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एलजी पर जमकर बरसे केजरीवाल, बोले चुना हुआ मुख्यमंत्री हूं आतंकी नहीं

अतिथि शिक्षकों के बहाने दिल्ली सरकार व उपराज्यपाल के बीच खुला टकराव बुधवार को विधानसभा में साफ नजर आया. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि मैं राज्य का चुना हुआ मुख्यमंत्री हूं, कोई आंतकवादी नहीं. सरकार के मंत्रियों को भी फाइलें देखने का अधिकार नहीं है. अधिकारियों से जब किसी मामले में जवाब मांगा जाता है तो उनका कहना होता है कि उपराज्यपाल के आदेश हैं कि फाइलें नहीं दिखाई जाएं.

मुख्यमंत्री केजरीवाल उपराज्यपाल अनिल बैजल पर जमकर बरसे. उनका कहना था कि यह सब भाजपा के इशारे पर हो रहा है. मुख्यमंत्री ने कहा कि विधानसभा से पहले भी ऐसा ही एक पत्र उपराज्यपाल से आया है, जिसमें कहा गया है कि सेवा सीधेतौर पर उपराज्यपाल के अधिकार का मामला है. इस प्रकार के हथकंडों के जरिये ही अधिकारियों को डराया जा रहा है. यदि राजनीति करनी है तो खुलकर सामने आएं.

उन्होंने शिक्षकों से अपील की कि हम वोट की राजनीति नहीं करते हैं, लेकिन केंद्र सरकार इसे मंजूरी नहीं देती है तो वह भाजपा को हटाने में कोई कसर नहीं छोड़ें. इसमें आम आदमी पार्टी उनके साथ है.

‘सरकार क्यों चुनी, कानून सचिव को ही चुन लेते’

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली की जनता ने आप पार्टी की सरकार को चुना है. यदि सभी काम अधिकारियों को ही करने थे तो चुनी हुई सरकार की जरूरत नहीं. कानून सचिव का भी चुनाव आम जनता द्वारा किया जाता. मुख्यमंत्री ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि अतिथि शिक्षकों से संबंधित फाइल को एक बार भी उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को नहीं दिखाया गया. यह जानकारी सरकार को विज्ञापन के माध्यम से मिली. इसी प्रकार मोहल्ला क्लीनिक के मामले में भी कोई फाइल स्वास्थ्य मंत्री को नहीं दिखाई जा रही है.

नेता प्रतिपक्ष से बहस

मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष में सीधे सवाल जवाब हुए. मुख्यमंत्री ने कहा कि वे नेता प्रतिपक्ष को अपना नेता मानने को तैयार हैं. वे इस मामले में सीधे एलजी के पास चलें. सरकार उनके मुताबिक विधेयक में संशोधन भी करने को तैयार है. नेता प्रतिपक्ष का कहना था कि यह विधेयक कानूनी प्रक्रिया के तहत नहीं है.

अफसरों की छवि खराब की जा रही : एलजी

उपराज्यपाल अनिल बैजल की ओर से केंद्रीय गृह सचिव को दिल्ली विधानसभा की कमेटियों को लेकर लिखी गई एक चिट्ठी सामने आई है. चिट्ठी इसी साल 23 जुलाई को लिखी गई है. इसमें आरोप लगाए गए हैं कि दिल्ली विधानसभा की अथॉरिटी का बेजा इस्तेमाल कर अफसरों की छवि खराब की जा रही है.

अनिल बैजल ने केंद्रीय गृह सचिव को चिट्ठी में यह भी लिखा है कि किस तरह विधानसभा की कमेटियों के विशेषाधिकार हनन और विधानसभा की अवमानना का डर अधिकारियों को दिखाया जा रहा है. उन्होंने लिखा कि इस तरह से दिल्ली में सरकारी काम काज ठप हो जाएगा. दरअसल यह चिट्ठी, दिल्ली विधानसभा की नियम संबंधित कमेटी की दूसरी रिपोर्ट में प्रस्तावों के मद्देनजर लिखी गयी है. जिसमें विभागों से संबधित स्थायी समितियों (डीआरएससीएस) को कई अतिरिक्त अधिकार देने का जिक्र है. नियम समिति की रिपोर्ट में सेवा, विजिलेंस, गृह, लैंड एंड बिल्डिंग जो कि रिज़र्व विषय हैं उन्हें भी डीआरएससीएस के अंदर लाने का प्रस्ताव है. अनिल बैजल के मुताबिक ये संविधान की धारा 239एए के खिलाफ है.

अनिल बैजल अपनी चिट्ठी में यह भी लिखते हैं कि दिल्ली विधान सभा की स्थाई समितियों को वो अधिकार देने का प्रस्ताव है जो संसद की ऐसी ही कमेटियों के पास तक नहीं है.

मेट्रो में किराया वृद्धि के खिलाफ प्रस्ताव पास

मेट्रो में किराया बढ़ाने के खिलाफ दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र में प्रस्ताव पास किया गया. प्रस्ताव में किराया वृद्धि को आम आदमी के खिलाफ माना गया है. केंद्र सरकार के शहरी विकास मंत्रलय से मांग की गई है कि वह हस्तक्षेप कर डीएमआरसी के किराया वृद्धि के फैसले पर रोक लगाए. बुधवार को विधानसभा के विशेष सत्र में भी मेट्रो किराया वृद्धि का असर दिखाई दिया. इस मामले पर एक प्रस्ताव पास किया गया. प्रस्ताव में कहा गया कि दस अक्टूबर से मेट्रो का किराया बढ़ाना जनविरोधी है.

निर्माता निर्देशक अब चपरासी हो गए हैं : पहलाज निहलानी

35 सालों से इंडस्ट्री में फिल्म निर्माता रह चुके पहलाज निहलानी, फिल्म प्रमाण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष होने के साथ-साथ साल 2009 तक पिक्चर्स एंड टीवी प्रोग्राम प्रोड्यूसर्स संघ के अध्यक्ष भी थे. उन्हें नयी-नयी फिल्में बनाने का शौक है. अगर इन फिल्मों से कुछ मेसेज चला जाय तो उन्हें अच्छा लगता है.

स्पष्टभाषी पहलाज निहलानी को फिल्म प्रमाण बोर्ड के अध्यक्ष बनने के बाद काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. उन्हें ‘संस्कारी’ पहलाज निहलानी का नाम दिया गया, जिसे वे गलत नहीं मानते, क्योंकि जैसा वे दिखते हैं, अंदर से भी वैसे ही हैं. सेंसर बोर्ड में चीफ का पद छोड़ने के बाद एक बार फिर वे फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन और निर्माण के क्षेत्र में उतर कर बोल्ड और थ्रिलर फिल्म जुली 2 को लेकर आये हैं. उनसे हुई खरी-खरी बातचीत के अंश इस प्रकार है.

जूली 2 के टाइटल को लेकर कंट्रोवर्सी है कि आपने जूली के निर्माता से बिना पूछे अपनी फिल्म में ले लिया है, इस बारें में आपकी राय क्या है?

आजकल इंडस्ट्री में फिल्म रिलीज से पहले कुछ लोग शोर मचाने के लिए तत्पर रहते हैं. ये गाना, स्क्रिप्ट, कहानी सबके साथ होती है. असल में कार्पोरेट सेक्टर के इंडस्ट्री में आने से ये बवाल पैदा हो रहा है, क्योंकि वे लोग निर्धारित समय पर अपनी फिल्में रिलीज करना चाहते हैं. ऐसे में किसी भी कंट्रोवर्सी को वे कोर्ट में जाकर सेटल कर देते हैं, पर मैं ऐसा नहीं करूंगा. मैं जब सबकुछ ठीक हो जाए तभी फिल्म रिलीज करूंगा. फिल्म की टाइटल किसी की जागीर नहीं होती और उनके पास भी इसकी कोई प्रूफ नहीं है. मैं रिलैक्स हूं और किसी के ब्लैकमेल के ट्रैप में नहीं पड़ना चाहता. कोर्ट के न्याय का मैं इंतजार करूंगा.

पहले भी आपकी ऐसी कई फिल्मों के टाइटल को लेकर समस्या आई, ऐसा आपके साथ ही क्यों होता है?

फ्री टाइटल कोई भी ले सकता है, मैंने जी पी सिप्पी की टाइटल ‘इलजाम’ को लिया था और उन्हें थैंक्स दिया. कोई समस्या नहीं हुई. उस समय हर निर्माता का एक दूसरे से दोस्ताना रिश्ता हुआ करता था, जो अब नहीं है. ‘हथकड़ी’ के साथ भी ऐसा ही हुआ था. तब लोग एक दूसरे को लोग सपोर्ट किया करते थे, क्योंकि इंडस्ट्री को परिवार समझा जाता था, जबकि आज कमेटी में बैठकर लोग एक दूसरे की टांग खीचने पर लगे रहते हैं.

इस तरह की राजनीति से फिल्म इंडस्ट्री कितना ‘सफर’ करती है?

इंडस्ट्री ‘सफर’ करती है. आजकल बहुत सारी समस्याएं फिल्मों के साथ हो रही है. डायरेक्टली और इनडायरेक्टली बहुत सारे लोग इंडस्ट्री से जुड़ चुके हैं, जो पहले पता नहीं चलता था. पहले इंडिविजुअल निर्माता को अंडरवर्ल्ड फंडिंग करती थी, जिससे उनका इन्फ्लुएंस फिल्मों पर था. राजनेताओं की भी दखल अंदाजी थी. इसके अलावा कुछ कंस्ट्रक्शन वाले भी फिल्मों में पैसा लगाते थे. ये तरीका सहजता से चलता रहता था. इसमें जो शक्तिशाली होता था, उसका राज चलता था. इसके अलावा मनोरंजन, जो हिंदी सिनेमा में थी, जिसकी वजह से फिल्मों की छवि विश्व में उसकी डांस और संगीत की वजह से पौपुलर है, वह अब खत्म हो चुका है. पहले निर्देशक के बाद निर्माता आते थे, निर्माता को लोग अन्नदाता कहते थे, जबकि निर्देशक को सबका पालनहार मानते थे, क्योंकि उसे पूरी फिल्म पता होती थी. आज निर्माता, निर्देशक चपरासी हो गए है. वे केवल कूरियर सर्विस कर रहे हैं. एक्टर जो निर्देश देते हैं, उसी तरह से निर्देशक फिल्म बनाता रहता है. इसलिए फिल्मों के कंटेंट खत्म होते जा रहे हैं. बड़े से बड़े कलाकारों की फिल्में भी फ्लाप हो रही है. जबकि साउथ की फिल्म इंडस्ट्री आज भी अच्छी चल रही है. कला को वहां महत्व दिया जाता है, देसी कहानियों पर फिल्में बनती है. इसलिए केवल बाहुबली ही नहीं, कई अच्छी कहानी वाली फिल्में वहां बन रही है. उनकी ‘डब’ की हुई फिल्में यहां भी चलती है.

असल में जिस कहानी को आप ‘फील’ कर सकते हैं, वह चलती है. जिससे दर्शक अपने आप को जोड़ सकते हैं, वही हिट होती है. इसके अलावा जल्दी-जल्दी फिल्म बनाने की होड़ में भी सारे इमोशन आज खत्म होते जा रहे हैं. व्यक्ति की जो सोच होती है, उसी के आधार पर वह फिल्में बनाता है. किसी निर्माता निर्देशक को एक्शन, तो किसी को रोमांटिक फिल्में बनाने की इच्छा होती है. संगीत के साथ भी वैसा ही कुछ हो रहा है. पहले गाने, सिचुएशन के आधार पर होते थे, जिसे निर्माता निर्देशक बैठकर फिर उसे फिल्मों में प्रयोग करते थे. आज प्रीतम और ए.आर. रहमान जैसे संगीतकार अगर गाना बनाते हैं, तो कोई उन्हें पूछने के बजाय उन्हें भगवान मान अपनी फिल्मों में उनके गाने को ले लेते हैं, क्योंकि उनके पास तो आज वौइस ही नहीं है कि कुछ चर्चा वे कर सकें. अभी अच्छे संगीत केवल सोशल मीडिया पर ही आप सुन सकते हैं. इस रैकेट को खत्म करना जरुरी है. प्रोपोजल भी आज एजेंसी बनाती है. एक्टर से भी अधिक स्ट्रोंग कहानी है. वही फिल्म का हीरो होता है.

करेक्टर के आधार पर आज औडिशन नहीं लिए जाते, जो गलत हो रहा है. रियल कास्टिंग के लिए कलाकार को उनका चरित्र पहले देना चाहिए.

आपको फिल्म प्रमाण बोर्ड की अध्यक्ष होते हुए कई सारी आलोचनाओं से गुजरना पड़ा, इस बारें में क्या कहना चाहते हैं?

मैंने वहां कई सारी ऐसी चीजें देखी जो सही नहीं थी, मैंने उसका विरोध किया तो मुझे निकाल दिया. न तो मुझसे पूछकर मुझे रखा गया था न ही मुझसे पूछकर मुझे निकाला गया. अभी भी वैसी ही गाइड लाइन को लोग फौलो कर रहे हैं और निर्माता भी खुश हैं. जबकि मुझे बहुत कुछ कहा गया. सभी फिल्मों के लिए गाइड लाइन एक ही होते है, लेकिन आजकल कुछ फिल्में ट्रिब्यूनल से भी पास होती है. ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ भी इसी वजह से सबकी नजर में आई, नहीं तो इसे देखने वाला कोई नहीं था. ये सब पब्लिसिटी के फंडे हैं. सरकार फिल्म इंडस्ट्री से डर गयी है, इसलिए चेयरमैन बदल दिया. इंडस्ट्री ऐसी ही है, थैंकलेस जौब है और मैं इसका आदि हो चुका हूं.

क्या जिंदगी में कोई मलाल रह गया है?

व्यक्ति जब तक जिन्दा रहता है, उसकी इच्छाएं कम नहीं होती, पर मैं अपने काम से बहुत संतुष्ट हूं. मैंने इंडस्ट्री और समाज के लिए बहुत काम किया है. बचपन से ही मैंने ‘फण्ड रेजिंग’ का काम किया है. जहां भी मेरी जरूरत पड़ी, मैं वहां गया. आज मेरा परिवार है, मेरे तीन बेटे है, मैं अब दादा भी बन चुका हूं. जिसका माइंड स्ट्रोंग होता है, वह अपनी यात्रा जारी रखता है. मेरा उठना, बैठना, खाना सब फिल्म है और इसी में मैं आगे और कई अच्छी फिल्में बनाने की इच्छा रखता हूं.

इन औनलाइन टूल्स की मदद से आप भी सुधार सकते हैं अपनी ग्रामर

अगर आप औनलाइन ब्लौगिंग या लिखने का शौक रखते हैं तो ये खबर सिर्फ आपके लिए है, क्या आपने कभी सोचा है की आपके राइटअप में व्याकरण की गलतियां, पढ़ने वालों पर कितना बुरा प्रभाव डालती हैं. आप अपने लेखन को एरर फ्री बनाने के लिए आप कुछ टूल्स की मदद ले सकते हैं.

अपने आर्टिकल को चेक करने के लिए सबसे अच्छे टूल का इस्तेमाल करें. इन टूल्स से ना सिर्फ आप अपने आर्टिकल की व्याकरण चेक कर पाएंगे, साथ ही ये आर्टिकल की प्रूफरीडिंग भी करेंगे. यह सभी टूल्स अंग्रेजी भाषा को सपोर्ट करते हैं. ये टूल्स आपको औनलाईन मिल जाएंगे जहा जाकर आप अपने लेखन को सुधार सकते हैं और पहले से कहीं जादा आकर्षक बना सकते हैं.

तो चलिये आपको बताते हैं उन टूल्स के बारें में जो आपके लिए मददगार साबित हो सकता है.

Grammarly

यह टूल व्याकरण चेक करने के लिए औनलाइन मौजूद सबसे अच्छे टूल्स में से एक है. आप इस टूल को गूगल क्रोम में एक्सटेंशन के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इससे यह टूल हर वेबसाइट पर मौजूद आपके आर्टिकल को स्कैन कर लेगा. यानि की आप फेसबुक स्टेटस डालें या ट्वीट करें, यह सब जगह आपकी व्याकरण और एरर को चेक कर के ठीक कर देगा. यह फ्री और पेड दोनों वर्जन में उपलब्ध है.

SpellChecker

इस टूल की मदद से आप अपने कंटेंट में एरर ढूंढ सकते हैं. कभी आप जाने-अनजाने then की जगह than लिख देते हैं. यह टूल इसी तरह की गलतियों को ठीक करने में आपकी मदद करेगा. यह फ्री में डाउनलोड के लिए उपलब्ध है.

After The Deadline

इस टूल को उसी कंपनी द्वारा बनाया गया है, जिसने वर्डप्रेस ब्लौगिंग प्लेटफार्म बनाया है. इस टूल को व्याकरण से सम्बंधित गलतियां ढूंढ़ने के लिए बेस्ट माना जाता है. इस टूल से आप व्याकरण से सम्बंधित गलतियों के अलावा स्पेलिंग एरर भी ढूंढ पाएंगे. इसी के साथ आपके लेखन को और बेहतर बनाने के लिए इसमें सुझाव भी दिए जाते हैं. यह टूल कई एड-औन एक्सटेंशन भी औफर करता है.

भारतीय रेलवे दे रहा है फ्री में यात्रा करने का मौका, आप भी लाभ उठाइये

डिजिटल ट्रांजैक्शंस को बढ़ावा देने के लिए लाई गई भीम एप का इस्तेमाल करना अब आपके लिए फायदेमंद हो सकता है. भारतीय रेलवे ने 1 अक्टूबर को लकी ड्रौ स्कीम लौन्च की है. अब भीम और यूपीआई एप से भुगतान करने पर आपको रेलवे से फ्री में सफर करने का मौका मिल सकता है.

2016 में इस एप को भारत सरकार ने विमुद्रीकरण के वक्त लौंच किया था जिससे औनलाईन लेन देन हो सके.

क्या है स्कीम

भारतीय रेलवे की स्कीम के तहत हर महीने 5 लोगों को फ्री में सफर करने का मौका मिलेगा. इस स्कीम का लाभ वही लोग उठा पाएंगे जो भीम और यूपीआई एप से भुगतान करेंगे. इस स्कीम में कंप्यूटर के जरिए हर महीने 5 विजेताओं का नाम चुना जाएगा. इसके बाद उन्होंने टिकट के लिए जो भी भुगतान किया होगा, वो पैसे उन्हें रिफंड मिल जाएंगे. इस तरह उनका सफर फ्री हो जाएगा.

स्कीम का फायदा कैसे उठाएं

रेलवे की यह स्कीम 1 अक्टूबर से शुरू हुई है. यह स्कीम अगले 6 महीनों तक चलेगी. स्कीम की शर्तों के अनुसार इन एप से टिकट बुक करने के बाद आपको लकी ड्रौ के उसी महीने में सफर करना होगा. अगर टिकट बुक करने के बाद कैंसिल की गई तो आप इस स्कीम का लाभ नहीं उठा पाएंगे.

आईआरसीटीसी पर दिखेगा नाम

हर महीने लकी ड्रौ जीतने वालों के नाम आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर डिस्प्ले किए जाएंगे. इसके अलावा जीतने वालों को मेल के जरिए भी जानकारी दी जाएगी.

यह स्कीम सरकार का लोगों को डिजिटल लेन देन की ओर आकर्षित करने का एक और कदम है. इस स्कीम से जुडी पूरी जानकारी आपको आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर मिल जाएगी.

पर्यटन के नक्शे से गायब हुआ ताजमहल, क्या ‘चांदनी’ को रोक पाएंगे ‘आदित्य’

हजारों लोग आगरा पहुंच चुके हैं और हजारों और रास्ते में हैं. ये लोग आज ताजमहल पर शरद पूर्णिमा की बरसती चांदनी का लुत्फ उठाएंगे. इस संगमरमरी ऐतिहासिक इमारत पर आज की चांदनी की छटा वाकई अदभुद होती है, इतनी और ऐसी कि प्रकृति प्रेमी सुधबुध खो बैठते हैं. इनमें से कईयों को नहीं मालूम होगा कि अब ताजमहल उत्तरप्रदेश का पर्यटन स्थल नहीं रहा है, वहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कभी दरभंगा बिहार की एक रैली में कहा था कि ताजमहल भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है.

योगी ने जो कहा था वह कर भी दिखाया. इस साल उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा जारी 32 पृष्ठीय बुकलेट में से आगरा का ताजमहल गायब है. वही ताजमहल जिसे दुनिया का सातवां अजूबा कहा जाता है, जिसे देखने हर साल लाखों देसी विदेशी पर्यटक भारत और आगरा आते हैं और मुगल सम्राट शाहजहां की अपनी प्रेयसी मुमताज के प्रति दीवानगी के कायल हो जाते हैं.

यह महज खबर नहीं है बल्कि खबरदार कर देने वाली एक धमक भी है कि इतिहास दोबारा लिखा जा रहा है. अब उत्तर प्रदेश में दर्शनीय कुछ है तो वह गोरखपुर स्थित गोरखधाम मंदिर है, जिसके महंत सीएम हैं. मथुरा, बनारस और चित्रकूट भी प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं, क्योंकि इन धार्मिक स्थलों में हिन्दू देवी देवता विराजते हैं. यही नई भारतीय संस्कृति है, जिसकी इबारत बीते तीन सालों से आरएसएस के इशारे पर लिखी जा रही है.

शरद पूर्णिमा के ठीक 2 दिन पहले जब यह बुकलेट जारी हुई तो सरकार परस्त मीडिया ने भी अदभुद संयम दिखाया. किसी ने एतराज जताना तो दूर की बात है पूछा तक नहीं कि क्यों ताजमहल अब पर्यटन स्थल नहीं रहा, यह वही मीडिया है जो बात का बतंगड़ बनाने में माहिर है, लेकिन इतिहास को तोड़े मरोड़े जाने पर खामोश है.

कल को अगर देश हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया जाये, तब भी यह मीडिया हनीप्रीत के रंगीन किस्से गढ़ता नजर आए तो कोई हैरानी नहीं होगी. लोकतन्त्र और धर्म निरपेक्षता जैसे शब्द अर्थ खोने लगें, यह चिंता की बात किसी के लिए नहीं, इसके दूरगामी नतीजे देखने वाली आंखों में मोतियाबिंद हो गया है, जिसे सोशल मीडिया पर कुछ लोग मजाक में मोदियाबिन्द भी कहते हैं.

उदाहरण कई हैं जो बताते हैं कि इतिहास का पुनर्लेखन हो रहा है, इससे खुश हो रहे 15-20 फीसदी लोग महंगाई की बात नहीं करते. इस श्रेष्ठि वर्ग को एहसास है कि एक बार वर्ण व्यवस्था वाला दौर वापस भर आ जाये, फिर तो क्या मुसलमान क्या दलित और क्या पिछड़े सब के सब पहले की तरह हमारी पालकी ढोते नजर आएंगे. दशहरे पर इन दिनों की सबसे बड़ी अदालत ने नागपुर के रेशम बाग से कहा, गौ रक्षकों को घबराने की जरूरत नहीं, नरेंद्र मोदी अच्छा काम कर रहे हैं, कुछ कमियां हैं, किसानों और गरीबों के लिए भी उन्हें कुछ करना चाहिए. बात लोगों को समझ आ गई कि सुप्रीम कोर्ट तो यूं ही कहता रहता है कि सरकार गौ रक्षकों की हिंसा को काबू करे.

गरीब और किसान फेशनेबुल मसले हैं, ये मेन्यू के मेन कोर्स नहीं हैं, बल्कि चटनी, अचार हैं जो छोटे ढाबों तक में मुफ्त में परोसे जाते हैं. इनका कोई दाम नहीं होता लेकिन ये जरूरी हैं इसलिए इन्हें पालकी ढोने वाले युग में भरपेट खाना खिलाया जाएगा ताकि ये मेहनत कर सकें.

यह वर्ग शरद पूर्णिमा नहीं मनाता, न ही ताजमहल देखने आगरा जाता है, यह वर्ग प्यार नहीं करता सेक्स भर करता है इसलिए यह मुख्यधारा नहीं है. इसे अपने उद्धार के लिए मंदिरों की जरूरत है, यह बात योगी से बेहतर कौन समझ सकता है इसलिए उन्होंने गरीबों की मोहब्बत का मज़ाक उड़ाते ताजमहल को ही पर्यटन के नक्शे से गायब कर दिया. भारतीय संस्कृति शहंशाहों की नहीं बल्कि राजनों, आर्यों और तातों के अलावा ऋषि मुनियों की है, इसलिए अगर ऐतिहासिक नजरिए से ताजमहल को तालमहल साबित नहीं किया जा सकता, तो कोई बात नहीं, उसे धीरे धीरे खंडहर में तब्दील हो जाने दो, रही बात उस पर चांदनी बरसने की तो कुछ सालों बाद उस के ऊपर तम्बू भी खिंचवा देंगे और कोई कुछ नहीं बोलेगा.

बोलने वालों के मुंह बंद करने की कला भी खूब फल फूल रही है. यह बनी रहे इसके लिए मोदी और योगी जरूरी हैं, वे ही हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे और इस बाबत थोड़ी सी मंहगाई बेरोजगारी बढ़ती है तो वह तो बर्दाश्त करना पड़ेगी. यह बात वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कुछ यूं कही थी कि अगर विकास चाहिए तो उसकी कीमत तो देनी पड़ेगी. अब लोग अगर महाराणा प्रताप को अकबर से जीतते हुये देखना चाहते हैं तो उन्हें सौ रुपए लीटर का पेट्रोल खरीदने तैयार रहना चाहिए.

दर्शकों को सम्मोहित करने वाली नाट्य प्रस्तुति है ‘यहां’

कल्पनाशील नाट्यकार और निर्देशक विनय शर्मा की चर्चित नाट्य प्रस्तुति ‘यहां’ का आनंद देश के कई शहरों के बाद अब आप दिल्ली में उठा सकते हैं. आगामी 9 अक्टूबर को नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में शाम 7 बजे से इस अदभुत नाट्य कृति का मंचन किया जाएगा.

‘यहां’ का निर्माण कोलकाता की जानीमानी नाट्य संस्था ‘पदातिक’, जिसने प्रयोगात्मक नाट्य प्रस्तुतियों से नाट्य प्रेमियों के दिलों में अपनी अलग पहचान बनाई है और रंग परंपरा को समृद्ध किया है, ने किया है.

‘यहां’ अनुपम और अदभुत इसलिए भी है क्योंकि इस नाटक में विनय शर्मा ने बिना किसी कथा सूत्र या स्टोरी लाइन के विशुद्ध वैसक्तिक अनुभूतियों को मंच पर चित्रित करने का नया प्रयोग किया है. अनूभूतियों की अभिव्यक्ति कितनी कठिन होती है यह सहज ही समझा जा सकता है. लेकिन इस कठिन काम को बड़ी सहजता से अंजाम दिया है ‘पदातिक’ की दो अत्यंत सशक्त अभिनेत्रियों संचयिता भट्टाचार्य और अनुभा फतेहपुरिया ने, जिन्होंने एब्सट्रैक्ट यानि अर्मूत अनुभूतियों को अपने अभिनय में समूर्त कर दिया है.

‘यहां’ का प्रारंभ दो महिलाओं से होता है, जो जुड़वा आत्माएं हैं, जो समय काल विहीन अंतरिक्ष में हैं और अपनी अपनी समझ से चीजों को देखती समझती हैं. फिर  वे एक दूसरे के जीवन में प्रवेश करती हैं. उनकी अनुभूतियां कहीं यर्थाथवादी हैं तो कहीं प्रतीकात्मक.

बिना किसी कथा सूत्र के डेढ़ घंटे तक दर्शकों को सम्मोहन में बांधे रखना मुश्किल काम है जिसे सहजता से अंजाम दिया है विनय शर्मा के निर्देशन में संचयिता भट्टाचार्य और अनुभा फतेहपुरिया ने.

अगर आप भी इस सम्मोहन को साक्षात देखना चाहते हैं तो 9 अक्टूबर को शाम 7 बजे इंडिया हैबिटेट सेंटर पहुंचना न भूलें.

सरिता के पत्रकार को गौरी लंकेश की तरह अंजाम भुगतने की धमकी

दिल्ली प्रेस के वरिष्ठ पत्रकार जगदीश पंवार को बंगलुरु की पत्रकार गौरी लंकेश की तरह अंजाम भुगतने की धमकी मिली है. 17 सितंबर को व्हाटसएप पर एक अनजान मोबाइल नंबर से आए मैसेज में उन्हें मोदी सरकार, भाजपा और संघ तथा हिंदू विरोध में लिखने पर गौरी की तरह मिटा देने की चेतावनी दी गई है.

मैसेज में लिखा है,‘‘ गौरी लंकेश को क्यों मारा? गौरी लंकेश एक पत्रकार थीं. उस का बेंगलोर में हिंदूवादी ताकतों ने कत्ल कर दिया. प्रश्न उठता है कि  हिंदूवादी ताकतों ने एक हिंदू पत्रकार को क्यों मारा? क्योंकि गौरी मोदी सरकार के खिलाफ लिखती थीं. गौरी आरएसएस और भाजपा के खिलाफ लिखती थीं. गौरी गद्दार थीं. वो राष्ट्रविरोधी और हिंदू विरोधी थीं. अब अगर इस देश में कोई भी व्यक्ति मोदी जी के खिलाफ या आरएसएस या भाजपा के खिलाफ लिखने की हिम्मत करेगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा. मुसलमानों के साथ साथ ऐसे गद्दारों को भी मिटा देंगे.’’

मोबाइल नंबर 8104970579 से मैसेज मिलने के बाद यह नंबर बंद जा रहा है और इस पर भेजे गए मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया गया.

हाल में सरिता पत्रिका में जगदीश पंवार के कई लेख प्रकाशित हुए हैं, जिन में मोब लिंचिंग को ले कर ‘धर्मजनित भीडतंत्र का खतरा,’ ‘लोकतंत्र पर हावी धर्मतंत्र’, ‘विकास की सुर्खियां गायब’, ‘जीएसटी-क्या काले धन पर रोक लग पाएगी?’, ‘नस्लवाद का नासूर’, ‘मोदी ट्रंप मुलाकात-दुनिया से अलग थलग पड़ते भारत और अमेरिका’, ‘युवा नेता हैं कहां?’,‘सत्तर साल की आजादी में औरत कितनी आजाद’, ‘गुरमीत राम रहीम कथा-आस्था का धंधा’ और ‘गौरी लंकेश की हत्या-असहमति के स्वर खामोश’ प्रमुख हैं.

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इस तरह की धमकी दिल्ली, एनसीआर के तीन और पत्रकारों को भी मिली है. टाइम्स औफ इंडिया के पत्रकार के अलावा नोएडा के एक टीवी चैनल, एक न्यूज पोर्टल का पत्रकार भी है. पत्रकारों को भेजा गया संदेश एक जैसा है और एक ही समय में भेजा गया है. इन पत्रकारों ने दिल्ली पुलिस में शिकायत दी है.  दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता मधुर वर्मा का कहना है कि मामला साइबर सेल को सौंप दिया गया है और नंबर ट्रेस कर के जांच शुरू कराई जा रही है. पत्रकारों से कहा गया है कि वे धमकी का मैसेज और मोबाइल नंबर उपलब्ध कराएं.

उत्तर प्रदेश में खुद अपनी पीठ थपथपा रही योगी सरकार

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के 6 माह पूरे हो गये हैं. इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और उनके मंत्रिमंडल के लोग अपनी पीठ खुद ही थपथपा रहे हैं. वैसे तो योगी सरकार को अपने कामकाज का लेखाजोखा पेश करना चाहिये था. सरकार को अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में बताना चाहिये था. योगी सरकार अपने पहले के मुख्यमंत्रियों के कामकाज पर ही बात कर रही है. अपनी पीठ थपथपाने में योगी सरकार प्रचारतंत्र का पूरा सहारा ले रही है.

चमचमाता प्रचार तंत्र योगी सरकार की कुछ ऐसी तस्वीर पेश कर रहा है जैसे कुछ समय पहले तक अखिलेश सरकार की पेश कर रहा था. एलसीडी लगी गाडियां और होर्डिंग दिन में भी अपनी चमक बिखेरते सरकार का प्रचार कर रहे हैं. प्रचार में ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे 6 माह में ही योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश का कायाकल्प कर दिया हो.

सरकार खुद ऐसी रिपोर्ट पेश कर रही है जिससे लग रहा है कि वह अपनी पीठ खुद थपथपा रही हो. योगी सरकार ने अभी तक एक भी ऐसा काम नहीं किया है जो इस सरकार की अपनी सोच को दिखा सके. यह सच है कि उत्तर प्रदेश बड़ा प्रदेश है. यहां 6 माह में बदलाव दिखना बहुत मुश्किल काम है. पर 6 माह में योगी सरकार को ऐसा कोई काम करना चाहिये था जिससे जनता को यह लगता कि यह सरकार कुछ अलग करना चाहती है.

अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुये लखनऊ मेट्रो और हाइवे जैसी योजनाओं को बहुत पहले ही अमल में लाना शुरू कर दिया था. मायावती की भी बात करें तो लखनऊ के कायाकल्प का बहुत बड़ा श्रेय उनकी सरकार को जाता है.

योगी सरकार ने जमीनी स्तर पर एक भी ऐसे काम की शुरुआत नहीं कि है जो इस सरकार की पहचान बन सके. उत्तर प्रदेश के विकास की एक भी योजना धरातल पर उतरते नहीं दिख रही है. उत्तर प्रदेश के लोगों को रोजगार और दूसरी विकास योजनाओं का इंतजार है. जमीनी स्तर पर इस तरह का कोई प्लान सामने नहीं दिख रहा है. प्रशासनिक रूप से योगी सरकार ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे जनता को राहत पहुंचे. भ्रष्टाचार से लेकर अपराध तक बढ़ा हुआ है. सरकार की गलत नीतियों के कारण मंहगाई बढ़ रही है. सरकार की खदान नीति न स्पष्ट होने से बालू और मौरंग जैसी जरूरीं चीजों की कीमत कई गुना बढ़ गई है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ केवल भाजपा के ‘पोस्टर ब्वाय’ बन कर रह गये हैं. भाजपा उनको हिन्दुत्व का चेहरा बनाकर वोट हासिल करने के लिये प्रयोग कर रही है. अपने भगवा वस्त्रों के कारण वह भीड़ में अलग दिखते हैं. भाजपा अखिलेश यादव की आलोचना करते कई मुख्यमंत्री होने का आरोप लगाती थी. आज भाजपा के 3 घोषित मुख्यमंत्री भी प्रदेश को कोई अलग पहचान नहीं दे पा रहे हैं. जानकार लोग कहते हैं कि भाजपा के 3 मुख्यमंत्रियों के ऊपर भी रिमोट कंट्रोल है. इस वजह से केवल योगी आदित्यनाथ ही नहीं दूसरे 2 उप मुख्यमंत्री डाक्टर दिनेश शर्मा और केशव मौर्य अपनी मर्जी का कुछ कर नही पा रहे हैं.

भाजपा कांग्रेस के जिस रिमोट कंट्रोल की आलोचना करती थी, आज वही रिमोट कंट्रोल वह अपनी पार्टी में प्रयोग कर रही है. भाजपा योगी आदित्यनाथ का उपयोग उत्तर प्रदेश के बाहर दूसरे प्रदेशों में करने का काम कर रही है. जिससे हिन्दुत्व के वोट हासिल किये जा सके.

भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर विकास का जो सपना दिखाया था वह साकार होते नहीं दिख रहा. नोटबंदी और जीएसटी को लेकर अब पार्टी में ही अलग अलग बयान मुखर हो रहे हैं. अब तो सरकारी आंकडे भी गवाही देने लगे है कि यह नीतियां देश के विकास में सबसे बड़ा रोडा बन गई. ऐसे में भाजपा उत्तर से लेकर दक्षिण तक हिन्दुत्व के बल पर वोट लेना चाहती है. ऐसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाजपा के अच्छे पोस्टर ब्वाय बन सकते हैं. उत्तर प्रदेश के लोगों ने जिस उम्मीद से सरकार को वोट दिया था, वह पूरी नहीं हो रही है.

लुढ़कती अर्थव्यवस्था और मोदी का एक देश एक टैक्स का वादा

हर कट्टरपंथी समाज का एक गुण होता है कि वह सुनीसुनाई बात को परम सत्य मान लेता है. वह पुरखों की या महान माने जाने वाले लोगों की बातों को बिना परखे, बिना तर्क की कसौटी पर जांचे, बिना वैज्ञानिक परीक्षण के मान लेता है. यह वही समाज है जो गणेश का दूध पीना 21वीं सदी में सही मान लेता है, जो कुतुबमीनार को किसी राजा की रानी के लिए जमुना की पूजा का मंच मान लेता है और गणेश के सिर को सर्जरी की कला का कमाल मान लेता है.

इसी समाज के नेता सुनीसुनाई बातों पर भरोसा कर रहे थे कि देश में कालाधन या तो स्विस बैंकों में जमा है या लोगों की तिजोरियों में बंद है. इसीलिए नरेंद्र मोदी ने 2014 में वादा किया कि जीतने के बाद हर नागरिक को 15 लाख रुपए मिल जाएंगे और 8 नवंबर,  2016 को वादा किया कि 1 जनवरी, 2017 से न कालाधन होगा, न रिश्वतखोरी. देश प्रगति की कुलांचें भरेगा.

यही वादा कर के ‘एक देश एक टैक्स’ लाया गया कि जीएसटी से न ब्लैक इकोनौमी होगी और न कर चोरी.

इन सब से कर चोरी तो जरूर रुकेगी क्योंकि लोगों के पास पैसे ही नहीं बचेंगे. रिश्वतखोर कांग्रेस सरकार के जमाने में अर्थव्यवस्था जिस तरह बढ़ रही थी उस पर ब्रेक लग गया है. आंकड़े बता रहे हैं कि नोटबंदी का लाभ जीरो मिला है क्योंकि सारे नोट ही नहीं, शायद सारों से ज्यादा, नकली सहित, बैंकों में पहुंच गए. नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था को बीमार कर दिया था जिस से वह लड़खड़ा कर उठ रही ही थी कि अब जीएसटी की मार ने उस का सिर फोड़ दिया है.

अर्थव्यवस्था की प्रगति, जो 6.9 से 7.3 प्रतिशत से बढ़ रही थी, अब 5.2 प्रतिशत रह गई है. भविष्य में यह और ज्यादा घट सकती है. हम युवाशक्ति पर गर्व करते हैं पर गांवों और शहरों में युवाओं को काम नहीं मिल रहा है. वहीं, किसान व आमलोग अपनी संपत्ति बेचने की फिराक में है. खेती व शहरी जमीनों के दाम गिर रहे हैं.

नीतिनिर्धारक दरअसल प्रचारकों की भाषा में सोचते हैं कि अंतिम सत्य किताबों में, शोधों में नहीं, प्रवचनों और मंत्रों में होता है. बुलेट ट्रेन मंत्री की रेलों में दुर्घटनाएं होती हैं और जीवन उद्धार करने वाले भगवा मुख्यमंत्री के अपने शहर में बच्चे जीवन त्याग रहे हैं, वह भी सरकारी अस्पताल में.

हां, एक मोरचे पर भारी सफलता है- वोटों के मोरचे पर. केंद्र सरकार को अभी भी भारी समर्थन मिल रहा है. बिहार में सत्ताधारी एक पूरी पार्टी उस के साथ आ मिली है और ऐसा ही तमिलनाडु में होने जा रहा है. गुरु राम रहीम जिन तथाकथित चमत्कारों का दावा कर के लोगों को वश में करता था वह कला बहुतों को आती है.

नोटबंदी के बाद कमाई करने वालों की खैर नहीं

नोटबंदी की पिछले साल 8 नवंबर को की गई घोषणा कुछ लोगों के लिए बहार ले कर आई तो कुछ के लिए आफत. नोटबंदी के कारण कई लोगों के समक्ष विवाह आदि के सामाजिक दायित्वों के निर्वहन का संकट पैदा हो गया था तो कुछ के लिए यह अवसर बन कर आया है. काली कमाई वालों ने लोगों के खातों में पैसा जमा करा दिए और बाद में उन से वसूल लिए होंगे.

यही वजह है कि रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि 99 फीसदी पुराने नोट लौट आए हैं. सरकार पर विपक्ष तीर चला रहा है कि काली कमाई देश में नहीं थी, इसलिए पैसा रिजर्व बैंक में लौट आया है. सरकार इस हमले से सख्त हो गई है. अपना फैसला जायज बताते हुए उस ने उन खातों की सूची तैयार कर दी है जिन में नोटबंदी के दौरान आय के ज्ञात स्रोतों से ज्यादा पैसा आया था.

इस तरह करीब साढ़े 13 लाख बैंक खातों को आयकर विभाग ने संदेह के घेरे में रख दिया है. इन में से कइयों से पूछताछ भी की जा रही है. नोटबंदी के बाद इन खातों में 2.90 लाख करोड़ रुपए जमा किए गए थे. इन में करीब 9 लाख खाते ऐसे हैं जिन में नोटबंदी के बाद बड़ा पैसा जमा किया गया था. अब सवाल है कि नोटबंदी से पहले यह पैसा घर पर क्यों रखा गया था? नोटबंदी की घोषणा होते ही यह पैसा अचानक बैंकों में कैसे पहुंच गया? इन पैसों का स्रोत पता किया जा रहा है. रिजर्व बैंक का कहना है इस तरह के 35 हजार से ज्यादा खाताधारकों से पूछताछ की गई है. उन से बैंकों ने औनलाइन जानकारी मांगी है. इन मामलों की बारीकी से  छानबीन कर के दोषियों को जेल भेजा जाना आवश्यक है. इस के लिए दंड का कड़ा प्रावधान किया जाना चाहिए. लोग अब रिकौर्ड में आने वाले मामलों में भी खुल्लमखुल्ला चोरी करने लगे हैं. यह ढीठपन रुके, भ्रष्टाचारी डरे, इसलिए सीधे जेल की व्यवस्था होनी चाहिए.

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