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मशहूर गीतकार व कवि नक्ष लायलपुरी नहीं रहे

89 वर्ष की उम्र में भारतीय सिनेमा के मशहूर गीतकार नक्ष लायलपुरी का 22 जनवरी 2017 को सुबह ग्यारह बजे देहांत हो गया. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. नक्ष लायलपुरी की गिनती मशहूर शायर, गीतकार के साथ साथ कवि के रूप में भी होती रही है.

जब तक भारतीय सिनेमा व भारतीय साहित्य जिंदा रहेगा, तब तक लोग उनके गीत, उनकी शायरी व उनकी कविताओं को गुनगुनाते रहेंगे. उन्होंने हिंदी फिल्मों के अलावा हिंदी के कई सर्वाधिक चर्चित रहे टीवी सीरियलों और पंजाबी फिल्मों के लिए भी काफी गीत लिखे.

नक्ष लालपुरी का असली नाम जसवंत राय शर्मा था, पर उन्होंने लेखक के तौर पर अपना नाम नक्ष लायलपुरी रखा था और इसी नाम से उन्हें पूरी दुनिया जानती है. यहां तक कि उनके बेटे व फिल्म निर्देशक राजन ने भी अपने नाम के आगे लायलपुरी का ही उपयोग करते आ रहे हैं.

नक्ष लायलपुरी का जन्म 24 फरवरी 1928 को पंजाब के अंतर्गत आने वाले लायलपुर में हुआ था जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है. बिजली विभाग में इंजीनियर के तौर पर कार्यरत पिता के बेटे नक्ष लायलपुरी की शुरूआती शिक्षा लायलपुर जिले के अंतर्गत आने वाले गांव में तथा 5वीं से 8वीं तक की शिक्षा रावलपिंडी में हुई थी. उसके बाद उन्होंने हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की. इसी दौरान उर्दु टीचर उनकी लेखनी से प्रभावित हुए, जिसकी वजह से नक्ष का झुकाव साहित्य की तरफ बढ़ता चला गया. जबकि उनके पिता उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे. विज्ञान विषय में नंबर कम आने की वजह से उनके पिता काफी नाराज भी हुए थे. पर जब नक्ष ने उनसे कहा कि वह कवि बनना चाहते है, तो उनके पिता ने उनकी पढ़ाई छुड़वा दी. फिर वह लाहौर जाकर उर्दु दैनिक ‘रंजीत निगारा’ में नौकरी करने लगे और शेरो व शायरी की महफिलों में समय बिताने लगे. पर 1947 में जब देश का विभाजन हुआ, तो वह अपने पूरे परिवार के साथ शरणार्थी बनकर लखनऊ पहुंच गए.

खुद नक्ष लायलपुरी ने एक बार लाहौर से लखनऊ और लखनऊ से मुंबई पहुंचने की दास्तान बताते हुए कहा था, ‘‘लखनऊ में पिताजी का दोस्त का बेटा नौकरी करता था. उसी ने लखनऊ में एक जमाने में पिताजी की बहुत मदद की थी. पिताजी ने लखनऊ में एक वर्कशॉप खोली. लेकिन घर के माली हालात बद से बदतर होते चले गए. घर में माता पिता और मेरे अलावा दो बहने भी थीं. ऐसे में दबाव पड़ने लगा कि मुझे भी कमाना चाहिए. बहुत कोशिशों के बाद भी कोई काम नही मिला. तो परेशान होकर 1949 की गर्मियों में एक दिन बिना किसी को बताए चुपचाप घर छोड़ खाली जेब, बिना टिकट मुंबई की ट्रेन में बैठ गया था.’’

1949 में वह हिंदी सिनेमा में अपनी जगह बनाने के लिए मुंबई आए थे. मुंबई में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. वह मुंबई अपने एक पत्र मित्र प्रदीप के भरोसे पहुंचे थे, पर जब वह उनके घर पहुंचे, तो पता चला कि वह तो कुछ दिनों के लिए पुणे गए हुए हैं. तब दादर के गुरूद्वारा में जाकर शरण ली थी. गुरूद्वारा से बाहर पान खाते हुए एक दिन नक्ष लायलपुरी की मुलाकात लाहौर से ही आए दीपक आशा से हुई थी, जिन्होंने धरम कुमार के नाम से 1955 में फिल्म ‘घमंड’ बनायी थी. नक्ष की हालात जानकर दीपक ने उन्हें अपने घर में रहने की जगह दी. धीरे धीरे नक्ष की बॉलीवुड के दूसरों लोगों के साथ मित्रता होने लगी. इसी बीच उन्हें पोस्ट ऑफिस में नौकरी भी मिल गयी. तो वहीं उनकी मित्रता राम मोहन से हुई.

राम मोहन ने नक्ष लायलपुरी की मुलाकात जगदीष सेठी से करवायी थी, जो कि उन दिनों फिल्म ‘जग्गू’ निर्देशित कर रहे थे. नक्ष लायलपुरी ने बताया था, ‘‘जगदीश सेठी ने संगीतकार हंसराज से कहकर मुझे गीत लिखने का मौका दिलाया. मैंने इस फिल्म के लिए पहला कैबरे गीत लिखा था जिसके बोल थे ‘मैं तेरी हूं तू मेरा हैं दिल लेता जा’. यह गाना कुलदीप कौर पर फिल्माया गया था.’’ इस तरह 1952 में बतौर गीतकार नक्ष लायलपुरी की बॉलीवुड में शुरूआत हुई थी.

लेकिन ‘जग्गू’ के बाद नक्ष लायलपुरी के काम नहीं था. तब संगीतकार सपन जगमोहन ने उनसे पंजाबी फिल्म ‘जी जाजी’ का गीत लिखवाया था. जिसने उनकी गाड़ी पटरी पर बैठा दी थी. खुद नक्ष ने बताया था, ‘‘फिल्म ‘जी जाजी’ के बाद मैंने सपन जगमोहन, हरबंस, एस मदन, बी एन बाली, राज सोनी, सुरिंदर कोहली, हंसराज बहल, जगजीत कौर, बाबुल, हुस्नलाल भगतराम, खय्याम, चित्रगुप्त, मोहिंदर जीत सिंह, मास्टर अल्लारक्खा और कुलदीप सिंह जैसे संगीतकारों के लिए ‘एह धरती के पौबारा’, ‘धरती वीरा दी’, ‘सत सालियां’, ‘लाईए तोड़ निभाईये’, ‘सतगुरू तेरी ओट’, ‘कुंवारा मामा’, ‘नीम हकीम’, ‘सपनी’, ‘जगवाला मेला’, ‘गोद पटोला’, ‘तकरार’, ’मदी दा दीवा’ और ‘वतना तौ दूर’ जैसी करीब चालीस पंजाबी फिल्मों में गीत लिखे. आर्थिक संघर्ष तो कुछ हद तक टल चुका था. लेकिन अब पंजाबी फिल्मों का ही गीतकार बनकर रह जाने का डर सताने लगा था.’’

पंजाबी फिल्मों में नक्ष लायलपुरी इतना बड़ा नाम बन गए थे, कि जब आकाशवाणी में शाहिर लुधियानवी का लिखा गीत बजता था, तो गीतकार के रूप में नक्ष लायलपुरी का नाम आता था. इस घटना के बारे में खुद नक्ष लायलपुरी ने कहा था कि ‘‘संगीत में साहिर लुधियानवी का लिखा फिल्म ‘प्यार का बंधन’ का गीत ‘घोड़ा पिशौरी मेरा, तांगा लाहौरी मेरा’ आकाशवाणी पर काफी वक्त तक इसलिए मेरे नाम से बजता रहा था, क्योंकि उसमें पंजाबी के अलफाज की भरमार थी. और शायद इसी वजह से रोशन के संगीत में फिल्म ‘मधु’ के लिखे गीत ‘धानी चुनर मोरी हाए रे, जाने कहां उड़ी जाए रे’ का श्रेय काफी समय तक शैलेंद्र को मिलता रहा.

खैर, उनका डर गलत नहीं था. उनके पास सिर्फ पंजाबी फिल्मों के ही ऑफर आ रहे थे. तब अपनी पत्नी की सलाह पर उन्होंने ‘घमंड’, ‘राइफल गर्ल’, ‘सर्कस क्वीन’, ‘चोरों की बारात’, ‘रोड नंबर 303’, ‘ब्लैक शैडो’, ‘फाइंड ए सन’, ‘नौजवान’, ‘संगदिल’ व ‘जालसाज’ जैसी स्टंट फिल्मों के लिए भी गीत लिखे थे.

स्टंट फिल्म में गुलजार के साथ ही लिखा था. गीत स्टंट फिल्म ‘चोरों की बारात’ के निर्माता प्रदीप नायर थे, जो कि नक्ष लायलपुरी के पत्र मित्र थे.

इन्हीं के दरवाजे पर मुंबई पहुंचने पर वह गए थे. इस फिल्म के गीत की चर्चा चलने पर स्वयं नक्ष लायलपुरी ने बताया था, ‘‘इस फिल्म में मेरे साथ साथ दूसरे चार गीतकार और थे जिनमें फारूख, गाजी, साजन बिहारी व गुलजार दीनवी थे. यह गुलजार दीनवी वही थे, जिन्हें अब लोग गुलजार के नाम से जानते हैं. इस फिल्म में गुलजार ने गीत लिखा था, ‘ये दुनिया हैं ताश के पत्ते, इसको करो सलाम’ और मैंने इस फिल्म में गीत लिखा था, ‘ले मार हाथ पे हाथ गोरिए कर ले पक्की बात.’’

40 पंजाबी फिल्मों के अलावा तमाम स्टंट प्रधान व अन्य हिंदी फिल्मों के गीत लिखने के बावजूद बतौर गीतकार बॉलीवुड में नक्ष लायलपुरी को पहचान 1970 में रिलीज हुई फिल्म ‘चेतना’ से मिली थी. इस फिल्म के गीत ‘मैं तो हर मोड़ पर तूझको दूंगा सदा’ इतना लोकप्रिय हुआ कि उसके बाद हर संगीतकार उनके साथ काम करने के लिए लालायित रहने लगा था. इस गीत को मुकेश ने स्वरबद्ध किया था. उसके बाद मुझे मदन मोहन, जयदेव, रवींद्र जैन, नौशाद, शंकर जयकिशन सहित उस दौर के सभी नामी संगीतकारों के साथ उन्हें काम करने का मौका मिला और उस दौर में नक्ष लायलपुरी लिखे गीत ‘रस्ते उल्फत को निभाए कैसे’, ‘ये मुलाकात इक बहाना हैं’, ‘माना तेरी नजर में तेरा प्यार हम नहीं’, ‘चांदनी रात में हर बार तुम्हें देखा’, ‘तुम्ही हो न हो मुझको तो इतना यही हैं,  ‘कदर तूने ना जानी’, ‘न जाने क्या हुआ’ और ‘प्यार का दर्द है’ और ‘मुमताज तुझे देखा’, ‘मैं तो हर मोड़ पर’, ‘ना जाने क्या हुआ’, ‘जो तूने छू लिया’, ‘उल्फत में जमाने की हर रस्म को ठुकराओ’ जैसे गीत बेहद मशहूर हुए.

नक्ष लायलपुरी ने कहा एक बार कहा था, ‘‘1970 के बाद खय्याम, जावेद, नौषाद, मदन मोहन जैसे संगीतकारों ने मुझे काफी अच्छा काम करने का अवसर दिया. तब मैं सोचता था कि यह उन बीस वर्षों तक कहां थे, जब मैं बी या सी ग्रेड की स्टंट फिल्मों के गीत लिख रहा था.’’

यह कड़वा सच है. 1970 के बाद करीबन बीस वर्ष तक उनकी तूती बोलती रही. यह वह वक्त था, जब सारे दिग्गज फिल्मकार व संगीतकार उनके इर्द गिर्द घूमते थे. उन्होंने तमाम भावुक व रोमांटिक कंठ प्रिय गीत लिखकर करोड़ों श्रोताओं को अपना दीवाना बना रखा था. मगर उनसे मिलने पर कभी किसी को इस बात का अहसास नहीं होता था कि वह बॉलीवुड के इतने बड़े नामचीन गीतकार व शख्सियत हैं.

1999 में उन्होने संगीतकार सपन जगमोहन के ही संगीत निर्देशन में राकेश चौधरी निर्मित व निर्देशित टीवी सीरियल ‘इंतजार और सही’ का शीर्ष गीत लिखा था. उसके बाद लगभग एक दशक तक वह टीवी पर छाए रहे. ‘इंतजार और सही’ के बाद ‘शिकवा’, ‘दरार’, ‘अधिकार’,‘कर्तव्य’, ‘अभिमान’, ‘मिलन’, ‘सुकन्या’, ‘अनकही’, ‘सवेरा’, ‘चुनौती’, ‘विरासत’, ‘आशियाना’, ‘बाजार’, ‘गृहदाह’, ‘श्रीकांत’, ‘मुजरिम हाजिर है’, ‘अमानत’, ‘पार्टी’, ‘दहलीज’, ‘मुल्क’, ‘ये इश्क नहीं आसान’, ‘सरहदें’, ‘विक्रम बेताल’, ‘सवेरा’ और ‘बिखरी आस निखरी प्रीत’ जैसे कई टीवी सीरियलों शीर्षक गीत लिखा. इनमें से ज्यादातर सीरियलों का निर्माण राकेश चौधरी और मनीष गोस्वामी ने किया है.

तमाम टीवी सीरियलों के लिए उन्होंने शीर्षक गीत लिखे, जो लोगों की जुबां पर चढ गया. फिर कुछ समय तक वह आराम फरमाते रहे. लेकिन 2005 में उन्होंने संगीतकार नौशाद के लिए फिल्म ‘ताजमहल’ तथा 2006 में संगीतकार खय्याम के लिए फिल्म ‘यात्रा’ के लिए गजल ‘साज ए दिल नग्मा ए जां’ लिखा. उसके बाद 2011 में उन्होंने बाल फिल्म ‘ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार’ के लिए गीत लिखा था. यह बतौर गीतकार उनकी अंतिम फिल्म रही.

वह लंबे समय तक ‘फिल्म राइटर्स एसोसिएशन से जुड़े होने के अलावा ‘इंडियन परफॉर्मिंग राइट्स एसोसिएशन’ के संस्थापक सदस्य थें. उन्होंने दूसरे लेखकों व गीतकारों को उनका सही मेहनताना दिलवाने में काफी मदद की.

फिल्म गीतकार बनते ही पिता से टूटे संबंध कैसे बने

फिल्म ‘जग्गू’ के प्रदर्शित होते ही नक्ष लायलपुरी का उनके पिता से संबंध खराब हो गए थे. क्योंकि उनकी दिनों फिल्मों में काम करना अच्छा नही माना जाता था. पर जब उन्होंने अपने पिता को संदेश भिजवाया कि वह शादी उनकी पसंद से ही करेंगे, तो संबंध फिर सुधर गए. और उन्होंने अपने माता पिता द्वारा पसंद की गयी लड़की कमलेश से ही शादी की.

नक्ष अपनी पत्नी की तारीफ करते थे

नक्ष हमेशा अपनी पत्नी की तारीफ करते थें. उन्होंने एक बार कहा था, ‘‘कवि या गीतकार के रूप में मेरी सफलता का श्रेय तो पत्नी को ही जाता है .संघर्ष के दिनों में घर कैसे चलाया, यह वही जाने. मुझे चिंता नहीं होने दी. मुझे याद है जब मुझे पहली बार पंजाबी फिल्म ‘जीजा जी’ के लिए गीत लिखने के लिए संगीतकार सपन जगमोहन ने मुझे एडवांस में कुछ पैसे दिलवाए थे, तो मैंने पूरी रात जागकर सोलह गीत लिखे थे. उस रात मेरी पत्नी ने इस बात का ख्याल रखा था कि मुझे परेशानी न होने पाए.’’  

अपने बयान से मुकर गए शाहरुख खान

गिरगिट की तरह रंग बदलना तो कलाकारों की पुरानी खूबी है. अभी कुछ दिन पहले जब बंगलौर मं एक लड़की के साथ कुछ पुरूषों द्वारा छेड़छाड़ का मामला गरमाया और हर तरफ से विरोध के स्वर उभरे, तो उस वक्त शाहरुख खान ने भी आगे बढ़ कर कहा था, ‘‘मैं आर्यन और अबराम दोनों से कहता हूं कि किसी भी नारी को चोट मत पहुंचाना. यदि आपने ऐसा किया, तो मैं आपका सिर कत्ल कर दूंगा. लड़कियों के प्रति सम्मान दिखाएं….’’

मगर अब शाहरुख खान अपने इस बयान की सफाई देते फिर रहे हैं. हाल ही में महबूब स्टूडियो में पत्रकारों के एक समूह से बात करते हुए शाहरुख खान ने कहा, ‘‘मेरे कहने का अर्थ यह था कि अगर कोई औरत के साथ बदतमीजी करेगा, तो उसे दंड मिलेगा. फिर चाहे वह ‘अपना’ ही क्यों न हो. मेरा मानना है कि इंसान की परवरिश की जड़ें मजबूत होनी चाहिए. मैं अपने बेटों की बात कर रहा हूं, इसके यह मायनें नहीं है कि वह गुलाम है. पर उन्हें भी ऐसा नहीं करना चाहिए. छोटे कपड़े पहनने में कोई बुराई नहीं है. हम सभी को हर तरह के कपड़े पहनने का हक है.’’

नृत्य निर्देशक टेरेंस को चढ़ा अभिनय का बुखार

मशहूर डांसर, नृत्य निर्देशक टेरेंस लुईस अब तक फिल्मों में नृत्य निर्देशन, स्टेज शो या टीवी के नृत्य पर आधारित रिएलिटी शो को ही जज करते रहे हैं. पर अब वह अभिनेता भी बन गए हैं.

टेरेंस लुईस ने अभिनेता से निर्देशक बने हर्ष ए सिंह द्वारा निर्देशित एक लघु फिल्म ‘‘द गुड गर्ल’’ में अभिनय किया है. फिल्म को 19 जनवरी को ‘यूट्यूब’ पर रिलीज कर दिया गया है. इस फिल्म में टेरेंस लुईस ने 34 वर्षीय ऐसे युवक का किरदार निभाया है, जो कि एक काफी उम्र दराज व शादीशुदा औरत के प्यार में पड़ जाता है, जिसे लोग ‘द गुड गर्ल’ कहते हैं.

यह कहानी एक ऐसी औरत की है, जो कि खुद को अच्छी लड़की साबित करने के फेर में अपनी शादी में फंस जाती है. इस फिल्म में रिश्तों के साथ साथ लिंग भेद आधारित राजनीति का चित्रण है.

अभिनय की तरफ मुड़ने को लेकर टेरेंस लुईस से हमारी बात हुई, तो उन्होंने कहा, ‘‘मैने अभिनय के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए कदम नहीं रखा है. मैंने अभिनय में खुद को बयां करने के लिए कदम रखा है. जब मेरे मित्र व निर्देशक हर्ष सिंह ने मेरे सामने इस फिल्म का जिक्र किया, तो यह फिल्म बहुत अच्छी लगी. मुझे लगा कि इस फिल्म के माध्यम से मुझे कुछ कहने का मौका मिल रहा है. इसलिए मैंने इसमें अभिनय किया है. इसका सबसे बड़ा मुद्दा यही है कि हमेशा अच्छी लड़की बने रहना कितना मुश्किल होता है.’’

यहां देखिए टेरेंस की शॉर्ट फिल्म:

शाहरुख को है ये कैसा शौक

सिर्फ कलाकार ही नहीं, हर इंसान को अपने करियर या अपने काम से जुड़ी चीजों को जमा करने का शौक होता है. इस शौक से शाहरुख खान भी अछूते नहीं हैं.

शाहरुख खान को अपनी हर फिल्म से जुड़ी चीजों का संग्रह करने का शौक है. खुद शाहरुख खान बताते हैं, ‘‘मैं जिन फिल्मों में अभिनय करता हूं, उन फिल्मों से जुड़ी हर चीज को चाह कर भी संग्रहित नहीं कर कसता. मगर मैं अपनी हर फिल्म की कोई न कोई एक वस्तु अपने पास संग्रहित करके रखत रहता हूं. मेरे पास फिल्म ‘जोष’ की जैकेट है. फिल्म ‘कभी हां कभी ना’ की टोपी है, ‘दिलवाले’ की जैकेट है. जबकि फिल्म ‘ओम शांति ओम’ का पूरा कास्ट्यूम है.’’

तो लेन-देन के लिए पैन कार्ड होगा अनिवार्य

देश में डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने और कैश लेनदेन को कम करने के लिए सरकार आम बजट 2017 में कई बड़ी घोषणाएं कर सकती है. एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सरकार नकदी लेन-देन की सीमा में बड़ी कटौती कर सकती है.

रिपोर्ट के  30 हजार तक के लेन देन के लिए पैन कार्ड की जानकारी देनी होगी. फिलहाल यह सीमा 50 हजार रुपए है. सूत्रों के मुताबिक कारोबारी लेन-देन के लिए भी पैन कार्ड डिटेल्स देने के मापदंडों में भी बदलाव किए जा सकते हैं.

पैन कार्ड डिटेल्स में बदलाव के अलावा सरकार एक तय सीमा से ऊपर कैश पेमेंट्स के लेनदेन पर कैश हैंडलिंग चार्जेस की भी घोषणा कर सकती है. सरकार इस कदम के जरिए उन लोगों पर लगाम लगाना चाहती है जो कि कैश ट्रांजेक्शन से ही डील करते हैं. सरकार देश को कैशलेस बनाने के लिए ये कदम उठा सकती है.

सरकारों की मनमानी

नरेंद्र मोदी की नोटबंदी ने यह साफ कर दिया है कि हमारा लोकतांत्रिक अधिकार वास्तव में कितना कमजोर है. 70 साल के लोकतांत्रिक शासन और उस से पहले अंगरेज शासन में भी आधेअधूरे वोट से चुने गए प्रतिनिधियों के सीमित शासन के आदी होने के बावजूद इस नोटबंदी पर देश कुछ न कर पाया. संसद में विरोधी पक्ष अपनी बात न कह पाया, लोग सड़कों पर लाइनों में लगे रहे, पर गुस्सा न जाहिर कर पाए.

भारत की तरह विश्व के अन्य देशों में भी लोकतंत्र से बनी सरकारें अकसर मनमानी करती रहती हैं. अमेरिका ने देश को पहले वियतनाम लड़ाई में भी बिना जनता की राय के झोंक दिया था, फिर इराक व अफगानिस्तान के युद्धों में. दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति पार्क ग्वेन हे को हटाने की मांग की जा रही है, पर कोई सुन नहीं रहा. अमेरिका में ही अश्वेतों, लेटिनों और दूसरे इम्मीग्रैंटों का रहना खतरे में पहुंच गया है. इंगलैंड ने बहुमत से यूरोपीय यूनियन से निकलने का फैसला किया है, पर जनमत संग्रह लोकतांत्रिक है या नहीं, इस की बहस चालू है.

लोकतंत्र का अर्थ केवल 2-3 साल बाद एक मतदान केंद्र में वोट डालना भर नहीं है. लोकतंत्र का अर्थ है कि जनता को उस के सभी मौलिक व मानवीय अधिकार मिलें और वह अपने नीति निर्धारकों को चुनने में स्वतंत्र हो, पर ज्यादातर लोकतंत्रों में एक तरह की राजशाही, मोनार्की खड़ी हो गई है, जिस में नौकरशाही, बड़ी कार्पोरेशनें और राजनीतिक दल शामिल हैं, जिन का संचालन वे लोग करते हैं, जो उत्पादन में नहीं लगे, दूसरों के उत्पादन को लूटते हैं.

सफलता आज यह नहीं है कि आप ने कितना जनता को सुख दिया, सफलता यह है कि आप ने जनता से कितना लूटा, चाहे उस से ज्यादा कमवा कर लूटा या भूखा मार कर लूटा. भारत में नोटबंदी भूखा मार कर लूटने का उदाहरण है, जिस में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल, बड़ी कंपनियों के मालिक, बैंकर, नौकरशाही, हिंदू धर्म व्यवस्था के पैरोकार और अंधभक्त शामिल हैं. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को लाने वालों में कट्टरपंथी चर्च, बड़ी कार्पोरेशनें, समर्थ गोरे, बंदूकें रखने के हिमायती शामिल हैं.

ये सब आम जनता के लोकतांत्रिक मानवीय मौलिक अधिकारों के बदले जनता से कहते हैं कि जैसा है वैसा स्वीकार करो. भारत और अमेरिका में लाखों लोग जेलों में बिना गुनाह साबित हुए गिरफ्तार हैं, पर चुनावों की प्रक्रिया को लोकतंत्र कह कर ढोल पीटा जाता है. यह अधूरा लोकतंत्र है. यह षड्यंत्र है. यह जनता को दिया जाने वाला झुनझुना बन कर रह गया है. जनता अगर बेहाल, निरीह है, तो इसीलिए कि उसे कैदियों की तरह रखा जा रहा है और सूखी रोटी के साथ यहांवहां एक चम्मच हलवा वोट देने के हक के नाम पर दे दिया जाता है. वोट दे कर वह सरकार चलाने वाले चेहरे बदल सकती है, पर सरकार नहीं, शासन प्रक्रिया नहीं, कानून व्यवस्था नहीं, कुशासन नहीं. लोकतंत्र उस के लिए उस स्वर्ग की तरह है, जिस के सपने हर धर्म दिखाता है, पर कभी किसी को मिलता नहीं है. 

टाइम मैनेजमैंट के टिप्स

शीर्षक में मैनेजमैंट शब्द देख कर घबराइए नहीं. इस की जितनी जरूरत किसी कंपनी के सीईओ या मैनेजर को है, उतनी ही स्कूलकालेज में पढ़ने वाले किशोरों को भी. मैनेजमैंट कोई कठिन सब्जैक्ट नहीं है, जिसे मोटीमोटी किताबें पढ़ कर ही सीखा जा सके. दरअसल, मैनेजमैंट के सूत्र बड़े सरल और मजेदार हैं और साथ ही असरदार भी. मैनेजमैंट यानी प्रबंधन कैसे किया जाए, यह जानने से पहले आप का यह जानना जरूरी है कि मैनेजमैंट किस का करना है. आप को किसी और का मैनेजमैंट नहीं करना है. सब से बड़ा और सब से जरूरी मैनेजमैंट है अपने ही समय और काम का. भले ही आप अभी कमाई नहीं करते, परंतु समय कमा सकते हैं. इस कमाए गए समय में किए गए कार्य भविष्य में जीवनभर आप को आगे रखेंगे और बेहतर कैरियर एवं कमाई  में मददगार बनेंगे.

जानिए मैनेजमैंट के सूत्र

जल्दी शुरुआत यानी ज्यादा समय

जल्दी उठें, फटाफट तैयार हों और शीघ्रता से अपने कामों की शुरुआत करें. फिर देखें कि पूरे दिन आप के पास समय ही समय होगा. सुबह योगा, कसरत या सैर को अपनी रोज की दिनचर्या में शामिल करें. इस से आप पूरे समय स्फूर्तिवान रहेंगे और शरीर के साथसाथ मन भी चुस्तदुरुस्त रहेगा.

मंडे से संडे तक एक जैसे

ऐसा नहीं कि स्कूलकालेज जाना है तो जल्दी उठ गए और छुट्टी वाले दिन देर तक बिस्तर पर पड़े रहे. ऐसा करेंगे तो सोमवार को सुबह जल्दी उठने में आलस महसूस होगा. इसलिए सातों दिन एक ही समय पर बिस्तर छोड़ें और हमेशा यही रूटीन फौलो करें.

क्या करना है, यह लिख लें

अकसर कामकाजी लोग अगले दिन किए जाने वाले काम की सूची रात में ही बना लेते हैं. इस से उन के सामने अगले दिन की योजना स्पष्ट रहती है और उन्हें बारबार सोचविचार नहीं करना पड़ता कि अब क्या करें. आप भी रात में सूची बना कर उस में अगले दिन की जाने वाली पढ़ाई, क्रिकेट या बैडमिंटन मैच और घर के कामों से जुड़ी अपनी जिम्मेदारियों को दर्ज कर सकते हैं.

ना कहना सीखें

इस का यह मतलब नहीं कि मम्मी किसी काम के लिए कहें, तो मना कर दें. ना कहना सीखने का मतलब है, प्रलोभनों से इनकार करना. जैसे आप पढ़ने बैठे हों और उसी समय कोई दोस्त आ कर घूमनेफिरने का प्रस्ताव रखे, तो उसे मना करना सीखें. जब बहुत सारे काम पड़े हों और दिल कहे कि टीवी देख लो, तो खुद को ना कहना सीखें.

एकएक कर काम निबटाएं

आप पढ़ते वक्त दोस्त के साथ चैटिंग नहीं कर सकते या पापा के साथ बात करते समय भी फेसबुक पर व्यस्त नहीं रह सकते. जो भी काम करें उसे पूरा समय और ध्यान दें. पढ़ाई के लिए नैट सर्फिंग कर रहे हों, तो बीचबीच में फेसबुक पोस्ट्स देखने के लालच से बचें.

काम का रूट तय करें

एक रास्ते के काम एक बार में करें. घर से निकलने से पहले ही यह तय कर लें कि क्याक्या करना है. पहले पै्रस के लिए कपड़े देने हैं, फिर फ्रैंड के घर जा कर पुस्तक लेनी है, उस के बाद वापसी में दुकान से सामान लेते हुए घर आना है. इस तरह आप को बारबार दौड़ना नहीं पड़ेगा और कम से कम समय में आप ज्यादा जिम्मेदारियां पूरी कर पाएंगे.

व्यवधान दूर करें

पढ़ाई करते समय फोन को दूर रख दें. उसे साइलैंट मोड पर डाल दें. यदि आप ने पढ़ाई से संबंधित रिसर्च पूरी कर ली है, तो इंटरनैट कनैक्शन भी बंद कर दें, जो टौपिक पढ़ना है, उस से संबंधित स्टडी मैटीरियल टेबल पर रख लें. जब पढ़ने बैठें तो उस चैप्टर को खत्म किए बिना न उठें.

किसी को चार्ज सौंपें

यदि आप सारी कमान अपने हाथ में रखेंगे, तो हो सकता है कि कभीकभी आलस भी कर जाएं. इसलिए अपने मम्मीपापा, बड़े भाईबहन या दोस्त को पूछताछ का चार्ज दे दें. वह आप से पूछ सकते हैं कि आप ने आज की पढ़ाई पूरी की या नहीं? आप को घर के काम करने थे, आप ने किए कि नहीं? इस से आप जिम्मेदार बने रहेंगे और कोताही नहीं बरतेंगे.

छोटी चीजों पर भी ध्यान दें

समय बीतने के बाद छोटीछीटी बातें भी बड़ी बन जाती हैं. आज बिल भरना छोटा सा काम लग सकता है, जो कभी भी किया जा सकता है, लेकिन एक सप्ताह बाद जब उस की तारीख आ जाएगी और आप को लंबी लाइन में लगना पड़ेगा, तो इस छोटे से काम में ही कई घंटे बरबाद हो जाएंगे.

सार्वजनिक घोषणा करें

जब पढ़ने बैठें तो मम्मी या पापा को बता दें कि आज साइंस का पूरा चैप्टर खत्म कर के ही उठूंगा या घर में कह दें कि अब से मैं सुबह साढ़े 5 बजे बिस्तर छोड़ दूंगा. इस से आप पर दबाव रहेगा कि मुझे अपने द्वारा कहा गया काम कर के दिखाना है.

जल्दी का एहसास विकसित करें

आप ध्यान दें कि परीक्षा के दिनों में पाठ कितनी जल्दी याद होते हैं, क्यों? क्योंकि दिमाग को पता होता है कि अब ज्यादा समय नहीं है यानी परिस्थिति के हिसाब से हम उस पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं और वह जल्दी समझ आने लगता है. अगर समय कम है औैर काम ज्यादा वाला एहसास विकसित करें, तो न सिर्फ काम जल्दी होंगे, बल्कि आप का दिमाग भी तेज चलने लगेगा. अगर आप को ऐग्जाम की तैयारी जनवरी तक पूरी करनी है, तो इसे दिसंबर तक पूरा करने का लक्ष्य बनाएं. सैल्फ  मैनेजमैंट का मतलब होता है, ज्यादा व्यवस्थित होना, ज्यादा प्रोडक्टिव होना.

आर पी सिंह ने किया कुछ ऐसा कि हैरान रह गए लोग

क्रिकेट ही नहीं सभी क्षेत्रों में ऐसे बहुत कम लोग हैं जिनके पीछे उनके हजारों फैन्स उनके लिए दुआ करते हैं. ऐसा एहसास बहुत कम लोगों को ही हो पाता है. लेकिन इंदौर के रणजी ट्रॉफी फाइनल मैच के दौरान तेज गेंदबाज आरपी सिंह ने कुछ ऐसा किया जिससे क्रिकेट फैन्स खासे नाराज हैं.

दरअसल आरपी सिंह का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वे एक फैन का फोन छीन कर जमीन पर फेंकते नजर आ रहे हैं.

रणजी ट्रॉफी के फाइनल मैच में गुजरात के लिए खेलते हुए तेज गेंदबाज रुद्रप्रताप सिंह ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और टीम को पहली बार रणजी चैम्पियन बनाने में अहम भूमिका निभाई.

वर्ष 1951 के बाद पहली बार रणजी फाइनल में पहुंची गुजरात टीम ने 41 बार की चैम्पियन मुंबई को पांच विकेट से हराकर खिताब पर कब्जा किया. लेकिन अब सोशल मीडिया पर आरपी सिंह का एक अलग ही वीडियो छाया हुआ है, जिसमें वह एक फैन के हाथ से उसका फोन छीनकर मैदान पर फेंकते दिखाई दे रहे हैं.

दरअसल, यूट्यूब पर अपलोड किए गए इस वीडियो में जो आवाजें सुनाई दे रही हैं, उसके मुताबिक कुछ बच्चे आरपी सिंह के साथ सेल्फी लेने की बात कर रहे हैं, और सुरक्षा की खातिर लगाए गए जाल से बाहर हाथ निकालकर आरपी की तरफ फोन बढ़ा रहे हैं. इसी बीच, आरपी सिंह वहां लौटकर आते हैं, और फैन के हाथ से फोन छीनकर मैदान पर फेंक देते हैं.

बताया जा रहा है कि यह वीडियो गुजरात और मुंबई के बीच खेले गए फाइनल मैच का ही है, लेकिन महज नौ सेकंड का वीडियो होने की वजह से आरपी सिंह के गुस्से की असल वजह बता पाना मुश्किल है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खेल चुके आरपी सिंह के लिए फैन की इस तरह की मांग कतई आम बात है. इसलिए, उनके इस व्यवहार के पीछे आखिर असल वजह क्या रही, बता पाना मुश्किल है. लेकिन दर्शकों के साथ किया गया इस तरह के व्यवहार से आरपी सिंह मुश्किल में पड़ सकते हैं.

बौनों का संसार

संसार के सभी देशों में बौने पाए जाते हैं. बौने यानी वे लोग जो औसत से छोटे कद के होते हैं. बौने सदैव आम लोगों के लिए कुतूहल का विषय रहे हैं. इन के बारे में कई धारणाएं प्रचलित हैं. एशिया व यूरोप की लोककथाओं में बौनों को भूतप्रेत व जिन्न बताया गया है. प्राचीन काल में रोम में बौनों का बहुत महत्त्व था. इन की खरीदबिक्री भी होती थी, जिस में बहुत लाभ होता था. इसलिए कई लोग अपने बच्चों को विशेष प्रकार की दवाएं देते थे, जिन से उन का कद बढ़ना रुक जाता था. रोम के सम्राट आगस्ट्स ने अपने राज्य में यह घोषणा कर रखी थी कि जहां भी बौने मिल जाएं उन्हें दरबार में पेश किया जाए. आगस्ट्स की भांति सम्राट डोमेट्सियन को भी बौने इकट्ठे करने का शौक था.

बौनों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखने वालों में रूस के जार पीटर महान भी थे. उन्होंने पीटर्सबर्ग के पास एक नगर बसाया जहां सिर्फ बौने ही रहते थे. इतना ही नहीं, बौनों के लिए लिलीपुट नामक नगर बसाया गया. आइलैंड के पास बसा यह अद्भुत शहर संसार भर में प्रसिद्ध हुआ था. यहां की इमारतें कम ऊंचाई की थीं. इस में एक किला, फायर हाउस, थिएटर व 300 लोगों के रहने योग्य सभी सुविधाएं थीं. वास्तव में लिलीपुट एक पुस्तक गुलिवर्स ट्रैवल्स में वर्णित बौनों के काल्पनिक लोक (लिलीपुट) से प्रभावित हो कर बसाया गया था.

इस नगर में कई विश्वप्रसिद्ध बौनों ने अपना समय गुजारा था. इस नगर के द्वार जब भी बाहरी नागरिकों के लिए खोले जाते थे, तो लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी. 17 मई, 1911 को लिलीपुट आग में जल कर राख हो गया था. 16वीं व 17वीं शताब्दी में अमीरों में बौनों को अपने घर में रखने की परंपरा थी. यूरोप में बौनों का इस्तेमाल घर के प्रवेशद्वार पर मेहमानों का स्वागत करने के लिए किया जाता था. कुछ देशों में तो 19वीं शताब्दी तक यह परंपरा चलती रही. बौनों के इतिहास में जेफरी हडसन का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है. जेफरी का जन्म 1619 में इंगलैंड में हुआ था. उस के मातापिता सामान्य कद के थे, परंतु जेफरी का 16 साल की आयु के बाद कद 20.32 सेंटीमीटर ही रह गया. जेफरी स्वस्थ था. उस केपिता ने उसे बकिंघम के ड्यूक की पत्नी की सेवा में पेश किया.

एक बार ड्यूक औफ बकिंघम के यहां इंगलैंड के राजा चार्ल्स प्रथम व महारानी मारिया रात के भोजन पर आमंत्रित थे. भोजन के दौरान एक बड़ा मरतबान पेश किया गया. जब मरतबान का ढक्कन उठाया गया तो मेहमान चकित रह गए, क्योंकि उस में से जेफरी जो बाहर निकला था. मारिया बौने जेफरी को देख कर बेहद प्रभावित हुई. वह जेफरी को अपने महल में ले गई. जेफरी अपने शासक की ओर से अनेक मिशन पर गया. इंगलैंड में गृहयुद्घ के दौरान वह घुड़सवार दस्ते का कप्तान था. ऐसे ही एक बौना कलाकार था रिचर्ड गिब्सन. गिब्सन ने कला के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया. वह एक धनी महिला का नौकर था. इस महिला को जब रिचर्ड गिब्सन की कला प्रतिभा का पता चला तो उस ने रिचर्ड को चित्रकला की शिक्षा दिलाई. इस काम के लिए महिला ने एक शिक्षक रखा था. आगे चल कर रिचर्ड सम्राट चार्ल्स प्रथम के दरबार का शाही पेंटर बन गया. महारानी मारिया की इच्छा पर रिचर्ड ने महल की एक बौनी लड़की से विवाह किया. विवाह का पूरा प्रबंध व खर्च सम्राट की ओर से किया गया था. बौने जासूसी के क्षेत्र में भी कमाल दिखाते रहे हैं. फ्रांस के बौने रोशबोर्ज ने फ्रांसिस क्रांति के समय जासूसी की थी. वह बच्चों की तरह कपड़े पहनता था. उसे गोद में उठाए एक महिला पेरिस आतीजाती थी. रोशबोर्ज के कपड़ों में सम्राट के गुप्त संदेश छिपे रहते थे.

बौनों ने न केवल सम्राटों की सेवा की बल्कि शासन भी किया. लीदिया के बौने राजा आत्तिला के बारे में माना जाता है कि उस ने लगभग 5 लाख सैनिकों की विशाल सेना का प्रतिनिधित्व किया था. राजा आत्तिला की जनता उसे कुदरत का चाबुक कहती थी. जनरल टौम थंब इतिहास के विख्यात बौनों में से एक है. उस ने अपनी बौनी पत्नी सहित दुनिया के कई देशों की सैर की थी. थंब दंपती ने 2 करोड़ से ज्यादा लोगों के सामने गीत व नृत्य की प्रस्तुति दी. थंब के प्रशंसकों में फ्रांस के सम्राट लुई फिलिप की महारानी विक्टोरिया, ड्यूक औफ वेलिंगटन राष्ट्रपति लिंकन जैसी प्रसिद्ध हस्तियां शामिल रही हैं.

गूगल मैप से ढूंढे पार्किंग स्पेस

अब तक आप गूगल मैप से किसी भी स्थान का पता खोजते आए हैं. पर अब आप गूगल मैप की सहायता से अपनी गाड़ियों के लिए पार्किंग स्पेस भी ढूंढ सकते हैं. एक अंग्रेजी वेबसाइट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक गूगल मैप में एक नया फीचर जोड़ा जाएगा जिससे यूजर्स पार्किंग स्पेस भी खोज पायेंगे.

मैप पर पार्किंग स्पेस ब्लू कलर के ‘P’ से दर्शाया जाता है. अगर पार्किंग स्पेस ज्यादा नहीं है तो यह 'P' रेड हो जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक ऐप पर मॉल, ऐयरपोर्ट जैसे पब्लिक प्लेस में मौजूद पार्किंग स्पेस ही दिखाये जायेंगे. 

हाल ही में गूगल मैप ने एक ऐसी सुविधा शुरू की थी जिसकी सहायता से आप यूजर्स उबर कैब बुक कर सकेंगे. यही नहीं, मैप से ही यूजर्स कैब या ड्राइवर के लोकेशन के बारे में भी पता कर सकते हैं. यूजर्स गूगल मैप से ही कैब बुक कर सकेंगे.

 

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