संसार के सभी देशों में बौने पाए जाते हैं. बौने यानी वे लोग जो औसत से छोटे कद के होते हैं. बौने सदैव आम लोगों के लिए कुतूहल का विषय रहे हैं. इन के बारे में कई धारणाएं प्रचलित हैं. एशिया व यूरोप की लोककथाओं में बौनों को भूतप्रेत व जिन्न बताया गया है. प्राचीन काल में रोम में बौनों का बहुत महत्त्व था. इन की खरीदबिक्री भी होती थी, जिस में बहुत लाभ होता था. इसलिए कई लोग अपने बच्चों को विशेष प्रकार की दवाएं देते थे, जिन से उन का कद बढ़ना रुक जाता था. रोम के सम्राट आगस्ट्स ने अपने राज्य में यह घोषणा कर रखी थी कि जहां भी बौने मिल जाएं उन्हें दरबार में पेश किया जाए. आगस्ट्स की भांति सम्राट डोमेट्सियन को भी बौने इकट्ठे करने का शौक था.

बौनों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखने वालों में रूस के जार पीटर महान भी थे. उन्होंने पीटर्सबर्ग के पास एक नगर बसाया जहां सिर्फ बौने ही रहते थे. इतना ही नहीं, बौनों के लिए लिलीपुट नामक नगर बसाया गया. आइलैंड के पास बसा यह अद्भुत शहर संसार भर में प्रसिद्ध हुआ था. यहां की इमारतें कम ऊंचाई की थीं. इस में एक किला, फायर हाउस, थिएटर व 300 लोगों के रहने योग्य सभी सुविधाएं थीं. वास्तव में लिलीपुट एक पुस्तक गुलिवर्स ट्रैवल्स में वर्णित बौनों के काल्पनिक लोक (लिलीपुट) से प्रभावित हो कर बसाया गया था.

इस नगर में कई विश्वप्रसिद्ध बौनों ने अपना समय गुजारा था. इस नगर के द्वार जब भी बाहरी नागरिकों के लिए खोले जाते थे, तो लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी. 17 मई, 1911 को लिलीपुट आग में जल कर राख हो गया था. 16वीं व 17वीं शताब्दी में अमीरों में बौनों को अपने घर में रखने की परंपरा थी. यूरोप में बौनों का इस्तेमाल घर के प्रवेशद्वार पर मेहमानों का स्वागत करने के लिए किया जाता था. कुछ देशों में तो 19वीं शताब्दी तक यह परंपरा चलती रही. बौनों के इतिहास में जेफरी हडसन का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है. जेफरी का जन्म 1619 में इंगलैंड में हुआ था. उस के मातापिता सामान्य कद के थे, परंतु जेफरी का 16 साल की आयु के बाद कद 20.32 सेंटीमीटर ही रह गया. जेफरी स्वस्थ था. उस केपिता ने उसे बकिंघम के ड्यूक की पत्नी की सेवा में पेश किया.

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