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क्या नवाजुद्दीन ने अपने चेहरे पर कई मुखौटे लगा रखे हैं?

यूं तो बौलीवुड से जुड़ने वाला हर कलाकार यही दावा करता है कि वह अपने आपको खुशकिस्मत समझता है कि अभिनय के क्षेत्र में कार्यरत होने की वजह से वह अपनी एक ही जिंदगी में कई जिंदगियां जीने का सौभाग्य पा गया.

मगर जब  से अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दिकी की बायोग्राफी/आत्मकथा बाजार में आयी है, तब से जिस तरह से इस बायोग्राफी की वजह से उन पर आरोप लग रहे हैं, उससे जो  तस्वीर उभर रही है, उससे तो यही आभास होता है कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अपनी निजी जिंदगी में भी अपने चेहरे पर अनेक मुखौटे लगा रखे हैं. वह हकीकत में सिर्फ झूठ का पुलिंदा मात्र हैं? फिर भी हम भी हम यही मानते हैं कि असली सच तो नवाजुद्दीन सिद्दिकी या फिल्म ‘‘मिस लवली’’ की उनकी सह कलाकार  निहारिका और सुनीता राजवार ही बेहतर जानती हैं?

नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अपनी बायोग्राफी ‘‘एन आर्डीनरी लाइफ’’ में कई औरतों के संग अपने रिश्तों को लेकर खुलकर बात की है. इस किताब में उन्होंने अपनी कमजोरियों को भी स्वीकार किया है. नवाजुद्दीन ने अपनी किताब में अपने प्रेम संबंधों को स्वीकार करते हुए स्वीकार किया है कि उनका लगाव प्रेमिकाओं के शरीर के प्रति ही था. पर अंततः उन्होंने खुद को महान साबित करने का ही प्रयास किया है. जब से यह किताब और इसके अंश उजागर हुए हैं, तब से उन पर लगातार हमले हो रहे हैं.

निहारिका सिंह और नवाजुद्दीन सिद्दिकी

सबसे पहले फिल्म ‘‘मिस लवली’’ में नवाजुद्दीन सिद्दिकी की सह कलाकार रहीं निहारिका सिंह ने नवाजुद्दीन को एक नंबरी झूठा बताते हुए उन पर कई तरह के आरोप लगाते हुए नवाजुद्दीन सिद्दिकी पर सबसे बड़ा आरोप लगाया कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अपनी किताब को बेचने के लिए किताब के अंदर महिलाओं के सम्मान की धज्जियां उड़ाई हैं. वास्तव में नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अभिनेत्री निहारिका के साथ अपने संबंधों का जिक्र करते हुए लिखा है-‘‘मैं पहली बार निहारिका के घर गया…जैसे ही दरवाजा खोला…हजारों मोमबत्तियां टिमटिमा रही थीं. मैं ठहरा देहाती कामुक आदमी, मैंने उसे बांहों में भरा और सीधे बेडरूम में दाखिल हो गया. हमने जमकर प्यार किया….’’.

निहारिका सिंह ने कहा है- ‘‘नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने जो कुछ भी मेरे संदर्भ में अपनी किताब में लिखा है, वह सब गलत व ‘झूठ का पुलिंदा’ के अलावा कुछ नहीं है. उनसे मेरा संबंध डेढ़ साल नहीं फिल्म ‘मिस लवली’ के दौरान कुछ माह का था. ऐसे में उनका यह कहना कि मैं उनके बिस्तर पर होती थी, सरासर गलत है. इसके अलावा भी मेरे संबंध में जो कुछ नवाज ने लिखा है, वह सब झूठ है.’’

निहारिका सिंह

निहारिका सिंह के आरोपों पर नवाजुद्दीन सिद्दिकी सफाई पेश करते उससे पहले ही ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’’ में उनकी जूनियर रहीं तथा ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं, ‘एक चालीस की लास्ट लोकल’, ‘संकट सिटी’ जैसी फिल्मों व ‘‘शुगुन’’, ‘रामायण’, ‘हिटलर दीदी’, सहित कई टीवी सीरियलों में अभिनय कर चुकी अभिनेत्री सुनीता राजवार ने तो नवाजुद्दीन सिद्दिकी के खिलाफ सोशल मीडिया यानी कि ‘‘फेसबुक’’ पर लंबा चौड़ा लेख लिखकर नवाजुद्दीन सिद्दकी की धज्जियां उड़ाते हुए उन्हे औरतों का सबसे बड़ा दुश्मन तक बता दिया है.

बात यहीं खत्म नहीं होती है. फेसबुक पर टीवी सीरियलों से जुड़े कई निर्देशक, अभिनेता व अभिनेत्रियां भी सुनीता राजवार के समर्थन में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी नजर आ रही हैं. सुनीता राजवार ने नवाजुद्दीन सिद्दिकी को उन्हीं की भाषा में जवाब देते हुए अंत में लिखा है,-‘‘मैं पहाड़न नहीं, पहाड़ हूं.’’

सुनीता राजवार

वास्तव में नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अपनी इस किताब में सुनीता राजवार को अपनी पहली प्रेमिका बताया है. नवाज ने लिखा है कि मुंबई में उन्हें कैसे एक अभिनेत्री से इश्क हुआ था. और एक दिन वह उन्हें छोड़कर चली गयी थी.

पर सुनीता राजवार ने अपनी फेसबुक पोस्ट में आरोप लगाया है कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने उनसे कई झूठ बोले हैं. नवाज को औरतों की इज्जत करनी नहीं आती. नवाजुद्दीन सिद्दिकी से अपने अलग होने की असली वजह बताते हुए सुनीता राजवार ने लिखा है-‘‘नवाजुद्दीन ने इस किताब में सब कुछ अपनी मनमाफिक लिखा है. उन्होंने बड़ी खूबसूरती से सारी बुराई का ठीकरा औरतों पर फोड़ दिया है. सबसे बड़ा झूठ यही है कि उन्होंने लिखा है कि एनएसडी में वह मुझसे मिले ही नहीं थे, जबकि एनएसडी में वह मेरे सीनियर थे. तो जाहिर है कि हमारी मुलाकात तो होती होगी. नवाज हमेशा से सिम्पथी सीकर रहे हैं. सहानुभूति बटोरने के लिए वह खुद को गरीब, वाचमैन की नौकरी करने जैसी बातें करते हैं, जबकि वह एक अच्छे परिवार से थे. मैं तो अपने दोस्त के घर रहकर स्ट्रगल कर रही थी. मैंने तुम्हे इसलिए छोड़ा था, क्योंकि तुम हमारे संबंधों का मजाक बनाते हुए सब ब्यक्तिगत बातें हमारे कामन फ्रेंड्स के साथ शेयर करते थे. तब मुझे पता चला कि तुम औरत और प्यार के बारे में क्या राय रखते हो. मैंने तुम्हे तुम्हारी गरीबी की वजह से नहीं, तुम्हारी गरीब सोच की वजह से छोड़ा था. अभी तो मेरी हर शिकायत से तेरा कद बहुत छोटा है.’’

नवाजुद्दीन सिद्दिकी भी फेसबुक पर हैं. सुनीता का पोस्ट आए तीन दिन बीत जाने  के बावजूद नवाजुद्दीन सिद्दिकी चुप हैं.

राजनीतिक पार्टियों के लिए सरल नहीं ‘सामाजिक समरसता’

जातीय आधार पर नेताओं के लिये वोट लेना भले ही सरल काम हो, पर सरकार बनाने के बाद जातीय संतुलन साधना कठिन काम होता है. यही वजह है कि बहुमत से सरकार बनाने वाले दलों को 5 साल में ही हार का सामना करना पड़ता है. अब जातीयता राजनीतिक दलों को भी स्थिर नहीं होने दे रही है.

वोट लेने के समय राजनीतिक दलों के लिये सामाजिक समरसता कायम करना भले ही सरल होता हो पर सरकार चलाते समय इसको बनाये रखना मुश्किल काम हो जाता है. मायावती की सोशल इंजीनियंरिंग से लेकर योगी की सामाजिक समरसता तक यह बार बार साबित होता दिख रहा है.

उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले की तिलोई विधानसभा से विधायक मंयकेश्वर शरण सिंह और योगी सरकार में आवास राज्य मंत्री सुरेश पासी के बीच छिडी वर्चस्व की लड़ाई इसका ताजा पैमाना है. सुरेश पासी जगदीशपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं और वह उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी हैं. तिलोई और जगदीशपुर विधानसभा आसपास हैं. अपनी राजनीति को बनाये रखने के लिये विधायक मंयकेश्वर शरण सिंह और मंत्री सुरेश पासी एक दूसरे के क्षेत्रों में दखलदांजी भी करते रहते थे. आपसी प्रभाव को बढ़ाने के लिये यह कई बार आमने सामने भी आ जाते हैं. सबसे प्रमुख बात यह है कि दोनों ही भाजपा से विधायक हैं.

मंत्री होने के कारण सुरेश पासी के पास ज्यादा अधिकार होते हैं. सरकारी नौकर भी विधायक से अधिक मंत्री की बात को महत्व देते हैं. सुरेश पासी जगदीशपुर से चुनाव भले ही लड़ते हों पर उनका अपना निजी घर तिलोई विधानसभा में पड़ता है. लगातार 3 बार से गांव की प्रधानी सुरेश पासी के परिवार के पास है. ऐसे में सुरेश पासी को तिलोई क्षेत्र में भी पैरवी करनी पड़ती है. इसके कारण तिलोई के विधायक मंयकेश्वर शरण सिंह सिंह के साथ उनकी प्रतिस्पर्धा बन जाती है.

एक ही पार्टी भाजपा में होने के बाद दोनों नेताओ के बीच किसी किस्म का तालमेल नहीं है. एक पार्टी में होने के बाद भी दोनों ही नेताओं के अपने जमीनी समीकरण अलग अलग होते हैं. दोनों के बीच विवाद इस कदर बढ़ गया था कि विधायक मंयकेश्वर शरण सिंह ने अपने पद से त्यागपत्र तक देने का मन बना लिया. इसके बाद वह प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले.

विधायक मंयकेश्वर शरण सिंह की नाराजगी के चलते पुलिस अधीक्षक अमेठी पूनम का वहां से तबादला कर दिया गया. एसपी अमेठी विधायक और मंत्री के बीच तालमेल करने में सफल नहीं रह सकी. भाजपा के सामने यह पहला मामला है जो खुलकर सामने आ गया है. वैसे पूरे प्रदेश में ऐसे तमाम मामले हैं, जहां नेताओें की जमीनी स्तर पर अलग अलग खेमेबंदी है. भाजपा ने विधानसभा चुनाव के समय अलग अलग दलों और जातीय नेताओं को अपने साथ जोड़ा, अब इनको साथ लेकर चलना मुश्किल हो रहा है. इन नेताओं की आपसी खेमेबंदी का नुकसान पार्टी को चुकाना पड़ सकता है. कई जिलों में मंत्रियों और विधायकों के बीच अंदरखाने आपस में ठनी हुई है.

बहुत सारे विधायक और मंत्री अपने चहेते लोगों को पार्टी में अहम पदों पर बैठाना चाहते हैं. जातीय आधार पर देखें तो पता चलता है कि भाजपा सदा से ही अगडी जातियों की पार्टी रही है. ऐसे में अगडी जाति के नेता स्वाभाविक तौर पर अपना अलग महत्व चाहते हैं. भाजपा ने वोट के लिये दलित और पिछडे वर्ग के नेताओं को पार्टी से जोड़ा. चुनाव के बाद अब जमीनी स्तर पर इनके बीच तालमेल बनाये रखना कठिन काम हो गया है. जातीय आधार पर सबसे अधिक परेशानी दलित वर्ग को हो रही है. उसके नेता से लेकर कार्यकर्ता तक को बड़ा महत्व नहीं मिल रहा है. भाजपा में धर्म के रूढिबंधन को मानने वालों की संख्या ज्यादा है, वह लोग दलित के साथ तालमेल नहीं बना पा रहे. भाजपा बार बार इस मुद्दे को दबाने में लगी रहती है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और संगठन मंत्री सुनील बंसल पार्टी कार्यकर्ताओं को परिवारवाद से दूर रहने और आपसी तालमेल से रहने की बात समझाते हैं. इसके बाद भी नेता किसी न किसी मुद्दे को लेकर सामने आ ही जाते हैं. ऐसा केवल भाजपा के ही साथ नहीं हुआ है.

इसके पहले बसपा यानि बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी को भी इसका शिकार होना पड़ा है. 2007 में मायावती ने ब्राहमण दलित गठजोड़ के साथ सोशल इंजीनियंरिंग की रणनीति तैयार की. जिसमें दलितों के साथ कई अगडी जातियों ने भी बसपा का साथ दिया. जिसके बल पर मायावती को पहली बार बहुमत से सरकार बनाने का मौका मिला. सरकार बनाने के बाद बसपा इस संतुलन को बनाये रखने में सफल नहीं हो सकी. जिससे सरकार के मंत्रियों और कार्यकर्ताओ के बीच दूरियां बढ़ने लगी. जो दलित वर्ग कभी बसपा का मुख्य आधार होता था वह खुद पार्टी से दूर जाने लगा. जिसकी वजह से बसपा को विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव दोनो में ही करारी हार का सामना करना पड़ा.

बसपा की ही तरह समाजवादी पार्टी के साथ भी यही हुआ. पिछड़ों के बेस वोट के बाद मुसलिम और अगडों को साथ लेकर 2012 में बहुमत की सरकार बना ली. अखिलेश यादव की युवा छवि और मुलायम सिंह यादव की संगठन क्षमता भी सरकार के समय जातीय संतुलन साधने में असफल रही. अलग अलग जातियों के नेता सपा से नाराज हो गये. सबसे अधिक परेशानी में अति पिछड़े और दलित नेता और लोग थे. उनको लग रहा था कि अखिलेश सरकार में उनकी सुनी नहीं जा रही है. ऐसे में जब 2014 के लोकसभा चुनाव आये तो यह वर्ग भाजपा के पक्ष में खड़ा हो गया. जिसकी वजह से केवल लोकसभा चुनाव ही नहीं विधानसभा चुनाव में भी सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा. अखिलेश यादव का युवा चेहरा और मुलायम के संगठन की नीति काम नहीं आई.

2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने भी अपने काडर वोट के अलावा दलित और पिछड़ों को पार्टी के साथ जोड़ने में सफलता तो हासिल कर ली पर अब इनको एक साथ लेकर चलना भारी पड़ रहा है. भाजपा का मुख्य अगडा वोट वर्ग पार्टी से खुश नहीं है. खासकर बनिया और ब्राहमण वर्ग पार्टी में खुद को बेहतर नहीं समझ रहा है.

भाजपा ने जातीय के साथ बाहरी नेताओं को भी पार्टी में शामिल किया. यह नेता भाजपा के पुराने नेताओं के साथ सहज भाव से एकजुट नहीं हो पा रहे हैं. ऐसे में भाजपा की पहले वाली चमक फीकी पड़ने लगी है. इसका खामियाजा पार्टी को आने वाले चुनावों में भुगतना पड़ सकता है. राजनीतिक दल जातीय आधार पर अलग अलग नेताओं को पार्टी में ले तो आते हैं, पर वह आपस में सही तरह से रह नहीं पाते, ऐसे में होने वाला बिखराव पार्टी के लिये भारी पड़ता है.

WhatsApp लाया दिलचस्प फीचर, मैसेज, वीडियो, फोटो कर सकेंगे डिलीट

व्हाट्सऐप हमसब की रोजमर्रा की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है. यह एक ऐसा मैसेजिंग ऐप है जिसके जरिये अधिकतर लोग अपने दोस्तों और परिजनो से हमेशा संपर्क में रहते हैं. व्हाट्सऐप एक बेहद ही निजी ऐप है और खासकर की उसके द्वारा किया गया चैट. कईबार हम किसी को गलती से कुछ ऐसा भेज देते हैं जो उनके लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए होता है या कईबार हम मैसेज भेजने के बाद उसे डिलीट करने का सोचते हैं, पर ऐसा कर नहीं पाते. लेकिन लगता है कि यह अब सम्भव होने वाला है.

अब हम अपना भेजा गया मैसेज वापस ले सकेंगे. जी हां ये सच है, क्योंकि अब वाट्सऐप अपने यूजर्स के लिए जल्द ही नई सौगात लाने वाली है. वह एक नये और दिलचस्प फीचर ‘डिलीट फार एवरीवन’ पर काम कर रही है. हमें मिली जानकारी के अनुसार वाट्सऐप यूजर्स इस फीचर की मदद से महज सात मिनटों के भीतर किसी को भेजे गए मैसेज, वीडियो और फोटो को वापस ले सकेंगे.

‘डिलीट फार एवरीवन’ से लोग ग्रुप के साथ-साथ पर्सनल मैसेज को भी वापस पा सकेंगे. हालांकि, जो मैसेज सामने वाले शख्स ने नहीं पढ़े या देखे होंगे, वे दोबारा आ जाएंगे.कंपनी कुछ दिनों से इस नये फिचर पर टेस्टिंग कर रही थी और इसे लागू करने के बारे में सोच रही थी. रिपोर्ट के मुताबिक, आपको इस फीचर का लाभ लेने के लिए वाट्सऐप का सबसे लेटेस्ट वर्जन चाहिए होगा.

खास बात है कि वाट्सऐप की ‘डिलीट फार एवरीवन’ न केवल टेक्स्ट मैसेज तक सीमित है, बल्कि इसके जरिए फोटो, वीडियो, ग्राफिक इंटरचेंज फार्मेट (जिफी), कान्टैक्ट कार्ड्स सरीखी चीजें शेयर की जा सकती हैं. वेबसाइट की मानें, तो यह फीचर अभी चालू नहीं किया गया है और इस पर फिलहाल काम चल रहा है.

यों करें ज्वैलरी की देखभाल जिससे बनी रहेगी गहनों की चमक

गहने चाहे जिस धातु के हों, जब उन्हें नियमित रूप से इस्तेमाल किया जाता हो तो उन में मैल व गंदगी बैठ ही जाती है और उन की चमक फीकी पड़ने लगती है. नए गहने भी पुराने नजर आने लगते हैं. ऐसे में गहनों का विशेष खयाल रखने की जरूरत होती है, ताकि उन की चमक बरकरार रहे. वैसे आप इन की चमक व खूबसूरती के लिए इन्हें ज्वैलर के यहां ले जा सकती हैं पर वह उन्हें कैमिकल से साफ करेगा. बारबार ऐसा करने से गहनों का वजन घट सकता है. अत: घर में ही कुछ बेहतर ढंग से इन की सफाई व रखरखाव किया जा सकता है.

सोने और प्लैटिनम के गहनों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत नहीं पड़ती पर नियमित प्रयोग होने वाले गहनों की साफसफाई जरूरी है. रोज पहनने से ज्यादा असर चांदी के गहनों पर पड़ता है. चांदी के गहनों के काला पड़ने की आशंका रहती है.

सुभाषिनी और्नामैंट के ज्वैलरी डिजाइनर आकाश के. अग्रवाल बता रहे हैं गहनों की रौनक बरकरार रखने आसान तरीके:

गहनों की घर पर सफाई करें ऐसे

सोने के गहने: सोने के गहनों को साफ करने के लिए पहले उन्हें साफ कपड़े से पोंछ लें. फिर चुटकी भर हलदी लगा कर मलमल के कपड़े से हलका रगड़ें. गहने साफ हो जाएंगे.

डिश सोप से सफाई: एक कटोरी में गरम पानी ले कर उस में लिक्विड डिटर्जैंट की कुछ बूंदें डाल कर मिलाएं. बेहतर परिणाम के लिए सोडियम फ्री सैल्टजर या क्लब सोडे का इस्तेमाल कर सकती हैं. कभी भी बहुत ज्यादा उबलते पानी का उपयोग न करें. खासकर तब जब आप के गहने नाजुक और कीमती रत्नों से जड़े हों. सोने के गहनों को डिटर्जैंट के पानी में 15 मिनट तक भिगोए रखें ताकि गरम डिटर्जैंट का पानी गहनों की दरारों में घुस कर वहां जमी गंदगी को ढीला कर दे. फिर नर्म दांतों वाले टूथब्रश से साफ करें. वैसे गहनों की सफाई के लिए विशेष ब्रश मिलते हैं. उन का प्रयोग करें तो बेहतर होगा. गहनों को गोल्ड क्लीनिंग लिक्विड से भी साफ कर सकती हैं, जो बाजार में आसानी से उपलब्ध है.

चांदी के गहने: चांदी के गहनों को हमेशा डब्बे में बंद रखें. हवा व नमी से ये काले पड़ सकते हैं. नियमित प्रयोग होने वाले चांदी के गहनों पर थोड़ा सा टूथपेस्ट उंगलियों की मदद से रगड़ कर कुछ मिनट छोड़ दें. फिर टूथब्रश से धीरेधीरे रगड़ कर साफ मुलायम कपड़े से साफ कर लें या टिशू पेपर से धीरेधीरे सक्रब करें.

एक कटोरा गरम पानी में 1 चम्मच बेकिंग सोडा डाल कर 5 मिनट छोड़ दें. अब उस में चांदी की ज्वैलरी को कुछ देर डिप करें. फिर निकाल कर मलमल के कपड़े से पोंछ लें.

नौन ब्लीच डिटर्जैंट पाउडर से भी चांदी के गहने साफ कर सकती हैं. एक कटोरे में पानी भर कर डिटर्जैंट घोल लें. फिर चांदी के गहनों को 10 मिनट उस में डिप कर के छोड़ दें और कुछ देर बाद निकाल कर कपड़े से साफ कर लें.

उबलू आलुओं के पानी से चांदी के गहने साफ करने पर भी उन में चमक आ जाएगी.

मोती के गहने: सफेद चमकदार मोती हर किसी का मन मोह लेते हैं. मगर यदि इन की साफसफाई और रखरखाव ठीक से न किया जाए तो ये अपनी चमक खो देते हैं. मोती पर कोटिंग की जाती है, जिस का नमी के कारण निकलने का खतरा रहता है.

मोती के गहनों को खरीदते ही उन पर ट्रांस पैरेंट नेलपौलिश की परत चढ़ा दें तो वे जल्दी काले नहीं पड़ते.

मोतियों के गहनों को रुई में स्प्रिट लगा कर साफ करने से उन में चमक आ जाती है.

अगर मोती गंदे हो जाएं तो उन्हें मलमल के कपड़े को गीला कर के उस से साफ करें. उन्हें कभी मोटे कपड़े से साफ न करें. वरना उन में लगी कोटिंग छूट जाएगी.

मोतियों को कभी शार्प गहनों के साथ न रखें, वरना उन में जरा सी भी खरोंच लग गई तो बेकार हो जाएंगे.

मोतियों के नैकलैस को साल में एकबार जरूर ज्वैलर्स से बंधवा लें ताकि मजबूती बरकरार रहे.

प्लैटिनम के गहने: प्लैटिनम ‘सोना’ भी कहलाता है. इस तरह करें इन का रखरखाव:

प्लैटिनम के गहनों को अमोनिया से साफ न करें.

साबुन के पानी में ज्यादा देर तक न रखें.

प्लैटिनम के गहनों की सफाई के लिए हलके साबुन का झाग बना कर छोटे ब्रश से रगड़ें, फिर धो कर सुखा लें.

17 स्टाइलिंग टिप्स जिन्हें आजमाकर आप भी सुपर फैशनेबल नजर आएंगी

फैस्टिव गैटटुगैदर हो या परिवार, मित्रों के साथ आउटिंग का प्लान, अपने रैग्युलर आउटफिट को नए तरीके से पहन कर और स्टाइलिंग के इन स्मार्ट तरीकों को ध्यान में रख कर आप भी सुपर फैशनेबल नजर आ सकती हैं:

  1. अगर फुलस्लीव कैजुअल शर्ट, टीशर्ट या टौप पहन रही हैं, तो उस की बाजुओं को 2-3 बार फोल्ड कर के थ्रीफोर्थ स्लीव्स बना लें. इसी तरह थ्रीफोर्थ स्लीव्स को फोल्ड कर के हाफ स्लीव्स बना लें. यह स्टाइल आप को फैशनेबल लुक देगा.
  2.  शर्ट्स और टीशर्ट्स की स्लीव्स की तरह जींस, जैगिंग्स, पैंट जैसे बौटम वियर को भी रैग्युलर अंदाज में पहनने के बजाय उस के बौटम को सलीके से फोल्ड कर के सिंगल या डबल कफ बना लें. इस तरह आप का रैग्युलर बौटम वियर आप को फैशनेबल लुक देगा.
  3. अगर आप टौप, टीशर्ट, शर्ट, शौर्ट या लौंग ड्रैस के साथ जैकेट पहनना पसंद करती हैं, तो अगली बार जैकेट पहनने के बजाय उसे दोनों ओर कंधों पर रख कर उस के स्लीव्स को फ्री छोड़ दीजिए. जैकेट कैरी करने का यह तरीका लोगों को आकर्षित करेगा.
  4. ह्यूज साइज के साथ स्मौल साइज के आउटफिट का कौंबिनेशन भी फैशनेबल लुक देता है जैसे क्रौप टौप के साथ प्लाजो, शौर्ट शर्ट के साथ लेयर्ड स्कर्ट, शौर्ट्स के साथ ओवरसाइज्ड टौप, शौर्ट ड्रैस के साथ नी या ऐंकल लैंथ जैकेट या फिर श्रग.
  5. फुल व्हाइट लुक भी आप को फैशनेबल लुक दे सकता है जैसे व्हाइट जींस के साथ व्हाइट शर्ट पहनें. उस के साथ व्हाइट फुटवियर और व्हाइट हैंडबैग कैरी करें. बाकी ऐक्सैसरीज जैसे वाच, इयररिंग्स, नैकपीस, कफ आदि कलरफुल चुनें.
  6. अगर आप फैशनेबल दिखना चाहती हैं, तो व्हाइट के साथ ब्लैक, ग्रीन के साथ रैड जैसे कौमन कौंबिनेशन पहनने के बजाय अनकौमन शेड्स का कौंबिनेशन ट्राई करें जैसे बेबी ब्लू के साथ डीप यलो, ब्लू के साथ इंडिगो, प्लम के साथ मस्टर्ड शेड, पर्पल के साथ रैड, डार्क ब्लू के साथ सी ब्लू, औरेंज के साथ यलो आदि.
  7. प्रिंटेड आउटफिट के साथ सिंगल शेड वियर का कौंबिनेशन भी आप को मिस ब्यूटीफुल का खिताब दिला सकता है जैसे प्लेन व्हाइट टौप के साथ प्रिंटेड स्कर्ट पहनें. प्रिंटेड पैंट के साथ प्लेन व्हाइट, औफ व्हाइट या यलो शर्ट, प्रिंटेड ड्रैस के ऊपर सिंगल शेड जैकेट आदि.
  8. डिफरैंट आउटफिट के साथ स्कार्फ, स्टोल और शाल का कौंबिनेशन भी सुपर फैशनेबल लुक देता है जैसे वैस्टर्न टौप या टीशर्ट के साथ स्कार्फ को गले में घुमा कर पहनें. इंडियन ट्यूनिक और कुरती के साथ स्टोल को वन साइड कंधे पर रखें और साड़ी के साथ शाल को दोनों तरफ से कवर करें.
  9. बैल्ट, नौट और रिबन भी आप की पर्सनैलिटी को स्टाइलिश बना सकते हैं जैसे स्किनी जींस के साथ थिन बैल्ट पहनें. शौर्ट्स या लौंग ड्रैस के ऊपर ब्रोच वाली बैल्ट पहनें. स्कर्ट और प्लाजो के साथ रिबन बांधें. बैल्ट के बोल्ड शेड्स चुनें. ये आप की पर्सनैलिटी को हाईलाइट करेंगे.
  10. अपनी पर्सनैलिटी को फैशनेबल टच देने के लिए अपने पास राउंडेड हैट भी जरूर रखें और जब भी आउटडोर या ट्रैवलिंग के लिए बाहर जाएं, इसे पहन लें. लेकिन जब भी हैट पहनें, बालों को खुला छोड़ें और मोर स्टाइलिस्ट लुक के लिए हैट को थोड़ा क्रौस कर के पहनें.
  11. आप के बालों की स्टाइलिंग और कट भी आप को फैशनेबल बना सकती है. इस के लिए स्टैप, लेयर या फिर फं्रट बैंग्स वाला हेयर कट चुनें या फिर बालों का हाई पोनी, मैसी बन बना लें. अगर अपने हेयरस्टाइल को लंबे समय तक फैशनेबल बनाए रखना चाहती हैं तो बालों को कलर करें या फिर उन्हें स्ट्रेट अथवा कर्ल करवाएं.
  12. आउटफिट से मैच करते बिग साइज इयररिंग्स, लौंग नैकपीस, स्टाइलिश हैंड कफ, डल सिलवर फिंगर रिंग, हैंड हारनेस, हैड गियर जैसी ट्रैंडी ऐक्सैसरीज में से किसी एक को अपना स्टाइल स्टेटमैंट बना कर भी आप फैशनेबल नजर आ सकती हैं.
  13. हेयर ऐक्सैसरीज जैसे हेयर बैंड, ह्यूज हेयर क्लिप, क्यूट बकल, स्मार्ट हेयर पिन, हेयर बो भी आप को फैशनेबल लुक देने के लिए काफी हैं, बशर्ते इन का चुनाव अपने आउटफिट को ध्यान में रख कर करें.
  14. आउटफिट की स्टाइलिंग और ऐक्सैसरीज ही नहीं, मेकअप के स्मार्ट ट्रिक्स भी आप की पर्सनैलिटी को हाईलाइट?कर सकते हैं जैसे स्मोकी आई मेकअप, डस्की आईशैडो, नैचुरल शेड ब्लशऔन, होंठों पर लगी बोल्ड शेड की मैट लिपस्टिक आदि.
  15. डिफरैंट टाइप्स के अट्रैक्टिव नेल आर्ट के साथ ही लंबे नाखून पर लगी प्लेन ब्लैक, व्हाइट, सिल्वर, गोल्डन या बोल्ड शेड जैसे रैड, पिंक, औरेंज, ब्लू की मैट फिनिश नेलपौलिश भी आप को फैशन आइकोन बना सकती है.
  16. फैशनेबल लुक के लिए आउटफिट से मेल खाता नहीं, बल्कि मैच न करने वाला फुटवियर पहनें जैसे जींस के साथ मोजडी, शौर्ट्स के साथ ग्लैडिएटर सैंडल, लैगिंग्स के साथ पैंसिल हील सैंडल आदि. मिस्ड मैच का यह कौंबिनेशन लोगों को आप की ओर खींच लाएगा.
  17. रैग्युलर वाच के बजाय अपनी कलाई में बिग साइज की स्पोर्टी, गोल्डन, सिल्वर, मैटल या ज्वैल्ड वाच पहन कर भी आप लोगों के बीच सैंटर औफ अट्रैक्शन बन सकती हैं जैंट्स वाच भी आप को डिफरैंट लुक दे सकती है.
  18. ध्यान रखें कि ड्रैस से ज्यादा यह बात महत्त्व रखती है कि आप ने ड्रैस को कैरी कैसे किया है और किस तरह की ऐक्सैसरीज इस के साथ चुनी है. इसलिए फैशनेबल स्टाइल अपनाने के लिए अपनी फिगर, ड्रैस के चयन और मैचिंग ऐक्सैसरीज का विशेष ध्यान रखें.

बैंको ने बंद किये एटीएम, क्या वाकई कैशलेस हो रहे हैं शहर?

जिस तरह से बैंको के लगातार एटीएम बंद होने की खबरें आ रही हैं, उससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि भारतीय अब धीरे धीरे कैशलेस होने की तरफ अपने कदम बढ़ा रहे हैं. इस साल जून से अगस्त के दौरान देश में अब तक 358 एटीएम बंद किए जा चुके हैं. इस तरह एटीएम की संख्या में 0.16% की कमी आ चुकी है. देश में भारतीय स्टेट बैंक का सबसे बड़ा एटीएम नेटवर्क है. जून में एसबीआई के देश भर में एटीएम की संख्या 59,291 थी, जो अगस्त में घटकर 59,200 ही रह गई. पंजाब नैशनल बैंक के एटीएम की संख्या 10,502 से घटकर 10,083 हो गई है. निजी क्षेत्र के दिग्गज बैंक एचडीएफसी के एटीएम की संख्या 12,230 से कम होकर 12,225 हो गई है.

यह पहला मौका है, जब एटीएम की संख्या बढ़ने की बजाय घटती नजर आ रही है. हालांकि बीते 4 सालों में एटीएम की संख्या में 16.4 फीसदी की तेजी से इजाफा हुआ था. नोटबंदी के बाद शहरों में एटीएम के इस्तेमाल में कमी और आपरेशनल कास्ट में इजाफा होने के चलते बैंकों को अब एटीएम व्यवस्था की समीक्षा करनी पड़ रही है.

एसबीआई के एक अधिकारी ने कहा कि अपने असोसिएट्स बैंकों के विलय होने के बाद हमने कुछ एटीएम बंद किए हैं. उन्होंने कहा, ‘हमें यह फैसला करना ही था कि क्या किसी एटीएम पर आ रही लागत उसकी उपयोगिता के मुताबिक सही है.

बैंकों का कहना है कि 7×5 स्क्वेयर फुट के एटीएम केबिन का एयरपोर्ट और मुंबई की प्राइम लोकेशन पर मासिक किराया 40,000 रुपये तक होता है. इसके अलावा सिक्योरिटी स्टाफ, औपरेटर्स, मेंटनेंस का चार्ज और बिजली बिल इन सभी को मिलाकर एक एटीएम के रखरखाव में लगभग 1 लाख रुपये महीने का खर्च आता है. खासतौर पर इसके बिजली का खर्च काफी अधिक होता है. इसलिए हमने ज्यादातर ऐसे एटीएम को बंद किया है, जिनके आसपास यानी 500 मीटर तक के दायरे में एसबीआई का कोई दूसरा एटीएम मौजूद था. इससे हमारे ग्राहकों को बहुत ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा.

इस मामले में भारत ने चीन और अमेरिका को पछाड़ा

परिवार नियंत्रित बिजनेस के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है. यहां ऐसी 108 कंपनियां लिस्टेड हैं. चीन में ऐसी कंपनियों की संख्या 167 और अमेरिका में 121 है. क्रेडिट सुइस रिसर्च ने एक स्टडी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है. स्टडी में करीब 1,000 परिवार नियंत्रित लिस्टेड कंपनियों का विश्लेषण किया गया है. इसके मुताबिक भारतीय कंपनियों का प्रबंधन दूसरों के मुकाबले ज्यादा परिपक्व है.

60% फैमिली बिजनेस तीसरी पीढ़ी के पास

यहां 60% फैमिली बिजनेस तीसरी पीढ़ी संभाल रही है. चीन में तीसरी पीढ़ी के मैनेजमेंट वाली सिर्फ 30% कंपनियां हैं. यहां परिवार नियंत्रित बिजनेस का मतलब ऐसी कंपनियों से है जिनमें फैमिली की शेयरहोल्डिंग या वोटिंग अधिकार कम से कम 20% हो.

भारतीय कंपनियों की सबसे बड़ी चुनौती उत्तराधिकार की प्लानिंग है. प्रतिस्पर्धा और टैलेंट बरकरार रखने को ये कंपनियां दूसरी और तीसरी बड़ी चुनौती मानती हैं. ये रेवेन्यू ग्रोथ को लेकर काफी आशान्वित हैं. चीन की कंपनियां उत्तराधिकार को समस्या नहीं मानती हैं. आश्चर्यजनक रूप से टेक्नोलौजी उनके लिए सबसे बड़ी समस्या है.

सालाना बिजनेस 3,300 करोड़ रुपए से ज्यादा

स्टडी में एक और बात सामने आई कि निवेशक इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं हैं कि कंपनी में परिवार की ओनरशिप कितनी है. उन्हें सिर्फ इस बात से मतलब है कि रोजमर्रा के बिजनेस में प्रोमोटर कितने शामिल हैं. भारत और चीन की आधी परिवार नियंत्रित कंपनियों का सालाना बिजनेस 3300 करोड़ रुपए से ज्यादा है.

परिवार नियंत्रित कंपनियों के शेयरों में ज्यादा रिटर्न

रिपोर्ट के अनुसार परिवार नियंत्रित कंपनियों का वित्तीय प्रदर्शन दूसरी कंपनियों की तुलना में बेहतर है. इनके शेयर भाव में बढ़ोती भी प्रोफेशनल्स द्वारा नियंत्रित कंपनियों की तुलना में ज्यादा है. ये कंपनियां लंबी अवधि में ग्रोथ की रणनीति बनाती हैं.

भारत, चीन, इंडोनेशिया की कंपनियां ज्यादा मंहगी

शेयर प्राइस के लिहाज से चीन, भारत और इंडोनेशिया की कंपनियां सबसे महंगी हैं. इनका पीई अनुपात 15-16 है. कोरिया, हांगकांग और सिंगापुर की कंपनियों का पीई 10-13 के बीच है.

इस सूची में भारत का स्थान 22वे पायदान पर है जबकि सबसे की श्रेणी कुछ इस प्रकार है सबसे उपर है स्पेन (1.95 लाख करोड़ रुपए), नीदरलैंड् (1.94 लाख करोड़ रुपए), जापान (1.56 लाख करोड़ रुपए), स्विट्जरलैंड (1.43 लाख करोड़ रुपए), भारत (22वें स्थान पर, 42,250 करोड़ रुपए).

पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों पर भारतीय कंपनियां पीछे

पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों पर भारत में सिर्फ 35% कंपनियां पौलिसी बनाती हैं, जबकि चीन में ऐसी कंपनियों की संख्या 65% है.

मेरी शादी को 6 महीने हुए हैं. मेरी बीवी को हमबिस्तरी करने का मन नहीं करता. मैं क्या करूं.

सवाल
मैं 28 साल का हूं. मेरी बीवी 22 साल की है. शादी को 6 महीने हुए हैं. मेरी बीवी को हमबिस्तरी करने का मन नहीं करता. मैं क्या करूं?

जवाब
आप की बीवी को शायद जिस्मानी संबंधों की सही जानकारी नहीं है. आप उसे अकेले में प्यार से सारी बातें बताएं व समझाएं. उस से कहें कि हमबिस्तरी करना आप दोनों का हक है और इनसानी जरूरत भी है. धीरेधीरे आप की बीवी इस बात को समझ जाएगी.

तो इस वजह से इस महान मुक्केबाज ने बदला अपना धर्म

सर्वकालिक महान मुक्केबाजों में शुमार किए जाने वाले मोहम्मद अली के मुसलमान बनने के बारे में नए दावे किए गये हैं. 17 जनवरी 1942 को जन्मे मोहम्मद अली 1964 में मुस्लिम बने थे. मोहम्मद अली की इस जीवनी में दावा किया गया है उनका ईसाई धर्म सो मोहभंग एक कार्टून के कारण हुआ था.

ये बात खुद अली ने लिखी है. अली ने अपनी पत्नी बेलिंडा के कहने पर मुसलमान बनने की वजह को लिखा था. अली की पत्नी बेलिंडा जीवनी लेखक को बताया, “वो सारी शालीनता भूल चुका था. वो भगवान की तरह बरताव करता था.

मैंने उससे कहा कि तुम खुद को सबसे महान कह सकते हो लेकिन तुम कभी अल्लाह से महान नहीं हो सकते.” मोहम्मद अली की जीवनी “अली” के लेखक जोनाथन ईग ने वाशिंगटन पोस्ट में लिखी रिपोर्ट में बताया है कि इस बहस के बाद ही मेलिंडा ने अली से इस बदलाव की वजह को लिखने के लिए कहा था. मेलिंडा जो अब खलिहा कामाचो-अली नाम से जानी जाती हैं, ने अली का लिखा वो लेख जीवनीकार को उपलब्ध कराया है.

अली का मूल नाम कैसियस क्ले जूनियर था. मेलिंडा के दिए लेख में अली ने बताया है कि वो किशोर थे तब वो लड़कियों का पीछा किया करते हुए इधर-उधर घूमते थे और ऐसे ही एक दिन उन्होंने सड़क पर एक आदमी को “नेशन औफ इस्लाम” अखबार बेचते हुए देखा था.

अली ने नेशन औफ इस्लाम संगठन के नेता एलिजा मोहम्मद के भाषण भी सुने थे लेकिन उन्होंने कभी उसमें शामिल होने के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा था. अली के अनुसार इस अखबार में छपे एक कार्टून ने उनका ध्यान सबसे ज्यादा खींचा था.

कार्टून में एक गोरा एक काले व्यक्ति को पीट रहा था और उससे ईसा मसीह की प्रार्थना करने को कह रहा था. अली ने लिखा है, “मुझे कार्टून पसंद आया. इसने मुझ पर असर किया. वो मुझे सही लगा”

जोनाथन के अनुसार अली ने अपने लेख में माना है कि उनकी आध्यात्मिक यात्रा सुंदर लड़कियों की तलाश और एक अखबारी कार्टून से शुरू हुई थी. कार्टून देखकर अली को महसूस हुआ कि वो स्वेच्छा से ईसाई नहीं हैं और न ही उनका नाम उनका चुना हुआ है.

अली को लगा कि उनका ईसाई होना गोरों की गुलामी का प्रतीक है. इसलिए वो ईसाई धर्म को छोड़ना चाहते थे. एलीजा मोहम्मद की मौत के बाद ही अली ने आधिकारिक तौर पर इस्लाम स्वीकार किया. मुक्केबाजी से संन्यास लेने के बाद भी अली कुरान और बाइबिल के तुलानत्मक चर्चा पसंद किया करते थे. तीन जून 2016 को उनका देहांत हो गया.

दस साल बाद दोहराया इतिहास, अभय चोपड़ा को फिर दुबकना पड़ रहा गुमनामी में

हर समाज की ही तरह बौलीवुड में बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है. मगर बौलीवुड में पिछले दस वर्ष के अंतराल में दूसरी बार ऐसा हो रहा है, जब बौलीवुड से जुड़े एक अतिशक्तिशाली परिवार की तीसरी पीढ़ी को दो बार गुमनामी के अंधेरे में दुबकने पर मजबूर होना पड़ा हो, फिर भी वह चुप हो.

यह कोई कोरी कल्पना नही है, बल्कि बौलीवुड का एक ऐसा सच है, जिस पर ‘‘सरिता’’ पत्रिका आज पहली बार परदा उठा रही है. क्योंकि इस सच को जानते हुए भी बौलीवुड से जुड़े किसी भी शख्स ने कभी कोई आवाज नहीं उठाई.

चलिए, सबसे पहले तो हम उस शख्स का नाम उजागर कर देते हैं, जिससे जुड़ा यह सच है. जी हां यह शख्स कोई और नहीं बल्कि बौलीवुड के सर्वाधिक सफल व सामाजिक फिल्मों के सर्जक स्व. बलदेव राज चोपड़ा उर्फ बी आर चोपड़ा के पोते यानी कि फिल्म सर्जक स्व. रवि चोपड़ा के बेटे तथा स्व.बलदेव राज चोपड़ा के सबसे छोटे भाई व फिल्मकार स्व. यश चोपड़ा के भी पोते और फिल्मकार आदित्य चोपड़ा के भतीजे अभय चोपड़ा हैं,

जिनके निर्देशन में बनी नई फिल्म ‘‘इत्तफाक’’ 3 नवंबर को प्रदर्शित होने वाली है.मगर अभय चोपड़ा को दस वर्ष के अंतराल में दूसरी बार गुमनामी के अंधेरे में दुबकने पर मजबूर होना पड़ा है.

सूत्रों के अनुसार अभय चोपड़ा ने अपने दादा व पिता की ही भांति बौलीवुड में फिल्मकार के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए विदेश में पढ़ाई की थी. विदेश में पढ़ाई के ही दौरान अभय चोपड़ा की दोस्ती मशहूर फिल्म सर्जक व अभिनेता स्व.राज कपूर के पोते और अभिनेता रिषि कपूर के बेटे रणबीर कपूर से हुई थी.

सूत्रों के अनुसार विदेश से मुंबई वापस लौटने के बाद अभय चोपड़ा ने एक फिल्म ‘‘आखिरी फैसला’’ का निर्माण, लेखन व निर्देशन किया था. इस फिल्म का काफी हिस्सा मुंबई से सटे ठाणे के सेंट्रल जेल में फिल्माया गया था. फिल्म आखिरी फैसला में हीरो के रूप में मुख्य भूमिका रणबीर कपूर ने निभायी थी.

फिल्म में सुरेंद्र पाल और शरत सक्सेना की भी अहम भूमिकाएं थी. सूत्र दावा करते है कि इस फिल्म में वर्तमान समय में अभिनेता के रूप में शोहरत बतौर रहे अर्जुन कपूर सहायक निर्देशक के रूप में काम करते हुए क्लैप देने का काम किया था.

सूत्र बताते हैं इस फिल्म को किसी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में पुरस्कृत भी किया गया था. मगर फिल्म ‘‘आखिरी फैसला’’ सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो पाती, उससे पहले ही रणबीर कपूर को फिल्म्कार संजय लीला भंसाली की बड़ी फिल्म ‘‘सांवरिया’’ मिल गयी. फिल्म ‘‘सांवरिया’’ को रणबीर कपूर की लौंचिंग फिल्म के रूप में प्रचारित किया गया.

9 नवंबर 2007 को ‘‘सांवरिया’’ प्रदर्शित हुई थी, जिसे दर्शकों ने नकार दिया था. उधर अभय चोपड़ा निर्देशित फिल्म ‘‘आखिरी फैसला’’ कहां गयी, आज तक किसी को कुछ पता नहीं चला.

सूत्र दावा करते हैं कि फिल्म सांवरिया की शुरूआत जब हुई, तब तक अभय चोपड़ा के पिता रवि चोपड़ा आर्थिक संकट से गुजर रहे थे, पर वह हार मानने की बजाय हर मुसीबत से जूझते हुए नई फिल्में भी बना रहे थे.

रवि चोपड़ा की एक फिल्म‘‘बंदा यह बिंदास है’’तो अदालती चक्कर में 2009 में फंसी थी और यह फिल्म आज तक प्रदर्शित नहीं हो पायी. जबकि 12 नवंबर 2014 को रवि चोपड़ा का देहांत हो गया था.

सूत्र तो कई तरह की कहानी सुना रहे हैं, वह कितनी सच हैं, पता नहीं मगर हालात से लोग समझ सकते हैं कि क्यों 2007 में अभय चोपड़ा को गुमनामी के अंधेरे में दुबकना पड़ा था. अब पूरे दस वर्ष बाद एक बार फिर इतिहास दोहराया जा रहा है, पर उसकी शक्ल थोड़ी सी बदली हुई है.

1969 में बलदेव राज चोपड़ा ने ‘‘बी आर फिल्मस’’ के बैनर तले एक फिल्म ‘‘इत्तफाक’’ का निर्माण किया था, जिसका निर्देशन यश चोपड़ा ने किया था. अब 1969 की फिल्म ‘‘इत्तफाक’’ से प्रभावित होकर  इसी नाम से फिल्म का निर्माण किया गया है,जिसके पटकथा लेखक व निर्देशक अभय चोपड़ा हैं.

तीन नवंबर को प्रदर्शित हो रही इस फिल्म‘‘इत्तफाक’’की कहानी अभय चोपड़ा ने श्रेयश जैन व निखिल मेहरोत्रा के साथ मिलकर लिखी है. फिल्म का निर्माण करण जोहर, गौरी खान, रेणु रवि चोपड़ा, हीरु यश जोहर ने किया हैं. (यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हीरू यश जोहर, स्व. बलदेव राज चोपड़ा की सबसे छोटी बहन हैं. इस आधार पर रिश्ते में हीरू यश जोहर, अभय चोपड़ा की बुआ दादी और करण जोहर, अभय चोपडा के चाचा लगते हैं.)

अभय चोपड़ा निर्देशित फिल्म ‘‘इत्तफाक’’ में सिद्धार्थ मल्होत्रा, अक्षय खन्ना और सोनाक्षी सिन्हा की अहम भूमिकाएं हैं. मगर इस फिल्म के ट्रेलर लौंच के साथ ही करण जोहर की कंपनी ‘धर्मा प्रोडक्शन’ की तरफ से कह दिया गया कि वह इस रहस्य प्रधान फिल्म को किसी भी माध्यम पर प्रमोट नहीं करेंगे.

यानी कि फिल्म ‘‘इत्तफाक’’ का ट्रेलर जरुर लोगों के सामने है. अन्यथा इस फिल्म को लेकर इस फिल्म से जुड़े किसी भी शख्स ने मीडिया से कोई बात नहीं की. फिल्म को प्रमोट करने के लिए अब तक कोई गतिविधि नहीं गयी?

अब यदि इस फिल्म ने बाक्स औफिस पर रिकार्ड तोड़ सफलता दर्ज करा दी, तब तो लोग पूछेंगे कि फिल्म का निर्देशक कौन है अन्यथा एक बार फिर नुकसान अभय चोपड़ा का होगा. यानी कि एक बार फिर अभय चोपड़ा गुमनामी के अंधेरे कोने में दुबकने के लिए मजबूर होंगे.

इस तरह सूत्र इस तरफ इशारा तो कर रहे हैं कि एक बार फिर इतिहास अपने आपको दोहरा रहा है. पर हमारे सूत्र यह नहीं बता रहे हैं कि इस बार अभय चोपड़ा को गुमनाम अंधेरे कोने में दुबकने के लिए किसने या किन हालातों ने मजबूर किया है. आखिर अभय चोपड़ा खुद मीडिया के सामने क्यों नहीं आ रहे हैं

अब अभय चोपड़ा के मन में क्या चल रहा है, यह तो वही बेहतर जानें…

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