंदगी से तो मौत भली, जहां सब खानापीना बंद करना पड़े.’’ डाक्टरनी ने फिर उन के चेहरे को देखा और फाइल देख कर कहा, ‘‘मेरी पर्ची कहां है?’’ हम ने अपने पर्स में से निकाल कर दी. डाक्टरनी ने पर्ची देखी, फिर फाइल देखी और पूछा, ‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘सविता.’’

‘‘अरे, यह क्या हो गया?’’

‘‘क्या हो गया?’’ मैं ने आश्चर्य से प्रश्न किया.

‘‘बाई मिस्टेक, आप की सास की फाइल की जगह पिछली बार आप किसी सुनीता की फाइल ले आए थे. उन की फाइल में जो रिपोर्ट देखी थी उसी का परहेज मैं ने बताया था. ओह, सो सौरी, मिस्टर? ‘‘कोई बात नहीं. इस बहाने इन का वजन कम हो गया. ये शेप में आ गईं. थैंक्यू,’’ मैं ने कहा. ‘‘लेकिन डाक्टरजी, मैं तो अब सब खा सकती हूं न?’’

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं, आप एकदम भलीचंगी हैं, कोई बीमारी नहीं है,’’ डाक्टरनी ने चहक कर कहा.

उस के यह कहने पर सासूजी खुशी से होहो कर के हंस पड़ीं. दर्द तो रिपोर्ट सुन कर ही गायब हो गया था. हम माथा पकड़े हुए थे कि अब जितने दिनों तक ये रहेंगी रिकौर्डतोड़ बदपरहेजी करेंगी और गैस की बीमारी से हमें परेशान करेंगी. सब खुश थे लेकिन हमें एक चिंता खाए जा रही थी-यह रिपोर्ट जिस सुनीता की थी, जो बीमार थी, अस्पताल की एक गलती से बिना परहेज किए कहीं दुनिया से कूच न कर गई हों. हम किस से अपना दर्द कहते? सासूजी तो पूरे 10 दिनों के खाने का मैन्यू बनाए, पुरानी फिल्म का गीत गुनगुनाते आटोरिकशे में चढ़ गई थीं.

तीन कानून : नरेंद्र मोदी के तीन नश्तर

1 जुलाई 2024 से भारतीय दंड संहिता का नाम भारतीय न्याय संहिता के साथ साथ तीन ऐसे कानून लागू हो रहे हैं जो नरेंद्र मोदी सरकार की ऐसी बड़ी गलतियां है जिसका खमियाजा आने वाले समय में भारत के जन-जन को उठाना पड़ेगा.

जैसा कि हम जानते हैं नरेंद्र मोदी के विगत कार्यकाल (2019-2024) में आनन फानन में अनेक कानूनों को संसद में पास कर दिया गया जिस पर संसद में कोई चर्चा नहीं कराई गई उनमें तीन ऐसे कानून है जो सीधे-सीधे आम जनमानस से जुड़े हुए हैं जो 1 जुलाई 2024 से देश में लागू हो गए हैं.मगर इन कानूनों की त्रासदी यह है कि लोगों का गिरेबान पुलिस के हाथ में आ गया है. आने वाले समय में नैसर्गिक न्याय की जगह “पुलिस राज” कायम हो जाएगा और सत्ता के इशारे पर राजनीतिक विरोधियों को जेलों में डाल दिया जाएगा. अर्थात जो काम अंग्रेजों ने नहीं किया था वह काम नरेंद्र मोदी की सरकार ने बिना किसी विरोध, पिछली गली से कर दिया है.

जहां तक विपक्षी पार्टी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का सवाल है, संसद में तो कोई कमाल नहीं दिखा पाए, अब जब लोकसभा चुनाव 24 के बाद इंडिया गठबंधन मजबूत होकर के सामने आ गया है तो भी 1 जुलाई से पहले इसे रोकने के लिए जो कदम उठाए जाने थे नहीं उठाए गए. इस आलेख में हम बताने का प्रयास करेंगे कि किस तरह इन तीन कानून की मार से आम जनमानस त्राहि-त्राहि कर उठेगा. इन कानून की मंशा यह है कि वर्दी धारी अपनी जगह राज करें और हम अपनी जगह अर्थात दिल्ली में राज करते रहे.

तीन कानून और वाह वाह वाह

जो तीन नए कानून बनाए गए हैं, देश भर में उसके समर्थन के लिए सरकार के अघोषित निर्देश पर गोष्ठियों का दौर चल रहा है, इसमें बताया जा रहा है कि इन कानूनों से लाभ ही लाभ है. वरिष्ठ अधिवक्ता विजेंद्र सोनी से हमारे संवाददाता ने बात की तो उन्होंने दो टूक कहा- तीन नए कानून हमारे लोकतंत्र को पुलिस राज की तरफ धकेल देगा!

आगामी 1 जुलाई से विगत संसद में जल्दी बाजी में बिना बहस के पारित किए गए तीन कानून जो भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता ,एवं साक्ष्य अधिनियम के जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ,भारतीय न्याय दंड प्रक्रिया संहिता ,और साक्ष्य अधिनियम पारित किया गया वह लागू हो गए हैं, सवाल है – नए कानून की आवश्यकता क्यों थी?? जबकि संसद को कानून में संशोधन करने की संवैधानिक अधिकार प्राप्त है और लगातार दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड संहिता और साक्ष्य अधिनियम में संशोधन होते रहे हैं. सिविल प्रक्रिया संहिता में देश के बहुचर्चित वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी जब कानून मंत्री थे तब व्यापक संशोधन कर दिए गए थे.

मगर, नरेंद्र मोदी सरकार ने आनन-फानन में तीन नए कानून बिना सिलेक्शन कमिटी को भेजें बिना राज्य सरकारों से चर्चा किये संसद में बिना बहस, और विपक्षी सांसदों की अनुपस्थिति में इस कानून को पास कर दिया. मंशा यह थी कि नरेंद्र मोदी सरकार किसी भी किस्म का प्रतिरोध को बर्दाश्त नहीं करती वह जांच एजेंसियों को ज्यादा से ज्यादा अधिकार देकर के हमारे देश में जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत नागरिक अधिकार प्राप्त है जिसमें आंदोलन, प्रतिरोध और सत्ता के खिलाफ संघर्ष शामिल है उस पर अंकुश लगाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता के नए प्रावधानों के तहत पुलिसिया राज कायम में सफल हो गई है.

अधिवक्ता विजेंद्र सोनी बताते हैं – पूर्व में दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत पुलिस हिरासत में किसी आरोपी को रखने के लिए 15 दिन की रिमांड स्टेज हो सकती थी जिसे बढ़ाकर 60 से 90 दिन कर दिया गया है. यह सिर्फ जनता के बीच में डर का वातावरण बना रहे इसके लिए पुलिस को अधिकार दिए जा रहे हैं इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस ग्राह्य करने संबंधी प्रावधान साक्ष्यअधिनियम में है.जबकि अभी तक इंफ्रास्ट्रक्चर इस तरीके से क्रिएट नहीं हुआ है कि तमाम इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस की फोरेंसिक जांच लैब में किया जा सके ना तो लैब की संख्या बढ़ी है और ना ही उसमें कार्यरत तकनीकी ज्ञान रखने वाले अधिकारी और कर्मचारी . यह सिर्फ अपने राजनीतिक एजेंडा को पूरा करने के लिए आनन-फानन में बनाए गए तीनों कानून देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था को कुचलने का काम करेंगे.

इसके लिए एक उदाहरण काफी है कि – पूर्व के दंड प्रक्रिया संहिता में पुलिस के समक्ष आरोपी के द्वारा किसी भी किस्म की स्वीकृति न्यायालय में मान्य नहीं है लेकिन वर्तमान व्यवस्था में पुलिस के सामने आरोपी की स्वीकारोक्ति से अगर कोई अन्य तथ्य स्थापित होते हैं तो वह स्वीकारोक्ति न्यायालय में मान्य होगी. जैसे आरोपी रामलाल पुलिस के समक्ष यह स्वीकार करता है कि हां उसने दस हजार रूपये लिए थे और उसके घर से दस हजार रुपए पुलिस बरामद कर लेती है तो यह न्यायालय में स्वीकारोक्ति की श्रेणी में आएगा और सीधे-सीधे सजा हो जाएगी. इन प्रक्रियाओं से नागरिकों के संवैधानिक अधिकार और पुलिस अभिरक्षा में जोर जबरदस्ती के साथ स्वीकारोक्ति के लिए विवश किया जाना शामिल है जो पूर्णतया मानव अधिकारों के विरुद्ध है.

 

इस कानून में दंड संहिता की 511 धाराओं की जगह 358 धाराएं दंड प्रक्रिया संहिता की 484 धाराओं को बढ़ाकर 521 धाराएं और साक्ष्य अधिनियम के 167 धाराओं को बढ़ाकर 170 धाराएं रखी गई अगर पूर्ववर्ती कानून में कुछ खामियां थी तो उसे संशोधित किया जा सकता था कुछ नई धाराएं जोड़ी जा सकती थी लेकिन पूरे कानून को उसके मूल स्वरूप को बदलकर एक नई किस्म का नाम देकर के सिर्फ अपने राजनीतिक मकसद को पूरा किया गया है जो अलोकतांत्रिक है. दरअसल यह सच है कि यह “तीनों कानून” नरेंद्र मोदी की बहुत बड़ी भूल है और अव्यावहारिक, अप्रासंगिक और गैर जरूरी हैं.

कुंआरी देह की भूख

राम स्नेही और जसोदा की बेटी मीना को अकसर पागलपन के दौरे पड़ते थे. वह गोरीचिट्टी और खूबसूरत थी. मातापिता को सयानी हो चली मीना की शादी की चिंता सता रही थी. शादी की उम्र आने से पहले उस की बीमारी का इलाज कराना बेहद जरूरी था. राम स्नेही का खातापीता परिवार था. उन की अच्छीखासी खेतीबारी थी. उन्होंने गांवशहर के सभी डाक्टरों और वैद्यों के नुसखे आजमाए, पर कोई इलाज कारगर साबित नहीं हुआ. मीना को पागलपन के दौरे थमे नहीं. दौरा पड़ने पर उस की आवाज अजीब सी भारी हो जाती थी. वह ऊटपटांग बकती थी. चीजों को इधरउधर फेंकती थी. कुछ देर बाद दौरा थम जाता था और मीना शांत हो जाती थी और उसे नींद आ जाती थी. नींद खुलने पर उस का बरताव ठीक हो जाता था, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. उसे कुछ याद नहीं रहता था.

सरकारी अस्पताल का कंपाउंडर छेदीलाल राम स्नेही के घर आया था. राम स्नेही ने पिछले साल सरकारी अस्पताल के तमाम चक्कर लगाए थे. अस्पताल में डाक्टर हफ्ते में केवल 3 दिन आते थे. डाक्टर की लिखी परची के मुताबिक छेदीलाल दवा बना कर देता था. छेदीलाल लालची था. वह मनमानी करता था. मरीजों से पैसे ऐंठता था. पैसे नहीं देने पर वह सही दवा नहीं देता था. वह मीना की बीमारी से वाकिफ था. उसे मालूम था कि मीना की हालत में कोई सुधार नहीं हो पाया है. राम स्नेही ने डाक्टरी इलाज में पानी की तरह रुपया बहाया था, लेकिन निराशा ही हाथ लगी थी. छेदीलाल को इस बात की भी खबर थी.

‘‘मीना को तांत्रिक को दिखाने की जरूरत है. यह सब डाक्टर के बूते के बाहर है,’’ छेदीलाल ने जसोदा को सलाह दी.

‘‘झाड़फूंक जरूरी है. मैं कब से जिद कर रही हूं, इन को भरोसा ही नहीं है,’’ जसोदा ने हामी भरी.

‘‘मैं ने एक तांत्रिक के बारे में काफी सुना है. उन्होंने काफी नाम कमाया है. वे उज्जैन शहर से ताल्लुक रखते हैं. गांवशहर घूमते रहते हैं. अब उन्होंने यहां पहाड़ी के पुराने मंदिर में धूनी रमाई है,’’ ऐसा कहते हुए छेदीलाल ने एक छपीछपाई परची जसोदा को थमाई. उस समय राम स्नेही अपने खेतों की सैर पर निकले थे. जब वे घर लौटे, तो जसोदा ने उन को छेदीलाल की दी हुई परची थमाई और मीना को तांत्रिक के पास ले जाने की जिद पर अड़ गईं. दरअसल, जब मीना को दौरे पड़ते थे, तब जसोदा को ही झेलना पड़ता था. वे मीना के साथ ही सोती थीं. चिंता से देर रात तक उन्हें नींद नहीं आती थी. वे बेचारी करवटें बदलती रहती थीं. जसोदा की जिद के सामने राम स्नेही को झुकना पड़ा. जसोदा और मीना को साथ ले कर वे पहाड़ी के एक पुराने मंदिर में पहुंचे. मंदिर के साथ 3 कमरे थे. वहां बरसों से पूजापाठ बंद था. तांत्रिक के एक चेले, जो तांत्रिक का सहयोगी और सैके्रटरी था, ने उन का स्वागत किया.

तांत्रिक के सैक्रेटरी ने अपनी देह पर सफेद भभूति मल रखी थी और चेहरे पर गहरा लाल रंग पोत रखा था. सैके्रटरी ने फीस के तौर पर एक हजार रुपए वसूले और तांत्रिक से मिलने की इजाजत दे दी. तांत्रिक ने भी अपनी देह पर भभूति मल रखी थी. चेहरे पर काला रंग पोत रखा था. दाएंबाएं दोनों तरफ नरमुंड और हड्डियां बिखेर रखी थीं. वह हवन कुंड में लगातार कुछ डाल रहा था और मन ही मन कुछ बुदबुदा भी रहा था.

‘‘जल्दी बता, क्या तकलीफ है?’’ तांत्रिक ने सवाल किया.

‘‘बेटी को अकसर मिरगी के दौरे पड़ते हैं. इलाज से कोई फायदा नहीं हुआ,’’ जसोदा ने बताया.

‘‘शैतान दवा से पीछा नहीं छोड़ता. अतृप्त आत्मा का देह में बसेरा है. सब उसी के इशारे पर होता है,’’ कह कर तांत्रिक ने मीना को सामने बिठाया. हाथ में हड्डी ले कर उस के चेहरे पर घुमाई और जोरजोर से मंत्र बोले.

‘‘शैतान से कैसे नजात मिलेगी बाबा?’’ पूछते हुए जसोदा ने हाथ जोड़ लिए.

‘‘अतृप्त आत्मा है. उसे लालच देना होगा. बच्ची की देह से निकाल कर उसे दूसरी देह में डालना होगा,’’ तांत्रिक ने बताया.

‘‘हमें क्या करना होगा?’’ इस बार राम स्नेही ने पूछा.

‘‘अनुष्ठान का खर्च उठाना पड़ेगा… दूसरी कुंआरी देह का जुगाड़ करना होगा… आत्मा दूसरी देह में ही जाएगी,’’ तांत्रिक ने बताया और दोबारा पूरी तरह से तैयार हो कर आने को कहा. राम स्नेही सुलझे विचारों के थे. उन्होंने अपनी ओर से मना कर दिया. वैसे, वे खर्च उठाने को तो तैयार थे, लेकिन दूसरी देह यानी दूसरे की बेटी लाने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं थे. उन की मीना की बीमारी किसी दूसरे की बेटी को लगे, वे ऐसा नहीं चाहते थे.

लेकिन जसोदा जिद पर अड़ी थीं. अपनी बेटी के लिए वे हर तरह का जोखिम उठाने को तैयार थीं. राम स्नेही ने यह बात सोच कर जल्दी ही कुछ करने की बात कही. एक रात को राम स्नेही और जसोदा अपनी बेटी मीना को साथ लिए बैलगाड़ी में सवार हो कर पहाड़ी मंदिर की ओर निकल पड़े. गाड़ी में उन के साथ एक कुंआरी लड़की और थी. बैलगाड़ी में टप्पर लगा था, जिस से सवारियों की जानकारी नहीं हो सकती थी. दोनों लड़कियों को चादर से लपेट कर बिठाया गया था. तांत्रिक के सैक्रेटरी ने देह परिवर्तन अनुष्ठान के खर्च के तौर पर 10 हजार रुपए की मांग की. राम स्नेही तैयार हो कर आए थे. उन्होंने रुपए जमा करने में कोई आनाकानी नहीं की.

‘‘अनुष्ठान देर रात को शुरू होगा और यह 3 रातों तक चलेगा…’’ सैक्रेटरी ने बताया और अनुष्ठान पूरा होने के बाद आने को कहा. राम स्नेही और जसोदा अपने घर वापस लौट आए. जसोदा को उम्मीद थी कि तांत्रिक के अनुष्ठान से मीना ठीक हो जाएगी. दोनों लड़कियों को एक कमरे में बिछे बिस्तरों पर बिठाया गया. अनुष्ठान से पहले उन्हें आराम करने को कहा गया. तांत्रिक ने लड़कियों के सेवन के लिए नशीला प्रसाद और पेय भिजवाया. नशीले पेय के असर में दोनों लड़कियों को अपने देह की सुध नहीं रही. वे अपने बिस्तरों पर बेसुध लेट गईं. तांत्रिक और उस के सैक्रेटरी ने देर तक दारूगांजे का सेवन किया. नशे में धुत्त वे दोनों लड़कियों के कमरे में घुस आए. अनुष्ठान के नाम पर उन का लड़कियों के साथ गंदा खेल खेलने का इरादा था. उन को कुंआरी देह की भूख थी. वे ललचाई आंखों से बेसुध लेटी कच्ची उम्र की लड़कियों को घूर रहे थे. थोड़ी ही देर में वे उन की देह पर टूट पड़े.

मीना के साथ आई दूसरी लड़की झटके से उठी. उस ने तांत्रिक के सैक्रेटरी को जोरदार घूंसा जमाया और जोरजोर से चिल्लाना शुरू किया. मीना ने भी तांत्रिक को झटक कर जमीन पर गिरा दिया. नशे में धुत्त तांत्रिकों को निबटने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. मौके पर पुलिस के कई जवान भी आ गए. उन्होंने उन दोनों को हथकड़ी पहना दी. राम स्नेही को इस तरह के फरेब का पहले से ही डर था. उन्होंने थाने जा कर पूरी रिपोर्ट दी थी. थानेदार ने ही दूसरी देह का इंतजाम किया था. दूसरी लड़की सुनैना थाने में काम करने वाली एक महिला पुलिस की बेटी थी. उस ने जूडोकराटे की ट्रेनिंग ली हुई थी. वह इस मुहिम से जुड़ने के लिए फौरन तैयार हो गई थी.

सुनैना को नशीली चीज व पेय से बचने की हिदायत दी गई थी. उसे हमेशा सतर्क रहने और तांत्रिकों को भरमाने के लिए जरूरी स्वांग भरने की भी सलाह दी गई थी. हथियारबंद जवानों को पहाड़ी मंदिर के आसपास तैनात रहने के लिए भेजा गया था. जवानों ने वरदी नहीं पहनी थी. जसोदा को इस मुहिम की कोई खबर नहीं थी. सरकारी अस्पताल के कंपाउंडर छेदीलाल ने यह सारी साजिश रची थी. उस ने अपने ससुराल के गांव के 2 नशेड़ी आवारा दोस्तों चंदू लाल और मनोहर को नशे के लिए पैसे का जुगाड़ करने और जवानी के मजे लेने का आसान तरीका समझाया था. थाने में पिटाई हुई, तो चंदू लाल और मनोहर ने सच उगल दिया. छेदीलाल को नशीली दवाओं व दिमागी मरीजों को दी जाने वाली दवाओं की अधकचरी जानकारी थी. उसे अस्पताल से गिरफ्तार कर लिया गया. तीनों को इस प्रपंच के लिए जेल की हवा खानी पड़ी.

छेदीलाल को नौकरी से बरखास्त कर दिया गया. राम स्नेही को उन के रुपए वापस मिल गए. थानेदार ने जयपुर के एक नामी मनोचिकित्सक का पता बताया. उन  की सलाह के मुताबिक राम स्नेही ने मीना का इलाज जयपुर में कराने का इरादा किया. जसोदा ने हामी भरी. इस से मीना के ठीक होने की उम्मीद अब जाग गई थी.

और सीता जीत गई

बीच में एक छोटी सी रात है और कल सुबह 10-11 बजे तक राकेश जमानत पर छूट कर आ जाएगा. झोंपड़ी में उस की पत्नी कविता लेटी हुई थी. पास में दोनों छोटी बेटियां बेसुध सो रही थीं. पूरे 22 महीने बाद राकेश जेल से छूट कर जमानत पर आने वाला है. जितनी बार भी कविता राकेश से जेल में मिलने गई, पुलिस वालों ने हमेशा उस से पचास सौ रुपए की रिश्वत ली. वह राकेश के लिए बीड़ी, माचिस और कभीकभार नमकीन का पैकेट ले कर जाती, तो उसे देने के लिए पुलिस उस से अलग से रुपए वसूल करती.

ये 22 महीने कविता ने बड़ी परेशानियों के साथ गुजारे. पारधियों की जिंदगी से यह सब जुड़ा होता है. वे अपराध करें चाहे न करें, पुलिस अपने नाम की खातिर कभी भी किसी को चोर, कभी डकैत बना देती है. यह कोई आज की बात थोड़े ही है. कविता तो बचपन से देखती आ रही है. आंखें रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर खुली थीं, जहां उस के बापू कहीं से खानेपीने का इंतजाम कर के ला देते थे. अम्मां 3 पत्थर रख कर चूल्हा बना कर रोटियां बना देती थीं. कई बार तो रात के 2 बजे बापू अपनी पोटली को बांध कर अम्मां के साथ वह स्टेशन छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चले जाते थे. कविता जब थोड़ी बड़ी हुई, तो उसे मालूम पड़ा कि बापू चोरी कर के उस जगह से भाग लेते थे और क्यों न करते चोरी? एक तो कोई नौकरी नहीं, ऊपर से कोई मजदूरी पर नहीं रखता, कोई भरोसा नहीं करता. जमीन नहीं, फिर कैसे पेट पालें? जेब काटेंगे और चोरी करेंगे और क्या…

लेकिन आखिर कब तक ऐसे ही सबकुछ करते रहने से जिंदगी चलेगी? अम्मां नाराज होती थीं, लेकिन कहीं कोई उपाय दिखलाई नहीं देता, तो वे भी बेबस हो जाती थीं. शादीब्याह में वे महाराष्ट्र में जाते थे. वहां के पारधियों की जिंदगी देखते तो उन्हें लगता कि वे कितने बड़े नरक में जी रहे हैं. कविता ने बापू से कहा भी था, ‘बापू, हम यहां औरंगाबाद में क्यों नहीं रह सकते?’

‘इसलिए नहीं रह सकते कि हमारे रिश्तेदार यहां कम वहां ज्यादा हैं और यहां की आबोहवा हमें रास नहीं आती,’ बापू ने कहा था. लेकिन, शादी के 4-5 दिनों में खूब गोश्त खाने को मिलता था. बड़ी खुशबू वाली साबुन की टिकिया मिलती थी. कविता उसे 4-5 बार लगा कर खूब नहाती थी, फिर खुशबू का तेल भी मुफ्त में मिलता था. जिंदगी के ये 4-5 दिन बहुत अच्छे से कटते थे, फिर रेलवे स्टेशन पर भटकने को आ जाते थे. इधर जंगल महकमे वालों ने पारधी जाति के फायदे के लिए काम शुरू किया था, वही बापू से जानकारी ले रहे थे, जिस के चलते शहर के पास एक छोटे से गांव टूराखापा में उस जाति के 3-4 परिवारों को बसा दिया गया था. इसी के साथ एक स्कूल भी खोल दिया गया था. उन से कहा जाता था कि उन्हें शिकार नहीं करना है. वैसे भी शिकार कहां करते थे? कभी शादीब्याह में या मेहमानों के आने पर हिरन फंसा कर काट लेते थे, लेकिन वह भी कानून से अपराध हो गया था.

यहां कविता ने 5वीं जमात तक की पढ़ाई की थी. आगे की पढ़ाई के लिए उसे शहर जाना था. बापू ने मना कर दिया था, ‘कौन तुझे लेने जाएगा?’

अम्मां ने कहा था, ‘औरत की इज्जत कच्ची मिट्टी के घड़े जैसी होती है. एक बार अगर टूट जाए, तो जुड़ती नहीं है.’ कविता को नहीं मालूम था कि यह मिट्टी का घड़ा उस के शरीर में कहां है, इसलिए 5 साल तक पढ़ कर घर पर ही बैठ गई थी. बापू दिल्ली या इंदौर से प्लास्टिक के फूल ले आते, अम्मां गुलदस्ता बनातीं और हम बेचने जाते थे. 10-20 रुपए की बिक्री हो जाती थी, लेकिन मौका देख कर बापू कुछ न कुछ उठा ही लाते थे. अम्मां निगरानी करती रहती थीं. कविता भी कभीकभी मदद कर देती थी. एक बार वे शहर में थे, तब कहीं कोई बाबाजी का कार्यक्रम चल रहा था. उस जगह रामायण की कहानी पर चर्चा हो रही थी. कविता को यह कहानी सुनना बहुत पसंद था, लेकिन जब सीताजी की कोई बात चल रही थी कि उन्हें उन के घर वाले रामजी ने घर से निकाल दिया, तो वहां बाबाजी यह बतातेबताते रोने लगे थे. उस के भी आंसू आ गए थे, लेकिन अम्मां ने चुटकी काटी कि उठ जा, जो इशारा था कि यहां भी काम हो गया है.

बापू ने बैठे-बैठे 2 पर्स निकाल लिए थे. वहां अब ज्यादा समय तक ठहर नहीं सकते थे, लेकिन कविता के कानों में अभी भी वही बाबाजी की कथा गूंज रही थी. उस की इच्छा हुई कि वह कल भी जाएगी. धंधा भी हो जाएगा और आगे की कहानी भी मालूम हो जाएगी. बस, इसी तरह से जिंदगी चल रही थी. वह धीरेधीरे बड़ी हो रही थी. कानों में शादी की बातें सुनाई देने लगी थीं. शादी होती है, फिर बच्चे होते हैं. सबकुछ बहुत ही रोमांचक था, सुनना और सोचना. उन का छोटा सा झोंपड़ा ही था, जिस पर बापू ने मोमजामा की पन्नी डाल रखी थी. एक ही कमरे में ही वे तीनों सोते थे. एक रात कविता जोरों से चीख कर उठ बैठी. बापू ने दीपक जलाया, देखा कि एक भूरे रंग का बिच्छू था, जो डंक मार कर गया था. पूरे जिस्म में जलन हो रही थी. बापू ने जल्दी से कहीं के पत्ते ला कर उस जगह लगाए, लेकिन जलन खूब हो रही थी. कविता लगातार चिल्ला रही थी. पूरे 2-3 घंटे बाद ठंडक मिली थी. जिंदगी में ऐसे कई हादसे होते हैं, जो केवल उसी इनसान को सहने होते हैं, कोई और मदद नहीं करता. सिर्फ हमदर्दी से दर्द, परेशानी कम नहीं होती है.

आखिर पास के ही एक टोले में कविता की शादी कर दी गई थी. लड़का काला, मोटा सा था, जो उस से ज्यादा अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन था तो वह उस का घरवाला ही. फिर वह बापू के पास के टोले का था, इसलिए 5-6 दिनों में अम्मां के साथ मुलाकात हो जाती थी. यहां कविता के पति की आधा एकड़ जमीन में खेती थी. 8-10 मुरगियां थीं. लग रहा था कि जिंदगी कुछ अच्छी है, लेकिन कभीकभी राकेश भी 4-5 दिनों के लिए गायब हो जाता था. बाद में पता चला कि राकेश भी डकैती या बड़ी चोरी करने जाता है. हिसाब होने पर हजारों रुपए उसे मिलते थे. कविता भी कुछ रुपए चुरा कर अम्मां से मिलने जाती, तो उन्हें दे देती थी.

लेकिन कविता की जिंदगी वैसे ही फटेहाल थी. कोई शौक, घूमनाफिरना कुछ नहीं. बस, देवी मां की पूजा के समय रिश्तेदार आ जाते थे, उन से भेंटमुलाकात हो जाती थी. शादी के 4 सालों में ही वह 2 लड़कियों की मां बन गई थी. इस बीच कभी भी रात को पुलिस वाले टोले में आ जाते और चारों ओर से घेर कर उन के डेरों की तलाशी लेते थे. कभीकभी उन के कंबल या कोई जेवर ही ले कर वे चले जाते थे. अकसर पुलिस के आने की खबर उन्हें पहले ही मिल जाती थी, जिस के चलते रात में सब डेरे से बाहर ही सोते थे. 2-4 दिनों के लिए रिश्तेदारियों में चले जाते थे. मामला ठंडा होने पर चले आते थे. इन्हें भी यह सबकुछ करना ठीक नहीं लगता था, लेकिन करें तो क्या करें? आधा एकड़ जमीन, वह भी सरकारी थी और जोकुछ लगाते, उस पर कभी सूखे की मार और कभी ओलों की बौछार हो जाती थी. सरकारी मदद भी नहीं मिलती थी, क्योंकि जमीन का कोई पट्टा भी उन के पास नहीं था. जोकुछ भी थोड़ाबहुत कमाते, वह जमीन खा जाती थी, लेकिन वे सब को यही बताते थे कि जमीन से जो उग रहा है, उसी से जिंदगी चल रही है. किसी को यह थोड़े ही कहते कि चोरी करते हैं.

पिछले 7-8 महीनों से बापू ने महुए की कच्ची दारू भी उतारना चालू कर दी थी. अम्मां उसे शहर में 1-2 जगह पहुंचा कर आ जाती थीं, जिस के चलते खर्चापानी निकल जाता था. कभीकभी राकेश रात को सोते समय कहता भी था कि यह सब उसे पसंद नहीं है, लेकिन करें तो क्या करें? सरकार कर्जा भी नहीं देती, जिस से भैंस खरीद कर दूध बेच सकें. एक रात वे सब सोए हुए थे कि किसी ने दरवाजे पर जोर से लात मारी. नींद खुल गई, तो देखा कि 2-3 पुलिस वाले थे. एक ने राकेश की छाती पर बंदूक रख दी, ‘अबे उठ, चल थाने.’

‘लेकिन, मैं ने किया क्या है साहब?’ राकेश बोला.

‘रायसेन में बड़े जज साहब के यहां डकैती डाली है और यहां घरवाली के साथ मौज कर रहा है,’ एक पुलिस वाले ने डांटते हुए कहा.

‘सच साहब, मुझे नहीं मालूम,’ घबराई आवाज में राकेश ने कहा. कविता भी कपड़े ठीक कर के रोने लगी थी.

‘ज्यादा होशियारी मत दिखा, उठ जल्दी से,’ और कह कर बंदूक की नाल उस की छाती में घुसा दी थी. कविता रो रही थी, ‘छोड़ दो साहब, छोड़ दो.’

पुलिस के एक जवान ने कविता के बाल खींच कर राकेश से अलग किया और एक लात जमा दी. चोट बहुत अंदर तक लगी. 3-4 टोले के और लोगों को भी पुलिस पकड़ कर ले आई और सब को हथकड़ी लगा कर लातघूंसे मारते हुए ले गई. कविता की दोनों बेटियां उठ गई थीं. वे जोरों से रो रही थीं. वह उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकती थी. पूरी रात जाग कर काटी और सुबह होने पर उन्हें ले कर वह सोहागपुर थाने में पहुंची. टोले से जो लोग पकड़ कर लाए गए थे, उन सब की बहुत पिटाई की गई थी. सौ रुपए देने पर मिलने दिया. राकेश ने रोरो कर कहा, ‘सच में उस डकैती की मुझे कोई जानकारी नहीं है.’ लेकिन भरोसा कौन करता? पुलिस को तो बड़े साहब को खुश करना था और यहां के थाने से रायसेन जिले में भेज दिया गया. अब कविता अकेली थी और 2-3 साल की बेटियां. वह क्या करती? कुछ रुपए रखे थे, उन्हें ले कर वह टोले की दूसरी औरतों के साथ रायसेन गई. वहां वकील किया और थाने में गई. वहां बताया गया कि यहां किसी को पकड़ कर नहीं लाए हैं.

वकील ने कहा, ‘मारपीट कर लेने के बाद वे जब कोर्ट में पेश करेंगे, तब गिरफ्तारी दिखाएंगे. जब तक वे थाने के बाहर कहीं रखेंगे. रात को ला कर मारपीट करने के बाद जांच पूरी करेंगे.’ हजार रुपए बरबाद कर के कविता लौट आई थी. बापू के पास गई, तो वे केवल हौसला ही देते रहे और क्या कर सकते थे. आते समय बापू ने सौ रुपए दे दिए थे. कविता जब लौट रही थी, तब फिर एक बाबाजी का प्रवचन चल रहा था. प्रसंग वही सीताजी का था. जब सीताजी को लेने राम वनवास गए थे और अपमानित हुई सीता जमीन में समा गई थीं. सबकुछ इतने मार्मिक तरीके से बता रहे थे कि उस की आंखों से भी आंसू निकल आए, तो क्या सीताजी ने आत्महत्या कर ली थी? शायद उस के दिमाग ने ऐसा ही सोचा था. जब कविता अपने टोले पर आई, तो सीताजी की बात ही दिमाग में घूम रही थी. कैसे वनवास काटा, जंगल में रहीं, रावण के यहां रहीं और धोबी के कहने से रामजी ने अपने से अलग कर के जंगल भेज दिया गर्भवती सीता को. कैसे रहे होंगे रामजी? जैसे कि वह बिना घरवाले के अकेले रह रही है. न जाने वह कब जेल से छूटेगा और उन की जिंदगी ठीक से चल पाएगी.

इस बीच टोले में जो कागज के फूल और दिल्ली से लाए खिलौने थोक में लाते, उन्हें कविता घरघर सिर पर रख कर बेचने जाती थी. जो कुछ बचता, उस से घर का खर्च चला रही थी. अम्मां-बापू कभीकभी 2-3 सौ रुपए दे देते थे. जैसे ही कुछ रुपए इकट्ठा होते, वह रायसेन चली जाती. पुलिस ने राकेश को कोर्ट में पेश कर दिया था और कोर्ट ने जेल भेज दिया था. जमानत करवाने के लिए वकील 5 हजार रुपए मांग रहा था. कविता घर का खर्च चलाती या 5 हजार रुपए देती? राकेश का बड़ा भाई, मेरी सास भी थीं. वे घर पर आतीं और कविता को सलाह देती रहती थीं. उस ने नाराजगी भरे शब्दों में कह दिया, ‘क्यों फोकट की सलाह देती हो? कभी रुपए भी दे दिया करो. देख नहीं रही हो कि मैं कैसे बेटियों को पाल रही हूं,’ कहतेकहते वह रो पड़ी थी. जेठ ने एक हजार रुपए दिए थे. उन्हें ले कर कविता रायसेन गई, जो वकील ने रख लिए और कहा कि वह जमानत की अर्जी लगा देगा. उस वकील का न जाने कितना बड़ा पेट था. कविता जो भी देती, वह रख लेता था, लेकिन जमानत किसी की नहीं हो पाई थी. बस, जेल जा कर वह राकेश से मिल कर आ जाती थी. वैसे, राकेश की हालत पहले से अच्छी हो गई थी. बेफिक्री थी और समय से रोटियां मिल जाती थीं, लेकिन पंछी पिंजरे में कहां खुश रहता है. वह भी तो आजाद घूमने वाली कौम थी. कविता रुपए जोड़ती और वकील को भेज देती थी. आखिर पूरे 22 महीने बाद वकील ने कहा, ‘जमानतदार ले आओ, साहब ने जमानत के और्डर कर दिए हैं.’

फिर एक परेशानी. जमानतदार को खोजा, उसे रुपए दिए और जमानत करवाई, तो शाम हो गई. जेलर ने छोड़ने से मना कर दिया. कविता सास के भरोसे बेटियां घर पर छोड़ आई थी, इसलिए लौट गई और राकेश से कहा कि वह आ जाए. सौ रुपए भी दे दिए थे. रात कितनी लंबी है, सुबह नहीं हुई. सीताजी ने क्यों आत्महत्या की? वे क्यों जमीन में समा गईं? सीताजी की याद आई और फिर कविता न जाने क्याक्या सोचने लगी. सुबह देर से नींद खुली. उठ कर जल्दी से तैयार हुई. बच्चियों को भी बता दिया था कि उन का बाप आने वाला है. राकेश की पसंद का खाना पकाने के लिए मैं जब बाजार गई, तो बाबाजी का भाषण चल रहा था. कानों में वही पुरानी कहानी सुनाई दे रही थी. उस ने कुछ पकवान लिए और टोले पर लौट आई.

दोपहर तक खाना तैयार कर लिया और कानों में आवाज आई, ‘राकेश आ गया.’ कविता दौड़ते हुए राकेश से मिलने पहुंची. दोनों बेटियों को उस ने गोद में उठा लिया और अपने घर आने के बजाय वह उस के भाई और अम्मां के घर की ओर मुड़ गया. कविता तो हैरान सी खड़ी रह गई, आखिर इसे हो क्या गया है? पूरे 22 महीने बाद आया और घर छोड़ कर अपनी अम्मां के पास चला गया.

कविता भी वहां चली गई, तो उस की सास ने कुछ नाराजगी से कहा, ‘‘तू कैसे आई? तेरा मरद तेरी परीक्षा लेगा. ऐसा वह कह रहा है, सास ने कहा, तो कविता को लगा कि पूरी धरती, आसमान घूम रहा है. उस ने अपने पति राकेश पर नजर डाली, तो उस ने कहा, ‘‘तू पवित्तर है न, तो क्या सोच रही है?’’

‘‘तू ऐसा क्यों बोल रहा है…’’ कविता ने कहा. उस ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा, ‘‘पूरे 22 महीने बाद मैं आया हूं, तू बराबर रुपए ले कर वकील को, पुलिस को देती रही, इतना रुपया लाई कहां से?’’ कविता के दिल ने चाहा कि एक पत्थर उठा कर उस के मुंह पर मार दे. कैसे भूखेप्यासे रह कर बच्चियों को जिंदा रखा, खर्चा दिया और यह उस से परीक्षा लेने की बात कह रहा है. उस समाज में परीक्षा के लिए नहाधो कर आधा किलो की लोहे की कुल्हाड़ी को लाल गरम कर के पीपल के सात पत्तों पर रख कर 11 कदम चलना होता है. अगर हाथ में छाले आ गए, तो समझो कि औरत ने गलत काम किया था, उस का दंड भुगतना होगा और अगर कुछ नहीं हुआ, तो वह पवित्तर है. उस का घरवाला उसे भोग सकता है और बच्चे पैदा कर सकता है.

राकेश के सवाल पर कि वह इतना रुपया कहां से लाई, उसे सबकुछ बताया. अम्मांबापू ने दिया, उधार लिया, खिलौने बेचे, लेकिन वह तो सुन कर भी टस से मस नहीं हुआ.

‘‘तू जब गलत नहीं है, तो तुझे क्या परेशानी है? इस के बाप ने मेरी 5 बार परीक्षा ली थी. जब यह पेट में था, तब भी,’’ सास ने कहा. कविता उदास मन लिए अपने झोंपड़े में आ गई. खाना पड़ा रह गया. भूख बिलकुल मर गई.

दोपहर उतरते-उतरते कविता ने खबर भिजवा दी कि वह परीक्षा देने को तैयार है. शाम को नहाधो कर पिप्पली देवी की पूजा हुई. टोले वाले इकट्ठा हो गए. कुल्हाड़ी को उपलों में गरम किया जाने लगा. शाम हो रही थी. आसमान नारंगी हो रहा था. राकेश अपनी अम्मां के साथ बैठा था. मुखियाजी आ गए और औरतें भी जमा हो गईं. हाथ पर पीपल के पत्ते को कच्चे सूत के साथ बांधा और संड़ासी से पकड़ कर कुल्हाड़ी को उठा कर कविता के हाथों पर रख दिया. पीपल के नरम पत्ते चर्रचर्र कर उठे. औरतों ने देवी गीत गाने शुरू कर दिए और वह गिन कर 11 कदम चली और एक सूखे घास के ढेर पर उस कुल्हाड़ी को फेंक दिया. एकदम आग लग गई. मुखियाजी ने कच्चे सूत को पत्तों से हटाया और दोनों हथेलियों को देखा. वे एकदम सामान्य थीं. हलकी सी जलन भर पड़ रही थी. मुखियाजी ने घोषणा कर दी कि यह पवित्र है. औरतों ने मंगलगीत गाए और राकेश कविता के साथ झोंपड़े में चला आया. रात हो चुकी थी. कविता ने बिछौना बिछाया और तकिया लगाया, तो उसे न जाने क्यों ऐसा लगा कि बरसों से जो मन में सवाल उमड़ रहा था कि सीताजी जमीन में क्यों समा गईं, उस का जवाब मिल गया हो. सीताजी ने जमीन में समाने को केवल इसलिए चुना था कि वे अपने घरवाले राम का आत्मग्लानि से भरा चेहरा नहीं देखना चाहती होंगी. राकेश जमीन पर बिछाए बिछौने पर लेट गया. पास में दीया जल रहा था. कविता जानती थी कि 22 महीनों के बाद आया मर्द घरवाली से क्या चाहता होगा?

राकेश पास आया और फूंक मार कर दीपक बुझाने लगा. अचानक ही कविता ने कहा, ‘‘दीया मत बुझाओ.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मैं तेरा चेहरा देखना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों? क्या मैं बहुत अच्छा लग रहा हूं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘तुझे जो बिरादरी में नीचा देखना पड़ा, तू जो हार गया, वह चेहरा देखना चाहती हूं. मैं सीताजी नहीं हूं, लेकिन तेरा घमंड से टूटा चेहरा देखने की बड़ी इच्छा है.’’ उस की बात सुन कर राकेश भौंचक्का रह गया. कविता ने खुद को संभाला और दोबारा कहा, ‘‘शुक्र मना कि मैं ने बिरादरी में तेरी परीक्षा लेने की बात नहीं कही, लेकिन सुन ले कि अब तू कल परीक्षा देगा, तब मैं तेरे साथ सोऊंगी, समझा,’’ उस ने बहुत ही गुस्से में कहा.

‘‘क्या बक रही है?’’

‘‘सच कह रही हूं. नए जमाने में सब बदल गया है. पूरे 22 महीनों तक मैं ईमानदारी से परेशान हुई थी, इंतजार किया था.’’ राकेश फटी आंखों से उसे देख रहा था, क्योंकि उन की बिरादरी में मर्द की भी परीक्षा लेने का नियम था और वह अपने पति का मलिन, घबराया, पीड़ा से भरा चेहरा देख कर खुश थी, बहुत खुश. आज शायद सीता जीत गई थी.

नई शुरुआत

दिशा रसोई में फटाफट काम कर रही थी. मनीष और क्रिया अपने-अपने कमरों में सो रहे थे. यहीं से उस के दिन की शुरुआत होती थी. 5 बजे उठ कर नाश्ता और दोपहर का खाना तैयार कर, मनीष और 13 वर्षीया क्रिया को जगाती थी. उन्हें जगा कर फिर अपनी सुबह की चाय के साथ 2 बिस्कुट खाती थी. उस ने घड़ी पर निगाह डाली तो 6:30 बज गए थे. वह जल्दी से जा कर क्रिया को जगाने लगी.

‘‘क्रिया उठो, 6:30 बज गए,’’ बोल कर वह वापस अपने काम में लग गई.

‘‘मम्मा, आज हम तृष्णा दीदी के मेहंदी फंक्शन में जाएंगे.’’

‘‘ओफ्फ, क्रिया, तुम्हें स्कूल के लिए तैयार होना है. देर हो गई तो स्कूल में एंट्री बंद हो जाएगी और फिर तुम्हें घर पर अकेले रहना पड़ेगा,’’ गुस्से से दिशा ने कहा, ‘‘जाओ, जल्दी से स्कूल के लिए तैयार हो जाओ, मेरा सिर न खाओ.’’ क्रिया पैर पटकती हुई बाथरूम में अपनी ड्रैस ले कर नहाने चली गई. दिशा को सब काम खत्म कर के 8 बजे तक स्कूल पहुंचना होता था, इसलिए उस का पारा रोज सुबह चढ़ा ही रहता था. 7 बज गए तो वह मनीष को जगाने गई. ‘‘कभी तो अलार्म लगा लिया करो. कितनी दिक्कत होती है मुझे, कभी इस कमरे में भागो तो कभी उस कमरे में. और एक तुम हो, जरा भी मदद नहीं करते,’’ गुस्से से भरी दिशा जल्दीजल्दी सफाई करने लगी. साथ ही बड़बड़ाती जा रही थी, ‘जिंदगी एक मशीन बन कर रह गई है. काम हैं कि खत्म ही नहीं होते और उस पर यह नौकरी. काश, मनीष अपनी जिम्मेदारी समझते तो ऐसी परेशानी न होती.’

मनीष ने क्रिया और दिशा को स्कूटर पर बैठाया और स्कूल की ओर रवाना हो गया.

दिशा की झुंझलाहट कम होने का नाम नहीं ले रही थी. जल्दी-जल्दी काम निबटाते ही वह 15 मिनट देर से स्कूल पहुंची. शुक्र है प्रिंसिपल की नजर उस पर नहीं पड़ी, वरना डांट खानी पड़ती. अपनी क्लास में जा कर जैसे ही उस ने बच्चों को पढ़ाने के लिए ब्लैकबोर्ड पर तारीख डाली 04/04/16. उस का सिर घूम गया.

4 तारीख वो कैसे भूल गई, आज तो रिया का जन्मदिन है. है या था? सिर में दर्द शुरू हो गया उस के. जैसे-तैसे क्लास पूरी कर वह स्टाफरूम में पहुंची. कुरसी पर बैठते ही उस का सिरदर्द तेज हो गया और वह आंखें बंद कर के कुरसी पर टेक लगा कर बैठ गई. रिया का गुस्से वाला चेहरा उस की आंखों के आगे आ गया. कितना आक्रोश था उस की आंखों में. वे आंखें आज भी दिशा को रातरात भर जगा देती हैं और एक ही सवाल करती हैं – ‘मेरा क्या कुसूर था?’ कुसूर तो किसी का भी नहीं था. पर होनी को कोई टाल नहीं सकता. कितनी मन्नतोंमुरादों से दिशा और मनीष ने रिया को पाया था. किस को पता था कि वह हमारे साथ सिर्फ 16 साल तक ही रहेगी. उस के होने के 4 साल बाद क्रिया हो गई. तब से जाने क्यों रिया के स्वभाव में बदलाव आने लगा. शायद वह दिशा के प्यार पर सिर्फ अपना अधिकार समझती थी, जो क्रिया के आने से बंट गया था.

जैसे-जैसे रिया बड़ी होती रही, दिशा और मनीष से दूर होती रही. मनीष को इन सब से कुछ फर्क नहीं पड़ता था. उसे तो शराब और सिगरेट की चिंता होती थी बस, उतना भर कमा लिया. बीवीबच्चे जाएं भाड़ में. खाना बेशक न मिले पर शराब जरूर चाहिए उसे. उस के लिए वह दिशा पर हाथ उठाने से भी गुरेज नहीं करता था. अपनी बेबसी पर दिशा की आंखें भर आईं. अगर क्रिया की चिंता न होती तो कब का मनीष को तलाक दे चुकी होती. दिशा का सिर अब दर्द से फटने लगा तो वह स्कूल से छुट्टी ले कर घर आ गई. दवा खा कर वह अपने कमरे में जा कर लेट गई. आंखें बंद करते ही फिर वही रिया की गुस्से से लाल आंखें उसे घूरने लगीं. डर कर उस ने आंखें खोल लीं.

सामने दीवार पर रिया की तसवीर लगी थी जिस पर हार चढ़ा था. कितनी मासूम, कितनी भोली लग रही है. फिर कहां से उस में इतना गुस्सा भर गया था. शायद दिशा और मनीष से ही कहीं गलती हो गई. वे अपनी बड़ी होती रिया पर ध्यान नहीं दे पाए. शायद उसी दिन एक ठोस समझदारी वाला कदम उठाना चाहिए था जिस दिन पहली बार उस के स्कूल से शिकायत आई थी. तब वह छठी क्लास में थी. ‘मैम आप की बेटी रिया का ध्यान पढ़ाई में नहीं है. जाने क्या अपनेआप में बड़बड़ाती रहती है. किसी बच्चे ने अगर गलती से भी उसे छू लिया तो एकदम मारने पर उतारू हो जाती है. जितना मरजी इसे समझा लो, न कुछ समझती है और न ही होमवर्क कर के आती है. यह देखिए इस का पेपर जिस में इस को 50 में से सिर्फ 4 नंबर मिले हैं.’ रिया पर बहुत गुस्सा आया था दिशा को जब रिया की मैडम ने उसे इतना लैक्चर सुना दिया था.

‘आप इस पर ध्यान दें, हो सके तो किसी चाइल्ड काउंसलर से मिलें और कुछ समय इस के साथ बिताएं. इस के मन की बातें जानने की कोशिश करें.’

रिया की मैडम की बात सुन कर दिशा ने अपनी व्यस्त दिनचर्या पर नजर डाली. ‘कहां टाइम है मेरे पास? मरने तक की तो फुरसत नहीं है. काश, मनीष की नौकरी लग जाए या फिर वह शराब पीना छोड़ दे तो हम दोनों मिल कर बेटी पर ध्यान दे सकते हैं,’ दिशा ने सोचा लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.

फिर तो बस आएदिन रिया की शिकायतें स्कूल से आती रहती थीं. दिशा को न फुरसत मिली उस से बात करने की, न उस की सखी बनने की. एक दिन तो हद ही हो गई जब मनीष उसे हाथ से घसीट कर घर लाया था.

‘क्या हुआ? इसे क्यों घसीट रहे हो. अब यह बड़ी हो गई है.’ दिशा ने उस का हाथ मनीष के हाथ से छुड़ाते हुए कहा.

मनीष ने दिशा को धक्का दे कर पीछे कर दिया और तड़ातड़ 3-4 चाटें रिया को लगा दिए.

दिशा एकदम सकते में आ गई. उसे समझ नहीं आया कि रिया को संभाले या मनीष को रोके.

मनीष की आंखें आग उगल रही थीं.

‘जानती हो कहां से ले कर आया हूं इसे. मुझे तो बताते हुए भी शर्म आती है.’

दिशा हैरानी से मनीष की तरफ सवालिया नजरों से देखती रही.

‘पुलिस स्टेशन से.’

‘क्या?’ दिशा का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘इंसपैक्टर प्रवीर शिंदे ने मुझे बताया कि उन्होंने इसे एक लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा था.’ दिशा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और वह रिया को खा जाने वाली नजरों से देखने लगी. रिया की आंखों से अब भी अंगारे बरस रहे थे और फिर उस ने गुस्से से जोर से परदों को खींचा और अपने कमरे में चली गई. मनीष अपने कमरे में जा कर अपनी शराब की बोतल खोल कर पीने लग गया. दिशा रिया के कमरे की तरफ बढ़ी तो देखा कि दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने बहुत आवाज लगाई पर रिया ने दरवाजा नहीं खोला. एक घंटे के बाद जब मनीष पर शराब का सुरूर चढ़ा तो वह बहकते कदमों से लड़खड़ाते हुए रिया के कमरे के दरवाजे के बाहर जा कर बोला, ‘रिया, मेरे बच्चे, बाहर आ जा. मुझे माफ कर दे. आगे से तुझ पर हाथ नहीं उठाऊंगा.’ दिशा जानती थी कि यह शराब का असर है, वरना प्यार से बात करना तो दूर, वह रिया को प्यारभरी नजरों से देखता भी नहीं था.

रिया ने दरवाजा खोला और पापा के गले लग कर बोली, ‘पापा, आई एम सौरी.’

दोनों बापबेटी का ड्रामा चालू था. न वह मानने वाली थी और न मनीष. दिशा कुछ समझाना चाहती तो रिया और मनीष उसे चुप करा देते. हार कर उस ने भी कुछ कहना छोड़ दिया. इस चुप्पी का असर यह हुआ कि दिशा से उस की दूरियां बढ़ती रहीं और रिया के कदम बहकने लगे.

दिशा आज अपनेआप को कोस रही थी कि अगर मैं ने उस चुप्पी को न स्वीकारा होता तो रिया आज हमारे साथ होती. बातबात पर रिया पर हाथ उठाना तो रोज की बात हो गई थी. आज उसे महसूस हो रहा था कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन के साथ दोस्तों सा व्यवहार करना चाहिए. कुछ पल उन के साथ बिताने चाहिए, उन के पसंद का काम करना चाहिए ताकि हम उन का विश्वास जीत सकें और वे हम से अपने दिल की बात कह सकें. पर दिशा यह सब नहीं कर पाई और अपनी सुंदर बेटी को आज के ही दिन पिछले साल खो बैठी.

आज उसे 4 अप्रैल, 2015 बहुत याद आ रहा था और उस दिन की एकएक घटना चलचित्र की भांति उस की आंखों के बंद परदों से हो कर गुजरने लगी…

कितनी उत्साहित थी रिया अपने सोलहवें जन्मदिन को ले कर. जिद कर के 4 हजार रुपए की पिंक कलर की वह ‘वन पीस’ ड्रैस उस ने खरीदी थी. कितनी मुश्किल से वह ड्रैस हम उसे दिलवा पाए थे. वह तो अनशन पर बैठी थी.

स्कूल से छुट्टी कर ली थी उस ने जन्मदिन मनाने के लिए. सुबहसवेरे तैयार होने लगी. 4 घंटे लगाए उस दिन उस ने तैयार होने में. बालों की प्रैसिंग करवाई, फिर कभी ऐसे, कभी वैसे बाल बनाते हुए उस ने दोपहर कर दी. जब दिशा उस दिन स्कूल से लौटी तो एक पल निहारती रह गई रिया को.

‘हैप्पी बर्थडे, बेटा.’

दिशा ने कहा तो रिया ने जवाब दिया, ‘रहने दो मम्मी, अगर आप को मेरे जन्मदिन की खुशी होती तो आज आप स्कूल से छुट्टी ले लेतीं और मुझे कभी मना नहीं करतीं इस ड्रैस के लिए.’ दिशा का मन बुझ गया पर वह रिया का मूड नहीं खराब करना चाहती थी. दिशा यादों में डूबी थी कि तभी क्रिया की आवाज सुन कर उस की तंद्रा भंग हुई.

‘‘मम्मा, मम्मा आप अभी तक सोए पड़े हो?’’ क्रिया ने घर में घुसते ही सवाल किया. दिशा का चेहरा पूरा आंसुओं से भीग गया था. वह अनमने मन से उठी और रसोई में जा कर क्रिया के लिए खाना गरम करने लगी. क्रिया ने फिर सुबह वाला प्रश्न दोहराया, ‘‘मम्मी, क्या हम तृष्णा दीदी के मेहंदी फंक्शन में जाएंगे?’’

दिशा ने कोई जवाब नहीं दिया. क्रिया बारबार अपना प्रश्न दोहराने लगी तो उस ने गुस्से में कहा, ‘‘नहीं, हम किसी फंक्शन में नहीं जाएंगे.’’ आज रिया की बरसी थी तो ऐसे में वह कैसे किसी फंक्शन में जाने की कल्पना कर सकती थी. क्रिया को बहुत गुस्सा आया. शायद वह इस फंक्शन में जाने के लिए अपना मन बना चुकी थी. उसे ऐसे फंक्शन पर जाना अच्छा लगता था और मां का मना करना उसे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था.

‘‘मम्मा, आप बहुत गंदे हो, आई हेट यू, मैं कभी आप से बात नहीं करूंगी.’’ गुस्से से बोलती हुई क्रिया अपने कमरे में चली गई और उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

दरवाजे की तेज आवाज से मनीष का नशा टूटा तो वह कमरे से चिल्लाया, ‘‘यह क्या हो रहा है इस घर में? कोई मुझे बताएगा?’’

दिशा बेजान सी कमरे की कुरसी पर धम्म से गिर गई. उस की नजरें कभी मनीष के कमरे के दरवाजे पर जातीं, कभी क्रिया के बंद दरवाजे पर तो कभी रिया की तसवीर पर. अचानक उसे सब घूमता हुआ नजर आया, ठीक वैसे ही जब पिछले साल 4 तारीख को फोन आया था, ‘देखिए, मैं डाक्टर दत्ता बोल रहा हूं सिटी हौस्पिटल से. आप जल्द से जल्द यहां आ जाएं. एक लड़की जख्मी हालत में यहां आई है. उस के मोबाइल से ‘होम’ वाले नंबर पर मैं ने कौल किया है. शायद, यह आप के घर की ही कोई बच्ची है.’

यह सुनते ही दिल जोरजोर से धड़कने लगा, वह रिया नहीं है. अगर वह रिया नहीं हैं तो वह कहां हैं? अचानक उसे याद आया, वह तो 6 बजे अपने दोस्तों के साथ जन्मदिन मनाने गई थी. असमंजस की स्थिति में वह और मनीष हौस्पिटल पहुंचे तो डाक्टर उन्हें इमरजैंसी वार्ड में ले गया और यह जानने के बाद कि वे उस लड़की के मातापिता हैं, बोला, ‘आई एम सौरी, इस की डैथ तो औन द स्पौट ही हो गई थी.’ अचानक से आसमान फट पड़ा था दिशा पर. वह पागलों की तरह चीखने लगी और जोरजोर से रोने लगी. ‘इस के साथ एक लड़का भी था वह दूसरे कमरे में है. आप चाहें तो उस से मिल सकते हैं.’

मनीष और दिशा भाग कर दूसरे कमरे में गए. और गुस्से से बोले, ‘बोल, क्यों मारा तू ने हमारी बेटी को, उस ने तेरा क्या बिगाड़ा था?’

16 साल का हितेश घबरा गया और रोतेरोते बोला, ‘आंटी, आंटी, मैं ने कुछ नहीं किया, वह तो मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी.’

‘फिर ये सब कैसे हुआ? बता, नहीं तो मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं,’ मनीष ने गुस्से में कहा. ‘अंकल, हम 4 लोग थे, रिया और हम 3 लड़के. मोटरसाइकिल पर बैठ कर हम पहले हुक्का बार गए…’

मनीष और दिशा की आंखें फटी की फटी रह गईं यह जान कर कि उन की बेटी अब हुक्का और शराब भी पीने लगी थी. फिर मैं ने रिया से कहा, ‘रिया काफी देर हो गई है. चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं. पर अंकल, वह नहीं मानी, बोली कि आज घर जाने का मन नहीं है. ‘मेरे बहुत समझाने पर बोली कि अच्छा, थोड़ी देर बाद घर छोड़ देना तब तक लौंग ड्राइव पर चलते हैं. तभी, अंकल आप का फोन आया था जब आप ने घर जल्दी आने को कहा था. पर वह तो जैसे आजाद होना चाहती थी. इसीलिए उस ने आगे बढ़ कर चलती मोटरसाइकिल से चाबी निकालने की कोशिश की और इस सब में मोटरसाइकिल का बैलेंस बिगड़ गया और वह पीछे की ओर पलट गई. वहीं, डिवाइडर पर लोहे का सरिया सीधा उस के सिर में लग गया और उस ने वहीं दम तोड़ दिया.’

दहशत में आए हितेश ने सारी कहानी रोतेरोते बयान कर दी. दिशा और मनीष सकते में आ गए और जानेअनजाने में हुई अपनी गलतियों पर पछताने लगे. काश, हम समय रहते समझ पाते तो आज रिया हमारे बीच होती. तभी अचानक दिशा वर्तमान में लौट आई और उसे क्रिया का ध्यान आया जो अब भी बंद दरवाजे के अंदर बैठी थी. दिशा ने कुछ सोचा और उठ कर क्रिया का दरवाजा खटखटाने लगी, ‘‘क्रिया बेटा, दरवाजा खोलो.’’

अंदर से कोई आवाज नहीं आई.

‘‘अच्छा बेटा, आई एम सौरी. अच्छा ऐसा करना, वह जो पिंक वाली ड्रैस है, तुम आज रात मेहंदी फंक्शन में वही पहन लेना. वह तुम पर बहुत जंचती है.’’ दिशा का इतना बोलना था कि क्रिया झट से बाहर आ कर दिशा के गले लग गई और बोली, ‘‘सच मम्मा, हम वहां बहुत मस्ती करेंगे, यह खाएंगे, वह खाएंगे. आई लव यू, मम्मा.’’ बच्चों की खुशियां भी उन की तरह मासूम होती हैं, छोटी पर अपने आप में पूर्ण. शायद यह बात मुझे बहुत पहले समझ आ गई होती तो रिया कभी हम से जुदा नहीं होती. दिशा ने सोचा, वह अपनी एक बेटी खो चुकी थी पर दूसरी अभी इतनी दूर नहीं गई थी जो उस की आवाज पर लौट न पाती. दिशा ने कस कर क्रिया को गले से लगा लिया इस निश्चय के साथ कि वह इतिहास को नहीं दोहराएगी.

अगले दिन उस ने अपने स्कूल में इस्तीफा भेज दिया इस निश्चय के साथ कि वह अब अपनी डोलती जीवननैया की पतवार बन कर मनीष और क्रिया को संभालेगी. सब से पहले वह अपनी सेहत पर ध्यान देगी और गुस्से को काबू करने के लिए एक्सरसाइज करेगी. घर बैठे ही ट्यूशन से आमदनी का जरिया चालू करेगी. काश, ऐसा ही कुछ रिया के रहते हो गया होता तो रिया आज उस के साथ होती. इस तरह अपनी गलतियों को सुधारने का निश्चय कर के दिशा अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर चुकी थी.

योगी को हटाने की कवायद तेज, 2027 में UP election के पहले चेंज !

लोकसभा चुनाव के बाद देश ने उपचुनाव में जनमत दे कर समझा दिया है कि इंडिया ब्लौक की जीत कोई तुक्का नहीं थी. चुनावी संदेश भाजपा में असंतोष को हवा दे दी है, जो धर्म की राजनीति पर सवालिया निशान खड़ा कर रही है.

देश के 7 राज्यों में 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने बता दिया कि भाजपा ने जिस धर्म के ऊपर राजनीति शुरू की थी वह अब उस से नहीं संभल रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या में भाजपा की हार ने पूरे चुनावी महौल को बदल दिया. भाजपा उस झटके से संभल नहीं पाई थी कि विधानसभा के उपचुनावों में बद्रीनाथ क्षेत्र में मिली हार ने भाजपा की कमर तोड़ दी. इन चुनावों का असर यह हुआ कि भाजपा में धर्म की राजनीति पर बगावत होने लगी है. धर्म के दबाव में जो बातें भाजपा के एससी और ओबीसी नेता कह नहीं पा रहे थे अब वह खुल कर बोलने लगे हैं.
‘सरिता’ ने अपने लेखों में हमेशा यह समझाने का प्रयास किया है कि धर्म की राजनीति समाज के लिए हमेशा नुकसानदायक रही है. यह समाज को बांटने का काम करती है. धर्म का नशा लंबे समय तक नहीं रहता है. यह बहुत जल्द उतर जाता है. एक ही चुनावी हार में भाजपा में यह नशा उतर रहा है. उत्तर प्रदेश में जहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लोकसभा चुनाव के पहले तक भाजपा के ब्रांड माने जाते थे उन को चुनौती देने का साहस भाजपा का कोई नेता नहीं कर सकता था. लोकसभा चुनाव में जैसे ही भाजपा उत्तर प्रदेश में नम्बर 2 की पार्टी बनी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विद्रोह हो गया है.
इस विद्रोह में पार्टी के एससी और ओबीसी नेता सब से आगे हैं. इन को हवा देने का काम सवर्ण नेता कर रहे हैं. जो धर्म की राजनीति से खुद को जोड़ नहीं पा रहे थे. ऐसे में अब यह साफ दिख रहा है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा उत्तर प्रदेश में बड़ा बदलाव कर के योगी आदित्यनाथ को हटा सकती है. इस पर फाइनल मोहर उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा के 10 उपचुनाव के बाद होगा. अगर इन उपचुनाव में भाजपा को सफलता मिलती दिखी तब लड़ाई धीमी होगी लेकिन अगर इन उपचुनाव में भी भाजपा को हार मिलती है तो योगी को हटाने की मुहिम तेज हो जाएगी.

7 राज्यों मे भाजपा की हार
7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा केवल 2 सीटें ही जीत सकी. लोकसभा चुनाव के बाद लग रहा था कि भाजपा उस से सबक ले कर उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी. जब उप चुनाव के परिणाम आए तो यह साफ हो गया कि भाजपा का डिब्बा गुल है. दूसरी तरफ राहुल गांधी और इंडिया ब्लौक पर मतदाताओं का भरोसा कायम है. 13 में 10 सीटें जीत कर इंडिया ब्लौक ने 2 सीट जीतने वाली भाजपा को बड़ा झटका दिया है. भाजपा को सब से बड़ा झटका लगा है बंगाल में, जहां 4 सीटों पर उसे टीएमसी के हाथों मात खानी पड़ी. वह भी तब जब बंगाल में इन 4 सीटों में से 3 सीटों पर पिछले चुनाव में बीजेपी का कब्जा था.

भाजपा की दूसरी बड़ी हार धर्म के राज्य उत्तराखंड की बदरीनाथ सीट पर मिली है. उत्तराखंड के बहुत सारे विकास के दावे धरे के धरे रह गए. हिमाचल में भी कांग्रेस ने भाजपा को हरा दिया. लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक दलों की ये सब से बड़ी परीक्षा थी. जिस में इंडिया ब्लौक ने एनडीए को 10-2 स्कोर से मात दे दी. उपचुनाव के नतीजों ने इंडिया ब्लौक को खुशी मनाने का बड़ा मौका दे दिया है. बंगाल में टीएमसी ने सभी चारों सीटें जीत कर जलवा बिखेरा है तो उत्तराखंड की दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में आई हैं. हिमाचल में भी 3 में से 2 सीटों पर कांग्रेस ने विजय पताका लहराई है तो पंजाब की इकलौती सीट आप की झोली में गिरी है. तमिलनाडु की एकमात्र सीट पर डीएमके ने कब्जा जमाया है.

अयोध्या के बाद बद्रीनाथ
उपचुनाव में इंडिया ब्लौक निखर कर सामने आया है. इस के परिणामों से लोकसभा चुनाव परिणामों पर मोहर लग गई है. जो लोग लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लौक की सफलता को तुक्का समझ रहे थे उन को उपचुनाव ने जबाव दे दिया है. अयोध्या के बाद बद्रीनाथ की हार ने भाजपा की धर्म की राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. कांग्रेस नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं, ‘बदरीनाथ में बीजेपी की हार ऊपर वाले का दंड है. भगवान राम की धरती अयोध्या में इंडिया ब्लौक की जीत बहुत महत्वपूर्ण है. अब इस पर बदरीनाथ की जीत ने भी मुहर लगा दी है.’
उत्तराखंड में मंगलौर और बद्रीनाथ सीट पर उपचुनाव हुआ था. इन सीटों पर पहले कांग्रेस और बसपा का कब्जा था. बद्रीनाथ सीट पर कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला ने करीब 5 हजार से अधिक वोटों से भाजपा के राजेंद्र भंडारी को मात दी. राजेंद्र भंडारी ही पहले यहां से विधायक थे लेकिन बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए थे. मंगलौर सीट जो बसपा विधायक सरबत करीम अंसारी के निधन के बाद खाली हुई थी, उस सीट पर पर कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन ने बाजी मारी और कड़े मुकाबले में उन्होंने बीजेपी के करतार सिंह भड़ाना को 400 से अधिक वोटों से हराया. काजी निजामुद्दीन इस सीट पर पहले भी 3 बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं.

भाजपा जिस तरह से धनबल और ईडी-सीबीआई के दबाव में काम करवा रही थी उस से लोगों में विद्रोह भी भावना भड़क रही थी. चुनाव में वह भाजपा को जवाब दे रही है. हिमांचल के देहरा में 25 वर्षों के बाद कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई है और नालागढ़ में भी कांग्रेस प्रत्याशी बड़े अंतर से जीते हैं. भाजपा केवल हिमाचल में हमीरपुर और मध्य प्रदेश में अमरवाड़ा सीट पर जीत का झंडा लहरा पाई. अब उत्तर प्रदेश में भी 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाला है और भाजपा के लिए बड़ी अग्निपरीक्षा है. भाजपा में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विद्रोह के दौर में पार्टी के सामने मुश्किलों का दौर है.
हिमाचल प्रदेश की 3 सीटों में से 2 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. देहरा सीट से सीएम सुक्खू की पत्नी 9,399 वोटों से चुनाव जीतीं तो वहीं नालागढ़ सीट से कांग्रेस के हरदीप सिंह बावा ने बीजेपी के के. एल. ठाकुर को करीब 9 हजार वोटों से हराया. हमीरपुर में बीजेपी के आशीष शर्मा ने कांग्रेस के पुष्पेंद्र वर्मा को कड़े मुकाबले में 1571 वोटों से हराया. पहले ये तीनों सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के पास थी.

छोटा चुनाव बड़े संदेश
7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों का चुनाव एक सर्वे जैसा था, जिस में पता चल गया कि पूरे देश में भाजपा के खिलाफ माहौल कायम है. भाजपा लोकसभा चुनाव की हार से कोई सबक नहीं ले पाई है. पश्चिम बंगाल में 4 विधानसभा सीटों पर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की. रायगंज, बागदा, राणाघाट और मानिकतला सीट पर टीएमसी उम्मीदवारों ने शानदार जीत हासिल की है. रायगंज सीट से टीएमसी प्रत्याशी कृष्णा कल्याणी ने बीजेपी उम्मीदवार मानस कुमार घोश को 49 हजार वोटों से ज्यादा के अंतर से शिकस्त दी. वहीं बागदा सीट पर टीएमसी की उम्मीदवार मधुपर्णा ठाकुर ने 33,455 वोटों से जीत हासिल की. इस के अलावा राणाघाट से टीएमसी के मुकुट मणि ने बीजेपी के मनोज कुमार बिस्वास को करीब 39 हजार वोटों से हराया. मानिकतला सीट पर टीएमसी की सुप्ती पांडे ने बीजेपी के कल्याण चैबे को 41,406 वोटों से हराया.
पंजाब में जालंधर पश्चिम सीट से आम आदमी पार्टी के मोहिंदर भगत ने बीजेपी के शीतल अंगुरल को करीब 37 हजार वोटों से हराया. पहले यह सीट आम आदमी पार्टी के पास ही थी और शीतल ही यहां से विधायक थे लेकिन बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए जिस के बाद यहां उपचुनाव हुआ. बिहार की रुपौली सीट पर बड़ा उलटफेर हुआ है यहां निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने जेडीयू और आरजेडी जैसे दलों को पीछे छोड़ते हुए जीत हासिल कर ली है. बीमा भारती के जेडीयू में शामिल होने की वजह से यहां सीट रिक्त हुई थी. बीमा भारती ने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था लेकिन वहां भी वह तीसरे नंबर पर रहीं.
तमिलनाडु की विकरावंडी सीट पर सत्ताधारी डीएमके ने जीत हासिल की है. डीएमके के अन्नियुर शिवा शिवाशनमुगम. ए ने पट्टाली मक्कल काची पार्टी के अन्बुमणि. सी को 50 हजार से अधिक वोटों से हराया. मध्य प्रदेश की अमरवाड़ा सीट पर भाजपा से कमलेश शाह 3,252 वोटों से जीत गए. पहले के विधानसभा चुनाव में अमरवाड़ा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, लेकिन कमलेश प्रताप बाद में बीजेपी में शामिल हो गए जिस के बाद यह सीट खाली हो गई.

अब यूपी की बारी
यूपी में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं. जब से लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल 33 सीटें ही मिली हैं पार्टी निराशा के दौर में है. इस के मुकाबले विपक्ष उत्साह में है. अब उत्तर प्रदेश में भी 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं. इन चुनावों से प्रदेश की राजनीति करवट लेगी. भाजपा बनाम विपक्ष की जगह अब यह लड़ाई भाजपा बनाम भाजपा हो गई है. भाजपा के अंदर ही विद्रोह के हालात है.
प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में जिस तरह से डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने सरकार और संगठन की मुद्दा उठाया उस के बाद से पर्दे के पीछे की लड़ाई खुल कर सामने आ गई है. भाजपा के विधायक रमेश मिश्रा, पूर्वमंत्री मोती सिंह, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और सुभाष निशाद जैसे नेताओं के बयान पार्टी के अंदर सबकुछ ठीक नहीं है इस की गवाही दे रहे हैं. राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि भाजपा में अभी यह असंतोष की शुरूआत है. उपचुनाव के परिणाम आने के बाद इस में और तेजी आएगी.

सफल हो रही कांग्रेस की रणनीति
लोकसभा चुनाव प्रचार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ओबीसी का जो मुद्दा उठाया वह जनता को समझ में आ गया. राहुल ने दूसरा मुद्दा रोजगार का उठाया वह युवाओं में लोकप्रिय हो गया है. अब युवाओं को समझ आ गया है कि उन के लिए मंदिर नहीं रोजगार जरूरी है. राहुल गांधी ने संविधान और आरक्षण खत्म करने की जो बात कही वह भी लोगों के दिल में घर कर गई है. राहुल गांधी द्वारा उठाए गए अग्निवीर जैसे मुद्दे अब लोगों को समझ आ रहे हैं. लोगों को समझ आ रहा है कि अब चुनाव में धर्म और मंदिर की राजनीति पर जनता से जुड़े मुद्दे भारी पड़ रहे हैं. केन्द्र की नई सरकार में कुछ बदलता नहीं दिख रहा है. नीट सहित बहुत परीक्षाओं में पेपर लीक की बात हुई. एनडीए सरकार ने लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी को बोलने नहीं दिया.
लगातार कई परीक्षाओं के कैंसल होने और कई परीक्षाओं के पेपर आउट होने से आम जनता का भरोसा टूट रहा है. नीट परीक्षा को ले कर आम लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार चाहती क्या है ? भ्रष्टाचार के मोर्चे पर सरकार असफल रही है. जब माहौल अपने पक्ष में नहीं होता तो विपक्ष को छोड़िए पार्टी के भीतर से भी असंतोष की आवाजें उठने लगती हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा के अंदर फैला अंसतोष बढ़ता ही जा रहा है.

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है उस से भाजपा की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है. अगर योगी हटते हैं तो यह यूपी में कल्याण सिंह पार्ट 2 हो जाएगा. एक तरह से देखें तो भाजपा के अंदर धर्म की राजनीति को ले कर बहस शुरू हो गई है. एससी और ओबीसी नेताओं को समझ आ गया है कि जब तक धर्म का राज खत्म नहीं होगा पार्टी में उन को महत्व नहीं मिलेगा. ऐसे मे वह अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं. पार्टी की चुनावी हार के बाद बने माहौल ने उन को बोलने का मौका दे दिया है. ऐसे में अब उत्तर प्रदेश के 10 उपचुनाव प्रदेश की नई दिशा देने वाले होंगे.

दूसरों की सफलता से आप भी बहुत कुछ सीख सकते हैं

संघर्ष में आदमी अकेला होता है और सफलता में दुनिया उस के साथ होती है. ये बात सच है जिसजिस पर ये जग हंसा है, उसी ने एक दिन इतिहास लिखा है. लेकिन जो लोग इतिहास रच चुके हैं क्यों न उन के अनुभवों से सीखते हुए आगे बढ़ें और हम भी उन से इतिहास रचने का जज्बा लें. जैसे कि भारतीय हौकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान मेजर ध्यान चंद ने कहा था कि जीवन में जीत और हार तो होती रहती है, लेकिन हार हमेशा निराशा नहीं देती बल्कि आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी करती है. अगर हम इसे अपने जीवन में उतार लें तो कभी निराश नहीं होंगे. और यही बात अभी हाल ही में वर्ल्ड कप 2024 जीतने वाली हमारी इंडियन टीम ने भी साबित करके दिखाई है.

उन के लिए समय बड़ा बलवान होता है

सफल लोग हमेशा अपना हर काम समय पर करते हैं और कल पर नहीं टालते. यही उन की सफलता की सब से बड़ी कुंजी होती है.

सेल्फ कौन्फिडेंस भी होता है

ऐसे लोगों को खुद पर पूरा विश्वास होता है. कई बार असफल होने पर भी वे निराश नहीं होते बल्कि इसे एक एक्सपीरियंस की तरह लेते हैं. अगली बार और भी ज्यादा जोश से तैयारी करते हैं और सफल होते हैं.

बोलने से ज्यादा सुनने की कला में होते हैं माहिर

कहते हैं न कि समझदारी इसी में है कि कुछ भी बोलने से पहले सामने वाले की सुन लेना चाहिए और फिर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए. सफल लोग यही करते हैं. वह अपनी अपनी नहीं कहते बल्कि सामने वाले की बात को सुन कर समझ कर ही किसी नतीजे पर पहुंचते हैं.

अपनों के लिए निकालते हैं समय

हम यहां बिजी थे वहां बिजी थे. ये सब तो बहाने हैं. अपनों के लिए टाइम मिल ही जाता है. जैसे की अभी हाल ही में सब ने देखा के वर्ल्ड कप 2024 में किस तरह विराट कोहली ने मैच जीतते ही अपने बिजी टाइम में से मैदान पर ही फोन निकाल कर अपनी बीवी और बेटी से बात की. सफल लोग ऐसा ही करते हैं वे अपनी सफलता में अपनी फैमिली को साथ ले कर चलते हैं तभी उन्हें मुश्किलों से उबरने में अपनी फैमिली का पूरा सपोर्ट भी मिलता है और यही बात उन की कामयाबी खूबसूरत बना देती है.

न्यू स्किल्स सीखते हैं

आज के समय में आ कर आप एक सफल व्यक्ति बनना चाहते हैं तो आप को अपनी स्किल सीखना बेहद ही जरूरी है. इसलिए आप को पहले ऐसी स्किल गेन करनी चाहिए जो आप को आसानी से पैसा कमा कर दे सके इसलिए आप पहले नौलेज लें फिर पैसा कमाने के बारे में सोचें.

दुनिया को बनाएं अपना विश्वविद्यालय

सीखना कभी बंद न करें. हर किसी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है, इसलिए हर दिन कुछ नया ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करें.

सफलता क्रमिक है

रातोंरात सफलता मिलना वाकई दुर्लभ है. ज़्यादातर लोगों को एक बेहतरीन कैरियर बनाने में सालों, यहां तक कि दशकों लग जाते हैं. इस का रहस्य हर दिन कड़ी मेहनत करना है, और याद रखें कि छोटीछोटी जीत भी आप के जीवन को काफी हद तक बेहतर बना सकती है. समय के साथ, आप खुद को बड़े से बड़े लक्ष्य हासिल करते हुए पाएंगे.

जो दूसरों से जलते नहीं

सफल लोग दूसरों को देख जलते नहीं बल्कि उन से सीखने की कोशिश करते हैं. सिर्फ उन की सफलता से ही नहीं बल्कि गलतियों से भी सीखते हैं.

रहते हैं कूल कूल

अपने गुस्से पर कंट्रोल कर के मन को शांत रखना भी एक कला है जिसे सीखना बहुत जरुरी होता है. इस वजह से हम विपरीत परिस्थितयों का भी आसानी से मुकाबला कर माइंड को कूल रख के एक सही फैसले पर पहुंच सकते हैं.

प्लानिंग करते हैं फिर आगे बढ़ते हैं

कहते है न कि अपने हर कदम क साथ आगे लेने वाले चार कदम के बारे में पहले ही सोचने वाले लोगों को सफलता जल्दी मिलती है. ये बात सही भी है इसलिए अपने फ्यूचर प्लान पर पहले से ही काम कर लें और बैकअप प्लान भी बनाएं ताकि आप को पता हो कि एक बार असफल होने पर वापसी का रास्ता कहां से हो कर गुजरेगा.

अपनी हैल्थ के लिए सजग होते हैं

अगर आप शरीर से और मन से फिट है तभी आप अपने रस्ते में आने वाली बाधाओं को पार कर के सफलता हासिल करेंगे. हर सफल व्यक्ति अपनी सेहत का पूरा धयान रखता है.

मेहनती होते हैं

मेहनत सफलता की सब से बड़ी कुंजी होती है और आलस दुश्मन. इसलिए सफल लोगों के पीछे कई साल की कड़ी मेहनत है जो उन्हें सफलता के दरवाजे तक ले कर जाती है इसलिए मेहनत करने में कोई कमी न छोड़ें.

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

भले ही आप की हार तय हो लेकिन कोशिश करने से हार भी कब जीत में बदल जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता.

शादी में भावनाओं की जगह पैसों ने ले ली है

कुछ लड़के-लड़कियां अकसर पैसों के लिए शादी करते हैं. उन्‍हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन का होने वाले जीवनसाथी से मेंटल लेवल मैच करता भी या नहीं, उन के परिवार कैसे है वे इस पर धयान नहीं देते. लड़की संस्‍कारी है या नहीं. इस से कोई लेनादेना नहीं होता. अब लड़के वालों को लड़की बड़े घर की चाहिए ताकि दहेज मिल सके और लड़की वालों को लड़का अमीर चाहिए ताकि लड़की को घर का कोई काम न करना पड़े. वे अपनीअपनी लाइफस्टाइल अपग्रेड करने के लिए एकदूसरे का साथ चाहते हैं क्योंकि यही उन की जरुरत है.

पैसा देख कर हो रही हैं शादियां

एक जमाना था, अभी हाल ही में 1990 के आसपास जब भावनाओं का जोर था लोग अपनी भावनाओं के कारण अमीरगरीब सब तरह की लड़कियां लेने लगे थे लेकिन अब सब कमर्शियल हो गया है. लोग यह चाहते हैं कि मुझे बिना कमाई करे पैसे मिल जाएं. लड़का भी यही चाहता है और लड़कियां भी यही चाहती हैं. लड़कियों को लगता है लड़का अमीर है प्यार करें न करें पैसे वाला तो है. अब रिश्ते पैसों में तोले जा रहे हैं. जिस के पास पैसा है बड़ी गाड़ी है तो लड़की टिक जाती है और जिस दिन उस लड़के के पास पैसे खतम हो जाते हैं वो लड़की छोड़ के भाग जाती है. चाहे शादी हो चुकी हो या न हुई हो. यही समाज का सच है.

पहले प्यार पैसों का मोहताज नहीं था

पहले फर्स्ट नाइट पर पति अपनी पत्नी को जो भी उपहार देता था वह निजी होता था किसी को उस से कोई मतलब नहीं था फिर चाहे प्यार से दिया गुलाब का फूल हो या फिर गोल्ड की रिंग हो. लेकिन अब यह भी स्टेटस सिम्बल बन गया है. लड़की को अपनी सहेलियों और रिश्तेदारों को बताना होता है कि मुझे गिफ्ट में आई फोन मिला या डायमंड सेट मिला. यह अब एक स्टेटस सिम्बल बन गया है.

इसी तरह विवाह के बाद हनीमून पर जाना साथ में टाइम स्पेंड करने का मात्र एक बहाना था लेकिन अब यह भी स्टेटस सिम्बल हो गया है क्योंकि इस के पिक्स सोशल मीडिया पर शेयर किए जाते हैं. जो घूमने जितनी बड़ी इंटरनेशनल हौलिडे पर गया उतना ही ज्यादा उस महिला के पति ने उसे सर आंखों पर बैठाया हुआ है. अब सारा खेल पैसों का हो गया है जो ज्यादा पैसे वाला है वो ही प्यार करता है क्योंकि दुनिया और बीवी दिखावा देखती है भावनाए नहीं.

साल में 12 एनीवर्सरी मनाते हैं

पहले शादी की पहली वर्षगांठ का बहुत महत्त्व था. उस में बड़े बुजुर्गो का आशीर्वाद भी शामिल होता था. सब के लिए यह दिन खास होता था क्योंकि मन जाता था कि कपल हंसी खुशी अपनी शादी निभा रहे हैं लेकिन अब हर महीने ही शादी की फर्स्ट और सैकेंड एनीवर्सरी के नाम पर केक काटा जाता है और पिक्स सोशल मीडिया पर डाले जाते हैं.

अब पति अगर अपनी पत्नी के लिए जलेबी ले आए तो यह बात पत्नी को नहीं भाती, भले ही वह आप की मनपसंद चीज ही क्यों न हो. क्योंकि लड़की को केक काटते हुए फोटो सोशल मीडिया पर डालना है और जलेबी लो क्लास है. इसलिए वह अपने पति के द्वारा प्यार से लाए गए जलेबी को देख मुंह बना लेती है और केक का डिमांड करती है ताकि वह फोटो शेयर कर वाहवाही लूट सके.

खानदानी ज्वैलरी में भावनाएं थी

खानदानी जूलरी में भावनाएं थीं. लेकिन अब शादी से पहले ही लड़कियां उन्हें तुड़वा कर नए डिजाइन की ज्वैलरी बनवाने की डिमांड करने लगती है. ज्वैलरी पहले पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली एक विरासत थी जिसे सास की सास ने उन्हें दी और अब सास अपने खानदानी जेवर बहु को चढ़ाती है. ये परंपरा इसी तरह से चली आ रही थी. लेकिन अब बहू पहले ही कह देती है कि ये पुराना डिजाइन मुझे नहीं चाहिए, फिर उस के लिए नए गहने खरीदें जाते हैं तो फिर वह ज्वैलरी अब खानदानी विरासत नहीं सिर्फ ज्वैलरी बन कर रह जाती है जिसे सिर्फ फैशन के लिए पहना जाता है.

लड़के को कमाऊं लड़की चाहिए

पहले शादी के लिए अच्छा परिवार, संस्कार, गुणी अधिक चाहिए थी लेकिन अब इन सब में वह कोम्प्रोमाइज भले ही कर ले. लेकिन लड़की कमाने वाली हो ताकि लाइफस्टाइल अपग्रेड हो सकें.

पहले शादी के लिए एक अच्छा परिवार और अच्छे लड़की की तलाश होती थी जिस से गृहस्थी की गाड़ी सुचारु और आसानी से चल सके. लेकिन अब गृहस्थी और बच्चे भले ही नौकरों के भरोसे हो जाएं लेकिन बीवी तो कमाऊं ही चाहिए.

आसमान छूते चांदी के दाम! आखिर क्या है वजह?

सोना और चांदी दोनों को निवेश के साथ-साथ गहनों के रूप में भी प्रयोग किया जाता है. शादी में महिलाओं को जो जेवर मिलते हैं उन को स्त्रीधन कहा जाता है. गहने इसलिए भी महिलाएं साथ रखती हैं कि आर्थिक जरूरत में उस का प्रयोग कर सकें. अब बदलते दौर में चांदी का भाव सोने के मुकाबले अनुपातिक रूप से बढ़ रहा है. इस की कई वजहें हैं.

पिछले 6 माह में चांदी के दामों में तेज उछाल आया है. 14 फरवरी को चांदी का भाव ठीक 74,000 रुपए प्रति किलो था. जुलाई के दूसरे सप्ताह मे लखनऊ सर्राफा एसोसिएशन के विनोद महेश्वरी के अनुसार 15 जुलाई को इस का भाव 94,500 रूपए प्रतिकिलो हो गया है. मंहगाई की इतनी लंबी उछाल सोने ने भी नहीं लगाई है. चांदी के दाम लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं. यह नए उच्चतम स्तर पर पहुंच रही है. चांदी का प्रयोग गहनों के साथ बड़े पैमाने पर इंडस्ट्री पर हो रहा है. सभी तरह के कंप्यूटर, फोन, औटोमोबाइल और इक्विपमैंट में चांदी का प्रयोग हो रहा है.

पिछले कुछ समय से चांदी के दाम लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं. यह नए उच्चतम स्तर 94,500 रुपए किलो पर पहुंच गई है. तेजी का यह मौजूदा दौर करीब 6 महीने पहले शुरू हुआ. 14 फरवरी को चांदी का भाव ठीक 74,000 रुपए प्रति किलो था. भारत में सोने और चांदी का प्रयोग सब से अधिक गहनों में होता था. महिलाएं गहनों का प्रयोग अधिक करती थी.

अब चांदी के गहनों पर सोने का कलर चढ़ा कर गहने भी तैयार होने लगे हैं. यह सोने जैसे दिखते हैं पर इन की कीमत सोने से कम होती है. चांदी में तेजी का एक कारण यह भी है. सोने का भाव बढ़ने से गहनों के शौकीनों ने चांदी का रुख किया है. इस में बड़ी संख्या नौजवानों की है. इस से चांदी की डिमांड बढ़ रही है और उस का असर कीमतों पर भी दिख रहा है. शादियों में भी इस की मांग बढ़ गई है. युवाओं के बीच चांदी से बने गहनों की डिमांड बढ़ी है. हाथ, गले और पैरों में पहने जाने वाली ज्वैलरी में चांदी का प्रयोग होने लगा है.

दूसरा कारण यह है कि दुनिया भर में राजनीतिक और आर्थिक उथलपुथल है. इस वजह से पिछले कुछ समय के दौरान सोने की कीमतें काफी तेजी से बढ़ी हैं. भारत समेत दुनिया भर के केंद्रीय बैंक भी गोल्ड रिजर्व बढ़ा रहे हैं. जिस से आने वाली मुश्किलों का मुकाबला किया जा सके. भारत में चांदी की डिमांड पूरी करने में हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड की अहम भूमिका है.

इलैक्ट्रौनिक्स इंडस्ट्री में चांदी का बढ़ता प्रयोग

सोने और चांदी का जिक्र भले ही एक साथ होता हो, लेकिन चांदी को हमेशा ही कमतर आंका जाता है. इन का इस्तेमाल साथ-साथ भी होता है. और इन का इस्तेमाल अलगअलग भी होता है. चांदी सोने के मुकाबले कम कीमती है. इस वजह से इस का दाम भी कम रहता है. सोने का गहनों और निवेश में ज्यादा इस्तेमाल होता है. चांदी का जेवरात से ज्यादा इलैक्ट्रौनिक्स इंडस्ट्री में प्रयोग होता है. जैसे इलैक्ट्रिक स्विच, सोलर पैनल और आरएफआईडी चिप्स बनाने में इस का सब से अधिक प्रयोग होता है. इस वजह से पिछले साल चांदी की ग्लोबल डिमांड में करीब 11 प्रतिशत का उछाल आया था.

चांदी में उछाल का एक बड़ा कारण इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में इस का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है. इस साल दुनियाभर में चांदी की डिमांड 1.2 अरब औंस तक पहुंचने का अनुमान है. चांदी की औद्योगिक डिमांड लगातार बढ़ रही है. इस का सोलर पैनल, इलैक्ट्रौनिक्स और पावर सैक्टर में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है.

सरकार लगातार सोलर एनर्जी पर फोकस कर रही है. इस से भी चांदी की डिमांड में भारी तेजी है, क्योंकि यह सोलर पैनल को बनाने में चांदी का प्रयोग होता है. चांदी का फोटोवोल्टिक्स (पीवी) के रूप में प्रयो दुनियाभर में बढ़ रहा है. यह तकनीक धूप को सीधे बिजली में कन्वर्ट करती है.

इस से जाहिर है कि चांदी की तेज डिमांड बनी रहेगी और उस की कीमतों में उछाल आएगा. बाजार की गतिविधियां बता रही है कि चांदी की कीमतों में उछाल का दौर बना रहेगा. ऐसे में अगर निवेश के हिसाब से चांदी की खरीददारी करना चाहते हैं तो यह एक अच्छा निवेश भी हो सकता है. चांदी का निवेश गहनों की जगह पर सिक्कों में करें. इस की प्योरिटी का ध्यान रखें. चांदी में मिलावट हो जाती है. ऐसे में प्योरिटी का सख्त जरूरत होती है.

काला पति नहीं चाहिए , कोर्ट ने कहा ” cruelty”

अभी तक पत्नी के काला रंग से पति को शिकायत होती थी. मध्य प्रदेश के जबलपुर में पति के काला रंग से परेशान पत्नी ने अलग रहने का फैसला किया है.

समाज में एक कहावत बहुत प्रचलित है कि ‘घी का लड्डू टेढ़ा भला’ यानि लड़का कैसा भी हो अच्छा ही माना जाता है. खासकर घर परिवार शादी विवाह में ऐसे उदाहरण बहुत दिए जाते हैं. लड़का अगर काला है तो भी घर वाले परेशान नहीं होते हैं. वहीं जब लड़की काली हो तो उस की शादी की चिंता उस के पैदा होते ही होने लगती है. कई बार शादी टूटने का बड़ा कारण लड़की की रंगरूप होता है. अब हालात बदल रहे हैं. लड़कियों की संख्या तो कम हो ही रही है वह आत्मनिर्भर भी हो कर अपने फैसले खुद कर रही हैं. ऐसे में वह काले रंग के लड़के के साथ भी शादी कर के नहीं रहना चाहती.

यह बात और है कि कई जोड़े ऐसे भी हैं जो काले गोरे के रंग को छोड़ कर खुशीखुशी रह रहे हैं. कई गोरी पत्नियों को अपने काले रंग वाले पति में आकर्षण नजर आता है. वह उन के साथ खुश रहती हैं. मध्य प्रदेश के जबलपुर में रहने वाले रमेश कुमार नामक युवक ने पुलिस मे शिकायत दर्ज कराई कि पत्नी उस के काले रंग को ले कर ताने मारती है और अब उस ने अलग रहने का फैसला कर लिया है. वह उसे छोड़ कर चली गई है. रमेश की शिकायत पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने से पहले पत्नी के साथ परामर्श करना सही समझा है. उसे बुला कर मामला समझेगी.
यह मामला खुल कर सामने आ गया है. इसलिए उदाहरण के लिए इस को सामने रखा जा रहा है. समाज में कई पतिपत्नी ऐेसे हैं जिन के बीच रंग एक बड़ी परेशानी बन रही है. लड़के के तो तमाम मामले हैं जहां सांवली पत्नी से उस को शिकायत होती है. वह तलाक भी मांग लेता है. लड़की को बिना तलाक के छोड़ देता है. दूसरी पत्नी रख लेता है. बहुत सारे उदाहरण समाज में मौजूद हैं. पति के सांवले होने पर पत्नी उसे छोड़ दे ऐसे मामले भी अब आने लगे हैं.

लड़कियों की चाहत बढ़ रही हैं

लड़कियां पढ़ लिख कर आगे बढ़ रही है. नौकरी कर रही है. उन का भी अपना सोशल सर्किल हो रहा है. उन को भी अपनी चाहते पूरी करने का मन होता है. ऐसे में वह अपनी पंसद का लड़का ही चुनना चाहती है. आज के दौर में शादी के लिए लड़के और लड़की की खोज सोशल मीडिया पर बनी साइड्स पर होती है. जहां पर रूप, रंग, नौकरी, आदतें सबकुछ देखने समझने का प्रयास होता है. दूसरी चीजें तो छिपाई भी जा सकती है पर रंग और रूप छिपाया नहीं जा सकता है. कई बार ऐसा होता है कि बढ़ती उम्र का दबाव, अच्छी नौकरी और घर परिवार के दबाव में आकर लड़कियां समझौता कर लेती हैं.

जब शादी के बाद यह साथ चलती है. सोशल मीडिया पर साथसाथ फोटो आते हैं तो देखने के एकदम विपरीत होते हैं. ऐसे में थोड़ी दिक्कत आती है. समाज का एक बड़ा हिस्सा दिखावा पंसद करता है. उन के लिए लड़कालड़की का रंग भी दिखावे में आता है. शादी के लिए लड़कालड़का चुनाव करते समय उन के समान गुणों स्वभाव को देखना चाहिए. जहां तक हो सके समान सोच वाले का चुनाव ही हों. इस में रूपरंग को भी सामने रखना चाहिए. कहते है 19-20 का फर्क तो चल सकता है लेकिन 18 और 24 का फर्क हो तो साथसाथ चलना मुश्किल हो जाता है. शादी के लिए चुनाव करते समय इस का ख्याल रखें.

कई बार रंग में बहुत अधिक फर्क होने का प्रभाव बच्चों पर भी पड़ता है. एक बच्चा गोरा तो एक काला हो जाता है. आपस में उन के बीच भी परेशानी होती है. यह बात और है कि कैरियर और सफलता में रंग रूप का प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन देखने में फर्क पड़ता है और समाज उस को अलग नजर से देखता है. कानून भी इस को ले कर अलग नजरिया रखता है.

क्या कहती है अदालत

बेंगलुरु कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि अपने पति की त्वचा का रंग ‘काला’ होने के कारण उस का अपमान करना क्रूरता है और यह उस व्यक्ति को तलाक की मंजूरी दिए जाने की ठोस वजह है. उच्च न्यायालय ने 44 वर्षीय व्यक्ति को अपनी 41 वर्षीय पत्नी से तलाक दिए जाने की मंजूरी देते हुए कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों की बारीकी से जांच करने पर निष्कर्ष निकलता है कि पत्नी काला रंग होने की वजह से अपने पति का अपमान करती थी और वह इसी वजह से पति को छोड़ कर चली गई थी.

उच्च न्यायायल ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ए) के तहत तलाक की याचिका मंजूर करते हुए कहा, ‘इस पहलू को छिपाने के लिए उस ने (पत्नी ने) पति के खिलाफ अवैध संबंधों के झूठे आरोप लगाए. ये तथ्य निश्चित तौर पर क्रूरता के समान हैं.’ बैंगलुरु के रहने वाले इस दंपति ने 2007 में शादी की थी और उन की एक बेटी भी है. पति ने 2012 में बैंगलुरु की एक पारिवारिक अदालत में तलाक की याचिका दायर की थी.

महिला ने भी भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (विवाहित महिला से क्रूरता) के तहत अपने पति तथा ससुराल वालों के खिलाफ एक मामला दर्ज कराया था. उस ने घरेलू हिंसा कानून के तहत भी एक मामला दर्ज कराया और बच्ची को छोड़ कर अपने मातापिता के साथ रहने लगी. उस ने पारिवारिक अदालत में आरोपों से इनकार कर दिया और पति तथा ससुराल वालों पर उसे प्रताड़ित करने का आरोप लगाया. पारिवारिक अदालत ने 2017 में तलाक के लिए पति की याचिका खारिज कर दी थी, जिस के बाद उस ने उच्च न्यायालय का रुख किया था.

न्यायमूर्ति आलोक अराधे और न्यायमूर्ति अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने कहा, ‘पति का कहना है कि पत्नी उस का काला रंग होने की वजह से उसे अपमानित करती थी. पति ने यह भी कहा कि वह बच्ची की खातिर इस अपमान को सहता था.’ उच्च न्यायालय ने कहा कि पति को ‘काला’ कहना क्रूरता के समान है. उस ने पारिवारिक अदालत के फैसले को रद्द करते हुए कहा, ‘पत्नी ने पति के पास लौटने की कोई कोशिश नहीं की और रिकौर्ड में उपलब्ध साक्ष्य यह साबित करते हैं कि उसे पति का रंग काला होने की वजह से इस शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. इन दलीलों के संदर्भ में यह अनुरोध किया जाता है कि पारिवारिक अदालत विवाह भंग करने का आदेश दें.’

काला रंग होने से लड़की को व्यवहारिक दिक्कतें हो सकती हैं. इन बातों को शादी से पहले समझना चाहिए. जिस से कोर्ट और पुलिस तक मामले न पहुंचे. जिस तरह से लड़कियों की संख्या घट रही है और जन्मदर में गिरावट आ रही है ऐसे मसले आम होंगे. लड़कियां अपनी पसंद के लड़कों को खोजेंगी, ऐसे में केवल लड़का होने से काम नहीं चलने वाला. उसे भी अपने रूपरंग और स्मार्टनेस और कैरियर की तरफ ध्यान देना होगा. पत्नी ज्यादा सुदंर हो तो पति खुद भी कुंठा का शिकार होता रहता है. उसे भी साथ चलने में दिक्कत होती है. ऐसे में जरूरी है कि जोड़ा मेल का हो. बेमेल जोड़े में परेशानी ज्यादा होती है

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