नवरात्रों के अवसर पर निधि के घर में बड़ा धार्मिक माहौल रहता है. वह 9 दिनों तक व्रत रखती है. रोज मंदिर जाती है और नवमी के दिन महाकन्या भोज कराती है. जब मैं ने उस से पूछा कि इतना सब कैसे कर लेती है, तो वह बड़े विश्वास से मुसकराते हुए बोली, ‘‘सब देवीजी की शक्ति से मुमकिन हो पाता है और ये सब मैं अपने घर की सुखशांति के लिए करती हूं.’’

जबकि सच यह है कि उस के घर में हर समय पतिपत्नी में झगड़ा होता रहता है. कई बार झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि पड़ोसियों या फिर परिचितों को हस्तक्षेप करना पड़ता है.

पेशे से शिक्षिका निधि के दोनों बेटे अपने घर आने से कतराते हैं. वे कहते हैं कि जब भी घर आओ मम्मीपापा दोनों हर छोटीछोटी बात को भी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना कर लड़ते रहते हैं. इन का झगड़ा देखने से तो अच्छा है घर में कम से कम रहा जाए.

नीता के पति की जब मृत्यु हुई, तो बेटा विशाल 8वीं कक्षा का छात्र था. पापा से बहुत घुलामिला होने के कारण उन की मृत्यु के बाद वह एकदम अकेला पड़ा गया. नीता बैंक में सर्विस करती थी. वह सुबह बैंक जाने से पहले

2 घंटे पूजा करती और फिर औफिस से आ कर शाम को भी 1 घंटा. जब तक उसे फुरसत मिलती बेटा सो चुका होता. अत: बच्चे से उस की सिर्फ औपचारिक बातचीत ही हो पाती थी. अपने मन की बात किसी से शेयर न कर पाने के अभाव में बेटा धीरेधीरे अकेलेपन का शिकार हो कर अवसाद में चला गया. अब परेशान हो कर नीता उसे डाक्टरों के पास ले कर घूम रही है.

अंधविश्वास की पराकाष्ठा

गरिमा की आदत है कि नहा कर जब तक पूजा नहीं कर लेती तब तक पानी भी नहीं पीती. फिर चाहे घर का काम समाप्त करतेकरते उसे दोपहर ही क्यों न हो जाए. पति विनय ने उसे कईर् बार समझाया, ‘‘गरिमा, बिना नाश्ता किए यो दोपहर तक भूखे रहना ठीक नहीं. किसी दिन मुसीबत में आ जाओगी.’’

पर गरिमा ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. एक दिन अचानक चक्कर खा कर बेहोश हो गई. डाक्टर ने कहा लंबे समय तक भूखे रहने की वजह से इन का बीपी लो हो गया है. इतना सब कुछ होने के बाद भी गरिमा अपनी इस आदत को छोड़ नहीं पाई, जिस से रोज उस के घर में कलह होती.

पूजा के पति को लिवर सिरोसिस हुआ था. 1 माह तक हौस्पिटल में रहने के बाद एक दिन डाक्टरों ने उन्हें जवाब दे दिया. उसी दौरान पूजा के कथित गुरुजी आ गए. जब पूजा ने उन्हें अपने पति की हालत के बारे में बताया तो वे बोले, ‘‘यदि महामृत्युंजय का जाप करवाया जाए तो इन की जान बच सकती है.’’

उम्मीद की किरण देख कर बिना अपने विवेक का प्रयोग किए पूजा ने आननफानन में पंडितजी को जाप के लिए क्व25 हजार दे दिए. अगले ही दिन उस के पति की मृत्यु हो गई.

रीता की सौफ्टवेयर इंजीनियर बेटी को अपने ही सहकर्मी से प्यार हो गया. उस ने सर्वप्रथम यह बात अपनी मां को बताई. मातापिता को भी कोई ऐतराज नहीं था. एक ही जाति का होने के कारण दोनों ही पक्ष राजी थे, परंतु जब दोनों पक्षों ने अपनेअपने पंडितजी को कुंडली दिखाईर् तो बोले, ‘‘लड़की घोर मंगली है. यह विवाह तो हो ही नहीं सकता. यदि होगा तो लड़का या लड़की में से एक अपनी जान से हाथ धो बैठेगा.’’

फिर क्या था दोनों परिवारों ने इस शादी के लिए मना कर दिया. लड़कालड़की दोनों ने ही अपनेअपने मातापिता को समझाने की बहुत कोशिश की, पर उन के न पिघलने पर उन्होंने कोर्ट में शादी कर ली. दोनों के ही मातापिता शादी में शामिल नहीं हुए और अपने बच्चों से हाथ धो बैठे. जबकि लड़कालड़की आज 15 साल बाद भी खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

आत्मघाती कदम

अस्मिता एक भजन मंडली की सदस्या है. हर दूसरेतीसरे दिन वह अपनी मंडली के सदस्यों के साथ भजन करने चली जाती है. हाल ही में उस के 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले बेटे ने गणित का पेपर खराब हो जाने पर आत्महत्या कर ली. यदि अस्मिता अपना कुछ समय दे कर बेटे की भावना या उस के मन की उथलपुथल को भांपती तो बेटे को इस आत्मघाती कदम उठाने से रोक सकती थी.

इस प्रकार की कई घटनाएं रोज सब को अपने आसपास देखने को मिल जाती हैं. पूजापाठ, धार्मिक कर्मकांड कई घरों में इस कदर अपने पैर पसार लेते हैं कि वे आंतरिक कलह और बरबादी का कारण बन जाते हैं. भारतीय जनमानस में प्रत्येक समस्या का समाधान ईश्वर से मांगा जाता है जबकि उस का समाधान उन की स्वयं की समझदारी, विवेक और बुद्घि में छिपा होता है.

किसी कीमती वस्तु के गुम हो जाने पर, किसी सदस्य के बीमार हो जाने पर, घर में कलह और क्लेश होने पर, बच्चे के बेरोजगार होने पर तुरंत ईश्वर को इस प्रकार याद किया जाता है कि प्रभु, अमुक समस्या को हल कर दो, क्व1100 चढ़ाऊंगा या चढ़ाऊंगी.

जबकि वास्तव में जीवन एक ऐसी नाव है, जिस में बैठ कर आप को हर पल, हर क्षण अपनी बुद्घि और विवेकरूपी पतवार से दुनियादारी के समुद्र में अपनी नाव को बढ़ाना है. जहां आप ने अपनी अज्ञानता या नासमझी दिखाई वहीं आप की नाव गोते खाने लगेगी.

ऐसे में आप भी चाहते हैं कि आप के समक्ष भी ऐसी स्थिति न आए तो इन सुझावों पर गौर फरमाएं:

परिवार को दें प्राथमिकता: पतिपत्नी के आपसी झगड़ों को सुलझाने के लिए आपसी समझ और धैर्य की जरूरत होती है. देवीजी के व्रत, उपासना, उपवास, कन्याभोज, घंटों पूजापाठ या और कोई कर्मकांड करने के बजाय एकदूसरे को समझा जाए, कुछ उन के अनुसार ढला जाए और कुछ उन्हें अपने अनुसार ढाला जाए तब बड़ी से बड़ी समस्या को भी सुलझाया जा सकता है.

गृहस्थ जीवन का तो आधारस्तंभ ही प्यार, विनम्रता, सहनशीलता, त्याग, सहयोग और समर्पण की भावना है. पतिपत्नी के रिश्ते को खूबसूरती से निभाने के लिए सब से जरूरी है अहंकार का त्याग. घरपरिवार की छोटीमोटी समस्याओं को कभी मुद्दा न बनाएं. किसी भी प्रकार के मतभेद या नाराजगी को अहं के कारण लंबा न खींच कर उसी समय हल करें. यदि आप की पूजा घर में कलह का कारण है, तो तार्किक बुद्धि से सोचें कि ऐसे पूजापाठ से क्या लाभ, जिस से आप के घर की ही शांति भंग हो. घरपरिवार की शांति की कीमत पर कुछ भी न करें.

बच्चों को दें भरपूर समय: आजकल के खुलेपन के माहौल में किशोर होते बच्चों को अधिकाधिक समय देने की जरूरत होती है. अत: उन्हें भरपूर समय दें, उन के साथ मित्रवत व्यवहार करें, उन से जीवन के प्रत्येक विषय पर बातचीत करें ताकि वे अपने मन की हर बात को आप के साथ साझा कर सकें. यदि वे कभी परेशानी में हैं, तो उन के मन को भांप कर उन्हें सही दिशा दिखाएं. जब बच्चों को घर में समुचित प्यार और माहौल नहीं मिलता है तो वे अपने दोस्तों की ओर रुख करते हैं, जिस से कई बार वे भटक भी जाते हैं.

ध्यान रखें आप के पूजापाठ के कारण आप के बच्चे उपेक्षित न हों, साथ ही बच्चों को भी गैरजरूरी पूजापाठ, व्रतउपवास के फेर में न उलझाएं. ‘उन की पढ़ाई ही उन की पूजा है’ यह सीख दें ताकि वे मन लगा कर पढ़ाई कर सकें.

स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही न करें: कुछ लोगों का नियम होता है कि वे पूजापाठ किए बिना अन्न ग्रहण नहीं करते. पुरुष और कामकाजी महिलाएं चूंकि औफिस जाते हैं, इसलिए वे तो समय पर खा लेते हैं, परंतु जो महिलाएं घर में रहती हैं वे काम समाप्त करने के चक्कर में नाश्ता न कर के सीधे भोजन ही ग्रहण करती हैं और ऐसा कर के कई बीमारियों को न्योता देती हैं.

डाक्टरों के अनुसार, रात और दोपहर के भोजन में अधिक अंतराल हो जाने के कारण शरीर के लिए नाश्ता करना बेहद जरूरी हो जाता है, क्योंकि अधिक अंतराल हो जाने पर शरीर से कई विषैले हारमोन निकलने लगते हैं, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से तो बेहद हानिकारक होते ही हैं, साथ ही मोटापा भी बढ़ाते हैं.

न बनें अंधविश्वासी: कई घरों में किसी बीमार के होने पर या किसी समस्या के समाधान हेतु तंत्रमंत्र, झाड़फूंक, जादूटोने का सहारा लिया जाता है, जो गलत है. इस की अपेक्षा डाक्टर के पास जाएं ताकि उस बीमारी की दवा ली जा सके और बीमारी को आगे बढ़ने से रोका जा सके.

रीमा की 3 वर्षीय बेटी बेहद नटखट और शरारती है. एक दिन उसे अचानक बुखार आ गया. रीमा 1 सप्ताह तक उसे यहांवहां ले जा कर नजर झड़वाती रही, जबकि उसे टायफाइड हुआ था. बाद में डाक्टर के लंबे इलाज के बाद वह ठीक हो सकी.

अत: आडंबर, अंधविश्वास और कर्मकांड के चक्कर में न पड़ें. धर्म के नाम पर पैसा कमाने वालों से बचें. अपने पैसे का सदुपयोग करें न कि दुरुपयोग.

बच्चों की खुशी को दें प्राथमिकता: शादीब्याह समझदारी, त्याग, सहयोग से निभाए जाते हैं न कि जन्मपत्री में निहित गुणों के मिलान से. यदि ऐसा होता तो सभी जन्मपत्री मिलाए गए जोड़े सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे होते. बच्चे की पसंद में जाति, जन्मपत्री जैसी अंधविश्वासी बातों की जगह योग्यता और अच्छे घरपरिवार को मानदंड बनाएं और बच्चे की खुशी में शामिल हों. उस की खुशी में ही अपनी खुशी देखें.

व्यर्थ के कर्मकांडों के चक्कर में पड़ कर अपने बच्चे की खुशी का त्याग न करें, क्योंकि हर बच्चा मातापिता की छत्रछाया में ही अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत करना चाहता है. जब मातापिता अपनी जिद पर अड़ जाते हैं, तो उन की गैरमौजूदगी में विवाह करना उन की मजबूरी होती है खुशी नहीं.

तार्किक बनें

जीवन एक संघर्ष है. इस में समयसमय पर सुख और दुख तो आतेजाते रहते हैं. यहां आने वाली अनगिनत समस्याओं का समाधान विवेक और बुद्घि का प्रयोग कर के निकाला जा सकता है, पूजापाठ से नहीं. वर्तमान समय में धर्म की आड़ में भगवान के दूत बन कर पूजापाठ करवाने वालों की भरमार है, जो स्वयं तो पूजा करवाते ही हैं, आप को भी पूजा के विभिन्न उपाय बताते हैं. न केवल महिलाएं, बल्कि पुरुष भी जीवन की विभिन्न समस्याओं के हल के लिए पूजापाठ, धार्मिक अनुष्ठान का सहारा लेते हैं, जबकि उन्हें जरूरत होती है अपनी तार्किक बुद्घि का प्रयोग करने की कि जिन समस्याओं का संबंध आप के जीवन और आप के अपने लोगों से है उन का समाधान भी आप के हाथ में ही है. कोई अन्य उन्हें कैसे सुलझा सकता है?

समझना यह चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत? क्या लाभकारी है और क्या हानिकारक? पूर्वाग्रहों, अंधविश्वासों और वहम जैसी भावनाओं से परे हट कर जब तक समझ और तार्किक बुद्घि का प्रयोग कर के जीवन नहीं चलाया जाएगा, जीवन अकसर दुरूह होता जाएगा. अत: पूजापाठ के स्थान पर जीवन में अपनी प्राथमिकताएं तय कर के समझदारी से काम लिया जाए.

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