Download App

करेंगे ये पांच काम तो नहीं होगी भविष्य में पैसों की कमी

30-35 साल तक नौकरी या बिजनेस करने के बाद भी अधिकांश लोगों के पास रिटायरमेंट के बाद पैसा नहीं होता. कारण यह है कि आमतौर पर हम अपने करियर के शुरुआती सालों में सेविंग और इनवेस्टमेंट पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. फाइनेंशियल प्लानिंग के नजरिए से देखें तो इससे हम आसान सेविंग के सुनहरे साल खो देते हैं. रिटायरमेंट के लिए प्लानिंग उसी वक्त शुरू कर देनी चाहिए, जब आप कमाना शुरू करते हैं. चलिए आज हम आपको बता रहे हैं पांच ऐसे रूल जिनका पालन कर आप अपने रिटायरमेंट के लिए करोड़ों रुपए का फंड बना सकते हैं.

इनकम का 10 फीसदी जरूर बचाएं

रिटायरमेंट प्लानिंग का पहला रूल है कि आप अपनी मासिक इनकम का 10 फीसदी जरूरी बचाएं. अगर आप नौकरी करते हैं तो आपके प्रोविडेंट फंड में इतनी रकम जाती है. आज आपको यह रकम थोड़ी लग सकती है लेकिन लंबी अवधि में कंपाउंडिंग की पावर इसे बड़ी रकम में तब्दील कर देगी. अगर आप नौकरी नहीं करते हैं और बिजनेस करते हैं तो आप अपनी इनकम का 10 फीसदी लंबी अवधि के लिए म्यूचुअल फंड में लगा सकते हैं.

पीएफ फंड से बीच में न निकालें पैसा

आप जब भी नौकरी बदलते हैं तो आपकी रिटायरमेंट प्लानिंग दांव पर होती है. इस समय आपके पास पीएफ निकालने या पीएफ ट्रांसफर कराने का विकल्प होता है. ऐसे में कई बार लोग तात्कालिक जरूरतों के लिए पीएफ निकाल लेते हैं. ऐसा करना अपनी रिटायरमेंट प्लानिंग को दांव पर लगाना होता है. अगर कोई आपात स्थिति न हो तो पीएफ निकालने से बचना चाहिए.

आय बढ़ने के साथ निवेश बढ़ाएं

लोग इनकम बढ़ने के साथ अपने निवेश में इजाफा करना जरूरी नहीं समझते. लेकिन ऐसा करना जरूरी है. आप अपनी इनकम में हुई बढ़ोतरी के मुताबिक हर साल अगर अपना निवेश बढ़ाते हैं तो आप बढ़ती हुई महंगाई से अपने फंड को सुरक्षित रखेंगे और रिटायरमेंट के लिए एक बड़ी रकम भी बचा सकेंगे.

बुरे समय के लिए इमरजेंसी फंड बनाएं

अगर आप चाहते हैं कि आपकी रिटायरमेंट की प्लानिंग पर कोई आंच न आए तो आप एक इमरजेंसी फंड जरूर बनाएं. इमरजेंसी फंड आपकी मासिक आय का पांच गुना तक होना चाहिए. अगर शौर्ट नोटिस पर आपकी नौकरी चली जाती है तो कुछ महीने के लिए आप आसानी से अपने खर्चे को मैनेज कर सकते हैं और आपकी रिटायमेंट प्लानिंग पर भी इसका खास असर नहीं होगा.

बच्चों की शिक्षा के लिए लें लोन

माता-पिता अपने बच्चों की एजुकेशन के लिए खास तौर पर सेविंग करते हैं. इससे उनकी रिटायरमेंट सेविंग प्रभावित होती है. आजकल बैंक आसानी से एजुकेशन लोन देते हैं. ऐसे में आप बच्चों की एजुकेशन के लिए लोन ले सकते हैं. इससे आपकी रिटायरमेंट सेविंग में कोई बाधा नहीं आएगी.

ये है वो रिकार्ड जिसे तोड़ना आज भी सचिन के लिए सपना है

क्रिकेट के खेल में कई भारतीय दिग्गज हुए हैं. इन दिग्गज खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय मैच में कई रिकार्ड बनाए हैं. लेकिन भारतीय क्रिकेट इतिहास में एक ऐसे भी खिलाड़ी हुए हैं जिन्होंने सिर्फ 10 अंतरराष्ट्रीय मैच खेला लेकिन सबके चहेते बन गए. इस खिलाड़ी ने भारतीय क्रिकेट को एक अलग मुकाम तक पहुंचा दिया. इस दिग्गज बल्लेबाज ने रणजी मैच में ऐसे रिकार्ड बनाए हैं जिसे तोड़ पाना मुश्किल है. दरअसल हम बात कर रहे हैं दिग्गज भारतीय बल्लेबाज विजय मर्चेंट की.

मुंबई के इस दिग्गज खिलाड़ी का घरेलू क्रिकेट में शानदार रिकार्ड रहा, लेकिन दुर्भाग्य से दूसरे विश्वयुद्ध ने उनका अंतरराष्ट्रीय करियर खत्म कर दिया. 12 अक्टूबर 1911 को जन्मे विजय मर्चेंट को अपने वक्त में डौन ब्रैडमैन और कौम्पटन जैसे खिलाड़ियों में गिना जाता था.

22 साल की उम्र में उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ 1933-34 में अपना पहला टेस्ट खेला था. वहां से वो 1951 तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलते रहे. विजय मर्चेंट को भारत का ‘ब्रैडमैन’ कहा जाता था. रिटायर होने के बाद विजय मर्चेंट चयनकर्ता भी रहे. 27 अक्टूबर, 1987 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातें.

इंग्लिश टीचर के कारण बदल गया नाम

विजय मर्चेंट का नाम विजय ठाकरसे हुआ करता था. एक बार बचपन में उनकी इंग्लिश टीचर ने उनसे उनके नाम और पापा के प्रोफेशन के बारे में पूछा. विजय ने अपना नाम बताया. फिर पापा का प्रोफेशन ‘मर्चेंट’ बताया. पर टीचर नाम और प्रोफेशन में कंफ्यूज कर गई और विजय का नाम विजय ठाकरसे से विजय मर्चेंट हो गया.

रणजी ट्रौफी के ब्रेडमैन

विजय मर्चेंट को यदि रणजी ट्रौफी का ब्रेडमैन कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. मर्चेंट ने रणजी ट्रौफी में 98.75 की औसत से 3639 रन बनाए. सचिन इस टूर्नामेंट में 85.62 की औसत से 4281 रन बनाए हैं.

शतक बनाने वाले सबसे उम्रदराज खिलाड़ी

टेस्ट में मर्चेंट ने 3 शतक लगाए, इनमें से दो शतक अंतिम दो पारियों में बने. मर्चेंट ने अपना आखिरी टेस्ट दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में इंग्लैंड के खिलाफ खेला था. यह शतक पांच साल के बाद उस समय बना जब 1951 में विजय मर्चेंट 40 साल 21 दिन की उम्र में कोटला में खेल रहे थे. उन्होंने पहली पारी में 154 रन बनाए यह सबसे उम्रदराज खिलाड़ी द्वारा लगाया गया शतक था.

फर्स्ट क्लास क्रिकेट में दूसरे सबसे बड़े बल्लेबाज

विजय मर्चेंट ने ज्यादा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेला, लेकिन फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उनका दबदबा बना रहा. उन्होंने 150 मैचों में 71.64 की औसत से रन बनाए. इनमें 45 शतक, और 50 अर्धशतक शामिल हैं. औसत के मामले में डौन ब्रेडमैन (95.14) के बाद वह दूसरे नंबर पर हैं.

गांधी गिरफ्तार थे तो क्रिकेट खेलने से मना कर दिया

1933 में टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करने वाले मर्चेंट ने एक बार इंग्लैंड के खिलाफ एक सीरीज खेलने से मना कर दिया था क्योंकि महात्मा गांधी और कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था. चार साल बाद वो इंग्लैंड टूर पर जाने को तब तैयार हुए जब सारे लीडर जेल से बाहर आ गए थे.

जब एमसीसी टीम ने 1933 में भारत का दौरा किया तो विजय मर्चेंट की बहन लक्ष्मी महात्मा गांधी का औटोग्राफ लेने के लिए उनके पास गई. संयोग से उन्होंने औटोग्राफ देने के लिए लक्ष्मी की किताब का जो पेज खोला उसमें 1933-34 की एमसीसी टीम के खिलाड़ियों के हस्ताक्षर थे. इस टीम के 17वें सदस्य के रूप में विजय मर्चेंट शामिल थे. गांधी जी ने इसी पेज पर औटोग्राफ दिया.

अंग्रेजों को अपने खेल से बनाया दीवाना

अंग्रेज खिलाड़ी विजय मर्चेंट के खेल से बहुत प्रभावित थे. अंग्रेज खिलाड़ी सीबी फ्रे ने कहा था, चलो इसको सफेद रंग से रंग देते हैं और इसे अपने साथ आस्ट्रेलिया ओपनर बनाकर ले चलते हैं. आप इससे से विजय की लोकप्रियता का अंदाजा लगा सकते हैं. विजय ने अपने दो इंग्लैंड टूर पर मिडिल और्डर में खेलते हुए 800 रन जड़ दिए थे.

क्या आपने देखी तैमूर की बहन इनाया की पहली झलक

करीना कपूर के बेटे तैमूर अली खान अक्‍सर अपनी क्‍यूट फोटोज को लेकर सुर्खियों में बने रहते हैं. अब तैमूर के बाद उनकी बहन इनाया की पहली तस्वीर ने सबका ध्‍यान अपनी ओर खींचा है.

जी हां हम बात कर रहे हैं तैमूर की बुआ और अभिनेत्री सोहा अली खान की बेटी इनाया की पहली तस्वीर की.

A post shared by Soha (@sakpataudi) on

अपने मदरहुड को इंज्‍वाय कर रहीं सोहा अली खान ने पहली बार अपने पति कुणाल खेमू के साथ अपनी बेटी इनाया की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है, जो खूब वायरल हो रही है. इस तस्वीर में कुणाल बड़े ध्‍यान से अपनी बेटी को पकड़े हुए हैं. तस्वीर में बेबी गर्ल का चेहरा तो नहीं दिख रहा है पर पापा का बेटी के लिए प्यार जरूर झलक रहा है.

आपको बता दें कि, कुणाल-सोहा की बेबी गर्ल का नामकरण कुछ दिन पहले ही किया गया था. इस बेबी गर्ल का नाम इनाया नौमी खेमू है. जिसकी जानकारी खुद कुणाल ने ट्विटर के जरिए दी थी.

बताते चलें कि, करीना कपूर खान की तरह ही मां बनने के बाद सोहा भी अपना काम जारी रखेंगी. सोहा ‘रंग दे बसंती’, ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स’, ‘दिल मांगे मोर’ जैसी फिल्मों में नजर आ चुकी हैं. खबर है कि दिसंबर से वो अपनी अगली फिल्म साहेब बीवी और गैंगस्टर 3 की शूटिंग शुरू करेंगी. वहीं कुणाल 19 अक्टूबर को रिलीज होने वाली फिल्म गोलमाल अगेन में नजर आएंगे.

बता दें कि सोहा अली खान और कुणाल खेमू हाल ही में एक बेटी की माता-पिता बने हैं सोहा ने 29 सिंतबर को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्‍पताल में ‘महानवमी’ पर बेटी को जन्‍म दिया. जिसकी खबर खुद कुणाल खेमू ने सोशल मीडिया पर दी थी. कुणाल ने एक ट्वीट कर लिखा, ‘हमें यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि आज के शुभ दिन हमारे घर बेटी का जन्म हुआ है. सोहा और बेटी का स्वास्थ्य अच्छा है. हम आपके प्यार और आशीर्वाद के लिए शुक्रिया अदा करते हैं.’

मालूम हो कि सोहा ने 25 जनवरी, 2015 को अपने लान्ग टाइम ब्वायफ्रेंड और एक्टर कुणाल खेमू के साथ शादी की थी. इनकी मुलाकात साल 2009 में फिल्म ‘ढूंढते रह जाओगे’ के सेट पर हुई थी. तील साल डेट और फिर लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद, इन्होंने जनवरी 2015 में शादी की थी.

राम मंदिर नहीं अब योगी सरकार लगाएगी ‘राम की मूर्ति’

संविधान भले ही धर्म की राजनीति को गलत माने. धर्म को राजनीति से अलग करके नहीं देखा जा सकता. अयोध्या में अब उत्तर प्रदेश की सरकार राम मंदिर के बजाये ‘राम की मूर्ति’ लगाने की योजना बना रही है. इसको अयोध्या के पर्यटन से जोड़ कर योजना तैयार की जा रही है. पर्यटन विभाग अयोध्या में सरयू नदी के किनारे 100 मीटर ऊंची राम की मूर्ति लगायेगा. इस मूर्ति का जो डिजाइन पर्यटन विभाग तैयार कर रहा है वह दूसरी राम के मूर्तियों से अलग होगा.

इस मूर्ति में राम को धनुष लिये दिखाया जायेगा. अगर सबकुछ ठीक रहा तो दीवाली तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरयू किनारे उस जगह पर भूमिपूजन कर सकते हैं. भाजपा के रणनीतिकार अब इस बात पर चर्चा कर रहे है कि ‘राम की मूर्ति’ की ऊंचाई क्या होनी चाहिये. पार्टी के एक वर्ग का मानना है कि यह मूर्ति भारत में सबसे बड़ी होनी चाहिये.

देश में सबसे ऊंची मूर्तियों में अभी तक सरदार पटेल की बनने वाली थी. इसकी ऊंचाई 182 मीटर रखी जानी है. इसके साथ महाराष्ट्र में 210 मीटर ऊंची शिवाजी की मूर्ति लगाई जानी है. इन दोनों का ही भूमि पूजन हो चुका है. राम की मूर्ति को अगर इन से छोटा रखा गया तो इससे राम का अनादर होगा. 2014 के लोकसभा चुनाव में सरदार पटेल की मूर्ति बड़ा मुद्दा था. इसको बनाने के लिये गांव गांव में हर घर से लोहा दान मांगा गया था. अभी तक यह मूर्ति बन कर तैयार नहीं हुई है. गुजरात सरकार इस मूर्ति को लगा रही है. गुजरात सरकार के बाद महाराष्ट्र सरकार ने शिवाजी की मूर्ति लगाने की पहल शुरू कर दी. इसका भूमि पूजन हो चुका है.

गुजरात और महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश की सरकार ने राम की मूर्ति को लगाने की शुरुआत कर दी है. सरयू नदी किनारे बनने वाली इस मूर्ति को राम मंदिर से दूर रखा गया है. पर्यटन विभाग 100 मीटर ऊंची मूर्ति लगाने का प्रस्ताव बना चुका है. अब मूर्ति की ऊंचाई को लेकर बदलाव की मांग की जा रही है. भाजपा 2019 के चुनाव से पहले राम की मूर्ति को लगवा देना चाहती है. पर्यटन विभाग नई अयोध्या तैयार करना चाहती है. जिससे पर्यटक ज्यादा से ज्यादा अयोध्या आ सकें.

अयोध्या के संत इसे राम मंदिर से जोड़ कर देखने को तैयार नहीं हैं. वह कहते हैं कि राम मंदिर और राम की मूर्ति अलग अलग मुद्दा है. दोनों को आपस में जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिये. अयोध्या में राम मंदिर का महत्व गर्भगृह से जुड़ा है. उससे अलग कहीं भी राम मंदिर बनाने या राम की मूर्ति लगाने को धार्मिक भावनाओं को पूरा नहीं करेगा. भाजपा इस तरह के काम से लोगों का ध्यान राम मंदिर से हटा नहीं सकती है. अयोध्या का विकास हो पर राम मंदिर को दरकिनार करके ऐसा कोई विकास भक्तों के गले से नीचे नहीं उतरेगा.

जानिए क्यों श्रीदेवी को फीमेल अमिताभ बच्चन कहा जाता है

कहतें हैं मुझको हवा हवाई से तो आप समझ ही गए होंगे की हम किस अभिनेत्री के बारे में बात कर रहे हैं, बौलीवुड की नम्बर वन श्रीदेवी, ऐसी अदाकारा जिसके बारे में जितना कहा जाए उतना कम ही लगता है, बौलीवुड में जहां अभिनेत्रियां सिर्फ शो केस की तरह पेश की जाती थी, वही श्रीदेवी ने अपनी एक्टिंग से यह साबित कर दिया की हीरोइन भी फिल्म में मुख्य किरदार होती हैं.

श्रीदेवी ने चार साल की उम्र से ही एक्टिंग करना शुरू कर दिया था, साउथ की फिल्मों में उन्होंने बाल कलाकार के रुप में काम किया और फिर अभिनेत्री बन गईं, बौलीवुड में उनकी एंट्री भी उन्हीं की तेलगू फिल्म के हिन्दी रिमेक से हुई. फिल्म सोलवा सावन सिनेमाघरों में तो नहीं चली और ना हीं किसी ने श्रीदेवी को नोटिस किया. हालकि श्रीदेवी ने इस फिल्म के पहले फिल्म जूली में छोटी बहन का किरदार निभा चुकी थी.

आखिर वह वक्त आया जब श्रीदेवी फिल्म हिम्मतवाला से सही तरीके से लौंच हुई.  इस फिल्म में जितेंद्र उनके अभिनेता थे. फिल्म सुपर हिट रही बल्कि फिल्म से ज्यादा जीतेंद्र और श्रीदेवी के स्टेप प्रसिद्ध हुए. इसके बाद तो यह जोड़ी तोहफा, मवाली, मशाल, जस्टिस चौधरी जैसी एक के बाद एक हिट फिल्में देती नजर आई.

वैसे श्रीदेवी की फिल्म हिम्मतवाला की रिलीज के बाद फिल्म सदमा जिसमें उन्होंने एक ऐसी लड़की की भूमिका निभाई थी, जिसका दिमांगी संतुलन बच्चों जैसा था, फिल्म ने बौक्स औफिस पर अच्छा बिजनेस तो किया ही साथ ही श्रीदेवी लोगों की पसंदीदा अभिनेत्री भी बन गई. श्रीदेवी की लगातार हिट फिल्मों से उस दौर की दूसरी हीरोइन की डिमांड कम हो रही थी.

श्रीदेवी ही एक ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्हें बौलीवुड में फिमेल अमिताभ का नाम दिया गया, क्योंकि जिस तरह अभिताभ बच्चन के नाम पर फिल्में चलती थी, उसी तरह जिस फिल्म में श्रीदेवी हो तो सिनेमा घरों का हाउस फुल होना ही है. उनकी एक्टिंग डांसिंग और खास कर चेहरे के हाव भाव वह जिस तरीके से अपने आंखों के साथ खेलती थीं की बस देखने वाले देखते रह जाते थे.

श्रीदेवी के जीवन में यश चोपड़ा का भी अहम रोल है. चांदनी और लम्हे ने उन्हें उस मुकाम तक पहुंचा दिया जहां शायद आज तक कोई अभिनेत्री नहीं पहुच पाई. चांदनी सुपर हिट रही पर लम्हे जो एक अलग कहानी थी. जनता को यह फिल्म रास नहीं आई पर श्रीदेवी को दोनों ही फिल्मों से काफी फायदा हुआ.

श्रीदेवी का ऐसा दौर भी आया जब उनका ग्राफ नीचे की और लुढ़कने लगा. खुदा गवाह,  गुमराह, हीर रांझा, जैसी फिल्मों के फ्लौप होने से प्रेस ने लिखना शुरू कर दिया कि अब श्रीदेवी की नंबर 1 की पोजीशन नहीं बच सकती, पर बोनी कपूर निर्देशित फिल्म जुदाई रिलीज हुई और उनकी एक्टिंग देख श्रीदेवी ने अपनी नंबर 1 पोजीशन बरकरार ही नहीं रखी, बल्कि उन्होंने यह भी साबित कर दिया की उन्हें यहां से कोई नही हटा सकता.

वैसे श्रीदेवी की जिंदगी में कई ऐसे दौर भी आए जब उनके और मिथुन चक्रवती के रिश्ते अखबारों की सुर्खियां बनें. कहा जाता है की श्रीदेवी मिथुन के साथ फिल्म ‘जाग उठा इंसान’ में काम कर रही थी, और इसी फिल्म के दौरान दोनों का प्यार परवान चढ़ा. सुनने में ये भी आया  कि मिथुन ने श्रीदेवी के साथ चुपके से शादी भी कर ली थी, उस वक्त मिथुन पहले से ही योगिता बाली के साथ शादी कर चुके थे और जब मिथुन श्रीदेवी की खबर योगिता तक पहुंची तो वह खुदकुशी करने वाली थीं, इस वजह से मिथुन श्रीदेवी से अलग हो गए.

फिर श्रीदेवी का नाम अमिताभ के साथ भी जुड़ा. लेकिन श्रीदेवी की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आया जब उनकी फिल्में बौक्स औफिस पर फ्लौप होती जा रही थी. फिर उनकी जिंदगी में आए बोनी कपूर, अभी तक सिर्फ बोनी ही श्रीदेवी से एकतरफा प्यार करते थे. बोनी ने श्रीदेवी को अपने घर में ही पनाह दी थी. यह कहकर की श्रीदेवी उनकी मुंहबोली बहन हैं. यहां तक कि श्रीदेवी ने बोनी की पत्नी के सामने उन्हें राखी भी बांधी थी. मोना कपूर को उस वक्त झटका लगा जब श्रीदेवी गर्भवती हुईं, तब जाकर उन्हें बोनी और श्रीदेवी के संबंधों के बारे में पता चला और आखिरकार बोनी और श्रीदेवी ने शादी रचा ली. आज श्रीदेवी अपनी दो बेटियों जान्हवी और खुशी के साथ खुशियों के साथ रह रही हैं.

श्रीदेवी को 2013 में पद्मश्री से नवाजा गया. श्रीदेवी को करीब पांच बार फिल्मफेयर अवौर्ड प्रदान किया गया है. श्रीदेवी ने हिन्दी फिल्मों में ही अवौर्ड अपने नाम नहीं किए, ‍‍तमिल, तेलगू, मलयालम, केरला, आंध्र प्रदेश की फिल्मों से भी अवौर्ड अपने नाम करती रही हैं.

उत्तर प्रदेश में अब बसों पर भी चढ़ा भगवा रंग

सपा और बसपा की नीली-हरी रंग की बसों की कभी भाजपा ने आलोचना की थी. उस समय भाजपा ने सलाह दी थी कि रंग बदलने की जगह पर बसों के हालात बदले जायें जिससे सफर करने वालों को सहूलियत हो. अब जब भाजपा खुद सत्ता में है, वह अपनी सीख पर अमल करने के बजाये बसों के रंगों को बदल कर भगवा करने में लगी है.

भाजपा ने अपनी इन नई बसों को संकल्प सेवा नाम दिया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 50 बसों से इसकी शुरुआत की है. उत्तर प्रदेश सरकार ने 4 सालों में 9563 गावों को इस बस सेवा से जोड़ने का संकल्प लिया है. अब तक 4766 गावों को जोड़ने का दावा प्रदेश सरकार कर रही है.

सरकार ने बताया है कि इन बसों में किराया 30 प्रतिशत दूसरी बसों से कम होगा. संकल्प बस सेवा की शुरुआत के समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ परिवहन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह भी उपस्थित थे.

उत्तर प्रदेश में बसों का किराया सबसे मंहगा है. सड़कों पर कई तरह की बसें दौड रही हैं. हर सरकार अपने कार्यकाल में एक नई बस सेवा शुरू कर देती है. इसके नाम सरकार के नाम से जुड़े होते हैं. पार्टी के रंग में बसों को रंग दिया जाता है. उत्तर प्रदेश अकेला ऐसा प्रदेश है जहां एक ही सड़क पर चलने के लिये अलग अलग तरह की कई बसें मिलती हैं. इसके बाद भी प्राइवेट डग्गा मार बसें भी लोगों को सफर करा रही हैं.

असल में हर सरकार जनता के पैसे पर अपनी पार्टी का प्रचार करना चाहती है. इसके लिये वह नई बसों को खरीद कर उनमें पार्टी का रंग भर देती है. बसों के नये होने से यात्रियों को थोड़ा आराम का अनुभव होता है. देखा जाए तो बसों के आने या सड़कों के बनने का प्रभाव यातायात में लगने वाले समय पर नहीं पड़ता है.

वोल्वो जैसी एसी बसों में किराया दोगुना होने के बाद भी एक शहर से दूसरे शहर की दूरी तय करने में समय नहीं बचता. नई नई बस सेवाओं के शुरू होने से किराया बढ़ जाता है. सरकार दिखाने के लिये कुछ सेवाओं का किराया कम कर देती है. इसके बाद भी बाकी सेवाओं में पैसा कम नहीं होता है. भाजपा भी दूसरे दलों की तरह ही अब रंग बदलने में यकीन कर रही है. भाजपा सरकार अब हर काम में भगवा रंग को सामने रखने लगी है. संकल्प बस सेवा इसका एक उदाहरण है. बसों के रंग के सहारे योगी सरकार पार्टी के रंग को लोगों तक पहुचाने में लगी है. सरकार हर काम में हिन्दुत्व के रंग को ही आगे कर रही है.

रातों रात सुपरस्टार बनने वाली डिंपल कपाड़िया की कहानी पढ़िए यहां

सुपर स्टार राजेश खन्ना की पत्नी डिंपल कपाड़िया जितना फिल्मों की वजह से चर्चा में रही हैं, उतनी ही सुर्खियां उन्हें निजी जिंदगी के चलते भी मिलीं हैं. आइए जानते हैं डिंपल की जिंदगी से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियां.

  • डिंपल कपाड़िया बौलीवुड की ऐसी नायिका हैं जो रातो रात एक ही फिल्म से स्टार बन गईं थीं. 8 जून, 1957 को मुंबई में जन्मीं डिंपल को महज 15 साल की उम्र में राज कपूर ने अपनी फिल्म ‘बौबी’ में बतौर नायिका ले लिया. यह फिल्म सुपरहिट हुई और डिंपल एक ही फिल्म से फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी नायिका बन गयीं.
  • इसके बाद उनकी जिंदगी ने अलग राह पकड़ ली. अपनी पहली फिल्म से ही डिंपल रातों रात स्कूल गर्ल से ‘सेक्सी रोमांटिक’ हीरोइन बनकर चमक उठीं. पहली फिल्म के लिए ही उन्हें फिल्मफेयर के बेस्ट एक्ट्रेस अवौर्ड से नवाजा गया.

  • यह फिल्म जिस साल रिलीज हुई उसी समय डिंपल कपाड़िया ने अपने से 15 साल ज्यादा उम्र वाले राजेश खन्ना से शादी रचा ली. राजेश खन्ना उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार थे.
  • मुंबई में समुद्र किनारे टहलते हुए एक दिन अचानक राजेश खन्ना ने डिंपल के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. डिंपल इस प्रस्ताव को मना नहीं कर पाईं. उनकी शादी फिल्म इंडस्ट्री के लिए कौतुक का विषय थी.
  • शादी के बाद डिंपल कपाड़िया फिल्मों से दूर हो गयीं. वह एक अच्छी पत्नी बनकर राजेश जिंदगी में शामिल हुईं. लेकिन इन दोनों का यह साथ बहुत दिन तक नहीं चला.
  • राजेश खन्ना का कैरियर जैसे जैसे उतार पर जाता गया उनके दांपत्य जीवन में वैसे वैसे खटास बढ़ती गयी. राजेश यह भी नहीं चाहते थे कि डिंपल फिल्मों में काम करें. इस बीच डिंपल दो बेटियों, ट्विंकल और रिंकी की मां बन गई.

  • राजेश और डिंपल के बीच का यह टकराव आखिरकार अलगाव में बदल गया. 1984 में राजेश खन्ना से अलग होने के बाद वह दोबारा फिल्मों में आईं. 1985 में उन्होंने एक बार फिर ऋषि कपूर के साथ जोड़ी बनाई. इन दोनों की फिल्म ‘सागर’ सुपरहिट रही.
  • इसके बाद ‘अर्जुन’, ‘कब्जा’, ‘जख्मी’ ‘औरत’, ‘राम लखन’, ‘क्रांतिवीर’ जैसी कई हिट फिल्मों के साथ डिंपल का नाम जुडा. उन्होंने समांतर फिल्मों में भी काम किया. ‘काश’, ‘लेकिन’, ‘रुदाली’, ‘बांग्ला’ जैसी फिल्में चर्चित रहीं.
  • डिंपल कपाड़िया ने अपने फिल्मी जीवन की तीसरी पारी भी खेली. ‘फिर कभी’, ‘लक बाइ चांस’, ‘दबंग’,  ‘पटियाला हाऊस’, ‘कौकटेल’ जैसी सफल फिल्मों का वह हिस्सा रहीं.

  • राजेश खन्ना जब बीमार हुए तो डिंपल कपाड़िया उनके साथ भी कुछ दिनों तक रहीं. डिंपल से अलग होने के बाद राजेश खन्ना अनीता आडवाणी नाम की महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे थे.
  • कुछ समय पहले डिंपल और सनी देओल को विदेश में एक साथ देखा गया था, जिससे ये अंदाजा लगाया जा रहा था कि वे दोनो एक दूसरे के साथ रिश्ते में हैं क्योकि दोनो ने एक दूसरे का हाथ पकड़ रखा था.

क्या आपको पता हैं गूगल के ये मजेदार ट्रिक्स

आज के समय में जब हमें कुछ सर्च करना होता है तो हम सीधे गूगल पर सर्च करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है google में कुछ ऐसे ट्रिक्स और सीक्रेट हैं जिन्हें टाइप करने के बाद कभी google को आप पानी में डूबते हुए देखेंगे तो कभी पूरा का पूरा पेज ही उल्टा पुल्टा हो जाएगा.

ये कुछ ऐसे सीक्रेट ट्रिक्स हैं जिन्हें बहुत कम लोग ही जानते हैं. आइए आप भी जानिए ऐसे ही कुछ अनजाने व मजेदार गूगल ट्रिक्स.

Google In 1980

इस ट्रिक से आप जान सकते हैं कि गूगल जब स्टार्ट हुआ था तब किस तरह का दिखता था और कैसे काम करता था. गूगल पर Google in 1980 लिखकर I’m Feeling Lucky पर क्लिक करते ही फोटो में दिख रहा पेज खुल जाएगा और आप महसूस व देख पाएंगे कि 1980 में गूगल कैसा था.

Google Dinosaur Game

अगर आपका इन्टरनेट नहीं चल रहा और आप बोरियत महसूस कर रहे हों तो ये औफलाइन गेम आप बिना इंटरनेट के भी खेल सकते हैं. याद रखें ये गेम सिर्फ तभी चलेगा जब आप औफलाइन होंगे यानी कि जब आपका इंटरनेट नहीं चल रहा होगा. जब आपका इंटरनेट बंद हो और आप गूगल में कुछ भी सर्च कर रहें हों तब आपको ये error मैसेज दिखाई देगा Unable to Connect to the internet. बस तब आप ये डायनासोर वाला गेम खेल सकते हैं.

Google Snake

गूगल स्नेक एक ऐसा गेम है जो अमूमन हर किसी ने खेला ही होगा. देर किस बात की गूगल ट्रिक्स की मदद से कीजिए अपने बचपन की यादें ताजा करें. गूगल पर Google Snake लिखकर I’m Feeling Lucky पर क्लिक करें और गेम खेलें.

Gravity Google

गूगल पर ग्रेविटी गूगल लिख कर I’m Feeling Lucky पर क्लिक करें. इसके बाद आपको गूगल का पूरा पेज उड़ता उड़ता सा दिखेगा भरोसा ना हो तो करके देख लें.

Flip a Coin Google Tricks

जब आप कोई खेल खेल रहे होते हो तो आप पहला दांव किसका आएगा, ये जानने के लिए टौस उछालते हो और टौस उछालने के लिए सिक्के की जरूरत होती है. अब आपको सिक्के की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि ये काम अब Google Trick करेगा. जानिए कैसे. गूगल पर Flip a Coin लिखें और फिर गूगल का जादू देखें.

Do a Barrel Roll Google Tricks

गूगल पर Do a Barrel Roll लिखकर सर्च करें. ऐसा करते ही आपको समझ में आ जाएगा कि गूगल पेज के साथ क्या हुआ.

Google Gravity Pacman

इस गूगल ट्रिक की मदद से आप pacman गेम खेल सकते हैं. गूगल पर Gravity Pacman लिखकर I’m Feeling Lucky पर क्लिक करते ही आपके सामने ये गेम चालू हो जाएगा.

Google Calculator Easter Eggs

number of horns on a unicorn the loneliest number से कैलकुलेटर खुलेगा. इसमें कैलकुलेटर सादा और साइंटिफिक दोनों होंगे. गूगल पर number of horns on a unicorn the loneliest number लिखकर सर्च करें. आपके सामने कैलकुलेटर खुलेगा और आप इसमें अपना हिसाब किताब कर सकेंगे.

Google Sphere

गूगल पर Google Sphere लिखकर I’m Feeling Lucky पर क्लिक करें और गूगल स्फीयर का मजा लें.

पुलिस के सामने जब काम न आईं शिखा की अदाएं

मुंबई के बारे में कहावत है कि यह शहर कभी नहीं सोता. दिन हो या रात, लोग अपने कामों मे लगे रहते हैं. लोग भी लाखों और काम भी लाखों. लेकिन

एक सच यह भी है कि मुंबई दिन के बजाय रात की बांहों में ज्यादा हसीन हो जाती है. इस की वजह यह है कि ज्यादातर फिल्मों, सीरियल्स की शूटिंग तो रात में होती ही है, यहां के होटल, रेस्तरां और पब भी रात को खुले रहते हैं.

इस के अलावा  फिल्मी और टीवी के सितारों तथा बडे़ लोगों की पार्टियां भी रात को ही होती हैं. बड़ीबड़ी पार्टियां हों या शूटिंग, उन में ग्लैमर न हो, ऐसा नहीं हो सकता. मध्यमवर्गीय लोगों के लिए पब हैं, जहां नाचगाने और शराब के साथ ग्लैमर भी होता है. यही वजह है कि मुंबई के लाखोंलाख लोग सुबह नहीं, बल्कि शाम का इंतजार करते हैं.

मुंबई की हर शाम समुद्र की लहरों को चूम कर धीरेधीरे रात की बांहों में सिमटने लगती है और समुद्र ढलती शाम का मृदुरस पी कर जवान होती रात में मादकता भर देता है. 14 मई, 2017 की रात का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उस रात मुंबई के एक मशहूर होटल के पब में एक पार्टी चल रही थी. गीतसंगीत ऐसी पार्टियों की जान होता है. ऐसी पार्टियों में फोनोग्राम रिकौर्ड्स पर म्यूजिक प्ले करने वालों को डिस्को जौकी यानी डीजे कहा जाता है. ये लोग संगीत की धड़कन होते हैं.

विभिन्न संगीत उपकरणों माइक्रोफोन, सिंथेसाइजर्स, इक्वलाइजर्स, सिक्वेंसर, कंट्रोलर व इलेक्ट्रौनिक म्यूजिक की-बोर्ड्स व डीजे म्यूजिक सौफ्टवेयर की मदद से ऐसी पार्टियों में गीतसंगीत का ऐसा समां बंध जाता है कि डांस फ्लोर पर युवाओं के हाथपैर ही नहीं, पूरा शरीर थिरकने लगता है. डांस फ्लोर पर हिपहौप, रागे, सनरौक, यूनिक फ्यूजन की आवाजें आती रहती हैं. मुंबई में डीजे अनुबंध के आधार पर अपना प्रोग्राम करते हैं.

मुंबई के होटलरेस्त्रां ने अपने पब में गीतसंगीत की हसीन शाम सजाने के लिए विभिन्न डीजे से अनुबंध किए हैं. मायानगरी में ऐसे डीजे की तादाद सैकड़ों में होगी, लेकिन इन में 20-30 डीजे ही ऐसे हैं, जिन की वजह से होटलरेस्त्रां के पब म्यूजिकल ईवनिंग के नाम पर हसीन और जवान होते हैं. डीजे के इस पेशे में अधिकांश महिलाएं हैं.crime story

डिस्को जौकी की भीड़ में डीजे अदा ने कुछ ही महीनों में अपनी धाक जमा ली थी. वह मुंबई के युवा वर्ग में संगीत की धड़कन के रूप में उभर कर सामने आई थी. अदा अनुबंध के आधार पर अलगअलग होटलों और रेस्त्राओं के पब में प्रोग्राम करती थी. उस के लाइव कंसर्ट में डांस फ्लोर पर युवा झूम उठते थे. पुराने फिल्मी गीतों से ले कर क्लासिकल, रीमिक्स व वेस्टर्न संगीत में डीजे अदा ने महारथ हासिल कर ली थी. उस ने अपनी अदाओं से हजारों फैंस बना लिए थे, जो संगीत से ज्यादा उस के दीवाने थे.

डीजे अदा के कार्यक्रम में अभी कुछ देर बाकी थे, लेकिन डांस फ्लोर पर संगीत व डांस प्रेमी जुटना शुरू हो गए थे. संगीत प्रेमियों की इस भीड़ में जयपुर से आए कुछ युवाओं की टोली भी शामिल थी. जयपुर की इस टोली के युवा डांस फ्लोर पर अलगअलग हिस्सों पर खड़े हो कर आनेजाने वाले पर नजर रखे हुए थे.

इस टोली की महिला सदस्य डांस फ्लोर पर आगे की ओर उस जगह खड़ी थीं, जहां म्यूजिक उपकरण लगे हुए थे. यह टोली भी दूसरे संगीत प्रेमियों की तरह डीजे अदा का इंतजार कर रही थी. हालांकि इस टोली के सदस्यों ने डीजे अदा को ना तो पहले कभी किसी प्रोग्राम में देखा था ना ही कहीं और. इस टोली के सदस्यों के पास डीजे अदा की फोटो मोबाइलों में सेव थी. इसी फोटो के आधार पर वे अदा को पहचान सकते थे.

खैर, इंतजार खत्म हुआ. पब में डीजे के साथी कलाकारों ने अपने उपकरण बजा कर लाइव कंसर्ट की तैयारी शुरू की. इस का मतलब था कि डीजे अदा अब परफौरमेंस देने के लिए फ्लोर पर आने वाली थी. म्यूजिकल ड्रम की तेज आवाजों के बीच हैडफोन लगाए हुए डीजे अदा फ्लोर पर आई और अपना दायां हाथ मिला कर दर्शकों से हैलो कहा. इसी के साथ तेज म्यूजिक बजने लगा और डीजे अदा अपनी अदाओं पर संगीत प्रेमियों के साथ थिरकने लगी. अदा को देख कर जहां कुछ युवा उस की खूबसूरती पर आहें भरने लगे, वहीं संगीत प्रेमी अपनी फरमाइशें करने लगे.

जयपुर की टोली ने अपने मोबाइल में सेव डीजे अदा का फोटो देख कर यह निश्चित कर लिया कि वे सही ठिकाने पर आए हैं. अदा का प्रोग्राम जैसेजैसे आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे डांस फ्लोर पर जयपुर की टोली का शिकंजा कसता चला गया.

करीब डेढ़, दो घंटे बाद जब अदा का प्रोग्राम खत्म हुआ तो उस ने होंठों पर अपनी हथेली ले जा कर हवा में प्यार बिखेरते हुए श्रोताओं को गुडनाइट कहा. जब वह डांस फ्लोर से जाने लगी, तभी जयपुर की टोली ने उसे चारों ओर से घेर लिया. उस टोली में महिलाएं भी थीं.

एकाएक इस तरह कुछ लोगों के घेरे जाने से अदा ने समझा कि वे लोग संभवत: संगीत के रसिया होंगे, जो उस के प्रोग्राम को देख कर खुश हुए होंगे और उसे धन्यवाद कहने आए होंगे या किसी पार्टी में डीजे के लिए बात करने आए होंगे.

अदा की उम्मीद के विपरीत उस टोली में  से एक जवान ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘शिखा…शिखा तिवाड़ी, तुम्हारा खेल खत्म हो गया है.’’

इस के साथ ही उस जवान के साथ खड़ी महिला ने डीजे अदा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘शिखा हम लोग जयपुर के एसओजी (स्पेशल औपरेशन ग्रुप) के लोग हैं. तुम यहां कोई तमाशा खड़ा मत करना, वरना तुम्हारी पोल खुल जाएगी और जो लोग अब तक तुम्हारी अदाओं पर थिरक रहे थे, वे तुम पर थूकेंगे.’’

अदा उर्फ शिखा तिवाड़ी समझ गई कि जिस एसओजी से बचने के लिए वह जयपुर से भाग कर मुंबई आई थी, वह अब उसे छोड़ने वाली नहीं है. उस ने कोई विरोध नहीं किया. वह चुपचाप जयपुर से आई एसओजी टीम के अफसरों के साथ चल दी.

जयपुर की एसओजी टीम ने मुंबई के संबंधित पुलिस अधिकारियों को मामले की जानकारी दी और शिखा को पकड़ कर ले जाने की बात बताई. यह बात इसी साल 14 मई की रात की है.crime story

दरअसल, मई के पहले सप्ताह में राजस्थान की एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन को सूचना मिली थी कि दुष्कर्म के झूठे मुकदमे दर्ज कराने की धमकी दे कर लोगों से करोड़ों रुपए ऐंठने वाले हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की सदस्या शिखा तिवाड़ी उर्फ अंकिता उर्फ डीजे अदा आजकल मुंबई में है. मुंबई में वह बड़े होटलरेस्त्राओं में डिस्को जौकी (डीजे) का काम करते हुए लाइव कंसर्ट देती है.

जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह का खुलासा होने के बाद शिखा तिवाड़ी दिसंबर, 2016 में फरार हो गई थी. एसओजी लगातार उस की तलाश कर रही थी. लेकिन उस का कोई पता नहीं चल रहा था. एक दिन एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. को फेसबुक के माध्यम से पता चला कि शिखा तिवाड़ी ने आजकल डीजे अदा के नाम से मुंबई में अपना म्यूजिकल ग्रुप बना रखा है. वह डीजे अदा के नाम से ही मुंबई में रह रही है.

एसओजी को डीजे अदा की ओर से फेसबुक पर पोस्ट की गई उस की लाइव कंसर्ट की फोटो भी मिल गई. इन फोटो से तय हो गया कि शिखा तिवाड़ी ही डीजे अदा है. इस के बाद आईजी ने डीजे अदा की तलाश में जयपुर से अपने तेजतर्रार मातहतों की एक टीम मुंबई भेजी. इस टीम ने कई होटलरेस्त्राओं में पूछताछ के बाद पता लगाया कि डीजे अदा कहांकहां प्रोग्राम करती है. इस के बाद जयपुर से गई एसओजी की टीम ने 14 मई की रात मुंबई से अदा उर्फ शिखा तिवाड़ी को पकड़ लिया.

शिखा तिवाड़ी को एसओजी की टीम जयपुर ले आई. शिखा से की गई पूछताछ और दिसंबर, 2016 में जयपुर में उजागर हुए हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की जांचपड़ताल के बाद जो कहानी उभर कर सामने आई, वइ इस तरह थी—

दिसंबर 2016 में एसओजी को हत्या के एक मामले में गिरफ्तार आरोपी से पूछताछ में पता चला था कि जयपुर में एक ऐसा गिरोह सक्रिय है, जो हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करता है. इस गिरोह में कुछ वकील, पुलिस वाले, प्रौपर्टी व्यवसाई और फर्जी पत्रकार शामिल हैं. यह गिरोह खूबसूरत युवतियों की मदद से रईस लोगों को ब्लैकमेल करता है.

इस गिरोह के लोग पहले रईस लोगों को चिह्नित करते हैं, फिर उन्हें फांसने के लिए उन की दोस्ती गिरोह की खूबसूरत लड़कियों से कराते हैं. इस दोस्ती के लिए ये लोग फार्महाउस पर सेलीब्रेशन के नाम पर पार्टियां आयोजित करते हैं. इन छोटी पार्टियों में पीनेपिलाने का दौर भी चलता है. गिरोह की लड़कियां इन पार्टियों में अपना मोबाइल नंबर दे कर अपने शिकार का नंबर लेती हैं. इस के बाद उन का मुलाकातों का दौर शुरू होता है.

जल्दीजल्दी की कुछ मुलाकातों में ये युवतियां अपने शिकार को अपनी सुंदरता के मोहपाश में इस तरह बांध लेती हैं कि वह उस के साथ हमबिस्तर होने के लिए तड़पने लगते हैं.

शिकार को तड़पा कर ये युवतियां हमबिस्तर होने का कार्यक्रम तय करती हैं. इस के लिए वे कई बार जयपुर से बाहर भी जाती हैं. रईसों के साथ हमबिस्तर होते समय गिरोह के सदस्य युवती की मदद से या तो गुप्त कैमरे से या मोबाइल से क्लिपिंग बना लेते हैं. अगर इस में वे सफल नहीं होते तो युवतियां हमबिस्तर होने के बाद अपने अंतर्वस्त्र सुरक्षित रख लेती हैं. इस के बाद उस रईस को धमकाने का काम शुरू होता है. सब से पहले युवतियां अपने उस रईस शिकार को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की धमकी देती हैं.

अधिकांश मामलों में युवतियां पुलिस में शिकायत दे भी देती हैं. इस के बाद फर्जी पत्रकार व वकील का काम शुरू होता है. वे उस रईस को बदनामी का डर दिखा कर समझौता कराने की बात करते हैं. जरूरत पड़ने पर बीच में पुलिस वाले भी आ जाते हैं. रईस अपनी इज्जत बचाने के लिए उन से सौदा करता है. रईस की हैसियत देख कर 10-20 लाख रुपए से ले कर एक करोड़ रुपए तक मांगे जाते हैं. गिरोह के लोग उस शिकार पर दबाव बनाए रखते हैं. आखिर शिकार बने व्यक्ति को सौदा करना पड़ता है.

यह गिरोह खासतौर से जयपुर सहित राजस्थान के बड़े शहरों के नामचीन प्रौपर्टी व्यवसायियों व बिल्डरों, मोटा पैसा कमाने वाले डाक्टरों, ज्वैलर्स, होटल-रिसौर्ट संचालक और ठेकेदार आदि को अपना शिकार बनाता है. इस काले धंधे में एक एनआरआई युवती भी शामिल है.

ये लोग गिरोह की युवती को प्लौट या फ्लैट खरीदने के बहाने प्रौपर्टी व्यवसाई अथवा बिल्डर के पास भेजते हैं और उसे फंसा लेते हैं. इसी तरह लड़कियों को होटल और रिसौर्ट संचालकों के पास नौकरी के बहाने भेजा जाता है. डाक्टर के पास इलाज कराने के बहाने युवतियों को भेजा जाता था. सौदा होने के बाद युवती और उस के गिरोह के सदस्य स्टांप पर लिख कर दे देते थे कि दुष्कर्म नहीं हुआ था.

शिखा तिवाड़ी जयपुर में गुरु की गली, सीताराम बाजार, ब्रह्मपुरी के रहने वाले आदित्य प्रकाश तिवाड़ी की बेटी थी. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सदस्य अक्सर डिस्को बार में जाते थे. वहीं शिखा की मुलाकात अक्षत शर्मा से हुई. अक्षत ने शिखा को अपने गिरोह में शामिल कर लिया. इस गिरोह ने जयपुर के वैशालीनगर में मेडिस्पा नाम से हेयर ट्रांसप्लांट क्लीनिक चलाने वाले डा. सुनीत सोनी को अपने शिकार के रूप में चिह्नित किया. योजनाबद्ध तरीके से शिखा तिवाड़ी को हेयर ट्रीटमेंट कराने के बहाने डा. सुनीत सोनी के पास उन के क्लीनिक पर भेजा गया.

अप्रैल, 2016 में 2-4 बार इलाज के नाम  पर आनेजाने के दौरान शिखा ने डा. सोनी को अपने रूप के जाल फांस लिया. एक दिन उस ने डा. सोनी को बताया कि वह डिप्रेशन में आ गई है. शिखा ने डा. सोनी से कहा कि वह पुष्कर जा कर 2-4 दिन घूमना चाहती है, ताकि डिप्रेशन से बाहर आ सके. शिखा ने डाक्टर से कहा कि वह डिप्रेशन की स्थिति में अकेली पुष्कर नहीं जाना चाहती. जबकि साथ जाने के लिए कोई नहीं है. उस ने डा. सोनी पर घूमने के लिए पुष्कर चलने का दबाव डाला.

डा. सोनी जाना तो नहीं चाहते थे, लेकिन अपने डाक्टरी पेशे में पेशेंट की भावनाओं का खयाल रखते हुए वह शिखा के साथ पुष्कर घूमने जाने को तैयार हो गए. डा. सोनी के तैयार हो जाने के बाद शिखा ने गिरोह के सरगना की सलाह पर डा. सुनीत सोनी से पुष्कर के एक रिसौर्ट में कमरा बुक करवा लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार, शिखा व डा. सोनी कार से पुष्कर चले गए. डा. सोनी शिखा को पुष्कर के रिसौर्ट में छोड़ कर उसी शाम जयपुर लौट आए. उन के जयपुर लौट जाने से शिखा को अपना मकसद पूरा होता नजर नहीं आया.

शिखा ने डा. सोनी को बारबार फोन कर बताया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं डिप्रेशन में हूं. यहां अकेली रहूंगी तो कुछ भी हो सकता है. शिखा ने डाक्टर को इस तरह छोड़ कर चले जाने पर कई तरह के उलाहने भी दिए, साथ ही कहा भी कि अभी पुष्कर आ कर उसे वापस ले चले.

शिखा के उलाहनों से तंग आ कर डा. सोनी उसी रात अपनी गाड़ी ले कर पुष्कर गए. वहां रिसौर्ट के कमरे में ठहरी शिखा ने डा. सोनी पर ऐसा जादू चलाया कि वह रात को उसी के कमरे में ठहर गए. इस के अगले दिन डा. सोनी जयपुर आ गए.

2 दिन बाद अक्षत शर्मा व विजय उर्फ सोनू शर्मा डा. सुनीत सोनी के पास पहुंचे. दोनों ने खुद को मीडियाकर्मी बताया और टीवी चैनलों पर खबर चलाने की धमकी दी. उन्होंने शिखा से उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर एक करोड़ रुपए मांगे. लेकिन डा. सोनी ने उन्हें रुपए देने से इनकार कर दिया. इस पर गिरोह के सरगना वकीलों ने शिखा से डा. सुनीत सोनी के खिलाफ अजमेर जिले के पुष्कर थाने में भादंसं की धारा 376 के अंतर्गत बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

पुष्कर थाना पुलिस ने इस मामले में डा. सुनीत सोनी को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद गिरोह ने शिखा से समझौता करने के नाम पर डा. सोनी के पिता व भाई से एक करोड़ रुपए वसूल लिए. रकम लेने के बाद गिरोह के सदस्यों ने अदालत में शिखा के बयान बदलवा दिए. डा. सुनीत सोनी को बलात्कार के इस झूठे मुकदमे में 78 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. उस समय डा. सुनीत सोनी ने जयपुर के वैशालीनगर थाने में लिखित शिकायत भी दी थी, लेकिन पुलिस  ने उस समय कुछ नहीं किया था.

बाद में जब एसओजी को जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सक्रिय होने की जानकारी मिली तो इस गिरोह से पीडि़त डा. सुनीत सोनी ने एसओजी में लिखित शिकायत दी. डा. सोनी की शिकायत पर जांचपड़ताल के बाद एसओजी ने 24 दिसंबर, 2016 को इस हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले गिरोह का खुलासा किया. एसओजी ने उस दिन सब से पहले 2 लोगों को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में ही एसओजी को गिरोह में शामिल युवतियों के बारे में पता चला. इन में शिखा तिवाड़ी के अलावा एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी, उत्तराखंड की युवती कल्पना और अजमेर की आकांक्षा आदि के नाम सामने आए.

गिरोह की पकड़धकड़ शुरू होेने पर शिखा तिवाड़ी जयपुर से भाग कर मुंबई चली गई. मुंबई में वह डीजे अदा के नाम से म्यूजिकल ग्रुप बना कर होटल, नाइट क्लब व बार में प्रोग्राम करने लगी. मुंबई पहुंच कर उस ने अपने पुराने मोबाइल नंबर बंद कर दिए थे और फेसबुक आईडी भी बदल ली थी.

मुंबई में वह अपने बौयफ्रैंड के साथ लोखंडवाला बैंक रोड, अंधेरी (वेस्ट) की एक बिल्डिंग में किराए के फ्लैट में रहती थी. मुंबई में रहते हुए उस के बौयफ्रैंड के इवेंट मैनेजर दोस्त ने शिखा से यह कह कर ढाई लाख रुपए ऐंठ लिए थे कि जयपुर में पुलिस अफसरों से उस की सेटिंग है, वह उस का नाम ब्लैकमेलिंग मामले में नहीं आने देगा.

बाद में जब शिखा को पता चला कि उस का नाम एसओजी थाने में दर्ज मुकदमे में है तो उस ने उस इवेंट मैनेजर से संपर्क किया. इस के बाद इवेंट मैनेजर भूमिगत हो गया. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह ने शिखा तिवाड़ी को डा. सुनीत सोनी को ब्लैकमेल करने के लिए पहले 10 लाख रुपए दिए थे, लेकिन बाद में उस से 5 लाख रुपए वापस ले लिए थे. बाकी रकम गिरोह के सदस्यों ने आपस में बांट ली थी.

गिरोह के पुरुष सदस्यों के अलावा महिला सदस्यों में सब से पहले एसओजी के हाथ कल्पना लगी. इस के बाद एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी भी एसओजी की गिरफ्त में आ गई. शिखा तिवाड़ी उर्फ डीजे अदा की मुंबई से हुई गिरफ्तारी के समय तक हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले 4 गिरोहों के 32 अभियुक्तों को एसओजी गिरफ्तार कर चुकी थी. इन में कई वकील, फर्जी पत्रकार, पुलिसकर्मी व बिचौलिए भी शामिल थे.

शिखा के पकड़े जाने के बाद उस से पूछताछ में ब्लैकमेलिंग गिरोह की एक और महिला सदस्य आकांक्षा का पता चला. एसओजी ने 16 मई को अजमेर के क्रिश्चियन गंज, माली मोहल्ला की रहने वाली 25 वर्षीया आकांक्षा को गिरफ्तार कर लिया. एसओजी के एसपी संजय श्रोत्रिय का कहना है कि आकांक्षा ब्लैकमेलिंग की कई वारदातों में शामिल रही है.

आकांक्षा ने जयपुर से एमबीए की पढ़ाई की थी. एमबीए की पढ़ाई के दौरान वह जयपुर में सिरसी रोड पर एक अपार्टमेंट में रहने लगी थी, तभी उस की पहचान अक्षत शर्मा से हुई थी. अक्षत ब्लैकमेलिंग के मामलों में आकांक्षा का भी सहयोग लेता था. अक्षत शर्मा पहले ही गिरफ्तार हो चुका था. अक्षत ने अपने साथियों की मदद से एक सैन्यकर्मी के फ्लैट पर भी कब्जा कर लिया था. करणी विहार में सिरसी रोड पर स्थित एक फ्लैट का सौदा 45 लाख रुपए में हुआ था, लेकिन अक्षत ने केवल 5 लाख रुपए दे कर अपने साथियों की मदद से उस फ्लैट पर कब्जा कर लिया था.

शिखा व आकांक्षा की गिरफ्तारी के बाद एसओजी ने अक्षत के सामने दोनों को बैठा कर पूछताछ की. पूछताछ में पता चला कि अक्षत व आकांक्षा ने करीब 20 लोगों को अपने जाल में फंसा कर ब्लैकमेल किया था. अक्षत ही आकांक्षा का खर्चा उठाता था. अक्षत ने आकांक्षा को एक फ्लैट व कार गिफ्ट की थी. एसओजी थाने में अक्षत के खिलाफ पांचवां मामला सैन्यकर्मी के फ्लैट पर कब्जे का दर्ज किया गया. आकांक्षा भी गिरोह की गिरफ्तारी शुरू होने पर जयपुर छोड़ कर अजमेर चली गई थी.

एसओजी की जांच में सामने आया है कि जयपुर में चल रहे हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोहों ने ढाई साल में 45 लोगों से करीब 20 करोड़ रुपए वसूले थे.

– कथा पुलिस सूत्रों व अन्य रिपोर्ट्स पर आधारित

पत्नी की खूनी साजिश : प्यार में पागल लड़की ने प्रेमी से करवाई पति की हत्या

22 अप्रैल, 2017 की रात करीब 2 बजे की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला हादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर 1 के रहने वाले देवेंद्र प्रताप सिंह अपने घर में सो रहे थे. अचानक घर की डोलबेल बजी तो वह बड़बड़ाते हुए दरवाजे पर पहुंचे कि इतनी रात को किसे क्या जरूरत पड़ गई? चश्मा ठीक करते हुए उन्होंने दरवाजा खोला तो बाहर पुलिस वालों को देख कर उन्होंने हैरानी से पूछा, ‘‘जी बताइए, क्या बात है?’’

‘‘माफ कीजिए भाईसाहब, बात ही कुछ ऐसी थी कि मुझे आप को तकलीफ देनी पड़ी.’’ सामने खड़े थाना कैंट के इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा.

‘‘जी बताएं, क्या बात है?’’ देवेंद्र प्रताप ने पूछा.

‘‘आप की बहू और बेटा कहां है?’’

‘‘ऊपर अपने कमरे में पोते के साथ सो रहे हैं.’’ देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा.

अब तक परिवार के बाकी लोग भी नीचे आ गए थे. लेकिन न तो देवेंद्र प्रताप सिंह का बेटा विवेक प्रताप सिंह आया था और न ही बहू सुषमा. इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने थोड़ा तल्खी से कहा, ‘‘आप को पता भी है, आप के बेटे विवेक प्रताप सिंह की हत्या कर दी गई है?’’

‘‘क्याऽऽ, आप यह क्या कह रहे हैं इंसपेक्टर साहब?’’ देवेंद्र प्रताप सिंह ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘वह हम सब के साथ रात का खाना खा कर पत्नी और बेटे के साथ ऊपर वाले कमरे में सोने गया था. अब आप कह रहे हैं कि उस की हत्या हो गई है? ऐसा कैसे हो सकता है, इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘आप जो कह रहे हैं, वह भी सही है और मैं जो कह रहा हूं वह भी. आप जरा अपनी बहू को बुलाएंगे?’’ इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा.

इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी की बातों पर देवेंद्र प्रताप सिंह को बिलकुल यकीन नहीं हुआ था. उन्होंने वहीं से बहू सुषमा को आवाज दी. 3-4 बार बुलाने के बाद ऊपर से सुषमा की आवाज आई. उन्होंने सुषमा को फौरन नीचे आने को कहा. कपड़े संभालती सुषमा नीचे आई तो वहां सब को इस तरह देख कर परेशान हो उठी. उस की यह परेशानी तब और बढ़ गई, जब उस की नजर पुलिस और उन के साथ खड़े एक युवक पर पड़ी. उस युवक को आगे कर के इसंपेक्टर ओमहरि ने कहा, ‘‘सुषमा, तुम इसे पहचानती हो?’’

उस युवक को सुषमा ने ही नहीं, सभी ने पहचान लिया. उस का नाम कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू था. वह सुषमा के मायके का रहने वाला था और अकसर सुषमा से मिलने आता रहता था. सभी उसे हैरानी से देख रहे थे.

सुषमा कुछ नहीं बोली तो इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा, ‘‘तुम नहीं पहचान पा रही हो तो चलो मैं ही इस के बारे में बताए देता हूं. यह तुम्हारा प्रेमी डब्लू है. अभी थोड़ी देर पहले यह तुम्हारे पति की हत्या कर के लाश को मोटरसाइकिल से ठिकाने लगाने के लिए ले जा रहा था, तभी रास्ते में इसे हमारे 2 सिपाही मिल गए. उन्होंने इसे और इस के एक साथी को पकड़ लिया. अब ये कह रहे हैं कि पति को मरवाने में तुम भी शामिल थी?’’crime story

ओमहरि वाजपेयी की बातों पर देवेंद्र प्रताप सिंह को अभी भी विश्वास नहीं हुआ था. वह तेजतेज कदमों से सीढि़यां चढ़ कर बेटे के कमरे में पहुंचे. बैड के एक कोने में 5 साल का आयुष डरासहमा बैठा था. दादा को देख कर वह झट से उठा और उन के सीने से जा चिपका. वह जिस बेटे को खोजने आए थे, वह कमरे में नहीं था. देवेंद्र पोते को ले कर नीचे आ गए. अब साफ हो गया था कि विवेक के साथ अनहोनी घट चुकी थी.

हैरानी की बात यह थी कि विवेक के कमरे के बगल वाले कमरे में उस के चाचा कृष्णप्रताप सिंह और चाची दुर्गा सिंह सोई थीं. हत्या कब और कैसे हुई, उन्हें पता ही नहीं चला था. सभी यह सोच कर हैरान थे कि घर में सब के रहते हुए सुषमा ने इतनी बड़ी घटना को कैसे अंजाम दे दिया? मजे की बात यह थी कि इतना सब होने के बावजूद सुषमा के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी.

सुषमा की खामोशी से साफ हो गया था कि यह सब उस की मरजी से हुआ था. उस के पास अब अपना अपराध स्वीकार कर लेने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. उस ने घर वालों के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. सच्चाई जान कर घर में कोहराम मच गया. देवेंद्र प्रताप सिंह के घर से अचानक रोने की आवाजें सुन कर पड़ोसी उन के यहां पहुंचे तो विवेक की हत्या के बारे में सुन कर हैरान रह गए. उन की हैरानी तब और बढ़ गई, जब उन्हें पता चला कि यह काम विवेक की पत्नी सुषमा ने ही कराया था.

पुलिस सुषमा को साथ ले कर थाना कैंट आ गई. कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू और उस के एक साथी राधेश्याम पकड़े जा चुके थे. पता चला कि उस के 2 साथी अनिल मौर्य और सुनील भागने में कामयाब हो गए थे.

ओमहरि वाजपेयी ने रात होने की वजह से सुषमा सिंह को महिला थाने भिजवा दिया. रात में कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू और उस के साथी राधेश्याम मौर्य से पुलिस ने पूछताछ शुरू की. दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

अगले दिन यानी 23 अप्रैल, 2017 की सुबह मृतक विवेक प्रताप सिंह के पिता देवेंद्र प्रताप सिंह ने थाना कैंट में बेटे की हत्या का नामजद मुकदमा 6 लोगों कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू, राधेश्याम मौर्य, अनिल मौर्य, सुनील तेली, सुषमा सिंह और मुकेश गौड़ के खिलाफ दर्ज कराया.

पुलिस ने यह मुकदमा भादंवि की धारा 302, 201, 147, 149 के तहत दर्ज किया था. इस मामले में 3 लोग पकड़े जा चुके थे, बाकी की तलाश में पुलिस निकल पड़ी. पूछताछ में गिरफ्तार किए गए कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू ने विवेक की हत्या की जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी—

32 साल की सुषमा सिंह मूलरूप से जिला देवरिया के थाना गौरीबाजार के गांव पथरहट के रहने वाले सुरेंद्र बहादुर सिंह की बेटी थी. उन की संतानों में वही सब से बड़ी थी. बात उन दिनों की है, जब सुषमा ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा था. सुषमा काफी खूबसूरत थी, इसलिए उसे जो भी देखता, देखता ही रह जाता. उस के चाहने वालों की संख्या तो बहुत थी, लेकिन वह किसी के दिल की रानी नहीं बन पाई थी. इस मामले में अगर किसी का भाग्य जागा तो वह था कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू.

32 साल का कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू उसी गांव के रहने वाले दीपनारायण सिंह का बेटा था. उन की गांव में तूती बोलती थी. गांव का कोई भी आदमी दीपनारायण से कोई संबंध नहीं रखता था. उस के किसी कामकाज में भी कोई नहीं आताजाता था. डब्लू 18-19 साल का था, तभी वह भी पिता के नक्शेकदम पर चल निकला था. वह भी अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था.crime story

पुलिस सूत्रों के अनुसार, कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू इंटर तक ही पढ़ पाया था. इस के बाद वह अपराध में डूब गया. जल्दी ही आसपास के ही नहीं, पूरे जिले के लोग उस से खौफ खाने लगे. डब्लू का बड़ा भाई बबलू पुलिस विभाग में सिपाही था. वह शराब पीने का आदी था. उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था.

सन 2010 में गांव के बाहर एक तालाब में पुलिस वर्दी में बबलू की लाश तैरती मिली थी. लोगों का कहना था कि शराब के नशे में वह डूब कर मर गया था. लेकिन डब्लू और उस के घर वालों का मानना था उस की हत्या की गई थी. यह हत्या किसी और ने नहीं, गांव के ही उस के विरोधी रमेश सिंह ने की थी. लेकिन यह बात उन लोगों ने रमेश सिंह से ही नहीं, गांव के भी किसी आदमी से नहीं कही थी.

इस की वजह यह थी कि डब्लू को रमेश सिंह से भाई की मौत का बदला लेना था. इस के लिए उस ने रमेश सिंह से दोस्ती गांठ ली. फिर एक दिन गांव के पास ही वह रमेश सिंह के साथ शराब पीने बैठा. उस ने जानबूझ कर रमेश सिंह को खूब शराब पिलाई.

जब रमेश सिंह नशे में बेकाबू हो गया तो डब्लू ने हंसिए से उस का गला धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए वह मां के पास पहुंचा और सिर उन के सामने कर के बोला, ‘‘देखो मां, यही भैया का हत्यारा था. आज मैं ने इस के किए की सजा दे दी. इसे वहां भेज दिया, जहां इसे बहुत पहले पहुंच जाना चाहिए था.’’

यह सन 2011 की बात है.   इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए डब्लू पूरे गांव में घूमा. डब्लू के दुस्साहस को देख कर गांव में दहशत फैल गई. पुलिस उस तक पहुंच पाती, उस से पहले ही वह रमेश सिंह का सिर फेंक कर फरार हो गया. लेकिन पुलिस के चंगुल से वह ज्यादा समय तक नहीं बच पाया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद डब्लू को लगा कि गांव के ही रहने वाले रमेश सिंह के करीबी पूर्व ग्रामप्रधान शातिर बदमाश अरुण सिंह उस की हत्या करवा सकते हैं. फिर क्या था, वह उन्हें ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगा.

25 अप्रैल, 2013 को किसी काम से अरुण सिंह अपनी मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे, तभी मचिया चौराहे पर घात लगा कर बैठे डब्लू ने गोलियों से भून डाला. घटनास्थल पर ही उन की मौत हो गई. उस समय तो वह फरार हो गया था, लेकिन बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

बात उस समय की है, जब सुषमा कालेज में पढ़ती थी. संयोग से उसी कालेज में डब्लू भी पढ़ता था. चूंकि दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे, इसलिए कालेज आतेजाते अकसर दोनों की मुलाकात हो जाती थी. सुषमा खूबसूरत तो थी ही, डब्लू भी कम स्मार्ट नहीं था. साथ आनेजाने में ही दोनों में प्यार हो गया. सुषमा डब्लू के आपराधिक कारनामों के बारे में जानती थी, इस के बावजूद उस से प्यार करने लगी.

सुषमा और डब्लू की प्रेमकहानी जल्दी ही गांव वालों के कानों तक पहुंच गई. फिर तो इस की जानकारी सुरेंद्र बहादुर सिंह को भी हो गई. बेटी की इस करतूत से पिता का सिर शरम से झुक गया. उन्होंने सुषमा को डब्लू से मिलने के लिए मना तो किया ही, उस के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी. इस का नतीजा यह निकला कि एक दिन वह मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर डब्लू के साथ भाग गई. इस के बाद दोनों ने मंदिर में शादी कर ली. यह 7-8 साल पहले की बात है.crime story

सुषमा के भाग जाने से सुरेंद्र बहादुर सिंह की काफी बदनामी हुई. डब्लू आपराधिक प्रवृत्ति का था, इसलिए वह उस का कुछ कर भी नहीं सकते थे. फिर भी उन्होंने पुलिस के साथसाथ बिरादरी की मदद ली. पुलिस और बिरादरी के दबाव में डब्लू ने सुषमा को उस के घर वापस भेज दिया. सुषमा के घर वापस आने के बाद सुरेंद्र बहादुर सिंह ने उस के घर से बाहर जाने पर सख्त पाबंदी लगा दी.

संयोग से उसी बीच रमेश सिंह की हत्या के आरोप में डब्लू जेल चला गया तो सुरेंद्र बहादुर सिंह ने राहत की सांस ली. डब्लू की जो छवि बन चुकी थी, उस से वह काफी डरे हुए थे. वह जेल चला गया तो उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया और आननफानन में सुषमा की शादी गोरखपुर के रहने वाले संपन्न और सभ्य देवेंद्र प्रताप सिंह के बेटे विवेक प्रताप सिंह उर्फ विक्की से कर दी.

यह शादी इतनी जल्दी में हुई थी कि देवेंद्र प्रताप सिंह बहू के बारे में कुछ पता नहीं कर सके. जेल में बंद डब्लू को जब सुषमा की शादी के बारे में पता चला तो वह सुरेंद्र बहादुर सिंह पर बहुत नाराज हुआ. लेकिन वह सुषमा के पिता थे, इसलिए वह उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता था. पर उस ने यह जरूर तय कर लिया था कि वह सुषमा को खुद से अलग नहीं होने देगा. इस के लिए उसे कुछ भी करना पड़े, वह करेगा.

सुषमा ने भले ही विवेक से शादी कर ली थी, लेकिन उस का तन और मन डब्लू को ही समर्पित था. हर घड़ी वह उसी के बारे में सोचती रहती थी. जल्दी ही वह विवेक के बेटे आयुष की मां बन गई. जनवरी, 2013 में जब डब्लू जमानत पर जेल से बाहर आया तो सुषमा से मिलने गोरखपुर स्थित उस की ससुराल पहुंच गया.

डब्लू को देख कर सुषमा बहुत खुश हुई. उस का प्यार उस के लिए फिर जाग उठा. इस के बाद वे किसी न किसी बहाने एकदूसरे से मिलने लगे. फोन पर तो बातें होती ही रहती थीं. उसी बीच 25 अप्रैल, 2013 को डब्लू ने पूर्वप्रधान अरुण सिंह की हत्या कर दी तो वह एक बार फिर जेल चला गया. इस बार वह 5 सालों बाद 18 मार्च, 2017 को जेल से बाहर आया तो एक बार फिर उस का सुषमा से मिलनाजुलना शुरू हो गया.

डब्लू बारबार सुषमा से मिलने आने लगा तो विवेक प्रताप सिंह को पत्नी के चरित्र पर संदेह हो गया. इस के बाद पतिपत्नी में अकसर झगड़ा होने लगा. वह डब्लू को अपने यहां आने से मना करने लगा. लेकिन सुषमा उस की एक नहीं सुनती थी. पत्नी के इस व्यवहार से विवेक काफी परेशान रहने लगा. रोजरोज के झगड़े से बेटा भी परेशान रहता था. डब्लू को ले कर पतिपत्नी में संबंध काफी बिगड़ गए. दोनों के बीच मारपीट भी होने लगी.

सुषमा विवेक की कोई बात नहीं मानती थी. रोजरोज के झगड़े से परेशान विवेक अपने दुख को किसी से न कह कर फेसबुक पर पोस्ट किया करता था. दूसरी ओर सुषमा भी पति से ऊब चुकी थी. अब वह उस से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगी. जब उस ने यह बात डब्लू से कही तो उस ने आश्वासन दिया कि उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है. वह जब चाहेगा, उसे विवेक से छुटकारा दिलवा देगा. उस के बाद दोनों एक साथ रहेंगे.

डब्लू के लिए किसी की जान लेना मुश्किल काम नहीं था. सुषमा के कहने के बाद वह विवेक की हत्या की योजना बनाने लगा. सुषमा भी योजना में शामिल थी. दोनों विवेक की हत्या इस तरह करना चाहते थे कि उन का काम भी हो जाए और उन का बाल भी बांका न हो. यानी वे पकड़े न जाएं. वे विवेक की हत्या को एक्सीडेंट दिखाना चाहते थे. इस के लिए डब्लू ने टाटा सफारी कार की व्यवस्था कर ली थी. यह कार उस के पिता की थी. इस के बाद वे घटना को अंजाम देने का मौका तलाशने लगे.

22-23 मई, 2017 की रात सुषमा सिंह ने योजना के तहत डब्लू को बुला लिया. डब्लू टाटा सफारी कार यूपी52ए के5990 से अपने 3 साथियों राधेश्याम मौर्य, अनिल मौर्य और सुनील तेली के साथ विशुनपुरा पहुंच गया. उन्होंने कार घर से कुछ दूरी पर स्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के औफिस के सामने खड़ी कर दी. कार का ड्राइवर अशोक उसी में बैठा था.

डब्लू अपने साथियों के साथ विवेक के घर पहुंचा तो सुषमा दरवाजा खोल कर सभी को बैडरूम में ले गई. बैड पर विवेक बेटे के साथ सो रहा था. विवेक की हत्या के लिए सुषमा ने एक ईंट पहले से ही ला कर कमरे में रख ली थी. कमरे में पहुंचते ही डब्लू ने विवेक का गला दबोच लिया. विवेक छटपटाया तो उस के साथियों ने उसे काबू कर लिया. उन्हीं में से किसी ने सुषमा द्वारा रखी ईंट से सिर पर प्रहार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया.

धक्कामुक्की और छीनाझपटी में पिता के बगल में सो रहे आयुष की आंखें खुल गईं. उस ने देखा कि कुछ लोग उस के पापा को पकड़े हैं तो वह चिल्ला उठा. उस के चीखने पर सब डर गए. डब्लू ने उसे डांटा तो उस की आवाज गले में फंस कर रह गई. इस के बाद वह आंखें मूंद कर लेट गया. एक बार सभी ने विवेक को हिलाडुला कर देखा, जब उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो सब समझ गए कि यह मर चुका है.

इस के बाद उन्होंने लाश उठाई और ऊपर से ही नीचे फेंक दी. फिर दबेपांव सीढ़ी से नीचे आ गए. डब्लू ने बरामदे में खड़ी विवेक की मोटरसाइकिल निकाली और खुद चलाने के लिए बैठ गया. जबकि राधेश्याम विवेक की लाश को ले कर इस तरह बैठ गया, जैसे वह बीच में बैठा है. बाकी के उस के 2 साथी अनिल और सुनील पैदल ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के औफिस की ओर चल पड़े. क्योंकि  उन की कार वहीं खड़ी थी.

लेकिन जब वे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास पहुंचे तो कार वहां नहीं थी. सभी परेशान हो उठे. दरअसल हुआ यह था कि उन के जाने के कुछ ही देर बाद गश्त करते हुए 2 सिपाही वहां आ पहुंचे थे. उन्होंने आधी रात को कार खड़ी देखी तो ड्राइवर अशोक से पूछताछ करने लगे. घबरा कर ड्राइवर अशोक कार ले कर भाग गया. ड्राइवर डब्लू को फोन करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई.

डब्लू के आने पर वहां कार नहीं मिली तो उसे चिंता हुई. वह ड्राइवर को फोन करने ही जा रहा था कि पुलिस चौकी रामगढ़ताल के 2 सिपाही वहां आ पहुंचे. उन्होंने उन से पूछताछ शुरू की तो वे सही जवाब नहीं दे सके. सिपाहियों ने थाना कैंट फोन कर के थानाप्रभारी ओमहरि वाजपेयी को इस की सूचना दे दी.

ओमहरि वाजपेयी मौके पर पहुंचे तो उन्हें मामला संदिग्ध लगा. उन्होंने बीच में बैठे विवेक को हिलाडुला कर देखा तो पता चला कि वह तो लाश है. डब्लू और राधेश्याम से सख्ती से पूछताछ की गई तो विवेक की हत्या का राज खुल गया.

दूसरी ओर जब सभी विवेक की लाश ले कर चले गए तो सुषमा कमरे में फैला खून साफ करने लगी. उस ने जल्दी से चादर और तकिए भी बदल दिए थे. उस ने सबूत मिटाने की पूरी कोशिश की थी. तब शायद उसे पता नहीं था कि उस ने जो किया है, उस का राज तुरंत ही खुलने वाला है.

आयुष अपने पापा विवेक प्रताप सिंह की हत्या का चश्मदीद गवाह है. उस ने पुलिस को बताया कि जब अंकल लोग उस के पापा को पकड़े हुए थे तो वह चीखा था. तब एक अंकल ने उस का मुंह दबा कर डांट दिया था. उन लोगों ने पापा का गला तो दबाया ही, उन्हें ईंट से भी मारा था.

वे पापा को ले कर चले गए तो मम्मी कमरे में फैला खून साफ करने लगी थीं. वे उसे भी मारना चाहते थे, तब मम्मी ने एक अंकल से कहा था, ‘यह तो तुम्हारा ही बेटा है, इसे मत मारो.’ इस के बाद अंकल ने उसे छोड़ दिया था.

विवेक की लाश उस की मोटरसाइकिल से इसलिए ला रहे थे, ताकि उसे सड़क पर उस की मोटरसाइकिल सहित कहीं फेंक कर यह दिखाया जा सके कि उस की मौत सड़क दुर्घटना में हुई है.

पुलिस ने अनिल और सुनील को गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन ड्राइवर अशोक अभी पकड़ा नहीं जा सका है. टाटा सफारी कार बरामद हो चुकी है. पुलिस ने विवेक की हत्या में प्रयुक्त खून से सनी ईंट, खून सने कपड़े आदि भी बरामद कर लिए थे. विवेक की मोटरसाइकिल तो पहले ही बरामद हो चुकी थी.

सारी बरामदगी के बाद पुलिस ने अदालत में सभी को पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मजे की बात यह है कि सुषमा को पति की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं है. वह जेल से बाहर आने के बाद अब भी अपने प्रेमी डब्लू के साथ जीवन बिताने के सपने देख रही है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें