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जानिए कैसे अमृता सिंह का रिश्ता सैफ अली खान से जुड़ा

बौलीवुड एक्ट्रेस अमृता सिंह और विनोद खन्ना की लव स्टोरी एक टाइम पर काफी सुर्खियां बटोर रही थीं. ऐसा माना जा रहा था कि दोनों जल्द ही शादी करने लेंगे. इस प्रेम कहानी की शुरुआत जे.पी दत्ता की 1989 में आई फिल्म ‘बंटवारा ‘ से हुई थी. उन दिनों अमृता सिंह क्रिकेटर रवि शास्त्री को डेट कर रही थीं लेकिन रवि से अमृता को वो प्यार नहीं मिल पा रहा था जिसकी वो अपेक्षा कर रही थी. ऐसे में जब उनकी मुलाकात ‘बंटवारा’ के सेट पर विनोद खन्ना से हुई तो वह उन्हें अपना दिल दे बैठी.

विनोद खन्ना उन दिनों संन्यासी जीवन से वापस लौटे थे और उनका अपनी पत्नी के साथ तलाक भी हो चुका था. ऐसे में विनोद को भी एक ऐसे साथी की तलाश थी जिसके साथ वो आगे की जिंदगी जी सकें. विनोद खन्ना की पर्सनैलिटी भी उन दिनों कुछ ऐसी ही थी जिसे देखकर लड़कियां दीवानी हो जाती थीं. लेकिन विनोद खन्ना को अपनी बेटी के करीब आता देख अमृता सिंह की मां खुश नहीं थी.

अमृता सिंह की मां रुख्शाना सुलतान नहीं चाहती थी कि उनका दामाद ऐसा हो जिसकी उम्र उनसे मिलती हो. अमृता को विनोद खन्ना से अलग करने के लिए रुख्शाना ने कई कोशिशें की. इस काम के लिए उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ-साथ कई फिल्मी हस्तियों को सहारा लिया.

लेकिन अमृता विनोद खन्ना से दूर होने को तैयार ही नहीं थी. तभी रुख्शाना को पता चला कि अमृता सिंह से 10 साल छोटे सैफ अली खान उनकी बेटी के प्यार में दीवाने बने घूम रहे हैं.

फिर क्या था रुख्शाना ने इस बात का फायदा उठाया और उन्होंने अपनी राजनीतिक कनेक्शन का इस्तेमाल कर विनोद खन्ना को अमृता सिंह से दूरी बनाने के लिए मजबूर कर दिया. इसके बाद विनोद खन्ना प्यार की जगह करियर को चुना और खामोशी से अमृता से अपना रिश्ता तोड़ लिया. इसके बाद अमृता ने सैफ से शादी कर ली, लेकिन दोनों की शादी कामयाब नहीं हुई और दोनों ने बाद में तलाक ले लिया.

सदमा : मनसुख लाल उर्फ मन्नू भाई को आखिर कैसे लगा सदमा

रविवार की अलसाई सुबह थी. 9 बज रहे थे, मनसुख लाल उर्फ मन्नू भाई अधखुली आंखें लिए ड्राइंगरूम को पार करते हुए अपने फ्लैट की बालकनी में जा पहुंचे और पूरा मुंह खोल कर एक बड़ी सी उबासी ली. तभी उन की नजर सामने पड़ी. उन का मुंह खुला का खुला रह गया.

दरअसल, मन्नू भाई के सामने के फ्लैट, जो तकरीबन 6 महीने से बंद पड़ा हुआ था, की बालकनी में 40-45 साल की एक खूबसूरत औरत खड़ी थी. गुलाबी रंग का गाउन पहने वह अपने गीले बालों को बारबार तौलिए से पोंछते हुए कपड़े सुखा रही थी.

वह औरत पूरी तरह से बेखबर अपने काम में मगन थी, लेकिन मन्नू भाई पूरी तरह से चौकस, अपनी आंखों को खोल कर नयन सुख लेने में मशगूल थे.

‘चांद का टुकड़ा हमारे घर के सामने और हमें खबर तक नहीं’, मन्नू भाई मन ही मन बुदबुदाए.

‘‘अजी कहां हो, चाय ठंडी हो रही है,’’ तभी उन की पत्नी शशि की तेज आवाज आई.

मन्नू भाई तुरंत संभल गए.

‘‘हां, आया,’’ कह कर उन्होंने मन ही मन सोचा, ‘इसे भी अभी ही आना था.’

फिर से मन्नू भाई ने सामने बालकनी की ओर देखा, पर वहां अब कोई नहीं था.

‘इतनी जल्दी चली गई,’ सोचते हुए बुझे मन से मन्नू भाई अंदर कमरे में आ गए और चाय पीने लगे.

मनसुख लाल उर्फ मन्नू भाई एक सरकारी महकमे में थे. घर में सुंदर, सुशील पत्नी शशि, 2 प्यारे बच्चे, एक मिडिल क्लास खुशहाल परिवार था मन्नू भाई का.

पर ‘मन्नू भाई’ तबीयत से जरा रूमानी थे. या यों कहिए कि आशिकमिजाज. उन की इसी आदत की वजह से वे कालेज में कई बार पिटतेपिटते बचे थे.

औरतों से बात करना उन्हें बड़ा भाता था. दफ्तर में साथ काम करने वाली औरतें भी उन से इसलिए जरा दूर ही रहती थीं. अपनी पत्नी उन्हें ‘घर की मुरगी दाल बराबर’ लगती थी.

मन्नू भाई खाने के भी बड़े शौकीन थे. इसी वजह से ‘तोंद’ बाहर निकल आई थी, जिसे ‘बैल्ट’ के सहारे सही जगह टिकाए रखने की नाकाम कोशिश वे बराबर करते रहते थे.

सिर पर अब चंद ही बाल बचे थे. नएनए शैंपू, तेल और खिजाब के अंधाधुंध इस्तेमाल से खोपड़ी असमय ही चांद की शेप में आ गई थी, फिर भी वे अपनेआप को किसी ‘फन्ने खां’ से कम नहीं समझते थे.

हर जानपहचान वाली औरत को देखते ही मुसकरा कर नमस्कार करना, आगे बढ़ कर उस का हालचाल पूछना उन की दिनचर्या में शामिल था.

आज का रविवार बड़ा खुशनुमा गुजरा. मन्नू भाई ने बच्चों को डांटा नहीं. पत्नी के हाथ के खाने की जी खोल कर तारीफ की. घर वाले हैरान थे कि आज हो क्या रहा है.

असली बात तो मन्नू भाई ही जानते हैं. जब सुबह की इतनी खूबसूरत शुरुआत हो, तो दिन तो अच्छा गुजरना ही था.

सोमवार की सुबह मन्नू भाई तैयार हो कर दफ्तर जाने को निकले, इस से पहले वे 4 चक्कर बालकनी के लगा आए थे. कपड़े जरूर सूख रहे थे, पर वह कहीं नजर नहीं आई. वे मन मसोस कर दफ्तर जाने की तैयारी करने लगे.

‘‘आज आप बारबार बालकनी में क्यों जा रहे हैं? कुछ हुआ है क्या?’’ शशि 2-3 बार सवाल पूछ चुकी थी.

बिना कोई जवाब दिए मन्नू भाई नीचे उतर आए, देखा कि स्कूटर पंचर है. घड़ी की ओर नजर डाली, 9 बज चुके थे. बस से जाने का समय निकल चुका था.

मन्नू भाई ने शशि को फोन मिलाया, ‘‘शशि, कार की चाबी भेज दो. स्कूटर पंचर है.’’

‘‘अच्छा..’’ शशि ने अपनी कामवाली बाई रेणु को चाबी दे कर कहा, ‘‘जा रेणु, नीचे साहब को चाबी दे आ.’’

तभी मन्नू भाई की आंखें खुशी से चमकने लगीं. बाहर गेट पर वह कल वाली ‘पड़ोसन’ खड़ी थी.

आदत के मुताबिक, वे लंबेलंबे डग भरते हुए ठीक उस के सामने जा पहुंचे, ‘‘जी नमस्ते, मैं मन्नू भा… मन्नू…’’ फिर वे संभल कर बोले, ‘‘आप के सामने वाले फ्लैट में रहता हूं. लगता है, आप यहां नई आई हैं.’’

खुले हुए कटे बाल, गोरा रंग… वह चुस्त ड्रैस पहने हुए थी. मन्नू भाई खुशी के मारे कांपने लगे, ‘सिंगल ही है.’

वह बोली, ‘‘हैलो, मैं डौली. जी हां, मैं यहां पर 2-4 दिन पहले ही शिफ्ट हुई हूं.’’

अब तक आंखों से पूरा मुआयना कर चुके मन्नू भाई बोले, ‘‘आप क्या कहीं जा रही हैं. मैं छोड़ देता हूं.’’

‘‘साहब, चाबी…’’ बिना बाई की ओर देखे ही मन्नू भाई ने हाथ बढ़ा कर चाबी ले ली.

बाई मुंह बिचकाते हुए चली गई.

‘‘हां, मार्केट तक जाना है. कोई टैक्सी भी नहीं दिख रही,’’ वह बोली.

‘‘अरे, मैं उसी तरफ जा रहा हूं. आइए चलिए,’’ कार का दरवाजा खोल कर बड़े मीठे लहजे में मन्नू भाई ने कहा.

उस औरत ने घड़ी पर नजर डाली, ‘‘ओके थैंक्स,’’ बोल कर वह आगे वाली सीट पर बैठ गई.

मन्नू भाई का दिल बल्लियों उछलने लगा. अपने चार बालों पर हाथ फेरा, बैल्ट से पैंट को ऊपर खींच कर जीत की मुसकान के साथ वे स्टेयरिंग पर बैठ गए.

रास्ते में उन्होंने सब पता कर लिया. वह औरत डौली किसी बैंक में अफसर थी. मुंबई से वह अभी यहां प्रमोट हो कर आई थी.

इतने में मार्केट आ गया. ‘थैंक्स’ कह कर वह मुसकराते हुए अपने बैंक की तरफ बढ़ गई और मन्नू भाई… वे तो खुशी के मारे पगला गए, उन की उम्मीद से परे डौली लिफ्ट ले कर उन के साथ आई थी. अभी तक कार में उस के परफ्यूम की महक मौजूद थी.

एक गहरी सांस ले कर मन्नू भाई एक रोमांटिक गाना गुनगुनाते हुए अपने दफ्तर की ओर बढ़ गए.

आजकल मन्नू भाई सुबह जल्दी उठ जाते. शशि हैरान थी. धक्के देदे कर उठाने पर भी उठने वाले उन के पति अपनेआप ही सुबह जल्दी उठ जाते और सुबह की चाय वे बालकनी में बैठ कर ही पीते.

शशि के आते ही वे अखबार में मुंह दे कर बैठ जाते और उस के जाते ही आधा अखबार नीचे सरका कर ‘नयन सुख’ लेने में मशगूल हो जाते.

डौली कभी कपड़े सुखाती, कभी चाय पीती, कभी यों ही दिख ही जाती थी. अब तो गाहेबगाहे मन्नू भाई उसे लिफ्ट भी दे दिया करते थे.

जिंदगी में कभी इतनी बहार भी आएगी, यह मन्नू भाई ने सोचा भी न था.

15 दिन मौज से बीते. आज रविवार था. बच्चे जिद कर रहे थे कि आज शाम को घूमने चलेंगे.

खुश होते हुए मन्नू भाई ने वादा किया, ‘‘हां, शाम को पक्का चलेंगे.’’

शाम को वे अपनी पत्नी शशि और दोनों बच्चों को ले कर चौपाटी, जो उन के घर के पास ही ‘मिनी शौपिंग माल’ था, पहुंच गए.

खाने के शौकीन मन्नू भाई सीधे गोलगप्पे की दुकान पर पहुंचे, ‘‘चल भई खिला दे सब को,’’ और्डर मार कर वे गपागप ‘गोलगप्पे’ खाने में जुट गए.

अभी 4-5 ही खाए थे कि देखा सामने से डौली चली आ रही थी.

‘‘हैलो मन्नूजी,’’ उस ने पास आ कर मुसकरा कर बोला.

पत्नी की सवालिया नजरें ताड़ कर मन्नू भाई ने संभल कर बोला, ‘‘जी, नमस्ते.’’

गोलगप्पे वाला तब तक एक और गोलगप्पा मन्नू भाई की ओर बढ़ा कर बोला, ‘‘साहब, यह लो.’’

तभी सामने से एक नौजवान लड़का और एक हैंडसम सा अधेड़ आदमी डौली के पास आ कर खड़े हो गए.

गोलगप्पे वाले से गोलगप्पा ले कर मन्नू भाई ने जैसे ही मुंह में रखा, डौली बोली, ‘‘मन्नूजी, ये हैं मेरे पति और यह मेरा बेटा.’’

इतना सुनते ही गोलगप्पा मन्नू भाई के गले में फंस गया. बड़े जोर का ‘ठसका’ लगा और गोलगप्पे का पानी नाकमुंह से बहने लगा.

पानी तीखा था. आंख, नाक, मुंह सब में जलन होने लगी. वे खांसने लगे. इतनी जोर का झटका लगा कि वे अचानक सदमे में आ गए.

शशि दौड़ कर पानी ले आई और बोली, ‘‘कितनी बार कहा है कि जरा धीरे खाओ, पर सुनते कहां हो…’’

‘‘जी, मैं इन की पत्नी शशि, ‘‘उस ने डौली से कहा.

‘‘आप से मिल कर खुशी हुई,’’ डौली बोली.

‘‘चलो मम्मी…’’ डौली का बेटा बोला.

‘‘चलो डार्लिंग.’’

डौली ने एक हाथ से बेटे का, दूसरे हाथ से पति का हाथ थामा और बोली, ‘‘बाय मन्नूजी, अपना ध्यान रखना.’’

‘‘कौन थी ये? ये आप को कैसे जानती है?’’ मन्नू भाई की पत्नी शशि सवालों के गोले दाग रही थी और वे सिर झुकाए चुपचाप खड़े डौली को जाते हुए देख रहे थे.

कितना बड़ा सदमा पहुंचा था उन्हें, सिर्फ और सिर्फ उन का मन ही जानता था. क्या समझा था उन्होंने डौली को और वह… क्या निकली, उन के प्यार का फूल खिलने से पहले ही मुरझा गया.

रास्तेभर मन्नू भाई चुप रहे. दूसरे दिन सवेरे फिर शशि ने धक्के देदे कर उठाया, ‘‘दफ्तर नहीं जाना क्या?’’ वह फिर हैरान थी. उस की समझ में कुछ नहीं आया.

मन्नू भाई थकहार कर बिस्तर से उठ ही गए, तैयार हो कर स्कूटर की चाबी ले कर जाने लगे.

शशि बोली, ‘‘आज कार नहीं ले जाओगे क्या?’’

वीरान आंखों से मन्नू भाई ने बालकनी की ओर देखा. शीशे का दरवाजा बंद था, फिर मुंह लटका कर चल दिए.

वे शशि को कैसे बताते कि उन्हें कितना बड़ा सदमा लगा है. अब न जाने कितने दिन लगेंगे उन्हें इस सदमे से बाहर आने में.

ये टिप्स आजमाएं और फैस्टिव सीजन में दिखें स्टाइलिश और ब्यूटीफुल

फैस्टिव सीजन यानी कलर, ब्राइटनैस और ऐनर्जी से भरपूर वह समय जब दिल और दिमाग एक अलग तरह की खुशी व उत्साह से सरोबार रहता है. इस सीजन में ग्लैमर का तड़का लगाना और दूसरों से अलग दिखना है तो ध्यान रखिए निम्न बातों का :

कलर्स के साथ ऐक्सपैरिमैंट :  फैस्टिव सीजन में कलर्स का काफी चार्म रहता है. फैशन डिजाइनर इंदु कहती हैं कि फैस्टिव सीजन में ब्राइट कलर्स, जैसे औरेंज, यलो, निओन वगैरा पहनें. ये रंग मौके के अनुरूप आप की पर्सनैलिटी में ब्राइटनैस लाते हैं.

वैसे फैस्टिवल्स में ब्लैक कलर को भी अवौइड नहीं किया जा सकता. ब्लैक टौप्स, कुरतियां, कंधों से नीचे वाले टौप, वनपीस ड्रैसेज आदि गोल्डन ऐक्सेसरीज के साथ पहनेंगी तो आप अलग ही नजर आएंगी.

इंडो फ्यूजन :  शौपक्लूज की निदेशिका रितिका तनेजा कहती हैं, ‘‘देसी टच और आकर्षक लुक लिए इंडो फ्यूजन लुक अपनाएं. उपयुक्त भारतीय एथनिक चिक लुक के लिए प्रिंटैड बोहो ड्रैस को व्हाइट कलर के कैजुअल शूज के साथ पहनें. इस के संग सिल्वर मेटालिक वाच पहनें.’’

आप कुरती, सूट्स और स्कर्ट्स में भी फ्यूजन ला सकती हैं. आजकल क्रौप्स के साथ जींस और शौर्ट्स या फिर कुरती के साथ पलाजो भी स्टाइल में उपलब्ध है. फ्यूजन साड़ीज जैसे पेटीकोट की जगह स्ट्रैट पैंट्स विद साड़ी का फैशन भी काफी चल रहा है.

पिंक ऐंड यलो :  सीजन का ट्रैंड पिंक, यलो बोल्ड कलर के रूप में लोकप्रिय है. आप इन रंगों को सौलिड, कलर ब्लौकिंग में या ऐक्सेसरीज के साथ पहन सकती हैं.

लेयर्स का जलवा :  रितिका तनेजा कहती हैं ‘‘यह समय आप के पश्चिमी वार्डरोब का नहीं, बल्कि भारतीय पारंपरिक पहनावे का है. लेयर्ड अनारकलीकुरता या डबल लेयर्ड शेरवानी जैकेट, स्टाइल कुरते का चयन करें और आकर्षक फैशन स्टेटमैंट के लिए इसे पलाजो पैंट के साथ पहनें. बड़े झुमके, पौटली बैग, पीच लिप्स और चीक्स, स्मोकी आइज व पैरों के लिए फ्लैट मोजरीज या खुसास के साथ अपने लुक को संपूर्ण बनाएं.’’

स्ट्राइप्स ऐंड चेक्स  :  स्ट्राइप और चेकर्ड साडि़यां इस सीजन की होट ट्रैंड हैं. ग्लैमरयुक्त फैस्टिव लुक के लिए इसे मीनाकारी इयररिंग्स और कुंदन नैकलैस के साथ पहनें. इस के साथ गोल्डनब्लैक क्लच और ब्लैक ऐंड गोल्डन काइटन हल्स पहन कर अपने लुक में चारचांद लगाएं.

आभूषणों से यों सजें

कपड़ों के साथसाथ आभूषणों के चयन पर भी खास ध्यान दें. रिवीरिया द ज्वैलरी हब की ज्वैलरी डिजाइनर आंचल गुप्ता फैस्टिव सीजन के लिए कुछ खास ज्वैलरीज के बारे में बताती हैं :

मनमोह इयररिंग्स :  त्योहारी सीजन में कालेज जाने वाली लड़कियां अपने लिए सिंगल स्टोन इयररिंग्स, कलस्टर इयररिंग्स, पर्ल इयररिंग्स, ड्रौप्स और स्टड्स जैसी हलकी बालियां पसंद कर सकती हैं. हलके इयररिंग्स सभी प्रकार के पहनावे को और भी निखार कर आप की खूबसूरती बढा़ते हैं.

पारंपरिक पेंडैंट्स :  भारी नैकलैस पहनने में कठिनाई महसूस करने वाली युवा महिलाए विभिन्न स्टाइलों में उपलब्ध हलके पेंडैंट्स पहन सकती हैं. फैस्टिव सीजन में गोल्ड एमबेडड डायमंड पेंडैंट्स काफी डिमांड में रहते हैं. आजकल डिजाइनर पेंडैंट्स भी काफी पसंद किए जाते हैं. इस सीजन में डायमंड जड़े पेंडैंट्स अथवा प्रेशियस और सैमी प्रेशियस स्टोन वाले पेंडैंट्स भी हौट हैं.

लुभावने कंगन  : प्राचीन काल से ही कंगन यानी ब्रेसलैट महिलाओं के लिए एक आवश्यक आभूषण माना जाता रहा है. इस त्योहारी मौसम में आप अपनी कलाइयों में पौलिश्ड गोल्ड, स्टर्लिंग या टरक्वाइस ब्रेसलैट सजा कर और भी खूबसूरत दिख सकती हैं.

पारंपरिक रुझानों वाली लड़कियां अपने लिए विंटेज और एंटीक ब्रेसलैट पसंद कर सकती हैं.

आकर्षक रिंग्स  :  कालेज और औफिस जाने वाली लड़कियों के बीच रिंग्स यानी अंगूठियां बेहद लोकप्रिय हैं. व्यक्तित्व को गहराई देने के साथसाथ ये भावनात्मक मूल्यों से भी जुड़ी होती हैं. अपनी पसंद के अनुरूप आप पतली और नाजुक गोल्ड या सिल्वर प्लीटिड रिंग्स पसंद करें या फिर ठोस और भारी रिग्स.

बालों को भी सजाएं

फैस्टिव सीजन में कपड़ों से सजने और जेवरों से संवरने के साथ बालों को भी खास तरह से सजाएं ताकि पैसे सिर तक आप ही आप दिखें. एसएलजी ज्वैलर्स के डिजाइनर प्रितेश गोयल बताते हैं कि आजकल टैसल हेडगेयर खासा प्रचलित हैं. ये खुले बालों में बहुत बढि़या दिखते हैं. टैसल हेडगेयर में कई स्टाइल और डिजाइन उपलब्ध हैं. इन में 2-3 लंबी चेन होती हैं जो सोने का पानी चढ़े हुए या चांदीलेपित होते हैं और ये पारंपरिक के साथसाथ पश्चिमी वेशभूषा पर भी बहुत आकर्षक लगते हैं. इस त्योहार के मौसम में अपनी सुंदरता में टैसल हेडगेयर से चारचांद लगाएं. आप इस रत्नजडि़त गहने के साथ उसी रंग की बौबी पिन लगा सकती हैं और बालों कोआकर्षक ब्रोच से भी सजा सकती हैं. इस से बालों की खूबसूरती निखर उठेगी.

इस तरह, फैस्टिवल्स के दौरान आप अपना लुक इतना गौर्जियस और स्टालिश बना सकती हैं कि देखने वाले आप को देखते रह जाएंगे.

ओम अच्छे दिनाय नम: जपते रहिए और खुद को नुकसान पहुंचाते रहिए

पिछले 3 सालों में देश का विकास हुआ या नहीं यह जानने के लिए तो आप को नरेंद्र मोदी द्वारा लगाए गए बड़ेबड़े होर्डिंगों पर विश्वास करना होगा पर आप के बैंक बैलेंस की रिटर्न कम हो गई, यह पासबुक साफसाफ बता रही है.

अगर आप पहले 50 लाख की एफडीआर से 40 हजार पा कर मजे में जिंदगी गुजार रहे थे तो अब बैंक आप को 30 हजार ही देगा पर नोटबंदी, पैट्रोल के दाम में वृद्धि, टमाटरप्याज के बढ़तेघटते दामों और महादानव जीएसटी से आप के ब्याज के पैसे और कम पड़ेंगे.

काले धन को मारने के चक्कर में मोदी सरकार ने संपत्ति से आप को भी नुकसान पहुंचाया है. अब न तो पहले खरीदी गई संपत्ति का दाम बढ़ रहा है और न ही किराया बढ़ रहा है, इसलिए वहां लगा पैसा भी अब विकास नहीं विनाश की ओर चल पड़ा है.

जिन्होंने शेयर बाजार में पैसा लगाया था उन्हें तो थोड़ी राहत है पर यह बाजार बेहद पेचीदा हो गया है और रातोंरात मोदी सरकार के हर रोज बदलते फैसलों के कारण भाव बढ़तेघटते हैं और डिविडैंड की श्योरिटी नहीं रह गई है.

देश में बुलेट ट्रेन का सपना भले जम कर दिखाया जा रहा है पर उधार के पैसे से बनने वाली 1 लाख करोड़ रुपए की दिखावटी ट्रेन कोई मैट्रो नहीं है जोकि मुंबईअहमदाबाद के बीच सड़क या हवाईमार्ग के ट्रैफिक जाम को खत्म करने के लिए बनाई जा रही हो. अगर आप मुंबई या अहमदाबाद में रहते भी हों, तो यह आप की जेब में कुछ नहीं डालेगी.

आम महिला के द्वारा छिपा कर रखी गई हर संपत्ति अब विकास के खतरे में है. एक तरह से यह हमारे धर्म का सही प्रचार है कि व्रत करो, निर्वस्त्र रहो, नदी किनारे धूनी रमाओ, फलों पर जिंदा रहो व सारी संपत्ति गुणियों को दान कर दो. आप नहीं मानेंगे तो धर्म की व्यवस्था लागू करने के लिए विकास और अच्छे दिनों के नाम पर तरहतरह के कानून बना कर मनवा लेंगे.

हमारे यहां नई बहू बड़े चाव से घर में आती है पर आते ही पता चलता है कि उस के जेवर, कपड़े परिवार के विकास के लिए छीन लिए गए हैं. यही आम आदमी के साथ हो रहा है. बहू बस यही जपे: ओम पति सुखाय:, ओम विकास शिवाय:, ओम अच्छे दिनाय नम:

पोंगापंथ : काटे सांप मारे अंधविश्वास, इसके फेर से आप भी बचिए

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के रहने वाले हनीफ की पत्नी नगीना को एक दिन सांप ने डस लिया. परिवार वाले नगीना को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए. प्राथमिक उपचार के साथ ही डाक्टर ने उसे किसी बड़े अस्पताल में ले जा कर बेहतर इलाज कराने की सलाह दी, लेकिन वे उसे कसबा जहांगीराबाद में एक तांत्रिक के पास ले गए.

वह तांत्रिक कुछ नहीं कर पाया, तो नगीना को दूसरे तांत्रिकों के पास भी ले जाया गया. इसी भागादौड़ी के बीच नगीना की सांसों की डोर टूट गई.

इस के बाद भी एक झाड़फूंक करने वाले ने रातभर लाश को रखवाया और सुबह गंगनगर ले गया.

उसी तांत्रिक के कहने पर नगीना के हाथपैर बांध कर नहर में तैराया गया. झाड़फूंक के दौरान ही उसे डुबोया व निकाला जाता रहा. सभी को उम्मीद थी कि तांत्रिक नगीना की लाश में जान डाल देगा, पर घंटों चले तमाशे के बाद भी जब नगीना के जिस्म में जान नहीं आ सकी, तो तांत्रिक ने इसे ऊपर वाले की मरजी बता कर पल्ला झाड़ लिया.

ऐसा किसी के साथ पहली बार नहीं हुआ है, बल्कि सांप द्वारा काटने के मामले में ऐसा अंधविश्वास एक जमाने से लोगों के दिलोदिमाग पर कायम है.

गैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर साल तकरीबन 5 हजार लोगों की मौत सांप के काटने से होती है. इन में से ज्यादातर लोगों की मौत तब होती है, जब उन्हें डाक्टरों के पास नहीं ले जाया जाता. उन की जान झाड़फूंक के चक्कर में ही चली जाती है.

मुजफ्फरनगर जिले के एक परिवार को भी अंधविश्वास की कीमत घर के मुखिया बुंदू की जान दे कर चुकानी पड़ी. दरअसल, वह सांपों को पकड़ने और उन्हें मारने का आदी था. एक दिन विष्णुगिरी नामक शख्स के घर में 2 सांप निकल आए, तो उसे बुलाया गया. उस ने एक सांप को पकड़ कर स्टील के बरतन में बंद कर लिया, लेकिन इसी बीच दूसरे सांप ने उसे डस लिया. इस से कुछ ही देर में वह बेहोश हो कर गिर पड़ा.

बुंदू के परिवार वालों को पक्का यकीन था कि झाड़फूंक के जरीए वह ठीक हो जाएगा और वे उसे तंत्रमंत्र करने वालों के पास ले गए.

तकरीबन 25 घंटे तक कई लोगों ने इलाज के नाम पर उस पर हाथ आजमाए, पर कोई फायदा नहीं हुआ. बुंदू की मौत डाक्टरी इलाज की कमी में पहले ही हो चुकी थी.

मेरठ जिले में भी ऐसी ही कोशिश के चक्कर में एकसाथ 2 बच्चों की जानें चली गईं. रिकशा चालक सागर अपने परिवार के साथ मलियाना इलाके में रहता था. एक रात उस की 18 साला बेटी पूनम व 17 साला बेटा बबलू सो रहे थे. घर में अंधेरा था कि इसी बीच उन्हें सांप ने डस लिया. दोनों की चीखें निकलीं, तो परिवार वाले पास पहुंचे. उन के शरीर पर सांप के डसने के निशान थे और मुंह से झाग निकल रहे थे.

कायदे से उन दोनों को तभी अस्पताल ले जाना चाहिए था, लेकिन सागर को किसी डाक्टर से ज्यादा झाड़फूंक करने वालों पर भरोसा था. लिहाजा, वह उन्हें लोगों की मदद से झाड़फूंक करने वालों के पास ले गया.

इस चक्कर में सागर ने 5 घंटे गंवा दिए. सुबह वह उन्हें अस्पताल ले गया, तो डाक्टरों ने उन्हें मरा हुआ बता दिया.

इस के बाद भी सागर के दिमाग में अंधविश्वास कायम रहा. वह कुछ लोगों की सलाह पर दोनों को गंगनगर ले गया, जहां दोनों को रस्सी के सहारे तेलपानी में घंटों लटकाए रखा.

एक झाड़फूंक करने वाला भी कोशिश करता र, लेकिन नाकाम रहा. इसी जिले के 14 साला जीशान को 14 जुलाई, 2017 को खेलते समय सांप ने डस लिया. यह बात उस के पिता को पता चली, तो वह उसे अस्पताल ले जाने के बजाय तंत्रमंत्र करने वालों के पास जहर उतरवाने ले गया. नतीजा यह रहा कि जीशान की मौत हो गई.

ऐसा अंधविश्वास किसी एक गांव, कसबे या शहर तक नहीं सिमटा है, बल्कि हर जगह फैला हुआ है.

तांत्रिक तरहतरह के पांखड करते हैं और रकम भी वसूलते हैं. जान जाने पर लोगों को समझा दिया जाता है कि उन्होंने लाने में देर कर दी, इसलिए बचाया नहीं जा सका.

दूरदराज के जिन इलाकों में डाक्टरी इलाज की सुविधा नहीं होती, वहां तो पूरी तरह ओझाओं का ही राज होता है. वे खुद भी ऐसा दावा करते हैं, जबकि इस की असली वजह यह होती है कि जिन लोगों की जान बचती है, उन्हें जहरीले सांप ने नहीं काटा होता. ऐसा 2-4 साल में एक मामला भी हो, तो उस का बाबा लोग जम कर प्रचार करते हैं.

डाक्टर वीपी सिंह कहते हैं, ‘‘सांप के काटने के ज्यादातर मामलों में पीडि़तों की मौत सही वक्त पर इलाज न मिलने के चलते होती है. जिस समय पीडि़त को डाक्टर के पास ले जाना चाहिए, वह समय लोग अंधविश्वास में पड़ कर बरबाद कर देते हैं.’’

सांप काटने पर करें ये उपाय

* सांप के काटने पर शांत रहने की कोशिश करें, क्योंकि ब्लडप्रैशर बढ़ने से जहर शरीर में तेजी से फैल सकता है.

* शरीर के जिस भाग पर सांप ने काटा हो, उसे स्थिर रखने की कोशिश करें.

* सांप काटने वाले हिस्से पर दबाव डालने जैसी पट्टी न बांधे.

* घाव को धोने या घरेलू उपचार करने में अपना समय बरबाद न करें.

* किसी अंधविश्वास में पड़ने के बजाय पीडि़त को तत्काल अस्पताल ले जाएं.

* पीडि़त को सोने न दें. इस से उस की मौत भी हो सकती है.

* सांप पकड़ने के ऐक्सपर्ट लोगों का नंबर अपने पास रखें.

बिहार : एक रेलगाड़ी न बुलाती है न सीटी बजाती है

पटना में एक ऐसी रेलगाड़ी चल रही है, जो रेलगाड़ी के मकसद को पूरा नहीं कर पा रही है. पटना के बाशिंदों के लिए मुसीबत बन चुकी इस रेलगाड़ी का नाम है, ‘पटनादीघा घाट पैसेंजर ट्रेन’.

यह रेलगाड़ी रोज 7 किलोमीटर का 2 फेरा लगाती है. 3 डब्बों की यह रेलगाड़ी पटना वालों को सुविधा कम देती है, मुसीबत ज्यादा पैदा कर रही है.

20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पटना जंक्शन और दीघा घाट के बीच चलने वाली इस रेलगाड़ी की वजह से रोज हजारों लोग लंबे ट्रैफिक जाम को झेलते हैं.

पटना जंक्शन से यह सुबह 7 बज कर 55 मिनट पर खुलती है. इस में 20-25 से ज्यादा सवारियां नहीं होती हैं. ज्यादातर बेटिकट ही होते हैं, क्योंकि इस में टिकट चैक करने वाला कोई नहीं होता है.

5 मिनट में रेलगाड़ी अपने पहले स्टौपेज आर. ब्लौक पहुंचती है. उस के बाद पुराने सचिवालय हाल्ट पर रुकती है. 8 बज कर 10 मिनट पर हड़ताली मोड़ पहुंचती है. वहां से पुनाईचक हाल्ट, इंद्रपुरी, राजीवनगर हौल्ट पर रुकती हुई साढ़े 8 बजे दीघा पहुंचती है.

दीघा हाल्ट के पास न कोई प्लेटफार्म है और न ही कोई बोर्ड है. प्लेटफार्म तकरीबन 4 सौ मीटर आगे है और वहां तक ट्रेन पहुंच ही नहीं सकती है, क्योंकि ट्रैक पर मिट्टी और कचरा भरा हुआ है.

पटनादीघा घाट रेलवे ट्रैक तकरीबन डेढ़ सौ साल पुराना है. अंगरेजों ने दीघा के एफसीआई गोदाम तक अनाज की ढुलाई के लिए इसे बिछाया था. पिछले काफी सालों से टै्रक बेकार पड़ा हुआ था, जिस से उस पर काफी कब्जा हो गया था.

जब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री बने थे, तो साल 2004 में उन्होंने पटना जंक्शन से दीघा घाट तक के बीच 7 किलोमीटर की दूरी को तय करने के लिए पैसेंजर ट्रेन शुरू करवाई थी.

इस रेलगाड़ी को चलाने से रेलवे को रोजाना 35 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं और इस से होने वाली आमदनी के नाम पर महज 500-600 रुपए ही रेलवे की झोली में आते हैं.

इस तरह हर महीने तकरीबन साढ़े 10 लाख रुपए इस पर खर्च होता है और उस के बाद 15 हजार रुपए रेलवे के पास आते हैं. इस में एक लोको पायलट, एक असिस्टैंट पायलट और एक गार्ड की ड्यूटी लगी होती है.

पटना जंक्शन से दीघा घाट के बीच इस ट्रेन को 9 रेलवे क्रौसिंग से गुजरना पड़ता है. इस दौरान रेलवे क्रौसिंग को बंद किया जाता है, जिस से उस के दोनों छोर पर लंबा जाम लग जाता है.

साल 2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रेलवे को प्रस्ताव भेजा था कि रेलवे ट्रैक की जमीन को फोर लेन सड़क बनाने के लिए दे दिया जाए, जिस से पटना को जाम की समस्या से नजात मिलेगी और पटना से दीघा घाट तक की दूरी लोग काफी कम समय में तय कर सकेंगे.

इस प्रस्ताव पर पूर्वमध्य रेलवे और बिहार सरकार के बीच सहमति भी बन चुकी है और जमीन को ट्रांसफर करने के लिए नापजोख का काम भी हो चुका है. रेलवे ने जमीन के लिए 10 करोड़ रुपए का आकलन किया है.

पूर्वमध्य रेलवे ने पूरा लेखाजोखा बना कर रेलवे बोर्ड को भेज दिया है, लेकिन मामला अभी फाइलों में ही दबा पड़ा है. 4 अगस्त को पटना हाईकोर्ट ने पटनादीघा घाट रेलगाड़ी को चलाने पर सवालिया निशान लगाते हुए रेलवे से जवाबतलब किया है.

जस्टिस रविरंजन और एस. कुमार की खंडपीठ ने रेलवे से इस बारे में पूरी जानकारी देने को कहा है.

धरा गया दुर्गेश, 15 सालों से चल रहा चूहे बिल्ली का खेल खत्म

पिछले 15 सालों से दुर्गेश शर्मा और पटना पुलिस के बीच चूहेबिल्ली का खेल चल रहा था. पिछले दिनों उस की गिरफ्तारी के बाद पटना पुलिस ने जरूर चैन की सांस ली होगी.

22 जुलाई, 2017 को एसटीएफ ने दुर्गेश शर्मा को ‘राजेंद्रनगर न्यू तिनसुकिया ऐक्सप्रैस’ रेलगाड़ी में बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन के पास पकड़ा. उस समय उस की बीवी और बच्चे भी साथ थे.

एसटीएफ ने जब नाम पूछा, तो दुर्गेश ने अपना नाम राजीव शर्मा बताया. उस ने रेलगाड़ी का टिकट भी राजीव शर्मा के नाम से रिजर्व करा रखा था. उस ने राजीव शर्मा के नाम का पैनकार्ड, आधारकार्ड और वोटर आईडी भी एसटीएफ को दिखाया. कुछ देर के लिए एसटीएफ की टीम भी चकरा गई.

टीम को लगा कि कहीं उस ने गलत आदमी पर तो हाथ नहीं डाल दिया, पर एसटीएफ के पास दुर्गेश शर्मा का फोटो था, जिस से उस की पहचान हो सकी.

दुर्गेश शर्मा से पूछताछ के बाद पुलिस को कई सुराग और राज पता चले हैं. उस ने अपने तकरीबन 15 गुरगों के नाम पुलिस को बताए, जिन के दम पर वह रंगदारी वसूलता था.

16 जनवरी, 2016 में उस ने एसके पुरी थाने के राजापुर पुल के पास सोना कारोबारी रविकांत की हत्या कर दी थी.

उस हत्या के बारे में दुर्गेश शर्मा ने कहा कि उस की हत्या गलती से हो गई थी. उस के गुरगे करमू राय ने शराब के नशे में रविकांत की हत्या कर दी थी.

दुर्गेश शर्मा पटना के मैनपुरा, बोरिंग रोड, राजा बाजार, दीघा और पाटलीपुत्र कालौनी जैसे महल्लों के बड़े कारोबारियों से ले कर छोटे दुकानदारों तक से रंगदारी वसूलता था.

दुर्गेश शर्मा पटना हाईकोर्ट से फर्जी तरीके से जमानत भी ले चुका है. साल 2011 में फर्जी जमानत पर फरार होने के बाद दुर्गेश शर्मा ने सिलीगुड़ी को अपना ठिकाना बना लिया था.

पटना में जीतू उपाध्याय दुर्गेश शर्मा का खासमखास गुरगा था और वही पटना में रंगदारी वसूली का काम किया करता था और नैट बैंकिंग के जरीए दुर्गेश शर्मा के खाते में रुपए ट्रांसफर कर देता था.

सिलीगुड़ी के अलावा दुर्गेश उर्फ राहुल उर्फ राजीव ने पुलिस से बचने के लिए पटना के बाहर कई शहरों में अपना ठिकाना बना रखा था. कोलकाता के साल्ट लेक इलाके में भी उस का ठिकाना था. झारखंड के धनबाद शहर में भी उस का मकान था.

असम के तिनसुकिया शहर के सुबोचनी रोड पर सटू दास के मकान में वह किराएदार था. रांची, जमशेदपुर में भी उस के मकान होने का पता चला है. पटना के बोरिंग रोड इलाके में बन रहे एक मौल में भी दुर्गेश शर्मा की हिस्सेदारी है. साथ ही, पटना के मैनपुरा इलाके और पश्चिमी पटना की कई कीमती जमीनों पर भी वह कब्जा करने की फिराक में था.

दुर्गेश शर्मा शंकर राय की हत्या करने के लिए पटना आया था. उस के बाद उस ने समर्पण करने की सोची थी. दुर्गेश शर्मा और शंकर राय के बीच इलाके के दबदबे को ले कर टकराव चलता रहा है. इस में दोनों गुटों के कई लोग मारे जा चुके हैं.

पटना के कई थानों में उस के खिलाफ 32 मामले दर्ज हैं, जिन में से 20 संगीन हैं. साल 2015 में ठेकेदार संतोष की हत्या के मामले में पुलिस उसे ढूंढ़ रही थी.

तकरीबन 10 साल पहले वह पटना के अपराधी सुलतान मियां का दायां हाथ हुआ करता था. वह सुलतान मियां गैंग का शार्प शूटर था. साल 2008 में उस ने सुलतान मियां से नाता तोड़ कर अपना अलग गैंग बना लिया.

साल 2015 में शंकर राय से सुपारी ले कर दुर्गेश शर्मा ने संतोष की हत्या की थी. काम हो जाने के बाद भी शंकर ने उसे रकम नहीं दी थी. उस हत्या के मामले में शंकर को जेल हो गई थी. उस रकम को ले कर दोनों के बीच तनाव काफी बढ़ चुका था.

पटना नगरनिगम चुनाव के समय दुर्गेश शर्मा को पता चला कि शंकर की बीवी पटना नगरनिगम के वार्ड नंबर-24 से चुनाव लड़ रही है. दुर्गेश को लगा कि अगर शंकर की बीवी चुनाव जीत गई, तो उस का राजनीतिक कद बढ़ जाएगा और वह उस पर भारी पड़ने लगेगा.

शंकर की हत्या करने का उसे यही बेहतरीन मौका लगा. चुनाव प्रचार के दौरान वह शंकर को आसानी से मार सकता है. दुर्गेश पटना पहुंचा, पर शंकर की हत्या न कर सका.

दुर्गेश शर्मा पहली बार साल 2003 में पुलिस के चंगुल में फंसा था और साल 2006 में वह जमानत पर छूटा था. उस के बाद उस का खौफ इतना बढ़ गया था कि साल 2011 में राज्य सरकार ने उस की गिरफ्तारी पर 50 हजार रुपए का इनाम रखा. उस के बाद भी वह पिछले 6 सालों तक पुलिस को चकमा देने में कामयाब रहा.

दुर्गेश की बीवी कविता ने पुलिस को बताया कि वह कामाख्या पूजा के लिए जा रही थी कि रास्ते में उस के पति को गिरफ्तार कर लिया गया. पूजा से लौटने के बाद दुर्गेश कोर्ट या पुलिस के सामने सरैंडर करने का मन बना चुका था.

रविकांत की हत्या

16 फरवरी को 45 साला रविकांत पौने 10 बजे अपनी दुकान न्यू सोनाली ज्वैलर्स पहुंचे. दुकान का ताला खुलवाने के बाद साफसफाई की गई. उस के बाद 9 बज कर, 55 मिनट पर रविकांत काउंटर पर बैठ गए. काउंटर पर बैठ कर वे बहीखाता देख रहे थे कि 10 बजे 3 लड़के दुकान में घुसे. एक लड़के ने रविकांत से कहा कि वे सोने की चेन और 2 लाख रुपए तुरंत निकाल दें, नहीं तो जान से मार देंगे.

रविकांत ने कहा कि बारबार रंगदारी देने की उन की हैसियत नहीं है. लड़के ने फिर धमकाया कि रुपया निकालो, नहीं तो बुरा अंजाम होगा.

इसी बात को ले कर दोनों के बीच बहस होने लगी. तमतमाए लड़के ने 315 बोर के देशी कट्टे से रविकांत के सीने में कई गोलियां दाग दीं. रविकांत वहीं ढेर हो गए.

रविकांत के करीबियों ने बताया कि पिछले 3 महीने से रविकांत से 10 लाख रुपए की रंगदारी मांगी जा रही थी. अपराधी दुर्गेश शर्मा और मुनचुन गोप कई दिनों से रंगदारी मांग रहे थे. जब रविकांत ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई, तो अपराधी सोने के गहनों की मांग करने लगे.

एक बार रविकांत ने 36 ग्राम सोने की चेन का बना कर दी, पर इस के बाद भी रंगदारी की मांग जारी रही. रविकांत ने जब रंगदारी देने से मना किया, तो उन की हत्या कर दी गई.

रविकांत की दिनदहाड़े हत्या में दुर्गेश शर्मा का नाम सामने आने के बाद भी पुलिस उसे दबोच न सकी. पुलिस उस के गुरगों को ही पकड़ सकी.

दुर्गेश शर्मा का करीबी पगला विक्रम उर्फ राजा समेत रंजीत उर्फ भोला, जितेंद्र कुमार और पप्पू कुमार को पकड़ लिया गया. ये लोग दुर्गेश शर्मा के इशारे

पर बोरिंग रोड, राजापुर, मैनपुरा, मंदिरी और दानापुर इलाके में कारोबारियों और ठेकेदारों से रंगदारी वसूलते थे. रविकांत को गोली मारने वाले करमू राय तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच सके.

पगला विक्रम दुर्गेश शर्मा का दाहिना हाथ माना जाता है. मूल रूप से नालंदा का रहने वाला पगला विक्रम रामकृष्णा नगर इलाके में रहता है. राजापुर पुल के पास उस का अड्डा है.

पिछले साल जब पगला विक्रम जेल गया, तो दुर्गेश शर्मा ही उस के घर का खर्च चलाता था. जेल से बाहर आने के बाद पगला विक्रम उस के लिए खुल कर काम करने लगा. दुर्गेश शर्मा की गैरमौजूदगी में वही गिरोह को चलाता था.

पिछले साल 12 फरवरी को मैनपुरा के राजकीय मध्य विद्यालय के पास पार्षद रह चुके रंतोष के भाई संतोष की हत्या में भी दुर्गेश शर्मा का नाम आया था. उस के कुछ दिन पहले ही राजापुर पुल के पास मधु सिंह की हत्या में भी उस का नाम उछला था.

छपरा जिले के गरखा थाने के फुलवरिया गांव के रहने वाले दुर्गेश शर्मा ने साल 2000 के आसपास पटना के मैनपुरा इलाके में अपना अड्डा बनाया था. उस के खिलाफ पहला केस 10 अक्तूबर, 2000 को बुद्धा कालोनी थाने में डकैती के लिए दर्ज किया गया था. शुरुआत में उस ने सुलतान मियां के शूटर के रूप में काम किया और सुलतान के गायब होने के बाद उस ने गिरोह की कमान थाम ली थी.

साल 2008 में उस ने आरा में बैंक डकैती की और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था. उसे बेऊर जेल में बंद किया गया था, पर वह हाईकोर्ट से फर्जी जमानत और्डर पर बाहर निकला था, उस के बाद वह पुलिस के लिए दूर की कौड़ी हो गया.

दुर्गेश शर्मा पिछले कई सालों से आरा में रह कर अपना गैंग चला रहा था. वह अकसर अपने गिरोह के लोगों से मिलने पटना और आरा के बीच नेउरा स्टेशन पर आता था. आखिरी बार वह फरवरी, 2015 में पटना आया था.

दुर्गेश शर्मा ने कोलकाता में अपना कारोबार फैला रखा है और वह मोबाइल टावर लगाने का काम कर रहा है. राजापुर पुल के पास वह शौपिंग कौंप्लैक्स बना रहा है. उस में संतोष हत्याकांड में नामजद पप्पू, बबलू, गिरीश और गुड्डू सिंह पार्टनर हैं.

एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि दुर्गेश शर्मा और उस के गिरोह के लोगों की जायदाद का पता कर उसे जब्त करने की कार्यवाही शुरू की गई है.

यदि बारिश में बाल भीग जाएं तो मैं अपने बालों के कलर को बारिश से कैसे बचाऊं. कुछ उपाय बताइये.

सवाल
मैं अपने बालों के कलर को बारिश से कैसे बचाऊं?

जवाब
यदि बारिश में बाल भीग जाएं तो उन्हें तुरंत धो कर सुखा लें, क्योंकि बारिश का पानी प्रदूषण युक्त होता है, जिस से कलर और बाल दोनों खराब हो सकते हैं. बाल धोने के लिए कलरसेव शैंपू और कंडीशनर का ही यूज करें ताकि बालों का कलर लंबे समय तक बरकरार रहे. हेयर वाश करने के बाद उन में सीरम जरूर लगाएं. ऐसा करने से क्यूटिकल्स बंद हो जाएंगे, साथ ही बाल सौफ्ट व सिल्की भी हो जाएंगे. इस के अलावा सीरम के इस्तेमाल से कलर में शाइनिंग भी आएगी.

इस मौसम में नमी रहने से बालों के क्यूटिकल्स खुलते रहते हैं जिस कारण डैमेज के चांस बढ़ जाते हैं. बालों को डैमेज से बचाए रखने के लिए किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक से कलर्ड हेयर स्पा करवाती रहें. इस के साथ ही स्टाइलिंग करते वक्त बालों में ऐंटीह्यूमिडिटी प्रोडक्ट का इस्तेमाल करें. यह बालों को बाहर की नमी से बचाएगा, जिस से कलर सुरक्षित रहेगा, साथ ही हेयरस्टाइल भी देर तक टिका रहेगा.

हमबिस्तरी की शुरुआत में तो मेरी बीवी साथ देती है, पर बाद में सुस्त हो जाती है. मुझे क्या करना चाहिए.

सवाल
मैं 30 साल का हूं और मेरी बीवी 26 साल की है. हमबिस्तरी की शुरुआत में तो वह साथ देती है, पर बाद में सुस्त हो जाती है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
बीवी से बात करने में संकोच की जरूरत नहीं है. उसे समझाएं कि जब वह हमबिस्तरी में खुल कर हिस्सा लेगी, तभी पूरा लुत्फ आएगा. आप फोर प्ले कर के पहले बीवी को पूरी तरह गरम कर लिया करें, उस के बाद हमबिस्तरी करेंगे, तो यकीनन वह सुस्त नहीं पड़ेगी.

तेंदुलकर ने विराट कोहली की कुछ इस तरह से की प्रशंसा

क्रिकेट के भगवान और मास्‍टर ब्‍लास्‍टर सचिन तेंदुलकर ने टीम इंडिया के कप्‍तान विराट कोहली के आक्रामक अंदाज की जमकर प्रशंसा की है. सचिन ने कहा कि भारत के लिए पदार्पण करने के दौरान मैनें आक्रामकता की जो झलक भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली में देखी थी, वही खूबी अब हम सबको पूरी टीम में देखने को मिल रही है. कोहली में काफी बदलाव नहीं आया लेकिन उसके आसपास के लोग बदल गए. उसका रवैया सिर्फ उसके प्रदर्शन के कारण बदला और एक खिलाड़ी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि उसे खुद को जाहिर करने की स्वतंत्रता मिले.

तेंदुलकर ने कहा, ‘टीम में आने के बाद से कोहली के रवैये में किसी भी तरह का बदलाव नहीं आया है. मैंने उसके अंदर यह चिंगारी देखी थी जो कई लोगों को पसंद नहीं थी और कई लोग थे जो इसके लिए उनकी आलोचना करते थे. लेकिन आज उनकी वही चिंगारी, उनका वही आक्रामक अंदाज भारतीय टीम का एक बेहद ही मजबूत पक्ष बनकर उभरा है. तेंदुलकर ने साथ ही कहा कि मौजूद भारतीय टीम इकाई के रूप में कहीं अधिक संतुलित है.

उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि टीम में शानदार संतुलन है. कई स्पिनर हैं और कई ऐसे तेज गेंदबाज हैं जो बल्लेबाजी कर सकते हैं. कल भुवनेश्वर (कुमार) ने जो किया वह हमने देखा, उसके और हार्दिक पंड्या जैसे खिलाड़ी विदेशी दौरों पर टीम के संतुलन को बदलने का हौसला रखते हैं.

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