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तेंदुलकर ने विराट कोहली की कुछ इस तरह से की प्रशंसा

क्रिकेट के भगवान और मास्‍टर ब्‍लास्‍टर सचिन तेंदुलकर ने टीम इंडिया के कप्‍तान विराट कोहली के आक्रामक अंदाज की जमकर प्रशंसा की है. सचिन ने कहा कि भारत के लिए पदार्पण करने के दौरान मैनें आक्रामकता की जो झलक भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली में देखी थी, वही खूबी अब हम सबको पूरी टीम में देखने को मिल रही है. कोहली में काफी बदलाव नहीं आया लेकिन उसके आसपास के लोग बदल गए. उसका रवैया सिर्फ उसके प्रदर्शन के कारण बदला और एक खिलाड़ी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि उसे खुद को जाहिर करने की स्वतंत्रता मिले.

तेंदुलकर ने कहा, ‘टीम में आने के बाद से कोहली के रवैये में किसी भी तरह का बदलाव नहीं आया है. मैंने उसके अंदर यह चिंगारी देखी थी जो कई लोगों को पसंद नहीं थी और कई लोग थे जो इसके लिए उनकी आलोचना करते थे. लेकिन आज उनकी वही चिंगारी, उनका वही आक्रामक अंदाज भारतीय टीम का एक बेहद ही मजबूत पक्ष बनकर उभरा है. तेंदुलकर ने साथ ही कहा कि मौजूद भारतीय टीम इकाई के रूप में कहीं अधिक संतुलित है.

उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि टीम में शानदार संतुलन है. कई स्पिनर हैं और कई ऐसे तेज गेंदबाज हैं जो बल्लेबाजी कर सकते हैं. कल भुवनेश्वर (कुमार) ने जो किया वह हमने देखा, उसके और हार्दिक पंड्या जैसे खिलाड़ी विदेशी दौरों पर टीम के संतुलन को बदलने का हौसला रखते हैं.

50 हजार से अधिक के लेनदेन पर अब दिखाना होगा मूल दस्तावेज

बैंक में अब से बड़े लेनदेन के लिए पहले की तरह सिर्फ फोटोकापी दिखाने से काम नहीं चलेगा. अब से आपको ऐसे किसा भी लेनदेन के लिए मूल दस्तावेजों को दिखाना जरूरी होगा. अब से बैंकों और वित्तीय संस्थानों को एक निश्चित सीमा से अधिक का लेनदेन करने पर लोगों को उनका मूल पहचान दस्तावेजों को उनकी प्रतिलिपियों के साथ मिलाना आनश्यक होगा.

बैंको मे मूल दस्तावेज दिखाने का मकसद है जाली या धोखाधड़ी कर बनाए गए दस्तावेजों के इस्तेमाल की संभावना को खत्म करना. अब प्रत्येक (पीएमएलए में शेयर ब्रोकर, चिट फंड कंपनियां, सहकारी बैंक, आवास वित्त संस्थान और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों) रिपोर्टिंग इकाई को किसी के साथ खाता आधारित संबंध शुरू करते समय अपने ग्राहकों और उनकी पहचान का सत्यापन करना आवश्यक है. उन्हें अपने ग्राहकों से कारोबारी संबंध के मकसद और प्रकृति के बारे में भी आवश्यक तौर पर सूचना हासिल करनी होगी.

अगर आधिकारिक रूप से दिए गए वैध दस्तावेज में नया पता शामिल नहीं है तो टेलीफोन बिल, पोस्ट पे मोबाइल बिल, पाइप गैस का बिल या बिजली का बिल पते के प्रमाण के रूप में दिया जा सकता है. हालांकि ये बिल दो महीने से अधिक पुराने नहीं होने चाहिए. इनके अलावा संपत्ति या नगरपालिका कर की रसीद, पेंशन या रिटायर कर्मचारियों को सरकारी विभागों से जारी परिवार पेंशन भुगतान का आदेश, या नियोक्ता से मिला आवास के आवंटन का पत्र भी नए पते के प्रमाण के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है.

यहां मूल दस्तावेजों की जरूरत पड़ेगी-

खाता खोलने या 50,000 रुपये से अधिक का लेनदेन करने वालों से बायोमीट्रिक पहचान नंबर (आधार) और अन्य आधिकारिक दस्तावेज लेना जरूरी है.

10 लाख रुपये से अधिक के नकद या इतने ही मूल्य की विदेशी मुद्रा के सौदे में बी इसी प्रकार की अनिवार्यता है.

5 लाख रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा के सीमापार लेनदेन में भी आपको मूल दस्तावेजों की जरूरत पड़ेगी.

50 लाख रुपये या इससे अधिक मूल्य की अचल संपत्ति खरीदने में पर मूल दस्तावेजों को दिखाना अनिवार्य होगा.

बाजरे की प्रोसेसिंग बनाएं रोजगार

बाजरे की अहमियत पुराने जमाने में भी थी और आज भी है. पहले बाजरे के तिल वाले पुए और देशी घी व गुड़ से बना मलीदा चाव से खाए जाते थे, तो आज इस के नएनए पकवान बनने लगे हैं. अब यह कमाई का जरीया भी बन गया है.

पफ

बिस्कुट व केक

आटा (अधिक समय तक रखने योग्य)

लड्डू व सेव

नूडल्स व पास्ता

बाजरा दलिया

एक मोटे अनाज के रूप में पहचान बनाने वाले बाजरे से आज अनेक खाद्य पदार्थ बनाए जा रहे हैं. खासकर बाजरे का दलिया बना कर आज अनेक कंपनियां खासी कमाई कर रही हैं. आजकल बाजरे के नमकीन सेब, लड्डू, बरफी, शकरपारा, ढोकला, केक, पास्ता, मट्ठी व बिस्कुट वगैरह भी काफी पसंद किए जा रहे हैं. बाजरे में काफी मात्रा में प्रोटीन, वसा, रेशा व खनिज लवण होते हैं, जो हमारे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं.

बाजरे की प्रोसेसिंग कर के ये सब व्यंजन बड़ी आसानी से तैयार किए जा सकते हैं. लघु उद्योग के रूप में गांव वाले या शहरी लोग भी इसे कारोबार के रूप में अपना सकते हैं. काम शुरू करने के लिए इस की ट्रेनिंग लेना बहुत जरूरी है.

ट्रेनिंग के लिए चौधरी चरण

सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा) के खाद्य एवं पोषण विभाग से संपर्क किया जा सकता है. इस कृषि विश्वविद्यालय से जुड़े गृह विज्ञान महाविद्यालय में बाजरे के कई प्रकार के व्यंजनों को बनाना सिखाया जाता है. बाजरे की प्रोसेसिंग को ले कर इन का एक खास विभाग है ‘बाजरा उत्कृष्टता केंद्र’. इस के तहत इन के विशेषज्ञ समयसमय पर लोगों को ट्रेनिंग देते हैं, जो कि बहुत कम दिनों की होती है. इन के अनुभवी लोग तमाम जगहों पर जा कर भी ट्रेनिंग देते हैं.

प्रोसेसिंग तकनीक से बाजरा व अन्य अनाजों को उत्पाद के रूप में बदला जा सकता है. पुराने समय के लोग पारंपरिक तरीकों से इन अनाजों की प्रोसेसिंग करते थे जैसे बाजरे का आटा बनाने के लिए उसे हाथ से कूटना, हाथ की चक्की से पीसना, छिलका उतारना, दलिया बनाना वगैरह. लेकिन इन तरीकों से मेहनत और समय तो ज्यादा लगता था, पर उत्पादन कम होता था. साथ ही अनाज में छिलका आदि भी लगा रह जाता था, जिस से सही गुणवत्ता भी नहीं मिल पाती थी.

अब इन कामों के लिए प्रोसेसिंग की मशीनें आ गई हैं. इन मशीनों से ये काम बहुत आसानी से किए जा सकते हैं. मशीनों के इस्तेमाल से समय की बचत के साथसाथ मेहनत भी कम लगती है. मशीनों की जानकारी ले कर इस रोजगार की दिशा में काम किया जा सकता है.

बाजरे की प्रोसेसिंग के लिए कुछ खास मशीनें

डिस्टोनर, ग्रेडर व एस्पिरेटर : यह बाजरे की ग्रेडिंग करने की मशीन है. इस मशीन से बाजरे से रेत, कंकड़ व पत्थर वगैरह को अलग किया जाता है और बाजरे के दानों की ग्रेडिंग भी की जाती है.

छिलका उतारने की मशीन : इस मशीन से बाजरे की ऊपरी मोटी परत दानों से अलग की जाती है. छिलका उतारते समय दाने थोड़ी मात्रा में टूट भी जाते हैं, लेकिन छिलका उतरे अनाज से बाजरे के व्यंजन ज्यादा स्वादिष्ठ बनते हैं.

अनाज उबालने की मशीन (पारबौयलिंग मशीन) : यह मशीन 2 भागों में बनी होती है. इस मशीन में अनाज भिगोया व थोड़ी देर तक उबाला जाता है, जिस से बाजरे के अपोषक तत्त्व कम हो जाते हैं और बाजरे को ज्यादा समय तक रखा जा सकता है. साथ ही बाजरे की पौष्टिकता बढ़ जाती है, जिस से बने खाद्य पदार्थ ज्यादा पौष्टिक व स्वादिष्ठ होते हैं.

दलिया बनाने की मशीन (हैमर मिल/पुलवेरीजर) : आज बाजरे का दलिया काफी पसंद किया जाता है. इस मशीन से बढि़या क्वालिटी का दलिया निकाला जाता है. इस मशीन से छिलका उतारे गए बाजरे का दलिया बनाया जाता है और इसे मोटा आटा बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. दलिया बनने के बाद मोटे आटे व दलिया को छान कर अलग कर लिया जाता है. यह मशीन अलगअलग कूवत में मिलती है.

सोलर टनल ड्रायर : यह मशीन सोलर ऊर्जा द्वारा चलती है. इस मशीन से बाजरे व किसी भी खाद्य पदार्थ को सुखाया जाता है. इस मशीन से समय व ईंधन की बचत होती है.

इस का तापमान नियंत्रित होता है. चूंकि यह मशीन सौर ऊर्जा से चलती है, इसलिए इस की कार्य क्षमता आकार व मौसम पर निर्भर करती है.

अगर आप भी बाजरे के उत्पाद बना कर बेचना चाहते हैं यानी अपनी इकाई लगाना चाहते हैं, तो सब से पहले ट्रेनिंग लेना जरूरी है. संस्थान द्वारा कम समय के कोर्स भी चलाए जा रहे हैं, जिन्हें कर के आप अपना कारोबार शुरू कर सकते हैं.

ज्यादा जानकारी के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा) के बाजरा उत्कृष्टता केंद्र, खाद्य एवं पोषक विभाग, गृह विज्ञान महाविद्यालय से संपर्क कर सकते हैं.

अब हर किसी की नजरों से छिपा सकते हैं आप अपना व्हाट्सएप चैट

व्हाट्सऐप एक ऐसा मैसेजिंग ऐप जिसके जरिये अधिकतर लोग अपने दोस्त और परिजन से हमेशा संपर्क में रहते हैं. यह हमारी हमसब की रोजमर्रा की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है. एक तरह से कहें तो व्हाट्सऐप ने अब एसएमएस की जगह ले ली है. व्हाट्सऐप एक बेहद ही निजी ऐप है और खासकर की उसके द्वारा किया गया चैट. व्हाट्सऐप चैट को आप हर किसी से छिपाकर रखना पसंद करते हैं. आप अपने फोन को सुरक्षा के लिहाज से हमेशा ही लौक रखते हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि फोन खुला रह जाता है, तो फिर आखिर ऐसे में कौन सा उपाय किया जाये, जो हमारें व्हाट्सऐप चैट को दूसरों की नजर से बचा कर रखें.

क्या आपको पता है कि इस बेहद ही लोकप्रिय ऐप में कुछ ऐसे फीचर भी दिये गये हैं जो होते तो बेहद काम के हैं लेकिन हर समय इस्तेमाल में नहीं आते. आज हम ऐसे ही एक फीचर आर्काइव फीचर के बारे में बात करेंगे, जिसका प्रयोग कर आप अपना चैट आसानी से दूसरों से छिपा सकेंगे.

ऐसा कैसे संभव है, जानें.

व्हाट्सऐप चैट को आप आर्काइव कर दूसरों की नजरों से बचा सकते हैं. चैट को आर्काइव करना बेहद ही आसान है. इसके लिए सबसे पहले चैट इंटरफेस में जाएं और अब जिस कनवर्सेशन को आप छिपाना चाहते हैं उस पर देर तक टैप करें. अब आपको सबसे ऊपर पाप-अप मेन्यू दिखेगा. इसके बाद आर्काइव टौगल पर क्लिक कर दें. ऐसा करते ही आपकी चैट आर्काइव हो जाएगी और मुख्य स्क्रीन पर नहीं दिखेगी.

व्हाट्सऐप ने अपने यूजर की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सभी चैट को एक साथ आर्काइव करने का फीचर भी दिया है. इसके लिए सबसे पहले मेन मेन्यू में जाकर सेटिंग पर क्लिक करें. अब, सेटिंग में दिख रहे चैट हिस्ट्री विकल्प पर जाएं, यहां आर्काइव आल चैट्स पर क्लिक करें. इस तरह आपके सभी चैट एकसाथ आर्काइव हो जाएंगे.

व्हाट्सऐप पर आर्काइव की गईं चैट को आप रीस्टोर भी कर सकते हैं. इसके लिए आप अपने व्हाट्सऐप पर चैट इंटरफेस में सबसे नीचे स्क्राल करें. जहां पर आपको किया गया आर्काइप चैट दिखेगा, अब इस पर देर तक होल्ड करें और अनआर्काइव चैट का विकल्प चुन सकते हैं. इस तरह आपकी छिपी हुई चैट दोबारा आपकी चैट फीड में दिखने लगेगी.

इस तरह आप अपने व्हाट्सऐप पक आर्काइव फिचर का प्रयोग कर जब चाहें अपने चैट को दूसरों से छिपाकर और उनकी नजरों से बचाकर रख सकते हैं.

गाजर घास से फसल का बचाव

गाजर घास की 20 प्रजातियां पूरे विश्व में पाई जाती?हैं. गाजर घास की उत्पत्ति का स्थान दक्षिण मध्य अमेरिका है. अमेरिका, मैक्सिको, वेस्टइंडीज, चीन, नेपाल, वियतनाम और आस्ट्रेलिया के विभिन्न भागों में फैला यह खरपतवार भारत में अमेरिका या कनाडा से आयात किए गए गेहूं के साथ आया.

हमारे देश में साल 1951 में सब से पहले पूना में नजर आने के बाद यह विदेशी खरपतवार करीब 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुका है. यह खरपतवार जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के विभिन्न भागों में फैला हुआ है.

गाजर घास को देश के विभिन्न भागों में अलगअलग नामों जैसे कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी व गंधी बूटी आदि नामों से जाना जाता है. कांग्रेस घास इस का सब से ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला नाम?है. यह घास खाली जगहों, बेकार जमीनों, औद्योगिक क्षेत्रों, बगीचों, पार्कों, स्कूलों, सड़कों और रेलवे लाइनों के किनारों पर बहुतायत में पाई जाती?है. पिछले कुछ सालों से इस का प्रकोप सभी तरह की खाद्यान्न फसलों, सब्जियों व फलों में बढ़ता जा रहा है.

वैसे तो गाजर घास पानी मिलने पर साल भर फलफूल सकती?है, पर बारिश के मौसम में ज्यादा अंकुरण होने पर यह खतरनाक खरपतवार का रूप ले लेती?है. गाजर घास का पौधा 3-4 महीने में अपना जीवनचक्र पूरा कर लेता है. 1 साल में इस की 3-4 पीढि़यां पूरी हो जाती हैं.

करीब डेढ़ मीटर लंबे गाजर घास के पौधे का तना काफी रोएंदार और शाखाओं वाला होता है. इस की पत्तियां काफी हद तक गाजर की पत्तियों की तरह होती हैं. इस के फूलों का रंग सफेद होता?है. हर पौधा 1000 से 50000 बेहद छोटे बीज पैदा करता?है, जो जमीन पर गिरने के बाद नमी पा कर अंकुरित हो जाते?हैं.

गाजर घास के पौधे हर प्रकार के वातावरण में तेजी से बढ़ते हैं. ये ज्यादा अम्लीयता व क्षारीयता वाली जमीन में भी उग सकते?हैं. इस के बीज अपनी 2 स्पंजी गद्दियों की मदद से हवा व पानी के जरीए एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से पहुंच जाते हैं.

गाजर घास से होने वाले नुकसान

* गाजर घास से इनसानों को एग्जिमा, एलर्जी, बुखार व दमा जैसी बीमारियां हो जाती हैं. इस का 1 परागकण भी इनसान को बीमार करने के लिए काफी है. इस के परागकण श्वसन तंत्र में?घुस कर दमा व एलर्जी पैदा करते?हैं. इस के?ज्यादा असर से इनसानों की मौत तक हो जाती है.

* गाजर घास की वजह से खाद्यान्नों की फसलों की पैदावार में 40 फीसदी तक की कमी आंकी गई?है. इस से फसलों की उत्पादकता घट जाती?है.

* इस पौधे से ऐलीलो रसायन जैसे पार्थेनिन, काउमेरिक एसिड, कैफिक ऐसिड वगैरह निकलते?हैं, जो अपने आसपास किसी अन्य पौधे को उगने नहीं देते?हैं. इस से फसलों के अंकुरण और बढ़वार पर बुरा असर पड़ता है.

* गाजर घास के वन क्षेत्रों में तेजी से फैलने के कारण कई खास वनस्पतियां और जड़ीबूटियां खत्म होती जा रही?हैं.

* दलहनी फसलों में यह खरपतवार जड़ ग्रंथियों के विकास को प्रभावित करता?है और नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की क्रियाशीलता को कम कर देता है.

* इस के परागकण बैगन, मिर्च व टमाटर वगैरह सब्जियों के पौधों पर जमा हो कर उन के परागण, अंकुरण व फल विन्यास को प्रभावित करते?हैं और पत्तियों में?क्लोरोफिल की कमी व पुष्प शीर्षों में असामान्यता पैदा कर देते हैं.

* पशुओं के चारे में इस खरपतवार के मिल जाने से दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट आने लगती है. ज्यादा मात्रा में इसे चर लेने से पशुओं की मौत भी हो सकती है.

गाजर घास के इस्तेमाल

* गाजर घास से कई तरह के कीटनाशक, जीवाणुनाशक और  खरपतवारनाशक बनाए जा सकते हैं.

* इस की लुगदी से कई तरह के कागज तैयार किए जा सकते?हैं.

* बायोगैस उत्पादन में भी इसे गोबर के साथ मिलाया जा सकता है.              ठ्ठ

ऐसे करें रोकथाम

* बारिश के मौसम में गाजर घास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़ कर कंपोस्ट व वर्मी कंपोस्ट बनाना चाहिए.

* घर के आसपास गेंदे के पौधे लगा कर गाजर घास के फैलाव को रोका जा सकता है.

* मैक्सिकन बीटल (जाइगोग्रामा बाइकोलाराटा) रामकीट को बारिश के मौसम में गाजर घास पर छोड़ना चाहिए.

* गाजर घास की रासायनिक विधि द्वारा रोकथाम करने के लिए खरपतवार वैज्ञानिक की सलाह लेनी चाहिए.

* नमक के 20 फीसदी घोल से गाजर घास की रोकथाम की जा सकती है, पर यह विधि छोटे?क्षेत्र के लिए ही ठीक है.

* गैर कृषि क्षेत्रों में इस की रोकथाम के लिए शाकनाशी रसायन एट्राजिन का इस्तेमाल फूल आने से पहले 1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए. ऐसे?क्षेत्रों में शाकनाशी रसायन जैसे ग्लाइफोसेट 1.5-2.0 फीसदी या मेट्रीब्यूजिन 0.3-0.5 फीसदी घोल का फूल आने से पहले छिड़काव करने से गाजर घास नष्ट हो जाती?है.

* मक्का, ज्वार व बाजरा की फसलों में एट्राजिन 1-1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के तुरंत बाद (अंकुरण से पहले) इस्तेमाल करना चाहिए.

रोकथाम के लिए सामुदायिक कोशिश

* जमीन को गाजर घास से बचाने के लिए सामुदायिक कोशिशें बहुत जरूरी हैं. गांवों, शहरी कालोनियों, स्कूलों, महाविद्यालयों में रहने या पढ़ने वाले लोगों को चाहिए कि वे अपने आसपास की जमीन को गाजर घास से मुक्त रखें. इसी तरह की कोशिशों से पंजाब राज्य के लुधियाना जिले का मनसूरा गांव पहला गाजर घास मुक्त क्षेत्र बन गया?है.

* जगहजगह जा कर लोगों को गाजर घास के नुकसानों व रोकथाम के बारे में जानकारी दे कर उन्हें जागरूक करना चाहिए.

* हर साल अगस्तसितंबर में गाजर घास जागरूकता सप्ताह मनाया जाता?है,?क्योंकि अक्तूबरनवंबर में गाजर घास सब से?ज्यादा होती है.

रीशू सिंह, शशीमाला व रीतू सिंह

फसल अवशेष जलाएं नहीं खाद बना कर बढ़ाएं जमीन की उर्वराशक्ति

हमेशा से देश में फसल के अवशेषों का सही निबटारा करने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता?है. इन का अधिकतर भाग या तो दूसरे कामों में इस्तेमाल किया जाता?है या फिर इन्हें नष्ट कर दिया जाता है, जैसे कि गेहूं, गन्ने, आलू व मूली वगैरह की पत्तियां पशुओं को खिलाने में इस्तेमाल की जाती?हैं या फिर फेंक दी जाती हैं. कपास, सनई व अरहर आदि के तने, गन्ने की सूखी पत्तियां और धान का पुआल आदि जलाने में इस्तेमाल कर लिया जाता है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में 31 फीसदी गेहूं व 27 फीसदी धान की कटाई मशीनों द्वारा की जाती है. पिछले कुछ सालों से एक समस्या देखी जा रही?है. जहां हार्वेस्टर द्वारा फसलों की कटाई की जाती है, उन क्षेत्रों में फसल के तनों के अधिकतर भाग खेत में खड़े रह जाते?हैं. वहां के किसान खेत में फसल के अवशेषों को जला देते हैं. आमतौर पर रबी सीजन में गेहूं की कटाई के बाद फसल के अवशेषों को जला कर नष्ट कर दिया जाता है.

इस समस्या की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन द्वारा बहुत से जिलों में गेहूं की नरई जलाने पर रोक लगा दी गई?है. किसानों को शासन, कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विभाग व संबंधित संस्थाओं द्वारा यह समझाने की कोशिश की जा रही?है कि किसान अपने खेतों के अवशेषों को जीवांश पदार्थ बढ़ाने में इस्तेमाल करें.

इसी तरह गांवों में पशुओं के गोबर का अधिकतर भाग खाद बनाने के लिए इस्तेमाल न कर के उसे ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा?है, जबकि इसी गोबर को यदि गोबर गैस प्लांट में इस्तेमाल किया जाए, तो इस से बहुमूल्य व पोषक तत्त्वों से?भरपूर गोबर की स्लरी हासिल होगी, जिसे खेत की उर्वराशक्ति बढ़ाने में इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही गोबर गैस को घर में ईंधन के?रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

योजना को सफल बनाने के लिए सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जाता है, मगर फिर भी नतीजे संतोषजनक नहीं हैं. जमीन में जीवांश पदार्थ की मात्रा लगातार कम होने से उत्पादकता या तो घट रही?है या स्थिर हो गई?है. लिहाजा समय रहते इस पर ध्यान दे कर जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने पर ही कृषि की उत्पादकता बढ़ा पाना मुमकिन हो सकता है. यह देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए बहुत ही जरूरी?है. ज्यादातर भारतीय किसान फसल अवशेषों का सही इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.

फसल अवशेषों को जलाने से होने वाले नुकसान

* प्रति एकड़ 400 किलोग्राम लाभकारी कार्बन जल कर नष्ट हो जाता?है.

* नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश व सल्फर जैसे बेहद जरूरी पोषक तत्त्व जल कर नष्ट हो जाते?हैं.

* प्रति ग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ लाभकारी बैक्टीरिया और 1-2 लाख लाभकारी फफूंद नष्ट हो जाते?हैं.

* प्रति एकड़ 18 क्विंटल चाराभूसा जल कर नष्ट हो जाता है, जिस की मौजूदा कीमत करीब 25000 रुपए होगी.

* जब खेत में आग लगाई जाती?है, तो खेत की मिट्टी उसी तरह जलती?है जैसे ईंट भट्ठे की ईंट जलती?है. खेत का तापमान बढ़ने से उस में पाए जाने वाले लाभकारी जीव जैसे जैविक फर्टिलाइजर राइजोबियम,अजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम, ब्लू ग्रीन एलगी और पीएसबी जीवाणु जल कर नष्ट हो जाते?हैं. इस के अलावा लाभदायक जैविक फफूंदनाशी ट्राइकोडर्मा, जैविक कीटनाशी विबैरिया बैसियाना, वैसिलस थिरूनजनेसिस और किसानों के मित्र कहे जाने वाले केंचुए आग की लपटों से जल कर नष्ट हो जाते?हैं.

* फसल अवशेष जलने से पैदा होने वाले कार्बन से वायु प्रदूषित होती है, जिस का इनसानों व पशुपक्षियों पर बुरा असर पड़ता है.

* कार्बन डाईआक्साइड ज्यादा निकलने से ओजोन परत भी प्रभावित होती?है और धरती का तापमान बढ़ जाता?है.

ऊपर दी गई तालिका को देख कर हम अंदाजा लगा सकते?हैं कि फसल अवशेषों से कितनी ज्यादा मात्रा में हम मिट्टी के जरूरी पोषक तत्त्वों की पूर्ति कर सकते?हैं. विदेशों में जहां अधिकतर मशीनों से खेती की जाती है, वहां पर फसल के अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काट कर मिट्टी में मिला दिया जाता?है. वैसे मौजूदा दौर में भारत में भी इस काम के लिए रोटावेटर जैसी मशीन का इस्तेमाल शुरू हो चुका?है, जिस से खेत को तैयार करते समय एक बार में ही फसल अवशेषों? को बारीक टुकड़ों में काट कर मिट्टी में मिलानाकाफी आसान हो गया है. जिन क्षेत्रों में नमी की कमी हो, वहां पर फसल अवशेषों की कंपोस्ट खाद तैयार कर के खेत में डालनी फायदेमंद होती है.

फसल अवशेषों का सही इस्तेमाल करने के लिए जरूरी?है कि अवशेषों को खेत में जलाने की बजाय उन से कंपोस्ट तैयार कर के खेत में इस्तेमाल करें. उन क्षेत्रों में जहां चारे की कमी नहीं होती, वहां मक्के की कड़वी व धान के पुआल को खेत में ढेर बना कर खुला छोड़ने के बजाय गड्ढों में कंपोस्ट बना कर इस्तेमाल करना चाहिए.

आलू व मूंगफली जैसी फसलों की खुदाई करने के बाद बचे अवशेषों को खेत में जोत कर मिला देना चाहिए. मूंग व उड़द की फसल में फलियां तोड़ कर अवशेषों को खेत में मिला देना चाहिए.

खेतों के अंदर इस्तेमाल

फसल की कटाई के बाद खेत में बचे घासफूंस, पत्तियां व ठूंठों आदि को सड़ाने के लिए 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़क कर कल्टीवेटर या रोटावेटर से काट कर मिट्टी में मिला देना चाहिए. इस प्रकार अवशेष खेत में विघटित होना शुरू कर देंगे और तकरीबन 1 महीने में सड़ कर आगे बोई जाने वाली फसल को पोषक तत्त्व देंगे.

अगर फसल अवशेष खेत में ही पड़े रहे तो नई फसल के पौधे शुरुआत में ही पीले पड़ जाते?हैं, क्योंकि अवशेषों को सड़ाने के लिए जीवाणु जमीन की नाइट्रोजन का इस्तेमाल कर लेते?हैं. लिहाजा अवशेषों का सही निबटारा करना बेहद जरूरी है, तभी हम अपनी जमीन में जीवांश पदार्थ की मात्रा में इजाफा कर के जमीन को खेती लायक रख सकते?हैं और ज्यादा उपज हासिल कर सकते?हैं.

डा. आर. नायक, डा. रंजन महंता, डा. एसके यादव

ट्विटर पर इस फोटो को डाल ये गलती कर बैठे शत्रुघ्न सिन्हा

कई मौकों पर सितारे सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे काम कर जाते हैं जो खुद उनकी समझ से परे होते हैं. ऐसा ही कुछ एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा के साथ भी हुआ. बौलीवुड एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा दिग्गज अभिनेता कादर खान के जन्मदिन पर उन्हें याद कर बधाई संदेश देना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अपने ट्वीटर हैंडल से एक फोटो शेयर की.

बस यहीं वे एक गलती कर बैठे. उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ तस्वीर पोस्ट कर कादर खान को याद किया लेकिन तस्वीर से कादर खान ही गायब थे. यह मामूली सी गलती करना शत्रुघ्न सिन्हा को भारी पड़ गया और लोगों ने उनको बेहिसाब ढंग से ट्रोल किया और खूब चुटकियां भी लीं.

दरअसल हुआ यूं कि शत्रुघ्न ने अपने ट्विटर हैंडल से कादर खान के बजाय अमिताभ बच्चन के साथ की एक तस्वीर पोस्ट की और अपने संदेश में लिखा- महान अभिनेता, मनोरंजक और डायलाग लेखक कादर खान को उनके जन्मदिन पर याद कर रहा हूं. लव यू, मिस यू और विश यू आन दिस डे. शत्रुघ्न सिन्हा के यह ट्वीट करते ही सोशल मीडिया में धमाल मच गया.

वह उन्हें ट्रोल करने के लिए किसी का फोटो पोस्ट कर किसी और सेलेब्रिटी को जन्मदिन की बधाई देने लगे.

एक यूजर ने जान सिन्हा की तस्वीर डाल कर शत्रुघ्न के बेटे को याद करने की बात लिखी तो वहीं दूसरे यूजर ने लता मंगेशकर के जन्मदिन पर अमित शाह को याद करने की बात कह कर चुटकी लीं.

एक अन्य ने पीएम मोदी की तस्वीर पोस्ट कर गोविंदा को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं.

एक शख्स ने तो मोदी के चेहरे वाले शख्स की तस्वीर पोस्ट करके उस पर लिख दिया कि सर कृपया पीएम मोदी जी से कहें कि भाषण कम और शासन ज्यादा करें. इस तरह तमाम लोगों ने अलग-अलग सेलेब्स की तस्वीर पोस्ट करके उनकी जगह किसी और को शुभकामनाएं दीं.

हालांकि बाद में जब शत्रुघ्न सिन्हा को इस बात का एहसास हुआ तो उन्होंने सफाई देते हुए एक अन्य ट्वीट कर लिखा- दिल से शुभकामनाएं – मैंने और अमित जी ने महान अभिनेता कादर खान के साथ काम किया है. मैं उनके व्यक्तिगत और औपचारिक योगदान के लिए आभारी हूं.

शत्रुघ्न के इस पोस्ट के बावजूद भी लोग उनकी चुटकियां लेने से बाज नहीं आएं और उन्हें ट्रोल करना जारी रखा. ट्रोलर्स अलग-अलग लोगों की तस्वीरों के साथ दूसरे लोगों को शुभकामनाएं देते रहे.

रेल टिकट कंफर्म नही हुआ तो रेलवे देगा आपको फ्लाइट का टिकट

जब भी कभी आप ट्रेन का टिकट लेते हैं और उसमे जब वेटिंग जारी कर दिया जाता है तो आपकी सांसे अटकी रहती है, तब तक जब तक की आपकी टिकट कन्फर्म ना हो जाए.

इस परेशानी को ध्यान में रखते हुए रेलवे बोर्ड के चेयरमैन और एयर इंडिया के पूर्व चेयरमैन अश्वनी लोहानी एक योजना पर काम कर रहें हैं.

इसके तहत यदि आपका ट्रेन का टिकट कन्फर्म नहीं हुआ तो आप अपना सफर एयर इंडिया की फ्लाइट से तय कर सकेंगे. इससे आपको अपने गंतव्य तक पहुंचने में परेशानी नहीं होगी और आप समय से अपने सभी काम कर सकेंगे.

हालांकि इसके लिए ट्रेन और फ्लाइट के टिकट के रेट में जो भी अंतर होगा, वह आपको देना होगा. रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्वनी लोहानी जब एयर इंडिया के चेयरमैन थे, उस समय उन्होंने यह योजना बनाई थी. अब इस योजना को अमलीजामा पहनाया जा सकता है.

फिलहाल यह योजना राजधानी एक्सप्रेस के AC-I और AC-II के यात्रियों के लिए उपलब्ध होगी. ऐसा हुआ तो राजधानी के यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचने में दिक्कत नहीं होगी. आपको बता दें कि एयर इंडिया का चेयरमैन रहते हुए अश्वनी लोहानी ने रेलवे को यह प्रस्ताव दिया था. लेकिन उनके इस प्रस्ताव पर रेलवे ने कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया.

अब जब अश्वनी लोहानी खुद रेलवे बोर्ड के चेयरमैन हैं तो उन्होंने कहा है कि अगर एयर इंडिया की तरफ से ऐसा प्रस्ताव आता है तो इसे मंजूरी दी जाएगी. दरअसल रेलवे में डिमांड और सप्लाई के बीच काफी अंतर है. ऐसे में काफी संख्या में राजधानी एक्सप्रेस में यात्रियों को कन्फर्म टिकट नहीं मिल पाता.

इसके मद्देनजर एयर इंडिया का चेयरमैन रहते हुए लोहानी ने योजना बनाई थी कि जिन लोगों का राजधानी एक्सप्रेस में टिकट कन्फर्म नहीं होता. ऐसे लोगों की कौन्टैक्ट डिटेल्स रेलवे की तरफ से एयर इंडिया को मुहैया कराई जाए तो उन्हें फ्लाइट में सीट दी की जा सकती है. इसके लिए ग्राहक को ज्यादा भुगतान नहीं करना होगा. लोहानी ने कहा कि राजधानी AC-II के किराए और प्लेन के किराए में ज्यादा अंतर नहीं होता.

इस बीच पिछले दिनों यह भी खबर आई थी कि सरकार एयर इंडिया को निजी हाथों में दे सकती है. ऐसे में यह दिलचस्प होगा कि एयर इंडिया की तरफ से एक बार फिर से रेलवे को ऐसा प्रस्ताव दिया जाता है या नहीं.

दूसरी तरफ एयर इंडिया की अतिरिक्त जिम्मेदारी संभाल रहे सीनियर IAS अधिकारी राजीव बंसल ने एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में कहा कि वह फिलहाल इस प्रस्ताव पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते.

उत्तर प्रदेश : धार्मिक प्रपंच में गौण हो रहे बुनियादी मुद्दे

उत्तर प्रदेश में सरकार जिस तरह से धर्मिक प्रपंच का सहारा ले रही है उससे बुनियादी मुद्दे पूरी तरह से हाशिये पर हैं. अयोध्या में दीपावली पूजन, चित्रकूट में मंदाकिनी नदी की आरती, आगरा में ताज महल का विवाद, कांवर यात्रा पर फूल वर्षा, धार्मिक शहरों को प्रमुख पर्यटन क्षेत्र के रूप में प्रचार करना और मुख्यमंत्री के सरकारी आवास  को गंगा जल से पवित्र कराना कुछ ऐसे प्रपंच हैं जिनका प्रचार ज्यादा हो रहा है. सरकार इन मुद्दों पर भी केवल बातें ही कर रही है. वहां विकास की कोई योजना को लेकर मूलभूत काम नहीं कर रही.

अगर अयोध्या की बात करें तो वहां के खर्च के संबंध में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदियनाथ का कहना है कि अयोध्या का खर्च संत महात्माओं ने किया. सरकार ने कोई खर्च नहीं किया. यह बात किसी के गले उतरने वाली नहीं है. अयोध्या में दीवाली की तैयारी एक सप्ताह पहले से राजधानी लखनऊ के अफसर अपनी निगरानी में करा रहे थे. अखबारों में जो बड़े बड़े विज्ञापन छपे उनका खर्च क्या किसी महात्मा ने दिया?

किसी भी शहर में सड़क, बिजली, पानी का इंतजाम करना ही वहां का विकास करना नहीं होता है. लोगों को रोजगार मिले, बेरोजगारी कम हो, लोग काम धंधे में लगें, इससे ही समाज में अमन चैन आता है. सड़कें कितनी ही अच्छी बन जायें, अगर रोजगार नहीं होगा तो लोग अपराध करेंगे. अयोध्या का सच दीवाली के दिन नहीं दिखा. आयोजन की भव्य चकाचौंध में वह सच कहीं खो गया था. अयोध्या का सच दीवाली की अगली सुबह दिखा जब बच्चे घर में सब्जी बनाने के लिये जलाये गये दीयों में बचे तेल को एक जगह एकत्र कर रहे थे. असल में तो दीवाली की सुबह तो अयोध्या में रामराज होना चाहिये था. जहां किसी को कोई कष्ट नहीं होता. रामराज की असल परिकल्पना तभी सच हो सकती है. जब समाज का अंतिम आदमी खुशहाल नजर आये.

भाजपा संस्थापक रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय की अंतोदय की परिकल्पना में भी समाज का वहीं अंतिम आदमी था. वह उसको ही खुशहाल बनाने का काम कर रहे थे. आज अंतिम आदमी का सच दीयों से तेल एकत्र करता दिखता है. किसी भी सरकार के लिये इससे शर्म की बात और क्या हो सकती है कि समाज के अंतिम आदमी का चेहरा ऐसा दिखता है. आजादी के बाद से हर सरकार हर बात में गरीबों के उद्वार की ही बात करती है. 70 साल के बाद भी भारत का गरीब दीयों से तेल एकत्र करता दिखता है. गरीब इस लिये गरीब है क्योंकि उसके पास काम नहीं है. देश में भीख मांगने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. हर जगह ऐसे लोग रोटी के एक एक टुकड़े के लिये संघर्ष करते देखे जा सकते हैं.

अगर धार्मिक प्रपंच को छोड़ कर सरकारों ने बुनियादी सुविधाओं ओर रोजगार की दिशा में काम किया होता तो गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करने वालों की संख्या लगातार बढ़ती नहीं. सरकारी नीतियों से गरीबी रेखा के ऊपर और नीचे के लोग ही नहीं मध्यमवर्गीय परिवार भी गरीबी रेखा के करीब पहुंच गये हैं. बच्चे पढ़ रहे हैं, उनके पास कोई काम नहीं है. सरकारें दिखाने के लिये उनको ट्रेनिंग देने का काम करती है. इससे कितने युवाओं को रोजगार मिला यह देखने वाली बात है?

कौशल विकास को लेकर पूरे देश में बड़े जोरशोर से काम हो रहा है. कौशल विकास प्रशिक्षण पाये लोगों में से कितनों को रोजगार से जोड़ा जा सका, इसका सच सामने रखना चाहिये. सरकारी आंकडे पूरा सच नहीं दिखाते. ऐसे में सरकार को सामाजिक आंकड़ों को भी देखना चाहिये.

जिस अयोध्या के विकास के लिये पूरी सरकार एकजुट है कम से कम वहां तो रामराज कायम दिखना चाहिये. राम को आदर्श मानने वाले नेता क्या कभी रात में अपनी पहचान बदल कर अयोध्या की गलियों का सच देखने गये हैं? मंत्री के लिये अफसर रेड कारपेट बिछा कर सबकुछ ठीक होने का दावा हमेशा करते हैं. नेता की जिम्मेदारी होती है कि रेड कारपेट को हटा कर नीचे छिपे सच को देखे. संविधान ने इसी लिये उसे पढ़े लिखे अफसर से ऊपर का दर्जा दिया है. कागज में धर्म की नगरी को पर्यटन का दर्जा देने से वहां का भला नहीं होने वाला. अखिलेश सरकार के समय भी नैमिष और मिश्रिख को पर्यटन का दर्जा दिया गया था. सड़के बनी, बसे चली, विज्ञापन छपे इसके बाद भी यहां के हालात नहीं बदले. आज भी यहां के लोगों के पास कोई रोजगार नहीं है.

कांवर यात्रा के दौरान सरकार की तमाम सुविधाओं के बाद भी कांवर यात्रा करने वाले रास्ते भर परेशान और लोगों से मदद मांगते दिखे. सरकार ने कांवर मार्ग पर पुष्प वर्षा का वादा किया पर यह पुष्प कावंर यात्रा करने वालों के सफर को सुखद नहीं बना पाये. अगर पुष्प वर्षा से कांवर यात्रियों को सुविधा मिल जाती तो वह मदद क्यों मांगते दिखते? धर्म के नाम पर जनता को बहुत समय तक मुद्दों से दूर नहीं रखा जा सकता है. जरूरत इस बात की है कि बेरोजगारों के लिये काम के अवसर बढ़ाये जाएं. जब तक लोगों के लिये रोजगार नहीं होगा भुखमरी बनी रहेगी. न मजदूर खुश होगा न किसान. वह ऐसे ही दीयों के बचे तेल से अपने घर की सब्जी बनाने के इंतजाम करता रहेगा. सरकार कितने भी किसानों के लोन माफ कर दे, कुछ ही दिनों में फिर से वहीं हालात बन जायेंगे.

धार्मिक प्रपंच में जुटे लोग इस तथ्य को समझ लें कि इसी देश में कहा गया है कि ‘भूखे भजन न होय गोपाला’ इसका अर्थ है कि अगर कोई भूखा है तो वह किसी भी तरह से धार्मिक प्रवचन न कर सकता है और न सुन सकता है. जिस समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दीप जला कर अयोध्या में खुशियों की दीवाली मना रहे थे, भूखे पेट रहने वालों की नजर उन दीयों पर रही होगी, वह सोच रहे होंगे कि दीयें कितनी जल्दी बुझ जाये, जिससे दीयों का तेल बचा रह सके. उनकी असल खुशी दीयों के जलने से नहीं दियों के बुझने से थी. उनकी भूख जलने वाले दीयों से नहीं बुझे दीयों से बुझी, जिनसे उनको सब्जी बनाने के लिये तेल मिल सका. अयोध्या की ऐसी दीवाली के सच को समझ कर समाज के अंतिम आदमी की खुशहाली से समाज में बदलाव होगा. भूखे पेट तो धर्म की चर्चा भी नहीं होती.

मेरी ऐक्स रे रिपोर्ट में पेशाब की थैली में 5-6 एमएम का स्टोन दिखा है. मुझे क्या करना चाहिए.

सवाल
मेरी ऐक्स रे रिपोर्ट में पेशाब की थैली में 5-6 एमएम का स्टोन दिखा है, लेकिन किडनी के ऐक्स रे में स्टोन के चिह्न नहीं हैं. बड़ी आंत में कुछ टेढ़ापन हो गया है, जिस से मेरा पाचन गड़बड़ा गया है. कभीकभी मुझे पेट के दाहिनी ओर दर्द होता है. कई दवाएं लीं, लेकिन अभी भी निश्चित नहीं है कि स्टोन निकल गया है या नहीं. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
अगर आप का स्टोन मूत्रथैली और मूत्रनली के संधिस्थल पर है तो यह स्वत: निकल जाएगा. दिन में भरपूर पानी पीएं. हर घंटे बाद कम से कम 1 गिलास. भोजन करने के 2 घंटे बाद 1 गिलास पानी में सिट्रोसोडा घोल कर रोजाना 3 बार पीएं. कुछ स्टोन ऐक्स रे में दिखाई नहीं देते हैं, इसलिए 2 सप्ताह के बाद अल्ट्रासाउंड करा लें. अगर उस में अभी भी स्टोन दिखाई देता है तो मैं कुछ और दवाएं बताऊंगी.

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