लोकसभा चुनाव के बाद देश ने उपचुनाव में जनमत दे कर समझा दिया है कि इंडिया ब्लौक की जीत कोई तुक्का नहीं थी. चुनावी संदेश भाजपा में असंतोष को हवा दे दी है, जो धर्म की राजनीति पर सवालिया निशान खड़ा कर रही है.
देश के 7 राज्यों में 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने बता दिया कि भाजपा ने जिस धर्म के ऊपर राजनीति शुरू की थी वह अब उस से नहीं संभल रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या में भाजपा की हार ने पूरे चुनावी महौल को बदल दिया. भाजपा उस झटके से संभल नहीं पाई थी कि विधानसभा के उपचुनावों में बद्रीनाथ क्षेत्र में मिली हार ने भाजपा की कमर तोड़ दी. इन चुनावों का असर यह हुआ कि भाजपा में धर्म की राजनीति पर बगावत होने लगी है. धर्म के दबाव में जो बातें भाजपा के एससी और ओबीसी नेता कह नहीं पा रहे थे अब वह खुल कर बोलने लगे हैं.
‘सरिता’ ने अपने लेखों में हमेशा यह समझाने का प्रयास किया है कि धर्म की राजनीति समाज के लिए हमेशा नुकसानदायक रही है. यह समाज को बांटने का काम करती है. धर्म का नशा लंबे समय तक नहीं रहता है. यह बहुत जल्द उतर जाता है. एक ही चुनावी हार में भाजपा में यह नशा उतर रहा है. उत्तर प्रदेश में जहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लोकसभा चुनाव के पहले तक भाजपा के ब्रांड माने जाते थे उन को चुनौती देने का साहस भाजपा का कोई नेता नहीं कर सकता था. लोकसभा चुनाव में जैसे ही भाजपा उत्तर प्रदेश में नम्बर 2 की पार्टी बनी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विद्रोह हो गया है.
इस विद्रोह में पार्टी के एससी और ओबीसी नेता सब से आगे हैं. इन को हवा देने का काम सवर्ण नेता कर रहे हैं. जो धर्म की राजनीति से खुद को जोड़ नहीं पा रहे थे. ऐसे में अब यह साफ दिख रहा है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा उत्तर प्रदेश में बड़ा बदलाव कर के योगी आदित्यनाथ को हटा सकती है. इस पर फाइनल मोहर उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा के 10 उपचुनाव के बाद होगा. अगर इन उपचुनाव में भाजपा को सफलता मिलती दिखी तब लड़ाई धीमी होगी लेकिन अगर इन उपचुनाव में भी भाजपा को हार मिलती है तो योगी को हटाने की मुहिम तेज हो जाएगी.
7 राज्यों मे भाजपा की हार
7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा केवल 2 सीटें ही जीत सकी. लोकसभा चुनाव के बाद लग रहा था कि भाजपा उस से सबक ले कर उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी. जब उप चुनाव के परिणाम आए तो यह साफ हो गया कि भाजपा का डिब्बा गुल है. दूसरी तरफ राहुल गांधी और इंडिया ब्लौक पर मतदाताओं का भरोसा कायम है. 13 में 10 सीटें जीत कर इंडिया ब्लौक ने 2 सीट जीतने वाली भाजपा को बड़ा झटका दिया है. भाजपा को सब से बड़ा झटका लगा है बंगाल में, जहां 4 सीटों पर उसे टीएमसी के हाथों मात खानी पड़ी. वह भी तब जब बंगाल में इन 4 सीटों में से 3 सीटों पर पिछले चुनाव में बीजेपी का कब्जा था.
भाजपा की दूसरी बड़ी हार धर्म के राज्य उत्तराखंड की बदरीनाथ सीट पर मिली है. उत्तराखंड के बहुत सारे विकास के दावे धरे के धरे रह गए. हिमाचल में भी कांग्रेस ने भाजपा को हरा दिया. लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक दलों की ये सब से बड़ी परीक्षा थी. जिस में इंडिया ब्लौक ने एनडीए को 10-2 स्कोर से मात दे दी. उपचुनाव के नतीजों ने इंडिया ब्लौक को खुशी मनाने का बड़ा मौका दे दिया है. बंगाल में टीएमसी ने सभी चारों सीटें जीत कर जलवा बिखेरा है तो उत्तराखंड की दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में आई हैं. हिमाचल में भी 3 में से 2 सीटों पर कांग्रेस ने विजय पताका लहराई है तो पंजाब की इकलौती सीट आप की झोली में गिरी है. तमिलनाडु की एकमात्र सीट पर डीएमके ने कब्जा जमाया है.
अयोध्या के बाद बद्रीनाथ
उपचुनाव में इंडिया ब्लौक निखर कर सामने आया है. इस के परिणामों से लोकसभा चुनाव परिणामों पर मोहर लग गई है. जो लोग लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लौक की सफलता को तुक्का समझ रहे थे उन को उपचुनाव ने जबाव दे दिया है. अयोध्या के बाद बद्रीनाथ की हार ने भाजपा की धर्म की राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. कांग्रेस नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं, ‘बदरीनाथ में बीजेपी की हार ऊपर वाले का दंड है. भगवान राम की धरती अयोध्या में इंडिया ब्लौक की जीत बहुत महत्वपूर्ण है. अब इस पर बदरीनाथ की जीत ने भी मुहर लगा दी है.’
उत्तराखंड में मंगलौर और बद्रीनाथ सीट पर उपचुनाव हुआ था. इन सीटों पर पहले कांग्रेस और बसपा का कब्जा था. बद्रीनाथ सीट पर कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला ने करीब 5 हजार से अधिक वोटों से भाजपा के राजेंद्र भंडारी को मात दी. राजेंद्र भंडारी ही पहले यहां से विधायक थे लेकिन बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए थे. मंगलौर सीट जो बसपा विधायक सरबत करीम अंसारी के निधन के बाद खाली हुई थी, उस सीट पर पर कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन ने बाजी मारी और कड़े मुकाबले में उन्होंने बीजेपी के करतार सिंह भड़ाना को 400 से अधिक वोटों से हराया. काजी निजामुद्दीन इस सीट पर पहले भी 3 बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं.
भाजपा जिस तरह से धनबल और ईडी-सीबीआई के दबाव में काम करवा रही थी उस से लोगों में विद्रोह भी भावना भड़क रही थी. चुनाव में वह भाजपा को जवाब दे रही है. हिमांचल के देहरा में 25 वर्षों के बाद कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई है और नालागढ़ में भी कांग्रेस प्रत्याशी बड़े अंतर से जीते हैं. भाजपा केवल हिमाचल में हमीरपुर और मध्य प्रदेश में अमरवाड़ा सीट पर जीत का झंडा लहरा पाई. अब उत्तर प्रदेश में भी 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाला है और भाजपा के लिए बड़ी अग्निपरीक्षा है. भाजपा में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विद्रोह के दौर में पार्टी के सामने मुश्किलों का दौर है.
हिमाचल प्रदेश की 3 सीटों में से 2 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. देहरा सीट से सीएम सुक्खू की पत्नी 9,399 वोटों से चुनाव जीतीं तो वहीं नालागढ़ सीट से कांग्रेस के हरदीप सिंह बावा ने बीजेपी के के. एल. ठाकुर को करीब 9 हजार वोटों से हराया. हमीरपुर में बीजेपी के आशीष शर्मा ने कांग्रेस के पुष्पेंद्र वर्मा को कड़े मुकाबले में 1571 वोटों से हराया. पहले ये तीनों सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के पास थी.
छोटा चुनाव बड़े संदेश
7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों का चुनाव एक सर्वे जैसा था, जिस में पता चल गया कि पूरे देश में भाजपा के खिलाफ माहौल कायम है. भाजपा लोकसभा चुनाव की हार से कोई सबक नहीं ले पाई है. पश्चिम बंगाल में 4 विधानसभा सीटों पर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की. रायगंज, बागदा, राणाघाट और मानिकतला सीट पर टीएमसी उम्मीदवारों ने शानदार जीत हासिल की है. रायगंज सीट से टीएमसी प्रत्याशी कृष्णा कल्याणी ने बीजेपी उम्मीदवार मानस कुमार घोश को 49 हजार वोटों से ज्यादा के अंतर से शिकस्त दी. वहीं बागदा सीट पर टीएमसी की उम्मीदवार मधुपर्णा ठाकुर ने 33,455 वोटों से जीत हासिल की. इस के अलावा राणाघाट से टीएमसी के मुकुट मणि ने बीजेपी के मनोज कुमार बिस्वास को करीब 39 हजार वोटों से हराया. मानिकतला सीट पर टीएमसी की सुप्ती पांडे ने बीजेपी के कल्याण चैबे को 41,406 वोटों से हराया.
पंजाब में जालंधर पश्चिम सीट से आम आदमी पार्टी के मोहिंदर भगत ने बीजेपी के शीतल अंगुरल को करीब 37 हजार वोटों से हराया. पहले यह सीट आम आदमी पार्टी के पास ही थी और शीतल ही यहां से विधायक थे लेकिन बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए जिस के बाद यहां उपचुनाव हुआ. बिहार की रुपौली सीट पर बड़ा उलटफेर हुआ है यहां निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने जेडीयू और आरजेडी जैसे दलों को पीछे छोड़ते हुए जीत हासिल कर ली है. बीमा भारती के जेडीयू में शामिल होने की वजह से यहां सीट रिक्त हुई थी. बीमा भारती ने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था लेकिन वहां भी वह तीसरे नंबर पर रहीं.
तमिलनाडु की विकरावंडी सीट पर सत्ताधारी डीएमके ने जीत हासिल की है. डीएमके के अन्नियुर शिवा शिवाशनमुगम. ए ने पट्टाली मक्कल काची पार्टी के अन्बुमणि. सी को 50 हजार से अधिक वोटों से हराया. मध्य प्रदेश की अमरवाड़ा सीट पर भाजपा से कमलेश शाह 3,252 वोटों से जीत गए. पहले के विधानसभा चुनाव में अमरवाड़ा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, लेकिन कमलेश प्रताप बाद में बीजेपी में शामिल हो गए जिस के बाद यह सीट खाली हो गई.
अब यूपी की बारी
यूपी में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं. जब से लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल 33 सीटें ही मिली हैं पार्टी निराशा के दौर में है. इस के मुकाबले विपक्ष उत्साह में है. अब उत्तर प्रदेश में भी 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं. इन चुनावों से प्रदेश की राजनीति करवट लेगी. भाजपा बनाम विपक्ष की जगह अब यह लड़ाई भाजपा बनाम भाजपा हो गई है. भाजपा के अंदर ही विद्रोह के हालात है.
प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में जिस तरह से डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने सरकार और संगठन की मुद्दा उठाया उस के बाद से पर्दे के पीछे की लड़ाई खुल कर सामने आ गई है. भाजपा के विधायक रमेश मिश्रा, पूर्वमंत्री मोती सिंह, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और सुभाष निशाद जैसे नेताओं के बयान पार्टी के अंदर सबकुछ ठीक नहीं है इस की गवाही दे रहे हैं. राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि भाजपा में अभी यह असंतोष की शुरूआत है. उपचुनाव के परिणाम आने के बाद इस में और तेजी आएगी.
सफल हो रही कांग्रेस की रणनीति
लोकसभा चुनाव प्रचार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ओबीसी का जो मुद्दा उठाया वह जनता को समझ में आ गया. राहुल ने दूसरा मुद्दा रोजगार का उठाया वह युवाओं में लोकप्रिय हो गया है. अब युवाओं को समझ आ गया है कि उन के लिए मंदिर नहीं रोजगार जरूरी है. राहुल गांधी ने संविधान और आरक्षण खत्म करने की जो बात कही वह भी लोगों के दिल में घर कर गई है. राहुल गांधी द्वारा उठाए गए अग्निवीर जैसे मुद्दे अब लोगों को समझ आ रहे हैं. लोगों को समझ आ रहा है कि अब चुनाव में धर्म और मंदिर की राजनीति पर जनता से जुड़े मुद्दे भारी पड़ रहे हैं. केन्द्र की नई सरकार में कुछ बदलता नहीं दिख रहा है. नीट सहित बहुत परीक्षाओं में पेपर लीक की बात हुई. एनडीए सरकार ने लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी को बोलने नहीं दिया.
लगातार कई परीक्षाओं के कैंसल होने और कई परीक्षाओं के पेपर आउट होने से आम जनता का भरोसा टूट रहा है. नीट परीक्षा को ले कर आम लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार चाहती क्या है ? भ्रष्टाचार के मोर्चे पर सरकार असफल रही है. जब माहौल अपने पक्ष में नहीं होता तो विपक्ष को छोड़िए पार्टी के भीतर से भी असंतोष की आवाजें उठने लगती हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा के अंदर फैला अंसतोष बढ़ता ही जा रहा है.
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है उस से भाजपा की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है. अगर योगी हटते हैं तो यह यूपी में कल्याण सिंह पार्ट 2 हो जाएगा. एक तरह से देखें तो भाजपा के अंदर धर्म की राजनीति को ले कर बहस शुरू हो गई है. एससी और ओबीसी नेताओं को समझ आ गया है कि जब तक धर्म का राज खत्म नहीं होगा पार्टी में उन को महत्व नहीं मिलेगा. ऐसे मे वह अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं. पार्टी की चुनावी हार के बाद बने माहौल ने उन को बोलने का मौका दे दिया है. ऐसे में अब उत्तर प्रदेश के 10 उपचुनाव प्रदेश की नई दिशा देने वाले होंगे.