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इन खिलाड़ियों पर बनी फिल्म हो चुकी हैं सुपरहिट

पिछले साल राजकुमार हिरानी ने बतौर निर्माता ‘साला खड़ूस’ में नया प्रयोग किया था. फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि खेलों में होने वाली गंदी राजनीति और उससे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के कुंठित हो जाने को संवेदनशील तरीके से उभारा गया.

खेलों पर केंद्रित फिल्मों की हालांकि यह नई शुरुआत नहीं थी. पहले भी कुछ फिल्में बनी है जिनमें खेल का हवाला देकर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया गया है. इनमें ‘हिप हिप हुर्रे’, ‘जो जीता वही सिकंदर’ जैसी फिल्में विशेष रूप से उल्लेखनीय रहीं.

नौ साल पहले शाहरुख खान की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘चक दे इंडिया’ ने खेल भावना विकसित करने की अनूठी पहल की. फिल्म में महिला हौकी टीम को विश्व विजेता बनाने की कल्पना की गई थी जो हालांकि असलियत से कोसों दूर थी.

लेकिन फिल्म ने खेलों में पक्षपात, राजनीति और क्षेत्रवाद को दिखाया और रास्ता दिखाया कि कैसे इन बीमारियों को दरकिनार करते हुए एक होकर बड़ी से बड़ी सफलता पाई जा सकती है. खेलों में वैश्विक सफलता पाने का यही रास्ता है. यह अलग बात है कि इस रास्ते को अपनाने की कोशिश कम ही हुई है.

‘चक दे इंडिया’ के बाद कुछ और फिल्में भी खेल पर केंद्रित रहीं. ‘बांबे वेलवेट’ व ‘ब्रदर्स’ में पेशेवर मुक्केबाजी की झलक दिखी. बाकी फिल्मों में प्रधानता क्रिकेट की रही. यह स्वाभाविक है क्योंकि फिल्मों के बाद देश में सबसे ज्यादा लोकप्रिय क्रिकेट ही है.

कुछ साल पहले अनजान खिलाड़ी पान सिंह तोमर पर बनी तिंग्माशु धूलिया की फिल्म ने खिलाड़ियों के जीवन पर फिल्म बनाने का मोह बढ़ाया. संजय लीला भंसाली ने बौक्सर मेरी काम पर और राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने मिल्खा सिंह पर फिल्म बना कर सफलता क्या पाई कि खिलाड़ियों पर कई फिल्में बनाने का एलान हो गया.

क्रिकेटर अजहरुद्दीन और महेंद्र सिंह धोनी पर फिल्में बन गईं तो सचिन तेंदुलकर का सफर डौक्यु ड्रामा के रूप में सामने आया. ‘मेरी काम’ व ‘भाग मिल्खा भाग’ के बाद अजहर और धोनी पर बनी फिल्मों में खेल हस्तियों का चरित्र चित्रण रोचक बनाने के लिए फिल्मी टोटकों का जम कर इस्तेमाल किया.

फिल्म को दर्शर्नीय बनाने के लिए ऐसा करना जरूरी हो सकता है लेकिन इससे मूल चरित्र का व्यक्तित्व ठीक से उभर नहीं पाया. ‘पान सिंह तोमर’ में ज्यादा ईमानदारी बरती गई. एक एथीलीट की संघर्ष यात्रा को ग्लैमरस रंग देने की कोशिश नहीं की गई.

मिल्खा सिंह का दावा है कि उन्होंने अपनी जीवनी सिर्फ एक रुपए में बेची थी लेकिन माना जाता है कि उन्हें और मेरी काम दोनों को मुनाफे का हिस्सा मिला. यह चर्चा आम है कि धोनी ने अपनी जीवनी पर फिल्म के एवज में तीस से चालीस करोड़ रुपए लिए हैं. एक पैर से एवरेस्ट फतह करने वाली अरुणिमा सिन्हा की जीवनी पर फिल्म बनाने की फरहान अख्तर की योजना इसलिए खटाई में पड़ गई है क्योंकि अरुणिमा ने बदले में फिल्म की रौयल्टी में हिस्सा मांग लिया. माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल पर फिल्म बनाने की योजना भी किसी न किसी वजह से अटकी हुई है.

फुटपाथ : रोशनी के बीच पसरे अंधकार की ये है हकीकत

फुटपाथों पर बनी झुग्गियों और बाजारों से सरकार और प्रशासन अनजान नहीं होते हैं या गरीबों पर रहम खा कर उन्हें फुटपाथों पर कारोबार करने या बसने के लिए छोड़ दिया जाता है. इस के पीछे हरे नोटों की चमक काम करती है. रिटायर्ड पुलिस अफसर एसके भारद्वाज बताते हैं कि फुटपाथ पर रहने वालों या कोई कामधंधा करने वालों को इस के एवज में अच्छीखासी रकम चुकानी पड़ती है. फुटपाथियों को पुलिस वाले और लोकल रंगदार दोनों की मुट्ठी गरम करनी पड़ती है.

इस से तो अच्छा है कि अगर सरकार फुटपाथ से कब्जे को हटा नहीं सकती, तो उसे वहां रहने वालों या कारोबार कराने वालों को पट्टे पर दे दे. इस से सरकार के खजाने में काफी पैसा आ सकता है.

पटना के ऐक्जिबिशन रोड पर वड़ा पाव और औमलेट का ठेला लगाने वाले एक दुकानदार ने नाम नहीं छापने की गारंटी देने के बाद बताया कि वह दिनभर में 2 हजार रुपए का धंधा कर लेता है. रोज शाम होते ही पुलिस वाले और लोकल दादा टाइप लोग ‘टैक्स’ वसूलने के लिए पहुंच जाते हैं. 2 सौ रुपए पुलिस वालों और 3 सौ रुपए गुंडों को हर रोज चढ़ाने पड़ते हैं. इस के बाद भी वे लोग वड़ा पावऔर आमलेट मुफ्त में हजम करना नहीं भूलते हैं.

समूचे देश में मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, पटना से ले कर किसी भी बड़े या छोटे शहर के फुटपाथों पर रहने वालों की जिंदगी एकजैसी ही होती है. टूटेफूटे बांस और लकडि़यों के टुकड़ों और पौलीथिनों को जोड़जोड़ कर बनाई गई झोंपडि़यों के पास पहुंचते ही नथुनों में तेज बदबू का एहसास होता है. बगल में बह रही संकरी नाली में बजबजाती गंदगी… कचरा भरा होने की वजह से गंदा पानी गली की सतह पर आने को बेचैन दिखता है… तंग और सीलन से भरी छोटीछोटी झोंपडि़यों से झांकते चेहरे… खांसते और लड़खड़ाती जिंदगी से बेजार हो चुके बूढ़े… पास की सड़कों और गलियों में हुड़दंग मचाते मैलेकुचैले बच्चे… यही है फुटपाथों की जिंदगी.

इस के साथ ही फुटपाथों पर ठेला, खोमचा, रेहड़ी, पटरी का बड़ा कारोबार भी चलता है. महानगरों, नगरों और कसबों के फुटपाथों पर चलने वाले ऐसे बाजारों का सालाना टर्नओवर करोड़ों रुपए का होता है.

फलों, सब्जियों, रेडीमेड कपड़ों, फास्ट फूड, पानी पूरी, चाट, खिलौनों, किताबों, साइकिल से ले कर कारों व कंप्यूटर, मोबाइल फोन वगैरह की मरम्मत करने की दुकानों से फुटपाथ पटे हुए हैं.

फुटपाथों और झोंपड़पट्टियों में रहने वालों के बीच पिछले 12 सालों से लगातार काम कर रहे समाज विज्ञानी आलोक कुमार कहते हैं कि गरीब लोग गांव छोड़ कर शहर इसलिए आते हैं कि उन्हें कोई बढि़या और पक्का काम मिलेगा, लेकिन ज्यादातर लोग मजदूर, रिकशा व ठेला गाड़ी चलाने वाले या भिखारी बन कर रह जाते हैं.

शहरों में इधरउधर भटकते हुए वे लोग फुटपाथों पर टिक जाते हैं. कभीकभार जब लोकल पुलिस थानों पर ‘ऊपरी दबाव’ आता है, तो आननफानन मुहिम शुरू कर फुटपाथ को साफ करा दिया जाता है और पुलिस की ‘हल्ला गाड़ी’ यानी बुलडोजर या जेसीबी के वापस लौटते ही फिर से फुटपाथों पर कब्जा कायम होने लगता है. कुछ ही घंटों में एक बार फिर फुटपाथ की जिंदगी गुलजार हो जाती है.

पटना के एक फुटपाथ पर पिछले 26 सालों से रह रहा जीतन बताता है कि महीने में 15-16 दिन मुफ्त में पूरीसब्जी और मिठाई खाने का मजा मिलता है. जीतन अपने 3 बच्चों और बीवी के साथ छोटी सी झोंपड़ी में रह रहा है.

पटना शहर का पुराना इलाका है अशोक राजपथ. इसी सड़क के किनारे बने फुटपाथ पर भिखारियों की झोंपडि़यां बसी हुई हैं. अपने परिजनों की आत्मा को शांति पहुंचाने के टोटके के नाम पर अमीर लोग यहां के लोगों के बीच पूरीसब्जी और मिठाई के पैकेट बांटते रहते हैं.

समाज में फैले अंधविश्वास ने भी फुटपाथों को जिंदा रखने में अहम रोल अदा किया है. शहर में रोज कोई न कोई मरता ही है और उस के परिवार वाले फुटपाथ पर रहने वाले गरीबों के बीच खाने के पैकेट बांटने की रस्म निभा कर समझते हैं कि इस से मरे हुए परिजन की आत्मा को शांति मिलेगी. इसी सोच की वजह से शहरी फुटपाथों के बाशिंदों को कभी पकवानों की कमी नहीं होती है.

15 साल का दिलीप बताता है, ‘‘जब तक अमीर लोग हम कंगालों को खाना नहीं खिलाएंगे, तब तक मरने वाले की आत्मा भटकती रहेगी. दूसरी जिंदगी पाने के लिए उसे कोई शरीर ही नहीं मिलेगा.’’

दिलीप की बातें सुन कर यही लगता है कि उस के मांबाप ने भी उ यह बात घुट्टी में पिला दी है कि लोग उसे खाना खिला कर या दान दे कर कोई अहसान नहीं करते हैं, बल्कि अपना मतलब साधने के लिए ऐसा करते हैं.

अपने 4 बच्चों के साथ रांची, झारखंड में रहने वाले डोमन दास से जब पूछा गया कि वह कोई कामधंधा क्यों नहीं करता है? अपंग नहीं होने के बाद भी भीख और दान के भरोसे क्यों जिंदगी चला रहा है? मजदूरी कर के अपनी कमाई को बढ़ाना क्यों नहीं चाहता है? अपने बच्चों को स्कूल में क्यों नहीं भेजता है?

इन सब सवालों के जवाब में वह उलटा सवाल करता है, ‘‘अगर हम लोग दूसरा कामधंधा करने लगेंगे, तो पैसे वालों के दानपुण्य का काम कैसे चलेगा? गरीबों को दान दे कर ही तो रईस लोग पुण्य बटोरते हैं.’’

झारखंड की राजधानी रांची के मेन रोड इलाके में फुटपाथ पर रहने वाले ज्यादातर लोग किसी भी सूरत से अपंग और लाचार नहीं हैं. इस के बाद भी वे कोई कामधंधा नहीं करना चाहते हैं. मेहनतमजदूरी कर के पैसा कमाने और पेट पालने के बारे में वे लोग सोचते ही नहीं हैं.

पटना के लोहानीपुर इलाके के रहने वाले वंचित जन मोरचा के संयोजक किशोरी दास कहते हैं कि हर सरकार और प्रशासन फुटपाथ और झुग्गियों में बसे लोगों को हटाने या दूसरी जगह बसाने के बजाय उसे बनाए रखने में दिलचस्पी रखते हैं. कभीकभार आम जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए प्रशासन पर सनक सवार होती है, तो फुटपाथ से कब्जा हटा दिया जाता है और उस के बाद वे दोबारा कान में तेल डाल कर सो जाते हैं.

प्रशासन के इसी रवैए की वजह से फुटपाथ पर रहने वालों को पुलिस के डंडों और बुलडोजरों से अब डर नहीं लगता है. वे समझ चुके हैं कि जब उन्हें उजाड़ा जाएगा, तो वे फिर उसी जगह बस जाएंगे. उस के बाद कुछ सालों तक उन्हें कुछ नहीं होने वाला है.

पटना के पीरमुहानी महल्ले में फुटपाथ पर बसा कल्लू गोप कहता है कि वह यहां पिछले 8 सालों से रह रहा है, लेकिन हर दिन उस के सिर पर घर उजड़ने की तलवार लटकती रहती है.

कल्लू गोप का 12 साल का बेटा फेंकना बड़ी ही मासूमियत से कहता है कि उस के साथ कई बच्चों ने मिल कर ‘मुख्यमंत्री अंकल’ और ‘डीएम अंकल’ से कहा था कि उन्हें रहने को छोटा सा घर दे दिया जाए, जिस से झोंपड़ी के बच्चे मन लगा कर पढ़ सकें और बड़ा आदमी बन सकें, पर कोई सुनता ही नहीं है.

इस इलाके के लोग सर्किल अफसर से ले कर गवर्नर तक गुहार लगा चुके हैं, इस के बाद भी गरीबों को उन के हाल पर छोड़ दिया गया है. गांव से ये लोग शहर में काम की खोज में आए हैं, पर यहां न तो ढंग का कोई काम मिला और ऊपर से हर समय झोंपड़ी उजड़ने का डर अलग से बना रहता है. पुलिस वाले अकसर तरक्की के नाम पर डंडा भांजने पहुंच जाते हैं और किसी को भी नहीं बख्शते हैं.

बेलगाम पुलिस ने गंगा बिंद के 3 साल के मासूम बच्चे नीतीश को भी लाठी से पीट डाला था. अपनी झोंपड़ी के सामने खड़ी 70 साल की बीना देवी पर भी पुलिस ने रहम नहीं दिखाया और उस के पेट पर लाठी दे मारी. वह तड़प कर जमीन पर गिर पड़ी. उस के इलाज पर 2 हजार रुपए खर्च हो गए.

फुटपाथ पर रहने वालों की जिंदगी को देख कर यही महसूस होता है कि गांवघर को छोड़ कर बेहतर जिंदगी जीने का सपना देखने वालों के लिए शहर के फुटपाथ ही बिछौना और घर हैं. 6-7 फुट के झोंपड़े में न जाने कितनी जिंदगियां खाक हो गईं और न जाने कितने लोग खाक होने के इंतजार में तिलतिल कर रोज मर रहे हैं. सरकार उन्हें हटाने के बजाय बनाए रखने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाती है, क्योंकि वहां उस का मोटा और ठोस वोट बैंक जो होता है.

अपंग संजू : फुटपाथियों के लिए बनी मिसाल

सरकार से जब कोई मदद नहीं मिली, तो 6 साल की उम्र से ही दोनों पैरों से लाचार संजू ने अपने पैरों पर खड़े होने की ठानी. एक दिन वह उठी और अपनी पुरानी तिपहिया साइकिल ले कर दीघा सब्जी हाट पहुंच गई. अपने पास जमा कर के रखे 4 सौ रुपए से उस ने कुछ सब्जियां खरीदीं और राजीवनगर महल्ले के चौक के पास बेचने के लिए बैठ गई. पहले दिन ही उसे सौ रुपए की कमाई हो गई, जिस से संजू का हौसला बढ़ गया.

8वीं क्लास तक पढ़ी संजू कहती है, ‘‘जो काम करेगा, वह कभी भी भूखा नहीं मर सकता है. अपंग अगर सरकारी पैंशन या भीख मांगने के चक्कर में जितनी मेहनत करते हैं, उतनी मेहनत अपना कोई धंधा करने में लगाएं, तो वे अच्छीखासी कमाई कर सकते हैं. किसी की दया पर जिंदगी बरबाद करने से बेहतर है कि मेहनत की जाए.’’

बिहार की राजधानी पटना में पौलिटैक्निक कालेज के पास बने बिंदेश्वरी नगर की रहने वाली 20 साल की संजू कुमारी के पिता दिलकेश्वर बिंद की मौत हो चुकी है और उस की मां चमेली देवी फुटपाथ पर सब्जियां बेच कर परिवार के पेट की आग को बुझाती है.

पैरों से लाचार संजू को अपनी मां की परेशानी देखी नहीं जाती है. वह कहती है, ‘‘सोचा था कि मुझे अपंगों वाली पैंशन मिलेगी, तो घर की कुछ परेशानी कम होगी. इस के लिए कई बार हाकिमों और बाबुओं के यहां अर्जी दी, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हो सकी.

‘‘एक दलाल ने कहा कि 6 सौ रुपए खर्च करोगी, तो तुम्हें अपंगों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पैंशन मिल जाएगी. कई महीने बीत गए, पर अब तक पैंशन नहीं मिल सकी है. आखिर कब तक पैंशन मिलने का इंतजार करें? लगता है कि दलाल रुपए ऐंठ कर डकार गया है.’’

आज संजू रोजाना 2 से 3 हजार रुपए की सब्जियां बेच लेती है, जिस से उसे अच्छाखासा मुनाफा हो जाता है. वह बताती है कि रोज 4 सौ से 5 सौ रुपए तक की कमाई हो जाती है, जिस से परिवार का खर्च आसानी से चल जाता है. वह अपनी कमाई से अपने छोटे भाई विमल को पढ़ा रही है, जो 10वीं क्लास में पढ़ रहा है.

संजू जानती है कि पढ़ाई पूरी नहीं कर पाने की वजह से ही उसे ये दिन गुजारने पड़े हैं. अगर वह पढ़लिख जाती, तो कहीं कोई अच्छा काम मिल सकता था. वह अपने भाई को सब्जी नहीं बेचने देगी. उसे पढ़ालिखा कर एक बड़ा आदमी बनाएगी.

फुटपाथ पर दबंगों का कब्जा

ऐसा कतई नहीं है कि केवल गरीब, भिखारी, रिकशाठेला चलाने वाले और मजदूर लोग ही फुटपाथों पर कब्जा जमाते हैं, बल्कि बड़े दुकानदार भी अपनी दुकानों के सामने बने फुटपाथ पर बड़े ही शान और दबंगई के साथ कब्जा जमाए रहते हैं. दुकान के सामने फुटपाथ के बड़े हिस्से पर सामान को डिस्प्ले में लगा कर रखते हैं. फुटपाथ के ऊपर महंगे और खूबसूरत शेड लगा दिए जाते हैं.

साइकिल, मोटरसाइकिल, खिलौने, चादर, बरतन समेत हर तरह का सामान बेचने वाले अपनी दुकान के सामने के फुटपाथ को खुद की जागीर मानते हैं. इस के साथ ही ढाबा, जूस वाले, पानी वाले भी फुटपाथों पर इस कदर कब्जा जमा कर रखते हैं कि पता ही नहीं चल पाता है कि दुकान कहां तक है और फुटपाथ कहां है. पैदल चलने वाले बड़ीबड़ी गाडि़यों की तेज रफ्तार से बचने के लिए फुटपाथ को ढूंढ़ते रह जाते हैं, पर वह कहीं दिखता ही नहीं है.

इन तरीकों से अब अपने लैपटौप को बनाएं वाई-फाई हौटस्पाट

क्या कभी ऐसा हुआ है कि पांच लोगों को एक ही वक्त पर इंटरनेट का इस्तेमाल करना है, लेकिन ऐसा हो ही नहीं कर पा रहा हैं क्योंकि आपके पास नेटवर्क केबल तो है, पर कोई वाई-फाई राउटर नहीं है. कितना अच्छा होगा कि बिना राउटर के आप अपने इंटरनेट कनेक्शन को सभी यूजर्स और डिवाइस पर शेयर कर पाएं.

क्या आपको पता है कि आप अपने लैपटाप या डेस्कटाप के इंटरनेट कनेक्शन को वाई-फाई के जरिए दूसरे डिवाइस के साथ ज्यादा वक्त तक के लिए शेयर कर सकते हैं और ऐसा करना बेहद ही भी आसान है. जी हां, ऐसा हो सकता है और यूजर्स को इसमें कोई परेशानी भी नहीं होगी क्योंकि इंटरनेट शेयरिंग सेटअप करना, चंद क्लिक का काम है. हालांकि, विंडोज (Windows) यूजर्स के लिए यह प्रक्रिया थोड़ी पेंचीदा है.

आइये जाने लैपटाप के इंटरनेट कनेक्शन को वाई-फाई के जरिए दूसरे डिवाइस के साथ शेयर करने के लिए पूरा तरिका.

इस प्रक्रिया के लिए आपको एक ऐसे विंडोज कम्प्यूटर का इस्तेमाल करना होगा, जिसमें वाई-फाई एडप्टर (या बिल्ट-इन वाई-फाई) हो. अगर आपके कंप्यूटर में वाई-फाई नहीं है, तो आप एक खरीद लें जो यूएसबी के जरिए कनेक्ट हो जाए. अच्छी बात यह है कि बाजार में आपकी मशीन को वाई-फाई हाटस्पाट में तब्दील करने वाले कई एप्स भी उपलब्ध हैं.

विंडोज मशीन को Wi-Fi हाटस्पाट बनाने के लिए इन स्टेप्स को अपनायें

कनेक्टीफाई (Connectify) को अपने सिस्टम पर डाउनलोड कर इंस्टाल करें और जब यह पूरा हो जाए तब आप अपने कंप्यूटर को रीस्टार्ट कर लें.

रीस्टार्ट करने के बाद जांच लें कि यह इंटरनेट से कनेक्टेड है या नहीं. अगर है तो कनेक्टीफाई हाटस्पाट को चलाएं.

अब आप एप में दो टैब देख पाएंगे- सेटिंग्स और क्लाइंट्स. सेटिंग्स टैब में “Create a…” के अंदर वाई-फाई हाटस्पाट पर क्लिक करें.

इंटरनेट टू शेयर के नीचे आप एक ड्राप-डाउन मेन्यू देखेंगे. इसे एक्सपेंड करें और जिस कनेक्शन को शेयर करना है उसे चुन लें. मेन्यू में आप कई और विकल्प देख पाएंगे. इसमें स्टार्ट हाटस्पाट पर क्लिक करें.

बस आपको इतना ही करने की जरूरत है. अब आपके दूसरे डिवाइस कनेक्टीफाई-मी (Connectify-me) नाम से एक वाई-फाई नेटवर्क डिटेक्ट करने लगेगा. पासवार्ड डालें और बिना किसी परेशानी के इंटरनेट इस्तेमाल करें.

OS X पर इंटरनेट शेयरिंग

मेक (Mac) यूजर्स के लिए यह प्रोसेस बेहद ही आसान है. इसके लिए सिस्टम प्रेफरेंसेज खोलें. इसके बाद शेयरिंग में जाएं. फिर इंटरनेट शेयरिंग को चेक करें.

दायीं तरफ शेयर योर कनेक्शन के बाद बने ड्राप-डाउन मेन्यू को एक्सपेंड करें, शेयर किए जाने वाले कनेक्शन को चुनें. आप वाई-फाई (Wi-Fi), ब्लूटूथ (Bluetooth) या आईफोन यूएसबी (iPhone USB) के जरिए इंटरनेट कनेक्शन शेयर कर सकते हैं.

उसके नीचे टू कम्प्यूटर यूजिंग (To computers using) के बगल में एक बाक्स दिखेगा जहां पर आपको वाई-फाई के बगल वाले बाक्स में टिकमार्क करना होगा.

इसके बाद बाक्स के नीचे वाई-फाई आप्शन्स बटन पर क्लिक करें. नेटवर्क चुनें, फिर सिक्योरिटी टाइप और पासवर्ड व वेरीफाई फील्ड में पासवर्ड डालें. हम आपको यही सुझाव देंगे कि सिक्योरिटी आप्शन में नन (None) चुनने के बजाए आप पासवार्ड डालें.

अगर आपका कनेक्शन एक्टिव है, तो आप एक ग्रीन आइकन देख पाएंगे. इसके अलावा सिस्टम प्रेफरेंसेज के अंदर इंटरनेट शेयरिंग टैक्स्ट देख पाएंगे.

बस हो गया! आप इस तरह से अपने पीसी या मेक (Mac) को वाई-फाई हाटस्पाट में तब्दील कर और दूसरे डिवाइस को इंटरनेट से कनेक्ट कर उसका इस्तेमाल शुरू कर सकते हैं.

इस तरीके से वायरस को रखें अपने फोन से दूर

एंड्रौयड स्मार्टफोन्स में वायरस का खतरा हमेशा ही बना रहता है. किसी भी थर्ड पार्टी ऐप को डाउनलोड करने पर आपके फोन में वायरस आ जाता है.

इस परेशानी से निजात पाने के लिए हम आपको स्मार्टफोन की एक सीक्रेट सेटिंग के बारे में बताने जा रहे हैं, जो फोन में वायरस के हमले की संभावना को खत्म कर देगी.

आपको बता दें कि यह ट्रिक एंड्रौयड मार्शमैलो और नौगट वर्जन पर ही काम करेगी.

ऐसे करें अपने स्मार्टफोन की सेटिंग

  • इसके लिए आपको सबसे पहले फोन की सेटिंग्स में जाना होगा.
  • इसके बाद गूगल पर क्लिक करें. यहां आपको सिक्योरिटी का औप्शन मिलेगा. ध्यान रहे कि कई फोन्स में गूगल का विकल्प सेटिंग में बाहर ही होता है तो कई में यह औप्शन अकाउंट्स में दिया होता है.
  • सिक्योरिटी पर टैप करने के बाद गूगल प्ले प्रोटेक्ट पर टैप करके नीचे दिए गए दोनों औप्शन्स को इनेबल कर दें.
  • इसके बाद आप जब भी कोई ऐप इंस्टौल करेंगे तो गूगल उसे औटोमैटिकली स्कैन करेगा. अगर उसमें वायरस होगा तो गूगल आपको पौपअप देगा. साथ ही ऐप को इंस्टौल होने से रोक देगा.

ऐसे गूगल प्ले प्रोटेक्ट करता है काम

गूगल अपने प्ले स्टोर पर मौजूद हर ऐप की प्राइवेसी और सिक्योरिटी की जांच करता है. इसके लिए यह हर कैटेगरी के लिए peer ग्रुप बनाता है. तो ऐसे में अगर कोई ऐप यूजर से किसी भी बात की अनुमति मांगता है तो उसे गूगल द्वारा फ्लैग दे दिया जाता है.

गूगल के विशेषज्ञों ने यह महसूस किया कि कैटेगरी बेस्ड peer ग्रुप में बदलाव नहीं किए जा सकते. जिससे यह पता नहीं चल पाता है कि समान कैटेगरी में ऐप्स के कितने प्रकार हैं. इसी के लिए गूगल ने प्ले प्रोटेक्ट लौन्च किया है.

यह इस बात की गहन जांच करता है कि समान कैटेगरी में ऐप्स के कितनी प्रकार हैं.

आरुषि मर्डर केस : दुनिया के चर्चित ‘ओजे सिंपसन केस’ जैसी अनसुलझी पहेली

बहुचर्चित आरुषि तलवार हत्याकांड दुनिया के सबसे चर्चित ओजे सिंपसन केस से हूबहू मेल खाता है. दोनों ही मामलों में साक्ष्यों के अभाव में मुख्य आरोपियों को बरी कर दिया गया.

क्या है ओजे सिंपसन केस

लॉस एंजिलिस में 13 जून 1994 को नेशनल फुटबाल लीग के पूर्व खिलाड़ी ओजे सिंपसन ने पूर्व पत्नी निकोल ब्राउन सिंपसन और एक रेस्टोरेंट के वेटर रॉन गोल्डमैन की हत्या कर दी थी. ओजे ने निकोल के सिर पर कई बार वार किया था जिससे उसका सिर लहूलुहान हो गया और उनकी गले की हड्डी भी चूर चूर हुई थी. वारदात के दो घंटे बाद पहुंची पुलिस को मौके से खून से सना एक दस्ताना मिला था. वारदात की सूचना देने और जांच के लिए ओजे के घर पहुंची पुलिस टीम को वह नहीं मिले. वह वारदात की रात ही शिकागो निकल गए थे.

जांच टीम ने घर की दीवार फांद कर प्रवेश किया, घर के पिछवाड़े उन्हें खून के कुछ धब्बे मिले थे. नाटकीय ढंग से 17 जून 1994 को ओजे सिंपसन की गिरफ्तारी हुई. लगभग 16 महीने बाद 3 अक्तूबर 1995 को कोर्ट ने ओजे सिंपसन को सबूतों के अभाव में मामले से बरी कर दिया.

ऐसे आरोप झुठलाये गए

डीएनए: पुलिस ने सिंपसन के खिलाफ बेहद सटीक और कसा हुआ केस तैयार किया था. सबूत के तौर पर उस वक्त नए प्रचलन में आई डीएनए जांच को आधार बनाया गया था. लेकिन सिंपसन के वकीलों ने खून के नमूनों को गलत ढंग से लेने और लैब में सही तरीके से उसके रखरखाव का आरोप लगाते हुए इस जांच को बेबुनियाद साबित कर दिया था.

पुलिस जांच: सिंपसन के वकीलों ने इस मामले में लास एंजिलिस पुलिस की जांच को संदिग्ध साबित कर दिया. सबूत की तलाश न कर पाना, शिकागो में मौजूद सिंपसन को केस में फंसाने के लिए झूठी कहानी गढ़ना जैसे आरोप लगाकर पुलिसिया जांच को निराधार साबित कर दिया.

स्टेटस से खिलवाड़: ओजे सिंपसन की प्रसिद्धी को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाते हुए उनके वकीलों ने मीडिया में अलग सा माहौल तैयार कर दिया. केस को कमजोर करने में इसका बहुत लाभ मिला.

रियल ही नहीं रील लाइफ में भी नजर आ चुके हैं ये क्रिकेट खिलाड़ी

खिलाड़ियों और फिल्मों का रिश्ता बहुत पुराना है. कभी यह रिश्ता दोस्ती का होता है तो कभी प्रेम संबंध तो कभी बात शादी तक पहुंच जाती है. रिश्ता चाहे जो भी हो, खिलाड़ी और फिल्मी सितारे दोनों ही सुर्खियां बटोरते हैं. खिलाड़ियों का ये रिश्ता केवल फिल्मी सितारों तक ही सिमित नहीं रहा बल्कि बड़े पर्दे तक पहुंच गया.

पिछले दशक से कुछ खिलाड़ियों ने बड़ी स्क्रीन पर अपनी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन किया है. कपिल देव से सचिन तेंदुलकर तक बहुत सारे भारतीय सुपरस्टार फिल्मों में काम करते दिखे हैं. कई खिलाड़ी ऐसे हैं, जिन्‍होंने क्रिकेट की अपनी लोकप्रियता को फिल्‍मी दुनिया में बड़ी उम्‍मीद के साथ भुनाने की कोशिश की, लेकिन इनके हाथ नाकामी ही आई.

बेशक इन खिलाड़ियों ने अपने प्रतिभा से लाखों क्रिकेट प्रेमियों को अपना प्रशंसक बनाया, लेकिन फिल्‍म पर्दे पर इनका जादू नहीं चल सका. इन खिलाड़ि‍यों में भारतीय टीम के सितारा खिलाड़ी रहे सुनील गावस्‍कर, संदीप पाटिल, अजय जडेजा और विनोद कांबली जैसे खिलाड़ी प्रमुख हैं. आइए नजर डालते हैं क्रिकेट से फिल्‍मी दुनिया में प्रवेश करने वाले इन खिलाड़ि‍यों के सफर पर.

सलीम दुर्रानी

सलीम दुर्रानी दर्शकों की डिमांड पर छक्‍के लगाने के लिए जाने जाते थे. वे ऐसे पहले भारतीय क्रिकेटर थे जिन्होंने क्रिकेट से बौलीवुड की ओर रुख किया. साल 1973 में रिलीज हुई फिल्म ‘चरित्र’ में वह परवीन बौबी के साथ लीड रोल में नजर आए थे.

सचिन तेंदुलकर

मास्टर बलास्टर सचिन तेंदुलकर ने अपनी ही जिंदगी पर बन रही फीचर फिल्म ‘सचिन : अ बीलियन ड्रीम्स’ से फिल्म इंडस्ट्री में अपना डेब्यू किया. फिल्म में सचिन के क्रिकेट करियर और जिंदगी से जुड़े अनछुए पहलूओं के बारे में दिखाया गया.

संदीप पाटिल

क्रिकेट जगत में संदीप पाटिल आक्रामक बल्‍लेबाजी के लिए मशहूर थे. वर्ल्‍ड कप 1983 में भारतीय टीम के चैंपियन बनने के बाद पाटिल ने फिल्म ‘कभी अजनबी थे’ में काम किया था. इस फिल्‍म में उनके साथ पूनम और देबश्री राय भी थीं. कम ही लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि इस फिल्‍म में विलेन की भूमिका में पूर्व विकेटकीपर और वर्ल्‍डकप 1983 की विजेता भारतीय टीम के सदस्‍य सैयद किरमानी भी थे.

सुनील गावस्कर

टीम इंडिया के पूर्व कप्‍तान और महान ओपनर सुनील गावस्कर ने अपने क्रिकेट करियर के दौरान मराठी फिल्म ‘सावली प्रेमाची’ में बतौर मुख्य एक्टर दिखे थे. यह फिल्‍म कोई खास नहीं चली. ‘सनी इसके अलावा साल 1988 में रिलीज हुई कौमेडी हिन्दी फिल्म ‘मालामाल’ में बतौर गेस्ट एपियरेंस में नजर आए थे.

युवराज सिंह

युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह की अभिनय क्षमता से तो हर कोई अवगत है, पर यह बात कम ही लोग जानते हैं कि उनका बेटा भी कैमरे के पीछे काम कर चुका है. युवराज ने कुछ पंजाबी फिल्मों में अपने पिता के साथ बच्चे के रूप में अभिनय किया है. युवी ने पंजाबी फिल्म ‘मेहंदी शगना दी’ में अभिनय किया था.

कपिल देव

1983 का वर्ल्ड कप जीताने वाले दिग्गज कप्तान कपिल देव इकबाल, मुझसे शादी करोगी और स्टम्पड मूवी में नजर आ चुके हैं.

एम एस धोनी

महेंद्र सिंह धोनी यकीनन सबसे महान भारतीय कप्तान हैं. बहुत से लोग यह नहीं जानते कि धोनी बौलीवुड फिल्म ‘हुक या क्रुक’ के हिस्सा थे. डेविड धवन द्वारा निर्देशित इस फिल्म के मुख्य अभिनेता जौन अब्राहान थे. साथ ही इस फिल्म में के के मेनन और जेनेलिया डिसूजा जैसे प्रसिद्ध कलाकार भी थे. फिल्म एक क्रिकेटर के जीवन पर आधारित थी. दुर्भाग्य से, अज्ञात कारणों के कारण यह कभी रिलीज न हो सकी.

दिनेश मोंगिया

भारतीय खिलाड़ी दिनेश मोंगिया ने ‘कबाब में हड्डी’ नामक फिल्म में काम किया था. इस फिल्म में उन्होंने अमिताभ बच्चन की पैरोडी की थी. हालांकि, फिल्म का बौक्स औफिस पर प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा और आलोचकों द्वारा काफी विरोध भी हुआ.

हरभजन सिंह

औफ स्पिनर हरभजन सिंह ने पंजाबी फिल्म ‘भा जी इन प्रौब्लम’ में काम कर चुके हैं, जिसका निर्माण अक्षय कुमार ने किया था. उन्होंने प्रसिद्ध हिंदी फिल्म ‘मुझसे शादी करोगी’ में भी छोटी भूमिका निभाई थी, जहां उन्होंने टीम के साथी खिलाड़ियों इरफान पठान, मोहम्मद कैफ, जवागल श्रीनाथ और आशीष नेहरा के साथ काम किया था.

विनोद कांबली

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के दोस्त विनोद कांबली साल 2002 में रिलीज हुई फिल्म ‘अनर्थ’ में संजय दत्त, आशुतोष राणा और सुनील शेट्टी के साथ नजर आ चुके हैं.

अजय जडेजा

टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेटर अजय जडेजा भी फिल्‍मों में किस्‍मत आजमा चुके हैं. साल 2003 में रिलीज बालीवुड फिल्म ‘खेल’ में अजय जडेजा उन्‍होंने किया. इस फिल्म में अजय के अलावा सन्नी देओल, सुनील सेट्टी और सेलिना जेटली भी थीं.

सलिल अंकोला

भारतीय टीम के तेज गेंदबाज सलिल अंकोला क्रिकेट से संन्‍यास लेने के बाद कई बौलीवुड फिल्मों में काम किया. कुरुक्षेत्र और ‘चुरा लिया है तुमने’ जैसी फिल्‍में इसमें खास रहीं.

सदगोपन रमेश

भारतीय टीम के इस पूर्व क्रिकेटर ने भी कुछ तमिल फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें ‘संतोष सुब्रमण्यम’ और फिल्म ‘पोटा पोटी’ प्रमुख हैं.

दीवाली पर रिलांयस जियो एकबार फिर दे रहा है धन धना धन आफर

रिलायंस जियो दीवाली पर अपने ग्राहकों के लिए एकबार फिर धन धना धन आफर लेकर आया है. कंपनी ने इस बाबत सूचना देते हुए कहा है कि 12 से 18 अक्टूबर के बीच वैलिड इस आफर में आप 399 रुपये का रीचार्ज करवाइए और पूरा 100 फीसदी कैशबैक पाइए. बता दें कि गुरुवार यानी आज से शुरू हो रहे इस आफर की मियाद दिवाली से एक दिन पूर्व खत्म हो जाएगी.

आपको कैशबैक एक वाउचर के रूप में दिया जाएगा, जिसका इस्तेमाल आप रीचार्ज करवाते समय कर सकेंगे. 12 से 18 अक्टूबर के बीच रीचार्ज करवाने वाले को 50 रुपये के 8 वाउचर मिलेंगे. इन वाउचर्स का फायदा भविष्य में 309 रुपये या उससे ज्यादा का रिचार्ज या 91 रुपये या उससे ज्यादा का डेटा वाला रिचार्ज कराने पर उठाया जा सकेगा. आपने 50 रुपये का वाउचर पाने के बाद भविष्य में 309 रुपये का रिचार्ज किया तो आपको केवल 259 रुपये का ही भुगतान करना होगा. इन आफर्स को माई जियो ऐप, जियो वेबसाइट, जियो स्टोर्स, रिलायंस डिजिटल स्टोर से भी उपलब्ध कराया जा सकता है.

बता दें कि 15 नवंबर के बाद आप एक बार में केवल एक ही वाउचर का इस्तेमाल कर सकेंगे. जिनकी वैलिडिटी बची हुई थी, वे भी इस आफर का लाभ से सकेंगे. 399 रुपये वाले रिचार्ज का लाभ उन्हें चल रहे रिचार्ज की वैलिडिटी खत्म होने के बाद मिलेगी.

इसी के साथ बता दें कि देश में दूरसंचार कंपनियों की 4जी इंटरनेट सेवाओं में डाउनलोड स्पीड के हिसाब से अगस्त महीने में रिलायंस जियो इस बार फिर अव्वल रही. दूरसंचार नियामक ट्राई के आंकड़ों के अनुसार अगस्त महीने में जियो के नेटवर्क पर डाउनलोड स्पीड 18.43 एमबीपीएस रही जो निकटतम प्रतिद्वद्वियों से लगभग दोगुनी है.

घूमने जा रहे हैं तो जरूर साथ रखें ये गैजेट्स

छुट्टियों में घूमने का मन हर किसी का होता है. छुट्टियों में अगर आप भी कहीं घूमने जा रहे हैं तो आप भी कई तरह की प्लानिंग करते होंगे जैसे होटल बुक करना, लोकेशन देखना, ट्रेन, बस, कैब का पता लगाना, खाने की जगह, शौपिंग आदि. इन सब तैयारी और उत्सुकता में आप कुछ जरूरी सामान पैक करना भूल जाते हैं. ट्रैवल के समय अगर आप अपने साथ कुछ जरूरी गैजेट्स रखे लें तो आपकी यात्रा सुगम हो सकती है. तो अपने बैग पैक करने से पहले इस लिस्ट पर एक नजर जरूर डालें.

ई-रीडर

अगर आपको पढ़ने का शौक है तो ट्रैवल करते समय आप कुछ किताबें साथ लेकर चलते होंगे. लेकिन इससे आपके बैग्स का वजन बढ़ जाता है. ऐसे में किताबों की जगह आप ई-रीडर साथ लेकर चल सकते हैं. इसमें आप जितनी चाहे उतनी किताबें अपनी पसंद के अनुसार पढ़ सकते हैं. इसके अलावा अगर आपको फोन में किताब पढ़ना सही लगता है तो आप कुछ अच्छी बुक रीडिंग एप्स भी डाउनलोड कर सकते हैं.

पावरबैंक

कहीं बाहर जा रहे हैं तो साफ तौर से खूब सारी पिक्चर्स भी लेंगे. फोन में म्यूजिक भी चलाएंगे. इतने सारे काम करने पर जाहिर तौर से फोन की बैटरी जल्दी-जल्दी खत्म होगी. ऐसे में आपकी यात्रा का मजा किरकिरा ना हो इसके लिए अपने साथ पावरबैंक जरुर लेकर चलें. कई जगहें ऐसी होती हैं जहां आपको चार्ज करने के लिए प्लग ना मिले. सुरक्षा के लिहाज से भी फोन का औन रहना जरूरी होता है. पावरबैंक कहीं भी कभी भी फोन चार्ज करने की सुविधा देते हैं.

सेल्फी स्टिक

आज सेल्फी के बिना आपका ट्रिप अधूरा है. लोगों को सोशल मीडिया पर अपनी जिंदगी से जुड़े हर छोटे-बड़े पलों को साझा करने की आदत हो चुकी है. ऐसे में ग्रुप सेल्फी का भी चलन बढ़ा है. तो अगर आप भी इन्हीं लोगों में से एक है तो अपने साथ सेल्फी स्टिक ले जाना न भूलें.

कैमरा

अगर आपको फोटोग्राफी का शौक है. तो ट्रैवल करते समय हो सकता है फोन का कैमरा आपको उतना संतुष्ट ना करें. यूं तो अच्छा फोटोग्राफर किसी भी तरह के कैमरे से अच्छी फोटो ले सकता है. लेकिन कैमरा से ली गई पिक्चर क्वालिटी बेहतर होती है. इसलिए कैमरा साथ ले जाने से आप बेहतर तरीके से खूबसूरत पलों को कैद पर पाएंगे, जिसे आप बाद में निहार सकते हैं.

यूनिवर्सल एडेप्टर

ग्रुप में ट्रैवल कर रहे हों या परिवार के साथ, सबके अपने अलग मोबाइल होते हैं. फोन के चार्जर भी अलग-अलग होते हैं. अगर कार में या बस में आपके पास यूनिवर्सल एडेप्टर मौजूद हो तो एक बार में एक से अधिक फोन भी चार्ज हो पाएंगे. साथ ही अलग-अलग चार्जर साथ ले जाने की परेशानी भी नहीं उठानी पड़ेगी.

हेडफोन

आपकी म्यूजिक में रुचि दूसरों से अलग है या आप सोलो ट्रिप पर हैं, तो हेडफोन्स साथ ले जाना बहुत जरूरी है. चाहे आप किसी ट्रैकिंग प्लान पर गए हों या किसी पहाड़ों वाली जगह पर, म्यूजिक का साथ हमेशा ट्रैवल के अनुभव को बेहतर ही करता है. इसलिए हेडफोन्स को साथ ले जाना ना भूलें.

GPS डिवाइस

अगर आप किसी दूर-दराज के इलाके या ट्रैकिंग करने जा रहे हैं तो जरूरी है की साथ में जीपीएस डिवाइस लेकर चलें. ऐसा इसलिए क्योंकि फोन हर जगह काम नहीं करता. नेटवर्क ना आने पर फोन के जरिए जीपीएस का इस्तेमाल ना कर पाने पर आप फंस भी सकते हैं.

टार्च

यूं तो टार्च बहुत छोटी सी चीज है, लेकिन है बड़े काम की. अगर आप किसी ट्रैकिंग के लिए रवाना हो रहे हैं, तो टार्च को साथ ले जाना न भूलें. अंधेरे में यह आपके बड़े काम आ सकती है. कैंपिंग में भी अक्सर अंधेरा होता है और ऐसे में बिना रोशनी के रहना खतरनाक भी हो सकता है.

रविचंद्रन अश्विन ने पास किया ‘यो-यो’ फिटनेस टेस्ट, अब खेलेंगे रणजी मैच

टीम इंडिया के आलराउंडर रविचंद्रन अश्विन ने बेंगलुरु स्थित राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी में ‘यो-यो’ फिटनेस टेस्ट पास कर लिया है. अश्विन ने इंग्लैंड में वास्टरशयर की तरफ से काउंटी क्रिकेट खेलकर लौटने के बाद तमिलनाडु की तरफ से आंध्रा के खिलाफ सत्र 2017-18 का पहला रणजी ट्राफी मैच खेला और ‘यो यो टेस्ट’ को पास कर लिया.

मैच के बाद उन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर लिखा कि बैंगलोर का सफर अच्छा रहा. ‘यो यो टेस्ट’ भी सफल रहा. अब रणजी ट्राफी के लिए दोबारा से तमिलनाडु टीम की तरफ से खेलने जा रहा हूं.

बता दें कि कुछ समय पहले अश्विन ने कहा था कि वह ‘यो-यो’ टेस्ट के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं मानकों को मानने वाला इंसान हूं. अगर कोई नया मानक बना है तो मैं उसे पाने की पूरी कोशिश करूंगा. मैं किसी भी तरह की चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हूं. हर टीम को बेस्ट बनाने के लिए नए तरीके इस्तेमाल किये जाते हैं, जिसका मैं इसका सम्मान करता हूं. अगर हमें विश्व में सबसे बेहतरीन बनना है, तो इस तरह के टेस्ट का सामना करना होगा.

31 वर्षीय अश्विन को आस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे सीरीज और टी20 सीरीज के लिए आराम दिया गया था लेकिन ‘यो यो टेस्ट’ पास करने के बाद अब उम्मीदें जताई जाने लगी है कि वह न्यूजीलैंड के खिलाफ होने वाले वनडे और टी2 सीरीज में वापसी करेंगे लेकिन उससे अश्विन 14 अक्तूबर से त्रिपुरा के खिलाफ ग्रुप सी के रणजी मैच के लिये टीम का हिस्सा होंगे. मालूम हो कि यो यो टेस्ट उस समय सुर्खियों में आया था जब युवराज सिंह और सुरेश रैना कथित तौर पर इसे पूरा करने में नाकाम रहे थे.

अब लोन आपसे सिर्फ एक एप की दूरी पर, फौरन आजमाएं

अब लोन लेना हुआ और भी आसान. अब आपको लोन लेने के लिये यहां वहां जाने की कोई जरुरत नहीं. अब आप अपने मोबाईल के जरिए लोन प्राप्त कर सकते हैं. स्टार्टअप कंपनी मनीटैप ने मोबाइल एप के जरिये पांच लाख रुपये तक का कर्ज दिलाने की सुविधा शुरू की है.

इस साल के आखिर तक कंपनी कुल मिलाकर 300 करोड़ रुपये का कर्ज उपलब्ध कराने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है. कंपनी के सह संस्थापक अनुज ककर ने बताया कि कंपनी इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए छोटे शहरों पर ज्यादा ध्यान दे रही है. यही वजह है कि मनीटैप का एप हिंदी और कन्नड़ भाषा में भी उपलब्ध होगा. जल्द ही यह तेलुगु, तमिल, मराठी और गुजराती में भी आएगा.

उन्होंने कहा कि कंपनी फिलहाल 14 शहरों में सेवा दे रही है और इस साल के आखिर तक 50 शहरों में उसकी सेवाएं उपलब्ध होंगी. मनीटैप मोबाइल एप के जरिए ग्राहक को तुरंत, कुछ ही मिनट में ऋण राशि मंजूर हो जाती है जिसे वह तीन साल तक अपनी सुविधा के अनुसार इस्तेमाल कर सकता है. कंपनी ने इस सुविधा के लिए सिविल और बैंकों से गठजोड़ किया है.

ककर ने कहा कि यह अपनी तरह की पहला व अनूठा स्टार्टअप है जो किसी भी व्यक्ति को बैंक से पांच लाख रुपये तक का कर्ज सिर्फ एप के जरिए कुछ ही मिनट में सुनिश्चित करवाता है. इसमें किसी तरह की रहन/जमानत की जरूरत नहीं. मनीटैप का फिलहाल ऋण सुविधा के लिए आरबीएल बैंक के साथ गठजोड़ है. कई और बैंकों व वित्तीय सेवाओं से उसकी बातचीत चल रही है जिसे जल्द ही अमली जामा पहनाया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि कंपनी 20,000 रुपये से अधिक मासिक आय वाले वेतनभोगी व स्वरोजगार संपन्न युवाओं को 3,000 रुपये से पांच लाख रुपये तक का ऋण उपलब्ध करवाती है. आवेदक की मंजूर ऋण राशि उसके मनीटैप में आ जाती है जिसे वह जब चाहे अपने खाते में स्थानांतरित कर सकता है. इसमें ग्राहक को ब्याज केवल उसी राशि का देना होता है जिसका वह इस्तेमाल करता है. इसके अलावा कंपनी का आरबीएल बैंक के साथ को ब्रांडेड क्रेडिट कार्ड भी है.

ककर ने कहा कि बेंगलुरू स्थित मनीटैप ने हाल ही में सेवा इंडिया, एनईए तथा प्राइम वेंचर पार्टनर्स से 1.23 करोड डालर की राशि जुटाई है जिसका इस्तेमाल वह अपनी सेवाओं व परिचालन के विस्तार के लिए करेगी.

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