22 अप्रैल, 2017 की रात करीब 2 बजे की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला हादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर 1 के रहने वाले देवेंद्र प्रताप सिंह अपने घर में सो रहे थे. अचानक घर की डोलबेल बजी तो वह बड़बड़ाते हुए दरवाजे पर पहुंचे कि इतनी रात को किसे क्या जरूरत पड़ गई? चश्मा ठीक करते हुए उन्होंने दरवाजा खोला तो बाहर पुलिस वालों को देख कर उन्होंने हैरानी से पूछा, ‘‘जी बताइए, क्या बात है?’’

‘‘माफ कीजिए भाईसाहब, बात ही कुछ ऐसी थी कि मुझे आप को तकलीफ देनी पड़ी.’’ सामने खड़े थाना कैंट के इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा.

‘‘जी बताएं, क्या बात है?’’ देवेंद्र प्रताप ने पूछा.

‘‘आप की बहू और बेटा कहां है?’’

‘‘ऊपर अपने कमरे में पोते के साथ सो रहे हैं.’’ देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा.

अब तक परिवार के बाकी लोग भी नीचे आ गए थे. लेकिन न तो देवेंद्र प्रताप सिंह का बेटा विवेक प्रताप सिंह आया था और न ही बहू सुषमा. इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने थोड़ा तल्खी से कहा, ‘‘आप को पता भी है, आप के बेटे विवेक प्रताप सिंह की हत्या कर दी गई है?’’

‘‘क्याऽऽ, आप यह क्या कह रहे हैं इंसपेक्टर साहब?’’ देवेंद्र प्रताप सिंह ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘वह हम सब के साथ रात का खाना खा कर पत्नी और बेटे के साथ ऊपर वाले कमरे में सोने गया था. अब आप कह रहे हैं कि उस की हत्या हो गई है? ऐसा कैसे हो सकता है, इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘आप जो कह रहे हैं, वह भी सही है और मैं जो कह रहा हूं वह भी. आप जरा अपनी बहू को बुलाएंगे?’’ इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा.

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